25-10-09   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


‘‘सर्व खज़ानों से सम्पन्न अपने चेहरे वा चलन से अलौकिकता का साक्षात्कार कराओ’’

आज सर्व खज़ानों के दाता अपने खज़ानों के मालिक बच्चों को देख रहे हैं। हर एक बच्चा सर्व खज़ानों से सम्पन्न है क्योंकि बाप ने सर्व बच्चों को एक जैसा एक ही समय में सर्व खज़ाने दिये हैं। तो बापदादा अपने बालक सो मालिक बच्चों से मिलने आये हैं। बच्चों ने बुलाया तो बाप बच्चों के स्नेह में पहुंच गये हैं। खज़ाने तो बहुत हैं, सबसे पहला खज़ाना है ज्ञान धन, जिस ज्ञान धन से मालामाल हो गये, महादानी बन औरों को भी बांटते रहते हो। जिस ज्ञान के खज़ाने से जो भी भिन्न-भिन्न बंधन में आत्मा फँस गई उन सब बंधनों से मुक्त हो गये। बन्धनयुक्त से बन्धनमुक्त हो गये। साथ में योग अर्थात् याद का खज़ाना, जिससे शक्तियों की अनेक शक्तियां प्राप्त की है, ऐसे ही धारणा द्वारा सर्व गुणों की अनुभूति अर्थात् खज़ाना मिला। साथ में धारणा की शक्ति से सर्व के स्नेह की शक्ति, सर्व के प्यारे और न्यारेपन की शक्ति का खज़ाना प्राप्त किया। सर्व के स्नेह का खज़ाना अनुभव किया। साथ में सर्व ब्राह्मण सम्बन्ध से अपार खुशी का खज़ाना अनुभव किया। लेकिन सर्व खज़ानों के साथ जो विशेष खज़ाना है वह है संगम के समय का खज़ाना। जिस आत्मा को समय के खज़ाने का महत्व है वह सदा अनेक प्राप्तियों के मालिक बन जाते हैं क्योंकि संगमयुग का समय है बहुत छोटा लेकिन समय से प्राप्तियां ज्यादा है। सबसे ज्यादा संगमयुग की श्रेष्ठ से श्रेष्ठ प्राप्ति है स्वयं भगवान बाप रूप में, शिक्षक रूप में, सतगुरू के रूप में प्राप्त होता है। संगमयुग में छोटे से जन्म में 21 जन्म की प्राप्ति, जिसमें तन, मन, धन, जन सर्व प्राप्ति हैं और गैरन्टी है 21 जन्म फुल, आधा नहीं, पौना नहीं लेकिन फुल 21 जन्म की गैरन्टी है। तो सबसे ज्यादा जो महत्व है वह है संगमयुग का एक-एक सेकण्ड अनेक वर्षों के समान है। तो बोलो, सर्व खज़ानों से सम्पन्न तो हैं? सम्पन्न है ना? इसलिए बापदादा सदा समय की स्मृति दिला रहे हैं। कई बच्चे समझते हैं कि एक दो मिनट अगर और कुछ सोच लिया, तो 2 मिनट ही तो हैं। लेकिन जितना समय का महत्व है उस अनुसार तो 2 मिनट नहीं, 2 मास भी नहीं, दो वर्ष के समान हैं। इतना महत्व है संगम के समय का। सर्व शक्तियों की, सर्व गुणों की, परमात्म प्यार की, ब्राह्मण परिवार के प्यार की और कल्प पहले वाले ईश्वरीय हक की। सर्व प्राप्ति इस छोटे से युग में हैं और कोई भी युग में यह सर्व प्राप्ति नहीं। राज्य भाग्य होगा, आप सबका राज्य होगा, सुख शान्ति सब होगा लेकिन परमात्म मिलन का, अतीन्द्रिय सुख का, सर्व ब्राह्मण परिवार का, आदि मध्य अन्त की नॉलेज का वह अब संगम पर ही मिला है, हर कल्प मिलता रहेगा।

तो बापदादा हर बच्चे के चेहरे से देखते हैं कि खज़ाने जमा कितने हैं। खज़ाने तो मिले लेकिन हर एक ने कितना जमा का खाता बढ़ाया है, वह हर एक के चेहरे से, चलन से दिखाई देता है और आप सब भी अपने आपको जानते हो कि मैंने कितना जमा किया है? अभी बापदादा की यही दिल की आश है कि खज़ाने मिले तो हैं लेकिन अब समय सिर्फ वर्णन करने का नहीं है लेकिन आपका चेहरा और चलन प्रत्यक्ष अनुभव कराये कि यह आत्मायें कोई विशेष हैं, न्यारे हैं और परमात्म प्यारे हैं क्योंकि आगे चलकर समय परिवर्तन होने से आपकी सेवा सिर्फ वर्णन करने से नहीं, समय नाजुक होने से इतना समय कोई निकाल नहीं सकेगा लेकिन आपके खज़ाने सम्पन्न चेहरे से, चलन से आपकी अलौकिकता का दूर से ही साक्षात्कार होगा। तो ऐसा पुरूषार्थ अभी अपना प्रत्यक्ष करो। जैसे ब्रह्मा बाप को देखा, चाहे संगठन के बीच में भी रहा तो भी दूर से वह पर्सनैलिटी चमक अनुभव हुई। ऐसे अभी विशेष डबल विदेशी, बापदादा डबल पुरूषार्थी कहते हैं तो बापदादा निमित्त आज डबल विदेशी बच्चों को देख खुश है। पुरूषार्थ वृद्धि का अच्छा कर रहे हैं, पालना भी सभी को बहुत अच्छी मिल रही है, निमित्त बनी हुई आत्माओं से, और बापदादा को एक बात सभी की बहुत अच्छी लगती है कि सर्व आत्मायें हर वर्ष अपना संगठन का मिलन मधुबन में विशेष करते हैं क्योंकि मधुबन का वायुमण्डल रिफ्रेशमेंट में बहुत सहयोग देता है और एक ही जिम्मेवारी, स्व-परिवर्तन, मन्सा सेवा एक दो के अनुभवों का अच्छा चांस मिलता है। तो बापदादा इस बात पर मुबारक देते हैं।

अभी कुछ कमाल अपने-अपने स्थान पर जाकर करना, कुछ न्यारापन जो बाप को प्यारा है वह प्रैक्टिकल में अनुभव कराना जिससे मधुबन की रिफ्रेशमेंट का सहयोग वहाँ भी अनुभव करते रहेंगे। तो आज विशेष डबल पुरूषार्थी ग्रुप का मिलन है और देखो आप सभी से इन्डिया वाले बच्चों का इतना प्यार है जो पहला चांस आपको ही देते हैं। तो पहले चांस का रिजल्ट पहला नम्बर लेना है। अच्छा लगता है, बापदादा ने पहले भी सुनाया है कि डबल विदेशी या डबल पुरूषार्थी बच्चों ने बाप का एक विशेष टाइटिल प्रत्यक्ष किया है। जो विदेश में मैजारिटी तरफ के बाप के बच्चों को निकाल उनकी भी तकदीर की तस्वीर बना दी है, इसीलिए लगन से जो चारों ओर मेहनत कर रहे हैं, उससे बाप का विश्व कल्याणकारी कर्तव्य प्रसिद्ध किया है। इसीलिए बापदादा हर बच्चे को वाह! बच्चा वाह! की मुबारक देते हैं। अभी भी जैसे भारत में कोने-कोने में सन्देश देने की सेवा चलती रहती है ऐसे वहाँ भी उमंग-उत्साह है कि रहे हुए देश में सन्देश दे दें क्योंकि समय पर कोई भरोसा नहीं। बापदादा ने पहले से ही कहा है कि अचानक क्या भी हो सकता है इसलिए सन्देश देने का वा अपने प्रोग्रेस का अभी-अभी, कभी-कभी नहीं, बापदादा ने कहा ही है कि वास्तव में ब्राह्मणों की डिक्शनरी में कभी-कभी शब्द शोभता नहीं है, अभी-अभी, संकल्प किया करना ही है। देखेंगे, करेंगे, यह गे-गे का शब्द ही नहीं है। इसलिए आपकी मम्मा ने भी यही लक्ष्य रखा, याद दिलाने का कि अब नहीं तो कब नहीं।

तो डबल पुरूषार्थी बच्चे अभी-अभी करने वाले हैं या कभी-कभी? जो समझते हैं कि अभी-अभी करके दिखाने वाले हैं, वह हाथ उठाओ। करना ही है। करना ही है। करेंगे नहीं, करना ही है। याद रखना, अपने आपही अपना चार्ट रखना और बापदादा ने पहले ही सुनाया है कि हर रात्रि को बापदादा को अपने सारे दिन का चार्ट सुनाने के बाद अपना दिमाग खाली करके सोने से आपको नींद भी अच्छी आयेगी और साथ में रोज़ का हालचाल देने से दूसरे दिन याद रहता है कि बाबा को हमने अपना कहा है, तो वह स्मृति सहयोग देती है। धर्मराजपुरी के लिए जाना नहीं पड़ेगा। दे दिया ना और परिवर्तन कर लिया तो धर्मराजपुरी से बच जायेंगे। अभी दूसरे वर्ष, देखा तो किसने नहीं है लेकिन अभी लक्ष्य रखो, वर्ष को छोड़ो, कम से कम जितने थोड़े समय में अपने को जो बाप की आश है कि चेहरा दिखाई दे, चलन दिखाई दे, वह जल्दी से जल्दी प्रैक्टिकल में करके दिखाओ। हिम्मत है, तो हाथ उठाओ। हिम्मत है? हिम्मत है? अच्छा मुबारक हो। बापदादा तो हर बच्चे में निश्चय और हिम्मत का उमंग-उत्साह अभी-अभी देख रहा है। लेकिन जाते-जाते प्लेन में थोड़ा कम नहीं करना। बढ़ाते रहना। दृढ़ संकल्प की चाबी जो बापदादा ने दी है उसको सदा ही कायम रखना। करना ही है, अभी-अभी, गे गे नहीं। वह समय अभी गया। हो जायेगा, होना ही है। हो जायेगा नहीं, होना ही है। डबल पुरूषार्थी का टाइटिल बापदादा ने जो दिया है, उसको सदा याद रखना।

बाकी बापदादा ने रिजल्ट सुनी, बापदादा ने जो सेवा का प्लैन दिया, उसमें भारत ने भी कम नहीं किया और विदेश ने भी कम नहीं किया है। इस वरदान को मैजारिटी स्थानों में उमंग-उत्साह से किया है और रिजल्ट भी अलग-अलग स्थान की आ रही है। तो बापदादा चाहे भारत के बच्चों को, चाहे विदेश के बच्चों को पदम-पदम गुणा प्रैक्टिकल लाने में मुबारक दे रहे हैं।

अभी इस वर्ष में विशेष कौन सी बात प्रैक्टिकल में करनी है, वह सुना दिया कि अभी चेहरे में चमक दिखाई दे, जो भी देखे, प्रत्यक्षता के निमित्त बनना है, बाप को प्रत्यक्ष करना है तो क्या करना है? सदा मुस्कराता हुआ चेहरा, कोई चिंतन में, कोई उलझन में नहीं, बापदादा ने सुनाया था कि अभी दो शब्द याद करो माया को इशारा करो गेट आउट और अपने को गेस्ट हाउस में अनुभव करो। यह दुनिया आपकी नहीं है, गेस्ट हाउस है, अब तो घर जाना ही है। घर के नजारे मन में बुद्धि में दिखाई दें। तो आटोमेटिकली घर आया कि आया, आपका एक गीत है, अब घर चलना है। तो यह लहर हर एक चाहे भारत, चाहे विदेश, अब यह अनुभव प्रत्यक्ष करके दिखाओ। बेहद का वैराग्य, गेस्ट हाउस में दिल नहीं लगती। जाना है, जाना है, याद रहता है। तो बेहद का वैराग्य यह कोई भी प्रकार का, मन के संकल्पों का आपस में संगठन के माया के विघ्नों का एकदम समाप्त कर देगा। यह माया के तूफान आपके लिए तोहफा बन जायेंगे। यह जो छोटे-मोटे पेपर आते हैं यह पेपर नहीं लगेंगे लेकिन एक अनुभव बढ़ाने की लिफ्ट लगेंगे। गिफ्ट और लिफ्ट। समझा।

अभी लक्ष्य रखो बेहद के वैरागी और हिम्मत उमंग-उत्साह के पंखों से उड़ते रहो और उड़ाते रहो। अभी उड़ने का समय है, पंख अपने सदा चेक करो कमज़ोर तो नहीं हो रहे हैं! तो बापदादा डबल विदेशियों का विस्तार देख खुश है, अभी क्या देखने चाहते हैं? हर बच्चा बाप समान सम्पन्न और सम्पूर्ण, सर्व खज़ानों से सम्पन्न और हर श्रीमत जो मिलती रही है, उसमें सम्पूर्ण। पसन्द है? पसन्द है तो ताली बजाओ। अच्छा। यह ताली हर दिन याद करना, अपने आप ही मन में बजाना, बाहर से नहीं मन में बजाना। यह होम वर्क है। अच्छा।

90 देशों से 2300 भाई बहिनें आये हुए हैं:- (पांचों खण्डों के भाई बहिनों को अलग-अलग ग्रुप में खड़ा किया)

1- अमेरिका, कैनाडा और कैरेबियन के भाई बहिनें, 2- आस्टे्रलिया, एशिया, न्युजीलैण्ड फिजी, 3- यूरोप, यू.के., मिडिलईस्ट 4- अफ्रीका, साउथ अफ्रीका, मौरीशियस, 5- रशिया, सी.आई.एस., बाल्टिक रीजन

सभी तरफ आगे बढ़ने का संकल्प और आपस में रूहरिहान भी की है, बापदादा के पास समाचार आता रहता है। अभी एवररेडी ग्रुप बनाओ। जो देश जितने भी आये हैं, उन देशों में बापदादा प्राइज देंगे, क्या प्राइज देंगे वह तो देखेंगे उस समय। लेकिन बापदादा डबल पुरूषार्थी बच्चों के हर एरिया के ग्रुप को यही कहते हैं कि कोई भी ग्रुप जो नम्बरवन, एक देश के एक-एक शहर में जितने भी सेन्टर हैं, मानों अमेरिका है, अमेरिका के कनेक्शन में जो भी देश हैं, वह सभी देश आपस में राय कर प्रोग्राम बनायें कि यहाँ सभी निर्विघ्न रहेंगे, एवररेडी रहेंगे, मायाजीत रहेंगे, स्नेही और सेवा में सहयोगी रहेंगे। जो नम्बरवन हो उसको बापदादा प्राइज देगा। चलो एक नहीं तो तीन वो देंगे। एक दो तीन। तीन नम्बर। वैसे तो एक को दिया जाता है लेकिन डबल पुरूषार्थी हैं ना तो तीन को चांस देंगे। पसन्द है? हाँ हाथ हिलाओ। पसन्द है? कितना टाइम चाहिए? यह टीचर सुनावें, कितना टाइम चाहिए प्राइज लेने में? बताओ। (फरवरी तक) सभी देशों की टीचर्स हाथ उठाओ। ठीक है? तैयार होंगे ना! फिर बापदादा प्राइज देंगे। बहुत अच्छा। इसकी ताली तो बजाओ। अच्छा।

भारत का भी टर्न आयेगा। अभी तो आप लोगों का टर्न है। बापदादा भी खुश होते हैं वाह तीव्र! पुरूषार्थी बच्चे वाह!अच्छा, अभी क्या करना है? अच्छा।

चारों ओर के तीव्र पुरूषार्थी हिम्मत और उमंग उत्साह से उड़ने वाले, चलने वाले नहीं, उड़ने वाले, चारों ओर के बाप समान सम्पन्न और सम्पूर्ण बनने वाले बापदादा के दिलतख्तनशीन, सदा बाप के कम्बाइन्ड रूप का अनुभव और सहयोग लेने वाले हर एक बाप के सिकीलधे, स्नेही बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

दादियों से:- बाप के साथ आप सबका भी सहयोग रहा है ना। बच्चे और बाप दोनों के सहयोग से यज्ञ चला है, चलता रहेगा। निमित्त तो आप भी हो ना। साकार में एक ने कहा दूसरे ने किया। एक दो के सहयोगी बन उड़ रहे हो। बाबा उड़ते हुए देख खुश होते हैं। (दादी जानकी ने कहा कमाल है गुल्जार दादी की) वह तो साथ में है ही। बापदादा की यही शुभ इच्छा है कि आप सभी जो निमित्त हैं वह सदा एक दिखाई पड़ें। भिन्न-भिन्न नहीं, एक दिखाई दें। एक ने कहा दूसरे ने राय दी और एक हो गये। तभी तो यज्ञ चल रहा है। आप सबकी एकता से ही चल रहा है, चाहे बाहर से दिखाई नहीं दे लेकिन संकल्प में, विचारों में एक रह करके और आगे बढ़ाना है क्योंकि अभी आप सबके ऊपर नजर है। अच्छा।

परदादी से:- बहुत अच्छा पार्ट बजा रही हो, शक्ल से बीमार नहीं लगती हो। बापदादा बच्ची को देख खुश होते हैं। तभी तो शक्ल ऐसी चमकती है। शक्ल से बीमार नहीं लगती।

रमेश भाई से:- ऊषा की तबियत ठीक है, उसको याद देना।

बृजमोहन भाई से:- इन्डिया में किया उसका भी प्रभाव अच्छा पड़ा। सभी को सन्देश मिला, इन्टे्रस्ट बढ़ा, अच्छा किया। मिलकरके एक दो में राय लेकरके अच्छा किया। अभी भी कई कर रहे हैं, अच्छा है सन्देश तो मिल जाए, टी.वी. द्वारा भी अच्छा किया। मेहनत अच्छी की।

डबल विदेशी मुख्य बहिनों से:- यहाँ सबको इक्ठ्ठा होना अच्छा लगता है ना! फ्री माइन्ड। वहाँ तो सेवा का, स्टूडेन्ट का ख्याल रहता है। यहाँ एक ही काम है, आपस में मिलकर करते हो यह बापदादा को बहुत अच्छा लगता है। एक साथ बन जाता है ना तो एक ही जैसा चलता है। बापदादा को बहुत पसन्द है। (जयन्ती बहन से) ठीक है। तबियत ठीक हो गई। सभी की तबियत ठीक है। (मोहिनी बहन से) इसका भी हिसाब पूरा हुआ। वह तो सभी को होता है। अभी हर एक को अपनी तबियत की नब्ज का पता पड़ गया है, क्यों होता है, क्या करना है। नॉलेजफुल हो गये हैं इसीलिए शरीर पुराना है, आत्मा हिम्मत वाली है। सेवा के लिए एवररेडी। अभी तो समय अनुसार आप लोगों को अलर्ट होना पड़ेगा। (बहुत निमन्त्रण मिलते रहते हैं) अभी इन्ट्रेस्ट लेना शुरू हो गया है। अभी फिर पीछे दूसरे टर्न में सुनायेंगे, कि अभी और सेवा का क्या रूप होना चाहिए।

अंकल-आंटी ने आपको बहुत-बहुत याद दिया है:- उनको कहना आपको लाख बार, पदम पदम यादप्यार। (बाबा आप हमारी दुनिया में देखने तो आओगे) ऊपर बैठकर भी देखेंगे।

निजार भाई से:- (हैदराबाद में सर्व इन्डिया का प्रोग्राम 7-8 नवम्बर को है) यह भी एक नये प्रकार की ट्रायल हो जायेगी। अच्छा है, प्रोग्राम अच्छा है। पहले एक सैम्पुल हो जायेगा। (सारी इन्डिया में 32 सिटी में करने का प्लैन बनाया है) होते रहेंगे, अभी तो पहला अच्छा हो जायेगा।

शांतामणी दादी से:- शेश शैया पर सोई हुई हो। जैसे विष्णु को दिखाते हैं ना शेश शैया पर आराम से लेटा हुआ, ऐसे आप भी लेटी हुई हो। बहुत अन्दर कमाई हो रही है। अपनी सूक्ष्म मन्सा सेवा करती रहो।

कार्तिकेयन भाई तथा अन्य मेहमानों से:- ड्रामा की प्वाइंट तो पक्की है ना! जो कुछ होता है, अच्छा होता है, अपने लिए उस आत्मा का कल्याण और रिजल्ट बहुत अच्छी है। अच्छे में अच्छी है, आप फिकर नहीं करो, बेफिकर। बाप देख रहा है, सब अच्छा है। देखो, सेवा का प्रत्यक्ष रूप तो दिखाया है। बहुत अच्छा किया, हिम्मत दिखाई ना। हिम्मत का फल बहुत अच्छा होता है। बापदादा के रजिस्टर में हिम्मतवान में आपका नाम रजिस्टर्ड है।



15-11-09   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


‘‘स्वराज्य की रिजल्ट चेक करके स्वयं को चेंज करो और, अखण्ड राज्य के अधिकारी बनो’’

आज दिलाराम बाप अपने राजदुलारे बच्चों से मिलने आये हैं। दुलारे क्यों हैं? जानते हो कि आप हर एक, बच्चा तीन तख्त के मालिक हो? एक स्वराज्य का तख्त, दूसरा है बापदादा के दिल का तख्त और तीसरा है भविष्य का तख्त। तीनों तख्त के अधिकारी हो। अपने भविष्य तख्त का भी यहाँ ही अभ्यास कर रहे हो। भविष्य की तैयारी वा पुरूषार्थ अभी ही कर रहे हो। अब का पुरूषार्थ अनेक जन्म का राज्य भाग्य दिलाने वाला है। इस समय ही अपने राज्य भाग्य के संस्कार धारण कर रहे हो क्योंकि अब का पुरूषार्थ भविष्य के राज्य का अधिकारी बनाता है। तो चेक करो कि इस समय अपना पुरूषार्थ यथार्थ है? जैसे भविष्य में एक राज्य होगा तो अभी चेक करो कि हमारा एक राज्य मन में चलता है? पुरूषार्थ में एक राज्य है? या माया राज्य में विघ्न डालती है? एक राज्य के बजाए माया का प्रभाव तो नहीं पड़ता? दो राज्य तो नहीं होते हैं? भविष्य की विशेषता ही है एक राज्य की। तो अभी का अभ्यास भविष्य में चलता है। तो चेक करो कि अभी स्वराज्य है, स्वराज्य में कहाँ माया दखल तो नहीं करती? दो राज्य तो नहीं हैं? अगर दो राज्य चलता है तो एक राज्य के संस्कार कब भरेंगे? भविष्य की विशेषता है ही एक राज्य और एक धर्म। धर्म कौन सा है? आपकी विशेष धारण कौन सी है? सम्पूर्ण पवित्रता। तो चेक करो कि एक धर्म है?बीच में दूसरा धर्म अपवित्रता का दखल तो नहीं देता? साथ में यह भी चेक करो कि लॉ एण्ड आर्डर एक का है या माया भी बीच में दखल तो नहीं करती? एक का राज्य निर्विघ्न चलता है? और बात तो राज्य में सदा सुख और शान्ति नेचुरल रहती है, तो अभी देखो अपने राज्य में सदा सुख शान्ति है? कोई दखल तो नहीं होता? स्वराज्य में माया अपना दखल देकर अशान्ति तो नहीं फैलाती? स्वराज्य में कोई सैलवेशन, कोई प्रशन्सा का प्रभाव तो माया नहीं डालती? सदा सुख शान्ति आनंद प्रेम, अतीन्द्रिय सुख कायम रहता है? क्योंकि जानते हो कि भविष्य राज्य में सर्व प्राप्ति हैं, सम्पन्नता है, इस कारण सन्तुष्टता भी है। तो अभी भी स्वराज्य सम्पन्न रहता है कि कोई कमी रहती? क्योंकि अभी के पुरूषार्थ में अगर कमी रह गई तो भविष्य अखण्ड राज्य के अधिकारी कैसे बनेंगे! सारा आधार अभी के पुरूषार्थ पर है। अभी की कोई भी कमी भविष्य के सम्पूर्ण राज्य के अधिकारी नहीं बन सकते। बहुतकाल का यह स्वराज्य का अभ्यास भविष्य राज्य के अधिकारी बनाती है। तो यह अपनी चेकिंग सदा रहे क्योंकि अभी अगर बहुतकाल का पुरूषार्थ नहीं होगा तो प्रालब्ध भी कम मिलती है इसलिए बापदादा समय प्रति समय यह अटेन्शन खिंचवा रहा है कि इसके लिए अभी अपने को सम्पन्न और सम्पूर्ण बनाओ। अगर अभी बीच-बीच में कह देते हैं कि पुरूषार्थ चल रहा है लेकिन पुरूषार्थ के बीच में तो-तो तो नहीं आता! यह तो हो जायेगा, यह तो कर लेंगे, यह संस्कार अविनाशी 21 जन्म का, अखण्ड राज्य का अधिकारी नहीं बनायेगा।

तो बापदादा सदा के लिए अटेन्शन दिला रहा है, चेक करो कि अगर कोई भी विघ्न आता है, तूफान आता है तो तूफान तोहफा बन जाता है। तूफान तूफान नहीं लेकिन तोहफा बन जाये। कोई भी माया का वार होता है, अनुभव कराती है माया, तो वह अनुभव भी ऐसे अनुभव हो हमको अनुभव की सीढ़ी आगे बढ़ाती है। इसके लिए बापदादा कहते सदा अपना चार्ट आपेही चेक करो। जितना अपना चार्ट चेक करेंगे उतना ही चेक करके चेंज करेंगे। तो हर एक अपने चार्ट को चेक करते हो? करते हो? जो रोज़ करता है वह हाथ उठाओ। जो रोज करता है, कभी कभी नहीं? रोज़ चार्ट चेक करो और चेंज करो क्योंकि समय का इशारा बापदादा ने काफी समय से दिया है। समय को देख भी रहे हो, मनुष्यों के मन में चिंता बढ़ रही है और आपके मन में चिंता नहीं लेकिन प्रभु चिंतन है। प्रभु चिंतन होने के कारण आप सदा जानते हो कि हम निमित्त हैं, निर्मान हैं क्योंकि करावनहार बाप है। इसके कारण आपके मन में चिंता नहीं है, करावनहार करा रहा है, यह स्मृति सदा आगे बढ़ा रही है।

अभी विशेष हर एक को यह चेक करना है कि इस संगमयुग का एक एक सेकण्ड समय और संकल्प शुभ चलता है? इस समय के महत्व को जान एक सेकण्ड, सेकण्ड नहीं लेकिन एक सेकण्ड की वैल्यु है, महत्व है। कभी कभी बच्चे कहते हैं कि संकल्प चला लेकिन दो चार सेकण्ड चला। लेकिन संगम समय की वैल्यु है, अभी एक सेकण्ड एक घण्टे के बराबर है। इतना इस समय की वैल्यु है क्योंकि बापदादा ने कह दिया है कि अचानक किसी भी समय आपका फाइनल पेपर होगा। बापदादा भी बतायेगा नहीं इसलिए इस समय का अटेन्शन सम्पूर्ण और सम्पन्न बनाना है। बापदादा ने जो सर्व खज़ाने दिये हैं उस एक एक खज़ाने को समय पर कार्य में लगाना है। खज़ानों के मालिक हो, मालिक की विशेषता यह है कि जिस समय जिस खज़ाने की आवश्यकता है उस समय वह खज़ाना कार्य में लगता है? आप आर्डर करो समाने की शक्ति को तो समाने की शक्ति कार्य में लगती है? क्योंकि मालिक उसको कहा जाता है जो समय पर अपने खज़ाने कार्य में लगा सके। तो अभी सभी को इतना स्व पर अटेन्शन देना है। सबके अन्दर खुशी का खज़ाना सदा ही चेहरे और चलन में दिखाई दे। खुशी अविनाशी बाप की देन है। तो अविनाशी बाप की देन को अविनाशी रखो। खुशी के लिए कहा जाता है - खुशी जैसी कोई खुराक नहीं, खुशी जैसा कोई खज़ाना नहीं। तो जिसके अन्दर सदा खुशी है उनके नयनों से, चेहरे से, चलन से आटोमेटिक दिखाई देती है। बापदादा का वरदान है कि सदा खुश रहो और सदा खुशी बांटो क्योंकि खुशी बांटने से खुशी बढ़ेगी और कोई भी खज़ाना बांटने से कम होता है लेकिन खुशी का खज़ाना जितना बांटेंगे उतना बढ़ेगा। तो चेक करो खुशी का खज़ाना सदा कायम है?

अभी सभी बच्चों को चाहे देश चाहे विदेश सभी बच्चों को बापदादा एक बात की विशेष मुबारक दे रहे हैं। कौन सी बात? जो सभी ने चाहे देश में, चाहे विदेश में अपने उमंग-उत्साह से आत्माओं को बाप का सन्देश दे दिया। सभी ने अपनी खुशी से जो कार्य किया उस कार्य में प्रोग्राम एक किया, हर जगह एक प्रोग्राम किया लेकिन उसका फल हजार गुणा प्राप्त किया। बापदादा को यही संकल्प है कि अब के समय प्रमाण जो सरकमस्टांश है वह आगे आगे नाजुक होते जायेंगे इसलिए चाहे गांव है, चाहे कोई भी कोना है, ऐसे उल्हना नहीं रह जाए कि हमारा बाप आया और हमको आपने सन्देश नहीं दिया इसलिए सभी ने जो उमंग उत्साह से कार्य किया, बापदादा खुश है और ऐसे ही आपस में मिलकर ऐसे प्रोग्राम बनाते रहना। बापदादा ने देखा कि उमंग-उत्साह और हिम्मत सभी ने अपने-अपने विधि से कार्य में लगाया है लेकिन अभी तो सबने बहुत अच्छा किया, आगे भी समय प्रमाण यह लक्ष्य रखो कि कोई भी कोना बिना सन्देश के रह नहीं जाए। इसमें अपना भी पुरूषार्थ अच्छा चलता और आत्माओं का भी कल्याण होता है। सभी को यह प्रोग्राम अच्छे लगे ना! अच्छा लगा! तो बापदादा सभी बच्चों को यही बार-बार कहते कि आत्माओं के प्रति रहमदिल बनो। आजकल दु:ख अशान्ति के कारण सभी दिल से कहते हैं रहम करो, दया करो। तो बाप के साथी आप बच्चे हो, तो बाप बच्चों द्वारा अभी हर एक बच्चे का रहमदिल का पार्ट देखने चाहते हैं। आपका उमंग है कि दु:खमय संसार बदलकर सुखमय संसार आना ही है। तो सुखमय संसार आने के लिए यह दु:ख अशान्ति का विनाश होने के लिए हालतें बदल रही हैं। तो आज का यही बाप का सन्देश याद रखो कि अब चाहे मन्सा, चाहे वाचा, चाहे चेहरे और चलन से सेवा की गति बढ़ाते चलो। अपना राज्य समीप लाते चलो। अच्छा।

इस बारी जो पहली बार आये हैं बापदादा से मिलने, वह हाथ उठाओ। अच्छा बहुत हैं। थोड़ा उठो। मुबारक हो। फिर भी समाप्ति के पहले पहुंच गये हो। नया जन्म ले लिया। इसका सभी की तरफ से अभी आने वाले बच्चों को बापदादा और चारों ओर के बच्चों द्वारा मुबारक हो, मुबारक हो। ब्राह्मण परिवार को देख खुशी होती है ना! लेकिन जो अभी आये हो उन्हों को बापदादा यही कहते तो अभी बहुत समय बीत गया, बहुत थोड़ा रहा इसलिए पुरूषार्थ तीव्र करना है। तीव्र पुरूषार्थी आगे बढ़ेंगे, चलना नहीं उड़ना। उड़ती कला का पुरूषार्थ करेंगे तो बाप का वर्सा देर से आते हुए भी पूरा अपना हक ले सकते हो। हर सेकण्ड खुश रहना और सभी को पैगाम देना, सन्देश देना। अच्छा।

सेवा का टर्न यू.पी. बनारस और पश्चिम नेपाल का है:- जो सेवा प्रति आये हैं वह उठो। अच्छा चांस लिया है। यू.पी. में आपकी सेवा का यादगार बहुत है। भक्तिमार्ग के मन्दिर भी बहुत हैं, नदियां भी बहुत हैं। तो यू.पी. वाले चारों ओर सेवा बढ़ा भी रहे हैं और बढ़ाते रहेंगे। अभी बापदादा सभी ज़ोन को कहते हैं कि हर एक अपने ज़ोन में एक ऐसा ग्रुप बनाओ जिस ग्रुप में सभी वर्ग के हों। जो आपके वर्ग बने हुए हैं, सेवा के लिए और हर एक ज़ोन अपने एरिया में हर वर्ग की सेवा कर रहे हो, करते भी रहेंगे लेकिन हर ज़ोन में ऐसा ग्रुप सर्विस का हो जिसमें हर वर्ग का एक एक हो। और जहाँ भी प्रोग्राम करो वहाँ वह ग्रुप अपने अपने वर्ग को विशेष निमन्त्रण दे। कोई भी वर्ग उल्हना नहीं दे कि हमें तो सन्देश नहीं मिला। और हर एक जो वैरायटी ग्रुप बने वह सेवा भी बढ़ाये, अपने वर्ग की और साथ में हर एक अपना अपना अनुभव सुनावे कि हमारे को इस नॉलेज से क्या मिला और क्या अनुभव कर रहे हैं। तो हर ज़ोन में ऐसा सेवा का ग्रुप तैयार करो। चाहे भाषण करने का टाइम इतना न भी मिले लेकिन उन्हों को फंक्शन के समय पीछे लाइन में बिठाके उनका परिचय स्टेज सेक्रेट्री देवे। एक दो का अनुभव भी रख सकते हो और परिवार में रहते अपना कार्य करते हुए हमारी जीवन कैसे बीती, कैसे बदली, वह अनुभव चांस लेके टाइम हो तो सुनावे।

बापदादा ने पहले भी कहा है तो ऐसे विशेष माइक भी हो, जो ग्रुप सेवा करता रहे। अच्छा है यू.पी. ने विशेष ब्रह्मा बाप की पालना लेने का अधिकार प्राप्त किया है। यू.पी. में ब्रह्मा के नाम से यादगार भी है। तो यू.पी. का भाग्य है, जो जगत अम्बा, ब्रह्मा बाबा की पालना ली है। तो पालना की धरनी है। भाग्य का सितारा ब्रह्मा बाप और जगत अम्बा ने यू.पी. को वरदान में दिया। अच्छा है। अभी दिन प्रतिदिन बाप ने देखा कि सेवा स्थान और जो भी उपसेवाकेन्द्र वा गीता पाठशालायें हैं वह पहले से अभी वृद्धि अच्छी है इसीलिए बापदादा खास मुबारक दे रहे हैं कि बढ़ते चलो और नम्बर वृद्धि करने में, सन्देश देने में नम्बरवन बनो। अच्छा है, बापदादा खुश है और बढ़ाते चलना। टीचर्स को मुबारक है। वृद्धि कर रही हो और इससे भी ज्यादा में ज्यादा वृद्धि करते रहना। अच्छा।

महिला विंग की मीटंग है:- अच्छा है, माताओं का कल्याण तो जबसे बापदादा कार्य के लिए निमित्त बनें तो पहले ही माताओं के ऊपर कलष रखा। पाण्डव साथी हैं लेकिन फिर भी यह विशेषता आरम्भ हुई कि मातायें सेवा के निमित्त आगे बढ़ी और जब से बापदादा ने माताओं को मर्तबा दिया तो गवर्मेन्ट में भी आजकल मातायें सबमें, हर कार्य में सहयोगी बन कमाल कर रही हैं। तो संगमयुग की, बापदादा के कार्य की विशेषता या नवीनता मातायें हैं और अभी माताओं की विशेषता आगे आगे जैसे बापदादा के आगे बढ़ रही है ऐसे ही गवर्मेन्ट में या आज की दुनिया में माताओं की तरफ सभी की नजर है इसलिए यह प्रोग्राम धूमधाम से करो, माताओं को ऐसा आगे बढ़ाओ जो सब देखें कि माताओं की शक्ति, माताओं की पालना कितनी ऊंची है। अभी मातायें परिवार में रहते अपने बच्चों का ऐसा सैम्पुल बनाओ जो किसी को भी बापदादा सैम्पुल दिखाये कि घर आश्रम कैसे बना। बच्चे कैसे अपनी मर्यादाओं में रहते हैं। यह जो इम्प्रेशन है कि बच्चे बदल जायें, यह गवर्मेन्ट की प्राबलम है, वह मातायें ऐसा प्रैक्टिकल करके दिखाओ जो गवर्मेन्ट सोचे कि यह मातायें बच्चों का कल्याण भी कर सकती हैं। जो भी स्वयं बने हैं वह बच्चों को ऐसे तैयार करें जो गवर्मेन्ट को देखने में आवे कि यह क्या कमाल कर सकती हैं। अच्छा है। माताओं का प्रोग्राम रखने से माताओं में उमंग उत्साह आयेगा तो आगे औरों की सेवा कर सकेंगी। अच्छा है सफलता तो है ही। अच्छा।

इन्दौर हॉस्टल की कुमारियों से:- अच्छा है, कुमारियां अपने को शक्ति रूप समझें, हम कुमारियां हैं नहीं, शिवशक्ति हैं, इस परिवर्तन से ऐसी कमाल करके दिखाओ जो सेवा में आपका परिवर्तन का जो प्रत्यक्ष रूप है वह चेहरा और चलन साक्षात्कार करावे। जैसे आप बड़ी बहिनों को, दादियों को देखते हैं तो उनका प्रभाव जनता को देखते ही पड़ता है, वायब्रेशन होता है, ऐसे आप एक एक कुमारी ऐसे अपने में शक्ति भरो जो आप कहाँ भी जाओ, किसकी भी सेवा करो तो उनको ऐसा अनुभव हो कि यह साधारण कुमारियां नहीं हैं लेकिन शक्तियां, देवियां हैं। आपकी शक्ल से बाप की सूरत, ब्रह्मा बाप की पालना का प्रभाव आपकी सूरत में दिखाई दे। आखिर यही सेवा का पार्ट चलना है। तो हर एक कुमारी इतना अपने में शक्ति भरो बाकी अच्छा है, अच्छी चल रही हो, आगे बढ़ भी रही हो लेकिन अभी आपका चेहरा, चलन दिखाई दे कि न्यारी और प्यारी है। बाकी अच्छा है, बापदादा समाचार सुनते रहते हैं। एक एक सेन्टर सम्भालने योग्य हैण्डस बन जाओ तो कितने सेन्टर खुल जायेंगे! तो बापदादा यह रिजल्ट देखेंगे कि हर एक कुमारी सेन्टर सम्भाल रही है। ऐसे ही योग्य बन जाओ क्योंकि आजकल टीचर्स सेवा के लिए आवश्यक है। लेकिन निर्विघ्न टीचर बनना। वह लिख करके भेजना तो कितनी निर्विघ्न टीचर बनके उमंग उत्साह से उड़ती हैं। बाकी अच्छा है, अपनी जीवन को बना रहे हैं बहुत अच्छा, सभी कुमारियों को दुआयें दो, सहयोग दो तो यह भविष्य में निर्विघ्न नम्बरवन टीचर बनें। हैण्डस की आवश्यकता है ना। फारेन में भी चाहिए ना। निर्विघ्न, मूल अण्डरलाइन करो निर्विघ्न टीचर। अभी रिजल्ट आयेगी बापदादा के पास, ठीक है ना। ऐसे ही लक्ष्य है ना! अच्छा।

इस ग्रुप में कैड ग्रुप (दिल वालों का) भी आया है:- अच्छा है हर एक आपस में राय करके आगे अपनी सेवा को बढ़ाते रहते हो, उमंग-उत्साह बढ़ाते चलते हो और अपने को इसी कार्य में बिजी रखते हो तो उसकी रिजल्ट पुरूषार्थ का बल भी मिलता है और फल भी मिलता है। जितना प्लैन बनाते हो प्रैक्टिकल में लाते हो तो बापदादा की तरफ से हर ग्रुप को विशेष सकाश द्वारा भी सहयोग बापदादा देते हैं। अच्छा है। बढ़ते चलो, बढ़ाते चलो। अच्छा।

काल आफ टाइम के मेहमानों से:- लकी हैं, आपका भाग्य आप सबको यहाँ तक लाया है, अभी इस भाग्य को आगे बढ़ाते रहना। आगे बढ़ाने का साधन क्या है? एक तो कनेक्शन जरूर रखना और कनेक्शन के आगे इस ब्राह्मण फैमिली से, बापदादा से रिलेशन आगे बढ़ाते रहना। जितना कनेक्शन रिलेशन रखेंगे उतना खज़ाने अखुट खज़ाने इकट्टे होते रहेंगे। खज़ानों के मालिक बन जायेंगे। जिस समय जो शक्ति चाहिए, जो गुण चाहिए वह अनुभव करते रहेंगे। अच्छा है। बापदादा को यह जो प्रोग्राम किया, करते रहते हैं, अच्छा लगता है। मधुबन में इन्डिया में आना पसन्द आता है ना! पसन्द आता है? देखो आपको देख करके इन्डिया के आपके भाई बहिन वह भी खुश होते हैं। सभी के दिल में आता है हमारे भाई हमारी बहिनें आ गई, आ गई, खुशी होती है। देखो आप भी खुश होते और यहाँ सारा परिवार इतना बड़ा परिवार कभी सुना, देखा, और अभी देखो कितना आपका परिवार है। तो एक एक बच्चे को बापदादा का पदमगुणा यादप्यार स्वीकार हो। अच्छा।

40 देशों के 300 डबल विदेशी भाई बहिनें आये हैं:- बापदादा खुश होते हैं यह हर साल का संगठन यहाँ भारत के भाई बहिनों को भी अच्छा लगता है, बापदादा को तो अच्छा लगता ही है, आपस में मिलके लेन देन करके हर वर्ष का आगे के लिए सेवा और स्व का चार्ट दोनों बातें करते एक दो को उमंग उत्साह बढ़ाते हो, यह देख बापदादा खुश होते हैं। आप सबको भी इतने भाई बहिन मिलते हैं, देखते हैं, खुश होते हैं तो आप भी खुश होते हैं ना। अच्छा है बापदादा ने देखा तो बापदादा के डायरेक्शन को प्रैक्टिकल में लाने में उमंग उत्साह से एक दो को अटेन्शन दिलाते हैं। प्राब्लम जो पुरूषार्थ को ढीला करती हैं वह एक दो को सुनाने से स्पष्ट करने से पुरूषार्थ में भी तीव्रगति आती है। और भाई बहिनों से मिलके एक एक के पुरूषार्थ को देख आगे बढ़ते भी हो। तो यह प्रोग्राम बापदादा को पसन्द है। आपको भी पसन्द है ना! पसन्द है? पाण्डवों को पसन्द है? अच्छा है अब तो बापदादा ने सब डबल पुरूषार्थी बच्चों को सौगात नम्बरवन बनके लेने का इशारा भी किया है। हर एक सेन्टर और उसके कनेक्शन में आने वाले सेन्टर निर्विघ्न और तीव्र पुरूषार्थ की गति में नम्बरवन बनें। तो जो नम्बरवन बनेगा उसको सौगात देंगे बापदादा। खुद तो बनें लेकिन सभी को भी साथ लेके चलना है ना। संगठन को भी मजबूत करना है। तो देखेंगे नम्बरवन कौन लेता है! जो भी लेवे, जितने भी लेवें बापदादा को खुशी है। ठीक है ना! अभी से लेके यह लक्ष्य रखो कि हमें उड़कर उड़ाना है। चलने वाले नहीं, उड़ने वाले, उड़ती कला का सर्टीफिकेट लेना है। कभी कभी नहीं, सदा उड़ती कला। लेना है ना! सर्टीफिकेट लेना है? अभी हर दिन कोई न कोई बात में प्रोग्रेस करते चलो। चार सबजेक्ट हैं, चार सबजेक्ट में से कोई न कोई सबजेक्ट का लक्ष्य रख करके प्रैक्टिकल में लाके अपना चार्ट आगे बढ़ाते चलो। अच्छा है। बापदादा ने देखा तो विदेश में भी ऐसे बच्चे हैं जो बाबा जो चाहते हैं वह प्रैक्टिकल में लाते अपना पोतामेल रोज़ बापदादा को देते हैं। पुरूषार्थ अच्छा है इसलिए बापदादा जो ऐसे गुप्त पुरूषार्थी हैं उनको अमृतवेले रोज़ मुबारक खास देते हैं। तो बढ़ते चलो, तीव्र पुरूषार्थी बन उड़ते चलो। अच्छा।

सर्व इन्डिया प्रोग्राम की लांचिग हैदराबाद में हुई है:- यह भी कार्य कर रहे हैं, बापदादा सेवा के प्लैन को देख, उमंग-उत्साह को देख खुश होते हैं और बापदादा का वरदान है कि सफलता हर बच्चे का जन्म सिद्ध अधिकार है। इसलिए सफलता रहेगी, सबको साथी बना करके सहयोगी बनाके चल रहे हैं और चलते रहेंगे। मुबारक हो। मेहनत किया, मेहनत अच्छी की है, उमंग अच्छा है और उमंग-उत्साह जहाँ है वहाँ सफलता है ही है। हैदराबाद वाले उठें, टीचर्स कहाँ है? देखो पहला नम्बर हैदराबाद को चांस मिला और बापदादा को अच्छा लगा कि सबने यथाशक्ति सहयोग दिया और सेवा का पार्ट बड़ी दिल से बजाया। जो किया वह बहुत अच्छा किया, हिम्मत अच्छी रखी। हिम्मत वालों को बाबा की मदद है ही। अच्छा।

तो आज जो बापदादा ने कहा कि स्वराज्य अधिकारी बन स्वराज्य की रिजल्ट चेक करो, वह चेक करने से कोई भी कमी को बहुत समय से चेंज करना है क्योंकि बहुत समय अखण्ड राज्य चले, इसकी आवश्यकता है बहुत समय का पुरूषार्थ, बहुत समय की प्रालब्ध के स्वत: ही अधिकारी बनते हैं इसीलिए अन्डरलाइन बहुत समय का पुरूषार्थ है। चेकिंग है, चेंज है?

चारों ओर के बापदादा के दिलतख्तनशीन हर एक बच्चे को बापदादा रोज़ अमृतवेले विशेष शक्ति बांटते हैं। अमृतवेले विशेष वरदान शक्ति बांटते हैं। जो अमृतवेले की शक्ति विशेष वरदान स्वीकार करते हैं वह विशेष तीव्र पुरूषार्थी बनता है। अमृतवेले का महत्व रखना अर्थात् बापदादा के सदा तख्तनशीन बनना। तो कई बच्चों का अटेन्शन है और बापदादा रोज़ उन्हों को खास सर्टीफिकेट देते हैं वाह बच्चा वाह!

