11-11-2000   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


सम्पूर्णता की समीपता द्वारा प्रत्यक्षता के श्रेष्ठ समय को समीप लाओ

आज बापदादा अपने होलीएस्ट, हाइएस्ट, लकीएस्ट, स्वीटेस्ट बच्चों को देख रहे हैं। सारी विश्व में समय प्रति समय होलीएस्ट आत्मायें आती रही हैं। आप भी होलीएस्ट हो लेकिन आप श्रेष्ठ आत्मायें प्रकृतिजीत बन, प्रकृति को भी सतोप्रधान बना देती हो। आपके पवित्रता की पावर प्रकृति को भी सतोप्रधान पवित्र बना देती है। इसलिए आप सभी आत्मायें प्रकृति का यह शरीर भी पवित्र प्राप्त करती हो। आपके पवित्रता की शक्ति विश्व के जड़, चैतन्य, सर्व को पवित्र बना देती है इसलिए आपको शरीर भी पवित्र प्राप्त होता है। आत्मा भी पवित्र, शरीर भी पवित्र और प्रकृति के साधन भी सतोप्रधान पावन होते हैं। इसलिए विश्व में होलीएस्ट आत्मायें हो। होलीएस्ट हो? अपने को समझते हो कि हम विश्व की होलीएस्ट आत्मायें हैं? हाइएस्ट भी हो, क्यों हाइएस्ट हो? क्योंकि ऊँचे-ते-ऊँचे भगवान को पहचान लिया। ऊँचे-ते-ऊँचे बाप द्वारा ऊँचे-ते-ऊँची आत्मायें बन गये। साधारण स्मृति, वृत्ति, दृष्टि, कृति, सब बदलकर श्रेष्ठ स्मृति स्वरूप, श्रेष्ठ वृत्ति, श्रेष्ठ दृष्टि बन गई। किसी को भी मिलते हो तो किस वृत्ति से मिलते हो? ब्रदरहुड वृत्ति से, आत्मिक दृष्टि से, कल्याण की भावना से, प्रभू परिवार के भाव से। तो हाइएस्ट हो गये ना? बदल गये ना! और लकीएस्ट कितने हो? कोई ज्योतिषि ने आपके भाग्य की लकीर नहीं खींची है, स्वयं भाग्य विधाता ने आपके भाग्य की लकीर खींची। और गैरन्टी कितनी बड़ी दी है? 21 जन्मों के तकदीर की लकीर के अविनाशी की गैरन्टी ली है। एक जन्म की नहीं, 21 जन्म कभी दु:ख और अशान्ति की अनुभूति नहीं होगी। सदा सुखी रहेंगे। तीन बातें जीवन में चाहिए - हेल्थ, वेल्थ और हैपी। यह तीनों ही आप सबको बाप द्वारा वर्से में प्राप्त हो गया। गैरन्टी है ना, 21 जन्मों की? सभी ने गैरन्टी ली है? पीछे वालों को गैरन्टी मिली है? सभी हाथ उठा रहे हैं, बहुत अच्छा। बच्चा बनना अर्थात् बाप द्वारा वर्सा मिलना। बच्चा बन नहीं रहे हो, बन रहे हो क्या? बच्चे बन रहे हो या बन गये हो? बच्चा बनना नहीं होता। पैदा हुआ और बना। पैदा होते ही बाप के वर्से के अधिकारी बन गये। तो ऐसा श्रेष्ठ भाग्य बाप द्वारा अभी प्राप्त कर लिया। और फिर रिचेस्ट भी हो। ब्राह्मण आत्मा, क्षत्रिय नहीं ब्राह्मण। ब्राह्मण आत्मा निश्चय से अनुभव करती है कि मैं श्रेष्ठ आत्मा, मैं फलाना नहीं, आत्मा रिचेस्ट इन दी वर्ल्ड है। ब्राह्मण है तो रिचेस्ट इन दी वर्ल्ड है क्योंकि ब्राह्मण आत्मा के लिए परमात्म याद से हर कदम में पदम हैं। तो सारे दिन में कितने कदम उठाते होंगे? सोचो। हर कदम में पदम, तो सारे दिन में कितने पदम हो गये? ऐसी आत्मायें बाप द्वारा बन गये। मैं ब्राह्मण आत्मा क्या हूँ, यह याद रहना ही भाग्य है। तो आज बापदादा हर एक के मस्तक पर भाग्य का चमकता हुआ सितारा देख रहे हैं। आप भी अपने भाग्य का सितारा देख रहे हो?

बापदादा बच्चों को देख खुश होते हैं या बच्चे बाप को देख खुश होते हैं? कौन खुश होता है? बाप या बच्चे? कौन? (बच्चे) बाप खुश नहीं होता? बाप बच्चों को देख खुश होते और बच्चे बाप को देख खुश होते हैं। दोनों खुश होते हैं क्योंकि बच्चे जानते हैं कि यह प्रभु मिलन, यह परमात्म प्यार, यह परमात्म वर्सा, यह परमात्म प्राप्तियाँ अभी ही प्राप्त होती हैं। ‘‘अब नहीं तो कब नहीं।’’ ऐसे है?

बापदादा अभी सिर्फ एक बात बच्चों को रिवाइज करा रहे हैं - कौन सी बात होगी? समझ तो गये हो। यही बापदादा रिवाइज करा रहे हैं कि अब श्रेष्ठ समय को समीप लाओ। यह विश्व की आत्माओं का आवाज है। लेकिन लाने वाले कौन? आप हो या और कोई है? ऐसे सुहावने श्रेष्ठ समय को समीप लाने वाले आप सभी हो? अगर हो तो हाथ उठाओ। अच्छा फिर दूसरी बात भी है, वह भी समझ गये हो तब हँस रहे हो? अच्छा - उसकी तारीख कौन-सी है? डेट तो फिक्स करो ना। अभी डेट फिक्स की ना कि फारेनर्स का टर्न होना है। तो यह डेट तो फिक्स कर ली। तो ओ समय को समीप लाने वाली आत्मायें, बोलो, इसकी डेट कौन सी है? वह नजर आती है? पहले आपकी नजरों में आये तब विश्व पर आवे। बापदादा जब अमृतवेले विश्व में चक्र लगाते हैं तो देख-देख, सुन-सुन रहम आता है। मौज में भी हैं लेकिन मौज के साथ मूंझे हुए भी हैं। तो बापदादा पूछते हैं कि हे दाता के बच्चे मास्टर दाता कब अपने मास्टर दातापन का पार्ट तीव्रगति से विश्व के आगे प्रत्यक्ष करेंगे? या अभी पर्दे के अन्दर तैयार हो रहे हो? तैयारी कर रहे हो? विश्व परिवर्तन के निमित्त आत्मायें अब विश्व की आत्माओं के ऊपर रहम करो। होना तो है ही, यह तो निश्चित है और होना भी आप निमित्त आत्माओं द्वारा ही है। सिर्फ देरी किस बात की है? बापदादा यह एक सेरीमनी देखने चाहते हैं, कि हर एक ब्राह्मण बच्चे के दिल में सम्पन्नता और सम्पूर्णता का झण्डा लहराया हुआ दिखाई दे। जब हर ब्राह्मण के अन्दर सम्पूर्णता का झण्डा लहरायेगा तब ही विश्व में बाप की प्रत्यक्षता का झण्डा लहरायेगा। तो यह फ्लैग सेरीमनी बापदादा देखने चाहते हैं। जैसे शिवरात्रि पर शिव अवतरण का झण्डा लहराते हो, ऐसे अभी शिव-शक्ति पाण्डव अवतरण का नारा लगे। एक गीत बजाते हो ना - शिव शक्तियाँ आ गई। अभी विश्व यह गीत गाये कि शिव के साथ शक्तियाँ, पाण्डव प्रत्यक्ष हो गये। पर्दे में कहाँ तक रहेंगे! पर्दे में रहना अच्छा लगता है? थोड़ा-थोड़ा अच्छा लगता है! अच्छा नहीं लगता, तो हटाने वाला कौन? बाबा हटायेगा? कौन हटायेगा? ड्रामा हटायेगा या आप हटायेंगे? जब आप हटायेंगे तो देरी क्यों? तो ऐसे समझें ना कि पर्दे में रहना अच्छा लगता है? बस, बापदादा की अभी सिर्फ एक ही यह श्रेष्ठ आशा है, सब गीत गायें - वाह! आ गये, आ गये, आ गये! हो सकता है? देखो दादियाँ सभी कहती हैं हो सकता है फिर क्यों नहीं होता? कारण क्या? जब सभी ऐसे ऐसे कर रहे हैं, फिर कारण क्या है? (सभी सम्पन्न नहीं बने हैं) क्यों नहीं बने हैं? डेट बताओ ना! (डेट तो बाबा आप बतायेंगे) बापदादा का महामन्त्र याद है? बापदादा क्या कहते हैं? ‘‘कब नहीं अब।’’ (दादी जी कह रही हैं बाबा फाइनल डेट आप ही बताओ) अच्छा - बापदादा जो डेट बतायेगा उसमें अपने को मोल्ड करके निभायेंगे? पाण्डव निभायेंगे? पक्का। अगर नीचे ऊपर किया तो क्या करना पड़ेगा? (आप डेट देंगे तो कोई नीचे ऊपर नहीं करेगा) मुबारक हो। अच्छा। अभी डेट बताते हैं, देखना। देखो, बापदादा फिर भी रहमदिल है, तो बापदादा डेट बताते हैं, अटेन्शन से सुनना।

बापदादा सब बच्चों से यह श्रेष्ठ भावना रखते हैं, आशा रखते हैं - कम से कम 6 मास में, 6 मास कब तक पूरा होगा? (मई में) मई में - मैं’,’मैंखत्म। बापदादा फिर भी मार्जिन देते हैं कि कम से कम इन 6 मास में, जो बापदादा ने पहले भी सुनाया है और अगले सीजन में भी काम दिया था, कि अपने को जीवनमुक्त स्थिति के अनुभव में लाओ। सतयुग के सृष्टि की जीवनमुक्ति नहीं, संगमयुग की जीवनमुक्त स्टेज। कोई भी विघ्न, परिस्थितियाँ, साधन वा मैं और मेरापन, मैं बॉडीकान्सेस का और मेरा बॉडीकान्सेस की सेवा का, इन सबके प्रभाव से मुक्त रहना। ऐसे नहीं कहना कि मैं तो मुक्त रहने चाहता था लेकिन यह विघ्न आ गया ना, यह बात ही बहुत बड़ी हो गई ना। छोटी बात तो चल जाती है, यह बहुत बड़ी बात थी, यह बहुत बड़ा पेपर था, बड़ा विघ्न था, बड़ी परिस्थिति थी। कितनी भी बड़े ते बड़ी परिस्थिति, विघ्न, साधनों की आकर्षण सामना करे, सामना करेगी यह पहले ही बता देते हैं लेकिन कम से कम 6 मास में 75 परसेन्ट मुक्त हो सकते हो? बापदादा 100 परसेन्ट नहीं कह रहे हैं, 75 परसेन्ट, पौने तक तो आयेंगे तब पूरे पर पहुंचेंगे ना! तो 6 मास में, एक मास भी नहीं 6 मास दे रहे हैं, वर्ष का आधा। तो क्या यह डेट फिक्स कर सकते हो? देखो, दादियों ने कहा है फिक्स करो, दादियों का हुक्म तो मानना है ना! रिजल्ट देखकर तो बापदादा स्वत: ही आकर्षण में आयेंगे, कहने की भी जरूरत नहीं पड़ेगी। तो 6 मास और 75 परसेंट, 100 नहीं कह रहे हैं। उसके लिए फिर आगे टाइम देंगे। तो इसमें एवररेडी हो? एवररेडी नहीं 6 मास में रेडी। पसन्द है या थोड़ी हिम्मत कम है, पता नहीं क्या होगा? शेर भी आयेगा, बिल्ली भी आयेगी, सब आयेंगे। विघ्न भी आयेंगे, परिस्थितियां भी आयेंगी, साधन भी बढ़ेंगे लेकिन साधन के प्रभाव से मुक्त रहना। पसन्द है तो हाथ उठाओ। टी.वी. घुमाओ। अच्छी तरह से हाथ उठाओ, नीचे नहीं करना। अच्छी सीन लग रही है। अच्छा - इनएडवांस मुबारक हो।

यह नहीं कहना हमको तो बहुत मरना पड़ेगा, मरो या जीओ लेकिन बनना है। यह मरना मीठा मरना है, इस मरने में दु:ख नहीं होता है। यह मरना अनेकों के कल्याण के लिए मरना है। इसीलिए इस मरने में मजा है। दु:ख नहीं है, सुख है। कोई बहाना नहीं करना, यह हो गया ना। इसीलिए हो गया। बहाने बाजी नहीं चलेगी। बहाने बाजी करेंगे क्या? नहीं करेंगे ना! उड़ती कला की बाजी करना और कोई बाजी नहीं। गिरती कला की बाजी, बहाने बाजी, कमज़ोरी की बाजी यह सब समाप्त। उड़ती कला की बाजी। ठीक है ना! सबके चेहरे तो खिल गये हैं। जब 6 मास के बाद मिलने आयेंगे तो कैसे चेहरे होंगे। तब भी फोटो निकालेंगे।

डबल फारेनर्स आये हैं ना तो डबल प्रतिज्ञा करने का दिन आ गया। दूसरे किसको नहीं देखना, सी फादर, सी ब्रह्मा मदर। दूसरा करे न करे, करेंगे तो सभी फिर भी उनके प्रति भी रहम भाव रखना। कमज़ोर को शुभ भावना का बल देना, कमज़ोरी नहीं देखना। ऐसी आत्माओं को अपने हिम्मत के हाथ से उठाना, ऊँचा करना। हिम्मत का हाथ सदा स्वयं प्रति और सर्व के प्रति बढ़ाते रहना। हिम्मत का हाथ बहुत शक्तिशाली है। और बापदादा का वरदान है - हिम्मत का एक कदम बच्चों का, हजार कदम बाप की मदद का। नि:स्वार्थ पुरूषार्थ में पहले मैं। नि:स्वार्थ पुरूषार्थ, स्वार्थ का पुरूषार्थ नहीं, नि:स्वार्थ पुरूषार्थ इसमें जो ओटे वह ब्रह्मा बाप समान।

ब्रह्मा बाप से तो प्यार है ना! तब तो ब्रह्माकुमारी वा ब्रह्माकुमार कहलाते हो ना! जब चैलेन्ज करते हो कि सेकण्ड में जीवनमुक्ति का वर्सा ले लो तो अभी सेकण्ड में अपने को मुक्त करने का अटेन्शन। अभी समय को समीप लाओ। आपके सम्पूर्णता की समीपता, श्रेष्ठ समय को समीप लायेगी। मालिक हो ना, राजा हो ना! स्वराज्य अधिकारी हो? तो ऑर्डर करो। राजा तो ऑर्डर करता है ना! यह नहीं करना है, यह करना है। बस ऑर्डर करो। अभी-अभी देखो मन को, क्योंकि मन है मुख्य मन्त्री। तो हे राजा, अपने मन मन्त्री को सेकण्ड में ऑर्डर कर अशरीरी, विदेही स्थिति में स्थित कर सकते हो? करो ऑर्डर एक सेकण्ड में। (5 मिनट ड्रिल) अच्छा।

सदा लवलीन और लक्की आत्माओं को बापदादा द्वारा प्राप्त हुई सर्व प्राप्तियों के अनुभवी आत्माओं को, स्वराज्य अधिकारी बन अधिकार द्वारा स्वराज्य करने वाली शक्तिशाली आत्माओं को, सदा जीवनमुक्त स्थिति के अनुभवी हाइएस्ट आत्माओं को, भाग्य विधाता द्वारा श्रेष्ठ भाग्य की लकीर द्वारा लकीएस्ट आत्माओं को, सदा पवित्रता की दृष्टि, वृत्ति द्वारा स्व परिवर्तन विश्व परिवर्तन करने वाली होलीएस्ट आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

डबल विदेशी मेहमानों से

(‘काल आफ टाइमके प्रोग्राम में आये हुए मेहमानों से)

सभी अपने स्वीट होम में, स्वीट परिवार में पहुँच गये हैं ना! यह छोटा सा स्वीट परिवार प्यारा लगता है ना! और आप भी कितने प्यारे हो गये हो! सबसे पहले परमात्म प्यारे बन गये। बने हैं ना! बन गये या बनेंगे? देखो, आप सबको देखकर सब कितने खुश हो रहे हैं। क्यों खुश हो रहे हैं? सभी के चेहरे देखो बहुत खुश हो रहे हैं। क्यों खुश हो रहे हैं? क्योंकि जानते हैं कि यह सब गॉडली मैसेन्जर बन आत्माओं को मैसेज देने के निमित्त आत्मायें हैं। (पाँचों खण्ड़ों के हैं) तो 5 खण्डों में मैसेज पहुँच जायेगा, सहज है ना। प्लैन बहुत अच्छा बनाया है। इसमें परमात्म पावर भरके और परिवार का सहयोग लेके आगे बढ़ते रहना। सभी के संकल्प बापदादा के पास पहुँच रहे हैं। संकल्प बहुत अच्छे-अच्छे चल रहे हैं ना! प्लैन बन रहे हैं। तो प्लैन को प्रैक्टिकल लाने में हिम्मत आपकी और मदद बाप की और ब्राह्मण परिवार की। सिर्फ निमित्त बनना है, बस और मेहनत नहीं करनी है। मैं परमात्म कार्य के निमित्त हूँ। कोई भी कार्य में आओ तो - बाबा, मैं इंस्ट्रूमेंट सेवा के अर्थ तैयार हूँ, मैं इंस्ट्रूमेंट हूँ, चलाने वाला आपेही चलायेगा। यह निमित्त भाव आपके चेहरों पर निर्माण और निर्मान भाव प्रत्यक्ष करेगा। करावनहार निमित्त बनाए कार्य करायेगा। माइक आप और माइट बाप की। तो सहज है ना! तो निमित्त बनके याद में हाजिर हो जाओ, बस। तो आपकी सूरत, आपके फीचर्स स्वत: ही सेवा के निमित्त बन जायेंगे। सिर्फ बोल द्वारा सेवा नहीं करेंगे लेकिन फीचर्स द्वारा भी आपकी आन्तरिक खुशी चेहरे से दिखाई देगी। इसको ही कहा जाता है - अलौकिकता। अभी अलौकिक हो गये ना। लौकिकपन तो खत्म हुआ ना। मैं आत्मा हूँ - यह अलौकिक। मैं फलाना हूँ - यह लौकिक। तो कौन हो? अलौकिक या लौकिक? अलौकिक हो ना! अच्छा है। बापदादा वा परिवार के सामने पहुंच गये, यह बहुत अच्छी हिम्मत रखी। देखो, आप भी कोटों में कोई निकले ना। कितना ग्रुप था, उसमें से कितने आये हो, तो कोटों में कोई निकले ना। अच्छा है - बापदादा को ग्रुप पसन्द है। और यह देखो कितने खुश हो रहे हैं। आप से ज्यादा यह खुश हो रहे हैं क्योंकि सेवा का रिटर्न सामने देख खुश हो रहे हैं। खुश हो रहे हैं ना - मेहनत का फल मिल गया। अच्छा। अभी तो बालक सो मालिक हो। बालक मास्टर है। बच्चे को सदा कहा जाता है - मास्टर। अच्छा।

सब ठीक आराम से रहे हुए हो? मन भी आराम में, तन भी आराम में। दोनों ही आराम हैं ना! तो मुस्कराओ। सीरियस नहीं रहो। अब तो सब मिल गया बाकी क्या चाहिए। नाचो, गाओ। मुस्कराना अच्छा लगता है ना! ऐसे अच्छा नहीं लगता। मुस्कराना अच्छा लगता है ना! दिल में खुशी है ना तो खुशी का चेहरे पर मुस्कराना आता है। मुस्कराते रहो और औरों को भी मुस्कराना सिखाओ। ठीक है ना! अच्छा।

विदाई के समय:- ड्रामा में जो भी सीन पास होती है वह अच्छे ते अच्छी है। अभी जो भी बच्चों ने जहाँ भी सेवा की है, वह भी अच्छे ते अच्छी है। और चारों ओर सेवा तो होनी ही है। फिर भी हर समय की आवश्यकता को विशेष सहयोग देना होता है। तो वर्तमान समय बापदादा की प्रेरणा से सबका अटेन्शन अपनी राजधानी दिल्ली की तरफ है। तो आप सबको भविष्य में महल दिल्ली में बनाना है या आसपास बनाना है। कहाँ बनाना है? जहाँ लक्ष्मी-नारायण का महल होगा उसके नजदीक बनाना है ना। तो जगह-जगह पर सेवा करना, यह तो ब्राह्मणों का कर्त्तव्य है और सेवा के बिना तो रह भी नहीं सकते हैं। फिर भी इस समय देहली की तरफ सबको सहयोग का हाथ अवश्य बढ़ाना चाहिए। आप सब चाहते हो दिल्ली में आवाज फैले? चाहते हो? तो और सब तरफ करते हुए भी विशेष अटेन्शन उस तरफ देना आवश्यक है। अभी फाउन्डेशन के समय सभी का स्वागत तो हुआ। सभी देश वालों ने मैजारिटी पाँव रखा। अभी पाँव रखा है, अभी हाथ बढ़ाना है। चारों ओर कई आवश्यकतायें होती हैं लेकिन नम्बर तो होते हैं ना पहला, दूसरा, तीसरा, चौथा, तो इस समय अटेन्शन सबका राज्य लेने में है। राज्य गद्दी बनानी है ना! होना तो है ही। और आप सबको निमित्त बनना ही है। अभी तक जो किया, देहली वालों ने भी बहुत अच्छी मेहनत की, मुबारक भी है और आगे के लिए भी इनएडवांस आगे बढ़ने की मुबारक। ठीक है ना! पसन्द है? पीछे वालों को पसन्द है? अच्छा।

बापदादा सबकी हिम्मत देखकर खुश होते हैं। जहाँ ईशारा मिले वहाँ नम्बर वन में। दूसरा नम्बर आपेही सिद्ध होगा, रहेगा नहीं। पहला नम्बर पर पूरा ध्यान देने से दूसरे, तीसरे, चौथे में भी मदद मिलती रहेगी। ब्राह्मणों के सब कार्य सफल होने ही हैं। सिर्फ एक दो तीन चार, यह नम्बर थोड़ा देखना पड़ता है। इसमें तो होशियार हो ना। डबल फारेनर्स तो हाँ जी में होशियार हैं ही। जोर से बोलो - ‘‘हाँ जी’’

अच्छा। ओम् शान्ति।



25-11-2000   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


बाप समान बनने के लिए दो बातों की दृढ़ता रखो - स्वमान में रहना है और सबको सम्मान देना है

आज बापदादा अपने प्यारे ते प्यारे, मीठे ते मीठे छोटे से ब्राह्मण परिवार कहो, ब्राह्मण संसार कहो, उसको ही देख रहे हैं। यह छोटा सा संसार कितना न्यारा भी है तो प्यारा भी है। क्यों प्यारा है? क्योंकि इस ब्राह्मण संसार की हर आत्मा विशेष आत्मा है। देखने में तो अति साधारण आत्मायें आती हैं लेकिन सबसे बड़े से बड़ी विशेषता हर एक ब्राह्मण-आत्मा की यही है जो परम-आत्मा को अपने दिव्य बुद्धि द्वारा पहचान लिया है। चाहे 90 वर्ष के बुजुर्ग हैं, बीमार हैं लेकिन परमात्मा को पहचानने की दिव्य बुद्धि, दिव्य नेत्र सिवाए ब्राह्मण आत्माओं के नामीग्रामी वी.वी.आई.पी. में भी नहीं है। यह सभी मातायें क्यों यहाँ पहुँची हैं? टाँगें चलें, नहीं चलें लेकिन पहुँच तो गई हैं। तो पहचाना है तब तो पहुंची हैं ना! यह पहचानने का नेत्र, पहचानने की बुद्धि सिवाए आपके किसी को भी प्राप्त नहीं हो सकती। सभी मातायें यह गीत गाती हो ना - हमने देखा, हमने जाना....। माताओं को यह नशा है? हाथ हिला रही हैं, बहुत अच्छा। पाण्डवों को नशा है? एक दो से आगे हैं। न शक्तियों में कमी है, न पाण्डवों में कमी है। लेकिन बापदादा को यही खुशी है कि यह छोटा सा संसार कितना प्यारा है। जब आपस में भी मिलते हो तो कितनी प्यारी आत्मायें लगती हैं!

