23-10-99   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


समय की पुकार- दाता बनो

आज सर्व श्रेष्ठ भाग्य विधाता, सर्व शक्तियों के दाता बापदादा चारों ओर के सर्व बच्चों को देख हर्षित हो रहे हैं। चाहे मधुबन में सम्मुख में हैं, चाहे देश विदेश में याद में सुन रहे हैं, देख रहे हैं, जहाँ भी बैठे हैं लेकिन दिल से सम्मुख हैं। उन सब बच्चों को देख बापदादा हर्षित हो रहे हैं। आप सभी भी हर्षित हो रहे हो ना! बच्चे भी हर्षित और बापदादा भी हर्षित। और यही दिल का सदा का सच्चा हर्ष सारी दुनिया के दु:खों को दूर करने वाला है। यह दिल का हर्ष आत्माओं को बाप का अनुभव कराने वाला है क्योंकि बाप भी सदा सर्व आत्माओं के प्रति सेवाधारी है और आप सब बच्चे बाप के साथ सेवा-साथी हैं। साथी हैं ना! बाप के साथी और विश्व के दु:खों को परिवर्तन कर सदा खुश रहने का साधन देने की सेवा में सदा उपस्थित रहते हो। सदा सेवाधारी हो। सेवा सिर्फ चार घण्टा, छ: घण्टा करने वाले नहीं हो। हर सेकण्ड सेवा की स्टेज पर पार्ट बजाने वाले परमात्म-साथी हो। याद निरन्तर है, ऐसे ही सेवा भी निरन्तर है। अपने को निरन्तर सेवाधारी अनुभव करते हो? या 8-10 घण्टे के सेवाधारी हैं? यह ब्राह्मण जन्म ही याद और सेवा के लिए है। और कुछ करना है क्या? यही है ना! हर श्वांस, हर सेकण्ड याद और सेवा साथ-साथ है या सेवा के घण्टे अलग हैं और याद के घण्टे अलग हैं? नहीं है ना! अच्छा, बैलेन्स है? अगर 100 परसेन्ट सेवा है तो 100 परसेन्ट ही याद है? दोनों का बैलेन्स है? अन्तर पड़ जाता है ना? कर्म योगी का अर्थ ही है - कर्म और याद, सेवा और याद - दोनों का बैलेन्स समान, समान होना चाहिए। ऐसे नहीं कोई समय याद ज्यादा है और सेवा कम, या सेवा ज्यादा है याद कम। जैसे आत्मा और शरीर जब तक स्टेज पर है तो साथ-साथ है ना। अलग हो सकते हैं? ऐसे याद और सेवा साथ-साथ रहे। याद अर्थात् बाप समान, स्व के स्वमान की भी याद। जब बाप की याद रहती है तो स्वत: ही स्वमान की भी याद रहती है। अगर स्वमान में नहीं रहते तो याद भी पावरफुल नहीं रहती।

स्वमान अर्थात् बाप समान। सम्पूर्ण स्वमान है ही बाप-समान। और ऐसे याद में रहने वाले बच्चे सदा ही दाता होंगे, लेवता नहीं। देवता माना देने वाला। तो आज बापदादा सभी बच्चों के दातापन की स्टेज चेक कर रहे थे कि कहाँ तक दाता के बच्चे दाता बने हैं? जैसे बाप कभी भी लेने का संकल्प नहीं कर सकता, देने का करता है। अगर कहते भी हैं, सब कुछ पुराना दे दो तो भी पुराने के बदले नया देता है। लेना माना बाप का देना। तो वर्तमान समय बापदादा को बच्चों की एक टॉपिक बहुत अच्छी लगी। कौन सी टॉपिक? विदेश की टॉपिक है। कौन सी? (काल आफ टाइम।)

तो बापदादा देख रहे थे कि बच्चों के लिए समय की क्या पुकार है! आप देखते हो विश्व के लिए, सेवा के लिए, बापदादा सेवा के साथी तो हैं ही। लेकिन बापदादा देखते हैं कि बच्चों के लिए अभी समय की क्या पुकार है? आप भी समझते हो ना कि समय की क्या पुकार है? अपने लिए सोचो। सेवा प्रति तो भाषण किये, कर रहे हैं ना! लेकिन अपने लिए, अपने से ही पूछो कि हमारे लिए समय की क्या पुकार है? वर्तमान समय की क्या पुकार है? तो बापदादा देख रहे थे कि अभी के समय अनुसार हर समय, हर बच्चे को `दातापन' की स्मृति और बढ़ानी है। चाहे स्व-उन्नति के प्रति दाता-पन का भाव, चाहे सर्व के प्रति स्नेह इमर्ज रूप में दिखाई दे। कोई कैसा भी हो, क्या भी हो, मुझे देना है। तो दाता सदा ही बेहद की वृत्ति वाला होगा, हद नहीं और दाता सदा सम्पन्न, भरपूर होगा। दाता सदा ही क्षमा का मास्टर सागर होगा। इस कारण जो हद के अपने संस्कार या दूसरों के संस्कार वह इमर्ज नहीं होंगे, मर्ज होंगे। मुझे देना है। कोई दे, नहीं दे लेकिन मुझे दाता बनना है। किसी भी संस्कार के वश परवश आत्मा हो, उस आत्मा को मुझे सहयोग देना है। तो किसी का भी हद का संस्कार आपको प्रभावित नहीं करेगा। कोई मान दे, कोई नहीं दे, वह नहीं दे लेकिन मुझे देना है। ऐसे दातापन अभी इमर्ज चाहिए। मन में भावना तो है लेकिन..... लेकिन नहीं आवे। मुझे करना ही है। कोई ऐसी चलन वा बोल जो आपके काम का नहीं है, अच्छा नहीं लगता है, उसे लो ही नहीं। बुरी चीज़ ली जाती है क्या? मन में धारण करना अर्थात् लेना। दिमाग तक भी नहीं। दिमाग में भी बात आ गई ना, वह भी नहीं। जब है ही बुरी चीज़, अच्छी है नहीं तो दिमाग और दिल में लो नहीं यानी धारण नहीं करो। और ही लेने के बजाए शुभ भावना, शुभ कामना, दाता बन दो। लो नहीं; क्योंकि अभी समय के अनुसार अगर दिल और दिमाग खाली नहीं होगा तो निरन्तर सेवाधारी नहीं बन सकेंगे। दिल या दिमाग जब किसी भी बातों में बिजी हो गया तो सेवा क्या करेंगे? फिर जैसे लौकिक में कोई 8 घण्टा, कोई 10 घण्टा वर्क करते हैं, ऐसे यहाँ भी हो जायेगा। 8 घण्टे के सेवाधारी, 6 घण्टे के सेवाधारी। निरन्तर सेवाधारी नहीं बन सकेंगे। चाहे मन्सा सेवा करो, चाहे वाणी से, चाहे कर्म अर्थात् सम्बन्ध, सम्पर्क से। हर सेकण्ड दाता अर्थात् सेवाधारी। दिमाग को खाली रखने से बाप की सेवा के साथी बन सकेंगे। दिल को सदा साफ रखने से निरन्तर बाप की सेवा के साथी बन सकते हैं। आप सबका वायदा क्या है? साथ रहेंगे, साथ चलेंगे। वायदा है ना? या आप आगे रहो हम पीछे-पीछे आयेंगे? नहीं ना? साथ का वायदा है ना? तो बाप सेवा के बिना रहता है? याद के बिना भी नहीं रहता। जितना बाप याद में रहता उतना आप मेहनत से रहते हैं। रहते हैं लेकिन मेहनत से, अटेन्शन से। और बाप के लिए है ही क्या? परम आत्मा के लिए हैं ही आत्मायें। नम्बरवार आत्मायें तो हैं ही। सिवाए बच्चों की याद के बाप रह ही नहीं सकता। बाप बच्चों की याद के बिना रह सकता है? आप रह सकते हो? कभी-कभी नटखट हो जाते हैं।

तो क्या सुना? समय की पुकार है - दाता बनो। आवश्यकता है बहुत। सारे विश्व के आत्माओं की पुकार है - हे हमारे इष्ट......इष्ट तो हो ना! किसी न किसी रूप में सर्व आत्माओं के लिए इष्ट हो। तो अभी सभी आत्माओं की पुकार है - हे इष्ट देव-देवियाँ परिवर्तन करो। यह पुकार सुनने में आती है? पाण्डवों को यह पुकार सुनने में आती है? सुनकर फिर क्या करते हो? सुनने में आती है तो सैलवेशन देते हो या सोचते हो, हाँ करेंगे? पुकार सुनने में आती है? तो समय की पुकार सुनाते हो और आत्माओं की पुकार सिर्फ सुनते हो? तो इष्ट देव-देवियों अभी अपने दाता-पन का रूप इमर्ज करो। देना है। कोई भी आत्मा वंचित नहीं रह जाए। नहीं तो उल्हनों की मालायें पड़ेंगी। उल्हनें तो देंगे ना! तो उल्हनों की माला पहनने वाले इष्ट हो या फूलों की माला पहनने वाले इष्ट हो? कौन से इष्ट हो? पूज्य हो ना! ऐसे नहीं समझना कि हम तो पीछे आने वाले हैं। जो बड़े-बड़े हैं वही दाता बनेंगे, हम कहाँ बनेंगे। लेकिन नहीं, सबको दाता बनना है। जो फर्स्ट टाइम मधुबन में आने वाले हैं वह हाथ उठाओ।

जो फर्स्ट टाइम आये हैं वह दाता बन सकते हैं या दूसरे तीसरे साल में दाता बनेंगे? एक साल वाले दाता बन सकते हैं? (हाँ जी) बहुत अच्छे होशियार हैं। बापदादा हिम्मत के ऊपर सदा खुश होते हैं। चाहे एक मास वाला भी है, यह तो एक साल या 6 मास हुआ होगा लेकिन बापदादा जानते हैं कि एक साल वाले हों या एक मास वाले हों, एक मास में भी अपने को ब्रह्माकुमार या ब्रह्माकुमारी कहलाते हैं ना! तो ब्रह्माकुमार और ब्रह्माकुमारी अर्थात् ब्रह्मा बाप के वर्से के अधिकारी बन गये। ब्रह्मा को बाप माना तब तो कुमार-कुमारी बने ना? तो ब्रह्माकुमार और ब्रह्माकुमारी, बाप ब्रह्मा, शिव बाप के वर्से के अधिकारी बने ना! या एक मास वालों को वर्सा नहीं मिलेगा? एक मास वालों को वर्सा मिलता है? जब वर्सा मिल गया तो देने के लिए दाता तो होंगे ना! जो चीज़ मिलती है वह देना तो शुरू करना ही चाहिए ना।

अगर बाप समझकर कनेक्शन जोड़ा तो एक दिन में भी वर्सा ले सकता है। ऐसे नहीं कि हाँ अच्छा है, कोई शक्ति है, समझ में तो आता है...यह नहीं। वर्से के अधिकारी बच्चे होते हैं। समझने वाले, देखने वाले नहीं। अगर एक दिन में भी दिल से बाप माना तो वर्से का अधिकारी बन सकता है। आप लोग तो सभी अधिकारी हैं ना? आप लोग तो ब्रहमाकुमार-कुमारियाँ हैं ना या बन रहे हैं? बन गये हैं या बनने आये हैं? कोई आपको बदल नहीं सकता? ब्रह्माकुमार-कुमारी के बजाए सिर्फ कुमार-कुमारी बन जाओ, नहीं हो सकता? ब्रह्माकुमार और कुमारी बनने में फायदे कितने हैं? एक जन्म के भी फायदे नहीं, अनेक जन्मों के फायदे। पुरूषार्थ आधा जन्म, चौथाई जन्म का और प्रालब्ध है अनेक जन्मों की। फायदा ही फायदा है ना!

बापदादा समय के अनुसार वर्तमान समय विशेष एक बात अटेन्शन में दिलाते हैं क्योंकि बापदादा बच्चों की रिज़ल्ट तो देखते रहते हैं ना! तो रिजल्ट में देखा गया, हिम्मत बहुत अच्छी है। लक्ष्य भी बहुत अच्छा है। लक्ष्य अनुसार अभी तक लक्ष्य और लक्षण उसमें अन्तर है। लक्ष्य सबका नम्बरवन है, कोई से भी बापदादा पूछेंगे आपका लक्ष्य 21 जन्म का राज्य भाग्य लेना है, सूर्यवंशी बनने का है वा चन्द्रवंशी? तो सब किसमें हाथ उठायेंगे? सूर्यवंशी में ना! कोई है जो चन्द्रवंशी बनना चाहता है? कोई राम बनने वाला है? कोई नहीं। एक तो बन जाओ। कोई तो राम बनना ही है ना। (एक ने हाथ उठाया) अच्छा है, नहीं तो राम की सीट खाली रह जायेगी। तो लक्ष्य सभी का बहुत अच्छा है, लक्ष्य और लक्षण की समानता - उस पर अटेन्शन देना जरूरी है। उसका कारण क्या है? जो आज सुनाया कभी कभी लेवता बन जाते हैं। यह हो, यह करे, यह मदद दे, यह बदले तो मैं बदलूं। यह बात ठीक हो तो मैं ठीक हूँ। यह लेवता बनना है। दातापन नहीं है। कोई दे या न दे, बाप ने तो सब कुछ दे दिया है। क्या बाप ने किसको थोड़ा दिया है किसको ज्यादा दिया है? एक ही कोर्स है ना! चाहे 60 साल वाले हो, चाहे एक मास वाले हो, कोर्स तो एक ही है या 60 साल वाले का कोर्स अलग है एक मास वालों का अलग है? उन्हों ने भी वही कोर्स किया और अभी भी वही कोर्स है। वही ज्ञान है, वही प्यार है, वही सर्व शक्तियां हैं। सब एक जैसा है। उसको 16 शक्तियां, उसको 8 शक्तियाँ नहीं है। सबको एक जैसा वर्सा है। तो जब बाप ने सभी को भरपूर कर दिया तो फिर भरपूर आत्मा दाता बनती है, लेने वाली नहीं। मुझे देना है। कोई दे न दे, लेने के इच्छुक नहीं, देने के इच्छुक। और जितना देंगे, दाता बनेंगे उतना खज़ाना बढ़ता जायेगा। मानों किसको आपने स्वमान दिया, तो दूसरे को देना अर्थात् अपना स्वमान बढ़ाना। देना नहीं होता है लेकिन देना अर्थात् लेना। लो नहीं, दो तो लेना हो ही जायेगा। तो समझा - समय की पुकार क्या है? दाता बनो। एक अक्षर याद रखना। कोई भी बात हो जाए ``दाता'' शब्द सदा याद रखना। इच्छा-मात्रम्-अविद्या। न सूक्ष्म लेने की इच्छा, न स्थूल लेने की इच्छा। दाता का अर्थ ही है इच्छा-मात्रम्- अविद्या। सम्पन्न। कोई अप्राप्ति अनुभव नहीं होगी जिसको लेने की इच्छा हो। सर्व प्राप्ति सम्पन्न। तो लक्ष्य क्या है? सम्पन्न बनने का है ना? या जितना मिले उतना अच्छा? सम्पन्न बनना ही सम्पूर्ण बनना है। आज विदेशियों को खास चांस मिला है। अच्छा है। पहला चांस विदेशियों ने लिया है, लाडले हो गये ना। सभी को मना किया है और विदेशियों को निमन्त्रण दिया है। बापदादा को भी याद तो सभी बच्चे हैं फिर भी डबल विदेशियों को देख, उन्हों की हिम्मत देख बहुत खुशी होती है। अभी वर्तमान समय इतनी हलचल में नहीं आते हैं। अभी फर्क आ गया है। शुरू-शुरू के क्वेश्चन जो होते थे ना - इन्डियन क्लचर है, फारेन कल्चर है.... अभी समझ में आ गया। अभी ब्राह्मण क्लचर में आ गये। न इन्डियन क्लचर, न फारेन कल्चर, ब्राह्मण कल्चर में आ गये। इन्डियन कल्चर थोड़ा खिटखिट करता है लेकिन ब्राह्मण कल्चर सहज है ना! ब्राह्मण कल्चर है ही स्वमान में रहो और स्व-राज्य अधिकारी बनो। यही ब्राह्मण कल्चर है। यह तो पसन्द है ना? अभी क्वेश्चन तो नहीं है ना, इन्डियन कल्चर कैसे आये, मुश्किल है? सहज हो गया ना? देखना फिर वहाँ जाकर कहो थोड़ा यह मुश्किल है! वहाँ जाकर ऐसे नहीं लिखना। सहज कह तो दिया लेकिन यह थोड़ा मुश्किल है! सहज है या थोड़ा-थोड़ा मुश्किल है? ज़रा भी मुश्किल नहीं है। बहुत सहज है। अभी सारे खेल पूरे हो गये हैं इसलिए हंसी आती है। अभी पक्के हो गये हैं। बचपन के खेल अभी समाप्त हो गये हैं। अभी अनुभवी बन गये हैं और बापदादा देखते हैं कि जितने पुराने पक्के होते जाते हैं ना तो जो नये-नये आते हैं वह भी पक्के हो जाते हैं। अच्छा है, एक-दो को अच्छा आगे बढ़ाते रहते हैं। मेहनत अच्छी करते हैं। अभी दादियों के पास किस्से तो नहीं ले जाते  हैं ना। किस्से-कहानियां दादियों के पास ले जाते हैं? कम हो गये हैं! फर्क है ना? (दादी जानकी से) तो आप अभी बीमार नहीं होना? किस्से-कहानियों में बीमार होते, वह तो खत्म हो गये। अच्छे हैं, सबमें अच्छे ते अच्छा विशेष गुण है - दिल की सफाई अच्छी है। अन्दर नहीं रखते, बाहर निकाल लेंगे। जो बात होगी सच्ची बोल देंगे। ऐसा नहीं, वैसा। ऐसा वैसा नहीं करते, जो बात है वह बोल देते, यह विशेषता अच्छी है। इसीलिए बाप कहते हैं सच्ची और साफ दिल पर बाप राज़ी होता है। हाँ तो हाँ, ना तो ना। ऐसे नहीं - देखेंगे...! मज़बूरी से नहीं चलते। चलते हैं तो पूरा, ना तो ना। अच्छा।

बापदादा ने फारेन या इन्डिया, देश-विदेश दोनों की मीटिंग देखी। बहुत मीटिंग की है ना! बापदादा खुश होते हैं कि समय निकाल कर सभी ने जो प्लैन बनाये, मेहनत अच्छी की है, और संगठन भी अच्छा किया है। संगठन से जो भी कार्य होता है वह सहज सफल होता है। तो डबल फारेनर्स ने मीटिंग में संगठन की शक्ति का बहुत अच्छा प्रत्यक्ष स्वरूप दिखाया। जो भी प्लैन्स बनाये हैं, सबके हिम्मत और मेहनत पर बापदादा खुश है। आर.सी.ओ. ग्रुप, जो विशेष सेवा के लिए आये हैं, तो सभी जो भी आर.सी.ओ. वाले हैं, (पाँचों खण्डों की सेवा के निमित्त मुख्य भाई-बहनें) सभी को बापदादा मुबारक देते हैं। अच्छे-अच्छे प्लैन बनाये हैं। जहाँ जैसे चल सकता है, जितना चल सकता है उतना चलाओ, बड़े शहर और छोटे शहर में फर्क तो होता ही है। तो जितनी भी हिम्मत हो, उतना जो समय दिया है मेहनत की है, उन सबको प्रैक्टिकल में लाना। सिर्फ एक बात याद रखना कि सेवा और स्व-उन्नति के बैलेन्स में अन्तर नहीं आवे। प्लैन प्रैक्टिकल करने के बाद यह नहीं कहना कि सर्विस में बिजी हो गये ना इसलिए स्व-उन्नति में अन्तर आ गया - यह नहीं कहना। दोनों का बैलेन्स सदा रखना। क्यों? दूसरों की सेवा करो और स्व की सेवा नहीं तो यह अच्छा नहीं। दोनों का बैलेन्स रखना ही सफलता है। समझा। अच्छा।

जो आर.सी.ओ. के आये हैं वह हाथ उठाओ। इण्टरनेशनल सर्विस ग्रुप भी हाथ उठाओ। अच्छा। मुबारक हो। समय निकालकर भट्ठी में भी बैठे, यह अच्छा है। मधुबन में चांस भी अच्छा है। सब मिल भी जाते हैं एक-दो को। सब तरफ का समाचार भी सभी को मिल जाता है। तो बापदादा मुबारक दे रहे हैं। बहुत अच्छा किया। अच्छा, और सभी जो भी जहाँ से आये हैं, उन सभी को भी बापदादा स्नेह भरी मुबारक दे रहे हैं। और समाचार भी मिला कि सभी ने, पत्र याद-प्यार बहुत भेजे हैं। तो बापदादा तो पत्र पहुँचने के पहले ही यादप्यार दे रहे हैं। जब आप बच्चे लिखते हैं ना, संकल्प करते हैं तो जैसे यहाँ साइंस के साधन हैं ना, उसमें जल्दी से पहुँच जाता है, पत्र पीछे पहुँचता है, सबसे फास्ट ई-मेल पहुँचता है। तो ई-मेल देना शुरू करते हो ना, उससे पहले बाप के पास पहुँच जाता है। यह सब साधन आप बच्चों की सेवा के सहयोग के लिए निकले हैं। ब्रह्मा बाप जब समाचार सुनते हैं - यह ई-मेल है, ये यह है, तो खुश होते हैं कि वाह बच्चे, वाह! इतना सहज साधन ब्रह्मा बाप को भी साकार में नहीं मिला लेकिन बच्चों के पास हैं। खुश होते हैं। सिर्फ सेवा का साधन समझकर यूज़ करना। सेवा के लिए साधन है क्योंकि विश्व-कल्याण करना है तो यह भी साधन सहयोग देते हैं। साधनों के वश नहीं होना। लेकिन साधन को सेवा में यूज़ करना। यह बीच का समय है जिसमें साधन मिले हैं। आदि में भी कोई इतने साधन नहीं थे और अन्त में भी नहीं रहेंगे। यह अभी के लिए हैं। सेवा बढ़ाने के लिए हैं। लेकिन यह साधन हैं, साधना करने वाले आप हो। साधन के पीछे साधना कम नहीं हो। बाकी बापदादा खुश होते हैं। बच्चों की सीन भी देखते हैं। फटाफट काम कर रहे हैं। बापदादा आपके ऑफिस का भी चक्कर लगाते हैं। कैसे काम कर रहे हैं। बहुत बिज़ी रहते हैं ना! अच्छी तरह से ऑफिस चलती है ना! जैसे एक सेकण्ड में साधन यूज़ करते हो ऐसे ही बीच-बीच में कुछ समय साधना के लिए भी निकालो। सेकण्ड भी निकालो। अभी साधन पर हाथ है और अभी अभी एक सेकण्ड साधना, बीच-बीच में अभ्यास करो। जैसे साधनों में जितनी प्रैक्टिस करते हो तो ऑटोमेटिक चलता रहता है ना। ऐसे एक सेकण्ड में साधना का भी अभ्यास हो। ऐसे नहीं टाइम नहीं मिला, सारा दिन बहुत बिजी रहे। बापदादा यह बात नहीं मानते हैं। क्या एक घण्टा साधन को अपनाया, उसके बीच में क्या 5-6 सेकण्ड नहीं निकाल सकते? ऐसा कोई बिज़ी है जो 5 मिनट भी नहीं निकाल सके, 5 सेकण्ड भी नहीं निकाल सके। ऐसा कोई है? निकाल सकते हैं तो निकालो।

बापदादा जब सुनते हैं आज बहुत बिज़ी हैं, बहुत बिज़ी कह करके शक्ल भी बिज़ी कर देते हैं। बापदादा मानते नहीं हैं। जो चाहे वह कर सकते हो। अटेन्शन कम है। जैसे वह अटेन्शन रखते हो ना - 10 मिनट में यह लेटर पूरा करना है, इसीलिए बिज़ी होते हो ना - टाइम के कारण। ऐसे ही सोचो 10 मिनट में यह काम करना है, वह भी तो टाइम-टेबल बनाते हो ना। इसमें एक दो मिनट पहले से ही एड कर दो। 8 मिनट लगना है, 6 मिनट नहीं, 8 मिनट लगना है तो 2 मिनट साधना में लगाओ। यह हो सकता है?

(अमेरिका की गायत्री से पूछते हैं) तो अभी कभी नहीं कहना, बहुत बिजी, बहुत बिजी। बापदादा उस समय चेहरा भी देखते हैं, फोटो निकालने वाला होता है। कितना भी बिजी हो, लेकिन पहले से ही साधन के साथ साधना का समय एड करो। होता क्या है - सेवा तो बहुत अच्छी करते हो, समय भी लगाते हो, उसकी तो मुबारक है। लेकिन स्व-उन्नति या साधना बीच-बीच में न करने से थकावट का प्रभाव पड़ता है। बुद्धि भी थकती है, हाथ पांव भी थकता है और बीच-बीच में अगर साधना का समय निकालो तो जो थकावट है ना, वह दूर हो जाए। खुशी होती है ना। खुशी में कभी थकावट नहीं होती है। काम में लग जाते हो, बापदादा तो कहते हैं कि काफी समय एक्शन-कान्सेस रहते हो। ऐसे होता है ना? एक्शन-कान्सेस की मार्क्स तो मिलती हैं, वेस्ट तो नहीं जाता है लेकिन सोल-कान्सेस की मार्क और एक्शन कान्सेस की मार्क में अन्तर तो होगा ना। फर्क होता है ना? तो अभी बैलेन्स रखो। लिंक को तोड़ो नहीं, जोड़ते रहो क्योंकि मैजारिटी डबल विदेशी काम करने में भी डबल बिज़ी रहते हैं। बापदादा जानते हैं कि मेहनत बहुत करते हैं लेकिन बैलेन्स रखो। जितना समय निकाल सको, सेकण्ड निकालो, मिनट निकालो, निकालो जरूर। हो सकता है? पाण्डव हो सकता है? टीचर्स हो सकता है? और जो ऑफिस में काम करते हैं, उनका हो सकता है? हाँ, तो बहुत अच्छा करते हैं। अच्छा।

भारत वालों ने भी जो प्लैन्स बनाये हैं वह भी अच्छे प्लैन्स बनाये हैं। दोनों के अपने-अपने वायुमण्डल अनुसार प्लैन अच्छे हैं।

जिन बच्चों ने यादप्यार भेजी है, बापदादा उन सभी बच्चों को, जिन्होंने पत्र द्वारा या किसी भी द्वारा याद प्यार भेजा बापदादा को स्वीकार हुआ। और बापदादा रिटर्न में सभी बच्चों को `दातापन का वरदान' दे रहे हैं। अच्छा - एक सेकण्ड में उड़ सकते हो? पंख पावरफुल है ना? बस, बाबा कहा और उड़ा। (ड्रिल)

चारों ओर के सर्व श्रेष्ठ बाप समान दातापन की भावना रखने वाले, श्रेष्ठ आत्माओं को, निरन्तर याद और सेवा में तत्पर रहने वाले, परमात्म-सेवा के साथी बच्चों को, सदा लक्ष्य और लक्षण को समान बनाने वाले, सदा बाप के स्नेही और समान, समीप बनने वाले, बापदादा के नयनों के तारे, सदा विश्व-कल्याण की भावना में रहने वाले रहमदिल, मास्टर क्षमा के सागर बच्चों को दूर बैठने वाले, मधुबन में नीचे बैठने वाले और बापदादा के सामने बैठे हुए सर्व बच्चों को यादप्यार और नमस्ते।

इण्टरनेशनल मीटिंग ग्रुप से मुलाकात

एक-एक रत्न बहुत-बहुत वैल्युबुल है। बापदादा सदा एक-एक रत्न के विशेषताओं की माला जपते हैं। विशेषतायें हैं तब विशेष आत्मायें गाई हुई हैं। सिर्फ उस विशेषताओं को सदा कार्य में लगाते रहो। बापदादा हर एक के विशेषताओं की माला दोहराते रहते हैं और यही गीत गाते - वाह मेरे विशेष रत्न वाह! इसीलिए कहा ना कि बापदादा सदा बच्चों की याद में रहते हैं। बच्चे, महान हैं और अपनी महानता से विश्व को महान बनाने वाले हैं। कितनी महिमा है? जैसे बच्चे बाप की महिमा करते हैं वैसे बाप भी हर बच्चे की महिमा करते हैं। रूहानी नशा रहता है ना? सदा अपने को निमित्त, विश्व की स्टेज पर हीरो पार्ट बजाने वाले हीरो एक्टर समझकर चलो। सभी हीरो हैं? बापदादा तो हर एक बच्चे से सारे दिन में अनेक बार मिलता रहता है। मिलता है ना! हर एक का एक्ट देख खुश होते रहते हैं। अच्छा पार्ट बजाने वाले हैं ना! तो बापदादा भी सदा बहुत अच्छा, बहुत अच्छा - यही गीत गाते रहते हैं। बहुत अच्छे हैं ना। अच्छे हैं और सदा अच्छे रहेंगे। गैरन्टी हैं ना, अच्छे रहने वाले ही हैं। रहेंगे, यह पूछने का नहीं है। क्वेश्चन है क्या? अच्छे रहेंगे, पूछें? नहीं। रहना है, रहेंगे। अच्छा - बहुत अच्छा संगठन है।

अच्छा - ओमशान्ति।



15-11-99   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


बाप समान बनने का सहज पुरूषार्थ आज्ञाकारी बनो

आज बापदादा अपने `होलीहंस मण्डली' को देख रहे हैं। हर एक बच्चा होलीहंस है। सदा मन में ज्ञान-रत्नों का मनन करते रहते हैं। होलीहंस का काम ही है व्यर्थ के कंकड़ छोड़ना और ज्ञान-रत्नों का मनन करना। एक-एक रत्न कितना अमूल्य है। हर एक बच्चा ज्ञान-रत्नों की खान बन गये हैं। ज्ञान रत्नों के खज़ाने से सदा भरपूर रहते हैं।

आज बापदादा बच्चों में एक विशेष बात चेक कर रहे थे। वह क्या थी? ज्ञान वा योग की सहज धारणा का सहज साधन है बाप और दादा के `आज्ञाकारी' बन चलना। बाप के रूप में भी आज्ञाकारी, शिक्षक के रूप में भी और सद्गुरू के रूप में भी। तीनों ही रूपों में आज्ञाकारी बनना अर्थात् सहज पुरुषार्थी बनना क्योंकि तीनों ही रूपों से बच्चों को आज्ञा मिली है। अमृतवेले से लेकर रात तक हर समय, हर कर्त्तव्य की आज्ञा मिली हुई है। आज्ञा के प्रमाण चलते रहे तो किसी भी प्रकार की मेहनत वा मुश्किल अनुभव नहीं होगी। हर समय के मन्सा संकल्प, वाणी और कर्म तीनों ही प्रकार की आज्ञा स्पष्ट मिली हुई है। सोचने की भी आवश्यकता नहीं कि यह करें या न करें। यह राईट है या रांग है। सोचने की भी मेहनत नहीं है। परमात्म-आज्ञा है ही सदा श्रेष्ठ। तो सभी कुमार जो भी आये हो, बहुत अच्छा संगठन है। तो हर एक ने बाप का बनते ही बाप से वायदे किये हैं? जब बाप के बने हैं तो सबसे पहले कौन-सा वायदा किया? बाबा, तन-मन-धन जो भी है, कुमारों के पास धन तो ज्यादा होता नहीं फिर भी जो है, सब आपका है। यह वायदा किया है? तन भी, मन भी, धन भी और सम्बन्ध भी सब आपसे - यह भी वायदा पक्का किया है? जब तन-मन-धन, सम्बन्ध सब आपका है तो मेरा क्या रहा! फिर कुछ मेरा-पन है? होता ही क्या है? तन, मन, धन, जन.... सब बाप के हवाले कर लिया। प्रवृत्ति वालों ने किया है? मधुबन वालों ने किया है? पक्का है ना! जब मन भी बाप का हुआ, मेरा मन तो नहीं है ना! या मन मेरा है? मेरा समझकर यूज़ करना है? जब मन बाप को दे दिया तो यह भी आपके पास `अमानत' है। फिर युद्ध किसमें करते हो? मेरा मन परेशान है, मेरे मन में व्यर्थ संकल्प आते हैं, मेरा मन विचलित होता है...., जब मेरा है नहीं, अमानत है फिर अमानत को मेरा समझ कर यूज़ करना, क्या यह अमानत में ख्यानत नहीं है? माया के दरवाजे हैं - ``मैं और मेरा''। तो तन भी आपका नहीं, फिर देह-अभिमान का मैं कहाँ से आया! मन भी आपका नहीं, तो मेरा-मेरा कहाँ से आया? तेरा है या मेरा है? बाप का है या सिर्फ कहना है, करना नहीं? कहना बाप का और मानना मेरा! सिर्फ पहला वायदा याद करो कि न बॉडी-कान्सेस की - `मैं है, न मेरा'। तो जो बाप की आज्ञा है, तन को भी अमानत समझो। मन को भी अमानत समझो। फिर मेहनत की ज़रूरत है क्या? कोई भी कमज़ोरी आती है तो इन दो शब्दों से आती है - ``मैं और मेरा''। तो न आपका तन है, न बॉडी-कान्सेस का ``मैं''। मन में जो भी संकल्प चलते हैं अगर आज्ञाकारी हो तो बाप की आज्ञा क्या है? पॉजिटिव सोचो, शुभ भावना के संकल्प करो। फालतू संकल्प करो - यह बाप की आज्ञा है क्या? नहीं। तो जब आपका मन नहीं है फिर भी व्यर्थ संकल्प करते हो तो बाप की आज्ञा को प्रैक्टिकल में नहीं लाया ना! सिर्फ एक शब्द याद करो कि - `मैं परमात्म-आज्ञाकारी बच्चा हूँ।' बाप की यह आज्ञा है या नहीं है, वह सोचो। जो आज्ञाकारी बच्चा होता है वह सदा बाप को स्वत: ही याद होता है। स्वत: ही प्यारा होता है। स्वत: ही बाप के समीप होता है। तो चेक करो मैं बाप के समीप, बाप का आज्ञाकारी हूँ? एक शब्द तो अमृतवेले याद कर सकते हो - ``मैं कौन?'' आज्ञाकारी हूँ या कभी आज्ञाकारी और कभी आज्ञा से किनारा करने वाले?

बापदादा सदा कहते हैं कि किसी भी रूप में अगर एक बाबा का सम्बन्ध ही याद रहे, दिल से निकले - `बाबा', तो समीपता का अनुभव करेंगे। मन्त्र 18 मुआफ़िक नहीं कहो ``बाबा-बाबा'', वह राम-राम कहते हैं आप बाबा-बाबा कहते, लेकिन दिल से निकले - `बाबा'! हर कर्म करने के पहले चेक करो कि मन के लिए, तन के लिए या धन के लिए बाबा की आज्ञा क्या है? कुमारों के पास चाहे कितना भी थोड़ा सा धन है लेकिन जैसे बाप ने आज्ञा दी है कि धन का पोतामेल किस प्रकार से रखो, वैसे रखा है? या जैसे आता वैसे चलाते? हर एक कुमार को धन का भी पोतामेल रखना चाहिए। धन को कहाँ और कैसे यूज़ करना है, मन को भी कहाँ और कैसे यूज़ करना है, तन को भी कहाँ लगाना है, यह सब पोतामेल होना चाहिए। आप दादियां जब धारणा की क्लास कराती हैं तो समझाती हैं ना कि धन को कैसे यूज़ करो! क्या पोतामेल रखो! कुमारों को पता है पोतामेल कैसे रखना है, कहाँ लगाना है, यह मालूम है? थोड़े हाथ उठा रहे हैं, नये-नये भी हैं, इन्हों को मालूम नहीं है। इन्हों को यह ज़रूर बताना कि क्या क्या करना है! निश्चिंत हो जायेंगे, बोझ नहीं लगेगा क्योंकि आप सबका लक्ष्य है, कुमार माना लाइट। डबल लाइट। कुमारों का लक्ष्य है ना कि हमको नम्बरवन आना है? तो लक्ष्य के साथ लक्षण भी चाहिए। लक्ष्य बहुत ऊँचा हो और लक्षण नहीं हो तो लक्ष्य तक पहुँचना मुश्किल है। इसलिए जो बाप की आज्ञा है उसको सदा बुद्धि में रख फिर कार्य में आओ।

बापदादा ने पहले भी समझाया है कि ब्राह्मण जीवन के मुख्य खजाने हैं - संकल्प, समय और श्वांस। आपके श्वांस भी बहुत अमूल्य हैं। एक श्वांस भी कामन नहीं हो, व्यर्थ नहीं हो। भक्ति में कहते हैं - श्वांसों-श्वांस अपने इष्ट को याद करो। श्वांस भी व्यर्थ नहीं जाये। ज्ञान का खज़ाना, शक्तियों का खज़ाना... यह तो है ही। लेकिन मुख्य यह तीनों खज़ाने - संकल्प, समय और श्वांस - आज्ञा प्रमाण सफल होते हैं? व्यर्थ तो नहीं जाते? क्योंकि व्यर्थ जाने से जमा नहीं होता। और जमा का खाता इस संगम पर ही जमा करना है। चाहे सतयुग, त्रेता में श्रेष्ठ पद प्राप्त करना है, चाहे द्वापर, कलियुग में पूज्य पद पाना है लेकिन दोनों का जमा इस संगम पर करना है। इस हिसाब से सोचो कि संगम समय की जीवन के, छोटे से जन्म के संकल्प, समय, श्वांस कितने अमूल्य हैं? इसमें अलबेले नहीं बनना। जैसा आया वैसे दिन बीत गया, दिन बीता नहीं लेकिन एक दिन में बहुत-बहुत गँवाया। जब भी कोई फालतू संकल्प, फालतू समय जाता है तो ऐसे नहीं समझो - चलो 5 मिनट गया। बचाओ। समय अनुसार देखो प्रकृति अपने कार्य में कितनी तीव्र है। कुछ-न-कुछ खेल दिखाती रहती है। कहाँ-न-कहाँ खेल दिखाती रहती है। लेकिन प्रकृतिपति ब्राह्मण बच्चों का खेल एक ही है - उड़ती कला का। तो प्रकृति तो खेल दिखाती लेकिन ब्राह्मण अपने उड़ती कला का खेल दिखा रहे हो?