तो चारों ओर के तीव्र पुरूषार्थी, हर समय बापदादा को अपना साथी बनाकर कम्बाइन्ड रहने के अभ्यासी बच्चों को बापदादा विशेष वरदान दे रहे हैं कि सदा उड़ते चलो और दूसरों को भी उड़ाने का सहयोग देकर उड़ाते चलो। सभी विजयी हैं और विजय का फल बापदादा की हर समय दुआयें प्राप्त होती हैं। तो अमर बन सबको अमृत पिलाते रहो। चारों ओर के बच्चे बापदादा के सामने हैं। हर बच्चे से बापदादा को दिल का प्यार है क्योंकि हर बच्चे में कोई न कोई विशेषता है। अभी सर्व विशेषताओं से अपने को विशेष आत्मा बनाए आगे बढ़ते चलो। बापदादा का हर एक बच्चे को पर्सनल पदमगुणा यादप्यार स्वीकार हो। अच्छा - अभी तो मिलते रहेंगे। नमस्ते।

दादियों से:- सभी ने खुब चक्र लगाया। आजकल अशान्ति बढ़ती रहती है तो सारा दिन परेशान रहते हैं और,शान्ति का वायब्रेशन शान्ति दिलाता है, तो खुश हो जाते हैं। जैसे कोई थका हुआ हो उसको आधा घण्टा भी,आराम का मिलता है तो खुश हो जाता है। अच्छा किया। सभी जगह, चाहे छोटे चाहे बड़े सबने अच्छा किया।,उमंग जहाँ हैं वहाँ खर्चे की कोई बात नहीं। इतनी आत्माओं को सन्देश तो मिल गया। आपका उल्हना तो पूरा,हुआ। अच्छा है। ऐसे बीच बीच में प्रोग्रामस बनाते रहो। हर एक शहर अपने अनुसार जैसा भी करे वह ठीक है।,

परदादी से:- यह हिम्मत वाली है, हिम्मते बच्चे मददे बाप।,

रमेश भाई, उषा बहन से:- जो कुछ भी होता है, उसको अवाइड करके खुश रहती हो और यह खुशी,बेफिकर बनाए आगे बढ़ाती है, यही दवाई है। त्रिमूर्ति हो (अनिला बहन भी साथ में हैं) और चौथा सम्भाल करने,वाली है। तुम्हारी भी कमाल है। सभी को बहुत दिल से सम्भाल रही हो, अच्छा किया। सेवा का फल और बल,मिल रहा है। समझती हो मेरे खाते में कितना भाग्य जमा होता है! अच्छा। (रमेश भाई से) तबियत अच्छी है। अभी,सोचना नहीं, सोचने को छोड़ दो, बाप के ऊपर छोड़ दो। हल्के रहो और हल्का बनाके चलो।

ऊषा बहन की लौकिक बहन से:- इन्हों को देखकर खुश होती हो ना। इन्होंने अपनी जीवन कितनी अच्छी,बनाई है, आप भी बना रही हो, खुश रहती हो ना। खुशी कभी नहीं गंवाना। खुशी जैसी और कोई खुराक नहीं,,खुश रहना और औरों को भी खुशी बांटना।

अंकल-आंटी की तरफ से बृजमोहन भाई, गायत्री बहन ने बापदादा को गुलदस्ता दिया:- अच्छा,गुलदस्ता बनाया है। फाउण्डेशन पक्का है, तकलीफ होवे क्या भी होवे, वह मस्ती में मस्त है और उसका प्रभाव,परिवार पर पड़ता है। डाक्टर भी सोचता है कि कमाल है पेशेन्ट की भी, इसलिए सेवा कर रहा है। उसकी शक्ल,सेवा करती है। उसको पदम पदम पदम गुणा यादप्यार। आंटी भी गुप्त है। सारा परिवार लकी है। (गायत्री बहन से),यह तो सामने खड़ी है। इसकी एक विशेषता है, पता है कौन सी? कुछ भी हो जाए ना, बाबा को याद करके बाबा,से शक्ति ले लेती है। डोंटकेयर कर लेती है। (विशेष आत्मा भी बनाती है) पीछे पड़ करके उनकी पालना तो करती,रहती है ना। परिवार लकी है।

(तीनों बड़े भाईयों से) अभी तीनों कमाल करो। एक ने कहा, दूसरे ने विचार दिया लेकिन विचार दिया न्यारे,और प्यारे। अभी सबकी नजर है। (क्या यह मेगा प्रोग्राम आगे भी चालू रखें) अभी मेगा नहीं कहो जिसको करना,हो यथाशक्ति अपने अनुसार करे, मना नहीं है। अच्छा है।

डबल विदेशी बड़ी बहिनों से:- बापदादा को ग्रुप ग्रुप को बुलाके रिफ्रेश करना, यह अच्छा लगता है क्योंकि,वहाँ बहुत दूर दूर रहते हैं। नजदीक आने से एक दो के गुण दिखाई देते हैं। दूर दूर में पता नहीं पड़ता है। तो एक,दो को देखके उमंग भी आता है। तो आबू में यह प्रोग्राम अच्छा लगता है और एक दो में उत्साह भरके संगठन,पक्का करते हो यह अच्छा है। ठीक है। ठीक चल रहा है ना!

एक दो को सहयोग देना इससे आगे बढ़ते हैं। समय देते हो ना, अपनी सेवा छोड़के समय दिल से देते हो। अपना,कार्य पूरा किया, सफलता हुई, अभी भले जाओ। सभी ने अच्छी मदद की। फारेन का भी किया इन्डिया का भी,किया।

(लण्डन वालों ने खास यादप्यार दिया है और कहा है कि बाबा की मुरली में था बच्चे बुद्धू हैं, तो क्या हम बुद्धू हैं?) कहना बुद्धू नहीं हैं लेकिन दिलतख्तनशीन हैं।

(टाटानगर का समाचार बापदादा को सुनाया) इस बारी सभी ने दिल से किया और रिजल्ट भी अच्छी है। सब, जगह की अच्छी है।



30-11-09   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


‘‘बाप वा सर्व का प्रिय बनने के लिए सन्तुष्टमणि बन हर परिस्थिति के प्रभाव से मुक्त रहो’’

आज चारों ओर के सन्तुष्ट आत्माओं को देख रहे हैं। सन्तुष्ट मणियां चारों ओर अपने मणि की चमक फैला रही हैं। सबसे बड़े से बड़ी स्थिति है ही सन्तुष्टता की। सदा सन्तुष्ट सभी को प्रिय लगते हैं। बाप को तो प्रिय है ही, सदा सन्तुष्ट वही रह सकता है जिसको सर्व प्राप्तियां हैं। प्राप्तियों का आधार सन्तुष्टता है इसलिए ऐसी आत्मायें सर्व ब्राह्मण आत्माओं को प्रिय हैं। सर्व प्राप्तियां अर्थात् सदा सन्तुष्ट। सन्तुष्ट आत्मा का वायुमण्डल में भी प्रभाव पड़ता है और सर्व प्राप्तियां हैं परमात्मा की देन। परमात्मा बाप द्वारा सर्व शक्तियां, सर्व गुण, सर्व खज़ाने प्राप्त की हुई आत्मा सदा सन्तुष्ट रहती है। सन्तुष्ट आत्मा की स्थिति सदा प्रगतिशील रहती है। परिस्थिति सन्तुष्ट आत्मा के ऊपर प्रभाव नहीं डाल सकती क्योंकि जहाँ सन्तुष्टता है वहाँ सर्व शक्तियां सर्व गुण स्वत: ही आते हैं। एक सन्तुष्टता अनेक गुणों को अपना लेती है। तो हर एक अपने से पूछे कि मैं सदा सन्तुष्ट आत्मा रहती हूँ! सन्तुष्ट आत्मा सदा सर्व के, बाप के समीप और समान स्थिति में रहती है। लेकिन इस स्थिति में रहने के लिए बहुत साक्षी दृष्टा अवस्था चाहिए, त्रिकालदर्शी अवस्था चाहिए। हर कर्म त्रिकालदर्शी अर्थात् हर बात को तीनों कालों को परख फिर कर्म करने वाले। इसके लिए दो बातें आवश्यक हैं। वह दो बातें हैं सम्बन्ध और सम्पत्ति। सम्बन्ध भी अविनाशी, सम्पत्ति भी अविनाशी। वह प्राप्त होता है अविनाशी बाप द्वारा। जब अविनाशी सम्पत्ति और सम्बन्ध प्राप्त हो जाता तो आत्मा सदा सन्तुष्ट और बाप की, सर्व आत्माओं की अति प्रिय हो जाती है। कोई भी परिस्थिति माया के रूप में आती है तो घबराते नहीं हैं। ऐसे महसूस करते हैं जैसे बेहद के पर्दे पर मिक्की माउस का खेल चल रहा है। परेशान नहीं होते, मिक्की हाउस का खेल देख मनोरंजन करते हैं। माया के भिन्न-भिन्न रूप, भिन्न-भिन्न मिक्की माउस के रूप में अनुभव करते हैं। ऐसी स्थिति का अनुभव बाप द्वारा सर्व को प्राप्त करना ही हैं और किया भी है।

बापदादा देखते हैं निर्भय, एकाग्र बुद्धि बन कोई भी परिस्थिति में डगमग नहीं होते। ऐसे विजयी आत्मायें सदा जो बाप की हर बच्चे में शुभ आशा है कि हर बच्चा सदा विजयी बन बाप को अपना विजय का स्वरूप दिखावे, तो हर एक अपने से पूछे मैं कौन? बापदादा ने पहले भी सुनाया है कि कभी-कभी का शब्द समय प्रमाण अभी ब्राह्मण डिक्शनरी से समाप्त कर दो। जब बाप से वर्सा सदा का लेना है तो हर प्राप्ति सदा प्राप्त हो क्योंकि बाप के दिल की आशाओं को पूर्ण करने वाले आशाओं के दीपक हैं। उनके संकल्प में भी कभी-कभी शब्द आ नहीं सकता क्यों? सदा बाप के साथ और बाप के साथी हैं। साथ रहने वाले भी और साथी बन विश्व परिवर्तन का कार्य करने वाले।

तो बोलो, यह सदा का वरदान बापदादा द्वारा प्राप्त कर लिया है ना! यह तो जन्म लेते ही बापदादा हर बच्चे को सदा यही वरदान देते हैं, सदा योगी भव, पवित्र भव। उस वरदान द्वारा जो भी प्राप्तियां होती हैं वह सदा के लिए होती हैं। कभी-कभी के लिए नहीं। तो सभी बच्चे सदा के अधिकारी हैं क्योंकि बाप का हर बच्चे से चाहे लास्ट बच्चा है लेकिन बाप को हर बच्चे से दिल का प्यार है क्योंकि जो बड़े-बड़े लोग हैं, अपने को समझदार समझते हैं वह भी बाप को पहचान नहीं सके, लेकिन बापदादा के लास्ट बच्चे ने बाप को पहचान लिया। दिल से कहते हैं मेरा बाबा इसलिए बाप का हर बच्चे से अविनाशी प्यार है इसलिए हर बच्चे को बाप का वरदान है। रोज़ बापदादा चाहे नम्बरवार हैं लेकिन एक ही समय, एक ही वरदान सभी बच्चों को इकठ्ठा देते हैं। हर रोज़ बापदादा का हर बच्चा नम्बरवार भले है लेकिन मेरा बाबा कहा तो वरदान के अधिकारी बन गया। हर एक बच्चे को चाहे कहाँ भी रहते हैं, इण्डिया में रहते हैं या फॉरेन में रहते हैं लेकिन वरदान सभी को एक ही बापदादा का मिलता है और वरदान को प्राप्त कर खुश भी होते हैं लेकिन दो प्रकार के बच्चे हैं एक बच्चे वरदान को देख खुश जरूर होते हैं लेकिन आगे नम्बर वही लेते हैं जो सिर्फ वरदान को देख खुश नहीं होते, वर्णन नहीं करते कि यह मेरा वरदान है लेकिन वरदान को फलीभूत करते हैं। वरदान से लाभ लेकर वरदान का फल निकालते हैं। बीज है लेकिन बीज को फलीभूत नहीं करें, फल नहीं निकालें तो सिर्फ खुशी होती है, वरदान से फल निकालने के लिए जैसे कोई भी बीज होता है, उसका फल निकालने के लिए उनको पानी और धूप चाहिए तभी फल निकलता है। तो यहाँ भी हर बच्चे को जब वरदान का फल निकालना है, जिससे विस्तार होता जाए, अपने ही मन में वरदान के फल द्वारा वृद्धि होती जाए, तो यहाँ भी बाप कहते हैं कि वरदान का फल निकालने के लिए बार-बार वरदान को स्मृति में लाओ। स्मृति स्वरूप के स्थिति में स्थित रहो। बार-बार सिमरण नहीं लेकिन स्मृति, यह है पानी देना और स्वरूप में स्थित होना यह है धूप लगाना। तो यह फलीभूत होने से स्वयं में भी बहुत शक्ति भरती है और दूसरे को भी उस फल द्वारा शक्ति का अनुभव करा सकते हैं।

तो बापदादा अभी क्या चाहते हैं? हर बच्चा, क्योंकि बापदादा कुछ समय से लेके वा\नग दे ही रहे हैं समय की। हर बच्चे की पढ़ाई की रिजल्ट का समय अचानक आना है। इसके लिए सदा एवररेडी। साथ-साथ बापदादा यह भी इशारा दे रहे हैं कि अभी समय है उड़ती कला के तीव्र पुरूषार्थ का। चल रहे हैं नहीं, उड़ रहे हैं। साधारण रीति से अपनी दिनचर्या व्यतीत करना, अब वह समय कामन पुरूषार्थ का गया इसलिए बापदादा इशारा दे रहे हैं, हर सेकण्ड, हर संकल्प चेक करो। मानो अपना तीव्र पुरूषार्थ न कर एक घण्टा साधारण पुरूषार्थ में रहे तो एक घण्टे में अचानक अगर फाइनल पेपर का टाइम आ गया तो अन्त मते सो गति, वह एक घण्टे का साधारण पुरूषार्थ कितना नुकसान कर देगा! इसलिए बापदादा हर बच्चे को, हर संकल्प, हर सेकण्ड समय के महत्व को, समय प्रति समय इशारा दे रहे हैं। हलचल के समय अचल रहने का पुरूषार्थ तीव्र पुरूषार्थी ही कर सकता। साधारण पुरूषार्थी एवररेडी बनने में समय लगा देगा और बापदादा ने कहा है कि सेकण्ड में बिन्दी अर्थात् फुलस्टॉप, अगर तीव्र पुरूषार्थ नहीं होगा तो क्या होता है? अनुभवी तो हैं। फुलस्टॉप के बजाए क्वेश्चन मार्क तो नहीं बन जायेगा! बिन्दी कितना सहज है और क्वेश्चन कितना टेढ़ा बांका है। फुलस्टॉप तो फुलस्टॉप हो जाए। क्वामा की मात्रा भी नहीं हो, आश्चर्य की मात्रा भी नहीं हो। क्या करूं, यह सोचने का भी समय नहीं मिलेगा। तो कोई भी बच्चा यह सोच नहीं सकता कि इतना फास्ट पुरूषार्थ करना ही पेपर में पास होना है।

तो बापदादा देखते हैं अभी भी कारणे अकारणें क्यों, क्या, कैसे, ऐसे.. यह कोई-कोई बच्चों के रोज़ के चार्ट में दिखाई देता है। बहुतों के चार्ट में बापदादा ने देखा है कि वेस्ट थॉट्स की लहर समय ले लेती है और वेस्ट की रफ्तार ऐसी तीव्र होती है जो साधारण संकल्प का एक घण्टा और फास्ट संकल्प का एक मिनट। इसलिए आज यह देख रहे थे कि सबकी प्रिय, बापदादा की प्रिय सन्तुष्ट आत्मायें कौन-कौन हैं? सन्तुष्ट आत्मा के संकल्प में भी यह क्यों, क्या की भाषा स्वप्न में भी नहीं आयेगी क्योंकि उस आत्मा को तीन विशेष बातें, तीन बिन्दियां, आत्मा, परमात्मा और ड्रामा, तीन ही समय पर कार्य में लगा सकते हैं क्योंकि ऐसे समय पर शक्तियों का खज़ाना आवश्यक है और मास्टर सर्वशक्तिवान वह हैं जो जिस समय जिस शक्ति को आर्डर करे वह हाज़िर हो जाए। चाहिए सहनशक्ति और आ जावे सामना करने की शक्ति, तो है शक्ति लेकिन उस समय काम की नहीं है। तो सर्व खज़ानों की चाबी है तीन बिन्दियां – आप, बाप और ड्रामा।

तो बापदादा का एक संकल्प है, बतायें? करना पड़ेगा। जो करने के लिए तैयार हैं, वह हाथ उठाओ। करना पड़ेगा। करना पड़गा। हाथ उठा रहे हैं। मन का हाथ उठा रहे हैं या शरीर का हाथ उठा रहे हैं? मन का हाथ पक्का होता है। बापदादा समय प्रमाण हर एक बच्चे से यह शुभ आशा रखते हैं कि 15 दिन के बाद फिर बाप का मिलना होता है, तो यह जो 15 दिन बीतें उसमें यह विशेष अभ्यास करो ट्रायल के लिए, रहना तो सदा है लेकिन 15 दिन की ट्रायल करो और अपने-अपने कनेक्शन वाले सेन्टर्स को भी कराओ, चक्कर लगाके फोन करके उनको याद दिलाओ कि होमवर्क कर रहे हो? होमवर्क क्या है? इजी है, हर एक भिन्न-भिन्न सरकमस्टांश बातों से क्रास तो करते ही हैं लेकिन यह 15 दिन हर एक को संकल्प, वाणी और कर्म में कम से कम 80 प्रतिशत की मार्क्स लेनी हैं। फिर भी बापदादा 20 परसेन्ट छुट्टी देते हैं। है मंजूर। मंजूर हैं? देवें। यह काम देवे। अच्छा 15 दिन, माया भी सुन रही है। बातें तो आयेंगी, बातों को नहीं देखना, पास होना है, यह याद रखना। 15 दिन कोई बड़ी बात नहीं है लेकिन बापदादा के पास हर एक सच्ची दिल, साफ दिल स्वप्न में भी संकल्प, वाणी और कर्म में पास होके दिखायें। हो सकता है? हो सकता है? टीचर्स बताओ हो सकता है? 15 दिन तो कुछ भी नहीं हैं लेकिन बापदादा ट्रायल के लिए संकल्प भी वेस्ट नहीं, युद्ध नहीं विजयी। 15 दिन के फुल विजयी। मुश्किल है या इजी है? इजी है, हाथ उठाओ। इजी है? तो बापदादा यह 15 दिन की रिजल्ट देखेंगे। फिर आगे बढ़ायेंगे। 15 दिन तो कोई भी कर सकता है ना! कर सकते हैं ना! मधुबन वाले, मधुबन वाले हाथ उठाओ। यह आगे आगे मधुबन बैठा है। बहुत अच्छे हैं। फॉरेनर्स या इण्डिया वाले सभी को करना है। गांव वाले या बड़े शहर वाले सबको 15 दिन का रिकार्ड रखना है। क्या क्यों का, क्या करें बात ही ऐसी हुई, नहीं बताना। 80 परसेन्ट लेना ही है। फिर भी बापदादा हल्का कर रहा है, 20 परसेन्ट छोड़ रहा है क्योंकि बापदादा देखते हैं कि कहाँ-कहाँ चलते चलते माया अलबेला और आलस्य, रॉयल आलस्य यह था, यह था, यह रॉयल आलस्य, अलबेलापन यह तीव्र पुरूषार्थ में कमी डालता है क्योंकि अभी बापदादा सभी जो भी स्टूडेन्ट हैं, हर एक स्टूडेन्ट को अभी पहले यह 15 दिन की रिहर्सल कराके कुछ समय ऐसे ही अभ्यास कराने चाहते हैं, जो सभी से हाथ उठवाये, एवररेडी। सब हाथ उठा सके, समय का भी अभ्यास चाहिए। इसलिए यह थोड़ा सा अभ्यास कराते हैं। अच्छा। अभी क्या करना है?

सेवा का टर्न पंजाब ज़ोन का है:- अच्छा है पंजाब, जहाँ 5 नदियां बहती हैं, नदियों का प्रभाव भी नामीग्रामी अच्छा है। तो ज्ञान गंगायें भी प्रसिद्ध हैं ना! पंजाब बहुत अच्छा कार्य कर रहे हैं, पंजाब की विशेषता है कि पंजाब की कुमारियां बहुत अच्छी इकट्ठीसर्विसएबुल निकली। ताली बजाओ। पंजाब में पहले पहले बेधड़क होके सन्यासियों के सम्मेलन में भाषण किया। सन्यास भी बहुत अच्छा कार्य है, यह स्टेज पर बैठ बोला, अभी शुरूआत थी और पंजाब के कनेक्शन से समय प्रति समय यहाँ बड़े-बड़े सन्यासी मठ वाले आबू में सम्मेलन करने आये हैं और काफी संख्या में आते हैं, आते तो और देश के भी हैं लेकिन खास संगठन वह हरिद्वार से आते हैं। कनेक्शन भी है। तो पंजाब को ड्रामानुसार यह सन्यासियों महात्माओं की सेवा का चांस अच्छा मिला हुआ है और कर भी रहे हैं। पंजाब में स्थापना के समय पर जैसे सेवा आरम्भ हुई वैसे सहयोगी और वारिस क्वालिटी वाले निमित्त बनें। जितना ही हंगामें वाले थे उतने ही शेर क्वालिटी भी निकली। अभी पंजाब को क्या करना है? यह विशेषता तो है अभी पंजाब वाले कोई ऐसा शेर तैयार करें नामीग्रामी, जो सभा में माइक बन अपना अनुभव सुनाये। माइक बड़ा हो, छोटा नहीं। जैसे गवर्मेन्ट के वी.आई.पी तो अलग होते हैं लेकिन महात्माओं में भी वी.आई.पी होते हैं, ऐसा कोई बड़ा माइक तैयार करो, जो अपने अनुभव से औरों को उमंग में लाये। ऐसा कोई निकालो, तैयारी करो। हो सकता है क्योंकि आजकल सभी समझते हैं कि साधू सन्त की सेवायें तो द्वापर से शुरू हुई लेकिन आप समान ऐसे बड़ा गुरू दूसरे को, शिष्य को बनावें, ऐसा एक्जैम्पुल नहीं होता और बापदादा ने अपने से भी होशियार बच्चों को तैयार किया है, जो पब्लिक में आते हैं, इसलिए पंजाब कोई नवीनता करके दिखाओ। वी.आई.पी तो सब तरफ से आते हैं लेकिन आप ऐसा लाओ जो सभी सुनकरके जग जावें, सन्देश मिल जाये। हो सकता है? देखेंगे। थोड़ा समय तो लगता है लेकिन ऐसा कोई तैयार करके दिखाओ। बाकी वृद्धि तो हो रही है। अभी देखो आधी सभा पंजाब की खड़ी हुई है। सेवा वृद्धि को हो रही है, उसकी मुबारक हो। (कुम्भ मेले की तैयारी हो रही है) यह चांस अच्छा है। हो जायेगा। अच्छा। सेवा का चांस लेने वाले और आने का चांस लेने वाले क्योंकि जिसका टर्न होता है उसकी संख्या को चांस अच्छा मिलता है। यह भी अच्छा साधन बना हुआ है, तो सभी पंजाब वाले भाई-बहिनें मातायें कुमारियां-कुमार, बुजुर्ग सभी को बापदादा और सभा में बैठे हुए सभी का बहुत-बहुत मुबारक हो, मुबारक हो।

मीडिया विंग:- अच्छा है, मीडिया ने सेवा तो अच्छी की है और बापदादा ने देखा कि बाप के इशारे प्रमाण सभी ने जो इस बारी आवाज फैलाने की, सन्देश देने की सेवा की, सब ब्राह्मणों के मुख में भी यही रहा बापदादा ने कहा है, बापदादा ने कहा है, उसको प्रैक्टिकल रूप देने में सभी ने पुरूषार्थ अच्छा किया और मीडिया वालों ने भी चारों ओर के तरफ का सभी जगह क्या-क्या हुआ, वह दिखाने में मेहनत अच्छी की। पहले करने वालों ने उमंग से किया, चाहे बड़े चाहे छोटे लेकिन छोटों ने भी कम नहीं किया। बापदादा चाहते हैं कि जिन्होंने भी बड़े सेन्टर या छोटे सेन्टर ने प्रोग्राम किया, सन्देश देने का, जिन्होंने इस प्रोग्राम में सेवा की, निमित्त बनें, जिसको बड़ा प्रोग्राम कहते हैं वह उठो। जिन्होंने भी काम किया। सेन्टर वाले भी उठ सकते, जिन-जिन सेन्टर्स ने प्रोग्राम किया, वह सभी उठें। बापदादा को अच्छा लगा। टीचर्स कम उठी हैं। बापदादा पदमगुणा मुबारक देते हैं कि ऐसे ही बीच-बीच में थोड़े समय के बाद सन्देश देने का उमंग उत्साह से जगह जगह पर प्रोग्राम बनाते रहो। क्योंकि समय का कोई भरोसा नहीं। कम से कम यह तो कहें हमारा बाबा आ गया। हमने नहीं पहचाना, लेकिन बाप आया मैंने नहीं पहचाना। आपका फर्ज है सभी को आवाज द्वारा सूचना देना। तो आप सभी ने जो तन से, मन से, धन से सेवा की, उसके लिए आपका पदम पदमगुणा रिटर्न जमा हो गया। और सेवा का फल भी मिला। सेन्टर्स पर आ रहे हैं। और आगे के लिए यह करने का बल भी मिला। फल भी मिला, बल भी मिला। तो अच्छा है। सभी ने अपने रूचि से किया। बापदादा सभी का उमंग उत्साह देख, बाप से प्यार देख मुबारक दे रहे हैं। ऐसे ही कोई न कोई प्रोग्राम बनाते रहो। छोटे-छोटे सेन्टर्स में सब प्रबन्ध आ गया ना। नहीं तो सोचते हैं प्रोग्राम करना माना पहले प्रबन्ध करना पड़ेगा। लेकिन यह अचानक सभी जगह तन मन धन का खुशी खुशी से प्रबन्ध हो गया। किसने भी कैसे करें, यह नहीं कहा, करना है। ऐसे ही आपस में एक दो के साथी बन एक दो को उमंग उत्साह का साथ दे आगे बढ़ते चलो। ठीक है ना। अच्छा है, मुबारक हो, मुबारक हो। जो नहीं आये हैं उन्हों को भी मिल जायेगी मुबारक। अच्छा।

मीडिया वाले उठो - अच्छा है, अभी अटेन्शन दिया है, मीडिया द्वारा सर्विस अच्छी हो रही है। रेग्युलर स्टूडेन्ट भी बने हैं। इन्हों को भी बधाई हो (रवी भाई, सिवानी बहन और कनुप्रिया बहन से) अच्छा है, जितना जो सेवा करते हैं उसका फल है सदा खुशी रहती है। सेवा का फल खुशी, निर्विघ्न। कभी-कभी नहीं, सदा। तो अच्छा कर रहे हैं और सब राय करके कैसे इसको भी बढ़ाना है, देश में चाहे विदेश में, सब एक दो में राय करके सबकी राय से जो कार्य होता है, उसमें सफलता सहज होती है। तो राय करते राय बहादुर बन एक दो की सुनना और करना। हो जायेगा अभी टाइम ही क्या है इसलिए मीडिया वाले, इतने लोग है ना मीडिया वाले तो अपने-अपने एरिया में सन्देश देने का प्रोग्राम भी बनाओ। यह तो मधुबन या निमित्त बने हुए ने किया लेकिन हर एक को अपने-अपने एरिया में, जो मीडिया वाले हैं उन्हों को किसी रूप से सन्देश अपनी एरिया में फैलाना चाहिए। अच्छा कर रहे हैं, मुबारक हो।

ट्रांसपोर्ट विंग:- दोनों ही डिपार्टमेंट का कार्य आजकल जरूरी है क्योंकि दिन प्रतिदिन एक्सीडेंट बहुत हो रहे हैं। तो दोनों डिपार्टमेंट एक्सीडेंट कम हों, अकाले मृत्यु न हो, चिल्लाते चिल्लाते दु:खी होके न जायें, इसके पुरूषार्थ के लिए प्लैन बनाते रहते हैं, अभी भी बनाया है, बापदादा ने जब स्थापना की, बच्चे जब पढ़ने के लिए आये शुरू में तो शुरू में ही बापदादा कहते थे कि यह मृत्युलोक है, तो बच्चे थे ना, वह कहते थे मृत्युलोक कैसे है। क्योंकि मृत्यु तो देखा नहीं बच्चे थे। लेकिन अभी हर एक देख रहा है कि यह समय मृत्यु का ज्यादा है, कोई ऐसा दिन नहीं होगा जिसमें एक दो अकाले मृत्यु न होता हो। तो अच्छा है दोनों को जोरशोर से अपना कार्य बढ़ाना चाहिए। सब आपको मुबारक देंगे क्योंकि लोग भी चाहते हैं कि यह अकाले मृत्यु नहीं हो। तो बहुत अच्छा, आपस में मीटिंग करते हैं, बापदादा ने देखा है जब से यह वर्गो की सेवा शुरू हुई है तो कई सेन्टर के बच्चों को चांस मिला है सेवा करने का लेकिन एक बात बापदादा की अभी तक पूरी नहीं की है, याद है? बापदादा ने कहा था हर एक वर्ग का कोई ऐसा नामीग्रामी स्पीकर निकालो, माइक निकालो, और एक स्टेज पर तीन चार वर्ग के विशेष व्यक्ति अपना अनुभव सुनायें। आपस में एक ग्रुप बनावें जिसमें हर वर्ग का एक विशेष हो, जैसे ब्राह्मण परिवार को निमन्त्रण देकर बुलाते हैं स्पीच के लिए, वैसे उन पार्टी को जहाँ तहाँ निमन्त्रण देके भाषण का चांस दो। तो देखे कि हर वर्ग वाले कैसे कमल पुष्प के समान रह आगे बढ़ सकते हैं। अच्छा है।

समाज सेवा विंग:- समाज सेवा, समाज में यह आवाज फैल जाये तो यह क्या सेवा कर रहे हैं? समाज सेवा तो वास्तव में सब वर्ग वालों की कर सकते हैं। और आपस में बापदादा ने देखा है कि हर वर्ग उमंग उत्साह से संगठन में आते हैं और सेवा भी कर रहे हैं। एक दो को मदद भी दे रहे हैं। अब समाज में आवाज फैले। अगर समाज को ठीक करना है तो ब्रह्माकुमारियों के पास जाके देखो। कैसे समाज की सेवा हो सकती है। हर एक अच्छा करता है, चांस भी लेते हैं तो बढ़ो और बढ़ाओ। समाज में थोड़ा आवाज फैलाओ कि यह क्या कर रहे हैं। अच्छा।

डबल विदेशी:- डबल विदेशियों ने यह अच्छा चांस लिया है, हर एक ग्रुप में डबल विदेशी आते ही हैं। चतुर हैं। अपना चांस अलग भी लेते हैं और फिर हर ग्रुप में भी आते हैं। नाम डबल पड़ा हुआ है ना तो डबल फायदा लेते हैं। और भारतवासी भी आप सबको चांस लेते हुए देख खुश होते हैं। और यह बड़ा प्रोग्राम भी फॉरेन में भी अच्छा किया है चाहे एक नाम का फर्क किया लेकिन सेवा अच्छी हुई। बापदादा ने फॉरेन में भी सेवा की रिजल्ट सुनी भी है और देखी भी है। अभी बापदादा यही चाहते हैं कि देश वा विदेश का हर बच्चा एवररेडी सदा रहे। जैसे अच्छे स्टूडेन्ट जो होते हैं पढ़ाई में वह सदा यही इन्तजार करते हैं कि जल्दी-जल्दी इम्तहान हो, ऐसे ही हर बच्चा ऐसा एवररेडी हो कि कल भी कुछ हो जाए तो एवररेडी। सब सबजेक्ट में, चार ही सबजेक्ट में एवररेडी। समय आया और पास विद ऑनर बना। यही बापदादा की सभी बच्चों के प्रति शुभ आशा है और डबल विदेशी को तो बापदादा डबल पुरूषार्थी का टाइटिल देता ही है। तो बहुत अच्छा डबल चांस लेने वाले हो। अच्छा।

वर्ल्ड रिलीजस कॉन्फ्रेंस आस्ट्रेलिया में हो रही है जिसमें दादी जानकी जी जा रही हैं:- अच्छा है उन्हों को भी समय की पहचान और बाप की पहचान समय और बाप दोनों की पहचान, कम से कम यह उल्हना न दें कि हमारा बाबा आया, हमको पता नहीं पड़ा। तो सन्देश देने में तो आप होशियार हो ही। हाँ कराने वाला तो बाप है लेकिन करने वाला भी योग्य होगा तब बाप भी करायेगा। तो अच्छा है। आप पहुंच रही हो तो बहुत अच्छा। बापदादा तो साथ है ही। साथ भी है, साथी भी है। अच्छा।

पहले बारी कितने आये हैं, वह उठो:- अच्छा है आपको बापदादा के सामने आने के दिन का बहुत-बहुत मुबारक हो, मुबारक हो। बाप की नजर बच्चों पर पड़ी और बच्चों की नजर बाप के ऊपर पड़ी। तो बहुत-बहुत बधाईयां हैं। अच्छा। और केक तो नहीं है लेकिन खुशी का केक खा लो। अच्छा है, अभी देरी से आये हो लेकिन फास्ट जाके नम्बर आगे ले सकते हो। इसलिए बापदादा की तरफ से और सर्व आपके साथी भाई और बहिनों का, सबका मुबारक हो, मुबारक हो। ऐसा मिसाल होगा जो लास्ट आने वाला भी फास्ट जाके फर्स्ट लाइन में आ सकता है। अच्छा।

चारों ओर के बापदादा की आशाओं को पूर्ण करने वाले आशाओं के दीपक, क्यों, क्या की भाषा से न्यारे रहने वाले सदा एकरस, सदा एक बाबा दूसरा न कोई, बाप में ही विशेष जीवन के तीन सम्बन्ध, बाप, शिक्षक, सतगुरू अनुभव करने वाले, बाप से वर्सा, टीचर से पढ़ाई का वर्सा और सतगुरू से वरदानों का वर्सा प्राप्त करने वाले पदमगुणा भाग्यवान हर बच्चे को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

दादियों से:- सभी को मदद भी सभी ने अच्छी की है। किसी को सोच नहीं करना पड़े कैसे करें, करना ही है। एक दो की मदद से सभी प्रोग्राम अच्छे हुए। आवाज तो फैल गया। सन्देश तो मिला अभी आगे बढ़ो। क्योंकि टापिक ही थी ना वरदान लेना है। तो योग के प्रोग्राम से अनुभव किया।

सन्तोष बहन (सायन) ने याद दिया है:- उसको याद देना। बहुत-बहुत यादप्यार स्वीकार हो।

दादी निर्मलशांता से:- हिम्मत करने से बाप की मदद तो है ही। अच्छा है, कर्मभोग को भी कर्मयोग से बदल दिया। बहुत अच्छा।

रमेश भाई ऊषा बहन, अनीला बहन- अभी तीनों की तबियत ठीक है। यहाँ सबकी शक्ति मिलती है। वायुमण्डल की मदद मिलती है। अच्छा है, यहाँ अच्छे हैं तो अच्छा है। जब तक रह सको, रहो। (रमेश भाई) आप अपना काम करो, यह अपना करे। (ऊषा बहन से) आप यहाँ बैठे सेन्टर्स पर फोन घुमा करके खुश खैराफत देती रहो। इनका काम अपना है, आपका अपना है। (इनके 50 साल मनाये) 50 वर्ष निर्विघ्न निभाया, आगे आगे बढ़ते रहे, पीछे नहीं रहे, उसकी मुबारक अच्छी है। एक दो के मददगार भी बनें और सेवा के भी मददगार हैं। यह भी खुश हो रही है। बापदादा को शांता माता भी बहुत याद रहती है। फाउण्डेशन रही। गुप्त रत्न थी।

बृजमोहन भाई से:- प्रोग्राम बनाते रहना, यह पूरा हुआ बस खत्म नहीं। टॉपिक अलग प्रकार की थोड़ा चेंज करके रखें।(वी.आई.पी बापदादा से मिल रहे हैं):- जो हिम्मत रखते हैं उसको मदद 100 गुणा मिलती है। तो मिलती रहेगी। भले वह भी ड्युटी बजाओ, तब तक हैं जब तक ड्युटी बजाओ लेकिन डबल काम, सिंगल नहीं।

2- शक्ति भरके कनेक्शन पूरा रखो। जिनका कनेक्शन रखेंगी उतना रिलेशन पक्का होता जायेगा। अगर टाइम नहीं भी मिले ना तो डेली फोन पर भी प्रेजेन्ट मार्क डालो तो पक्की स्टूडेन्ट नम्बरवन हो जायेंगी।

जो आत्मा गई, वह भी कनेक्शन में गई। बेटों को कोई न कोई कारण से सम्बन्ध में लाओ। रेग्युलर नहीं तो फंक्शन में लाओ, उनकी सेवा करो, वह भी ठीक रहेगा। इस सम्पर्क में साथ भी मिलेगा और भविष्य भी बनेगा। कनेक्शन नहीं तोड़ना। पक्का। तो बापदादा अभी भी शक्ति दे रहा है, आगे भी बढ़ायेगा। कोई फिकर नहीं करो, बेफिकर होकर सेवा करो। बापदादा साथ है।

विशेष 15 दिन के लिए होमवर्क

चेक करनाः

1) हर सरकमस्टांस वा बातों के बीच - संकल्प, वाणी और कर्म में व्यर्थ से मुक्त रहे?

2) स्वप्न में भी क्यों, क्या से मुक्त विजयी रहे?

3) हलचल में भी अचल रहे? फुलस्टॉप लगाया या क्वेश्चन मार्क?



15-12-09   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


‘‘परिवार के साथ प्रीत निभाने के लिए नॉलेजफुल बन बाप समान साक्षीपन की स्थिति में रहना है, बाप, स्व, ड्रामा और परिवार चारों में निश्चयबुद्धि बन विजयी बनना है’’

आज समर्थ बाप अपने समर्थ बच्चों को देख रहे हैं क्योकि हर एक बच्चा स्नेह से बाप समान बनने का पुरूषार्थ बहुत लगन से कर रहे हैं। बापदादा बच्चों को देख खुश होते हैं और दिल में बच्चों के गीत गाते हैं वाह बच्चे वाह!क्योंकि बच्चे बाप के भी सिर के ताज हैं। देखो बच्चों की पूजा डबल रूप में होती है, बाप की पूजा एक रूप में होती है। तो बच्चे बाप से भी बाप द्वारा आगे जाते हैं इसलिए बाप बच्चों के पुरूषार्थ को देख खुश है। नम्बरवार तो हैं लेकिन पुरूषार्थ का लक्ष्य आगे बढ़ा रहे हैं। आज अमृतवेले चारों ओर के बच्चों में एक बात जो ज्ञान का फाउण्डेशन है वह देखा। फाउण्डेशन है निश्चय। कहा हुआ भी है निश्चयबुद्धि विजयी। तो आप सबका निश्चय देखा, सभी का नम्बरवार बाप में तो निश्चय है ही, उसकी निशानी सभी बाप को पहचान बाप के बने हैं और यहाँ भी आये हैं, बाप से मिलने के लिए। बाप में हर एक बच्चे का अटूट निश्चय है लेकिन बाप के साथ और भी निश्चय पक्का होना चाहिए वह है स्व में निश्चय। साथ में ड्रामा में निश्चय और परिवार में निश्चय। इन चार प्रकार के निश्चय में पक्के होना अर्थात् निश्चयबुद्धि विजयन्ती बनना। तो चेक करो कि इन चार निश्चय में पक्के हैं? बाप में तो सभी कहते हैं मेरा बाबा और मैं बाप की। बाप के ऊपर मेरा कहके पूरा बाप का अधिकार प्राप्त कर लिया। सदा बाप के द्वारा अधिकारी बन सर्व खज़ानों के अधिकारी बन गये। साथ में स्व में भी निश्चय जरूरी है क्यों? अगर स्व में निश्चय नहीं है तो दिलशिकस्त बन जाते हैं। स्व में निश्चय यही है कि मैं बाप द्वारा स्वमानधारी हूँ, स्वराज्य अधिकारी हूँ। स्वयं बाप ने मुझे कितने स्वमान दिये हैं। एक एक स्वमान को स्मृति में लाओ तो कितना नशा चढ़ता है! आजकल किसी को भी कोई टाइटल मिलता है तो वह भी अपना भाग्य समझते हैं। लेकिन आप बच्चों को एक-एक स्वमान किसने दिया! स्वयं बापदादा ने हर बच्चे को स्वमानधारी बनाया है। एक-एक स्वमान को याद करते खुशी में उड़ते हो। तो स्व में भी इतना सदा निश्चय का नशा रहे कि मैं बाप द्वारा स्वराज्य अधिकारी, स्वमान अधिकारी कोटो में कोई आत्मा हूँ। जैसे बाप में निश्चय है तो साथ में स्व में भी निश्चय आवश्यक है क्योंकि अगर स्व में निश्चय है तो जहाँ निश्चय है वहाँ हर कर्म में निश्चयबुद्धि अर्थात् स्वमानधारी विजयी है। निश्चय का अर्थ ही है सफलता। ऐसे नहीं कि हमारा तो बाप में निश्चय है, बाप में है वह तो बहुत अच्छा लेकिन साथ में बाप के स्व का नशा भी आवश्यक है मैं कौन! एक-एक स्वमान को याद करो तो निश्चय और नशा आपके चलन और चेहरे से दिखाई देगा। दे रहा है और दिखाई देता रहेगा। साथ में तीसरी बात तो ड्रामा में भी निश्चय बहुत जरूरी है क्योंकि ड्रामा में समस्यायें भी आती हैं और सफलता भी होती है। अगर ड्रामा में पक्का निश्चय है तो ड्रामा के निश्चय से जो निश्चयबुद्धि है वह समस्या को समाधान स्वरूप में बदल देता है क्योंकि निश्चय अर्थात् विजय। तो किसके ऊपर विजयी बनता? परिवर्तन करने में, एक सेकण्ड में समस्या परिवर्तन हो समाधान रूप बन जाती है। हलचल में नहीं आयेंगे, अचल रहेंगे क्योंकि ड्रामा के ज्ञान से अडोल अचल बन जाते हैं। यह निश्चय रहता है कि मैं ही कल्प पहले भी समाधान स्वरूप अर्थात् सफल आत्मा बना था, बनी हूँ और कल्प के बाद भी मैं ही बनूंगी। तो यह नशा ड्रामा का निश्चय पक्का कराता। फखुर रहता है, नशा रहता है मैं थी, मैं ही हूँ और मैं ही बनेंगी इसलिए इस पुरूषार्थी जीवन में ड्रामा का निश्चय भी आवश्यक है और साथ में चौथा है परिवार का निश्चय क्योंकि बाप ने आते ही परिवार को पैदा किया। तो जैसे बाप में निश्चय है वैसे परिवार में भी निश्चय आवश्यक है क्योंकि परिवार किसका है? और इतना बड़ा परिवार और किसका हो सकता है! तो परिवार में भी निश्चय अति आवश्यक है क्योंकि इतना बड़ा परिवार विश्व में किसका है? आप जितना परिवार चेक करो विश्व में, किसका है? परिवार की रीति से किसी भी डिवाइन फादर का भी नहीं है वहाँ फॉलोअर हैं, यहाँ परिवार है। परिवार के साथ ही सेवा में, सम्बन्ध में रहते हो। ऐसे नहीं कि हमारा तो बाप से ही कनेक्शन है, परिवार से नहीं हुआ तो क्या हुआ। परिवार का निश्चय तो आपका 21 जन्म चलना है। जानते हो ना! परिवार के साथ ही सम्बन्ध में आने से मालूम होता है कि मैं इतने बड़े परिवार में सभी से निश्चयबुद्धि हो चल रहे हैं, परिवार में चलने के लिए यह अटेन्शन देना पड़ता है कि परिवार में हर एक के संस्कार भिन्न-भिन्न हैं और होंगे। आपका यादगार माला है, माला में देखो कहाँ एक नम्बर और कहाँ 108वां नम्बर क्योंकि परिवार में भिन्न-भिन्न संस्कार हैं। तो इतने बड़े परिवार में चलते संस्कारों को समझ एक दो में एक परिवार, एक बाप एक राज्य, तो एक होके चलना है। परिवार में जैसे बड़ा परिवार है, ऐसे ही एक दो में बड़ी दिल, हर एक के प्रति शुभ भावना, शुभ कामना की स्थिति में स्थित हो चलना है क्योंकि परिवार के बीच ही संस्कार स्वभाव आता है। लेकिन कोई समझे परिवार से क्या है, बाबा से तो है। लेकिन यहाँ धर्म अौर राज्य दोनों की स्थापना है, सिर्फ धर्म नहीं है, दूसरे जो भी धर्म पिता आये हैं उनका सिर्फ धर्म है, राज्य नहीं है, यहाँ तो आप सबको राज्य भी करना है। तो राज्य में परिवार की आवश्यकता होती है और 21 जन्म भिन्न-भिन्न रूप से परिवार के साथ ही रहना है, परिवार को छोड़ कहाँ जा नहीं सकते। तो चेक करो ऐसे नहीं समझना कि बाप जाने मैं जानूं। बाप से ही कार्य है लेकिन अगर इन चार निश्चय में से एक भी निश्चय कम है तो हलचल में आ जायेंगे। सेवा के साथी, बाप तो सकाश देने वाले हैं लेकिन साथी कौन? साकार का साथ तो परिवार का है तो बाप ने देखा है कि तीन निश्चय में मैजारिटी ठीक चल रहे हैं लेकिन परिवार के साथ में निभाना, संस्कार मिलाना, एक-एक को कल्याण की भावना से देखना और चलना, इसमें कई बच्चे यथाशक्ति बन जाते हैं। लेकिन बाप ने देखा कि जो परिवार के निश्चय में नॉलेजफुल होके सदा बाप समान साक्षीपन की स्थिति में साथ में आते हैं, रहते हैं वही नम्बरवन या नम्बरवन डिवीजन में आते हैं। तो चेक करो भाव स्वभाव परिवार में होता है, तो छोटी-छोटी गलतियां भी होती हैं, विघ्न आते हैं वह परिवार के सम्बन्ध में ही आती हैं। तो सबसे आवश्यक इस परिवार के सम्बन्ध में पास होना है। अगर परिवार में चलने में तोड़ निभाने में कोई भी कमी होती है तो वह विघ्न छोटा हो या बड़ा हो लेकिन तंग करता है। यह क्यों, यह कैसे, परिवार के कनेक्शन में आता है। तो क्यों के बजाए, क्यों नहीं करना है, लेकिन हमें मिलकर चलना है, परिवार की प्रीत निभानी है क्योंकि यह बाप का परिवार है, भगवान का परिवार है। रिवाजी परिवार नहीं है। नशा रहना चाहिए कि वाह बाबा, वाह ड्रामा, वाह मैं और वाह परिवार! ठीक है? चेक करते हो? चार ही में पास हो? चार ही में? एक में भी कम नहीं। चेक करो। अभी-अभी चेक करो क्योंकि विजयी बनने का साधन ही यह है। परिवार के बीच संस्कार निकलते हैं और वह संस्कार मिलाना खुद भी परिवर्तन करना और परिवार को भी इतनी ऊंची दृष्टि से देखना। बापदादा ने पहले भी कहा है कि बापदादा लास्ट बच्चे को भी अति भाग्यवान समझते हैं क्यों? भगवान को पहचानना, साधारण रूप में बाप को पहचानना, जो इतने बड़े-बड़े महात्मायें भी पहचान नहीं सके, लेकिन बापदादा का लास्ट बच्चा भी मेरा बाबा कहता है। दिल से मेरा बाबा कहते हैं। तो बापदादा जैसे लास्ट बच्चे की भी विशेषता देख, जैसे बच्चों को लाड प्यार, यादप्यार देते हैं वैसे लास्ट वालों को भी देते हैं। तो चेक करो कि तीन में ठीक हो या चारों में ठीक हो या दो में ठीक हो या एक में ठीक हो? चेक किया? किया चेक? जो समझते हैं कि मैं चार ही मैं, चार ही निश्चय में बाप, आप, ड्रामा और परिवार, चार ही निश्चय में ठीक हूँ वह हाथ उठाओ। ठीक हैं? अच्छा ठीक हैं। पेपर लें? हाँ उठाओ। अच्छा परिवार में पास हो? परिवार के सम्बन्ध में आना, क्योंकि परिवार को छोड़ तो कहाँ जायेंगे नहीं, रहना ही है, निभाना ही है। तो इसमें पास हो? कभी ऐसे आता है कि यह नहीं होता तो अच्छा होता, यह क्यों करते हैं, यह क्यों होता है, यह संकल्प आता है... एकदम परिवार का नशा, चार ही निश्चय वाला कभी भी ऐसे वैसे संकल्प में भी नहीं करेगा। संकल्प में आये कि ऐसे क्यों होता है, लेकिन मुझे वह क्यों वा क्या हिलावे नहीं, मूड नहीं बदली करे। इसको कहते हैं चार ही में पास। हाथ तो उठाया, बापदादा को खुश किया है परन्तु बापदादा को यह जो परिवार की बात है उसमें कभी कभी-बातें सुननी पड़ती हैं, देखनी पड़ती हैं। एकदम बड़ी दिल हो, सबको शुभ भावना, शुभ कामना से ठीक करना है, क्योंकि परिवार ही एक है। एकमत होके चलना और चलाना है। सिर्फ चलना नहीं है, चलाना भी है इसलिए बापदादा इस बात पर अटेन्शन दिला रहे हैं कि परिवार में जो किसी भी हलचल में पास हो जाते हैं, व्यर्थ नहीं चलता है, उन्हें दूसरों को ऐसा बनाना है। अभी तो आप अपने-अपने सेन्टर पर कितने रहते हो, चलो ज्यादा में ज्यादा 25-50, इतने होते नहीं हैं लेकिन मानों बड़े स्थान हैं, उसमें भी 50-60 अच्छा ज्यादा में ज्यादा 100 भी समझो, इतने हैं नहीं लेकिन समझ लो, तो बापदादा ने सभी सेन्टर्स के बच्चों को लास्ट को भी अपना प्यारा कहके चलाया और प्यार की निशानी है रोज़ बापदादा यादप्यार क्या देता? मीठे मीठे, जानता है खट्टे भी हैं लेकिन मीठे खट्टे कभी यादप्यार में कहा है?उन्हों को भी लाडले कहता है, न सिर्फ कहता है लेकिन मेरा बच्चा है, मेरे भाव से चलाता है क्योंकि ड्रामा में, माला में सब एक नम्बर नहीं हैं, यह रिजल्ट है। संस्कार भिन्न-भिन्न होते हैं, होना है, नहीं तो सब राजा बन जायें, प्रजा कौन बनेगा! राज्य किस पर करेंगे? अच्छी प्रजा भी तो चाहिए, रॉयल प्रजा, राजधानी है ना। ऐसे हर एक अपने को चेक करे, परिवार में किसी भी बात में संस्कार खराब हैं, लेकिन मेरा संस्कार क्या? अगर खराब को देख मेरा संस्कार भी खराब हो गया, तो मैं भी तो खराब हो गया। खराब अच्छे को भी बदल लेता है।

बाप ने स्थापना के समय 350-400 को इकठ्ठा सम्भाला है, इतना तो अभी किसी का इकठ्ठा रहने वाला परिवार नहीं है। चलो, ड्युटी अलग अलग है लेकिन वह ड्युटी है और परिवार में ड्युटी है। रिवाजी परिवार, रिवाजी ड्युटी, रिवाजी रीति से दिनचर्या बिताना, यह नहीं है, न्यारा और प्यारा परिवार है। इसमें डिस्टर्ब होना, फिर बहाना तो यह देते कि इसने किया तब यह हुआ। यह किया तो यह हुआ, लेकिन बाप के आगे भी क्या आपोजीशन नहीं हुई! भागन्ती भी हुए ना! यह आपोजीशन नहीं है! लेकिन बाप ने फिर भी कहा, कोई भागन्ती भी हो गये तो भी टोली भेजो, उनको बुलाने की कोशिश करो, सर्विस करो, याद दिलाओ। ऐसे चार ही निश्चय में पास होना है वा तीन में, दो में? नम्बरवन होना है। इसके लिए विनाश की तैयारियां होते भी अभी विनाश रूका हुआ है। प्रकृति भी बाप के पास आती है, प्रकृति भी कहती अब बहुत बोझ हो गया है। प्रकृति भी बोझ से छूटने चाहती है। माया भी कहती है कि मैं जानती हूँ कि मेरा पार्ट अभी जाने वाला है लेकिन ब्राह्मण परिवार में ऐसे भी बच्चे हैं जो छोटी बात में मेरे साथी बन जाते हैं। बिठा देते हैं मेरे को। तो अपना राज्य लाने में यह चार निश्चय परसेन्ट में हैं इसलिए समय भी रूक रहा है। बाकी माया और प्रकृति दोनों रेडी हैं। अब बताओ आर्डर करें? बच्चे अगर एवररेडी नहीं हैं तो माया और प्रकृति को आर्डर करें? करें?हाथ उठो। तैयार हो? ऐसे नहीं हाथ उठाओ। पेपर आयेगा, आयेगा पेपर। एवररेडी?