बापदादा देश-विदेश की सर्व आत्माओं द्वारा आज यही दिल का गीत सुन रहे थे - बाबा, मीठा बाबा हमने जाना, हमने देखा। यह गीत गाते-गाते चारों ओर के बच्चे एक तरफ खुशी में, दूसरे तरफ स्नेह के सागर में समाये हुए थे। जो भी चारों ओर के यहाँ साकार में नहीं हैं लेकिन दिल से, दृष्टि से बापदादा के सामने हैं और बापदादा भी साकार में दूर बैठे हुए बच्चों को सम्मुख ही देख रहे हैं। चाहे देश है, चाहे विदेश है, बापदादा कितने में पहुँच सकते हैं? चक्कर लगा सकते हैं? बापदादा चारों ओर के बच्चों को रिटर्न में अरब-खरब से भी ज्यादा याद-प्यार दे रहे हैं। चारों ओर के बच्चों को देख-देख सबके दिलों में एक ही संकल्प देख रहे हैं, सभी नयनों से यही कह रहे हैं कि हमें परमात्म 6 मास का होम वर्क याद है। आप सबको भी याद है ना? भूल तो नहीं गया? पाण्डवों को याद है? अच्छी तरह से याद है? बापदादा बार बार क्यों याद दिलाता है? कारण? समय को देख रहे हो, ब्राह्मण आत्मायें स्वयं को भी देख रही हैं। मन जवान होता जाता है, तन बुजुर्ग होता जाता है। समय और आत्माओं की पुकार अच्छी तरह से सुनने में आ रही है! तो बापदादा देख रहे थे - आत्माओं की पुकार दिल में बढ़ती जा रही है - हे सुख-देवा! हे शान्तिदेवा! हे सच्ची खुशी-देवा थोड़ी सी अंचली हमें भी दे दो। सोचो, पुकार करने वालों की लाइन कितनी बड़ी है! आप सभी सोचते हो - बाप की प्रत्यक्षता जल्दी से जल्दी हो जाए लेकिन प्रत्यक्षता किस कारण से रूकी हुई है? जब आप सभी भी यही संकल्प करते हो और दिल की चाहना भी रखते हो, मुख से कहते भी हो - हमें बाप समान बनना है। बनना है ना? है बनना? अच्छा, फिर बनते क्यों नहीं हो? बापदादा ने बाप समान बनने को कहा है, क्या बनना है, कैसे बनना है, ‘समानशब्द में यह दोनों क्वेश्चन उठ नहीं सकते। क्या बनना है? उत्तर है ना - बाप समान बनना है। कैसे बनना है?

फालो फादर - फुटस्टैप फादर मदर। निराकार बाप, साकार ब्रह्मा मदर। क्या फालो करना भी नहीं आता? फालो तो आजकल के जमाने में अंधे भी कर लेते हैं। देखा है, आजकल वह लकड़ी के आवाज पर, लकड़ी को फालो करते-करते कहाँ के कहाँ पहुँच जाते हैं। आप तो मास्टर सर्वशक्तिवान हैं, त्रिनेत्री हैं, त्रिकालदर्शी हैं। फालो करना आपके लिए क्या बड़ी बात है! बड़ी बात है क्या? बोलो, बड़ी बात है? है नहीं लेकिन हो जाती है। बापदादा सब जगह चक्कर लगाते हैं, सेन्टर पर भी, प्रवृत्ति में भी। तो बापदादा ने देखा है, हर एक ब्राह्मण आत्मा के पास, हर एक सेन्टर पर, हर एक की प्रवृत्ति के स्थान पर जहाँ-तहाँ ब्रह्मा बाप के चित्र बहुत रखे हुए हैं। चाहे अव्यक्त बाप के, चाहे ब्रह्मा बाप के, जहाँ तहाँ चित्र ही चित्र दिखाई देते हैं। अच्छी बात है। लेकिन बापदादा यह सोचते हैं कि चित्र को देख चरित्र तो याद आते हैं ना! या सिर्फ चित्र ही देखते हो? चित्र को देख प्रेरणा तो मिलती है ना! तो बापदादा और तो कुछ कहते नहीं हैं सिर्फ एक ही शब्द कहते हैं - फालो करो’, बस। सोचो नहीं, ज्यादा प्लैन नहीं बनाओ, यह नहीं वह करें, ऐसा नहीं वैसा, वैसा नहीं ऐसा। नहीं। जो बाप ने किया, कापी करना है, बस। कापी करना नहीं आता? आजकल तो साइन्स ने फोटो कापी की भी मशीनें निकाल ली हैं। निकाली है ना! यहाँ फोटो कापी है ना? तो यह ब्रह्मा बाप का चित्र रखते हैं। भले रखो, अच्छी तरह से रखो, बड़े बड़े रखो। लेकिन फोटो कापी तो करो ना!

तो बापदादा आज चारों ओर का चक्कर लगाते यह देख रहे थे, चित्र से प्यार है या चरित्र से प्यार है? संकल्प भी है, उमंग भी है, लक्ष्य भी है, बाकी क्या चाहिए? बापदादा ने देखा, कोई भी चीज़ को अच्छी तरह से मजबूत करने के लिए चार ही कोनों से उसको पक्का किया जाता है। तो बापदादा ने देखा तीन कोने तो पक्के हैं, एक कोना और पक्का होना है। संकल्प भी है, उमंग भी है, लक्ष्य भी है, किसी से भी पूछो क्या बनना है? हर एक कहता है - बाप समान बनना है। कोई भी यह नहीं कहता है - बाप से कम बनना है, नहीं। समान बनना है। अच्छी बात है। एक कोना मजबूत करते हो लेकिन चलते-चलते ढीला हो जाता है, वह है दृढ़ता। संकल्प है, लक्ष्य है लेकिन कोई पर-स्थिति आ जाती है, साधारण शब्दों में उसको आप लोग कहते हैं बातें आ जाती हैं, वह दृढ़ता को ढीला कर देती हैं। दृढ़ता उसको कहा जाता है - मर जायें, मिट जायें लेकिन संकल्प न जाये। झुकना पड़े, जीते जी मरना पड़े, अपने को मोड़ना पड़े, सहन करना पड़े, सुनना पड़े लेकिन संकल्प नहीं जाये। इसको कहा जाता है - दृढ़ता। जब छोटे-छोटे बच्चे ओम निवास में आये थे तो ब्रह्मा बाबा उन्हों को हँसी-हँसी में याद दिलाता था, पक्का बनाता था कि इतना-इतना पानी पियेंगे, इतनी मिर्चा खायेंगे, डरेंगे तो नहीं। फिर हाथ से ऐसे आँख के सामने करते हैं.....। तो ब्रह्मा बाप छोटे-छोटे बच्चों को पक्का करते थे, चाहे कितनी भी समस्या आ जाए, संकल्प की आँख हिले नहीं। वह तो लाल मिर्चा और पानी का मटका था, छोटे बच्चे थे ना। आप तो सभी अभी बड़े हो, तो बापदादा आज भी बच्चों से पूछते हैं कि आपका दृढ़ संकल्प है? संकल्प में दृढ़ता है कि बाप समानबनना ही है? बनना है नहीं, बनना ही है। अच्छा - इसमें हाथ हिलाओ। टी.वी. वाले निकालो। टी.वी. काम में आनी चाहिए ना! बड़ा-बड़ा हाथ करो। अच्छा - मातायें भी उठा रही हैं। पीछे वाले और ऊँचा हाथ करो। बहुत अच्छा। कैबिन वाले नहीं उठा रहे हैं। कैबिन वाले तो निमित्त हैं। अच्छा। थोड़ी घड़ी के लिए तो हाथ उठाके बापदादा को खुश कर दिया।

अभी बापदादा सिर्फ एक ही बात बच्चों से कराना चाहते हैं, कहना नहीं चाहते, कराना चाहते हैं। सिर्फ अपने मन में दृढ़ता लाओ, थोड़ी सी बात में संकल्प को ढीला नहीं कर दो। कोई इनसल्ट करे, कोई घृणा करे, कोई अपमान करे, निंदा करे, कभी भी कोई दु:ख दे लेकिन आपकी शुभ भावना मिट नहीं जाए। आप चैलेन्ज करते हो कि हम माया को, प्रकृति को परिवर्तन करने वाले विश्व परिवर्तक हैं, अपना आक्यूपेशन तो याद है ना? विश्व परिवर्तक तो हो ना! अगर कोई अपने संस्कार के वश आपको दु:ख भी दे, चोट लगाये, हिलाये, तो क्या आप दु:ख की बात को सुख में परिवर्तन नहीं कर सकते हो? इनसल्ट को सहन नहीं कर सकते हो? गाली को गुलाब नहीं बना सकते हो? समस्या को बाप समान बनने के संकल्प में परिवर्तन नहीं कर सकते हो? आप सबको याद है - जब आप ब्राह्मण जन्म में आये और निश्चय किया, चाहे आपको एक सेकण्ड लगा या एक मास लगा लेकिन जब से आपने निश्चय किया, दिल ने कहा ‘‘मैं बाबा का, बाबा मेरा।’’ संकल्प किया ना, अनुभव किया ना! तब से आपने माया को चैलेन्ज किया कि मैं मायाजीत बनूंगा, बनूंगी। यह चैलेन्ज माया को किया था? मायाजीत बनना है कि नहीं? मायाजीत आप ही हैं ना या अभी दूसरे आने हैं? जब माया को चैलेन्ज किया तो यह समस्यायें, यह बातें, यह हलचल माया के ही तो रॉयल रूप हैं। माया और तो कोई रूप में आयेगी नहीं। इन रूपों में ही मायाजीत बनना है। बात नहीं बदलेगी, सेन्टर नहीं बदलेगा, स्थान नहीं बदलेगा, आत्मायें नहीं बदलेंगी, हमें बदलना है। आपका स्लोगन तो सबको बहुत अच्छा लगता है - बदलके दिखाना है, बदला नहीं लेना है, बदलना है। यह तो पुराना स्लोगन है। नये-नये रूप, रॉयल रूप बनके माया और भी आने वाली है, घबराओ नहीं। बापदादा अण्डरलाइन कर रहा है - माया ऐसे, ऐसे रूप में आनी है, आ रही है। जो महसूस ही नहीं करेंगे कि यह माया है, कहेगे नहीं दादी, आप समझती नहीं हो, यह माया नहीं है। यह तो सच्ची बात है। और भी रॉयल रूप में आने वाली है, डरो मत। क्यों? देखो, कोई भी दुश्मन चाहे हार खाता है, चाहे जीत होती है, जो भी उनके पास छोटे मोटे शस्त्र अस्त्र होंगे, यूज करेगा या नहीं करेगा? करेगा ना? तो माया की भी अन्त तो होनी है लेकिन जितना अन्त समीप आ रहा है, उतना वह नये-नये रूप से अपने अस्त्र शस्त्र यूज कर रही है, करेगी भी। फिर आपके पाँव में झुकेगी। पहले आपको झुकाने की कोशिश करेगी, फिर खुद झुक जायेगी। सिर्फ इसमें आज बापदादा एक ही शब्द बार-बार अण्डरलाइन करा रहा है। बाप समान बनना है’’ - अपने इस लक्ष्य के स्वमान में रहो और सम्मान देना अर्थात् सम्मान लेना, लेने से नहीं मिलेगा, देना अर्थात् लेना है। सम्मान दे - यह यथार्थ नहीं है, सम्मान देना ही लेना है। स्वमान बॉडी कान्सेस का नहीं, ब्राह्मण जीवन का स्वमान, श्रेष्ठ आत्मा का स्वमान, सम्पन्नता का स्वमान। तो स्वमान और सम्मान लेना नहीं है लेकिन देना ही लेना है - इन दो बातों में दृढ़ता रखो। आपकी दृढ़ता को कोई कितना भी हिलाये, दृढ़ता को ढीला नहीं करो। मजबूत करो, अचल बनो। तब यह जो बापदादा से प्रॉमिस किया है, 6 मास का। प्रॉमिस तो याद है ना। यह नहीं देखते रहना कि अभी तो 15 दिन पूरा हुआ है, साढ़े पाँच मास तो पड़े हैं। जब रूहरिहान करते हैं ना - अमृतवेले रूहरिहान तो करते हैं, तो बापदादा को बहुत अच्छी-अच्छी बातें सुनाते हैं। अपनी बातें जानते तो हो ना? तो अब दृढ़ताको अपनाओ। उल्टी बातों में दृढ़ता नहीं रखना। क्रोध करना ही है, मुझे दृढ़ निश्चय है, ऐसे नहीं करना। क्यों? आजकल बापदादा के पास रिकार्ड में मैजारिटी क्रोध के भिन्नभिन्न प्रकार की रिपोर्ट पहुँचती है। महारूप में कम है लेकिन अंश रूप में भिन्न-भिन्न प्रकार का क्रोध का रूप ज्यादा है।

इस पर क्लास कराना - क्रोध के कितने रूप हैं? फिर क्या कहते हैं, हमारा न भाव था, न भावना थी, ऐसे ही कह दिया। इस पर क्लास कराना।

टीचर्स बहुत आई हैं ना? (1200 टीचर्स हैं) 1200 ही दृढ़ संकल्प कर लें तो कल ही परिवर्तन हो सकता है। फिर इतने एक्सीडेंट नहीं होंगे, बच जायेंगे सभी। टीचर्स हाथ उठाओ। बहुत हैं। टीचर अर्थात् निमित्त फाउण्डेशन। अगर फाउण्डेशन पक्का अर्थात् दृढ़ रहा तो झाड़ तो आपेही ठीक हो जायेगा। आजकल चाहे संसार में, चाहे ब्राह्मण संसार में हर एक को हिम्मत और सच्चा प्यार चाहिए। मतलब का प्यार नहीं, स्वार्थ का प्यार नहीं। एक सच्चा प्यार और दूसरी हिम्मत, मानो 95 परसेंट किसने संस्कार के वश, परवश होके नीचे-ऊपर कर भी लिया लेकिन 5 परसेन्ट 17 अच्छा किया, फिर भी अगर आप उसके 5 परसेन्ट अच्छाई को लेकर पहले उसमें हिम्मत भरो, यह बहुत अच्छा किया फिर उसको कहो बाकी यह ठीक कर लेना, उसको फील नहीं होगा। अगर आप कहेंगी यह क्यों किया, ऐसा थोड़ेही किया जाता है, यह नहीं करना होता है, तो पहले ही बिचारा संस्कार के वश है, कमज़ोर है, तो वह नरवश हो जाता है। प्रोग्रेस नहीं कर सकता है। 5 परसेन्ट की पहले हिम्मत दिलाओ, यह बात बहुत अच्छी है आपमें। यह आप बहुत अच्छा कर सकते हैं, फिर उसको अगर समय और उसके स्वरूप को समझकर बात देंगे तो वह परिवर्तन हो जायेगा। हिम्मत दो, परवश आत्मा में हिम्मत नहीं होती है। बाप ने आपको कैसे परिवर्तन किया? आपकी कमी सुनाई, आप विकारी हो, आप गन्दे हो, कहा? आपको स्मृति दिलाई आप आत्मा हो और इस श्रेष्ठ स्मृति से आपमें समर्थी आई, परिवर्तन किया। तो हिम्मत से स्मृति दिलाओ। स्मृति समर्थी स्वत: ही दिलायेगी। समझा। तो अभी तो समान बन जायेंगे ना? सिर्फ एक अक्षर याद करो - फालो फादर-मदर। जो बाप ने किया, वह करना है। बस। कदम पर कदम रखना है। तो समान बनना सहज अनुभव होगा।

ड्रामा छोटे-छोटे खेल दिखाता रहता है। आश्चर्य की मात्रा तो नहीं लगाते? अच्छा।

अनेक बच्चों के कार्ड, पत्र, दिल के गीत बापदादा के पास पहुँच गये हैं। सभी कहते हैं हमारी भी याद देना, हमारी भी याद देना। तो बाप भी कहते हैं हमारी भी यादप्यार दे देना। याद तो बाप भी करते, बच्चे भी करते, क्योंकि इस छोटे से संसार में है ही बापदादा और बच्चे और विस्तार तो है ही नहीं। तो कौन याद आयेगा? बच्चों को बाप, बाप को बच्चे। तो देश-विदेश के बच्चों को बापदादा भी बहुत-बहुत-बहुत बहुत याद-प्यार देते हैं।

यह माताओं का झुण्ड बहुत अच्छा आया है। सदैव बुजुर्ग मातायें यही सोचकर आती हैं, अभी एक बार तो मिलकर आयें, फिर देखा जायेगा। ऐसे सोचते-सोचते भी कई बार आ चुकी हैं। अच्छा करती हैं। बापदादा माताओं की हिम्मत देखकर खुश होते हैं। ताली बजाओङ हाजर हो जाती हैं। (सभी ने खूब तालियाँ बजाई) अच्छा है ताली बजाने में खुशी होती है। माताओं की भी रौनक अच्छी है। देखो, ड्रामा में माताओं से बाप का, परिवार का प्यार है इसलिए पहला चांस माताओं को ही मिला है। माताओं के टर्न में पानी भी पहुँच गया है। कोई तकलीफ हुई क्या! नहीं ना! एकानामी की या नहीं? एकानामी किया? सबकी दिल बड़ी है ना। जब दिल बड़ी होती है तो सब ठीक चलता है। थोड़ी बहुत खिटखिट तो होती है, वह कोई बड़ी बात नहीं। ठीक है ना - मधुबन के, शान्तिवन के पाण्डव। मजबूत हैं ना, तोड़ निभायेंगे ना? कहो दादी अगर पानी नहीं आया तो हम बाल्टियाँ भरकर भी आयेंगे। पानी कैसे नहीं हाजर होगा, जब इतने बच्चे हाजर हो जायेंगे तो पानी कैसे नहीं हाजर होगा। अच्छा।

चारों ओर के ब्राह्मण संसार की विशेष आत्माओं को, सदा दृढ़ता द्वारा सफलता प्राप्त करने वाले सफलता के सितारों को, सदा स्वयं को सम्पन्न बनाए आत्माओं की पुकार को पूर्ण करने वाली सम्पन्न आत्माओं को, सदा निर्बल को, परवश को अपने हिम्मत के वरदान द्वारा हिम्मत दिलाने वाली, बाप के मदद के पात्र आत्माओं को, सदा विश्व-परिवर्तक बन स्व-परिवर्तन से माया, प्रकृति और कमज़ोर आत्माओं को परिवर्तन करने वाली परिवर्तक आत्माओं को, बापदादा का चारों ओर के छोटे से संसार की सर्व आत्माओं को सम्मुख आई हुई श्रेष्ठ आत्माओं को अरब-खरब गुणा यादप्यार और नमस्ते।

कर्नाटक के सेवाधारी आये हैं:- अच्छा पार्ट बजा रहे हैं, सभी को अच्छी सैलवेशन दी है। तो कर्नाटक निवासियों को सेवा के सन्तुष्टता की बहुत-बहुत मुबारक हो। आलराउण्ड पार्ट अच्छा बजाया। सन्तुष्टता का सबसे सहज आधार है ‘‘पहले आप’’। पहले आप कहते जाओ, साथी बनाते जाओ और आगे बढ़ते जाओ। पहले मैं नहीं, पहले आप। तो कर्नाटक वालों ने भी हिम्मत अच्छी दिखाई है। परिवार भी खुश, बापदादा भी खुश, सेवाधारी हाथ उठाओ। सर्व के सहयोग से सन्तुष्टता का वरदान ले लिया, अच्छा।

दादी जी से - आपको बापदादा ने मेहनत बहुत दी है। मुहब्बत के कारण मेहनत नहीं लगती है। (बाबा आप बैठे हैं हम तो कठपुतलियाँ हैं) फिर भी अच्छा, बहुत अच्छा पार्ट बजा रही हो। (सुनने में नहीं आ रहा है) कोई बात नहीं, जब कान ढीले होते हैं ना तो नयनों की भाषा से जल्दी कैच करते हैं। प्यार तो सभी से है। आप सभी दादियों में जैसे सभी की जान है। अच्छा है। जो भी निमित्त बने हैं ना, चाहे गुप्त 19 रूप में, चाहे प्रत्यक्ष रूप में सहयोग देना - यह पार्ट बहुत अच्छा बजा रही हो, देखने में भले यह दो दादियां आती हैं लेकिन आप लोग समाये हुए हैं। आप लोगों का मधुबन में हाजिर होना ही मदद है, जो भी निमित्त बने हुए हैं, आप लोगों में रगरग में हजूर हाजर है। जब हजूर हाजर है, तो आपका हाजर होना ही सब कुछ है। पालना ली हुई है। ऐसा भाग्य कितने थोड़ों का है। एक पालना लेना और दूसरा निमित्त बनना, यह भी एक ड्रामा में हीरो पार्ट है। रिटर्न कर रहे हो ना! तो रिटर्न करने का गुप्त में जमा होता रहता है। सुना।

(24 तारीख को मधुबन आते समय आगरा सेवाकेन्द्र की माताओं की गाडी एक ट्रक से टकरा गई, जिसमें करीब 6 मातायें, एक टीचर तथा ड्राइवर टोटल - 8 ने अपना पुराना शरीर छोड़ दिया और एक दिल्ली की पुरानी माता ने शान्तिवन में शरीर छोड़ा है, यह समाचार बापदादा को सुना रहे हैं)