कोई बच्चे ने बापदादा को यह उड़ीसा की रिज़ल्ट लिखकर दी, यह हुआ, यह हुआ...। तो वह प्रकृति का खेल तो देख लिया। लेकिन बापदादा पूछते हैं कि आप लोगों ने सिर्फ प्रकृति का खेल देखा या अपने उड़ती कला के खेल में बिज़ी रहे? या सिर्फ समाचार सुनते रहे? समाचार तो सब सुनना भी पड़ता है, परन्तु जितना समाचार सुनने में इन्ट्रेस्ट रहता है उतना अपनी उड़ती कला की बाज़ी में रहने का इन्ट्रेस्ट रहा? कई बच्चे गुप्त योगी भी हैं, ऐसे गुप्त योगी बच्चों को बापदादा की मदद भी बहुत मिली है और ऐसे बच्चे स्वयं भी अचल, साक्षी रहे और वायुमण्डल में भी समय पर सहयोग दिया। जैसे स्थूल सहयोग देने वाले, चाहे गवर्मेन्ट, चाहे आस-पास के लोग सहयोग देने के लिए तैयार हो जाते हैं, ऐसे ब्राह्मण आत्माओं ने भी अपना सहयोग - शक्ति, शान्ति देने का, सुख देने का जो ईश्वरीय श्रेष्ठ कार्य है, वह किया? जैसे वह गवर्मेन्ट ने यह किया, फलाने देश ने यह किया... फौरन ही अनाउन्समेंट करने लग जाते हैं, तो बापदादा पूछते हैं - आप ब्राह्मणों ने भी अपना यह कार्य किया? आपको भी अलर्ट होना चाहिए। स्थूल सहयोग देना यह भी आवश्यक होता है, इसमें बापदादा मना नहीं करते लेकिन जो ब्राह्मण आत्माओं का विशेष कार्य है, जो और कोई सहयोग नहीं दे सकता, ऐसा सहयोग अलर्ट होके आपने दिया? देना है ना! या सिर्फ उन्हों को वस्त्र चाहिए, अनाज चाहिए? लेकिन पहले तो मन में शान्ति चाहिए, सामना करने की शक्ति चाहिए। तो स्थूल के साथ सूक्ष्म सहयोग ब्राह्मण ही दे सकते हैं और कोई नहीं दे सकता है। तो यह कुछ भी नहीं है, यह तो रिहर्सल है। रीयल तो आने वाला है। उसकी रिहर्सल आपको भी बाप या समय करा रहा है। तो जो शक्तियाँ, जो खज़ाने आपके पास हैं, उसको समय पर यूज़ करना आता है?

कुमार क्या करेंगे? शक्तियाँ जमा हैं? शान्ति जमा है? यूज़ करना आता है? हाथ तो बहुत अच्छा उठाते हैं, अभी प्रैक्टिकल में दिखाना। साक्षी होकर देखना भी है, सुनना भी है और सहयोग देना भी है। आखरिन रीयल जब पार्ट बजेगा, उसमें साक्षी और निर्भय होकर देखें भी और पार्ट भी बजावें। कौन-सा पार्ट? दाता के बच्चे, दाता बन जो आत्माओं को चाहिए वह देते रहें। तो मास्टर दाता हैं ना? स्टॉक जमा करो, जितना स्टॉक अपने पास होगा उतना ही दाता बन सकेंगे। अन्त तक अपने लिए ही जमा करते रहेंगे तो दाता नहीं बन सकेंगे। अनेक जन्म जो श्रेष्ठ पद पाना है, वह प्राप्त नहीं कर सकते हैं, इसीलिए एक तो अपने पास स्टॉक जमा करो। शुभ भावना, श्रेष्ठ कामना का भण्डार सदा भरपूर हो। दूसरा - जो विशेष शक्तियाँ हैं, वह शक्तियाँ जिस समय, जिसको जो चाहिए वह दे सको। अभी समय अनुसार सिर्फ अपने पुरूषार्थ में संकल्प और समय दो, साथ-साथ दाता बन विश्व को भी सहयोग दो। अपना पुरूषार्थ तो सुनाया - अमृतवेले ही यह सोचो कि - `मैं आज्ञाकारी बच्चा हूँ!' हर कर्म के लिए आज्ञा मिली हुई है। उठने की, सोने की, खाने की, कर्मयोगी बनने की। हर कर्म की आज्ञा मिली हुई है। आज्ञाकारी बनना यही बाप समान बनना है। बस, श्रीमत पर चलना, न मनमत, न परमत। एडीशन नहीं हो। कभी मनमत पर, कभी परमत पर चलेंगे तो मेहनत करनी पड़ेगी। सहज नहीं होगा क्योंकि मनमत, परमत उड़ने नहीं देगी। मनमत, परमत बोझ वाली है और बोझ उड़ने नहीं देगा। श्रीमत डबल लाइट बनाती है। श्रीमत पर चलना अर्थात् सहज बाप समान बनना। श्रीमत पर चलने वाले को कोई भी परिस्थिति नीचे नहीं ले आ सकती। तो श्रीमत पर चलना आता है? अच्छा - तो कुमार अभी क्या करेंगे? निमन्त्रण मिला। स्पेशल खातिरी हुई। देखो, कितने लाड़ले हो गये हो। तो अभी आगे क्या करेंगे? रेसपाण्ड देंगे या वहाँ गये तो वहाँ के, यहाँ आये तो यहाँ के? ऐसे तो नहीं है ना? यहाँ तो बहुत मज़े में हो। माया के वार से बचे हुए हो, ऐसा कोई है जिसको यहाँ मधुबन में भी माया आई हो? ऐसा कोई है जिसको मधुबन में भी मेहनत करनाr पड़ी हो? सेफ हो, अच्छा है। बापदादा भी खुश होते हैं। समय आयेगा जब यूथ ग्रुप पर गवर्मेन्ट का भी अटेन्शन जायेगा लेकिन तब जायेगा जब आप विघ्न-विनाशक बन जाओ। `विघ्न-विनाशक' किसका नाम है? आप लोगों का है ना! विघ्नों की हिम्मत नहीं हो जो कोई कुमार का सामना करे, तब कहेंगे `विघ्न-विनाशक'। विघ्न की हार भले हो, लेकिन वार नहीं करे। विघ्न-विनाशक बनने की हिम्मत है? या वहाँ जाकर पत्र लिखेंगे दादी बहुत अच्छा था लेकिन पता नहीं क्या हो गया! ऐसे तो नहीं लिखेंगे? यही खुशखबरी लिखो - ओ. के., वेरी गुड, विघ्न-विनाशक हूँ। बस एक अक्षर लिखो। ज्यादा लम्बा पत्र नहीं। ओ. के.। लम्बा पत्र हो तो लिखने में भी आपको शर्म आयेगा। शर्म आयेगा ना कि कैसे लिखें, क्या लिखें! कई बच्चे कहते हैं पोतामेल लिखने चाहते हैं लेकिन जब सोचते हैं कि पोतामेल लिखें तो उस दिन कोई-न-कोई ऐसी बात हो जाती है जो लिखने की हिम्मत ही नहीं होती है। बात हुई क्यों? विघ्न-विनाशक टाइटल नहीं है क्या? बाप कहते हैं लिखने से, बताने से आधा कट जाता है। फायदा है। लेकिन लम्बा पत्र नहीं लिखो, ओ. के. बस। अगर कभी कोई गलती हो जाती है तो दूसरे दिन विशेष अटेन्शन रख विघ्न-विनाशक बन फिर ओ. के. का लिखो। लम्बी कथा नहीं लिखना। यह हुआ, यह हुआ... इसने यह कहा, उसने यह कहा.... यह रामायण और उनकी कथायें हैं। ज्ञान मार्ग का एक ही अक्षर है, कौन-सा अक्षर है? - ओ. के. (OK)। जैसे शिवबाबा गोल-गोल होता है ना वैसे ओ (O) भी लिखते हैं। और के (K) अपनी किंगडम। तो ओ.के. माना बाप भी याद रहा और किंगडम भी याद रही। इसलिए ओ. के.... और ओ.के. लिखकर ऐसे नहीं रोज़ पोस्ट लिखो और पोस्ट का खर्चा बढ़ जाए। ओ.के. लिखकर अपने टीचर के पास जमा करो और टीचर फिर 15 दिन वा मास में एक साथ सबका समाचार लिखे। पोस्ट में इतना खर्चा नहीं करना, बचाना है ना। और यहाँ पोस्ट इतनी हो जायेगी जो यहाँ समय ही नहीं होगा। आप रोज़ लिखो और टीचर जमा करे और टीचर एक ही कागज़ में लिखे - ओ.के. या नो (NO)। इंग्लिश नहीं आती लेकिन ओ.के. लिखना तो आयेगा, नो लिखना भी आयेगा। अगर नहीं आये तो बस यही लिखो कि ठीक रहा या नहीं ठीक रहा। तो यूथ की रिज़ल्ट क्या आयेगी? ओ.के. की आयेगी? या कहेंगे वहाँ गये ना ऐसा हुआ, वैसा हुआ! ऐसा वैसा नहीं करना। यूथ अपनी कमाल दिखाओ। जो सब कहें कि नम्बरवन यूथ ग्रुप है। तो स्पेशल मिला? वैसे पार्टी में आते हो तो सामने थोड़े ही बैठने को मिलता है। कोई कहाँ, कोई कहाँ बैठते, अभी तो बिल्कुल सामने बैठे हो। तो इस मधुबन के स्नेह, शक्ति को भूल नहीं जाना। सदा कुछ भी हो, मधुबन की रिफ्रेशमेंट को याद करना। ऐसे है यूथ? देखेंगे। सारे ब्राह्मण परिवार की नज़र इस समय यूथ पर है। यूथ क्या कर रहा है, क्या आगे करता है! सब यही सोच रहे हैं।

बापदादा को भी यह प्रोग्राम अच्छा लग रहा है। सब खुश हैं? तो सदा खुश-राज़ी रहना। सिर्फ मधुबन में खुश नहीं रहना। बापदादा ने पहले भी सुनाया, कि चलते-चलते कोई भी नाराज़ क्यों होते हैं? कोई-न-कोई ज्ञान का राज़ भूलता है तब नाराज़ होते हैं। तो आप तो सब राज़ को समझ, सोच पक्के होके जा रहे हैं ना! कभी नाराज़ नहीं होना - न अपने ऊपर, न कोई आत्मा के ऊपर। खुश रहना। ऐसे तो नहीं सेन्टर पर जाकर खुशी का खज़ाना एक मास जमा रहेगा फिर धीरे-धीरे खत्म हो जायेगा? खत्म तो नहीं होगा ना? सदा साथ रखना। अच्छा - तन-मन-धन बाप को दे दिया है ना? अच्छा, दिल भी दे दी है? दिल बाप को दी है? अगर दिल दे दी है तो बाप जैसे डायरेक्शन दे वैसे चलो, आपके पास दिल - आपके लिए नहीं है। तो बताओ जिसने दिल, दिलाराम को दे दी वह कभी किसी भी आत्माओं से दिल लगायेगा? नहीं लगायेगा ना! तो किसी से भी दिल लगी की बातें, बोल-चाल, दृष्टि वा वृत्ति से तो नहीं करेंगे? या थोड़ी दिल दी है थोड़ी औरों से लगाने के लिए रखी है? दिल दे दी है? तो दिल नहीं लगाना। बाप की अमानत, दिलाराम को दिल दे दी। दिल लगी की कहानियाँ बहुत आती हैं। तो कुमार याद रखना, ऐसे तो प्रवृत्ति वाले भी याद रखना। लेकिन आज कुमारों का दिन है ना। तो बापदादा यह अटेन्शन दिलाते हैं कभी ऐसी रिपोर्ट नहीं आवे। हमारी दिल है ही नहीं, बाप को दे दी। तो दिल कैसे लगेगी! ज़रा भी अगर किसकी दृष्टि, वृत्ति कमज़ोर हो तो कमज़ोर दिल को यहाँ से ही मज़बूत करके जाना। इसमें हाँ जी है! या वहाँ जाकर कहेंगे कि सरकमस्टांश ही ऐसे थे? कुछ भी हो जाए। जब बापदादा से वचन कर लिया, कितनी भी मुश्किल आवे लेकिन वचन को नहीं छोड़ना। बाप के आगे वचन करना, वचन लेना... इस बात को भी याद रखना। कोई आत्मा के आगे वचन नहीं कर रहे हो, परमात्मा के आगे वचन दे कभी भी मिटाना नहीं। जन्म की प्रतिज्ञा कभी भी भूलना नहीं।

अभी सभी एक मिनट के लिए अपने दिल से, वैसे दिल तो आपकी नहीं है, बाप को दे दी है फिर भी दिल में एक मिनट वचन करो कि - ``सदा विघ्न-विनाशक, आज्ञाकारी रहेंगे।'' (ड्रिल) सभी ने वचन किया? अच्छा –

डबल विदेशी हाथ उठाओ। डबल विदेशियों को देखकर आप सभी भी खुश होते हो ना। देखो आप सबको देखकर सभी कितने खुश हो रहे हैं! क्योंकि डबल विदेशियों का संगमयुग पर ड्रामा में बाप को प्रत्यक्ष करने का बहुत अच्छा पार्ट है। बापदादा कहते हैं कि डबल विदेशियों ने बाप का एक टाइटल प्रत्यक्ष किया। पहले थे भारत-कल्याणी और अब हैं प्रैक्टिकल में विश्व-कल्याणी। तो निमित्त बने ना! जब विदेश से कल्प पहले वाली नई-नई आत्मायें आती हैं तो बापदादा भी उनकी विशेषता वा कमाल देखते हैं। बापदादा तो भारत के फिलासॉफी की भी बहुत बातें सुनाते हैं, जो विदेशियों को बिल्कुल पता नहीं, गणेश क्या होता है, हनुमान क्या होता है, रामायण क्या, भागवत क्या, भक्ति क्या, कुछ पता नहीं। लेकिन कल्प पहले के होने कारण सब बातें कैच कर लेते हैं। तो कैचिंग पावर अच्छी है। समझ जाते हैं क्योंकि एक विशेषता है कि जो सुनते हैं, उसका अनुभव करते हैं। सिर्फ सुनने पर नहीं चलते हैं। चाहे शान्ति का अनुभव हो, चाहे खुशी का अनुभव हो, चाहे नि:स्वार्थ प्यार का अनुभव हो, कोई-न-कोई अनुभव परिवर्तन कर देता है। तो बापदादा डबल विदेशियों की कमाल देखते रहते हैं और वाह बच्चे वाह कहते रहते हैं। और आजकल चारों ओर विदेश के समाचारों में सेवा का उमंग अच्छा है। सिर्फ याद और सेवा में थोड़ा सा बैलेन्स और चाहिए। लेकिन फिर भी सेवा का उमंग-उत्साह अच्छा है, और आगे बढ़ते रहते हैं। एक और विशेषता भी है - कभी भी कोई कमज़ोरी छिपाते नहीं हैं। साफ दिल हैं। इसलिए मेकअप कर लेते हैं। सुना - डबल विदेशियों ने। बापदादा - वाह बच्चे, वाह! का गीत गाते रहते हैं। जनरल में भी पर्सनल विदेशियों की मुलाकात हुई? फिर भी देखो सरकमस्टांश को पार करके पहुँच तो जाते हैं। बापदादा देखते हैं मैजारिटी विदेशी हर साल आते ही हैं। भारत वाले कभी मिस भी कर सकते हैं लेकिन यह नहीं करते हैं। आना ही है, क्या भी करें। देखो रशिया वालों को भी देखो, पैसा कम है लेकिन ग्रुप बहुत बड़ा आता है। तो विदेशियों की हिम्मत अच्छी है। इसलिए हर एक विदेशी को बापदादा विशेष यादप्यार और मुबारक दे रहे हैं।

विदेश की टीचर्स सामने बैठी हैं, इन्हों को मधुबन में सेवा करने का चांस ज्यादा मिलता है। अच्छा। गुजरात वाले सेवा में हैं। गुजरात के सेवाधारी हाथ उठाओ। निर्विघ्न गुजरात? टीचर्स भी सभी हिम्मत वाली हैं। जब बुलाओ तब गुजरात ``जी हाज़र'' का पाठ पढ़ता है। अच्छा है। हाँ जी, हाँ  जी करने वालों को अनेक जन्म सभी सामने से हाँ जी, हाँ जी करेंगे। अच्छा है। देखो पहला चांस गुजरात को सेवा का मिला है। दादियों की हुज्जत है, बुलाओ और हाजिर। अच्छा है। अच्छा।

मधुबन में भी चार पाँच भुजायें हैं, तो बापदादा के पास मधुबन की विशेषता पहुँच गई है। मधुबन वालों ने अपने चार्ट भेजे हैं। बापदादा के पास पहुंचे हैं। बापदादा सभी बच्चों को, आज्ञा मानने वाले आज्ञाकारी बच्चों की नज़र से देखते हैं। विशेष कार्य मिला और एवररेडी बन किया है, इसकी विशेष मुबारक दे रहे हैं। अच्छा हर एक ने अपना स्पष्ट लिखा है। (दादी से) आप भी रिज़ल्ट देखकर क्लास कराना। अपनी अवस्था का चार्ट अच्छा लिखा है। बापदादा तो मुबारक दे ही रहे हैं। सच्ची दिल पर सच्चा साहेब राजी होता है। अच्छा –

सभी सुन रहे हैं ना। दूर-दूर भी सुन रहे हैं। (देश-विदेश में इन्टरनेट पर मुरली सुन रहे हैं) देह, देश से दूर भिन्न-भिन्न समय होते हुए भी सुनने के लिए पहुंच जाते हैं, इसलिए बापदादा उन सभी बच्चों को सम्मुख ही देख रहे हैं। सभी दिल से समीप और सम्मुख हैं। अच्छा - साइन्स के साधन का फायदा तो उठा रहे हैं ना। वास्तव में यह सब साधन रिफाइन हो आपके ही काम में आयेंगे। लेकिन संगम पर भी कार्य में ले आ रहे हैं, उसके लिए मुबारक हो। अच्छा - चारों ओर के बापदादा के आज्ञाकारी बच्चों को, सदा विघ्न-विनाशक बच्चों को, सदा श्रीमत पर सहज चलने वाले, मेहनत से मुक्त रहने वाले, सदा मौज में उड़ने और उड़ाने वाले, सर्व खजानों के भण्डार से भरपूर रहने वाले ऐसे बाप के समीप और समान रहने वाले बच्चों को बहुत-बहुत यादप्यार और नमस्ते। कुमारों को भी विशेष अथक और एवररेडी, सदा उड़ती कला में उड़ने वालों को बापदादा का विशेष यादप्यार।

(बापदादा ने डायमण्ड हाल में बैठे हुए सभी भाई-बहिनों को दृष्टि देने के लिए हाल का चक्र लगाया)

बापदादा का हर एक बच्चे से बहुत-बहुत-बहुत प्यार है। ऐसे नहीं समझें कि हमारे से बापदादा का प्यार कम है। आप चाहे भूल भी जाओ लेकिन बाप निरन्तर हर बच्चे की माला जपते रहते हैं क्योंकि बापदादा को हर बच्चे की विशेषता सदा सामने रहती है। कोई भी बच्चा विशेष न हो, यह नहीं है। हर बच्चा विशेष है। बाप कभी एक बच्चे को भी भूलता नहीं है, तो सभी अपने को; विशेष आत्मा हैं और विशेष कार्य के लिए निमित्त हैं, ऐसे समझ के आगे बढ़ते चलो। अच्छा। अभी सबसे मिलना हुआ, सभी मिले ना!

(दादी जानकी ने जगदीश भाई की याद दी) सब ठीक हो जायेगा। बहुतबहुत याद देना। फिर भी शुरू से सेवा की इन्वेन्शन में अच्छा पार्ट बजाया है। विशेषता दिखाने वालों को बाप की विशेष दुआयें मिलती हैं।

दादी जानकी से - आप तो ठीक हैं ना! बापदादा ने कहा था ``रेस्ट इज बेस्ट'' - यह सदा याद रखना। सेवा है लेकिन आप लोगों को आगे भी रहना है। शरीर आप दोनों के विशेष हैं। आत्मायें तो विशेष हो लेकिन शरीर भी विशेष हैं। वैसे तो दुआयें हैं सबकी। परन्तु शरीर को भी देखना। जब सबको सन्तुष्ट करने वाली हो तो शरीर को भी तो सन्तुष्ट करो ना। अच्छा –

दादी जी से - बहुत अच्छा चला रही हो। बापदादा पद्मगुणा खुश है। दोनों की कमाल है। बापदादा तो है ही। आप लोगों के रोम-रोम में `बाबा' है, तभी सभी के रोम-रोम में बाबा की याद दिलाने के निमित्त हो। उमंग-उत्साह दिलाने में नम्बरवन हो। बापदादा दोनों को देख बहुत खुश होते हैं। रोज़ अनेक बार आपकी माला जपते हैं। यह सभी (दादियां) भी साथ हैं। सभी अपना-अपना काम कर रहे हैं। आगे यह दो हैं बाकी साथ में आप सभी हो। सब साथी हैं। पाण्डव भी साथी हैं। यह देखो कैबिन वाले बहुत अच्छी सेवा करते हैं। किसके नाम लेवें, इसीलिए निमित्त इन्हों का ले लेते हैं, बाकी हैं सभी। बापदादा अगर एक-एक की महिमा करे तो सारी रात लग जाये। अच्छा।

वल्लभ भाई से - (बम्बई में हार्ट की बाईपास सर्जरी हुई है, 8 दिन में वापस मधुबन आ गये हैं)

योगयुक्त होने के कारण, अच्छा पार्ट बजाने के कारण हिसाब सहज चुक्तू हो गया। लम्बा नहीं हुआ। थोड़े में हिसाब चुक्तू हो गया। यह अच्छी विशेषता दिखाई। ठीक है। बहुत अच्छा। ऐसे लगता है जैसे हुआ ही नहीं।

(डा.बनारसी से) इसको भी पुण्य मिलेगा। पुण्य जमा हो जायेगा। अच्छा।

काठमाण्डु की शीला बहन से - (एक्सीडेंट के 10 वर्षो बाद बापदादा से मिल रही है)

(शीला बहन कह रही हैं - ``मेरा बाबा'') बाबा भी कहते - ``बच्ची मेरी'' है। आप बाबा की, बाबा आपका। सदा खुश रहो। सदा खुश रहती हो यही विशेषता है। बहुत अच्छा।

इसके बाद बापदादा को ज्योर्तिलिंगम् यात्राओं का मैप दिखाया गया तथा बापदादा ने स्विच ऑन कर लांचिग की और कहा कि यह रूहानी अलौकिक यात्रा है। सभी उमंग-उत्साह में रहकर लाइट हाउस बनकर जाओ जिससे अनेकों को बाबा का सन्देश मिलेगा।



30-11-99   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


पास विद ऑनर बनने के लिए सर्व खज़ानों के खाते को जमा कर सम्पन्न बनो

आज बापदादा किस सभा को देख रहे हैं? आज की सभा में हर एक बच्चा हाइएस्ट और अविनाशी खज़ानों से रिचेस्ट है। दुनिया वाले कितने भी रिचेस्ट हो लेकिन एक जन्म के लिए रिचेस्ट हैं। एक जन्म भी रिचेस्ट रहेगा या नहीं, यह भी निश्चित नहीं है। चाहे कितना भी रिचेस्ट इन वर्ल्ड हो परन्तु एक जन्म के लिए, और आप हो जो निश्चय और नशे से कहते हो कि हम अनेक जन्म रिचेस्ट हैं क्योंकि आप सभी अविनाशी खज़ानों से सम्पन्न हो। आप सभी जानते हो कि हम इस समय के पुरूषार्थ से एक दिन में भी बहुत कमाई करने वाले हैं। जानते हो कि एक दिन में आप कितनी कमाई करते हो? हिसाब जानते हो ना! गाया हुआ है, अनुभव है - `एक कदम में पद्म'। तो एक दिन में बाप द्वारा, बाप की नॉलेज द्वारा, याद द्वारा हर कदम में पद्म जमा होते हैं। तो सारे दिन में जितने भी कदम याद में उठाते हो उतने पद्म जमा करते हो। तो ऐसा कमाई करने वाला, खज़ाना जमा करने वाला विश्व में कोई होगा! वा है? विश्व में चक्कर लगाकर आओ, सिवाए आपके इतना जमा कोई कर नहीं सकता। इसलिए बाप कहते हैं - इस श्रेष्ठ स्मृति में रहो कि हम आत्माओं का भाग्य परम आत्मा द्वारा ऐसा श्रेष्ठ बना है।

अपने खज़ाने तो जानते हो ना! समय के खज़ाने को भी जानते हो कि इस संगमयुग का समय कितना श्रेष्ठ है, जो प्राप्ति चाहिए वह अधिकारी बन बाप से ले रहे हो। सर्व अधिकार प्राप्त कर लिया है ना? एक-एक श्रेष्ठ संकल्प कितना बड़ा खज़ाना है, समय भी बड़ा खज़ाना है, संकल्प भी बड़ा खज़ाना है। सर्व शक्तियाँ बड़े से बड़ा खज़ाना है। एक-एक ज्ञान-रत्न कितना बड़ा खज़ाना है। हर एक गुण कितना बड़ा खज़ाना है। दुनिया वाले भी मानते हैं कि श्वांसों श्वांस याद से श्वांस सफल होते हैं। तो आप सबके श्वांस सफलता स्वरूप हैं, व्यर्थ नहीं। हर श्वांस में सफलता का अधिकार समाया हुआ है। बापदादा ने सभी बच्चों को सर्व खजाने एक जैसे ही दिये हैं। सर्व भी दिये हैं और समान दिये हैं। कोई को एक गुणा, कोई को दस गुणा, कोई को 100 गुणा... ऐसे नहीं दिया है। देने वाले दाता ने एक-एक बच्चे को सर्व खज़ाने ब्राह्मण बनते ही समान रूप में दिये हैं। लेकिन खज़ाने को कितना जमा करते हैं या गँवाते हैं, यह हर एक के ऊपर है। हर एक को चेक करना है कि हम सारे दिन में कितना जमा करते हैं या गँवाते हैं? चेक करते हो? चेक ज़रूर करना है क्योंकि एक जन्म के लिए नहीं है लेकिन हर जन्म के लिए है। अनेक जन्म के लिए जमा चाहिए। जमा करने की विधि जानते हो? बहुत सहज है। सिर्फ बिन्दी लगाते जाओ। बिन्दी याद है तो जमा होता है। जैसे स्थूल खज़ाने में भी एक के साथ बिन्दी लगाते जाओ तो बढ़ता जाता है ना! ऐसे ही आत्मा भी बिन्दी, बाप भी बिन्दी और ड्रामा में जो बीत चुका वह भी फुलस्टॉप अर्थात् बिन्दी। अगर हर खज़ाने को बिन्दी रूप से याद करो तो जमा होता जाता। अनुभव है ना! बिन्दी लगाई और व्यर्थ से जमा होता जाता है। बिन्दी लगाने आती है? कई बार ऐसे होता है जो कोशिश करते हो बिन्दी लगाने की लेकिन बिन्दी के बजाए लम्बी लाइन हो जाती है, बिन्दी के बजाए क्वेश्चनमार्क हो जाता है, आश्चर्य की लाइन लग जाती है। तो जमा का खाता बढ़ाने की विधि है `बिन्दी' और गँवाने का रास्ता है लम्बी लाइन लगाना, क्वेश्चनमार्क लगाना, आश्चर्य की मात्रा लगाना। सहज क्या है? बिन्दी है ना! तो विधि बहुत सहज है - स्वमान और बाप की याद तथा फालतू को फुलस्टॉप लगाना।

बापदादा ने पहले भी कहा है - रोज़ अमृतवेले अपने आपको तीन बिन्दियों की स्मृति का तिलक लगाओ तो एक खज़ाना भी व्यर्थ नहीं जायेगा। हर समय, हर खज़ाना जमा होता जायेगा। बापदादा ने सभी बच्चों के हर खज़ाने के जमा का चार्ट देखा। उसमें क्या देखा? अभी तक भी जमा का खाता जितना होना चाहिए उतना नहीं है। समय, संकल्प, बोल व्यर्थ भी जाता है। चलते-चलते कभी समय का महत्त्व इमर्ज रूप में कम होता है। अगर समय का महत्व सदा याद रहे, इमर्ज रहे तो समय को और ज्यादा सफल बना सकते हो। सारे दिन में साधारण रूप से समय चला जाता है। गलत नहीं लेकिन साधारण। ऐसे ही संकल्प भी बुरे नहीं चलते लेकिन व्यर्थ चले जाते हैं। एक घण्टे की चेकिंग करो, हर घण्टे में समय या संकल्प कितने साधारण जाते हैं? जमा नहीं होते हैं। फिर बापदादा इशारा भी देता है, तो बापदादा को भी दिलासे बहुत देते हैं। बाबा, ऐसे थोड़ा सा संकल्प है बस। बाकी नहीं, संकल्प में थोड़ा चलता है। सम्पूर्ण हो जायेंगे। ठीक हो जायेंगे। अभी अन्त थोड़े ही आया है, थोड़ा समय तो पड़ा है। समय पर सम्पन्न हो जायेंगे। लेकिन बापदादा ने बार-बार कह दिया है कि जमा बहुत समय का चाहिए। ऐसे नहीं जमा का खाता अन्त में सम्पन्न करेंगे, समय आने पर बन जायेंगे! बहुत समय का जमा हुआ बहुत समय चलता है। वर्सा लेने में तो सभी कहते हैं हम तो लक्ष्मी-नारायण बनेंगे। अगर हाथ उठवायेंगे कि त्रेतायुगी बनेंगे? तो कोई नहीं हाथ उठाता। और लक्ष्मी-नारायण बनेंगे? तो सभी हाथ उठाते। अगर बहुत समय का जमा का खाता होगा तो पूरा वर्सा मिलेगा। अगर थोड़ा-सा जमा होगा तो फुल वर्सा कैसे मिलेगा? इसलिए सर्व खज़ाने को जितना जमा कर सको उतना अभी से जमा करो। हो जायेगा, आ जायेंगे....गे गे नहीं करो। ``करना ही है'' - यह है दृढ़ता। अमृतवेले जब बैठते हैं, अच्छी स्थिति में बैठते हैं तो दिल ही दिल में बहुत वायदे करते हैं - यह करेंगे, यह करेंगे। कमाल करके दिखायेंगे... यह तो अच्छी बात है। श्रेष्ठ संकल्प करते हैं लेकिन बापदादा कहते हैं इन सब वायदों को कर्म में लाओ। सिर्फ वायदा नहीं करो लेकिन जो भी वायदे करते हो वह मन-वचन और कर्म में लाओ। बच्चे संकल्प बहुत अच्छे-अच्छे करते हैं, बापदादा उस समय खुश होते हैं क्योंकि हिम्मत तो रखते हैं ना। यह बनेंगे, यह करेंगे... हिम्मत बहुत अच्छी रखते हैं। तो हिम्मत पर बापदादा खुश होते हैं। परन्तु जब कर्म में आना होता है तो कभी-कभी हो जाता है। वायदा करना बहुत सहज है। लेकिन कर्म में करना माना वायदा निभाना। वायदे करने वाले तो बहुत हैं लेकिन निभाने में नम्बरवार हो जाते हैं। तो संकल्प और कर्म को, प्लैन और प्रैक्टिकल दोनों को समान बनाओ। बना सकते हो ना? बिज़नेस वाले आये हैं। बिज़नेस वाले तो बिज़नेस करना जानते हैं ना! जमा करना जानते हैं ना! और इन्जीनियर व वैज्ञानिक भी प्रैक्टिकल में काम करते हैं। और जो रूरल (ग्रामीण प्रभाग) है, बापदादा उन्हों को `रूलर' कहते हैं, क्योंकि अगर यह सेवा नहीं करते तो कोई नहीं चल पाते। तो तीनों ही विंग जो आये हैं वह कर्म करने वाले हैं। सिर्फ कहने वाले नहीं, करने वाले हैं। तो सभी वायदे कर्म में निभाने वाली आत्माये हो ना! या सिर्फ वायदा करने वाले हो? वायदे के समय तो बापदादा को हिम्मत दिखाकर खुश कर देते हैं। बापदादा के पास हर एक बच्चे के वायदों का फाइल है। वहाँ (वतन में) वायदों का फाइल रखने के लिए अलमारी वा जगह की तो बात है नहीं। कभी-कभी बापदादा अपनी अलौकिक टी.वी. अचानक खोलते हैं। सदा नहीं खोलते हैं, कभी-कभी खोलते हैं तो सब सुनने में आता है। जो आपस में बोलचाल करते हैं, वह भी सुनते हैं। इसीलिए बापदादा कहते हैं - व्यर्थ को जमा के खाते में जमा करो।

ब्राह्मण अर्थात् अलौकिक। ब्राह्मण जीवन का महत्त्व बहुत बड़ा है। प्राप्तियां बहुत बड़ी हैं। स्वमान बहुत बड़ा है और संगम के समय पर बाप का बनना, यह बड़े-से-बड़ा पद्मगुणा भाग्य है। इसलिए बापदादा कहते हैं कि हर खज़ाने का महत्त्व रखो। जैसे दूसरों को भाषण में संगमयुग की कितनी महिमा सुनाते हो। अगर आपको कोई टॉपिक देवें कि संगमयुग की महिमा करो तो कितना समय कर सकते हो? एक घण्टा कर सकते हो? टीचर्स बोलो। जो कर सकता है वह हाथ उठाओ। तो जैसे दूसरों को महत्त्व सुनाते हो, महत्त्व जानते बहुत अच्छा हो। बापदादा ऐसे नहीं कहेगा कि जानते नहीं हैं। जब सुना सकते हैं तो जानते हैं तब तो सुनाते हैं। सिर्फ है क्या कि मर्ज हो जाता है। इमर्ज रूप में स्मृति रहे - वह कभी कम हो जाता है, कभी ज्यादा। तो अपना ईश्वरीय नशा इमर्ज रखो। हाँ मैं तो हो गई, हो गया... नहीं। प्रैक्टिकल में हूँ... यह इमर्ज रूप में हो। निश्चय है लेकिन निश्चय की निशानी है - `रूहानी नशा'। तो सारा समय नशा रहे। रूहानी नशा - मैं कौन! यह नशा इमर्ज रूप में होगा तो हर सेकण्ड जमा होता जायेगा।

तो आज बापदादा ने जमा का खाता देखा इसलिए आज विशेष अटेन्शन दिला रहे हैं कि समय की समाप्ति अचानक होनी है। यह नहीं सोचो कि मालूम तो पड़ता रहेगा, समय पर ठीक हो जायेंगे। जो समय का आधार लेता है, समय ठीक कर देगा, या समय पर हो जायेगा.... उनका टीचर कौन? समय या स्वयं परम-आत्मा? परम-आत्मा से सम्पन्न नहीं बन सके और समय सम्पन्न बनायेगा, तो इसको क्या कहेंगे? समय आपका मास्टर है या परमात्मा आपका शिक्षक है? तो ड्रामा अनुसार अगर समय आपको सिखायेगा या समय के आधार पर परिवर्तन होगा तो बापदादा जानते हैं कि प्रालब्ध भी समय पर मिलेगी क्योंकि समय टीचर है। समय आपका इन्तजार कर रहा है, आप समय का इन्तजार नहीं करो। वह रचना है, आप मास्टर रचता हो। तो रचता का इन्तजार रचना करे, आप मास्टर रचता समय का इन्तजार नहीं करो। और मुश्किल है भी क्या? सहज को स्वयं ही मुश्किल बनाते हो। मुश्किल है नहीं, मुश्किल बनाते हो। जब बाप कहते हैं जो भी बोझ लगता है वह बोझ बाप को दे दो। वह देना नहीं आता। बोझ उठाते भी हो फिर थक भी जाते हो फिर बाप को उल्हना भी देते हो - क्या करें, कैसे करें...! अपने ऊपर बोझ उठाते क्यों हो? बाप आफर कर रहा है - अपना सब बोझ बाप के हवाले करो। 63 जन्म बोझ उठाने की आदत पड़ी हुई है ना! तो आदत से मज़बूर हो जाते हैं, इसलिए मेहनत करनी पड़ती है। कभी सहज, कभी मुश्किल। या तो कोई भी कार्य सहज होता है या मुश्किल होता है। कभी सहज कभी मुश्किल क्यों? कोई कारण होगा ना! कारण है - आदत से मज़बूर हो जाते हैं और बापदादा को बच्चों की मेहनत करना, यही सबसे बड़ी बात लगती है। अच्छी नहीं लगती है। मास्टर सर्वशक्तिवान और मुश्किल? टाइटल अपने को क्या देते हो? मुश्किल योगी या सहज योगी? नहीं तो अपना टाइटल चेंज करो कि हम सहज योगी नहीं हैं। कभी सहजयोगी हैं, कभी मुश्किल योगी? और योग है ही क्या? बस, याद करना है ना। और पावरफुल योग के सामने मुश्किल हो ही नहीं सकती। योग लगन की अग्नि है। अग्नि कितना भी मुश्किल चीज़ को परिवर्तन कर देती है। लोहा भी मोल्ड हो जाता है। यह लगन की अग्नि क्या मुश्किल को सहज नहीं कर सकती है? कई बच्चे बहुत अच्छी-अच्छी बातें सुनाते हैं, बाबा क्या करें वायुमण्डल ऐसा है, साथी ऐसा है। हंस, बगुले हैं, क्या करें पुराने हिसाब किताब हैं। बातें बहुत अच्छी-अच्छी कहते हैं। बाप पूछते हैं - आप ब्राह्मणों ने कौन सा ठेका उठाया है? ठेका तो उठाया है - विश्व-परिवर्तन करेंगे। तो जो विश्व-परिवर्तन करता है वह अपनी मुश्किल को नहीं मिटा सकता?

