17-10-2019 Avyakt BapDada 17-10-2019


प्राणप्यारे अव्यक्त बापदादा के अति स्नेही, सदा परमात्म मिलन की अनुभूतियों में मगन रहने वाले, अपनी श्रेष्ठ वृत्ति द्वारा शक्तिशाली वायुमण्डल बनाने वाले तीव्र पुरुषार्थी निमित्त टीचर्स बहिनें तथा देश विदेश के सर्व भाई बहिनें,

ईश्वरीय स्नेह सम्पन्न मधुर याद स्वीकार करना जी।

बाद समाचार - प्यारे बापदादा के घर में अव्यक्त अनुभूतियां करने की अलौकिक सीज़न शुरू हो गई है। अक्टूबर मास में यह पहला टर्न उत्तरप्रदेश और पश्चिम नेपाल की सेवाओं का है। भारत के विभिन्न प्रान्तों के साथ-साथ अनेक देशों के डबल विदेशी भाई बहिनें भी मधुबन पहुंच गये हैं। ड्रामा में इस अद्भुत मिलन मेले की भी अपनी न्यारी प्यारी रौनक है। हमारी मीठी गुल्जार दादी को प्यारे बापदादा ने साक्षी दृष्टा बनाए, मुम्बई गामदेवी में बिठाया हुआ है। वहाँ से उनकी तपस्या के सूक्ष्म वायब्रेशन मधुबन में बापदादा की उपस्थिति का अनुभव करा रहे हैं। हर एक के दिल में प्यारे बापदादा के साथ दादी की भी याद समाई हुई है। दादी जानकी जी सभी को बहुत अच्छी भासना, स्नेह और प्यार की पालना दे रही हैं। ड्रामा की यह भी वन्डरफुल सीन है जो अभी तक अव्यक्त रूप से साकार की पालना मिलती रही, अभी निराकार रूप से हर बच्चे को बापदादा हर प्रकार से भरपूर कर रहे हैं। मधुबन घर के पवित्र वायब्रेशन, संगठन की शक्ति, अनुभवी भाई बहिनों के अनुभवयुक्त क्लासेज़ तथा अव्यक्त बापदादा की वीडियो द्वारा रिवाइज मुरली सभी को खूब रिफ्रेश कर रही है। बाबा के घर में जो भी आते हैं सब बहुत अच्छे-अच्छे अनुभव करके जाते हैं।

ज्ञान सरोवर और पाण्डव भवन में डबल विदेशी भाई बहिनों की अलग-अलग क्लासेज़ तथा वर्कशाप चलती रहती हैं। इसके पहले पीस आफ माइन्ड तथा काल आफ टाइम के कार्यक्रमों में लगभग 55 देशों के भाई बहिनें बाबा के घर में पहुंचे और सभी खूब रिफ्रेश होकर गये। अभी तो 3 अप्रैल 2020 तक आप सबको अपने अपने टर्न में मधुबन घर में आने का आह्वान है। सभी इसी निश्चय और भावना के साथ मधुबन में आते हैं कि हम बाबा के घर में सर्व वरदानों से अपनी झोली भरने जा रहे हैं।

हमें पूरी उम्मींद है कि हम आप सभी ब्राह्मण और भी शक्तिशाली शुभ भावनाओं की सकाश दादी गुल्जार जी के प्रति भेजेंगे तो डाक्टर्स दादी जी को मधुबन आने की छुट्टी अवश्य दे ही देंगे। अच्छा - सभी को बहुत-बहुत याद... ओम् शान्ति।

17-10-2019 अव्यक्त महावाक्य वीडियो 17-03-07 मधुबन

“श्रेष्ठ वृत्ति से शक्तिशाली वायब्रेशन और वायुमण्डल बनाने का तीव्र पुरुषार्थ करो, दुआ दो और दुआ लो''

आज प्यार और शक्ति के सागर बापदादा अपने स्नेही, सिकीलधे, लाडले बच्चों से मिलने के लिए आये हैं। सभी बच्चे भी दूर-दूर से स्नेह की आकर्षण से मिलन मनाने के लिए पहुंच गये हैं। चाहे सम्मुख बैठे हैं, चाहे देश विदेश में बैठे हुए स्नेह का मिलन मना रहे हैं। बापदादा चारों ओर के सर्व स्नेही, सर्व सहयोगी साथी बच्चों को देख हर्षित होते हैं। बापदादा देख रहे हैं मैजॉरिटी बच्चों के दिल में एक ही संकल्प है कि अभी जल्दी से जल्दी बाप को प्रत्यक्ष करें। बाप कहते हैं सभी बच्चों का उमंग बहुत अच्छा है, लेकिन बाप को प्रत्यक्ष तब कर सकेंगे जब पहले अपने को बाप समान सम्पन्न सम्पूर्ण प्रत्यक्ष करेंगे। तो बच्चे पूछते हैं बाप से कि कब प्रत्यक्ष होगा? और बाप बच्चों से पूछते हैं कि आप बताओ आप कब स्वयं को बाप समान प्रत्यक्ष करेंगे? अपने सम्पन्न बनने की डेट फिक्स की है? फॉरेन वाले तो कहते हैं एक साल पहले डेट फिक्स की जाती है। तो अपने को बाप समान बनने की आपस में मीटिंग करके डेट फिक्स की है?

बापदादा देखते हैं आजकल तो हर वर्ग की भी मीटिंग्स बहुत होती हैं। डबल फारेनर्स की भी मीटिंग बापदादा ने सुनी। बहुत अच्छी लगी। सब मीटिंग्स बापदादा के पास तो पहुंच ही जाती हैं। तो बापदादा पूछते हैं कि इसकी डेट कब फिक्स की है? क्या यह डेट ड्रामा फिक्स करेगा या आप फिक्स करेंगे? कौन करेगा? लक्ष्य तो आपको रखना ही पड़ेगा। और लक्ष्य बहुत अच्छे ते अच्छा, बढ़िये ते बढ़िया रखा भी है, अभी सिर्फ जैसा लक्ष्य रखा है उसी प्रमाण लक्षण, श्रेष्ठ लक्ष्य के समान बनाना है। अभी लक्ष्य और लक्षण में अन्तर है। जब लक्ष्य और लक्षण समान हो जायेंगे तो लक्ष्य प्रैक्टिकल में आ जायेगा। सभी बच्चे जब अमृतवेले मिलन मनाते हैं और संकल्प करते हैं तो वह बहुत अच्छे करते हैं। बापदादा चारों ओर के हर बच्चे की रूहरिहान सुनते हैं। बहुत सुन्दर बातें करते हैं। पुरुषार्थ भी बहुत अच्छा करते हैं लेकिन पुरुषार्थ में एक बात की तीव्रता चाहिए। पुरुषार्थ है लेकिन तीव्र पुरुषार्थ चाहिए। तीव्रता की दृढ़ता उसकी एडीशन चाहिए।

बापदादा की हर बच्चे के प्रति यही आश है कि समय प्रमाण हर एक तीव्र पुरुषार्थी बनें। चाहे नम्बरवार हैं, बापदादा जानते हैं लेकिन नम्बरवार में भी तीव्र पुरुषार्थ सदा रहे, उसकी आवश्यकता है। समय सम्पन्न होने में तीव्रता से चल रहा है लेकिन अभी बच्चों को बाप समान बनना ही है, यह भी निश्चित ही है सिर्फ इसमें तीव्रता चाहिए। हर एक अपने को चेक करे कि मैं सदा तीव्र पुरुषार्थी हूँ? क्योंकि पुरुषार्थ में पेपर तो बहुत आते ही हैं और आने ही हैं लेकिन तीव्र पुरुषार्थी के लिए पेपर में पास होना इतना ही निश्चित है कि तीव्र पुरुषार्थी पेपर में पास हुआ ही पड़ा है। होना है नहीं, हुआ ही पड़ा है, यह निश्चित है। सेवा भी सभी अच्छी रूचि से कर रहे हैं लेकिन बापदादा ने पहले भी कहा है कि वर्तमान समय के प्रमाण एक ही समय पर मन्सा-वाचा और कर्मणा अर्थात् चलन और चेहरे द्वारा तीनों ही प्रकार की सेवा चाहिए। मन्सा द्वारा अनुभव कराना, वाणी द्वारा ज्ञान के खजाने का परिचय कराना और चलन वा चेहरे द्वारा सम्पूर्ण योगी जीवन के प्रैक्टिकल रूप का अनुभव कराना, तीनों ही सेवा एक समय करनी है। अलग-अलग नहीं, समय कम है और सेवा अभी भी बहुत करनी है। बापदादा ने देखा कि सबसे सहज सेवा का साधन है -वृत्ति द्वारा वायब्रेशन बनाना और वायब्रेशन द्वारा वायुमण्डल बनाना क्योंकि वृत्ति सबसे तेज साधन है। जैसे साइंस की राकेट फास्ट जाती है वैसे आपकी रूहानी शुभ भावना, शुभ कामना की वृत्ति, दृष्टि और सृष्टि को बदल देती है। एक स्थान पर बैठे भी वृत्ति द्वारा सेवा कर सकते हैं। सुनी हुई बात फिर भी भूल सकती है लेकिन जो वायुमण्डल का अनुभव होता है, वह भूलता नहीं है। जैसे मधुबन में अनुभव किया है कि ब्रह्मा बाप की कर्मभूमि, योग भूमि, चरित्र भूमि का वायुमण्डल है । अब तक भी हर एक उसी वायुमण्डल का जो अनुभव करते हैं वह भूलता नहीं है। वायुमण्डल का अनुभव दिल में छप जाता है। तो वाणी द्वारा बड़े-बड़े प्रोग्राम तो करते ही हो लेकिन हर एक को अपनी श्रेष्ठ रूहानी वृत्ति से, वायब्रेशन से वायुमण्डल बनाना है, लेकिन वृत्ति रूहानी और शक्तिशाली तब होगी जब अपने दिल में, मन में किसी के प्रति भी उल्टी वृत्ति का वायब्रेशन नहीं होगा। अपने मन की वृत्ति सदा स्वच्छ हो क्योंकि किसी भी आत्मा के प्रति अगर कोई व्यर्थ वृत्ति या ज्ञान के हिसाब से निगेटिव वृत्ति है तो निगेटिव माना किचड़ा, अगर मन में किचड़ा है तो शुभ वृत्ति से सेवा नहीं कर सकेंगे। तो पहले अपने आपको चेक करो कि मेरे मन की वृत्ति शुभ रूहानी है? निगेटिव वृत्ति को भी अपनी शुभ भावना शुभ कामना से निगेटिव को भी पॉजिटिव में चेन्ज कर सकते हो क्योंकि निगेटिव से अपने ही मन में परेशानी तो होती है ना! वेस्ट थॉट्स तो चलते हैं ना! तो पहले अपने को चेक करो कि मेरे मन में कोई खिटखिट तो नहीं है? नम्बरवार तो हैं, अच्छे भी हैं तो साथ में खिटखिट वाले भी हैं, लेकिन यह ऐसा है, यह समझना अच्छा है। जो रांग है उसको रांग समझना है, जो राइट है उसको राइट समझना है लेकिन दिल में बिठाना नहीं है। समझना अलग है, नॉलेजफुल बनना अच्छा है, रांग को रांग तो कहेंगे ना! कई बच्चे कहते हैं बाबा आपको पता नहीं यह कैसे हैं! आप देखो ना तो पता पड़ जाए। बाप मानते हैं आपके कहने से पहले ही मानते हैं कि ऐसे हैं, लेकिन ऐसी बातों को अपनी दिल में वृत्ति में रखने से स्वयं भी तो परेशान होते हो। और खराब चीज़ अगर मन में है, दिल में है तो जहाँ खराब चीज़ है, वेस्ट थॉटस हैं, वह विश्व कल्याणकारी कैसे बनेंगे? आप सभी का आक्यूपेशन क्या है? कोई कहेगा हम लण्डन के कल्याणकारी हैं, दिल्ली के कल्याणकारी हैं, यू.पी. के कल्याणकारी हैं? या जहाँ भी रहते हो, चलो देश नहीं तो सेन्टर के कल्याणकारी हैं, आक्यूपेशन सब यही बताते कि विश्व कल्याणकारी हैं। तो सब कौन हो? विश्व कल्याणकारी हो? हैं तो हाथ उठाओ। (सभी ने हाथ उठाया) विश्व कल्याणकारी! विश्व कल्याणकारी! अच्छा। तो मन में कोई भी खराबी तो नहीं है? समझना अलग चीज़ है, समझो भले, यह राइट है यह रांग है, लेकिन मन में नहीं बिठाओ। मन में वृत्ति रखने से दृष्टि और सृष्टि भी बदल जाती है।

बापदादा ने होम वर्क दिया था - क्या दिया था? सबसे सहज पुरुषार्थ है जो सभी कर सकते हैं, मातायें भी कर सकती हैं, बूढ़े भी कर सकते हैं, युवा भी कर सकते हैं, बच्चे भी कर सकते हैं, वह यही विधि है सिर्फ एक काम करो किसी से भी सम्पर्क में आओ - “दुआ दो और दुआ लो।'' चाहे वह बद्दुआ देता है, लेकिन आप कोर्स क्या कराते हो? निगेटिव को पॉजिटिव में बदलने का, तो अपने को भी उस समय कोर्स कराओ। चैलेन्ज क्या है? चैलेन्ज है कि प्रकृति को भी तमोगुणी से सतोगुणी बनाना ही है। यह चैलेन्ज है ना! है? आप सबने यह चैलेन्ज की है कि प्रकृति को भी सतोप्रधान बनाना है? बनाना है? कांध हिलाओ, हाथ हिलाओ। देखो, देखादेखी नहीं हिलाना। दिल से हिलाना, क्योंकि अभी समय प्रमाण वृत्ति से वायुमण्डल बनाने के तीव्र पुरुषार्थ की आवश्यकता है। तो वृत्ति में अगर ज़रा भी किचड़ा होगा, तो वृत्ति से वायुमण्डल कैसे बनायेंगे? प्रकृति तक आपका वायब्रेशन जायेगा, वाणी तो नहीं जायेगी। वायब्रेशन जायेगा और वायब्रेशन बनता है वृत्ति से, और वायब्रेशन से वायुमण्डल बनता है। मधुबन में भी सब एक जैसे तो नहीं हैं। लेकिन ब्रह्मा बाप और अनन्य बच्चों के वृत्ति द्वारा, तीव्र पुरुषार्थ द्वारा वायुमण्डल बना है।

आज आपकी दादी याद आ रही है (दादी जी तबियत के कारण बॉम्बे हास्पिटल में थी), दादी की विशेषता क्या देखी? कैसे कन्ट्रोल किया? कभी भी कैसी भी वृत्ति वाले की कमी दादी ने मन में नहीं रखी। सभी को उमंग दिलाया। आपकी जगदम्बा माँ ने वायुमण्डल बनाया। जानते हुए भी अपनी वृत्ति सदा शुभ रखी, जिसके वायुमण्डल का अनुभव आप सभी कर रहे हो। चाहे फॉलो फादर है लेकिन बापदादा हमेशा कहते हैं कि हर एक की विशेषता को जान उस विशेषता को अपना बनाओ। और हर एक बच्चे में यह नोट करना, बापदादा का जो बच्चा बना है उस एक एक बच्चे में, चाहे तीसरा नम्बर है लेकिन यह ड्रामा की विशेषता है, बापदादा का वरदान है, सभी बच्चों में चाहे 99 गलतियां भी हों लेकिन एक विशेषता जरूर है। जिस विशेषता से मेरा बाबा कहने का हकदार है। परवश है लेकिन बाप से प्यार अटूट होता है। इसीलिए बापदादा अभी समय की समीपता अनुसार हर एक जो भी बाप के स्थान हैं, चाहे गांव में हैं, चाहे बड़े ज़ोन में हैं, सेन्टर्स पर हैं लेकिन हर एक स्थान और साथियों में श्रेष्ठ वृत्ति का वायुमण्डल आवश्यक है। बस एक अक्षर याद रखो अगर कोई बद्दुआ देता भी है, तो लेने वाला कौन? क्या देने वाला, लेने वाला एक होता है या दो? अगर कोई आपको कोई खराब चीज़ दे, आप क्या करेंगे? अपने पास रखेंगे? या वापस करेंगे या फेंक देंगे कि अलमारी में सम्भाल के रखेंगे? तो दिल में सम्भाल के नहीं रखना क्योंकि आपकी दिल बापदादा का तख्त है। इसीलिए एक शब्द अभी मन में पक्का याद कर लो, मुख में नहीं मन में याद करो - दुआ देना है, दुआ लेना है। कोई भी निगेटिव बात मन में नहीं रखो। अच्छा एक कान से सुना, दूसरे कान से निकालना तो आपका काम है कि दूसरे का काम है? तब ही विश्व में, आत्माओं में फास्ट गति की सेवा वृत्ति से वायुमण्डल बनाने की कर सकेंगे। विश्व परिवर्तन करना है ना! तो क्या याद रखेंगे? याद रखा मन से? दुआ शब्द याद रखो, बस क्योंकि आपके जड़ चित्र क्या देते हैं? दुआ देते हैं ना! मन्दिर में जाते हैं तो क्या मांगते हैं? दुआ मांगते हैं ना! दुआ मिलती है तभी तो दुआ मांगते हैं। आपके जड़ चित्र लास्ट जन्म में भी दुआ देते हैं, वृत्ति से उनकी कामनायें पूरी करते हैं। तो आप बार-बार ऐसे दुआ देने वाले बने हो तब आपके चित्र भी आज तक दुआयें देते हैं। चलो परवश आत्माओं को अगर थोड़ा सा क्षमा के सागर के बच्चे क्षमा दे दी तो अच्छा ही है ना! तो आप सभी क्षमा के मास्टर सागर हो? हो या नहीं हो? हो ना! कहो पहले मैं। इसमें हे अर्जुन बनो। ऐसा वायुमण्डल बनाओ जो कोई भी सामने आये वह कुछ न कुछ स्नेह ले, सहयोग ले, क्षमा का अनुभव करे, हिम्मत का अनुभव करे, सहयोग का अनुभव करे, उमंग-उत्साह का अनुभव करे। ऐसे हो सकता है? हो सकता है? पहली लाइन वाले हो सकता है? हाथ उठाओ। पहले करना पड़ेगा। तो सभी करेंगे? टीचर्स करेंगी? अच्छा।

अभी विश्व को बहुत आवश्यक्ता है। आप निवारण मूर्त बन जाओ। आपके निवारण मूर्त बनने से आत्मायें निर्वाण में जा सकेंगी। अगर आप निवारण मूर्त नहीं बनेंगे तो आत्मायें बिचारी निर्वाण में जा नहीं सकेंगी। निर्वाण का गेट आपको ही खोलना है। बाप के साथ-साथ गेट खोलेंगे ना! गेट की सेरीमनी करेंगे ना? अभी डेट बनाना आपस में। अच्छा।

जगह जगह से बच्चों के ईमेल और पत्र तो आते ही हैं। तो जिन्होंने पत्र नहीं लिखा है लेकिन संकल्प किया है तो संकल्प वालों का भी यादप्यार बापदादा के पास पहुंच गया है। पत्र बहुत मीठे मीठे लिखते हैं। पत्र ऐसे लिखते हैं जो लगता है कि यह उमंग-उत्साह में उड़ते ही रहेंगे। फिर भी अच्छा है, पत्र लिखने से अपने को बंधन में बांध लेते हैं, वायदा करते हैं ना। तो चारों ओर के जो जहाँ देख रहे हैं या सुन रहे हैं, उन सभी को भी बापदादा सम्मुख वालों से भी पहले यादप्यार दे रहे हैं क्योंकि बापदादा जानते हैं कि कहाँ कोई टाइम है, कहाँ कोई टाइम है लेकिन सब बड़े उत्साह से बैठे हैं, याद से सुन भी रहे हैं। अच्छा।

सेवा का टर्न - यू.पी. बनारस और पश्चिम नेपाल का है:- अच्छा है, बापदादा को टीचर्स पर भी नाज़ है क्योंकि हिम्मत रखकर सरेण्डर होके सारी जीवन सेवा के प्रति लगाने का संकल्प ले लिया है। टीचर्स पक्की हैं ना? पक्के हैं कि थोड़े थोड़े कच्चे हैं? टीचर्स कच्चे नहीं बनना। टीचर्स अर्थात् अपने फीचर्स से फ्युचर दिखाने वाली। अभी संगमयुग का फ्युचर है - फरिश्ता भव। और भविष्य का फीचर्स है - देवता भव। तो जो भी सेवाधारी ग्रुप आया है, उनको डबल नशा है कि फरिश्ता सो देवता बनना ही है! सभी पक्के हैं ना? हाँ देखो, आपका फोटो आ रहा है, तो ऐसा नहीं हो कि फोटो दिखाई नहीं दे, पक्के रहना। क्योंकि जब कहाँ थोड़ी बहुत हलचल होती है ना तो कई बहुत जल्दी घबरा जाते हैं। गहराई में नहीं जाते, घबरा जाते हैं। अगर गहराई में जाये ना, तो कभी भी कितना भी बड़ा हलचल वाला पेपर हो या बात हो लेकिन गहराई में जाने वाले जैसे समुद्र होता है ना, तो समुद्र के तले में जाने वाले बहुत माल लेके आते हैं। ऊपर-ऊपर वाले नहीं, ऊपर वालों को तो मछली मिलेगी लेकिन गहराई में जाने वाले बहुत चीज़ें ले आते हैं। तो यहाँ भी कोई भी बात होवे, बातें तो आयेंगी, बातें नहीं आयेंगी - यह बापदादा नहीं कहेगा। जितना आगे जायेंगे उतनी सूक्ष्म बातें आयेंगी क्योंकि पास विद आनर होना है ना। टीचर्स ने क्या सोचा है? पास विद आनर होना है या 33 मार्क्स से पास होना है? पास विद आनर होना है तो हाथ उठाओ। इन्हों का अच्छी तरह से फोटो निकालो। अच्छा। तो हलचल में घबराना नहीं। बापदादा को उस समय भूल जाते हो, अकेले बन जाते हो ना तो छोटी बात भी बड़ी लगती है। बापदादा कम्बाइण्ड है, कम्बाइण्ड रखो, अनुभव करो तो देखो पहाड़ भी रूई बन जायेगा। कोई बड़ी बात नहीं है। कितने बारी पास हुए हो, कितने कल्प पास हुए हो, पता है? नशा है? अनेक बार मैं ही पास हुआ हूँ, अभी रिपीट करना है। नई बात नहीं है, सिर्फ रिपीट करना है, यह स्मृति रखो।

अच्छा - सभी ने संकल्प किया, तीव्र पुरुषार्थ कर नम्बरवन बनना ही है, किया? हाथ उठाओ। अच्छा अभी टीचर्स उठा रही हैं। पहली लाइन तो है ही ना। अच्छा है - बापदादा ने यह भी डायरेक्शन दिया कि सारे दिन में बीच-बीच में 5 मिनट भी मिले, उसमें मन की एक्सरसाइज़ करो क्योंकि आजकल का जमाना एक्सरसाइज़ का है। तो 5 मिनट में मन की एक्सरसाइज़ करो, मन को परमधाम में लेके आओ, सूक्ष्मवतन में फरिश्तेपन को याद करो फिर पूज्य रूप याद करो, फिर ब्राह्मण रूप याद करो, फिर देवता रूप याद करो। कितने हुए? पांच। तो पांच मिनट में 5 यह एक्सरसाइज करो और सारे दिन में चलते फिरते यह कर सकते हो, इसके लिए मैदान नहीं चाहिए, दौड़ नहीं लगानी है, न कुर्सी चाहिए, न सीट चाहिए, न मशीन चाहिए। जैसे और एक्सरसाइज शरीर की आवश्यक है, वह भले करो, उसकी मना नहीं है। लेकिन यह मन की ड्रिल, एक्सरसाइज, मन को सदा खुश रखेगी। उमंग-उत्साह में रखेगी, उड़ती कला का अनुभव करायेगी। तो अभी-अभी यह ड्रिल सभी शुरू करो - परमधाम से देवता तक। (बापदादा ने ड्रिल कराई) अच्छा

चारों ओर के सदा अपने वृत्ति से रूहानी शक्तिशाली वायुमण्डल बनाने वाले तीव्र पुरुषार्थी बच्चों को, सदा अपने स्थान और स्थिति को शक्तिशाली वायब्रेशन में अनुभव कराने वाले दृढ़ संकल्प वाले श्रेष्ठ आत्माओं को, सदा दुआ देने और दुआ लेने वाले रहमदिल आत्माओं को, सदा अपने आपको उड़ती कला का अनुभव करने वाले डबल लाइट आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

दादी जानकी:- कल रात को गुल्जार दादी को फोन किया। दादी यहाँ आओ ना। दो साल हो गया है ना। ड्रामा और बाबा। बाबा जैसे चलाये, हमको बाबा ने अच्छी तरह से हथेली पर बिठाके पालना दिया है। अभी जो बाबा कराये। बाबा के सामने सभी ने हाथ उठाया। अभी हम शान्ति में बैठे हैं। सभी की खुशी को देख मुझे भी बहुत खुशी हो रही है। ओ.के.।

 

15-11-2019 Avyakt BapDada 15-11-2019


प्राणेश्वर अव्यक्त बापदादा के अति स्नेही, सदा तीव्र पुरुषार्थ द्वारा सम्पन्न और समान बन साथ चलने वाले, रूहानी फखुर में रह सदा बेफिक्र बादशाह की स्थिति का अनुभव करने वाले सर्व ब्राह्मण कुल भूषण भाई बहिनों प्रति,