यह कोई-कोई होता है। उन्हों की दिल में उस समय भी बाबा ही बाबा था। बाबाबाबा ही कर रहे थे। सभी को बाबा-बाबा ही याद था। नजदीक आकर ऊपर चली गई। पुरानी-पुरानी थी ना इसलिए उन्हों को बाबा-बाबा ही याद था और बाबा-बाबा कहते ही गई हैं। अवस्था अच्छी रही, चिल्लाया नहीं। दर्द तो काफी हुआ है। फिर भी अवस्था अच्छी रही। देखो, एडवांस पार्टी में सब चाहिए। अभी आप लोग जायेंगे तो एडवांस पार्टी भी तैयार चाहिए ना। इतने सारे चाहिए। तो एडवांस पार्टी की तैयारी हो रही है क्योंकि सभी मातायें पक्की थी। साकार बाप की पालना लेने वाली, तो पालना तो देंगी ना। (एक कुमारी 18 साल की थी) वह भी लगन वाली थी। एडवांस पार्टी में अपना पार्ट बजायेंगे। समय नजदीक आ रहा है तो तैयारी सब चाहिए ना।

अच्छा - ओम् शान्ति।


 

16-12-2000   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


साक्षात् ब्रह्मा बाप समान कर्मयोगी फरिश्ता बनो तब साक्षात्कार शुरू हो

आज ब्राह्मण संसार के रचता बापदादा अपने ब्राह्मण संसार को देख-देख हर्षित हो रहे हैं। कितना छोटा सा प्यारा संसार है। हर एक ब्राह्मण के मस्तक पर भाग्य का सितारा चमक रहा है। नम्बरवार होते हुए भी हर एक के सितारे में भगवान को पहचानने और बनने के श्रेष्ठ भाग्य की चमक है। जिस बाप को ऋषि, मुनि, तपस्वी नेती-नेती कहके चले गये, उस बाप को ब्राह्मण संसार की भोली-भाली आत्माओं ने जान लिया, पा लिया। यह भाग्य किन आत्माओं को प्राप्त होता है? जो साधारण आत्मायें हैं। बाप भी साधारण तन में आते हैं, तो बच्चे भी साधारण आत्मायें ही पहचानती हैं। आज की इस सभा में देखो, कौन बैठे हैं? कोई अरब-खरबपति बैठे हैं? साधारण आत्माओं का ही गायन है। बाप गरीब-निवाज गाया हुआ है। अरब- खरबपति निवाज नहीं गाया हुआ है। बुद्धिवानों का बुद्धि क्या किसी अरब-खरबपति की बुद्धि को नहीं पलटा सकता? क्या बड़ी बात है! लेकिन ड्रामा का बहुत अच्छा कल्याणकारी नियम बना हुआ है, परमात्म कार्य में फुरी-फुरी (बूंद-बूंद) तलाव होना है। अनेक आत्माओं का भविष्य बनना है। 10-20 का नहीं, अनेक आत्माओं का सफल होना है। इसीलिए गायन है - बूँद-बूँद से तलाब। आप सभी जितना तन-मन- धन सफल करते रहते हो उतना ही सफलता के सितारे बन गये हो। सभी सफलता के सितारे बने हो? बने हो या अभी बनना है, सोच रहे हो? सोचो नहीं। करेंगे, देखेंगे, करना तो है ही....यह सोचना भी समय गँवाना है। भविष्य और वर्तमान की प्राप्ति गँवाना है।

बापदादा के पास कोई-कोई बच्चों का एक संकल्प पहुँचता है। बाहर वाले तो बिचारे हैं लेकिन ब्राह्मण आत्मायें बिचारे नहीं, विचारवान हैं, समझदार हैं। लेकिन कभी-कभी कोई-कोई बच्चों में एक कमज़ोर संकल्प उठता है, बतायें। बतायें? सभी हाथ उठा रहे हैं, बहुत अच्छा। कभी-कभी सोचते हैं कि क्या विनाश होना है या होना नहीं है! 99 का चक्कर भी पूरा हो गया, 2000 भी पूरा होना ही है। अब कब तक? बापदादा सोचते हैं - हँसी की बात है कि विनाश को सोचना अर्थात् बाप को विदाई देना क्योंकि विनाश होगा तो बाप तो परमधाम में चले जायेंगे ना! तो संगम से थक गये हैं क्या? हीरे तुल्य कहते हो और गोल्डन को ज्यादा याद करते हो, होना तो है लेकिन इन्तजार क्यों करते? कई बच्चे सोचते हैं सफल तो करें लेकिन विनाश हो जाए कल परसों तो, हमारा तो काम में आया ही नहीं। हमारा तो सेवा में लगा नहीं। तो करें, सोच कर करें। हिसाब से करें, थोड़ा-थोड़ा करके करें। यह संकल्प बाप के पास पहुँचते हैं। लेकिन मानों आज आप बच्चों ने अपना तन सेवा में समर्पण किया, मन विश्व-परिवर्तन के वायब्रेशन में निरन्तर लगाया, धन जो भी है, है तो प्राप्ति के आगे कुछ नहीं लेकिन जो भी है, आज आपने किया और कल विनाश हो जाता है तो क्या आपका सफल हुआ या व्यर्थ गया? सोचो, सेवा में तो लगा नहीं, तो क्या सफल हुआ? आपने किसके प्रति सफल किया? बापदादा के प्रति सफल किया ना? तो बापदादा तो अविनाशी है, वह तो विनाश नहीं होता! अविनाशी खाते में, अविनाशी बापदादा के पास आपने आज जमा किया, एक घण्टा पहले जमा किया, तो अविनाशी बाप के पास आपका खाता एक का पदमगुणा जमा हो गया। बाप बंधा हुआ है, एक का पदम देने के लिए। तो बाप तो नहीं चला जायेगा ना! पुरानी सृष्टि विनाश होगी ना! इसीलिए आपका दिल से किया हुआ, मजबूरी से किया हुआ, देखादेखी में किया हुआ, उसका पूरा नहीं मिलता है। मिलता जरूर है क्योंकि दाता को दिया है लेकिन पूरा नहीं मिलता है। इसलिए यह नहीं सोचो - अच्छा, अभी विनाश तो 2001 तक भी दिखाई नहीं देता है, अभी तो प्रोग्राम बन रहे हैं, मकान बन रहे हैं। बड़े-बड़े प्लैन बन रहे हैं, तो 2001 तक तो दिखाई नहीं देता है, दिखाई नहीं देगा। कभी भी इन बातों को अपना आधार बनाके अलबेले नहीं होना। अचानक होना है। आज यहाँ बैठे हैं, घण्टे के बाद भी हो सकता है। होना नहीं है, डर नहीं जाओ कि पता नहीं एक घण्टे के बाद क्या होना है! सम्भव है। इतना एवररेडी रहना ही है। शिवरात्रि तक करना है, यह सोचो नहीं। समय का इन्तजार नहीं करो। समय आपकी रचना है, आप मास्टर रचता हो। रचता - रचना के अधीन नहीं होता है। समय रचना आपके ऑर्डर पर चलने वाली है। आप समय का इन्तजार नहीं करो, लेकिन अभी समय आपका इन्तजार कर रहा है। कई बच्चे सोचते हैं, 6 मास के लिए बापदादा ने कहा है तो 6 मास तो होगा ही। होगा ही ना! लेकिन बापदादा कहते हैं यह हद की बातों का आधार नहीं लो, एवररेडी रहो। निराधार, एक सेकण्ड में जीवनमुक्ति। चैलेन्ज करते हो एक सेकण्ड में जीवनमुक्ति का वर्सा लो। तो क्या आप एक सेकण्ड में स्वयं को जीवनमुक्त नहीं बना सकते हैं? इसलिए इन्तजार नहीं, सम्पन्न बनने का इन्तजाम करो।

बापदादा को बच्चों के खेल देख करके हँसी भी आती है। कौन से खेल पर हंसी आती है? बतायें क्या? आज मुरली नहीं चला रहे हैं, समाचार सुना रहे हैं। अभी तक कई बच्चों को खिलौनों से खेलना बहुत अच्छा लगता है। छोटी-छोटी बातों के खिलौने से खेलना, छोटी बात को अपनाना, यह समय गँवाते हैं। यह साइडसीन्स हैं। भिन्नभिन्न संस्कार की बातें वा चलन यह सम्पूर्ण मंज़िल के बीच में साइडसीन्स हैं। इसमें रूकना अर्थात् सोचना, प्रभाव में आना, समय गँवाना, रूचि से सुनना, सुनाना, वायुमण्डल बनाना.... यह है रूकना, इससे सम्पूर्णता की मंज़िल से दूर हो जाते हैं। मेहनत बहुत, चाहना बहुत ‘‘बाप समान बनना ही है’’, शुभ संकल्प, शुभ इच्छा है लेकिन मेहनत करते भी रूकावट आ जाती है। दो कान हैं, दो आँखें हैं, मुख है तो देखने में भी आता, सुनने में भी आता, बोलने में भी आता, लेकिन बाप का बहुत पुराना स्लोगन सदा याद रखो - देखते हुए नहीं देखो, सुनते हुए नहीं सुनो। सुनते हुए नहीं सोचो, सुनते हुए अन्दर समाओ, फैलाओ नहीं।यह पुराना स्लोगन याद रखना जरूरी है क्योंकि दिन-प्रतिदिन जो भी सभी के जैसे पुराने शरीर के हिसाब चुक्तू हो रहे हैं, ऐसे ही पुराने संस्कार भी, पुरानी बीमारियाँ भी सबकी निकलके खत्म होनी है, इसीलिए घबराओ नहीं कि अभी तो पता नहीं और ही बातें बढ़ रही हैं, पहले तो थी नहीं। जो नहीं थी, वह भी अभी निकल रही हैं, निकलनी हैं। आपके समाने की शक्ति, सहन करने की शक्ति, समेटने की शक्ति, निर्णय करने की शक्ति का पेपर है। क्या 10 साल पहले वाले पेपर आयेंगे क्या? बी.ए. के क्लास का पेपर, एम.ए. के क्लास में आयेगा क्या? इसलिए घबराओ नहीं, क्या हो रहा है। यह हो रहा है, यह हो रहा है.. खेल देखो। पेपर तो पास हो जाओ, पास-विद्-आनर हो जाओ।

बापदादा ने पहले भी सुनाया है कि पास होने का सबसे सहज साधन है, बापदादा के पास रहो, जो आपके काम का नजारा नहीं है, उसको पास होने दो, पास रहो, पास करो, पास हो जाओ। क्या मुश्किल है? टीचर्स सुनाओ, मधुबन वाले सुनाओ। मधुबन वाले हाथ उठाओ। होशियार हैं मधुबन वाले आगे आ जाते हैं, भले आओ। बापदादा को खुशी है। अपना हक लेते हैं ना? अच्छा है, बापदादा नाराज़ नहीं है, भले आगे बैठो। मधुबन में रहते हैं तो कुछ तो पास खातिरी होनी चाहिए ना! लेकिन पास शब्द याद रखना। मधुबन में नई-नई बातें होती हैं ना, डाकू भी आते हैं। कई नई-नई बातें होती हैं, अभी बाप जनरल में क्या सुनायें, थोड़ा गुप्त रखते हैं लेकिन मधुबन वाले जानते हैं। मनोरंजन करो, मूंझो नहीं। या है मूंझना, या है मनोरंजन समझकर मौज में पास करना। तो मूंझना अच्छा है या पास करके मौज में रहना अच्छा है? पास करना है ना! पास होना है ना! तो पास करो। क्या बड़ी बात है? कोई बड़ी बात नहीं। बात को बड़ा करना या छोटा करना, अपनी बुद्धि पर है। जो बात को बड़ा कर देते हैं, उनके लिए अज्ञानकाल में भी कहते हैं कि यह रस्सी को सांप बनाने वाला है। सिन्धी भाषा में कहते हैं कि ‘‘नोरी को नाग’’ बनाते हैं। ऐसे खेल नहीं करो। अभी यह खेल खत्म।

आज विशेष समाचार तो सुनाया ना, बापदादा अभी एक सहज पुरूषार्थ सुनाते हैं, मुश्किल नहीं। सभी को यह संकल्प तो है ही कि बाप समान बनना ही है।बनना ही है, पक्का है ना! फारेनर्स बनना ही है ना? टीचर्स बनना है ना? इतनी टीचर्स आई हैं! वाह! कमाल है टीचर्स की। बापदादा ने आज खुशखबरी सुनी, टीचर्स की। कौन सी खुशखबरी है, बताओ। टीचर्स को आज गोल्डन मैडल (बैज) मिला है। जिसको गोल्डन मैडल मिला है, हाथ उठाओ। पाण्डवों को भी मिला है? बाप की हमजिन्स तो रहनी नहीं चाहिए। पाण्डव ब्रह्मा बाप की हमजिन्स हैं। (उन्हों को और प्रकार का गोल्डन मैडल मिला है) पाण्डवों को रायल गोल्ड मैडल है। गोल्डन मैडल वालों को बापदादा की अरब-खरब बारी मुबारक है, मुबारक है, मुबारक है।

बापदादा, जो देश-विदेश में सुन रहे हैं, और गोल्डन मैडल मिल चुका है, वह सभी भी समझें हमें भी बापदादा ने मुबारक दी है, चाहे पाण्डव हैं, चाहे शक्तियाँ हैं, किसी भी कार्य के निमित्त बनने वालों को खास यह दादियाँ, परिवार में रहने वालों को भी कोई विशेषता के आधार पर गोल्डन मैडल देती हैं। तो जिसको भी जिस भी विशेषता के आधार पर चाहे सरेण्डर के आधार पर, चाहे कोई भी सेवा में विशेष आगे बढ़ने वाले को दादियों द्वारा भी गोल्डन मैडल मिला है, तो दूर बैठे सुनने वालों को भी बहुत-बहुत मुबारक है। आप सब दूर बैठकर मुरली सुनने वालों के लिए, गोल्डन मैडल वालों के लिए एक हाथ की ताली बजाओ, वह आपकी ताली देख रहे हैं। वह भी हँस रहे हैं, खुश हो रहे हैं।

बापदादा सहज पुरूषार्थ सुना रहे थे - अभी समय तो अचानक होना है, एक घण्टा पहले भी बापदादा अनाउन्स नहीं करेगा, नहीं करेगा, नहीं करेगा! नम्बर कैसे बनेंगे? अगर अचानक नहीं होगा तो पेपर कैसे हुआ? पास विद आनर का सर्टीफिकेट, फाइनल सर्टीफिकेट तो अचानक में ही होना है। इसलिए दादियों का एक संकल्प बापदादा के पास पहुँचा है। दादियाँ चाहती हैं कि अभी बापदादा साक्षात्कार की चाबी खोले, यह इन्हों का संकल्प है। आप सब भी चाहते हो? बापदादा चाबी खोलेंगे या आप निमित्त बनेंगे? अच्छा, बापदादा चाबी खोले, ठीक है। बापदादा हाँ जी करते हैं, (ताली बजा दी) पहले पूरा सुनो। बापदादा को चाबी खोलने में क्या देरी है, लेकिन करायेगा किस द्वारा? प्रत्यक्ष किसको करना है? बच्चों को या बाप को? बाप को भी बच्चों द्वारा करना है क्योंकि अगर ज्योतिबिन्दु का साक्षात्कार भी हो जाए तो कई तो बिचारे..., बिचारे हैं ना! तो समझेंगे ही नहीं कि यह क्या है। अन्त में शक्तियां और पाण्डव बच्चों द्वारा बाप को प्रत्यक्ष होना है। तो बापदादा यही कह रहे हैं कि जब सब बच्चों का एक ही संकल्प है कि बाप समान बनना ही है, इसमें तो दो विचार नहीं हैं ना! एक ही विचार है ना। तो ब्रह्मा बाप को फालो करो। अशरीरी, बिन्दी ऑटोमेटिकली हो जायेंगे। ब्रह्मा बाप से तो सबका प्यार है ना! सबसे ज्यादा देखा गया है, वैसे तो सभी का है लेकिन फारेनर्स का ब्रह्मा बाप से बहुत प्यार है। इस नेत्र द्वारा देखा नहीं है लेकिन अनुभव के नेत्र द्वारा फारेनर्स ने मैजॉरिटी ब्रह्मा बाबा को देखा है और बहुत प्यार है। ऐसे तो भारत की गोपिकायें, गोप भी हैं फिर भी बापदादा फारेनर्स की कभी-कभी अनुभव की कहानियाँ सुनते हैं, भारतवासी थोड़ा गुप्त रखते हैं, वह ब्रह्मा बाबा के प्रति सुनाते हैं तो उन्हों की कहानियाँ बापदादा भी सुनते हैं और औरों को भी सुनाते हैं, मुबारक हो फारेनर्स को। लंदन, अमेरिका, आस्ट्रेलिया, अफ्रीका, एशिया, रशिया, जर्मनी... मतलब तो चारों ओर के फारेनर्स को जो दूर बैठे भी सुन रहे हैं, उन्हों को भी बापदादा मुबारक देते हैं, खास ब्रह्मा बाबा मुबारक दे रहे हैं। भारत वालों का थोड़ा गुप्त है, प्रसिद्ध इतना नहीं कर सकते हैं, गुप्त रखते हैं। अभी प्रत्यक्ष करो। बाकी भारत में भी बहुत अच्छे-अच्छे हैं। ऐसी गोपिकायें हैं, अगर उन्हों का अनुभव आजकल के प्राइममिनिस्टर, प्रेजीडेंट भी सुनें तो उनकी आँखों से भी पानी आ जाए। ऐसे अनुभव हैं लेकिन गुप्त रखते हैं इतना खोलते नहीं हैं, चांस भी कम मिलता है। तो बापदादा यह कह रहे हैं कि ब्रह्मा बाप से सबका प्यार तो है, इसीलिए तो अपने को क्या कहलाते हो? ब्रह्माकुमारी या शिव कुमारी? ब्रह्माकुमारी कहलाते हो ना, तो ब्रह्मा बाप से प्यार तो है ही ना। तो चलो अशरीरी बनने में थोड़ी मेहनत करनी भी पड़ती है लेकिन ब्रह्मा बाप अभी किस रूप में है? किस रूप में है? बोलो? (फरिश्ता रूप में है) तो ब्रह्मा से प्यार अर्थात् फरिश्ता रूप से प्यार। चलो बिन्दी बनना मुश्किल लगता है, फरिश्ता बनना तो उससे सहज है ना! सुनाओ, बिन्दी रूप से फरिश्ता रूप तो सहज है ना! आप एकाउन्ट का काम करते बिन्दी बन सकते हो? फरिश्ता तो बन सकते हो ना! बिन्दी रूप में कर्म करते हुए कभी-कभी व्यक्त शरीर में आ जाना पड़ता है लेकिन बापदादा ने देखा कि साइंस वालों ने एक लाइट के आधार से रोबट बनाया है, सुना है ना! चलो देखा नहीं सुना तो है! माताओं ने सुना है? आपको चित्र दिखा देंगे। वह लाइट के आधार से रोबट बनाया है और वह सब काम करता है। और फास्ट गति से करता है, लाइट के आधार से। और साइंस का प्रत्यक्ष प्रमाण है। तो बापदादा कहते हैं क्या साइलेन्स की शक्ति से, साइलेन्स की लाइट से आप कर्म नहीं कर सकते? नहीं कर सकते? इन्जीनियर और साइंस वाले बैठे हैं ना! तो आप भी एक रूहानी रोबट की स्थिति तैयार करो। जिसको कहेंगे रूहानी कर्मयोगी, फरिश्ता कर्मयोगी। पहले आप तैयार हो जाना। इन्जीनियर हैं, साइंस वाले हैं तो पहले आप अनुभव करना। करेंगे? कर सकते हैं? अच्छा, ऐसे प्लैन बनाओ। बापदादा ऐसे रूहानी चलते फिरते कर्मयोगी फरिश्ते देखने चाहते हैं। अमृतवेले उठो, बापदादा से मिलन मनाओ, रूह-रूहान करो, वरदान लो। जो करना है वह करो। लेकिन बापदादा से रोज अमृतवेले कर्मयोगी फरिश्ता भवका वरदान लेके फिर कामकाज में आओ। यह हो सकता है?

आप लोगों की डिपार्टमेंट (एकाउन्ट की) सबसे दिमाग चलाने वाली है, हो सकता है? मधुबन वाले हाथ उठाओ। जो समझते हैं हो सकता है वह बड़ा हाथ उठाओ। मधुबन की बहनों ने उठाया! मधुबन का वायब्रेशन तो चारों ओर फैलेगा ही। इसमें फरिश्ते स्वरूप में कर्मयोगी, डबल लाइट, लाइट के शरीर से, लाइट बन कर्म कर रहे हैं। बोलो तो भी फरिश्ते रूप में, काम करो फरिश्ते रूप में। जिससे काम है वही एक सुने दूसरा सुने ही नहीं। वातावरण क्यों बनता है?