तो आज क्या करेंगे? जमा का खाता बढ़ाओ। तो जो कहते हो सहज योगी, वह अनुभव करेंगे। कभी मुश्किल कभी सहज, इसमें मजा नहीं है। ब्राह्मण जीवन है मजे की। संगमयुग है मजे का युग। बोझ उठाने का युग नहीं है। बोझ उतारने का युग है। तो चेक करो, अपने तकदीर की तस्वीर नॉलेज के आइने में अच्छी तरह से देखो। आइना तो है ना? या नहीं है? टूट तो नहीं गया है ना? सभी को आइना मिला है? मातायें, आइना मिला है या चोरी हो गया है? पाण्डव तो सम्भालने में होशियार हैं ना? आइना है? हाथ तो अच्छा उठाया। अच्छा है। तकदीर की तस्वीर देखो और सदा अपने तकदीर की तस्वीर देख वाह-वाह का गीत गाओ। वाह मेरी तकदीर! वाह मेरा बाबा! वाह मेरा परिवार! परिवार भी वाह-वाह है! ऐसे नहीं यह तो बहुत वाह-वाह है, यह थोड़ा ऐसा है! नहीं। वाह मेरा परिवार! वाह मेरा भाग्य! और वाह मेरा बाबा! ब्राह्मण जीवन अर्थात् वाह-वाह! हाय-हाय नहीं। शारीरिक व्याधि में भी हाय-हाय नहीं, वाह! यह भी बोझ उतरता है। अगर 10 मण से आपका 3-4 मण बोझ उतर जाए तो अच्छा है या हाय-हाय? क्या है? वाह बोझ उतरा! हाय मेरा पार्ट ही ऐसा है! हाय मेरे को व्याधि छोड़ती ही नहीं है! आप छोड़ो या व्याधि छोड़ेगी? वाह-वाह करते जाओ तो वाह-वाह करने से व्याधि भी खुश हो जायेगी। देखो, यहाँ भी ऐसे होता है ना, किसकी महिमा करते हो तो वाह-वाह करते हैं। तो व्याधि को भी वाह-वाह कहो। हाय यह मेरे पास ही क्यों आई, मेरा ही हिसाब है! प्राप्ति के आगे हिसाब तो कुछ भी नहीं है। प्राप्तियां सामने रखो और हिसाब-किताब सामने रखो, तो वह क्या लगेगा? बहुत छोटी सी चीज़ लगेगी। मतलब तो ब्राह्मण जीवन में कुछ भी हो जाए, पॉजिटिव रूप में देखो। निगेटिव से पॉजिटिव करना तो आता है ना। निगेटिव-पॉजिटिव का कोर्स भी तो कराते हो ना! तो उस समय अपने आपको कोर्स कराओ तो मुश्किल सहज हो जायेगा। मुश्किल शब्द ब्राह्मणों की डिक्शनरी में नहीं होना चाहए। अच्छा –

कोई भी हिसाब है, आत्मा से है, शरीर से है या प्रकृति से है; क्योंकि प्रकृति के यह 5 तत्व भी कई बार मुश्किल का अनुभव कराते हैं। कोई भी हिसाब-किताब योग अग्नि में भस्म कर लो। समझा क्या करना है? जमा का खाता बढ़ाओ। बोल में भी साधारण बोल नहीं, बोल में भी भिन्न-भिन्न भाव और भावना होती है और बोल द्वारा भाव और भावना का पता पड़ जाता है। तो सदा जो भी बोल बोलो उसमें आत्मिक भाव हो और शुभ व श्रेष्ठ भावना हो। बोल भी और भावना भी। माया की जो भावना है वह है ईर्ष्या, हसद, घृणा... यह माया की भावना है। सदा शुभ भाव और भावना हो। ऐसा है? चेक करना। समय का खज़ाना, बोल का खज़ाना, संकल्पों का खज़ाना, शक्तियों का खज़ाना, ज्ञान का खज़ाना, गुणों का खज़ाना... एक-एक खज़ाने को चेक करो क्योंकि हर खज़ाने का खाता जमा करना है। इन सर्व खज़ानों का खाता भरपूर हो तब कहेंगे फुल मार्क्स अर्थात् पास विद् ऑनर। ऐसे नहीं सोचना - एक खज़ाना अगर कम जमा है तो क्या हर्जा है लेकिन पास विद् ऑनर बनने के लिए सर्व खज़ानों में खाता भरपूर हो।

बापदादा के सामने जो आप बैठे हैं सिर्फ उन्हों को नहीं देख रहे हैं। जो भी बच्चे देश में हैं या विदेश में हैं, सभी को देख रहे हैं। सम्मुख नहीं हैं लेकिन दिल में हैं। आज आप सम्मुख हो, कल और होंगे। लेकिन ऐसे नहीं कि आपको बापदादा नहीं देखते। वह दिल में हैं, आप सम्मुख हो। ऐसे नहीं आप दिल में नहीं हो लेकिन सम्मुख हो उसका महत्त्व है। समझा। अच्छा।

बिज़नेस वाले हाथ उठाओ। बिज़नेस वाले क्या सोचते हैं? खास आपको चांस मिला है। बिज़नेस वालों को बाप से भी बिज़नेस कराओ। सिर्फ खुद किया वह तो अच्छा किया लेकिन औरों को भी बाप से बिज़नेस कराओ क्योंकि आजकल सर्व बिज़नेसमैन टेन्शन में बहुत हैं। बिज़नेस समय अनुसार नीचे जा रहा है। इसलिए जितना भी पैसा है, पैसे के साथ चिंता है - क्या होगा! तो उन्हों को चिंता से हटाए अविनाशी खज़ाने का महत्व सुनाओ। तो जितने भी बिज़नेसमैन आये हैं चाहे छोटा बिज़नेस है, चाहे बड़ा है। लेकिन अपने हमजिन्स कार्य करने वालों को खुशी का रास्ता बताओ। जो भी आप बिज़नेसमैन आये हैं उन्हों को चिंता है? क्या होगा, कैसे होगा, चिंता है? चिंता नहीं है तो हाथ उठाओ। कल कुछ हो जाये तो? बेफिकर बादशाह हैं? बिज़नेसमैन बेफिक्र बादशाह हैं? थोड़ों ने हाथ उठाया? जिसको थोड़ा-थोड़ा फिकर है वह हाथ उठा सकते हो या शर्म आयेगा? बापदादा ने टाइटल ही दिया है - बेफिक्र बादशाह, बेगमपुर के बादशाह। तो जब भी कोई ऐसी बात आये, आयेगी तो ज़रूर लेकिन आप बेगमपुर में चले जाना। बेगमपुर में बैठ जाना तो बादशाह भी हो जायेंगे और बेगमपुर में भी हो जायेंगे। आपने ही आह्वान किया है कि पुरानी दुनिया जाये और नई दुनिया आये, तो जायेगी कैसे? नीचे ऊपर होगी तब तो जायेगी। कुछ भी हो जाए आपको बेफिक्र बनना ही है। आपने ही आह्वान किया है, पुरानी दुनिया खत्म हो। तो पुरानी दुनिया में पुराने मकान में क्या होता है? कभी क्या टूटता है, कभी क्या गिरता है, तो यह तो होगा ही। नथिंगन्यु। ब्रह्मा बाप का यही हर बात में शब्द था - ``नथिंगन्यु।'' होना ही है, हो रहा है और हम बेफिक्र बादशाह। ऐसे बेफिक्र हो? बेफिक्र होंगे तो देवाला भी बच जायेगा और फिक्र में होंगे, निर्णय ठीक नहीं होगा तो एक दिन में क्या से क्या बन जाते हैं। यह तो जानते ही हो। बेफिक्र होंगे, निर्णय अच्छा होगा तो बच जायेंगे। टचिंग होगी - अभी समय अनुसार यह करें या नहीं करें! इसीलिए फिक्र माना बिज़नेस भी गिरना और अपनी स्थिति भी गिरना। तो सदैव यह याद रखो - बेफिक्र बादशाह हैं। फिक्र की बात भी बदल जायेगी। हिम्मत नहीं हारो, दिलशिकस्त कभी नहीं हो। हिम्मत से बाप की मदद मिलती रहेगी। बाप मदद के लिए बंधा हुआ है लेकिन हिम्मतहीन का मददगार नहीं है। आप सोचेंगे कि बाप की मदद तो मिली नहीं, लेकिन पहले यह सोचो हिम्मत है? हिम्मत बच्चे की मदद बाप की। आधा शब्द नहीं पकड़ो, बाप की मदद तो चाहिए ना! लेकिन हिम्मत रखी? दिलशिकस्त न होकर हिम्मत रखते चलो तो मदद गुप्त मिलती रहेगी। तो बोलो कौन हो? बिज़नेसमैन सभी बोलो कौन हो? बेफिक्र बादशाह हो? यह याद रखना। हिम्मत कभी नहीं छोड़ना, कुछ भी हो जाए मदद मिलेगी। लेकिन आधा नहीं याद करना। पूरा याद रखना। अच्छा।

मातायें बिजनेसमैन नहीं हैं? (हैं) तो मातायें भी बेफिक्र बादशाह हैं? नौकर नहीं बन जाना। मालिक, बादशाह बनकर रहना। चिंता है तो उदासी है। उदासी माना दासी बनना। इसलिए बादशाह बनना। अच्छा।

दूसरे हैं - इन्जीनियर और वैज्ञानिक वह हाथ उठाओ। वैज्ञानिकों को बहुत अच्छा अनुभव है। जैसे साइंस दिनप्रतिदिन अति सूक्ष्म, महीन होती जाती है। ऐसे आप साइलेन्स और साइंस - दोनों के अनुभवी हो। तो अपने हमजिन्स को साइलेन्स का महत्त्व सुनाओ। उनका भी कल्याण करो। कल्याण करना आता है ना? साइलेन्स भी एक विज्ञान है, साइलेन्स का विज्ञान क्या है, उसकी इन्हों को पहचान दो। साइलेन्स के विज्ञान से क्या-क्या होता है, यह जानने से साइंस भी ज्यादा रिफाइन कर सकेंगे क्योंकि हमारी नई दुनिया में भी विज्ञान तो काम में आयेगा ना! लेकिन रिफाइन रूप में होगा। अभी के विज्ञान की इन्वेन्शन में फायदा भी है, नुकसान भी है। लेकिन नई दुनिया में रिफाइन विज्ञान होने के कारण नुकसान का नाम-निशान नहीं होगा। तो ऐसे जो बड़े-बड़े वैज्ञानिक हैं उन्हों को साइलेन्स का ज्ञान दो। तो फिर अपनी नई दुनिया में रिफाइन विज्ञान का कार्य करने में मददगार बनेंगे। कितनी संख्या है वैज्ञानियों की? जो अभी आये हैं वह कितने हैं? (350) फिर जब आओ तो कितने आयेंगे? 350 ही आयेंगे? क्या करेंगे? एक-एक, एक को लायेंगे? लाना है तो हाथ उठाओ। आपका नाम तो नोट है। बापदादा देखेंगे। एक, एक को तो आप समान बनाकर लाओ। जो लायेंगे वह हाथ उठाओ, इन्हों का टी.वी. निकालो। यह भी एक मौज मनाना है और क्या है? अच्छा- बिज़नेसमैन हाथ उठाओ, इनका भी टी.वी. निकालो।

वैज्ञानिकों के साथ इन्जीनियर भी हैं। इन्जीनियर क्या करेंगे? इन्जीनियर कुछ न कुछ नया बनाते हैं। तो सतयुग में नई दुनिया बनाने के लिए औरों को तैयार करो। आप तो राजा बनेंगे ना! आप थोड़े ही मकान बनाने वाले बनेंगे। तो ऐसी आत्मायें तैयार करो जो नई दुनिया की रचना बहुत अच्छे-से-अच्छी कर सकें। ऐसी इन्जीनियरी करें जो सारे कल्प में ऐसी चीजें नहीं हों। चाहे द्वापर कलियुग में बहुत बढ़िया-बढ़िया चीजें बनाते हैं लेकिन नई दुनिया में ऐसी आश्चर्यजनक चीजें हों जो आजकल की श्रेष्ठ चीजों से सर्वश्रेष्ठ हों। ऐसे इन्जीनियर्स को तैयार करो। चलो पूरा ज्ञान नहीं लेवें, रेग्युलर नहीं बनें लेकिन बाप को तो पहचानें। कई ऐसी आत्मायें हैं जो रेग्युलर नहीं बनती हैं लेकिन निश्चय और खुशी में रहती हैं। सम्बन्ध में सहयोगी रहती हैं। ऐसी आत्मायें भी तैयार करो। समझा! बहुत अच्छा। देखो आपका खास पार्ट इस टर्न में रखा है। तो कोई खास कमाल करेंगे ना! अभी रिज़ल्ट देखेंगे - बिज़नेसमैन कितने लाते हैं, इंजीनियर और वैज्ञानिक कितने लाते हैं? संख्या का तो पता चलेगा ना। रिपोर्ट निकलती है ना कि इतनी संख्या बढ़ गई। तो जो विंग के ऊपर हैं उन्हों को एक वर्ष की रिज़ल्ट लिखनी है। यह सब एक वर्ष के बाद तो आयेंगे ना। संख्या देखेंगे कितनी बढ़ी!

हॉस्पिटल के ट्रस्टी - आप सभी क्या कमाल करेंगे? जो पेशेन्ट आवे उसको पेशेन्स देकर दूसरों को लेकर आओ। विदेश से भी लाओ। अच्छा –

तीसरा ग्रुप रूरल - हाथ उठाओ। इसमें मातायें भी हैं, टीचर्स भी हैं। अच्छा आप लोग क्या करेंगे? गाँव-गाँव को महल बनाना। गांव की ऐसी सेवा करो जो सतयुगी दुनिया में वह गाँव महल बन जायें। सभी को नई दुनिया का परिचय दो। गाँव वाले बहुत प्यार से सुनते हैं। बड़े-बड़े लोग तो कम सुनते हैं लेकिन गाँव वाले लोग बहुत प्यार से सुनते हैं और गाँव को बदलकर दिखाओ। जो गवर्मेन्ट को मालूम पड़े कि यह गाँव कितना बदल गया है। बदल सकते हो? कोई ऐसा गाँव हो जिसमें प्रैक्टिकल गवर्मेन्ट के आगे एक प्रूफ दिखाओ। गाँव-गाँव में सेवा तो की है लेकिन इनमें से कोई एक गाँव गवर्मेन्ट को दिखाओ कि देखो इस गाँव में कितना परिवर्तन आया है। ऐसा हो सकता है? (ऐसी सेवा की है) तो वह गवर्मेन्ट तक पहुंचाओ। गवर्मेन्ट के आगे रिकार्ड रखो। देखो - एक बात है, गवर्मेन्ट कहती है कि आप सोशल सेवा नहीं करते। लेकिन आजकल बाम्बे में जो बगीचे बदलकर अच्छे सुन्दर बनाये हैं और बढ़ते जाते हैं। तो किचड़े के स्थान को पार्क बनाना, अनेक आत्माओं के निमित्त बनना, क्या यह देश का सोशल वर्क नहीं है। कितने घरों को मच्छर और जो भी जर्मस हैं उनसे बचाया। सोशल वर्क क्या है? यह सोशल वर्क तो है। तो ऐसा एक्ज़ाम्पल आस-पास वालों का साइन लेकर गवर्मेन्ट को दो। वह लिखकर दें कि इन्होंने बहुत अच्छा काम किया है। बच्चों के लिए खेलने-कूदने का स्थान बनाना, उनकी तन्दरूस्ती बढ़ाना... यह सोशल वर्क नहीं है तो क्या है, तो ऐसे फोटो निकालो, बच्चों के भी फोटो निकालो, बड़ों के भी फोटो निकालो और जितनों का परिवर्तन हुआ है, उनके भी साइन कराओ फिर गवर्मेन्ट को दिखाओ कि हम सोशल वर्क करते हैं या नहीं करते हैं। समझा। ऐसा रिकार्ड तैयार करो। जितने बगीचे मिले हैं, उन सबका रिकार्ड तैयार करो। क्या है गवर्मेन्ट को पता तो पड़ता ही नहीं है और उल्टी बातें बहुत जल्दी फैलती हैं। अच्छी सेवा कम फैलती है। इसलिए यह सोशल वर्क का एक्ज़ाम्पल दिखाओ। जो कहते हैं ना सोशल वर्क नहीं करते उन्हों को यह दिखाओ। कितनी खुशी प्राप्त होती है। सोशल वर्कर क्या करते हैं? किसका दु:ख दूर करके खुशी देते हैं। उसको सेट करते हैं, आप तो दिमाग को सेट कर देते हो। यह सोशल वर्क नहीं है तो क्या है! तो सेवा बहुत करते हो लेकिन रिकार्ड कम तैयार करते हो। जैसे बाम्बे की अखबारें हैं उसमें डाल सकते हो कि इतनी आत्मायें आती हैं, इतने बच्चे आते हैं उन्हों की खुशी के साधन हैं, उन्हों की तन्दरूस्ती बनती है, ऐसे-ऐसे रिकार्ड तैयार करो। अच्छा। (बाम्बे का कमला नेहरू पार्क भी मिल रहा है) वह भी मिल जायेगा। और आप लोगों को जो ऐसे लैटर मिलते हैं, वह और शहरों में दिखाकर वहाँ भी कर सकते हो। अच्छा।

नये-नये जो पहली बार आये हैं, वह हाथ उठाओ। ड्रामा अनुसार आये तो अभी हैं लेकिन बापदादा का स्लोगन याद है? लास्ट सो फास्ट और फास्ट जाकर फर्स्ट आ सकते हैं। मार्जिन है। फर्स्ट जा सकते हो। लेकिन जमा का खाता ज्यादा से ज्यादा इकट्ठे करो। अपना भाग्य याद रहता है ना? विशेष नयों को कह रहे हैं। जिसको भाग्य याद रहता है वह हाथ उठाओ।

अच्छा - जो एक सेकण्ड में अपने संकल्प को जहाँ चाहे, जो सोचना चाहें वही सोच चलता रहे, ऐसे जो समझते हैं, वह हाथ उठाओ। एक सेकण्ड में माइण्ड कण्ट्रोल हो जाए, ऐसे सेकण्ड में हो सकता है? अगर कर सकते हो तो हाथ उठाओ। ऐसे कहने से नहीं, अगर कण्ट्रोल होता है तो हाथ उठाओ? अच्छा जिन्होंने नहीं हाथ उठाया उन्हों को क्या एक मिनट लगता है? या उससे भी ज्यादा लगता है? अभी यह अभ्यास बहुत ज़रूरी है क्योंकि अन्त के समय यह अभ्यास बहुत काम में आयेगा। जैसे इस शरीर के आरगन्स को, बाँह है, पाँव है, इनको सेकण्ड में जहाँ लेकर जाने चाहो वहाँ ले जा सकते हो ना! ऐसे मन और बुद्धि को भी मेरी कहते हो ना! जब मन के मालिक हो, यह सूक्ष्म आरगन्स हैं, तो इसके ऊपर कण्ट्रोल क्यों नहीं? संस्कार के ऊपर भी कण्ट्रोल होना चाहिए। जब चाहो, जैसे चाहो - जब यह अभ्यास पक्का होगा तब समझो पास विद् ऑनर होंगे। तो बनना लक्ष्मी-नारायण है, तो राज्य को कण्ट्रोल करने के पहले स्व-राज्य अधिकारी तो बनो तब राज्य अधिकारी बनेंगे। इसका भी साधन यही है कि खजाने जमा करो। समझा। अच्छा - इस वायुमण्डल में, मधुबन में बैठे हो। मधुबन का वायुमण्डल पावरफुल है, इस वायुमण्डल में इस समय मन को कण्ट्रोल कर सकते हो? चाहे मिनट में करो, चाहे सेकण्ड में करो लेकिन कर सकते हो? ऑर्डर दो मन को, बस आत्मा परमधाम निवासी बन जाओ। देखो मन ऑर्डर मानता है या नहीं मानता है? (ड्रिल) अच्छा।

चारों ओर के सर्व खज़ानों के मालिक बच्चों को, सदा मुश्किल को सेकण्ड में परिवर्तन करने वाले सदा सहजयोगी, सदा संकल्प, समय, बोल, कर्म को श्रेष्ठ बनाने वाले, सदा बचत का खाता बढ़ाने वाले, सदा मन के मालिक, मन-बुद्धि-संस्कार को ऑर्डर में चलाने वाले, ऐसे स्व-राज्य अधिकारी बच्चों को, चाहे देश में हैं चाहे विदेश में हैं लेकिन दिल से दूर नहीं हैं, ऐसे चारों ओर के बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

सेवाधारी जो भी सेवा के प्रति आये हैं, विशेष - यू.पी. का टर्न है। यू.पी. के जो सेवाधारी आये हैं वह हाथ उठाओ। देखो सेवाधारियों को कितने फायदे हैं। सदा गाया हुआ है, ब्राह्मणों की सेवा महान पुण्य है। भक्ति मार्ग में 100 या 200 ब्राह्मणों की सेवा करते हैं और मधुबन में कितने ब्राह्मणों की सेवा करते हो और एक-एक ब्राह्मण की दुआ सेवाधारियों को स्वत: ही मिलती है। कहने की आवश्यकता नहीं है लेकिन जमा हो ही जाती है एक तो दुआओं का खाता जमा होता, दूसरा सेवा के पुण्य का खाता जमा होता, तीसरा ब्राह्मणों के समीप सम्बन्ध में आते हैं और बापदादा से मिलने का एक्स्ट्रा टर्न मिल जाता है। तो सेवा का फल कितना है! सेवाधारी अर्थात् जमा करने वाले। तो बहुत अच्छी सेवा की। दिल से सेवा की और दिलाराम के पास पहुंच गई। यू.पी. वाले ठीक हैं ना! तो जो भी सेवाधारी बनकर आता है उसको प्रत्यक्ष फल मिलता है। भविष्य तो मिलेगा लेकिन वर्तमान समय में भी जमा होता है।

डबल विदेशी भी बहुत बैठे हैं। डबल विदेशी हाथ उठाओ। देखो, डबल विदेशियों को चांस भी बहुत मिलता है। हर ग्रुप में डबल विदेशी हैं। डबल विदेशियों को कोई भी टर्न में मना नहीं है। तो यह कम भाग्य है क्या? आप सभी जानते हो कि इन्हों का त्याग, इन्हों की हिम्मत और दिल की सफाई पर बापदादा सदा खुश होता है। आप लोग क्या कहते हो? सच्ची दिल तो मुराद हांसिल... तो यह साफ और सच्ची दिल वाले हैं। अगर गिरेंगे तो भी सच बतायेंगे, छिपायेंगे नहीं और सच सुनाने से आधा माफ हो जाता है। इसलिए बापदादा डबल विदेशियों को सदा याद करते हैं और सदा यादप्यार देते हैं। कमाल तो है और कमाल करते-करते बापदादा के साथ अपने घर में पहुँच जायेंगे। तो विशेष डबल विदेशियों को पद्मगुणा यादप्यार। ऐसे नहीं भारतवासियों को नहीं है। भारतवासियों को फिर पद्म-पद्मगुणा यादप्यार।

इन्दौर होस्टल की कन्यायें - कन्याओं के लिए गाया हुआ है कि हर एक कन्या 100 ब्राह्मणों से उत्तम है, क्यों उत्तम है? क्योंकि सेवा कर इतने ब्राह्मणों की दुआ लेनी है। तो कुमारियां बोर्डिंग से निकल क्या करेंगी? क्या लक्ष्य रखा है? सेवा करेंगी? सिर पर ताज रखेंगी या टोकरी रखेंगी? क्या करेंगी? (ताज) नौकरी की टोकरी तो नहीं उठायेंगी? 100 ब्राह्मणों से उत्तम का अर्थ ही है 100 ब्राह्मण की दुआयें लेंगी। तो इतनी सेवा करेंगी? अच्छा। एडवांस में मुबारक हो। सभी की दुआयें लेना। अच्छा।

(बापदादा पूरे हाल का चक्कर लगाकर सभी बच्चों को दृष्टि देकर वापस स्टेज पर पहुँचे हैं)

मोहिनी बहन की तबियत ठीक नहीं हैं, अहमदाबाद से चेकिंग कराकर बापदादा के सामने आई हैं। है ही ठीक। ठीक थी, ठीक है और ठीक रहेगी। (डाक्टर ने 6-7 दिन की रेस्ट बोली है) बहुत जल्दी ठीक हो गई। हिम्मत रखी तो हिम्मत और मदद से पहुंच गई। यह बीच का चक्र लगाकर आई।

दादियों से - अच्छी सेवा की। बहुत अच्छा है। जो निमित्त हैं उन्हों को समय पर एक्स्ट्रा शक्ति मिल जाती है। देखो आप सब आदि रत्नों के आधार से स्थापना का कार्य चल रहा है। ऐसे है ना? बापदादा तो सदा सर्विसएबुल रत्नों को देखते रहते हैं। ठीक है ना। शरीर का हिसाब है लेकिन `सूली से काँटा' हो जाता है। परेशान नहीं होते। हिसाब-किताब चुक्तू होता है लेकिन परेशान नहीं होते, शान में रहते हैं। औरों को भी शान याद दिलाते हैं। मालिक हैं ना। शरीर को चलाने की रमज़ (युक्ति) सीख गये हैं। शरीर का भी आपसे प्यार है ना! महारथियों से सबका प्यार है। प्यार है ना। (दादी जी को) देखो कितना काम करती हैं? लेकिन सदा हर्षित। सीखते हो ना। कभी थकावट के चिह्न नहीं होते। यह है बाप समान की निशानी। ब्रह्मा बाबा महारथियों को, विशेष बच्ची को सब वरदान, शक्तियाँ और ज़िम्मेवारी सब देकर गये। आप लोगों के लिए बापदादा ने विशेष इन्हों को अथक बनने का वरदान दिया है। आप सब भी अथक बन विश्व को परिवर्तन कर रहे हैं और करते रहेंगे। अच्छा। पाण्डव भी महान हैं।

ओमशान्ति।



15-12-99   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


संकल्प शक्ति के महत्त्व को जान इसे बढ़ाओ और प्रयोग में लाओ

आज ऊँचे ते ऊँचा बाप अपने चारों ओर के श्रेष्ठ बच्चों को देख हर्षित हो रहे हैं क्योंकि सारे विश्व की आत्माओं से आप बच्चे श्रेष्ठ अर्थात् हाइएस्ट हैं। दुनिया वाले कहते हैं हाइएस्ट इन दी वर्ल्ड और वह भी एक जन्म के लिए लेकिन आप बच्चे हाइएस्ट श्रेष्ठ इन दी कल्प हैं। सारे कल्प में आप श्रेष्ठ रहे हैं। जानते हो ना? अपना अनादि काल देखो अनादि काल में भी आप सभी आत्मायें बाप के नजदीक रहने वाले हो। देख रहे हो, अनादि रूप में बाप के साथ-साथ समीप रहने वाले श्रेष्ठ आत्मायें हो। रहते सभी हैं लेकिन आपका स्थान बहुत समीप है। तो अनादि रूप में भी ऊँचे-ते-ऊँचे हो। फिर आओ आदिकाल में सभी बच्चे देव-पदधारी देवता रूप में हो। याद है अपना दैवी स्वरूप? आदिकाल में सर्व प्राप्ति स्वरूप हो। तन-मन-धन और जन चार ही स्वरूप में श्रेष्ठ हैं। सदा सम्पन्न हो, सर्व प्राप्ति स्वरूप हो। ऐसा देव-पद और किसी भी आत्माओं को प्राप्त नहीं होता। चाहे धर्म आत्मायें हैं, महात्मायें हैं लेकिन ऐसा सर्व प्राप्तियों में श्रेष्ठ, अप्राप्ति का नाम-निशान नहीं, कोई भी अनुभव नहीं कर सकता। फिर आओ मध्यकाल में, तो मध्यकाल में भी आप आत्मायें पूज्य बनते हो। आपके जड़ चित्र पूजे जाते हैं। कोई भी आत्माओं की ऐसे विधिपूर्वक पूजा नहीं होती। जैसे पूज्य आत्माओं की विधिपूर्वक पूजा होती है तो सोचो ऐसे विधिपूर्वक और किसकी पूजा होती है! हर कर्म की पूजा होती है क्योंकि कर्मयोगी बनते हो। तो पूजा भी हर कर्म की होती है। चाहे धर्म आत्मायें या महान आत्माओं को साथ में मन्दिर में भी रखते हैं लेकिन विधिपूर्वक पूजा नहीं होती। तो मध्यकाल में भी हाइएस्ट अर्थात् श्रेष्ठ हो। फिर आओ वर्तमान अन्तकाल में, तो अन्तकाल में भी अब संगम पर श्रेष्ठ आत्मायें हो। क्या श्रेष्ठता है? स्वयं बापदादा - परमात्म-आत्मा और आदि-आत्मा अर्थात् बापदादा, दोनों द्वारा पालना भी लेते हो, पढ़ाई भी पढ़ते हो, साथ में सतगुरू द्वारा श्रीमत लेने के अधिकारी बने हो। तो अनादिकाल, आदिकाल, मध्यमकाल और अब अन्तकाल में भी हाइएस्ट हो, श्रेष्ठ हो। इतना नशा रहता है?

बापदादा कहते हैं इस स्मृति को इमर्ज करो। मन में, बुद्धि में इस प्राप्ति को दोहराओ। जितना स्मृति को इमर्ज रखेंगे उतना स्मृति से रूहानी नशा होगा। खुशी होगी, शक्तिशाली बनेंगे। इतना हाइएस्ट आत्मा बने हैं। यह निश्चय है पक्का? कि हम ही हाइएस्ट, श्रेष्ठ बने थे, बने हैं और सदा बनते रहेंगे। नशा है? पक्का निश्चय है तो हाथ उठाओ। टीचर्स ने भी उठाया।

मातायें तो सदा खुशी के झूले में झूलती हैं, झूलती हैं ना! माताओं को बहुत नशा रहता है, क्या नशा रहता है? हमारे लिए बाप आया है। नशा है ना! द्वापर से सभी ने नीचे गिराया, इसलिए बाप को माताओं पर बहुत प्यार है और खास माताओं के लिए बाप आये हैं। खुश हो रहे हैं, लेकिन सदा खुश रहना। ऐसे नहीं अभी हाथ उठा रहे हैं और ट्रेन में जाओ तो थोड़ा-थोड़ा नशा उतरता जाए, सदा एकरस, अविनाशी नशा हो। कभी-कभी का नशा नहीं, सदा का नशा सदा ही खुशी प्रदान करता है। आप माताओं के चेहरे सदा ऐसे होने चाहिए जो दूर से रूहानी गुलाब दिखाई दो क्योंकि इस विश्व विद्यालय की जो बात सबको अच्छी लगती है, विशेषता दिखाई देती है वह यही कि मातायें रूहानी गुलाब समान सदा खिला हुआ पुष्प हैं और मातायें ही ज़िम्मेवारी उठाए, मातायें इतना बड़ा कार्य कर रही हैं। चाहे महामण्डलेश्वर भी हैं लेकिन वह भी समझते हैं कि मातायें निमित्त बनी हैं और ऐसे श्रेष्ठ कार्य सहज चला रही हैं। माताओं के लिए कहावत है - सच है नहीं, लेकिन कहावत है – दो मातायें भी इकट्ठे कोई कार्य करें, बड़ा मुश्किल है। लेकिन यहाँ कौन निमित्त हैं? मातायें ही हैं ना! जब भी मिलने आते हैं तो क्या पूछते हैं? मातायें चलाती हैं, आपस में लड़ती नहीं हैं? खिटखिट नहीं करती हैं? लेकिन उन्हों को क्या पता कि यह साधारण मातायें नहीं हैं, यह परमात्मा द्वारा बनी हुई आत्मायें, मातायें हैं। परमात्म-वरदान इन्हों को चला रहा है। ऐसे तो नहीं कि भाई (पाण्डव) समझते हैं कि माताओं का मान है, हमारा नहीं है क्या। आप का भी गायन है, 5 पाण्डव गाये हुए हैं। शक्तियों के साथ, 7 शीतलायें दिखाते हैं तो एक पाण्डव भी दिखाते हैं। और पाण्डवों के बिना मातायें नहीं चला सकती, माताओं के बिना पाण्डव नहीं चला सकते। दोनों भुजायें चाहिए लेकिन माताओं को बहुत गिरा दिया था ना, इसलिए बाप माताओं को जो दुनिया असम्भव समझती है, वह सम्भव करके दिखा रहे हैं। आप खुश हो ना माताओं को देख करके? या नहीं? खुश हैं ना! अगर माताओं को बाप निमित्त नहीं बनाता तो नया ज्ञान, नई सिस्टम होने कारण पाण्डवों को देखकर बहुत हंगामा होता। मातायें ढाल हैं क्योंकि नया ज्ञान है ना। नई बातें हैं। लेकिन बहनों के साथ भाई सदा ही साथ हैं। पाण्डव अपने कार्य में आगे हैं और बहनें अपने कार्य में आगे हैं। दोनों की राय से हर कार्य निर्विघ्न बन चल रहा है।

बापदादा हर रोज़ बच्चों के भिन्न-भिन्न कार्य देखते रहते हैं। नये-नये प्लैन बनते ही रहते हैं। समय तो सबको याद है। याद है? 99 का चक्कर भी पूरा हो गया ना! क्या सोचते थे, 99 आ गया, 99 आ गया। लेकिन आप सबके लिए सेवा करने का वर्ष, निर्विघ्न रहने का वर्ष मिला। देखो 99 में ही मौन भट्ठियाँ कर रहे हो ना! दुनिया घबराती है और आप, जितना वह घबराते हैं उतना ही आप सभी याद की गहराई में जा रहे हो। मन का मौन है ही - ज्ञान सागर के तले में जाना और नये-नये अनुभवों के रत्न लाना। जो बापदादा ने पहले भी इशारा दिया है - सबसे बड़ा खज़ाना है जो वर्तमान और भविष्य बनाता है, वह है श्रेष्ठ खज़ाना, श्रेष्ठ संकल्प का खज़ाना। संकल्प शक्ति बहुत बड़ी शक्ति है जो आप बच्चों के पास है - श्रेष्ठ संकल्प की शक्ति। संकल्प तो सबके पास हैं लेकिन श्रेष्ठ शक्ति, शुभ-भावना, शुभ-कामना की संकल्प शक्ति, मन-बुद्धि एकाग्र करने की शक्ति - यह आपके पास ही है। और जितना आगे बढ़ते जायेंगे इस संकल्प शक्ति को जमा करते जायेंगे, व्यर्थ नहीं गंवायेंगे, व्यर्थ गंवाने का मुख्य कारण है - व्यर्थ संकल्प। व्यर्थ संकल्प, बापदादा ने देखा है मैजारिटी बच्चों के सारे दिन में व्यर्थ अभी भी है। जैसे स्थूल धन को एकानामी से यूज़ करने वाले सदा ही सम्पन्न रहते हैं और व्यर्थ गंवाने वाले कहाँ-न-कहाँ धोखा खा लेते हैं। ऐसे श्रेष्ठ शुद्ध संकल्प में इतनी ताकत है जो आपके कैचिंग पावर, वायब्रेशन कैच करने की पावर, बहुत बढ़ सकती है। यह वायरलेस, यह टेलीफोन.... जैसे यह साइंस का साधन कार्य करता है वैसे यह शुद्ध संकल्प का खज़ाना, ऐसा ही कार्य करेगा जो लण्डन में बैठे हुए कोई भी आत्मा का वायब्रेशन आपको ऐसे ही स्पष्ट कैच होगा जैसे यह वायरलेस या टेलीफोन, टी.वी. यह जो भी साधन हैं....कितने साधन निकल गये हैं, इससे भी स्पष्ट आपकी कैचिंग पावर, एकाग्रता की शक्ति से बढ़ेगी। यह आधार तो खत्म होने ही हैं। यह सब साधन किस आधार पर हैं? लाइट के आधार पर। जो भी सुख के साधन हैं मैजारिटी लाइट के आधार पर हैं। तो क्या आपकी आध्यात्मिक लाइट, आत्म लाइट यह कार्य नहीं कर सकती! जो चाहो वायब्रेशन नजदीक के, दूर के कैच कर सकेंगे। अभी क्या है, एकाग्रता की शक्ति मन-बुद्धि दोनों ही एकाग्र हो तब कैचिंग पावर होगी। बहुत अनुभव करेंगे। संकल्प किया - नि:स्वार्थ, स्वच्छ, स्पष्ट वह बहुत क्विक अनुभव करायेगा। साइलेन्स की शक्ति के आगे यह साइन्स झुकेगी। अभी भी समझते जाते हैं कि साइंस में भी कोई मिसिंग हैं जो भरनी चाहिए। इसलिए बापदादा फिर से अण्डरलाइन करा रहा है कि अन्तिम स्टेज, अन्तिम सेवा - यह संकल्प शक्ति बहुत फास्ट सेवा करायेगी। इसीलिए संकल्प शक्ति के ऊपर और अटेन्शन दो। बचाओ, जमा करो। बहुत काम में आयेगी। प्रयोगी इस संकल्प की शक्ति से बनेंगे। साइंस का महत्त्व क्यों है? प्रयोग में आती है तब सब समझते हैं हाँ साइंस अच्छा काम करती है। तो साइलेन्स की पावर का प्रयोग करने के लिए एकाग्रता की शक्ति चाहिए और एकाग्रता का मूल आधार है - मन की कण्ट्रोलिंग पावर, जिससे मनोबल बढ़ता है। मनोबल की बड़ी महिमा है, यह रिद्धि-सिद्धि वाले भी मनोबल द्वारा अल्पकाल के चमत्कार दिखाते हैं। आप तो विधिपूर्वक, रिद्धि-सिद्धि नहीं, विधिपूर्वक कल्याण के चमत्कार दिखायेंगे जो वरदान हो जायेंगे, आत्माओं के लिए यह संकल्प शक्ति का प्रयोग वरदान सिद्ध हो जायेगा। तो पहले यह चेक करो कि मन को कण्ट्रोल करने की कण्ट्रोलिंग पावर है? सेकण्ड में जैसे साइन्स की शक्ति, स्विच के आधार से, स्विच आन करो, स्विच आफ करो - ऐसे सेकण्ड में मन को जहाँ चाहो, जैसे चाहो, जितना समय चाहो, उतना कण्ट्रोल कर सकते हैं? बहुत अच्छे-अच्छे स्वयं प्रति भी और सेवा प्रति भी सिद्धि रूप दिखाई देंगे। लेकिन बापदादा देखते हैं कि संकल्प शक्ति के जमा का खाता अभी साधारण अटेन्शन है। जितना होना चाहिए उतना नहीं है। संकल्प के आधार पर बोल और कर्म ऑटोमेटिक चलते हैं। अलग- अलग मेहनत करने की ज़रूरत ही नहीं है, आज बोल को कण्ट्रोल करो, आज दृष्टि को अटेन्शन में लाओ, मेहनत करो, आज वृत्ति को अटेन्शन से चेंज करो। अगर संकल्प शक्ति पावरफुल है तो यह सब स्वत: ही कण्ट्रोल में आ जाते हैं। मेहनत से बच जायेंगे। तो संकल्प शक्ति का महत्त्व जानो।

यह भट्ठियाँ विशेष इसीलिए कराई जाती हैं, आदत पड़ जाए। यहाँ की आदत भविष्य में भी अटेन्शन दे करते रहें तब अविनाशी हो। समझा। क्या महत्व है? आपके पास बड़ा ऊँचे-ते-ऊँचा खज़ाना बाप ने दिया है। यह श्रेष्ठ संकल्प, शुभ-भावना, शुभ-कामना के संकल्प का खज़ाना है? सबको बाप ने दिया है लेकिन जमा नम्बरवार करते हैं और प्रयोग में लाने की शक्ति भी नम्बरवार है। अभी भी शुभ-भावना वा शुभ-कामना इसका प्रयोग किया है? विधि पूर्वक करने से सिद्धि का अनुभव होता है? अभी थोड़ा-थोड़ा होता है। आखिर आपके संकल्प की शक्ति इतनी महान हो जायेगी - जो सेवा में मुख द्वारा सन्देश देने में समय भी लगाते हो, सम्पत्ति भी लगाते हो, हलचल में भी आते हो, थकते भी हो..लेकिन श्रेष्ठ संकल्प की सेवा में यह सब बच जायेगा। बढ़ाओ। इस संकल्प शक्ति को बढ़ाने से प्रत्यक्षता भी जल्दी होगी। अभी 62-63 वर्ष हो गये हैं, इतने समय में कितनी आत्मायें बनाई हैं? 9 लाख भी पूरे नहीं हुए हैं। और सारे विश्व को सन्देश पहुँचाना है तो कितनी करोड़ आत्मायें हैं? अभी तक भी भगवान इन्हों का टीचर है, भगवान इन्हों को चला रहा है, करावनहार परमात्मा करा रहा है...यह स्पष्ट नहीं हुआ है। अच्छा कार्य है और श्रेष्ठ कार्य कर रहे हैं यह आवाज़ तो है लेकिन करावनहार अभी भी गुप्त है। तो यह संकल्प-शक्ति से हर एक के बुद्धि को परिवर्तित कर सकते हो। चाहे अहो प्रभू कहके प्रत्यक्ष हो, चाहे बाप के रूप में प्रत्यक्ष हो। तो बापदादा अभी भी फिर से अटेन्शन दिलाता है कि संकल्प शक्ति को बढ़ाओ और प्रयोग में लाते रहो। समझा। अच्छा –