ईश्वरीय स्नेह सम्पन्न मधुर याद स्वीकार हो।

बाद समाचार - आज प्यारे अव्यक्त बापदादा के अवतरण की इस सीज़न का यह दूसरा टर्न इन्दौर-छत्तीसगढ़ (कमला बहन) का है। करीब 15-16 हजार भाई बहिनें प्यारे बापदादा से मंगल मिलन मनाने, अपनी झोली वरदानों से भरने के लिए पहुंचे हुए हैं। साथ में डबल विदेशी बाबा के बच्चों को तो हर ग्रुप में विशेष लाटरी है ही। उनके लिए ज्ञान सरोवर में कुछ दिन रिट्रीट एवं ज्ञान योग की गहरी क्लासेज़ होती हैं। बापदादा के अवतरण दिन पर सभी डायमण्ड हाल में संगठित रूप में शाम के समय विशेष योग तपस्या के साथ प्यारे बापदादा का आह्वान करते हैं फिर वीडियो द्वारा जब अव्यक्त महावाक्य सुनते हैं तो सभी ऐसे ही अनुभव करते जैसे बाबा हम सबके सम्मुख हाज़िर नाज़िर है और समय अनुसार वह हमारे संकल्पों को कैच कर विशेष वरदान देते शक्ति भर रहे हैं।

बाबा का मुस्कराता हुआ चेहरा, उनकी रूहानी दृष्टि हर बच्चे को नज़र से निहाल कर देती है। ऐसे लगता जैसे डायरेक्ट आकारी रूप द्वारा यह आकारी सो निराकारी मिलन हो रहा है। सभी तृप्त भरपूर होकर जाते हैं। यह भी उस प्यारे जादूगर बाबा की जादूगरी है जो साकार में न आते भी वतन से अपने बच्चों की पालना कर रहे हैं। साथ-साथ अनुभवी भाई बहिनों की क्लासेज़ भी मिलती हैं। हर एक गहन योग तपस्या भी करते हैं। बापदादा के अवतरण दिन पर तो बहुत शक्तिशाली वायुमण्डल बन जाता है। हमारी मीठी दादी जानकी जी भी रोज़ शाम के समय सबसे मिलन मनाती, सबमें उमंग-उत्साह भर देती हैं। संगम पर इन दादियों की पालना भी बहुत श्रेष्ठ और शक्तिशाली है, जो सभी भाग्यवान आत्माओं को मिल रही है। सभी अपनी प्यारी दादी गुल्जार जी को भी दिल से दुआयें देते हैं, कैसे बाबा ने दादी जी के द्वारा हम सबको अनमोल रत्नों का इतना श्रेष्ठ खजाना दिया है। दादी जी भल अभी तक मुम्बई में हैं लेकिन उनकी सूक्ष्म सकाश और शुभ भावनायें शान्तिवन के वायुमण्डल में चारों ओर फैल जाती हैं।

आज जो हम सबने वीडियो द्वारा महावाक्य सुने हैं, वह आपके पास भी भेज रहे हैं, पूरे क्लास को रिफ्रेश करना जी। अच्छा - सभी को याद.... ओम् शान्ति।

15-11-19 ओम् शान्ति रिवाइज - वीडियो 15-12-11 मधुबन

“सदा फखुर में रह बेफिक्र बादशाह बनो, तीव्र पुरुषार्थ द्वारा सम्पन्न और समान बन साथ चलने की तैयारी करो''

आज बापदादा बेफिक्र बादशाहों की सभा देख रहे हैं। यह सभा इस समय ही लगती है क्योंकि सभी बच्चों ने अपने फिकर बाप को देकर बाप से फखुर ले लिया है। यह सभा अभी ही लगती है। आप भी हर एक सवेरे से उठते कर्म करते भी बेफिक्र और बादशाह बन चलते हो ना! यह बेफिक्र का जीवन कितना प्यारा लगता है। बेफिक्र की निशानी क्या दिखाई देती है? हर एक के मस्तक में लाइट, आत्मा चमकती हुई दिखाई देती है। यह बेफिक्र जीवन कैसे बनी? बाप ने सभी बच्चों के जीवन से फिकर लेकर फखुर दे दिया है, जिनके जीवन में फखुर नहीं फिकर है उनके मस्तक में लाइट नहीं चमकती है। उनके मस्तक में बोझ की रेखायें देखने में आती हैं। तो बताओ आपको क्या पसन्द है? लाइट या बोझ? अगर कोई बोझ भी आता है तो बोझ अर्थात् फिकर बाप को देकर फखुर ले सकते हैं। आप सबको बेफिक्र लाइफ पसन्द है ना! देखने वाले भी बेफिक्र लाइफ पसन्द करते हैं।

तो बापदादा आज चारों ओर के बच्चों के चाहे सम्मुख हैं, चाहे जहाँ भी बैठे हैं, बच्चों के मस्तक बीच चमकती हुई लाइट ही देख रहे हैं। तो सदा बेफिक्र रहते हैं या कभी कोई फिक्र भी आता है? है कोई फिकर? जब बाप ने प्रकृतिजीत, विकारों जीत बना दिया तो फिकर कैसे आ सकता है? तो हाथ उठाओ बेफिकर बने हो? बने हो सदा? सदा बने हो या कभी-कभी? कभी-कभी वाले भी हैं? हाथ तो नहीं उठाते, बापदादा भी नहीं देखने चाहते हैं। बापदादा हर बच्चे को बेफिक्र बादशाह देखने चाहते हैं। अगर कभी-कभी वाले भी हैं तो बहुत सहज विधि है जो भी थोड़ा बहुत फिकर आता है तो मेरे को तेरे में बदल लो। यह हद के मेरेपन को, मेरे को तेरे में बदलने की बहुत सहज विधि है, आप तो कहते ही हो मेरा बाबा, तो अब मेरा क्या रहा? हद का मेरा तो समाप्त हुआ ना! मेरा बाबा हो गया। सभी दिल से कहते हो ना मेरा बाबा! प्यारा बाबा! मीठा बाबा! तो मेरे में तेरे को समाना मुश्किल है क्या? फर्क क्या है? ते और मे, इतना छोटा सा फर्क है। संकल्प कर लिया सब तेरा और मेरा क्या रहा? मेरा बाबा।

तो बापदादा ने देखा मैजारिटी बच्चों ने हद के मेरे को तेरा बनाया है इसलिए क्या बन गये? बेफिक्र बादशाह। तो आज बापदादा बच्चों को बेफिक्र बादशाह स्वरूप में देख रहे हैं। देखो, भक्ति मार्ग में भी आपके चित्र बनाते हैं तो डबल ताज दिखाते हैं। एक तो लाइट का ताज है ही क्योंकि बेफिक्र आत्मा की निशानी है मस्तक में लाइट चमकती है और दूसरा ताज विकारों पर विजयी बने हो इसलिए ताज दिखाया है इसलिए यह अटेन्शन रखो कि जब बापदादा ने फिकर लेकर फखुर दे दिया तो क्या बन गये? बेफिक्र बादशाह। बादशाह बने हैं तो तख्त भी चाहिए ना! तो बापदादा ने तीन तख्त के मालिक बनाया है। जानते हो तीन तख्त कौन से हैं? एक तख्त भृकुटी का, यह तो सबको है ही। दूसरा तख्त है बापदादा का दिलतख्त और तीसरा है विश्व का तख्त, राज्य का तख्त। तो आप सबको यह तीन तख्त प्राप्त हैं ना! सबसे श्रेष्ठ है बापदादा का दिलतख्त। तो चेक करो तख्त पर रहते हो? क्योंकि बापदादा के दिलतख्त पर कौन बैठता है? जिसने सदा स्वयं भी बापदादा को अपने दिलतख्त में बिठाया है, जो सदा श्रेष्ठ स्थिति में मास्टर सर्वशक्तिवान है। तो चेक करो कि सदा तख्तनशीन हैं? या कभी मिट्टी में भी आ जाते हैं। यह देहभान मिट्टी है। बहुत समय मिट्टी में रहे हैं तो कभी-कभी मिट्टी में तो नहीं चले जाते?

तो बापदादा सभी बच्चों को समय का ईशारा दे रहे हैं। अचानक का पाठ पक्का करा रहे हैं, इसके लिए इस संगम के समय का बहुत-बहुत महत्व रखना है क्योंकि इस एक जन्म में अनेक जन्मों की प्रालब्ध बनानी है इसलिए बापदादा ने इशारा दिया था तो संगम के समय में दो बातों का हर समय अटेन्शन देना है। वह दो बातें तो याद होंगी - समय और संकल्प। बापदादा को सभी ने व्यर्थ संकल्प, संकल्प द्वारा देने की हिम्मत रखी थी। तो चेक करो हिम्मत सदा कायम है? क्योंकि हिम्मते बच्चे एक बार तो बाप हजार बार मददगार है। तो अभी क्या समझते हो? व्यर्थ संकल्प का जो हिम्मत रख बाप के आगे संकल्प किया वह कायम है? क्योंकि इस व्यर्थ संकल्पों में समय बहुत जाता है और आपका इस समय के प्रमाण कार्य है विश्व की आत्माओं को सन्देश देने का। तो व्यर्थ संकल्प को समाप्त करना है तब दु:खी, अशान्त आत्माओं को सुख शान्ति का अनुभव करा सकेंगे। बापदादा को दु:खी बच्चों को देख तरस पड़ता है। आपको भी अपने भाई-बहिनों को देख तरस तो पड़ता है ना!

बापदादा ने देखा कि वर्तमान समय सभी को रूचि है, प्लैन बनाया भी है, प्रैक्टिकल किया भी है। बापदादा यही चाहते हैं, प्रोग्राम तो सब अच्छे किये हैं, इसकी मुबारक भी दे रहे हैं। लेकिन अभी समय के प्रमाण जल्दी-जल्दी उन्हों को वारिस बनाओ, जो कुछ न कुछ वर्से के अधिकारी बन जायें। अच्छा-अच्छा बहुत कहते हैं, बापदादा ने भी बच्चों के सेवा की यह रिजल्ट तो देखी है और बाप बच्चों पर खुश भी है। दिल से कर रहे हैं और अभी समय प्रमाण सुनते भी रूचि से हैं। इतना अन्तर तो आया है। अच्छा-अच्छा लगता है लेकिन अच्छा बनाके कुछ न कुछ वर्से के अधिकारी बनाओ। इसके लिए बापदादा ने पहले भी इशारा दिया है कि अभी समय अनुसार तीव्र पुरूषार्थी बनने की आवश्यकता है। तीव्र पुरुषार्थी बनने के लिए मुख्य पुरुषार्थ है सेकण्ड में बिन्दी लगाना। सेकण्ड और बिन्दी, दोनों समान। तो अब बापदादा बच्चों का तो बेफिक्र बादशाह का रूप देख रहा है। अभी इसी रूप को सदा अनुभव करो। कोई भी कुछ भी आवे तो मेरे को तेरे में समा दो।

बापदादा ने सभी बच्चों को साथ ले चलने का वायदा किया है। इसके लिए साथ चलने की तैयारी क्या करनी है? बाप तो सेकण्ड में अशरीरी बन जायेंगे लेकिन आपने जो वायदा किया है, बाप ने भी वायदा किया है साथ चलेंगे, तो चेक करो उसकी तैयारी है? सेकण्ड में बिन्दी लगाई, सम्पन्न और सम्पूर्ण बन चला। तो ऐसी तैयारी है? साथ तो चलना है ना! चलना है? कांध हिलाओ। चलना है, अच्छा। पक्का? हाथ में हाथ देना, इसका अर्थ है समान बनना। तो चेक करो समय तो अचानक आना है, तो इतनी तैयारी है जो साथ में चलें?

बाप का बच्चों से प्यार है ना! तो बाप एक को भी साथ चलने में पीछे छोड़ने नहीं चाहते। साथ है, साथ रहेंगे, साथ चलेंगे और साथ राजधानी में राज़ घराने में आयेंगे। मंजूर है ना! मंजूर है? तैयारी है? मंजूर है इसमें तो हाथ उठा लेंगे, यह हाथ नहीं उठाओ। तैयारी है, इसमें हाथ उठाओ। बड़ा हाथ उठाओ। अच्छा। कल भी विनाश हो जाए तो तैयार हो? लेकिन अपनी सेवा को समाप्त किया है? सेवा तो अभी रही हुई है या सेवा समाप्त हो गई है? सन्देश सबको पहुंच गया है? सिर्फ अपने मोहल्ले में ही देखो, आपने हर एक को बाप आ गया है, वर्सा लेना हो तो ले लो, यह सन्देश दिया है? तो पसन्द है कि घर-घर में यह उल्हना पूरा हो जाए। ऐसे न कहें कि हमको तो पता नहीं पड़ा, बाप आया और चला भी गया, हम वंचित रह गये! सभी को उमंग है ना! सबको उमंग है? सेवा करके उल्हना पूरा करना है। उमंग है तो बापदादा का सहयोग भी है। अच्छा।

तो बापदादा के दिल की आश को तो सभी जानते ही हो। समान और सम्पूर्ण, यह दो शब्द सदा चेक करो तो क्या बाप की यह आशा पूर्ण की? क्योंकि बापदादा हर बच्चे को बाप के आशाओं का सितारा समझते हैं। हर एक बच्चे का बाप से प्यार है, यह तो बापदादा भी जानते हैं। इन सभी को मधुबन में लाने वाला क्या है? यह प्यार की ट्रेन में आते हैं। प्यार के प्लेन में आते हैं। तो बाप भी बच्चों के प्यार की सबजेक्ट में बच्चों से खुश है। लेकिन जो दो शब्द बाप चाहते हैं समान और सम्पूर्ण, इसको भी सम्पन्न करना ही है। तो आज बापदादा चारों ओर के बच्चों को दिल से स्नेह से देख एक-एक बच्चे को दिल के प्यार की मुबारक दे रहे हैं। अच्छा।

सेवा का टर्न इन्दौर ज़ोन का है:- यह भी चांस अच्छा लगता है ना! सेवा का भण्डार सहज मिल जाता है। बापदादा खुश होते हैं, यह चांस भी एक तो सेवा का फल भी मिलता है और बल भी मिलता है। सबकी नज़र कहाँ जाती है? अभी किस ज़ोन का टर्न है, वह नज़र जाती है और सेवा, मधुबन की सेवा अर्थात् सेवा का फल और बल मिलना। तो बहुत अच्छा किया। निर्विघ्न सेवा की, सबको सन्तुष्टता का फल खिलाया। बापदादा को खुशी होती है क्योंकि विशेष चांस मिलता है ना और बच्चे मधुबन में पहुंचते हैं, मधुबन में आना, इतने बड़े परिवार से मिलना और इतने बड़े परिवार की सेवा के निमित्त बनना, यह भी बहुत बड़ा भाग्य बन जाता है।

अच्छा है, हर एक के ऊपर बाप की भी नज़र जाती और परिवार की भी नज़र जाती। प्रत्यक्ष आत्माओं को खुशी भी मिलती, खुश करते भी और मिलती भी खुशी, दोनों ही है। मुबारक हो।

डबल विदेशी भाई बहिनों से:- डबल विदेशियों का यह संस्कार है कि जो करेंगे वह उमंग-उत्साह से करके पूरा करेंगे और पुरुषार्थ के तरफ भी अटेन्शन है। तो सभी हाथ उठाओ कि सभी तीव्र पुरुषार्थी हैं? तीव्र पुरुषार्थी हैं? अच्छा। सबके तरफ से भी बहुत-बहुत मुबारक है, क्यों? तीव्र पुरुषार्थी अर्थात् बापदादा की आशाओं को पूर्ण प्रैक्टिकल करने वाले। तो बापदादा तीव्र पुरुषार्थ की मुबारक दे रहे हैं। तीव्र पुरुषार्थी हैं और सदा तीव्र पुरुषार्थी बन औरों को भी तीव्र पुरुषार्थी बनायेंगे। तो सारा विदेश तीव्र पुरुषार्थी की लिस्ट में आ जाये। ऐसा रिकार्ड कुछ है और कुछ दिखाना है। लेकिन बापदादा पुरुषार्थ की मुबारक दे रहे हैं।

पहली बार आने वालों से:- बापदादा बच्चों को देख खुश हो रहे हैं। आये, भले पधारे और आगे के लिए अब तीव्र पुरुषार्थ कर आगे से भी आगे जाने का दृढ़ संकल्प करो। दृढ़ता सफलता की चाबी है। तो बापदादा जो भी आज बच्चे आये हैं उन्हों को विशेष दृढ़ता के चाबी की सौगात दे रहे हैं। दृढ़ता को कभी भी हल्का नहीं करना। दृढ़ता आपको सदा सहज आगे बढ़ाती रहेगी। तो बापदादा खुश है भले पधारे, अपना वर्सा लेने के लिए आये, इसकी बहुत-बहुत मुबारक। अच्छा।

चारों ओर के सर्व ब्राह्मणों को बापदादा दिल का प्यार और सदा आगे बढ़ने का श्रेष्ठ संकल्प दे रहे हैं। एक-एक बच्चे को बाप देख भी रहे हैं और देख-देख दिल में समा रहे हैं। नजदीक वाले तो बापदादा को सामने देख रहे हैं और आप सब साधन द्वारा सामने ही देख रहे हो। बापदादा भी आप सभी को जहाँ भी बैठे हो तो ऐसे ही देख रहा है जैसे सम्मुख ही बैठे हैं और एक-एक को दिल का प्यार दे रहे हैं। बढ़ते चलो, तीव्र पुरुषार्थ कर आगे से आगे बढ़ते चलो। अच्छा।

सम्मुख बैठने वालों को भी बापदादा का यादप्यार और सदा आगे बढ़ने की मुबारक हो, मुबारक हो, मुबारक हो। अच्छा।

दादी जानकी:- आज सभी ने अच्छी भासना ले ली। वन्डरफुल बाबा और यह जो आज अभी बाबा के मुख से महावाक्य सुनते रहे, अब दिल से निकलता, मेरा बाबा। मीठा बाबा... बाबा मेरा, मैं बाबा की। मेरे में तेरा, तेरे में मेरा समा लिया। वन्डरफुल ड्रामा, वन्डरफुल बाबा, सभी ने बहुत अच्छा अनुभव किया। आज जो बापदादा के महावाक्य सुने, मैं समझती हूँ एक भी शब्द मिस नहीं हुआ, हम बाबा के लाडले बच्चे हैं ना। बाबा ने हमको लाइट बनाके माइट दी है। बाबा कहते बच्चे सदा लाइट रहो, माइट ले लो तो एवरीथिंग राइट होगा। मैं साक्षी होकर देख रही हूँ, आप भी अनुभव कर रहे हो। पहले हम सबने साकार में पालना ली, अच्छी तरह से, फिर अव्यक्त की पालना ली। आज जो बाबा के महावाक्य सुन रहे थे वह दिल को लग गये। बाबा ने दिल ले लिया, कुछ रहा ही नहीं है। बाबा कहता बच्चे सदा दिल में रहो, दिलाराम को अपना साथी बना लो और साक्षी होकर ड्रामा की हर सीन को देखते खुशी का पारा चढ़ा रहे। कोई भी बात हो जाए तो लगाओ बिन्दी। बिन्दी लगाने में कोई मेहनत नहीं है, मुहब्बत का अनुभव है, सेकण्ड में बिन्दी। क्वेश्चन मार्क लम्बा होता, कोई क्वेश्चन नहीं है, क्यू में खड़ा नहीं होना है। साथ चलने का कितना सहज पुरुषार्थ बाबा ने बता दिया है। अच्छा।

 

30-11-19 ओम् शान्ति “दिनचर्या'' मधुबन


प्राणप्यारे अव्यक्तमूर्त मात-पिता बापदादा के अति स्नेही, सदा अपनी अव्यक्त स्थिति द्वारा अव्यक्त मिलन की अनुभूतियां करने वाले, अपने ऊंचे श्रेष्ठ स्वमान के फखुर में रह असम्भव को भी सम्भव बनाने वाले सभी बेफिक्र, बेगमपुर के बादशाह, निमित्त टीचर्स बहिनें तथा सर्व ब्राह्मण कुल भूषण भाई बहिनें,

ईश्वरीय स्नेह सम्पन्न मधुर याद स्वीकार करना जी।

बाद समाचार - आप सभी अपने-अपने स्थानों से सूक्ष्म स्नेह की तारों द्वारा मधुबन वरदान भूमि में पहुंचकर अलौकिक अव्यक्त मिलन की अनुभूतियां करते होंगे। वर्तमान समय तो साइंस के साधनों द्वारा भी बहुत अच्छी भासना हर एक को मिल जाती है। बाबा ने हम सबको साइलेन्स की बहुत बड़ी शक्ति के साथ-साथ दिव्य बुद्धि का विमान भी दिया है, जिस विमान द्वारा जब चाहें तीनों लोकों का सैर कर सकते हैं।

इस बार मधुबन घर की रौनक भी कितनी निराली, न्यारी और प्यारी है। कर्नाटक की सेवाओं का टर्न है। इसमें कुछ सन्त महात्मायें भी जो बहुत समय से स्नेह सम्पर्क में हैं, वे आये हुए हैं। सभी बहुत सुन्दर अनुभव कर रहे हैं। डबल विदेशी भाई बहिनें तो हर ग्रुप में अपना गोल्डन चांस लेते ही हैं। दादी जानकी जी की अलौकिक पालना और उनके स्नेह की दृष्टि प्रतिदिन शाम के समय क्लास में सभी को मिल जाती है। इस बार तो हमारे वरिष्ठ भाईयों का, निर्वैर भाई, बृजमोहन भाई, करूणा भाई, अमीरचन्द भाई का सम्मान समारोह भी कर्नाटक के भाई बहिनों ने 29 नवम्बर को डायमण्डल हाल में बहुत धूमधाम से मनाया। करीब 17-18 हजार भाई बहिनों का यह संग मधुबन में बहुत अच्छी अलौकिक अनुभूतियां कर रहा है। कमाल है मीठे प्यारे बापदादा की जो अपने आकारी व निराकारी स्वरूप द्वारा हर बच्चे को भरपूर कर रहे हैं। वीडियो द्वारा अव्यक्त महावाक्य सुनते भी हर एक को यही लगता जैसे हम सम्मुख में बापदादा से दृष्टि लेते मिलन मना रहे हैं। बापदादा की उपस्थिति का हर एक अनुभव करता है। आप सब भी अपने-अपने टर्न अनुसार इस दिव्य दृश्यों का सम्मुख अनुभव करेंगे ही। अच्छा - सभी को याद... ओम् शान्ति।

30-11-19 ओम् शान्ति रिवाइज वीडियो द्वारा 31-10-07 मधुबन

“अपने श्रेष्ठ स्वमान के फ़खुर में रह असम्भव को सम्भव करते बेफिक्र बादशाह बनो''

आज बापदादा अपने चारों ओर के श्रेष्ठ स्वमानधारी विशेष बच्चों को देख रहे हैं। हर एक बच्चे का स्वमान इतना विशेष है जो विश्व में कोई भी आत्मा का नहीं है। आप सभी विश्व की आत्माओं के पूर्वज भी हो और पूज्य भी हो। सारे सृष्टि के वृक्ष की जड़ में आप आधारमूर्त हो। सारे विश्व के पूर्वज पहली रचना हो। बापदादा हर एक बच्चे की विशेषता को देख खुश होते हैं। चाहे छोटा बच्चा है, चाहे बुजुर्ग मातायें हैं, चाहे प्रवृत्ति वाले हैं। हर एक की अलग-अलग विशेषतायें हैं। आजकल कितने भी बड़े ते बड़े साइंसदान हैं, दुनिया के हिसाब से विशेष हैं जो प्रकृतिजीत तो बनें, चन्द्रमां तक भी पहुंच गये लेकिन इतनी छोटी सी ज्योति स्वरूप आत्मा को नहीं पहचान सकते! और यहाँ छोटा सा बच्चा भी मैं आत्मा हूँ, ज्योति बिन्दु को जानता है। फ़लक से कहता है “मैं आत्मा हूँ।'' कितने भी बड़े महात्मायें हैं और ब्राह्मण मातायें हैं, मातायें फ़लक से कहती हमने परमात्मा को पा लिया। पा लिया है ना! और महात्मायें क्या कहते? परमात्मा को पाना बहुत मुश्किल है। प्रवृत्ति वाले चैलेन्ज करते हैं कि हम सब प्रवृत्ति में रहते, साथ रहते पवित्र रहते हैं क्योंकि हमारे बीच में बाप है इसलिए दोनों साथ रहते भी सहज पवित्र रह सकते हैं क्योंकि पवित्रता हमारा स्वधर्म है। पर धर्म मुश्किल होता है, स्व धर्म सहज होता है। और लोग क्या कहते? आग और कपूस साथ में रह नहीं सकते। बड़ा मुश्किल है और आप सब क्या कहते? बहुत सहज है। आप सबका शुरू शुरू का एक गीत था - कितने भी सेठ, स्वामी हैं लेकिन एक अल्फ को नहीं जाना है। छोटी सी बिन्दी आत्मा को नहीं जाना लेकिन आप सभी बच्चों ने जान लिया, पा लिया। इतने निश्चय और फ़खुर से बोलते हो, असम्भव सम्भव है। बापदादा भी हर एक बच्चे को विजयी रत्न देख हर्षित होते हैं क्योंकि हिम्मते बच्चे मददे बाप है इसलिए दुनिया के लिए जो असम्भव बातें हैं वह आपके लिए सहज और सम्भव हो गई हैं। फ़खुर रहता है कि हम परमात्मा के डायरेक्ट बच्चे हैं! इस नशे के कारण, निश्चय के कारण परमात्म बच्चे होने के कारण माया से भी बचे हुए हो। बच्चा बनना अर्थात् सहज बच जाना। तो बच्चे हो और सब विघ्नों से, समस्याओं से बचे हुए हो।