बापदादा ने देखा है कोई भी छोटी बात का वातावरण बनने का कारण जो बात करते हैं ना, वह ऐसे करते हैं जो जिसका उस बात से सम्बन्ध ही नहीं है, उनके भी कानों में पड़ती है। उनका भी व्यर्थ संकल्प चलना शुरू हो जाता है। इसलिए फरिश्ता अर्थात् जिसका काम वही सुने। जितना काम है उतना ही बोले, कहानी बनाके नहीं बोले। कथा नहीं करो। कथा हमेशा मिक्स भी होती है और लम्बी भी होती है। तो ब्रह्मा बाप के प्यार का रिटर्न है - ब्रह्मा बाप समान कर्मयोगी फरिश्ता भव।

बापदादा यही कह रहे हैं - इस स्थिति की धरनी तैयार करो तो बापदादा साक्षात बाप बच्चों द्वारा साक्षात्कार अवश्य करायेगा। साक्षात् बाप और साक्षात्कार’ - यह दो शब्द याद रखना। बस हैं ही फरिश्ते। सेवा भी करते हैं, ऊपर की स्टेज से फरिश्ते आये, सन्देश दिया फिर ऊपर चले गये अर्थात् ऊँची स्मृति में चले गये।

अभी समय अनुसार जैसे कहाँ-कहाँ पानी के प्यासी हैं, ऐसे वर्तमान समय शुद्ध, शान्तिमय, सुखमय वायब्रेशन के प्यासी हैं। फरिश्ते रूप से ही वायब्रेशन फैला सकते हो। फरिश्ता अर्थात् सदा ऊँच स्थिति में रहने वाले। फरिश्ता अर्थात् पुराने संसार और पुराने संस्कार से नाता नहीं। अभी संसार परिवर्तन आप सबके संस्कार परिवर्तन के लिए रूका हुआ है।

इस नये वर्ष में लक्ष्य रखो - संस्कार परिवर्तन, स्वयं का भी और सहयोग द्वारा औरों का भी। कोई कमज़ोर है तो सहयोग दो, न वर्णन करो, न वातावरण बनाओ। सहयोग दो। इस वर्ष की टॉपिक ‘‘संस्कार परिवर्तन’’। फरिश्ता संस्कार, ब्रह्मा बाप समान संस्कार। तो सहज पुरूषार्थ है या मुश्किल है? थोड़ा-थोड़ा मुश्किल है? कभी भी कोई बात मुश्किल होती नहीं है, अपनी कमज़ोरी मुश्किल बनाती है। इसीलिए बापदादा कहते हैं ‘‘हे मास्टर सर्वशक्तिवान बच्चे, अभी शक्तियों का वायुमण्डल फैलाओ।’’ अभी वायुमण्डल को आपकी बहुत-बहुत-बहुत आवश्यकता है। जैसे आजकल विश्व में पोल्यूशन की प्राबलम है, ऐसे विश्व में एक घड़ी मन में शान्ति सुख के वायुमण्डल की आवश्यकता है क्योंकि मन का पोल्यूशन बहुत है, हवा की पोल्यूशन से भी ज्यादा है। अच्छा।

चारों ओर के बापदादा समान बनना ही है, लक्ष्य रखने वाले, निश्चय बुद्धि विजयी आत्माओं को, सदा पुराने संसार और पुराने संस्कार को दृढ़ संकल्प द्वारा परिवर्तन करने वाले मास्टर सर्वशक्तिवान आत्माओं को, सदा किसी भी कारण से सरकमस्टांश से स्वभाव-संस्कार से, कमज़ोर साथियों को, आत्माओं को सहयोग देने वाले, कारण देखने वाले नहीं, निवारण करने वाले ऐसे हिम्मतवान आत्माओं को, सदा ब्रह्मा बाप के स्नेह का रिटर्न देने वाले कर्मयोगी फरिश्ते आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

सेवा का टर्न पंजाब का है, पंजाब वालों का ब्रह्मा बाप से अच्छा प्यार है।

अच्छा है, ब्रह्मा बाप की पालना भी ली है, तो जैसे आजकल प्राइज देने का प्रोग्राम बना रहे हैं, तो बापदादा समझते हैं कि जैसे कल्चर आफ पीस में नम्बरवन प्राइज कोई भी जोन वाले ने लिया है, सेन्टर ने लिया है, ऐसे यह कर्मयोगी फरिश्ते स्वरूप की स्टेज में नम्बरवन प्राइज पंजाब लेवे। हो सकता है? पंजाब वाले हाथ उठाओ। लेंगे फर्स्ट प्राइज? पंजाब वाले जो फर्स्ट प्राइज लेंगे वह एक हाथ की ताली बजाओ। पंजाब की टीचर्स एक हाथ की ताली बजाओ। बहुत समय बैठे हो, ड्रिल करो, उठो। और सेन्टर से जो मुख्य पाण्डव हैं वह भी उठो। फर्स्ट प्राइज लेंगे? अच्छा, अभी देखेंगे तीन प्राइज कौन लेता है। फर्स्ट, सेकण्ड, थर्ड, तीन प्राइज बापदादा देंगे। कितने टाइम में प्राइज देंगे? (दादी ने कहा मई तक) (बापदादा पंजाब की अचल बहन से पूछ रहे हैं? (6 मास में पूरा पुरूषार्थ रहेगा) टीचर्स बताओ 6 मास चाहिए? जिसको 6 मास चाहिए वह हाथ उठाओ। अच्छा बाकी को क्या चाहिए 12 मास? कम समय चाहिए। चलो बापदादा लास्ट मार्च में पेपर लेगा? फिर परसेन्टेज में हो या फाइनल हो, उस अनुसार प्राइज देंगे। ठीक है ना! मार्च में लास्ट टर्न में। (अभी लास्ट टर्न शिवरात्रि पर है) फरवरी एन्ड या मार्च बात एक ही है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि सिर्फ पंजाब तैयार हो, सभी जोन, सभी सेन्टर को तैयार होना है। हो सकता है पंजाब से आगे कोई फर्स्ट से भी आगे जाए ए वन। इसलिए सभी जोन का पेपर लेंगे? मधुबन भी जोन है, ऐसे नहीं समझना हम जोन में नहीं है। पहले मधुबन। अच्छा।

जगदीश भाई से:- ठीक है ना! (ज्यादा तो आप जानते हैं) अच्छा है। अभी नेचरल साधन से ही ठीक है। सेवा तो आपने आदि से बहुत की है, (फर्ज अदा किया है अपना भाग्य बनाया है) अभी भी चाहे शरीर द्वारा ज्यादा नहीं कर सकते, लेकिन जिन आत्माओं ने जिस सेवा के निमित्त बन सेवा की इन्वेन्शन के निमित्त बने हैं, उन्हों को उस सेवा की सफलता के शेयर जमा होते हैं। जैसे प्रदर्शनी की इन्वेन्शन हुई, तो उस द्वारा क्वान्टिटी को सन्देश मिल रहा है, मेला हुआ यह भी क्वान्टिटी की सेवा, वी.आई.पी आता है तो कोई कोई, लेकिन कांफ्रेंस हुई तो कांफ्रेंस की सेवा से स्पीच की आकर्षण से वी.आई.पी. आते हैं उन्हों की सेवा होती है, लेकिन उसमें भी कोई- कोई। अभी जो वर्गाकरण की सेवा हो रही है, इसमें भिन्न-भिन्न वर्ग के वी.आई.पी. का आना हो रहा है और वर्गाकरण की सेवा से नजदीक सहयोग में भी आते हैं, क्यों? एक तो 15 वर्ग हैं, विस्तार है। तो 15 वर्ग ही अलग-अलग सेवा कर रहे हैं, अलग- अलग वी.आई.पी. को इन्वाइट करते हैं और दूसरा 2-3 दिन रहने का साधन मिलता है। कांफ्रेंस में आते हैं लेकिन वी.आई.पी. जो हैं वह भाषण करके मैजारिटी चले जाते हैं फिर भी साधन है, आकर्षण है, वी.आई.पी को स्पीच करने की। तो जिन्होंने भी जो भी इन्वेन्शन की है, निमित्त बने हैं उनको उनकी सेवा का शेयर मिलता है। इसलिए आप फिकर नहीं करो कि मैं सेवा नहीं कर सकता, नहीं, सेवा हो रही है। भिन्न-भिन्न सेवा के निमित्त बने ना। यह (रमेश भाई) प्रदर्शनी के बने, वह (निर्वैर भाई) सीढ़ी के बने, कोई न कोई सेवा के निमित्त बने, कोई कांफ्रेंस के निमित्त बनते हैं और दादियाँ तो सभी में हैं। आप विंग्स के निमित्त हैं। दादियों की भी छत्रछाया है। हाँ विदेश में भी सेवा की। तो फाउण्डेशन डालने में मेहनत होती है। इसलिए फिकर नहीं करो आपका शेयर इकठ्ठा हो रहा है। थोड़ा फ़िकर है। (बाबा को प्रत्यक्ष नहीं किया है, यह फ़िकर है) यह वायुमण्डल से हो जायेगा। समय इन्तजार कर रहा है, पर्दा खुलने के लिए। अभी इस वर्ष में फरिश्ता रूप बन जाएँ, चारों ओर साक्षात्कार शुरू हो जायेंगे। देखेंगे यह कौन आया, यह ब्रह्मा बाबा को जैसे पहले-पहले देखा, ऐसे ब्रह्मा बाप के साथ-साथ आप पाण्डव शक्तियों को देखेंगे। ढ़ूँढ़ेंगे यह कौन हैं, कहाँ हैं। पहली-पहली आत्मा निकली हो दिल्ली सेवा में। और आते ही सेवा शुरू कर दी, पहला-पहला किताब याद है कौन-सा लिखा था? कुम्भ के मेले के लिए लिखा था। तो आते ही सेवा की है ना! इसलिए आपको फल मिलेगा। तो करो डांस। गणपति डांस, करो। (जगदीश भाई ने गणपति डांस की)

अच्छा है, निमित्त सेवा है लेकिन भाग्य की लकीर लम्बी खींच रही है। (तनजानिया से जगदीश भाई के लिए नेचरोपैथी की डाक्टर आई है) अच्छा है निमित्त बनने का गोल्डन चांस मिला है। ऐसे अनुभव करती हो?

अच्छा है, सहयोग देना, सहयोगी बनना अर्थात् स्वयं का खाता बढ़ाना। अच्छा- ओम् शान्ति।

मुरली दादा, रजनी बहन से (जयन्ती बहन के लौकिक मात-पिता) –

बापदादा का हाथ और साथ सदा आदि से है और अन्त तक है ही है। (दादी जानकी कह रही हैं कभी-कभी दिल छोटी कर देते हैं) नहीं। बापदादा का हाथ और साथ दोनों के ऊपर है ही। क्यों? कारण? आपके शेयर का खाता बहुत बड़ा है। जो कन्यादान किया है उसकी सेवा का शेयर आपके खाते में जमा है, इसलिए खुश रहो। बेफकर बादशाह। बेफकर बापदादा हैं ना! सहयोग मिलता रहेगा। अच्छा। कोई फ़िकर नहीं करो, बापदादा कोई-न-कोई को निमित्त बनाता है। बहुत अच्छा किया।



31-12-2000   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


बचत का खाता जमा कर अखण्ड महादानी बनो

आज नव युग रचता अपने नव युग अधिकारी बच्चों को देख रहे हैं। आज पुराने युग में साधारण हैं और कल नये युग में राज्य अधिकारी पूज्य हैं। आज और कल का खेल है। आज क्या और कल क्या! जो अनन्य ज्ञानी तू आत्मा बच्चे हैं, उन्हों के सामने आने वाला कल भी इतना ही स्पष्ट है जितना आज स्पष्ट है। आप सभी तो नया वर्ष मनाने आये हो लेकिन बापदादा नया युग देख रहे हैं। नये वर्ष में तो हर एक ने अपना-अपना नया प्लैन बनाया ही होगा। आज पुराने की समाप्ति है, समाप्ति में सारे वर्ष की रिजल्ट देखी जाती है। तो आज बापदादा ने भी हर एक बच्चों का वर्ष का रिजल्ट देखा। बापदादा को तो देखने में समय नहीं लगता है। तो आज विशेष सभी बच्चों के जमा का खाता देखा। पुरूषार्थ तो सभी बच्चों ने किया, याद में भी रहे, सेवा भी की, सम्बन्ध-सम्पर्क में भी लौकिक या अलौकिक परिवार में निभाया, लेकिन इन तीनों बातों में जमा का खाता कितना हुआ?

आज वतन में बापदादा ने जगत अम्बा माँ को इमर्ज किया। (खाँसी आई) आज बाजा थोड़ा खराब है, बजाना तो पड़ेगा ना। तो बापदादा और मम्मा ने मिलकर सभी के बचत का खाता देखा। बचत करके जमा कितना हुआ! तो क्या देखा? नम्बरवार तो सभी हैं ही लेकिन जितना जमा का खाता होना चाहिए उतना खाते में जमा कम था। तो जगत अम्बा माँ ने प्रश्न पूछा - याद की सब्जेक्ट में कई बच्चों का लक्ष्य भी अच्छा है, पुरूषार्थ भी अच्छा है, फिर जमा का खाता जितना होना चाहिए उतना कम क्यों? बातें, रूह-रूहान चलते-चलते यही रिजल्ट निकली कि योग का अभ्यास तो कर ही रहे हैं लेकिन योग के स्टेज की परसेन्टेज साधारण होने के कारण जमा का खाता साधारण ही है। योग का लक्ष्य अच्छी तरह से है लेकिन योग की रिजल्ट है- योगयुक्त, युक्तियुक्त बोल और चलन। उसमें कमी होने के कारण योग लगाने के समय योग में अच्छे हैं, लेकिन योगी अर्थात् योगी का जीवन में प्रभाव। इसलिए जमा का खाता कोई कोई समय का जमा होता है, लेकिन सारा समय जमा नहीं होता। चलते-चलते याद की परसेन्टेज साधारण हो जाती है। उसमें बहुत कम जमा खाता बनता है।

दूसरा - सेवा की रूह-रूहान चली। सेवा तो बहुत करते हैं, दिनरात बिजी भी रहते हैं। प्लैन भी बहुत अच्छे-अच्छे बनाते हैं और सेवा में वृद्धि भी बहुत अच्छी हो रही है। फिर भी मैजॉरिटी का जमा का खाता कम क्यों? तो रूह-रूहान में यह निकला कि सेवा तो सब कर रहे हैं, अपने को बिजी रखने का पुरूषार्थ भी अच्छा कर रहे हैं। फिर कारण क्या है? तो यही कारण निकला सेवा का बल भी मिलता है, फल भी मिलता है। बल है स्वयं के दिल की सन्तुष्टता और फल है सर्व की सन्तुष्टता। अगर सेवा की, मेहनत और समय लगाया तो दिल की सन्तुष्टता और सर्व की सन्तुष्टता, चाहे साथी, चाहे जिन्हों की सेवा की दिल में सन्तुष्टता अनुभव करें, बहुत अच्छा, बहुत अच्छा कहके चले जायें, नहीं। दिल में सन्तुष्टता की लहर अनुभव हो। कुछ मिला, बहुत अच्छा सुना, वह अलग बात है। कुछ मिला, कुछ पाया, जिसको बापदादा ने पहले भी सुनाया - एक है दिमाग तक तीर लगना और दूसरा है दिल पर तीर लगना। अगर सेवा की और स्व की सन्तुष्टता, अपने को खुश करने की सन्तुष्टता नहीं, बहुत अच्छा हुआ, बहुत अच्छा हुआ, नहीं। दिल माने स्व की भी और सर्व की भी। और दूसरी बात है कि सेवा की और उसकी रिजल्ट अपनी मेहनत या मैंने किया... मैंने किया यह स्वीकार किया अर्थात् सेवा का फल खा लिया। जमा नहीं हुआ। बापदादा ने कराया, बापदादा के तरफ अटेन्शन दिलाया, अपने आत्मा की तरफ नहीं। यह बहन बहुत अच्छी, यह भाई बहुत अच्छा, नहीं। बापदादा इन्हों का बहुत अच्छा, यह अनुभव कराना - यह है जमा खाता बढ़ाना। इसलिए देखा गया टोटल रिजल्ट में मेहनत ज्यादा, समय एनर्जी ज्यादा और थोड़ा-थोड़ा शो ज्यादा। इसलिए जमा का खाता कम हो जाता है। जमा के खाते की चाबी बहुत सहज है, वह डायमण्ड चाबी है, गोल्डन चाबी लगाते हो लेकिन जमा की डायमण्ड चाबी है ‘‘निमित्त भाव और निर्मान भाव’’। अगर हर एक आत्मा के प्रति, चाहे साथी, चाहे सेवा जिस आत्मा की करते हो, दोनों में सेवा के समय, आगे पीछे नहीं सेवा करने के समय निमित्त भाव, निर्मान भाव, नि:स्वार्थ शुभ भावना और शुभ स्नेह इमर्ज हो तो जमा का खाता बढ़ता जायेगा।

बापदादा ने जगत अम्बा माँ को दिखाया कि इस विधि से सेवा करने वाले का जमा का खाता कैसे बढ़ता जाता है। बस, सेकण्ड में अनेक घण्टों का जमा खाता जमा हो जाता है। जैसे टिक-टिक-टिक जोर से जल्दी-जल्दी करो, ऐसे मशीन चलती है। तो जगत अम्बा बड़ी खुश हो रही थी कि जमा का खाता, जमा करना तो बहुत सहज है। तो दोनों की (बापदादा और जगत अम्बा की) राय हुई कि अब नया वर्ष शुरू हो रहा है तो जमा का खाता चेक करो, सारे दिन में गलती नहीं की लेकिन समय, संकल्प, सेवा, सम्बन्ध-सम्पर्क में स्नेह, सन्तुष्टता द्वारा जमा कितना किया? कई बच्चे सिर्फ यह चेक कर लेते हैं - आज बुरा कुछ नहीं हुआ। कोई को दु:ख नहीं दिया। लेकिन अब यह चेक करो कि सारे दिन में श्रेष्ठ संकल्पों का खाता कितना जमा किया? श्रेष्ठ संकल्प द्वारा सेवा का खाता कितना जमा हुआ? कितनी आत्माओं को किसी भी कार्य से सुख कितनों को दिया? योग लगाया लेकिन योग की परसेन्टेज किस प्रकार की रही? आज के दिन दुआओं का खाता कितना जमा किया?

इस नये वर्ष में क्या करना है? कुछ भी करते हो चाहे मन्सा, चाहे वाचा, चाहे कर्मणा लेकिन समय प्रमाण मन में यह धुन लगी रहे - मुझे अखण्ड महादानी बनना ही है। अखण्ड महादानी, महादानी नहीं, अखण्ड। मन्सा से शक्तियों का दान, वाचा से ज्ञान का दान और अपने कर्म से गुण दान। आजकल दुनिया में, चाहे ब्राह्मण परिवार की दुनिया, चाहे अज्ञानियों की दुनिया में सुनने के बजाए देखना चाहते हैं। देखकर करना चाहते हैं। आप लोगों को सहज क्यों हुआ? ब्रह्मा बाप को कर्म में गुण दान मूर्त देखा। ज्ञान दान तो करते ही हो लेकिन इस वर्ष का विशेष ध्यान रखो - हर आत्मा को गुण दान अर्थात् अपने जीवन के गुण द्वारा सहयोग देना है। ब्राह्मणों को दान तो नहीं करेंगे ना, सहयोग दो। कुछ भी हो जाए, कोई कितने भी अवगुणधारी हो, लेकिन मुझे अपने जीवन द्वारा, कर्म द्वारा, सम्पर्क द्वारा गुणदान अर्थात् सहयोगी बनना है। इसमें दूसरे को नहीं देखना, यह नहीं करता है तो मैं कैसे करूँ, यह भी तो ऐसा ही है। ब्रह्मा बाप ने सी (See) शिव बाप किया। अगर देखना है तो ब्रह्मा बाप को देखो। इसमें दूसरे को न देख यह लक्ष्य रखो जैसे ब्रह्मा बाप का स्लोगन था ‘‘ओटे सो अर्जुन’’ अर्थात् जो स्वयं को निमित्त बनायेगा वह नम्बरवन अर्जुन हो जायेगा। ब्रह्मा बाप अर्जुन नम्बरवन बना। अगर दूसरे को देख करके करेंगे तो नम्बरवन नहीं बनेंगे। नम्बरवार में आयेंगे, नम्बरवन नहीं बनेंगे। और जब हाथ उठवाते हैं तो सब नम्बरवार में हाथ उठाते हैं या नम्बरवन में उठाते हैं? तो क्या लक्ष्य रखेंगे? अखण्ड गुणदानी, अटल, कोई कितना भी हिलावे, हिलना नहीं। हरेक एक दो को कहते हैं, सभी ऐसे हैं, तुम ऐसे क्यों अपने को मारता है, तुम भी मिल जाओ। कमज़ोर बनाने वाले साथी बहुत मिलते हैं। लेकिन बापदादा को चाहिए हिम्मत, उमंग बढ़ाने वाले साथी। तो समझा क्या करना है? सेवा करो लेकिन जमा का खाता बढ़ाते हुए करो, खूब सेवा करो। पहले स्वयं की सेवा, फिर सर्व की सेवा। और भी एक बात बापदादा ने नोट की, सुनायें?

आज चन्द्रमा और सूर्य का मिलन था ना। तो जगत अम्बा माँ बोली एडवांस पार्टी कब तक इन्तजार करे? क्योंकि जब आप एडवांस स्टेज पर जाओ तब एडवांस पार्टी का कार्य पूरा हो। तो जगत अम्बा माँ ने आज बापदादा को बहुत धीरे से, बड़े तरीके से एक बात सुनाई, वह एक कौन सी बात सुनाई? बापदादा तो जानते हैं, फिर भी आज रूह-रूहान थी ना। तो क्या कहा कि मैं भी चक्कर लगाती हूँ, मधुबन में भी लगाती हूँ तो सेन्टरों पर भी लगाती हूँ। तो हँसते-हँसते, जिन्होंने जगत अम्बा को देखा है उन्हों को मालूम है कि हँसते, हँसते इशारे में बोलती है, सीधा नहीं बोलती है। तो बोली कि आजकल एक विशेषता दिखाई देती है, कौन-सी विशेषता? तो कहा कि आजकल अलबेलापन बहुत प्रकार का आ गया है। कोई के अन्दर किस प्रकार का अलबेलापन है, कोई के अन्दर किस प्रकार का अलबेलापन है। हो जायेगा, कर लेंगे.. और भी तो कर रहे हैं, हम भी कर लेंगे... यह तो होता ही है, चलता ही है... यह भाषा अलबेलेपन की संकल्प में तो है ही लेकिन बोल में भी है। तो बापदादा ने कहा कि इसके लिए नये वर्ष में आप कोई युक्ति बच्चों को सुनाओ। तो आप सबको पता है जगत अम्बा माँ का एक सदा धारणा का स्लोगन रहा है, याद है? किसको याद है? (हुक्मी हुक्म चलाए रहा..) तो जगत अम्बा बोली अगर यह धारणा सब कर लें कि हमें बापदादा चला रहा है, उसके हुक्म से हर कदम चला रहे हैं। अगर यह स्मृति रहे तो हमारे को चलाने वाला डायरेक्ट बाप है। तो कहाँ नजर जायेगी? चलने वाले की, चलाने वाले के तरफ ही नजर जायेगी, दूसरे तरफ नहीं। तो यह करावनहार निमित्त बनाए करा रहे हैं, चला रहे हैं। जिम्मेवार करावनहार है। फिर सेवा में जो माथा भारी हो जाता है ना, वह सदा हल्का रहेगा, जैसे रूहे गुलाब। समझा, क्या करना है? अखण्ड महादानी। अच्छा।

नया वर्ष मनाने के लिए सभी भाग-भाग करके पहुँच गये हैं। अच्छा है हाउस फुल हो गया है। अच्छा पानी तो मिला ना! मिला पानी? फिर भी पानी की मेहनत करने वालों को मुबारक है। इतने हजारों को पानी पहुँचाना, कोई दो-चार बाल्टी तो नहीं है ना! चलो कल से तो चलाचली का मेला होगा। सब आराम से रहे! थोड़ा-सा तूफान ने पेपर लिया। थोड़ी हवा लगी। सब ठीक रहे? पाण्डव ठीक रहे? अच्छा है कुम्भ के मेले से तो अच्छा है ना! अच्छा तीन पैर पृथ्वी तो मिली ना। खटिया नहीं मिली लेकिन तीन पैर पृथ्वी तो मिली ना!

तो नये वर्ष में चारों ओर के बच्चे भी विदेश में भी, देश में भी नये वर्ष की सेरीमनी बुद्धि द्वारा देख रहे हैं, कानों द्वारा सुन रहे हैं। मधुबन में भी देख रहे हैं। मधुबन वालों ने भी यज्ञ रक्षक बन सेवा का पार्ट बजाया है, बहुत अच्छा। बापदादा विदेश वा देश वालों के साथ मधुबनवासियों को भी जो सेवा के निमित्त हैं, उन्हों को भी मुबारक दे रहे हैं। अच्छा। बाकी तो कार्ड बहुत आये हैं। आप सब भी देख रहे हो ना बहुत कार्ड आये हैं। कार्ड तो कोई बड़ी बात नहीं है लेकिन इसमें छिपा हुआ दिल का स्नेह है। तो बापदादा कार्ड की शोभा नहीं देखते लेकिन कितने कीमती दिल का स्नेह भरा हुआ है, तो सभी ने अपने-अपने दिल का स्नेह भेजा है। तो ऐसे स्नेही आत्माओं को विशेष एक एक का नाम तो नहीं लेंगे ना! लेकिन बापदादा कार्ड के बदले ऐसे बच्चों को स्नेह भरा रिगार्ड दे रहे हैं। याद पत्र, टेलीफोन, कम्प्युटर, ई-मेल, जो भी साधन हैं उन सभी साधनों से पहले संकल्प द्वारा ही बापदादा के पास पहुँच जाता है फिर आपके कम्प्युटर और ई-मेल में आता है। बच्चों का स्नेह बापदादा के पास हर समय पहुँचता ही है। लेकिन आज विशेष नये वर्ष के कईयों ने प्लैन भी लिखे हैं, प्रतिज्ञायें भी की हैं, बीती को बीती कर आगे बढ़ने की हिम्मत भी रखी है। सभी को बापदादा कह रहे हैं बहुत-बहुत शाबास बच्चे, शाबास!