आज माताओं का चांस है, एक माताओं का ग्रुप और मेडीसिन (मेडिकल) वाले, दो वर्ग हैं। मातायें क्या कमाल करेंगी? मेम्बर तो बन गई? महिला वर्ग की मेम्बर हो, अच्छी बात है ना! लेकिन जो भी मेम्बर बने हैं, अच्छा किया है। अभी आप सबकी लिस्ट गवर्मेन्ट को भेजेंगे, क्यों भेजेंगे? डरना नहीं। इनकमटैक्स वाले नहीं आयेंगे आपके पास। इसीलिए भेजेंगे कि यह सब मातायें अभी जगत मातायें बन, जगत को सुधारेंगी। यह कार्य करेंगी ना? तो गवर्मेन्ट को आपका नाम भेजें कि इतनी मातायें दुनिया को स्वर्ग बनाने वाली हैं? भेजें, हाथ उठाओ, डरते तो नहीं हो। डरना नहीं लेकिन यह ध्यान रखना कि अगर आपकी ऐसी इन्क्वायरी करें तो पहले आपका घर स्वर्ग बना है क्योंकि पहले घर फिर विश्व। तो कोई भी माता के पास आकर देखे तो घर में सुख-शान्ति है? तो दिखाई देगा, घर स्वर्ग बनासर? या विश्व को स्वर्ग बनायेंगी, घर को नहीं। पहले घर को बनायेंगी तभी दूसरों पर भी प्रभाव पड़ेगा। नहीं तो कहेंगे घर में कलह लगा पड़ा है, स्वर्ग कहाँ है। तो इसीलिए माताओं को ऐसा वायुमण्डल बनाना है जो कोई भी देखे तो यही दिखाई दे कि माताओं ने परिवर्तन अच्छा किया है। अच्छा जो मेम्बर हैं वह हाथ उठाओ। कितने मेम्बर हैं? (एक हज़ार आये हैं) एक हज़ार भी बहुत हैं। तो जिन्होंने हाथ उठाया मेम्बर हैं, उन्हों के घर में सुख-शान्ति है? हाँ, वह हाथ उठाओ। खड़ी हो जाओ। समझ में आया या ऐसे ही खड़ी हो गई। घर स्वर्ग है? घर में शान्ति है? अच्छा - इन्हों का फोटो निकालो। अच्छा है।

आपकी टीचर को आपके घर में भेजें देखने के लिए। वैसे तो हिम्मत वाली हैं, कोई ने समझा है, कोई ने नहीं भी समझा है। अच्छा है। अगर कोई भी थोड़ी खिटखिट हो तो अभी जाकर पहले घर को ठीक करना फिर विश्व की सेवा कर सकेंगी। ठीक है ना। जिन्होंने नहीं हाथ उठाया वह भी करना - शुभ-भावना से, जवाब नहीं देना, क्रोध नहीं करना, इससे भी फर्क पड़ जाता है। देखो यज्ञ की हिस्ट्री में ऐसे बहुत दृष्टान्त हैं, बहुत मारते थे, मारते हैं ना। तो बहुत माताओं की शुभ-भावना से सेवा करने से वह बाप के बच्चे बन गये। तो आप भी सोचेंगी कि हमारे घर में तो लड़ाई होती है, मारते भी हैं, यह होता है वह होता है लेकिन जब कोई बदल सकते हैं तो आप नहीं बदल सकती हो! शुभ-भावना और अपनी चलन परिवर्तन हो जाती तो वह भी नर्म हो जाते हैं। गर्म नहीं होते, नर्म हो जाते हैं। इसलिए मातायें पहले अपने घरों को, बच्चों को ठीक करो। अच्छा नहीं मानते हैं लेकिन प्यार से चलें, ज्ञान की ग्लानी नहीं करें, इतना तो हो सकता है ना। चलो क्रोधी हैं, क्या भी हैं, आदतें खराब हैं लेकिन यह तो कहें कि माता जी बहुत अच्छी हैं। हम ऐसे हैं लेकिन माता अच्छी है। इतना प्रभाव तो हो। बदली होना चाहिए ना। फिर देखो सेवा कितनी फैलती है। ठीक है मातायें। बहुत अच्छा, देखो आपके वर्ग को भी चांस मिला है ना। तो लक्की हो गई ना। अच्छा –

अभी है मैडीकल वर्ग। हाथ उठाओ। ग्लोबल हॉस्पिटल वाले भी हाथ उठाओ, वह भी मेडिकल विंग है। डबल विदेशियों में कोई हैं। मैडीकल विंग बहुत सहज सेवा कर सकता है, क्यों? जब पेशेन्ट आते हैं, आपके पास तो पेशेन्ट ही आयेंगे। तो पेशेन्ट हमेशा डाक्टर को भगवान का रूप समझते हैं और भावना भी होती है। अगर डाक्टर किसको कहता है कि यह चीज़ नहीं खानी है, तो डर के मारे नहीं खायेंगे और कोई गुरू कहेगा तो भी नहीं मानेंगे। तो मैडीकल वालों को सहज सेवा का साधन है जो भी आवे उनको समय मुकरर करना पड़ता है, क्योंकि काम के समय तो आप कुछ कर नहीं सकते, लेकिन कोई ऐसा विधि बनाओ जो पेशेन्ट थोड़ा भी इन्ट्रेस्टेड हो, उनको एक टाइम बुलाकर और उन्हों को 15 मिनट आधा घण्टा भी परिचय दो तो क्या होगा, आपकी सेवा बढ़ती जायेगी। सन्देश देना वह और बात है, सन्देश से खुश होते हैं लेकिन राजयोगी नहीं बनते हैं। सन्देश आप लोगों ने कितने बार दिया है। अभी भी देखो यात्रायें निकाल रहे हो ना! तो सन्देश कितनों को मिलेगा। कोई ने पर्चे छपाये है, कोई ने कोई रूपरेखा रखी है, फंक्शन रखा है, लेकिन जब तक थोड़ा टाइम भी किसको अनुभव नहीं होता तब तक स्टूडेन्ट नहीं बन सकता। आप देखो जो भी ज्यादा रिजल्ट निकलती है सेवा की, जो योग शिविर करते हैं और एक सप्ताह सम्पर्क में आते हैं, योग द्वारा कोई अनुभव कराते हैं तो वह रेग्युलर बनते हैं। तो आप लोग भी कोई ऐसी विधि बनाओ, जो स्टूडेन्ट बनें। क्योंकि 9 लाख जो बनेंगे तो सिर्फ सन्देश वाले नहीं, 9 लाख सतयुग की पहली प्रजा है। तो सिर्फ सन्देश वाले नहीं, रेग्युलर कुछ न कुछ अनुभूति करने वाले बनेंगे। तो ऐसी विधि बनाओ। सन्देश वाले भी चाहिए, क्योंकि लास्ट में 33 करोड़ देवतायें कहते हैं। कलियुग अन्त तक वह भी चाहिए लेकिन पहले 9 लाख तो तैयार करो। आप जायेंगे तो प्रजा पीछे आयेगी क्या! प्रजा भी तो चाहिए जिस पर राज्य करो। तो पहले कुछ न कुछ अनुभव कराओ। जिसको कोई भी अनुभव होता है वह छोड़ नहीं सकते हैं। बाकी काम तो अच्छा है, किसके दुख को दूर करना। कार्य तो बहुत अच्छा करते हो, लेकिन सदा के लिए नहीं करते हो। दवाई खायेंगे तो बीमारी हटेगी, दवाई बन्द तो बीमारी फिर से आ जाती है। तो ऐसी दवाई दो, जो बीमारी का नाम निशान नहीं हो, वह है मेडीटेशन। फिर भी डाक्टर्स या नर्सेज या कोई भी काम करने वाले चाहिए जरूर। तो बापदादा खुश होते हैं। जब डाक्टर्स इकट्ठे होते हैं तो बापदादा भी खुश होते हैं कि ब्राह्मण परिवार में भी काम में आयेंगे ना। जितना समय नाजुक आयेगा, उतनी बीमारियां भी तो बढ़ेंगी ना। तो डाक्टर्स तो अच्छे अच्छे चाहिए। तो डाक्टर्स से बापदादा पूछते हैं - कि मैडीकल कार्य में तो अच्छे हो लेकिन `मैडीसिन और मैडीटेशन' - आप डाक्टर्स का दोनों में बैलेन्स है? जितना इस कार्य में बिज़ी हो और प्रोग्रेस करते जाते हो, इतना ही मैडीटेशन में भी बढ़ता जाता है। बढ़ता है? जो समझते हैं हमारा बैलेन्स रहता है, मैडीटेशन और मैडीसिन का काम करने में, वह हाथ उठाओ। बैलेन्स है? इन्हों का भी फोटो निकालो। यह सब काम में आने वाले हैं इसीलिए आपका फोटो निकाल रहे हैं। अच्छा।

बापदादा को हर वर्ग का महत्त्व है क्योंकि जैसे शरीर में एक अंग भी नहीं हो, कम हो तो कमी महसूस होती है ना। ऐसे यह हर वर्ग बहुत-बहुत महत्त्वपूर्ण है। तो डाक्टर्स का वर्ग भी बापदादा को सेवाधारी ग्रुप देखने में आता है। सिर्फ थोड़ा समय इस सेवा को भी देते रहो। कई डाक्टर्स कहते हैं हमको फुर्सत ही नहीं होती है। फुर्सत नहीं होती होगी फिर भी कितने भी बिज़ी हों, अपना एक कार्ड छपा के रखो, जिसमें यह इशारा हो, अट्रेक्शन का कोई स्लोगन हो, तो और आगे सफा चाहते हो तो यह यह एड्रेसेज़ हैं, जहाँ आप रहते हो वहाँ के सेन्टर्स की एड्रेस हो। यहाँ जाकर अनुभव करो, कार्ड तो दे सकते। जब पर्चा लिखकर देते हो यह दवाई लेना, यह दवाई लेना। तो पर्चा देने के समय यह कार्ड भी दे दो। हो सकता है कोई कोई को तीर लग जाए क्योंकि डाक्टरों की बात मानते हैं और टेन्शन तो सभी को होता है। एक प्रकृति की तरफ से टेन्शन, परिवार की तरफ से टेन्शन और अपने मन की तरफ से भी टेन्शन। तो टेन्शन फ्री लाइफ की दवाई यह है, ऐसा कुछ उसको अट्रेक्शन की छोटी सी बात लिखो तो क्या होगा, आपकी सेवा के खाते में तो जमा हो जायेगा ना। ऐसे कई करते भी हैं, जो नहीं करते हैं वह करो। डबल डाक्टर हो सिंगल थोड़ेही हो। डबल डाक्टर हो तो डबल सेवा करो। सब अपने अपने स्थान पर सेवा में ठीक हो, कोई खिटखिट तो नहीं है? सब ठीक हो? अच्छा। ठीक नहीं वाले तो उठायेंगे नहीं, शर्म आयेगा ना। लेकिन डबल सेवा से लौकिक सेवा भी ठीक हो जाती है क्योंकि सेवा का भी बल है, जैसे योग का बल है, ज्ञान का बल है, दिव्य गुणों का बल है, धारणा का बल है...वैसे ही सेवा का भी बल है। चार ही सब्जेक्ट में 100-100 मार्क्स हैं। तो चार ही सब्जेक्ट वा चार ही बल अगर जमा हो जाता है तो मार्क्स तो बढ़ जायेंगी ना। चलो कोई में 50 हो, कोई में 75 हो लेकिन टोटल में तो बढ़ जायेगा ना। तो चार ही सब्जेक्ट में मार्क्स जमा करते चलो। यह नहीं सोचो कि इसमें तो थोड़ी हैं, कई बच्चे जवाब देते हैं। बाप कहते हैं ना चार्ट रखो तो कहते हैं चार्ट रखने की कोशिश की, उस दिन चार्ट ही खराब था इसलिए लिखा ही नहीं। है तो बहाना। अच्छा चार्ट खराब है और ही लिखने से सुधरेगा ना। बातें बनाने में तो होशियार हैं। तो समझा। डाक्टर्स को फर्स्ट नम्बर आना है या पीछे पीछे आना है। फर्स्ट आयेंगे ना। तो फर्स्ट आने के लिए यह अटेन्शन रखो, मार्क्स बढ़ाओ क्योंकि वहाँ सतयुग में तो डाक्टर्स बनना ही नहीं है। राजा बनना है ना। राजयोगी हो। तो राजयोगी हो, राजा बनना है तो अटेन्शन भी रखना पड़ेगा। अच्छा।

जो हार्ट का कोर्स कर रहे हैं, वह हाथ उठाओ। हार्ट तो ठीक है ना। डाक्टर कहाँ है? (सतीष गुप्ता को) अच्छा है अगर सहज साधन से ठीक हो जाता है, तो डबल फायदा है। दवाई भी है और मैडीटेशन भी है। तो डबल खाता एक चुक्तू होता है, एक जमा होता है, अच्छा फायदा है। अगर समझते हैं बहुत अच्छा है तो एक हाथ उठाओ। यह भी अच्छा रिसर्च है। ऐसे ही ठीक हो जाएँ तो अच्छा है ना! यह भी देखो कोई भी सर्च करते हैं तो यह भी क्या है? संकल्प शक्ति से ही इन्वेन्शन होती है। कोई भी इन्वेन्शन का आधार एकाग्रता से संकल्प शक्ति होती है। इसलिए इन्हों को तो बहुत अच्छा चांस मिल जाता है। मधुबन भी मिल जाता, बीमारी भी खत्म हो जाती और मैडीटेशन में भी बढ़ते जाते। अच्छा।

बाम्बे के सेवाधारी उठो। यह सेवा का चांस अच्छा लगता है? इसी बहाने से सेवा से ब्राह्मणों की पहचान मिलती है। ब्राह्मण परिवार में परिचय हो जाता है और बेहद में आने का चांस है। सेवा का बल भी कम नहीं है। देखो जो भी पुराने, जिसको दादियां कहते हो, इन्हों में एक्स्ट्रा बल है। किसका बल है? सेवा का। (खाँसी आई) बाजा खराब हो जाता है ना!

और स्थापना में सेवा की है। आप सब जो यहाँ बैठे हो वह आदि में, इन्हों की मेहनत, सहनशक्ति, त्याग वृत्ति, इन्हों का फल आप हो। इन्हों को बल मिला आपको फल मिला। सभी की हिस्ट्रियां तो सुनी हैं ना। क्या नहीं त्याग किया! आप तो बने बनाये आधार पर आ गये हो। मक्खन इन्होंने निकाला आप खाने पर आ गये। अच्छा लगता है ना। आदि के पाण्डव भी हैं, उन्होंने भी त्याग किया है। अभी भी देखो जहाँ भी प्रोग्राम होता है, अभी तक भी कहते कोई दादियां आ जाएँ। तो दादियों का त्याग का भाग्य तो है ना। त्याग की हिस्ट्रियां तो, कहानियां तो बहुत हैं ना। अभी भी सेवाधारी सेवा चारों ओर करने वाले बहुत हैं, यह आदि हैं और आप अभी के सेवाधारी भी अच्छे अच्छे हैं। कितने-कितने सेन्टर्स खोले हैं? बापदादा तो एक-एक की महिमा करना शुरू करे तो कितनी रातें लग जाएं! और एक-एक की महिमा है, हर एक की विशेषता है और रहेगी। अच्छा।

जो बापदादा ने अभ्यास सुनाया, मन सेकण्ड में एकाग्र हो जाए, क्योंकि समस्या अचानक आती है और उसी समय अगर मनोबल है, तो समस्या समाप्त हो जाती है लेकिन समस्या एक पढ़ाई पढ़ाने वाली बन जाती है। इसलिए सभी मन बुद्धि को अभी-अभी एकाग्र करो। देखो होता है। (ड्रिल) ऐसे सारे दिन में अभ्यास करते रहो। अच्छा।

चारों ओर की श्रेष्ठ आत्माओं को, आदि मध्य और अन्त में श्रेष्ठ पार्ट बजाने वाली आत्माओं को, सदा अपने श्रेष्ठ संकल्प की विधि को अनुभव करने वाले, सदा सहज योगी के साथ-साथ प्रयोगी बनने वाले, सदा संकल्प की शक्ति द्वारा सर्व शक्तियों को बढ़ाने वाले, मन और बुद्धि पर नियन्त्रण रखने वाले, सदा प्रयोगी बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

देश विदेश के बच्चों को भी बापदादा देख रहे हैं। संकल्प द्वारा जो यादप्यार या रूह-रूहान करते हैं वह बापदादा के पास पहुँच जाता है। अभी भी जो साइन्स के बल द्वारा सुन रहे हैं, उन सभी बच्चों को हर देश के एक एक बच्चे को यादप्यार। जनक बच्ची को भी विशेष बापदादा यादप्यार दे रहे हैं क्योंकि मन से यहाँ है, तन से वहाँ है। तो सभी को, एक-एक को विशेष यादप्यार। अच्छा, योग भट्टी का प्रोग्राम बहुत अच्छा चल रहा है।

(हाल में सभी भाई-बहनों को दृष्टि देने के पश्चात् बापदादा के सामने सभी दादियां बैठी हैं)

सदा अपने को बापदादा के नयनों के नूर समझते हो ना? नयनों में सदा समाये हुए, नयनों में समाने से सदा ही दृष्टि में समाये रहेंगे। यह भी बाप और बच्चों को संगमयुग के सुहेज हैं। मिलना, सुनना, खाना पीना, यह संगम के सुहेज हैं। ऐसे ही सुहेज मनाते-मनाते अपने घर चले जायेंगे। फिर राज्य में आयेंगे। ब्रह्मा बाप के साथ राज्य करना। अच्छा है। दुनिया वाले सोचते रहते और आप सदा मनाते रहते। कोई सोच नहीं है, क्या होगा, कैसे होगा। किसी प्रकार का सोच नहीं है। अच्छा।

जयन्ती बहन से - यह आ गई। अच्छा पार्ट मिला है। एक देश से दूसरे देश में, दूसरे से तीसरे, उड़ते रहते, उड़ाते रहते। अच्छा। बापदादा खुश है। ठीक है।

दादियों से - आप लोगों के सहयोग से ही सारा कारोबार चल रहा है। सहयोगी विशेष भुजायें हैं। अच्छा है, ग्रुप अच्छा मिला है। (मोहिनी बहन से) ग्रुप में हो ना। सब साथी हैं। सबके साथ से कार्य चल रहा है। पाण्डव भी साथी अच्छे मिले हैं। कम्पनी है ना यह भी। तो अच्छी कम्पनी के कारोबार सम्भालने वाले भी हैं, सेवाधारी भी हैं, सबका हाथ हैं। ऐसे नहीं फारेन में हैं तो यज्ञ में हाथ नहीं है। एक-एक बच्चे का हाथ यज्ञ सेवा में लगा हुआ है। चाहे कहाँ भी रहते हो, देश में रहते हो या विदेश में लेकिन आप एक-एक ब्राह्मण के हाथ से यज्ञ चल रहा है। यज्ञ रचने वाले ब्राह्मण हो। समझते हो ना हम यज्ञ रचने वाले हैं? बालक सो मालिक हैं। अच्छा।



31-12-99   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


नई सदी में अपने चलन और चेहरे से फरिश्ते स्वरूप को प्रत्यक्ष करो

आज बापदादा अपने परमात्म-पालना के अधिकारी बच्चों को देख हर्षित हो रहे हैं। कितने भाग्यवान हैं जो स्वयं परमात्मा की पालना में पल रहे हैं। दुनिया वाले कहते हैं कि हमें परम आत्मा पाल रहा है, लेकिन आप थोड़ी सी विशेष आत्मायें प्रैक्टिकल में पल रहे हो। परमात्म-पालना है, परमात्म-श्रीमत है, उसी श्रीमत से चल रहे हो, पल रहे हो। ऐसे अपने को विशेष आत्मायें अनुभव करते हो? अपनी महानता को जानते हो? वर्तमान समय तो ब्राह्मण आत्मायें महान हैं ही, और भविष्य में भी सर्व श्रेष्ठ महान हो। द्वापर में भी आपके जड़ चित्र इतने महान बनते हैं जो कोई भी चित्रों के आगे जायेगा तो नमन करेगा। इतनी आपकी महानता है जो आज दिन तक अगर किसी भी आत्मा को बनावटी देवता बना देते, लक्ष्मी-नारायण बनायेंगे, श्रीराम बनायेंगे, तो जब तक वह आत्मा देवता का पार्ट बजाता है, तो उस आत्मा को जानते हुए भी कि यह साधारण मनुष्य है, लेकिन जब देवता रूप का पार्ट बजाते हैं तो उस साधारण आत्मा को भी नमन करेंगे। तो आपके रूप की महानता तो है लेकिन नामधारी आत्माओं को भी महान समझते हैं। तो ऐसी महानता अनुभव करते हो? जानते हो, समझते हो वा इमर्ज रूप में अपने को अनुभव करते हो? क्योंकि मूल आधार ही है - अनुभव करना।

बापदादा सभी बच्चों को अनुभवी मूर्त बनाते हैं। सिर्फ सुनने वा जानने वाले नहीं। अनुभव का तो हर एक के चेहरे से, चलन से पता पड़ जाता है। चाल से उसके हाल का पता पड़ जाता है। तो सोचो हमारी चाल क्या है? ब्राह्मण चाल है? ब्राह्मण अर्थात् सदा सम्पन्न आत्मा। शक्तियों से भी सम्पन्न, गुणों से भी सम्पन्न... तो ऐसी चाल है? आपके चेहरे से दिखाई देता है कि यह साधारण होते हुए भी अलौकिक है? आप सबकी दृष्टि, वृत्ति, वायब्रेशन्स अलौकिक अनुभव करते हैं? जब लास्ट जन्म तक आपकी दिव्यता, महानता जड़ चित्रों से भी अनुभव करते हैं, तो वर्तमान समय चैतन्य श्रेष्ठ आत्माओं द्वारा अनुभव होता है? जड़ चित्र तो आपके ही हैं ना!

अमृतवेले से लेकर हर चलन को चेक करो - हमारी दृष्टि अलौकिक है? चेहरे का पोज़ सदा हर्षित है? एकरस, अलौकिक है वा समय प्रति समय बदलता रहता है? सिर्फ योग में बैठने के समय वा कोई विशेष सेवा के समय अलौकिक स्मृति वा वृत्ति रहती है व साधारण कार्य करते हुए भी चेहरा और चलन विशेष रहता है? कोई भी आपको देखे - कामकाज में बहुत बिज़ी हो, कोई हलचल की बात भी सामने हो लेकिन आपको अलौकिक समझते हैं? तो चेक करो कि बोल-चाल, चेहरा साधारण कार्य में भी न्यारा और प्यारा अनुभव होता है? कोई भी समय अचानक कोई भी आत्मा आपके सामने आ जाए तो आपके वायब्रेशन से, बोल-चाल से यह समझेंगे कि यह अलौकिक फरिश्ते हैं? क्योंकि आज का दिन संगम का दिन है, पुराना जा रहा है, नया आ रहा है। तो क्या नवीनता विश्व के आगे दिखाई दे? अन्दर याद रहता है वा समझते हैं, वह बात अलग है लेकिन स्थापना के समय को सोचो - कितना समय स्थापना का बीत गया! बीते हुए समय के प्रमाण बाकी कितना समय थोड़ा रहा हुआ है? तो क्या अनुभव होना चाहिए? बापदादा जानते हैं कि बहुत अच्छे-अच्छे पुरुषार्थी, पुरूषार्थ भी कर रहे हैं, उड़ भी रहे हैं लेकिन बापदादा इस 21वीं सदी में नवीनता देखने चाहते हैं। सब अच्छे हो, विशेष भी हो, महान भी हो लेकिन बाप की प्रत्यक्षता का आधार है - साधारण कार्य में रहते हुए भी फरिश्ते की चाल और हाल हो। बापदादा यह नहीं देखने चाहते कि बात ऐसी थी, काम ऐसा था, सरकमस्टांश ऐसे थे, समस्या ऐसी थी, इसीलिए साधारणता आ गई। फरिश्ता स्वरूप अर्थात् स्मृति स्वरूप में हो, साकार रूप में हो। सिर्फ समझने तक नहीं, स्मृति तक नहीं, स्वरूप में हो। ऐसा परिवर्तन किसी समय भी, किसी हालत में भी अलौकिक स्वरूप अनुभव हो। ऐसे है या थोड़ा बदलता है? जैसी बात वैसा अपना स्वरूप नहीं बनाओ। बात आपको क्यों बदले, आप बात को बदलो। बोल आपको बदले या आप बोल को बदलो? परिवर्तन किसको कहा जाता है? प्रैक्टिकल लाइफ का सैम्पल किसको कहा जाता है? जैसा समय, जैसा सरकमस्टांश वैसे स्वरूप बने - यह तो साधारण लोगों का भी होता है। लेकिन फरिश्ता अर्थात् जो पुराने या साधारण हाल-चाल से भी परे हो।

अभी आपकी टॉपिक है ना - ``समय की पुकार''। तो अभी समय की पुकार आप विशेष महान आत्माओं के प्रति यही है कि अभी फरिश्ता अर्थात् अलौकिक जीवन स्वरूप में दिखाई दे। क्या यह हो सकता है? टीचर्स बोलो - हो सकता है? कब होगा? हो सकता है तो बहुत अच्छी बात है ना, कब होगा? एक साल चाहिए, दो हज़ार पूरा हो जाए? जो समझते हैं कुछ समय तो चाहिए चलो एक साल नहीं, 6 मास, 6 मास नहीं तो 3 मास, चाहिए? इसमें हाथ नहीं उठाते? आपका स्लोगन क्या है? याद है? ``अब नहीं तो कब नहीं''। यह स्लोगन किसका है? ब्राह्मणों का है या देवताओं का है? ब्राह्मणों का ही है ना!तो इस नई सदी में बापदादा यही देखने चाहते हैं कि कुछ भी हो जाए लेकिन अलौकिकता नहीं जाए। इसके लिए सिर्फ चार शब्दों का अटेन्शन रखना पड़े, वह क्या? वह बात नई नहीं है, पुरानी है, सिर्फ रिवाइज़ करा रहे हैं।

एक बात - शुभ-चिंतक। दूसरा - शुभ-चिंतन, तीसरा - शुभ-भावना, यह भावना नहीं कि यह बदले तो मैं बदलूं। उसके प्रति भी शुभ-भावना, अपने प्रति भी शुभ-भावना और चौथा - शुभ श्रेष्ठ स्मृति और स्वरूप। बस एक `शुभ' शब्द याद कर लो, इसमें 4 ही बातें आ जायेंगी। बस हमको सबमें शुभ शब्द स्मृति में रखना है। यह सुना तो बहुत बारी है। सुनाया भी बहुत बारी है। अब और स्वरूप में लाने का अटेन्शन रखना है। बापदादा जानते हैं कि बनना तो इन्हों को ही है। और जो आने वाले भी हैं वह साकार रूप में तो आप लोगों को ही देखते हैं।

आज वर्ष के अन्त का दिन है ना! तो बापदादा ने मैजॉरिटी बच्चों का वर्ष का पोतामेल देखा। क्या देखा होगा? मुख्य एक कारण देखा। बापदादा ने देखा कि `मिटाने और समाने' की शक्ति कम है। मिटाते भी हैं, उल्टा देखना, सुनना, सोचना, बीता हुआ भी मिटाते हैं लेकिन जैसे आप कहते हो ना कि एक है - कान्सेस, दूसरा है - सबकान्सेस। मिटाते हैं लेकिन मन की प्लेट कहो, स्लेट कहो, कागज़ कहो, कुछ भी कहो, पूरा नहीं मिटाते। क्यों नहीं मिटा सकते? उसका कारण है - समाने की शक्ति पावरफुल नहीं है। समय अनुसार समा भी लेते लेकिन फिर समय पर निकल आता। इसलिए जो चार शब्द बापदादा ने सुनाये, वह सदा नहीं चलते। अगर मानों मन की प्लेट वा कागज पूरा साफ नहीं हुआ, पूरा नहीं मिटा तो उस पर अगर बदले में आप और अच्छा लिखने भी चाहो तो स्पष्ट होगा? अर्थात् सर्व गुण, सर्व शक्तियां धारण करने चाहो तो सदा और फुल परसेन्ट में होगा? बिल्कुल क्लीन भी हो, क्लीयर भी हो तब यह शक्तियां सहज कार्य में लगा सकते हो। कारण यही है, मैजारिटी की स्लेट क्लीयर और क्लीन नहीं है। थोड़ा- थोड़ा भी बीती बातें या बीती चलन, व्यर्थ बातें वा व्यर्थ चाल-चलन सूक्ष्म रूप में समाई रहती हैं तो फिर समय पर साकार रूप में आ जाती हैं। तो समय अनुसार पहले चेक करो, अपने को चेक करना, दूसरे को चेक करने नहीं लग जाना क्योंकि दूसरे को चेक करना सहज लगता है, अपने को चेक करना मुश्किल लगता है। तो चेक करना कि हमारे मन की प्लेट व्यर्थ से और बीती से बिल्कुल साफ है? सबसे सूक्ष्म रूप है - वायब्रेशन के रूप में रह जाता है। फरिश्ता अर्थात् बिल्कुल क्लीन और क्लीयर। समाने की शक्ति से निगेटिव को भी पॉजिटिव रूप में परिवर्तन कर समाओ। निगेटिव ही नहीं समा दो, पॉजिटिव में चेंज करके समाओ तब नई सदी में नवीनता आयेगी।

दूसरी बात बतायें क्या देखी? बतायें या भारी डोज़ है? जैसे बापदादा ने पहले कहा है कि कैसे भी करके मुझे अपने साथ परमधाम में ले ही जाना है, चाहे मार से चाहे प्यार से ले ही जाना है। अज्ञानियों को मार से और आप बच्चों को प्यार से। ऐसे ही बापदादा अभी भी कहते हैं कि कैसे भी करके दुनिया के आगे महान आत्माओं को फरिश्ते रूप में प्रत्यक्ष करना ही है। तो तैयार हो ना? बापदादा ने सुनाया ना - कैसे भी करके बनाना तो है ही। नहीं तो नई दुनिया कैसे आयेगी! अच्छा – दूसरी बात क्या देखी?

साल का अन्त है ना! देखो, बापदादा `मैजारिटी' शब्द कह रहा है, सर्व नहीं कह रहा है, मैजारिटी कह रहा है। तो दूसरी बात क्या देखी? क्योंकि कारण को निवारण करेंगे तब नव-निर्माण होगा। तो दूसरा कारण - अलबेलापन भिन्न-भिन्न रूप में देखा। कोई-कोई में बहुत रॉयल रूप का भी अलबेलापन देखा। एक शब्द अलबेलेपन का कारण - ``सब चलता है''। क्योंकि साकार में तो हर एक के हर कर्म को कोई देख नहीं सकता है, साकार ब्रह्मा भी साकार में नहीं देख सके लेकिन अब अव्यक्त रूप में अगर चाहे तो किसी के भी हर कर्म को देख सकते हैं। जो गाया हुआ है कि परमात्मा की हजार आंखे हैं, लाखों आँखें हैं, लाखों कान हैं। वह अभी निराकार और अव्यक्त ब्रह्मा दोनों साथ-साथ देख सकते हैं। कितना भी कोई छिपाये, छिपाते भी रॉयल्टी से हैं, साधारण नहीं। तो अलबेलापन एक मोटा रूप है, एक महीन रूप है, शब्द दोनों में एक ही है ``सब चलता है, देख लिया है क्या होता है! कुछ नहीं होता। अभी तो चला लो, फिर देखा जायेगा!'' यह अलबेलेपन के संकल्प हैं। बापदादा चाहे तो सभी को सुना भी सकते हैं लेकिन आप लोग कहते हो ना कि थोड़ी लाज़-पत रख दो। तो बापदादा भी लाज़ पत रख देते हैं लेकिन यह अलबेलापन पुरूषार्थ को तीव्र नहीं बना सकता। पास विद ऑनर नहीं बना सकता। जैसे स्वयं सोचते हैं ना ``सब चलता है''। तो रिजल्ट में भी चल जायेंगे लेकिन उड़ेंगे नहीं। तो सुना क्या दो बातें देखी! परिवर्तन में किसी न किसी रूप से, हर एक में अलग-अलग रूप से अलबेलापन है। तो बापदादा उस समय मुस्कराते हैं, बच्चे कहते हैं - देख लेंगे क्या होता है! तो बापदादा भी कहते हैं - देख लेना क्या होता है! तो आज यह क्यों सुना रहे हैं? क्योंकि चाहो या नहीं चाहो, जबरदस्ती भी आपको बनाना तो है ही और आपको बनना तो पड़ेगा ही। आज थोड़ा सख्त सुना दिया है क्योंकि आप लोग प्लैन बना रहे हो, यह करेंगे, यह करेंगे... लेकिन कारण का निवारण नहीं होगा तो टैम्प्रेरी हो जायेगा, फिर कोई बात आयेगी तो कहेंगे बात ही ऐसी थी ना! कारण ही ऐसा था! मेरा हिसाब-किताब ही ऐसा है। इसलिए बनना ही पड़ेगा। मंजूर है ना! टीचर्स मंजूर है? फारेनर्स मंजूर है? बापदादा कहते हैं - बनना ही पड़ेगा। फिर नई सदी में कहेंगे बन गये। ऐसा है ना - कम से कम समय लेना चाहिए। लेकिन बापदादा एक वर्ष दे देता है फिर तो सहज है ना। आराम से करो। आराम का अर्थ है, आ राम अर्थात् बाप को याद करके फिर करना। वह डनलप वाला आराम नहीं करना। बापदादा का आपसे ज्यादा प्यार है, या आपका बाप से ज्यादा प्यार है? किसका है? बाप का या आपका?

बापदादा को आप सबमें निश्चय है कि आप सभी बच्चे प्यार का रिटर्न अव्यक्त ब्रह्मा बाप समान अवश्य बनेंगे। बनेंगे ना! बापदादा छोड़ेगा नहीं! प्यार है ना! जिससे प्यार होता है उसका साथ नहीं छोड़ा जाता है। तो ब्रह्मा बाबा का आपमें बहुत प्यार है। इन्तजार करता रहता है, कब मेरे बच्चे आयें! तो समान तो बनेंगे ना!

ब्रह्मा बाप की एक रूह-रूहान सुनाते हैं। अभी 18 जनवरी आने वाली है ना! तो ब्रह्मा बाप, शिव बाप को कहते हैं कि आप बच्चों से डेट फिक्स कराओ, मैं कब तक इन्तजार करूं? यह डेट फिक्स कराओ। तो शिव बाप क्या कहेंगे? मुस्कराते हैं! बापदादा फिर भी कहते हैं - बच्चे ही डेट फिक्स करेंगे, बापदादा नहीं करेंगे। तो ब्रह्मा बाप बहुत याद करता है। तो डेट फिक्स करेंगे?