तो अपने इतने श्रेष्ठ स्वमान को जानते हो ना! क्यों सहज है? क्योंकि आप साइलेन्स की शक्ति द्वारा, परिवर्तन शक्ति को कार्य में लगाते हो। निगेटिव को पॉजिटिव में परिवर्तन कर लेते हो। माया कितने भी समस्या के रूप में आती है लेकिन आप परिवर्तन की शक्ति से, साइलेन्स की शक्ति से समस्या को समाधान स्वरूप बना देते हो। कारण को निवारण रूप में बदल देते हो। है ना इतनी ताकत? कोर्स भी कराते हो ना! निगेटिव को पॉजिटिव करने की विधि सिखाते हो। यह परिवर्तन शक्ति बाप द्वारा वर्से में मिली है। एक ही शक्ति नहीं, सर्वशक्तियां परमात्म वर्सा मिला है, इसीलिए बापदादा हर रोज़ कहते हैं, हर रोज़ मुरली सुनते हो ना! तो हर रोज़ बापदादा यही कहते - बाप को याद करो और वर्से को याद करो। बाप की याद भी सहज क्यों आती है? जब वर्से की प्राप्ति को याद करते तो बाप की याद प्राप्ति के कारण सहज आ जाती है। हर एक बच्चे को यह रूहानी फ़खुर रहता है, दिल में गीत गाते हैं - पाना था वो पा लिया। सभी के दिल में यह स्वत: ही गीत बजता है ना! फ़खुर है ना! जितना इस फ़खुर में रहेंगे तो फ़खुर की निशानी है, बेफिक्र होंगे। अगर किसी भी प्रकार का संकल्प में, बोल में या सम्बन्ध-सम्पर्क में फिकर रहता है तो फ़खुर नहीं है। बापदादा ने बेफिक्र बादशाह बनाया है। बोलो, बेफिक्र बादशाह हो? हैं तो हाथ उठाओ जो बेफिकर बादशाह हैं? बेफिकर हो या कभी-कभी फिकर आ जाता है? अच्छा है। जब बाप बेफिक्र है, तो बच्चों को क्या फिकर है।

बापदादा ने तो कह दिया है सब फिक्र वा किसी भी प्रकार का बोझ है तो बापदादा को दे दो। बाप सागर है ना। तो बोझ सारा समा जायेगा। कभी बापदादा बच्चों का एक गीत सुनके मुस्कराता है। पता है कौन सा गीत? क्या करें, कैसे करें.... कभी-कभी तो गाते हो ना। बापदादा तो सुनता रहता है। लेकिन बापदादा सभी बच्चों को यही कहते हैं - हे मीठे बच्चे, लाडले बच्चे साक्षी-दृष्टा के स्थिति की सीट पर सेट हो जाओ और सीट पर सेट होके खेल देखो, बहुत मज़ा आयेगा, वाह! त्रिकालदर्शी स्थिति में स्थित हो जाओ। सीट से नीचे आते इसलिए अपसेट होते हो। सेट रहो तो अपसेट नहीं होंगे। कौन सी तीन चीज़ें बच्चों को परेशान करती हैं? 1- चंचल मन, 2- भटकती बुद्धि और 3- पुराने संस्कार। बापदादा को बच्चों की एक बात सुनकर हंसी आती है, पता है कौन सी बात है? कहते हैं बाबा क्या करें, मेरे पुराने संस्कार हैं ना! बापदादा मुस्कराता है। जब कह ही रहे हो, मेरे संस्कार, तो मेरा बनाया है? तो मेरे पर तो अधिकार होता ही है। जब पुराने संस्कार को मेरा बना दिया, तो मेरा तो जगह लेगा ना! क्या यह ब्राह्मण आत्मा कह सकती है मेरे संस्कार? मेरा-मेरा कहा है तो मेरे ने अपनी जगह बना दी है। आप ब्राह्मण मेरा नहीं कह सकते। यह पास्ट जीवन के संस्कार हैं। शूद्र जीवन के संस्कार हैं। ब्राह्मण जीवन के नहीं हैं। तो मेरा-मेरा कहा है तो वह भी मेरे अधिकार से बैठ गये हैं। ब्राह्मण जीवन के श्रेष्ठ संस्कार जानते हो ना! और यह संस्कार जिनको आप पुराने कहते हो, वह भी पुराने नहीं हैं, आप श्रेष्ठ आत्माओं का पुराने ते पुराना संस्कार अनादि और आदि संस्कार है। यह तो द्वापर, मध्य के संस्कार हैं। तो मध्य के संस्कार को बाप की मदद से समाप्त कर देना, कोई मुश्किल नहीं है। परन्तु होता क्या है? बाप जो सदा आपके साथ कम्बाइन्ड है, उसे कम्बाइन्ड जान सहयोग नहीं लेते, कम्बाइन्ड का अर्थ ही है समय पर सहयोगी। लेकिन समय पर सहयोग न लेने के कारण मध्य के संस्कार महान बन जाते हैं।

बापदादा यही चाहते हैं कि सब पूज्यनीय आत्मायें हैं, तो पूज्यनीय आत्माओं का विशेष लक्षण दुआ देना ही है। तो आप सभी जानते हो कि आप सभी पूज्यनीय आत्मायें हो? तो यह दुआ देना अर्थात् दुआ लेना अण्डरस्टुड हो जाता है। जो दुआ देता है, जिसको देते हैं उसकी दिल से बार-बार देने वाले के लिए दुआ निकलती है। तो हे पूज्य आत्मायें आपका तो निजी संस्कार है - दुआ देना। अनादि संस्कार है दुआ देना। जब आपके जड़ चित्र भी दुआ दे रहे हैं तो आप चैतन्य पूज्य आत्माओं का तो दुआ देना, यह नेचुरल संस्कार है। इसको कहो मेरा संस्कार। मध्य, द्वापर के संस्कार नेचुरल और नेचर हो गये हैं। वास्तव में यह संस्कार दुआ देने के नेचुरल नेचर है। जब किसी को दुआ देते हैं, तो वह आत्मा कितनी खुश होती है, वह खुशी का वायुमण्डल कितना सुखदाई होता है! तो जिन्होंने भी किया है, उन सबको, चाहे आये हैं, चाहे नहीं आये हैं, लेकिन बापदादा के सामने हैं। तो उन्हों को बापदादा मुबारक दे रहे हैं। किया है तो उसे अपनी नेचुरल नेचर बनाते हुए आगे भी करते, कराते रहना। और जिन्होंने थोड़ा बहुत किया है, नहीं भी किया है तो वह सभी अपने को सदा मैं पूज्य आत्मा हूँ, मैं बाप की श्रीमत पर चलने वाली विशेष आत्मा हूँ, इस स्मृति को बार-बार अपनी स्मृति और स्वरूप में लाना क्योंकि हर एक से जब पूछते हैं कि आप क्या बनने वाले हो? तो सब कहते हैं हम लक्ष्मी-नारायण बनने वाले हैं। राम-सीता में कोई नहीं हाथ उठाता। जब लक्ष्य है, 16 कला बनने का। तो 16 कला अर्थात् परमपूज्य, पूज्य आत्मा का कर्तव्य ही है - दुआ देना। यह संस्कार चलते-फिरते सहज और सदा के लिए बनाओ। हो ही पूज्य। हो ही 16 कला। लक्ष्य तो यही है ना!

तो संकल्प करो, बाप के प्यार में माया कितने भी तूफान सामने लाये लेकिन मास्टर सर्वशक्तिवान आत्माओं के आगे तूफान भी तोह़फा बन जायेगा। ऐसा वरदान सदा याद करो। कितना भी ऊंचा पहाड़ हो, पहाड़ बदल के रूई बन जायेगा। अभी समय की समीपता प्रमाण वरदानों को हर समय अनुभव में लाओ। अनुभव की अथॉरिटी बनो।

जब चाहो तब अपने अशरीरी बनने की, फरिश्ता स्वरूप बनने की एक्सरसाइज़ करते रहो। अभी-अभी ब्राह्मण, अभी-अभी फरिश्ता, अभी-अभी अशरीरी, चलते फिरते, कामकाज करते हुए भी एक मिनट, दो मिनट निकाल अभ्यास करो। चेक करो जो संकल्प किया, वही स्वरूप अनुभव किया? अच्छा।

चारों ओर के सदा श्रेष्ठ स्वमानधारी, सदा स्वयं को परमपूज्य और पूर्वज अनुभव करने वाले, सदा अपने को हर सबजेक्ट में अनुभवी स्वरूप बनाने वाले, सदा बाप के दिलतख्त नशीन, भृकुटी के तख्त नशीन, सदा श्रेष्ठ स्थिति के अनुभवों में स्थित रहने वाले, चारों ओर के सभी बच्चों को यादप्यार और नमस्ते।

सभी तरफ से सभी के पत्र, ईमेल, समाचार सभी बापदादा के पास पहुंच गये हैं, तो सेवा का फल और बल, सभी सेवाधारियों को प्राप्त है और होता रहेगा। प्यार के पत्र भी बहुत आते हैं, परिवर्तन के पत्र भी बहुत आते हैं। परिवर्तन की शक्ति वालों को बापदादा अमर भव का वरदान दे रहे हैं। जिन सेवाधारियों ने श्रीमत को पूरा फालो किया है, ऐसे फालो करने वाले बच्चों को बापदादा कहते “सदा फरमानबरदार बच्चे वाह!'' बापदादा यह वरदान दे रहे हैं और प्यार वालों को बहुत-बहुत प्यार से दिल में समाने वाले अति प्यारे और अति माया के विघ्नों से न्यारे, ऐसा वरदान दे रहे हैं। अच्छा।

सेवा कर्नाटक ज़ोन की है:- अच्छा है, सेवा का जो चांस लिया है, वह भी सभी सन्तुष्ट हैं और सन्तुष्ट किया है, इससे अपने जमा का खाता बहुत अच्छा जमा किया है। कर्नाटक की संख्या भी कम नहीं है, संख्या अच्छी है और जैसे अभी संगठित रूप में मिलकर निर्विघ्न सेवा का रिकार्ड दिखाया है, ऐसे ही आगे भी कर्नाटक संगठित रूप में बहुत कुछ कमाल कर सकते हैं। बापदादा के पास नक्शा है, कमाल कर सकते हैं इसलिए संगठित रूप का जलवा दिखाना। अभी अच्छा किया है। सारा परिवार कर्नाटक पर खुश है। अच्छा - बापदादा ने कर्नाटक वालों को काम दिया था, याद है, क्या दिया था? वारिस क्वालिटी निकालने के लिए कहा था, याद है? सेवा में तो अच्छा नम्बर लिया, अभी इतने वारिस निकालो जो नम्बरवन आ जाओ। अच्छा।

डबल विदेशी:- अभी बापदादा ने देखा है कि विदेश में भी सेवा का उमंग अच्छा बढ़ रहा है। पहले कहते थे विदेश में स्टूडेन्ट बनना बड़ा मुश्किल है और अभी क्या है? अभी मुश्किल है या सहज है? सहज है?

बापदादा ने देखा कि जैसे अभी हर साल वृद्धि करके बाप के सामने ला रहे हो, ऐसे आगे भी ज्यादा से ज्यादा वृद्धि करते रहेंगे। बाप और अपनी प्रत्यक्षता करते रहेंगे। अच्छा ग्रुप है। सभी निश्चयबुद्धि और ईश्वरीय नशे में रहने वाले, उड़ने वाले हैं। चलने वाले नहीं बनना, उड़ने वाले। चलने वाले समय पर नहीं पहुंच सकेंगे, उड़ने वाले बनना, डबल लाइट। बाकी बापदादा खुश है। जो किया वह सफल हो गया। तो आप सब कौन हुए? सफलता के सितारे। अच्छा है। बहुत अच्छा।

टीचर्स सभी उठो:- टीचर्स भी कम नहीं हैं। बापदादा तो सभी टीचर्स को गुरूभाई देखते हैं। गुरूभाई का अर्थ है बाप समान। तो टीचर्स को विशेष हर कर्म बाप समान करना ही है। करेंगे नहीं, करना ही है क्योंकि टीचर्स बाप की तरफ से स्टूडेन्ट के आगे एक निमित्त साकार रूप में बाप समान हैं। टीचर का हर कर्म स्टूडेन्ट के आगे बाप समान दिखाई दे। सबके मुख से निकले यह तो बाप को फॉलो कर बाप समान बने हुए हैं। तो ऐसा लक्ष्य है ना। यही लक्ष्य है ना। कांध हिलाओ। टीचर निमित्त हैं। तो निमित्त के ऊपर जिम्मेवारी भी है ना। तो फालो कर रही हो लेकिन और भी आगे करना है। लक्ष्य बहुत अच्छा है। और बाप तो यही हर टीचर में शुभ भावना रखते हैं कि बाप समान बनना ही है। अच्छा।

दादी जानकी:- ओम् शान्ति। सारी दुनिया को पता चलता है डायमण्ड हाल में क्या क्या हो रहा है। जीवन जीना है तो कैसे, अगर मरना भी होगा तो कैसे। एक बाबा दूसरा हम आत्मा, वाह रे वाह बाबा। व्हाई व्हाई नहीं। क्योंकि कईयों को व्हाई कहना अच्छा लगता है। वाह मीठे बाबा के बच्चे वाह! बाबा के बच्चों को सुख मिला है इलाही। किसी को न दु:ख देना, न लेना। सिर्फ बोलना नहीं है, प्रैक्टिकल करना है। कोई हमारे को दु:ख देवे, हम लेवे नहीं। वह बिचारा है ना। बाबा के सब बच्चों ने बाबा को अपने दिलतख्त पर बिठा दिया है। हमें वाणी से परे वानप्रस्थ में रहना है। दिलाराम बाबा है, उसके तीनों बच्चे सुख शान्ति प्रेम अच्छी सेवा कर रहे हैं। इतनी सारी सभा को देख शुक्रिया बाबा आपका। आप सबको बुलाते हो, खिलाते हो, सबको खाना ठीक मिलता है ना। सोने का ठीक मिलता है ना।

गुल्जार दादी बाबा का रथ है ना। हमें जो बाबा कहे वह करना ही है। दादी गुल्जार अभी वहाँ सुन रही है ना। सुनो दादी, देखो, हमारे शान्तिवन में कितना बड़ा डायमण्ड हाल है। सारा हाल फुल है। सब आपको याद कर रहे हैं। अच्छा। ओम् शान्ति।

 

15-12-19 ओम् शान्ति ''दिनचर्या'' मधुबन


प्राणप्यारे अव्यक्त बापदादा के अति स्नेही, सदा श्रेष्ठ स्वमान में स्थित रह, अनुभवी स्वरूप बन अनुभव की अथॉरिटी को कार्य में लगाने वाली निमित्त टीचर्स बहिनें तथा देश विदेश के सर्व ब्रह्मण कुल भूषण भाई बहिनें,

ईश्वरीय स्नेह सम्पन्न मधुर याद स्वीकार करना जी।

बाद समाचार - बापदादा के इस टर्न में राजस्थान, गुजरात तथा ईस्टर्न ज़ोन के भाई बहिनें काफी संख्या में पहुंचे हुए हैं। सेवाओं का पार्ट राजस्थान के भाई बहिनों को मिला है। बापदादा तो हर बच्चे के भाग्य की महिमा गाते हैं। बाबा कहते बच्चे आप ब्रह्मण सारे संसार में विशेष आत्मायें हो, जिन्होंने गुप्त रूप में आये हुए भगवन को पहचान लिया। उनकी दिव्य शक्तियों का अनुभव करते हो। ड्रामानुसार बापदादा का यह अलौकिक न्यारा प्यारा मिलन मेला भी सबको बहुत आकर्षित कर रहा है, नये पुराने हजारों की संख्या में भाई बहिनें अपने मधुबन घर में पहुंच रहे हैं। दादी जानकी जी रोज़ शाम के समय विशेष योग और क्लास कराते हुए सभी से मिलन मनाती हैं। अन्य वरिष्ठ भाई बहिनों की भी बहुत गुह्य धारणायुक्त क्लासेज़ मिलती हैं। सभी खूब रिफ्रेश होकर जाते हैं। बापदादा के अवतरण दिन पर मधुबन का वायुमण्डल भी विशेष आकर्षण वाला होता। सभी अमृतवेले से ही प्यारे बापदादा का आह्वान करते, अव्यक्त वतन की सैर करते हैं। सबके अन्दर यही लगन रहती है कि हमें तो बापदादा से अव्यक्त मिलन मनाना ही है। बापदादा बच्चों की हर आश पूरी भी करते हैं। सभी को बहुत सुन्दर अनुभव हो जाते हैं। एकाग्रता के साथ इतने बड़े संगठन में भी हर एक नई नई अलौकिक अनुभूतियां करते हैं। बड़ा शान्त, खुशनुमा वातावरण रहता है। आप सभी भी अपने ग्रुप में आकर खूब रिफ्रेश होंगे ही। अच्छा - सभी को बहुत-बहुत याद....

15-12-19 ओम् शान्ति वीडियो द्वारा रिवाइज- 30-1-10 मधुबन

''चारों ही सबजेक्ट में स्वमान के अनुभवी स्वरूप बन अनुभव की अथॉरिटी को कार्य में लगाओ''

आज ब्रह्मण संसार के रचयिता बापदादा अपने चारों ओर के ब्रह्मण संसार को देख रहे हैं। हर एक ब्रह्मण सारे संसार में विशेष आत्मा है। कोटों में कोई है क्योंकि साधारण तन में आये हुए बाप को पहचान लिया। बापदादा भी दिल में समाने वाले बच्चों को दिल से दिल का प्यार दे रहे हैं। हर एक बच्चा अपने को ऐसे बाप का प्यारा, दिल में बाप को समाया हुआ अनुभव करते हैं! बाप के लिए हर बच्चा अति प्यारा सर्व का प्यारा है। आप सभी बच्चों का सर्व आत्माओंके प्रति चैलेन्ज है कि हम योगी जीवन वाले हैं। सिर्फ योग लगाने वाले नहीं लेकिन योगी जीवन वाले हैं। जीवन दो चार घण्टे की नहीं होती। जीवन सदाकाल के लिए होती है। तो चलते फिरते कर्म करते योगी जीवन वाले निरन्तर योगी हैं। चाहे योग में बैठते, चाहे कोई भी कर्म करते कर्मयोगी हैं। जीवन का लक्ष्य ही है सदा योगी। ऐसे अपनी योगी जीवन, नेचरल जीवन अनुभव करते हो? बापदादा हर बच्चे के मस्तक में चमकता हुआ भाग्य देखते हैं। क्या देखते हैं? मेरा हर बच्चा स्वमानधारी, स्वराज्य अधिकारी है। क्यों? जहाँ स्वमान है वहाँ देहभान आ नहीं सकता। आदि से अन्त तक, अब तक बापदादा ने हर एक बच्चे को भिन्न-भिन्न स्वमान दिये हैं। अगर अभी भी स्वमानों को याद करो और एक-एक स्वमान की माला फेरते जाओ तो अनेक स्वमान स्वरूप बन, स्वमान में लवलीन हो जायेंगे। लेकिन बापदादा को एक बात बच्चों की अब तक भी अच्छी नहीं लगती, वह जानते हो कौन सी? जब कोई भी बच्चा कहता है कि हमें स्वमान में स्थित होने में कभी-कभी मेहनत लगती है, चाहते हैं लेकिन कभी-कभी मेहनत लगती है तो सर्वशक्तिवान बाप बच्चों की मेहनत नहीं देख सकते क्योंकि जहाँ मोहब्बत होती है वहाँ मेहनत नहीं होती है। जहाँ मेहनत है वहाँ मोहब्बत में कमी है।

तो आज अमृतवेले बापदादा ने चारों ओर के ब्रह्मणों के पास चाहे देश, चाहे विदेश में चक्कर लगाया तो क्या देखा? कोई-कोई बच्चे स्वमान में बैठे हैं, सोच रहे हैं कि मैं बापदादा के दिलतख्त नशीन हूँ, सोच भी रहे हैं, स्वमान में स्थित होने का पुरुषार्थ भी कर रहे हैं लेकिन कमी क्या देखी? स्वमान याद है, सोच रहे हैं, लेकिन स्वमान स्वरूप बन, अनुभवी मूर्त बन अनुभव के अथॉरिटी स्वरूप बनने में कमी दिखाई दी क्योंकि अथॉरिटी तो बहुत है2 लेकिन सबसे बड़ी अथॉरिटी अनुभव की अथॉरिटी है और यह स्वमान की अनुभूति आलमाइटी अथॉरिटी ने दी है। तो मेहनत कर रहा है लेकिन अनुभव स्वरूप नहीं बना। तो बापदादा ने यह देखा कि बैठते हैं, सोचते भी हैं लेकिन अनुभव स्वरूप कोई-कोई हैं। अनुभव में किसी भी प्रकार का देह अभिमान जरा भी अपने तरफ खींच नहीं सकता। तो अनुभव स्वरूप बन जाना, कर्म करते भी कर्मयोगी के अनुभव स्वरूप में खो जाना, इसकी अभी और आवश्यकता है। स्वरूप में स्थित हो जाना, हर बात में, हर सबजेक्ट में अनुभवी स्वरूप बनना, चाहे ज्ञान, योग, धारणा और सेवा, चार ही सबजेक्ट में अनुभव स्वरूप बनना। अनुभवी को माया भी हिला नहीं सकती इसलिए बापदादा आज सभी बच्चों को अनुभवी स्वरूप में देखने चाहते हैं। सुनने और सोचने में फर्क है लेकिन अनुभवी स्वरूप बनना, जो सोचा, जिस स्वमान में स्थित रहने च्ााहे उसके अनुभव स्वरूप में स्थित हो जाएं। अनुभवी को कोई भी हिला नहीं सकता क्योंकि स्वमान और देहभान, जहाँ स्वमान स्वरूप है, स्वमान के अनुभव में स्थित है वहाँ देह भान आ नहीं सकता। जैसे देखो अंधकार है लेकिन आप रोशनी का स्विच ऑन करो तो अंधकार ऑटोमेटिकली गायब हो जाता। अंधकार को मिटाने में, अंधकार को भगाने में मेहनत नहीं करनी पड़ती। ऐसे ही जब स्वमान के सीट पर अनुभव का स्विच ऑन होता तो किसी भी प्रकार का देहभान, भिन्न-भिन्न प्रकार के देह भान भी हैं और भिन्न-भिन्न प्रकार के बाप ने स्वमान भी दिये हैं। स्वमान को जानते हैं, पुरुषार्थ भी करते हैं लेकिन अनुभव का पुरुषार्थ करना और अनुभवी स्वरूप बनना उसमें अन्तर है इसलिए मेहनत करनी पड़ती है। तो बापदादा को अब समय प्रमाण बाप समान बनने का लक्ष्य सम्पन्न करने समय यह मेहनत करना अच्छा नहीं लगता। हर एक अपने को चेक करो कि मैं कर्मयोगी जीवन वाला हूँ? जीवन नेचरल और सदाकाल की होती है, कभी-कभी की नहीं। ऐसा अनुभवी स्वरूप बनो, जो लक्ष्य है योगी जीवन का, जो लक्ष्य है अनुभवी मूर्त बनने का वह लक्ष्य सम्पन्न है? सदा मस्तक से चमकती हुई लाइट खुद को भी अनुभव हो, खुद भी उस स्वरूप में स्थित हो, स्मृति स्वरूप हो, स्मृति करने वाला नहीं, स्मृति स्वरूप हो और स्मृति स्वरूप है या नहीं, उसका प्रमाण यह है कि जहाँ स्मृति के अनुभवी स्वरूप हैं वहाँ अपने में समर्थी हर कार्य करते हुए भी अनुभव होगी। कार्य भिन्न-भिन्न होंगे लेकिन अनुभव स्वरूप की स्थिति भिन्न-भिन्न नहीं हो।