अभी बापदादा की हर बच्चे में यही आशा है कि कैसे को मिटाके ऐसे करो। कैसे करूं, कैसे हो, नहीं। ऐसे हो। क्या करें नहीं, ऐसे करें। यह आश कब तक पूरी करेंगे? कितना टाइम चाहिए? क्योंकि सभी को तैयार होना है। अगर आप तैयार हो, हाथ उठाया, तो उन्हों का काम क्या है? एक दो को आप समान बनाना। जिन्होंने हाथ उठाया, वह आप समान बना सकते हो? परिवार को तैयार कर सकते हो? इसमें हाथ उठाओ। कर सकते हैं? अच्छा कितना टाइम चाहिए? कितना टाइम चाहिए? एक वर्ष। कितना चाहिए? कितना टाइम चाहिए? टीचर्स बतावें कितना टाइम चाहिए? पाण्डव बतावें ना! हाथ तो उठाया, कितना टाइम चाहिए। परिवार है, तो परिवार में सहयोग तो देना पड़ेगा ना। परिवार से कट तो होंगे नहीं, छोड़के जाना तो है नहीं, रहना तो यहाँ ही है तो परिवार को भी तैयार करना पड़ेगा ना। लौकिक में भी जब अच्छी बुद्धि थी, (आजकल नहीं) तो एक दो के सहयोगी बन आगे बढ़ाते थे, गांव को भी अपना परिवार समझते थे और यह तो अलौकिक परिवार है क्योंकि खिटखिट जो होती है, माया जो आती है वह परिवार की बात में आती है, सम्बन्ध में आती है, वेस्ट थॉट्स सम्बन्ध के कनेक्शन में चलते हैं। तो हाथ उठाने वाले बतायेंगे? क्या बोलते हैं? कोई बोले, माइक दो। (इसी सीजन में पूरा करेंगे) इसके साथ जो हैं वह हाथ उठाओ। यह फोटो निकालना। टीचर्स, इस सीजन में एक दो को सहयोग देकर, एक दो को भी आगे बढ़ाके और बाप की आशा को पूर्ण करेंगे, ठीक है? इसमें हाथ उठाओ। हाथ तो उठाके खुश कर दिया। अच्छा है। बाप कहते हैं एक बल एक भरोसा। अगर दोनों ही बातें हैं तो क्या नहीं हो सकता है! बाप ने कितने थोड़े समय में स्थापना का पार्ट बजाया! अभी तो सब नॉलेजफुल बन गये हैं। डबल लाइट भी बन गये हैं। बापदादा जानते हैं कि यह सबजेक्ट थोड़ा अटेन्शन देने की है। पहले भी काम दिया था कि कम से कम एक सेन्टर जो है वह भी निर्विघ्न बने, सेन्टर के बाद ज़ोन बने, चलो ज़ोन भी छोड़ो, हर एक शहर समझो, कोई भी शहर है, दिल्ली है, अहमदाबाद है, कलकत्ता है, कोई एक कलकत्ता भी निर्विघ्न बन जाए, कलकत्ते के, दिल्ली के भी बैठे हैं और यह जिसका टर्न है कर्नाटक, कर्नाटक की सब टीचर्स बैठी हैं। कर्नाटक का एक एक सेन्टर और सेन्टर के कनेक्शन में जो हैं वह भी अगर एक हो जाएं तो उस ज़ोन को, शहर को भी बापदादा इनाम देगा। अच्छी सौगात देंगे, कोई निमित्त बनके दिखाये। मुख्य सेन्टर और उसके साथी सेन्टर, सारा परिवार तो बनना है ही लेकिन अभी तक रिजल्ट नहीं है। चलो मधुबन वालों ने हाथ उठाया है, अच्छा है। क्या नहीं कर सकते हैं। लेकिन करना पड़ेगा। ठीक है ना! पसन्द है? सभी को पसन्द है? लेकिन बापदादा ने इस सीजन के पहले सीजन में तीन चार बार कहा है, कोई की भी अभी तक रिजल्ट नहीं आई है। क्या यह समझते हो कि यह भी बात अचानक होनी है? चलो अचानक हो भी जाए लेकिन बापदादा ने कहा है कि बहुत समय का अभ्यास चाहिए तब ही बहुतकाल का अधिकार प्राप्त करेंगे।

तो अभी क्या करना है? लगन की अग्नि को जलाओ। करना ही है। इसके लिए एक बात में सभी पास भी हैं, हाथ उठाओ, जो समझता है बापदादा से हमारे दिल का प्यार 100 परसेन्ट है। 100 परसेन्ट है? लम्बा हाथ उठाओ। तो प्यार का रिटर्न क्या होता है? प्यार का रिटर्न होता है समान बनना, सम्पन्न बनना, सम्पूर्ण बनना। तो अभी बापदादा एक ड्रिल बताता है, सभी कहते हैं बापदादा दोनों से प्यार है, हाथ उठाया, होंगे तो नम्बरवार लेकिन हाथ उठाया तो बापदादा मानते हैं। दोनों से प्यार है ना। ब्रह्मा बाप से और शिव बाप से दोनों से प्यार है ना! दोनों से है? हाथ उठाओ। अच्छा, दोनों से है। बहुत अच्छा धन्यवाद। अच्छा, दोनों के समान बनने चाहते हो। हाथ नहीं उठाओ, कांध हिलाओ। अच्छा। दोनों से प्यार है तो शिव बाप है निराकारी, ठीक है और ब्रह्मा बाप है फरिश्ता। फरिश्ता है ना! तो कल से नहीं, आज से ही अभी से सारे दिन में दोनों बाप से प्यार है तो कभी अपने को निराकार बाप समान निराकारी स्थिति में अभ्यास करो, फालो फादर। और कभी फरिश्ता बनकरके साकार रूप ब्राह्मण नहीं, ब्राह्मण तो हो ही, कर्म भले करो लेकिन कर्म करते भी फरिश्ता स्थिति में रहो तो कर्म का बोझ प्रभाव नहीं डालेगा। ब्रह्मा बाप से प्यार है तो ब्रह्मा बाप ने कर्म सब किया, निमित्त बना लेकिन ब्रह्मा बाप के ऊपर कितना बोझ था। आप कोई के ऊपर इतना बोझ नहीं है, है कोई, ब्रह्मा बाप से ज्यादा किसके ऊपर बोझ है, जिम्मेवारी है? वह हाथ उठाओ। कोई नहीं उठाता। तो ब्रह्मा बाप ने इतनी जिम्मेवारी निभाते हुए कार्य में कैसे रहा, कर्म में भी फरिश्ता रूप रहा ना! तो आपका भी ब्रह्मा बाप से प्यार है, तो कभी फरिश्ता रूप में रहो, कभी निराकार स्थिति में रहो, यह प्रैक्टिस, ब्रह्मा बाबा कहके ब्रह्मा बाप समान फरिश्ता बन जाओ और शिव निराकार बाप को याद कर निराकारी स्थिति में स्थित हो जाओ, यह कर सकते हो? यह कर सकते हो या मुश्किल है? जो कर सकते हैं बीच-बीच में, वह बीच-बीच में ऐसे करें जो लगातार हो जाए, अपने कर्म के हिसाब से जो आपकी दिनचर्या है उसके हिसाब से फिक्स करो। कम से कम सारे दिन में 12 बारी फरिश्ता बनो, 12 बारी निराकार स्थिति में स्थित रहो, यह कर सकते हो? हाथ उठाओ। कर सकते हो? मुश्किल नहीं है ना! सहज है ना! सहज है? सहज में हाथ उठाओ। अच्छा, करना है। यह पक्का करो। फिर तो जो लक्ष्य रखा है ना, इस सीजन के अन्त तक परिवर्तन हो सकता है। अगर यह ड्रिल 24 टाइम करेंगे तो लगातार हो जायेगा ना। ठीक है ना, हो सकता है! हाथ उठाओ। हो सकता है! फिर तो बापदादा की तरफ से पदम पदम पदम पदम गुणा मुबारक हो, मुबारक हो। लेकिन ढीला नहीं छोड़ना। सभी निश्चय करो हमको इसमें नम्बरवन होना है। नम्बरवार नहीं होना, नम्बरवन क्योंकि बापदादा के पास समय बहुत आता है। प्रकृति तो चिल्लाती है, बोझ सहन नहीं होता। माया भी विदाई लेने चाहती है लेकिन कहती है मैं क्या करूं, ब्राह्मण कोई न कोई ऐसा काम संस्कारों वश होकर करते हैं जो मुझे आह््वान करते हैं तो मुझे जाना ही पड़ता है। तो बापदादा क्या जवाब दे! इसलिए जैसे समय आगे बढ़ रहा है, अभी आप लोग सेवा में भी अन्तर देख रहे हो ना! सेवा का रिटर्न अभी सभी चाहते हैं, कुछ हो, कुछ हो। ब्रह्माकुमारियां जो कहती थी वह अभी ठीक हो रहा है। पहले कहते थे विनाश, विनाश नहीं कहो, अब तो कहते हैं कब होगा, आप ही तारीख बताओ। अभी सुनने चाहते हैं, पहले बहाना देते थे, तो यह भी फर्क हो रहा है ना! प्रैक्टिकल देख रहे हो ना इसलिए अभी जो बापदादा से वायदा किया है उसको निभाते रहना। ठीक है! बापदादा ने सभी समाचारों की रिजल्ट सुनी है, जो भी चला है, अच्छा चला और रिजल्ट भी अच्छी उमंग-उत्साह की रही है इसलिए अभी लक्ष्य रखो होना ही है, करना ही है, समाप्ति को समीप लाओ। आप थोड़े हिलते हो ना तो समाप्ति भी दूर हो जाती है। आपको ही समाप्ति को समीप लाना है क्योंकि राज्य करने वाले तैयार नहीं होंगे तो समय क्या करेगा? इसलिए सब बहाना, कारण, कारण शब्द को समाप्त करो। निवारण सामने लाओ। हाथ भले थोड़ोने उठाया लेकिन आप सबका भी यही लक्ष्य है ना कि दु:खियों को सन्देश दे मुक्त करें। उन्हों को मुक्त करने के बिना आप मुक्ति में जा नहीं सकते। तो इन्हों को मुक्त करो क्योंकि बाप आया है ना तो सारे विश्व के बच्चों को वर्सा तो देंगे ना। आपको जीवनमुक्ति का वर्सा देंगे लेकिन सभी बच्चे तो है ना। उनको भी वर्सा तो देना है ना। तो उन्हों का वर्सा है मुक्ति, आपका वर्सा है जीवनमुक्ति। जब तक मुक्ति नहीं देंगे तो आप भी जा नहीं सकते। इसके लिए यह ड्रिल करो। 24 बारी। रात और दिन के 24 घण्टे हैं और 24 बार करना है, नींद के टाइम, नींद भले करो। बापदादा यह नहीं कहते कि नींद नहीं करो। नींद करो लेकिन दिन में बढ़ाओ। जब कोई फंक्शन करते हो तो सारा सारा दिन काम करते हो ना। जागते हो ना! अच्छा।

सेवा का टर्न कर्नाटक ज़ोन का है:- अच्छा पौना क्लास तो कर्नाटक है। चांस अच्छा लेते हैं। बापदादा भी खुश होते हैं कि इस टर्न में छुट्टी मिल जाती है आने की। तो जितने भी सेवाधारी आते हैं सेवा भी करते हैं और अपना भाग्य भी बनाते हैं तो कर्नाटक, नाटक है ना। तो नाटक में पार्ट बजाने में कर्नाटक नम्बरवन होगा ना। आप कितने बारी कर्नाटक, कर्नाटक कहते हो, जब नाटक शब्द कहते हो तो बेहद का नाटक भी याद आता है ना। तो इस बेहद के नाटक में भी नम्बरवन आना ही है। यह पक्का है ना! आना ही है, बनना ही है, चाहे कुछ भी करना पड़े, एवररेडी। है एवररेडी? कुछ भी करना पड़े तो एवररेडी। हाथ उठाओ। देखो पौना क्लास तो करने वाले हैं। नम्बरवन पार्ट अर्थात् निर्विघ्न बन निर्विघ्न बनाना है। सिर्फ अपने को निर्विघ्न नहीं बनाना, साथियों को भी बनाना है, है हिम्मत। कर्नाटक को हिम्मत है तो हाथ उठाओ। दो दो हाथ उठाओ। अच्छा। कितने टाइम में बनेंगे? कितने टाइम में बापदादा को रिजल्ट देंगे? कोई भी करे, जो ओटे सो अर्जुन। दो तीन टर्न के बाद या एक टर्न के बाद? जो कहते हैं दो चार टर्न के बाद, वह हाथ उठाओ। अच्छा। विशेष निमित्त तो यहाँ आगे हैं ना। अच्छा जो सेन्टर की मुख्य बहिने हैं वह हाथ उठाओ। सेन्टर के मुख्य भाई या बहन लम्बा हाथ उठाओ। तो क्या विचार है? जो समझते हैं तो तीन चार टर्न के बाद हम प्रैक्टिकल करके दिखायेंगे वह मुख्य हाथ उठाओ। मुख्य हैं, भाई भी उठाओ। दिखायेंगे। अच्छा आज कर्नाटक का टर्न है तो आप निमित्त करके दिखाओ, पक्का। आप और आपके संबंध में सेन्टर, पक्का है? पाण्डव पक्का है? अच्छा है। क्या नहीं हो सकता है! सिर्फ दृढ़ता चाहिए। यह नहीं हो, क्या करें होगा या नहीं होगा, नहीं, होना ही है। दृढ़ निश्चय। जहाँ दृढ़ता है वहाँ सफलता है ही। तो यह भी भाग्य है जो आप पहला नम्बर एक्जैम्पुल बनेंगे। उसका भी फल है, उसका भी बल है। अच्छा है। तो कर्नाटक यह कमाल दिखायेगा। पक्का? कर्नाटक की विशेषता है, जो कर्नाटक के निमित्त बहन बनी (दादी ह्दयपुष्पा), वह पुरानी बहिन, उनकी विशेषता क्या थी? सेन्टर खोलने की उनकी रीति बहुत अच्छी थी। सेन्टर कितने खुल गये? तो निमित्त उमंग-उत्साह वाली थी और आप सब भी निमित्त हो, तो उसकी विशेषता अपने में लानी है। सिर्फ सेन्टर नहीं बनाओ निर्विघ्न सेन्टर। ठीक है। पसन्द है ना! अच्छा है। कमाल करके दिखायेगा कर्नाटक। दूसरों को भी करना है, ऐसे नहीं कर्नाटक ही करेगा, उन्होंने हिम्मत रखी है, इसी हिम्मत का फल और बल मिलेगा। बाकी अच्छा है, कर्नाटक में भी सेवाओं का अच्छा रिजल्ट दिखाई देता है। वृद्धि होती जा रही है। अभी कोई माइक और वारिस सामने नहीं आया है। लेकिन इस निर्विघ्न बनने का अगर प्रैक्टिकल दिखायेंगे तो वह भी निकल आयेगा। अच्छा। बापदादा को सभी कर्नाटक वालों में यही आशा है कि करके दिखाने वाले हैं। अच्छा है। कुछ भी हो, संकल्प को पूरा करके दिखाना। बापदादा की उम्मीदें हैं। अच्छा।

आपने जो ड्रिल सुनाई वह कितना समय ड्रिल करनी है? : कम से कम 10 मिनट।

बिजनेस विंग और एज्युकेशन विंग:- यह वर्ग जो बने हैं उसमें सर्विस बढ़ाने का शौक अच्छा है। और बापदादा ने देखा है कि हर एक विंग में उमंग-उत्साह है कि हम नये से नई बात करके दिखायें, निमित्त बनके दिखायें तो यह दोनों विंग जो हैं वह भी सर्विस अच्छी कर रहे हैं। एज्युकेशन वाले भी अपनी सर्विस, अपने-अपने प्रकार से कर रहे हैं और बिजनेस वाले भी अपने प्रकार से कर रहे हैं। अभी हर एक विंग अपना ग्रुप बनाये, यह ग्रुप अभी बनाया नहीं है, जिस ग्रुप में हर वर्ग के हों। मानो बिजनेस वर्ग है, उसके ग्रुप में सब वर्ग वाले एक ग्रुप हो अलग। जो कोई भी प्रोग्राम हो तो हर एक वर्ग वाले ऐसा प्रसिद्ध हो जिसका आवाज सुन करके लोगों में उमंग आवे तो हम भी कर सकते हैं। अभी बापदादा ने रिपोर्ट सुनी कि एक ग्रुप ने ऐसा प्लैन बनाया है, वी.आई. पी ग्रुप ने बनाया है। अच्छा है। हर एक वर्ग सारे इन्डिया में अपने अपने सेन्टर्स को यह सेवा देवे और जो भी वह समझते हैं कि यह वी.आई.पी ऐसा है, तो वह सभी वर्ग वाले एक स्थान पर अपना-अपना चुना हुआ वी.आई. पी. सब वर्ग वाले मीटिंग करो, यह प्लैन बापदादा ने दिया है, तो सभी ऐसे करो और उन्हों को निमित्त बनाओ। उन्हों की विशेष सेवा करो, जो माइक के साथ स्नेही सहयोगी बन जाएं। सिर्फ माइक नहीं बनें लेकिन स्नेही सहयोगी बनें क्योंकि स्नेह और सहयोग से उन्हों को आशीर्वाद मिलती है, पुरूषार्थ में आगे बढ़ने की। तो बापदादा और भी जो वर्ग आये हैं उन सभी वर्गो को कह रहे हैं, इसी सीजन में बापदादा हर ग्रुप का रिजल्ट देखने चाहते हैं। मधुबन में नहीं भी आवे लेकिन अपने वर्ग का जो हेड क्वार्टर हो उसमें इकठ्ठा करें फिर बापदादा रिजल्ट देख करके सीजन के लास्ट में ऐसे सहयोगियों से मिलने का सोचेंगे। तो सुना, यह करना है। आशा ने दिया था? (आशा बहन-ओ.आर.सी) आपने दिया था ना। अच्छी बात है, अगर वर्ग वाले स्पष्ट समझने चाहे तो इनसे समझ लेना। बापदादा यह क्यों कहते हैं क्योंकि आप लोग जो पक्के ब्राह्मण हैं उन्हों को समय पर साक्षी होके देखना पड़ेगा, मन्सा सेवा इतनी बढ़ेगी जो आप लोगों के साथी बनके वह सेवा करें। वह सेवा करें और आप साक्षी होके मन्सा सेवा करो। जैसे ब्रह्मा बाप ने सेवा लायक बनाया, स्वयं साक्षी होकर देखा ना। ऐसे जो निमित्त बड़ी आत्मायें हैं, जो सर्विस को बढ़ाने वाली हैं, वह समय पर और सेवा में बिजी रहती हैं, लेकिन यह सेवा आपके योग्य तैयार किये हुए करें, जिसकी आवाज में अनुभव की आकर्षण हो, पोजीशन की आकर्षण नहीं लेकिन अनुभव की आकर्षण। वह प्रभाव बहुत जल्दी पड़ेगा क्योंकि बापदादा की उन्हों को, निमित्त बनने वालों को एकस्ट्रा मदद मिलती है, कोई भी हो, जिसको बापदादा का समय पर विशेष वरदान मिलता है, उसकी रिजल्ट वह खुद भी नहीं जान सकता कि क्या होती है, लेकिन यह एकस्ट्रा बापदादा की मदद है। वरदान है। वह नहीं बोलता, वरदान बोलता है इसलिए ऐसी आत्मायें तैयार करो, तो बापदादा समय प्रमाण उन्हों को भी वरदान दे आगे बढ़ाये। यह सभी वर्गो को बापदादा कह रहा है। अच्छा कर रहे हो, आगे भी बढ़ रहे हो, यह बापदादा सभी वर्गो को मुबारक देते हैं जो और 3-4 वर्ग वाले आये हैं, वह उठो।

यूथ, पोलीटिशन, स्पोर्ट, एडमिनिस्ट्रेशन:- यह एक बात सभी को करनी है इसलिए साथ में उठाया है। तो वर्ग वालों की सेवा पर बापदादा खुश है लेकिन अभी आप साक्षी दृष्टा बनते जाओ। आपका अभी काम है दूसरे ग्रुप को तैयार करना क्योंकि अचानक ऐसे सरकमस्टांश बनेंगे जो आप लोगों को बहुत तपस्या वरनी पड़ेगी। मन्सा सेवा करनी पड़ेगी। समय नाजुक आ रहा है और बढ़ता रहेगा। अभी मन्सा सेवा इतनी फोर्स से नहीं हो रही है। हो रही है, कोई कोई का मन्सा सेवा का प्रभाव भी पड़ रहा है लेकिन बहुत कम। और लास्ट के समय मन्सा सेवा के सिवाए वाचा नहीं चलेगी। जिन्हों को निमित्त बनायेंगे उन्हों को भी अभी चांस है, जब नाज़ुक समय आयेगा तो उन्हों को भी चांस नहीं मिलेगा इसलिए अभी उन्हों को चांस दे दो, नजदीक आयेंगे, वारिस भी बन सकते हैं क्योंकि अभी हालातें आपके हर ग्रुप के कार्य को मदद कर रही हैं। अभी सभी समझते हैं कुछ होना चाहिए, होना चाहिए। बिचारों को पता तो है नहीं लेकिन चाहना है कुछ परिवर्तन होना चाहिए। आप तो जानते हो ना कि परिवर्तन होना है और क्या होना है। वह चिंता में है, क्या होगा, क्या होगा! आप जानते हो कि हमारा राज्य आना ही है, खुशी है। अति में जा रहा है और अन्त होके आदि आनी है इसलिए आप सर्विस करने वालों को अभी जल्दी-जल्दी छांटों और उन्हों को आगे बढ़ाओ। अच्छा-अच्छा तो कहते हैं अभी उन्हों को अच्छा बनाने की सेवा दो। आप साक्षी दृष्टा बनके उनको शक्ति दो। अच्छा। स्पोर्ट भी आया है। यूथ विंग की रजत जयन्ती है। पोलीटिशयन ने यह प्लैन बनाया है, अच्छा है। यह जो भी नाम लिया है यह मुख्य विंग हैं। तो मुबारक तो बाबा सभी को दे रहा है, अभी मुबारक और देंगे जब ग्रुप तैयार करेंगे। यह नहीं कह रहे हैं कि आबू में ले आना। पहले वहाँ तैयार करो फिर बापदादा समाचार सुनेंगे, रिजल्ट देखेंगे फिर मधुबन में बुलायेंगे। तो सभी जो भी आये हो, उन्होंने आगे का प्लैन समझा। हाथ उठाओ। समझा क्या करना है? अभी जल्दी-जल्दी करो। अचानक कुछ भी हो सकता है जो आपको सेवा करने का भी टाइम नहीं मिलेगा। सरकमस्टांश ऐसे भी बीच-बीच में आ सकते हैं इसीलिए जैसे तीव्र पुरूषार्थी ग्रुप बनाया है ना, ऐसे यह तीव्र सर्विस का ग्रुप बनाके तैयार करो। अच्छा। बापदादा बहुत-बहुत मुबारक दे रहे हैं।

डबल विदेशी :- अभी डबल विदेशी नहीं कहो, डबल पुरूषार्थी। ठीक है ना। डबल पुरूषार्थी हैं ना। डबल पुरूषार्थी बच्चे अपनी सेवा का जो मधुबन में चांस लेते हैं भिन्न-भिन्न प्रकार से, यह बापदादा को बहुत अच्छा लगता है क्योंकि एक दो के संगठन का बल मिलता है, कहाँ क्या प्राब्लम होती है, कहाँ क्या प्राब्लम होती है, तो एक दो के अनुभव से और बड़ों के डायरेक्शन से, पालना से सहज हो जाता है। वायुमण्डल का भी बल मिलता है, जिम्मेवारी कम होती है, समय वहाँ कम मिलता है यहाँ समय फ्री मिलता है, एक ही काम के लिए। वहाँ भिन्न-भिन्न जिम्मेवारियां होती हैं और टाइम देना ही पड़ता है, यहाँ एक ही काम होता है, या सेवा या स्व कल्याण। और दिनप्रतिदिन बापदादा ने देखा कि सर्विस की रूपरेखा अच्छी बढ़ रही है। फारेन के यूथ की भी रिजल्ट सुनी। और हर एक जो सेवा में आगे बढ़ रहे हैं, तो बापदादा देख रहे हैं कि धीरे धीरे दो बातें नजदीक आ रही हैं - एक तो गवर्मेन्ट या विशेष लोग उनके नजदीक जाने का चांस अच्छा मिल रहा है और धीरे धीरे आपस में प्लैन बनाकर गवर्मेन्ट तक अपने अपने देश की गवर्मेन्ट तक पहुंचने का भी साधन बन जायेगा। तो अच्छा है। विदेश में भी नाम बाला होना है और देश में तो होना ही है। यूथ ग्रुप का भी बापदादा ने समाचार सुना, इन्डिया का भी और फारेन का भी, इन्डिया में भी अभी प्लैन बनाते हैं। लेकिन इससे पहले भारत में यह प्लैन बनायें जो गवर्मेन्ट तक आवाज जाये, शुरू शुरू में बापदादा ने देखा था कि यूथ ग्रुप को प्रेजीडेंट प्राइममिनिस्टर के पास ले गये थे, पहले ग्रुप गया था, अभी सब साधन आपके साथ हैं, अभी आपका टी.वी. में भी आ सकता है सिर्फ मिलाओ नहीं, लेकिन उन्हों को सुनाने का चांस लो। यूथ से मिले और शार्ट टाइम में सुनें कि क्या क्या करते हैं। तो हर वर्ग वालों को ऐसा ग्रुप बनाना चाहिए जो मिनिस्ट्री तक पहुंचे और जो मुख्य मिनिस्टर प्राइममिनिस्टर हैं उन तक आवाज पहुंचे। बाकी अच्छा है, बापदादा ने देखा कि फारेन में भी वृद्धि हो रही है, होती रहेगी। सेन्टर भी जो रहे हुए हैं उसका प्लैन बनाते रहते हैं और स्व पुरूषार्थ का अटेन्शन है और अण्डरलाइन कर स्व पुरूषार्थ में भी नवींनता लाते रहना। ठीक है। अच्छा।

आप सबको भी अच्छा लगता है ना, फारेनर्स हर ग्रुप में आते हैं, अच्छा लगता है ना क्योंकि हमारे परिवार में यह भी नवीनता है। फारेन के भी वैरायटी सब आते हैं। ऐसा परिवार तो किसका भी नहीं होगा जो एक ही स्थान पर कोई भी विशेष देश रह नहीं जाए। अभी देखो मुस्लिम देश भी आगे आगे आ रहे हैं। अरेबियन भी आ रहे हैं। तो वैरायटी परिवार एक भी वंचित न रह जाए, यही लक्ष्य है कि सभी बच्चों तक पहुंचकर बाप का सन्देश दे वारिस निकालें, परिवार के बिछुड़े हुए परिवार में मिलायें, यह देख बापदादा खुश है और खुशी बढ़ाते चलो। अभी तो आपके पास निमन्त्रण पीछे निमन्त्रण आने वाले हैं, क्यों? अन्त में यही रहना है, यही है, यही है, यही है। अभी सभी किनारे छूटकर सभी को बाप के संबंध में या सन्देश सुनने में चांस मिलना ही है। नहीं तो उल्हना आपको सबका बहुत मिलेगा। मन्सा से भी आत्माओं को आकर्षित कर आगे बढ़ा सकते हो। सम्बन्ध, सम्पर्क में ला सकते हो। मन्सा की सेवा अभी कम है। लेकिन अभी से शुरू करेंगे तो अन्त में कोई रह नहीं जायेगा। कभी भी अगर फुर्सत मिलती हो तो फरिश्ता रूप में जैसे ब्रह्मा बाप ने आप सभी को मन्सा सेवा द्वारा आकर्षित किया, घर बैठे हिम्मत दी और चल पड़े, ऐसे आप भी फरिश्ते रूप से मन्सा सेवा कर सकते हो, फरिश्ता बनके, यह अनुभव भी बढ़ाते चलो क्योंकि दु:ख की लहर, जैसे सागर अचानक लहरों में बढ़ता जाता है, तेज लहरें बीच-बीच में आ जाती हैं ना। ऐसे अभी जितना समय बढ़ता जायेगा तो बीच बीच में भी ऐसी लहर दु:ख की अशान्ति की बीच बीच में बढ़ती रहेगी। कोई कारण ऐसे बनेंगे जो दु:ख की लहर बढ़ेगी इसलिए औरों को तैयार करो वाचा के लिए। लेकिन फाउण्डेशन पक्का हो। अपना प्रभाव डालने वाले नहीं हो। रीयल ज्ञान का प्रभाव डालने वाले हो। कभी कभी ब्राह्मण बच्चे भी अपना प्रभाव डालने लगते हैं, कोई भी सेवा में बाप की तरफ आकर्षित करो, पर्सनल नहीं। अगर पर्सनल अपने पर प्रभावित करते तो उसका पुण्य नहीं बनता। अच्छा।

चारों ओर के पुरूषार्थ में आगे बढ़ने वाले, जैसे अभी 15 दिन का काम बापदादा ने दिया था, उसकी रिजल्ट जो समझते हैं, जैसे बापदादा ने कार्य दिया, उसी प्रमाण मन्सा, वाचा, कर्मणा, समय, संकल्प यथार्थ रहा, वह हाथ उठाओ।

अच्छा। बहुत थोड़ों ने उठाया है। जिन्होंने 15 दिन का काम अच्छी रिजल्ट में किया, वह हाथ उठाओ। थोड़ो ने किया है बाकी औरों की भी रिजल्ट आई है, जो यहाँ नहीं हैं उन्हों की भी रिजल्ट आई है। बहुत करके वेस्ट थॉट्स की रिजल्ट सभी ने अटेन्शन अच्छा दिया है। लेकिन सारा ब्राह्मण परिवार एक जैसा पुरूषार्थ में चले, वह रिजल्ट संगठन की अभी लानी है। मैजारिटी रिजल्ट में सभी बातों की एक जैसी अच्छी रिजल्ट हो, वह कम है। किसकी किसमें है, किसकी किसमें है। अभी इस ड्रिल से सभी को सदा के लिए अपने पुरूषार्थ की गति तीव्र करनी है क्योंकि बहुतकाल चाहिए। मानो पीछे कर भी लेंगे लेकिन बहुतकाल का भी सम्बन्ध है इसलिए सभी अटेन्शन दें मुझे करना है, कोई करे नहीं करे, लेकिन मुझे एवररेडी बनना ही है। अच्छा –

चारों ओर के बाप के स्नेही, जो स्नेही होते हैं वह सहयोगी जरूर होते हैं, स्नेह का रिटर्न प्रत्यक्ष रूप वह हर कार्य में तन-मन-धन-जन में एक दो के सहयोगी जरूर होंगे। तो ऐसे स्नेही और सहयोगी बच्चे, जो सदा बाप के प्यार में लवलीन रहने वाले हैं, लव में नहीं, लेकिन लवलीन रहने वाले और सदा बाप के सर्व कार्य में समय संकल्प लगाने वाले, क्योंकि संगमयुग में समय और संकल्प की बहुत वैल्यु है, एक जन्म में अनेक जन्मों की प्रालब्ध बनाने वाले, ऐसे तीव्र पुरूषार्थी हर गुण, हर शक्ति को, हर समय अनुसार कार्य में लगाने वाले ऐसे गुण सम्पन्न, शक्ति सम्पन्न बच्चों को बहुत-बहुत पदम पदम गुणा यादप्यार और नमस्ते।

निर्मला दीदी से:-  अच्छा चक्र लगाकर आई। (आस्ट्रेलिया गई थी) अच्छा दोनों तरफ पार्ट बजा रही हो, बहुत अच्छा। रिजल्ट भी अच्छी है।

(दादी जानकी से): यह भी चक्र लगाकर आई। बहुत अच्छा खेल किया, खेल ही है। (सोलार सिस्टम जो हमारे पास लगा है वह सब पेपर्स में आया है) बापदादा ने कहा था कि यह जो सोलार का कर रहे हैं तो ऐसा टाइम आयेगा जो और तरफ अंधियारा होगा और एक ही आपके स्थान में रोशनी होगी। यह भी सब खेल देखेंगे। (यूथ अभी गवर्मेन्ट तक जायेंगे, ऐसा प्रोग्राम बनाया है) गवर्मेन्ट समझे कि यह यूथ अच्छे हैं। यह भी हो जायेगा।

बृजमोहन भाई से:- सेवा कर रहे हैं, सेवा करते रहेंगे। जो इशारे मिलते रहते हैं उसको प्रैक्टिकल ला रहे हो, इसकी मुबारक हो। (रमेश भाई, उषा बहन से) दोनों ही ठीक हैं ना। जो निमित्त आत्मायें हैं उनको देख करके सभी को उमंग आता है, यह जैसे करते हैं हम भी करें तो आप निमित्त हैं औरों को भी उमंग-उत्साह दिलाने के। बहुत अच्छा किया।

परदादी से: - बहुत अच्छा पार्ट बजा रही हो, विष्णु के समान लेटे लेटे पार्ट बजा रही हो। आपको देखके सबको उमंग आता है कि ऐसे पार्ट बजा सकते हैं। बहुत अच्छा।

 



31-12-09   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


‘‘नये वर्ष में सभी आत्माओं को सन्देश देकर गोल्डन वर्ल्ड की गिफ्ट दो, बाप समान बनने के लिए देही-अभिमानी रहने की नेचर नेचुरल बनाओ’’

आज बापदादा हर एक बच्चे को स्नेह और बापदादा के लव में लवलीन स्वरूप में देख रहे हैं। एक एक बच्चा परमात्म प्यार में चमक रहा है। सभी बच्चे प्यार के विमान में पहुंच गये हैं। वैसे तो न्यु ईयर मनाने के लिए आये है लेकिन सभी के नयनों में क्या दिखाई दे रहा है? न्यु ईयर, नया साल तो निमित्त मात्र है लेकिन आप सभी के नयनों में क्या उमंग है? तीन बधाईयां दे रहे हो। एक अपने नये जीवन की बधाई और दूसरी नये युग की बधाई और तीसरी परिवार और बाप से मिलन की बधाई। आपके नयनों में क्या घूम रहा है? अपना नव युग सामने आ रहा है ना! दिल में उमंग आ रहा है कि नया युग आया कि आया। नये युग की चमकीली ड्रेस इतना सामने स्पष्ट है कि आज संगमयुग पर हैं और जल्दी से यह चमकीली ड्रेस पहननी है। सामने देख देख खुश हो रहे हैं। विदाई भी दे रहे हैं और बधाई भी ले रहे हैं। जैसे पुराने साल को विदाई देते हैं फिर वह साल भूल जाता है, नया साल ही सामने आता है। ऐसे ही आपके सामने पुरानी दुनिया को बधाई नहीं, लेकिन नई दुनिया को बधाई दे रहे हैं। पुरानी दुनिया को विदाई दे रहे हैं। तो आज सभी को उमंग-उत्साह है नये युग का, लोग भी नये वर्ष की बधाई देते हैं और साथ-साथ गिफ्ट भी देते हैं। तो बापदादा भी आप बच्चों को पुराने स्वभाव संस्कार को विदाई देकरके नई दुनिया में जाने की गिफ्ट दे रहे हैं, जिस नई दुनिया में प्राप्ति ही प्राप्ति है। शॉर्ट में यही कहे तो अप्राप्त नहीं कोई वस्तु नई दुनिया में। ऐसे गोल्डन वर्ल्ड की गिफ्ट बापदादा ने आप हर एक बच्चे को सौगात दे दी है। आपको भी नशा है ना कि हम गोल्डन वर्ल्ड के अधिकारी बन रहे हैं। ऐसी गिफ्ट और कोई दे नहीं सकते हैं। बाप ने हर एक बच्चे को यह डायरेक्शन दिया है कि सभी आत्माओं को यह बाप का वर्सा गोल्डन वर्ल्ड का सन्देश देकरके उनको भी आप गिफ्ट दो। आपके पास कौन सी गिफ्ट है? एक तो नई दुनिया की गिफ्ट दो और दूसरा आपके पास बहुत खज़ाने हैं। गुणों का खज़ाना, शक्तियों का खज़ाना, स्वमान के खज़ाने, कितने खज़ाने हैं। तो सभी को कोई न कोई गुण, कोई न कोई शक्ति की गिफ्ट दो जिस गिफ्ट से उन्हों की जीवन बदल जाए और गोल्डन दुनिया के अधिकारी बन जाये क्योंकि आजकल देख रहे हो चारों ओर दु:ख अशान्ति बढ़ रहा है। चारों ओर भय और चिंता हर एक में है। ऐसे दु:खी अशान्त आत्माओं को कम से कम यह सन्देश जरूर दो कि अब बाप आये हैं अब से अविनाशी वर्से के अधिकारी बन जाओ। यह सन्देश हर आत्मा को दे भी रहे हो लेकिन अभी भी कई बाप के बच्चे सन्देश से भी वंचित रहे हुए हैं। फिर भी एक बाप के बच्चे हैं ना तो अपने भाई बहिनों को यह सन्देश की गिफ्ट जरूर दो। कोई भी रह नहीं जाए। कर रहे हैं सेवा, बापदादा बच्चों की सेवा देख खुश है लेकिन बाप की यही आशा है कि मेरा कोई भी बच्चा सन्देश से रह नहीं जाये। उल्हना नहीं दे कि आपको गोल्डन वर्ल्ड की सौगात मिली और हमको पता नहीं पड़ा। हमारा बाप आया लेकिन हमें सन्देश नहीं मिला इसलिए इस नये साल में यही प्रयत्न करो, आपस में प्लैन बनाओ कि कोई भी कोना रह नहीं जाये। उल्हना नहीं मिले लेकिन खुश हो जाये, मालूम तो पड़े कि हमारा बाप आ गया। वंचित नहीं रह जाएं। तो इस नये साल में क्या करेंगे? आपस में मिलके प्लैन बनाओ, बापदादा को हर एक बच्चे के ऊपर रहम आता है। तो आपको भी भाई-बहिनों के ऊपर अभी विशेष रहमदिल, कल्याणकारी स्वरूप धारण कर सबको सन्देश देना है। कम से कम ऐसा तो उल्हना नहीं देवे।

तो आज सभी बच्चे नये वर्ष मनाने के उमंग उत्साह से पहुंच गये हैं। बापदादा एक-एक बच्चे को देख क्या गीत गाते?जानते हो ना! वाह बच्चे वाह! जो पहले बारी भी आये हैं उन्हों को भी बापदादा कह रहे हैं कि लक्की हो जो समय समाप्त के पहले बाप के बन गये। नये बच्चों को बापदादा पदम पदमगुणा लक्की बनने की मुबारक दे रहे हैं। आजकल बापदादा एक बात सभी बच्चों में देखने चाहते हैं जानते हो कौन सी? जैसे हर एक के दिल में उमंग है, लक्ष्य है कि हम बाप समान बनने वाले ही हैं, बनेंगे नहीं, बनने वाले ही हैं तो जैसे लक्ष्य है, ऐसे अभी बापदादा लक्ष्य के साथ लक्षण भी देखने चाहते हैं। जैसे समान बनने का लक्ष्य है ऐसे ही समान बनने के लक्षण भी हों। अभी लक्ष्य बहुत ऊंचा है लेकिन लक्षण पर विशेष अटेन्शन देना है। समान, जितना बड़ा लक्ष्य उतना ही बड़ा लक्षण हो। अभी कोई-कोई बच्चे लक्षण धारण करना चाहते हैं लेकिन बीच-बीच में फिर भी कह देते हैं, चाहते बहुत हैं लेकिन.... तो यह लेकिन निकल जाए। आपकी चलन और चेहरा दूर से ही जितना बड़ा लक्ष्य है, इतना लक्षण चेहरे से दिखाई दे, चलन से दिखाई दे। जैसे आप पहले देह-अभिमान में थे लेकिन जब देह-अभिमान में थे तो देह-अभिमान की नेचर नेचुरल थी, कभी पुरूषार्थ किया क्या कि देह अभिमान आवे, नेचर नेचुरल देह-अभिमान रहा। आधाकल्प पुरूषार्थ नहीं किया, ऐसे ही अब भी देही-अभिमानी बनने की नेचर नेचुरल है! जब देह-अभिमान की नेचर नेचुरल रही, कभी याद आता है कि देह-अभिमान में आ जाऊं, यह पुरूषार्थ किया? अभी भी देह-अभिमान और देही-अभिमान, तो देही-अभिमानी बनने में भी मेहनत क्यों! क्योंकि बापदादा के पास समाचार आते हैं कि कभी-कभी देह-अभिमान को मिटाने की मेहनत करनी पड़ती है। जब देह-अभिमान नेचुरल रहा तो देही-अभिमान में मेहनत क्यों? तो बापदादा को मेहनत बच्चों की अच्छी नहीं लगती। मेहनत मुक्त बन जाएं और नेचुरल नेचर बन जाए, इसको कहा जाता है लक्ष्य और लक्षण समान। फिर आप देखो बाप समान बनना बहुत सहज और नेचुरल लगेगा। जैसे ब्रह्मा बाप को देखा इतने बड़े परिवार की जिम्मेवारी होते भी नेचुरल नेचर देही अभिमानी की रही। चाहे बच्चों के ऊपर भी जिम्मेवारी है लेकिन ब्रह्मा बाप के आगे वह जिम्मेवारी क्या लगती है! कोई भी जिम्मेवारी है, मानो ज़ोन की जिम्मेवारी है, या कोई आफीशियल यज्ञ कारोबार की जिम्मेवारी है लेकिन वह जिम्मेवारी ब्रह्मा बाबा के आगे क्या है! ब्रह्मा बाप ने शिवबाबा की मदद से प्रैक्टिकल में दिखाया कि करावनहार करा रहे हैं, हम करनहार बन बाप समान न्यारे और प्यारे हैं। तो बाप समान बनने चाहते तो यह चेक करो कुछ भी चाहे मन्सा, चाहे वाचा चाहे कर्मणा ड्युटीज हैं लेकिन मैं करनहार हूँ, ट्रस्टी हूँ, करावनहार मालिक शिवबाबा है, यह करावनहार का पाठ चलते-चलते भूल जाता है। तो लक्ष्य और लक्षण दोनों को समान बनाना है। अब पुराने साल को विदाई देने के साथ इस लक्ष्य को लक्षण में लाना है। नया साल तो नई बातें। क्या करूं, माया आ जाती है, चाहते नहीं हैं लेकिन आ जाती है यह शब्द वा संकल्प पुराने वर्ष के साथ इसको भी विदाई दो। सिर्फ साल को विदाई नहीं देना। बापदादा ने सुनाया था कि माया भी बापदादा के पास आती है और क्या कहती है? मैं तो समझती हूँ, मेरे जाने का समय है लेकिन कोई-कोई बच्चे आह्वान करते हैं मेरा तो मैं क्या करूं। तो आज विदाई के साथ माया के भिन्न-भिन्न रूप को भी विदाई देनी है। है हिम्मत? हिम्मत है? हाथ उठाओ। विदाई देने की हिम्मत है? पीछे वालों को हिम्मत है? जिसमें हिम्मत हो, वह हाथ उठाओ। तो बाप इस हिम्मत की बहुत पदम-पदम गुणा बधाई देते हैं। क्यों? क्यों बापदादा इस पर जोर दे रहे हैं? क्योंकि आप सभी देख रहे हो दुनिया की हालतें बिगड़ने में शुरू जोर से हो रही हैं और बापदादा का यह महावाक्य कुछ समय से चल रहा है कि अचानक होना है। तो अचानक होना है और अगर बहुत समय का अभ्यास नहीं होगा तो बताओ अचानक के समय अभ्यास की आवश्यकता है ना! अभी-अभी देखो बापदादा ने होम वर्क दिया, 10 मिनट, टोटल 24 बारी 10-10 मिनट का होमवर्क दिया, तो कई बच्चों को मुश्किल हो रहा है। तो सोचो, अगर 10 मिनट का अभ्यास का नहीं हो सकता तो अचानक में उस समय क्या करेंगे? बापदादा जानते हैं कि 24 बारी में कईयों को समय थोड़ा कम मिलता है, लेकिन बापदादा ने ट्रायल की कि 10 मिनट एक ही स्मृति में जब चाहे, जैसे चाहे वैसे कर सकते हैं, बापदादा यह नहीं कहते अभी भी 10 मिनट करो, अच्छा नहीं हो सकता, जिसको हो सकता है वह करे, अगर नहीं हो सकता है तो 5 मिनट करो, 5 मिनट से 7 मिनट, 6 मिनट, जितना भी बढ़ा सको उतनी ट्रायल करो। बापदादा खुद ही कह रहा है इसमें ऐसी बात नहीं है। अगर 10 मिनट ज्यादा टाइम लगता है तो चलो 8 मिनट करो, 9 मिनट करो, जितना ज्यादा कर सको उतनी आदत डालो क्योंकि बहुतकाल का वरदान प्रैक्टिकल में अभी कर सकते हैं। अगर अभी बहुतकाल का अभ्यास नहीं होगा तो अभी के बहुतकाल का पुरूषार्थ की जो प्राप्ति है, आधाकल्प की उस बहुतकाल में फर्क पड़ जायेगा। अगर अभी कम समय देंगे, जितना हो सकता है उतना बापदादा ने छुट्टी दे दी है, अगर 5 मिनट से ज्यादा करो, 10 मिनट नहीं हो सकता है तो 7 मिनट करो, 8 मिनट करो, 5 मिनट की भी छुट्टी है। लेकिन अगर कोई भी समय 10 मिनट हो तो अच्छा है। ऐसा समय आयेगा जो आप लोगों को खुद अपने लिए और विश्व के लिए भी किरणें देनी पड़ेगी। इसीलिए बापदादा छुट्टी देते हैं, जितना ज्यादा समय कर सको, उतना प्रैक्टिस करो क्योंकि अभी का बहुत समय भविष्य का आधार है। ठीक है? मुश्किल लगता है, कोई बात नहीं है, अभी तो कोई हर्जा नहीं है और बाप को सुनाया यह बहुत अच्छा किया क्योंकि मानो 10 मिनट बैठ नहीं सको, सोच में ही चला जाए, तो 5 मिनट भी गये, इसीलिए बापदादा कहे कम से कम 5 मिनट से कम नहीं करना। जितना बढ़ा सको उतना बढ़ाओ। ठीक है स्पष्ट हुआ? क्योंकि बापदादा हर एक को बहुत श्रेष्ठ स्वरूप में देखते हैं। बापदादा ने इसकी निशानी हर एक बच्चे को कितने स्वमान दिये हैं। स्वमान की लिस्ट अगर निकालो तो कितनी बड़ी है?