नये वर्ष में यह समान बनने का दृढ़ संकल्प करो। लक्ष्य रखो कि हमें फरिश्ता बनना ही है। अब पुरानी बातों को समाप्त करो। अपने अनादि और आदि संस्कारों को इमर्ज करो। स्मृति में रखो - चलते-फिरते मैं बाप समान फरिश्ता हूँ, मेरा पुराने संस्कारों से, पुरानी बातों से कोई रिश्ता नहीं। समझा। इस परिवर्तन के संकल्प को पानी देते रहना। जैसे बीज को पानी भी चाहिए, धूप भी चाहिए तब फल निकलता है। तो इस संकल्प को, बीज को स्मृति का पानी और धूप देते रहना। बार-बार रिवाइज़ करो - मेरा बापदादा से वायदा क्या है! अच्छा। आज कौन-सा ग्रुप है? (ज्युरिस्ट और कल्चरल)

ज्युरिस्ट - आपस में मीटिंग की। अच्छा, क्या नया प्लैन बनाया? वारिस कब निकालेंगे, उसकी डेट फिक्स की? यह अच्छी बात है कि वारिस भी निकालेंगे, माइक भी लायेंगे लेकिन माइक थोड़े-थोड़े आये हैं, फारेन वाले लाये थे। अभी और समीप आयेंगे। जो लाये थे वह समीप हैं? ऐसे तैयार हैं जो भाषण करें? आपके बदलें में वह परिचय दें, ऐसे तैयार हैं? (मार्जिन है) तो भारत उनसे आगे जाओ। इन्होंने तो लाये, चाहे सेकण्ड नम्बर माइक हो या फर्स्ट हो, तो भारत वाले थोड़ी भी मार्जिन नहीं छोड़ो और लाओ। यह रेस है, रीस नहीं। रीस नहीं करना, रेस भले करना। फारेन वालों ने हिम्मत तो रखी। उसमें कुछ-कुछ क्वालिटी अच्छी है जो आगे बढ़ सकती है। भारत की टीचर्स क्या करेंगी? कब माइक लायेंगी? भारत की टीचर्स ने वारिस या माइक लाया है? पाण्डवों ने लाया है? (अन्दर तैयार कर रहे हैं?) स्टेज पर आवें ना! माइक उसको कहा जाता है जिसका प्रभाव जनता के ऊपर पड़ जाए। जैसे आप लोग स्पीच करते हो, कुछ तो प्रभाव पड़ता है ना! पूरा नहीं पड़ता है कुछ तो पड़ता है। तो ऐसे माइक तैयार करो। बापदादा ने कहा समय अनुसार आप माइट बनेंगे, वह माइक बनेंगे। क्या लास्ट तक आप लोग ही भाषण करते रहेंगे? अपना परिचय आपेही देते रहेंगे? तो सामने लाओ। अगर तैयार हो तो बापदादा के सामने नहीं लेकिन दादियों के आगे लाओ। अच्छा।

तो बापदादा ज्युरिस्ट मीटिंग को कहते हैं कि जैसे आपने मीटिंग में प्लैन बनाया है, प्लैन तो सब अच्छे बनाये हैं, मुबारक हो। अभी जैसे प्रोग्राम की डेट फिक्स बताई, दो प्रोग्राम बना दिये, (एक जयपुर में ज्युरिस्ट कान्फ्रेन्स रखी है, दूसरी आबू में) अच्छा किया राजस्थान को उठाया है। ऐसे ही ऐसी मीटिंग करो जो वारिस या माइक की डेट फिक्स हो जाए। वकील और जज तो केस में फैंसला करते हैं ना तो यह भी फैंसला करो। ज्युरिस्ट मीटिंग वालों के नाम तो नोट हैं ना तो बापदादा उन्हों को खास विशेष लड्डू खिलायेंगे। बहुत ताकत वाले लड्डू दादी बनवाती है। (आज टीचर्स को खिलाया है) टीचर्स फिर तो माइक लायेंगी ना। लड्डू खाया है तो माइक तो आयेंगे ना।

कल्चरल विंग वाले हाथ उठाओ - आप लोगों ने क्या प्लैन बनाया, क्या मीटिंग की? आप लोगों ने कल्चरल का बनाया या कल्चर का बनाया? (मीटिंग करना बाकी है) तो लड्डू भी बाकी है। जो भी वर्ग पहले वारिस या माइक लायेगा उनको 8-8 लड्डू खिलायेंगे। भण्डारा तो भरपूर है। (आप कहेंगे तो 16 भी खिला देंगे) बड़ी दादी है तो बड़ी दिल है। अच्छा है, यह वर्ग के प्रोग्राम भी अच्छे सेवा में समीप ला रहे हैं और सभी वर्ग अपनी- अपनी सेवा में अच्छे आगे बढ़ रहे हैं। और यह भी जो हर वर्ग वालों को चांस दिया है, वह भी अच्छा है। दिखाई तो देते हैं कौन-कौन हैं, कितने हैं! आये तो कम होंगे लेकिन यह वर्ग हैं, कुछ कर रहे हैं - यह तो पता पड़ता है।

अच्छा - आज का क्या प्रोग्राम है? मतलब 12 बजायेंगे, संगम पूरा करेंगे। यह 12 भले बजाना, लेकिन संगम का अन्त भी जल्दी लाना।

डबल विदेशी - जैसे भारत हर टर्न में आता है, फारेन वाले भी कम नहीं हैं। हर टर्न में अपना अधिकार ले लेते हैं। अच्छा है, बापदादा सदा कहते हैं कि फारेनर्स इस जन्म के फारेनर्स हैं लेकिन अनेक जन्म के ब्राह्मण परिवार के हैं। अगर आप लोग विदेशी नहीं बनते तो विदेश के भिन्न-भिन्न देशों की सेवा कैसे होती! अगर आप विदेशी के रूप में नहीं आते तो बापदादा को सब देशों की भाषा के यहाँ क्लास रखने पड़ते, तैयार करने पड़ते। तो आप लोग जो भिन्न-भिन्न देश में गये हो, वह सेवा के प्रति गये हो। समझा। ओरिजिनल आप ब्राह्मण आत्मायें हो, विदेशी आत्मायें नहीं हो। भिन्न-भिन्न विश्व की सेवा के लिए गये हो, देखो भारत में भी हर भाषा के बच्चे आये हैं और सेवा कर रहे हैं, नहीं तो पहले एक ही सिन्ध का ग्रुप था। फिर धीरे-धीरे भिन्न-भिन्न ग्रुप चाहे भारत के, चाहे विदेश के आते रहे और बढ़ते रहे, यह भी ड्रामा में बना हुआ खेल है। वैसे भी पहले जड़ में थोड़े होते हैं फिर धीरे-धीरे तना और शाखायें निकलती हैं। वह फाउण्डेशन बना - निमित्त सिन्ध देश का, फिर धीरे-धीरे वृक्ष बढ़ता गया। भाषायें और देश की शाखायें, आप शाखाओं में नहीं हो, आप तो बापदादा के साथ हो।

(दिल्ली ग्रुप सेवा में आया है) - दिल्ली वाले हाथ उठाओ। सेवा की सेवा और वैरायटी मेवा भी खाया ना! सेवा का मेवा अवश्य मिलता है। जो भी सेवा में आते हैं उनको सबसे अच्छा चांस क्या मिलता है, मालूम है? इतने बड़े परिवार की सेवा करते हैं तो सबसे पहले बापदादा की दुआयें हैं ही लेकिन इतने सारे परिवार के आत्माओं की दुआयें मिलती हैं और यह दुआयें बहुत काम में आती हैं। इस समय तो साधारण लगता है लेकिन दुआओं का खज़ाना समय पर बहुत बल देता है। अच्छा - आप लोगों ने नये वर्ष में बहुत कार्ड भेजे हैं ना। बापदादा ने देख लिया, कार्ड हैं, पत्र भी हैं। तो आप लोग सभी नये वर्ष में सिर्फ कार्ड देकर हैपी न्यु इयर नहीं करना लेकिन कार्ड के साथ हर एक आत्मा को दिल से रिगार्ड देना। रिगार्ड का कार्ड देना और एक-दो को सौगात में छोटी-मोटी कोई भी चीजें तो देते ही हो, वह भी भले दो लेकिन उसके साथ-साथ दुआयें देना और दुआयें लेना। कोई नहीं भी दे तो आप लेना। अपने वायब्रेशन से उसकी बद-दुआ को भी दुआ में बदल लेना। तो रिगार्ड देना और दुआयें देना और लेना - यह है नये वर्ष की गिफ्ट। शुभ भावना द्वारा आप दुआ ले लेना। अच्छा।

देश-विदेश के बच्चे साकार में भी बैठे हैं लेकिन आकारी रूप में भी मधुबन में हाज़र हैं। तो ऐसे चारों ओर के हाज़र होने वाले बच्चों को हजूर भी जी हाज़र की यादप्यार दे रहे हैं। अच्छी हिम्मत से, मेहनत से कोई जागते भी हैं, कोई किस समय बैठते, कोई किस समय बैठते, इसलिए एक-एक बच्चे को नाम सहित पद्मगुणा मुबारक भी है और विदाई और बधाई के संगम की मुबारक भी है, ग्रीटिंग्स हैं। जिन्होंने भी कार्ड भेजे हैं, यादप्यार भेजे हैं, उन सभी देश विदेश के बच्चों को बापदादा दिलाराम दिल से रिटर्न यादप्यार दे रहे हैं। सदा आगे उड़ते रहो।

जो देश-विदेश में इण्टरनेट पर मुरली भेजते हैं, बापदादा ने उन्हें सामने बुलाया

आप लोगों को सब तरफ से जिन्हों को भी पहुँच रहा है, उन सब आत्माओं की तरफ से और बापदादा की तरफ से बहुत-बहुत मुबारक हो, मुबारक हो। यह तो बहुत अच्छा कर रहे हो, बाकी एक बात करनी है। करने के लिए तैयार हो? यह जो किया है उसकी मुबारक दी, अभी ऐसी अच्छी-अच्छी आत्मायें तैयार करो जो कम खर्चा बालानशीन हो। बापदादा के पास रिज़ल्ट आई, बहुत खर्चा है। तो जैसे आपने यह पुरूषार्थ किया तो सफलता मिली है ना तो अभी लक्ष्य रखो बापदादा फ्री नहीं कहता है, कम खर्चा बालानशीन। ऐसे कोई तैयार करो जो सहयोगी बनें। बन सकते हैं? अच्छा - अभी देखेंगे। काम तो बहुत अच्छा दुआओं का है। बहुत सभी दुआयें देते हैं, अभी सिर्फ एडीशन करो - `कम खर्चा'। थोड़ा-थोड़ा कम कराते जाओ। इन्वेन्शन करते जाओ, बापदादा के पास यह रिपोर्ट आवे कि कम खर्चा बालानशीन है। भारत में करो, विदेश में करो, कहाँ से भी करो लेकिन यह लक्ष्य रखो, लक्ष्य से सब हो जाता है और होना ही है। यह साइंस बनी ही आप लोगों के लिए है। देखो स्थापना के 100 वर्ष पहले से ही यह सब धीरे-धीरे निकला है। तो किसके लिए निकला? सुख तो ब्राह्मणों को ही मिलना है ना! तो बहुत अच्छा, जब टोली बाँटें तो आप लेना, अभी टोली खाना फिर कम खर्च बालानशीन होगा तो लड्डू मिलेंगे। बहुत अच्छा। चारों ओर की महान आत्माओं को, सदा परिवर्तन शक्ति को हर समय कार्य में लगाने वाले, विश्व परिवर्तक आत्माओं को, सदा दृढ़-निश्चय से प्रत्यक्ष स्वरूप दिखाने वाले ब्राह्मण सो फरिश्ते आत्माओं को, सदा एक बाप दूसरा न कोई, बाप समान बनने वालों को, बापदादा के प्यार का रिटर्न देने वाली महावीर आत्माओं को, बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

(पहली जनवरी 2000 प्रात: (रात्रि 12.00 बजे के बाद) बापदादा ने सभी बच्चों को नये वर्ष, नई सदी की मुबारक दी)

सभी ने न्यु ईयर मनाया। चारों ओर के बच्चों को नये वर्ष, नये युग की, नये जीवन की मुबारक हो, मुबारक हो, मुबारक हो! इस नये वर्ष में ब्रह्मा बाप के द्वारा उच्चारे हुए महावाक्य सदा याद रखना - निराकारी, निरंहकारी साथ में नव निर्माणधारी। सदा निर्मान और निर्माण के कर्तव्य का बैलेन्स रखते उड़ते रहना। इस वर्ष में विशेष स्व-परिवर्तन की विशेषता को सामने रखते हुए उड़ते और उड़ाते रहना। सदा ब्रह्मा बाप को हर कदम में फालो फादर करते रहना। तो मुबारक हो, मुबारक हो! पद्मगुणा मुबारक हो!!

दिल्ली में एकडमी बनाने के लिए जमीन ली गई है, बापदादा को समाचार सुनाया

आप सबको मालूम है कि बेहद के सेवा की सौगात दिल्ली को मिली है। इसमें सदा बेहद के प्लैन बनते चारों ओर सन्देश मिलते जायेंगे और सर्व का सहयोग है क्योंकि सर्व की राजधानी बनने वाली है। तो बीज डालने से फल मिलता है। अभी बीज डालेंगे तो वहाँ भविष्य में रिटर्न पदमगुणा होकर मिलना ही है। तो प्लैन भी ऐसे बनाओ, सिस्टम भी ऐसे बनाओ जो बेहद की फीलिंग आवे। कोई छोटा सा सेन्टर है यह नहीं। फलाने का है, फलानी का है यह नहीं, सबका है। और बेहद की सिस्टम से बेहद की स्थापना करते चलो, एक एक्जैम्पल बनें। नाम दिल्ली का है लेकिन सब समझें कि हमारा है। जैसे बापदादा को सब समझते हैं हमारे हैं, दादियों को सब समझते हैं हमारी दादियां हैं, ऐसे यह सेवा हमारी सेवा है, इस बेहद रूप से, नवीनता के रूप से स्थान चलाकर दिखाना। दिल्ली वालों को यह बेहद की सौगात मिली है। देश-विदेश के बीज से यह वरदान मिला है। तो हर एक समझे कि बेहद का स्थान है और इससे ही बेहद को सन्देश मिलेगा। अच्छा है नये वर्ष में यह फाइनल करके आप लोगों को सौगात मिल गई। मिली है ना सौगात! (नाम क्या रखें?) पहले सजाओ तो सही। मकान बनाओ फिर नाम पड़ेगा। लेकिन सदा बाबा और बाबा का बेहद का स्थान। सदा मन, वाणी और कर्म- जिससे भी सहयोग दे सको वह देते रहो। एक एक्ज़ाम्पल हो, नवीनता हो। तो आपस में राय करके ऐसा प्लैन बनाओ। अच्छा - सभी को गुडनाइट भी हो गई, गुडमार्निग भी हो गई।

श्रीलंका गवर्मेन्ट ने 10 एकड़ जमीन सेवा के लिए दी है। ग्लोबल हाउस के पास भी जमीन मिल गई है

आप लोग सुन रहे हैं, तो यह नहीं समझो दिल्ली को मिली, लण्डन को मिली, श्रीलंका को मिली, नहीं। आप सबको मिली। आप सबका है। राजस्थान को भी मिलनी है। तो सभी को कितने स्थान मिल रहे हैं। आपके हैं ना। तो नये वर्ष की बहुत-बहुत सौगातें सेवा प्रति मिली हैं। अभी सभी खूब तालियां बजाओ। अभी ऐसी कोशिश करो जो दिल्ली को और जमीन फ्री मिले, फिर ज्यादा तालियां बजाना। (सभी ने खूब ज़ोर की तालियां बजाई) ऐसी तालियां बजाते हो इससे सिद्ध है मिलेगी। अच्छा - तालियां तो बहुत जल्दी बजा दी, अभी एक सेकण्ड में फरिश्ता बन सकते हो? तो अभी फरिश्ता बन जाओ। अच्छा।


18-01-2000   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


बह्मा बाप समान त्याग, तपस्या और सेवा का वायब्रेशन विश्व में फैलाओ

आज समर्थ बापदादा अपने समर्थ बच्चों को देख रहे हैं। आज का दिन स्मृति दिवस सो समर्थ दिवस है। आज का दिन बच्चों को सर्व शक्तियां विल में देने का दिवस है। दुनिया में अनेक प्रकार की विल होती है लेकिन ब्रह्मा बाप ने बाप से प्राप्त हुई सर्व शक्तियों की विल बच्चों को की। ऐसी अलौकिक विल और कोई भी कर नहीं सकते हैं। बाप ने ब्रह्मा बाप को साकार में निमित्त बनाया और ब्रह्मा बाप ने बच्चों को `निमित्त भव' का वरदान दे विल किया। यह विल बच्चों में सहज पावर्स की (शक्तियों की) अनुभूति कराती रहती है। एक है अपने पुरूषार्थ की पावर्स और यह है परमात्म-विल द्वारा पावर्स की प्राप्ति। यह प्रभु देन है, प्रभु वरदान है। यह प्रभु वरदान चला रहा है। वरदान में पुरूषार्थ की मेहनत नहीं लेकिन सहज और स्वत: निमित्त बनाकर चलाते रहते हैं। सामने थोड़े से रहे लेकिन बापदादा द्वारा, विशेष ब्रह्मा बाप द्वारा विशेष बच्चों को यह विल प्राप्त हुई है और बापदादा ने भी देखा कि जिन बच्चों को बाप ने विल की उन सभी बच्चों ने (आदि रत्नों ने और सेवा के निमित्त बच्चों ने) उस प्राप्त विल को अच्छी तरह से कार्य में लगाया। और उस विल के कारण आज यह ब्राह्मण परिवार दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जाता है। बच्चों की विशेषता के कारण यह वृद्धि होनी थी और हो रही है।

बापदादा ने देखा कि निमित्त बने हुए और साथ देने वाले दोनों प्रकार के बच्चों की दो विशेषतायें बहुत अच्छी रही। पहली विशेषता - चाहे स्थापना के आदि रत्न, चाहे सेवा के रत्न दोनों में संगठन की युनिटी बहुत-बहुत अच्छी रही। किसी में भी क्यों, क्या, कैसे... यह संकल्प मात्र भी नहीं रहा। दूसरी विशेषता - एक ने कहा दूसरे ने माना। यह एकस्ट्रा पावर्स के विल के वायुमण्डल में विशेषता रही। इसलिए सर्व निमित्त बनी हुई आत्माओं को बाबा-बाबा ही दिखाई देता रहा।

बापदादा ऐसे समय पर निमित्त बने हुए बच्चों को दिल से प्यार दे रहे हैं। बाप की कमाल तो है ही लेकिन बच्चों की कमाल भी कम नहीं है। और उस समय का संगठन, युनिटी - हम सब एक हैं, वही आज भी सेवा को बढ़ा रही है। क्यों? निमित्त बनी हुई आत्माओं का फाउण्डेशन पक्का रहा। तो बापदादा भी आज के दिन बच्चों की कमाल को गा रहे थे। बच्चों ने चारों ओर से प्यार की मालायें पहनाई और बाप ने बच्चों की कमाल के गुणगान किये। इतना समय चलना है, यह सोचा था? कितना समय हो गया? सभी के मुख से, दिल से यही निकलता, अब चलना है, अब चलना है.... लेकिन बापदादा जानते थे कि अभी अव्यक्त रूप की सेवा होनी है। साकार में इतना बड़ा हाल बनाया था? बाबा के अति लाड़ले डबल विदेशी आये थे? तो विशेष डबल विदेशियों का अव्यक्त पालना द्वारा अलौकिक जन्म होना ही था, इतने सब बच्चों को आना ही था। इसलिए ब्रह्मा बाप को अपना साकार शरीर भी छोड़ना पड़ा। डबल विदेशियों को नशा है कि हम अव्यक्त पालना के पात्र हैं?

ब्रह्मा बाप का त्याग ड्रामा में विशेष नूंधा हुआ है। आदि से ब्रह्मा बाप का त्याग और आप बच्चों का भाग्य नूंधा हुआ है। सबसे नम्बरवन त्याग का एक्ज़ाम्पल ब्रह्मा बाप बना। त्याग उसको कहा जाता है - जो सब कुछ प्राप्त होते हुए त्याग करे। समय अनुसार, समस्याओं के अनुसार त्याग - श्रेष्ठ त्याग नहीं है। शुरू से ही देखो तन, मन, धन, सम्बन्ध, सर्व प्राप्ति होते हुए त्याग किया। शरीर का भी त्याग किया, सब साधन होते हुए स्वयं पुराने में ही रहे। साधनों का आरम्भ हो गया था। होते हुए भी साधना में अटल रहे। यह ब्रह्मा की तपस्या आप सब बच्चों का भाग्य बनाकर गई। ड्रामानुसार ऐसे त्याग का एक्ज़ाम्पल रूप में ब्रह्मा ही बना और इसी त्याग ने संकल्प शक्ति की सेवा का विशेष पार्ट बनाया। जो नये-नये बच्चे संकल्प शक्ति से फास्ट वृद्धि को प्राप्त कर रहे हैं। तो सुना ब्रह्मा के त्याग की कहानी।

ब्रह्मा की तपस्या का फल आप बच्चों को मिल रहा है। तपस्या का प्रभाव इस मधुबन भूमि में समाया हुआ है। साथ में बच्चे भी हैं, बच्चों की भी तपस्या है लेकिन निमित्त तो ब्रह्मा बाप कहेंगे। जो भी मधुबन तपस्वी भूमि में आते हैं तो ब्राह्मण बच्चे भी अनुभव करते हैं कि यहाँ का वायुमण्डल, यहाँ के वायब्रेशन सहजयोगी बना देते हैं। योग लगाने की मेहनत नहीं, सहज लग जाता है और कैसी भी आत्मायें आती हैं, वह कुछ न कुछ अनुभव करके ही जाती हैं। ज्ञान को नहीं भी समझते लेकिन अलौकिक प्यार और शान्ति का अनुभव करके ही जाते हैं। कुछ न कुछ परिवर्तन करने का संकल्प करके ही जाते हैं। यह है ब्रह्मा और ब्राह्मण बच्चों की तपस्या का प्रभाव। साथ में सेवा की विधि - भिन्न-भिन्न प्रकार की सेवा बच्चों से प्रैक्टिकल में कराके दिखाई। उसी विधियों को अभी विस्तार में ला रहे हो। तो जैसे ब्रह्मा बाप के त्याग, तपस्या, सेवा का फल आप सब बच्चों को मिल रहा है। ऐसे हर एक बच्चा अपने त्याग, तपस्या और सेवा का वायब्रेशन विश्व में फैलाये। जैसे साइन्स का बल अपना प्रभाव प्रत्यक्ष रूप में दिखा रहा है ऐसे साइन्स की भी रचता साइलेन्स बल है। साइलेन्स बल को अभी प्रत्यक्ष दिखाने का समय है। साइलेन्स बल का वायब्रेशन तीव्रगति से फैलाने का साधन है - मन-बुद्धि की एकाग्रता। यह एकाग्रता का अभ्यास बढ़ना चाहिए। एकाग्रता की शक्तियों द्वारा ही वायुमण्डल बना सकते हो। हलचल के कारण पावरफुल वायब्रेशन बन नहीं पाता।

बापदादा आज देख रहे थे कि एकाग्रता की शक्ति अभी ज्यादा चाहिए। सभी बच्चों का एक ही दृढ़ संकल्प हो कि अभी अपने भाई-बहनों के दु:ख की घटनायें परिवर्तन हो जाएँ। दिल से रहम इमर्ज हो। क्या जब साइन्स की शक्ति हलचल मचा सकती है तो इतने सभी ब्राह्मणों के साइलेन्स की शक्ति, रहमदिल भावना द्वारा वा संकल्प द्वारा हलचल को परिवर्तन नहीं कर सकती! जब करना ही है, होना ही है तो इस बात पर विशेष अटेन्शन दो। जब आप ग्रेट-ग्रेट ग्रैण्ड फादर के बच्चे हैं, आपके ही सभी बिरादरी हैं, शाखायें हैं, परिवार है, आप ही भक्तों के इष्ट देव हो। यह नशा है कि हम ही इष्ट देव हैं? तो भक्त चिल्ला रहे हैं, आप सुन रहे हो! वह पुकार रहे हैं - हे इष्ट देव, आप सिर्फ सुन रहे हो, उन्हों को रेसपाण्ड नहीं करते हो? तो बापदादा कहते हैं हे भक्तों के इष्ट देव अभी पुकार सुनो, रेसपाण्ड दो, सिर्फ सुनो नहीं। क्या रेसपाण्ड देंगे? परिवर्तन का वायुमण्डल बनाओ। आपका रेसपाण्ड उन्हों को नहीं मिलता तो वह भी अलबेले हो जाते हैं। चिल्लाते हैं फिर चुप हो जाते हैं।

ब्रह्मा बाप के हर कार्य के उत्साह को तो देखा ही है। जैसे शुरू में उमंग था - चाबी चाहिए! अभी भी ब्रह्मा बाप यही शिव बाप से कहते - अभी घर के दरवाजे की चाबी दो। लेकिन साथ जाने वाले भी तो तैयार हों। अकेला क्या करेगा! तो अभी साथ जाना है ना या पीछे-पीछे जाना है? साथ जाना है ना? तो ब्रह्मा बाप कहते हैं कि बच्चों से पूछो अगर बाप चाबी दे दे तो आप एवररेडी हो? एवररेडी हो या रेडी हो, सिर्फ रेडी नहीं - एवररेडी। त्याग, तपस्या, सेवा तीनों ही पेपर तैयार हो गये हैं? ब्रह्मा बाप मुस्कराते हैं कि प्यार के आँसू बहुत बहाते हैं और ब्रह्मा बाप वह आँसू मोती समान दिल में समाते भी हैं लेकिन एक संकल्प ज़रूर चलता कि सब एवररेडी कब बनेंगे! डेट दे देवें। आप कहेंगे कि हम तो एवररेडी हैं, लेकिन आपके जो साथी हैं उन्हें भी तो बनाओ या उनको छोड़कर चल पड़ेंगे? आप कहेंगे ब्रह्मा बाप भी तो चला गया ना! लेकिन उनको तो यह रचना रचनी थी। फास्ट वृद्धि की ज़िम्मेवारी थी। तो सभी एवररेडी हैं, एक नहीं? सभी को साथ ले जाना है ना या अकेले-अकेले जायेंगे? तो सभी एवररेडी हैं या हो जायेंगे? बोलो। कम से कम 9 लाख तो साथ जायें। नहीं तो राज्य किस पर करेंगे? अपने ऊपर राज्य करेंगे? तो ब्रह्मा बाप की यही सभी बच्चों के प्रति शुभ-कामना है कि एवररेडी बनो और एवररेडी बनाओ।

आज वतन में भी सभी विशेष आदि रत्न और सेवा के आदि रत्न इमर्ज हुए। एडवांस पार्टी कहती है हम तो तैयार हैं। किस बात के लिए तैयार हैं? वह कहते हैं यह प्रत्यक्षता का नगाड़ा बजायें तो हम सभी प्रत्यक्ष होकर नई सृष्टि की रचना के निमित्त बनेंगे। हम तो आह्वान कर रहे हैं कि नई सृष्टि की रचना करने वाले आवें। अभी काम सारा आपके ऊपर है। नगाड़ा बजाओ। आ गया...  आ गया... का नगाड़ा बजाओ। नगाड़ा बजाने आता है? बजाना तो है ना! अभी ब्रह्मा बाप कहते हैं डेट ले आओ। आप लोग भी कहते हो ना कि डेट के बिना काम नहीं होता है। तो इसकी भी डेट बनाओ। डेट बना सकते हो? बाप तो कहते हैं आप बनाओ। बाप कहते हैं आज ही बनाओ। कान्फ्रेन्स की डेट फिक्स किया है और यह, इसकी भी कान्फ्रेन्स करो ना! विदेशी क्या समझते हैं, डेट फिक्स हो सकती है? डेट फिक्स करेंगे? हाँ या ना! अच्छा - दादी जानकी के साथ राय करके करना। अच्छा।

देश विदेश के चारों ओर के, बापदादा के अति समीप, अति प्यारे और न्यारे, बापदादा देख रहे हैं कि सभी बच्चे लगन में मगन हो लवलीन स्वरूप में बैठे हुए हैं। सुन रहे हैं और मिलन के झूले में झूल रहे हैं। दूर नहीं हैं लेकिन नयनों के सामने भी नहीं, समाये हुए हैं।

तो ऐसे सम्मुख मिलन मनाने वाले और अव्यक्त रूप में लवलीन बच्चे, सदा बाप समान त्याग, तपस्या और सेवा का सबूत दिखाने वाले सपूत बच्चे, सदा एकाग्रता की शक्ति द्वारा विश्व का परिवर्तन करने वाले विश्व परिवर्तक बच्चे, सदा बाप समान तीव्र पुरूषार्थ द्वारा उड़ने वाले डबल लाइट बच्चों को बापदादा का बहुत-बहुत-बहुत यादप्यार और नमस्ते।

राजस्थान के सेवाधारी - बहुत अच्छा सेवा का चांस राजस्थान को मिला। राजस्थान का जैसे नाम है `राजस्थान', तो राजस्थान से राजे क्वालिटी वाले निकालो। प्रजा नहीं, राज-घराने के राजे निकालो। तब जैसा नाम है राजस्थान, वैसे ही जैसा नाम वैसे सेवा की क्वालिटी निकलेगी। हैं कोई छिपे हुए राजे लोग या अभी बादलों में हैं? वैसे जो बिज़नेसमैन हैं उन्हों की सेवा पर विशेष अटेन्शन दो। यह मिनिस्टर और सेक्रेटरी तो बदलते ही रहते हैं लेकिन बिज़नेसमैन बाप से भी बिज़नेस करने में आगे बढ़ सकते हैं। और बिज़नेसमैन की सेवा करने से उनकी परिवार की मातायें भी सहज आ सकती हैं। अकेली मातायें नहीं चल सकती हैं लेकिन अगर घर का स्तम्भ आ जाता है तो परिवार आपेही धीरे-धीरे बढ़ता जाता है इसलिए राजस्थान को राजे क्वालिटी निकालनी है। ऐसे कोई नहीं हैं, ऐसा नहीं कहो। थोड़ा ढूंढना पड़ेगा लेकिन हैं। थोड़ा सा उन्हों के पीछे समय देना पड़ता है। बिज़ी रहते हैं ना! कोई ऐसी विधि बनानी पड़ती जो वह नज़दीक आवें। बाकी अच्छा है, सेवा का चांस लिया, हर एक ज़ोन लेता है यह बहुत अच्छा नजदीक आने और दुआयें लेने का साधन है। चाहे आप लोगों को सब देखें या नहीं देखें, जानें या नहीं जाने, लेकिन जितनी अच्छी सेवा होती है तो दुआयें स्वत: निकलती हैं और वह दुआयें पहुँचती बहुत जल्दी हैं। दिल की दुआयें हैं ना! तो दिल में जल्दी पहुँचती हैं। बापदादा तो कहते हैं सबसे सहज पुरूषार्थ है दुआयें दो और दुआयें लो। दुआओं से जब खाता भर जायेगा तो भरपूर खाते में माया भी डिस्टर्ब नहीं करेगी। जमा का बल मिलता है। राजी रहो और सर्व को राजी करो। हर एक के स्वभाव का राज़ जानकर राजी करो। ऐसे नहीं कहो यह तो है ही नाराज़। आप स्वयं राज़ को जान जाओ, उसकी नब्ज को जान जाओ फिर दुआ की दवा दो। तो सहज हो जायेगा। ठीक है ना राजस्थान! राजस्थान की टीचर्स उठो। सेवा की मुबारक हो। तो सहज पुरूषार्थ करो, दुआयें देते जाओ। लेने का संकल्प नहीं करो, देते जाओ तो मिलता जायेगा। देना ही लेना है। ठीक है ना! ऐसा है ना! दाता के बच्चे हैं ना! कोई दे तो दें। नहीं, दाता बनके देते जाओ तो आपेही मिलेगा। अच्छा।

जो इस कल्प में पहली बार आये हैं वो हाथ उठाओ। आधे पहले वाले आते हैं, आधे नये आते हैं। अच्छा – पीछे वाले, किनारे में बैठे हुए सभी सहजयोगी हो? सहज योगी हो तो एक हाथ उठाओ। अच्छा।

विदाई के समय - (बापदादा को रथ यात्राओं का समाचार सुनाया) चारों तरफ का यात्राओं का समाचार समय प्रति समय बापदादा के पास आता रहता है। अच्छा सब उमंग-उत्साह से सेवा का पार्ट बजा रहे हैं। भक्तों को दुआयें मिल रही हैं और जिन भक्तों की भक्ति पूरी हुई, उन्हों को बाप का परिचय मिल जायेगा और परिचय वालों से जो बच्चे बनने होंगे वह भी दिखाई देते रहेंगे। बाकी सेवा अच्छी चल रही है और जो भी साधन बनाया है वह साधन अच्छा सबको आकर्षित कर रहा है। अभी रिज़ल्ट में कौन-कौन किस केटगिरी में निकलता है वह मालूम पड़ जायेगा लेकिन भक्तों को भी आप सबकी नजर-दृष्टि मिली, परिचय मिला - यह भी अच्छा साधन है। अब आगे बढ़कर इन्हों की सेवा कर आगे बढ़ाते रहना। जो भी रथ यात्रा में सेवा कर रहे हैं, अथक बन सेवा कर रहे हैं, उन सभी को यादप्यार। बापदादा सभी को देखते रहते हैं और सफलता तो जन्म-सिद्ध अधिकार है। अच्छा।

मॉरीशियस में अपने ईश्वरीय विश्व-विद्यालय को नेशनल युनिटी एवार्ड प्राइममिनिस्टर द्वारा मिला है

मॉरीशियस में वैसे भी वी.आई.पी. का कनेक्शन अच्छा रहा है और प्रभाव भी अच्छा है इसलिए गुप्त सेवा का फल मिला है तो सभी को खास मुबारक।

अच्छा। ओमशान्ति।



15-02-2000   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


मन को स्वच्छ, बुद्धि को क्लियर रख डबल लाइट फरिश्ते स्थिति का अनुभव करो

आज बापदादा अपने स्वराज्य अधिकारी बच्चों को देख रहे हैं। स्वराज्य ब्राह्मण जीवन का जन्म सिद्ध अधिकार है। बापदादा ने हर एक ब्राह्मण को स्वराज्य के तख्तनशीन बना दिया है। स्वराज्य का अधिकार जन्मते ही हर एक ब्राह्मण आत्मा को प्राप्त है। जितना स्वराज्य स्थित बनते हो उतना ही अपने में लाइट और माइट का अनुभव करते हो।

बापदादा आज हर एक बच्चे के मस्तक पर लाइट का ताज देख रहे हैं। जितनी अपने में माइट धारण की है उतना ही नम्बरवार लाइट का ताज चमकता है। बापदादा ने सभी बच्चों को सर्व शक्तियाँ अधिकार में दी है। हर एक मास्टर सर्वशक्तिवान है, परन्तु धारण करने में नम्बरवार बन गये हैं। बापदादा ने देखा कि सर्वशक्तियों की नॉलेज भी सबमें है, धारणा भी है लेकिन एक बात का अन्तर पड़ जाता है। कोई भी ब्राह्मण आत्मा से पूछो - हर एक शक्ति का वर्णन भी बहुत अच्छा करेंगे, प्राप्ति का वर्णन भी बहुत अच्छा करेंगे। परन्तु अन्तर यह है कि समय पर जिस शक्ति की आवश्यकता है, उस समय पर वह शक्ति कार्य में नहीं लगा सकते। समय के बाद महसूस करते हैं कि इस शक्ति की आवश्यकता थी। बापदादा बच्चों को कहते हैं - सर्व शक्तियों का वर्सा इतना शक्तिशाली है जो कोई भी समस्या आपके आगे ठहर नहीं सकती है। समस्या-मुक्त बन सकते हो। सिर्फ सर्व शक्तियों को इमर्ज रूप में स्मृति में रखो और समय पर कार्य में लगाओ। इसके लिए अपने बुद्धि की लाइन क्लीयर रखो। जितनी बुद्धि की लाइन क्लीयर और क्लीन होगी उतना निर्णय शक्ति तीव्र होने के कारण जिस समय जो शक्ति की आवश्यकता है वह कार्य में लगा सकेंगे क्योंकि समय के प्रमाण बापदादा हर एक बच्चे को विघ्न-मुक्त, समस्या-मुक्त, मेहनत के पुरूषार्थ-मुक्त देखने चाहते हैं। बनना तो सबको है ही लेकिन बहुतकाल का यह अभ्यास आवश्यक है। ब्रह्मा बाबा का विशेष संस्कार देखा - ``तुरत दान महापुण्य''। जीवन के आरम्भ से हर कार्य में तुरत दान भी, तुरत काम भी किया। ब्रह्मा बाप की विशेषता - निर्णय-शक्ति सदा फास्ट रही। तो बापदादा ने रिज़ल्ट देखी। सबको साथ तो ले ही जाना है। बापदादा के साथ चलने वाले हो ना! या पीछे-पीछे आने वाले हो? जब साथ चलना ही है तो फालो ब्रह्मा बाप। कर्म में फालो ब्रह्मा बाप और स्थिति में निराकारी शिव बाप को फालो करना है। फालो करना आता है ना?

डबल विदेशियों को फालो करना आता है? फालो करना तो सहज है ना! जब फालो ही करना है तो क्यों, क्या, कैसे... यह समाप्त हो जाता है। और सबको अनुभव है कि व्यर्थ संकल्प के निमित्त यह क्यों, क्या, कैसे... ही आधार बनते हैं। फालो फादर में यह शब्द समाप्त हो जाता है। कैसे नहीं- ऐसे! बुद्धि फौरन जज करती है ऐसे चलो, ऐसे करो। तो बापदादा आज विशेष सभी बच्चों को चाहे पहले बारी आये हैं, चाहे पुराने हैं, यही इशारा देते हैं कि अपने मन को स्वच्छ रखो। बहुतों के मन में अभी भी व्यर्थ और निगेटिव के दाग छोटे-बड़े हैं। इसके कारण पुरूषार्थ की श्रेष्ठ स्पीड, तीव्रगति में रूकावट आती है। बापदादा सदा श्रीमत देते हैं कि मन में सदा हर आत्मा के प्रति शुभ-भावना और शुभ-कामना रखो - यह है स्वच्छ मन। अपकारी पर भी उपकार की वृत्ति रखना- यह है स्वच्छ मन। स्वयं के प्रति वा अन्य के प्रति व्यर्थ संकल्प आना - यह स्वच्छ मन नहीं है। तो स्वच्छ मन और क्लीन और क्लीयर बुद्धि। जज करो, अपने आपको अटेन्शन से देखो, ऊपर-ऊपर से नहीं, ठीक है, ठीक है। नहीं, सोच के देखो - मन और बुद्धि स्पष्ट है, श्रेष्ठ है? तब डबल लाइट स्थिति बन सकती है। बाप समान स्थिति बनाने का यही सहज साधन है। और यह अभ्यास अन्त में नहीं, बहुतकाल का आवश्यक है। तो चेक करना आता है? अपने को चेक करना, दूसरे को नहीं करना। बापदादा ने पहले भी हँसी की बात बताई थी कि कई बच्चों की दूर की नज़र बहुत तेज़ है और नज़दीक की नज़र कमज़ोर है! इसलिए दूसरे को जज करने में बहुत होशियार हैं। अपने को चेक करने में कमज़ोर नहीं बनना।

बापदादा ने पहले भी कहा है कि जैसे अभी यह पक्का हो गया है कि मैं ब्रह्माकुमारी/ब्रह्माकुमार हूँ। चलते-फिरते-सोचते - हम ब्रह्माकुमारी हैं, हम ब्रह्माकुमार ब्राह्मण आत्मा हैं। ऐसे अभी यह नेचुरल स्मृति और नेचर बनाओ कि ``मैं फरिश्ता हूँ।'' अमृतवेले उठते ही यह पक्का करो कि मैं फरिश्ता परमात्म-श्रीमत पर नीचे इस साकार तन में आया हूँ, सभी को सन्देश देने के लिए वा श्रेष्ठ कर्म करने के लिए। कार्य पूरा हुआ और अपने शान्ति की स्थिति में स्थित हो जाओ। ऊँची स्थिति में चले जाओ। एक-दो को भी फरिश्ते स्वरूप में देखो। आपकी वृत्ति दूसरे को भी धीरे-धीरे फरिश्ता बना देगी। आपकी दृष्टि दूसरे पर भी प्रभाव डालेगी। यह पक्का है कि हम फरिश्ते हैं? `फरिश्ता भव' का वरदान सभी को मिला हुआ है? एक सेकण्ड में फरिश्ता अर्थात् डबल लाइट बन सकते हो? एक सेकण्ड में, मिनट में नहीं, 10 सेकण्ड में नहीं, एक सेकण्ड में सोचा और बना, ऐसा अभ्यास है? अच्छा जो एक सेकण्ड में बन सकते हैं, दो सेकण्ड नहीं, एक सेकण्ड में बन सकते हैं, वह एक हाथ की ताली बजाओ। बन सकते हैं? ऐसे ही नहीं हाथ उठाना। डबल फारेनर नहीं उठा रहे हैं! टाइम लगता है क्या? अच्छा जो समझते हैं कि थोड़ा टाइम लगता है, एक सेकण्ड में नहीं, थोड़ा टाइम लगता है, वह हाथ उठाओ। (बहुतों ने हाथ उठाया) अच्छा है, लेकिन लास्ट घड़ी का पेपर एक सेकण्ड में आना है, फिर क्या करेंगे? अचानक आना है और सेकण्ड का आना है। हाथ उठाया, कोई हर्जा नहीं। महसूस किया, यह भी बहुत अच्छा। परन्तु यह अभ्यास करना ही है। करना ही पड़ेगा नहीं, करना ही है। यह अभ्यास बहुत-बहुत-बहुत आवश्यक है। चलो फिर भी बापदादा कुछ टाइम देते हैं। कितना टाइम चाहिए? दो हज़ार तक चाहिए। 21वीं सदी तो आप लोगों ने चैलेन्ज की है, ढिंढोरा पीटा है, याद है? चैलेन्ज किया है - गोल्डन एजड दुनिया आयेगी या वातावरण बनायेंगे। चैलेन्ज किया है ना! तो इतने तक तो बहुत टाइम है। जितना स्व पर अटेन्शन दे सको, दे सको भी नहीं, देना ही है। जैसे देह-भान में आने में कितना टाइम लगता है! दो सेकण्ड? जब चाहते भी नहीं हो लेकिन देह भान में आ जाते हो, तो कितना टाइम लगता है? एक सेकण्ड या उससे भी कम लगता है? पता ही नहीं पड़ता है कि देह-भान में आ भी गये हैं। ऐसे ही यह अभ्यास करो - कुछ भी हो, क्या भी कर रहे हो लेकिन यह भी पता ही नहीं पड़े कि मैं सोल-कान्सेस, पावरफुल स्थिति में नेचुरल हो गया हूँ। फरिश्ता स्थिति भी नेचुरल होनी चाहिए। जितनी अपनी नेचर फरिश्ते-पन की बनायेंगे तो नेचर स्थिति को नेचुरल कर देगी। तो बापदादा कितने समय के बाद पूछे? कितना समय चाहिए? जयन्ती बोलो - कितना समय चाहिए? फारेन की तरफ से आप बोलो - कितना समय फारेन वालों को चाहिए? जनक बोलो। (दादी जी ने कहा आज की आज होगी, कल नहीं) अगर आज की आज है तो अभी सभी फरिश्ते हो गये? हो जायेंगे नहीं। अगर जायेंगे तो कब तक? बापदादा ने आज ब्रह्मा बाप का कौन-सा संस्कार बताया? - `तुरत दान महापुण्य।'

बापदादा का हर एक बच्चे से प्यार है, तो ऐसे ही समझते हैं कि एक बच्चा भी कम नहीं रहे। नम्बरवार क्यों? सभी नम्बरवन हो जाएं तो कितना अच्छा है। अच्छा - आज बहुत ग्रुप्स आये हुए हैं।

प्रशासक वर्ग (एडमिनिस्ट्रेशन विंग) - आपस में मिलकर क्या प्रोग्राम बनाया? ऐसा तीव्र पुरूषार्थ का प्लैन बनाया कि जल्द-से-जल्द आप श्रेष्ठ आत्माओं के हाथ में यह कार्य आ जाए। विश्व-परिवर्तन करना है तो सारी एडमिनिस्ट्रेशन बदलनी पड़ेगी ना! कैसे यह कार्य सहज बढ़ता जाए, फैलता जाए, ऐसे सोचा? जो भी कम से कम बड़े-बड़े शहरों में निमित्त हैं उन्हों को पर्सनल सन्देश देने का प्लैन बनाया है? कम से कम यह तो समझें कि अब आध्यात्मिकता द्वारा परिवर्तन हो सकता है और होना चाहिए। तो अपने वर्ग को जगाना इसीलिए यह वर्ग बनाये गये हैं। तो बापदादा वर्ग वालों की सेवा देख करके खुश है परन्तु यह रिज़ल्ट देखनी है कि हर वर्ग वालों ने अपने-अपने वर्ग को कहाँ तक मैसेज दिया है! थोड़ा बहुत जगाया है वा साथी बनाया है? सहयोगी, साथी बनाया है? ब्रह्माकुमार नहीं बनाया लेकिन सहयोगी साथी बनाया?