तो आज बापदादा ने देखा कि मेहनत क्यों करनी पड़ती? अनुभव स्वरूप बनने में नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार देखा। बापदादा का हर एक बच्चे से जिगरी प्यार है तो प्यार वाले की मेहनत देखी नहीं जाती। चाहे किसी भी सबजेक्ट में मेहनत करनी पड़ती है, कभी-कभी शब्द यूज़ करना पड़ता है, इसका कारण है अनुभवी स्वरूप बनने की कमी। पुरुषार्थी हैं लेकिन स्वरूप नहीं बने हैं। एक सेकण्ड में चार ही सबजेक्ट में अपने स्वमान के अनुभवी स्वरूप की अनुभूति होनी चाहिए, जो देह-अभिमान नजदीक आ नहीं सके। जैसे रोशनी के आगे अंधकार ठहर नहीं सकता। निकालना नहीं पड़ता, नेचरल जहाँ अंधकार है वहाँ रोशनी कम है या नहीं है। तो सबसे बड़े में बड़ी अथॉरिटी अनुभव गाया हुआ है। अनुभव को हजारों लोग बदलने चाहे, बदल नहीं सकते। तो जो भी सबजेक्ट हैं, चाहे ज्ञान की, चाहे योग की, चाहे धारणा की, चाहे सेवा की, किसी में भी चार में से एक में भी मेहनत लगती है तो जरूर अनुभव की कमी है। सेवा की सफलता में, धारणा में स्वभाव-संस्कार परिवर्तन की, योग में भी अचल रहने की, योगी जीवन की अनुभूति करने की जहाँ मेहनत है या कभी-कभी कहते हो, तो इसका अर्थ है उस सबजेक्ट में आप अनुभवीमूर्त नहीं बने हो। अनुभव कभी-कभी नहीं होता, नेचरल नेचर होती है। तो अभी सुना मेहनत करने का कारण क्या? आपको अनुभव होगा कि जिस समय अनुभव की सीट पर सेट होते हो, किसी भी वरदान के स्वरूप में अनुभवी बन अनुभव करते हो तो उस समय मेहनत नहीं करनी पड़ती है, नेचरल अनुभूति होती है, इसलिए अभी समय प्रमाण सब अचानक होना है। बताके नहीं होना है। इकùे के इकùे एक समय अनेकों की टिकेट कट रही है तो ऐसे समय में आप एवररेडी हैं? यह तो नहीं कहेंगे कि पुरुषार्थ कर रहा हूँ? एवररेडी अर्थात् कोई भी वरदान या स्वमान का संकल्प किया और स्वरूप बना इसलिए बापदादा आज इस बात पर अटेन्शन दिला3 रहे हैं कि किसी भी वरदान को फलीभूत कर वरदान या स्वमान के स्वरूप के अनुभवी बन सकते हो? बनना ही पड़ेगा। कोशिश कर रहा हूँ, अगर कोशिश भी करनी है तो अभी से क्योंकि बहुत समय का अभ्यास समय पर मदद देगा। पुरुषार्थी नहीं, अनुभवी क्योंकि अनुभव की अथॉरिटी आप सबको आलमाइटी अथॉरिटी ने दी है। जैसे देह भान के अनुभवी हैं, तो क्या देह भान को याद करना पड़ता है कि मैं फलाना हूँ! तो देह भान इतना पक्का हो गया है। ऐसे देही अभिमानी, स्वमानधारी, स्वराज्य अधिकारी इतना पक्का हो। आप कहते हो ना, हमारा जीवन परिवर्तन है तो परिवर्तन क्या किया? देह भान से स्वमान, स्वराज्य अधिकारी बनें। तो चेक करो ज्ञान स्वरूप बना हूँ? या ज्ञान सुनने और सुनाने वाला बना हूँ? ज्ञान अर्थात् नौलेज़, नौलेज़ का प्रैक्टिकल रूप है, नौलेज़ को कहते हैं, नौलेज़ इज लाइट, नौलेज़ इज माइट, तो ज्ञान स्वरूप बनना अर्थात् जो भी कर्म करेंगे वह लाइट और माइट वाला होगा। यथार्थ होगा। इसको कहा जाता है ज्ञान स्वरूप बनना। ज्ञान सुनाने वाला नहीं, ज्ञान स्वरूप बनना। योग स्वरूप का अर्थ है कर्मेन्द्रियों जीत बनना। हर कर्मेन्द्रिय पर स्वराज्यधारी। इसको कहा जाता है योग अर्थात् युक्तियुक्त जीवन। ऐसे अगर ज्ञान योग का स्वरूप है तो हर गुण की धारणा ऑटोमेटिकली होगी। जहाँ ज्ञान, योग है, योगयुक्त है वहाँ गुणों की धारणा ऑटोमेटिकली होगी। सेवा हर समय ऑटोमेटिक होगी। समय अनुसार चाहे मन्सा सेवा करे, चाहे वाचा करे, चाहे कर्मणा करे, चाहे स्नेह सम्बन्ध में करे, सेवा भी हर समय अखण्ड चलती रहेगी। सम्बन्ध सम्पर्क में भी सेवा होती है। मानो कोई आपके भाई या बहन ब्रह्मण परिवार में थोड़ा सा मायूस है, थोड़ा पुरुषार्थ में डल है, कोई संस्कार के वश है, ऐसे सम्पर्क वाली आत्मा को आपने उमंग-उत्साह दिलाया, सहयोग दिया, स्नेह दिया, यह भी सेवा का पुण्य आपका जमा होता है। गिरे हुए को उठाना यह पुण्य गाया जाता है। तो सम्बन्ध और सम्पर्क में भी सेवा करना, यह सच्चे सेवाधारी का कर्तव्य है। सेवा मिले या सेवा दी जाए तो सेवा है, वह नहीं। स्वयं मन्सा, वाचा, कर्मणा, सम्पर्क सम्बन्ध में सेवा ऑटोमेटिकली होती रहे। कई बार बापदादा ने देखा कि सम्पर्क में कोई-कोई बच्चा देखता भी है कि इनका स्वभाव संस्कार थोड़ा जो होना चाहिए वह नहीं है, लेकिन यह तो है ही ऐसा, यह बदलना नहीं है, इसकी सेवा करना टाइम वेस्ट है, ऐसा संकल्प करना क्या यथार्थ है? जब आप मानते हो कि हम प्रकृति को भी सतोप्रधान बनाने वाले हैं, प्रकृति को और वह मनुष्यात्मा है, ब्रह्मण कहलाता है लेकिन संस्कार वश है, जब प्रकृति का संस्कार बदलने की चैलेन्ज की है तो वह तो प्रकृति से पुरुष है, आत्मा है। आपके सम्बन्ध में है। तो सच्चा सेवाधारी अपने सेवा का पुण्य कमाने के लिए शुभ भावना अवश्य रखेगा। यह तो है ही ऐसा, यह बदल ही नहीं सकता, यह शुभ भावना नहीं, यह सूक्ष्म घृणा भावना है। फिर भी अपना भाई बहन है, फिर भी मेरा बाबा तो कहता है ना! तो सच्चा सेवाधारी शुभ भावना देने की सेवा में भी पुण्य कमायेगा। गिरे हुए को गिराना नहीं, उठाना। सहयोग देना, इसको कहेंगे सच्चे सेवाधारी, पुण्य आत्मा। तो ऐसे अपने को चेक करो इतना सेवा का उमंग-उत्साह है? इसको कहा जाता है अनुभव के अथॉरिटी वाला। तो अभी बापदादा यही चाहता है, अनुभवी मूर्त बनो, अनुभव की अथॉरिटी को कार्य में लगाओ।

तो चार ही सबजेक्ट में जो अपने को अनुभवी स्वरूप बन अनुभव के अथॉरिटी को कार्य में लगायेंगे, जो कमी हो उसको सम्पन्न करेंगे, इतना अपने पर अटेन्शन देंगे वह हाथ उठाओ। मन का हाथ उठा रहे हो ना! शरीर का हाथ नहीं, मन का हाथ उठाओ। मन का हाथ उठाना क्योंकि बापदादा शिवरात्रि पर रिजल्ट लेंगे। मन में कोई का भी कमी का संस्कार अपनी शुभ भावना को कम नहीं करे। उसका संस्कार तो ढीला है लेकिन वह इतना तो पावरफुल है जो आपकी शुभ भावना को कम कर लेता है इसलिए जैसे ब्रह्मा बाप ने क्या नहीं देखा, क्या नहीं किया, जिम्मेवार होते फिर भी अन्त में शुभ भावना, शुभ कामना के तीन शब्द सभी को शिक्षा देके गये। याद है ना! तीन शब्द याद हैं ना! स्वयं भी निराकारी, निरहंकारी, निर्विकारी इसी स्थिति में अव्यक्त बनें, किसी को भी कर्मभोग की फीलिंग नहीं दिलाई, किसने समझा कि कर्मभोग समाप्त हो रहा है! क्या हो गया? अव्यक्त हो गया। ऐसे ब्रह्मा बाप समान फरिश्ता भव का वरदान जो बाप ने करके दिखाया, फाॅलो ब्रह्मा बाप। ब्रह्मा बाप से प्यार रहा, अभी भी चाहे4 साकार में नहीं देखा लेकिन अव्यक्त बाप के रूप में भी स्नेह सबका है। बापदादा दोनों से स्नेह है। देखा गया है कि स्नेह की सबजेक्ट में मैजारिटी पास हैं। स्नेह ही चला रहा है। चाहे धारणा नहीं भी हो, कोई भी सबजेक्ट में कमी हो, लेकिन स्नेह की सबजेक्ट में मैजारिटी सभी पास हैं। स्नेह चला रहा है। आप सभी क्यों आये हैं? किस विमान में आये हो? स्नेह के विमान में पहुंचे हो। और बापदादा का भी लास्ट बच्चे से भी प्यार है। कैसा भी है लेकिन प्यार में पास है क्योंकि बाप का हर बच्चे के प्रति दिल का प्यार है। चाहे कैसा भी है लेकिन मेरा है। जैसे आप कहते हो मेरा बाबा, तो बाप क्या कहते हैं? मेरे बच्चे हैं। ऐसी शुभ भावना आपस में परिवार की भी होना आवश्यक है। स्वभाव नहीं देखो, बाप जानते हैं, भाव स्वभाव है, लेकिन भाव स्वभाव, प्यार को खत्म नहीं करे, सम्बन्ध को खत्म नहीं करे, कार्य को सफल कम करे, यह राइट नहीं। परिवार है। कौन सा परिवार है? प्रभु परिवार, परमात्म परिवार। इसमें कोई भी कारण से प्यार की कमी नहीं होनी चाहिए। ऐसे है? है प्यार की कमी? प्यार अर्थात् शुभ भावना जरूर हो। कैसा भी है, परमात्म परिवार है। जिसने माना कि मैं प्रभु परिवार का हूँ, तो परिवार अर्थात् प्यार। अगर परिवार में प्यार नहीं तो परिवार नहीं इसलिए आज क्या पाठ पढ़ा? पक्का किया? हर आत्मा से शुभ भावना, शुभ भाव। यह परमात्म परिवार एक का एक समय ही होता है, इतना बड़ा परिवार परमात्मा के सिवाए और किसका हो ही नहीं सकता। तो चेक करना क्योंकि यह भी पुरुषार्थ में विघ्न पड़ता है। तो जब विघ्न मुक्त होंगे तभी अनुभवी बन अनुभव के अथॉरिटी द्वारा सभी को अनुभवी बनायेंगे। अच्छा।

सेवा का टर्न - राजस्थान का है:- बापदादा ने देखा है कि यह सेवा का चांस सभी उमंग-उत्साह से लेते हैं, सभी प्यार से सेवा करते भी हैं और कराते भी हैं। सेवा का यह पार्ट इन 10-15 दिन में भिन्न-भिन्न कमाई का साधन है। एक फायदा यह है कि सेवा का मेवा हर एक का पुण्य जमा होता है। दूसरा फायदा यहाँ मधुबन में ज्ञान का वायुमण्डल, बड़े परिवार के स्नेह का वायुमण्डल, जिससे पुरुषार्थ में भी बल मिलता है क्योंकि वायुमण्डल, वायब्रेशन और ज्ञान स्नान, वे तो एक बारी तीर्थो पर स्नान करने जाते हैं तो अपना बहुत पुण्य मानते हैं और यहाँ जितने दिन भी रहते हो उतने दिन ज्ञान स्नान, ज्ञान के वचन कानों में पड़ते रहते हैं। और योगी आत्मायें, प्रभु प्यार वाली आत्मायें उनका वायब्रेशन भी आटोमेटिकली मिलता रहता है। एकान्त के वायुमण्डल का लाभ मिलता है। अगर कोई अपने काम में और पढ़ाई के फायदों में अपने को बिजी रखता है तो उनको थोड़े दिनों में अपना भविष्य ऊंचा बनाने का चांस मिलता है इसलिए यज्ञ का काम भी चलता और आने वालों का पुण्य भी जमा होता। बापदादा ने देखा कि आजकल के वायुमण्डल में सेवा का उमंग मैजारिटी सभी ज़ोन में है। राजस्थान भी ऐसे ही आगे बढ़ रहे हैं। अच्छा।
बापदादा हर एक बच्चे की विशेषता को देख रहे हैं। हर एक बच्चे में किसी न किसी सबजेक्ट में विशेषता समाई हुई है इसलिए बापदादा इन्डिविज्युअल एक-एक बच्चे को होवनहार विजयी स्वरूप में देख रहे हैं क्योंकि सबको साथी बनके चलना है। साथ है, साथ चलेंगे। ब्रह्मा बाप के साथ में राज्य करेंगे। अच्छा।

चारों ओर के बच्चों को बापदादा देख देख खुश हो गीत गाते वाह बच्चे वाह! हर बच्चे के दिल में बाप है और बाप के दिल में हर बच्चा है। और यहाँ इतना परिवार मधुबन निवासी देखकर यह भी खुशी होती है वाह मधुबन वाह! सबका एशलम मधुबन है ही है इसलिए मधुबन में भागकर आ जाते हैं। अब बाप की जो आशा है वह जल्दी से जल्दी पूर्ण करना है। चार ही सबजेक्ट में अनुभवी स्वरूप बनना ही है। बापदादा देश विदेश चारों ओर के बच्चे जहाँ भी बैठे देख रहे हैं। सभी कैसे देख देख हर्षित हो रहे हैं। यह साधन, यह साइंस इसी समय प्रोग्रेस में जा रही है, नई नई इन्वेन्शन दुनिया के हैं लेकिन आपके फायदे के साधन अच्छे अच्छे निकाल रहे हैं। दूर होते भी साथ हैं। तो साइंस वालों को भी मुबारक है जो साधन तो बनाये हैं। अच्छा। देश विदेश के सभी बच्चों को बहुत-बहुत दिल का प्यार और याद स्वीकार हो और विशेष ऐसे विशेष बच्चों को नमस्ते।

 

31-12-19 ओम् शान्ति ''दिनचर्या'' मधुबन


प्राणप्यारे अव्यक्तमूर्त मात-पिता बापदादा के अति लाडले, सदा परिवर्तन शक्ति द्वारा हर निगेटिव को पॉज़िटिव में परिवर्तन करने वाले, बाप समान ब्रह्मण सो फरिश्ता स्वरूप में स्थित रहने वाली निमित्त टीचर्स बहिनें तथा देश विदेश के सर्व ब्रह्मण कुल भूषण भाई बहिनें,

ईश्वरीय स्नेह सम्पन्न मधुर याद के साथ-साथ नये वर्ष की, नये युग के आगमन की बहुत-बहुत बधाईयां स्वीकार हो।

बाद समाचार - कल नया वर्ष 2020 प्रारम्भ हो रहा है। प्यारा बाबा कहते बच्चे, नये वर्ष में कुछ ऐसी नवींनता सम्पन्न सेवा करो जो सहज बाप की प्रत्यक्षता हो जाए। एक ओर जयजयकार, दूसरी ओर हाहाकार... अभी तो ऐसा ही समय समीप दिखाई दे रहा है। अव्यक्त मास में तो चारों ओर विशेष तपस्या की बहुत अच्छी लहर है। सब तरफ योग तपस्या की भिùयां चल रही हैं। हर एक बाप समान बनने के पुरुषार्थ को लक्ष्य में रख डबल लाइट रह उड़ती कला में उड़ रहे हैं। मधुबन से जो विशेष पुरुषार्थ की प्वाइंटस भेजी गई हैं उसी अनुसार सभी अच्छी रेस कर रहे हैं। अब तो बाबा यही चाहते हैं कि बच्चे हर सेकण्ड, हर श्वांस, हर खजाने को सफल कर सफलता मूर्त बनें। अचानक के पाठ को सदा स्मृति में रखते हुए एवररेडी रहें। सभी खजानों से भरपूर बन सम्पर्क-सम्बन्ध में आने वाली आत्माओंको दान करते, दानी और वरदानी बनें। सदा मुस्कराते हुए सबको कोई न कोई गिफ्ट देते रहें।

बोलो, ऐसा ही लक्ष्य रख तीव्र पुरुषार्थ चल रहा है ना! इस नये वर्ष में हर एक को कोई न कोई नवीनता सम्पन्न पुरुषार्थ और सेवायें करनी ही हैं।

इस सीज़न में बापदादा की इस वरदान भूमि में आकर, उनकी आकारी और निराकारी रूप की पालना के बहुत अच्छे-अच्छे अनुभव सभी कर रहे हैं। अभी तो पंजाब ज़ोन की सेवाओंका टर्न है और भी देश विदेश के कई ग्रुप नया वर्ष मनाने के लिए मधुबन में पहुंचे हुए हैं। करीब 20 हजार भाई बहिनों का संगठन है। डबल विदेशी बाबा के बच्चों की तो सदा ही रिमझिम रहती है। देखो, हम सबकी अति मीठी, सबको अपने स्नेह की पालना देने वाली दादी जानकी जी का 104 वां जन्म दिन भी कल पहली जनवरी को हम सब खूब धूमधाम से मनायेंगे, दादी जी को हम सभी यही दुआयें देते कि जब तक संगमयुग है तब तक दादी जी हम सबके साथ रहकर सदा ऐसे ही गुणदान, ज्ञान दान करते सबकी पालना करती रहें। सदा स्वस्थ रहें। इस समय हमारी मुख्य 4 दादियां हमारे इस पूरे ब्रह्मण परिवार का श्रंगार हैं। हमारी मीठी गुल्जार दादी तो सदा ही दादी जानकी जी के साथ-साथ हर ब्रह्मण आत्मा के दिल में बसती हैं। फिर हैं हमारी मीठी दादी रतनमोहनी जी और ईशू दादी जी, जो समय प्रति समय सभी को ज्ञान रत्नों से सजाते, अपनी वरदानी मूर्त से सबको स्नेह सम्पन्न पालना दे रही हैं। सभी दादियों की ओर से, बड़े भाईयों की ओर से सबको नये वर्ष की उमंग-उत्साह भरी बहुत-बहुत बधाईयां स्वीकार हों। अच्छा - सभी को बहुत-बहुत याद... ओम् शान्ति।

31-12-19 ओम् शान्ति “अव्यक्त बापदादा” वीडियो 31-12-08 मधुबन

“इस नये वर्ष में परिवर्तन शक्ति के वरदान द्वारा निगेटिव को पॉजिटव में परिवर्तन कर, संकल्प, श्वांस समय को सफल करो, सफलतामूर्त बनो”

आज नव जीवन देने वाले बाप अपने चारों ओर के नव जीवन धारण करने वाले बच्चों को देख हर्षित हो रहे हैं। यह नव जीवन है ही नव युग बनाने के लिए। लोग नव वर्ष मनाते हैं और आप सभी नव जीवन वाले बच्चे सभी आत्माओं को बधाईयां भी देते हो और साथ में यही खुशखबरी देते हो कि नव युग आया कि आया। आप सभी बच्चों को तो बाप ने वर्से के रूप में गोल्डन दुनिया की गिफ्ट दे दी है। जिस गोल्डन दुनिया में अनेक गोल्डन सौगातें है ही हैं। आप सभी को यही नशा है ना कि यह गोल्डन दुनिया की सौगात तो हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है। आज की दुनिया में कोई किसको कितनी भी बड़े ते बड़ी सौगात दे, तो बड़े ते बड़ा क्या देंगे! ताज वा तख्त। लेकिन आपके गोल्डन दुनिया की गिफ्ट के आगे वह क्या चीज़ है? कोई बड़ी चीज़ है! आपके दिल में खुशी है कि हमारे बाप ने हमें सबसे ऊंचे ते ऊंची नव युग की गिफ्ट दे दी है। निश्चय है और निश्चित है। यह भावी कोई टाल नहीं सकता। यह अटल निश्चय सदा स्मृति में रहता है! सदा रहता है वा कभी-कभी कम हो जाता है? जन्म सिद्ध अधिकार है तो जन्म सिद्ध अधिकार कभी टल नहीं सकता।

आज आप सभी अलग-अलग स्थानों से नया वर्ष मनाने आये हो। तो इस नये वर्ष का लक्ष्य क्या रखा है? इस नये वर्ष में क्या विशेष करना है? इस नये वर्ष की विशेषता है कि बाप समान सम्पन्न और सम्पूर्ण बनना ही है। कुछ भी पुरुषार्थ करना पड़े लेकिन निश्चित है कि बाप समान बनना ही है। बोलो, सबके मन में यही पक्का संकल्प है ना! है? कांध हिलाओ। बाप भी यही चाहते हैं कि हर एक बच्चा बाप समान बने। बाप तो बाप है लेकिन बच्चे बाप से भी ऊंचे हैं। तो बाप समान बनने के लक्ष्य को पूरा करने के लिए बाप को फालो करना पड़े। सोचो, बाप, ब्रह्मा बाप सम्पूर्ण कैसे बना? उनकी क्या विशेषता रही? सम्पूर्णता का विशेष आधार क्या रहा? ब्रह्मा बाप ने अपना हर समय सफल किया। श्वांस-श्वांस, सेकण्ड-सेकण्ड सफल किया। तो बाप समान बनने के लिए इस वर्ष का लक्ष्य क्या रखेंगे? सफल करना है और सफलतामूर्त बनना ही है। सफलता हमारे गले का हार है। सफलता हमारे बाप का वर्सा है। तो इस लक्ष्य से चेक करना - हर दिन अपने आपको चेक करना है कि सफलतामूर्त बन समय, श्वांस, खजाने, शक्तियां, गुण सब सफल किया? क्योंकि अभी की सफलता से भविष्य भी जमा होता है। अभी जो भी सफल किया, उसका फल 21 जन्म के लिए जमा होता है। जानते हो ना! पहले भी सुनाया है कि अगर आप समय सफल करते हो तो भविष्य में भी आपको राज्य भाग्य का फुल समय, राज्य भाग्य की प्राप्ति होती है। श्वांस सफल करते हो तो 21 जन्म स्वस्थ रहेंगे। कभी भी कोई भी स्वास्थ्य में कमी नहीं रहेगी और साथ में जो खजाने जमा करते हो, सबसे बड़ा खजाना है ज्ञान का, ज्ञान का अर्थ है समझ। तो ज्ञान का खजाना सफल करने से भविष्य में आप ऐसे समझदार बन जाते हैं जो आपको कोई वजीरों की राय नहीं लेनी पड़ती है। स्वयं ही अखण्ड, अटल राज्य चलाते हो और आपके राज्य में कोई विघ्न नहीं। निर्विघ्न अखण्ड, अटल है। यह है ज्ञान का खजाना जमा करने का फल। एक जन्म सफल किया और अनेक जन्म सफलता का फल खाते हो। ऐसे ही शक्तियां जो प्राप्त हैं उनको स्व प्रति वा दूसरों के प्रति सफल करते हो तो भविष्य में आपके राज्य में सर्व शक्तियां हैं, कभी शक्ति कम नहीं होती। कोई भी शक्ति की कमी नहीं है। ऐसे ही अगर गुण दान करते हो तो आपके अन्तिम 84 वें जन्म तक भी जो जड़ चित्र बनाते हैं उसमें लास्ट तक आपकी महिमा क्या करते हैं? सर्वगुण सम्पन्न। तो एक-एक सफलता की प्राप्ति के अनेक जन्म के अधिकारी बन जाते हो। तो इस वर्ष क्या करना है? लक्ष्य रखना है एक श्वांस, एक सेकण्ड भी असफल नहीं हो। जमा करना है। जमा का समय एक छोटा सा जन्म और फल का समय 21 जन्म, तो इस वर्ष में बाप समान बनने का लक्ष्य है? सभी को लक्ष्य है कि बाप समान बनना ही है? बनना नहीं है, बनना ही है। बनना ही है अण्डरलाइन। अच्छा।

तो इस वर्ष का लक्ष्य भी रखा और साथ में बाप को फालो करने का मत्र, सफल कर सफलता मूर्त बनना है। इसके लिए बापदादा बच्चों को ज्यादा मेहनत करने की तकलीफ भी नहीं देते हैं, बहुत सहज विधि बताते हैं, सहज विधि क्या है? जो भी संकल्प करो, पहले चेक करो बाप का यह संकल्प रहा! बोल बोलते हो चेक करो, बाप समान बनना है ना! तो संकल्प, बोल और कर्म, सम्बन्ध-सम्पर्क पहले सोचो, चेक करो बाप का यह रहा? और ऐसा ही स्वरूप बनो। ब्रह्मा बाप को फालो करो। फालो फादर तो गाया हुआ है ना! कई बच्चे बहुत अच्छे अच्छे खेल दिखाते हैं। पता है कौन से खेल दिखाते हैं? फालो नहीं करते लेकिन क्या कहते हैं? चाहता तो नहीं था, हो गया। पहले सोच के, सिर्फ सोचो नहीं स्वरूप बनो। अगर स्वरूप बन जायेंगे तो यह नहीं कहेंगे सोचा नहीं था लेकिन हो गया। करने वाले, सोचने वाले आप श्रेष्ठ आत्मायें हो, मालिक हो। हो गया का अर्थ है कर्मेन्द्रियों के ऊपर कन्ट्रोल नहीं।

तो इस वर्ष में यही स्लोगन याद रखना - बाप समान करना ही है, बनना ही है। मुश्किल तो नहीं है ना? जैसे बाप ने किया वैसे करना है। कापी करना तो सहज है ना, सोचने की जरूरत ही नहीं है। और निश्चित है कि आप सभी को जैसे बाप, ब्रह्मा बाप फरिश्ता बना तो निश्चित है फरिश्ता सो देवता बनना ही है। तो आपको भी फरिश्ता सो देवता बनना ही है। कई बच्चे कहते हैं कि चलते-चलते आपोजीशन बहुत होती है, तो आपोजीशन के कारण पोजीशन से नीचे आ जाते हैं। लेकिन याद करो बाप समान बनना है तो स्थापना के आदि में ब्रह्मा बाप ने कितने आपोजीशन को पोजीशन में परिवर्तन किया? हर बात नई, चैलेन्ज थी। अभी तो बहुत जमाना बदल गया है लेकिन अकेला ब्रह्मा बाप कितना स्वमान की सीट पर बैठ पोजीशन द्वारा आपोजीशन का सामना किया। जहाँ पोजीशन है वहाँ आपोजीशन कुछ नहीं कर सकती। पहले क्या कहते थे? धमाल कर रहे हैं और अभी क्या कहते हैं? कमाल कर रहे हैं। इतना फर्क हो गया। कारण क्या? ब्रह्मा बाप ने स्वयं स्वमान की सीट और दृढ़ निश्चय के शस्त्रों द्वारा आपोजीशन को समाप्त किया। तो आप इस वर्ष में क्या करेंगे? समान बनना है ना! तो अगर आपोजीशन होती भी है तो आप स्वमान की सीट पर बैठ जाओ, तो आपोजीशन, पोजीशन में बदल जाये। है हिम्मत? ब्रह्मा बाप समान बनना ही है, उसमें तो हाथ उठाया, लेकिन इतनी हिम्मत है? पहले स्व के परिवर्तन का, फिर है अनेक सम्बन्ध-सम्पर्क वाली आत्मायें और फिर विश्व की आत्मायें। इन सबको अपने मन्सा शुभ भावना, शुभ कामना द्वारा, दृढ़ संकल्प द्वारा परिवर्तन करना।