आज बापदादा अमृतवेले चक्कर लगाने गये। क्या देखने गये? कि बापदादा ने स्वमानों की बहुत बड़ी माला दी है। अगर एक-एक स्वमान में स्थित होके उस स्थिति में बैठो, चलो तो स्वमान कहते जाओ और माला घुमाते जाओ तो बहुत मजा आयेगा। स्वमान की लिस्ट रखी है लेकिन एक-एक स्वमान कितना बड़ा है और किसने दिया है! वर्ल्ड आलमाइटी अथॉरिटी ने एक-एक बच्चे को अनेक स्वमानों की लिस्ट दी है। उसको यूज करो क्योंकि और कोई अथॉरिटी नहीं जो इस स्वमान को आपके कम कर सके। और किस को भी इतने स्वमानों की माला नहीं मिली है। तो बापदादा ने देखा सतयुग में तो राज्य भाग्य मिलेगा लेकिन यह स्वमानों की माला संगमयुग की देन है। बापदादा जब भी बच्चों को देखते हैं तो हर एक बच्चे के स्वमान की स्थिति से देखता है - वाह बच्चा वाह! तो स्वमान की अथॉरिटी में रहो, मैं कौन! कभी कौन सा स्वमान सामने रखो, कभी कौन सा स्वमान सामने रखो और चेक करो तो आज अमृतवेले जो विशेष स्वमान बुद्धि में रखा वह स्वमान खज़ाना है ना, इसको यूज किया! क्योंकि खज़ाना बढ़ने का साधन है जितना खज़ाने को कार्य में लगायेंगे उतना खज़ाना बढ़ता है। तो आज बापदादा देख रहे थे कौन-कौन बच्चा है, किसके पास स्वमान के स्मृति की माला बड़ी थी किसके पास छोटी। जहाँ स्वमान होगा वहाँ देहभान खत्म हो जाता है। तो आज बापदादा ने चक्र लगाया और देखा जैसे स्वमान का खज़ाना है, ऐसे एक-एक शक्ति, एक-एक गुण इस्तेमाल करो उसको, कार्य में लगाओ। तो यह जो प्राबलम होती है माया आ गई, माया आ नहीं जाती लेकिन माया के लिए तो बाबा ने सुना दिया है कि माया कहती है मेरे को आवाह्न करते हैं तब जाती हूँ, ऐसे नहीं जाती हूँ, कोई भी हल्का संकल्प करना माना माया को आवाह्न किया, शक्तियों को छोड़ता है तो माया को आवाह््न किया। चाहते नहीं है लेकिन आ जाती है। बलवान कौन? चाहते नहीं हैं लेकिन आ जाती, तो माया बलवान हुई या आप? तो आज पुराना वर्ष समाप्त हो रहा है, नये वर्ष में नया उमंग, नया उत्साह, क्योंकि संगमयुग का गायन है, एक-एक दिन उत्साह भरा हुआ है अर्थात् उत्सव है। तो उमंग-उत्साह है तो हर दिन उत्सव है इसलिए पक्का रखना, राज अपना चलते फिरते भी चार्ट देखना। चेक करना, चेक करेंगे तो चेंज करेंगे ना। चेक ही नहीं करेंगे तो चेंज कैसे करेंगे!

तो आज नये साल के लिए बापदादा का विशेष यही संकल्प है कि हर बच्चा जैसे पुराने वर्ष को विदाई देते हो वैसे माया को विदाई दो। व्यर्थ संकल्प को विदाई दो क्योंकि मैजारिटी यही देखा गया है कि व्यर्थ संकल्प ज्यादा आते हैं। ज्यादा विकारी संकल्प कम हैं, हैं कम लेकिन व्यर्थ जो हैं, उसका नाम निशान समाप्त हो जाए, हर संकल्प समर्थ हो, व्यर्थ नहीं हो क्योंकि व्यर्थ संकल्प में, सिर्फ संकल्प नहीं चलता लेकिन व्यर्थ टाइम भी जाता और बाप समान बनने में दूरी हो जाती है। आपकी चाहना तो है समान बनें, तो हाथ तो उठाया है। लेकिन बापदादा सदा कहता है कि मन का हाथ उठाना, यह हाथ उठाना तो इजी है। तो विदाई देने की हिम्मत है? है हिम्मत? हाथ उठाओ। अच्छा, हिम्मत वाले हैं। बस हिम्मत को कायम रखना। अगर हिम्मत होगी तो जो लक्ष्य रखा है वह हो ही जायेगा क्योंकि बापदादा भी साथ है। बापदादा चाहते हैं कि मेरा कोई भी बच्चा पीछे नहीं रह जाए। हाथ में हाथ देके चले। शिव बाप निराकार है, हाथ नहीं है लेकिन श्रीमत ही उनके हाथ हैं। श्रीमत पर कदम-कदम चलना अर्थात् हाथ में हाथ देके चलना। तो सभी को नये वर्ष की नव जीवन की और नव युग की तीनों की पदम पदमगुणा मुबारक हो।

अच्छा जो इस बारी नये आये हैं वह उठ खड़े हो जाओ। अच्छा। बहुत आये हैं। आधा संगठन तो नया है। तो आपको सभी नये आने वालों को, सारे ब्राह्मण परिवार, बापदादा सबके तरफ से मधुबन आने का मुबारक है, मुबारक है, मुबारक है। मुबारक के साथ एक बात याद रखना तो अभी कामन पुरूषार्थ का समय गया, अभी समय है तीव्र पुरूषार्थ का, तो आप सभी लेट आये हो लेकिन बापदादा के प्यारे हो। टू लेट के बजाए लेट आये हो, बापदादा खुश है कि फिर भी लक के समय पहुंच गये हो इसलिए जो भी आये हो, बापदादा के प्यारे हो इसलिए चलना नहीं उड़ना। अभी चलेंगे ना तो नम्बर आगे नहीं ले सकेंगे इसीलिए उड़ती कला में चलना। चलना नहीं उड़ना। तो उड़ना तो फास्ट होता है ना। तो उड़ती कला से आगे जा सकते हो। यह मार्जिन है। इसी को ही तीव्र पुरूषार्थ कहते हैं। तो क्या करेंगे? उड़ेंगे। उड़ेंगे? अच्छा। जो भी बातें ऐसी आवे जो बेकार हैं, आनी नहीं चाहिए लेकिन आ जाती हैं क्योंकि पेपर तो होना है ना! तो क्या करेंगे? अगर ऐसी कोई बात आवे तो बापदादा को दे देना। देना आता है ना! लेना तो आता है लेकिन देना भी आता है ना। छोटे बन जाना। जैसे छोटे बच्चे होते हैं ना वह क्या करते हैं कोई भी चीज़ पसन्द नहीं आती है तो क्या करते हैं? मम्मी यह आप सम्भालो। ऐसे ही छोटे बनके बाप को दे दो। फिर अगर आवे, आयेगी, बापदादा ने देखा है कि बहुत समय रखी है ना, तो छोडने से फिर आती भी है लेकिन अगर आवे भी तो यही सोचना कि दी हुई चीज़ यूज की जाती है क्या! देना अर्थात् आपके पास आई, तो अमानत आई। आपने तो दे दी ना! तो आपकी रही नहीं। अमानत में ख्यानत नहीं करना चाहिए। आपको मदद मिलेगी तो यह मेरी नहीं है, यह अमानत है। मैंने दे दी इसमें फायदा हो जायेगा। क्योंकि समय कम है और पुरूषार्थ आपको तीव्र करना है। तो जो भी नये आये हैं बापदादा उन्हों को लक्की और लवली कहते हैं, जो आ तो गये अभी मेरा बाबा कहा है ना। हाथ उठाओ जो कहते हैं मेरा बाबा। जो भी आये हैं, मेरा बाबा कहते हैं। तो जब मेरा बाबा कहा तो और कोई मेरा है क्या! बाबा ही मेरा है ना। तो बाप पर अधिकार रख वरके अमानत समझके बाप को दे दो। अपने पास आने नहीं देना। अच्छा है। फिर भी बाप को खुशी है, बाप को पहचान तो लिया। अभी सिर्फ यह ध्यान पक्का-पक्का रखना, उड़ना है, चलना नहीं है उड़ना है। अच्छा, बहुत हैं। अच्छा ब्राह्मणियाँ जो हैं क्लास टीचर्स, उन्हों को भी अपने नये भाई-बहिनों के ऊपर क्षमा करनी है। हर सप्ताह इन्हों का हालचाल पूछते रहना, कोई प्रॉबलम तो नहीं है! और कोई भी प्रॉबलम हो तो सुना देना, उसका निवारण ले लेना। छोड़ नहीं देना। आया और गया, दिल में रखना नहीं। अच्छा। सारे परिवार की भी मुबारक है।

सेवा का टर्न गुजरात ज़ोन का है:- (8 हजार गुजरात के हैं) बापदादा ने पहले भी कहा था गुजरात अर्थात् गुजर गई रात। तो गुजरात में सदा ही आगे से आगे बढ़ने और बढ़ाने का उमंग-उत्साह रहता भी है और रहना भी चाहिए क्योंकि गुजरात में भी, महाराष्ट्र में भी हैं लेकिन गुजरात में भी संख्या या सेन्टर कम नहीं हैं। तो गुजरात में सेवा तो चारों ओर है, गीता पाठशालायें भी बहुत हैं लेकिन अभी रहा हुआ काम क्या है? अभी गुजरात को हर एक सेन्टर, गीता पाठशाला की बात छोडो, अपने-अपने सेन्टर के वारिसों की लिस्ट निकालनी चाहिए। वारिस, स्टूडेन्ट नहीं वारिस उनकी लिस्ट गुजरात में सबसे बड़ी होनी चाहिए क्योंकि बापदादा समय की सूचना तो दे रहे हैं तो समय अनुसार अभी नये वर्ष में यह भी सेवा में अटेन्शन देना है। सभी ज़ोन वालों को भी कहते हैं कि यह ज़ोन में लिस्ट निकालो, कि सभी ज़ोन में से वारिसों की लिस्ट में नम्बरवन कौन है? क्योंकि अभी गोल्डन एज के लिए राजाई तैयार करनी है ना! तख्त पर तो लक्ष्मी नारायण ही बैठेंगे, एक ही बैठेंगे लेकिन जो वहाँ की राज्य अधिकारी सभा है, वह भी तो बनानी है ना। रॉयल प्रजा भी बनानी है, साधारण प्रजा भी बनानी है। तो ऐसे वारिस बनाओ जो सम्बन्ध-सम्पर्क में अभी भी नजदीक हों और वहाँ भी नजदीक हों। जो वारिस होगा उसकी निशानी क्या होगी? एक तो वारिस अर्थात् हर श्रीमत पर चलने वाले। बाप ने कहा और बच्चे ने किया। हर कार्य में चाहे मन्सा, चाहे वाचा, चाहे कर्मणा, चाहे सम्बन्ध सम्पर्क में फैमिली लाइफ वाला हो, आने वाला स्टूडेन्ट नहीं फैमिली नेचर वाला हो। फैमिली का अर्थ होता है एक दो को जानना और एक दो को समझकर चलना, परिवार में भी ठीक हो और 4 निश्चय जो सुनाये थे, 4 ही निश्चय में जो वारिस होगा वह प्रैक्टिकल लाइफ में हो। सारे परिवार का प्यारा होगा, कोई का प्यारा कोई का नहीं, नहीं। सारे परिवार का प्यारा होगा। तो ऐसे वारिस क्वालिटी अभी वह चाहिए। प्रजा तो बनती जायेगी, साधारण प्रजा। लेकिन अभी नजदीक वाले वारिस क्वालिटी बनाओ। राजधानी तो यहाँ ही तैयार करनी है ना। इसलिए इसमें कौन सा ज़ोन वारिस क्वालिटी में नम्बरवन है, यह इस वर्ष में देखना है और दूसरा काम दिया था वर्ग वालों को, एक वारिस बनाना और दूसरा जो सम्बन्ध सम्पर्क में हैं उन्हों को माइक बनाना। तो माइक और वारिस यह दोनों बनाना, अभी समय है। जैसा समय बीतता जायेगा तो उसमें बहुत समय का पुरूषार्थ कम हो जायेगा। इसलिए गुजरात कमाल करेगा ना! अच्छा है। गुजरात में टीचर्स भी बहुत हैं। टीचर्स हाथ उठाओ। देखो कितनी टीचर्स हैं तो एक-एक सेन्टर एक-एक वारिस तो निकालो और पुराने सेन्टर हैं। बापदादा के डायरेक्ट इशारे से गुजरात की सेवा आरम्भ हुई है तो बापदादा की दृष्टि से गुजरात हुआ है। वह भी तो काम करेगी ना। हैण्डस अच्छे हैं। कर सकते हैं। करने वाले हैं और कर भी सकते हैं। तो सेन्टर ने प्रोग्राम तो बहुत किये हैं और अच्छे करते हैं। प्रोग्राम अच्छे किये हैं अभी वारिस में नम्बरवन जाओ। ठीक है! करेंगे? टीचर्स हाथ उठाओ। तो इस वर्ष में, वर्ष के अन्दर जितनी टीचर हैं उतने वारिस मधुबन में लायेंगे। लायेंगे? हाँ आज तो गुजरात का टर्न है इसलिए उसको कह रहे हैं लेकिन बापदादा सभी ज़ोन को कह रहा है। नम्बरवन कौन जाता है उसको प्राइज देंगे। जो वन नम्बर जायेगा उसको अच्छी प्राइज देंगे। सभी ज़ोन वाली जो बैठी हैं ना वह हाथ उठाओ। और कौन है? भाई भी उठाओ। ठीक है। उठाया। अच्छा है। अभी देखेंगे पहला नम्बर कौन जाता है। क्वालिटी भी देखेंगे। वारिस तो बनाया लेकिन उसकी क्वालिटी क्या है! क्योंकि बापदादा अभी समय की सूचना बार-बार दे रहे हैं। फिर नहीं कहना हमने तो समझा अभी टाइम पड़ा है क्योंकि अपने को भी सम्पन्न बनाना है, सेवा में भी आगे जाना है दो काम हैं। एक पुरूषार्थ, पुरूषार्थ में एक याद और दूसरी सेवा दोनों में नम्बरवन हो। तीसरा स्वभाव संस्कार उसमें परिवर्तन। यह नहीं कोई कहे यह है तो अच्छा, है तो अच्छा.. नहीं कहे। है अच्छा। इसको कहा जाता है अच्छे ते अच्छा क्योंकि हालतें बदलती जायेंगी। आप चाहते हुए भी सेवा नहीं कर सकेंगे। बातें ऐसी होंगी जो व्यर्थ संकल्प चला देंगी। इसलिए तीव्र पुरूषार्थ, धरनी पर पांव नहीं हो, उड़ते रहो। फरिश्ते के पांव धरती पर नहीं दिखाते हैं। तो स्थूल पांव नहीं लेकिन यह स्थिति के पांव। तो गुजरात बापदादा के मधुबन के सहयोगी बहुत हैं। नजदीक हैं ना। तो कभी भी कोई भी बात हो तो पहले किसको बुलावा होता है? आते हैं ना फोन, गुजरात से इतने भेज दो। अच्छा है। नजदीक का फायदा है, प्राप्ति भी है। इसलिए गुजरात के जो रेग्युलर स्टूडेन्ट हैं उन सबको बापदादा की एक-एक श्रीमत पर चलने वाला सैम्पुल बनना है। कोई भी सेन्टर पर जाये तो ऐसे दिखाई दे कि यह सब बापदादा के नजदीक वाले रत्न हैं। ठीक है! स्टूडेन्ट समझते हैं हाथ उठाओ, ऐसा, कोई भी श्रीमत कम नहीं हो। ठीक है हिम्मत वाले हैं। अच्छी हिम्मत है।

ज्युरिस्ट, कलचरल और सिक्युरिटी विंग:- अच्छा है तीनों ही विंग अपना-अपना कार्य अच्छा बढ़ा रही हैं। बापदादा ने देखा है कि हर एक को उमंग रहता है कि हमको करना है लेकिन अभी जो बापदादा ने काम दिया है कि ऐसे माइक तैयार करो जो सभा में एक एक्जैम्पुल दिखाये, जो वायुमण्डल है तो ब्रह्माकुमार बनने से कारोबार नहीं कर सकेंगे, वह अनुभव सुनने से प्रैक्टिकल देखे कि यहाँ एक नहीं है, एक वर्ग के भी अनेक हैं। तो प्रैक्टिकल अनुभवी देखने से उमंग आता है और सहज भी लगता है कि हम भी ऐसे कर सकते हैं। तो विंग में रेग्युलर स्टूडेन्ट बनाने की सेवा बहुत अच्छी हो सकती है। जितनी भी आपने सेवा की है उससे रेग्युलर स्टूडेन्ट कितने बने हैं? जब से वर्गों की सेवा शुरू हुई है तब से लेके अब तक रिजल्ट निकालो कि हर एक वर्ग वालों के स्टूडेन्ट रेग्युलर कितने बने हैं! और कौन सी क्वालिटी वाले बने हैं? क्योंकि काफी समय वर्ग की सेवा चली है और करते सभी प्यार से हैं। क्योंकि चांस मिला है, अलग-अलग सेवा करने का। इसीलिए अभी यह रिजल्ट निकालो। कनेक्शन वाले कितने हैं? रेग्युलर कितने हैं? जो रेग्युलर होंगे उनका तो चार्ट अच्छा ही होगा। तो हर एक वर्ग वाले यह रिजल्ट निकाले, कभी कभी आने वाले तो होते हैं। कोई फंक्शन में आ गये, कोई प्रोग्राम में आ गये लेकिन बाप के बने कितने? क्योंकि यह कार्य चलता ही रहता है तो रिजल्ट भी तो निकलनी चाहिए। अच्छा है। यह तीनों ही विंग बापदादा ने देखा है कि उमंग उत्साह से आपस में मीटिंग भी करते हैं बीच-बीच में उत्साह दिलाने के पत्र व्यवहार भी करते हैं और रिजल्ट तो होगी ही क्योंकि हर वारी हर वर्ष बापदादा भी डायरेक्शन देते रहते हैं तो अच्छा है सेवा का चांस लेते हैं। सब सन्तुष्ट हैं? तीनों के हेड हाथ उठाओ। अच्छा। तो आपके विंग में जो भी आते हैं, मीटिंग करते हैं, प्रोग्राम बनाते हैं, आपस में मिलते रहते हैं तो सभी उमंग उत्साह में हैं?जो प्लैन बनता है, मानो मीटिंग में प्रोग्राम बना लेकिन जो सभी ज़ोन हैं उसमें जो आपका प्लैन बना, वह आपके विंग का मेम्बर उसी अपनी एरिया में प्रैक्टिकल में लाते हैं, यह समाचार आप लेते रहते हो? क्योंकि विंग का बड़ा आफिस तो एक सेन्टर पर होता है लेकिन सेवा सारे जोन में होनी है, सिर्फ एक दो में नहीं, जो मेम्बर हैं वह अपने स्थान में तो कराते होंगे लेकिन जिस सेन्टर के मेम्बर नहीं हैं वहाँ भी आपने जो प्लैन बनाया वह चला क्योंकि वर्ल्ड की बात है ना यह। तो यह भी अटेन्शन रखो रिजल्ट मांगो, एक-एक सेन्टर ने प्रैक्टिकल में लाया और मुश्किल क्या है, नहीं लाया तो क्या मुश्किल है? उसको विंग वाले सैलवेशन दें। जैसे अभी प्रोग्राम किया, एक साथ किया तो उसका प्रभाव अलग होता है ऐसे एक ही प्रोग्राम विंग का सभी जगह चले तो वह नाम बाला हो जायेगा। ऐसे रिपोर्ट लो और सभी शहरों में हर एक विंग का काम चलना चाहिए। तभी तो नाम बाला होगा ना। बाकी बापदादा खुश है। मेहनत करते हैं, तीनों ही अपना-अपना नाम समझना। काम कर रहे हैं लेकिन फैलाओ। हर स्थान से ऐसा कोई नामीग्रामी निकले। उसको उमंग दिलाना पड़ेगा। ठीक है ना! अच्छा।

60 देशों से 650 डबल विदेशी भाई बहिनें आये हैं:- पहले फॉरेन का यूथ ग्रुप उठे। अच्छा है। फॉरेन में यूथ ग्रुप सेवा कर रहा है। यह बापदादा ने समाचार भी सुना है और बापदादा को अच्छा लगा है कि ऐसे विशेष यूथ फॉरेनर्स तैयार हो जो एक दिन दिल्ली में सारे यूथ नहीं लेकिन थोड़े-थोडे फॉरेन के थोड़े यहाँ के ऐसे ग्रुप बनाके दिल्ली में प्राइम मिनिस्टर या जो बड़े मिनिस्टर हैं उनसे मिलने जावें, वह प्रैक्टिकल देखें तो फॉरेन वाले भी यूथ बदल रहे हैं। इन्डिया वाले भी बदल रहे हैं क्योंकि गवर्मेन्ट को अभी यूथ की प्रॉबलम ज्यादा है तो ऐसे समय पर अगर गवर्मेन्ट के पास प्रैक्टिकल देखे, एक्जैम्पुल देंखे तो वह समझेंगे और गवर्मेन्ट का जो विशेष वर्ग का मिनिस्टर है उस वर्ग वाले उनके पास खास जाके मिले तो वह समझे कि ऐसे दु:ख और अशान्ति के वायुमण्डल में, एक तरफ दु:ख अशान्ति दूसरे तरफ तमोगुणी वायब्रेशन, दोनों के बीच यह यूथ परिवर्तन कर चल रहा है तो उनका संस्था के तरफ अटेन्शन जायेगा। हर वर्ग अपने मुख्य जो मिनिस्टर हों, प्राइममिनिस्टर नहीं उसके वर्ग का मिनिस्टर, कम से कम उसके पास छोटा ग्रुप ही जाये जो समाचार सुनावे। सारे मिनिस्ट्री में यह पता पड़ जायेगा तो यह सब वर्गो की सेवा करते हैं। अच्छा है। बापदादा भी यूथ ग्रुप में परिवर्तन देख खुश होते हैं। लेकिन ऐसे यूथ जायें जो स्वयं अपने से सन्तुष्ट हों। प्रैक्टिकल लाइफ में हो। भले कोई सुनाये नहीं सुनाये लेकिन बाप का नियम है कि एक्जैम्पुल वह बनें जो पहले खुद में सन्तुष्ट हो। और यूथ प्रॉबलम अपनी हल करने के लिए जो भी निमित्त हैं उनकी मदद लें। कुछ भी हो अपनी कमज़ोरी मिटाना ही है। ऐसे यूथ वायबे्रशन फैला सकते हैं। आवाज फैला सकते हैं। जैसे जैसे आवाज फैलेगा वैसे वैसे इस कार्य का दुनिया में प्रभाव पड़ेगा। तो ग्रुप वाले जो ग्रुप निमित्त बने हैं उनको बहुत अपनी सम्भाल करनी है, पूरा एक्जैम्पुल बनना है। ठीक है ना। सब यूथ ठीक हैं। हाथ उठाओ। तो बापदादा आप सभी को देखके बहुत-बहुत खुश है। ऐसे एक्जैम्पुल बहुत कार्य करेंगे। अभी तो आप जायेंगे फिर आपको खुद निमन्त्रण देंगे। अच्छा है। बढ़ रहे हो और बढ़ते चलो, बापदादा की यही सारे यूथ, इन्डिया के यूथ या फॉरेन के यूथ दोनों में बहुत बहुत शुभ आशायें हैं। बधाई भी है और आशायें भी हैं। अच्छा।

डबल विदेशी छोटे बच्चे:- यह एक ही ग्रुप है बच्चों का। (बच्चों ने गीत गाया - छोटे-छोटे फूल हैं हम और किसी से नहीं हैं कम) सभी बच्चे फूल बनकर ही रहते हो ना। जो बाप की श्रीमत है उस पर चलते हो? जो चलता है वह हाथ उठाओ। अच्छा। अच्छा है लक्की बच्चे हो जो छोटेपन में ही बाप का मिलन हो गया। और सभी आपको देख खुश हो रहे हैं। ऐसा भी दिन आयेगा जो बड़े बड़े लोग, बड़ी बड़ी कम्पन्नी वाले आप बच्चों को बुलायेंगे, ऐसे तकदीरवान बच्चे कौन हैं जो ऐसे बने हैं इसीलिए हर बच्चा अपनी धारणायें पक्की रखना। कभी भी कोई धारणा भूलना नहीं क्योंकि आप बापदादा और लौकिक बाप तीन के बच्चे हो। तो कमाल दिखायेंगे ना। तो सभी बहुत अच्छी कमाल करके दिखाना। अच्छा।

सभी डबल विदेशी भाई बहिनों से:- अच्छा, सिन्धी ग्रुप भी आया है, बहुत अच्छा। प्यार है ना बाबा से। बाप से प्यार है ना बहुत। बाप भी याद करते हैं क्यों? क्यों याद करते हैं? सिन्ध में ही बाप आया ना! तो जिस देश में आया वहाँ की सौगात तो होनी चाहिए ना। इसीलिए बाप कहते हैं कि सिन्धी ग्रुप ऐसा कोई कार्य करके दिखावे जो अनेक सिन्धी आत्माओं की सेवा के निमित्त बनें।

बापदादा को अच्छा लगता है कि हर सीजन में फॉरेनर्स मधुबन के श्रृंगार बनते हैं। अच्छा उमंग उत्साह है, 60 देशों से आये हैं तो इतनी सेवा है ना। और जो भी जिस देश में हैं वहाँ सेवा के बिना तो रह नहीं सकते। जो भी मिलता होगा उसको क्या सुनायेंगे? और बातों में तो जायेंगे नहीं तो इतने देशों में सेवा हो रही है ना। अभी तो औरों को सन्देश देने के लिए फॉरेनर्स के अच्छे-अच्छे ग्रुप बन गये हैं। भिन्न भिन्न कोर्स भी कराते हैं। तो बापदादा ने देखा जैसे भारत वाले सेवा फैला रहे हैं ऐसे फॉरेनर्स भी सेवा फैलाते रहेंगे तो सारे विश्व में बाप का सन्देश तो पहुंच जायेगा। फॉरेन वाले भी अपनी अपनी एरिया में कोशिश कर रहे हैं, किया भी है तो आस पास में कोई न कोई प्रोग्राम बनाके भी सन्देश दे दो। तो बापदादा को अच्छा लगता है जो सेवा में भिन्न- भिन्न प्रोग्राम करते रहते हैं, सन्देश देते रहते हैं वह हाथ उठाओ। सेवा करते रहते हैं, करते हैं ना! क्यों? बाप कहते हैं मेरा एक-एक बच्चा पैगाम देने वाला पैगम्बर है। पैगाम तो देते हो ना! तो हर बच्चा पैगम्बर है, पैगाम देने वाला है। किसी से भी मिलेंगे तो क्या बात करेंगे? कम से कम अनुभव तो जरूर सुनायेंगे ना। तो सन्देश तो दिया ना! तो बापदादा को भी अच्छा लगता है। और फॉरेनर्स को बापदादा खास क्यों याद करता है? करते तो सभी बच्चों को हैं लेकिन फॉरेनर्स को खास भी याद करता है क्यों याद करता? कि यही एक ब्रह्माकुमारियों की स्टेज है जहाँ एक ही स्टेज पर सब भिन्न-भिन्न धर्म वाले, भिन्न-भिन्न डे्रस वाले, एक ही डे्रस वाले बन स्टेज पर बैठते हैं। अभी आप किस ड्रेस में बैठते हैं? सफेद ड्रेस में बैठते हैं, तो धर्म मुस्लिम भी क्रिश्चियन भी, बौद्धी भी सब एक स्टेज पर बैठते हैं और एक परिवार के बन गये। यह विशेषता बहुत अच्छी है। सभी सेवा करते हो ना! अभी नया वर्ष आ रहा है ना तो नया वर्ष का फायदा उठाना, अपने अपने कनेक्शन वालों को यह बात सुनाना, गिफ्ट देना, कहना कि हमारी गिफ्ट न्यारी है। हर एक सम्बन्धी को, कनेक्शन वाले को मुबारक देने जाना और गिफ्ट देना कोई न कोई गुण या शक्ति की, कहना हम आपको सबसे न्यारी गिफ्ट देने आये हैं। इस गिफ्ट से आपका वर्तमान और भविष्य बहुत अच्छा बन जायेगा उनको ऐसी अच्छी अच्छी बातें सुनाना। क्योंकि नया वर्ष एक चांस है सेवा करने का। अच्छा बापदादा खुश है, फॉरेन सेवा पर खुश है। संगठन भी अच्छा करते हैं। अभी और आगे बढ़ते जाना। हर कार्य में आगे से आगे बढ़ते रहना। अच्छा। पीछे बैठने वाले उठो।

पीछे बैठने वालों को बापदादा वरदान देते हैं मधुबन में मेले में आये हो ना। तो मधुबन के मेले में जो भी आये हैं, पीछे बैठने को मिला है तो ऐसे नहीं समझना कि हम पीछे वाले हैं, जो पीछे बैठे हैं ना वह बाप के दिल में हैं। (आने वाले 22 हजार से ऊपर हैं, टोटल 25 हजार का ग्रुप है, बाहर सब जगह बैठे हैं) भले आये, मौसम को नहीं देखा, जगह को नहीं देखा, सर्दी को नहीं देखा, टेन्ट में भी सोये हैं। जो टेन्ट में सोये हैं ना, बापदादा सभी टेन्ट में खास चक्र लगाने आया था। पीछे बैठे हुए को बापदादा अपने दिल में समाते हैं। इसलिए बापदादा का जो भी जहाँ बैठे हैं वहाँ उन्हों को बापदादा सामने नयनों में समाकर यादप्यार भी दे रहे हैं, मुबारक भी दे रहे हैं। अभी तो दिनप्रतिदिन अपना ब्राह्मण परिवार बढ़ना ही है। तो बापदादा भी परिवार को देख खुश होते हैं, वाह ईश्वरीय परमात्म परिवार वाह! अच्छा।

आज 12 बजे तक बैठना है। साथ बैठने का चांस है।

अभी चारों ओर के देश विदेश के हर एक बाप के प्यारे, बाप के लाडले, बाप के सिकीलधे बच्चों को विदाई और बधाई। और बापदादा ने सुनाया कि पुराने वर्ष के साथ पुराने संस्कार को भी विदाई देने वाले, स्वभाव को भी विदाई देने वाले महावीर बच्चे, हर कदम में पदमों की कमाई करने वाले बापदादा जो सदा स्वमान देते हैं, उस स्वमान की स्थिति में रह अनुभव करने वाले, हर एक बच्चे को बापदादा ऐसे रूप में देखते कि यह एक एक बच्चा 21 जन्म के वर्से के अधिकारी, सारे कल्प में 21 जन्म के अधिकारी बनने का वर्सा आप बच्चों को ही मिलता है। तो ऐसे श्रेष्ठ अधिकारी चारों ओर के बच्चों को बापदादा, बाप शिक्षक और गुरू के रूप से तीनों ही रूपों से यादप्यार और नमस्ते दे रहा है।

दादी रूकमणी से:- अच्छा है शरीर को चलाना आता है। मन की जवानी है, मन जवान है। अच्छा है। लेकिन सेवा की साथी तो बनकर रही है ना। अच्छा।

परदादी से:- अच्छा है इसको भी चलना अच्छा आता है। चलाने वाले भी अच्छे हैं चलना भी अच्छा आता है।

तीनों भाईयों से:- नये वर्ष में कुछ नया करके दिखायेंगे ना। (नये वर्ष में क्या नवीनता करना है?) एक तो परिवार को अपनी स्थिति में पावरफुल बनाने के प्लैन और दूसरा सेवा में नये नये प्रकार के, जैसे फंक्शन किया, यह भी एक तरीका हुआ लेकिन अभी दूसरे प्रकार से कोई ग्रुप-ग्रुप को उन्हों का बड़ा संगठन करके जैसे वकील है, जज है, उनके ग्रुप को अलग सारे ज़ोन को इकठ्ठा करे एक बड़े स्थान पर और हों अलग-अलग वर्ग के लेकिन ज़ोन वाइज हर वर्ग के इकठ्ठे हो। ऐसा बड़ा संगठन, भले टेंट लगाओ बड़े स्थान पर लेकिन ऐसा-ऐसा एक एक ग्रुप की रिजल्ट निकालो और उनका कनेक्शन जोड़ो कि इसके बाद आपको क्या करना है। भाषण सुनकर चले जावें नहीं, लेकिन भाषण के बाद आप जितने भी चाहें यह यह कर सकते हो और उनका प्रोग्राम बनाओ कि कनेक्शन में रहें, फोन द्वारा कनेक्शन रखें, लिखापढ़ी द्वारा रखें, कनेक्शन उसका बढ़ता जाए। एक एक प्रोग्राम बड़े-बड़े स्थान पर हो। कहाँ वकीलों का रखो, कहाँ नेताओं का रखो। ऐसे बड़े-बड़े स्थान पर ग्रुप को नजदीक लाओ, मिक्स ग्रुप भी हो। दोनों प्रकार का कर सकते हो, एक वर्ग का ग्रुप होता है तो सबका अटेन्शन जाता है। मिक्स करने से अटेन्शन कम जाता है। दोनों करके देखो। एक जगह वह करो, एक जगह वह करो दोनों की रिजल्ट देखो फिर आगे का प्रोग्राम बनाओ।

ओमेक्स कम्पन्नी के चेयरमैन भ्राता रोहतास गोयल तथा उनके परिवार से:-

जैसे बिल्डिंग का काम सफल हो रहा है ना, ऐसे यह सेवा का काम भी सफल करना। जहाँ भी जाओ वहाँ सन्देश दे दो। जाना तो है ही तो सन्देश तो दे सकते हो। सेन्टर्स की बहनें कोर्स करावे लेकिन आप सन्देश दो। तो आपको जो अनुभव हुआ है, वो अनुभव सुनाओ। आप कनेक्शन रखो और दूसरों का कनेक्शन जुडवाओ। अच्छा है। सभी मिलके सन्देशवाहक बनो, जायेंगे सेन्टर पर। एड्रेस दो, फोन पर कनेक्शन रखो बस। पैगम्बर बनो, पैगाम दो। सभी अच्छे हैं। सभी सेवा कर सकते हैं।

सभी अच्छे हैं, उमंग उत्साह में हैं उन्हों को सन्देश देकर उमंग दिलाओ। दु:खी हैं उन्हों को सुख का सन्देश दो। देखो, यह आयु में भी अनुभवी है तो बहुत सेवा कर सकते हैं।

2009 की विदाई 2010 की बधाई - रात्रि 12 बजे के बाद:-

सभी ने हैपी न्यु ईयर कहा, लेकिन हम आप सभी के लिए सदा हैपी है, आज की दुनिया के हिसाब से हैपी न्यु ईयर किया लेकिन संगमयुग का हर दिन हमारा उत्सव है। सदा उत्सव रहता है क्योंकि उत्साह रहता है। संगमयुग का हैपी संगमयुग है। तो आप सभी को बहुत-बहुत-बहुत परिवर्तन की मुबारक हो, मुबारक हो, मुबारक हो। जैसे नया वर्ष है वैसे नये संस्कार, पुराने संस्कार को विदाई और नये संस्कार का आगमन इसीलिए सदा ही हर्षित है और सदा ही हर्षित रहेंगे, हमारे लिए आपके लिए हर वर्ष कल्याणकारी है, आगे बढ़ने बढ़ाने वाला है इसलिए सदा हैपी, हैपी, हैपी।



18-01-10   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


‘‘ब्रह्मा बाप समान नष्टोमोहा स्मृति स्वरूप बनने के लिए, मन का टाइमटेबल बनाकर कर्म करते कर्मयोगी अशरीरी बनने का अभ्यास करो’’

आज चारों ओर के बच्चों में विशेष स्नेह समाया हुआ है। आज के दिन को कहते ही हैं स्मृति दिवस। बापदादा ने अमृतवेले से चारों ओर देखा, चाहे देश में, चाहे विदेश में सभी बच्चों के दिल में बाप के स्नेह की तस्वीर दिखाई दी। और बाप के दिल में भी हर एक बच्चे के स्नेह की तस्वीर समाई हुई थी। आज के दिन को विशेष स्नेह का, स्मृति का दिवस कहते हो। बापदादा ने अमृतवेले से भी पहले बच्चों के तरफ से अनेक स्नेह के मोतियों की मालायें देखी। हर एक बच्चे के दिल में आटोमेटिक यह गीत बज रहा है - मेरा बाबा, ब्रह्मा बाबा, मीठा बाबा। और बापदादा के दिल में यह गीत बज रहा है मीठे बच्चे, प्यारे बच्चे। आज हर एक के अन्दर और शक्तियों के सिवाए स्नेह की शक्ति ज्यादा समाई हुई है। यह परमात्म स्नेह, ईश्वरीय स्नेह सिर्फ संगमयुग पर ही अनुभव होता है। यह परमात्म स्नेह जो अनुभवी जाने, हर एक बच्चे को सहजयोगी बना देता है। बापदादा ने देखा सर्व बच्चों में स्नेह का अनुभव बहुत-बहुत समाया हुआ है। आप सबका जन्म का आधार स्नेह है। ऐसा कोई भी बच्चा नहीं दिखाई देता, और शक्तियां कम भी हों लेकिन बाप का स्नेह या निमित्त बनी हुई विशेष आत्माओं के स्नेह का अनुभव मैजारिटी सभी के दिल में, चेहरे में दिखाई देता है। अभी आप सबको आज विशेष यहाँ तक किसने पहुंचाया? किस विमान में आये? ट्रेन में आये या विमान में आये? सबकी सूरत में स्नेह के प्लेन से पहुंच गये। कुछ भी करना पड़ा लेकिन स्नेह के प्लेन में सभी पहुंच गये हो।

आज के दिन को स्मृति दिवस कहा जाता है लेकिन स्मृति दिवस के साथ-साथ समर्थी दिवस भी कहा जाता है। आज के दिन को ताजपोशी का दिन भी कहा जाता है क्योंकि आज के दिन बापदादा ने विशेष ब्रह्मा बाप ने निमित्त बने हुए महावीर बच्चों को विश्व सेवा का ताज पहनाया। बाप, ब्रह्मा बाप खुद अननोन हुए और बच्चों को विश्व सेवा के स्मृति का तिलक दिया। बच्चों को करनहार बनाया और स्वयं करावनहार बनें। अपने समान फरिश्ते रूप का वरदान देकर लाइट का ताज पहनाया और बापदादा ने जो ताज, तिलक का वरदान दिया, उसी प्रमाण बच्चों का कर्तव्य देख खुश है। बच्चों ने सेवा का वरदान कार्य में लाया, यह देख बापदादा खुश है। अभी तक जो पार्ट बजाया है और आगे भी बजाना है, उसकी पदमगुणा ब्रह्मा बाप विशेष मुबारक दे रहे हैं। वाह बच्चे वाह! विदेश में भी चक्कर लगाया तो क्या देखा? हर बच्चा स्नेह में समाया हुआ है। जो बाप द्वारा समार्थियाँ मिली हैं क्योंकि यह दिन विशेष स्नेह से समार्थियों का वरदान प्राप्त करने का दिन है। बापदादा ने देखा कोई-कोई बच्चे बहुत अच्छे लगन में याद में, सेवा में लगे हुए हैं। अमृतवेला बहुत अच्छी रीति से अनुभव करते हैं। अशरीरीपन का भी अनुभव करते हैं लेकिन जब कर्मयोगी बनने का समय आता है तो दोनों काम योगी का भी और कर्म का भी, दो काम इकठ्ठा करने में फर्क पड़ जाता है। पुरूषार्थ करते हैं कि कर्म और योग का बैलेन्स हो लेकिन जैसे अमृतवेले शक्तिशाली अवस्था का अनुभव करते हैं, वैसे कर्म में फर्क पड़ जाता है, मेहनत करनी पड़ती है और बापदादा ने सभी बच्चों को कह दिया है कि विश्व का विनाश अचानक होना है, अगर सारा दिन अटेन्शन के बजाए, किसी भी धारणा की कमी होने के कारण कर्मयोगी की स्टेज में फर्क आता है तो विश्व के विनाश की डेट तो बापदादा अनाउन्स नहीं करेंगे लेकिन अपना जीवन काल समाप्त कब होना है, यह मालूम है? कोई को मालूम है कि मेरा मृत्यु फलानी डेट पर होना है, है मालूम? वह हाथ उठाओ। अचानक कुछ भी हो सकता है, कोई प्रकृति का कारण बनता है तो कितने का मृत्यु साथ में हो जाता है। तो विश्व के डेट के संकल्प से अलबेला नहीं बनना। आपकी जगदम्बा का स्लोगन था - तो कभी भी कब नहीं कहो, अब। कल कुछ भी हो जाए लेकिन मुझे एवररेडी रहना ही है। तो इतनी तैयारी सबके अटेन्शन में है? अपना कर्मों का हिसाब चुक्तू किया है? चार ही सबजेक्ट ज्ञान, योग, सेवा और धारणा, चार ही तरफ, चारों में ऐसी तैयारी है? पूरा बेहद के वैराग्य का अनुभव चेक किया है? अपनी दिल में यह चेक किया है कि एवररेडी हैं? नष्टोमोहा स्मृति स्वरूप क्योंकि ब्रह्मा बाप ने भी स्वयं को पुरूषार्थ करके ऐसा बनाया जो अनुभवी बच्चों ने देखा, कोई भी तरफ यह वातावरण नहीं था, कोई हिसाब किताब का, अचानक अशरीरी बनने का अभ्यास अशरीरी बनाकर उड़ गये। कोई ने समझा कि ब्रह्मा बाप जाने वाले हैं! लेकिन नष्टोमोहा, बच्चों के हाथ में हाथ होते कहाँ आकर्षण रही? फरिश्ता बन गये। बच्चों को फरिश्ते बनाने का तिलक दे गये। इसका कारण बहुत समय अशरीरीपन का अभ्यास रहा। कई अनुभवी बच्चे जो साथ रहे हैं उन्होंने अनुभव किया, कर्म करते करते ऐसे अशरीरी बन जाते। तो यह जो कर्मयोग में अन्तर पड़ जाता है, इसका कारण कर्म करते यह स्मृति में इमर्ज नहीं होता, मैं आत्मा हूँ, यह तो सब जानते ही हैं लेकिन मैं आत्मा, कौन सी आत्मा हूँ? मैं करावनहार आत्मा हूँ और यह कर्मेन्द्रियां करनहार हैं, यह करावनहार का स्वमान कर्म करते स्मृति स्वरूप में रहे, चाहे कर्मेन्द्रियों से कर्म कराना है लेकिन मैं करावनहार हूँ, मालिक हूँ, इस सीट पर अगर सेट है तो कोई भी कर्मेन्द्रिय आर्डर में रहेगी। बिना सीट पर सेट होते कोई किसका नहीं मानता। तो करावनहार आत्मा हूँ, यह कर्मेन्द्रियां करनहार हैं, करावनहार नहीं है। जैसे ब्रह्मा बाप का अनुभव सुना कि ब्रह्मा बाप ने शुरू में यह अभ्यास किया जो रोज़ समाप्ति के समय इन कर्मेन्द्रियों की राज दरबार लगाते थे। पुराने बच्चों ने वह डायरी देखी होगी तो रोज दरबार लगाते थे और करावनहार मालिक बन हर कर्मेन्द्रियों का समाचार लेते थे, देते थे। इतना अटेन्शन शुरू में ही ब्रह्मा बाप ने भी किया तो आपको भी करावनहार मालिक समझ, क्योंकि आत्मा राजा है यह कर्मेन्द्रियां साथी हैं। तो यह चेक करना चाहिए कि आज के दिन विशेष मन-बुद्धि संस्कार, स्वभाव कहो संस्कार कहो इन्हों का क्या हाल रहा?और फौरन चेक करने से कर्मेन्द्रियों को अटेन्शन रहता है कि हमारा राजा हमारा हालचाल लेगा, तो आत्मा राजा करनहार कर्मेन्द्रियों से करावनहार बन चेक करो। नहीं तो देखा गया है कई बच्चे कहते हैं कि हम कर्मेन्द्रियों को आर्डर करते हैं लेकिन फिर हो जाता है। पुरूषार्थ करते हैं लेकिन कोई-कोई संस्कार या स्वभाव आर्डर में नहीं रहते। उसका कारण इसी अपने स्वमान की सीट पर सेट नहीं रहते। बिना सीट पर बैठने के आर्डर कितना भी करो तो आर्डर मानने वाले मानते नहीं हैं। तो कर्म करते अपने करावनहार मालिकपन की सीट पर सेट रहो। कई बच्चे यह भी बापदादा से रूहरिहान करते कि बाबा आपने हमें सर्व शक्तिवान बनाया, शक्तिवान भी नहीं सर्वशक्तिवान का वरदान हर एक बच्चे को ब्राह्मण जन्म लेते हुए दिया है, याद है अपने जन्म का वरदान! हर एक बच्चे को बाप ने मास्टर सर्वशक्तिवान भव का वरदान दिया है। किसने वरदान दिया? आलमाइटी अथॉरिटी ने। लेकिन कम्पलेन करते हैं कि जिस समय जो शक्ति चाहिए वह आती नहीं है। आर्डर नहीं मानती है। वह क्यों? जब आलमाइटी अथॉरिटी का वरदान है, उससे बड़ा कोई नहीं। तो वरदान के स्थिति में स्थित रहकरके अगर आर्डर करो तो हो नहीं सकता कि आप आर्डर करो और शक्ति नहीं मानें। एक तो आत्मा मालिक है, सर्वशक्तिवान का वरदान मिला हुआ है, उस स्वरूप में स्थित होके मालिक हूँ, वरदान है, दोनों स्वरूप की स्मृति के स्थिति में रहके आर्डर करो। शक्ति आपका नहीं मानें असम्भव क्योंकि वरदान और बाप के प्रापर्टी का अधिकार संगमयुग पर आप सबको सर्वशक्तिवान का टाइटिल मिला है सिर्फ उस स्थिति में स्थित नहीं रहते। सदा नहीं रहते। कभी-कभी आ जाता है। यह कभी शब्द अपने ब्राह्मण डिक्शनरी से निकाल दो। अभी अभी हाजिर। आप कहते हो ना कि बाबा आपको हम याद करते हैं तो आप हाजिर हो जाते हैं। है अनुभव? हाथ उठाओ। अनुभव है? अभी देखो, हाथ तो उठा रहे हो। बाप हाजिर हो जाता। हजूर हाजिर हो जाता, तो यह शक्ति क्या है? यह शक्तियां भी आपको बाप के प्रापर्टी में मिली हैं। तो मालिक बनके आर्डर करो। मालिक बनके आर्डर नहीं करते हो, शक्ति खो जाती है ना तो उसी स्थिति में रहते हुए आर्डर करते हो, तो मालिक ही नहीं है आर्डर क्यों मानें!