सभी वर्गों को बापदादा कह रहे हैं कि जैसे अभी धर्म-नेतायें आये, नम्बरवन वाले नहीं थे फिर भी एक स्टेज पर सब इकट्ठे हुए और सभी के मुख से यह निकला कि हम सबको मिलकर आध्यात्मिक शक्ति को फैलाना चाहिए। ऐसे हर वर्ग वाले जो भी आये हो, उस हर वर्ग वाले को यह रिज़ल्ट निकालनी है कि हमारे वर्ग वालों में मैसेज कहाँ तक पहुँचा है?

दूसरा - आध्यात्मिकता की आवश्यकता है और हम भी सहयोगी बनें - यह रिज़ल्ट हो। रेग्युलर स्टूडैण्ट नहीं बनते लेकिन सहयोगी बन सकते हैं। तो अभी तक हर वर्ग वालों की जो भी सेवा की है, जैसे अभी धर्म-नेताओं को बुलाया, ऐसे हर देश से हर विंग वालों का करो। पहले इण्डिया में ही करो, पीछे इण्टरनेशनल करना, हर वर्ग के ऐसे भिन्न-भिन्न स्टेज वाले इकट्ठे हो और यह अनुभव करें कि हम लोगों को सहयोगी बनना है। यह हर वर्ग की रिज़ल्ट अब तक कितनी निकली है? और आगे का क्या प्लैन है? क्योंकि एक वर्ग, एक-एक को अगर लक्ष्य रखकर समीप लायेंगे तो फिर सब वर्ग के जो समीप सहयोगी हैं ना, उन्हों का संगठन करके बड़ा संगठन बनायेंगे। और एक दो को देख करके उमंग-उत्साह भी आता है। अभी बंटे हुए हैं, कोई शहर में कितने हैं, कोई शहर में कितने हैं। अच्छे-अच्छे हैं भी परन्तु सबका पहले संगठन इकट्ठे करो और फिर सबका मिलकर संगठन मधुबन में करेंगे। तो ऐसे प्लैन कुछ बनाया? बना होगा जरूर। फारेन वालों को भी सन्देश भेजा था कि बिखरे हुए बहुत हैं। अगर भारत में भी देखो तो अच्छी-अच्छी सहयोगी आत्मायें जगह-जगह पर निकली हैं परन्तु गुप्त रह जाती हैं। उन्हों को मिलाकर कोई विशेष प्रोग्राम रखकर अनुभव की लेन-देन करें उससे अन्तर पड़ जाता है, समीप आ जाते हैं। किस वर्ग के 5 होंगे, किसके 8 होंगे, किसके 25-30 भी होंगे। संगठन में आने से आगे बढ़ जाते हैं। उमंग-उल्लास बढ़ता है। तो अभी तक जो सभी वर्गों की सेवा हुई है, उसकी रिज़ल्ट निकालनी चाहिए। सुना, सभी वर्ग वाले सुन रहे हैं ना! सभी वर्ग वाले जो आज विशेष आये हैं वह हाथ उठाओ। बहुत हैं। तो अभी रिज़ल्ट देना - कितने-कितने, कौन-कौन और कितनी परसेन्ट में समीप सहयोगी हैं? फिर उन्हों के लिए रमणीक प्रोग्राम बनायेंगे। ठीक है ना!

मधुबन वालों को खाली नहीं रहना है। खाली रहने चाहते हैं? बिज़ी रहने चाहते हैं ना! या थक जाते हैं? बीच-बीच में 15 दिन छुट्टी भी होती है और होनी भी चाहिए। परन्तु प्रोग्राम के पीछे प्रोग्राम लिस्ट में होना चाहिए तो उमंग-उत्साह रहता है, नहीं तो जब सेवा नहीं होती है तो दादी एक कम्पलेन करती है। कम्पलेन बतायें? कहती है सभी कहते हैं - अपने-अपने गाँव में जायें। चक्कर लगाने जायें, सेवा के लिए भी चक्कर लगाने जायें। इसीलिए बिजी रखना अच्छा है। बिज़ी होंगे तो खिट-खिट भी नहीं होगी। और देखो मधुबन वालों की एक विशेषता पर बापदादा पद्मगुणा मुबारक देते हैं। 100 गुणा भी नहीं, पद्मगुणा। किस बात पर? जब भी कोई आते हैं तो मधुबन वालों में ऐसी सेवा की लगन लग जाती है जो कुछ भी अन्दर हो, छिप जाता है। अव्यक्ति दिखाई देते हैं। अथक दिखाई देते हैं और रिमार्क लिखकर जाते हैं कि यहाँ तो हर एक फरिश्ता लग रहा है। तो यह विशेषता बहुत अच्छी है जो उस समय विशेष विल पावर आ जाती है। सेवा की चमक आ जाती है। तो यह सर्टिफकेट तो बापदादा देता है। मुबारक है ना! तो ताली तो बजाओ मधुबन वाले। बहुत अच्छा। बापदादा भी उस समय चक्कर लगाने आता है, आप लोगों को पता नहीं पड़ता है लेकिन बापदादा चक्कर लगाने आता है। तो यह विशेषता मधुबन की और आगे बढ़ती जायेगी। अच्छा।

मीडिया विंग - फारेन में भी मीडिया का शुरू हुआ है ना! बापदादा ने देखा है कि मीडिया में अभी मेहनत अच्छी की है। अभी अखबारों में निकलने शुरू हुआ है और प्यार से भी देते हैं। तो मेहनत का फल भी मिल रहा है। अभी और भी विशेष अखबारों में, जैसे टी.वी. में किसी ने भी परमानेंट थोड़ा समय भी दे दिया है ना! रोज़ चलता है ना। तो यह प्रोग्रेस अच्छी है। सभी को सुनने में अच्छा अनुभव होता है। ऐसे अखबार में विशेष चाहे सप्ताह में, चाहे रोज़, चाहे हर दूसरे दिन एक पीस (एक टुकड़ा) मुकरर हो जाए कि यह आध्यात्म-शक्ति बढ़ाने का मौका है। ऐसा पुरूषार्थ करो। वैसे सफलता है, कनेक्शन भी अच्छा बढ़ता जाता है। अभी कुछ कमाल करके दिखाओ अखबार की। कर सकते हैं? ग्रुप कर सकता है? हाथ उठाओ - हाँ करेंगे। उमंग-उल्लास है तो सफलता है ही। क्यों नहीं हो सकता है! आखिर तो समय आयेगा जो सब साधन आपकी तरफ से यूज़ होंगे। आफर करेंगे आपको। आफर करेंगे कुछ दो, कुछ दो। मदद लो। अभी आप लोगों को कहना पड़ता है - सहयोगी बनो, फिर वह कहेंगे - हमारे को सहयोगी बनाओ। सिर्फ यह बात पक्की रखना - फरिश्ता, फरिश्ता, फरिश्ता! फिर देखो आपका काम कितना जल्दी होता है। पीछे पड़ना नहीं पड़ेगा लेकिन परछाई के समान वह आपेही पीछे आयेंगे। बस सिर्फ आपकी अवस्थाओं के रूकने से रूका हुआ है। एवररेडी बन जाओ तो सिर्फ स्विच दबाने की देरी है, बस। अच्छा कर रहे हैं और करेंगे।

स्पार्क ग्रुप - यह बहुत बड़ा ग्रुप है। स्पार्क वाले रिसर्च करते हैं ना! स्पार्क वालों को विशेष यह अटेन्शन में रहे कि जैसे साइन्स प्रत्यक्ष अनुभव कराती है, मानो गर्मा है तो साइन्स के साधन ठण्डी का प्रत्यक्ष अनुभव कराते हैं। ऐसे रीसर्च वालों को विशेष ऐसा प्लैन बनाना चाहिए कि हर एक जो बाप की या आत्मा की विशेषतायें हैं, ज्ञान-स्वरूप, शान्त-स्वरूप, आनन्द-स्वरूप, शक्ति-स्वरूप.... इस एक-एक विशेषता का प्रैक्टिकल में अनुभव क्या होता है। वह ऐसा सहज साधन निकालो जो कोई भी अनुभव करने चाहे तो चाहे थोड़े समय के लिए भी अनुभव कर सके कि शान्ति इसको कहते हैं, शक्ति की अनुभूति इसको कहते हैं। एक सेकण्ड, दो सेकण्ड भी अनुभव कराने की विधि निकालो। तो एक सेकण्ड भी अगर   81 किसको अनुभव हो गया तो वह अनुभव आकर्षित करता है। ऐसी कोई इन्वेन्शन निकालो। आपके सामने आवे और जिस विशेषता का अनुभव करने चाहे वह कर सके। क्या-क्या भिन्न-भिन्न स्थिति होती है, जैसे साधना करने वाले जो साधु हैं वह प्रैक्टिकल में उन्हों को अनुभव कराते हैं, चक्र नाभी से शुरू हुआ फिर ऊपर गया, फिर ऊपर जाके क्या अनुभूति होती है। ऐसे आप अपने विधिपूर्वक, मन और बुद्धि द्वारा उनको अनुभव कराओ। लाइट बैठकर नहीं दिखाना है लेकिन लाइट का अनुभव करें।

रिसर्च का अर्थ ही है - `प्रत्यक्ष विधि द्वारा अनुभव करना-कराना।' तो ऐसा प्लैन बनाके प्रैक्टिकल में इसकी विधि निकालो। जैसे योग शिविर की विधि निकाली ना तो टैम्प्रेरी टाइम में योग शिविर में जो भी आते हैं वह उस समय तो अनुभव करते हैं ना! और उन्हों को वह अनुभव याद भी रहता है। ऐसे कोई-न-कोई गुण, कोई-न-कोई शक्ति, कोई-न-कोई अनादि संस्कार, उन्हों की अनुभूति कराओ। तो ऐसी रिसर्च वालों को पहले स्वयं अनुभूति करनी पड़ेगी फिर विधि बनाओ और दूसरों को अनुभूति कराओ। आजकल लोगों को भक्ति में जैसे चमत्कार चाहिए ना, मेहनत नहीं - `चमत्कार।' ऐसे आध्यात्मिक रूप में अनुभव चाहिए। अनुभवी कभी बदल नहीं सकता। जल्दी-जल्दी अनुभव के आधार से बढ़ते जायेंगे। सुना। अभी नई-नई विधि निकालो। आप कहते जाओ वह अनुभव करते जायें, इसके लिए बहुत पावरफुल अभ्यास करना पड़ेगा।

समाज सेवा प्रभाग (सोशल विंग) - इन्हों का भी कार्य है बिगड़ी को प्रैक्टिकल बनाना। वह तो गांव को बदलते हैं, परिवार को बदलते हैं, परिवार की समस्याओं को समाप्त कर दिखाते हैं। लेकिन उनका होता है टैम्प्रेरी। सोशल विंग वालों को ऐसे कोई मिसाल दिखाने चाहिए जो पहले कोई बहुत दु:खी परिवार हों और परिवर्तन हो सुखी बन जाए, ऐसे यहाँ परिवार तो बहुत आते हैं। तो गवर्मेन्ट के आगे प्रैक्टिकल मिसाल दिखाने चाहिए। इतने परिवार बदलकर और क्या अनुभव करते हैं, वह गवर्मेन्ट के सामने लाना चाहिए। जैसे बताया कि कोई ऐसे प्रत्यक्ष प्रमाण परिवर्तन के अभी स्टेज पर लाओ। मैसेज तो दे रहे हैं, कार्य तो कर रहे हैं। लेकिन अभी गवर्मेन्ट की आंखों में आना चाहिए कि स्प्रीचुअल पावर से सोशल वर्ग क्या नहीं कर सकता या क्या नहीं कर रहा है। अभी जैसे पार्क का सुनाया (बाम्बे के पार्क), कितनी सेवा हो रही है। कितने बच्चों को आराम मिल रहा है, यह रिजल्ट गवर्मेन्ट के सामने आना चाहिए। तो जो सोशल वर्ग के नेतायें हैं, उन्हों के पास रिज़ल्ट आनी चाहिए। अगर लिस्ट निकालो तो मुख्य-मुख्य परिवार की लिस्ट काफी निकाल सकते हो। यहाँ तो है ही प्रैक्टिकल। वह सोशल वर्क क्या करते हैं! कपड़ा बाँटते हैं, पैसे की मदद करते हैं.... तो आप लोग परिवार में जो सन्तुष्टता लाते हैं, जिससे उसकी एकॉनामी भी अच्छी हो जाती है, कपड़े, खाने पीने में मुश्किलात खत्म हो जाती है। आराम से रहते हैं। थोड़े में भी बहुत आराम से जिदंगी बिता रहे हैं, तो जो वह करते हैं उसको भेंट करके अलौकिक रूप से आप क्या कर रहे हैं, वह बताओ, और ऐसे-ऐसे जो एकदम बिगड़े हुए हो, उन्हों का संगठन बुलाकर उन्हों को बताओ कि देखो क्या हम कर रहे हैं। तो क्या होगा कि गवर्मेन्ट की नज़र में आने से, गवर्मेन्ट का कोई भी आता है तो एडवरटाइज़ भी सहज हो जाती है। आप बुलायेंगे प्रेस वालों को तो थोड़े आयेंगे और वह बुलायेंगे तो पीछे-पीछे आयेंगे। तो ऐसे ढंग से सबको प्रैक्टिकल दृष्टान्त दिखाओ कि हम क्या कर रहे हैं। कर बहुत रहे हैं लेकिन गुप्त है। अच्छा।

राजनेता सेवा प्रभाग - पॉलिटिशियन वाले भी अपने-अपने स्थान वालों की सेवा तो कर ही रहे हैं। सेवा कर रहे हैं और होती रहेगी। पॉलिटिशन वालों को विशेष यह अटेन्शन रखना चाहिए - जैसे समाचार सुना कि हैदराबाद में चीफ मिनिस्टर प्रभावित होने के कारण वहाँ के गवर्मेन्ट की सेवा सहज हो रही है। ऐसे हर स्थान पर कोई न कोई ऐसे सम्पर्क वाले हैं जिन्हों को थोड़ा और आगे ला सकते हैं। हर एक शहर में अपनी-अपनी गवर्मेन्ट में कुछ-न-कुछ अच्छे हैं, तो बापदादा समझते हैं कि जैसे हैदराबाद वाला विशेष है, उसके द्वारा भिन्न-भिन्न स्थान पर ऐसे क्वालिटी जो आगे आ सकती है, थोड़ा सा उसके पीछे मेहनत करें तो क्वालिटी निकल सकती है। ऐसा ग्रुप एक तैयार करो। भले भिन्न-भिन्न शहरों के हों लेकिन ऐसी क्वालिटी हो जो समझते हो, समीप आ सकते हैं। और फिर उस हैदराबाद वाले को उस संगठन में बुलाकर औरों की सेवा कराओ। वह प्रैक्टिकल उसका अनुभव सुनने से हिम्मत में आयेंगे तो हम भी कर सकते हैं। तो ऐसा संगठन पहले इकट्ठे करो, रिपोर्ट तो आती है ना। तो संगठन इकट्ठे करके फिर जगह-जगह पर थोड़ा-सा गवर्मेन्ट के अन्दर जाते रहेंगे तो बड़ों तक भी पहुंच जायेंगे क्योंकि बड़ों को फुर्सत कम होती है लेकिन बीच वाले आ सकते हैं। जैसे धर्म-नेताओं में बीच वाले आये ना। कोई पहला नम्बर वाले तो नहीं आये। लेकिन बीच वालों द्वारा उन्हों तक पहुंच सकते हैं, रास्ता है। तो ऐसे आप भी ऐसा ग्रुप तैयार करके आगे थोड़ा जाते रहो। आप इस समय `राज्य और धर्म' - दोनों स्थापन कर रहे हैं तो राजधानी वाले वंचित तो नहीं रहे ना। फिर भी साथी तो हैं। तो ऐसे करके देखो। अच्छा।

धार्मिक सेवा प्रभाग - धर्म के वर्ग वालों ने एक कार्य करके तो दिखाया लेकिन यह रिहर्सल थी। रिहर्सल में सफलता मिली यह तो अच्छा हुआ। अभी और जो मुख्य हैं उन्हों को भी सिर्फ आध्यात्मिक-शक्ति का महत्त्व बताके, आध्यात्मिक शक्ति से आप क्या कर सकते हैं, वह बताओ। भले डिस्कशन में नहीं जाओ, लेकिन पहले समीप आवें और इसी पर ही चर्चा हो तो आध्यात्मिक शक्ति मिलकर क्या कर सकती है। आध्यात्मिक-शक्ति वालों की कितनी बड़ी ज़िम्मेवारी है, इस टॉपिक को लेकर उन्हों को समीप लाओ और समीप लाकर फिर सम्पर्क में लाओ, यहाँ आबू तक ले आओ। तो आबू का प्रवाह, प्रभाव आपेही उन्हों को आकर्षित करेगा। ऐसे नहीं सोचना कि यात्रा निकाली, नेताओं का सम्मेलन हो गया, बहुत अच्छा। नहीं। और आगे बढ़ना है, फिर और आगे बढ़ना है। आगे बढ़ते ही जाना है।

रथ यात्री - रथ यात्रियों की तो स्वागत बहुत हो चुकी है और अभी भी देखो रथ यात्रियों को सभी ने कितनी तालियां बजाई, और ग्रुप में नहीं बजाई। तो बहुत अच्छा, इस यात्रा को वरदान था, बापदादा ने पहले भी सुनाया कि रथ यात्रियों को विशेष बापदादा द्वारा वरदान थे - एक तो - निर्विघ्न, किसी भी प्रकार का विघ्न नहीं आया। दूसरा - सभी के सभी स्वस्थ रहे। बीमारी का विघ्न भी नहीं आया। और तीसरा - विशेष सभी में उमंग-उत्साह होने के कारण अथक रहे। तो यह वरदान प्रत्यक्ष रूप में सभी ने देखा और अनुभव किया। जहाँ उमंग-उत्साह होता है वहाँ यह सब बातें स्वत: प्राप्त होती हैं। तो सफलतापूर्वक सभी पहुँच गये और अभी भी शिवरात्रि के उत्सव में रथ तो जहाँ-तहाँ जा नहीं सकते लेकिन जो वीडियो फिल्म निकाली है तो हर स्थान पर इस वीडियो फिल्म द्वारा सेवा अच्छी होनी ही है। तो आपकी यात्रा वीडियो में आ गई अर्थात् अमर हो गई, चलती रहेगी। अच्छा है। निमित्त तो इन्वेन्शन जगदीश ने किया। ऐसे ही शुरू से वरदान है - इन्वेन्शन करने का। अभी भी इस वरदान को आगे बढ़ाते रहना। अच्छा है। एक की इन्वेन्शन से सभी तरफ उमंग-उत्साह आ गया। तो इन्वेन्शन की मुबारक हो। अच्छा।

विदेश का इन्टरनेशनल सर्विस ग्रुप - डबल फारेनर्स डबल फायदा उठाने में होशियार हैं। मधुबन की भी रिफ्रेशमेंट और सेवा के प्लैन भी बन गये। तो अच्छा चांस लेते हैं। बापदादा को भी खुशी होती है, जब संगठित रूप में मिलकर सेवा का प्लैन बनाते हैं। जिस प्लैन में सब तरफ के निमित्त बनी हुई आत्माओं की दृष्टि पड़ जाती है, वायब्रेशन मिल जाते हैं तो उस प्लैन में दुआयें भर जाती हैं और चारों ओर एक ही सेवा का प्लैन चलने से चारों ओर का फैला हुआ आवाज़, आवाज़ बुलन्द करता है। तो अभी भी प्लैन बनाया है ना - कल्चर और पीस का। टॉपिक अच्छी है। देखो दोनों रीति से इस टॉपिक पर सेवा कर सकते हो। चाहे कल्चर पर करो, चाहे पीस पर करो। चाहे दोनों मिलाकर करो। लेकिन शान्ति की अनुभूति तो आजकल सभी चाहते ही हैं और अपना कल्चर भी अच्छा बनाने तो चाहते ही हैं।   समझते हैं कि कुछ और एडीशन चाहिए जिससे कल्चर अच्छे ते अच्छा, ऊँचे-ते ऊँचा हो जाए। तो टॉपिक अच्छी है और जैसे उमंग-उत्साह से चाहे भारत, चाहे विदेश दोनों तरफ प्लैन बना रहे हैं, सफलता तो है ही। और अच्छा है, इसी बहाने से टॉपिक उन्हों की है और प्रैक्टिकल आप हैं। तो टॉपिक और प्रैक्टिकल मिल जायेगा तो अच्छा होगा। अच्छा है। यू.एन. की सेवा भी अच्छी हो रही है, उसके कारण और-और की भी सेवा हो रही है। धीरे-धीरे नान-गवर्मेन्ट से गवर्मेन्ट तक भी पहुँच जायेंगे। अच्छा चल रहा है ना! कनेक्शन भी अच्छा बढ़ता जाता है। सहयोग भी देते रहते हैं। तो सहयोगी बनाना, सम्पर्क में लाना। जितना-जितना सम्पर्क में आयेंगे उतना ही सहयोगी स्वत: ही बनते जाते हैं और जितनी सेवा फैलती जाती है तो उल्टा-सुल्टा वायुमण्डल उसमें दब जाता है। तो अच्छी बात है। बापदादा प्रोजेक्ट के बारे में पहले ही मुबारक दे रहे हैं। अच्छा।

बाकी डबल विदेशी चाहे मीटिंग वाले, चाहे ग्रुप्स में आने वाले सभी को बापदादा बहुत-बहुत स्नेह सम्पन्न मुबारक दे रहे हैं। अच्छी हिम्मत रखते हैं। बापदादा ने सेवा का उमंग-उत्साह और हिम्मत इसमें रिजल्ट अच्छी देखी है। बाकी एड करना है - `सेवा और स्व-उन्नति का बैलेन्स।' सेवा अच्छी चल रही है और सेवा ही विघ्न-विनाशक बनी हुई है। तो सभी डबल फारेनर्स को बापदादा सदैव यादप्यार देते हैं और सदा ही याद-प्यार साथ रहेगा। अच्छा।

महाराष्ट्र ज़ोन सेवा में आया है - अच्छा - आधा हाल तो महाराष्ट्र है। महाराष्ट्र में सेवा की वृद्धि अच्छी हो रही है। तो महाराष्ट्र 9 लाख जल्दी बना सकेगा। ऐसा है ना! 9 लाख बनाने में नम्बरवन लेंगे ना! अच्छा है। आप सबको भी खुशी होती है ना! अगर आपके परिवार में वृद्ध होती है तो खुश होते हो ना! और सब यही चाहते हैं कि जल्दी-जल्दी वृद्धि हो जाए। तो महाराष्ट्र वृद्धि कर रहा है और सभी ज़ोन भी ऐसे वृद्धि कर जल्दी-जल्दी सम्पन्न बन, सम्पूर्ण बन बाप के साथ चल सकेंगे। साथ चलना है, यह भूलना नहीं। बापदादा ने पहले भी कहा है कि प्यार से नहीं चलेंगे तो 86 जबरदस्ती भी ले चलेंगे! साथ नहीं चलेंगे तो पीछे-पीछे भी लेके चलेंगे। लेकिन मज़ा नहीं होगा। अच्छा।

चारों ओर के देश विदेश के साकार स्वरूप में या सूक्ष्म स्वरूप में मिलन मनाने वाले सर्व स्वराज्य अधिकारी आत्माओं को, सदा इस श्रेष्ठ अधिकार को अपने चलन और चेहरे से प्रत्यक्ष करने वाले विशेष आत्मायें, सदा बापदादा को हर कदम में फालो करने वाले, सदा मन को स्वच्छ और बुद्धि को क्लीयर रखने वाले ऐसे स्वत: तीव्र पुरुषार्थी आत्माओं को, सदा साथ रहने वाले और साथ चलने वाले डबल लाइट बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।



03-03-2000   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


जन्मदिन की विशेष गिफ्ट - शुभ भाव और प्रेम भाव को इमर्ज कर - क्रोध महाशत्रु पर विजयी बनो

आज बापदादा अपने जन्म के साथियों को, साथ-साथ सेवा के साथियों को देख हर्षित हो रहे हैं। आज आप सभी को भी बापदादा के अलौकिक जन्म, साथ में जन्म साथियों के जन्म-दिवस की खुशी है, क्यों? ऐसा न्यारा और अति प्यारा अलौकिक जन्म और किसी का भी हो नहीं सकता। ऐसा कभी भी नहीं सुना होगा कि बाप का जन्म-दिन भी वही और बच्चों का भी जन्म-दिवस वही। यह न्यारा और प्यारा अलौकिक हीरे तुल्य जन्म आज आप मना रहे हो। साथ-साथ सभी को यह भी न्यारा और प्यारा-पन स्मृति में है कि यह अलौकिक जन्म ऐसा विचित्र है जो स्वयं भगवान बाप बच्चों का मना रहे हैं। परम आत्मा बच्चों का, श्रेष्ठ आत्माओं का जन्म-दिवस मना रहे हैं। दुनिया में कहने मात्र कई लोग कहते हैं कि हमको पैदा करने वाला भगवान है, परम-आत्मा है। परन्तु न जानते हैं, न उसी स्मृति में चलते हैं। आप सभी अनुभव से कहते हो - हम परमात्म-वंशी हैं, ब्रह्मा-वंशी हैं। परम आत्मा हमारा जन्म-दिवस मनाते हैं। हम परमात्मा का जन्म-दिवस मनाते हैं।

आज सब तरफ से यहाँ पहुचे हैं किसलिए? मुबारक देने और मुबारक लेने के लिए। तो बापदादा विशेष अपने जन्म साथियों को मुबारक दे रहे हैं। सेवा के साथियों को भी मुबारक दे रहे हैं। मुबारक के साथ-साथ परम-प्रेम के मोती, हीरों, जवाहरों द्वारा वर्षा कर रहे हैं। प्रेम के मोती देखे हैं ना। प्रेम के मोतियों को जानते हो ना? फूलों की वर्षा, सोने की वर्षा तो सब करते हैं, लेकिन बापदादा आप सभी पर परम-प्रेम, अलौकिक-स्नेह के मोतियों की वर्षा कर रहे हैं। एक गुणा नहीं, पद्म-पद्म-पद्म गुणा दिल से मुबारक दे रहे हैं। आप सब भी दिल से मुबारक दे रहे हैं, वह भी बापदादा के पास पहुँच रही है। तो आज मनाने का और मुबारक का दिन है। मनाने के समय क्या करते हो? बैण्ड बजाते हो। तो बापदादा सभी बच्चों के मन के खुशी की बैण्ड कहो, बाजे, गाने सुन रहे हैं। भक्त लोग पुकारते रहते हैं और आप बच्चे बाप के प्यार में समा जाते हो। समा जाना आता है ना? यह समा जाना ही समान बनाता है।

बापदादा बच्चों को अपने से अलग नहीं कर सकते। बच्चे भी अलग होने चाहते नहीं हैं लेकिन कभी-कभी माया के खेल-खेल में थोड़ा सा किनारा कर लेते हैं। बापदादा कहते हैं - मैं तुम बच्चों का सहारा हूँ, लेकिन बच्चे नटखट होते हैं ना। माया नटखट बना देती है, हैं नहीं, माया बना देती है। तो सहारा से किनारा करा लेती है। फिर भी बापदादा सहारा बन समीप ले आते हैं। बापदादा सभी बच्चों से पूछते हैं कि हर एक - जीवन में क्या चाहता है? फॉरेनर्स दो बातों को बहुत पसन्द करते हैं। डबल फॉरेनर्स के फेवरेट दो शब्द कौन से हैं? (कम्पैनियन और कम्पनी) यह दोनों पसन्द हैं। अगर पसन्द हैं तो एक हाथ उठाओ। भारत वालों को पसन्द हैं? कम्पैनियन भी ज़रूरी है और कम्पनी भी ज़रूरी है। कम्पनी बिना भी नहीं रह सकते और कम्पैनियन बिना भी नहीं रह सकते। तो आप सबको क्या मिला है? कम्पैनियन मिला है? बोलो - हाँ जी या ना जी? (हाँ जी) कम्पनी मिली है? (हाँ जी) ऐसी कम्पनी और ऐसा कम्पैनियन सारे कल्प में मिला था? कल्प पहले मिला था? ऐसा कम्पैनियन जो कभी भी किनारा नहीं करता, कितना भी नटखट हो जाओ लेकिन वह फिर भी सहारा ही बनता है। और जो आपके दिल की प्राप्तियां हैं, वह सर्व प्राप्तियां पूर्ण करता है। कोई अप्राप्ति है? सबकी दिल कहती है या मर्यादा-पूर्वक `हाँ' कहते हो? गाते तो हो - जो पाना था वह पा लिया, या पाना है? पा लिया? अभी पाने का कुछ नहीं है या थोड़ी-थोड़ी आशायें रह गई हैं? सब आशायें पूरी हो गई हैं या रह गई हैं? बापदादा कहता है रह गई हैं। (बाप को प्रत्यक्ष करने की आशा रह गई है) यह तो बाप की आशा है कि सभी बच्चों को मालूम पæड जाए कि बाप आया है और कोई रह न जाये!.... तो यह बापदादा की विशेष आशा है कि सभी को कम से कम मालूम तो पड़ जाए कि हमारा सदा का बाप आया है। लेकिन बच्चों की हद की और आशायें पूरी हो गई हैं, प्रेम की आशायें हैं। हर एक चाहता है - स्टेज पर आयें, यह आशा है? (अब तो बाबा स्वयं सबके पास आते हैं) यह भी आशा पूरी हो गई? सन्तुष्ट आत्मायें हैं, मुबारक हो क्योंकि सभी बच्चे समझदार हैं। समझते हैं कि जैसा समय वैसा स्वरूप बनाना ही है। इसलिए बापदादा भी ड्रामा के बंधन में तो है ना! तो सभी बच्चे हर समय अनुसार सन्तुष्ट हैं और सदा सन्तुष्टमणि बन चमकते रहते हैं। क्यों? आप स्वयं ही कहते हो - पाना था वो पा लिया। यह ब्रह्मा बाप के आदि अनुभव के बोल हैं, तो जो ब्रह्मा बाप के बोल वही सर्व ब्राह्मणों के बोल। तो बापदादा सभी बच्चों को यही रिवाइज करा रहे हैं कि सदा बाप के कम्पनी में रहो। बाप ने सर्व सम्बन्धों का अनुभव कराया है। कहते भी हो कि बाप ही सर्व सम्बन्धी है। जब सर्व सम्बन्धी है तो जैसा समय वैसे सम्बन्ध को कार्य में क्यों नहीं लगाते! और यही सर्व सम्बन्ध का समय प्रति समय अनुभव करते रहो तो कम्पैनियन भी होगा, कम्पनी भी होगी। और कोई साथियों के तरफ मन और बुद्धि जा नहीं सकती। बापदादा आफर कर रहे हैं- जब सर्व सम्बन्ध आफर कर रहे हैं तो सर्व सम्बन्धों का सुख लो। सम्बन्धों को कार्य में लगाओ।

बापदादा जब देखते हैं - कोई-कोई बच्चे कोई-कोई समय अपने को अकेला वा थोड़ा-सा नीरस अनुभव करते हैं तो बापदादा को रहम आता है कि ऐसी श्रेष्ठ कम्पनी होते, कम्पनी को कार्य में क्यों नहीं लगाते? फिर क्या कहते? व्हाई-व्हाई (Why-Why) बापदादा ने कहा `व्हाई' नहीं कहो, जब यह शब्द आता है, व्हाई निगेटिव है और पॉजिटिव है `फ्लाई' (Fly), तो व्हाई-व्हाई कभी नहीं करना, फ्लाई याद रखो। बाप को साथ साथी बनाए फ्लाई करो तो बड़ा मज़ा आयेगा। वह कम्पनी और कम्पैनियन दोनों रूप से सारा दिन कार्य में लाओ। ऐसा कम्पैनियन फिर मिलेगा? बापदादा इतने तक कहते हैं - अगर आप दिमाग से वा शरीर से दोनों प्रकार से थक भी जाओ तो कम्पैनियन आपकी दोनों प्रकार से मालिश करने के लिए भी तैयार है। मनोरंजन कराने लिए भी एवररेडी हैं। फिर हद के मनोरंजन की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी। ऐसा यूज़ करना आता है वा समझते हो बड़े-से-बड़ा बाबा है, टीचर है, सतगुरू है....? लेकिन सर्व सम्बन्ध हैं। समझा - डबल विदेशियों ने?