तो इस वर्ष में बापदादा विशेष एक शक्ति का वरदान भी दे रहे हैं। मेरा बाबा दिल से कहेंगे तो शक्ति हाज़िर, ऐसे ही मेरा बाबा नहीं, दिल से कहा, अधिकार रखा, मेरा बाबा और शक्ति आपके आगे हाज़िर हो जायेगी। वह कौन सी शक्ति? परिवर्तन की शक्ति। परिवर्तन की शक्ति में विशेष निगेटिव को पॉजिटिव में चेंज करो। निगेटिव संकल्प, निगेटिव चलन को देखते हुए पॉजिटिव में चेंज करो। पॉजिटिव देखना, बोलना, करना, सिर्फ शुभ भावना और शुभ कामना द्वारा सहज हो जायेगा क्योंकि यह आपोजीशन आयेगी, लेकिन आपके परिवर्तन की शक्ति आपको सहज सफलता दिलायेगी। तो समझा इस वर्ष का विशेष वरदान परिवर्तन शक्ति को दृढ़ संकल्प से कार्य में लगाना। कर सकते हो ना परिवर्तन? चैलेन्ज है आपकी, याद है ना! विश्व परिवर्तक हो ना! जब टाइटिल ही विश्व परिवर्तक का है तो क्या स्व को परिवर्तन करना मुश्किल है क्या! दिल में कोई भी मुश्किल बात आये, वैसे मुश्किल बात नहीं होती लेकिन आप बना देते हो। मास्टर सर्वशक्तिवान उसके आगे मुश्किल क्या है? लेकिन आप एक गलती करते हो और मुश्किल बना देते हो। जैसे देखो अचानक यहाँ अंधकार हो जाता है तो अगर कोई गलती से अंधकार को भगाने लगे तो अंधकार भागेगा? सही विधि है आप रोशनी का स्विच ऑन करो तो अंधकार सेकण्ड में भाग जायेगा। तो आप भी यह गलती करते हो जो बात हो गई ना, उसके क्यूं, क्या, कब कैसे... इस क्यू क्यू में चले जाते हो। छोटी सी बात बड़ी कर देते हो और बड़ी बात तो मुश्किल होती है। छोटी बात कर लो तो सहज हो जाये। बाप ने कोई भी शक्ति को कार्य में लगाने की विधि बहुत सहज बताई है - “मैं मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ'', अपने इस स्मृति की सीट पर बैठ जाओ, अगर इस सीट पर बैठेंगे तो अपसेट नहीं होंगे। बिना सीट के अपसेट होते हैं, सीट है तो अपसेट नहीं होंगे। 63 जन्म के संस्कार इमर्ज हो जाते हैं। 63 जन्म क्या रहा? अभी अभी सेट, अभी अभी अपसेट। तो सदा स्वमान की सीट पर सेट रहो। और इस वर्ष में क्या करेंगे? नये वर्ष में गिफ्ट तो सबको देंगे ना। तो कौन सी गिफ्ट देंगे? बधाई भी देंगे और साथ में गिफ्ट क्या देंगे? गिफ्ट तो आपके पास बहुत है। जितना देने चाहो उतना दे सकते हो। स्थूल गिफ्ट तो अल्पकाल के लिए चलेगी लेकिन आप अविनाशी बाप समान बनने वाले अविनाशी गिफ्ट दो। मन्सा द्वारा शक्तियों की गिफ्ट दो, वाचा द्वारा ज्ञान की गिफ्ट दो और कर्मणा द्वारा गुणों की गिफ्ट दो। है ना सबके पास? है तो कांध हिलाओ। खजाने बहुत हैं ना, कम तो नहीं हैं ना। कोई से भी कार्य में आओ, कार्य में तो आना पड़ेगा ना। उसको खूब इस वर्ष में सौगातें दो। लेकिन अविनाशी सौगात। सुनाया ना कोई को भी खाली जाने नहीं दो, चाहे मन्सा की सौगात दो, चाहे वाणी की, चाहे कर्म की। इसके लिए आपको सदा एक अटेन्शन रखना पड़ेगा, हर समय मन्सा में शक्तियों का स्टाक इमर्ज रखना पड़ेगा, कितनी शक्तियां हैं? लिस्ट तो है ना! वाचा के कारण सदा मन में मनन शक्ति, ज्ञान को मनन करने की शक्ति, स्मृति में रखनी पड़ेगी। चलन में, चेहरे में, कर्म में, गुणों का स्वरूप बनना पड़ेगा। सदा अपने को गुणमूर्त, ज्ञान मूर्त, शक्ति स्वरूप इमर्ज रखना पड़ेगा। ऐसे नहीं शक्तियां तो हैं ही, ज्ञान तो है ही... लेकिन स्वरूप बनना पड़ेगा। हर एक को ईश्वरीय परिवार की दृष्टि वृत्ति से देखना पड़ेगा। इस वर्ष जब समान बनना ही है, उसमें हाथ उठा लिया है, बापदादा के वतन में सबका हाथ दिखाई देगा। वहाँ यह छोटी टी.वी. नहीं है, बहुत बड़ी है। एक सेकण्ड में सर्व सेन्टर्स की रिजल्ट को देख सकते हैं। तो बापदादा आपका जो उमंग है, बाप समान बनना ही है, इसके लिए खुश है। खुशनसीब हो, खुश चेहरे वाले हो, कभी रोब का चेहरा नहीं बनाना। कोई भी आपको देखे तो सदा खुश देखे, चाहे जितना भी काम में बिजी हो, गलती को ठीक कर रहे हो, समझा रहे हो लेकिन रोब का चेहरा, बोल नहीं हो। इस वर्ष में यह परिवर्तन करके दिखाओ। प्राइज़ देंगे। सारे वर्ष में जो सदा मुस्कराता रहेगा, कोई भी बात आये, कई भाई बहिनें कहते हैं, रूहरिहान तो करते हैं ना सभी, तो कहते हैं अगर रोब से नहीं कहेंगे ना तो समझेगा नहीं। बदलेगा ही नहीं। पहले ही आपने भावना रख दी कि यह बदलेगा ही नहीं तो उसको आपका वायब्रेशन पहले ही पहुंच गया इसलिए इस वर्ष में क्रोध या बाल-बच्चा इसको विदाई देनी है। हो सकता है? रोब भी नहीं। बाप पूछता है जो भी समय प्रति समय क्रोध करते हैं, काम बनाने के लिए, सुधारने के लिए, लेकिन वह सुधरता है? क्रोध करने से कोई सुधरा है? वह लिस्ट बताओ। और ही चिढ़ जाता है, सुधरता नहीं है। आपोजीशन करता है मन में। अगर बड़ा है तो मन में आपोजीशन करता है, बोल तो सकता नहीं और छोटा है तो रोने लग जाता है। तो इस वर्ष क्या-क्या करना है, वह सारा सुना रहे हैं। पसन्द है? करना है?

अभी हाथ उठाओ। करना है? टी.वी. वाले यह फोटो निकालो। हाथ उठाओ, थोड़ा खड़ा रखो। टी.वी. वाले निकाल रहे हैं। तो बापदादा ने जो भी बातें सुनाई वह हर एक को इस वर्ष करनी है। अच्छा।

बहुत काम दे दिया है ना लेकिन बापदादा आपका साथी है, जहाँ भी मुश्किल आवे ना, बस दिल से कहना, बाबा, मेरा बाबा, मेरा साथी आ जाओ, मदद करो। तो बाबा भी बंधा हुआ है। सिर्फ दिल से कहना क्योंकि समय और स्वयं दोनों को देखना है। समय चैलेन्ज कर रहा है और आप माया को चैलेन्ज करो, क्या करेगी।

तो समय के प्रमाण बापदादा देख रहे थे कि समय की रफ्तार इस समय तीव्र है। तो समय को सामना कौन करेगा? आप ही तो करेंगे। बापदादा ने देखा कि दु:खियों की पुकार, भक्तों की पुकार, समय की पुकार इतना सुनते कम हैं। बिचारे हिम्मतहीन हैं, उन्हों को पंख लगाओ तो उड़ तो सकें। हिम्मत के पंख, उमंग-उत्साह के पंख लगाओ। अच्छा।

सेवा का टर्न पंजाब ज़ोन का है:- बापदादा का भी पंजाब से प्यार है, क्यों प्यार है? जम्मू कश्मीर उसको भी अपना बनाया है लेकिन थोड़ा और, जम्मू कश्मीर का नाम मशहूर है, चाहे पाकिस्तान में, चाहे अमेरिका में... सबकी नज़र जम्मू कश्मीर पर है। तो वहाँ कोई जलवा निकालो। ऐसे नहीं कि वहाँ की बहिनें करें, आप सहयोग देकर उसमें कुछ ऐसा वन्डरफुल बात करके दिखाओ। थोड़ा अटेन्शन दो नाम बाला हो जायेगा। जिस पर झगड़ा है वहाँ शान्ति का झण्डा फहराओ। ठीक है। संख्या बहुत है, एक निर्विघ्न बनो और दूसरा सेवा में शान्ति का झण्डा लहराओ। सबको दिखाई दे झण्डा कि हाँ अशान्ति के स्थान में शान्ति का झण्डा लहर रहा है। ठीक है। अच्छा।

डबल विदेशी:- डबल तीव्र पुरुषार्थी। अभी डबल फारेनर नहीं, डबल तीव्र पुरुषार्थी। डबल फारेनर्स की विशेषता है वह हाथ में हाथ देके ज्यादा चलते हैं। तो आप सभी ने, बापदादा को पक्का हाथ में हाथ दिया है ना! हाथ में हाथ देना अर्थात् साथी बनाना, फ्रैण्ड बनाना, लवली फ्रैण्ड, तो फ्रैण्ड बनाया है? फ्रैण्ड का नाता जल्दी याद आता है, कोई भी मुश्किल आती है ना तो बाप को नहीं बतायेंगे, फ्रैण्ड को बतायेंगे। तो आपने खुदा को दोस्त बनाया है ना! खुदा दोस्त है! अच्छा है, बापदादा को फारेनर्स को देख खुशी होती है, क्यों कारण क्या है? बाप का एक नाम फारेन वालों ने सिद्ध किया, विश्व पिता, विश्व कल्याणकारी। पहले भारत कल्याणकारी थे लेकिन विदेश ने बाप का विश्व कल्याणकारी नाम प्रत्यक्ष किया है। पहले विश्व की सेवा सिर्फ मन्सा द्वारा करते थे, अभी निमित्त बने हैं विश्व की सब तरह से सेवा करने के। और देखो कोने-कोने में बिछुड़े हुए बच्चे कितने वाह वाह! बच्चे निकल आये। और आपको नशा होगा तो हम हर कल्प के साथी हैं। थे भी, हैं भी और होंगे भी। है ना! नशा है ना! देखो, आपको कोने कोने में होते भी बाप की नज़र ने पहचान लिया, बाप ने भी पहचाना, आपने भी पहचाना। लोग बिचारे आयेगा, आयेगा, आयेगा करते और आप क्या कहते? आ गये। गीत गाते हो ना, मेरा बाबा आ गया। तो बहुत अच्छा, सबको बाप दिल का दुलार, यादप्यार और दिल की दुआयें विशेष दे रहे हैं।

चारों ओर के बच्चे अब बापदादा के होमवर्क को प्रैक्टिकल में करके सबूत देने वाले सपूत बच्चे का अपना प्रभाव दिखायेंगे। तो चारों ओर के बच्चों को बहुत-बहुत दिल का दुलार और दिल की पदमगुणा यादप्यार स्वीकार हो। और ऐसे लायक बच्चे श्रेष्ठ बच्चों को बापदादा का नमस्ते।

दादी जानकी:- वन्डरफुल बाबा, मेरा बाबा, मीठा बाबा, प्यारा बाबा, शुक्रिया बाबा। कल नया साल शुरू हो जायेगा। नये साल में क्या करने का है! पुरानी बातें समाप्त। मैं यही चाहती हूँ कि हम सब सदा ही खुश रहें, आबाद रहें, पुरानी बातें भूल जायें। आज जो बाबा ने इतना अच्छा होमवर्क दिया है, हम यही चाहते हैं कि वह सब करके दिखायें। तो आने वाले नये वर्ष की सबको बहुत-बहुत मुबारक। ओम् शान्ति।

 

18-1-20 ओम् शान्ति “दिनचर्या'' मधुबन


प्राणेश्वर अव्यक्त बापदादा के अति स्नेही, सदा परमात्म लव में लवलीन रहने वाली, साकार व अव्यक्त पालना की अनुभवी आत्मायें, निमित्त टीचर्स बहिनें तथा सर्व ब्राह्मण कुल भूषण भाई बहिनें,

ईश्वरीय स्नेह सम्पन्न मधुर याद स्वीकार करना जी।

हम सबके अति प्रिय “पिताश्री ब्रह्मा बाबा'' का स्मृति सो समर्थी दिवस सभी ब्रह्मा वत्स बहुत स्नेह और श्रद्धा के साथ हर वर्ष मनाते हैं। बाबा को अव्यक्त हुए 51 वर्ष पूरे हो रहे हैं। हम सबको अलौकिक जन्म देने वाली बड़ी माँ तथा अव्यक्त रूप से शिवबाबा के साथ कम्बाइन्ड होकर इतनी श्रेष्ठ ऊंची पालना देने वाले अव्यक्त ब्रह्मा बाप का यह स्मृति दिवस उनके अनेक चरित्रों को साकार कर देता है। कैसे 84 वर्षों की यह संगमयुग की अलौकिक यात्रा निर्विघ्न रूप से आगे बढ़ते अपने ऊंचे लक्ष्य के समीप पहुंच चुकी है, यह तो आप हम सभी अनुभव कर रहे हैं। उनकी छत्रछाया में हजारों ब्रह्मा वत्स माया और प्रकृति पर जीत प्राप्त कर अपनी सम्पूर्णता की मंजिल के समीप पहुंच रहे हैं। संगमयुगी तीव्र पुरुषार्थी आत्मायें अपने तन-मन-धन के सहयोग से, एडवांस पार्टी की आत्मायें अपनी दिव्य धारणा सम्पन्न जीवन द्वारा परमात्म प्रत्यक्षता का नगाड़ा बजाने की तैयारी में है। अभी वह दिन भी समीप दिखाई दे रहे हंग जब चारों ओर “यही है, यही है, यही है” का आवाज गूंजेगा। जयजयकार के नारे लगेंगे और सर्व आत्मायें कुछ न कुछ अंचली ले, अपने मुक्तिधाम घर में जायेंगी। फिर हमारी नई सतयुगी दुनिया आयेगी। बोलो, यह दृश्य आंखों के सामने आ रहे हैं ना! मीठा बाबा पिछले दो वर्षों से साक्षी बन बच्चों की हर एक्टिविटी पर नज़र रखते, आकारी और निराकारी रूप से मददगार बन विश्व कल्याण की सेवा करवा रहे हैं।

मधुबन पाण्डव भवन में हर वर्ष की भांति इस स्मृति दिवस पर भी विशेष चारों धामों का श्रृंगार कलकत्ता के भाई बहिनों ने बहुत सुन्दर वैरायटी फूलों से किया है। अमृतवेले से ही सभी भाई बहिनें उसी स्नेह में समाते हुए विशेष सभी स्थानों पर अव्यक्त मिलन मनाते अव्यक्त वतन की सैर करते रहे। फिर प्यारे बाबा को भोग स्वीकार कराया गया। उसके बाद तीनों स्थानों पर सभी ने योग-तपस्या की। शान्तिवन में तो साकार ब्रह्मा बाबा की पालना लिए हुए निर्वैर भाई, अमीरचन्द भाई ने बाबा के अंग-संग के अनुभव सुनाये। विशेष दोपहर के समय सब जगह मीठे बाबा को भोग लगाया गया, फिर सभी स्थानों पर ब्रह्मा भोजन हुआ। शाम के समय सभी ने विशेष ब्रह्मा बाप के स्नेह में समाते हुए डायमण्ड हॉल में वीडियो द्वारा अव्यक्त महावाक्य सुने जो आपके पास भेज रहे हैं। अभी गुजरात तथा अन्य देश-विदेश के स्थानों से लगभग 20 हजार भाई-बहनें बाबा के घर में पहुंचे हैं, सेवा का टर्न गुजरात ज़ोन का है। दादी जानकी जी रोज़ शाम के समय विशेष योग करवाते अपने वरदानी महावाक्यों से सबको रिफ्रेश करती हैं। हम सबकी अति स्नेही दादी गुल्जार अभी तक मुम्बई गामदेवी सेवाकेन्द्र पर हैं। सभी के शुभ संकल्पों के वायब्रेशन दादी तक पहुंचते रहते हैं। उम्मींद है ठण्डी के बाद दादी जी अपने मधुबन घर में आ जायेंगी। सभी भाई बहिनों की शुभ भावनायें, बापदादा के पास पहुंच रही हैं। बाबा जरूर बच्चों की आश पूरी करेंगे। अच्छा - सभी को बहुत-बहुत याद... ओम् शान्ति।

18-01-2020 ओम् शान्ति अव्यक्त महावाक्य - वीडियो द्वारा 18-1-07 मधुबन

“अब स्वयं को मुक्त कर मास्टर मुक्तिदाता बन सबको मुक्ति दिलाने के निमित्त बनो”

आज स्नेह के सागर बापदादा चारों ओर के स्नेही बच्चों को देख रहे हैं। दो प्रकार के बच्चे देख-देख हर्षित हो रहे हैं। एक हैं लवलीन बच्चे और दूसरे हैं लवली बच्चे, दोनों के स्नेह की लहरें बाप के पास अमृतवेले के भी पहले से पहुँच रही हैं। हर एक बच्चे के दिल से ऑटोमेटिक गीत बज रहा है – “मेरे बाबा”। बापदादा के दिल से भी यही गीत बजता –“मेरे बच्चे, लाडले बच्चे, बापदादा के भी सिरताज बच्चे”।

आज स्मृति दिवस के कारण सबके मन में स्नेह की लहर ज्यादा है। अनेक बच्चों की स्नेह के मोतियों की मालायें बापदादा के गले में पिरो रही हैं। बाप भी अपने स्नेही बांहों की माला बच्चों को पहना रहे हैं। बेहद के बापदादा की बेहद की बांहों में समा गये हैं। आज सब विशेष स्नेह के विमान में पहुंच गये हैं और दूर-दूर से भी मन के विमान में अव्यक्त रूप से, फरिश्तों के रूप से पहुंच गये हैं। सभी बच्चों को बापदादा आज स्मृति दिवस सो समर्थ दिवस की पदमापदम याद दे रहे हैं। यह दिवस कितनी स्मृतियां दिलाता है और हर स्मृति सेकण्ड में समर्थ बना देती है। स्मृतियों की लिस्ट सेकण्ड में स्मृति में आ जाती है ना। स्मृति सामने आते समर्थी का नशा चढ़ जाता है। पहली-पहली स्मृति याद है ना! जब बाप के बने तो बाप ने क्या स्मृति दिलाई? आप कल्प पहले वाली भाग्यवान आत्मा हो। याद करो इस पहली स्मृति से क्या परिवर्तन आ गया? आत्म-अभिमानी बनने से परमात्म बाप के स्नेह का नशा चढ़ गया। क्यों नशा चढ़ा? दिल से पहला स्नेह का शब्द कौन सा निकला? “मेरा मीठा बाबा” और इस एक गोल्डन शब्द निकलने से नशा क्या चढ़ा? सारी परमात्म प्राप्तियां मेरा बाबा कहने से, जानने से, मानने से आपकी अपनी प्राप्तियां हो गई। अनुभव है ना! मेरा बाबा कहने से कितनी प्राप्तियां आपकी हो गई! जहाँ प्राप्तियां होती हैं वहाँ याद करनी नहीं पड़ती लेकिन स्वत: ही आती है, सहज ही आती है क्योंकि मेरी हो गई ना! बाप का खजाना मेरा खजाना हो गया, तो मेरापन याद किया नहीं जाता है, याद रहता ही है। मेरा भुलाना मुश्किल होता है, याद करना मुश्किल नहीं होता। जैसे अनुभव है मेरा शरीर, तो भूलता है? भुलाना पड़ता है, क्यों? मेरा है ना! तो जहाँ मेरापन आता है वहाँ सहज याद हो जाती है। तो स्मृति ने समर्थ आत्मा बना दिया - एक शब्द “मेरा बाबा” ने। भाग्य विधाता अखुट खजाने के दाता को मेरा बना लिया। ऐसी कमाल करने वाले बच्चे हो ना! परमात्म पालना के अधिकारी बन गये, जो परमात्म पालना सारे कल्प में एक बार मिलती है, आत्मायें और देव आत्माओं की पालना तो मिलती है लेकिन परमात्म पालना सिर्फ एक जन्म के लिए मिलती है।

तो आज के स्मृति सो समर्थी दिवस पर परमात्म पालना का नशा और खुशी सहज याद रही ना! क्योंकि आज का वायुमण्डल सहज याद का था। तो आज के दिन सहजयोगी रहे कि आज के दिन भी याद के लिए युद्ध करनी पड़ी? क्योंकि आज का दिन स्नेह का दिन कहेंगे ना, तो स्नेह मेहनत को मिटा देता है। स्नेह सब बातें सहज कर देता है। तो सभी आज के दिन विशेष सहजयोगी रहे या मुश्किल आई? जिसको आज के दिन मुश्किल आई हो वह हाथ उठाओ। किसको भी नहीं आई? सब सहजयोगी रहे। अच्छा जो सहजयोगी रहे वह हाथ उठाओ। (सभी ने उठाया) अच्छा - सहजयोगी रहे? आज माया को छुट्टी दे दी थी। आज माया नहीं आई? आज माया को विदाई दे दी? अच्छा आज तो विदाई दे दी, उसकी मुबारक हो, अगर ऐसे ही स्नेह में समाये रहो तो माया को तो विदाई सदा के लिए हो जायेगी।

बापदादा इस वर्ष को न्यारा वर्ष, सर्व का प्यारा वर्ष, मेहनत से मुक्त वर्ष, समस्या से मुक्त वर्ष मनाने चाहते हैं। आप सभी को पसन्द है? पसन्द है? मुक्त वर्ष मनायेंगे? क्योंकि मुक्तिधाम में जाना है, अनेक दु:खी अशान्त आत्माओं को मुक्तिदाता बाप से साथी बन मुक्ति दिलाना है। तो मास्टर मुक्तिदाता जब स्वयं मुक्त बनेंगे तब तो मुक्ति वर्ष मनायेंगे ना! क्योंकि आप ब्राह्मण आत्मायें स्वयं मुक्त बन अनेकों को मुक्ति दिलाने के निमित्त हो। एक भाषा जो मुक्ति दिलाने के बजाए बंधन में बांधती है, समस्या के अधीन बनाती है, वह है ऐसा नहीं, वैसा। वैसा नहीं ऐसा। जब समस्या आती है तो यही कहते हैं बाबा ऐसा नहीं था, वैसा था ना। ऐसा नहीं होता, ऐसा होता ना। यह है बहाने बाजी करने का खेल।

बापदादा ने सबका फाइल देखा, तो फाइल में क्या देखा? मैजॉरिटी का फाइल प्रतिज्ञा करने के पेपर से भरा हुआ है। प्रतिज्ञा करने के टाइम बहुत दिल से करते हैं, सोचते भी हैं लेकिन अभी तक देखा कि फाइल बड़ा होता जाता है लेकिन फाइनल नहीं हुआ है। दृढ़ प्रतिज्ञा के लिए कहा हुआ है - जान चली जाए लेकिन प्रतिज्ञा न जाए। तो बापदादा ने आज सबके फाइल देखे। बहुत प्रतिज्ञायें अच्छी-अच्छी की है। मन से भी की है और लिख करके भी की है। तो इस वर्ष क्या करेंगे? फाइल को बढ़ायेंगे या प्रतिज्ञा को फाइनल करेंगे? क्या करेंगे? पहली लाइन वाले बताओ, पाण्डव सुनाओ, टीचर्स सुनाओ। इस वर्ष जो बापदादा के पास फाइल बड़ा होता जाता है, उसको फाइनल करेंगे या इस वर्ष भी फाइल में कागज एड करेंगे? क्या करेंगे? बोलो पाण्डव, फाइनल करेंगे? जो समझते हैं - झुकना पड़े, बदलना पड़े, सहन करना भी पड़े, सुनना भी पड़े, लेकिन बदलना ही है, वह हाथ उठाओ। देखो टी.वी. में सबका फोटो निकालो। सभी का फोटो निकालना, दो तीन चार टी.वी. हैं, सब तरफ के फोटो निकालो। यह रिकार्ड रखना, बाप को यह फोटो निकाल के देना। कहाँ है टी.वी. वाले? बापदादा भी फाइल का फायदा तो उठावे। मुबारक हो, मुबारक हो, अपने आपके लिए ही ताली बजाओ।

देखो जैसे एक तरफ साइन्स दूसरे तरफ भ्रष्टाचारी, तीसरे तरफ पापाचारी, सब अपने-अपने कार्य में और वृद्धि करते जा रहे हैं। बहुत नये-नये प्लैन बनाते जाते हैं। तो आप तो वर्ल्ड क्रियेटर के बच्चे हो, तो आप इस वर्ष ऐसी नवीनता के साधन अपनाओ जो प्रतिज्ञा दृढ़ हो जाए क्योंकि सभी प्रत्यक्षता चाहते हैं। कितना खर्चा कर रहे हैं, जगह-जगह पर बड़े-बड़े प्रोग्राम कर रहे हैं। हर एक वर्ग मेहनत अच्छी कर रहे हैं लेकिन अभी इस वर्ष यह एडीशन करो कि जो भी सेवा करो, मानो मुख की सेवा करते हो, तो सिर्फ मुख की सेवा नहीं, मन्सा वाचा और स्नेह सहयोग रूपी कर्म एक ही समय में तीन सेवायें इकट्ठी हों। अलग-अलग नहीं हों। एक सेवा में देखा जाता है कि जो बापदादा रिजल्ट देखने चाहते हैं वह नहीं होती। जो आप भी चाहते हो कि प्रत्यक्षता हो जाए। अभी तक पहले से यह रिजल्ट बहुत अच्छी है - सब अच्छा-अच्छा, बहुत अच्छा कहके जाते हैं। लेकिन अच्छा बनना अर्थात् प्रत्यक्षता होना। तो अब एडीशन करो कि एक ही समय पर मन्सा-वाचा, कर्मणा में स्नेही सहयोगी बनना, हर एक साथी चाहे ब्राह्मण साथी हैं, चाहे बाहर वाले सेवा के निमित्त जो बनते हैं, वह साथी हों लेकिन सहयोग और स्नेह देना - यह है कर्मणा सेवा में नम्बर लेना। यह भाषा नहीं कहना, यह ऐसा किया ना, तभी ऐसा करना पड़ा। स्नेह के बजाए थोड़ा-थोड़ा कहना पड़ा, बाबा शब्द नहीं बोलता। यह करना ही पड़ता है, कहना ही पड़ता है, देखना ही पड़ता है... यह नहीं। इतने वर्षो में देख लिया, बापदादा ने छुट्टी दे दी। ऐसा नहीं वैसा करते रहे, लेकिन अभी कब तक? बापदादा से सभी रूहरिहान में मैजॉरिटी कहते हैं बाबा आखिर भी पर्दा कब खोलेंगे? कब तक चलेगा? तो बापदादा आपको कहते हैं कि यह पुरानी भाषा, पुरानी चाल, अलबेलेपन की, कडुवेपन की कब तक? बापदादा का भी क्वेश्चन है कब तक? आप उत्तर दो तो बापदादा भी उत्तर देगा कब तक विनाश होगा क्योंकि बापदादा विनाश का पर्दा तो अभी भी इसी सेकण्ड में खोल सकता है लेकिन पहले राज्य करने वाले तो तैयार हों। तो अब से तैयारी करेंगे तब समाप्ति समीप लायेंगे। किसी भी कमजोरी की बात में कारण नहीं बताओ, निवारण करो, यह कारण था ना। बापदादा सारे दिन में बच्चों का खेल तो देखते हैं ना, बच्चों से प्यार है ना, तो बार-बार खेल देखते रहते हैं। बापदादा की टी.वी. बहुत बड़ी है। एक समय पर वर्ल्ड दिखाई दे सकती है, चारों ओर के बच्चे दिखाई दे सकते हैं। चाहे अमेरिका हो, चाहे गुडगांव हो, सब दिखाई देते हैं। तो बापदादा खेल बहुत देखते हैं। टालने की भाषा बहुत अच्छी है, यह कारण था ना, बाबा मेरी गलती नहीं है, इसने ऐसा किया ना। उसने तो किया लेकिन आपने समाधान किया? कारण को कारण ही बनने दिया या कारण को निवारण में बदली किया? तो सभी पूछते हैं ना कि बाबा आपकी क्या आशा है? तो बापदादा आशा सुना रहे हैं। बापदादा की एक ही आशा है - निवारण दिखाई देवे, कारण खत्म हो जाए। समस्या समाप्त हो जाए, समाधान होता रहे। हो सकता है? हो सकता है? पहली लाइन - हो सकता है? कांध तो हिलाओ। पीछे वाले हो सकता है? (सभी ने हाथ उठाया) अच्छा। तो कल अगर टी.वी. खोलेंगे, टी.वी में देखेगे तो जरूर ना। तो कल टी.वी. देखेंगे तो चाहे फारेन चाहे इण्डिया, चाहे छोटे गांव, चाहे बहुत बड़ी स्टेट, कहाँ भी कारण दिखाई नहीं देगा? पक्का? इसमें हाँ नहीं कर रहे हैं? होगा? हाथ उठाओ। हाथ बहुत अच्छा उठाते हो, बापदादा खुश हो जाता। कमाल है हाथ उठाने की। खुश करना तो आता है बच्चों को क्योंकि बापदादा देखते हैं सोचो - जो आप कोटों में कोई, कोई में कोई निमित्त बने हो, अभी इन बच्चों के सिवाए और कौन करेगा? आपको ही तो करना है ना! तो बापदादा की आप बच्चों में उम्मीदें हैं। और जो आयेंगे ना, वह तो आपकी अवस्था देख करके ही ठीक हो जायेंगे, उन्हों को मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। आप बन जाओ बस क्योंकि आप सभी ने जन्म लेते ही बाप से वायदा किया है - साथ रहेंगे, साथी बनेंगे और साथ चलेंगे और ब्रह्मा बाप के साथ राज्य में आयेंगे। यह वायदा किया है ना? जब साथ रहेंगे, साथ चलेंगे तो साथ में सेवा के साथी भी तो हो ना!