आप सभी खुश हो रहे हैं ना! तो वह भी खुश हो रहे हैं। अभी बापदादा की यही दिल की आश है कि - ‘‘दाता का बच्चा हर एक दाता बन जाओ।’’ माँगो नहीं यह मिलना चाहिए, यह होना चाहिए, यह करना चाहिए। दाता बनो, एक दो को आगे बढ़ाने में फ्रीखदिल बनो। बापदादा को छोटे कहते हैं कि हमको बड़ों का प्यार चाहिए और बाप छोटों को कहते हैं कि बड़ों का रिगार्ड रखो तो प्यार मिलेगा। रिगार्ड देना ही रिगार्ड लेना है। रिगार्ड ऐसे नहीं मिलता है। देना ही लेना है। जब आपके जड़ चित्र देते हैं। देवता का अर्थ ही है देने वाला। देवी का अर्थ ही है देने वाली। तो आप चैतन्य देवी देवतायें दाता बनो, दो। अगर सभी देने वाले दाता बन जायेंगे, तो लेने वाले तो खत्म हो जायेंगे ना! फिर चारों ओर सन्तुष्टता की, रूहानी गुलाब की खुशबू फैल जायेगी। सुना!

तो नये वर्ष में न पुरानी भाषा बोलना, जो पुरानी भाषा कई-कई बोलते हैं जो अच्छी नहीं लगती है, तो पुराने बोल, पुरानी चाल, पुरानी कोई भी आदत से मजबूर नहीं बनना। हर बात में अपने से पूछना कि नया है! क्या नया किया? बस सिर्फ 21 वीं सदी मनाना है, 21 जन्म का सम्पूर्ण वर्सा 21 वीं सदी में पाना ही है। पाना है ना! अच्छा।

सेवा में गुजरात का टर्न है - गुजरात की सेवा तो मशहूर है ना? अच्छा है गुजरात की विशेषता है कि जितना पास में है, उतना हर कार्य में सहयोग देने में एवररेडी बन जाते हैं। गुजरात वालों को सिर्फ बापदादा एक उल्हना देते हैं, बतायें क्या? जितना पास है ना, उतने कोई माइक्स पास में नहीं आये हैं। गुजरात की मिनिस्ट्री बहुत अच्छी है। गुजरात को मिनिस्ट्री में से कोई ग्रुप तैयार करना चाहिए, हो सकता है। जो मिलकर एक हैदराबाद, एक गुजरात, कनार्टक में भी हैं, कोई ऐसे सम्बन्ध-सम्पर्क में लायें, हैं सम्बन्ध-सम्पर्क में लेकिन सेवा में लगें। जब काम पड़ता है तब उसी थोड़े टाइम के लिए तो मददगार बन जाते हैं, लेकिन सेवा में निमित्त बनते रहें, इतने समीप और बेधड़क हो। बापदादा ने जो पहले कहा है, अभी वर्ष पूरा हो रहा है लेकिन बापदादा के पास वह रिजल्ट आई नहीं है। जगह-जगह पर बिखरे हुए अच्छे-अच्छे आई.पी. हैं। मधुबन में भी बहुत आये हैं, सेवाकेन्द्रों पर भी बहुत आते रहते हैं लेकिन उन्हों का संगठन नहीं हुआ है। जोन-जोन में भी संगठन हो जाए, उन्हों में हिम्मत आवे आगे बढ़ने की। इण्डीविज्युअल तो सेवा करते रहते हो लेकिन आवाज तब होगा जब एक-दो के संगठन में आयेंगे। जैसे फारेन से ग्रुप बनके आया ना! चाहे छोटा आया, चाहे बड़ा आया लेकिन ग्रुप बनके आया। और ग्रुप बनने में ताकत, हिम्मत आती है। अच्छा। गुजरात वालों को सेवा की मुबारक है।

विदेश के यूथ की रिट्रीट ज्ञान सरोवर में चल रही है

अच्छा है, यूथ ग्रुप का भी बापदादा ने समाचार सुना। अच्छा पुरूषार्थ और विधि बहुत अच्छी अपनाते हैं। फारेन के यूथ खड़े हो जाओ। अच्छा। जो यहाँ अभ्यास पक्का किया है, वह वहाँ भी कायम रहेगा ना! या थोड़ा कम हो जायेगा? बोलो! अपने देश में जाके भी यह अभ्यास जो 5 सेकण्ड का किया वह रहेगा? (हाथ हिला रहे हैं) अच्छा, प्रोग्राम बहुत अच्छा बनाया है। अटेन्शन भी अच्छा रखा है। अभी सिर्फ इसको बढ़ाते रहना, कम नहीं करना। दूसरे वर्ष आओ तो यही रिजल्ट ले आओ कि आगे से आगे हैं। कम नहीं हुआ है। बाकी अच्छा है, आते भी हिम्मत से हैं, प्यार से हैं। इतना दूर-दूर से आते हैं तो यह प्यार है तभी आते हैं। बापदादा ने तो कहा ही है कि आल वर्ल्ड से यूथ ग्रुप को इकट्ठा कर गवर्मेन्ट के सामने लाना है कि यह यूथ स्व-परिवर्तन से विश्व-परिवर्तन कर रहे हैं। ऐसा संगठन भी तैयार हो जायेगा। फारेन में कितने देशों में सेवा है? (75) और इन्डिया में? इन्डिया के एक एक स्टेट का हो और एक-एक देश का एक हो। तो एक-एक देश का यूथ, चाहे विदेश, चाहे देश सभी का एक-एक ही हो भले। लेकिन इतने सब देशों के यूथ अपने यूथ ग्रुप का जो ओथ लेते हैं, प्रामिस करते हैं वह ले आवें और गवर्मेन्ट के आगे रखें तो कितनी अच्छी सेवा हो सकती है। गाँव वाले भी हों, देश वाले भी हो तो फारेन वाले भी हों। सब तरफ के यूथ इकट्ठे हों, तो कितनी अच्छी सेवा हो जायेगी। ऐसे ही हर देश का अपने हिसाब से अच्छा प्रसिद्ध आई.पी. हो, वी.आई.पीज की तो बात छोड़ो। जो हिम्मत वाला हो और सभी देशों के इकट्ठे हों। गवर्मेन्ट को बतायें कि हमारे देश में कितनी आत्माओं को फायदा है। अच्छा।

विदेश के छोटे बच्चों की भी रिट्रीट है - छोटे-छोटे बच्चे भी आये हैं। हाँ खड़े हो जाओ। अच्छी ट्रेनिंग ली? अच्छी ट्रेनिंग हुई? अच्छे बच्चे बनेंगे ना!

टीचर्स से - सभी टीचर्स ने कल्चर आफ पीसकी मेहनत की है। अच्छी सेवा की है। आत्माओं को परिचय मिला, कोई सम्बन्ध-सम्पर्क में भी आये, सन्देश भी कई आत्माओं को मिला। चाहे अभी आये या नहीं आये लेकिन समय आने पर याद आयेगा तो हमें भी पर्चा मिला था और ढूँढ़ेंगे आपको कि वह सफेद वस्त्र वाली बहिनें, कौन सी थी जिन्होंने पर्चे दिये थे लेकिन हमने नहीं सुना। वह भी समय आयेगा, जिन आत्माओं में बीज डाला है, उनका फल निकलेगा। प्राइज तो थोड़ों को दी जाती है, उमंग-उत्साह बढ़ाने के लिए। लेकिन जिन्होंने ने भी जितनों की भी सेवा की है, उन सबकी सेवा आत्माओं तक भी पहुँची और बाप के पास तो जमा होती ही है। प्राइज तो एक को मिलेगी लेकिन सहयोग तो बहुतों ने, टीचर्स ने स्टूडेण्टस ने बहुत दिया है, इसलिए सभी सेवा करने वालों को बापदादा की तरफ से स्नेह की सौगात है ही है। ऐसे नहीं समझना हमको तो गिफ्ट मिली नहीं, हमको दिल का स्नेह मिला। अच्छा।

आज बापदादा को जो रेलवे में जाकर रिसीव करते हैं रात को ठण्डक में, गर्मी में वह याद आ रहे हैं, वह बैठे हैं? जो रेलवे स्टेशन पर जाकर रिसीव करते हैं वह यहाँ हैं या अभी भी स्टेशन पर हैं? सेवा में बिजी रहते हैं। उन्हों की भी सेवा अथक है। आप सबको अच्छी तरह से लाते हैं ना! पहुँच जाते हो ना! विशेष मैजॉरिटी सभी संगम भवन में रहते हैं ना। तो उन सभी अथक सेवाधारियों को भी बापदादा याद करते हैं। वैसे तो सभी मधुबन की डिपार्टमेंट मेहनत तो बहुत करते हैं। इसीलिए सभी मधुबन डिपार्टमेंट वालों को, चाहे शान्तिवन वालों को, चाहे पाण्डव भवन वालों को, चाहे आस-पास रहने वालों को, ज्ञान सरोवर वालों को, हॉस्पिटल वालों को सभी सेवाधारियों को बापदादा मुबारक देते हैं। अच्छा। यह भी (सामने कैबिन में बैठे हुए भाईयों को देखकर) देखो कितनी सेवा कर रहे हैं। बहुत अच्छा है। (एयरपोर्ट वाले, आवास निवास वाले भी बहुत अथक सेवा करते हैं) इसीलिए कहा सभी डिपार्टमेंट वालों को। हर एक की सेवा बहुत अच्छी है। जो स्वच्छता रखते हैं, उन्हों का भी काम कम नहीं है। सब डिपार्टमेंन्ट्स का काम अपना-अपना है। और डिपार्टमेंन्टस नहीं होती तो आप इतने सभी कैसे अच्छी तरह रहते। इसलिए बापदादा नाम नहीं ले रहे हैं लेकिन हर एक डिपार्टमेंट नम्बरवन अपने को समझे। अच्छा।

चारों ओर के नव युग अधिकारी श्रेष्ठ आत्माओं को, सर्व बच्चों को, जो सदा हर कदम में पदम जमा करने वाली आत्मायें हैं, सदा अपने को ब्रह्मा बाप समान सर्व के आगे सैम्पुल बन सिम्पुल बनाने वाली आत्मायें, सदा अपने जीवन में गुणों को प्रत्यक्ष कर औरों को गुणवान बनाने वाले, सदा अखण्ड महादानी, महा सहयोगी आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

जगदीश भाई से - ठीक है। (चलती का नाम गाड़ी है) जीवन को बाप हवाले तो आदि से कर ही लिया है। जीवन में जब तक भी है तक तक सेवा तो कर रहे हो और करते ही रहेंगे। जमा हो रहा है। अभी बापदादा जो भी महारथी हैं, सभी महारथी बैठे हैं ना, उन महारथियों को कौन सी सेवा करनी है, वह बताते हैं। सेवायें तो सब कर रहे हैं और आप सबने तो अभी तक जो दूसरे सेवायें कर रहे हैं, वह बहुत कर ली है, अभी तो दूसरे भी आप लोगों द्वारा बहुत होशियार हो गये हैं, अभी महारथियों को और नई सेवा करनी चाहिए। ठीक है ना! अभी आप लोगों को जो सेवा करनी है उनमें इनकी (कानों की) जरूरत नहीं है। (कम सुन रहा है) अब आप लोगों की सेवा है, वायब्रेशन्स द्वारा आत्माओं को समीप लाना। आपस में तो होना ही है। आपसी स्नेह औरों को वायब्रेशन द्वारा खींचेगा। अभी आप लोगों को यह साधारण सेवा करने की आवश्यकता नहीं है। भाषण करने वाले तो बहुत हैं, लेकिन आप लोग हर एक आत्मा को ऐसी भासना दो जो वह समझें कि हमको कुछ मिला। ब्राह्मण परिवार में भी आपके संगठन के वायब्रेशन द्वारा निर्विघ्न बनाना है। मन्सा सेवा की विधि को और तीव्र करो। वाचा वाले बहुत हैं। मन्सा द्वारा कोई न कोई शक्ति का अनुभव हो। वह समझें कि इन आत्माओं द्वारा यह यह शक्ति का अनुभव हुआ। चाहे शान्ति का हो, चाहे खुशी का हो, चाहे सुख का हो, चाहे अपने-पन का। तो जो भी अपने को महारथी समझते हैं उन्हों को अभी यह सेवा करनी है। सभी अपने को महारथी समझते हो? महारथी हैं? अच्छा है। (जगदीश भाई ने एक गीत गाया)

अभी औरों को भी आप द्वारा ऐसा अनुभव हो। बढ़ता जायेगा। इससे ही अभी ऐसी अनुभूति शुरू करेंगे तब साक्षात्कार शुरू हो जायेगा।

दादी जानकी से - फिर मानो यहाँ आप भारत में मिलती हो और फारेन में चली जाती हो तो फारेन में जाने के बाद आपके फरिश्ते रूप का साक्षात्कार होगा कि यह कौन सी देवी थी जिसने मेरे को एक सेकण्ड के लिए भी शान्ति का अनुभव कराया, सुख का कराया... इससे ही साक्षात्कार शुरू हो जायेगा। यह औरों को भी पाठ पढ़ाओ। हर बात में कहें बाबा-बाबा-बाबा, ‘मैंनहीं लायें, तभी साक्षात्कार शुरू हो। यह मैं पन आ जाता है इसलिए लोग भी ब्रह्माकुमारियों की महिमा करते हैं, बाप की कम करते हैं। (नाम ही ब्रह्माकुमारी है) लेकिन पहले ब्रह्मा नाम है। अच्छा।

(जगदीश भाई से) शरीर को चला रहे हैं ना, चलाते चलो। अच्छा। लाइट रहना ही अच्छा है। सभी पाण्डव भी मददगार हैं। पाण्डवों का भी प्यार है, दादियों का भी प्यार है। (पाण्डवों से भी ज्यादा दादियों का है) कोई ऐसी घड़ी आ जायेगी जो असम्भव से सम्भव हो जायेगा। अच्छा। सभी ने सुना ना!

(जगदीश भाई की सेवा में दिल्ली की साधना बहन हैं, उनसे बापदादा मिल रहे हैं):-

सेवा का भाग्य मिलना भी बहुत बड़ी बात है, दिल से सेवा करते चलो। कर रही हो, करते चलो।

अव्यक्त बापदादा ने कल्चर आफ पीस की सेवाओं में प्राइज विनर को गिफ्ट दी तथा रात्रि 12 बजे के पश्चात नये वर्ष में सभी बच्चों को 2001 वर्ष की मुबारक दी।

इस समय पुराने और नये वर्ष का संगम समय है। संगम समय अर्थात् पुराना समाप्त हुआ और नया आरम्भ हुआ। जैसे बेहद के संगमयुग में आप सभी ब्राह्मण आत्मायें विश्व-परिवर्तन करने के निमित्त हो, ऐसे आज के इस पुराने और नये वर्ष के संगम पर भी स्व-परिवर्तन का संकल्प दृढ़ किया है और करना ही है। जो बताया हर सेकण्ड अटल, अखण्ड महादानी बनना है। दाता के बच्चे मास्टर दाता बनना है। पुराने वर्ष को विदाई के साथ-साथ पुरानी दुनिया के लगाव और पुराने संस्कार को विदाई दे नये श्रेष्ठ संस्कार का आह्वान करना है। सभी को अरब-खरब बार मुबारक हो, मुबारक हो, मुबारक हो।

देहली भवन प्रति

देहली दरबार से सभी को प्यार है ही क्योंकि अनेक बार राज्य किया है और आज नहीं लेकिन कल राज्य करना है, इतने नजदीक पहुँच गये हो। इसलिए जो भी दिल्ली की सेवा करने के निमित्त हैं और निमित्त बनना ही है, उन सभी सेवाधारियों को आप सभी सब प्रकार का सहयोग दे आगे बढ़ा रहे हो और आगे बढ़ाते रहना है क्योंकि राजधानी तैयार करनी है इसलिए इनएडवांस देहली सेवा के स्थान को मुबारक हो, मुबारक हो।

इंजीनियर्स या जो भी सेवा के निमित्त हैं अच्छी सेवा कर रहे हैं इसीलिए बापदादा सबके मुख में गुलाबजामुन दे रहे हैं और जब आप सबके सहयोग से तैयार हो जायेगा तो आप सबके भी मुख में गुलाबजामुन आयेगा। अच्छा। ओम् शान्ति।



18-01-2001   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


यथार्थ स्मृति का प्रमाण - समर्थ स्वरूप बन शक्तियों द्वारा सर्व की पालना करो

आज सभी के दिल में स्मृतियाँ आ रही हैं। बापदादा के पास भी अमृतवेले से स्नेह वा याद की वैरायटी मालायें चारों ओर के बच्चों की तरफ से गले में पड़ रही थी। साथ-साथ याद और प्यार के दिल के गीत भी सुन रहे थे। बापदादा दोनों बच्चों को रिटर्न में भिन्न-भिन्न शक्तियों की, भिन्न-भिन्न वरदानों की मालायें पहना रहे थे। यह स्मृति दिवस साकार दुनिया के मंच पर बच्चों को समर्थी स्वरूप के वरदान द्वारा सन शोज फादर का विशेष दिवस है क्योंकि साकार रूप में सेवा के निमित्त बनाने के लिए बच्चों को सेवा के मंच रूपी तख्त पर बिठाने और जिम्मेवारी का ताज पहनाने का दिन है। साकार रूप में सेवा के निमित्त बनने का ताजपोशी वा तिलक का दिवस है। सभी बच्चे बाप के सहयोगी बन निमित्त बने हैं और बनते रहेंगे। बापदादा भी बच्चों को सेवा में उमंग-उत्साह से आगे बढ़ते हुए देख हर्षित हो रहे हैं। हर एक बच्चा नम्बरवार हिम्मत और उमंग से आगे बढ़ रहा है। मैजॉरिटी बच्चे याद और सेवा में लगे रहते हैं। जैसे आज के दिन बच्चे विशेष चारों ओर ब्रह्मा बाप की याद में लवलीन रहते हैं, ऐसे विशेष ब्रह्मा बाप भी बच्चों के लव में लीन रहते हैं।

आज ब्रह्मा बाप बच्चों की विशेषताओं को देख रहे थे। जैसे-जैसे हर बच्चे की विशेषता सामने आ रही थी तो ब्रह्मा बाप के मुख से यही बोल निकल रहे थे वाह बच्चे, वाह! शाबास बच्चे, शाबास! और क्या हुआ? जैसे ही ब्रह्मा बाप वाह बच्चे, वाह! शाबास बच्चे कह रहे थे ऐसे ही सभी बच्चों के नयनों से प्रेम की गंगा-जमुना निकल रही थी। हर एक बच्चा प्रेम की नदी में लवलीन था। यह था वतन का दृश्य। साकार दुनिया में भी हर एक स्थान का अपना-अपना याद और स्नेह का दृश्य बापदादा ने देखा। अब आगे क्या करना है? स्मृति तो रहती है लेकिन यथार्थ स्मृति का प्रमाण है स्मृति द्वारा समर्थ स्वरूप बनना। स्मृति अति श्रेष्ठ है, जब ब्राह्मण बनें तो बापदादा द्वारा जो जन्म सिद्ध अधिकार प्राप्त किया, वह सेकण्ड की स्मृति द्वारा ही प्राप्त किया। दिल ने जाना, दिल में, मन में, बुद्धि में स्मृति आई ‘‘मैं बाबा का और बाबा मेरा’’, इस स्मृति द्वारा ही जन्म-सिद्ध अधिकार के अधिकारी बनें। यह स्मृति सर्व शक्तियों की चाबी बनी। यह स्मृति गोल्डन की है। मैं बाप की अर्थात् मैं आत्मा हूँ, जब निश्चय हुआ मैं आत्मा बाप की बच्ची हूँ, तो निश्चय में कितना टाइम लगा? कोर्स करने में टाइम लगा लेकिन जब निश्चय हुआ तो कितना टाइम लगा? सेकण्ड का सौदा हुआ ना! सेकण्ड में वर्से के अधिकारी बन गये। अधिकारी तो सब बन गये हैं, सभी अधिकारी बने हैं ना या बन रहे हैं? अधिकारी बन गये हैं? यह पक्का है? अच्छा।

डबल फारेनर्स वर्से के अधिकारी बन गये हैं? पाण्डव अधिकारी बन गये हैं? पक्का? पक्का? पक्का? बहुत अच्छा, मुबारक हो अधिकारियों को। अधिकार में विशेष बाप द्वारा सर्व शक्तियाँ मिली हैं? एक हाथ उठाओ मिली हैं? सर्व शक्तियाँ मिली हैं ना! या किसको 8 मिली हैं, किसको 6 मिली हैं? अपने को कहलाते भी हैं - मास्टर सर्वशक्तिवान। शक्तिवान नहीं कहते हैं, सर्वशक्तिवान कहते हो। यह आगे बैठने वाले सर्वशक्तिवान हैं? बापदादा सर्वशब्द का पूछ रहे हैं? सभी सर्वशक्तिवान हो या कोई-कोई शक्तिवान भी है? है कोई? जो कहे मैं सर्वशक्तिवान तो नहीं हूँ लेकिन शक्तिवान हूँ, ऐसा कोई है? नहीं है? कोई हाथ नहीं उठा रहा है। सर्व मास्टर सर्वशक्तिवान हैं, अच्छा। तो हे मास्टर सर्वशक्तिवान, बापदादा पूछते हैं कि हर प्रकृति के, माया के, स्वभाव-संस्कार के, वायुमण्डल के परिस्थितियों में सर्वशक्तिवान हो ना? यह प्रकृति, माया, संस्कार, वायुमण्डल या संगदोष इन पाँचों को अपनी शक्ति के आधार से अधीन बनाया है? यह 5 शीश वाला साँप है, इस साँप पर, 5 शीश पर अधिकारी बन डाँस करते हो? करते हो या कोई एक शीश निकालकर आपके ऊपर डाँस करता है? साँप भी डाँस तो करता है ना बहुत अच्छी। तो कोई भी एक शीश आपको डाँस दिखाने तो नहीं आते? कभी उसका खेल देखना अच्छा तो नहीं लगता है? खेल देखने लग जाओ। 5 ही साँपों को गले की माला बना दी है? शेश शय्या बना दी है, डाँस का मंच बना दिया है? आपके अन्तिम महादेव, तपस्वी देव, अशरीरी स्थिति वाली देव आत्मा, फरिश्ता आत्मा इस यादगार में यह सब साँप गले की माला दिखाई है। जब यह माला पहनते तब बाप की माला में नम्बर अच्छे में नजदीक मणके बनते हैं। विजय माला के समीप के मणके बनते हैं।