अच्छा - सभी बर्थ डे मनाने आये हो ना! मनाना है ना! अच्छा जब बर्थ डे मनाते हो, तो जिसका बर्थ डे मनाते हो उसको गिफ्ट देते हो या नहीं देते हो? (देते हैं) तो आज आप सब बाप का बर्थ डे मनाने आये हो। नाम तो शिवरात्रि है, तो बाप का खास मनाने आये हो। मनाने आये हो ना? तो बर्थ डे की आज की गिफ्ट क्या दी? या सिर्फ मोमबत्ती जलायेंगे, केक काटेंगे... यही मनायेंगे? आज क्या गिफ्ट दी? या कल देंगे? चाहे छोटी दो, चाहे मोटी दो, लेकिन गिफ्ट तो देते हैं ना! तो क्या दी? सोच रहे हैं। अच्छा देनी है? देने के लिए तैयार हो? जो बापदादा कहेगा वह देंगे या आप अपनी इच्छा से देंगे? क्या करेंगे? जो बापदादा कहेंगे वह देंगे या अपनी इच्छा से देंगे? (जो बापदादा कहेंगे वह देंगे) देखना, थोड़ी हिम्मत रखनी पड़ेगी। हिम्मत है? मधुबन वाले हिम्मत है? डबल फारेनर्स में हिम्मत है? हाथ तो बहुत अच्छा उठा रहे हैं। अच्छा - शक्तियों में, पाण्डवों में हिम्मत है? भारत वालों में हिम्मत है? बहुत अच्छा। यही बाप को मुबारक मिल गई। अच्छा - सुनायें। यह तो नहीं कहेंगे कि यह तो सोचना पड़ेगा? गा-गा नहीं करना। एक बात बापदादा ने मैजारिटी में देखी है। माइनॉरिटी नहीं मैजारिटी। क्या देखा? जब कोई सरकमस्टांश सामने आता है तो मैजारिटी में एक, दो, तीन नम्बर में क्रोध का अंश, न चाहते भी इमर्ज हो जाता है। कोई में महान क्रोध के रूप में होता, कोई में जोश के रूप में होता, कोई में तीसरा नम्बर चिड़चिड़ेपन रूप में होता है। चिड़चिड़ापन समझते हो? वह भी है क्रोध का ही अंश, हल्का है। तीसरा नम्बर है ना तो वह हल्का है। पहला ज़ोर से है, दूसरा उससे थोड़ा। फिर भाषा तो आजकल सबकी रॉयल हो गई है। तो रॉयल रूप में क्या कहते हैं? बात ही ऐसी है ना, जोश तो आयेगा ही। तो आज बापदादा सभी से यह गिफ्ट लेने चाहते हैं कि - क्रोध तो छोड़ो लेकिन क्रोध का अंश मात्र भी नहीं रहे। क्यों? क्रोध में आकर डिस-सर्विस करते हैं क्योंकि क्रोध होता है दो के बीच में। अकेला नहीं होता है, दो के बीच में होता है तो दिखाई देता है। चाहे मन्सा में भी किसके प्रति घृणा भाव का अंश भी होता है तो मन में भी उस आत्मा के प्रति जोश ज़रूर आता है। तो बापदादा को यह डिस-सर्विस का कारण अच्छा नहीं लगता है। तो क्रोध का भाव अंश मात्र भी उत्पन्न न हो। जैसे ब्रह्मचर्य के ऊपर अटेन्शन देते हो, ऐसे ही काम महाशत्रु, क्रोध महाशत्रु गाया हुआ है। शुभ-भाव, प्रेम-भाव वह इमर्ज नहीं होता है। फिर मूड ऑफ कर देंगे। उस आत्मा से किनारा कर देंगे। सामने नहीं आयेंगे, बात नहीं करेंगे। उसकी बातों को ठुकरायेंगे। आगे बढ़ने नहीं देंगे। यह सब मालूम बाहर वालों को भी पड़ता है फिर भले कह देते हैं, आज इसकी तबियत ठीक नहीं है, बाकी कुछ नहीं है। तो क्या जन्म-दिवस की यह गिफ्ट दे सकते हो? जो समझते हैं कोशिश करेंगे, वह हाथ उठाओ। सौगात देने के लिए सोचेंगे, कोशिश करेंगे वह हाथ उठाओ। सच्ची दिल पर भी साहेब राज़ी होता है। (कई भाई-बहनें खड़े हुए) धीरे-धीरे उठ रहे हैं। सच बोलने की मुबारक हो। अच्छा जिन्होंने कहा कोशिश करेंगे, ठीक है कोशिश भले करो लेकिन कोशिश के लिए कितना समय चाहिए? एक मास चाहिए, 6 मास चाहिए, कितना चाहिए? छोड़ेंगे या छोड़ने का लक्ष्य ही नहीं है? जिन्होंने कहा कोशिश करेंगे वह फिर से उठो। जो समझते हैं कि हम दो तीन मास में कोशिश करके छोड़ेंगे वह बैठ जाओ। और जो समझते हैं 6 मास चाहिए, अगर 6 मास पूरा लगे भी तो कम करना, इस बात को छोड़ना नहीं क्योंकि यह बहुत ज़रूरी है। यह डिस-सर्विस दिखाई देती है। मुख से नहीं बोलो, शक्ल बोलती है। इसलिए जिन्होंने हिम्मत रखी है उन सब पर बापदादा ज्ञान, प्रेम, सुख, शान्ति के मोतियों की वर्षा कर रहे हैं। अच्छा।

बापदादा रिटर्न सौगात में यह विशेष सभी को वरदान दे रहे हैं - जब भी गलती से भी, न चाहते हुए भी कभी क्रोध आ भी जाए तो सिर्फ दिल से - ``मीठा बाबा'' शब्द कहना, तो बाप की एक्स्ट्रा मदद हिम्मत वालों को अवश्य मिलती रहेगी। मीठा बाबा कहना, सिर्फ बाबा नहीं कहना, ``मीठा बाबा'' तो मदद मिलेगी, ज़रूर मिलेगी क्योंकि लक्ष्य रखा है ना। तो लक्ष्य से लक्षण आने ही हैं। मधुबन वाले हाथ उठाओ। अच्छा - करना ही है ना! (हाँ जी) मुबारक हो। बहुत अच्छा। आज खास मधुबन वालों को टोली देंगे। मेहनत बहुत करते हैं। क्रोध के लिए नहीं देते हैं, मेहनत के लिए देते हैं। सभी समझेंगे हाथ उठाया है, इसलिए टोली देते हैं। मेहनत बहुत अच्छी करते हैं। सबको सेवा से सन्तुष्ट करना, यह तो मधुबन का एक्जैम्पुल है। इसलिए आज मुख मीठा करायेंगे। आप सब इन्हों का मुख मीठा देख, मीठा मुख कर लेना, खुशी होगी ना। यह भी एक ब्राह्मण परिवार का कल्चर है। आजकल आप लोग `कल्चर आफ पीस' का प्रोग्राम बना रहे हो ना। तो यह भी फर्स्ट नम्बर का कल्चर है -``ब्राह्मण कुल की सभ्यता''। बापदादा ने देखा है, यह दादी जब सौगात देती है ना, उसमें एक बोरी का थैला होता है। उसमें लिखत होती है -``कम बोलो, धीरे बोलो, मीठा बोलो''। तो आज बापदादा यह सौगात दे रहे हैं, बोरी वाला थैला नहीं देते, वरदान में यह शब्द देते हैं। हर एक ब्राह्मण के चेहरे और चलन में ब्राह्मण कल्चर प्रत्यक्ष हो। प्रोग्राम तो बनायेंगे, भाषण भी करेंगे लेकिन पहले स्व में यह सभ्यता आवश्यक है। हर एक ब्राह्मण मुस्कराता हुआ हर एक से सम्पर्क में आये। कोई से कैसा, कोई से कैसा नहीं। किसको देखकर अपना कल्चर नहीं छोड़ो। बीती बातें भूल जाओ। नये संस्कार सभ्यता के जीवन में दिखाओ। अभी दिखाना है, ठीक है ना! (सभी ने कहा - हाँ जी)

यह बहुत अच्छा है, डबल फॉरेनर्स मैजारिटी `हाँ जी' करने में बहुत अच्छे हैं। अच्छा है - भारतवासियों की तो एक मर्यादा ही है - ``हाँ जी करना।'' सिर्फ माया को `ना जी' करो, बस और आत्माओं को हाँ जी, हाँ जी करो। माया को ना-जी, ना-जी करो। अच्छा। सभी ने जन्म दिवस मना लिया? मनाया, गिफ्ट दे दी, गिफ्ट ले ली।

अच्छा - आपके साथ-साथ और भी जगह-जगह पर सभायें लगी हुई हैं। कहाँ छोटी सभायें हैं, कहाँ बड़ी सभायें हैं, सभी सुन रहे हैं, देख रहे हैं। उन्हों को भी बापदादा यही कहते कि आज के दिन की आप सबने भी सौगात दी या नहीं? सब कह रहे हैं, हाँ जी बाबा। अच्छे हैं, दूर बैठे भी जैसे सामने ही सुन रहे हैं क्योंकि साइन्स वाले जो इतनी मेहनत करते हैं, मेहनत तो बहुत करते हैं ना। तो सबसे ज्यादा फायदा ब्राह्मणों को होना चाहिए ना! इसलिए जब से संगमयुग आरम्भ हुआ है तब से यह साइन्स के साधन भी बढ़ते जा रहे हैं। सतयुग में तो आपके देवता रूप में यह साइन्स सेवा करेगी लेकिन संगमयुग में भी साइन्स के साधन आप ब्राह्मणों को मिल रहे हैं और सेवा में भी, प्रत्यक्षता करने में भी यह साइन्स के साधन बहुत विशाल रूप से सहयोगी बनेंगे। इसलिए साइन्स के निमित्त बनने वाले बच्चों को भी बापदादा मेहनत की मुबारक देते हैं।

बाकी बापदादा ने देखा मधुबन में भी देश-विदेश से बहुत शोभनिक- शोभनिक कार्ड, पत्र और कोई द्वारा यादप्यार मैसेज भेजे हैं। बापदादा उन्हों को भी विशेष यादप्यार और जन्म दिवस की पदम-पदम-पदम-पदम-पदम गुणा मुबारक दे रहे हैं। सब बच्चे बापदादा के नयनों के सामने आ रहे हैं। आप लोगों ने तो सिर्फ कार्ड देखे, लेकिन बापदादा बच्चों को भी नयनों से देख रहे हैं। बहुत स्नेह से भेजते हैं और उसी स्नेह से बापदादा ने स्वीकार किया है। कईयों ने अपनी अवस्थायें भी लिखी हैं तो बापदादा कहते हैं - उड़ो और उड़ाओ। उड़ने से सब बातें नीचे रह जायेंगी और आप सदा ऊँचे ते ऊँचे बाप के साथ ऊँचे रहेंगे। सेकण्ड में स्टॉप और स्टॉक शक्तियों का, गुणों का इमर्ज करो। अच्छा।

चारों ओर के सर्व श्रेष्ठ ब्राह्मण आत्मायें, सदा बाप के कम्पनी में रहने वाले, बाप को कम्पैनियन बनाने वाले स्नेही आत्मायें, सदा बाप के गुणों के सागर में समाने वाले समान बापदादा की श्रेष्ठ आत्मायें, सदा सेकण्ड में बिन्दी लगाने वाले मास्टर सिन्धु स्वरूप आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और बहुत-बहुत मुबारक हो, मुबारक हो, मुबारक हो। नमस्ते तो बापदादा हर समय, हर बच्चे को करते हैं, आज भी नमस्ते।

एज्युकेशन विंग - एज्युकेशन वाले हाथ उठाओ। एज्युकेशन वाले अपनी श्रेष्ठ एज्युकेशन समय प्रति समय प्रत्यक्ष कर रहे हैं और करते रहना क्योंकि ऐसी एज्युकेशन जो मानव को ऐसा श्रेष्ठ बनावे जो एक जन्म नहीं लेकिन अनेक जन्म के लिए आत्मा को कोई अप्राप्ति नहीं रहे। आजकल की एज्युकेशन, एज्युकेट तो बना देती लेकिन सर्व जीवन की प्राप्तियां एक जन्म के लिए भी नहीं करा सकती। कोई भी स्टूडेन्ट को यह गैरन्टी नहीं कि पढ़ाई के बाद भविष्य क्या! लेकिन आप उन्हों को स्पष्ट कर सकते हो कि इस एज्युकेशन से क्या गैरन्टी है, प्राप्तियों की। एक जन्म की नहीं लेकिन जन्म-जन्म के लिए। इसलिए स्टूडेन्ट्स को उमंग और हिम्मत की बातें बताकर इस एज्युकेशन के महत्त्व को स्पष्ट करो। वर्तमान क्या मिलता है और भविष्य क्या मिलता है - दोनों ही स्पष्ट कर सकते हैं और कितनी सरल एज्युकेशन है। कम खर्चा बालानशीन की एज्युकेशन है। ऐसे हिम्मत और खुशी की बातें बताओ। समझा। अच्छा।

यूथ विंग - यूथ विंग वाले हाथ उठाओ। आप लोग तो गीत गाते हो कि यूथ की क्या-क्या ज़िम्मेवारी है। गीत बना हुआ है ना! यूथ का विशेष विश्व-परिवर्तन में विशेष पार्ट है क्योंकि आलमाइटी गवर्मेन्ट और आज की गवर्मेन्ट दोनों को यूथ में बहुत उम्मीदें हैं। इसलिए यूथ परिवर्तन का स्तम्भ बन सकते हैं। बहुत करके यूथ जब कोई कार्य करते हैं तो मशाल आगे लेकर आरम्भ करते हैं। तो आप ब्राह्मण यूथ अपने चलन और चेहरे में ऐसा मशाल दिखाओ जो सबकी नज़र न चाहते भी आपके ऊपर ही आवे। अभी जहाँ-जहाँ भी यूथ ने सेवा की है, वहाँ के सहयोगी वा सम्पर्क वाले ग्रुप को इकट्ठे करो। पहले एक-एक शहर में करो, फिर ज़ोन में करो। फिर ऐसा ग्रुप आबू में लाना। तो सेवा का प्रत्यक्ष स्वरूप संगठन में दिखाई दे। समझा। अच्छा।

पंजाब के सेवाधारी - अच्छा है यह सेवा का चांस, बेहद की कारोबार सिखाता है। सतयुग में राजधानी सम्भालेंगे तो सम्भालने का अभ्यास तो यहाँ ही डालना है ना। तो हर एक ज़ोन को यह अच्छा चांस मिलता है। ब्राह्मणों को सेवा से सन्तुष्ट करने का और सन्तुष्टता से दुआयें जमा करने का। तो अनुभव किया पंजाब वालों ने? सम्भालने का अनुभव होता जाता है ना! बेहद का सम्भालना। सेन्टर पर तो हद का हो जाता है ना। बेहद का राज्य सम्भालना है, उसके संस्कार भरते जाते हैं। सेवा के साथ-साथ राज्य चलाने की ट्रेनिंग भी मिलती रहती है। समीप भी आते हैं। सेवा से समीपता स्वत: ही आती है। तो बहुत अच्छा किया और सदा ही अच्छे ते अच्छा होना ही है। ठीक है ना - पंजाब वाले। टीचर्स हाथ उठाओ। अच्छा लगा ना। पंजाब के सेवाधारी हाथ उठाओ। सेवाधारी मातायें हाथ उठाओ। बहुत अच्छा।

डबल विदेशी - आज की सभा में डबल विदेशियों का ग्रुप भी बड़ा है और सामने भी बैठे हैं। नाम ही डबल विदेशी है। तो अपना ओरिजिनल विदेश, तो डबल विदेशी नाम सुनने से ही याद आता। जब और भी कोई आप सभी को डबल विदेशी कहते हैं तो उन्हों को भी याद आता और आप सबको तो है ही। डबल विदेशियों को बापदादा सदा मैजारिटी को हिम्मत में और साफ दिल में आगे रखते हैं। कुछ भी हो जाता लेकिन हिम्मत रख आगे बढ़ रहे हैं और बढ़ते रहेंगे। बापदादा को सबसे समीप रत्न वही लगता है जिसमें सफाई और सच्चाई है। दिल साफ और सच्ची है तो वह बच्चे चाहे कितना भी दूर हों लेकिन वह सबसे समीप बापदादा के दिल पर रहते हैं। इसलिए इस विशेषता को सदा ही सामने रख अपनी विशेषता को बढ़ाते रहना। यह समीप आने का बहुत सहज साधन है। वैसे तो सभी के लिए है, भारतवासियों के लिए भी है। लेकिन डबल विदेशियों में मैजारिटी में यह विशेषता है, अब इसी विशेषता को अपने में भी बढ़ाओ और बढ़ाते-बढ़ाते समीप आते-आते समान बन ही जाना है। ठीक है ना!

बापदादा सदा अमृतवेले वरदानों की झोली ले चारों तरफ चक्कर लगाते हैं। अच्छा। डबल विदेशी बच्चों को विशेष हिम्मत में आगे बढ़ने की और जन्म-दिन की डबल मुबारक।

(बापदादा ने अपने हस्तों से झण्डा लहराया, 64 वीं शिवजयन्ति निमित्त 64 मोमबत्ती जलाई तथा सभी बच्चों को शिव जयन्ती की बधाईयां दी)

सभी ने अपनी बर्थ डे भी मनाई, झण्डा भी लहराया। अभी हर एक आत्मा के दिल में यह झण्डा लहराना। आप सबके दिलों में तो बाप का झण्डा लहराता रहता है, अभी विश्व कहे - ``मेरा बाबा'', यह आवाज़, जैसे नगाड़ा बजता है तो बुलन्द आवाज़ से बजता है। ऐसे ही - ``मेरा बाबा'' यह नगाड़ा ज़ोर-शोर से बजे। यही सभी बच्चों के दिल की आश है। होना ही है। अनेक बार हुआ है, अब फिर से रिपीट होना ही है। उस दिन सभी मिलकर कौन सा गीत गायेंगे? - वाह बाबा वाह! और वाह ड्रामा वाह! सबके दिल में बाबा, बाबा और बाबा ही होगा। दिखाई दे रहा है ना - वह दिन! दिखाई देता है? वह दिन आया कि आया। सभी को मुबारक तो मिल गई है। आप सबको मुबारक है ही और सर्व को इस दिवस वी मुबारक दिलानी है। अवतरण-दिवस, जन्म-दिवस, परिवर्तन-दिवस, प्रत्यक्षता-दिवस आना ही है। अच्छा। सबको आज के दिवस की गोल्डन नाईट, डायमण्ड नाईट।

अच्छा - ओमशान्ति।



19-03-2000   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


निर्माण और निर्मान के बैलेन्स से दुआओं का खाता जमा करो

आज बापदादा अपने `होली-हैपी-हंसों' की सभा में आये हैं। चारों ओर होली हंस दिखाई दे रहे हैं। होलीहंसों की विशेषता को सभी अच्छी तरह से जानते हो। `सदा होली हैपी हंस अर्थात् स्वच्छ और साफ दिल।' ऐसे होलीहंसों की स्वच्छ और साफ दिल होने के कारण हर शुभ आशायें सहज पूर्ण होती हैं। सदा तृप्त आत्मा रहते हैं। श्रेष्ठ संकल्प किया और पूर्ण हुआ। मेहनत नहीं करनी पड़ती। क्यों? बापदादा को सबसे प्रिय, सबसे समीप साफ दिल प्यारे हैं। साफ दिल सदा बापदादा के दिलतख्त नशीन, सर्व श्रेष्ठ संकल्प पूर्ण होने के कारण वृत्ति में, दृष्टि में, बोल में, सम्बन्ध-सम्पर्क में सरल और स्पष्ट एक समान दिखाई देते हैं। सरलता की निशानी है - दिल, दिमाग, बोल एक समान। दिल में एक, बोल में और (दूसरा) - यह सरलता की निशानी नहीं है। सरल स्वभाव वाले सदा निर्माणचित, निरहंकारी, निर-स्वार्था होते हैं। होलीहंस की विशेषता - सरल-चित, सरल वाणी, सरल वृत्ति, सरल दृष्टि।

बापदादा इस वर्ष में सभी बच्चों में दो विशेषतायें `चलन और चेहरे' में देखने चाहते हैं। सभी पूछते हैं ना - आगे क्या करना है? इस सीज़न के विशेष समाप्ति के बाद क्या करना है? सभी सोचते हो ना - आगे क्या होना है! आगे क्या करना है! सेवा के क्षेत्र में तो यथाशक्ति मैजारिटी ने बहुत अच्छी प्रगति की है, आगे बढ़े हैं। बापदादा इस उन्नति के लिए मुबारक भी देते हैं - बहुत अच्छा, बहुत अच्छा, बहुत अच्छा। साथ-साथ रिज़ल्ट में एक बात दिखाई दी, क्या वह सुनायें? टीचर्स सुनायें, डबल फारेनर्स सुनायें? पाण्डव सुनायें? हाथ उठाओ तभी सुनायेंगे, नहीं तो नहीं सुनायेंगे। (सभी ने हाथ उठाया) बहुत अच्छा। एक बात क्या देखी? क्योंकि आज वतन में बापदादा की आपस में रूह-रूहान थी, कैसे रूह-रूहान करेंगे? दोनों कैसे एक दो में रूह-रूहान करेंगे? जैसे यहाँ इस दुनिया में आप लोग `मोनोएाक्टिंग' करते हो ना! बहुत अच्छी-अच्छी करते हो। तो आप लोंगो की साकारी दुनिया में तो एक आत्मा दो पार्ट बजाती है और बापदादा दो आत्मायें एक शरीर है। फर्क हुआ ना! तो बहुत मजे की बात होती है।

तो आज वतन में बापदादा की रूहरिहान चली - किस बात पर? आप सब जानते हो कि ब्रह्मा बाप को उमंग क्या होता है? जानते हो ना अच्छी तरह से? ब्रह्मा बाप का उमंग था - जल्दी-से-जल्दी हो। तो शिव बाप ने कहा ब्रह्मा बाप को - विनाश वा परिवर्तन करना तो एक ताली भी नहीं, चपटी (चुटकी) बजाने की बात है। लेकिन आप पहले 108 नहीं, आधी माला बनाकर दो। तो ब्रह्मा बाप ने क्या उत्तर दिया होगा? बताओ। (तैयार हो रहे हैं) अच्छा - आधी माला भी तैयार नहीं हुई है? पूरी माला की बात छोड़ो, आधी माला तैयार हुई है? (सभी हँस रहे हैं) हँसना माना कुछ है! जो बोलते हैं आधी माला तैयार है, वह एक हाथ उठाओ। तैयार हुई है? बहुत थोड़े हैं। जो समझते हैं कि हो रही है, वह हाथ उठाओ। मैजारिटी कहते हैं हो रही है और माइनॉरिटी कहते हैं हो गई है। जिन्होंने हाथ उठाया है कि तैयार हुई है, उनको बापदादा कहते हैं आप नाम लिखकर देना। अच्छी बात है ना! बापदादा ही देखेंगे और कोई नहीं देखेंगे, बंद होगा। बापदादा देखेंगे कि ऐसे अच्छे उम्मींदवार रत्न कौन-कौन हैं। बापदादा भी समझते हैं होने चाहिए। तो इनसे नाम लेना, इनका फोटो निकालो।

तो ब्रह्मा बाप ने क्या जवाब दिया? आप सबने तो अच्छे-अच्छे जवाब दिये। ब्रह्मा बाप ने कहा तो बस सिर्फ इतनी देरी है जो आप चपटी बजायेंगे, वह तैयार हो जायेंगे। तो अच्छी बात हुई ना! तो शिव बाप ने कहा - अच्छा, सारी माला तैयार है? आधी माला का तो जवाब मिला, सारी माला के लिए पूछा। उसमें कहा थोड़ा टाइम चाहिए। यह रूह-रूहान चली। क्यों थोड़ा टाइम चाहिए? रूह-रूहान में तो प्रश्न-उत्तर ही चलता है ना। क्यों थोड़ा टाइम चाहिए? कौन-सी विशेष कमी है जिसके कारण आधी माला भी रूकी हुई है? तो चारों ओर के बच्चे हर एरिया, एरिया के इमर्ज करते गये, जैसे आपके जोन हैं ना, ऐसे ही एक-एक जोन नहीं, ज़ोन तो बहुत-बहुत बड़े हैं ना। तो एक-एक विशेष शहर को इमर्ज करते गये और सबके चेहरे देखते गये, देखते-देखते ब्रह्मा बाप ने कहा कि एक विशेषता अभी जल्दी-सेजल्दी सभी बच्चे धारण कर लेंगे तो माला तैयार हो जायेगी। कौन सी विशेषता? तो यही कहा कि जितनी सर्विस में उन्नति की है, सर्विस करते हुए आगे बढ़े हैं। अच्छे आगे बढ़े हैं लेकिन एक बात का बैलेन्स कम है। वह यही बात कि निर्माण करने में तो अच्छे आगे बढ़ गये हैं लेकिन निर्माण के साथ निर्मान - वह है निर्माण और वह है निर्मान। मात्रा का अन्तर है। लेकिन निर्माण और निर्मान दोनों के बैलेन्स में अन्तर है। सेवा की उन्नति में निर्मानता के बजाए कहाँ-कहाँ, कब-कब स्व-अभिमान भी मिक्स हो जाता है। जितना सेवा में आगे बढ़ते हैं, उतना ही वृत्ति में, दृष्टि में, बोल में, चाल में निर्मानता दिखाई दे, इस बैलेन्स की अभी बहुत आवश्यकता है। अभी तक जो सभी सम्बन्ध-सम्पर्क वालों से ब्लैसिंग मिलनी चाहिए वह ब्लैसिंग नहीं मिलती है। और पुरूषार्थ कोई कितना भी करता है, अच्छा है लेकिन पुरूषार्थ के साथ अगर दुआओं का खाता जमा नहीं है तो दाता-पन की स्टेज, रहमदिल बनने की स्टेज की अनुभूति नहीं होगी। आवश्यक है - स्व पुरूषार्थ और साथ-साथ बापदादा और परिवार के छोटे-बड़ों की दुआयें। यह दुआयें जो हैं - यह पुण्य का खाता जमा करना है। यह मार्क्स में एडीशन होती है। कितनी भी सर्विस करो, अपनी सर्विस की धुन में आगे बढ़ते चलो, लेकिन बापदादा सभी बच्चों में यह विशेषता देखने चाहते हैं कि सेवा के साथ निर्मानता, मिलनसार - यह पुण्य का खाता जमा होना बहुत-बहुत आवश्यक है। फिर नहीं कहना कि मैंने तो बहुत सर्विस की, मैंने तो यह किया, मैने तो यह किया, मैने तो यह किया, लेकिन नम्बर पीछे क्यों? इसलिए बापदादा पहले से ही इशारा देते हैं कि वर्तमान समय यह पुण्य का खाता बहुत-बहुत जमा करो। ऐसे नहीं सोचो - यह तो है ही ऐसा, यह तो बदलना नहीं है। जब प्रकृति को बदल सकते हो, एडजेस्ट करेंगे ना प्रकृति को? तो क्या ब्राह्मण आत्मा को एडजेस्ट नहीं कर सकते हो? अगेन्स्ट को एडजेस्ट करो, यह है - निर्माण और निर्मान का बैलेन्स। सुना!

लास्ट में होमवर्क तो देंगे ना! कुछ तो होम वर्क मिलेगा ना! तो बापदादा आने वाली सीज़न में आयेगा लेकिन.... कन्डीशन डालेगा। देखो साकार का पार्ट भी चला, अव्यक्त पार्ट भी चला, इतना समय अव्यक्त पार्ट चलने का स्वप्न में भी नहीं था। तो दोनों पार्ट ड्रामानुसार चले। अब कोई तो कन्डीशन डालनी पड़ेगी या नहीं! क्या राय है? क्या ऐसे ही चलता रहेगा? क्यों? आज वतन में प्रोग्राम भी पूछा। तो बापदादा की रूहरिहान में यह भी चला कि यह ड्रामा का पार्ट कब तक? क्या कोई डेट है? (देहरादून की प्रेम बहन से) जन्म-पत्री सुनाओ, कब तक? अभी यह क्वेश्चन उठा है, कब तक? तो लेकिन.... के लिए 6 मास तो हैं ही ना! 6 मास के बाद ही दूसरी सीजन शुरू होती है। तो बापदादा रिज़ल्ट देखने चाहते हैं। दिल साफ, कोई भी दिल में पुराने संस्कार का, अभिमान-अपमान की महसूसता का दाग नहीं हो।

बापदादा के पास भी दिल का चित्र निकालने की मशीनरी है। यहाँ एक्सरे में यह स्थूल दिल दिखाई देता है ना। तो वतन में दिल का चित्र बहुत स्पष्ट दिखाई देता है। कई प्रकार के छोटे-बड़े दाग, ढीले स्पष्ट दिखाई देते हैं।

आज होली मनाने आये हो ना! लास्ट टर्न होने के कारण पहले होम-वर्क बता दिया लेकिन होली का अर्थ औरों को भी सुनाते हो कि होली मनाना अर्थात् बीती सो बीती करना। होली मनाना अर्थात् दिल में कोई भी छोटाबड़  दाग नहीं रहना, बिल्कुल साफ दिल, सर्व प्राप्ति सम्पन्न। बापदादा ने पहले भी सुनाया है कि बापदादा का बच्चों से प्यार होने के कारण एक बात अच्छी नहीं लगती। वह है - मेहनत बहुत करते हैं। अगर दिल साफ हो जाए तो मेहनत नहीं, दिलाराम दिल में समाया रहेगा और आप दिलाराम के दिल में समाये हुए रहेंगे। दिल में बाप समाया हुआ है। किसी भी रूप की माया, चाहे सूक्ष्म रूप हो, चाहे रॉयल रूप हो, चाहे मोटा रूप हो, किसी भी रूप से माया आ नहीं सकती। स्वप्न मात्र, संकल्प मात्र भी माया आ नहीं सकती। तो मेहनत मुक्त हो जायेंगे ना! बापदादा मन्सा में भी मेहनत मुक्त देखने चाहते हैं। मेहनत मुक्त ही जीवनमुक्त का अनुभव कर सकते हैं। होली मनाना माना मेहनत मुक्त, जीवनमुक्त अनुभूति में रहना। अब बापदादा मन्सा शक्ति द्वारा सेवा को शक्तिशाली बनाने चाहते हैं। वाणी द्वारा सेवा चलती रही है, चलती रहेगी, लेकिन इसमें समय लगता है। समय कम है, सेवा अभी भी बहुत है। रिजल्ट आप सबने सुनाई। अभी तक 108 की माला भी निकाल नहीं सकते। 16 हजार, 9 लाख - यह तो बहुत दूर हो गये। इसके लिए फास्ट विधि चाहिए। पहले अपनी मन्सा को श्रेष्ठ, स्वच्छ बनाओ, एक सेकण्ड भी व्यर्थ नहीं जाये। अभी तक मैजारिटी के वेस्ट संकल्प की परसेन्टेज़ रही हुई है। अशुद्ध नहीं लेकिन वेस्ट हैं इसलिए मन्सा सेवा फास्ट गति से नहीं हो सकती। अभी होली मनाना अर्थात् मन्सा को, व्यर्थ से भी होली बनाना।

होली मनाई? मनाना अर्थात् बनना। दुनिया वाले तो भिन्न-भिन्न रंगों से होली मनाते हैं लेकिन बापदादा सब बच्चों के ऊपर दिव्य गुणों के, दिव्य शक्तियों के, ज्ञान गुलाब के रंग डाल रहे हैं।

आज वतन में और भी समाचार था। एक तो सुनाया - रूहरिहान का। दूसरा यह था कि जो भी आपके अच्छे-अच्छे सेवा साथी एडवांस पार्टी में गये हैं, उन्हों का आज वतन में होली मनाने का दिन था। आप सबको भी जब कोई मौका होता है तो याद तो आती है ना। अपनी दादियों की, सखियों की, पाण्डवों की याद तो आती है ना! बहुत बड़ा ग्रुप हो गया है एडवान्स पार्टी का। अगर नाम निकालो तो बहुत हैं। तो वतन में आज सब प्रकार की आत्मायें होली मनाने आई थी। सभी अपने-अपने पुरूषार्थ की प्रालब्ध प्रमाण भिन्न-भिन्न पार्ट बजा रहे हैं। एडवांस पार्टी का पार्ट अभी तक गुप्त है। आप सोचते हो ना - क्या कर रहे हैं? वह आप लोगों का आह्वान कर रहे हैं कि सम्पूर्ण बन दिव्य जन्म द्वारा नई सृष्टि के निमित्त बनो। सभी अपने पार्ट में खुश हैं। यह स्मृति नहीं है कि हम संगमयुग से आये हैं। दिव्यता है, पवित्रता है, परमात्म लगन है, लेकिन ज्ञान क्लीयर इमर्ज नहीं है। न्यारापन है, लेकिन अगर ज्ञान इमर्ज हो जाए तो सभी भाग करके मधुबन में तो आ जायें ना! लेकिन इन्हों का पार्ट न्यारा है, ज्ञान की शक्ति है। शक्ति कम नहीं हुई है। निरन्तर मर्यादा पूर्वक घर का वातावरण, माँ-बाप की सन्तुष्टता और स्थूल साधन भी सब प्राप्त हैं। मर्यादा में बहुत पक्के हैं। नम्बरवार तो हैं लेकिन विशेष आत्मायें पक्के हैं। महसूस करते हैं कि हमारा पूर्व-जन्म और पुनर्जन्म महान रहा है और रहेगा। फीचर्स भी सभी के मैजारिटी एक रॉयल फैमली की तृप्त आत्मायें, भरपूर आत्मायें, हर्षित आत्मायें और दिव्य गुण सम्पन्न आत्मायें दिखाई देते हैं। यह तो हुई उन्हों की हिस्ट्री, लेकिन वतन में क्या हुआ? होली कैसे मनाई? आप लोगों ने देखा होगा कि होली में भिन्न-भिन्न रंगों के, सूखे रंग, थालियां भरकर रखते हैं। तो वतन में भी जैसे सूखा रंग होता है ना - ऐसे बहुत महीन चमकते हुए हीरे थे लेकिन बोझ वाले नहीं थे, जैसे रंग को हाथ में उठाओ तो हल्का होता है ना! ऐसे भिन्न-भिन्न रंग के हीरों की थालियां भरी हुई थी। तो जब सब आ गये, तो वतन में स्वरूप कौन सा होता है, जानते हो? लाइट का ही होता है ना! देखा है ना! तो लाइट की प्रकाशमय काया तो पहले ही चमकती रहती है। तो बापदादा ने सभी को अपने संगमयुगी शरीर में इमर्ज किया। जब संगमयुगी शरीर में इमर्ज हुए तो एक दो में बहुत मिलन मनाने लगे। एडवांस पार्टी के जन्म की बातें भूल गये और संगम की बातें इमर्ज हो गई। तो आप समझते हो कि संगमयुग की बातें जब एक दो में करते हैं तो कितनी खुशी में आ जाते हैं। बहुत खुशी में एक दो से लेन-देन कर रहे थे। बापदादा ने भी देखा - यह बड़े मौज में आ गये हैं तो मिलने दो इन्हों को। आपस में अपने जीवन की बहुत सी कहानियां एक दो को सुना रहे थे, बाबा ने ऐसा कहा, बाबा ने ऐसे मेरे से प्यार किया, शिक्षा दी। बाबा ऐसे कहता है, बाबा-बाबा, बाबा-बाबा ही था। कुछ समय के बाद क्या हुआ? सबके संस्कारों का तो आपको पता है। तो सबसे रमणीक कौन थी इस ग्रुप में? (दीदी और चन्द्रमणि दादी) तो दीदी पहले उठी। चन्द्रमणि दादी का हाथ पकड़ा और रास शुरू कर दी। और दीदी जैसे यहाँ नशे में चली जाती थी ना, वैसे नशे में खूब रास किया। मम्मा को बीच में ठहराया और सार्किल लगाया, एक-दो को आँख मिचौनी की, बहुत खेला और  बापदादा भी देख-देख बहुत मुस्करा रहे थे। होली मनाने आये तो खेलें भी। कुछ समय के बाद सभी बापदादा की बांहों में समा गये और सब एकदम लवलीन हो गये और उसके बाद फिर बापदादा ने सबके ऊपर भिन्न-भिन्न रंगों के जो हीरे थे, बहुत महीन थे, जैसे किसी चीज़ का चूरा होता है ना, ऐसे थे। लेकिन चमक बहुत थी तो बापदादा ने सबके ऊपर डाला। तो चमकती हुई बॉडी थी ना तो उसके ऊपर वह भिन्न-भिन्न रंग के हीरे पड़ने से बहुत सभी जैसे सज गये। लाल, पीला, हरा... जो सात रंग कहते हैं ना। तो सात ही रंग थे। तो बहुत सभी ऐसे चमक गये जो सतयुग में भी ऐसी ड्रेस नहीं होगी। सब मौज में तो थे ही। फिर एक दो को भी डालने लगे। रमणीक बहनें भी तो बहुत थी ना। बहुत-बहुत मौज मनाई। मौज के बाद क्या होता है? बापदादा ने इन एडवान्स सबको भोग खिलाया, आप तो कल भोग लगायेंगे ना लेकिन बापदादा ने मधुबन का, संगमयुग का भिन्न-भिन्न भोग सबको खिलाया और उसमें विशेष होली का भोग कौन-सा है? (घेवर-जलेबी) आप लोग गुलाब का फूल भी तलते हैं ना। तो वैरायटी संगमयुग के ही भोग खिलाये। आपसे पहले भोग उन्होंने ले लिया है, आपको कल मिलेगा। अच्छा। मतलब तो बहुत मनाया, नाचा, गाया। सभी ने मिलके वाह बाबा, मेरा बाबा, मीठा बाबा के गीत गाया। तो नाचा, गाया, खाया और लास्ट क्या होता है? बधाई और विदाई। तो आपने भी मनाया कि सिर्फ सुना? लेकिन पहले अभी फरिश्ता बन प्रकाशमय काया वाले बन जाओ। बन सकते हो या नहीं? मोटा शरीर है? नहीं। सेकण्ड में चमकता हुआ डबल लाइट का स्वरूप बन जाओ। बन सकते हो? बिल्कुल फरिश्ता! (बापदादा ने सभी को ड्रिल कराई)

अभी अपने ऊपर भिन्न-भिन्न रंगों के चमकते हुए हीरे सूक्ष्म शरीर पर डालो और सदा ऐसे दिव्य गुणों के रंग, शक्तियों के रंग, ज्ञान के रंग से स्वयं को रंगते रहो। और सबसे बड़ा रंग बापदादा के संग के रंग में सदा रंगे रहो। ऐसे अमर भव। अच्छा।

ऐसे देश-विदेश के फरिश्ते स्वरूप बच्चों को, सदा साफ दिल, प्राप्ति सम्पन्न बच्चों को, सच्ची होली मनाना अर्थात् अर्थ सहित चित्र प्रत्यक्ष रूप में लाने वाले बच्चों को, सदा निर्माण और निर्मान का बैलेन्स रखने वाले बच्चों को, सदा दुआओं के पुण्य का खाता जमा करने वाले बच्चों को बहुत-बहुत पद्मगुणा यादप्यार और नमस्ते।

इस्टर्न और तामिलनाडु ज़ोन सेवा में आया है - अच्छा इस ग्रुप में बंगाल, बिहार, आसाम, नेपाल, उड़ीसा और साथ में तामिलनाडु भी है। तो जो भी इस्टर्न ज़ोन में सब मिलकर सेवा में आये हैं तो यह सेवा का भाग्य भी बहुत अच्छा चांस मिला है। यह सेवा का चांस सर्व ब्राह्मणों के सन्तुष्टता की दुआयें लेने का भाग्य है। तो इस ग्रुप को सबसे ज्यादा आत्माओं की दुआओं का भाग्य मिला है। इस बारी ज्यादा संख्या आई है ना! तो वेलकम किया? थक तो नहीं गये? बहुत संख्या देख करके घबराये तो नहीं? खुश हुए? लास्ट टर्न सदा बड़ा होता ही है। एक तो सीज़न अच्छा हो जाता है, सर्दा कम हो जाती है, तो अच्छा चांस मिला है। तो दिल से वेलकम किया ना? दिल से वेलकम करना अर्थात् दुआ लेना। अच्छा है। अभी-अभी पुरूषार्थ किया और अभी-अभी सर्व के दुआओं का फल मिला। प्रत्यक्ष फल मिलता है, अगर दिल से किया तो। मुहब्बत से किया, उसका प्रत्यक्ष फल है - दिल की प्रसन्नता। तो बहुत अच्छा किया। मुबारक हो। सबने मिलकर किया और अभी तो आने की सीजन के बाद कल से जाने की सीजन है। अच्छा। जो सेवा में आये हैं वह हाथ उठाओ। मज़ा आया ना। तो सदा कोई-न-कोई सेवा में मज़ा लेते रहना। अच्छा। तामिलनाडु के सेवाधारी हाथ उठाओ। नेपाल के सेवाधारी हाथ उठाओ। नेपाल की रिज़ल्ट अच्छी है। ऐसे ही तामिलनाडु के सेवा की रिज़ल्ट अच्छी है। हैं छोटे लेकिन सेवा के सफलता की रिज़ल्ट मोटी है। अच्छा।