तो बापदादा अभी क्या चाहते हैं? पता है ना! बाप अभी यही चाहते हैं कि मेरा एक-एक बच्चा कर्म करते हुए भी राजा बच्चा बन, स्वराज्य अधिकारी बन स्वराज्य की सीट को नहीं छोड़े। तो राजा सारा दिन राजा ही होता है ना! कि कभी राजा होता है कभी नहीं। तख्त पर बैठना या नहीं बैठना वह अलग बात है लेकिन घर में भी रहते मैं राजा हूँ, यह तो नहीं भूलता। तो कर्मयोगी और अमृतवेले के यथार्थ योग शक्तिशाली स्थिति उसमें फर्क नहीं पड़ना चाहिए। डबल काम है लेकिन आप कौन हो? आप तो विश्व के परिवर्तक हो, विश्व कल्याणकारी हो। इसलिए बाप यही चाहते कि चलते-फिरते राजापन नहीं भूलो, सीट को नहीं छोड़ो। बिना सीट के कोई आर्डर नहीं मानता। आजकल देखो सीट के पीछे कितना कुछ करते हैं? अपना हक लेने के लिए कितना प्रयत्न करते। अपना हक कोई छोड़ने नहीं चाहता। तो आप अपना परमात्म हक मैं कौन! हर समय जो काम करते हो तो काम करते भी अपने मन का टाइमटेबल बनाके रखो। यह काम करते हुए मन का स्वमान क्या रहेगा? आज के दिन कौन सा लक्ष्य रखूंगा? हर काम के टाइम जो भी अपने स्वमान की लिस्ट है, भले भिन्न-भिन्न टाइमटेबल बनाओ जैसे स्थूल कर्म का टाइमटेबल फिक्स करते हो वैसे मन का टाइमटेबल फिक्स करो। मालूम तो है इस समय यह काम करना है, उसके साथ स्वमान कौन सा रखना है? मालिकपन का अधिकार किस स्वमान के रूप में रखना है, यह मन का टाइमटेबल बनाओ। टाइमटेबल बनाने आता है ना! माताओं को आता है? मातायें अपना आपेही प्रोग्राम बनाओ। अच्छा खाना बनाना है उस समय कौन सा स्वमान अपनी बुद्धि में इमर्ज रखना है। बहुत माला है स्वमान की। इतनी बड़ी माला है जो स्वमान गिनती करते जाओ और माला में समा जाओ। तो अभी बहुतकाल का भी कोई बच्चे कहते हैं, अभी तक तो विनाश का कुछ दिखाई नहीं देता है। अभी तो डेट फिक्स नहीं है, कर लेंगे, हो जायेगा, यह अलबेलापन है। सन्देश देने में भी विश्व कल्याणकारी हैं, तो कई बच्चे समझते हैं अभी समय पड़ा है, आगे चलवे सन्देश दे देंगे, लेकिन नहीं। जिनको पीछे सन्देश देंगे वह भी आपको उल्हना देंगे क्या उल्हना देंगे? आपने पहले क्यों नहीं बताया तो हम भी कुछ कर लेते थे, अभी आपने लास्ट में बताया। तो हम तो सिर्फ पहचान कर अहो प्रभू तेरी लीला अपार है, यही कह सकेंगे। पद तो पा नहीं सकेंगे। क्यों? बहुत समय का भी सहयोग चाहिए। आप सभी वारिस बैठे हो ना! जो अपने को समझते हैं हम वारिस हैं, वह हाथ उठाओ, वारिस हैं? अच्छा, वारिस हैं तो आपको फुल वर्सा पाना है या थोड़ा? सभी कहेंगे फुल वर्सा पाना है। तो फुल वर्सा है 21 जन्म पूरे, आदि से अन्त तक रॉयल प्रजा नहीं, रॉयल फैमिली में आना। राज्य फैमिली में आना। तख्त पर तो एक ही बैठेंगे ना। युगल बैठेंगे। लेकिन वहाँ की सभा जब भी लगती है तो रॉयल फैमिली के विशेष निमित्त आत्मायें वह ताजधारी बनके बैठते हैं। बिना ताज नहीं बैठते हैं। और हर कार्य में सलाह, राय देने वाले ऐसे नहीं कि सिर्फ वह राज्य करेगा, साथ में राय से ही करते हैं इसलिए अगर सम्पूर्ण वर्सा लेना है तो पहले जन्म से लेके अन्त तक 21 जन्म पूरे आधे भी नहीं, बीच में तो जाना नहीं है, अकाले मृत्यु तो होना नहीं है। तो पूरा वर्सा लेना है कि थोड़े में खुश होना है? आपकी मातेश्वरी जगत अम्बा सदा यह लक्ष्य रखती थी बापदादा ने जो श्रीमत, चाहे मन्सा चाहे वाचा चाहे कर्मणा, जो भी श्रीमत दी वह हमें करना ही है। ऐसे पूरा वर्सा लेने वाले यही लक्ष्य बुद्धि में रखो कि अचानक एवररेडी और बहुत समय, तीनों ही शब्द साथ में याद रखो। इसलिए बापदादा के सभी आशाओं के दीपक बच्चों प्रति यही वरदान है कि सदा यह तीनों ही शब्द याद रखकर सभी आशाओं के दीपक बनने का प्रत्यक्ष सबूत दिखाओ।

बापदादा ने देखा बच्चों ने भिन्न-भिन्न प्रकार के कोर्स बनाये हैं। अच्छा है। बापदादा मुबारक देते हैं लेकिन अब समय प्रमाण कोर्स के बजाए फोर्स का कोर्स कराओ। ऐसा फोर्स का कोर्स कराओ जो वह आत्मायें बाप के सिर्फ स्नेही-सहयोगी नहीं बनें लेकिन हर श्रीमत को पालन करने वाली फोर्स, सर्व फोर्स भरने वाली आत्मा बनें। समीप का रत्न बनें। यह हो सकता है? अभी फोर्स का कोर्स कराओ। क्योंकि बापदादा देख रहे हैं कि अभी प्रकृति हलचल में आ गई इसलिए कोई न कोई कारण प्रकृति की हलचल अपना प्रभाव दिखा रही है और दिखाती रहेगी। जो ख्याल ख्वाब में बातें नहीं हैं वह प्रैक्टिकल देखते चलेंगे। तो प्रकृति को भी सतोप्रधान बनाना है। अभी तो अपने-अपने प्रभाव डाल रही है, इसलिए समय प्रति समय नई-नई बातें होती रहती हैं। लेकिन आप सब तो वारिस हो ना!सिर्फ स्नेही सहयोगी नहीं वारिस, फुल अधिकारी। है? वारिस हैं ना! वारिस है! डबल फारेनर्स भी वारिस हैं ना!वारिस है? फुल वर्सा लेने वाले। अधूरा नहीं। पाण्डव फुल वर्सा लेने वाले हो?

तो बापदादा की आशा का दीपक हूँ। तो यही याद रखो - स्मृति दिवस पर हर एक बच्चा चाहे आये हैं, चाहे अभी नहीं आये हैं, चाहे दूर बैठे दिल में समाये हुए हैं, हर एक को बापदादा की यह आज्ञा - बनना और मानना है कि मुझे कभी शब्द नहीं कहना है। अभी-अभी, कल भी किसने देखा, आज। जो करना है वह करना ही है, सोचना नहीं। सोचेंगे, करेंगे, हो जायेगा, यह बाप को भी दिलासा देते हैं। बाबा आप ख्याल नहीं करो हम समय पर ठीक हो जायेंगे। लेकिन बापदादा यही चाहते कि अभी-अभी कोई भी पेपर आ जाए तो हर एक बच्चा फुल पास हो जाए। हो सकता है? हो सकता है? फुल पास होना है? अच्छा। आज जो पहली बार आये हैं वह उठो। पहले बारी आने वालों को बापदादा आने की बहुत-बहुत मुबारक दे रहे हैं और वरदान दे रहे हैं कि तीव्र पुरूषार्थी बन आप चाहो तो आगे से आगे आ सकते हो। यह वरदान प्रैक्टिकल में लाने चाहे तो बापदादा का वरदान है। इसके लिए पहले आने वालों के लिए बापदादा खुशखबरी सुना रहे हैं कि लास्ट सो फास्ट, फास्ट सो फर्स्ट, यह दिल खुश मिठाई खा लो।

बापदादा को यह खुशी है कि फिर भी टू लेट के बोर्ड के पहले आ गये, यह बहुत खुशी की बात है। आप लोग अगर आगे गये तो हम सब खुश होंगे यह नहीं कहेंगे कि आप क्यों, हम क्यों नहीं, नहीं। पहले आप। अच्छा - बैठ जाओ, दिलखुश मिठाई खाई!

सेवा का टर्न इन्दौर ज़ोन का है:- इन्डोर का अर्थ ही है, लकीर के अन्दर रहने वाले। तो बापदादा को हर एक ज़ोन की सेवा का उमंग उत्साह देख खुशी होती है और चांस भी सभी अच्छी तरह से लेते रहते हैं क्योंकि जानते हो कि सेवा का मेवा मिलता है। कौन सा मेवा मिलता है? सभी की आशीर्वाद मिलती है। लोग तो समझते हैं एक ब्राह्मण को खिलाया, बहुत पुण्य जमा हुआ। लेकिन आप कितने ब्राह्मणों को खिलाते हो। कितना पुण्य और सभी सच्चे ब्राह्मण हैं। तो आप सभी ने सेवा का मेवा खाया? खाया? तो तन्दरूस्त हो ना! मेवा खाने से तन्दरूस्त बनते हैं। तो अच्छा है। हर ज़ोन में देखा गया कि संख्या बढ़ती जाती है लेकिन बापदादा ने पहले भी कहा है कि संख्या बढ़ रही है, यह तो बहुत अच्छा। सन्देश मिला, बाप का पैगाम मिला और बाप के बने इसके लिए बहुत-बहुत मुबारक हो लेकिन अभी समय अनुसार पहले भी बाप ने कहा है कि वारिस बनाओ। इन्दौर ने पक्के वारिस, क्योंकि बापदादा उन वारिसों का पेपर लेंगे। पहले नाम भेजो फिर बापदादा देखेंगे कि वारिस क्वालिटी कहाँ तक वारिसपन निभा रही हैं। और दूसरा बापदादा ने कहा अनुभवी नामीग्रामी जिनका अनुभव सुनकर औरों को उमंग आवे, मैं भी बनूं, वह माइक क्वालिटी भी तैयार करनी है। तो किया, काम किया? इन्दौर ने किया? अभी बापदादा के पास लिस्ट नहीं आई है। अच्छा। (छतीसगढ़ की पूरी गवर्मेन्ट यहाँ आई, वह अभी माइक बनकर अच्छी सेवा कर रहे हैं) अच्छा है। यह सारे इन्दौर के हैं। काफी संख्या है। अच्छा है। अच्छा। बापदादा की इन्दौर में एक विशेष उम्मींद है क्योंकि यह ब्रह्मा बाप के अन्तिम समय पर खुद बापदादा ने इन्दौर सेन्टर खुलवाया है, इसलिए आज स्मृति दिवस मना रहे हैं तो इन्दौर को कोई ऐसी बात करनी है जो अभी तक न्यारी और प्यारी हो। सभी ज़ोन पुरूषार्थ कर रहे हैं अच्छा, बापदादा के पास समाचार तो सबका आता भी है। लेकिन बापदादा अभी फास्ट आगे बढ़ने का जो चाहना रखते हैं, निर्विघ्न ज़ोन, हर ज़ोन में जितने भी सेवाकेन्द्र हैं, उपसेवाकेन्द्र हैं लेकिन हर एरिया निर्विघ्न सेवाकेन्द्र हो। हर एक में तीव्र पुरूषार्थ की लहर हो। तो नम्बर इन्दौर ले लेवे। इसमें नम्बरवन कोई भी ज़ोन ने रिपोर्ट नहीं दी है कि सारा ज़ोन निर्विघ्न है। पुरूषार्थ कर रहे हैं लेकिन चारों ओर चाहे गीता पाठशाला हो लेकिन निर्विघ्न हो। यह रिर्पोट बापदादा चाहते हैं। अच्छा।

मेडिकल विंग:- इस विंग में प्रैक्टिकल डाक्टर्स कितने हैं? डाक्टर्स हाथ उठाओ। अच्छा इतने डाक्टर्स हैं क्योंकि बापदादा ने देखा कि समय प्रमाण डाक्टर्स की सेवा और आगे बढ़ेगी क्योंकि आजकल के समय में चिंता और भय फैला हुआ है। तो डाक्टर्स यह तो डबल डाक्टर्स होंगे ही। डाक्टर्स जो डबल डाक्टर हैं वह हाथ उठाओ। मन के भी तन के भी। क्योंकि आजकल मन का रोग और बढ़ता जायेगा इसलिए डबल डाक्टर्स की सेवा और बढ़ती जायेगी। प्रकृति की हलचल के कारण नये-नये रोग निकलते हैं तो ऐसे समय पर डबल डाक्टर्स की आवश्यकता है। तो आप सभी एवररेडी हो, कहाँ भी बुलावा हो तो सेवा दे सकते हो? जो सेवा दे सकते हैं वह हाथ उठाओ। बहुत अच्छा। नाम नोट करके देना क्योंकि निमन्त्रण तो आते हैं तो समय निकालेंगे? निकालेंगे? जो समय के लिए भी तैयार हैं वह हाथ उठाओ। अच्छा। बहिनें कम उठा रही हैं। सेवाकेन्द्र चलाना है। इनका नाम नोट करके देना। बापदादा डाक्टर्स की महिमा करते हैं क्यों महिमा करता है? क्योंकि डाक्टर्स भी बापदादा के समान दु:ख लेके सुख तो दे देते हैं। लेकिन अल्पकाल के लिए देते हैं। बाप सदाकाल के लिए देते हैं इसीलिए कहा कि डबल डाक्टर होंगे और समय निकालेंगे तो आप लोगों को आगे चल करके डबल डाक्टर्स की वैल्यु होगी। बापदादा ने सुना कि डाक्टर्स को फुर्सत नहीं होती है लेकिन डाक्टर्स हर एक बिजी होते भी बहुत बड़ी सेवा कर सकते हैं। पहले भी बापदादा ने सुनाया कि हर एक डाक्टर अपना कार्ड तो छपाते हो। छपाते हो ना कार्ड? तो एक तरफ तो अपना परिचय देते हो और दूसरा तरफ खाली होता है, तो उस खाली तरफ आप मन की दवाई के लिए फलानी एड्रेस है, यह अगर कार्ड जितने भी पेशेन्ट हैं उनको दो तो आपकी घर बैठे सेवा हो जायेगी। क्योंकि डाक्टर्स का सभी मानते हैं। कोई कितना भी कहेगा नहीं यह नहीं खाओ फिर भी खाते रहेंगे। लेकिन डाक्टर्स अगर कहेंगे कि यह हो जायेगा, यह हो जायेगा। तो कर लेते हैं। मजबूरी से करें या प्यार से करें लेकिन करते हैं इसीलिए बापदादा कहते हैं कि डाक्टर्स बहुत सेवा कर सकते हैं और अच्छा है। देखा गया है तो प्रोग्राम करते रहते हैं लेकिन थोड़ा और तेजी से होना चाहिए। आपके भिन्न-भिन्न ज़ोन के डाक्टर्स अपने ज़ोन में ऐसा प्रोग्राम बनाओ जो वहाँ ही प्रोग्राम इकठ्ठा होके करते रहें तो आप बहुत सेवा कर सकते हो। बापदादा को डाक्टर्स की सेवा आवश्यक लगती है क्योंकि यह तो बीमारियां बढ़नी ही हैं। मन की बीमारी तो चारों ओर फैली हुई है तो आप लोगों के आक्युपेशन के डर से सभी मान सकते हैं। अच्छा है। बापदादा को पसन्द है इस वर्ग की सेवा और जोरशोर से बढ़ाओ। अच्छा।

डबल विदेशी:- (40 देशों से आये हैं): आज तो विशेष सेरीमनी मनाने भी आये हैं। बापदादा को खुशी है कि मधुबन में सेरीमनी मनाने के निमित्त सभी को उमंग-उत्साह आता है। हाथ उठाओ जो सेरीमनी मनाने आये हैं? अच्छा। जिनकी सेरीमनी है वह हाथ उठाओ। दो हाथ उठाओ। बहुत अच्छा किया। निमन्त्रण देने का, आबू की यात्रा कराने का यह चांस बहुत अच्छा लिया क्योंकि बापदादा की पधरामणी सिन्ध में हुई। फाउण्डेशन सिन्ध है। तो सिन्ध वाले अपना हक रखते हैं कि हम तो सिन्धी हैं। अच्छा है यह भी एक विधि है सभी को यात्रा कराने की। तो बापदादा विशेष मुबारक दे रहे हैं। अच्छा लगा ना। अपना घर। अच्छा लगा? क्योंकि यहाँ देखा होगा किसी भी कमरे में किसका नाम नहीं। क्योंकि यह बाप का घर है। तो आप बाप के बच्चे कहाँ आये हो? अपने घर में।

(हिमाचल प्रदेश के मुख्य मंत्री सामने बैठे हैं)

यह भी अभी आये हैं ना? तो कहाँ आये हो? अपने घर में आये हो। अपने परिवार में आये हो। बापदादा यही कहते हैं कि राज्य और आध्यात्मिकता अगर दोनों मिलकर विशेष बापू गांधी जी के संकल्प को पूर्ण करने चाहें तो कर सकते हैं। सहज कर सकते हैं और करते जा रहे हैं। बापदादा को खुशी है कि किसी न किसी संग के साथ अभी नेताओं में भी नाम फैल रहा है। तीनों शक्तियां साइंस, आध्यात्मिकता और राज्य सत्ता, तीनों ही सत्तायें मिलकरके एक संकल्प करें, सहयोगी बनें तो हम बापू गांधी जी और बापू का भी बापू परमात्मा दोनों बाप की आशायें पूर्ण करेंगे तो बहुत सहज हो जायेगा। अच्छा।

डबल विदेशी - विदेश में भी भिन्न-भिन्न प्रकार की सेवायें चल रही हैं और चलती रहेंगी। बापदादा ने देखा कि नये-नये प्लैन बनाते रहते हैं और प्रैक्टिकल में कर भी रहे हैं, फारेन वाले इन्डिया वालों को अपना अनुभव सुनाके सेवा कर रहे हैं और इन्डिया वाले फारेन वालों को अपने अनुभव सुना करके देश विदेश में आवाज फैला रहे हैं, अभी भी प्रोग्राम कर रहे हैं ना। अच्छा है। अभी दूसरा नम्बर है। (अभी सर्व इन्डिया प्रोग्राम चेन्नई में है) बापदादा के पास सभी का उमंग उत्साह का पत्र और यादप्यार एडवांस में मिली है, जो भी करते हैं, आरम्भ करते हैं तो पहले छोटा होता है फिर बढ़ता जाता है क्योंकि आजकल के समय में सभी को आवश्यकता लगती है, तीन सत्ता होते भी धर्म सत्ता भी है, आध्यात्मिकता अलग है, धर्म सत्ता अलग है लेकिन सत्ता तो है। तो भी जो चाहते हैं वह नहीं हो रहा है। तो सभी सोचने लगते हैं कि कमी किसकी है? तीन तो काम कर रही हैं, तो भी जो चाहते हैं वह नहीं हो रहा है। तो अभी चाहते हैं लेकिन समय का बहाना देते हैं। समय नहीं हैं। क्या करें, क्या नहीं करें... लेकिन ऐसे अगर एक दो ग्रुप अपने को सहयोगी बनायें तो बापदादा का वरदान है कि भारत स्वर्ग बनना ही है। दोनों बापू की आशायें पूर्ण होनी ही है। तो फारेन वाले भी मन्सा सेवा से सहयोगी हैं ना! बापदादा ने देखा कि वृद्धि सब धर्मो में हो रही है, एक धर्म नहीं सिर्फ हिन्दू नहीं लेकिन मुस्लिम, बुद्धिष्ठ सब धर्म, क्रिश्चियन, सब धीरे धीरे आध्यात्मिकता में रूची ले रहे हैं। पहले देखो ब्रह्माकुमारियों का नाम सुनके डरते थे, विनाश-विनाश क्या कहती हैं। और अभी क्या कहते हैं? अभी कहते हैं बताओ विनाश कब होगा, कैसे होगा और क्या करें? इसलिए होना तो है ही यह तो गैरन्टी है। आप सबको गैरन्टी है ना चाहे विदेश वाले चाहे भारत वाले गैरन्टी है ना, आपका सहयोग है ही है। होना ही है। ताली बजाओ। सभी को उमंग अच्छा है। और निमित्त बनी हुई आत्मायें चाहे पाण्डव, चाहे शक्तियां दोनों में उमंग उत्साह है। सिर्फ अभी बापदादा ने जो इशारा दिया पुरूषार्थ को तीव्र करो। पुरूषार्थ नहीं, पुरूषार्थ का समय गया अभी तीव्र पुरूषार्थ का समय है। और कभी-कभी पर नहीं ठहरो, अभी। अभी करना है, अभी बनना है। तो होना ही है। अच्छा।

कलकत्ता वालों ने आज फूलों का श्रृंगार किया है:-  बापदादा ने देखा कि दिल से करते हैं। श्रृंगार करना कोई बड़ी बात नहीं है, आपसे भी अच्छे करने वाले हैं लेकिन आपको बाप से प्यार है, बाप की पहचान थोड़ी बहुत है इसलिए जो भी श्रृंगार करते हो ना, उसमें सिर्फ काम नहीं लेकिन प्यार भी है। तो जहाँ प्यार है वहाँ प्यार की खुशबू सबको अच्छी लगती है। और हर साल आते हैं। अपनी ड्युटी समझकर नहीं, लेकिन अपना काम समझ करके करते हैं। तो मुबारक हो आप सबको। निमित्त बने हुए उमंग हुल्लास दिलाते हैं। बहुत अच्छा करते हो। स्मृति दिवस आता है और कलकत्ता को याद करते हैं, विशेषता है। मुबारक हो। अच्छा।

चारों ओर के तीव्र पुरूषार्थी सदा उमंग उत्साह से कदम आगे बढ़ाने वाले जो सच्ची दिल से करते हैं उनके मस्तक पर विजय का तिलक बापदादा देख रहे हैं, सभी को निश्चय है, नशा है तो हम विजयी हैं, विजयी थे और विजयी रहेंगे, इसलिए हर एक के मस्तक में बापदादा विजय का तिलक देख रहे हैं। चारों ओर के स्नेही भी हैं, आज अमृतवेले से बहुत-बहुत स्नेह की मालायें बापदादा के पास आई और बापदादा आप सभी बच्चों को रिटर्न में सदा विजयी बनने की माला डाल रहे हैं। तो चारों ओर के बच्चे देख भी रहे हैं क्योंकि साइंस ने यह सब साधन आपके लिए भी बनाये हैं, जो कहाँ भी बैठे देख सकते हो, सुन सकते हो, तो बापदादा देख रहे हैं, जगह-जगह पर कैसे देख भी रहे हैं और सुन भी रहे हैं, तो चारों ओर के बच्चों को बापदादा स्मृति दिवस की यादप्यार दे रहे हैं। बापदादा के दिल में हर बच्चा समाया हुआ है और हर बच्चे की दिल में बाप समाया है, बाप की दिल में बच्चा समाया है, तो मुबारक हो, मुबारक हो और मुबारक के साथ नमस्ते भी।

दादियों से:- मुरब्बी बच्चों का पार्ट बजा रही हो, इसको देख बापदादा खुश है। (मोहिनी बहन से) हिम्मत वाली हो और हिम्मत ही आपकी विशेष दवाई है।

दादी रतनमोहिनी से:- यह भी अच्छी है, हर कार्य में हाँ जी, हाँ जी हाँ जी मिलाके चल रही हो और चलती रहेंगी।

चेन्नई में सर्व इन्डिया प्रोग्राम होने जा रहा है, सभी ने खास याद दी है:- मूल बात तो है कि गवर्नर हाउस मिला है और वह भी इन्ट्रेस्टेट है यह सेवा का सबूत है इसीलिए बापदादा सभी बच्चों को एक बीना के साथ सभी निमित्त बच्चों को लाख गुणा पदमगुणा मुबारक दे रहे हैं और निजार बच्चा भी उमंग वाला है। चाहता है और क्या-क्या करूं, प्लैन बनाता रहता है उसको भी विशेष याद देना। गवर्नर सहयोगी तो है लेकिन जैसे पांव आगे बढ़ाना होता है ना तो पहले एक पांव बढ़ाया जाता है और आगे बढ़ना होता है तो दूसरा पांव बढ़ाया जाता है तो स्नेही और सहयोगी है ल्ोकिन अभी इस प्रोग्राम की रिजल्ट में और पांव आगे बढ़ाके आप लोगों का साथी बन जाये। अभी स्नेही है, सहयोगी है, सेवा का महत्व समझता है, अभी महत्व तक है अभी और दूसरा कदम आगे बढ़ाना है।

माननीय मुख्य मंत्री भ्राता प्रो.प्रेमकुमार धूमल, हिमाचल प्रदेश:- बहुत अच्छा किया जो संकल्प को सम्पूर्ण पूरा किया। अपना घर समझते हो ना! क्योंकि बाप का घर है तो बाप का घर अपना घर। जब भी चाहे, जब चाहे थोड़ी रेस्ट लेनी हो ना तो अपने घर आ जाओ। आप भी खुश हो ना। आप भी आते रहना। अभी सिर्फ इनके साथ आये हैं, नहीं। वैसे भी आते रहना।



30-01-10   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


‘‘चारों ही सबजेक्ट में स्वमान के अनुभवी स्वरूप बन अनुभव की अथॉरिटी को कार्य में लगाओ’’

आज ब्राह्मण संसार के रचयिता बापदादा अपने चारों ओर के ब्राह्मण संसार को देख रहे हैं। हर एक ब्राह्मण सारे संसार में विशेष आत्मा है। कोटों में कोई है क्योंकि साधारण तन में आये हुए बाप को पहचान लिया। बापदादा भी दिल में समाने वाले बच्चों को दिल से दिल का प्यार दे रहे हैं। हर एक बच्चा अपने को ऐसे बाप का प्यारा दिल में बाप को समाया हुआ अनुभव करते हैं! बाप के लिए हर बच्चा अति प्यारा सर्व का प्यारा है। आप सभी बच्चों का सर्व आत्माओं के प्रति चैलेन्ज है कि हम योगी जीवन वाले हैं। सिर्फ योग लगाने वाले नहीं लेकिन योगी जीवन वाले हैं। जीवन दो चार घण्टे की नहीं होती। जीवन सदाकाल के लिए होती है। तो चलते फिरते कर्म करते योगी जीवन वाले निरन्तर योगी हैं। चाहे योग में बैठते, चाहे कोई भी कर्म करते कर्मयोगी हैं। जीवन का लक्ष्य ही है सदा योगी। ऐसे अपनी योगी जीवन, नेचरल जीवन अनुभव करते हो? बापदादा हर बच्चे के मस्तक में चमकता हुआ भाग्य देखते हैं। क्या देखते हैं? मेरा हर बच्चा स्वमानधारी, स्वराज्य अधिकारी है। क्यों? जहाँ स्वमान है वहाँ देहभान आ नहीं सकता। आदि से अन्त तक, अब तक बापदादा ने हर एक बच्चे को भिन्न-भिन्न स्वमान दिये हैं। अगर अभी भी स्वमानों को याद करो और एक-एक स्वमान की माला फेरते जाओ तो अनेक स्वमान स्वरूप बन, स्वमान में लवलीन हो जायेंगे। लेकिन बापदादा को एक बात बच्चों की अब तक भी अच्छी नहीं लगती, वह जानते हो कौन सी? जब कोई भी बच्चा कहता है कि हमें स्वमान में स्थित होने में कभी-कभी मेहनत लगती है, चाहते हैं लेकिन कभी-कभी मेहनत लगती है तो बाप सर्वशक्तिवान बच्चों की मेहनत नहीं देख सकते। क्योंकि जहाँ मोहब्बत होती है वहाँ मेहनत नहीं होती है। जहाँ मेहनत है वहाँ मोहब्बत में कमी है।

तो आज अमृतवेले बापदादा ने चारों ओर के ब्राह्मणों के पास चाहे देश चाहे विदेश में चक्कर लगाया तो क्या देखा? कोई-कोई बच्चे स्वमान में बैठे हैं, सोच रहे हैं कि मैं बापदादा के दिलतख्त नशीन हूँ, सोच भी रहे हैं, स्वमान में स्थित होने का पुरूषार्थ भी कर रहे हैं लेकिन कमी क्या देखी? स्वमान याद है, सोच रहे हैं, लेकिन स्वमान स्वरूप बन, अनुभवी मूर्त बन अनुभव के अथॉरिटी स्वरूप बनने में कमी दिखाई दी क्योंकि अथॉरिटी तो बहुत है लेकिन सबसे बड़ी अथॉरिटी अनुभव की अथॉरिटी है और यह स्वमान की अनुभूति आलमाइटी अथॉरिटी ने दी है। तो मेहनत कर रहा है लेकिन अनुभव स्वरूप नहीं बना। तो बापदादा ने यह देखा कि बैठते हैं, सोचते भी हैं लेकिन अनुभव स्वरूप कोई-कोई हैं। अनुभव में किसी भी प्रकार का देह अभिमान जरा भी अपने तरफ खींच नहीं सकता। तो अनुभव स्वरूप बन जाना, कर्म करते भी कर्मयोगी के अनुभव स्वरूप में खो जाना, इसकी अभी और आवश्यकता है। स्वरूप में बन जाना। हर बात में, हर सबजेक्ट में अनुभवी स्वरूप बनना, चाहे ज्ञान, योग, धारणा और सेवा, चार ही सबजेक्ट में अनुभव स्वरूप बनना। अनुभवी को माया भी हिला नहीं सकती इसलिए बापदादा आज सभी बच्चों को अनुभवी स्वरूप में देखने चाहते हैं। सुनने और सोचने में फर्क है लेकिन अनुभवी स्वरूप बनना, जो सोचा, जिस स्वमान में स्थित रहने चाहे उसके अनुभव स्वरूप में स्थित हो जाए। अनुभव को कोई भी हिला नहीं सकता क्योंकि स्वमान और देहभान, जहाँ स्वमान स्वरूप है, स्वमान के अनुभव में स्थित है वहाँ देह भान आ नहीं सकता। जैसे देखो अंधकार है लेकिन स्विच आप ऑन करो रोशनी का तो अंधकार ऑटोमेटिकली गायब हो जाता। अंधकार को मिटाने में, अंधकार को भगाने में मेहनत नहीं करनी पड़ती। ऐसे ही जब स्वमान के सीट पर अनुभव का स्विच ऑन होता तो किसी भी प्रकार का देहभान, भिन्न-भिन्न प्रकार के देह भान भी हैं और भिन्न-भिन्न प्रकार के बाप ने स्वमान भी दिये हैं। स्वमान को जानते हैं, पुरूषार्थ भी करते हैं लेकिन अनुभव का पुरूषार्थ करना और अनुभवी स्वरूप बनना उसमें अन्तर है इसलिए मेहनत करनी पड़ती है। तो बापदादा को अब समय प्रमाण बाप समान बनने का लक्ष्य सम्पन्न करने समय यह मेहनत करना अच्छा नहीं लगता, हर एक अपने को चेक करो कि मैं कर्मयोगी जीवन वाला हूँ? जीवन नेचरल और सदाकाल की होती है, कभी-कभी की नहीं। ऐसा अनुभवी स्वरूप बनाओ जो लक्ष्य है योगी जीवन का, जो लक्ष्य है अनुभवी मूर्त बनने का वह लक्ष्य सम्पन्न है? सदा मस्तक से चमकती हुई लाइट खुद को भी अनुभव हो, खुद भी उस स्वरूप में स्थित हो, स्मृति स्वरूप हो, स्मृति करने वाला नहीं स्मृति स्वरूप हो और स्मृति स्वरूप है या नहीं, उनका प्रमाण यह है कि जहाँ स्मृति के अनुभवी स्वरूप हैं वहाँ अपने में समर्थी हर कार्य करते हुए भी अनुभव होगी। कार्य भिन्न-भिन्न होंगे लेकिन अनुभव स्वरूप की स्थिति भिन्न-भिन्न नहीं हो।

तो आज बापदादा ने देखा कि मेहनत क्यों करनी पड़ती? अनुभव स्वरूप बनने का नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार देखा। तो बापदादा का हर एक बच्चे से जिगरी प्यार है तो प्यार वाले की मेहनत देखी नहीं जाती। चाहे किसी भी सबजेक्ट में मेहनत करनी पडती है, कभी-कभी शब्द यूज करना पड़ता है, इसका कारण है अनुभवी स्वरूप बनने की कमी। पुरूषार्थी है लेकिन स्वरूप नहीं बने हैं। एक सेकण्ड में चार ही सबजेक्ट में अपने स्वमान के अनुभवी स्वरूप की अनुभूति होनी चाहिए। जो देह अभिमान नजदीक आ नहीं सके। जैसे रोशनी के आगे अंधकार ठहर नहीं सकता। निकालना नहीं पड़ता, नेचरल जहाँ अंधकार है वहाँ रोशनी कम है या नहीं है। तो सबसे बड़े में बड़ी अथॉरिटी अनुभव गाया हुआ है। अनुभव को हजारों लोग बदलने चाहे, बदल नहीं सकते। जैसे आप सबने चीनी का अनुभव करके देखा है कि वह मीठी होती है, अगर हजारों लोग आपको बदलने चाहे, बदल सकते हो? तो जो भी सबजेक्ट हैं, चाहे ज्ञान की, चाहे योगी की, चाहे धारणा की, चाहे सेवा की, किसी में भी चार में से एक में भी मेहनत लगती है, मिटाने की, सेवा में भी सफलता, धारणा में भी स्वभाव परिवर्तन की, योग में भी अचल रहने की, योगी जीवन की अनुभूति करने की, जहाँ मेहनत है या कभी-कभी कहते हो, इसका अर्थ है उस सबजेक्ट में आप अनुभवीमूर्त नहीं बने हो। अनुभव कभी-कभी नहीं होता, नेचरल नेचर होती है। तो अभी सुना मेहनत करने का कारण क्या? जिस भी समय आपको अनुभव होगा कि जब अनुभव की सीट पर सेट होते हो, किसी भी वरदान के स्वरूप में अनुभवी बन अनुभव करते हो तो उस समय मेहनत करनी होती है? नेचरल अनुभूति होती है। इसलिए अभी समय प्रमाण सब अचानक होना है। बताके नहीं होना है। जैसे अभी प्रकृति का अचानक बातों का खेल चल रहा है, आरम्भ हुआ है अभी। नई-नई बातें अचानक अर्थक्वेक हुआ, थोड़े समय में लाखों आत्मायें चली गई, क्या उन्हों को पता था कि कल हम होंगे या नहीं? ऐसे कई एक्सीडेंट, भिन्न-भिन्न स्थान पर अचानक होना आरम्भ हो गया है। इकट्ठे के इकट्ठे एक समय अनेकों की टिकेट कट रही है तो ऐसे समय में आप एवररेडी हैं? यह तो नहीं कहेंगे कि पुरूषार्थ कर रहा हूँ? एवररेडी अर्थात् कोई भी वरदान या स्वमान का संकल्प किया और स्वरूप बना इसलिए बापदादा आज इस बात पर अटेन्शन दिला रहे हैं कि किसी भी वरदान को फलीभूत कर वरदान या स्वमान के स्वरूप के अनुभवी बन सकते हो? बनना ही पड़ेगा। कोशिश कर रहा हूँ, अगर कोशिश भी करनी है तो अभी से क्योंकि बहुत समय का अभ्यास समय पर मदद देगा। पुरूषार्थी नहीं, अनुभवी क्योंकि अनुभव की अथॉरिटी आप सबको आलमाइटी अथॉरिटी ने दी है। जैसे देह भान के अनुभवी है, तो देहभान को याद करना पड़ता है क्या कि मैं फलाना हूँ! मानों आपका नाम देह पर पड़ा, तो देहभान हो गया ना, मैं फलाना हूँ, अगर हजारों लोग भी आपको कहे कि आप फलाना नहीं हो, आप यह हो, नाम बदली करके कहे तो आप मानेंगे?भूलेंगे अपना नाम! जन्म लेते जो नाम पड़ा वह देहभान कितना पक्का और नेचरल रहता है। कोई और को भी आपके नाम से बुलायेंगे, आपको नहीं बुलाना है, लेकिन आपके नामधारी को बुला रहे हैं, आपका कान नाम सुनते अटेन्शन जायेगा मुझे बुला रहा है। तो देहभान इतना पक्का हो गया है। ऐसे देही अभिमानी, स्वमानधारी, स्वराज्य अधिकारी इतना पक्का हो। आप कहते हो ना, हमारा जीवन परिवर्तन है तो परिवर्तन क्या किया? देह भान से स्वमान, स्वराज्य अधिकारी बनें। तो चेक करो ज्ञान स्वरूप बना हूँ? या ज्ञान सुनने और सुनाने वाला बना हूँ? ज्ञान अर्थात् नॉलेज, नॉलेज का प्रैक्टिकल रूप है, नॉलेज को कहते हैं, नॉलेज इज लाइट, नॉलेज इज माइट, तो ज्ञान स्वरूप बनना अर्थात् जो भी कर्म करेंगे वह लाइट और माइट वाला होगा। यथार्थ होगा। इसको कहा जाता है ज्ञान स्वरूप बनना। ज्ञान सुनाने वाला नहीं, ज्ञान स्वरूप बनना। योग स्वरूप का अर्थ है कर्मेन्द्रियों जीत बनना। हर कर्मेन्द्रिय पर स्वराज्यधारी। इसको कहा जाता है योग अर्थात् युक्तियुक्त जीवन। ऐसे अगर ज्ञान योग का स्वरूप है तो हर गुण की धारणा ऑटोमेटिकली होगी। जहाँ ज्ञान, योग है, योगयुक्त है वहाँ गुणों की धारणा ऑटोमेटिकली होगी। सेवा हर समय ऑटोमेटिक होगी। समय अनुसार चाहे मन्सा सेवा करे, चाहे वाचा करे, चाहे कर्मणा करे, चाहे स्नेह सम्बन्ध में करे, सेवा भी हर समय अखण्ड चलती रहेगी। सम्बन्ध सम्पर्क में भी सेवा होती है। मानो कोई आपके भाई या बहन ब्राह्मण परिवार में थोड़ा सा मायूस है, थोड़ा पुरूषार्थ में डल है, कोई संस्कार के वश है, ऐसे सम्पर्क वाली आत्मा को आपने उमंग-उत्साह दिलाया, सहयोग दिया, स्नेह दिया, यह भी सेवा का पुण्य आपका जमा होता है। गिरे हुए को उठाना यह पुण्य गाया जाता है। तो सम्बन्ध और सम्पर्क में भी सेवा करना यह सच्चे सेवाधारी का कर्तव्य है। सेवा मिले या सेवा दी जाए तो सेवा है, वह नहीं। स्वयं मन्सा, वाचा, कर्मणा, सम्पर्क सम्बन्ध में सेवा ऑटोमेटिकली होती रहे। कई बार बापदादा ने देखा कि सम्पर्क में कोई-कोई बच्चा देखता भी है कि इनका स्वभाव संस्कार थोड़ा जो होना चाहिए वह नहीं है, लेकिन यह तो है ही ऐसा, यह बदलना नहीं है, इसकी सेवा करना टाइम वेस्ट है, ऐसा संकल्प करना क्या यथार्थ है? जब आप मानते हो कि हम प्रकृति को भी सतोप्रधान बनाने वाले हैं, प्रकृति को और वह मनुष्यात्मा है, ब्राह्मण कहलाता है लेकिन संस्कार वश है, जब प्रकृति का संस्कार बदलने की चैलेन्ज की है तो वह तो प्रकृति से पुरूष है, आत्मा है। आपके सम्बन्ध में है। तो सच्चा सेवाधारी अपने सेवा का पुण्य कमाने का शुभ भावना अवश्य रखेगा। यह तो है ही ऐसा, यह बदल ही नहीं सकता, यह शुभ भावना नहीं, यह सूक्ष्म घृणा भावना है, फिर भी अपना भाई बहन है, फिर भी मेरा बाबा तो कहता है ना! तो सच्चे सेवाधारी सेवा के बिना शुभ भावना देना इस सेवा में भी पुण्य कमायेंगे। गिरे हुए को गिराना नहीं, उठाना। सहयोग देना, इसको कहेंगे सच्चे सेवाधारी, पुण्य आत्मा। तो ऐसे अपने को चेक करो इतना सेवा का उमंग-उत्साह है? इसको कहा जाता है अनुभव के अथॉरिटी वाला। तो अभी बापदादा यही चाहता है, अनुभवी मूर्त बनो, अनुभव की अथॉरिटी को कार्य में लगाओ।

तो चार ही सबजेक्ट में जो अपने को अनुभवी स्वरूप बन अनुभव के अथॉरिटी को कार्य में लगायेंगे, जो कमी हो उसको सम्पन्न करेंगे, इतना अटेन्शन देंगे अपने पर वह हाथ उठाओ। मन का हाथ उठा रहे हो ना! शरीर का हाथ नहीं, मन का हाथ। उठाओ। मन का हाथ उठाना क्योंकि बापदादा शिवरात्रि पर रिजल्ट लेंगे। मन में कोई का भी कमी का संस्कार अपनी शुभ भावना को कम नहीं करे। उसका संस्कार तो ढीला है लेकिन वह इतना तो पावरफुल है जो आपकी शुभ भावना को कम कर लेता है इसलिए जैसे ब्रह्मा बाप ने क्या नहीं देखा, क्या नहीं किया, जिम्मेवार होते फिर भी अन्त में शुभ भावना, शुभ कामना के तीन शब्द सभी को शिक्षा देके गये। याद है ना! तीन शब्द याद हैं ना! स्वयं भी निराकारी, निरहंकारी, निर्विकारी इसी स्थिति में अव्यक्त बनें, किसी को भी कर्मभोग की फीलिंग नहीं दिलाई, किसने समझा कि कर्मभोग समाप्त हो रहा है!क्या हो गया? अव्यक्त हो गया। ऐसे ब्रह्मा बाप समान फरिश्ता भव का वरदान जो बाप ने करके दिखाया, फॉलो ब्रह्मा बाप। ब्रह्मा बाप से प्यार रहा, अभी भी चाहे साकार में नहीं देखा लेकिन अव्यक्त बाप के रूप में भी स्नेह सबका है। बापदादा दोनों से स्नेह में देखा गया है कि स्नेह की सबजेक्ट में मैजारिटी पास हैं। स्नेह ही चला रहा है। चाहे धारणा नहीं भी हो, कोई भी सबजेक्ट में कमी हो, लेकिन स्नेह की सबजेक्ट में मैजारिटी सभी पास हैं। स्नेह चला रहा है। आप सभी क्यों आये हैं?किस विमान में आये हो? स्नेह के विमान में पहुंचे हो। और बापदादा का भी लास्ट बच्चे से भी प्यार है। कैसा भी है लेकिन प्यार में पास है क्योंकि बाप का हर बच्चे के प्रति दिल का प्यार है। चाहे कैसा भी है लेकिन मेरा है। जैसे आप कहते हो मेरा बाबा, तो बाप क्या कहते हैं? मेरे बच्चे हैं। ऐसी शुभ भावना आपस में परिवार की भी होना आवश्यक है। स्वभाव नहीं देखो, बाप जानते हैं, भाव स्वभाव है, लेकिन भाव स्वभाव, प्यार को खत्म नहीं करे, सम्बन्ध को खत्म नहीं करे, कार्य को सफल कम करे यह राइट नहीं। परिवार है। कौन सा परिवार है? प्रभु परिवार, परमात्म परिवार। इसमें कोई भी कारण से प्यार की कमी नहीं होनी चाहिए। ऐसे है? है प्यार की कमी? प्यार अर्थात् शुभ भावना जरूर हो। कैसा भी है, परमात्म परिवार है। जिसने माना कि मैं प्रभु परिवार का हूँ, तो परिवार अर्थात् प्यार। अगर परिवार में प्यार नहीं तो परिवार नहीं। इसलिए आज क्या पाठ पढ़ा? पक्का किया? हर आत्मा से शुभ भावना, शुभ भाव। यह परमात्म परिवार एक से एक समय ही होता है, इतना बड़ा परिवार परमात्मा के सिवाए और किसका हो ही नहीं सकता। तो चेक करना क्योंकि यह भी पुरूषार्थ में विघ्न पड़ता है। तो विघ्न मुक्त होंगे तभी अनुभवी बन अनुभव के अथॉरिटी द्वारा सभी को अनुभवी बनायेंगे। अच्छा।

आज जो पहली बार आये हैं वह उठके खड़े हो। हाथ हिलाओ। बापदादा पहले बारी आने वालों को विशेष मुबारक दे रहे हैं क्योंकि टूलेट के बजाए लेट में भी आ तो गये। और बापदादा सभी आने वालों को यह खुशखबरी सुनाते हैं कि अगर देरी से आने वाले भी तीव्र पुरूषार्थ अर्थात् उड़ती कला का पुरूषार्थ कर आगे बढ़ने चाहे तो तीव्र पुरूषार्थ द्वारा आगे जा सकते हो। लेकिन तीव्र पुरूषार्थ। साधारण पुरूषार्थी नहीं। हर बारी बापदादा पहले बारी आने वालों को देख खुश भी होते हैं और सभी आने वाले को परिवार, सारा ही परिवार आपको देख करके खुश होते हैं। आ तो गये हैं, कुछ न कुछ वर्सा लेने के अधिकारी तो बनेंगे इसलिए बापदादा भी कहते हैं भले पधारे, बाप के बिछुडे हुए बच्चे भले पधारे। अच्छा। बैठे जाओ। अच्छा।

सेवा का टर्न - राजस्थान और इन्दौर का है:- अच्छा पहले इन्दौर वाले हाथ उठाओ। अभी राजस्थान वाले हाथ उठाओ। अच्छा। दोनों ने अपनी सेवा का पार्ट अच्छा बजाया है। बापदादा ने देखा है कि यह सेवा का चांस सभी उमंग-उत्साह से करते भी हैं और कराते भी हैं। सेवा का यह पार्ट इन 10-15 दिन में भिन्न-भिन्न कमाई का साधन है। एक फायदा यह है कि सेवा का मेवा हर एक का पुण्य जमा होता है। दूसरा फायदा यहाँ मधुबन का ज्ञान का वायुमण्डल, बड़े परिवार का वायुमण्डल, स्नेह का पुरूषार्थ में भी बल मिलता है। क्योंकि वायुमण्डल वायबे्रशन और ज्ञान स्नान एक बारी तीर्थो पर स्नान करने जाते हैं तो अपना बहुत पुण्य मानते हैं और यहाँ जितने दिन भी रहते हो उतने दिन ज्ञान स्नान, ज्ञान के वचन कानों में पड़ते रहते हैं। और योगी आत्मायें, प्रभु प्यार वाली आत्मायें उनका वायबे्रशन भी आटोमेटिकली मिलता रहता है। एकान्त के वायुमण्डल का लाभ मिलता है। अगर कोई अपने काम में और पढ़ाई में फायदों में अपने को बिजी रखता है तो उनको थोड़े दिनों में अपना भविष्य ऊंचा बनाने का चांस मिलता है। इसलिए यज्ञ का काम भी चलता और आने वालों का पुण्य भी जमा होता। दोनों ही ज़ोन आये हैं लेकिन बापदादा ने देखा कि आजकल के वायुमण्डल में सेवा का उमंग मैजारिटी सभी जॉन में है। इन्दौर भी सेन्टर बढ़ा भी रहे हैं और सन्देश देकर बाप के बना रहे हैं। राजस्थान भी ऐसे ही आगे बढ़ रहे हैं। आजकल की लहर सेवा का उमंग सभी में है और बापदादा भी इशारा दे रहे हैं कि जिस भी ज़ोन वाले हों, जहाँ से भी आये हो, शिवरात्रि बाप का जन्म भी है, सेवा का आरम्भ भी है और विशेष आत्माओं का भी जन्म दिन है। ऐसे जैसे कोई आजकल के गवर्मेन्ट का नामीग्रामी का जन्म होता है तो उस जन्म को धूमधाम से मनाते हैं, जैसे गांधी बापू जी का जन्म दिन कितना मनाते हैं, कोशिश करते हैं कि ऐसे दिन एक-एक को भारत का यादगार झण्डी या झण्डा लहराना चाहिए। ऐसे यह विशेष जन्म महारथियों का भी है, बाप का भी है। बापदादा का भी है। तो ऐसे दिन पर हर एक को क्या मनाना है? बापदादा का यह संकल्प है कि इस शिवरात्रि पर या एक सप्ताह पहले या एक सप्ताह पीछे इन दिनों में अपने परिचित, अपने मोहल्ले वाले, अपने दफ्तर के कार्य करने वाले साथी, इन्हों को सन्देश जरूर दो कि अगर बाप से वर्सा लेना है तो ले लो, यह सन्देश जरूर दे दो। आपके मोहल्ले में कोई ऐसा नहीं रहे जो कहे कि हमको अभी लास्ट में सन्देश क्यों दिया। थोड़ा पहले तो देते तो हम भी कुछ बना तो लेते, नहीं तो लास्ट में तो सिर्फ अहो प्रभू कहते रहेंगे। आप आये हमने नहीं पहचाना। उल्हना देते रहेंगे। तो इस शिवरात्रि पर किसी भी विधि से ऐसा प्रोग्राम आपस में बनाओ जो पहचान वालों को सन्देश मिल जाये। फिर रहा उन्हों की तकदीर। लेकिन आपने अपना कार्य पूरा किया। तो हर एक को ऐसे किसी भी रूप में उन्हों को सन्देश पहुंच जाए फिर जैसी नेचर, जैसा स्वभाव उसी प्रमाण अपने-अपने तरीके से सन्देश जरूर दो। बड़ा दिन है, खुशखबरी आपको सुनाते हैं। तो यह उल्हना निकल जाए। अभी भी प्रोग्राम करते हो तो क्या कहते हैं, ऐसे भी कहते हैं अभी भी, कि हमको तो अभी पता पड़ा है। आपने पहले क्यों नहीं किया? इसलिए बच्चों का, बापदादा का जन्म दिन है, जो पुराने हैं वह अपना जन्मदिन कौन सा मनाते हैं? शिवरात्रि मनाते हैं ना! तो इतनों के जन्म दिन पर यह सन्देश देने की मिठाई बांटों। ठीक है!बांटेंगे! हाथ उठाओ। कोई भी वंचित नहीं रहे, किसी भी विधि से, फंक्शन करो या पोस्ट द्वारा भेजो, लेकिन कोई रहे नहीं। किसी भी साधन से उनको सन्देश जरूर पहुंचाओ। वह आप आपस में राय कर तीन चार तरीके बनाओ। वर्ग वाले भी अपने सभी कनेक्शन वालों को शिवरात्रि के महत्व का सन्देश जरूर दें। पसन्द है? अच्छा।