आज के दिन का और समाचार सुनायें। आज के दिन एडवान्स पार्टी भी बापदादा के पास इमर्ज होती है। तो एडवांस पार्टी भी आपको याद कर रही है कि कब बाप के साथ मुक्तिधाम का दरवाजा खोलेंगे! आज सारी एडवांस पार्टी बापदादा को यही कह रही थी कि हमको तारीख बताओ। तो क्या जवाब दें? बताओ क्या जवाब दें? जवाब देने में कौन होशियार है? बापदादा तो यही उत्तर देते हैं कि जल्द से जल्द हो ही जायेगा। लेकिन इसमें आप बच्चों का बाप को सहयोग चाहिए। सभी साथ चलेंगे ना! साथ चलने वाले हैं या रुक-रूक कर चलने वाले हैं? साथ में चलने वाले हैं ना! साथ में चलना पसन्द है ना? तो समान बनना पड़ेगा। अगर साथ में चलना है तो समान तो बनना ही पड़ेगा ना! कहावत क्या है? हाथ में हाथ हो, साथ में साथ हो। तो हाथ में हाथ अर्थात् समान। तो बोलो दादियां बोलो, तैयारी हो जायेगी? दादियां बोलो। दादियां हाथ उठाओ। दादायें हाथ उठाओ। तो बताओ दादियां, दादायें क्या तारीख है कोई? (अभी नहीं तो कभी नहीं) अभी नहीं तो कभी नहीं का अर्थ क्या हुआ? अभी तैयार हैं ना! जवाब तो अच्छा दिया। दादियां? पूरा होना ही है। हर एक छोटे बड़े इसमें अपने को जिम्मेवार समझें। इसमें छोटा नहीं होना है। 7 दिन का बच्चा भी जिम्मेवार है क्योंकि साथ चलना है ना। अकेला बाप जाने चाहे तो चला जाए लेकिन बाप जा नहीं सकता। साथ चलना है। वायदा है बाप का भी और आप बच्चों का भी। वायदा तो निभाना है ना! निभाना है ना? यह मधुबन वाले बैठे हैं ना!

मधुबन में जो भी चार्ज के हेडस हैं, चार्जेज़ तो बहुत हैं ना, शान्तिवन, ज्ञान सरोवर, पाण्डव भवन सब जगह हैं। तो जो चार्ज वाले हैं उनके नामों की लिस्ट बापदादा को देना, उनसे हिसाब लेंगे। और जो सभी टीचर्स इन्चार्ज हैं, सेन्टर इन्चार्ज हैं या जोन इन्चार्ज हैं, उन्हों का एक दिन संगठन करेंगे, हिसाब-किताब तो पूछेंगे ना! क्योंकि बापदादा के पास बहुत दु:ख और अशान्ति के आवाज आते हैं। परेशानी के आवाज आते हैं। आप लोगों के पास नहीं सुनने आते? आपके भी तो भक्त होंगे ना! तो भक्तों की पुकार आप इष्ट देवों को नहीं आती? टीचर्स को भक्तों की आवाज सुनाई देती है? अच्छा।

सेवा का टर्न गुजरात का है:- गुजरात दर पर है ना। गुजरात में बापदादा ने देखा है कि मैजॉरिटी एक तो गीता पाठशालायें बहुत हैं और गीता पाठशालायें चलाने वाले हैण्डस भी बहुत हैं। अभी गुजरात क्या करेगी? सेवाधारी भी बहुत हैं, सेवा भी बहुत है, अभी नई सेवा क्या करेंगे? जो किसने नहीं की हो, ऐसा कोई प्लैन बनाया है? जो किसने नहीं की हो, वह गुजरात करके दिखावे। तो गुजरात क्या करेगा? मन्सा सेवा में नम्बरवन होके दिखाओ। सभी के लिए है। लेकिन गुजरात का टर्न है तो गुजरात को कह रहे हैं लेकिन अभी स्वयं की मन्सा पावरफुल होने से मन्सा सेवा की रिजल्ट सामने आयेगी। जैसे वाचा की पहले नहीं थी, अभी वाचा सेवा की रिजल्ट सामने आ रही है। मेहनत तो अच्छी की है। बापदादा निमित्त मेहनत की मुबारक भी देते हैं लेकिन समय फास्ट है, अभी भी समय बहुत फास्ट जा रहा है। अच्छा। मुबारक हो। गुजरात जैसे स्थान के हिसाब से नजदीक है वैसे बाप के दिल में भी नजदीक है। अच्छे अच्छे हैं, शुरू से देखो तो पाण्डव या शक्तियां अच्छे-अच्छे निकले हैं। अभी ऐसे स्पीकर तैयार करो। आप सकाश दो और वह भाषण करें। अच्छा, बहुत अच्छा। पदमगुणा मुबारक है।

डबल विदेशी:- बापदादा ने पहले भी कहा तो जब डबल विदेशी आते हैं तो मधुबन का श्रृंगार हो जाता है। डबल विदेशियों से सभी का प्यार बहुत है। जब भी आपके ग्रुप को देखते हैं ना तो सभी खुश हो जाते हैं क्योंकि आप भी कोटों में कोई, कोई में कोई निकले हो और आजकल विदेश सेवा की अच्छी न्यूज़ है। आज अभी सुनाया ना कि एक समय पर एक सेवा नहीं करो, तीनों ही सेवायें इकट्ठी-इकट्ठी हों तो उसका प्रभाव जल्दी होगा। अपने चेहरे से, अपनी चलन से भी सेवा कर सकते हैं। चलते-फिरते म्युजियम हो। जैसे म्युजियम में वा प्रदर्शनी में भिन्न-भिन्न चित्र होते हैं ना वैसे आपके नयन, आपका मस्तक, आपके मुस्कराते हुए होंठ, यह भिन्न-भिन्न जो साधन हैं, उससे सेवा कर सकते हैं। अच्छे हैं, बापदादा को हिम्मत वाले भी लगते हैं सिर्फ अभी थोड़ा सा रियलाइजेशन सूक्ष्म चाहिए। रियलाइज करते हो लेकिन थोड़ा सा सूक्ष्म रूप से रियलाइजेशन करके नम्बरवन बन जाओ। विन करो और वन बनो, सेकण्ड नम्बर नहीं, वन। ठीक है ना! वन है ना, टू तो नहीं ना! वन नम्बर हैं? कांध हिलाओ। अच्छा है, विदेशियों का ग्रुप मधुबन में आता रहे, यह बापदादा को बहुत अच्छा लगता है। मधुबन सज जाता है। अच्छा।

बापदादा के पास फूलों के श्रृंगार वाले ग्रुप की यादप्यार भी आई है, (कलकत्ता के भाई बहिनें), वह संगठन उठो, कहाँ है। देखो सभी को फूलों का श्रंगार अच्छा लगा ना। (स्मृति दिवस निमित्त बापदादा के सभी यादगार स्थानों को खूब सुन्दर फूल मालाओं से सजाया है) फूलों का श्रृंगार तो कामन बात है, लोग भी करते हैं लेकिन आपके श्रृंगार और लोगों के श्रृंगार में फ़र्क है - आपने स्नेही स्वरूप बन श्रृंगार किया है, वह ड्युटी समझके करते हैं और आपने स्नेह से किया है तो जहाँ स्नेह होता है, वह फूलों की सुगन्ध और श्रृंगार और सुन्दर हो जाता है।

जो आने वाले आपके भाई-बहिन हैं वह भी देख करके खुश हो जाते हैं, वाह! कमाल है, कमाल है। तो आप सभी ने जिस स्नेह से सजाया है, तो बापदादा उससे ज्यादा पदमगुणा आपको स्नेह दे रहा है, मुबारक हो। अच्छा।

चारों ओर के पत्र, याद पत्र ईमेल, फोन, चारों ओर के बहुत-बहुत आये हैं। यहाँ मधुबन में भी आये हैं तो वतन में भी पहुंचे हैं। आज के दिन जो बंधन वाली मातायें हैं, उन्हों की भी बहुत स्नेह भरी मन की यादें बापदादा के पास पहुंच गई हैं। बापदादा ऐसे स्नेही बच्चों को बहुत याद भी करते और दुआयें भी देते हैं।

आजकल बापदादा देख रहे हैं सब बहुत खुशी-खुशी से दूर बैठे भी नजदीक में अनुभव कर रहे हैं। लेकिन मधुबन में सम्मुख आना, अपनी झोली भरना, इतने बड़े परिवार से मिलना, यह परिवार कम नहीं है, किसी भी रीति से देख लिया लेकिन सम्मुख परिवार को देख कितनी खुशी होती है क्योंकि 5 हजार वर्ष के बाद मिले हैं। तो वह अनुभव अपना है लेकिन मधुबन निवासी बनना, यह गोल्डन चांस बहुत सहयोग देता है। अनुभव भी करते हैं सभी। लेकिन बापदादा खुश है कि सभी को मुरली से प्यार है और मुरली से प्यार अर्थात् मुरलीधर से प्यार। कोई कहे मुरलीधर से तो प्यार है लेकिन मुरली कभी-कभी सुन लेते हैं, बापदादा कहते हैं बापदादा उसका प्यार, प्यार नहीं समझते हैं। प्यार निभाना अलग है, प्यार करना अलग है। जिसको मुरली से प्यार है वह है प्यार निभाने वाले और मुरली से प्यार नहीं तो प्यार करने वालों की लिस्ट में है, निभाने वाले नहीं। मधुबन में मुरली बाजे, मधुबन का गायन है। मधुबन की धरनी का ही महत्व है। अच्छा।

तो चारों ओर के स्नेही बच्चों को लवली और लवलीन दोनों बच्चों को, सदा बाप के श्रीमत प्रमाण हर कदम में पदम जमा करने वाले नॉलेजफुल पावरफुल बच्चों को, सदा स्नेही भी और स्वमानधारी भी, सम्मानधारी भी, ऐसे सदा बाप की श्रीमत को पालन करने वाले विजयी बच्चों को, सदा बाप के हर कदम पर कदम उठाने वाले सहजयोगी बच्चों को बापदादा का लेकिन आज वतन में जो आपके एडवांस पार्टी वाले बच्चे हैं, उन्होंने भी एक एक ने यही कहा है कि हमारे तरफ से भी सभी को, चारों ओर के बच्चों को हमारी यादप्यार देना और हमारा सन्देश देना कि हम आपका इन्तजार कर रहे हैं। आप जल्दी से जल्दी इन्तजाम करो, विशेष आप सबकी प्यारी माँ, दीदी, भाऊ विश्वकिशोर और जो भी साथी गये हैं उन्होंने सभी ने आप सबको यादप्यार दिया है। और साथ-साथ मीठी माँ आपकी उसने यही कहा है कि आप भी विजयी बन दुख दर्द दूर कर जल्दी जल्दी मुक्तिधाम का गेट खोलने के लिए बाप के साथी बन जाओ। ब्रह्मा बाप ने भी जिन्होंने साकार में बाप को नहीं देखा है, तो ब्रह्मा बाप भी विशेष आप सभी को बहुत दिल से यादप्यार दे रहे हैं तो यादप्यार और नमस्ते।

दादी जानकी:- तीन बारी ओम् शान्ति। वन्डरफुल बाबा, वन्डरफुल बाबा के बच्चे, बाबा दृष्टि कितनी अच्छी देता है और हम दृष्टि से कौन सी सृष्टि में चले जाते हैं। सूक्ष्म वतन, मूलवतन। दोनों वतन बहुत अच्छे हैं। सूक्ष्मवतन में बाबा आ जाता है, फिर मूलवतन में खींच लेता है। तो हम बाबा के बच्चे हैं ना। बच्चे कहते हैं बाबा, बाबा कहता बच्चे। हमारे दिल से बाबा ऐसे निकलता है, दिल कहे बाबा आपका शुक्रिया। आप बहुत अच्छे हो, हम भी अच्छे हैं। समय अनुसार यहाँ सामने हाजिर होना, बाबा आ जाता है। हम मेहनत नहीं करते हैं पर मुहब्बत है। मैं कौन हूँ, मेरा कौन है! हर एक का अपना पार्ट है।

कलकत्ता वाले सदा ही फूलों से सजाते हैं। हर एक का अपना पार्ट है, सबके पार्ट को देख हम खुश होते हैं। खुश रहा और खुश करना यह हमारा फर्ज कहता है। खुश रहो, खुशी बांटो। यह मिलन की रसम भी बहुत प्यारी लगती है। ओम् शान्ति।

 

ओम् शान्ति 02-02-20 “दिनचर्या'' मधुबन


प्राणेश्वर अव्यक्त बापदादा के अति लाडले, सदा एक बाप को अपना संसार बनाने वाले, मन को रूहानी एक्सरसाइज़ में बिजी रख सर्व शक्तियों से सम्पन्न बनने वाली निमित्त टीचर्स बहिनें तथा सभी तीव्र पुरुषार्थी बाबा के नूरे रत्न, ब्राह्मण कुल भूषण भाई बहिनें,

ईश्वरीय स्नेह सम्पन्न मधुर याद स्वीकार करना जी।

बाद समाचार - आप सभी ने अव्यक्त मास में बहुत अच्छी तपस्या की, सब तरफ के समाचार आते रहते हैं। हर एक ने अच्छी रेस की है, बहुत से स्थानों पर 108 घण्टे की अखण्ड भट्ठियाँ भी चली हैं। सभी ने बहुत सुन्दर अनुभव किये हैं। अभी बापदादा हम बच्चों को विशेष इशारा करते हैं, बच्चे समय प्रमाण परिस्थितियां अपना विकराल रूप लेती रहेंगी, अनेक पुराने हिसाब-किताब पेपर बनकर सामने आयेंगे। आप बच्चे स्वयं को इतना शक्तिशाली बना लो, जो किसी भी प्रकार के पेपर को सहज पार करके आगे बढ़ जाओ। इसके लिए बाबा कहते बच्चे अपने 5 स्वरूपों की रूहानी एक्सरसाइज़ दिन में बार-बार करते रहो तो शक्ति सम्पन्न बन जायेंगे। बोलो, आप सब रोज़ यह अभ्यास करते हो ना! तपस्या तो हमारी सदा के लिए है केवल अव्यक्ति मास के लिए नहीं। तो आओ, हम सब बेहद सेवाओं के साथ-साथ स्वयं को शक्तिशाली बनाने के लिए चलते फिरते कर्म करते इस रूहानी ड्रिल के अभ्यास द्वारा निरन्तर तपस्वी बनें।

अभी शिवजयन्ती का पावन पर्व समीप आ रहा है। सभी भाई बहिनें बहुत उमंग-उत्साह से इस यादगार पर्व को मनाते हैं, सेवाओं की धूम मचाते हैं। इस 84वीं त्रिमूर्ति शिव जयन्ती के यादगार दिन को सभी ऐसा मनाओ, जो हर एक के दिल पर शिवबाबा के अवतरण का ध्वज फहरा जाये और यही है, यही है.. का नारा गूंजने लगे। पहले प्रत्यक्षता हो फिर परिवर्तन होगा।

तो स्व-स्थिति और सेवा के बैलेन्स को ध्यान पर रखते हुए विशेष इस बार शक्तिशाली मन्सा की सूक्ष्म वृत्तियों द्वारा आत्माओं का आह्वान करना है, विशेष अन्तर्मुखी बन एकाग्रता के अभ्यास द्वारा मन्सा सेवा करनी है। स्व-परिवर्तन के लिए कोई न कोई दृढ़ संकल्प भी प्रतिज्ञा के रूप में अवश्य करने हैं। शिवजयन्ती के लिए विशेष बुलेटिन मधुबन से ईमेल द्वारा आपके पास भेजी जा चुकी है।

अभी तो प्यारे बापदादा का यह टर्न विशेष दिल्ली आगरा ज़ोन का है, लगभग 19 हजार भाई बहिनें बहुत उमंग-उत्साह से बाबा के घर में पहुंचे हुए हैं। डबल विदेशी भी हर टर्न में होते ही हैं। सभी मधुबन के शक्तिशाली वातावरण के साथ अनुभवी भाई बहिनों की क्लासेज़ से भी खूब भरपूर होकर जाते हैं। बापदादा भी अपने अव्यक्ति महावाक्यों द्वारा सबका बहुत सुन्दर शृंगार कर देते हैं। अच्छा - सभी को बहुत-बहुत याद... ओम् शान्ति।

02-02-20 ओम् शान्ति अव्यक्त महावाक्य - वीडियो 30-11-10 मधुबन

“हर घण्टे 5 स्वरूपों की एक्सरसाइज़ कर मन को शक्तिशाली बनाओ, जब बाबा ही संसार है तो संस्कार भी बाप जैसे बनाओ''

आज बापदादा सभी एक देशी बच्चों से मिलने आये हैं, जो ओरीज्नल सबका देश है। जानते हो ना एक देश कितना प्यारा है! बापदादा भी उसी देश से सर्व बच्चों से मिलने आये हैं। बच्चों को बाप से मिलने की खुशी है और बाप को बच्चों से मिलने की खुशी है। आज बापदादा सभी बच्चों के स्वरूपों को, विशेष 5 रूपों को देख रहे हैं इसलिए 5 मुखी ब्रह्मा का भी गायन है। तो अपने 5 रूपों को जानते हो ना! पहला सभी का ज्योति बिन्दु रूप, आ गया आपके सामने! कितना चमकता हुआ प्यारा रूप है। दूसरा देवता रूप, वह रूप भी कितना प्यारा और न्यारा है। तीसरा रूप मध्य में पूज्यनीय रूप, चौथा रूप ब्राह्मण रूप संगमवासी, वह भी कितना महान है और पांचवा रूप फरिश्ता रूप। यह 5 ही रूप कितने प्यारे हैं। बापदादा आज बच्चों को मन की एक्सरसाइज़ सिखाते हैं क्योंकि मन बच्चों को कभी-कभी अपने तरफ खींच लेता है। तो आज बापदादा मन को एकरस बनाने की एक्सरसाइज़ सिखा रहा है। सारे दिन में इन 5 रूपों की एक्सरसाइज़ करो और अनुभव करो जो रूप सोचो उसका मन में अनुभव करो। जैसे ज्योतिबिन्दू कहने से ही वह चमकता रूप सामने आ गया! ऐसे 5 ही रूप सामने लाओ और उस रूप का अनुभव करो। हर घण्टे में 5 सेकण्ड इस ड्रिल में लगाओ। अगर सेकण्ड नहीं तो 5 मिनट लगाओ। हर एक रूप सामने लाओ, अनुभव करो। मन को इस रूहानी एक्सरसाइज़ में बिजी करो तो मन एक्सरसाइज़ से सदा ठीक रहेगा। जैसे शरीर की एक्सरसाइज़ शरीर को तन्दरूस्त रखती है, ऐसे यह एक्सरसाइज़ मन को शक्तिशाली रखेगा। एक सेकण्ड भी मन में उस रूप को लाओ, समझते हो सहज है ना यह, कि मुश्किल लगता है? मुश्किल नहीं लगेगा क्योंकि यह एक्सरसाइज़ आपने अनेक बार की हुई है। हर कल्प की है। अपना ही रूप सामने लाना यह मुश्किल नहीं होता। एक-एक रूप के सामने आते ही हर रूप की विशेषता का अनुभव होगा। कभी-कभी कई बच्चे कहते हैं कि हम इन्हीं रूपों का अनुभव करने चाहते लेकिन मन दूसरे तरफ चला जाता है। जितना समय जहाँ मन लगाने चाहते हैं उतना समय के बजाए व्यर्थ, अयथार्थ संकल्प भी आ जाते हैं। कभी मन में अलबेलापन भी आ जाता, तो बापदादा हर घण्टे 5 सेकण्ड या 5 मिनट इस एक्सरसाइज में अनुभव कराने चाहते हैं। 5 मिनट करके मन को इस तरफ चलाओ। चलना तो अच्छा होता है ना! फिर अपने काम में लग जाओ क्योंकि कार्य तो करना ही है। कार्य के बिना तो चलना नहीं है। यज्ञ सेवा, विश्व सेवा तो सभी कर रहे हो और करनी ही है। यह 5 मिनट की ड्रिल करने के बाद जो अपना कार्य है उसमें लग जाओ। चाहे 5 सेकण्ड लगाओ, चाहे 5 मिनट लगाओ लेकिन कोई ऐसा है जिसको इतना टाइम भी नहीं मिलता है! है कोई हाथ उठाओ, जिसको 5 मिनट भी नहीं हैं। कोई नहीं है। है कोई? सब निकाल सकते हैं। तो बार-बार यह एक्सरसाइज़ करो तो कार्य करते भी यह नशा रहेगा क्योंकि बाप का मत्र भी है मनमनाभव। तो यही मत्र मन के अनुभव से मायाजीत बनने में यत्र बन जायेगा क्योंकि बापदादा ने बता दिया है कि जितना समय आगे बढ़ेगा, उस अनुसार एक सेकण्ड में स्टॉप लगाना होगा। तो यह एक्सरसाइज़ करने से मनमनाभव होने में मदद मिलेगी क्योंकि बापदादा ने देखा कि जो भी भाषण करते हो या किसको भी सन्देश देते हो तो क्या कहते हो? हम विश्व को परिवर्तन करने वाले हैं। तो जब विश्व को परिवर्तन करना है तो पहले अपने मन को ऐसा शक्तिशाली बनाओ जो जिस समय जो संकल्प करने चाहे वही मन संकल्प कर सकता है। सेकण्ड में आर्डर करो, जैसे इस शरीर की और कर्मेन्द्रियों को आर्डर करते हो, ऊपर हो, नीचे हो तो करती हैं ना! ऐसे मन व्यर्थ अयथार्थ से बच जाये, मन के मालिक हो, मेरा मन कहते हो ना! तो मेरा मन इतना आर्डर में रहे उसके लिए यह मन की एक्सरसाइज़ बताई।