मीटिंग में आये हुए भाई-बहनों से - मीटिंग में कोई-न-कोई नवीनता तो निकालेंगे ही। लेकिन एक विशेष ध्यान रखना कि अभी जो बापदादा ने पहले भी इशारा दिया था कि हर ज़ोन अपने सेवा के सहयोगी सम्पर्क वाले जो सेवा के निमित्त बनने वाले हो, ऐसा गुलदस्ता मधुबन में तैयार करके लाओ। चाहे कोई भी वर्ग के हों, लेकिन ऐसी विशेष आत्मायें हों जो समय प्रति समय सहयोगी बनने के निमित्त बन सकती हों। ऐसे सेवा कराने अर्थ निमित्त बने हुए आत्माओं को सामने लाओ। बापदादा के सामने नहीं, मधुबन में पहले लाओ ग्रुप बनाके। फिर वह जितना आगे बढ़ेंगे तो समीप आयेंगे। तो इस बात पर विशेष अटेन्शन देकर, चारों ओर का देश-विदेश सब तरफ का ग्रुप सामने आना चाहिए। कर सभी रहे होंगे, लेकिन सामने आना चाहिए और उस ग्रुप द्वारा आपकी सेवा ज्यादा से ज्यादा बढ़ेगी क्योंकि संगठन में आने से उनको बल मिलेगा। फैमिली मेम्बर अनुभव करते जायेंगे और साथ-साथ मन्सा सेवा के ऊपर विशेष आपस में ग्रुप बनाकर एक तो स्पष्ट करना और दूसरा उस ग्रुप को समय प्रति समय आपस में मिलकर मन्सा सेवा के वृत्ति का प्लैन बनाना चाहिए। रिज़ल्ट निकालनी चाहिए क्योंकि समय प्रमाण, सरकमस्टांश प्रमाण अभी मन्सा सेवा की बहुत-बहुत आवश्यकता होगी। जैसे आप लोगों ने भिन्न-भिन्न वर्ग तो बनाये हैं, लेकिन हर वर्ग का ऐसा सहयोगी ग्रुप तैयार होना चाहिए, जो गवर्मेन्ट के सामने अब तक क्या-क्या सेवा की है, कितनों में परिवर्तन लाया है, प्रैक्टिकल रिज़ल्ट क्या निकली है - हर वर्ग की, वह गवर्मेन्ट के सामने आनी चाहिए। तो गवर्मेन्ट भी समझे कि यह आलराउण्ड सेवाधारी हैं। सिर्फ रिलीज़स नहीं हैं लेकिन आलराउण्ड सेवाधारी हैं। जो भी सेवा हो, गवर्मेन्ट को दो, तो गवर्मेन्ट ग्रुप की रिज़ल्ट देखकर आप लोगों को आफर करेगी कि आप लोग इस कार्य में सहयोगी बनो। अभी गवर्मेन्ट के सामने प्रैक्टिकल नक्शा नहीं आया है, सेवा बहुत कर रहे हो, लेकिन सबकी आंखे खुलें, टी.वी. में, पेपर्स में आये कि ब्रह्माकुमारियां यह-यह सेवा का परिणाम लेकर गवर्मेन्ट के सामने आई, तो प्रैक्टिकल परिणाम निकाल कर दिखाओ। यह छोटे-छोटे विघ्न सब खत्म हो जायेंगे। अभी तक यही समझते हैं कि यह धार्मिक संस्था है। सोशल भी है, एज्युकेशनल भी है और सब वर्ग के निमित्त है, सारी सृष्टि के भिन्न-भिन्न वर्गो को परिवर्तन करने वाली है, इतनों को शराब छुड़ाते हो, हेल्थ मेले करते हो, गवर्मेन्ट के आगे क्या रिजल्ट है? एक समाचार यहाँ रिपोर्ट छपाकर भेज देंगे, इससे नहीं पता पड़ता है। प्रैक्टिकल स्टेज पर आने के प्लैन बनाओ। फंक्शन करो, प्रदर्शनियां करो, खूब करो लेकिन उसकी रिज़ल्ट सभी की नज़र में आनी चाहिए। जितनी आप लोगों की सेवा है और जितनी रिज़ल्ट है उस अनुसार और कोई संस्था इतनी सेवा नहीं करती। भिन्न-भिन्न वर्गो में, भिन्न-भिन्न गाँवों में और बिना खर्चे के दिल से, स्नेह से सेवा करते हो, लेकिन गुप्त है। समझा। समझदार तो हो ही तब तो मीटिंग में आते हो। अच्छा।

डबल फारेनर्स से - अच्छा गुप है और बापदादा को डबल फारेनर्स को देख अपना एक नाम याद आता है? कौन सा नाम? विश्व-कल्याणकारी। आप नहीं थे ना, तो बापदादा भारत-कल्याणकारी था, जब से आप आये हो तो बापदादा विश्व-कल्याणकारी हो गया। तो कमाल किसकी? आपकी कमाल है ना! और मेहनत भी अच्छी कर रहे हो। आपका जो साकार में बैकबोन है ना। वह बहुत होशियार है। बैठने नहीं देता है। कोई भी कोना छूट नहीं जाए, यह लगन अच्छी है। सिर्फ सेवा में निर्विघ्नता - यह सेवा की सफलता है। कोई भी सेवा शुरू करते हो, चाहे देश में, चाहे विदेश में बापदादा यही कहते हैं कि पहले एकमत, एक बल, एक भरोसा और एकतासाथि यों में, सेवा में, वायुमण्डल में हो। जैसे नारियल तोड़कर उद्घाटन करते हो, रिबन काटकर उद्घाटन करते हो, तो पहले इन चार बातों की रिबन काटो और फिर सर्व के सन्तुष्टता, प्रसन्नता का नारियल तोड़ो। यह पानी धरनी में डालो। जो भी कार्य की धरनी है, उसमें पहले यह नारियल का पानी डालो फिर देखो सफलता कितनी होती है। नहीं तो कोई-न-कोई विघ्न ज़रूर आता है। सेवा सब करते हो लेकिन नम्बर बापदादा के पास रजिस्टर में नोट उसका होता है जो निर्विघ्न सेवाधारी है। बापदादा के पास ऐसे सेवाधारियों की लिस्ट है, लेकिन अभी बहुत थोड़ी है लम्बी नहीं हुई है, भाषण करने वालों की लिस्ट भी आपके पास लम्बी है, बापदादा उसको भाषण करने वाला कहता है जो पहले भासना दे, फिर भाषण करे। भाषण तो आजकल स्कूल कालेज के लड़के-लड़कियां बहुत अच्छा करते हैं, तालियां बजती रहती हैं। लेकिन बापदादा के पास लिस्ट वह है जो निर्विघ्न सबकी प्रसन्नता, सन्तुष्टता वाले हों। इसीलिए माला में हाथ नहीं उठाया। तो डबल विदेशियों के सेवा में कोई इतना विघ्न आपस में नहीं आता है, लेकिन थोड़े-थोड़े मन के विघ्न आते हैं। बाकी मैजारिटी ठीक हैं। मन के संकल्प, मन की स्थिति अचल, अडोल। सुना - डबल विदेशी अच्छी सेवा कर रहे हो। वृद्धि करने की बधाई हो। अच्छा।

दिल्ली में भवन निर्माण के बारे में

आप सबके शुद्ध संकल्प के आधार पर, आप सबकी राजधानी में स्थान ले लिया है। अभी उसको बेहद का स्थान बनाना है। जैसे मधुबन को हर एक समझता है, हमारा मधुबन। ऐसे जो भी देखे, जो भी आये, अनुभव करे - हमारा है। दिल्ली का है, फलाने का है, फलानी का है, नहीं। बेहद सेवा के लिए है। बेहद की वृत्ति, बेहद की भावना और नारियल भी तोड़ना जो बताया, और रिबन भी कांटना, उसी विधि से यह उद्घाटन करना। ठीक है ना। (नाम क्या रखें) अभी फाउण्डेशन तो पड़े। बेहद सेवा, बेहद का फल देता रहेगा। सभी को खुशी है ना। अच्छा है।

अच्छा - ओमशान्ति। 



30-03-2000   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


मन को दुरूस्त रखने के लिए बीच-बीच में 5 सेकेण्ड भी निकाल कर मन की एक्सरसाइज़ करो

आज दूरदेशी बापदादा अपने साकार दुनिया के भिन्न-भिन्न देशवासी बच्चों से मिलने आये हैं। बापदादा भिन्न-भिन्न देशवासियों को एक देशवासी देख रहे हैं। चाहे कोई कहाँ से भी आये हो लेकिन सबसे पहले सभी एक ही देश से आये हो। तो अपना अनादि देश याद है ना! प्यारा लगता है ना! बाप के साथ-साथ अपना अनादि देश भी बहुत प्यारा लगता है ना!

बापदादा आज सभी बच्चों के पाँच स्वरूप देख रहे हैं, जानते हो पांच स्वरूप कौन से हैं? जानते हो ना! 5 मुखी ब्रह्मा का भी पूजन होता है। तो बापदादा सभी बच्चों के 5 स्वरूप देख रहे हैं।

पहला - अनादि ज्योतिबिन्दु स्वरूप। याद है ना अपना स्वरूप? भूल तो नहीं जाते? दूसरा है - आदि देवता स्वरूप। पहुँच गये देवता स्वरूप में? तीसरा - मध्य में पूज्य स्वरूप, वह भी याद है? आप सबकी पूजा होती है या भारतवासियों की होती है? आपकी पूजा होती है? कुमार सुनाओ आपकी पूजा होती है? तो तीसरा है पूज्य स्वरूप। चौथा है - संगमयुगी ब्राह्मण स्वरूप और लास्ट में है फरिश्ता स्वरूप। तो 5 ही रूप याद आ गये? अच्छा एक सेकण्ड में यह 5 ही रूपों में अपने को अनुभव कर सकते हो? वन, टू, थ्री, फोर, फाइव... तो कर सकते हो! यह 5 ही स्वरूप कितने प्यारे हैं? जब चाहो, जिस भी रूप में स्थित होने चाहो, सोचा और अनुभव किया। यही रूहानी मन की एक्सरसाइज़ है। आजकल सभी क्या करते हैं? एक्सरसाइज़ करते हैं ना! जैसे आदि में भी आपकी दुनिया में (सतयुग में) नेचुरल चलते-फिरते की एक्सरसाइज़ थी। खड़े होकर के वन, टू, थ्री.... एक्सरसाइज़ नहीं। तो अभी अन्त में भी बापदादा मन की एक्सरसाइज़ कराते हैं। जैसे स्थूल एक्सरसाइज़ से तन भी दुरूस्त रहता है ना! तो चलते-फिरते यह मन की एक्सरसाइज़ करते रहो। इसके लिए टाइम नहीं चाहिए। 5 सेकण्ड कभी भी निकाल सकते हो या नहीं! ऐसा कोई बिज़ी है, जो 5 सेकण्ड भी नहीं निकाल सके! है कोई, तो हाथ उठाओ। फिर तो नहीं कहेंगे - क्या करें टाइम नहीं मिलता? यह तो नहीं कहेंगे ना! टाइम मिलता है? तो यह एक्सरसाइज़ बीच-बीच में करो। किसी भी कार्य में हो 5 सेकण्ड की यह मन की एक्सरसाइज़ करो। तो मन सदा ही दुरूस्त रहेगा, ठीक रहेगा। बापदादा तो कहते हैं - हर घण्टे में यह 5 सेकण्ड की एक्सरसाइज़ करो। हो सकती है? देखो, सभी कह रहे हैं - हो सकती है। याद रखना। ओमशान्ति भवन याद रखना, भूलना नहीं। तो जो मन की भिन्न-भिन्न कम्पलेन है ना! क्या करें मन नहीं टिकता! मन को मण बना देते हो। वज़न करते हैं ना! पहले जमाने में पाव, सेर और मण होता था, आजकल बदल गया है। तो मन को मण बना देते हैं बोझ वाला और यह एक्सरसाइज़ करते रहेंगे तो बिल्कुल लाइट हो जायेंगे। अभ्यास हो जायेगा। ब्राह्मण शब्द याद आये तो ब्राह्मण जीवन के अनुभव में आ जाओ। फरिश्ता शब्द कहो तो फरिश्ता बन जाओ। मुश्किल है? नहीं है? कुमार बोलो थोड़ा मुश्किल है? आप फरिश्ते हो या नहीं? आप ही हो या दूसरे हैं? कितने बार फरिश्ता बने हो? अनगिनत बार बने हो। आप ही बने हो? अच्छा। अनगिनत बार की हुई बात को रिपीट करना क्या मुश्किल होता है? कभी-कभी होता है? अभी यह अभ्यास करना। कहाँ भी हो 5 सेकण्ड मन को घुमाओ, चक्कर लगाओ। चक्कर लगाना तो अच्छा लगता है ना! टीचर्स ठीक है ना! राउण्ड लगाना आयेगा ना? बस राउण्ड लगाओ फिर कर्म में लग जाओ। हर घण्टे में राउण्ड लगाया फिर काम में लग जाओ क्योंकि काम को तो छोड़ नहीं सकते हैं ना! ड्युटी तो बजानी है। लेकिन 5 सेकण्ड, मिनट भी नहीं, सेकण्ड। नहीं निकल सकता है? निकल सकता है? यू. एन. की आफिस में निकल सकता है? मास्टर सर्वशक्तिवान हो। तो मास्टर सर्वशक्तिवान क्या नहीं कर सकता!

बापदादा को एक बात पर बच्चों को देख करके मीठी-मीठी हँसी आती है। किस बात पर? चैलेन्ज करते हैं, पर्चा छपाते हैं, भाषण करते हैं, कोर्स कराते हैं। क्या कराते हैं? हम विश्व को परिवर्तन करेंगे। यह तो सभी बोलते हैं ना! या नहीं? सभी बोलते हैं या सिर्फ भाषण करने वाले बोलते हैं? तो एक तरफ कहते हैं विश्व को परिवर्तन करेंगे, मास्टर सर्वशक्तिवान हैं! और दूसरे तरफ अपने मन को मेरा मन कहते हैं, मालिक हैं मन के और मास्टर सर्वशक्तिवान हैं। फिर भी कहते हैं मुश्किल है? तो हँसी नहीं आयेगी! आयेगी ना हंसी! तो जिस समय सोचते हो, मन नहीं मानता, उस समय अपने ऊपर मुस्कराना। मन में कोई भी बात आती है तो बापदादा ने देखा है तीन लकीरें गाई हुई हैं। एक पानी पर लकीर, पानी पर लकीर देखी है, लगाओ लकीर तो उसी समय मिट जायेगी। लगाते तो है ना! तो दूसरी है किसी भी कागज पर, स्लेट पर कहाँ भी लकीर लगाना और सबसे बड़ी लकीर है पत्थर पर लकीर। पत्थर की लकीर मिटती बहुत मुश्किल है। तो बापदादा देखते हैं कि कई बार बच्चे अपने ही मन में पत्थर की लकीर के मुआफ़िक पक्की लकीर लगा देते हैं। जो मिटाते हैं लेकिन मिटती नहीं है। ऐसी लकीर अच्छी है? कितना वारी प्रतिज्ञा भी करते हैं, अब से नहीं करेंगे। अब से नहीं होगा। लेकिन फिर-फिर परवश हो जाते हैं। इसलिए बापदादा को बच्चों पर घृणा नहीं आती है, रहम आता है। परवश हो जाते हैं। तो परवश पर रहम आता है। जब बापदादा ऐसे रहम भाव से बच्चों को देखते हैं तो ड्रामा के पर्दे पर क्या आ जाता है? कब तक? तो इसका उत्तर आप दो। कब तक? कुमार दे सकते हैं - कब तक यह समाप्त होगा? बहुत प्लैन बनाते हो ना कुमार! तो कब तक, बता सकते हो? आखिर भी यह कब तक? बोलो। जवाब आता है कब तक? दादियां सुनाओ। (जब तक संगमयुग है तब तक थोड़ा-थोड़ा रहेगा) तो संगमयुग भी कब तक? (जब फरिश्ता बन जायेंगे) वह भी कब तक? (बाबा बतायें) फरिश्ता बनना आपको है या बाप को? तो इसका जवाब सोचना। बाप तो कहेंगे अब, तैयार हैं? आधी माला में भी हाथ नहीं उठाया।

बापदादा सदा ही बच्चों को सम्पन्न स्वरूप में देखने चाहते हैं। जब कहते ही हो, बाप ही मेरा संसार है। यह तो सब कहते हो ना! दूसरा भी कोई संसार है क्या? बाप ही संसार है, तो संसार के बाहर और क्या है? सिर्फ संस्कार परिवर्तन करने की बात है। ब्राह्मणों के जीवन में मैजारिटी विघ्न रूप बनता है - संस्कार। चाहे अपना संस्कार, चाहे दूसरों का संस्कार। ज्ञान सभी में है, शक्तियां भी सभी के पास हैं। लेकिन कारण क्या होता है? जो शक्ति, जिस समय कार्य में लानी चाहिए, उस समय इमर्ज होने के बजाए थोड़ा पीछे इमर्ज होती हैं। पीछे सोचते हैं कि यह न कहकर यह कहती तो बहुत अच्छा। यह करने के बजाए यह करती तो बहुत अच्छा। लेकिन जो समय पास होने का था वह तो निकल जाता है, वैसे सभी अपने में शक्तियों को सोचते भी रहते हो, सहनशक्ति यह है, निर्णय शक्ति यह है, ऐसे यूज़ करना चाहिए। सिर्फ थोड़े समय का अन्तर पड़ जाता है। और दूसरी बात क्या होती है? चलो एक बार समय पर शक्ति कार्य में नहीं आई और बाद में महसूस भी किया कि यह न करके यह करना चाहिए था। समझ में आ जाता है पीछे। लेकिन उस गलती को एक बार अनुभव करने के बाद आगे के लिए अनुभवी बन उसको अच्छी तरह से रियलाइज़ कर लें जो दुबारा नहीं हो। फिर भी प्रोग्रेस हो सकती है। उस समय समझ में आता है - यह रांग है, यह राइट है। लेकिन वही गलती दुबारा नहीं हो, उसके लिए अपने आपसे अच्छी तरह से रियलाइज़ेशन करना, उसमें भी इतना फुल परसेन्ट पास नहीं होते। और माया बड़ी चतुर है, वही बात मानो आपमें सहनशक्ति कम है, तो ऐसी ही बात जिसमें आपको सहनशक्ति यूज़ करना है, एक बार आपने रियलाइज़ कर लिया, लेकिन माया क्या करती है कि दूसरी बारी थोड़ा-सा रूप बदली करके आती है। होती वही बात है लेवि्ान जैसे आजकल के ज़माने में चीज़ वही पुरानी होती है लेकिन पालिश ऐसी कर देते हैं जो नई से भी नई दिखाई दे। तो माया भी ऐसे पालिश करके आती है जो बात का रहस्य वही होता है, मानों आपमें ईर्ष्या आ गई। ईर्ष्या भी भिन्न-भिन्न रूप की है, एक रूप की नहीं है। तो बीज ईर्ष्या का ही होगा लेकिन और रूप में आयेगी। उसी रूप में नहीं आती है। तो कई बार सोचते हैं कि यह बात पहले वाली तो वह थी ना, यह तो बात ही दूसरी हुई ना। लेकिन बीज वही होता है सिर्फ रूप परिवर्तित होता है। उसके लिए कौन-सी शक्ति चाहिए? - `परखने की शक्ति।' इसके लिए बापदादा ने पहले भी कहा है कि दो बातों का अटेन्शन रखो। एक -सच्ची दिल। सच्चाई। अन्दर नहीं रखो। अन्दर रखने से गैस का गुब्बारा भर जाता है और आखिर क्या होगा? फटेगा ना! तो सच्ची दिल - चलो आत्माओं के आगे थोड़ा संकोच होता है, थोड़ा शर्म-सा आता है - पता नहीं मुझे किस दृष्टि से देखेंगे। लेकिन सच्ची दिल से, महसूसता से बापदादा के आगे रखो। ऐसे नहीं मैंने बापदादा को कह दिया, यह गलती हो गई। जैसे आर्डर चलाते हैं - हाँ, मेरे से यह गलती हो गई, ऐसे नहीं। महसूसता की शक्ति से, सच्ची दिल से, सिर्फ दिमाग से नहीं लेकिन दिल से अगर बापदादा के आगे महसूस करते हैं तो दिल खाली हो जायेगी, किचड़ा खत्म। बातें बड़ी नहीं होती है, छोटी ही होती है लेकिन अगर आपकी दिल में छोटी-छोटी बातें भी इकट्ठी होती रहती हैं तो उनसे दिल भर जाती है। खाली तो नहीं रहती है ना! तो दिल खाली नहीं तो दिलाराम कहाँ बैठेगा! बैठने की जगह तो हो ना! तो सच्ची दिल पर साहेब राज़ी। जो हूँ, जैसी हूँ, जो हूँ, जैसा हूँ, बाबा आपका हूँ। बापदादा तो जानते ही हैं कि नम्बरवार तो होने ही हैं। इसीलिए बापदादा उस नज़र से आपको नहीं देखेगा। लेकिन सच्ची दिल और दूसरा कहा था - सदा बुद्धि की लाइन क्लीयर हो। लाइन में डिस्टर्बेंस नहीं हो, कटआफ नहीं हो। बापदादा जो एक्स्ट्रा समय पर शक्ति देने चाहते हैं, दुआयें देने चाहते हैं, एक्स्ट्रा मदद देने चाहते हैं, अगर डिस्टर्बेंस होगी तो वह मिल नहीं सकेगी। लाइन क्लीयर ही नहीं है, क्लीन नहीं है, कटआफ है, तो यह जो प्राप्ति होनी चाहिए वह नहीं होती। कई बच्चे कहते हैं, कहते नहीं हैं तो सोचते हैं - कोई-कोई आत्मा को बहुत सहयोग मिलता, ब्राह्मणों का भी मिलता, बड़ों का भी मिलता, बापदादा का भी मिलता, हमको कम मिलता है। कारण क्या? बाप तो दाता है, सागर है, जितना जो लेने चाहे बापदादा के भण्डारे में ताला-चाबी नहीं है, पहरेदार नहीं है। बाबा कहा, जी हाज़र। बाबा कहा - लो। दाता है ना। दाता भी है और सागर भी है। तो क्या कमी होगी? इन्हीं दो बातों की कमी होती है। एक सच्ची दिल, साफ दिल हो, चतुराई नहीं करो। चतुराई बहुत करते हैं। भिन्न-भिन्न प्रकार की चतुराई करते हैं। तो साफ दिल, सच्ची दिल और दूसरा बुद्धि की लाइन सदा चेक करो क्लीयर है और क्लीन है? आजकल के साइन्स के साधनों में भी देखते हो ना थोड़ी भी डिस्टर्बेंस क्लीयर नहीं करने देती। तो यह ज़रूर करो।

और विशेष बात - इस सीज़न का लास्ट टर्न है ना इसलिए बता रहे हैं, डबल विदेशियों के लिए ही नहीं है, सबके लिए है। लास्ट टर्न में आप सामने बैठे हो तो आपको ही कहना पड़ता है। बापदादा ने देखा है कि एक संस्कार या नेचर कहो, नेचर तो हर एक की अपनी-अपनी है लेकिन सर्व का स्नेही और सर्व बातों में, सम्बन्ध में सफल, मन्सा में विजयी और वाणी में मधुरता तब आ सकती है जब इज़ी नेचर हो। अलबेली नेचर नहीं। अलबेलापन अलग चीज़ है। इज़ी नेचर उसको कहा जाता है - जैसा समय, जैसा व्यक्ति, जैसा सरकमस्टांश उसको परखते हुए अपने को इज़ी कर देवे। इज़ी अर्थात् मिलनसार। टाइट नेचर बहुत टू-मच ऑफिशियल नहीं, ऑफिशियल रहना अच्छा है लेकिन टू-मच नहीं और समय पर जब समय ऐसा है, उस समय अगर कोई ऑफिशियल बन जाता है तो वह गुण के बजाए, उनकी विशेषता उस समय नहीं लगती। अपने को मोल्ड कर सके, मिलनसार हो सके, छोटा हो, बड़ा हो। बड़े से बड़ेपन में चल सके, छोटे से छोटेपन में चल सके। साथियों में साथी बनके चल सके, बड़ों से रिगार्ड से चल सके। इज़ी मोल्ड कर सके, शरीर भी इजी रखते हैं ना तो जहाँ भी चाहें मुड जाते हैं और टाइट होगा तो मुड नहीं सकेगा। अलबेला भी नहीं, इज़ी है तो जहाँ चाहे इज़ी हो जाए, अलबेला हो जाए। नहीं। बापदादा ने कहा ना इजी हो जाओ तो इज़ी हो गये, ऐसे नहीं करना। इज़ी नेचर अर्थात् जैसा समय वैसा अपना स्वरूप बना सके। अच्छा –

डबल विदेशियों को अच्छा चांस मिला है। देखो, मधुबन वालों को भी इस सीज़न में चांस नहीं मिला है लेकिन विदेशियों को दो टर्न मिले हैं। लाडले हो गये ना! बापदादा को भी डबल विदेशी प्रिय लगते हैं क्योंकि हिम्मत रख अच्छे आगे बढ़ रहे हैं। हिम्मत अच्छी रखते हैं। हिम्मत वाले हो ना! कन्फ्यूज़ होने वाले तो नहीं हो ना! कन्फ्यूज़ होते हो? छोटी-छोटी बात पर कन्फ्यूज़ होते हो? हाँ नहीं कह रहे हैं। बापदादा ने देखा है कि पहले बहुत ज्यादा कन्फ्यूज़ होते थे, अभी फर्क है। हिम्मत अच्छी रखते हैं और हिम्मत होने के कारण बाप की मदद भी है। फर्क है ना? पहले से फर्क है ना! अभी कथायें कम होती हैं ना! लम्बी बातें नहीं करो। बात जरूर करो, दिल में नहीं रखो लेकिन शार्ट में करो। ज्यादा विस्तार जो 10 शब्द में स्पष्ट करो, वह 2- 3 शब्दों में बोल सकते हो क्योंकि बढ़ने तो हैं ही ना! अभी भी देखो बढ़ गये हैं ना! डबल फारेन की संख्या बढ़ गई है ना! और बढ़ने तो हैं ही। तो जब बढ़ते जाते हैं तो जरूर शार्ट करना पड़ेगा ना! फिर भी काफी हद तक साफ दिल भी रहते हैं, छिपाते कम हैं। बापदादा साफ दिल उसे कहते हैं - जिसमें स्वभाव-संस्कार, बोल, मन्सा संकल्प, ज़रा भी पुराना किचड़ा नहीं हो। ऐसा दिन कब आयेगा जो कोई भी चाहे भारतवासी, चाहे डबल फारेनर आवे, मिले और सिर्फ लाइन में सब कहें ओ.के., ओ.के.... आयेगा ऐसा दिन? जैसे आप लोगों ने अप्लीकेशन की है कि सेकण्ड-सेकण्ड दृष्टि लेते जाएं। तो बापदादा फिर कहते हैं आज तो आप लोगों की आशा पूर्ण करेंगे लेकिन ऐसा भी दिन लाओ, चाहे दादियों के पास, चाहे बापदादा के सामने, ऐसे लाइन में सब दिल से कहें, ओ.के.। यह हो सकता है? कुमार हो सकता है? (पूरी सभा से पूछा) तो यह खुशखबरी बहुत अच्छी है। तो कब होगा? फिर यह क्वेश्चन आता है कब? बताओ, आप लोग जो बड़े भाई हैं वह बताओ डेट कब? (अब)।

अच्छा - बापदादा समय देता है। अब कहेंगे तो सोचेंगे कि यह बात तो मेरे में है, यह निकालकर आयेंगे। लेकिन दूसरी सीज़न में ऐसी लाइन लगायें। 6 मास तो हैं, 8 मास हो जाते हैं। यह मंजूर है? मन से ओ.के. ऐसे नहीं ओ.के. ओ.के कहते जाओ... कुमारों में जो तैयार हैं वह हाथ उठाओ। आधे हैं, आधे नहीं हैं तो जिन्होंने हाथ नहीं उठाया उन्हों को कितना टाइम चाहिए? पूरा साल चाहिए? एक वर्ष में तैयार हो जायेंगे? एक वर्ष में जो तैयार हो जायेंगे वह हाथ उठाओ। अच्छा - एक मास चाहिए? जिन्होंने हाथ नहीं उठाया - वह चिटकी लिखकर दे देवें कितना समय चाहिए? ठीक है। अच्छा - बहनें तैयार हैं तो हाथ उठाओ। अच्छा जो कहते हैं अभी तैयार हैं, वह हाथ उठाओ। (बापदादा सर्टिफिकेट देंगे तो) बापदादा तो माला पहना देंगे। माला पहननी चाहिए ना? फारेन के पास-विद्-आनर बन गये तो माला में तो आ जायेंगे ना। तो माला जल्दी तैयार हो जायेगी। पक्के हैं ना! कच्चे नहीं बनना! अच्छा है। जो हिम्मत रखता है उसको एक्स्ट्रा मदद जरूर मिलती है। देखो जिनको दादियाँ कहते हो, वह दादियाँ कैसे बनी? हिम्मत रखी और अपने से पक्की प्रतिज्ञा की, हमको करना ही है, बनना ही है। तो आज दादियों की लिस्ट में हैं ना! तो डबल फारेनर्स को 108 की माला में आगे रखेंगे, तैयार हो जाओ। विजय माला में आने वाले दाने की सेरीमनी करेंगे। कोई भी आवे, सिर्फ आगे बैठने वाले नहीं, कोई भी आवे। बापदादा सेरीमनी करेंगे, विजयी रत्न। आगे वाले सब आना। आना है ना! कहो क्यों नहीं आयेंगे। हम नहीं आयेंगे तो कौन आयेगा! नशा रखो, निश्चय रखो तो क्या बड़ी बात है। बाप के बन तो गये, अभी वापस तो जाना नहीं है। अगर वापस भी जायेंगे तो न उस दुनिया के रहेंगे, न इस दुनिया के। इसलिए वापस तो जाना नहीं है। आगे ही बढ़ना है। जब संसार ही बाप हो गया, बाकी रहा ही क्या! बापदादा को डबल फारेनर्स में बहुत-बहुत श्रेष्ठ उम्मीदें हैं, आशायें हैं कि डबल फारेनर्स में से ऐसे रत्न निकलेंगे जो लास्ट सो फास्ट की लिस्ट में आयेंगे, फास्ट सो फर्स्ट। भारत वाले भी आयेंगे लेकिन आज डबल फारेनर्स सामने बैठे हैं इसलिए उन्हों को कह रहे हैं। लास्ट सो फास्ट और फर्स्ट तो कितनी कमाल होगी। होनी तो है ही। सिर्फ कौन आगे आता है, वह प्रत्यक्ष होंगे। होना तो है ही। सेन्टर निवासी क्या समझते हो? फास्ट आयेंगे? बहुत अच्छा। बापदादा को खुशी है कि हिम्मत वाले अवश्य विजयी होने ही हैं। होंगे या नहीं होंगे, नहीं। होने ही हैं। तो ऐसी उम्मींद अपने में है?

सबसे ज्यादा दूरदेश से कौन आया है? ज्यादा दूरदेशी बापदादा है या आप? कितना भी आप कहो बहुत दूर से आये हैं, बापदादा से तो दूर कोई नहीं। तो सन्तुष्ट हैं? डबल फारेनर्स सन्तुष्ट हुए? स्पेशल मिला, खुश हैं? फिर तो नहीं कहेंगे यह हुआ, यह नहीं हुआ। अच्छा।

भारतवासी हाथ उठाओ जो यहाँ बैठे हैं। मधुबन वाले हाथ उठाओ। मधुबन वाले तो होशियार हैं।

मधुबन वालों का उल्हना रहा हुआ है कि टोली नहीं मिली है। तो बापदादा कहते हैं कि इस सीज़न में आप बापदादा द्वारा दिलखुश मिठाई खा लो। मधुबन वाले, शान्तिवन वाले, ज्ञान सरोवर है, हॉस्पिटल है, इन्हों का प्लैन बापदादा के पास है, कम्पलेन नहीं रहेगी। मधुबन वालों को तो खुश करना है ना, नहीं तो आप कैसे आयेंगे। इन्हों का हिस्सा तो पहले लगता है, जितनी मेहनत करते हैं चारों ओर, तो मेहनत का प्रत्यक्षफल तो मिलना ही चाहिए। सिर्फ समय नहीं है बाकी बापदादा तो पहले मधुबन निवासियों को याद करते हैं।

सबसे नये देश से कौन आया है, जो देश पहली बार आया हो? (करेबियन की तरफ से - क्वेट, कुरूसव, इजिप्ट) मुबारक हो। कोई भी परिवार में नये बच्चे पैदा होते हैं तो मुबारक देते हैं। आपके परिवार में भी एड हुए हैं। खुशी है ना!

अच्छा - सामने सेन्टर्स पर रहने वाले बैठे हैं। हाथ उठाओ। सेन्टर पर रहने वाले तो पक्के हैं, यह स्टैम्प लगा ली है ना! आलमाइटी गवर्मेन्ट द्वारा ``सदा पक्के हैं'', यह स्टैम्प लगाई है? लग गई है या हल्की लगी है? मिटने वाली भी है? ऐसी तो नहीं है ना? जो भी सेन्टर पर रहने वाले हैं वह समझते हैं कि हम अन्त तक बापदादा के साथी रहेंगे और साथ चलेंगे। अभी साथी रहेंगे और फिर साथ चलेंगे। ऐसे हैं तो हाथ उठाओ, टी.वी. निकालो। आपके फोटो बापदादा वतन में सजाकर रखेंगे। बहुत अच्छा। इनएडवान्स अन्त तक मुबारक हो। अच्छा है ना! एक भी अगर साथी नीचे-ऊपर होता है तो अच्छा तो नहीं लगता है ना! तो सभी साथ चलेंगे। आगे पीछे नहीं जाना, साथ चलेंगे। अभी भी सेवा में साथ रहेंगे और साथ चलेंगे अपने घर में और फिर राज्य में ब्रह्मा बाप के साथ रहेंगे। पक्का है ना! क्या बनेंगी? कृष्ण की सखी बनेंगी? (बहन बनेंगी) अच्छा है ना? (बाबा पर्सनल सामने वालों से पूछ रहे हैं) अगर यहाँ साथ हैं तो वायदा है वहाँ भी रहेंगी, बाप वायदा देते हैं। अगर यहाँ हैं तो वहाँ गैरन्टी हैं। यह सभी साथ रहेंगे या दूर-दूर रहेंगे? कभी-कभी मिलने आयेंगे! श्रीकृष्ण के साथ पढ़ना, साथ रास करना, साथ घूमना... पाण्डव भी रास करेंगे या सिर्फ बहनें ही करेंगी? दोनों को चांस है, जो चाहे वह कर सकता है क्योंकि अभी सीट फिक्स नहीं हुई है। सिर्फ दो सीट फिक्स हैं। 3-4 से खाली हैं। एनाउन्स नहीं हुई हैं। नम्बर ले सकते हो। अच्छा – कुमारों ने अच्छी भट्ठी की। टीचर कौन था?

(विदेश के यूथ की रिट्रीट ज्ञान सरोवर में चली) अच्छा रहा? अच्छा सभी को देखकर सबसे ज्यादा खुशी किसको होती है? बापदादा को तो है ही, फिर दूसरा? हर एक कहेगा मेरे को। बहुत अच्छा। दादियों को बहुत खुशी है। थकाते तो नहीं हैं? ज्यादा खुशी दादियों को होती है या आप लोगों को होती है? (दोनों को होती है) अच्छा - अभी डबल फारेनर्स से पर्सनल मिले ना। चिटचैट भी की। दूर बैठे भी नज़दीक हैं।

टीचर्स बहुत हैं, अच्छा है डबल पार्ट बजा रहे हो। डबल पार्ट बजाने वालों को डबल मदद मिलती है। हिम्मत अच्छी है। अच्छा।

सभी को ड्रिल याद है या भूल गई? अभी-अभी सभी यह ड्रिल करो, लगाओ चक्कर। अच्छा।

चारों ओर के सर्व श्रेष्ठ आत्माओं को, चारों ओर से याद प्यार, समाचार भेजने वालों को बहुत अच्छे भिन्न-भिन्न सम्बन्ध से स्नेह के पत्र और अपना हालचाल लिखा है, सेवा समाचार उमंग, प्लैन बहुत अच्छे-अच्छे लिखे हैं, जो बापदादा को मिल ही गये। जिस प्यार से, मेहनत से लिखा है तो जिन्होंने भी लिखा है, वह हर एक अपने-अपने नाम से बापदादा का, दिलाराम का दिल से यादप्यार स्वीकार करें। बच्चों का प्यार बाप से और उससे पदमगुणा बाप का बच्चों से प्यार है और सदा अमर है। स्नेही बच्चे, न बाप से अलग हो सकते हैं, न बाप बच्चों से अलग हो सकते हैं। साथ हैं, साथ ही रहेंगे।

चारों ओर के सदा स्वयं को बाप समान बनाने वाले, सदा बाप के नयनों में, दिल में, मस्तक में समीप रहने वाले, सदा एक बाप के संसार में रहने वाले, सदा हर कदम में बापदादा को फालो करने वाले, सदा विजयी थे, विजयी हैं और विजयी रहेंगे - ऐसे निश्चय और नशे में रहने वाले, ऐसे अति श्रेष्ठ सिकीलधे, प्यारे ते प्यारे, सर्व बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

दादी जी और दादी जानकी बापदादा से गले मिल रही हैं

सभी खुश हो रहे हैं ना या सोचते कि हम भी दादियां होते! अच्छा है सभी का प्यार, यही दुआयें देता है। प्यार है इसलिए सभी को खुशी होती है। बस खुश रहना, कभी भी मूड आफ नहीं करना। सदा एकरस खुशनुम: चेहरा हो। जो भी देखे उसे रूहानी खुशी की अनुभूति हो। यह सेवा का साधन है। चेहरे पर रूहानी खुशी हो, साधारण खुशी नहीं, रूहानी खुशी। फेस चेंज नहीं हो। जैसे एकरस स्थिति, वैसे ही एकरस चेहरा हो। हो सकता है? एकरस मूड हो? हो सकता है या होना ही है? होगा ना अभी? कभी भी कोई भी अचानक आपका फोटो निकाले तो और कोई फोटो नहीं आवे, रूहानी मुस्कराहट का फोटो हो। चाहे कामकाज भी कर रहे हो, सर्विस का बहुत टेन्शन हो लेकिन चेहरे पर खुशी हो। फिर आपको ज्यादा मेहनत भी नहीं करनी पड़ेगी। एक घण्टा बोलने के बजाए अगर आपका रूहानी मुस्कान का चेहरा होगा तो वह एक घण्टे के बोलने की सेवा एक सेकण्ड में करेगा क्योंकि प्रत्यक्ष को प्रमाण देने की आवश्यकता नहीं होती है। जो भी मिले, जैसा भी मिले, गाली देने वाला मिले, इनसल्ट करने वाला मिले, इज्जत न रखने वाला मिले, मान-शान न देने वाला मिले, लेकिन आपका एकरस चेहरा, रूहानी मुस्कान। हो सकता है? कुमार हो सकता है? पाण्डव हो सकता है? और पुरूषार्थ से बच जायेंगे। मेहनत नहीं लगेगी। मुझे रूहानी मुस्कान ही मुस्कराना है। कुछ भी हो जाए, मुझे अपनी मुस्कान छोड़नी नहीं है, हो सकता है? सोच रहे हैं? (करके दिखायेंगे) बहुत अच्छा, मुबारक हो! जो सामने बैठे हैं उन्हों को तो करना ही पड़ेगा। अच्छा है ना - खुद भी खुश दूसरे भी खुश और चाहिए क्या? बापदादा तो खुश है ही, दादियां भी खुश।

(बाबा आप ऐसे ही मिलते रहें) और नहीं मिले तो खुशी गुम। आप सदा मुस्कराते रहें, बाप मिलता रहेगा। बहुत अच्छा।

ओमशान्ति।