बापदादा ने पहले भी सुनाया है कि वर्तमान समय, समय के अनुसार विशेष सहनशक्ति और समस्या या परिस्थिति को सामना करने की शक्ति कर्म में आवश्यक है। सिर्फ मन और वाणी तक नहीं, कर्म तक आवश्यक है। बापदादा ने रिजल्ट में देखा है वि्ा शक्तियाँ है, शक्तियाँ नहीं हैं - यह नहीं है। हैं, लेकिन फर्क क्या पड़ जाता है? समय पर जो शक्ति जिस विधि से कार्य में लगानी चाहिए, वह समय पर और विधि पूर्वक यूज करने में, कार्य में लगाने में अन्तर पड़ जाता है। स्मृति है लेकिन स्मृति को समर्थ स्वरूप में नहीं लाते। स्मृति ज्यादा है, समर्थी कभी कम, कभी ठीक हो जाती। स्मृति ने वर्से के अधिकारी तो बना दिया है लेकिन हर स्मृति की समर्थी विजयी बनाए विजय माला का समीप मणका बनाती है। समार्थियों को स्वरूप में लाओ। मन में है, बुद्धि में है लेकिन आपके स्वरूप में हर कार्य में, हर समर्थी प्रत्यक्ष रूप में आवे। तो स्मृति दिवस तो बहुत अच्छा मनाया। अब समार्थियों को स्वरूप में लाओ। अगर किसको भी देखते हो तो आपके नयन से समर्थ स्वरूप का अनुभव हो। हर बोल से दूसरा भी समर्थ बन जाए। समर्थी का अनुभव करे। साधारण बोल नहीं। हर बोल में जो समर्थी का वरदान मिला है वह अनुभव कराओ। मन-बुद्धि द्वारा श्रेष्ठ संकल्प और यथार्थ निर्णय शक्ति का वायुमण्डल स्वरूप में लाओ। साधारण चलन में भी फरिश्ते पन के समर्थी का स्वरूप दिखाई दे। डबल लाइट का स्वयं को भी और दूसरों को भी अनुभव हो। ऐसे है? तो चलते फिरते समर्थ स्वरूप बनो और दूसरों को समर्थी दिलाओ।

बापदादा ने आज ब्रह्मा बाप को साथ में, (बापदादा दोनों साथ में) एक सैर कराया। क्या सैर कराया? ब्रह्मा बाप के अव्यक्त होने के बाद जो भी देश-विदेश में अव्यक्ति जन्म लेने वाले हैं, वह सभी ब्राह्मण दिखाये। तो कितने होंगे वह? साकार रूप से अव्यक्त रूप की रचना बहुत ज्यादा थी। हर स्थान के अव्यक्त रचना वाली आत्माओं को वतन में इमर्ज किया। सुना। उसमें आप लोग भी हैं ना! और हर एक को बापदादा ने बहुत स्नेह की, समीप की दृष्टि दी। और अव्यक्त रचना को एक विशेष गिफ्ट भी दी। अभी यहाँ जो बैठे हो वह साकार ब्रह्मा के बाद जो ब्राह्मण आत्मा रचना में आये हो, वह हाथ उठाओ। मैजारिटी हैं, अच्छा नीचे करो। अच्छा जो साकार रूप की रचना है, वह हाथ उठाओ। बहुत थोड़े हैं। आज की सभा में बहुत थोड़े हैं। तो बापदादा ने हर एक बच्चे को इमर्ज किया, क्योंकि संख्या बहुत थी। यहाँ तो बैठ भी नहीं सकेंगे, वतन में तो सब आ सकते हैं। वहाँ जितना बड़ा स्थान चाहिए उतना स्थान है। तो बापदादा ने सभी को वतन में इमर्ज किया अर्थात् निमन्त्रण देके बुलाया। सभी बड़े खुश हो रहे थे और बापदादा उनसे ज्यादा खुश हो रहे थे। बापदादा ने उन रत्नों को सौगात दी, बहुत सुन्दर बेदाग हीरे का बहुत चमकता हुआ कमल पुष्प था, जिसमें एक-एक कमल के पत्ते में भिन्न-भिन्न शक्तियाँ थीं, जो भिन्न-भिन्न रंग में चमक रही थी। वह बेदाग हीरे का कमल पुष्प आप इमर्ज करो कितना शोभनिक होगा। इमर्ज हुआ? इमर्ज किया? डबल फारेनर्स ने इमर्ज किया? टीचर्स ने इमर्ज किया? पाण्डवों ने इमर्ज किया? और मीठी-मीठी माताओं ने इमर्ज किया? मातायें इस विश्व विद्यालय की विशेषता है। सभी को आश्चर्य किस बात का लगता है? कि इतनी मातायें और शक्तियाँ बन गई! इतनी मातायें पवित्रता का व्रत धारण कर देवियों के रूप में परिवर्तन हो गई। मैजारिटी मातायें दिखाई देती हैं। तो बापदादा ने आज अव्यक्त रचना को बहुत-बहुत प्यार दिया और वतन में बगीचा भी इमर्ज किया, पहाड़ भी इमर्ज किया और साथ में सागर भी इमर्ज किया। और सभी को खूब घुमाया। फ्रीडम थी घूमने की। खेल नहीं कराया, बॉल और बैट-बॉल का खेल नहीं कराया। कोई सागर में लहरों में लहरा रहे थे, कोई पहाड़ी पर बैठे हुए थे, कोई बगीचे में घूम रहे थे, तो आज वतन में अव्यक्त रचना की महफिल थी। बापदादा ने सभी को यही वरदान दिया सदा सर्व शक्तियों में जीते रहो, उड़ते रहो।

तो बापदादा का आज के स्मृति दिवस का विशेष महामन्त्र है ‘‘स्मृति स्वरूप बन समार्थियों को स्वरूप में लाओ।’’ खज़ाने को गुप्त नहीं रखो, हर कर्म द्वारा बाहर में प्रत्यक्ष करो। जो भी आत्मा चाहे दृष्टि के, चाहे मुख के बोल में, चाहे कर्म में साथ में सम्पर्क में आये, उसको समर्थ बनने का सहयोग दो, समर्थ स्वरूप का स्नेह दो। बापदादा ने यह भी देखा कि जो नये नये बच्चे आते हैं, उन्हों में कई आत्मायें ऐसी भी हैं जिन्हों को बापदादा के सहयोग के साथ-साथ आप ब्राह्मण आत्माओं के द्वारा हिम्मत, उमंग, उत्साह, समाधान मिलने की आवश्यकता है। छोटे-छोटे हैं ना! फिर भी हैं छोटे लेकिन हिम्मत रख ब्राह्मण बने तो हैं ना! तो छोटों को शक्तियों द्वारा पालना की आवश्यकता है। और पालना नहीं, शक्ति देने के पालना की आवश्यकता है। तो जल्दी से स्थापना की ब्राह्मण आत्मायें तैयार हो जाएँ क्योंकि कम से कम 9 लाख तो चाहिए ना! तो शक्तियों का सहयोग दो, शक्तियों से पालना दो, शक्तियाँ बढ़ाओ। ज्यादा डिसकस करने की शिक्षायें नहीं दो। शक्ति दो। उनकी कमज़ोरी नहीं देखो लेकिन उसमें विशेषता वा जो शक्ति की कमी हो वह भरते जाओ। आजकल जो निमित्त हैं उन्हों को इस पालना के निमित्त बनने की आवश्यकता है। जिज्ञासु बढ़ायें, सेवाकेन्द्र बढ़ायें यह तो कामन है, लेकिन हर एक आत्मा को बाप की मदद से शक्तिशाली बनायें, अभी इसकी आवश्यकता है। सेवा तो सब कर रहे हो और करने के बिना रह भी नहीं सकते। लेकिन सेवा में शक्ति स्वरूप के वायब्रेशन आत्माओं को अनुभव हो, शक्तिशाली सेवा हो। साधारण सेवा तो आजकल की दुनिया में बहुत करते हैं लेकिन आपकी विशेषता है - शक्तिशाली सेवा। ब्राह्मण आत्माओं को भी शक्ति की पालना आवश्यक है। अच्छा।

बापदादा के सामने देश-विदेश सब तरफ के बच्चे दूर होते हुए भी सामने हैं। बापदादा जानते हैं, सभी एक ही शब्द बोलते हैं - हमारी भी याद देना, हमारी भी याद देना। बापदादा के पास सभी की याद पहुँचती ही है। चाहे पत्र द्वारा, चाहे मुख द्वारा, चाहे कार्ड द्वारा, चाहे आजकल ई-मेल द्वारा भेजते हैं। साइंस के साधन बहुत हो गये हैं। बापदादा के पास साधनों से भी याद पहुँचती है और दिल के आवाज से भी याद पहुँचती है। सबसे जल्दी दिल का आवाज पहुँचता है। तो आज के दिन जिन्होंने भी दिल से, भिन्न-भिन्न साधनों से यादप्यार भेजा है उन सभी को बापदादा यादप्यार दे रहे हैं। बच्चों ने एक बार याद दी, बाप पद्मगुणा रिटर्न में यादप्यार दे रहे हैं। अच्छा।

चारों ओर के दिल के समीप समर्थ आत्माओं को, सदा समय पर हर शक्ति को स्वरूप द्वारा प्रत्यक्ष करने वाले श्रेष्ठ आत्माओं को, सदा शक्तियों द्वारा आत्माओं की पालना के निमित्त बनने वाले बाप के सहयोगी आत्माओं को, सदा हर एक में हिम्मत, उमंग और उत्साह देने वाले उड़ती कला वाली आत्माओं को, सदा समस्या को समाधान में परिवर्तन करने वाले विश्व-परिवर्तक आत्माओं को स्मृति स्वरूप सो समर्थ स्वरूप आत्माओं को, बापदादा का पदमगुणा यादप्यार और नमस्ते।

सेवा का टर्न छतीसगढ़-इन्दौर जोन का है - सभी ने बहुत दिल से सेवा की, सबको सन्तुष्ट किया और स्वयं भी सन्तुष्ट रहे इसकी मुबारक हो। नई स्टेट बनी है इसलिए नई स्टेट वालों को बापदादा सदा याद और सेवा में आगे उड़ने की मुबारक दे रहे हैं। अच्छा किया।

कन्याओं से - आगे कुमारियाँ हैं, पीछे मातायें हैं। बहुत अच्छा। जैसे अभी खड़ी हो गई ना ऐसे याद और सेवा में सदा खड़े रहना। हॉस्टल की कुमारियाँ तो अच्छी पालना में पल रही हैं। ऐसी पालना जो वायुमण्डल के प्रभाव से बचे हुए हो। तो सदा आगे बढ़ रही हो और बढ़ते ही रहेंगे। अच्छा मुबारक हो।

जो नई स्टेट बनी है ना छतीसगढ़, (छतीसगढ़ में 16 जिले हैं, राजधानी रायपुर है) उसकी राजधानी को मुबारक हो। अच्छा सेवा का फल भी मिला, बल भी मिला। फल है खुशी और बल है सदा ऐसे निर्विघ्न रहने का। तो यह सदा ही साथ रखना। अच्छा। टीचर्स को भी बहुत-बहुत मुबारक है। अभी जो बापदादा ने कहा शक्ति देने की पालना बढ़ाते रहना। मधुबन निवासी भी आये हैं।

अच्छा - आज खास यह संगम भवन है ना, संगम भवन वाले आये हैं, उन्हों की भी सेवा कम नहीं है। आज खास उन्हों की याद बापदादा को मिली थी। रिसीव करने की सेवा भी कम नहीं है। वैसे तो जो भी शान्तिवन के सेवाधारी हैं उन सबकी सेवा एक दो से आगे है, अच्छी है। जागना भी पड़ता है, चलना भी पड़ता है, दौड़ना भी पड़ता है। सन्तुष्ट करना भी पड़ता है। मुबारक हो। पाण्डव भवन वाले, मधुबन की चार भुजाओं वाले सभी को मुबारक हो, मुबारक हो, मुबारक हो।

डबल फारेनर्स देख रहे हैं, हमको बापदादा ने नहीं कहा। डबल फारेनर्स से सभी बापदादा सहित दादियों का, सभी ब्राह्मणों का डबल ट्रिपल प्यार है, क्यों? बापदादा सदैव विशेषता सुनाते हैं कि कई प्रकार के कल्चर की दीवारों को तोड़कर ब्राह्मण जीवन में पहुँच गये हैं। ब्राह्मण कल्चर वाले बन गये हैं और लगता ही नहीं है कि यह कोई दूसरे देश के हैं। अपने भारत के हैं और सदा रहेंगे। इसीलिए डबल विदशियों को भी बहुत-बहुत अरब-खरब बार मुबारक हो। बहुत अच्छा।

देखो हिम्मत करके पहुँच तो गये हैं ना! चाहे टिकेट मिले न मिले लेकिन लेकर पहुँच तो गये हैं। हिम्मत अच्छी है। अच्छा। अभी क्या करना है!

दादी जी से - साधनों को अपनाना पड़ता है। वृद्धि बहुत फास्ट हो रही है ना! अच्छा है। वृद्धि भी हो रही है और सभी को सन्तुष्टता भी मिल रही है। अच्छा पार्ट बजा रही हो। (बाबा करा रहा है) फिर भी निमित्त तो हैं। बापदादा रोज अमृतवेले वरदान के साथ-साथ मसाज भी करते हैं। बापदादा देखते हैं तो निमित्त बनने वालों को मेहनत भी करनी पड़ती है। (बाबा, कोई भी मेहनत नही है) चलो खेल ही कहो, खेल करते हैं, मेहनत नहीं करते। इस समय जनक बेटी भी याद कर रही है। वह सोच रही है मैं स्टेज पर हूँ। बापदादा भी मुबारक दे रहे हैं। अच्छा है जो पार्ट जिसको मिला है, वह विधिपूर्वक कर रहे हैं। हर एक पाण्डव भी अपना-अपना पार्ट बजा रहे हैं।

नारायण दादा और उनके बेटे से - ठीक है ना। दोनों ही ठीक हो? इसको बापदादा ने फ्री रखा है, जब मन करे जैसे मन करे, मर्यादापूर्वक वैसे करो। ब्राह्मण जीवन की, लौकिक परिवार की दोनों की मर्यादा जानते हैं। दोनों ही जानते हो ना कि एक जानते हो? दोनों ही जानते हो। तो दोनों को निभाना है। अच्छा है। बस अभी थोड़ा सा मधुबन से कनेक्शन बढ़ाओ। लेन-देन करो। मन में बातें नहीं करो, मुख से भी करो। यह बीज विनाश तो होना नहीं है। अच्छा है फिर भी जीते हैं। अच्छा।

सिकीलधा तो है! बहुत अच्छा। दोनों ही ठीक हैं। आपका घर है जब चाहो तब आओ। ठीक है ना!

जगदीश भाई से - जगदम्बा माँ का स्लोगन याद है ना - हुक्मी हुक्म चलाए रहा। तो आपका भी अभी यही अनुभव है ना। करावनहार कराए रहा है। चलाने वाला चला रहा है, बाकी अच्छा है यह सभी आदि रत्नों ने, आप हो सेवा के आदि रत्न, यह (दादियाँ) हैं स्थापना के आदि रत्न। यह पाण्डव भी सेवा के आदि रत्न हैं। (आज बाबा के कमरे में गया तो वह यादें आ गई, यहाँ होते भी नहीं था, आँसू भर आये) इस याद से और ही प्रत्यक्ष रूप में एक तो प्यार बढ़ता है, दिल का प्यार बाहर निकलता है और दूसरा याद में बाप के समानता की हिम्मत भी आती है। अच्छा हुआ। लेकिन बापदादा कह रहे थे कि जो भी सेवा में आदि रत्न हैं वा स्थापना के आदि रत्न हैं दोनों ने सेवा बहुत अच्छी की है, निमित्त बने हैं। सहन भी किया और प्यार भी मिला। अच्छा किया क्योंकि उस समय हिम्मत रखने वाले थोड़े थे लेकिन हिम्मत रखके सहयोगी बनें, वह सहयोग की जो मार्क्स हैं वह जमा हैं। जमा खाता अच्छा है। एक का पद्मगुणा जमा होता है ना। तो जिन्होंने भी जो कुछ दिल से और शक्तिशाली होके किया है, उन्हों का एक का लाख गुणा नहीं लेकिन पद्मगुणा जमा है। आप सबका भी जमा है, इन्हों का भी जमा है।

रतन मोहनी दादी से - अच्छा सहयोगी हो। नीचे ऊपर होना तो पड़ता है लेकिन सहयोगी तो बनना ही है। बापदादा की भुजायें हो ना तो भुजाओं का काम क्या है? सहयोग देना। अच्छा दे रही हो। अच्छा सहयोगी हैं ना।

अच्छा - ओम् शान्ति।



04-02-2001   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


समय प्रमाण स्वराज्य अधिकारी बन सर्व रूहानी साधन तीव्रगति से कार्य में लगाओ

आज बापदादा विश्व के सर्व तरफ के अपने स्वराज्य अधिकारी बच्चों की राज्य सभा देख रहे हैं। हर एक स्वराज्य अधिकारी, पवित्रता की लाइट के ताजधारी, अधिकार की स्मृति के तिलकधारी, अपने-अपने भृकुटि के अकाल तख्तनशीन दिखाई दे रहे हैं। इस समय जितना स्वराज्य अधिकार अनुभव करते हो उतना ही भविष्य विश्व राज्य अधिकारी है ही हैं। ‘‘मैं कौन’’ वा ‘‘मेरा भविष्य क्या?’’ वह अब के स्वराज्य की स्थिति द्वारा स्वयं ही देख सकते हो।

बापदादा हर एक बच्चे के सदा स्वराज्य की स्थिति को देख रहे थे। निरन्तर हर कर्म करते हुए, लौकिक-अलौकिक कार्य करते हुए स्वराज्य अधिकारी का नशा कितना समय और किस परसेन्टेज में रहता है? क्योंकि कई बच्चे अपने स्वराज्य के स्मृति को संकल्प रूप में याद करते हैं - मैं आत्मा अधिकारी हूँ, एक है संकल्प में सोचना। बार-बार स्मृति को रिफ्रेश करना - मैं हूँ। दूसरा है - अधिकार के स्वरूप में स्वयं को अनुभव करना और इन कर्मेन्द्रियों रूपी कर्मचारी तथा मन-बुद्धि-संस्कार रूपी सहयोगी साथियों पर राज्य करना, अधिकार से चलाना। जैसे आप सभी बच्चे अनुभवी हो कि हर समय बापदादा श्रीमत पर चला रहा है और आप सभी श्रीमत प्रमाण चल रहे हो। चलाने वाला चला रहा है, चलने वाले चल रहे हो। ऐसे, हे स्वराज्य अधिकारी आत्मायें, क्या आपके स्वराज्य में आपकी सर्व कर्मेन्द्रियाँ अर्थात् कर्मचारी आपके मनबुद्धि- संस्कार सहयोगी साथी सभी आपके ऑर्डर में चल रहे हैं? एक-दो कर्मेन्द्रियाँ थोड़ा नाज़-नखड़ा तो नहीं दिखाती? आपका राज्य लॉ और ऑर्डर के बजाए लव और लॉ में यथार्थ रीति से चल रहा है? क्या समझते हैं? चल रहे हैं या थोड़ी आनाकानी करते हैं? जब कहते ही हो मेरा हाथ, मेरे संस्कार, मेरी बुद्धि, मेरा मन, तो मेरे के ऊपर मैं का अधिकार है? कि कब मेरा अधिकारी बन जाता, कब मैं अधिकारी बन जाती? समय प्रमाण हे स्वराज्य अधिकारी, अभी सदा और सहज अकाल तख्तनशीन बनो तब ही अन्य आत्माओं को बाप द्वारा जीवनमुक्ति और मुक्ति का अधिकार तीव्रगति से दिला सकेंगे।

समय की पुकार अब तीव्रगति और बेहद की है। छोटी सी रिहर्सल देखी, सुनी। एक ही साथ बेहद का नक्शा देखा ना! चिल्लाना भी बेहद, मरना भी बेहद, मरने वालों के साथ-साथ जीने वाले भी अपने जीवन में परेशानी से मर रहे हैं। ऐसे समय पर आप स्वराज्य अधिकारी आत्माओं का क्या कार्य है? चेक करो जैसे स्थूल साधनों के लिए बताते हैं कि भूकम्प आवे तो यह करना, तूफान आवे तो यह करना, आग लगे तो यह करना, वैसे आप श्रेष्ठ आत्माओं के पास जो साधन हैं - सर्व शक्तियाँ, योग का बल, स्नेह का चुम्बक, यह सब साधन समय के लिए तैयार हैं? सर्व शक्तियाँ हैं? किसको शान्ति की शक्ति चाहिए लेकिन आप और कोई शक्ति दे दो तो वह सन्तुष्ट होगी? जैसे किसको पानी चाहिए और आप उसको 36 प्रकार के भोजन दे दो तो क्या वह सन्तुष्ट होगा? तो एवररेडी बनना सिर्फ अपने अशरीरी बनने के लिए नहीं। वह तो बनना ही है। लेकिन जो साधन स्वराज्य अधिकार से प्राप्त हुए हैं, परमात्म वर्से में मिले हैं वह सब अधिकार एवररेडी हैं? ऐसे तो नहीं जैसे समाचारों में सुनते हो कि जो मशीनरी इस समय चाहिए वह फारेन से आने के बाद कार्य में लगाया गया। तो साधन एवररेडी नहीं रहे ना! सर्व साधन समय पर कार्य में नहीं लगा सके। कितना नुकसान हो गया!

तो हे विश्व-कल्याणी, विश्व-परिवर्तक आत्मायें सर्व साधन एवररेडी हैं? सर्वशक्तियाँ आपके ऑर्डर में हैं? ऑर्डर किया अर्थात् संकल्प किया - निर्णय शक्ति। तो सेकण्ड से भी कम समय में निर्णय शक्ति हाजर हो जाए, कहे स्वराज्य अधिकारी हाजर! ऐसे ऑर्डर में है? या एक मिनट अपने में लाने में लगेगा फिर दूसरे को दे सकेंगे? अगर समय पर किसको जो चाहिए वह नहीं दे सके तो क्या होगा? तो सभी बच्चों के दिल में यह संकल्प तो चल ही रहा है - आगे क्या होना है और क्या करना है? होना तो बहुत कुछ है। सुनाया ना यह तो रिहर्सल है। यह 6 मास के तैयारी की घण्टी बजी है, घण्टा नहीं बजा है। पहले घण्टा बजेगा, फिर नगाड़ा बजेगा। डरेंगे? थोड़ा- थोड़ा डरेंगे? शक्ति-स्वरूप आत्माओं का क्या स्वरूप दिखाया है? शक्तियों को (शक्ति स्वरूप में पाण्डव भी आ गये तो शक्तियाँ भी आ गई) सदा शक्तियों को कोई को 4 भुजा, कोई को 6 भुजा, कोई को 8 भुजा, कोई को 16 भुजा, साधारण नहीं दिखाते हैं। यह भुजायें सर्व शक्तियों का सूचक हैं। इसलिए सर्वशक्तिवान द्वारा प्राप्त अपनी शक्तियों को इमर्ज करो। इसके लिए यह नहीं सोचो कि समय आने पर इमर्ज हो जायेंगी लेकिन सारे दिन में स्वयं प्रति भिन्न-भिन्न शक्तियाँ यूज करके देखो। सबसे पहला अभ्यास स्वराज्य अधिकार सारे दिन में कहाँ तक कार्य में लगता है? मैं तो हूँ ही आत्मा मालिक, यह नहीं। मालिक होके ऑर्डर करो और चेक करो कि हर कर्मेन्द्रियाँ मुझ राजा के लव और लॉ में चलते हैं? ऑर्डर करें - मनमनाभवऔर मन जाये निगेटिव और वेस्ट थाट्स में, क्या यह लव और लॉ रहा? ऑर्डर करें मधुरता स्वरूप बनना है और समस्या अनुसार, परिस्थिति अनुसार क्रोध का महारूप नहीं लेकिन सूक्ष्म रूप में भी आवेश वा चिड़चिड़ापन आ रहा है, क्या यह ऑर्डर है? ऑर्डर में हुआ?