गांव गांव में भी, जैसे गांव में रहने वाले ब्राह्मण तो बने ही हैं कोई न कोई, उनको अपने गांव में किसी भी रीति से चाहे पर्चा भेजो, चाहे सम्मुख जाओ लेकिन सन्देश जरूर दो। घर-घर में मालूम हो कि यह शिवरात्रि क्या है। इसमें देखेंगे कौन सा ज़ोन कितना नम्बर लेता है। हिसाब रखना। बापदादा रिजल्ट देखेंगे, कितनों को पर्चे बांटे, कितनों से प्रैक्टिकल मिले, सब रिजल्ट निकालना। हर एक को बिजी रहना है, कोई भी फ्री नहीं रहे। अच्छा। इन्दौर और राजस्थान। दोनों की विशेषता ब्रह्मा बाप के लाडले। ब्रह्मा बाप द्वारा इन्दौर का फाउण्डेशन पड़ा और राजस्थान में ब्रह्मा बाप या बापदादा द्वारा पहला म्यूजियम बना। तो दोनों ही ब्रह्मा बाबा के, बाप के तो हैं ही लेकिन विशेष ब्रह्मा बाप के लाडले हैं। तो ब्रह्मा बाप की छत्रछाया दोनों के ऊपर सदा रहती है। है तो सभी ज़ोन पर लेकिन इन्हों की विशेषता है। ब्रह्मा बाप जब सन्देशी जाती है और एडवांस पार्टी इमर्ज होती है तो उन्हों से यह पहली शुरू-शुरू की बातें बहुत रूहरिहान में करते हैं। आप सबके महारथी जो स्थापना के निमित्त बने हैं, वह बहुत साथी एडवांस पार्टी में निमित्त बने हैं तो उन्हों से बापदादा आदि की रूहरिहान बहुत करते हैं। और बापदादा और एडवांस पार्टी दोनों का एक ही संकल्प है कि अब कब गेट खोलने आयेंगे। क्योंकि अकेले एडवांस पार्टी भी खोल नहीं सकती, बापदादा भी खोल नहीं सकते, साथ खोलेंगे। तो पूछते हैं एडवांस पार्टी वाले और बापदादा भी कहते हैं कि आखिर भी सभी निराकारी फरिश्ते स्वरूप में कब एवररेडी होंगे! आजकल प्रकृति भी बहुत पुकारती है, बोझ बहुत बढ़ता जाता है। मन का भी, शरीरों का भी। इसलिए सभी आपका आवाह्न कर रहे हैं। अब थोडा-थोडा अपना एवररेडी का नज़ारा दिखाओ। वह नज़ारा है ज्यादा में ज्यादा समय या फरिश्ता रूप या निराकारी रूप, प्रैक्टिकल में प्रत्यक्ष करो अपना। गुप्त पुरूषार्थ करते हैं लेकिन अभी प्रत्यक्ष दिखाई दे, आपके मस्तक से लाइट का प्रकाश अनुभव हो। नयनों से रूहानियत की शक्ति अनुभव हो। मुख से, चेहरे से मधुरता, मुस्कुराता चेहरा अनुभव हो। तारीख पूछेंगे तो हर एक सोचेगा क्योंकि संगठन रूप में जो भी महावीर हैं, तीव्र पुरूषार्थी हैं उनको संगठन रूप में जाना है। आगे पीछे नहीं जाना है। पहले यहाँ एवररेडी का रूप प्रत्यक्ष होना है, जिससे प्रत्यक्षता हो बापदादा की, कार्य की। तो अभी तीव्र पुरूषार्थ करो, एक दो को सहयोग दो, आगे बढ़ाओ। कमज़ोर को सहारा दो। ऐसा संगठन बनाओ। अच्छा।

ग्राम विकास विंग, साइंस इंजीनियर विंग और स्पार्क:- अपना परिचय अच्छी तरह दे रहे हैं। अच्छा तीनों ही वर्ग का समाचार बापदादा ने सुना है। तो हर एक वर्ग जो भी आये हो उन्होंने आपस में अच्छी प्रगतिशील मीटिंग की है और मीटिंग में अपना-अपना आगे का प्लैन भी बनाया है। बापदादा खुश है कि आजकल वर्ग वाले सेवा में हर एक नम्बरवन लेना चाहते हैं। यह तीव्र पुरूषार्थ का उमंग उत्साह देख बापदादा सभी वर्गों को खास इन तीनों वर्गों को पदमगुणा मुबारक दे रहे हैं। प्लैन अच्छे बनाये हैं। अच्छे बनाये हैं और उमंग का बनाया है। इसलिए बापदादा तीनों को कहते हैं जो प्लैन बनाये हैं वह अभी जल्दी से जल्दी प्रैक्टिकल में लाओ। बापदादा को पसन्द है। सिर्फ बीच-बीच में आजकल तो फोन सिस्टम भी है, आपस में कान्फ्रेन्स करने की। तो हर एक वर्ग का जो विशेष निमित्त है, वह बीच-बीच में फोन कान्फ्रेन्स करके भी उमंग उत्साह बढ़ाओ। क्योंकि अपने-अपने शहर में उमंग उत्साह दिलायेंगे तो जैसे मीटिंग में उमंग उत्साह आता है विशेष। ऐसे बीच-बीच में रिजल्ट पूछ उन्हों को भी उमंग में लाओ। अच्छा है। यह बोर्ड पब्लिक के तरफ करो। नेचर की भी आजकल सभी को चिंता है। तो आप विशेष सन्देश दो, मन की नेचर द्वारा प्रकृति की नेचर को कैसे सुधार सकते हैं। प्लैन बनाया है लेकिन अभी हर जगह मिलकर प्रोग्राम द्वारा एनाउन्स करो, छोटे-छोटे प्रोग्राम भी बनाओ लेकिन आवाज फैलाओ। अभी जो भी प्रोग्राम चल रहे हैं बापदादा ने देखा कि हर एक प्रोग्राम में आवाज फैलाने का तरीका बहुत अच्छा बनाया है और भी जो कर रहे हैं, उसमें सबके निमित्त बने हुए सेवाधारियों की राय लेकर और प्रोग्राम में चार चांद और लगाओ। जहाँ भी जायें विशेष या छोटे-छोटे स्थान में भी आवाज हो, ब्रह्माकुमारियां कुछ प्रोग्राम कर रही हैं। शान्ति में नहीं बैठो, अभी उमंग उत्साह से आवाज फैलाओ। अभी नजदीक आने का समय है। वायुमण्डल अभी वैराग्य वृत्ति का नवीनता देखने और सुनने का इच्छुक है। एक दो में राय कर और उत्साह उमंग का चारों ओर आवाज फैलाओ। मुख्य जो स्थान हैं, देश हैं उसमें वर्तमान समय इकठ्ठा सन्देश पहुंचे, हर मुख्य स्थान पर अखबारों में आवे, यह हुआ, यह हुआ... यह कर रहे हैं, यह कर रहे हैं... चाहे रेडियो, चाहे टी.वी. सब तरफ से आवाज फैलाओ। अपने-अपने एरिया में भी टी.वी. द्वारा रेडियो द्वारा आवाज फैला सकते हो। अच्छा। बहुत-बहुत मुबारक हो, वर्ग आजकल उत्साह में कर रहे हैं, और करते रहना। अच्छा।

सिंधी ग्रुप:- सिंधी ग्रुप वाले हाथ उठाओ। यह उमंग सेवा का तरीका बहुत अच्छा बना लिया है। बापदादा विशेष निमित्त बनने वाले उन्हों को मुबारक देते हैं क्योंकि इसी कारण सभी को सन्देश तो मिल गया। आये कितने भी लेकिन परिचय कितनों को मिला। और सभी औरों को भी यह आपका साधन अच्छा लगेगा। सेवा भी हो गई और मनाना भी हो गया। डबल काम हो गया और जो भी साथ में आये हैं उन्हों की दुआयें भी मिल जायेंगी। अच्छा है। बाप को, शिवबाबा को अपने अवतरण का स्थान कौन सा पसन्द आया? सिन्ध पसन्द आई ना! तो भाग्य है ना! अवतरण के स्थान का महत्व कितना होता है! जो भी धर्म पिता आये हैं उन्हों के जन्म स्थान का कितना यादगार रहता है। तो सिन्ध जन्म भूमि उसका भी बहुत महत्व है। अभी यह प्लैन बना रही है, जनक प्रोग्राम बना रही है, अभी आप भी अपने-अपने पहचान वाले को जो वहाँ बैठे हैं, अगर परिचय है तो उन्हों को समाचार सुनाओ कि अभी यह स्थान अपना स्थान लिया है। छोटे से बड़ा हो जायेगा। लेकिन बापदादा यह अटेन्शन दिलाते हैं कि जिस समय जाओ उस समय के वायुमण्डल को जानकर फिर कदम उठाना क्योंकि यह इन लोगों के बदलने में देरी नहीं लगती है। बाकी अच्छा है, जहाँ जन्म स्थान है वहाँ प्रत्यक्षता होनी ही चाहिए। चाहे कोई भी धर्म वाले हों लेकिन है तो एक ही बाप के बच्चे। बाप का सन्देश सुनने के लिए सभी का हक लगता है। तो बापदादा आपका यह प्लैन देखकर खुश है। सभी को जो भी आये हैं उन सबको बापदादा विशेष मुबारक दे रहे हैं। मुबारक हो, मुबारक हो।

डबल विदेशी- बापदादा ने देखा कि डबल विदेशी चांस लेने में बहुत होशियार हैं। कहाँ से भी पहुंच भी जाते और अपने सर्विस के प्लैन अच्छे-अच्छे बनाके संगठन भी अपना मजबूत कर लेते। स्थान बहुत अच्छा ढूंढा है। बाप से भी मिलना, परिवार से भी मिलना और अपनी प्रोग्रेस भी करना। यह बापदादा को पसन्द है। विदेशी ऐसा सैम्पुल बनके दिखाओ जो जिस देश में निमित्त हो उस देश में जो भी सेन्टर हो, जितने भी सेन्टर हो वह निर्विघ्न बनने का एक्जैम्पुल बनाके दिखाओ। नम्बर लो। इन्डिया के ज़ोन भी पुरूषार्थ कर रहे हैं, अभी एनाउन्स नहीं हुआ है लेकिन आप नम्बर ले लो। जो भी ले। हिम्मत अच्छी है और सहयोग भी अच्छा मिला हुआ है। बापदादा ने देखा कि जो बनाते हैं उसकी जो पैकिंग करते हैं, इन्डियन भाषा में कहा जाता है पीठ करते हैं। कनेक्शन जोड़के किसी भी साधन से कनेक्शन में आगे बढ़ाते हैं। अच्छा है। उमंग उत्साह की लहर फैलाते रहते हो और हर साल कुछ न कुछ विशेषता एड भी करते। इसलिए बापदादा पदमगुणा मुबारक दे रहे हैं।

अभी इन्दौर क्या करेगा? कोई एक्जैम्पुल नम्बरवन बनाके दिखायेगा, चाहे इन्दौर करे चाहे राजस्थान करे, नम्बर ले लो। है हिम्मत। है ना हिम्मत? बापदादा को साथी तो बनाया ही है। तो बापदादा साथ है सिर्फ निमित्त बनना है। अच्छा।

बापदादा हर एक बच्चे की विशेषता को देख रहे हैं। हर एक बच्चे में किसी न किसी सबजेक्ट में विशेषता समाई हुई है इसलिए बापदादा इन्डिविज्युअल एक-एक बच्चे को होवनहार विजयी स्वरूप में देख रहे हैं क्योंकि सबको साथी बनके चलना है। साथ है, साथ चलेंगे। ब्रह्मा बाप के साथ में राज्य करेंगे। अच्छा।

चारों ओर के बच्चों को बापदादा देख देख खुश हो गीत गाते वाह बच्चे वाह! हर बच्चे के दिल में बाप है और बाप के दिल में हर बच्चा है। और यहाँ इतना परिवार मधुबन निवासी देखकर यह भी खुशी होती है वाह मधुबन वाह! सबका एशलम मधुबन है ही है इसलिए मधुबन में भागकर आ जाते हैं। अब बाप की जो आशा है वह जल्दी से जल्दी पूर्ण करना है। चार ही सबजेक्ट में अनुभवी स्वरूप बनना ही है। बापदादा देश विदेश चारों ओर के बच्चे यहाँ बैठे देख रहे हैं। सभी कैसे देख देख हर्षित हो रहे हैं। यह साधन, यह साइंस इसी समय प्रोग्रेस में जा रही है, नई नई इन्वेन्शन दुनिया के हैं लेकिन आपके फायदे के साधन अच्छे अच्छे निकाल रहे हैं। दूर होते भी साथ हैं। तो साइंस वालों को भी मुबारक है जो साधन तो बनाये हैं। अच्छा। सभी बच्चों को देश विदेश के सभी बच्चों को बहुत-बहुत दिल का प्यार और याद स्वीकार हो और विशेष ऐसे विशेष बच्चों को नमस्ते।

दादियों से:- उमंग उत्साह भी अच्छा है और प्रबन्ध भी मिल रहा है। यह साधन आपके समय ही निकले हैं, आपको ही सुख मिल रहा है। वह विनाश की बातें ही करते और आप फायदा ले रहे हो। अच्छा है।

मोहिनी बहन मुम्बई हॉस्पिटल में हैं, उन्हों ने विशेष याद भेजी है:- अभी लग गई है ना ठीक करने में, तो ठीक करके ही आवे। याद तो आती है लेकिन तबियत को भी साथ चलाना है। बापदादा को भी याद कर रही है, बापदादा के पास पहुंच रहा है। उसको विशेष याद प्यार भी दे रहे हैं।

दीदी निर्मलशान्ता से:- आपकी हिम्मत शरीर को चला रही है। बाप मददगार है और आपकी हिम्मत है।

रतनमोहिनी दादी से:- उड़ा भी रहे हैं, उड़ भी रहे हैं।

शान्तामणि दादी से:- ठीक है, खुश है। दृष्टि ले रही है बहुत अच्छी।

तीनों भाईयों से:- तीनों ही मिलके शिवरात्रि का प्लैन बनाना। जो भी विशेष स्थान हैं उसमें एक ही समय एक ही जैसा अपना-अपना करें, लेकिन मुख्य स्थानों में एडवरटाइज करो। सभी स्थानो पर हो। क्योंकि मुख्य स्थान तो कहाँ न कहाँ प्रबन्ध करके कर सकते हैं जैसे एक ही समय बड़े प्रोग्राम किये ना ऐसे शिवरात्रि का प्रोग्राम जगह जगह पर हो और सभी तरफ का इकठ्ठा करके जैसे पहले दिखाया वैसे दिखाओ।

मद्रास का प्रोग्राम बहुत अच्छा हुआ है:- यह भी आपस में सेवा में कुछ एडीशन करना हो या नवीनता करनी हो तो आपस में मीटिंग करके उसको भी आगे बढ़ा सकते हो। निमित्त हैं, निमित्त बनके काम तो अच्छा कर रहे हो लेकिन फिर भी इसमें एडीशन करनी हो तो कर सकते हो।

निजार भाई से:- अच्छा मुबारक हो। प्रोग्राम तो अच्छा चल रहा है फिर भी आपस में राय करके अगर कुछ एडीशन करनी हो तो एडीशन भी करो, चलाते चलो। जो राय हो वह सुनो, अगर पसन्द आवे तो उसको बढ़ाओ। बाकी अच्छा है। मीटिंग में जो भी राय हो वह दो और बाकी फिर सभी मिलकर फाइनल करने के बाद फिर उसको करके देखो।

डायमण्ड हॉल में नई स्क्रीन लगाई गई है, जिसे बापदादा देख रहे हैं:- सभी खुशी में उड़ रहे हो, यही बापदादा देख रहे हैं कि सभी एक-एक उड़ रहे हैं।



11-02-10   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


‘‘शिव के जन्म दिन पर क्रोध रूपी अक का फूल बापदादा को अर्पण कर दर्पण बनो, पवित्र प्रवृति के प्रत्यक्ष प्रमाण द्वारा प्रत्यक्षता को समीप लाओ’’

आज सभी बच्चे सम्मुख बैठे हुए और देश विदेश में बैठे हुए चारों ओर के बच्चे बहुत खुशी से बाप का और अपना जन्म दिन मनाने की अनेकानेक बधाईयां, मुबारकें दे रहे हैं। आप सम्मुख बैठे हो और दूर-दूर से साइंस के साधनों द्वारा सभी बच्चे खुशी-खुशी से दिल की मुबारकें दे रहे हैं। आप सभी जो भी यहाँ आये हैं वह बाप का जन्म दिन मनाने आये हैं वा अपना भी मनाने आये हैं? क्योंकि यह जयन्ती विचित्र जयन्ती है। क्यों विचित्र है? बाप और बच्चों की साथ-साथ है। सारे कल्प में ऐसी जयन्ती होती ही नहीं है। सारे कल्प में चक्र लगाके आओ। विचित्र जयन्ती है। तो बापदादा सभी बच्चों से पूछ रहे हैं कि आप सभी बाप को बधाईयां देने आये हो वा बाप से बधाईयां लेने आये हो? बापदादा अकेला कुछ नहीं करता क्योंकि जन्म लेते यज्ञ रचा। तो यज्ञ में ब्राह्मण चाहिए तो आपका भी जन्म बाप के साथ हुआ। इसका यादगार भक्ति में भी शिवरात्रि मनाते हैं तो साथ में सालिग्रामों की भी पूजा होती है। अनेकानेक सालिग्रामों को पूजते हैं। तो यह जयन्ती वन्डरफुल जयन्ती है इसलिए इस जयन्ती को हीरे तुल्य जयन्ती कहा जाता है। तो बापदादा सभी साथी बच्चों को पदम पदमगुणा बांहों के हार के बीच पदम पदमगुणा मुबारक दे रहे हैं। यह भी बाप और बच्चों की अति दिल के प्यार की निशानी है। बापदादा का बच्चों से वायदा है कि साथ रहेंगे, साथ चलेंगे। तो बोलो बच्चों का भी बाप से वायदा है ना! कि संगम पर साथ है, साथ-साथ रहना भी है, विश्व सेवा भी साथ में है। रहना भी है साथ में, उड़ना भी है तो साथ में। तो बोलो, आपका भी वायदा है ना कि साथ रहेंगे, साथ चलेंगे और ब्रह्मा बाप के साथ विश्व पर राज्य करेंगे। वायदा है? पक्का वायदा है? यही विशेषता इस शिव जयन्ती की है।

बापदादा ने अमृतवेले से देखा कि भिन्न-भिन्न स्थान के बच्चे बहुत ही खुशी से मुबारक, बधाईयां भेज रहे थे। आप तो अभी सम्मुख बधाईयां दे भी रहे हो और ले भी रहे हो। देना और लेना साथ में है। कितने भाग्यवान भगवान के बच्चे हैं जो सम्मुख बर्थ डे मना रहे हैं। सभी के चेहरे खुशनुम: खुशी में उड़ते हुए दिखाई दे रहे हैं। एक तरफ बापदादा बच्चों के भाग्य को देख रहे हैं और दूसरे तरफ भक्तों को भी देख रहे हैं। वह अभी तक पुकार रहे हैं आओ और आप साथ में मना रहे हो। बापदादा ने देखा भक्तों की अनुभूति भी कोई कम नहीं है। जो प्रैक्टिकल में आप कर रहे हो उसको यादगार रूप में कितनी अच्छी विधि से यादगार मनाया है। आपने व्रत लिया तो उन्होंने भी व्रत का यादगार बनाया है। वह एक दिन या थोड़े समय के लिए व्रत रखते हैं लेकिन आपने कौन सा व्रत रखा है? सभी ने बाप के आगे व्रत रखने का वचन लिया है ना! आपने बाप से खुशी-खुशी व्रत लिया है कि बाबा हम इस पूरे जन्म के लिए, ब्राह्मण जन्म के लिए व्रत धारण करेंगे, व्रत धारण किया है ना!कौन सा? पवित्रता का। एक जन्म का व्रत लिया है लेकिन एक जन्म पवित्रता का व्रत 21 जन्म चलेगा। वह थोड़े समय के लिए खाने पीने और जागरण का कार्य करते हैं। लेकिन आप अभी के एक जन्म के जागरण से अर्थात् अंधकार से रोशनी में आ गये और यह जागरण भी आपका 21 जन्म चलेगा। सारे विश्व में ऐसा जागरण किया है जो विश्व में आपके जागरण से विश्व जागती ज्योति रहेगी। कोई भी दु:ख अशान्ति का अंधकार नहीं रहेगा। तो बोलो, आपने सारे विश्व को अंधकार से रोशनी में लाया है, यह बेहद का व्रत अच्छा लगता है? मेहनत तो नहीं लगती? सहज है वा मुश्किल है? सहज लगता है! जिसको सहज लगता है वह हाथ उठाओ। कभी-कभी मुश्किल नहीं लगता? कभी लगता है? नहीं। क्योंकि आप जानते हो कि पवित्रता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है इसलिए पवित्रता सिर्फ ब्रह्मचर्य नहीं लेकिन मन-वाणी-कर्म, सम्बन्ध-सम्पर्क में भी पवित्रता। पवित्रता के संस्कार सहज धारण करने वाले हो। तो पवित्रता का तो संकल्प किया है लेकिन अभी समय अनुसार बापदादा समय की वार्निंग तो दे रहे हैं, तो जैसे पवित्रता का व्रत हिम्मत रख अपना स्वधर्म समझ धारण किया है वैसे जो दूसरा भूत है क्रोध, तो आज बापदादा यह पूछते हैं कि एक महाभूत को तो व्रत लेकर वृत्ति बदली लेकिन दूसरा जो भूत है क्रोध का, क्या क्रोध के भूत पर विजय प्राप्त करना यह भी संकल्प किया है या दूसरा विकार है इसीलिए छूट है? क्योंकि क्रोध सबके कनेक्शन में आता है तो आज के दिन, जब भी जन्मदिन मनाते हैं तो एक-दो को गिफ्ट भी देते हैं तो आज बापदादा यह चाहते हैं कि जैसे हिम्मत और बाप की मदद से पहले नम्बर पर मैजारिटी जीत प्राप्त कर चल रहे हैं क्या ऐसे ही क्रोध पर भी जीत हो सकती है? क्योंकि कोई भी भूत परेशान तो करते हैं और क्रोध का भूत दूसरों के कनेक्शन में आता है। सम्पर्क में आता है। अपने मन में भी जब क्रोध आता है तो खुद भी क्रोध से लाचार होते हैं। तो बाप का बर्थ डे मनाने आये हो तो आज बापदादा चाहे भारत वा फॉरेन वाले सभी बच्चों से क्रोध की गिफ्ट लेने चाहते हैं। हो सकता है? हो सकता है? जो समझते हैं कि आज के दिन बाप को गिफ्ट में दे सकते हैं, मन में भी नहीं, स्वप्न में भी नहीं, ऐसा अपने को संकल्प रख हिम्मत से आगे बढ़ने की शक्ति है! है? जो बाप को हिम्मत से संकल्प कर सकते हैं, करेंगे और बाप से गिफ्ट लेंगे। गिफ्ट में दो और गिफ्ट लो। अगर क्रोध पर जीत हो गई तो औरों पर भी करने की हिम्मत आयेगी। तो कौन समझता है कि हम यह गिफ्ट देकर और बाप से गिफ्ट लेंगे? वह हाथ उठाओ। अच्छा, झण्डा हिला रहे हैं। कुमारियां भी, देखना। बापदादा को बच्चों की हिम्मत देख बहुत अच्छा लग रहा है। आप सीन देख रहे हो ना! फोटो निकालो फिर हाथ उठाओ। हाँ फोटो निकालो सभी का। बापदादा इस हिम्मत पर आपको रोज़ अमृतवेले जब मिलन मनाते हो उस समय विशेष अनुभवी आत्मा सहज बनने की बधाई देंगे। क्योंकि इतने सब रहते अपने-अपने स्थान पर रहते भी जब लोग देखेंगे कि यह इतने रहते हैं, इकट्ठे रहते हैं, प्रवृत्ति सम्भालते हैं, घरबार छोड़के नहीं गये हैं, लेकिन पवित्र प्रवृत्ति बनाई है तो क्या हो जायेगा? जो आप सबके अन्दर शुभ भावना है कि आत्माओं की क्यु लग जाए वह क्यु आपको दिखाई देगी। क्योंकि क्रोध प्रत्यक्ष दिखाई देता है। जब प्रैक्टिकल देखेंगे कि यह तो सिर्फ पवित्रता कहते नहीं लेकिन पवित्र रह करके दिखाते हैं, प्रत्यक्षता चाहते हो तो यह प्रत्यक्ष प्रमाण है इससे सभी आकर्षित होके स्वत: ही आयेंगे। लेकिन सुनायें? आगे सुनायें? क्रोध आने का कारण मैजारिटी देखा गया है कि कहाँ न कहाँ ईर्ष्या और साथ में कुछ भी देख करके चलते हुए वेस्ट थॉट्स का बीज भी क्रोध को लाता है क्योंकि वेस्ट थॉट्स है बीज, इस बीज से क्रोध भी उत्पन्न होता है और इसका एक शब्द निमित्त बनता है, उस एक शब्द के बीज को अगर खत्म किया तो सहज हो जायेगा। वह एक शब्द है ‘क्यों’, यह क्यों? यह क्यों हुआ? यह क्यों किया? यह क्यों करते हैं? इस ‘क्यों’ शब्द का बड़ी क्यू है। और देखो क्यू अक्षर इंगलिश में लिखो तो कितना मुश्किल लिखा जाता है। और ‘ए’ लिखो, कितना सहज है। तो बापदादा आज यही चाहते हैं कि इस क्यों शब्द का क्यु खत्म करो। तो जो आप सबकी आश है कि अभी जल्दी-जल्दी बाप की प्रत्यक्षता हो, हर एक की दिल में बाप के स्नेह का फ्लैग, झण्डा लहरावे और दिल गीत गाये, दिल में गीत गाये हमारा बाबा आ गया। मीठा बाबा आ गया। यही चाहते हो ना! कि जल्दी जल्दी प्रत्यक्षता का झण्डा सबके दिल में लहराये। तो इसका कारण क्यों, क्या, कैसे होगा, यह कै-कै की भाषा खत्म करके कै बोलना है तो कमाल बोलो। कै-कै नहीं करो। जब बापदादा ने बच्चों का बो\डग खोला, पाकिस्तान की बात है, आदि में तो जगत अम्बा बच्चों को यही कहती थी तो कै-कै की भाषा नहीं करो। कै-कै ज्यादा कौन करता है? वह अच्छा लगता है? तो अभी क्यों क्यों की क्यु नहीं लगाओ। हाँ जी, अच्छा जी, बहुत अच्छा, हम मिलके करेंगे, उड़ेंगे ऐसे बोल बोलो। हो सकता है भाषा परिवर्तन? कै-कै नहीं, यह क्यु छोड़ दो तो वह क्यु लगेगी।

तो सभी ने बापदादा को, क्योंकि शिव के ऊपर अक के फूल ही चढ़ते हैं तो आज शिवरात्रि मना रहे हो, शिव का जन्म दिन मना रहे हो तो यह क्रोध का अक का फूल बापदादा को अर्पण कर दो तो आप दर्पण बन जायेंगे। पसन्द है ना! पसन्द है? अच्छा। तो अभी होली पर बापदादा आयेंगे, उसमें रिजल्ट लेंगे। थक नहीं जाना। हुआ नहीं, निश्चयबुद्धि होके करो, करना ही है। और हाथ उठाया, हाथ उठाना अर्थात् बाप को दे दिया। दिया ना! फिर हाथ उठाओ। देख रही हैं दादियां, देख रही हो? ताली बजाओ। हिम्मत कभी भी नहीं हारना। अगर थोड़ा भी कम हुआ तो आगे के लिए हिम्मत रखके छोड़ नहीं देना। बढ़ते रहना। बापदादा कम्बाइन्ड है, कहते हो ना, साथ है नहीं कहते हो, कम्बाइन्ड है। तो ऐसे समय पर अगर कुछ भी हो तो बापदादा कम्बाइन्ड है उसको सामने लाके फिर अर्पण कर दो। लेकिन बापदादा चाहता है कि सभी बच्चे नम्बरवन हो, दी हुई चीज़ अमानत हो गई। हाथ उठाया अर्थात् दिया तो अभी आपका नहीं हुआ। अमानत है। तो अगर संकल्प में भी आये तो समझना अमानत में ख्यानत, यह बुरा माना जाता है। दी हुई चीज़ कभी वापिस नहीं ली जाती क्योंकि मेरी नहीं।

तो आज बापदादा चारों ओर के जो स्क्रीन में भी देख रहे हैं, वहाँ बैठे सब खुशी-खुशी से देख रहे हैं और संकल्प भी कर रहे हैं, तो मधुबन या सभी सेन्टर क्या बन जायेंगे? क्या बन जायेंगे? सभी सेन्टर्स निर्विघ्न भव के वरदानी बन जायेंगे। पसन्द है ना! पसन्द है? क्योंकि बापदादा चाहते हैं कि अभी अचानक सरकमस्टांश ऐसे बनेंगे जो दु:ख और अशान्ति के कारण ऐसे बनेंगे जो आप सबको आत्माओं पर रहम आयेगा, क्योंकि आप पूर्वज हो, पूज्य भी हो और पूर्वज भी हो। तो पूर्वज कोई भी आत्मा का दु:ख या डिस्ट्रबेन्श देख नहीं सकते, जिससे प्यार होता है, रहम होता है उसका दु:ख देख नहीं सकता। तो बाप समझते हैं कि समय आपको परिवर्तन करे, इससे पहले आप पुरूषार्थ के प्राप्ति की प्रालब्ध अभी से अनुभव करो। क्योंकि आपका सिखाने वाला समय नहीं है, समय आपका टीचर नहीं है। तो होली पर हर एक अपनी रिजल्ट ज्यादा लम्बा नहीं लिखना, पढ़ने की भी फुर्सत नहीं होती। लेकिन बापदादा ने पहले भी सुनाया कि जैसे आपको वरदान की चिटकी मिलती है ना, कितनी छोटी होती है, उसमें ओ.के. लिखो। ओ.के. शब्द लिखना। अगर आपमें पुरूषार्थ करते कुछ भी हुआ हो तो ओ.के. के बीच में लाइन लगाना। इजी है ना! इतना कागज वेस्ट नहीं करना। अगर ज्यादा बार हो, एक बार दो बार तीन बार लाइन लगाते जाना। और होली के पहले मधुबन में भेज देना। भले इकट्ठे करके भेजो, टीचर भेजे। फिर बापदादा के पास रिजल्ट पहुंच जायेगी। इसमें नम्बरवन कौन? फिर बापदादा आपको पदम पदमगुणा दिल के स्नेह की सौगात देंगे। अच्छा। डबल फारेनर्स है ना! हाथ उठाओ। नम्बर लेंगे ना! देखेंगे फॉरेन वाले नम्बर लेते हैं या भारत वाले। अच्छा है। बापदादा तो सभी को उम्मींदवार नहीं देखते लेकिन बाप के आशाओं को पूर्ण करने वाले बाप के आशाओं के दीपक के रूप में देखने चाहते हैं।

मधुबन क्या करेगा? मधुबन वाले हाथ उठाओ। नीचे ऊपर सब मधुबन। ऊपर वाले भी हाथ लम्बा उठाओ, हिलाओ। अच्छा। मधुबन को नम्बर तो लेना चाहिए। लेना चाहिए ना! लेना चाहिए? क्योंकि मधुबन को कापी सभी बहुत जल्दी करते हैं। तो अच्छा है। अच्छा - इस बारी जो पहले बारी आये हैं वह उठो।

बहुत हैं। बापदादा पहले बारी आने वालों को चांस देते हैं कि फास्ट जाओ और फर्स्ट आओ। अच्छे हैं। हिम्मत वाले हैं। और बाप कम्बाइन्ड है, कम्बाइन्ड शक्ति से जो चाहो वह कर सकते हो। कुछ भी आवे ना तो बाप को दे देना। आप यूज नहीं करना। जैसे छोटे बच्चे होते हैं ना, छोटे बच्चों को देखा है ना। कोई भी चीज़ अगर अच्छी नहीं लगती है तो क्या करते हैं, मम्मी-पापा यह लो, हमको नहीं चाहिए। तो बाप मददगार है और सदा रहेंगे। तो पहले बारी आने वालों को पहले बारी आने की पदम पदमगुणा मुबारक है, मुबारक है, मुबारक है। आपकी तालियां विदेश-देश चारों ओर देख रही हैं। साइंस वालों की भी कमाल है ना! बापदादा निमित्त बनने वालों को भी मुबारक देते हैं जो इस समय जब आपको आवश्यकता है इन साधनों की, तो इस समय नये से नये साधन निकाल रहे हैं। भक्तों पर भी बापदादा को तरस बहुत पड़ता है। बहुत मेहनत करते हैं। आप मोहब्बत में रहते और वह मेहनत में रहते, आप मेहनत नहीं करना। मोहब्बत में ही रहना। अच्छा। बैठ जाओ।

ओम् शान्ति का मन्त्र शस्त्र बनाके यूज करो। जिसके पास शस्त्र होते हैं ना वह अपने को हिम्मत वाले समझते हैं। जैसे मिलेट्री वाले हिम्मत रखते हैं। अच्छा।

चारों ओर के कम्बाइन्ड रहने वाले देख भी रहे हैं, सुन भी रहे हैं लेकिन सभी जो नहीं भी सुन रहे हैं, वह मुरली द्वारा तो सुनेंगे ही। तो चारों ओर के बाप के स्नेही सहयोगी मीठे-मीठे, प्यारे-प्यारे बच्चों को बापदादा पदम पदमगुणा बधाईयां भी दे रहे हैं, मुबारक भी दे रहे हैं और साथ-साथ प्रत्यक्षता का झण्डा जल्दी से जल्दी लहराने का संकल्प भी दे रहे हैं। समय पर नहीं रहो, समय को टीचर नहीं बनाना, जब बाप; बाप, शिक्षक और सतगुरू है तो जैसे आपकी जगत अम्बा ने किया, दो शब्द में नम्बर ले लिया। बाप का कहना और जगत अम्बा का करना - ऐसे तीव्र पुरूषार्थ किया और नम्बर लिया। आप सब भी मानते हो ना, तो आप भी फॉलो मदर जगत अम्बा। अच्छा। सबको यादप्यार और बहुत-बहुत दिल की दुआयें स्वीकार हो। साथ-साथ बाप बच्चों को मालिकपन में देख नमस्ते कर रहे हैं।

सेवा का टर्न भोपाल ज़ोन का है:- अच्छा, बहुत अच्छा। भोपाल ज़ोन नाम ही है भूपाल, तो भू किसको कहते हैं? धरनी को। उसको पालने वाले। आप धरनी के सितारे बन आत्माओं को उड़ाने वाले, चलाने वाले नहीं, उड़ाने वाले। सबसे सहज साधन है उड़ना और उड़ाना। तो भोपाल निवासी खुद भी उड़ने वाले और औरों को भी उड़ाने वाले। ठीक है, ऐसे है? कि कोशिश कर रहे हो? नहीं, हैं और रहेंगे। बापदादा को हर ज़ोन पर जिगरी स्नेह है। अभी बापदादा ने पहले भी कहा है कि नम्बरवन ज़ोन वह बनेगा जिसमें वारिस बच्चे अधिक हों। साधारण तो आते रहेंगे लेकिन वारिस क्वालिटी जिस ज़ोन में वेरीफाय किये हुए, ऐसे नहीं आप लिस्ट लिख दो लेकिन वेरीफाय करेंगे, तो जिस ज़ोन में वारिस क्वालिटी ज्यादा में ज्यादा होगी, उसको नम्बर देंगे। प्रोग्रामस भी सभी कर रहे हैं और अभी भी कर रहे हैं, बापदादा के पास सब समाचार आता है। क्योंकि वारिस क्वालिटी अपने राज्य में राज्य अधिकारी बनेंगे। अगर राज्य अधिकारी तैयार हो गये, सब मिलाके तो राज्य में आने में कोई देरी नहीं लगेगी। तो भोपाल नम्बर लेंगे ना! जो खुद वारिस है, वह फोर्स का कोर्स कराके दूसरों को भी वारिस जल्दी से जल्दी बना सकता। साधारण कोर्स नहीं, फोर्स का कोर्स। जब आरम्भ किया था, बापदादा ने सिन्ध में आरम्भ किया तो सिन्धी में कहते थे, उस समय झटपट कुल्फी एक पैसा। तो आदि का बोल अभी प्रैक्टिकल होना है। समय को भी वरदान है सिर्फ आप थोड़ा दृढ़ संकल्प करो उड़ाना ही है, चलाना है नहीं, उड़ाना है। तो भोपाल ने चांस लिया यह तो बहुत अच्छा किया। अभी नम्बर लेना। अच्छा।

अच्छा बापदादा ने सभी ज़ोन को वारिस और माइक, प्रभावशाली माइक जिनका अनुभव सुन प्रेरणा आ जाए कि हम भी बनें, किसी को भी सैटिस्फाय कर सकें। सभी ज़ोन लिस्ट भेजना। तो आज बापदादा ने देखा कि देहली वालों ने लिस्ट भेजी है। बापदादा मुबारक दे रहे हैं। तो सभी ज़ोन भेजेंगे तो आपको भी रिजल्ट सुनायेंगे कितने वारिस तैयार हुए हैं। चेकिंग करायेंगे, ऐसे नहीं लिस्ट आई तो मान जायेंगे। गुप्त चेकिंग करायेंगे। तो अच्छा आदि में भी मुबारक और बधाईयां मिली, अभी भी बापदादा एक-एक बच्चे का दिल में नाम ले पदम पदमगुणा मुबारक दे रहे हैं। बाप के पास तो सभी बच्चों का चित्र वतन में इमर्ज है। तो बापदादा ने बच्चों का बर्थ डे मनाया और बच्चों ने बाप का बर्थ डे मनाया, दोनों को मुबारक। अच्छा।

लच्छू दादी से:- अच्छा करती है, सजाती अच्छा है।

दादियों से:- स्नेह में तो है ही। आप स्नेह में नहीं रहेंगे तो वायब्रेशन कैसे मिलेंगे।

मोहिनी बहन से:- ठीक है, ठीक ही रहेंगी। ठीक हो जायेंगी। संकल्प में ताकत है। संकल्प को पूरा कर रही हो। बाप की मदद भी है। बाप की मदद है लेकिन प्यार है ना तो औरों की भी मदद है। अच्छा है।

परदादी से:- आप सालिग्राम को बाप के साथ जन्म की मुबारक हो। मुबारक है, मुबारक है।

शान्तामणि दादी से:- प्यार है ना! बाप से प्यार है। सभी मुबारक देंगे। बहुत अच्छा।

रमेश भाई से:- अच्छा है आगे-आगे बढ़ते जा रहे हैं। बस लक्ष्य रखा है तो सभी एक-दो को सहयोगी बन आगे उड़ते जायेंगे। अभी उड़ना और उड़ाना है। चलने का टाइम पूरा हुआ। जितने हल्के उतने उड़ेंगे। और औरों को भी उड़ायेंगे। अभी सीजन है उड़ाने की। बहुत अच्छा।

(निर्वैर भाई ने सभी की याद दी) सभी को याद देना। जिन्होंने भी यह कार्ड आदि भेजे हैं उन सभी को यादप्यार। वैसे तो देखा होगा लेकिन फिर भी खास यादप्यार भेजना और यही लिखना कि अभी सीजन है उड़ने और उड़ाने की, इसीलिए डबल लाइट।

भूपाल भाई से:- चारों तरफ सब ठीक चल रहा है ना!

(अंकल आंटी और मुरली दादा की याद दी) बापदादा के पास उन्हों का आया है। दोनों ही निमित्त बने हुए हैं, अपने-अपने कार्य के हिसाब से दोनों ही विशेष हैं।

मोहिनी बहन के डाक्टर से:- सिर्फ सेवा नहीं करना लेकिन अपने बाप के प्यार की हिम्मत, उमंग यह भी देना। डबल डाक्टर हो ना तो डबल काम करना।

बापदादा ने अपने हस्तों से झण्डा फहराया:-

आज शिव जयन्ती पर आप और बाप के जन्म दिवस का यादगार यह झण्डा लहराया। आप सबका भी झण्डा लहराया, सालिग्राम हो ना। एक-एक सालिग्राम बाप के साथ के हैं। जैसे बाप की पूजा होती वैसे सालिग्राम की भी होती है। उन सभी की निशानी बिन्दू लगाते हैं। तो शिवरात्रि पर विशेष बिन्दू की महिमा होती है। तो आज तो यह झण्डा लहराया लेकिन वह दिन जल्दी से जल्दी आना है जो सबके बाप के स्नेह का झण्डा लहरायेगा। अभी बाप ने इशारा आज दिया वह आप करेंगे ना, तो प्रत्यक्षता जल्दी से जल्दी होगी। आया कि आया, आपके सामने भी यह दृश्य, सभी के मुख से यह आवाज निकले हमारा बाबा आ गया। अभी तीव्र पुरूषार्थ करके यह समय जल्दी से जल्दी समीप लाना ही है, आना ही है, होना ही है और सबको बोलना ही है। अच्छा –

आप सभी को बापदादा विशेष स्नेह का हार पहना रहे हैं। बढ़ते चलो, उड़ते चलो, उड़ाते चलो। अच्छा।

इन्टरनेशनल कुमारीज रिट्रीट:- कुमारी को पूजते हैं क्योंकि कुमारी शुद्ध है, पवित्र है। तो पवित्रता की पूजा होती है। तो आप अपने को ऐसी पूज्य आत्मा समझती हो, समझती हो? भाषा नहीं समझती हैं। तो कुमारी वह है जो औरों को भी पवित्र रहने की शिक्षा दे करके उनको भी पवित्र बनाये इसलिए आगे बढ़ते रहना, थकना नहीं, किसको देखना नहीं। बाप को फॉलो करो और फॉलो करके बाप के द्वारा अनेक शक्तियों का वरदान लेके आत्माओं को उड़ाओ क्योंकि कुमारियां हल्की हैं, बोझ नहीं है तो औरों को भी ऐसे उड़ाते चलो। बापदादा को आप सबको देख के खुशी है कि एक-एक कुमारी 100 ब्राह्मणों से उत्तम है। इतना अपना स्वमान समझो। बाकी अच्छा किया, ट्रेनिंग की, अभी तैयार होके औरों को ट्रेनिंग कराओ, यह रिजल्ट निकालो। समाचार आयेगा, समाचार देती रहना और यहाँ बाप के पास पहुंच जायेगा। अच्छा है। हिम्मत है, अभी उमंग-उत्साह से उड़ो। अच्छा।

74वीं त्रिमूर्ति शिव जयन्ती की मधुबन बेहद घर से सर्व दादियों सहित हम सभी मधुबन निवासी भाई-बहनों की बहुत-बहुत दिल से हार्दिक बधाईयाँ स्वीकार करना जी।

प्यारे बापदादा के साथ हम सबने खूब खुशियाँ मनाई। बापदादा ने अपने हस्तों से झण्डा फहराया। बर्थ डे की गिफ्टी ली और दी। हम सब बापदादा की आशाओं को पूरा कर होली पर अपनी-अपनी रिजल्ट अवश्य देंगें। कै-कै की भाषा को छोड़ क्रोध मुक्त बन सम्पूर्ण पवित्रता का प्रत्यक्ष प्रमाण देंगे। इसी शुभ संकल्प के साथ सबको कोटि-कोटि बधाईयाँ।



28-02-10   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


‘‘देहभान के मैं-मैं की होली जलाकर परमात्म, संग के रंग की होली मनाओ’’

आज होलीएस्ट बाप अपने होली बच्चों से होली मनाने आये हैं। चारों ओर के बच्चे दूर दूर से स्नेह में दिल में समा रहे हैं। बापदादा चारों ओर के बच्चों के मस्तक में भाग्य का सितारा चमकता हुआ देख रहे हैं। इतना बड़ा भाग्य सारे कल्प में और किसका भी नहीं होता। इस संगमयुग के प्राप्ति के आधार से आप बच्चे ही इतने श्रेष्ठ पवित्र बनते हो जो भविष्य में आप डबल पवित्र बनते हो। आत्मा भी पवित्र और शरीर भी पवित्र। सारे कल्प में चक्र लगाके देखो कोई धर्मात्मा भी डबल पवित्र नहीं बना है। आप बच्चे डबल पवित्र भी बनते हो और डबल पवित्रता की निशानी डबल ताजधारी बनते हो।

आज होली सब मनाते हैं लेकिन आप इस समय जो डबल होली बनते हो उसका यादगार उत्सव के रूप में होली मनाते हैं। आपके ही हर कदम-कदम का जीवन का महत्व उत्सव के रूप में मनाते हैं। आप इस संगम पर हर दिन, हर कदम उमंग और उत्साह में रहते हो तो आपके उमंग-उत्साह का यादगार यह उत्सव के रूप में मनाते हैं। क्यों उमंग उत्साह रहता? क्योंकि आप परमात्मा के संग के रंग की होली मनाते हो। तो आपका हर कदम उत्सव के रूप में मनाते हैं। अभी होली में पहले जलाते हैं फिर मनाते हैं। आप भी संगम पर अभी अपने पुराने संस्कार स्वभाव को योग अग्नि में जलाते हो क्योंकि अपने पुराने संस्कार को जलाने के बिना परमात्म संग का रंग लग नहीं सकता, परमात्म मिलन हो नहीं सकता। तो आपने योग अग्नि में संस्कारों को जलाया फिर परमात्म संग के रंग में रंगे। तो आजकल जलाते भी हैं और रंग भी लगाते हैं लेकिन आपके अध्यात्मिक रूप को स्थूल रूप दे दिया है। वह स्थूल आग जलाते, स्थूल रंग लगाते क्योंकि अभी बॉडीकान्सेस वृत्ति है। आप होली बनते हो वह होली मनाते हैं। सारे कल्प में कोई भी अध्यात्मिक होली मनाके डबल होली नहीं बनें। तो आप सभी जो भी जहाँ से आये हो तो परमात्म संग के होली में आये हो। परमात्म संग की होली मनाने आये हैं। आप होली के लिए कहते हो कि होली अर्थात् जो बात हो चुकी वह हो ली। तो ड्रामा अनुसार जो बीत चुका उसको कहते हैं हो ली, बीती सो बीती। कोई भी व्यर्थ बात चित पर नहीं लाते हैं, हो चुकी, ऐसी होली मनाते रहते हो ना। आप सभी ने होली अर्थात् पवित्र बनने का पूर्ण पुरूषार्थ कर पवित्रता को धारण किया है तभी भविष्य में आपको डबल पवित्रता की निशानी डबल ताज दिखाते हैं।