बापदादा ने देखा हर एक बच्चा यही चाहता है कि हमें मन जीत जगतजीत बनना है इसलिए आने वाले समय के पहले यह अभ्यास जहाँ चाहें वहाँ मन सहज टिक जाए। तो आज बापदादा यही चाहते हैं कि हर बच्चा ऐसा शक्तिशाली बने जो जो संकल्प करे उसी अनुसार मन बुद्धि संस्कार आर्डर में हो। जिसका यह अभ्यास होगा वह जगतजीत अवश्य बनेगा। बापदादा से, परिवार से प्यार तो सबका है। जितना बच्चों का बाप से प्यार है उससे ज्यादा बाप का बच्चों से प्यार है। तो बच्चों ने चतुराई अच्छी की है, मेरा बाबा, मेरा बाबा कहकर मेरा बना लिया है। हर एक बच्चा यही निश्चय से कहता “मेरा बाबा''। और बाप भी कहता मेरा बच्चा। इस मेरे शब्द ने कमाल कर दिया। हर एक के दिल में कितना उमंग आता है मेरा बाबा, प्यारा बाबा और बाप भी बार-बार कहते मेरे बच्चे। कोई भी माया का वार हो क्योंकि आधाकल्प माया को अपना बनाया है ना! तो माया का भी आप लोगों से प्यार तो होगा ना! तो वह बार-बार आने की कोशिश करती है लेकिन जो दिल से मेरा बाबा कहता है तो बाप का सहयोग मिलता है। एक बार दिल से कहा मेरा बाबा तो हजार बार बाप बंधा हुआ है, शक्तिशाली सहयोग देने के लिए। अनुभव है ना! सिर्फ समय पर इस अनुभव को प्रैक्टिकल में लाओ।

बापदादा बच्चों की एक बात देखकर दिल में बच्चों के ऊपर मुस्कराता है। जानते हो कौन सी बात? सभी कहते हैं कि बाबा ही मेरा संसार है, कहते हैं ना बाप ही हमारा संसार है! कहते हो, जो कहता है बाप ही मेरा संसार है वह हाथ उठाओ। अच्छा, बाप ही संसार है। दूसरा तो कोई संसार नहीं है ना! संसार दूसरा नहीं है लेकिन दूसरा क्या है? संस्कार। जब बाप ही मेरा संसार है, दूसरा कोई संसार है ही नहीं। संसार नहीं है लेकिन संस्कार कैसे पैदा हो जाता है? आजकल बापदादा समय प्रमाण संस्कार शब्द को मिटाने चाहते हैं। मिट सकता है? मिट सकता है? जो समझते हैं कि संस्कार विघ्न रूप नहीं बन सकता, यह दृढ़ संकल्प कर सकते हैं, दृढ़ पुरुषार्थ द्वारा आज भी दृढ़ पुरुषार्थ कर सकते हैं कि खत्म करना ही है। करेंगे, सोचेंगे, देखेंगे.. यह नहीं। करना ही है। संस्कार का काम है आना और बच्चों का काम है समाप्त करना ही है। है हिम्मत? है हिम्मत? पहले भी हाथ उठाया था लेकिन चेक करो जो संकल्प किया वह हो रहा है? जो समझते हैं कि बाप ने कहा, बाप का कार्य है लक्ष्य देना और बच्चों का कार्य है जो बाप ने कहा वह करना ही है। इसकी भी एक डेट फिक्स करो, जैसे भक्त लोगों ने डेट फिक्स की है, शिवरात्रि, तो मनाते हैं ना! तो इसकी डेट भी फिक्स करो। अच्छा सबकी इकट्ठी डेट नहीं हो तो पहले एक-एक अपने लिए तो डेट फिक्स कर सकते हैं ना! कर सकते हैं! कर सकते हैं तो हाथ उठाओ। तो किया! कर सकते हैं तो किया? डबल विदेशियों ने डेट फिक्स किया! अच्छा सामने वाले, किया फिक्स? जो डेट फिक्स की ना, वह बापदादा को लिखके देना। बापदादा भी बच्चों को पेपर पास करने की बहादुरी तो देंगे ना। फिर गीत गायेंगे वाह बच्चे वाह! सेरीमनी मनायेंगे जिसने संकल्प किया और उसी अनुसार प्रैक्टिकल किया उसकी सेरीमनी मनायेंगे क्योंकि फर्क तो आता रहेगा ना! जो डेट फिक्स करेंगे उसमें आगे बढ़ने के लिए समीप तो आयेंगे ना। फर्क तो होना शुरू होगा। तो जिसका डेट अनुसार सम्पन्न होगा उसकी बापदादा सेरीमनी मनायेंगे। अन्तर जो करेंगे तो देखने वाले भी वेरीफाय करेंगे क्योंकि सम्पर्क में तो आयेंगे ना! संस्कार किसी न किसी के साथ निकलता है ना! क्योंकि बापदादा ने देखा कि हर एक बच्चे को यह शुद्ध नशा तो है कि मैं मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ। मास्टर तो हो ना? जब सर्वशक्तिवान हैं तो संकल्प को पूरा करना यह भी शक्ति है ना! अच्छा।

जो आज पहली बारी आये हैं वह उठो। बापदादा मुबारक देते हैं। मधुबन में आने की मुबारक है, मुबारक है, मुबारक है। बापदादा फिर भी ऐसे समझते हैं कि टूलेट का बोर्ड लगने के पहले आ गये हो इसलिए सारे परिवार की, बापदादा की तो है सारे परिवार की भी आप सभी में यही शुभ आशा है कि सदा डबल पुरुषार्थ कर लास्ट आते हुए भी फास्ट जा सकते हो। है हिम्मत! जो आज आये हैं उन्हों में यह हिम्मत है! कि लास्ट आते भी फास्ट जाकर फर्स्ट आ जाओ। फर्स्ट नम्बर में। एक फर्स्ट नहीं, फर्स्टक्लास में फर्स्ट आओ, हो सकता है! जो समझते हैं हम फास्ट जाके फर्स्ट हो सकते हैं वह हाथ उठाओ। अपने में निश्चय है? अच्छा।

सेवा का टर्न दिल्ली और आगरा ज़ोन का है:- बापदादा ने सुना कि देहली शुरू से लेके सेवा की नई-नई बातें करती आई है। की है ना! देहली ने की है। तो अभी कोई नई इन्वेन्शन निकालो सेवा की। जो भाषण चलते हैं, प्रोग्राम चलते हैं वह भी अच्छे हैं क्योंकि उससे वृद्धि होती है और सम्बन्ध में आते हैं। जो अभी चल रहे हैं वह भी अच्छे हैं लेकिन अभी यह प्रोग्राम्स बहुत समय चले हैं। अभी कोई नई बात निकालो जो सेवा करने वालों को नया उमंग, नया उत्साह आये। करेंगे ना! अच्छा है। सभी को उत्साह में लाकर सभी को उसमें बिजी करो। अच्छा।

देहली वाले पुरुषार्थ में भी नम्बरवन लें। बापदादा ने बहुत समय से यह कहा है कि कोई भी सेन्टर चाहे देश, चाहे विदेश के सेन्टर और उसके कनेक्शन के सेन्टर 6 मास निर्विघ्न रहकर दिखाये, कोई भी विघ्न नहीं आये, निर्विघ्न। इसमें अगर नम्बरवन बनेगा तो उसका भी निर्विघ्न भव का डे (दिन) मनायेंगे। अभी 6 मास कह रहे हैं, 6 मास का अभ्यास होगा तो आगे भी आदत हो जायेगी। लेकिन इनाम लेने के लिए 6 मास का टाइम देते हैं। तो देहली क्या नम्बर लेगी? पहला नम्बर। बापदादा को खुशी है। सारे परिवार को भी खुशी है। सन्तुष्टता का बोलबाला हो। चाहे सेवा में, चाहे जो नियम बने हुए हैं उस नियम में, तो देखेंगे, बापदादा ने कहा है लेकिन अभी तक नाम नहीं आया है। ज़ोन नहीं तो जो भी बड़े सेन्टर हैं उसके कनेक्शन वाले सेन्टर इतना भी करेंगे तो बापदादा देखेंगे। अभी जल्दी जल्दी कदम को आगे करना, क्यों? अचानक क्या भी हो सकता है। तारीख नहीं बतायेंगे। अच्छा देहली वाले बैठ जाओ।

आगरा सबज़ोन:- आगरा को ऐसा कोई कार्य या सेवा करनी है जो जैसे गवर्मेन्ट की लिस्ट में आगरा मशहूर है, ऐसे आगरा वाले कोई न कोई ऐसी सेवा ढूंढो जो आलमाइटी गवर्मेन्ट में भी मशहूर हो जाओ। तो जैसे आगरा में ताज हैं, वैसे कुछ करो। है, उम्मींद है! उम्मींद है उसकी मुबारक हो। क्या करेंगे? लेकिन कितने समय में करेंगे? ऐसा कोई कार्य करो। सोचना, अमृतवेले बैठना और सोचना तो कोई न कोई टचिंग आ जायेगी। ठीक है, टीचर्स हाथ उठाओ। बहुत हैं। तो कमाल करना। बाकी बापदादा सभी बच्चों को यही कहते हैं कोई नवीनता करो अभी। जो चल रहा है, समय अनुसार वह नवीनता है लेकिन अभी और नवीनता इन्वेन्शन करो, कोई भी ज़ोन करे, लेकिन नया निकालो। बाकी बापदादा को हर एक बच्चा प्यारा भी है और बापदादा हर एक बच्चे की विशेषता भी जानते हैं। हर एक की विशेषता है जरूर लेकिन कोई कार्य में लगाते हैं, कोई की छिप जाती है इसलिए बाप कहते हैं हर बच्चा बाप को प्यारा है, सिकीलधा है और बाप यही चाहते कि उड़ते रहो, उड़ाते रहो।

डबल विदेशी भाई बहिनों से:- डबल विदेशी हमेशा अनुभव करते हैं कि हम ब्राह्मण परिवार और बापदादा के विशेष सिकीलधे हैं। क्यों! जितना ही देश के हिसाब से दूर हैं उतना ही बापदादा के दिल के नजदीक हैं। यह विशेषता है, बाबा जब कहते हैं तो बाबा कहने में ही सबकी शक्ल ऐसी प्यार में लवलीन हो जाती है जो बाप भी देख-देख हर्षित होते हैं और एक बात की विशेषता है कि जो भी भारत के नियम हैं उसको पालन करने में हिम्मत रखते हैं। शुरू में भारत का कलचर है यह फील करते थे लेकिन अभी बापदादा ने देखा कि अभी यह कहते हैं कि हम भी पहले भारत के थे। भारत का नशा, राजधानी है ना भारत, वह अच्छा दिल में बैठ गया है। सेवा भी अब तक अच्छी की है और आजकल देखा है कि अपने आसपास जहाँ सेवा नहीं है, वहाँ भी करने का लक्ष्य रखा है और रिजल्ट में कई जगह सक्सेस भी हुए हैं। ऐसे है ना! कर रहे हैं ना सेवा? हाथ उठाओ जो सेवा आसपास की कर रहे हैं, अच्छा है। बापदादा खुश है। अच्छा!

चारों ओर के बच्चे बाप के दिल के दुलारे हैं, हर एक बच्चा यही लक्ष्य बार-बार स्मृति में लाते हैं और लाना है कि हमें तीव्र पुरुषार्थ कर बाप को प्रत्यक्ष करना है। जो सबकी दिल कहे मेरा बाबा आ गया। ऐसा उमंग और उत्साह का संकल्प आजकल बापदादा के पास पहुंच रहा है। यह उमंग उत्साह मैजारिटी के दिल में आ गया है। बापदादा की यही आश है कि अभी जल्दी से जल्दी सबको यह सन्देश पहुंचाना है, कोई वंचित नहीं रहे। कुछ न कुछ वर्सा ले लें। चाहे जीवनमुक्ति का नहीं तो प्यार से मुक्ति का वर्सा तो ले ले क्योंकि बाप को सबको वर्सा देना है। जितनों को वर्सा दिलायेंगे उतना आपको भी अपने राज्य में राज्य अधिकारी बनने का वर्सा मिलेगा। सभी तरफ के हर बच्चे को बापदादा का बहुत-बहुत प्यार और दुआयें स्वीकार हो। अच्छा!

दादी रतनमोहिनी:- आज की सभा को देख करके ऐसे लगता है, अभी समय बहुत नजदीक है इसलिए दिनप्रतिदिन बाप भी हमको आगे के लिए पूरा पूरा तैयार कर रहे हैं और सभी के मन में यही इच्छा है कि अब जो कुछ हमें प्राप्तियां हुई हैं वह जल्दी से जल्दी उन सब बातों को समझ लें और बाप से हरेक अपना-अपना वर्सा ले लें। जितना हम बाबा की बातों को सुनकर अपने में भरते जायें और दूसरों को भी बाप का परिचय देकर उन्हों को बाप की प्राप्तियां कराते रहें तो उन्हें भी बहुत अनुभव होते रहेंगे।

अब तो लगता है कि जल्दी से जल्दी अब यह दुनिया बदल फिर से हमारी नई दुनिया इस सृष्टि पर आई कि आई। तो बाबा ने जो बातें सुनाई हैं उन पर मनन करते हम स्वयं को ऐसा योग्य बनायें तो जो हमें देखे उनको हमसे बाप का परिचय मिल जाए। आप सबको देखकर हमें बड़ी खुशी है कि बाबा के बच्चों को कितना उमंग है, और कैसे समय अनुसार अपना-अपना वर्सा लेने पहुंच जाते हैं। अच्छा। ओम् शान्ति।

 

ओम् शान्ति 20-02-20 मधुबन


प्राणप्यारे अव्यक्त मूर्त मात-पिता बापदादा के अति स्नेही, अपनी सच्ची दिल से भोलानाथ बाप को राज़ी करने वाले, सदा पवित्रता का व्रत लेने वाले, ब्रह्माचारी निमित्त टीचर्स बहिनें तथा देश विदेश के सर्व ब्राह्मण कुल भूषण भाई बहिनें,

ईश्वरीय स्नेह सम्पन्न मधुर याद के साथ आज त्रिमूर्ति शिव जयन्ती सो गीता जयन्ती, सो स्वर्णिम युग जयन्ती की सबको बहुत-बहुत दिल से स्नेह भरी बधाईयां।

हम सभी अपने अति प्रिय शिव भोलानाथ बाप की हीरे तुल्य त्रिमूर्ति शिवजयन्ती बड़े उमंग-उत्साह के साथ मनाते, झण्डा फहराते, स्व-परिवर्तन और विश्व परिवर्तन निमित्त प्रतिज्ञायें करते, साथ-साथ अनेक आत्माओं को शिवबाबा के अवतरण का दिव्य सन्देश देने की सेवायें करते हैं। सर्व के कल्याणकारी, स्वयंभू परमात्मा शिव इस धरा पर पिछले 84 वर्षो से अवतरित हो, विश्व परिवर्तन का महान कार्य गुप्त रीति से कर रहे हैं, बाबा कहते बच्चे यह शुभ सन्देश हर आत्मा तक पहुंचना चाहिए। इस सन्देश से कोई भी आत्मा वंचित न रह जाए, इसके लिए हम सबको जो बाबा का पहला-पहला वरदान मिला है “बी होली, बी योगी'', उसका प्रैक्टिकल स्वरूप बन अपनी श्रेष्ठ चलन और चरित्र द्वारा बाप को प्रत्यक्ष करना है। जब चारों ओर “यही है, यही है''.. की आवाज के साथ जयजयकार का नारा बुलन्द हो तब विश्व परिवर्तन का महान कार्य सम्पन्न हो और हर आत्मा मुक्ति और जीवनमुक्ति का वर्सा जन्म सिद्ध अधिकार के रूप में प्राप्त कर सके। इसी शुभ भावना से अब रही हुई सेवाओं को जल्दी से जल्दी सम्पन्न करना है साथ-साथ विशेष तीव्र पुरुषार्थ कर अपनी कर्मातीत स्थिति को प्राप्त कर सम्पूर्ण बनना है। बोलो, यही लक्ष्य है ना!

देखो, मधुबन वरदान भूमि में यह विशेष त्योहार एक सप्ताह तक चलता है। बाबा के सभी स्थानों पर सभी भाई बहिनें मिलकर झण्डा फहराते, मुख मीठा करते, खुशियां मनाते हैं। पिछले वर्ष की भांति बेहद सेवाओं निमित्त इस वर्ष भी शान्तिवन के पास एक स्कूल में बहुत सुन्दर 5 दिन के लिए “महा शिवरात्रि महोत्सव'' का आयोजन किया गया है, जिसमें अमरनाथ गुफा, 12 ज्योर्तिलिंग दर्शन विशेष आकर्षण का केन्द्र है। चारों ओर के गांवों से अनेकानेक लोग इस मेले के दर्शनार्थ आते रहते हैं।

बापदादा की सीज़न के इस सेवा टर्न में भोपाल ज़ोन के भाई बहनें पहुंचे हुए हैं। साथ में डबल विदेशी भाई बहिनें भी काफी संख्या में आये हुए हैं, जो बहुत अच्छी ज्ञान की गहरी रूहरिहान करते विशेष तपस्या कर रहे हैं। विदेश की सभी मुख्य बड़ी बहिनें भी इस समय मधुबन में हैं। शिव रात्रि के पश्चात स्व-उन्नति और विश्व सेवा निमित्त सभी मिलकर पूरे वर्ष के प्लैन्स बनायेंगे।

हम सबकी प्रेरणास्रोत दादी जानकी जी का कुछ समय से स्वास्थ्य ठीक न होने कारण वे अहमदाबाद मेमनगर सेवाकेन्द्र पर हैं, 2-3 दिन में मधुबन आ जायेंगी। उन्होंने अहमदाबाद से विशेष सभी को यादप्यार और शिवजयन्ती की बधाईयां दी हैं।

बाकी हम सबकी अति प्रिय बापदादा का अनमोल रथ दादी गुल्जार जी अभी तक मुम्बई गामदेवी सेवाकेन्द्र पर ही हैं। सभी ब्राह्मण बच्चों का विशेष संकल्प बापदादा के पास पहुंचता रहता है, बापदादा अवश्य बच्चों की आश पूरी कर दादी जी को मधुबन लेकर आयेंगे। बापदादा के इस गुप्त पार्ट में हम सभी सदा राज़ी रह ड्रामा के पट्टे पर अचल अडोल हैं। अच्छा!

सभी को बहुत-बहुत स्नेह सम्पन्न याद... ओम् शान्ति।

20-2-20 ओम् शान्ति “अव्यक्त महावाक्य वीडियो द्वारा” 15-02-07 मधुबन

“अलबेलेपन, आलस्य और बहाने बाजी की नींद से जागना ही शिवरात्रि का सच्चा जागरण है”

आज बापदादा विशेष अपने चारों ओर के अति लाडले, अति सिकीलधे, परमात्म प्यार के पात्र बच्चों से मिलने और विचित्र बाप बच्चों का बर्थ डे मनाने आये हैं। आप सभी भी आज विशेष विचित्र बर्थ डे मनाने आये हो ना! यह बर्थ डे सारे कल्प में किसी का नहीं होता। कभी भी नहीं सुना होगा कि बाप और बच्चे का एक ही दिन में बर्थ डे हो। तो आप सभी बाप का बर्थ डे मनाने आये हो वा बच्चों का भी मनाने आये हो? क्योंकि सारे कल्प में परमात्म बाप और परमात्म बच्चों का इतना अथाह प्यार है जो जन्म भी साथ-साथ है। बाप को अकेला विश्व परिवर्तन का कार्य नहीं करना है, बच्चों के साथ-साथ करना है। यह अलौकिक साथ रहने का प्यार, साथी बनने का प्यार इस संगम पर ही अनुभव करते हो। बाप और बच्चों का इतना गहरा प्यार है, जन्म भी साथ है और रहते भी कहाँ हो? अकेले या साथ में? हर एक बच्चा उमंग-उत्साह से कहते हैं कि हम बाप के साथ कम्बाइन्ड हैं। कम्बाइन्ड रहते हो ना! अकेले तो नहीं रहते हो ना! साथ जन्म है, साथ रहते हैं और आगे भी क्या वायदा है? साथ है, साथ रहेंगे, साथ चलेंगे अपने स्वीट होम में। इतना प्यार कोई और बाप बच्चों का देखा है? कोई भी बच्चा हो, कहाँ भी है, कैसा भी है, लेकिन साथ है और साथ ही चलने वाले हैं। तो ऐसा यह विचित्र और प्यारे ते प्यारा जन्म दिन मनाने आये हैं। चाहे सम्मुख मना रहे हो, चाहे देश विदेश में चारों ओर एक ही समय साथ-साथ मना रहे हैं।

बापदादा चारों ओर देख रहे हैं कि कैसे सभी बच्चे उमंग-उत्साह से दिल ही दिल में वाह बाबा! वाह बाबा! वाह बर्थ डे! का गीत गा रहे हैं। अगर स्विच खोलते हैं तो चारों ओर के आवाज, दिल के आवाज, उमंग-उत्साह के आवाज बापदादा के कानों में सुनाई दे रहे हैं। बापदादा सभी बच्चों का उत्साह देख बच्चों को भी अपने दिव्य जन्म की पदम-पदम-पदमगुणा बधाईयां दे रहे हैं। वास्तव में उत्सव का अर्थ ही है उमंग-उत्साह में रहना। तो आप सभी उत्साह से यह उत्सव मना रहे हैं। नाम भी भक्तों ने शिवरात्रि रखा है।

आज बापदादा उस भक्त आत्मा को मुबारक दे रहे थे, जिसने आपके इस विचित्र जन्म दिन मनाने की कापी बहुत अच्छी की है। आप ज्ञान और प्रेम रूप में मनाते और उस भगत आत्मा ने भावना, श्रद्धा के रूप में आपके मनाने की कापी की है। तो आज उस बच्चे को मुबारक दे रहे थे कि कापी करने में अच्छा पार्ट बजाया है। देखो हर बात को कापी की है। कापी करने का भी तो अक्ल चाहिए ना! मुख्य बात तो इस दिन भक्त लोग भी व्रत रखते हैं, वह व्रत खाने पीने का रखते हैं, भावना में वृत्ति को श्रेष्ठ बनाने के लिए व्रत रखते हैं, उन्हों को हर वर्ष रखना पड़ता और आपने क्या व्रत लिया? एक ही बार व्रत लेते हो, वर्ष-वर्ष व्रत नहीं लेते। एक ही बार व्रत लिया पवित्रता का। सभी ने पवित्रता का व्रत लिया है, पक्का लिया है? जिन्होंने पक्का लिया है वह हाथ उठाओ, पक्का, थोड़ा भी कच्चा नहीं। पक्का? अच्छा। दूसरा भी प्रश्न है, अच्छा व्रत तो लिया मुबारक हो। लेकिन अपवित्रता के मुख्य पांच साथी हैं, ठीक है ना! कांध हिलाओ। अच्छा पांचों का व्रत लिया है? या दो तीन का लिया है? क्योंकि जहाँ पवित्रता है वहाँ अगर अंश मात्र भी अपवित्रता है तो क्या सम्पूर्ण पवित्र आत्मा कहा जायेगा? और आप ब्राह्मण आत्माओं की तो पवित्रता ब्राह्मण जन्म की प्रापर्टी है, पर्सनैलिटी है, रॉयल्टी है। तो चेक करो कि मुख्य पवित्रता के ऊपर तो अटेन्शन है लेकिन सम्पूर्ण पवित्रता के लिए और भी जो साथी हैं, उसको हल्का तो नहीं छोड़ा है? छोटों से प्यार रखा है और बड़े को ठीक किया है। तो क्या बाप की छुट्टी है कि और जो चार हैं उन्हें भल साथी बनाओ? पवित्रता सिर्फ ब्रह्मचर्य को नहीं कहा जाता लेकिन ब्रह्मचर्य के साथ ब्रह्माचारी बनना अर्थात् पवित्रता का व्रत पालन किया। कई बच्चे रूहरिहान में कहते हैं, रूहरिहान तो सभी करते हैं ना। तो बहुत मीठी-मीठी बातें करते हैं। कहते हैं बाबा मुख्य तो अच्छा है ना, बाकी छोटे-छोटे ऐसे कभी मन्सा संकल्प में आ जाते हैं। मन्सा में आते हैं, वाचा में नहीं आते और मन्सा को तो कोई देखता नहीं है। और कोई फिर कहते हैं कि छोटे छोटे बाल बच्चों से प्यार होता है ना। तो इन चारों से भी प्यार हो जाता है। क्रोध आ जाता है, मोह आ जाता है, चाहते नहीं हैं आ जाता है। बापदादा कहते हैं कोई भी आता है तो आपने दरवाजा खोला है तब आता है ना! तो दरवाजा खोला क्यों है? कमजोरी का दरवाजा खोला है, तो कमजोरी का दरवाजा खोलना अर्थात् आह्वान करना।

तो आज के दिन बाप का और अपना बर्थ डे तो मना रहे हो लेकिन जो जन्मते व्रत का वायदा किया है। पहला-पहला वरदान बाप ने क्या दिया, याद है? बर्थ डे का वरदान याद है? क्या दिया? पवित्र भव, योगी भव। सभी को वरदान याद है ना? याद है भूल तो नहीं गये? पवित्र भव का वरदान एक का नहीं दिया, पांचों का दिया। तो आज बापदादा क्या चाहते हैं? बर्थ डे मनाने आये हो, बाप का भी मनाने आये हो ना। शिवरात्रि मनाने आये हो, तो बर्थ डे की सौगात लाये हो या खाली हाथ आये हैं?