ऑर्डर करें हमें निर्मान बनना है और वायुमण्डल अनुसार सोचो कहाँ तक दबकर चलेंगे, कुछ तो दिखाना चाहिए। क्या मुझे ही दबना है? मुझे ही मरना है! मुझे ही बदलना है? क्या यह लव और ऑर्डर है? इसलिए विश्व के ऊपर, चिल्लाने वाले दु:खी आत्माओं के ऊपर रहम करने के पहले अपने ऊपर रहम करो। अपना अधिकार सम्भालो। आगे चल आपको चारों ओर सकाश देने का, वायब्रेशन देने का, मन्सा द्वारा वायुमण्डल बनाने का बहुत कार्य करना है। पहले भी सुनाया कि अभी तक जो जो जहाँ तक सेवा के निमित्त हैं, बहुत अच्छी की है और करेंगे भी लेकिन अभी समय प्रमाण तीव्रगति और बेहद सेवा की आवश्यकता है। तो अभी पहले हर दिन को चेक करो स्वराज्य अधिकारकहाँ तक रहा? आत्मा मालिक होके कर्मेन्द्रियों को चलाये। स्मृति स्वरूप रहे कि मैं मालिक इन साथियों से, सहयोगियों से कार्य करा रहा हूँ। स्वरूप में नशा रहे तो स्वत: ही यह सब कर्मेन्द्रियाँ आपके आगे जी हाजिर, जी हजूर स्वत: ही करेंगी। मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। आज व्यर्थ संकल्प को मिटाओ, आज संस्कार को मिटाओ, आज निर्णय शक्ति को प्रगट करो। एक धक से सब कर्मेन्द्रियाँ और मन-बुद्धि-संस्कार जो आप चाहते हैं, वह करेंगी। अभी कहते हैं नाबाबा चाहते तो यह हैं लेकिन अभी इतना नहीं हुआ है...फिर कहेंगे जो चाहते हैं वह हो गया, सहज। तो समझा क्या करना है? अपने अधिकार की सिद्धियों को कार्य में लगाओ। आर्डर करो संस्कार को। संस्कार आपको क्यों आर्डर करता? संस्कार नहीं मिटता, क्यों? बंधा हुआ है संस्कार आपके ऑर्डर में। मालिकपन लाओ। तो औरों के सेवा की बहुत-बहुत-बहुत-बहुत आवश्यकता है। यह तो कुछ भी नहीं है, बहुत नाजुक समय आना ही है। ऐसे समय पर आप उड़ती कला द्वारा फरिश्ता बन चारों ओर चक्कर लगाते, जिसको शान्ति चाहिए, जिसको खुशी चाहिए, जिसको सन्तुष्टता चाहिए, फरिश्ते रूप में सकाश देने का चक्कर लगायेंगे और वह अनुभव करेंगे। जैसे अभी अनुभव करते हैं ना, पानी मिल गया बहुत प्यास मिटी। खाना मिल गया, टेन्ट मिल गया, सहारा मिल गया। ऐसे अनुभव करेंगे फरिश्तों द्वारा शान्ति मिल गई, शक्ति मिल गई, खुशी मिल गई। ऐसे अन्त:वाहक अर्थात् अन्तिम स्थिति, पावरफुल स्थिति आपका अन्तिम वाहन बनेगा। और चारों ओर चक्कर लगाते सबको शक्तियाँ देंगे, साधन देंगे। अपना रूप सामने आता है? इमर्ज करो। कितने फरिश्ते चक्कर लगा रहे हैं! सकाश दे रहे हैं, तब कहेंगे जो आप एक गीत बजाते हो ना - शक्तियाँ आ गई.... शक्तियों द्वारा ही सर्वशक्तिवान स्वत: ही सिद्ध हो जायेगा। सुना।

जो अब तक किया, जो चला वह समय प्रमाण अच्छे ते अच्छा हुआ। अब आगे और अच्छे ते अच्छा होना ही है। अच्छा। घबराये तो नहीं। समाचार सुनके, देखके घबराये? यह तो कुछ नहीं है। आपके पास सब कुछ है और यह कुछ भी नहीं है। लेकिन फिर भी आपके भाई बहिनें हैं इसलिए उन्हों की सेवा करना भी अच्छा है। अभी राज्य अधिकार, अकालतख्त में बैठे रहो, नीचे ऊपर नहीं आओ फिर देखो गवर्मेन्ट को भी साक्षात्कार होगा - यही है, यही है, यही है! तख्त से उतरो नहीं, अधिकार छोड़ो नहीं, अधिकार हर समय चलाओ, स्व पर, दूसरों पर नहीं। दूसरे पर नहीं चलाना। अच्छा।

नये-नये बच्चे भी बहुत आये हैं। वृद्धि तो होनी ही है। जो इस कल्प में, इस बारी पहले बारी आये हैं वह हाथ उठाओ। अच्छा किया। हिम्मत रखके पहुँच गये तो पहुँच गये ना। जो बैठ गये, वह बैठ गये और हुआ कुछ भी नहीं। हिम्मत बहुत आवश्यक है। कोई भी कार्य में हिम्मत है तो समझो सफलता है। हिम्मत कम सफलता कम। इसलिए हिम्मत और निर्भय, भय में नहीं आना, यह क्या हो रहा है। मर रहा है कोई तो वह मर रहा है, भय आपको आ रहा है। निर्भय। ठीक है उसको शान्ति का सहयोग दो, उस आत्मा को रहमदिल की भावना से सहयोग दो, भय में नहीं आओ। भय सबसे बड़े में बड़ा भूत है। और भूत निकल सकते हैं, भय का भूत बहुत मुश्किल निकलता है। किसी भी बात का भय, सिर्फ मरने वालों का भय नहीं, कई बातों का भय होता है। जो अनेक प्रकार के भय हैं, अपनी कमज़ोरी के कारण भी भय होता है। उन सबमें निर्भय बनने का जो सहज साधन है, वह है - सदा साफ दिल, सच्ची दिल। तो भय कभी नहीं आयेगा। जरूर कोई दिल में बात समाई हुई होती है जिससे भय होता है। साफ दिल, सच्ची दिल तो साहेब राजी और सर्व भी राजी।

अच्छा - नये-नये आने वाले बच्चों को, नयी जीवन में परमात्म भाग्य को प्राप्त करने की मुबारक हो। अच्छा। फारेन के भी बहुत आये हैं। फारेन ग्रुप हाथ उठाओ। (करीब 700 आये हैं) भले पधारे। वेलकम।

महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश की सेवा है:- महाराष्ट्र वाले हाथ उठाओ। (4 हजार आये हैं) तो 4 हजार को 4 पद्म बार मुबारक हो। अच्छा किया है, हर ग्रुप की अपनी-अपनी सेवा की शोभा है क्योंकि सेवा के पहले तो परिवार के सामने नजदीक आने का गोल्डन चांस मिलता है। चांस मिलता है ना? नहीं तो कौन पूछेगा महाराष्ट्र है या आन्ध्रा है? लेकिन विशेष सेवा का चांस लेने से परिवार के, दादियों के, दादाओं के सामने आते हैं। और खुशी भी होती है, क्यों खुशी होती है, कारण? देखो सेन्टर पर सेवा करते हो कितनों की? चलो ज्यादा-में-ज्यादा 50-100, और यहाँ जब सेवा करते हो तो हजारों की सेवा करते हो और हजारों की सेवा के रिटर्न में जो सबकी दुआयें मिलती हैं ना, बहुत अच्छी सेवा की, बहुत अच्छी सेवा की। यह दुआयें निकलती हैं। वह दुआयें एक तो वर्तमान समय में खुशी दिलाती हैं और दूसरा जमा भी होती हैं। डबल फायदा है। इसलिए जिन्होंने सेवा की तो सेवा का मेवा खुशी भी मिली और जमा का खाता भी जमा हुआ। डबल फायदा हो गया ना! अभी मैजारिटी सब जोन अच्छा सीख भी गये हैं, अभ्यास हो गया है। अच्छा किया, मुबारक है। (100 कुमारियों का समर्पण है) अच्छा - 100 कुमारियाँ उठो। सभी देखो। जहाँ भी टी.वी. है वहाँ दिखाओ। अच्छा है, वैसे तो समर्पण तो हैं ही। लेकिन समर्पण का पक्का स्टैम्प लगना है। यह आलमाइटी गवर्मेन्ट का स्टैम्प मिट नहीं सकेगा। पक्का है ना! पक्का! पक्का? जो समझते हैं बहुत-बहुत-बहुत पक्का है वह ऐसे हाथ हिलाओ। बहुत पक्का? महाराष्ट्र है। कोई महानता तो दिखायेगा ना! बहुत अच्छा, बापदादा के तरफ से बहुत-बहुत अरब-खरब बार मुबारक हो, बधाई हो। अच्छा।

अभी एक सेकण्ड में फरिश्ता बन विशेष जहाँ यह अर्थ क्वेक हुई है, उन चारों तरफ फरिश्ता बन उड़ती कला द्वारा शान्ति, शक्ति और सन्तुष्टता की सकाश फैलाके आओ। चक्कर लगाकर आओ एक सेकण्ड में। सबके सब चक्कर लगाके आओ। अच्छा।

चारों ओर के देश और विदेश के फरिश्ते रूप में विराजमान, स्व-अधिकारी बच्चों को, सदा लव और लॉ से अपने सहयोगी, सूक्ष्म वा स्थूल सहयोगी साथियों को चलाने वाले, सदा बापदादा द्वारा प्राप्त रूहानी साधनों को एवररेडी बनाने वाले, मैं आत्मा राजा बन राज्य अधिकार का अनुभव करने वाले, सदा उड़ती कला द्वारा फरिश्ते रूप से चारों ओर सकाश देने वाले शक्ति स्वरूप आत्माओं को सदा साफ दिल, सच्ची दिल द्वारा निर्भय, निराकारी स्थिति में अनुभव करने वाले विश्व-कल्याणी, विश्व-परिवर्तक आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

दादियों से - आप सबको खुशी हो रही है ना, हमारी निमित्त दादियाँ, दादे सामने आये हैं तो खुशी है ना! कि आप भी आने चाहते हैं? और ही सामने अच्छा है। सामने वालों को ज्यादा देखते हैं। यहाँ तो ऐसे करना पड़ेगा। और सामने वालों को तो बार-बार देख रहे हैं।

अच्छा - (जगदीश भाई से) सभी ठीक है। सबसे अच्छी बात है अपने को शरीर सहित बाप के हवाले कर लिया। वैसे तो बाप को अपना सब दे दिया है। दे दिया है ना कि देना है? आप लोगों ने, निमित्त आत्माओं ने तो दिया है, तब आपको साकार रूप में फालो कर रहे हैं। साकार रूप में महारथियों को देख सबको शक्ति मिलती है। तो यह सारा ग्रुप क्या है? शक्ति का स्त्रोत्र है। है ना!

(दादी जानकी कह रही हैं चलाने वाला बहुत रमजबाज है) रमजबाज नहीं होता तो इतनी वृद्धि कैसे होती। बाप कहते हैं चलने वाले भी बाप से ज्यादा चतुरसुजान हैं।

अच्छा - सभी सदा एक शब्द दिल से गाते रहते - ‘‘मेरा बाबा’’। यह गीत गाना सबको आता है ना! मेरा बाबा, यह गीत गाना आता है? सहज है ना! मेरा कहा और अपना बना लिया। बाप कहते हैं, बच्चे बाप से भी होशियार हैं। क्यों? भगवान को बाँध लिया है। (दादी जानकी से) बाँधा है ना! तो बाँधने वाले शक्तिशाली हुए या बँधने वाला? कौन शक्तिशाली हुए? बाँधने वाले ने सिर्फ तरीका आपको सुना दिया कि ऐसे बाँधो तो बँध जाऊँगा।

अच्छा। ओम् शान्ति।



20-02-2001   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


शिव जयन्ती - व्रत लेने का और सर्व समर्पण होने का यादगार है

आज त्रिमूर्ति रचता शिव बाप अपने पूज्य शालिग्रामों से मिलने आये हैं। मिलना भी है तो आज मनाना भी है। आप सभी विश्व के चारों ओर से बापदादा की जयन्ती बड़े उमंग-उत्साह से मनाने के लिए पहुँचे हो। बच्चे कहते हैं बाप की जयन्ती मनाने आये हैं और बाप कहते हैं बच्चों की जयन्ती मनाने आये हैं। आप सब भी अपनी जयन्ती अलौकिक बर्थ डे मनाने के लिए आये हैं। सारे कल्प में ऐसा न्यारा और प्यारा बर्थ डे कभी होता नहीं है। सारे कल्प में देखा है, ऐसा बर्थ डे मनाया है, जो बाप का भी हो और साथ में बच्चों का भी हो? क्योंकि विश्व परिवर्तन के कार्य में शिव बाप ब्रह्मा दादा के साथ-साथ ब्राह्मण भी जरूर चाहिए। ब्राह्मणों के बिना यज्ञ सफल नहीं होता है। इसलिए बाप और बच्चों का इकट्ठा जन्म दिन है अर्थात् जयन्ती है। तो बच्चे दिल ही दिल में बाप को मुबारक दे रहे हैं और बाप हर ब्राह्मण बच्चे को अलौकिक जन्म की अरब-खरब से भी ज्यादा दिल की दुआओं के साथ मुबारक दे रहे हैं। तो मुबारक हो, मुबारक हो, मुबारक हो! (सभी ने हाथ हिलाया) बहुत अच्छा- एक हाथ की ताली अच्छी लगती है, दो हाथ की नहीं। बहुत खुशी है ना, तो हाथ रूकते नहीं हैं, चल पड़ते हैं।

दुनिया में भक्त लोग भी शिव जयन्ती बड़े धूमधाम से मनाते हैं। लेकिन वह मनाते हैं एक दिन का जागरण वा एक दिन का व्रत। आप बच्चों ने अज्ञान नींद से जागरण का संकल्प एक दिन के लिए नहीं किया है, जागरण वह भी करते लेकिन आपने एक संगम युग का हीरे तुल्य जन्म जागरण किया है और कर रहे हैं। जाग गये हैं ना, अभी फिर सोयेंगे तो नहीं ना! या थोड़ा-थोड़ा सा सो जायेंगे! अच्छा, सोये नहीं तो थोड़ा झुटका खा लेंगे! यह जागरण ऐसा जागरण है जो स्वयं तो जाग जाते हैं लेकिन औरों को भी जगाते हैं। ज्ञान की जीवन में जागरण माना अन्धकार से रोशनी में आना। यह अलौकिक जागरण सभी को अच्छा लगता है ना! जब से जन्म लिया, जयन्ती मनाई तब से क्या-क्या व्रत लिया? याद है ना! बच्चे कहते हैं याद तो क्या, हमारी तो नेचुरल जीवन ही व्रतकी हो गई। पवित्र आहार, पवित्र व्यवहार और पवित्र विचार यह जीवन बन गई। एक मास के लिए, दो मास के लिए नहीं, जीवन ही व्रत धारण करने वाली बन गई। नेचुरल बन गई और नेचर बन गई। पवित्रता की नेचर बन गई है ना! नेचर बन गई है या बनानी पड़ती है? बन गई है ना? सिर्फ कांध हिलाओ बस। बन गई? अपवित्रता नेचर से समाप्त हो गई और पवित्रता जीवन में समा गई। ऐसी हीरे तुल्य शिव जयन्ती वा शालिग्राम जयन्ती मना ली। चारों ओर के देश-विदेश के बच्चे भी साथ-साथ मना रहे हैं। बापदादा देख रहे हैं कि चारों ओर बाप के साथ और आपके साथ वह भी कितने खुश हो रहे हैं।

आज के दिन विशेष भक्त लोग आपका यादगार बलि भी चढ़ाते हैं। आप सब मन-वचन-कर्म से बाप के आगे समर्पण होते हो, उसी का यादगार भक्त लोग अपने को बलि नहीं चढ़ाते, बकरे को बलि चढ़ा देते हैं। और कोई नहीं मिला, बकरा ही क्यों मिला? इसका भी रहस्य आप जानते हो, क्योंकि सबसे बड़े ते बड़ा देह-अभिमान का कारण है ‘‘मैं पन’’। यह ‘‘मैं पन’’ जब अर्पण कर लेते हो तब ही ब्राह्मण बनते हो। तो बकरा भी क्या करता है? में, में... तो यह देह-अभिमान के मैं-पन की निशानी है और देह-अभिमान का मैं-पन बहुत सूक्ष्म भी है और भिन्न-भिन्न प्रकार का भी है। सबसे पहला मैं पन है - मैं शरीर हूँ, फलाना हूँ। फिर आगे चलो तो सम्बन्ध में फंसने का भी भिन्न-भिन्न मैं-पन है। और आगे चलो तो भिन्न-भिन्न पोजीशन का भी मैं-पन है। उससे भी सूक्ष्म अपनी विशेषता का मैं-पन ऊपर से नीचे ले आता। विशेषता हर एक में है, ऐसी कोई भी मनुष्य आत्मा नहीं है जिसमें चाहे स्थूल, चाहे सूक्ष्म कोई भी विशेषता न हो, यह नहीं। ज्ञानी जीवन में भी हर ब्राह्मण के अन्दर कम से कम एक विशेषता अवश्य है, लेकिन ज्ञानी जीवन में विशेषता परमात्म देन है, परमात्मा की सौगात है। जब परमात्मा की देन को देह-अभिमान वश मैं-पन में लाते हैं, मैं ऐसा हूँ, यह रॉयल अभिमान बड़े-ते-बड़ा मैं-पनहै। तो समर्पण तो हुए ही हैं लेकिन आगे क्या देखना है?

टीचर्स सभी अपने को क्या कहती हैं? समर्पण हैं ना! टीचर्स सभी समर्पण हैं? अच्छा-प्रवृत्ति में रहने वाले समर्पण हैं? हाँ या ना? पाण्डव समर्पण हैं? बहुत अच्छा मुबारक हो। आगे क्या करना है? समर्पण तो हो गये, बहुत अच्छा। अभी आगे यह चेक करना है, बतायें क्या? आप कहेंगे समर्पण तो हैं ना फिर क्या करना है? तो एक है समर्पण और आगे है -सर्व समर्पणसर्वमें विशेष अन्डरलाइन है अपने मन-बुद्धि-संस्कार सहित समर्पण क्योंकि जितना आगे बढ़ते हो, पुरूषार्थ में तीव्रगति से कदम उठाते हो और उठा भी रहे हो लेकिन वर्तमान वायुमण्डल प्रमाण ब्राह्मण जीवन में भी मन और बुद्धि के ऊपर व्यर्थ का प्रभाव, बुरा नहीं, बुरा खत्म हुआ लेकिन व्यर्थ और निगेटिव का प्रभाव ज्यादा है, इसलिए यथार्थ और सत्य निर्णय करने की महसूसता शक्ति कम हो जाती है। समझ से महसूसता होती है - हाँ यह रांग है, यह ठीक नहीं है लेकिन एक है विवेक से महसूसता, दूसरा है दिल से महसूसता। अगर दिल से कोई भी बात को महसूस कर लिया तो दुनिया बदल जाए लेकिन स्वयं नहीं बदलेगा। और संस्कार, पुराने 63 जन्मों के होने के कारण नेचुरल हो गये हैं, जिसको दूसरे शब्दों में कहते हो यह गलती नहीं है लेकिन मेरी नेचर है। तो पुराने संस्कार कुछ मिटते हैं, कुछ दब जाते हैं फिर निकल आते हैं। लेकिन सर्व समर्पण का अर्थ है - मन का भाव और भावना हर आत्मा के प्रति परिवर्तन हो जाए, जिसको बापदादा कहते हैं कैसी भी आत्मा हो, भिन्न-भिन्न तो होगी ही, कल्प वृक्ष है, वैरायटी नहीं हो तो शोभा नहीं लेकिन हर आत्मा के प्रति शुभ भावना और शुभ कामना। अशुभ भावना को भी परिवर्तन कर शुभ भावना रखना वा शुभ भावना देना। हर आत्मा के प्रति शुभ कामना, यह अवश्य बदलेंगे। ऐसा नहीं कि यह तो बदलना ही नहीं है, उसके प्रति जज बनके जजमेंट नहीं दो, यह बदलना ही नहीं है। जब चैलेन्ज की है कि प्रकृति को भी परिवर्तन कर सतोगुणी बनाना ही है, बनाना ही है। बनेगी, नहीं बनेंगी - क्वेश्चन नहीं, बनाना ही है। हीशब्द को अन्डरलाइन किया है। तो क्या प्रकृति बदल सकती है, आत्मा नहीं बदल सकती? आत्मा तो प्रकृति का पुरूष है। तो प्रकृति बदले, पुरूष नहीं बदले क्यों? तो वर्तमान समय यह मन-बुद्धि-संस्कार, स्व के परिवर्तन और सर्व के परिवर्तन - यही सेवा है।

सभी पूछते हैं - इस वर्ष में क्या करना है? तो डबल सेवा करनी है। एक तो स्व को सर्व समर्पण और इतना स्व को समर्पण करो जो आपका वायुमण्डल, आपका वायब्रेशन, आपका संग, आपका दिल का सहयोग, आपके दिल की दुआयें औरों को भी सहज परिवर्तन करने में सहयोग दें। इतना स्व परिवर्तन करना है। सर्व समार्पित करना है। एक यह सेवा और दूसरी है लोक सेवा, रिजल्ट में देखा है कि चारों ओर देश में, विदेश में, गांव में सभी ब्राह्मण बच्चों ने अब तक जो सेवा की है, बाप के मुहब्बत से की है, उसकी तो बापदादा बहुत-बहुत-बहुत मुबारक देते हैं। आगे क्या करना है? बापदादा ने देखा जो ब्राह्मण बने हैं, ब्राह्मणों की भी वृद्धि है और भी तीव्रगति की वृद्धि होनी है। लेकिन साथ में जो लोक प्रिय सेवा की है, भिन्न-भिन्न प्रोजेक्ट द्वारा सेवा हो रही है, वह बहुत अच्छी है। अभी भिन्न-भिन्न स्थानों पर सहयोगी आत्मायें अच्छी निमित्त बनी हैं। सहयोगी तो बहुत अच्छे हैं, एक कदम सहयोग का है, एक पांव तो बढ़ाया है लेकिन दूसरा पाँव है - सहजयोगी, कर्मयोगी। कर्मयोगी या सहजयोगी भी कुछ कुछ बन गये हैं, यह भी स्टेज दूसरी है। अभी ऐसी आत्मायें प्रैक्टिकल स्वरूप से स्टेज पर पार्ट बजायें। माइक स्टेज पर होता है ना! तो माइक बन सेवा की स्टेज पर प्रत्यक्ष स्वरूप में भी आयेंगे जरूर। आप माइट हो, वह माइक। जैसे ब्रह्मा बाप अव्यक्त रूप में माइट है, और आप बच्चों को माइक बनाया, ऐसे आप माइट बनो और ऐसे माइक तैयार करो। हैं, बहुत अच्छे-अच्छे, उम्मींदवार फास्ट जाने वाले हैं, सिर्फ अब और ऐसी आत्माओं के कनेक्शन को बढ़ाने की आवश्यकता है। वह चाहते हैं क्या करें, कैसे करें, उन्हों को माइट बन विधि ऐसी सुनाओ जो लौकिक आक्युपेशन और अलौकिक सेवा दोनों का बैलेन्स रखते हुए लास्ट सो फास्ट, फास्ट सो फर्स्ट के लाइन में आ जाएँ। ऐसे हैं, प्रत्यक्ष होने हैं। सिर्फ कनेक्शन और करेन्ट दो, रूहानियत की करेन्ट, वायब्रेशन, वायुमण्डल की करेन्ट और विधि, जो निमित्त बनें कि बैलेन्स रखने वाली जीवन बहुत अच्छी और सहज है। ठीक है ना! क्या करना है, वह सुन लिया ना! छोटा-छोटा गुलदस्ता तो तैयार करो। चलो बड़ा गुलदस्ता नहीं, 5 फूलों का, 10 फूलों का गुलदस्ता तो लाओ। और हर एक तरफ बापदादा की नजरों में हैं। सुना! पाण्डव सुना? बहुत अच्छा। डबल फारेनर्स जम्प नहीं लेकिन उड़ रहे हैं, तो पहला गुलदस्ता विदेश लायेगा या भारत लायेगा? कौन लायेगा? कि दोनों साथ में लायेंगे? एक तरफ से फारेन का, एक तरफ भारत का, दोनों गुलदस्ते स्टेज पर आयेंगे। जैसे यह सेरीमनी मनाते हैं तो वह भी सेरीमनी मनायेंगे, दोनों गुलदस्तों की, भारत की भी विदेश की भी। ठीक है? विदेश वाले क्या समझते हैं? ठीक है। तो दूसरी सीजन में लायेंगे? लाना है? भारत वाले लायेंगे? लौकिक और अलौकिक आक्युपेशन के बैलेन्स वाले। आप जैसे सिर्फ ब्राह्मण जीवन वाले नहीं, लौकिक भी अलौकिक भी, उन्हों का प्रभाव ज्यादा होगा। आप लोगों से तो दृष्टि लेने आयेंगे। अच्छा - क्या सोच रही है, जयन्ती?