तो आज के दिन आप हर एक बच्चा क्या जलाके जायेंगे? बापदादा ने देखा कि जन्मदिन पर जो बाप ने होम वर्क दिया था - क्रोध को जन्मदिन पर जन्मदिन की गिफ्ट दे दो। तो उसकी रिजल्ट बापदादा के पास कुछ बच्चों की आज पहुंची है। बापदादा ने देखा कि कहाँ-कहाँ बच्चों ने अटेन्शन दिया है। आप सबने भी अपनी रिजल्ट निकाली होगी तो जो भी आज बैठे हैं, उन्होंने अपनी रिजल्ट निकाली, जिन्होंने अपनी रिजल्ट में कन्ट्रोल किया और सफलता का अनुभव किया वह हाथ उठाओ। सफलता को प्राप्त किया! बड़ा हाथ उठाओ। टीचर्स हाथ उठाओ, फारेनर्स हाथ उठाओ। (सभी ने उठाया) अच्छा। मुबारक हो। इससे आप सबने अपने में हिम्मत रखी और हिम्मत का फल प्राप्त हो सकता है, यह अनुभव किया। तो क्या अगर इस अनुभव को आगे भी लक्ष्य रखके बार-बार चेकिंग करते और आगे बढ़ाने चाहे तो समझते हो कि सम्भव है? सम्भव है? आगे हो सकता है? वह हाथ उठाओ। अच्छा। हो सकता है? टीचर्स हो सकता है? पाण्डव हो सकता है? अच्छा। सम्भव हो सकता है, नहीं, होना ही है इसकी ताली बजाओ। अच्छा। अभी तो ज्यादा दिन नहीं हुए हैं लेकिन अभी हर तीन मास के बाद आज से तीन मास अटेन्शन रख क्रोध का टेन्शन खत्म कर सकते हो? कर सकते हो? वह हाथ उठाओ। अच्छा। यह तो खुशखबरी बहुत अच्छी है, क्यों? क्रोध का कारण क्या होता है? क्रोध का बीज क्या होता है? आप सदा अपना भविष्य स्वरूप सामने रखो, आपका भविष्य स्वरूप कितना सजा सजाया हर्षित चेहरा है और बापदादा को देखो उसमें भी ब्रह्मा बाप को सामने लाओ क्यों? शिव बाप तो है ही निराकार लेकिन ब्रह्मा बाप आपके सदृश्य साकार रूपधारी, आपके सदृश्य जिम्मेवारी का ताजधारी फिर भी सदा मुस्कराता हुआ, खुशनुमा चेहरा क्योंकि इन विकारों पर विजय प्राप्त कर आपके आगे शरीर होते कार्य करते एक्जैम्पुल रहा। ब्रह्मा बाप से ज्यादा आपकी जिम्मेवारी है?ब्रह्मा बाप की जिम्मेवारी के आगे आपकी जिम्मेवारी तो कुछ भी नहीं है। और लास्ट तक देखा कर्मातीत वायब्रेशन में अव्यक्त फरिश्ते बन गये। तो अभी बापदादा को दी हुई सौगात वापस तो नहीं लेंगे ना! बापदादा समझते हैं कि कारोबार में आते हैं तो कहाँ-कहाँ ऐसे सरकमस्टांश बनते हैं, कईयों ने रिजल्ट में भी लिखा कि तेज आवाज हो जाता है। मूड में थोड़ी तेजी आ जाती है। लेकिन जब ऐसी बातें सामने आती हैं तब ही तो विजयी बनने का चांस है। बातों का काम है आना लेकिन आपका नॉलेज है बातों से पार हो विजयी बनना। तो पसन्द है? क्रोध को विदाई देंगे सदा के लिए या तीन मास के लिए? कितना समय की हिम्मत है? जो समझते हैं सदा के लिए क्रोध जीत बनना मुश्किल नहीं है, होना ही है वह हाथ उठाओ। होना ही है। अच्छा। बापदादा खुश है क्यों? आपके लास्ट जन्म में भी आपकी महिमा क्या गाते हैं? आपके देवता रूप के आगे आपकी महिमा सर्वगुण सम्पन्न, सम्पूर्ण निर्विकारी यह गाते हैं। तो आपका यह बनने का पार्ट अभी संगमयुग का ही गायन है। बापदादा के दिल की विशेष आशा है बतायें? कांध हिलाओ बतायें? बापदादा अभी से, अभी से हर एक बच्चे को सदा खिला हुआ गुलाब का पुष्प देखने चाहते हैं। खुशनसीब, खुशनुमा। बातों का काम है आना, यह भी समझ लो। बातें आयेंगी लेकिन अपना लक्ष्य लक्षण में लाना है। घबराना नहीं। तो जैसे अभी कहते हैं कि ब्रह्माकुमारियां पवित्रता का बहुत पाठ पढ़ाती हैं, ऐसे प्रसिद्ध हो कि ब्रह्माकुमारियां क्रोधमुक्त बनाती हैं क्योंकि क्रोध से मुक्त होना सब चाहते हैं। तनाव होता है ना! तो तनाव पैदा होता है इसलिए सभी चाहते हैं लेकिन उन्हों को विधि नहीं आती है। जैसे पवित्र बनना असम्भव समझते थे लेकिन अभी आप सबके अनुभव के आधार से समझते हैं कि हो सकता है। ऐसे अभी इस वर्ष यह लहर फैलाओ कि क्रोध जीत बनना हो सकता है, कोई मुश्किल नहीं है। ऐसा एक्जैम्पुल के अनुभव प्रैक्टिकल में स्टेज पर लाओ। बापदादा ने देखा है कि बहुत बच्चे कार्य करते भी क्रोध जीत बने हैं। ऐसे दृष्टान्त आपके परिवार में, ब्राह्मण परिवार में बने हैं। तो इस वर्ष क्या करेंगे? होली मनाने आये हो ना! तो होली में क्या करते हैं? कुछ जलाते हैं ना! तो आज की होली में आप क्या जलायेंगे? क्रोध का तो कर लिया, इसको पक्का करेंगे! लेकिन बापदादा ने देखा कि तनाव में आने का कारण देह अभिमान का ‘मैं’ शब्द है। देहभान का ‘मैं’, एक है मैं आत्मा हूँ - यह ‘मैं’ है, लेकिन देहभान का मैं शब्द अभिमान का भी होता, अपमान का भी होता और दिलशिकस्त का भी मैं-मैं नीचे गिराता। तो आज क्रोध जीत में आगे बढ़ने के लिए बॉडी कान्सेस का मैं इसको योग अग्नि में जलाओ। अनेक मैं-मैं को जलाओ और एक मैं आत्मा हूँ, इस ‘मैं’ शब्द को पक्का करो और बाकी ‘मैं’ आज योग अग्नि में जलाके जाओ। अनेक मैं है ना। तो आज जलाने की होली मनायेंगे! क्योंकि क्रोध का कारण तनाव बहुत होता है। तो इस ‘मैं’ को समाप्त करने के लिए आज अपने अन्दर संकल्प लो। जलाना है क्योंकि यह भी तो बोझ है ना। तो ट्रेन में जाओ, प्लेन में जाओ तो यह बोझ यहाँ जलाके जाओ। जला सकते हो? जो समझते हैं हिम्मते बच्चे मददे बाप साथ है ही, तो विजय भी साथ है, जो यह सोचते हैं कि मुझे विजयी बनना ही है, वह हाथ उठाओ। बनना ही है अच्छा। जो आज वी.आई.पी आये हैं वह हाथ उठा रहे हैं। जो वी.आई.पी आये हैं उठो, खड़े हो जाओ। हाथ उठा रहे हैं। ताली तो बजाओ। विजयी बनेंगे? देखो। जो भी विजयी बनेंगे, उस एक-एक को माला पहना रहे हैं। मुबारक हो, मुबारक हो। अच्छा। हिम्मत वाले अभी जो भी वी.आई.पी आये हैं हिम्मत वाले हैं इसीलिए बापदादा वरदान दे रहे हैं। इस समय आप जो भी वी.आई.पी किसी भी कार्य में बने हो एक जन्म के लिए लेकिन बापदादा आप हिम्मत वाले बच्चों को अब वी.आई.पी नहीं कहेंगे, बच्चे कहेंगे। बापदादा यह वरदान देते हैं, गैरन्टी देते हैं कि आप सभी 21 जन्म वी.आई.पी बनेंगे। यह इलेक्शन, सेलेक्शन नहीं चलेगी। तो सभी सिर्फ एक बात छोड़ना नहीं, जैसे अभी सम्बन्ध में सम्पर्क में आये हो ऐसे इस ब्राह्मण परिवार के कनेक्शन को छोड़ना नहीं। जितना कनेक्शन रखेंगे उतना रिलेशन पक्का होगा और बाप का वरदान प्राप्त कर ही लेंगे। तो मंजूर है? कनेक्शन रखना मंजूर है? हाथ उठाओ। अच्छा। (बापदादा ने फूलों की माला उठाकर आगे बढ़ाई) यह माला आप सभी पहनना।

और आप सभी नये बच्चे वा रीयल गोल्ड बच्चे सदा बाप के आज्ञाकारी हो ना! तो आज इस मैं को जलाके ही जाना। जो पहले बारी आये हैं वह उठो। अच्छा। बापदादा पहले बारी आने वाले बच्चों को पहले बारी आने की पदमगुणा मुबारक दे रहे हैं। लेकिन जैसे अभी पहले बारी आये हो ऐसे ही पहला नम्बर फर्स्ट डिवीजन, पहला नम्बर में तो फिक्स है लेकिन फर्स्ट डिवीजन में आयेंगे, यह हिम्मत है, हाथ उठाओ जिसमें हिम्मत है? देखो सोच के उठाओ। अच्छा। तो लक्ष्य रखो कि हम लास्ट आये हैं लेकिन फास्ट जायेंगे क्योंकि समय का कोई भरोसा नहीं। अभी जो करना है वह तीव्र पुरूषार्थी बन कर लो क्योंकि बहुत समय का पुरूषार्थ आप सबको थोड़े समय में पूरा करना पड़ेगा। तो हिम्मत है? है हिम्मत? हाथ उठाओ। देखो फोटो निकल रहा है आपका। बापदादा ऐसे हिम्मत वालों को मुबारक देते हैं कि हिम्मत आपकी मदद बाप की। लेकिन हिम्मत नहीं हारना। अपने भाग्य का सितारा सदा चमकाते रहना क्योंकि इस जन्म का तीव्र पुरूषार्थ, पुरूषार्थ नहीं तीव्र पुरूषार्थ अनेक जन्मों का भाग्य बनाने वाला है इसलिए हिम्मत कभी नहीं हारना। बातें आयेंगी लेकिन बात महावीर नहीं है, आप सर्वशक्तिवान के बच्चे हो, आपके आगे बात क्या है! बात आती है और चली जाती है। जो चली जाने वाली है उसके पीछे अपनी तकदीर नहीं गंवाना। अच्छा बैठो।

तो सभी को बापदादा स्नेह से मुबारक दे रहे हैं, किस बात की? हिम्मत रखी है और बापदादा हर एक बच्चे के हिम्मत के संकल्प पर खुश है। तो होली मनाई? जलाने की होली तो मनाई। और परमात्म संग के रंग की होली भी मनाई। जलाई भी मनाई भी।

अभी बापदादा सभी बच्चों को एक ड्रिल कराने चाहते हैं। वह ड्रिल है, चारों ओर की परिस्थितियां हैं, कहाँ कोई परिस्थिति है, कहाँ कोई परिस्थिति है, ऐसे चारों ओर के परिस्थितियों के बीच में आप एक सेकण्ड में एकाग्र हो सकते हो? ऐसी प्रैक्टिस स्वयं में अनुभव करते हो? या समझो जिस समय आपको कारणे अकारणे किसी बात के प्रति व्यर्थ संकल्प का तूफान आ गया है, ऐसे समय पर आप अपने मन बुद्धि को एकाग्र कर सकते हो? यह एकाग्रता के शक्ति की ड्रिल समय पर करके देखी है? अगर ऐसे समय पर एक सेकण्ड में एकाग्रता की शक्ति कार्य में नहीं आती तो आगे चलकर ऐसी परिस्थिति बार-बार आयेगी। तो आज बापदादा सेकण्ड में फुलस्टाप अर्थात् एकाग्र स्थिति के अभ्यास पर अटेन्शन खिंचवाना चाहता है क्योंकि प्रकृति अपने भिन्न-भिन्न रंग दिखाने शुरू कर दिये हैं। चारों ओर क्या-क्या हो रहा है, वह आप सब ज्यादा जानते हो। तो ऐसे मन-बुद्धि को भटकाने वाली बातें आनी ही हैं, तो अभी यह प्रैक्टिस करो कि मन को बुद्धि को आप एक सेकण्ड में परमधाम में टिका सकते हो! अभी अपने को फरिश्ते रूप में टिकाओ। अभी अपने को मैं ब्राह्मण मास्टर सर्वशक्तिवान स्थिति में हूँ, इस मास्टर सर्वशक्तिवान स्थिति में स्थित हो जाओ। (बापदादा ने ड्रिल कराई) ऐसी प्रैक्टिस सारे दिन में जब भी समय मिले, बार-बार मन को एकाग्र करके देखो। जहाँ चाहो, जो चाहो वहाँ मन एकाग्र हो। पुरूषार्थ एक मिनट लगे, एक सेकण्ड में फुलस्टॉप क्योंकि ऐसा समय हलचल का अभी तैयारी कर रहा है इसलिए माइण्ड कन्ट्रोल -मन मेरा है, मैं मन नहीं, मेरा मन है तो मेरे के ऊपर मैं का कन्ट्रोल है? यह ड्रिल बहुत आवश्यक है।

तो सभी जो भी आये हैं, बापदादा को एक-एक बच्चा प्यारा है। क्यों? कैसा भी है लेकिन बापदादा हर बच्चे को कोटों में कोई आत्मा देखते हैं। चाहे पुरूषार्थ में कमज़ोर है लेकिन बाप का प्यारा बना है। दिल से कहते हैं मेरा बाबा इसलिए बाप का भी अति प्यारा है। सिर्फ बापदादा एक बात फिर से याद दिला रहा है कि अपना चेहरा सदा खुशनुमा, खुशी में चमकता रहे। बातें चली जायें लेकिन खुशी नहीं जाये। संगमयुग की खुशी परमात्म गिफ्ट है। तो होली अर्थात् कोई ऐसी बातें आवें तो याद करना कि होली मनाके आये हैं, जो होली बात हो ली, खुशी नहीं जाये। परमात्म सौगात, खज़ाना खुशी है।

बापदादा सदा कहते हैं यह स्लोगन सदा याद रहे खुश रहना है और खुशी बांटनी है। जितना बांटेंगे उतनी बढ़ेगी और खुशनुमा चेहरा चलते फिरते ऑटोमेटिक सेवा करता रहेगा। जो भी देखेगा वह यही सोचेगा क्या मिला है। तो आज होली की दिलखुश मिठाई है खुशी। सबने खाई? सदा खाते रहना। इसमें कोई बीमारी नहीं होगी। अच्छा।

सेवा का टर्न दिल्ली और आगरा ज़ोन का है:- दिल्ली वाले बड़ी दिल वाले क्योंकि दिल्ली राजधानी, अब की भी राजधानी और भविष्य में भी राजधानी। और दिल्ली में बापदादा की दिल की आशायें भी हैं और आशायें पूरी भी की हैं। सेवा के हिसाब से दिल्ली में भी सेवा हो रही है और आजकल जो बच्चों ने छोटे बड़े शहरों में उमंग से सेवा की है उसकी रिजल्ट में बापदादा खुश है। दिल्ली वालों पर भी खुश है। दिल्ली वाले अभी एक ऐसी कमाल दिखायें, बोलें? जो बापदादा की शुरू से एक बात रही हुई है कि दिल्ली वाले या कोई भी, लेकिन आज दिल्ली है गीता का भगवान कौन? इस बात को किसी भी विधि से ऐसा ग्रुप बनावे जो खुद कहे कि गीता का भगवान परमात्मा है, ऐसा पहले छोटा ग्रुप तैयार करके दिखावे। एनाउन्स नहीं करे लेकिन ऐसा छोटा ग्रुप, कई कनेक्शन वाले हैं, कई जज आते हैं, कई बड़े-बड़े कनेक्शन में आते हैं, उन्हों को समझाके उन्हों को तैयार करे, ग्रुप करे कि सचमुच भगवान कौन? यह हो सकता है? हो सकता है? नई बात करके दिखाओ। पहले ग्रुप तैयार करो जिसमें सभी पोजीशन वाले हों, भिन्न-भिन्न पोजीशन वाले हो, धार्मिक लोग भी हो, जज भी हो, वकील भी हो, साधारण पोजीशन वाले भी हो, ऐसा ग्रुप तैयार करो क्योंकि यह बात प्रसिद्ध होनी है ना! प्रत्यक्ष करनी ही है गीता का भगवान कौन? तो दिल्ली में सब प्रकार के लोग हैं और जहाँ धर्म स्थान हैं, वहाँ जाके भी अगर कोई ऐसे निकलें तो वह भी कर सकते हैं। एक ग्रुप तैयार करो।

बाकी बापदादा ने बच्चों का पुरूषार्थ और हिम्मत देखी कि बाप ने कहा बच्चों ने चारों ओर सेवा की धूम मचाई। इसके लिए बापदादा दिल से दुआयें दे रहे हैं कि बच्चों में उमंग उत्साह है और आगे भी और बढ़ता रहेगा। बाकी बापदादा ने समाचार सुना है अभी भिन्न-भिन्न प्रोग्राम दिल्ली में चल रहे हैं, बाप की सौगात जो बच्चों को मिली है, स्थान मिला है,(ओ.आर.सी.) उसको कार्य में ला रहे हैं। इसकी विशेष मुबारक दे रहे हैं। उमंग-उत्साह बच्चों में है, सिर्फ थोड़ा सा समय डाल देते हैं।

दिल्ली में बाप और जगत अम्बा दोनों ने सेवा की है। ब्रह्मा बाप ने भी सेवा की और जगदम्बा ने भी सेवा की है और जमुना का किनारा तो दिल्ली में ही है। राजधानी भी अपनी जमुना किनारे होनी है। तो दिल्ली वालों को सभी को स्थान देना पड़ेगा। दिल बड़ी है ना! बड़ी दिल। बापदादा हर स्थान के बच्चों की महिमा करते हैं वाह मेरे बच्चे वाह! तो दिल्ली के बच्चों की भी, टर्न है आपका तो विशेष बापदादा सेवा के सहयोग की, स्नेही बनान्ो की मुबारक हो, मुबारक हो। अभी यह करके दिखाओ। ऐसा कोई ग्रुप, जो भी ज़ोन हिम्मत रखे ऐसा ग्रुप बनाके लावे। जो निमित्त बने आवाज फैलाने का, जो रही हुई प्वाइंटस हैं उसको अभी करके दिखाओ। अच्छा है। बापदादा बच्चों की सेवा भी देखते रहते हैं तो सेवा भी हो रही है और सेवा के साथ स्व की स्थिति में आगे बढ़ने का उमंग भी अच्छा है। अच्छा है।

डबल विदेशी:- बापदादा ने सुना कि 90 देशों से आये हैं। तो बापदादा कहते हैं वाह डबल विदेशी वाह! सभी खुशी में तो उड़ते रहते हो ना! सेवा का उमंग और तीव्र पुरूषार्थ का उमंग, दोनों ही एक दो में सहयोगी बन दिलाते रहते हैं। बापदादा को मधुबन में आके हर ग्रुप को रिफ्रेश करना, हिम्मत बढ़ाना यह बहुत अच्छा लगता है और आजकल जो लहर फैलाई है, स्पेशल भùी करना, एकान्तवासी बनना, यह लहर बहुत अच्छा है। चाहे जनरल प्रोग्राम तो चलते हैं लेकिन यह छोटे-छोटे ग्रुप बनाकर जो स्व-उन्नति के लिए प्रोग्राम करते हैं यह उन्नति का साधन बहुत अच्छा है। टीचर्स ने भी किया है। अच्छा है। पाण्डवों ने भी किया है क्योंकि यह स्पेशल अटेन्शन जाता है, स्व के प्रति। तो मधुबन में जो रिफ्रेशमेंट करने उमंग से आते हैं, यह बापदादा को बहुत अच्छा लगता है। समय निकाला और समय का लाभ लेके जाते हैं। एक जनरल प्रोग्राम का लाभ, बापदादा से मिलने का लाभ और स्पेशल अपनी स्व-उन्नति का लाभ। वैसे बापदादा सभी तरफ वालों को यही राय देते हैं कि अपने-अपने यहाँ भी छोटे-छोटे ग्रुप को स्व-उन्नति का चांस देके अनुभव को बढ़ाओ। चाहे 5 का ग्रुप बनाओ, छोटे सेन्टर हैं। आजकल विशेष अटेन्शन फर्स्ट स्व-उन्नति। कन्ट्रोलिंग पावर। जो ड्रिल बताई एकाग्रता की शक्ति पर अटेन्शन। तो बापदादा देश वाले और विदेश वाले दोनों से अटेन्शन देने में सेवा में और स्व-उन्नति में अटेन्शन है, लेकिन और भी बढ़ाते जाओ क्योंकि बापदादा ने दो बातें बार-बार अटेन्शन में दी हैं एक अचानक और दूसरा बहुतकाल का पुरूषार्थ जमा होना चाहिए। हो जायेगा नहीं, हो रहा है नहीं, तीव्र है? अभी कोई भी धारणा में तीव्र है परिवर्तन कर रहे हैं, नहीं। अभी-अभी करना है। हो जायेगा नहीं। कभी नहीं, अभी। बाकी बापदादा डबल विदेशियों की वृद्धि को देख भी खुश है। हर एक कोशिश कर रहा है जो भी एरिया रही हुई है वह विदेश में भी पूरी करें। उल्हना विदेश में भी रहना नहीं चाहिए। हो रहा है बापदादा खुश है लेकिन और भी अगर कहाँ कोना रहा हुआ हो तो अटेन्शन देके वह भी उल्हना पूरा कर दो। कब शब्द नहीं बोलना, अब। तो बापदादा हर एक पर खुश है। अमृतवेले विदेश में भी चक्र लगता है। ऐसे नहीं सिर्फ मधुबन में या भारत में चक्र लगाते हैं। विदेश में चक्र लगाना बापदादा को कितना टाइम चाहिए? तो हर एक बच्चे के चार्ट को बापदादा चक्र लगाके देखते रहते हैं। प्यार भी है ना! प्यार है बच्चों का, बाप का भी तो क्या करेंगे? चक्र तो लगायेंगे ना! सभी जगह जाते हैं, ऐसे नहीं सिर्फ लण्डन अमेरिका, नहीं, सभी जगह चक्र लगाते हैं। और बापदादा की हर सीजन में विदेशी मिस नहीं होते, अभी यह जो रीति बनाई है, यह अच्छी बनाई है। रौनक है। बापदादा हमेशा कहते हैं मधुबन का बच्चे श्रृंगार हैं। तो डबल विदेशियों के आने से मधुबन का श्रृंगार हो जाता है। हाँ, ताली बजाओ। आप सभी को भी अच्छा लगता है ना! डबल विदेशी हर टर्न में आते हैं, हिम्मत रखते हैं। आज 90 देशों से आये हैं। बापदादा को बच्चों का प्यार देखके कुछ भी हो, सरकमस्टांश नहीं देखते, स्नेह को देखते हैं। तो यह 90 देशों से किससे आये हैं? स्नेह से। तो बापदादा खास जैसे डबल विदेशी कहते हैं वैसे सौगुणा मुबारक और दुआयें दे रहे हैं। अच्छा बैठ जाओ।

आई.टी. ग्रुप:- अच्छा है, बापदादा ने देखा है कि आई.टी. ग्रुप द्वारा बच्चों को भी लाभ मिला है, जो दूर बैठे सामने देखते हैं। और सेवा में भी टी.वी. द्वारा सन्देश अच्छे मिलते रहे हैं। सिर्फ इस डिपार्टमेंट को हर देश के टी.वी. ग्रुप को ऐसा उमंग उत्साह में लाना है जो देश की देश में भी सेवा हो, जैसे अभी एक स्टूडेन्ट द्वारा सेवा जहाँ तहाँ हो रही है, ऐसे हर ज़ोन में हर बड़े स्थान में जहाँ सन्देश पहुंच सकता है, वहाँ भी इसका फायदा लेना चाहिए। जहाँ तहाँ प्रोग्राम चलते हैं वह भी दिखा सकते हैं, अपनी एरिया में। जो अपनी एरिया के साधन होते हैं, अच्छी बातें फैलाने की, वह भी हर देश कर रहा है, या नहीं कर रहा है उसकी भी चेकिंग होनी चाहिए। बाकी साधन अच्छा है। कर भी रहे हो, लेकिन बढ़ाते चलो। ऐसे अट्रेक्शन के प्रोग्राम बनाते रहो और चारों ओर भेजते रहो तो चारों ओर फैलता जाए। बाकी बापदादा खुश है कि दिन प्रतिदिन इस डिपार्टमेंट को भी कायदे में ला रहे हैं और आगे बढ़ता रहेगा, यह बापदादा को खुशी है। अच्छा है। आपस में मीटिंग की, उमंग उल्हास बढ़ाया, ऐसे ही उमंग उत्साह, समाचार की लेन देन बढ़ाते रहो। अच्छा है, मुबारक हो। अच्छा।

बापदादा फिर से इशारा दे रहे हैं कि स्व पुरूषार्थ, स्व पुरूषार्थ से स्व उन्नति और सेवा की उन्नति दोनों तरफ अटेन्शन देते रहो, आगे बढ़ते रहो और सदा उड़ते रहो, उड़ाते रहो। अच्छा।

चारों ओर के बापदादा के स्नेह में समाये हुए याद और सेवा में आगे से आगे बढ़ने और बढ़ाने वाले, अमृतवेला सबसे अच्छा पावरफुल बनाने वाले और मन्सा सेवा द्वारा रहमदिल, दयालु, कृपालु बन आत्माओं को कुछ न कुछ अंचली देने वाले अपने इस विधि को आगे बढ़ाते चलो। बापदादा देखते हैं कि हर एक बच्चा उमंग उत्साह में रहता है लेकिन अभी एडीशन क्या करो? सदा शब्द एडीशन करो। कभी-कभी शब्द डिक्शनरी से निकाल दो। तो चारों ओर के बच्चों ने होली भी मनाई, जलाई भी और संग का रंग भी लगाया, बीती सो बीती की होली भी मनाई, इसीलिए बापदादा चारों ओर के बच्चों को सम्मुख दिल में देख रहे हैं। बापदादा की पदम पदम गुणा यादप्यार और नमस्ते।

दादियों से:- बाबा के, ड्रामा के बंधन में बंधे हुए हैं। अच्छा है एक दो में राय करके हाँ जी, हाँ जी करते खुद भी उड़ते रहो और सभी को उड़ाते रहो। अच्छा।

मोहिनी बहन से:- प्यार से आगे बढ़ती रहती हो। (बीच-बीच में तबियत बिगड़ जाती है) वह गलती से होता है। अपने कुछ टाइम का नीचे-ऊपर हो जाता है बाकी बापदादा मददगार है। जो हो चुका है उसको थोड़ा सुधारने में टाइम लगता है, पुराना शरीर है। हो जायेंगी। सिर्फ दिनचर्या और दवाई एक्यूरेट टाइम पर करते रहो क्योंकि अभी कुछ समय आपको दवाईयों का आधार लेना पड़ेगा, हो जायेगा।

सभी के सिर पर हाथ है, यह तो एक के ऊपर रखा, लेकिन आप सभी के सिर के ऊपर बाप का हाथ है।

परदादी से:- यह तो ब्राह्मण जीवन का इनको सौगात है कि सदा हर्षित रहती है। कुछ भी हो लेकिन हर्षित रहती है। उड़ती रहती, नाचती रहती। पेशेन्ट नहीं है लेकिन उड़ती कला वाली है।

निवैर भाई से:- आपको भी सदा की, हर घड़ी की मुबारक

बृजमोहन भाई से:- सेवा में बिजी रहते हो अच्छा है।

रमेश भाई से:- अच्छा है गवर्मेन्ट के कायदे तो बदलते हैं लेकिन आप अपने ब्राह्मण परिवार के जो भी सहज हो सके, सहज, सहज कर चलते चलो, चलाते चलो। अपने डिपार्टमेंट को सहज बनाते जाओ। तो सभी खुशी-खुशी से सहयोगी बनते रहें क्योंकि यज्ञ का कार्य आपके डिपार्टमेंट के ऊपर आधारित है। तो ऐसे सहज कर दो, भले मुश्किल हो, गवर्मेन्ट तो मुश्किल करेगी, लेकिन मुश्किल को भी सहज विधि ढूंढकर सहज चलाते चलो। बाकी गवर्मेन्ट तो अपना काम करेगी, आप अपना काम करो। अच्छा है। (बजेट में)वह तो आयेंगी। उन्हों का काम वह तो करेंगे ना। और हम अपना काम करें। वह राईट हैं अपने काम में, उन्हों की प्राबलम हैं ना। पाण्डव गवर्मेन्ट की प्राबलम नहीं है, खुशी खुशी से।

भूपाल भाई से:- कारोबार ठीक है? (पानी की दिक्कत है) यह पानी की ट्रक्स थोड़ी बढ़ा दो ना। वह तो अभी की सीजन है। बाकी स्टॉक करो, स्टॉक को बढ़ाओ। स्थान को, ट्रक्स को बढ़ाने से सहज हो जायेगा। तो स्थान भी बढ़ाओ, ट्रक्स भी बढ़ाओ, स्टॉक भी बढ़ाओ।

विदेश की बड़ी बहिनों से:- बहुत अच्छा ग्रुप बनाके पुरूषार्थ में आगे बढ़ा रहे हो। बापदादा को तो मधुबन की यह सीजन बहुत अच्छी लगती है। एक साल के लिए डोज मिल जाता है। यह भùी का अनुभव बहुत अच्छा है। आपस का ग्रुप बनाया है ना, यह अच्छा है। हर साल नया नया कुछ करते जाओ। (बहरीन में अच्छी सेवा चल रही है) साइलेन्स की तरफ जितना अटेन्शन खिंचायेंगे अच्छा है। (जयन्ती बहन से) अच्छा कर आई मुबारक हो।

हैदराबाद शान्ति सरोवर में नया हाल बना है, जिसका उद्घाटन बापदादा बटन दबाकर कर रहे हैं:-इस स्थान से सेवा बढ़ेगी, बहुतों को सन्देश मिलेगा। सिर्फ आपस में जल्दी जल्दी मीटिंग करते रहो अभी क्या करना है, अभी क्या करना है, यह प्लैन बनाते रहो, प्रैक्टिकल लाते रहो। पाण्डव और शक्तियां दोनों ही मिलकर प्लैन बनाओ आगे क्या करना है, आगे क्या करना है। एक पूरा हो दूसरा करो फिर यह स्थान काम में आ जायेगा।



15-03-10   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


‘‘परमात्म प्यार की पात्र आत्मायें दु:खियों को सुख की अंचली दो, व्यर्थ को समाप्त कर समर्थ बनो और समय को समीप लाओ’’

आज बापदादा अपने चारों ओर के परमात्म प्यारे बच्चों को देख रहे हैं। ऐसे परमात्म प्यारे कोटो में कोई बच्चे हैं क्योंकि इस समय ही परमात्म प्यार का अनुभव कर सकते, सारे कल्प में आत्माओं का प्यार, महात्माओं का, धर्मात्माओं का प्यार अनुभव किया लेकिन परमात्म प्यार सिर्फ अब संगमयुग पर होता है, जो आप सभी बच्चे अनुभव कर रहे हैं। कोई आपसे पूछे परमात्मा कहाँ है? तो क्या जवाब देंगे? मेरे साथ है। मेरे साथ ही रहते हैं। मेरे दिल में ही रहते हैं। ऐसा अनुभव कर रहे हो ना! आप ही जानते हो और आपको ही इस प्यार का अनुभव है कि हमारे दिल में बाप रहते और बाप के दिल में हम रहते। जानते हो कि यह परमात्म प्यार का नशा हमें ही अनुभव करने का भाग्य प्राप्त हुआ है। जब किसी से भी प्यार हो जाता है तो उसकी निशानी क्या होती है? उसकी निशानी है उसके ऊपर कुर्बान होना। तो परमपिता परमात्मा आप बच्चों से क्या चाहते हैं, वह तो आप सब जानते हो। बाप की हर एक बच्चे के प्रति यही चाहना है कि मेरा एक एक बच्चा बाप समान बने। जैसे बाप वैसे बच्चों की भी श्रेष्ठ स्थिति बने। वह श्रेष्ठ स्थिति क्या है? सम्पूर्ण पवित्रता की स्थिति। ऐसी पवित्रता जो स्वप्न में भी अपवित्रता आ नहीं सके। ऐसी सम्पूर्ण पवित्र स्थिति बना रहे हो? जिस सम्पूर्ण पवित्रता में अपवित्रता का नामनिशान नहीं।

वर्तमान समय समीप आने के कारण बापदादा अभी यही इशारा दे रहे हैं कि समय की समीपता अनुसार व्यर्थ संकल्प यह भी अपवित्रता की निशानी है। सारे दिन में यह भी चेक करो कि कोई भी व्यर्थ संकल्प अभिमान का वा अपमान का अपने तरफ खींचता तो नहीं है? क्योंकि चलते चलते अगर बाप की दी हुई विशेषताओं को अपनी विशेषता समझ अभिमान में आते हैं तो यह भी व्यर्थ संकल्प हुआ और मेरेपन के अशुभ संकल्प मैं कम नहीं हूँ, मैं भी सब जानता हूँ, यह मेरा संकल्प ही यथार्थ है, ऊंचा है, यह मेरेपन का अभिमान का संकल्प यह भी सूक्ष्म अपवित्रता का अंश है। तो अपने को चेक करो किसी भी प्रकार का अपवित्रता के व्यर्थ संकल्प का कोई अंश तो नहीं रह गया है? क्योंकि अभी पवित्र दुनिया की स्थापना का समय समीप लाने वाले आप परमात्म प्यारे बच्चे निमित्त हो। तो जो निमित्त आत्मायें हैं उन्हों का वायब्रेशन चारों ओर फैलता है। तो चेक करो किसी भी प्रकार का व्यर्थ संकल्प भी अपने तरफ खींचता तो नहीं है? क्योंकि अभी पवित्र दुनिया, पवित्र राज्य समीप आ रहा है। दु:ख और अशान्ति चारों ओर भिन्न-भिन्न स्वरूप में बढ़ रही है। उसके लिए पवित्रता का वायब्रेशन आवश्यक है। दु:ख अशान्ति का कारण अपवित्रता है। तो अपवित्र आत्माओं को और भक्त आत्माओं को अभी डबल सेवा चाहिए। वाणी की सेवा तो बापदादा ने देखा कि चारों ओर धूमधाम से चल रही है, अपना उल्हना भी निकाल रहे हो। लेकिन अभी आत्माओं को एकस्ट्रा सकाश चाहिए। वह है मन्सा सेवा द्वारा सकाश देना, हिम्मत देना, उमंग-उत्साह देना। तो इस समय डबल सेवा की आवश्यकता है। इसके लिए बापदादा ने कहा कि हर एक बच्चा अपने को पूर्वज समझो। आप इस कल्प वृक्ष का फाउण्डेशन पूर्वज और पूज्य आप आत्मायें हो। बापदादा तो दु:खी बच्चों का आवाज सुनते रहते हैं। आप बच्चों के पास उन्हों के पुकार का आवाज पहुंचना चाहिए। जितना सम्पूर्ण पवित्र आत्मा बनेंगे। बन रहे हैं, बने भी हैं लेकिन साथ-साथ अभी मन्सा सेवा को बढ़ाना है।

आज विश्व में सुख-शान्ति, सन्तोष आत्माओं में कम हो रहा है। तो आप परमात्म प्यार के पात्र आत्माओं को अभी प्यार की, सन्तुष्टता की, खुशी की अंचली देने की आवश्यकता है। दु:खियों को सुख की अंचली देनी है। एक तो मन्सा सेवा द्वारा सकाश दो और दूसरा अपने चेहरे और चलन द्वारा बाप को प्रत्यक्ष करो। अभी जो सेवा कर रहे हो और की है बापदादा खुश है कि सेवा में चारों ओर उमंग-उत्साह है लेकिन अभी एक सेवा रही हुई है। अभी तक यह आवाज तो हुआ है कि ब्रह्माकुमारियां मनुष्य आत्मा को अच्छा बना देती हैं, यह जो अशुद्ध व्यवहार है, अशुद्ध व्यवहार से मुक्त कर देती हैं, जो गवर्मेन्ट चाहती है यूथ ग्रुप के लिए, वह सेवा बहुत अच्छी करते। लेकिन अभी बाप आया है, परमात्मा आ गया है, परमात्म ज्ञान यह दे रही हैं, मेरा बाप वर्सा देने आ गया है, अभी बाप की तरफ नजर जाने से उन्हों को भी परमात्म प्यार, परमात्मा की आकर्षण आकर्षित करेगी। अच्छा-अच्छा तो हो गया है लेकिन परमात्मा बाप की प्रत्यक्षता आकर्षित कर अच्छा बनायेगी। तो अभी बाप के तरफ पहचान, जिसको याद करते हैं वह ज्ञान, वह वर्सा मिल रहा है तो अभी मन्सा द्वारा बाप के समीप लाओ। अपने चेहरे और चलन द्वारा, आपके नयनों में बाप प्रत्यक्ष हो। तो अभी यह आपस में प्लैन बनाओ।

बापदादा ने देखा जो प्लैन बापदादा ने समय प्रति समय दिया है वह बच्चों ने बड़े विधि पूर्वक, उमंग-उत्साह से किया है, कर रहे हैं, इसकी बापदादा सभी बच्चों को पदम पदम गुणा मुबारक दे रहे हैं। अभी एडीशन करो कि भगवान वर्सा दे रहा है। अभी वर्सा नहीं लिया तो कब लेंगे! बाप को रहम आता है बच्चों का दु:ख, अशान्ति का वायुमण्डल देख करके। और बाप और आप जानते हो कि यह तो अति में जाना ही है। बिना अति के अन्त नहीं होता है। ऐसे समय पर आत्माओं को यह अनुभव कराओ, सिर्फ सुनाओ नहीं, अनुभव कराओ कि भगवान वर्सा दे रहा है। आप सभी भी यही पूछते हो ना कि यह बाप की प्रत्यक्षता कब और कैसे होगी! तो ब्रह्माकुमारियों तक पहुंचे हैं लेकिन ब्रह्माकुमारियों को सिखाने वाला कौन! ब्रह्माकुमारियों का, ब्रह्माकुमारों का दाता कौन! अभी समय को समीप लाना है, समाप्ति करनी है। समाप्ति को समीप लाने वाले कौन हैं? हर एक बच्चा समझता है ना कि मैं ही निमित्त हूँ। बाप ने यह जिम्मेवारी अपने साथ बच्चों को दी है। सन शोज फादर। कोई-कोई जब बाप को जानते, तो देखो आप सबने बाप को जाना तो क्या किया? पहचान लिया, जान लिया, तो बच्चा बन वर्से के अधिकारी बन गये। अभी वर्सा लेने वाली आत्माओं की क्यू लगनी चाहिए। और क्यू रूकी हुई क्यों है? क्योंकि कोई कोई बच्चे अभी व्यर्थ संकल्पों की क्यु में लगे हुए हैं। क्यों, क्या, कैसे, अभी इस समाप्ति में समय देते हैं लेकिन व्यर्थ समाप्त नहीं हुआ है। व्यर्थ समर्थ बनने में रूकावट डालता है।

तो आज बापदादा व्यर्थ संकल्पों की समाप्ति करने के लिए सभी चारों ओर के बच्चों को हिम्मत दे रहे हैं कि अभी से व्यर्थ को समाप्त कर सदा समर्थ बन समर्थ बनाओ। सिर्फ सन्देश नहीं दो समर्थ बनाओ, समर्थ बनो, समर्थ बनाओ। व्यर्थ का समाप्ति दिवस मनाओ। हो सकता है? जो समझते हैं कि व्यर्थ संकल्प अपने को भी नुकसान पहुंचाते हैं, समय बरबाद करते हैं, चेहरे पर सदा खुशनुमा, खुशकिस्मत का अनुभव कम कराते है। इसलिए अभी समाप्ति का समय समीप लाना है, किसको? आपको ना! जो समझते हैं कि अभी समाप्ति के समय को समीप लाना है, उसके लिए व्यर्थ को समाप्त करना ही है, करना है नहीं, करना ही है, स्वप्न में भी नहीं आवे, संकल्प तो छोड़ो लेकिन स्वप्न में भी नहीं आये, ऐसे हिम्मत वाले बच्चे जो अपने को समझते हैं वह हाथ उठाओ। मन का हाथ उठा रहे हो ना! बांहों का हाथ तो बहुत इजी है लेकिन मन का हाथ उठा रहे हो? जो मन का हाथ उठा रहे हैं वह हाथ उठाओ, मन का हाथ। अच्छा। आज के वी.आई.पी उठो। जो आज विशेष वी.आई.पी आये हैं वह उठो। यहाँ बैठे हैं ना! अच्छा। बापदादा आये हुए वी.आई.पी, वी.आई.पी का अर्थ है जो स्नेही है, सहयोगी है और कर्तव्य जो चल रहा है, उनसे प्यार है, बहिनों से प्यार है, भाईयों से प्यार है, उसको कहते हैं वी.आई.पी अर्थात् स्नेही सहयोगी। अभी क्या बनना पड़ेगा? वी.आई.पी तो हैं और बापदादा खुश है। अभी क्या बनेंगे? एक छोटी सी बात है, बताऊं?बतायें? बापदादा कहते हैं स्नेह बहुत अच्छा है, याद भी करते हैं, बाबा शब्द भी मन से निकलता है। बाकी एडीशन चाहिए एक, वह एडीशन क्या है? सहज योगी की लिस्ट में भी आओ। एक कदम तो उठाया है लेकिन आगे बढ़ने के लिए क्या किया जाता है? एक कदम उठाओ, उससे आगे बढ़ेंगे तो दूसरा कदम भी उठाना पड़ेगा। तो बापदादा की यही आश है स्नेही बच्चों के प्रति, सहयोगी बच्चों के प्रति। तो साथ-साथ सहजयोगी भी बनो। सहजयोगी बन सकते हैं? बन सकते हैं, मुश्किल कुछ नहीं होगा। छोड़ना नहीं पड़ेगा कुछ। और ही योग की शक्ति मदद देगी। आपके कार्य में वृद्धि होगी। तो बापदादा को स्नेही सहयोगी बच्चे याद आते हैं। क्यों याद आते हैं? क्योंकि आप एक एक्जैम्पुल हो। क्योंकि एक बात के लिए लोग घबराते हैं, तो शायद घरबार छोड़ना पड़ेगा। लेकिन आप सब घर में रहते स्नेह और सहयोग में चलते तो आपको देख करके उन्हों में उमंग-उत्साह आयेगा। आपकी सेवा हो जायेगी। अनेकों के तकदीर का ताला खोल सकते हो। पसन्द है? पसन्द है तो हाथ उठाओ। अच्छा। अभी बापदादा एक वरदान देते हैं। आपने हिम्मत रखी तो हिम्मत का फल बहुत मीठा होता है, तो बापदादा यह वरदान दे रहा है कि आप सभी आने वाली नई दुनिया में 21 जन्म सदा खुश रहेंगे। मेहनत नहीं करेंगे। दुनिया की उलझनों में नहीं पड़ेंगे। जो जीवन में चाहिए, तन मन धन सब मिल जायेगा। तन तन्दुरूस्त, मन खुश, धन अथाह यह आपको 21 जन्म की गैरन्टी है। बापदादा को मंजूर है, आप सिर्फ एक बात करो। रोज़ आश्रम में आ नहीं सकते हो तो फोन करो। यह कान का फोन है ना, वह करो। आपके कनेक्शन वाली टीचर जो भी है उससे अपना टाइम फिक्स करो, तो इस समय हम फोन करेंगे और उसमें रोज़ का जो महावाक्य जिसको मुरली कहते हैं, वह वरदान और शुरू का जो होता है आरम्भ, वह सुनो। क्यों? बापदादा क्यों कहते हैं? अगर करना है, तो हाथ उठाओ। अच्छा, आजकल के जमाने के हिसाब से बातें बहुत बदलती जाती हैं। गवर्मेन्ट के कायदे भी बदलने हैं, मनुष्यों की वृत्ति भी बदलनी है। इसके लिए हर एक के जीवन में बातें तो आनी ही हैं, व्यर्थ बातें, तो व्यर्थ को समाप्त करने के लिए समर्थ संकल्प चाहिए। वेस्ट को खत्म करने के लिए बेस्ट संकल्प चाहिए। वह रोज़ सुनने का है वरदान। वरदान जो है वह श्रेष्ठ संकल्प है। जब व्यर्थ आवे तो श्रेष्ठ संकल्प मन को चाहिए। मन खाली नहीं रह सकता है। मन को कुछ न कुछ संकल्प चाहिए। तो व्यर्थ वेस्ट को बेस्ट करने के लिए आपको यह वरदान और स्लोगन और आदि के शब्द यह मन को चेंज करने के लिए चाहिए। यह कर सकते हो? कर सकते हो? कोई करते भी होंगे। क्योंकि बाप को यही आप अनुभवी बन औरों को अनुभवी बनाने में बहुत सेवा कर सकते हैं। अभी समय फास्ट जा रहा है। तो फास्ट समय में आपकी सेवा भी फास्ट होगी। तो बापदादा को आप सब आये, यह खुशी है, बच्चों को देखा चाहे कभी कभी आने वाले हैं लेकिन हैं तो बच्चे ना। तो बच्चों को बाप तो देखेगा। इसलिए आप सिर्फ थोड़ा समय जब अमृतवेले उठते हो तो भले बेड पर लेटे हुए हो, आंख खुलती है तो पहले पहले शिवबाबा को गुडमा\नग करो। कर सकते हो? देखो कहावत है सारे दिन में अगर कोई अच्छे को देखते हैं तो सारा दिन अच्छा बीतता है कोई खराब को देख लेते हैं ना तो क्या कहते हैं? कहते हैं पता नहीं किसकी शक्ल देखी जो सारा दिन खराब गया। तो अच्छे ते अच्छा कौन? शिवबाबा। शिवबाबा से प्यार है ना। तो आंख खुलते शिवबाबा गुडमा\नग। और आंख बन्द करते रात्रि को, जब बेड पर जाओ तो शिवबाबा गुडनाईट। यह तो सहज है ना। तो सारा दिन आपका अच्छा होगा। क्योंकि शुभ संकल्प भी ले लिया ना वरदान। तो ऐसे करना। बापदादा का प्यार है ना आप लोगों से। तो यह करने से और आप आगे बढ़ते जायेंगे। अपने इस जीवन में भी खुशी का अनुभव करेंगे। कभी दु:ख की लहर नहीं आयेगी। तो मंजूर है और सहज योगी बनो बस। मैं आत्मा हूँ, शिवबाबा का बच्चा हूँ, बस, यह सहजयोगी। चलते फिरते यह याद करो मैं आत्मा हूँ, शिवबाबा का बच्चा हूँ। यह तो याद कर सकते हो ना! तो बहुत अच्छा। यह तो हुआ इन बच्चों से रूहरिहान।

अभी आप सभी जो वारिस भी हैं और वारिस बनने वाले भी हैं। जो अपने आपको बापदादा का पक्का वारिस समझते हैं, वह हाथ उठाओ। वारिस हैं? वी.आई.पी भी सभी हाथ उठा रहे हैं। ताली तो बजाओ। अच्छा। अभी वारिस क्वालिटी को आज यह संकल्प अपने से दृढ़ करेंगे, बापदादा को यह संकल्प देंगे कि हम अभी से, कब से नहीं, अब से व्यर्थ संकल्प को समाप्त करके ही छोड़ेंगे। मंजूर है। है मंजूर? है तो हाथ उठाओ। अच्छा। जो समझते हैं पक्का संकल्प है, मन का। हाथ उठाने का नहीं, मन का हाथ उठाने का, वह हाथ उठाओ। अच्छा सब। पीछे वाले उठा रहे हैं। जो पक्का वह दो हाथ उठाओ। तो आज है कौन सा दिन? व्यर्थ को समाप्त करना अर्थात् समर्थ बनना। सदा समर्थ और दूसरा कार्य कौन सा है? दु:ख और अशान्ति की समाप्ति का दिवस समीप लाना। दो काम हैं। एक सदा समर्थ बनना और दूसरा समर्थ समय को समीप लाना। ठीक है। दोनों ही काम ठीक है? कांध हिलाओ। क्योंकि बापदादा के पास पुकार और दु:ख की आह बहुत सुनाई देती है। आपके पास पता नहीं क्यों नहीं सुनाई देती है। बापदादा जब ऐसे सुनते रहते हैं तो आप बच्चों को जो अपने को वारिस समझते हैं, वर्सा लेने वाले हैं, तो वर्सा लेने वाले को दूसरों को वर्सा दिलाने के ऊपर रहम आना चाहिए ना। रहम क्यों नहीं आता? वैराग्य, बेहद का वैराग्य और रहम आना चाहिए। छोटी छोटी बातों में क्यों, क्या के क्यूं में टाइम नहीं देना है। अभी हे बापदादा के सिकीलधे पदम पदम वरदानों के वरदानी बच्चे! अभी संकल्प को दृढ़ करो। और दृढ़ता की चाबी लगाओ। कर्मयोगी बनो। कर्मयोगी लाइफ वाले हो। लाइफ सदाकाल होती है, कभी कभी नहीं। तो अभी अपना कृपालु, यालु, दु:खहर्ता, सुख देता स्वरूप को इमर्ज करो। बापदादा ने अचानक का समय बहुतकाल से बताया है। तो अचानक के पहले भक्तों की पुकार तो पूरी करो। दु:खियों के दु:ख के आवाज तो सुनो। अभी हर एक छोटा बड़ा विश्व परिवर्तक, विश्व के दु:ख परिवर्तन कर सुख की दुनिया लाने वाले जिम्मेवार समझो।

बापदादा का यह आना जाना भी कब तक? इसलिए सब अचानक होना है। तो अभी वारिस क्वालिटी, वर्सा दिलाना, रहमदिल बनने का पार्ट बजाओ। ऐसे नहीं सोचना कब तक होगा! अचानक होगा। इसलिए व्यर्थ को समाप्त करना ही है। होना है नहीं, करना ही है। बापदादा ने रिजल्ट देखी सभी के कर्मो के गति को चेक किया। पुरूषार्थ की गति को चेक किया। खज़ाने जमा का खाता चेक किया। तो रिजल्ट में क्या देखा? जमा करने का पुरूषार्थ बहुत अच्छा करते हैं लेकिन जो जमा करते हो उसमें परसेन्टेज भिन्न-भिन्न है। जितना सोचते हो जमा किया, होता है जमा लेकिन परसेन्टेज, थोड़ा जमा होता है, सदा के लिए जमा नहीं। जितना करते हो उतना सदा के लिए जमा में फर्क है। इसलिए बापदादा अभी एक एक बात पर दृढ़ संकल्प कराता है। क्रोध पर कराया, लेकिन मन से भी किसके प्रति हलचल नहीं हो। क्यों, क्या नहीं हो। मुख से कन्ट्रोल किया है, कोई कोई ने अच्छा किया है लेकिन मन से थोड़ा थोड़ा चलता है। मिटाने की कोशिश कर रहे हैं फिर भी बापदादा खुश है कि अटेन्शन गया है। समझने लगे हैं कि इसमें मेरे को ही नुकसान है। समझा। अच्छा।