नाम सोच रही है क्या? यह निर्मला, मोहनी नाम सोच रहे हैं ना! यहाँ पाण्डव देखो, भारत के पाण्डव कोई कम हैं, सुभानअल्ला हैं। यह देखो, कुछ-कुछ तो बैठे भी हैं। यह ब्रायन सामने बैठा है ना! (आस्ट्रेलिया के ब्रायन भाई से) गुलदस्ता तैयार करना है ना! बहुत अच्छे-अच्छे क्या नाम देते हो, एन. सी. ओ., अच्छा। फारेन के एन. सी. ओ. वाले हाथ उठाओ। एन. सी. ओ. बनना सहज नहीं है, कमाल करना पड़ेगा। कर सकते हैं कोई बड़ी बात नहीं है क्योंकि धरनी तैयार है। बीज भी पड़ा हुआ है सिर्फ पालना का पानी देना है। अभी बीज को पालना का पानी चाहिए। अच्छा।

बापदादा सभी बच्चों को देख खुश होते हैं, हर टर्न में आधी संख्या नयों की होती है, पहले बार की। तो यह वृद्धि की निशानी है ना। इस बारी भी जो पहले बारी आये हैं वह हाथ उठाओ। बहुत हैं। तो जो पहले बारी आये हैं उन विशेष आत्माओं को नये बर्थ डे मनाने की मुबारक हो। मधुबन में तो बर्थ डे आज ही मना रहे हैं, इस बारी मना रहे हैं। अच्छा है।

टीचर्स भी बहुत आई हैं। टीचर्स को भी मुबारक हैं। आपने ही तो सेवा की है ना! तो सेवा की मुबारक। अच्छा। गुजरात का क्या हाल है? हलचल गुजरात से शुरू हुई है। ज्यादा हलचल गुजरात और विदेश में भी थोड़ा-थोड़ा शुरू है। डरते तो नहीं हो ना! धरनी तो हिलती है लेकिन दिल तो नहीं हिलती है ना! जहाँ धरनी हिली है, नुकसान हुआ है वहाँ से जो आये हैं वह उठो। अहमदाबाद वाले भी उठो। अच्छा। दिल हिली कि धरनी हिली? क्या हुआ? दिल में थोड़ा ऐसा-ऐसा हुआ? नहीं हुआ! बहादुर हैं। बापदादा ने देखा कि बच्चों ने अपने हिम्मत और बाप की छत्रछाया से अच्छा अपना रिकार्ड रखा। कोई फेल नहीं हुआ, सब पास हो गये, कोई थोड़ा, कोई ज्यादा। नम्बरवार तो सब होता ही है हर जगह। लेकिन पास हैं। मुबारक हैं। सबसे ज्यादा नाजुक स्थान से कौन आये हैं? (एक भुज की और एक बचाऊ की बहन आई है) अच्छा, भुज में आप तो हजार भुजाओं वालों के साथ थे। अच्छा, पेपर में पास। बहुत अच्छा किया। आगे भी हिलना नहीं। अभी तो होता रहेगा। घबराना नहीं। (रोज होता है) होने दो। देखो परिवर्तन तो होना है ना! तो प्रकृति भी अपना काम तो करेगी ना! जब मनुष्य आत्माओं ने प्रकृति को तमोगुणी बना दिया, तो वह अपना काम तो करेगी ना। लेकिन हर खेल, ड्रामा के खेल में यह भी खेल है। खेल को देखते हुए अपनी अवस्था नीचे ऊपर नहीं करना। मास्टर सर्वशक्तिवान आत्माओं की स्व-स्थिति पर पर-स्थिति प्रभाव नहीं डाले। और ही आत्माओं को मानसिक परेशानियों से छुड़ाने के निमित्त बनो क्योंकि मन की परेशानी आप मेडीटेशन से ही मिटा सकते हो। डाक्टर्स अपना काम करेंगे, साइन्स वाले अपना काम करेंगे, गवर्मेन्ट अपना काम करेगी, आपका काम है मन के परेशानी, टेन्शन को मिटाना। टेन्शन फ्री जीवन का दान देना। सहयोग देना। जैसे वर्तमान समय देश विदेश वाले सहयोगी बन सहयोग दे रहे हैं ना! यह बहुत अच्छा कर रहे हैं। इससे सिद्ध होता है कि चाहे विदेश हो, चाहे कोई भी हो लेकिन भारत देश से प्यार है। हर एक अपना-अपना कार्य तो कर रहे हैं, आप अपना कर रहे हैं। जैसे आग लगती है तो आग बुझाने वाले डरते नहीं हैं, बुझाते हैं। तो आप सब भी मन के परेशानी की आग बुझाने वाले हो। अच्छा।

तो गुजरात मजबूत है ना! हजार भुजाओं की छत्रछाया में हो। कहाँ भी आये, अभी तो गुजरात को देखकर अनुभवी हो गये हो ना। कहाँ भी आये। देखो प्रकृति को कोई मना नहीं कर सकता है, गुजरात में आओ, आबू में नहीं आओ, बाम्बे में नहीं आओ, नहीं। वह स्वतन्त्र है। लेकिन सभी को अपने स्व-स्थिति को अचल-अडोल और अपने बुद्धि को, मन के लाइन को क्लीयर रखना है। लाइन क्लीयर होगी तो टचिंग होगी। बापदादा ने पहले भी कहा था उन्हों की वायरलेस है, आपकी वाइसलेस बुद्धि है। क्या करना है, क्या होना है, यह निर्णय स्पष्ट और शीघ्र होगा। ऐसे नहीं सोचते रहो बाहर निकलें, अन्दर बैठें, दरवाजे पर बैठें, छत पर बैठें। नहीं। आपके पांव वहाँ ही चलेंगे जहाँ सेफ्टी होगी। और अगर बहुत घबरा जाओ, घबराना तो नहीं चाहिए, लेकिन बहुत घबरा जाओ, बहुत डर लगे तो मधुबन एशलम घर आपका है। डरना नहीं। अभी तो कुछ नहीं है, अभी तो सब कुछ होना है, डरना नहीं, खेल है। परिवर्तन होना है ना। विनाश नहीं, परिवर्तन होना है। सबमें वैराग्य वृत्ति उत्पन्न होनी है। रहमदिल बन सर्व शक्तियों द्वारा सकाश दे रहम करो। समझा!

सेवा का टर्न - ईस्टर्न, नेपाल, तामिलनाडु का है - तामिलनाडु वाले उठो। सभी पट्टा लगाकर खड़े हैं। अच्छा, हाल के सिक्युरिटी की ड्युटी है। अच्छी सेवा की और सेवा का फल खुशी मिली और वर्तमान व भविष्य के लिए बल भी मिला। तो सेवा का बल भी मिला और फल भी मिला। ठीक है ना! बहुत अच्छी सेवा की, मुबारक हो। नेपाल उठो - नेपाल ने क्या सेवा की? (सब्जी काटना, अनाज़ साफ करना) मेहनत का काम किया। देखो अगर सब्जी नहीं काटते तो सब खाते क्या! इसलिए बहुत अच्छी सेवा की और सेवा की दुआयें इतने ब्राह्मण आत्माओं की मिली। दुआयें जमा हो गई। सभी ने अपने दिल से सेवा की, यह रिकार्ड सबका अच्छा है। अच्छा, मुबारक हो।

ईस्टर्न - बंगाल, बिहार, उड़ीसा, आसाम.... बिहार वाले उठो, बिहार वालों ने कौन सी ड्युटी ली? (सिक्युरिटी) अपनी भी सिक्युरिटी की ना! अपने स्व-स्थिति की भी सिक्युरिटी और शान्तिवन की भी सिक्युरिटी की। बहुत अच्छा किया। देखो सबकी शक्लें कितनी हर्षित हो रही हैं क्योंकि सेवा की झलक चेहरों पर आ गई है। बहुत अच्छा। उड़ीसा भी उठो - सबसे ज्यादा उड़ीसा है। उड़ीसा वालों ने क्या किया? (आवास निवास, रोटी, पानी, चाय, खाना खिलाना) उड़ीसा ने तो देखो चार चाँद लगा दिया, बहुत अच्छा किया। बहुत अच्छा। संख्या ज्यादा है इसलिए चार चाँद लगाये हैं। खुशी हुई ना। सेवा की कितनी खुशी हुई? बहुत हुई! आसाम उठो - आसाम में शक्ति सेना ज्यादा है। क्या ड्युटी ली? (ट्रांसपोट, वी.आई.पी भोजन आदि) अच्छा सबको ठीक पहुँचाया। ट्रेन से लाया और ट्रेन तक पहुँचायेंगे, आराम से पहुँचायेंगे। अच्छा किया। आसाम को बापदादा कहते हैं यह विशेष आसामीहैं। आसाम नहीं, आसामी हैं। बहुत अच्छा। मुबारक हो। बंगाल - बंगाल ने क्या ड्युटी ली? (सफाई, दादी से मिलाना, धोबीघाट आदि) एक तरफ सफाई और दूसरे तरफ मिलाना, दोनों का कितना अच्छा मेल है। सफाई भी बहुत जरूरी और मिलाना भी जरूरी। देखो अपना घर समझकर ड्युटी बजाई, इसीलिए सफलता, सफलता, सफलता है। सफलता बच्चों का जन्मज्ञ्सिद्ध अधिकार है। तो सफलता मिली ना! बहुत अच्छा।

अच्छा - अभी फारेन का कुमार ग्रुप - बहुत अच्छी भट्टी की। बहुत अच्छा लगा! कुमार कमाल करेंगे। कुमार जो चाहे वह कर सकते हैं। कर रहे हैं और आगे भी करेंगे। करना है ना! होशियार हैं सब। बापदादा चेहरों से ही देख रहे हैं कि सभी हिम्मत वाले हैं। हिम्मत की मुबारक हो, बहुत अच्छा। बापदादा ने देख लिया ना। अभी तो कम्पलेन नहीं होगी ना कि हमको कोई ने देखा नहीं। एक एक को देख लिया। अच्छी मेहनत की है।

अच्छा - बापदादा ने देखा। सुना नहीं देखा कि इस बारी डबल फारेनर्स ने साइलेन्स के बहुत अच्छे-अच्छे अनुभव किये। सभी का सुन तो नहीं सकते हैं, लेकिन सुन लिया है। अच्छे उमंग-उत्साह से प्रोग्राम किया, और आगे भी अपने अपने देश में जाके भी यह साइलेन्स का अनुभव बीच-बीच में करते रहना। चाहे जितना समय निकाल सको क्योंकि साइलेन्स का प्रभाव सेवा पर भी पड़ता ही है। तो अच्छे प्रोग्राम किये। बापदादा खुश है। आगे भी बढ़ाते रहना। उड़ते रहना, उड़ाते रहना। अच्छा।

अभी एक सेकण्ड में मन और बुद्धि को एकाग्र कर सकते हो? स्टाप, बस स्टाप हो जाए। अभी एक सेकण्ड के लिए मन और बुद्धि को एकदम एकाग्र बिन्दु, बिन्दु में समा जाओ। अच्छा। (बापदादा ने ड्रिल कराई)

चारों ओर के सर्व श्रेष्ठ ब्राह्मण आत्माओं को, चारों ओर के सदा दृढ़ संकल्प का व्रत रखने वाले अचल आत्माओं को, चारों ओर के सर्व हिम्मत-हुल्लास से स्व सेवा और लोक कल्याण की सेवा करने वाले महान सेवाधारी आत्माओं को, आज के शिव जयन्ती की, हीरे तुल्य जयन्ती की, न्यारी और प्यारी जयन्ती की मुबारक हो, और दुआओं के साथ यादप्यार और नमस्ते।

अच्छा - सभी के कार्ड और पत्र बहुत अच्छे-अच्छे आये हैं। बापदादा देख रहे हैं, यहाँ भी रखे हुए हैं और डबल फारेनर्स ने जो अपने दिल के पुरूषार्थ के पत्र लिखे हैं, वह सब बापदादा के पास पहुँच गये हैं। सभी के पत्र और भिन्न-भिन्न सजावट के बहुत सुन्दर दिल के विचार के उमंग-उत्साह के कार्ड मिल गये हैं। इसलिए दूर बैठने वालों को सबसे समीप, सामने देख यादप्यार और मुबारक दे रहे हैं। अच्छा।

आंध्रप्रदेश के चीफ मिनिस्टर भ्राता चन्द्राबाबू नायडु जी तथा उनकी धर्मपत्नी श्रीमती चन्द्राबाबू नायडु से बापदादा की मुलाकात

बहुत अच्छा किया जो अपने गॉडली फैमिली में पहुँच गये। यह गॉडली फैमिली है ना! आप फैमिली मेम्बर हो ना! कि बाहर से आये हो? क्या हो? फैमिली मेम्बर हो? आप गेस्ट नहीं हो, गेस्ट हो क्या? होस्ट हो। गेस्ट नहीं हो। आपका ही घर है क्योंकि यह घर, परम-आत्मा का घर है तो सबका घर है ना! बापदादा को खुशी है क्योंकि बच्चे में एक विशेषता है। वह विशेषता है - हिम्मत। कोई भी कार्य करते हो तो हिम्मत से करते हो। और हिम्मत से स्वत: ही मदद मिलती है। हिम्मत कभी नहीं हारना चाहिए। हिम्मत परमात्मा के मदद के भी पात्र बना देती है। (मिसेज नायडू) यह भी हिम्मत वाली है, कम नहीं है। इसलिए थोड़ी बहुत खिट-खिट होते भी सफलता मिलती है, क्यों? दृढ़ता की चाबी आपके पास है। जहाँ दृढ़ता है वहाँ सफलता है ही है। होगी या नहीं होगी का क्वेश्चन नहीं, है। बाकी वायुमण्डल के अनुसार थोड़ी बहुत बातें तो आनी ही हैं। लेकिन उन बातों को हिम्मत से साइडसीन समझके चलते रहो। अच्छा पार्ट बजाया है। अपनी स्टेट से प्यार अच्छा है। और यह आपकी साथी है। साथी हो ना! साथ देती हो ना! और यह सब कौन है? (सेक्रेट्री और सिक्युरिटी।) बहुत अच्छा।

बहुत भक्तों को भक्ति की राह दिखाई ना तो इसका फल भी मिलता है क्योंकि अच्छा कार्य है, बुरा कार्य नहीं है तो अच्छे कार्य का फल मिलता है - खुशी, हल्कापन। यह फल है। अच्छा है। वाह! सेक्रेट्री तो बहुत फेथफुल हैं, अच्छे हैं। देखो, सेक्रेट्री अगर मददगार नहीं हो ना तो कार्य सिद्ध नहीं होता। इसीलिए बलिहारी सेक्रेटीज की जो सहयोग दे रहे हैं। जो भी आये हैं।

अच्छा - आप बी.के. हैं? देखो, जगत का रचता कौन है? जगत का रचता ब्रह्मा है ना! वह तो मानती हो ना! स्थापना करने वाला ब्रह्मा, पालना वाला विष्णु और पुरानी दुनिया का विनाश करने वाला शंकर। तीनों का मालूम है ना! तो आप ब्रह्मा की रचना नहीं हो? ब्रह्माकुमार-कुमारी तो सभी हैं। रचता ही ब्रह्मा है तो बी.के. तो सभी हैं। सिर्फ अभी ब्रह्मा बाप को थोड़ा पहचानना है, बस। बहुत अच्छा किया। देखो, आपने माइक बनने में अच्छा पार्ट बजाया है। माइक का अर्थ समझा ना! जो सेवा की स्टेज पर आने वाले हैं, बापदादा उन्हें माइक कहते हैं। तो अपनी एशेम्बली में सबको सन्देश देना, यह अपना फर्ज अच्छा पालन किया है। मानें नहीं मानें, चले नहीं चलें, लेकिन आपने अपना फर्ज पालन किया। यह पहला ही आपका एक्जैम्पुल है। इसीलिए बापदादा खुश हैं और साथियों पर भी खुश हैं। (सभी को आपने मेडीटेशन करने की प्रेरणा दी है) बापदादा ने सुना है। हिम्मत रखी ना। (इनका विजन है स्वार्णिम आंध्रा बनाना है) हाँ क्यों नहीं बनायेंगे, सारा स्वर्ण बनना ही है।

काल आफ टाइम में पधारे हुए मेहमानों से - आप सभी को यह अपना घर लगता है? अपना घर है? यह इतनी बड़ी गॉडली फैमिली कब देखी है? देखी है? नहीं देखी है। कितने भाग्यवान हो जो इतनी बड़ी गॉडली फैमिली में पहुँच गये। सभी का अनुभव अच्छा रहा और आगे भी इसी अनुभव को कनेक्शन द्वारा बढ़ाते रहना। कनेक्शन जरूरी है ना! जितना कनेक्शन रखते रहेंगे उतना अनुभव बढ़ता रहेगा। अभी आप मैसेन्जर बनके जा रहे हो। मैसेन्जर हो ना! मैसेन्जर हैं? जो मैसेज मिला वह मैसेज औरों को भी देकर टेन्शन फ्री लाइफ बनायेंगे। आज दुनिया में टेन्शन कितना है। तो आप टेन्शन फ्री अनुभव कर औरों को कराना। कराना है ना! अच्छा है। जो भी आये हो, वह विशेष हो। विशेषता है आपमें। अभी उसी विशेषता को कार्य में लगायेंगे तो और बढ़ती जायेगी। जैसे बीज में सब कुछ भरा हुआ होता है लेकिन जब तक धरनी में नहीं पड़ा है तो फल नहीं देता है, तो आप सबमें विशेषता का बीज है। अभी उसको कार्य में लगाना। तो आगे बढ़ते रहेंगे। ठीक है ना! अच्छा। इन्होंने सेवा की है। अच्छी सेवा की है। ग्रुप तैयार तो किया है और प्लैन भी अच्छा बनाया है। अच्छा। सब बहुत खुश हैं ना? अच्छा।

65वीं त्रिमूर्ति शिव जयन्ती पर बापदादा ने अपने हस्तों से शिव-ध्वज फहराया तथा सभी बच्चों को बधाई दी, मोमबत्ती जलाई, केक काटी

सभी ने यह झण्डा लहराया, हाथ थोड़ों के थे लेकिन आप सबके हाथ बाप के साथ थे। जो पीछे बैठे हैं उन्होंने भी सबके साथ झण्डा लहराया। सबके चेहरों से हर एक के दिल में बाप का झण्डा लहरा रहा है, यह शक्ल से दिखाई दे रहा है। तो दिल में झण्डा तो लहरा लिया है और कपड़े का झण्डा भी लहरा लिया है जगहजगह पर। अभी प्रत्यक्षता का झण्डा जल्दी-से-जल्दी लहराना ही है। यही व्रत लो, दृढ़ प्रतिज्ञा का व्रत लो कि जल्दी-से-जल्दी यह झण्डा नाम बाला का लहराना ही है। अभी दु:खी दुनिया को मुक्तिधाम में जीवनमुक्ति धाम में भेजो। बहुत दु:खी है ना तो रहम करो, अब दु:ख से छुड़ाओ। जो बाप का वर्सा है - मुक्तिका, वह सबको दिलाओ क्योंकि परेशान बहुत हैं। आप शान में हो, वह परेशान हैं। कभी भी मन्सा सेवा से अपने को अलग नहीं करना, सदा सेवा करते रहो। वायुमण्डल फैलाते रहो। सुखदाता के बच्चे सुख का वायुमण्डल फैलाते चलो। यही मनाना है। तो शिव-रात्रि मना ली! सबने मनाई, यहाँ वालों ने मनाई? कुर्सा वालों ने मनाई? पीछे वालों ने मनाई? इस तरफ वालों ने मनाई? गैलरी वालों ने मनाई? सबने मिलकर मनाई, सबको मुबारक हो, मुबारक हो, मुबारक हो।