सेवा का टर्न ईस्टर्न ज़ोन, (बंगाल बिहार, उड़ीसा, आसाम) नेपाल और तामिलनाडु:- पौना हाल तो इसी ज़ोन वाले हैं। अच्छा। सेवाधारी, सिर्फ सेवाधारी उठो बाकी ऐसे जो साथ आये हैं वह बैठ जाओ। बहुत हैं। अच्छा है। तो अभी विशेष है ईस्टर्न ज़ोन। ईस्टर्न में भी बहुत ही भाग हैं। तो ईस्टर्न ज़ोन की तो विशेषता है, उसमें भी विशेष है कलकत्ता, जहाँ ज्ञान सूर्य प्रगट हुआ। तो जिस धरनी पर ज्ञान सूर्य प्रगट हुआ वह धरनी कितनी महान है। और बंगाल बिहार, बिहार भी कम नहीं। क्योंकि बापदादा ने देखा कि बिहार में सेवा का साधन बहुत अच्छा है। क्यों अच्छा है? क्योंकि बिहार के लोग चाहना बहुत अच्छी रखते हैं और बिहार में अभी अभी जो हलचल हुई, उसमें बहिनों ने बिहार के भाईयों ने जो कार्य किया है, जो उन्हों को चाहिए था, जीवन के लिए वह प्राप्त कराने का और ज्ञान सुनाने का, मन का भोजन और तन की परवरिश दोनों की है, इसलिए बिहार में नाम बहुत अच्छा फैला है। प्यार से सुनते हैं, यह सेवा दिल से की है, बापदादा ऐसी सेवा डबल, सिर्फ चीजे देनें की नहीं, सेन्टर भी खोले हैं, ऐसे डबल सेवा करने वाले बिहार के बच्चों को बापदादा विशेष मुबारक दे रहे हैं। वैसे तो देखा जाए और जगह पर भी करते हैं, और की है। उन्हों का नाम नहीं लेते लेकिन करते रहते हैं। फारेन में भी किया है, इन्डिया में भी किया है लेकिन बिहार की विशेषता यह है कि वहाँ जगह जगह पर ज्ञान की वर्षा बहुत अच्छी की है। कितने सेन्टर खोले हैं? (एक वर्ष में 12 सेन्टर 12 जिलों में खोले हैं) गीता पाठशालायें भी खोली होगी। (वह भी खुली हैं) अच्छा है। बापदादा को यह सेवा बहुत अच्छी लगती है। जहाँ भी ऐसी हालत हो वहाँ यह डबल सेवा करनी चाहिए। सेन्टर खोलने में निमित्त आपको बनना पड़ेगा क्योंकि वहाँ की हालत खराब होती है लेकिन फिर थोड़े समय में आपके सहयोगी अच्छे बन जायेंगे। और बापदादा ने देखा कि अभी इस ज़ोन में भी सेवा फैल रही है चाहे बंगाल, चाहे बिहार, चाहे उनके साथी हैं, नेपाल भी है, उड़ीसा, आसाम और तामिलनाडु। इनके साथी बहुत हैं क्योंकि ज्ञान सूर्य प्रगटा ना तो सेन्टर भी बहुत हैं साथी भी बहुत हैं। और आज तक बापदादा ने देखा कि हर एक एरिया को चाहे बड़ा ज़ोन नहीं है, छोटे हैं लेकिन छोटों में सेवा का उमंग और बहुत है। और रूचि से किया भी है, कर भी रहे हैं। इसलिए इन सब ज़ोन में जो भी नाम ले रहे हैं, उन सब तरफ सेवा का बोलबाला हो गया है। और रिजल्ट में यह भी देखा गया तो रेग्युलर स्टूडेन्ट भी बने हैं। चाहे बड़े या छोटे प्रोग्रामस, मीडिया का भी साथ है लेकिन अभी जो बाबा ने कहा है कि समय को समीप लाओ, उसकी तैयारी जल्दी से जल्दी करना है। अच्छा। बापदादा जो बंगाल बिहार की तरफ से आये हैं उन सबको भी मुबारक देते हैं कि यज्ञ सेवा का पुण्य का कार्य अच्छा सम्भाल भी रहे हैं, भीड़ थोड़ी ज्यादा है लेकिन बापदादा ने एक बात देखी कि सभी को कम संख्या में आने के बजाए बड़ी संख्या में आना पसन्द आ गया है। दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। फिर भी कुम्भ के मेले से शुद्ध खाना तो मिलता है। रहने के लिए चलो टेन्ट भी तो मिलता है। लेकिन जो भी आते हैं बापदादा उन्हों का प्यार देख करके, क्योंकि प्यार में कुछ भी देखना पड़ता या करना पड़ता, तो वह पता नहीं पड़ता है, कर रहे हैं, खुशी खुशी से करते हैं। तो बंगाल बिहार के ज़ोन ने भी सेवा का पार्ट अच्छा बजाया। अच्छा। यहाँ जो बैठे हैं इन्हों में से किसी को तकलीफ है सोने की या खाने की वह हाथ उठाओ। जिसको खाने की सोने की तकलीफ हो तो हाथ उठाओ। हाँ बड़ा हाथ उठाओ। अच्छा।

तामिलनाडु:- क्योंकि आजकल तामिलनाडु भी सेवा के उमंग उत्साह में है। बापदादा ने समाचार भी सुना कि यह जो शिव का मेला बनाया है, उसकी सेवा जगह जगह पर जाके भी करते हैं। फायदा और देशों को भी पहुंचाते हैं यह बहुत अच्छा है क्योंकि फिर भी विशेष तो शिवबाबा का परिचय है ना। उसमें शिवबाबा का ही परिचय मिलता है तो यह सेवा और देशों में भी जाकर करते हैं यह बापदादा को अच्छा सेवा का समाचार लगा। करते रहो। और अच्छा है आपस में जिस ज़ोन की युनिटी है, युनिटी स्वत: ही पुण्य का काम कराती है, उमंग उत्साह बढ़ाती है। बापदादा ने देखा कि सभी ने सारे ज़ोन ने मिलके जो हॉल बनाया है, सबके सहयोग से ज़ोन के सहयोग से जो हाल बनाया है, यह एक दो में ज़ोन वालों का सहयोग यह बात भी अच्छी है। क्योंकि जोन इकठ्ठा इसीलिए किया जाता है कि एक दो के नजदीक होने के कारण एक दो को सहयोग देना सहज हो जाता है। तो यह भी सहयोगी बनना, मेरी एरिया नहीं, सब मेरे हैं। आवश्यकता जहाँ है वह मेरा है। चाहे ज़ोन नाम अलग अलग है लेकिन जहाँ आवश्यकता है, आवश्यकता के समय सहयोग देना यह महापुण्य है। अगर अपना पुण्य का खाता जमा करना है, तो सहयोगी बनो और सेवा को और चारचांद लगाओ। यह बापदादा को अच्छा लगा। तो इस संगठन को बढ़ाते रहना। बढ़ाते रहेंगे ना, हाथ उठाओ। सभी ने हाथ उठाया। अच्छा। हम सब एक हैं, यह तो सेवा के कारण, कोई देखरेख हो सके इसके कारण जोन बनाया है, बाकी एक ही हैं, एक ही रहेंगे, एक के हैं, एक के रहेंगे। अच्छा।

नेपाल:- नेपाल की सर्विस का समाचार सुनते रहते हैं। वहाँ जैसा वायुमण्डल हैं उस हिसाब से सेवा की वृद्धि युक्ति से अच्छी कर रहे हैं। बापदादा नेपाल की सर्विस सुन करके खुश होते हैं कि कुछ भी हो जाए लेकिन यह आध्यात्मिक सेवा कम नहीं होती है। बढ़ती है लेकिन कम नहीं होती है। सेन्टर बढ़ रहे हैं, हलचल में अचल हैं। इसलिए बापदादा को नेपाल की सेवा पर नाज है। बहुत अच्छा। यह सब नेपाल उठा है। नेपाल वाले हाथ ऊंचा करो। यह अच्छा बनाया है कि ज़ोन ज़ोन को मिलने से वह जी भरके आ जाते हैं। और सेवा भी करते हैं सभी को सैलवेशन भी मिल जाती है। अच्छा।

डबल विदेशी :- डबल विदेशियों को बापदादा ने टाइटल दिया है डबल पुरूषार्थी। तो बताओ डबल पुरूषार्थी हो, हाथ उठाओ। डबल विदेशी नहीं डबल पुरूषार्थी। बहुत अच्छा। बापदादा हमेशा कहते आये हैं कि विदेश की सेवा ने बाप को विश्व सेवाधारी सिद्ध किया। पहले सिर्फ भारत सेवाधारी थे लेकिन अभी हर टर्न में 90 देशों से 80 देशों से डबल विदेशी आते हैं। तो बापदादा को खुशी है कि हर सीजन में विदेश में भी सेवा बढ़ती जाती है और कितने उमंग से हर टर्न में पहुंच जाते हैं। चाहे कितना भी प्रयत्न करना पड़ता है बापदादा को पता है तो पहले शुरूआत में एक बार होके जाते थे और दूसरे साल के लिए बाक्स में टिकेट के लिए इकठ्ठा करते थे, आते जरूर थे। लेकिन अभी तन मन धन सबमें आगे जा रहे हैं। और बापदादा ने पहले भी सुनाया कि यह मधुबन में आके जो रिफ्रेश होते है और ग्रुप ग्रुप रिफ्रेश होते हैं, पर्सनल अटेन्शन देते हैं यह बापदादा को पसन्द है और इस बारी की रिजल्ट भी बापदादा ने सुनी। तो एक दो के स्नेही, सहयोगी बनकर एक दो को कोई भी इशारा देने में पुरूषार्थ तीव्र करने में कोई कमी है तो खुली दिल से एक दो में दी है। यह बापदादा को समाचार पसन्द आया क्योंकि जब तक अपनी कमी को जाना नहीं, पहचाना नहीं तो परिवर्तन हो नहीं सकता। इसलिए बापदादा को पुरूषार्थ की विधि अच्छी लगी। थोड़े थोड़े आपस में मिलके जो मीटिंग करते हैं उसमें अटेन्शन ज्यादा जाता। तो डबल विदेशी डबल पुरूषार्थी हैं यह बापदादा ने मधुबन के समाचार में ज्यादा देखा। बाकी सभी जो भी आये हो अभी अपने को निर्विघ्न समझते हो? निर्विघ्न समझते हो वह हाथ उठाओ, निर्विघ्न। अच्छा। मैजारिटी है। कोई कोई नहीं भी हैं। मैजारिटी हैं। तो बापदादा आज डबल विदेशियों को डबल वरदान देते हैं एक तो सेवा कर सेन्टर की वृद्धि बढ़ाओ। रेग्युलर स्टूडेन्ट बढ़ाते चलो। बढ़ेंगे। और दूसरा एक दो को पुरूषार्थ करने और कराने का जो मीटिंग बनाई है, जो हर वर्ष करते रहते हैं उसका भी फायदा जितना उठाना चाहिए उतना और उठाते चलेंगे। बाकी आपस में जो बनाया है वह विधि अच्छी है इससे और ज्यादा प्रोग्रेस हो सकती है, इसको अटेन्शन देके और बढ़ायेंगे तो बढ़ जायेगी। सुना। बापदादा खुश है। और दिल में क्या याद करते? वाह बच्चे वाह! अच्छा।

फर्स्ट टाइम वालों से:- अभी की सीजन में मैजारिटी आधी क्लास से भी ज्यादा पहली बार वाले होते हैं क्योंकि रेग्युलर तो बाहर बैठते हैं क्लास में तो नये बैठते हैं। अच्छा सभी ने देखा कितना परिवार बढ़ रहा है। बापदादा कहते हैं वाह परिवार वाह! अभी तो जो भी स्थान बनायेंगे ना वह छोटा होना ही है। प्लैन बनाना है ना। क्योंकि अभी आप सभी का अटेन्शन सन्देश देने में अच्छी तरह से गया। तो जो इतनी सेवा होती है उनमें से वृद्धि तो होगी ना। तो पहले बारी आने वालों को बापदादा पहले बारी आने की बहुत-बहुत पदमगुणा मुबारक देते हैं। अभी निर्विघ्न बन आने वाली समस्याओं को स्वयं वा सहयोग से जल्दी से जल्दी समाप्त कर उड़ते चलो। अभी चलने का समय पूरा हो गया, आप जब आये हो तो उड़ने का समय है। तो उड़ने के समय पर चलना नहीं, उड़ना। तो उड़ेंगे रहेंगे और आगे बढ़ते रहेंगे यह बापदादा का विशेष वरदान और एकस्ट्रा मदद पहले आने वालों को है। अच्छा।

अभी चारों ओर के परमात्म प्रेमी बच्चों को जो सदा बाप के प्यार में उड़ते रहते हैं तीव्र पुरूषार्थी हैं और सेवा में निर्विघ्न सच्चे सेवाधारी हैं, ऐसे चारों ओर के बच्चों को बापदादा भी देख रहे हैं, साथ साथ दूर वालों को भी देख रहे हैं और यहाँ शान्तिवन में भी जो जगह जगह पर स्क्रीन पर देख रहे हैं, सुन रहे हैं, उन सभी बच्चों को बापदादा सदा के लिए खुश रहो और खुशी बांटों, यह वरदान दे रहे हैं। खुश चेहरा, कोई भी आपका चेहरा देखे वह चेहरा देखके खुश हो जाए। कैसा भी हो आपका चेहरा खुशनुमा देखके खुद भी खुश हो जाए, यह वरदान चारों ओर के बच्चे या जो सम्मुख बैठे हैं उन सभी के लिए एक वरदान है। कभी चेहरा मुरझाया हुआ नहीं। अगर आप मुरझायेंगे तो विश्व का हाल क्या होगा! आपको सदा खुशनुमा चेहरा और खुशनुमा चलन में रहना है और रहाना है। ऐसे सभी तीव्र पुरूषार्थी बच्चों को बापदादा का यादप्यार और मीठे मीठे बच्चों को नमस्ते।

निर्मलशान्ता दादी से:- यह अच्छा है। कोई भी हिसाब किताब चुक्तू करने में साक्षी, न्यारे प्यारे होकरके करने में एक्जैम्पुल अच्छी हो।



31-03-10   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


‘‘पूर्वज और पूज्य के स्वमान में रह मन्सा द्वारा सर्व की पालना करो, पूरे वृक्ष को सकाश दो’’

आज बापदादा अपने चारों ओर के पूर्वज और पूज्य आत्माओं को देख रहे हैं। पूर्वज आत्मायें अपने को समझते हो ना। पूज्य आत्माओं का निवास कहाँ हैं? अपने झाड़ को सामने लाओ उसमें देखो, आपका स्थान कहाँ है? जानते हो कि आप पूर्वजों का स्थान जड़ में है। झाड़ के जड़ में भी है, तना में भी है। तो जड़ के द्वारा ही सारे वृक्ष को पालना मिलती है। तो आप इस सारे वृक्ष के टाल टालियां वा पत्तों की पालना करने वाले, सकाश देने वाले पूर्वज हो। पूर्वज के साथ पूज्य भी हो। तना द्वारा लास्ट पत्ते को भी सकाश मिलती है। तो अपने को सारे वृक्ष को सकाश देने वाले अनुभव करते हो? नशा रहता है कि हम पूर्वज सर्व आत्माओं रूपी टाल टालियां या पत्तों को सकाश दे रहे हैं! जैसे ब्रह्मा बाप को ग्रेट ग्रेट ग्रैण्ड फादर कहते हैं तो उनके आप बच्चे साथी भी मास्टर ग्रेट ग्रेट ग्रैण्ड फादर हो। सारे वृक्ष के आत्माओं की आप पूर्वज आत्माओं की तरफ आकर्षण है। आप पूर्वज आत्मायें उन्हों की पालना शक्तियों द्वारा करते। जैसे आप सभी पूर्वज आत्माओं की पालना बाप ने की तो बाप ने कैसे की? शक्तियों द्वारा। वैसे आप भी पूर्वज के नाते से शक्तियों द्वारा उन्हों की पालना करने वाले हो। आजकल देखते हो कि सभी आत्मायें दु:खी हैं, पुकार रही हैं, अपने-अपने देवी देवताओं को, आओ हमारी रक्षा करो। हमें शान्ति दो, हमें शक्ति दो। ओ क्षमा के सागर पूर्वज हमें पालना दो। तो यह आवाज आप पूर्वज आत्माओं के कानों में सुनाई दे रहा है? अनुभव करते हो कि हम ही पूर्वज हैं? सारे वृक्ष में देखो जो भी अन्य धर्म वाली आत्मायें भी हैं तो वृक्ष में टाल टालियां होने के कारण वह भी आपको उसी नजर से देखते हैं। उन्हों के भी पूर्वज आप ही हो। कोई भी धर्म वाली आत्माओं से आप जब मिलते हो तो यह समझते हो कि यह भी हमारे ही वृक्ष की टाल टालियां हैं! वह भी जब आपसे मिलते हैं तो समझते हैं कि यह अपने हैं! अपनेपन का अनुभव उन आत्माओं को भी हो रहा है और होना है। तो इतना नशा, इतना अन्दर से आप लोगों के पास रहम आता है? वह चिल्ला रहे हैं रहम करो तो अभी समय अनुसार आप सभी पूर्वज आत्माओं को मन्सा द्वारा शक्तियों की पालना करनी है। उन्हों को आवश्यकता है। तो जितना आप अपने पूर्वज के नशे में रहेंगे उतना ही आप द्वारा उन्हों की पालना होगी। वैसे भी देखो किसी की भी पालना लौकिक में भी बड़ों से होती है। वही उन्हों के शरीर के खाने पीने, पढ़ाई जो सोर्स आफ इनकम है, उनका प्रबन्ध करते हैं। तो जैसे बाप ने आप सभी बच्चों की भिन्न-भिन्न शक्तियों से पालना की है वैसे अभी आपका कार्य है सारे वृक्ष के टाल टालियों और पत्तों की पालना करना। ऐसा उमंग आप पूर्वज आत्माओं को आता है? नशा है पूज्य भी हो। देखो, सारे ड्रामा में जितनी आप आत्माओं की कायदे प्रमाण पूजा होती है उतनी पूजा कोई भी महात्मा, धर्म पिता की नहीं होती। आपकी पूजा नियम प्रमाण आरती होना, भोग लगना, ऐसी किसकी भी नहीं होती। गायन देखो आपका कायदे प्रमाण कीर्तन होता है। किसी का भी ऐसे गायन नहीं होता। तो आप पूर्वज के साथ पूज्य भी हो। ड्रामा में आप जैसा पूजन और गायन किसी का भी नहीं है।

तो बापदादा ऐसी आप पूज्य और पूर्वज आत्माओं को देख कितना खुश होते हैं! बाप के दिल से बार-बार यह गीत बजता वाह मेरे सर्व वृक्ष के पूर्वज और पूज्य आत्मायें वाह! तो आजकल बापदादा आप सभी बच्चों को जो आपका स्वमान है, बाप समान सम्पन्न सम्पूर्ण बनने का, वही रूप देखने चाहते हैं। उसके लिए एक बात बच्चों को ध्यान में रखनी है, बापदादा ने देखा कि सभी बच्चे पुरूषार्थ बहुत अच्छा भी करते हैं लेकिन सदा शब्द हर एक को अपने पुरूषार्थ में एड करना है। अटेन्शन देना है। बापदादा बच्चों से पूछते हैं कि जैसे बापदादा आप सभी बच्चों को श्रेष्ठ स्वमानधारी आत्मा के रूप से देखते हैं वैसे आप अपने को भी ऐसे स्वमानधारी समझते हो? तो बापदादा ने देखा जवाब में क्या कहते? रहते तो हैं, लक्ष्य तो यही है, हाथ भी उठाते हैं, फिर धीरे से कहते कभी-कभी हो जाता है। तो बापदादा अभी कभी-कभी शब्द को समाप्त करने चाहते हैं क्योंकि समय समाप्त होने के समीप आ रहा है। और लाने वाले कौन? बच्चे बाप से पूछते हैं बाबा आप टाइम बता दो, 20 वर्ष हैं, 16 वर्ष हैं, 10 वर्ष है, कितना है? और बाप फिर बच्चों से प्रश्न पूछते हैं कि समय को समीप लाने वाले कौन हैं? अकेला बाप लायेगा? बाप ने स्थापना की, अकेला किया? यज्ञ रचा बिना ब्राह्मणों के यज्ञ रचा? बाप बच्चों के साथ है। बच्चे भी कहते हैं बाबा हम अभी भी आपके साथ हैं, चलेंगे भी आपके साथ। तो बाप बच्चों से पूछते हैं कि समय को समीप लाने वाले बच्चे आप ही डेट फिक्स करो। किसको डेट फिक्स करनी है? बाप को या बाप के साथ आप और बाप दोनों को?

तो आज इस वर्ष के मिलन का लास्ट है। तो बापदादा ने देखा कि बच्चे भी चाहते हैं कि हम भी अभी अपने राज्य में चले। अब घर जाना है यह भी गीत गाते रहते हैं, मन में। अब घर जाना है, अब रिटर्न जरनी करनी है। इसके लिए बापदादा ने पहले ही कहा कि सारा समय अपने को कोई न कोई सेवा में बिजी रखो। बापदादा ने देखा है सेवा की रूचि, सेवा का उमंग-उत्साह अभी भी बच्चों में है। अच्छी सेवा के समाचार भी बापदादा सुनते हैं। लेकिन बापदादा तीव्रगति में आगे बढ़ने के लिए बच्चों को विशेष अटेन्शन दिलाते हैं कि सिर्फ एक वाचा की सेवा नहीं, सेवा करते हो तो एक ही समय पर तीन सेवायें इकट्ठीकरो - मनसा द्वारा सकाश दो, वाचा द्वारा ज्ञान दो और कर्मणा अर्थात् अपने सम्पर्क द्वारा, सम्बन्ध द्वारा, चेहरे द्वारा ऐसी सेवा करो जो उसका भी प्रभाव साथ-साथ सेवा में हो। एक समय में तीन सेवा इकट्ठीकरो क्योंकि अभी आत्मायें सेवा के लिए चाहती हैं, कुछ फर्क हो। कुछ बदलना चाहिए। तो एक समय पर तीनों सेवा कर सकते हो? कर सकते हो? चेक करते हो कि जिस समय वाणी की सर्विस करते उस समय मन्सा द्वारा और कर्मणा अर्थात् सम्पर्क-सम्बन्ध द्वारा भी सेवा हो रही है! होती है साथ-साथ? जो समझते हैं कि हम एक ही समय में तीन सेवा करते हैं, वह हाथ उठाओ। करते हैं, तीनों सेवा? अच्छा, पहली लाइन कम उठा रही है क्यों? क्यों? पहली लाइन सोच रही है? यह मधुबन वाले करते हैं? मधुबन वाले हाथ उठाओ, करते हैं तो हाथ उठाओ। एक ही समय तीन सेवा। तो अभी अटेन्शन प्लीज। कभी कभी नहीं। क्या होता है? सेवा तो करते हैं लेकिन सेवा में साथ-साथ अपने में और साथियों में सन्तुष्टता क्योंकि सेवा का फल है सन्तुष्टता वा खुशी। तो चेक करो सेवा तो की लेकिन पहले भी सुनाया कि सेवा की खुशी तब होती है जब स्वयं साथी और वायुमण्डल जब सभी सन्तुष्टता के वायब्रेशन में हो। सेवा के सफलता की तीन बातें विशेष सुनाई थी, याद होगी। पहला नम्बर सेवा अर्थात् निमित्त भाव। दूसरा - निर्माण भावना। तीसरा - निर्मल वाणी। भाव, भावना और स्वभाव। यह सभी साथ-साथ सेवा में है तो स्वयं भी सन्तुष्ट और साथी भी सन्तुष्ट और जिन्हों की सेवा की वह भी आगे बढ़ते जायें। निमित्त भाव वाले बाप के तरफ सम्बन्ध जोड़ेंगे। अगर निमित्त भाव नहीं तो बाप के नजदीक इतने नहीं आयेंगे। तो जब भी सेवा करते हो तो यह चेक करो कि भाव, भावना और स्वभाव ठीक रहा? और आजकल बापदादा ने देखा कि जो मूल बात है, बापदादा की। हर एक को और अपने को चाहे कहाँ भी सेवा के लिए जाते हो, तो यह चेक करो कि साथी सन्तुष्ट रहे? क्योंकि सेवा की सफलता है सन्तुष्टता का फल प्राप्त हो। खुशी प्राप्त हो। साथ-साथ एक बात बापदादा इशारा देते हैं कि चलते फिरते, संगठन में भी रहते हो, कोई न कोई साथ में सेवा में होता ही है, तो एक दो को आत्मा के रूप में देखो। आत्मा के रूप में देखते भी हैं, अभ्यास भी करते हैं, लेकिन जब आत्मा देखते हो तो आत्मा के ओरीज्नल संस्कार से देखते हो? या जो मिक्स संस्कार हैं, वह भी दिखाई देते हैं? आत्मा देखो इसमें पास हो, लेकिन किस संस्कार से देखते हो? क्या आत्मा के ओरीज्नल संस्कार से कनेक्शन में आते हो? या वर्तमान संस्कार भी आते हैं सामने?तो बाप कहते हैं कि आज से किसी को भी एक तो आत्मा रूप में देखो लेकिन आत्मा के जो ओरीज्नल संस्कार हैं उस रूप में देखो। तो कभी भी आपस में जो कभी कभी बातें हो जाती हैं, वह नहीं होंगी। अभी आत्मा रूप में देखते हो लेकिन जो साथ में वह भी आ जाता है, वर्तमान संस्कार। तो आपस में जो सम्पूर्ण स्थिति होनी चाहिए, उसमें दूरी पड़ जाती है। तो ओरीज्नल संस्कार वाली आत्मा देखो। तो यह जो अभी संगठन में रूकावट आती है वह रूकावट खत्म हो जायेगी।

यह ब्राह्मण परिवार श्रेष्ठ परिवार है। परिवार की बहुत महिमा है। यह ईश्वरीय परिवार बार-बार नहीं मिलता। कल्प में एक ही बार यह ईश्वरीय परिवार मिला है, इतना बड़ा परिवार सारे कल्प में कभी नहीं मिलता। परिवार की भी विशेषता को जानना और परिवार में चलना, एक महान सबजेक्ट है। पहले भी सुनाया था कि इस ज्ञान का फाउण्डेशन है निश्चय और निश्चय में चार बातें हैं। बाप, दादा साथ में है ही और नॉलेज में, ड्रामा में, परिवार में सभी में निश्चय है। तो निश्चय बुद्धि हो, सहज पुरूषार्थी बन जाते हो। जैसे बापदादा में निश्चय है ऐसे परिवार में भी निश्चय आवश्यक है। जैसे देखो जब आप कोई भी बात की पैंकिग करते हो तो क्या करते हो? चार ही तरफ टाइट करते हो ना, एक तरफ भी अगर टाइट नहीं किया तो हलचल होती है। ऐसे ही बाप, नॉलेज, नॉलेज में भी विशेष ड्रामा और परिवार। अगर चार ही बातें मजबूत नहीं हैं तो विघ्न आते हैं। विघ्नों को पार करने में अटेन्शन देना पड़ता है। इसलिए परिवार की पहचान, परिवार से प्यार, एक दो को समझना, यह बहुत आवश्यक है।

तो पूर्वज हो, पूज्य हो, तो यह बातें भी अपने में या साथियों में लानी है। क्या भी हो, नम्बरवार तो हैं ना! लेकिन ब्राह्मण परिवार का विशेष कार्य है दुआ देना, दुआ लेना। कई बच्चे कहते हैं कि दूसरा क्रोध करता है, अभी दुआ लेगा कैसे! दुआ तो लेगा नहीं, क्रोध करेगा। बापदादा कहते हैं अच्छा संस्कार वश वह बददुआ देता है, आप दुआ देने चाहते हो लेकिन वह बददुआ देता है, लेकिन बददुआ दी लेने वाला कौन? लेने वाले आप हो या वह है? वह देने वाला है आप लेने वाले हैं। तो उसकी बददुआ आपने ली क्यों? अगर आत्मा को ओरीज्नल संस्कार से देखो तो आपको रहम आयेगा। स्वयं भी सेफ रहो, बददुआ लो नहीं, लेने वाले आप हो। न दो न लो।

तो अभी बापदादा आज का या जब तक फिर आना हो तब तक का होमवर्क देते हैं कि कभी भी किसी को आत्मा रूप में देखो तो वर्तमान संस्कार के रूप में नहीं देखो। आत्मा कहा तो आत्मा को निजी संस्कार आत्मा के जो हैं उस निजी संस्कार के रूप में, सम्बन्ध में भी आओ और दृष्टि में भी उसी दृष्टि में देखो तो यह जो विघ्न पड़ते हैं जिसके कारण पुरूषार्थ में तीव्रता नहीं आती है, तो अभी वृत्ति बदलेंगे, दृष्टि बदलेंगे तो बातें समाप्त हो जायेंगी। किसी की क्या भी बातें देखते हो, बापदादा ने पहले भी कहा है तो सदा आप ब्राह्मण परिवार का एक एक का फर्ज है शुभ भावना, शुभ कामना देना और शुभ भावना, शुभ कामना लेना। उस संस्कार से देखो और चलो। एक और भी बात बताते हैं - पहले भी बताया है तो कहाँ कहाँ संगठन में कभी कभी परदर्शन, पराचिंतन और परमत के तरफ आकर्षित हो जाते हैं। अभी इन तीन पर को काट दो, एक पर रखो वह एक पर है पर उपकार। पर उपकार करना है, पर उपकारी हैं, ब्राह्मण का स्वभाव है पर उपकारी। परदर्शन नहीं, यह पर काट दो। यह तीनों बहुत नुकसान देते हैं। इसीलिए अपना स्वमान सदा यही याद रखो कि मुझ ब्राह्मण आत्मा का स्वमान ही है पर उपकारी। तो दूसरी सीजन में बापदादा हर एक बच्चे में यह परिवर्तन देखने चाहते हैं। हो सकता है? हो सकता है? हाथ उठाओ। हाथ उठाने में तो ठीक। तो क्या करना? अच्छा है बापदादा मुबारक देते हैं, एक दो को अटेन्शन दिलाते रहना। क्या करना? रोज़ रात को सोने के पहले बापदादा को गुडनाइट करने के पहले अपने सारे दिन का पोतामेल देना। अच्छा किया या बुरा किया?जो भी किया वह पोतामेल देके और अपने बुद्धि को खाली करके गुडनाइट करना। बाप से भी और बाप की याद में ही आप भी सो जाना। आपकी नींद बहुत अच्छी होगी। पहले खाली करना अपने को, बुद्धि में कोई बात नहीं रखना, बाप के रूप में सारा पोतामेल सच्ची दिल का दे दिया तो आपको धर्मराजपुरी में जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। सच्ची दिल पर साहेब राजी हो जायेगा। तो होम वर्क मिला - एक तो अपने पूर्वज और पूज्य स्वरूप की सेवा चलते फिरते कर सकते हो। बाप ने देखा यह जनक बच्ची ने तबियत खराब होते, कराची की सेवा में विशेष मन्सा सकाश दी चाहे निमित्त कोई भी है लेकिन इसने प्रैक्टिकल में किया। वहाँ की आत्माओं को सकाश मिली। और आगे-आगे उमंग में बढ़ रहे हैं। तो ऐसे बापदादा ने प्रैक्टिकल एक्जैम्पुल देखा तो आप सभी भी कर सकते हो। दु:खी को खुशी की लहर पहुंचा सकते हो। चिल्लाने वाले को, आपके ही भक्त आपको ही पुकार रहे हैं हमारी देवी हमारा देवता कब आके रहम करेंगे। आपको सुनाई नहीं देता लेकिन बाप को बहुत सुनाई देता है। हर एक ईष्ट को, आप नहीं जानते हो कि हमारे भक्त कौन से हैं लेकिन भक्त तो जानते हैं ना। वह तो पुकारते हैं और आप हर ब्राह्मण आत्मा के भक्त हैं। चाहे ढीले हों चाहे होशियार हो, भक्त आपके भी हैं। क्योंकि जड़ में बैठे हो ना तो आपका सकाश का पार्ट है। तो अभी मन्सा सेवा को बढ़ाओ। और जितना बिजी रहेंगे ना उतना निर्विघ्न रहेंगे। कर सकते हो ना! मन्सा सेवा करना जानते हो ना! जानते हो? हाथ उठाओ जानते हो। अच्छा हाथ नीचे करो। जानते हो, अच्छा जो करते रहते हैं बीच-बीच में, वह हाथ उठाओ। करते रहते हैं, अच्छा। अच्छा नियम पूर्वक करते हैं या कभी कभी? अगर कभी कभी करते हैं तो उसको रेग्युलर करो और अगर थोड़ी करते हैं उसको और बढ़ाओ। क्योंकि सारे कल्प का आधार अभी की सेवा का फल है। चाहे पुजारी बनेंगे चाहे राज्य अधिकारी बनेंगे दोनों का आधार अभी की सेवा, अभी की अवस्था, अभी का बोल, अभी का सम्बन्ध सम्पर्क है। इसलिए बापदादा यही चाहते हैं कि अगले बारी जब आयें, पहले बारी। आप सोच रहे होंगे बाप ने तो कह दिया कब तक चलेगा? इसका मतलब यह है कि आप एवररेडी रहो। इसीलिए पहले बारी सबका रिजल्ट लेंगे। जितनी परसेन्ट अभी है, उससे बढ़नी चाहिए। वैसे तो बापदादा पहले से ही कहते हैं करना है तो अभी करो। कभी नहीं। बापदादा को कभी के गीत बहुत सुनाते हैं। बहुत अच्छे अच्छे करके सुनाते हैं लेकिन बापदादा को कभी के गीत अच्छे नहीं लगते। अभी अभी के गीत अच्छे लगते। तुरत दान महापुण्य। तो समझा अगले वर्ष के लिए क्या करना है? अच्छा।

सेवा का टर्न महाराष्ट्र ज़ोन का है:- अच्छा यह सीन सभी को दिखाओ। अभी देखो महाराष्ट्र का पौना क्लास है। पुराने हैं या नये हैं लेकिन महाराष्ट्र के हैं। अच्छा जो खड़े हुए हैं उसमें जो रेग्युलर स्टूडेन्ट हैं, सेवा करने वाले हैं, सेन्टर सम्भालने वाले हैं वह बैठ जाओ। तो भी देखो नये भी कितने हैं। अच्छा जो नये हैं वह उठो और सभी बैठ जाओ। अच्छा। नयों की भी संख्या तो काफी है, बापदादा खुश होते हैं कि टूलेट के पहले आ गये हो। इसीलिए आप सभी आने वालों को मुबारक है। आने वालों को बापदादा यही वरदान देते हैं कि थोड़े समय में फास्ट पुरूषार्थ तीव्र पुरूषार्थ कर आगे बढ़ सकते हो। अगर हर समय अटेन्शन रखेंगे, परिवर्तन करने का और सारे दिन में अपने पढ़ाई और प्राप्ति इकट्ठीकरते रहेंगे तो आप भी आगे बढ़ सकते हो। चांस है। अभी टूलेट नहीं है, लेट है इसीलिए आप जितना हो सके उतना अपने चार ही सबजेक्ट में, पढ़ाई में अटेन्शन देते रहना। बाप भी देखते रहते हैं कौन-कौन लास्ट वाला भी फास्ट जाता है। ऐसे नहीं है कि नहीं जाते हैं, जाते हैं। तो बाप की तो एक एक बच्चे में यही आशा है कि हर एक बच्चा आगे से आगे जाये और अपना स्वराज्य और बापदादा के दिल का तख्त ले। अच्छा।

महाराष्ट्र नाम ही महा है। पहले महा आता है ना! तो महान आत्मायें तो हो और महान आत्माओं में महान उमंग-उत्साह तीव्र पुरूषार्थ सदा बाप की आशाओं को प्रैक्टिकल में लाने का लक्ष्य और लक्षण भी है। दोनों है ना! लक्ष्य भी है और लक्षण भी है। समान है या फर्क है? जितना बड़ा लक्ष्य है उतना ही लक्षण की भी स्पीड है वा फर्क है?जो समझते हैं कि लक्ष्य ऊंचा है और लक्षण के तरफ भी अटेन्शन इतना ही है, वह हाथ उठाओ। लक्ष्य और लक्षण हैं? वह थोड़ों ने उठाया है। अभी महाराष्ट्र की एक एक आत्मा अमृतवेले बापदादा से मिलन मनाने के बाद यह अटेन्शन देना कि आज के दिन लक्ष्य और लक्षण एक करना है। यह कर सकते हो ना! और रात को बापदादा को समाचार देना कि आज के दिन लक्ष्य और लक्षण समान रहा या फर्क रहा! और दूसरे दिन खास अटेन्शन रखके जो कमी हुई ना उसको भरना। तीसरे दिन उस कमी को सदा के लिए समाप्त करना। ऐसे आगे आगे बढ़ते रहना। तो महाराष्ट्र नम्बरवन हो जायेगा ना! सबमें। चार ही सबजेक्ट में। ज्ञान, योग, धारणा.. धारणा को पहला नम्बर रखना। धारणा में नम्बरवन हो सकता है! हो सकता है? टीचर्स हो सकता है? हाथ उठाओ। करना पड़ेगा, ऐसे नहीं। जो करेंगे वह हाथ उठाओ। अच्छा है। जितनी संख्या है और टीचर्स ने हाथ उठाया है तो बापदादा वरदान देता है कि बाप भी एकस्ट्रा मदद देंगे क्योंकि महाराष्ट्र है। कमाल करके दिखाना। बाबा कहेंगे और एकस्ट्रा ताकत अनुभव करेंगे। दिल से कहना बाबा तो एकस्ट्रा मदद अनुभव होगी। बापदादा का अटेन्शन रहेगा। अच्छा है। आप करेंगे ना प्रैक्टिकल तो सबको उमंग आयेगा। कोई भी बात आवे ना, आप नहीं कर सकते हो, हिम्मत थोड़ी कम है तो एकस्ट्रा बाप को जो अपना हिम्मत कम करने वाला काम है, उसे बाबा को सुपुर्द कर दो, बाबा मैं यह नहीं कर सकती हूँ। आप ले लो। मैं यह संकल्प में भी नहीं लाऊंगी। बिल्कुल उस संकल्प को आने नहीं देना। दे दो। वापस आवे तो दिल में नहीं रखना। फिर वापस कर देना। बापदादा चाहता है कि मेरा एक एक बच्चा जो सोचे वह करके दिखावे। सोचते तो सभी अच्छा हैं, तो करना!। पाण्डव भी करेंगे ना! करेंगे? पाण्डव हाथ उठाओ करेंगे? अच्छा। फिर बापदादा बहुत एक अच्छी बात सुनायेगा, करने के बाद। अच्छा। बाकी सेवा तो अच्छी कर रहे हैं। आपने क्या सर्टीफिकेट दिया। अच्छी हो रही है सेवा।

डबल विदेशी :- डबल विदेशियों को बापदादा एक बात की बहुत-बहुत मुबारक देते हैं। कौन सी बात की? डबल विदेशियों में एक विशेषता देखी जो पहले अपना कल्चर बदलना मुश्किल लगता था, इन्डियन कल्चर मुश्किल लगता था लेकिन अभी यह प्रॉबलम मैजारिटी समाप्त है। अभी कई आत्माओं में जो है विदेशी लेकिन पुरूषार्थ में अच्छे हैं, उन्हों को ऐसी महसूसता आती है कि हम तो थे ही बाबा के, सेवा के लिए सिर्फ विदेश में यह जन्म लिया है। यह देखकर बापदादा को इस चेंज की खुशी है। आप में से जो समझते हैं हम तो हैं ही यहाँ के, सिर्फ सेवा के लिए यह जन्म लिया है चारों ओर सेवा के लिए। वह हाथ उठाओ। यहाँ के ही थे और यहाँ के ही रहेंगे क्योंकि वायदा है, ब्रह्मा बाबा के साथ अभी भी बापदादा के साथ जायेंगे, पक्का। साथ जायेंगे, कांध हिलाओ। और सतयुग में भी साथ आयेंगे। कांध हिलाओ। अच्छा। और द्वापर में भक्ति में भी साथ में रहेंगे। साथ ही रहेंगे ना! वह थोड़े होंगे। सारा कल्प ब्राह्मण परिवार के कोई न कोई के सम्पर्क में होंगे। यह अविनाशी नाता भिन्न-भिन्न रूप में थोड़ा दूर या नजदीक कईयों का रहेगा। तो डबल विदेशियों में की यह भी विशेष एक कमाल है, अगर समझ में बात आ जाती हैं ना तो समझने वाले डगमग नहीं होते, पक्के रहते हैं। समझ में आ जाये तो हिलते कम हैं। समझ में जब तक नहीं आयेगी तब तक क्वेश्चन भी होगा और थोड़ा हिलना जुलना होगा लेकिन समझ लिया तो पक्के चलते रहते हैं। ऐसे कई बच्चे बाबा के आंखों में समाये हुए जो हिलने वाले नहीं हैं। उड़ने वाले हैं। बापदादा सदा विदेश में चक्कर लगाने आते हैं। अमृतवेले में भी आते हैं। तो क्या देखते हैं? रिजल्ट में थोड़ा-थोड़ा मिसिंग भी होती है और कोई कोई मेहनत करते हैं। छोड़ते नहीं हैं, मेहनत करके बैठते हैं और मेहनत में बीच बीच में सफलता भी होती है। लेकिन जो नियम है उसमें मैजारिटी अच्छे रिजल्ट में हैं। बापदादा खुश है। और जो होमवर्क दिया वह किया है? जिसने किया है वह हाथ उठाओ। क्रोध छोड़ा है? क्रोध छोड़ा है? हाथ उठाओ। क्रोध नहीं किया? मन में। हाथ उठाओ। थोड़े हैं। अभी यह होम वर्क भी करते पास मार्क्स लेना। अटेन्शन है बच्चों का, बापदादा ने टोटल रिजल्ट देखी कि जब भी क्रोध करते हैं ना उस समय आधे में याद आ जाता है, हाँ। और अपने को चेक करते हैं नहीं नहीं, क्रोध नहीं करना है। लेकिन थोड़ा मन में आ जाता है। मुख को कन्ट्रोल कर लेते हैं लेकिन मन में आ जाता है। लेकिन करना है पक्का। करना है ना! पक्का है ना! सभी को यह रिजल्ट सभी की बापदादा ने सुनाई। चाहे इन्डिया चाहे विदेश। लेकिन साथ चलना है तो यह तो बाप समान बनना ही पड़ेगा ना। बातें तो आयेंगी लेकिन बातें आती हैं और चली जाती हैं आपका प्रामिस नहीं जाना चाहिए। बाकी बापदादा ने देखा कि विदेश में भी वृद्धि अच्छी हो रही है। प्रोग्रामस भी अच्छे करते हैं। पुरूषार्थ के तरफ जो निमित्त बने हुए हैं वह अटेन्शन दिलाते भी अच्छा हैं। मेहनत करते हैं। अच्छा। जो सदा खुश रहते हैं, वह हाथ उठाओ। खुश रहते हैं। खुशी तो रहती है ना! खुशी जाती तो नहीं? खुशी नहीं जानी चाहिए। क्योंकि खुशी परमात्म गिफ्ट है। परमात्म गिफ्ट सम्भाल के रखनी चाहिए। बात, बात में हो गई, खुशी क्यों जावें। बात पावरफुल या खुशी परमात्म गिफ्ट? तो यह भी कोशिश करो खुशी नहीं जाये। सदा फेस खुशनुमा रहे। खुशनुमा। रह सकती है खुशी? रह सकती है? कांध हिलाओ। रह सकती है अटेन्शन देंगे तो हो जायेगी ना। हो जायेगी? पीछे वाले? तो बापदादा सभी के लिए कह रहे हैं एक मास के बाद सभी से यह चार्ट मंगायेंगे कि एक ही मास खुश रहा? आज की तारीख याद करना। सभी को कह रहे हैं सिर्फ फॉरेनर्स को नहीं। एक मास की ट्रायल करो, कोई भी बात आवे दिल में नहीं समाना। समझना बात राइट है रांग है क्या करना है लेकिन दिल में नहीं समाना। दिल में समा जाती है तभी खुशी जाती है। समझने वाला खुश रहेगा और बात को समझके पूरी करेगा। तो एक मास का पेपर है यह। खुश रहना है। हो सकता है? यह सभी हाथ उठाओ, हो सकता है? तो बापदादा एक मास के लिए आपको इकठ्ठी मुबारक देते हैं। क्योंकि करना ही है। हो जायेगा, का पाठ नहीं, करना ही है। आखिर भी आप लोगों के ऊपर चाहे नये आये हैं या पुराने, है तो ब्राह्मण परिवार के। तो ब्राह्मण परिवार दुनिया के लिए विश्व परिवर्तक है। तो परिवर्तक परिवर्तन नहीं करेंगे तो विश्व का परिवर्तन कैसे होगा! जिम्मेवारी समझो। अलबेलापन छोड़ो। हो जायेगा, हो जायेगा नहीं। करना ही है। क्योंकि बापदादा जानते हैं कि समय आप ब्राह्मणों के रोकने से रूका हुआ है। समय को समीप लाने वाले आप हो। तो तीव्र पुरूषार्थ करो। दृढ़ संकल्प करो तो हो जायेंगे। रोज़ यह गीत याद करो अब घर चलना है। ठीक है। अच्छा।

बापदादा सभी चारों ओर के बच्चों को देख खुश भी होते हैं क्योंकि बापदादा बच्चों के सिवाए अकेला कुछ नहीं करने चाहता। इसलिए हर रोज़ बच्चों का आह्वान करते रहते हैं। तीव्र पुरूषार्थी बच्चे, मीठे बच्चे, प्यारे बच्चे अब चलो। अच्छा।

चारों ओर के बच्चों को बापदादा देखकर चाहे सम्मुख बैठे हैं, चाहे कहाँ भी बैठे हैं लेकिन सभी को याद बाप है। और बाप को भी कौन याद है? चारों ओर के बच्चे याद हैं क्योंकि बाप हर बच्चों के लिए यही आशा रखते हैं कि हर बच्चा बाप समान बनना ही है। बाप की हर एक बच्चे में जो आशायें हैं वह जानता है कि नम्बरवार हैं लेकिन फिर भी अपने नम्बर अनुसार भी सम्पन्न तो बनना है ना। हर एक के पुरूषार्थ को भी देखते हैं क्या-क्या कर रहे हैं, बाप को बहुत प्यार आता है, जब मेहनत करते हैं ना तो बहुत प्यार आता है कि मेहनत से छूट जाएं। प्यार में खो जायें। जितना प्यार में खो जायेंगे उतनी मेहनत कम और बापदादा हाथ उठवाता कि बाप से प्यार है तो सभी बड़ा-बड़ा हाथ उठाते हैं। बाप भी मानते हैं कि बाप से प्यार है, प्यार में मैजारिटी पास हैं लेकिन बातों में आ जाते तो बाप को भूल जाते।

तो चारों ओर के बच्चों को बापदादा का पदम पदम गुणा प्यार और दिल का दुलार स्वीकार हो। सभी को, मालिक बच्चों को बाप लाख-लाख बधाईयां दे रहे हैं। उड़ते चलो, उड़ाते चलो। अच्छा।

नीलू बहन से:- सेवा दिल से करती है। सेवा करना अर्थात् दिल पर चढ़ना। तो बाप के दिल पर चढ़ी हुई हो। सेवा व्यर्थ नहीं जाती है। पदमगुणा बढ़ करके फायदा देती है। अच्छा है। बापदादा मुबारक दे रहे हैं।

दादी जानकी से:- आपकी डबल सेवा है। फारेन की भी है जिम्मेवारी और इन्डिया की भी है। (आपने नजर में रखा है) नजर क्या लेकिन दिल पर रखा है। अच्छा है। अटेन्शन देना ही पड़ता है।

दादियों से:- बापदादा ने देखा कि जो भी निमित्त हैं, चाहे भाई, पाण्डव चाहे शक्तियां। जो भी निमित्त बने हुए हो वह अच्छी तरह से अपना कार्य कर रहे हो और बापदादा खुश होता है जब देखते हैं कि हर एक अपनी जिम्मेवारी अच्छी तरह से सम्भाल रहे हैं। आपस में मिलजुल एक ने किया, दस ने सहयोग दिया। चल रहा है और चलता रहेगा। यज्ञ सफल है। आप भी सफलता स्वरूप हो। सभी ठीक है। बापदादा को कोई ऐसा दिखाई नहीं देता है, अच्छा दिखाई देता है। जो जो जिसके अर्थ निमित्त है वह निमित्त बन सम्भाल रहा है। बापदादा सिर्फ सम्पूर्णता की बात करता है। बाकी कार्य ठीक चल रहा है।

मोहिनी बहन से:- कुर्सा पर तो आ गई ना। ऐसे थोड़ेही छोड़ेंगी। चलेगा। अभी तो समाप्ति करनी है। चल रहा है, चलता रहेगा।

परदादी से:- अच्छा है, आप एक मूर्ति बनके यज्ञ में एक अच्छा दर्शनीय मूर्त बनी हुई हो। आपकी शक्ल को देखकर सभी खुश होते हैं।

निर्वेर भाई से:- अभी जो भी पाण्डव चाहे शक्तियां जो निमित्त बनके कार्य कर रहे हैं, वह अच्छा कर रहे हैं, अच्छा करके और आगे से आगे यज्ञ की जो महिमा है, यज्ञ के सेवा की जो वृद्धि है, बाप की प्रत्यक्षता करना, वह भी प्लैन बना रहे हो। अभी यह लक्ष्य रखो कि बाप की प्रत्यक्षता हो। सब कहें कि यह कार्य करने वाला कौन! भगवान आ गया, हमारा बाप आ गया, अभी यह भासना आवे। अभी यह कोशिश करो। ब्रह्माकुमारियों तक पहुंचे हैं। ब्रह्माकुमार-कुमारियां अच्छे हैं लेकिन प्रत्यक्षता तो होनी है ना। तो ऐसा कोई तपस्या करो, सेवा का प्लैन बनाओ जिसमें यह सिद्ध हो जाए। बाकी जो चला रहे हो वह ठीक चल रहा है। हर एक अपनी-अपनी सेवा अच्छी कर रहे हैं बाकी जो परिवर्तन लाना है, वह सभी के ध्यान पर है।

रमेश भाई, उषा बहन से:- बापदादा का तो हर कदम में वरदान है। अच्छा है दोनों अपनी तबियत का ख्याल रख रहे हो, यह अच्छा है। (एकाउन्ट का कल नया वर्ष शुरू हो रहा है) अच्छा है नये वर्ष की मुबारक हो।