आज के दिन बापदादा की शुभ आशा है अपने आशाओं के दीपक बच्चों प्रति। वह शुभ आशा कौन सी है, बतायें? बताना वा सुनना माना क्या? एक कान से सुनना और दिल में समा देना, ऐसे? निकालेंगे तो नहीं, इतना तो नहीं है लेकिन दिल में ही समा देते हैं। तो आज के दिन वह शुभ आशा बतायें, पहली लाइन वाले बोलो, कांध हिलाओ, टीचर्स कांध हिलाओ। डबल फारेनर्स बतायें! अपने को बांधना पड़ेगा, तभी कहो हाँ, ऐसे ही नहीं।

तो आज के दिन भक्त जागरण करते हैं, सोते नहीं हैं, तो आप बच्चों का जागरण कौन सा है? कौन सी नींद में घड़ी-घड़ी सो जाते हो, अलबेलापन, आलस्य और बहाने बाजी की नींद में आराम से सो जाते हैं। तो आज बापदादा इन तीन बातों का हर समय जागरण देखने चाहता है। कभी भी देखो क्रोध आता है, अभिमान आता है, लोभ आता है, कारण क्या बताते हैं? बापदादा को एक ट्रेडमार्क दिखाई देती है, कोई भी बात होती है ना! तो क्या कहते हैं, यह तो चलता है.., पता नहीं किसने चलाया है? लेकिन शब्द यही कहते हैं - यह तो होता ही है, यह तो चलता ही है। यह कोई नई बात थोड़ेही है, यह होता ही है। यह क्या है? अलबेलापन नहीं है? यह भी तो करता है, मैजॉरिटी क्रोध से बचने के लिए यह किया तब हुआ। मैंने रांग किया, वह नहीं कहेंगे। इसने यह किया ना, यह हुआ ना, इसलिए हुआ। दूसरे पर दोष रखना बहुत सहज है। यह ना करे तो नहीं होगा। और बाप ने जो कहा वह नहीं होगा। वह करे तो होगा, बाप की श्रीमत पर क्या क्रोध को नहीं खत्म कर सकते? आजकल क्रोध का बच्चा रोब, रोब भी भिन्न-भिन्न प्रकार के हैं। तो क्या आज चार का भी व्रत लेंगे? जैसे पहली बात का विशेष दृढ़ संकल्प मैजॉरिटी ने किया है। क्या ऐसे ही चार का भी संकल्प करेंगे! यह बहाना नहीं देना, इसने यह किया तब मेरा हुआ, और बाप जो बार-बार कहता है, वह याद नहीं, उसने जो किया वह याद आ गया, तो यह बहानेबाजी हुई ना! तो आज बापदादा बर्थ डे की गिफ्ट चाहते हैं यह तीन बातें, जो चार को हल्का कर देती हैं। संस्कार का सामना तो करना ही है, संस्कार का सामना नहीं, यह पेपर है। एक जन्म की पढ़ाई और सारे कल्प की प्राप्ति, आधाकल्प राज्य भाग्य, आधाकल्प पूज्य, सारे कल्प की एक जन्म में प्राप्ति, वह भी छोटा जन्म, फुल जन्म नहीं है, छोटा जन्म है। तो क्या हिम्मत है? जो समझते हैं, हिम्मत रखेंगे जरूर, ऐसे नहीं पुरुषार्थ करेंगे, अटेन्शन रखेंगे.. गे गे नहीं चाहिए।

बापदादा देख रहे हैं कि समय का कोई भरोसा नहीं और इस ज्ञान के आधार पर हर पुरुषार्थ की बात में बहुतकाल का हिसाब है। अच्छा अभी-अभी कर लेंगे, परन्तु बहुतकाल का हिसाब है क्योंकि प्राप्ति हर एक क्या चाहता है? अभी हाथ उठवाते हैं, कोई राम सीता बनेगा? जो रामसीता बनने चाहते हैं वह हाथ उठाओ, राजाई मिलेगी। कोई हाथ उठा रहे हैं - राम सीता बनेंगे? लक्ष्मी-नारायण नहीं बनेंगे? डबल फारेनर्स में कोई हाथ उठाता है? (कोई नहीं) जब बहुतकाल का भाग्य प्राप्त करने चाहते हो, लक्ष्मी-नारायण बनना अर्थात् बहुतकाल का राज्य भाग्य प्राप्त करना। तो बहुतकाल की प्राप्ति है। तो हर बात में बहुतकाल तो चाहिए ना! अभी 63 जन्म के बहुतकाल का संस्कार है तो कहते हो ना, हमारा भाव नहीं है, भावना नहीं है, संस्कार है 63 जन्म का। तो बहुतकाल का हिसाब है ना। इसीलिए बापदादा यही चाहते हैं कि संकल्प में दृढ़ता हो, दृढ़ता की ही कमी हो जाती है, हो जायेगा.. चलता है, चलने दो, कौन बना है, और एक तो बहुत अच्छी बात सबको आती है, बापदादा ने बातें नोट किया है, अपनी हिम्मत नहीं होती है तो कहते हैं महारथी भी ऐसे करते हैं, हमने किया तो क्या हुआ? लेकिन बापदादा पूछते हैं कि क्या जिस समय महारथी गलती करता है, उस समय महारथी है? तो महारथी का नाम क्यों खराब करते हो? उस समय वह महारथी है ही नहीं, तो महारथी कहके अपने को कमजोर करना यह अपने को धोखा देना है। दूसरे को देखना सहज होता है, अपने को देखने में थोड़ी हिम्मत चाहिए। तो आज बापदादा हिसाब का किताब खत्म कराने की गिफ्ट लेने आये हैं। कमजोरी और बहानेबाजी का हिसाब-किताब का बहुत बड़ा किताब है, उसको खत्म करना है। तो हर एक जो समझते हैं हम करके दिखायेंगे, करना ही है, झुकना ही है, बदलना ही है, परिवर्तन सेरीमनी मनानी ही है, जो समझते हैं संकल्प करेंगे वह हाथ उठाओ। दृढ़ या चालू? चालू संकल्प भी होता है और दृढ़ संकल्प भी होता है। तो आप सबने दृढ़ उठाया है? दृढ़ उठाया है? मधुबन वाले बड़ा हाथ उठाओ। यहाँ सामने मधुबन वाले बैठते हैं, बहुत नजदीक बैठने का चांस है। पहली सीट मधुबन वालों को मिलती है, बापदादा खुश है। पहले बैठे हो, पहले ही रहना।

तो आज की गिफ्ट तो बढ़िया हुई ना। बापदादा को भी खुशी है क्योंकि आप एक नहीं हो। आपके पीछे अपनी राजधानी में आपकी रॉयल फैमिली, आपकी रॉयल प्रजा, फिर द्वापर से आपके भक्त, सतो रजो तमोगुणी, तीन प्रकार के भक्त, आपके पीछे लम्बी लाइन है। जो आप करेंगे वह आपके पीछे वाले करते हैं। आप बहानेबाजी देते हो तो आपके भक्त भी बहुत बहानेबाजी करते हैं। अभी ब्राह्मण परिवार भी आपको देख, उल्टी कापी करने में तो होशियार होते हैं ना। तो अभी दृढ़ संकल्प करो, संस्कार का टक्कर हो, स्वभाव का मतभेद हो, तीसरी बात कमजोरों की होती है, कोई ने किसी के ऊपर झूठी बात कह दी, तो कई बच्चे कहते हैं हमको ज्यादा क्रोध आता है झूठ पर। लेकिन सच्चे बाप से वेरीफाय कराया, सच्चा बाप आपके साथ है, तो सारी झूठी दुनिया एक तरफ हो और एक बाप आपके साथ है, विजय आपकी निश्चित हुई पड़ी है। कोई आपको हिला नहीं सकता, क्योंकि बाप आपके साथ है। कह रहे हैं झूठ है। तो झूठ को झूठा ही कर दो ना, बढ़ाते क्यों हो! तो बाप को बहानेबाजी अच्छी नहीं लगती, यह हुआ, यह हुआ, यह हुआ... यह यह का गीत अब समाप्त होना चाहिए। अच्छा हुआ, अच्छा होगा, अच्छा रहेंगे, अच्छा सबको बनायेंगे। अच्छा-अच्छा-अच्छा का गीत गाओ। तो पसन्द है? पसन्द है? बहानेबाजी को खत्म करेंगे? करेंगे? दोनों हाथ उठाओ। हाँ, अच्छी तरह से हिलाओ। अच्छा, देखने वाले भी हाथ हिला रहे हैं। कहाँ भी देख रहे हैं, हाथ हिलाओ। आप तो हिला रहे हो। अच्छा अभी नीचे करो, अभी अपने परिवर्तन की ताली बजाओ। (सभी ने जोरदार तालियां बजाई) अच्छा।

यह दिन, यह समय, संगठन का चित्र सदा अपने सामने रखना। कभी भी कमजोरी आ जाए, आने नहीं देना, गेट बन्द। गेट तो पता है ना! बन्द करो। डबल बन्द करो, डबल ताला लगाना, आजकल सिंगल ताला नहीं चलता। एक याद का, एक मन को सेवा में बिजी रखने का, यह दो आलमाइटी ताले लगा देना। गाडरेज का नहीं गॉड का। पक्का जागरण करना, पक्का व्रत रखना।

बापदादा को हर बच्चे से अति प्यार है। चाहे लास्ट नम्बर भी हो फिर भी बापदादा का उस बच्चे पर भी अति प्यार है। क्यों? ऐसे बच्चे कोई बाप को मिलने हैं? एक ही बापदादा है जिसको ब्राह्मण बच्चे मिलते हैं। कोई भी महात्मा हो, महामण्डेश्वर हो, धर्मपिता हो, कोई को भी ऐसे बच्चे मिले हैं, जो हर बच्चा कहे मेरा बाबा। है कोई, हिस्ट्री में है? इसीलिए बापदादा हर बच्चे के महत्व को जानते हैं। बच्चे कहते हैं हम गीत गाते हैं वाह बाबा वाह! बाप कहते हैं आपसे भी 100 गुणा ज्यादा बाप गीत गाता है, वाह बच्चे वाह! ठीक है ना! वाह वाह हो ना! मधुबन वाले वाह वाह बच्चे हो ना! पीछे वाले वाह वाह बच्चे हो ना! अच्छा।

भोपाल ज़ोन की सेवा का टर्न है:- अच्छा है, भोपाल भी मध्यप्रदेश में है और मध्यप्रदेश बहुत बड़ा है। भोपाल को बापदादा विशेष दो सेवायें देना चाहते हैं, बतायें कौन सी? टीचर्स सुनना ध्यान से।

ऐसे कई विशेष वी.आई.पी. मध्य प्रदेश में हैं, बापदादा जानते हैं, छिपे हुए हैं, सिर्फ उसको मैदान पर लाना है। और दूसरा जो भी बड़े-बड़े सेवाकेन्द्र हैं, जिसको आप बड़े कहते हो वह लिस्ट देना। तो हर एक बड़े सेन्टर जिसके अन्डर छोटे उपसेवाकेन्द्र, गीता पाठशालायें बहुत-बहुत हैं उन बड़े सेन्टर्स को कम से कम एक साल के अन्दर, बहुत टाइम दे रहे हैं, इतना देना नहीं चाहिए। लेकिन एक साल के अन्दर कम से कम बड़े सेन्टर को अपना एक वारिस क्वालिटी सामने लाना है।

चाहे अभी हो भी, लेकिन यज्ञ के अन्दर वह वारिस क्वालिटी प्रसिद्ध हो। ऐसे नहीं, हैं तो बहुत। कई सेन्टर कहते हैं हमारे पास वारिस हैं, लेकिन वारिस छिप नहीं सकते। वारिस की क्वालिटी होगी तो वह छिप नहीं सकता। बापदादा गुप्त वारिस को नहीं मानता है। उसका कनेक्शन, उसका रिलेशन कायदे प्रमाण होना ही चाहिए। ऐसा वारिस हरेक बड़ा सेन्टर सामने लाये। ला सकते हैं ना बड़े सेन्टर्स? इसमें नहीं कहना हम तो छोटे हैं। छोटे नहीं बनना। छोटे भी बड़े बनना। ठीक है टीचर्स? ठीक बोला। हाथ उठाओ। तो यह दो कार्य भोपाल को करना है, ठीक है भोपाल वाले, आपमें से ही तो कोई वारिस बनेंगे ना। तो देखेंगे, वैसे तो 6 मास में तैयार होना चाहिए लेकिन फिर भी बापदादा एक वर्ष की छुट्टी देते हैं। ठीक है। बाकी सेवा का यह गोल्डन चांस लेते हो, यह अच्छा है। बापदादा सदा ही सुनाते हैं कि स्व-उन्नति के लिए बहुत अच्छा चांस है क्योंकि सेवा की जिम्मेवारी भी अलग नहीं है, यज्ञ सेवा की जिम्मेवारी है। वहाँ तो फिर भी समय और अटेन्शन देना पड़ता है, यहाँ तो एक ही अटेन्शन है स्व उन्नति या यज्ञ सेवा। यज्ञ सेवा का पुण्य अगर हर समय जमा करो तो आपके पुण्य का खाता बहुत-बहुत जल्दी बढ़ सकता है। तो अच्छा किया है, संख्या भी अच्छी लाये हैं। चांस अच्छा लिया है। अभी आगे की रिजल्ट देखेंगे। अच्छा।

डबल विदेशी आये हैं:- बापदादा को डबल विदेशियों को देख एक बात की विशेष खुशी होती है, एकस्ट्रा खुशी होती है। वह इस बात की कि शुरू शुरू में जब डबल फारेनर्स आये थे, टीचर्स को याद होगा तो भिन्न-भिन्न कल्चर से ट्रांसफर होने में बड़ी मेहनत लगती थी लेकिन अभी बापदादा ने देखा है कि इसकी चर्चा इतनी नहीं होती है, क्यों कारण क्या है? क्योंकि एक दो के संगठन को देख वृद्धि अच्छी हुई है ना! और बापदादा ने सुना भी है कि मैजॉरिटी अपने-अपने आसपास सन्देश देने का कोई न कोई साधन अपनाते हैं, सन्देश देने का उमंग अच्छा है। तो उसकी रिजल्ट में देखा गया है कि हर टर्न में विदेशियों का ग्रुप कम नहीं होता है। क्वालिटी भी अच्छी है और क्वान्टिटी भी बढ़ती जाती है इसलिए एक चंदन का वृक्ष बन गये हैं। तो चंदन का वृक्ष देख बापदादा खुश होते हैं।

समाचार तो बापदादा के पास पहुंच ही जाता है। चाहे आप ईमेल में भेजते हो, तो बापदादा के पास तो कापी पहले आती है। सेवा का उमंग अच्छा है। अभी सिर्फ आज का व्रत पक्का करना है। नम्बर लेंगे ना विदेशी? नम्बर लेना है? कौन सा नम्बर? पहला कि दूसरा भी चलेगा? (पहला) जिसका एक बाप से प्यार है वह एक के समान एक ही नम्बर बनेंगे। जो स्लोगन है - एक बाप ही संसार है, जब है ही एक संसार तो नम्बर एक हुआ ना। जैसे आपका टाइटल है डबल फारेनर्स। तो पुरुषार्थ में संकल्प के दृढ़ता में भी डबल फोर्स का पुरुषार्थ करके दिखाओ। अटेन्शन रखते हैं, सिर्फ अन्तर क्या हो जाता है? तीव्रता की दृढ़ता कम हो जाती है, प्रोग्राम बहुत अच्छा बनाते हो, बापदादा भी टापिक सुनते हैं, ग्रुप ग्रुप के पुरुषार्थ के विषय देखकर बहुत खुश होते हैं लेकिन क्या है, जब टापिक शुरू करते या लक्ष्य रखते हो वह बहुत फोर्स का रखते हो फिर कुछ न कुछ पेपर तो आता ही है, और आना ही है, बिना पेपर कोई पास नहीं होता। उसमें दृढ़ता की कमी हो जाती है और साधारण पुरूषार्थ हो जाता है। सदा दृढ़ता रहे इसकी कमी हो जाती है। तो सबमें डबल पुरुषार्थी। करके ही दिखायेंगे, बनके ही दिखायेंगे। ठीक है ना। इतना उमंग-उत्साह है ना! है? है, सिर्फ दृढ़ता को चेक करो, बातों में नहीं जाओ। दृढ़ता को देखो। अच्छा।

बाकी बापदादा देख रहे हैं - जो भी सभी ने कार्ड भेजे हैं, पत्र भेजे हैं, ग्रीटिंग्स भेजे हैं, वह बापदादा ने स्वीकार की और रिटर्न में एक एक को नाम और विशेषता सहित यादप्यार और दुआयें दे रहे हैं। जिन्होंने कार्ड और पत्र द्वारा नहीं लेकिन दिल से, संकल्प से भी अपना उमंग-उत्साह भेजा है, उन सभी बच्चों को बहुत-बहुत पदमगुणा यादप्यार और बाप के दिल की दुआयें।

बाकी आप सभी सम्मुख बैठे हो, सम्मुख का मजा अपना ही है। साइंस के साधनों द्वारा चाहे कितना भी स्पष्ट हो, कितना भी अच्छा लगता हो, लेकिन सम्मुख मधुबन में उन्नति का द्वार अपना ही अनुभव कराता है।

अच्छा अभी जो बापदादा ने कहा वह हरेक एक मिनट के लिए दृढ़ संकल्प स्वरूप में बैठो कि बहानेबाजी, आलस्य, अलबेलापन को हर समय दृढ़ संकल्प द्वारा समाप्त कर बहुतकाल का हिसाब जमा करना ही है। कुछ भी हो, कुछ नहीं देखना है लेकिन बाप के दिलतख्तनशीन बनना ही है, विश्व के तख्तनशीन बनना ही है। इस दृढ़ संकल्प स्वरूप में सभी बैठो। अच्छा।

चारों ओर के सदा उमंग-उत्साह के अनुभव में रहने वाले, सदा दृढ़ता सफलता की चाबी को कार्य में लगाने वाले, सदा बाप के साथ और हर कार्य में साथी बन रहने वाले, सदा एकनामी और एकॉनामी, एकाग्रता स्वरूप में आगे से आगे उड़ते रहने वाले, बापदादा के अति लाडले, सिकीलधे, विशेष बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

डायमण्ड हाल की स्टेज पर शिव बाबा का ध्वज फहराया गया।

दादी रतनमोहिनी जी ने और भ्राता निर्वैर जी ने सबको शिव जयन्ती की बधाईयां दी

आज के दिन बाबा के महावाक्य सुनते जैसे सभी खुशियों में नाच रहे हैं। ऐसे सदा खुशनुमा रहें और सदा खुशियां ही बांटते रहें।

आप सभी ने मिलकर मन से शिवबाबा का झण्डा लहराया। 84वीं त्रिमूर्ति शिव जयन्ती की समस्त देश विदेश के भाई बहिनों को बहुत बहुत बहुत कोटि कोटि मुबारक हो, मुबारक हो।

 

ओम् शान्ति 06-03-20 मधुबन


प्राणप्यारे अव्यक्त बापदादा के अति स्नेही, सदा विश्व कल्याणकारी बन सुख शान्तिमय दुनिया बनाने वाले, सदा एक राज्य, एक धर्म की स्थापना के निमित्त टीचर्स बहिनें तथा देश विदेश के सर्व ब्राह्मण कुल भूषण भाई बहिनें,

ईश्वरीय स्नेह सम्पन्न मधुर याद के साथ होली के पावन पर्व की आप सबको बहुत-बहुत हार्दिक बधाईयां।

अभी तो होली का त्योहार सामने आ रहा है, मीठे बाबा ने हम सबकी जीवन ही होली बना दी। हर एक ने होली के अर्थ स्वरूप में स्थित हो, हो ली अर्थात् बीती को बीती कर, एक के हो लिये। पुराने संस्कारों की होली जलाकर होली बन गये। फिर एक दो से मंगल मिलन मनाते, संस्कार मिलन की रास करते, हर एक को अपने श्रेष्ठ संग का रंग लगाते स्वर्णिम दुनिया लाने की सेवा कर रहे हैं। ऐसे सुन्दर यादगार पर्व की सभी को पदमगुणा मुबारक हो। मुबारक हो।

आज तो प्यारे अव्यक्त बापदादा के दिव्य अवतरण का अव्यक्ति दिवस है। ईस्टर्न ज़ोन, (बंगाल, बिहार, उड़ीसा, आसाम) तथा नेपाल और तामिलनाडु के करीब 20-21 हजार भाई बहिनें बाबा के घर में पहुंचे हुए हैं। सभी प्यार के सागर में लवलीन हो, अपनी अव्यक्ति स्थिति द्वारा अव्यक्त मिलन की अनुभूतियां कर रहे हैं। डबल विदेशी भाई बहिनों की भी बहुत अच्छी रिमझिम है। इस बार 100 से भी अधिक देशों के भाई बहिनें बाबा के घर में पहुंच गये हैं। सभी देशों की मुख्य बड़ी बहिनें वा भाई भी आये हुए हैं। सभी ने पूरे वर्ष के लिए स्व-उन्नति और सेवाओं पर बहुत अच्छी रूहरिहान के साथ सेवाओं के नये-नये प्लैन्स बनाये हैं।

हम सबकी अति प्रिय दादी जानकी जी, (अहमदाबाद से) दादी गुल्जार जी (मुम्बई से) सूक्ष्म रूप में अपने शक्तिशाली वायब्रेशन द्वारा अपनी उपस्थिति की अनुभूतियां करा रहे हैं। अव्यक्त वतन से प्यारे बापदादा अपने बच्चों को दिव्य वरदानों एवं सूक्ष्म शक्तियों से सजा रहे हैं। सभी आने वाले भाई बहिनें बाबा के घर में आकर खूब रिफ्रेश हो, पूरा-पूरा सन्तुष्ट होकर बापदादा और दैवी परिवार को दिल की दुआयें देते हैं। यह भी मीठे बापदादा की कमाल है जो अव्यक्त वतन में होते भी बच्चों को अपनी पूरी भासना वा पालना दे रहे हैं। वीडियो द्वारा भी हर एक ऐसा ही अनुभव करते जैसे बापदादा हम सबके बीच में उपस्थित हो हमारे सभी प्रश्नों का हल दे रहे हैं। अभी तो नाज़ुक समय की परिस्थितियां भी विकराल रूप में आ रही हैं। बाबा कहते बच्चे ड्रामा की भावी सदा कल्याणकारी है। हमें तो समय प्रमाण योग की शक्तियों को बढ़ाना है और अपने पवित्र शुद्ध वायब्रेशन द्वारा भयभीत आत्माओं को शान्ति वा शक्ति की सकाश देनी है। अच्छा - सभी को बहुत-बहुत याद.... ओम् शान्ति।

06-03-20 ओम् शान्ति “अव्यक्त-महावाक्य” वीडियो 31-03-07 मधुबन

"सपूत बन अपनी सूरत से बाप की सूरत दिखाना , निर्माण (सेवा) के साथ निर्मल वाणी , निर्मान स्थिति का बैलेन्स रखना"

आज बापदादा चारों ओर के बच्चों के भाग्य की रेखायें देख हर्षित हो रहे हैं। सभी बच्चों के मस्तक में चमकती हुई ज्योति की रेखा चमक रही है। नयनों में रूहानियत की भाग्य रेखा दिखाई दे रही है। मुख में श्रेष्ठ वाणी के भाग्य की रेखा दिखाई दे रही है। होठों में रूहानी मुस्कराहट देख रहे हैं। हाथों में सर्व परमात्म खजाने की रेखा दिखाई दे रही है। हर याद के कदम में पदमों की रेखा देख रहे हैं। हर एक के हृदय में बाप के लव में लवलीन की रेखा देख रहे हैं। ऐसा श्रेष्ठ भाग्य हर एक बच्चा अनुभव कर रहे हैं ना! क्योंकि यह भाग्य की रेखायें स्वयं बाप ने हर एक के श्रेष्ठ कर्म की कलम से खींची है। ऐसा श्रेष्ठ भाग्य जो अविनाशी है, सिर्फ इस जन्म के लिए नहीं है लेकिन अनेक जन्मों की अविनाशी भाग्य रेखायें हैं। अविनाशी बाप है और अविनाशी भाग्य की रेखायें हैं। इस समय श्रेष्ठ कर्म के आधार पर सर्व रेखायें प्राप्त होती हैं। इस समय का पुरुषार्थ अनेक जन्म की प्रालब्ध बना देता है।

सभी बच्चों को जो प्रालब्ध अनेक जन्म मिलनी है, बापदादा वह अभी इस समय, इस जन्म में पुरुषार्थ के प्रालब्ध की प्राप्ति देखने चाहते हैं। सिर्फ भविष्य नहीं लेकिन अभी भी यह सब रेखायें सदा अनुभव में आयें क्योंकि अभी के यह दिव्य संस्कार आपका नया संसार बना रहा है। तो चेक करो, चेक करना आता है ना! स्वयं ही स्वयं के चेकर बनो। तो सर्व भाग्य की रेखायें अभी भी अनुभव होती हैं? ऐसे तो नहीं समझते कि यह प्रालब्ध अन्त में दिखाई देगी? प्राप्ति भी अब है तो प्रालब्ध का अनुभव भी अभी करना है। भविष्य संसार के संस्कार अभी प्रत्यक्ष जीवन में अनुभव होना है। तो क्या चेक करो? भविष्य संसार के संस्कारों का गायन करते हो कि भविष्य संसार में एक राज्य होगा। याद है ना वह संसार! कितने बार उस संसार में राज्य किया है? याद है कि याद दिलाने से याद आता है? क्या थे, वह स्मृति में है ना? लेकिन वही संस्कार अभी के जीवन में प्रत्यक्ष रूप में हैं? तो चेक करो अभी भी मन में, बुद्धि में, सम्बन्ध-सम्पर्क में, जीवन में एक राज्य है? वा कभी-कभी आत्मा के राज्य के साथ-साथ माया का राज्य भी तो नहीं है? जैसे भविष्य प्रालब्ध में एक ही राज्य है, दो नहीं है। तो अभी भी दो राज्य तो नहीं है? जैसे भविष्य राज्य में एक राज्य के साथ एक धर्म है, वह धर्म कौन सा है? सम्पूर्ण पवित्रता की धारणा का धर्म है। तो अभी चेक करो कि पवित्रता सम्पूर्ण है? स्वप्न में भी अपवित्रता का नामनिशान नहीं हो। पवित्रता अर्थात् संकल्प, बोल, कर्म और सम्बन्ध-सम्पर्क में एक ही धारणा सम्पूर्ण पवित्रता की हो। ब्रह्माचारी हो। अपनी चेकिंग करने आती है? जिसको अपनी चेकिंग करनी आती है वह हाथ उठाओ। आती है और करते भी हैं? करते हैं, करते हैं? टीचर्स को आता है? डबल फारेनर्स को आता है? क्यों? अभी की पवित्रता के कारण आपके जड़ चित्र से भी पवित्रता की मांग करते हैं। पवित्रता अर्थात् एक धर्म अब की स्थापना है जो भविष्य में भी चलती है। ऐसे ही भविष्य का क्या गायन है? एक राज्य, एक धर्म और साथ में सदा सुख-शान्ति, सम्पत्ति, अखण्ड सुख, अखण्ड शान्ति, अखण्ड सम्पत्ति। तो अब के आपके स्वराज्य के जीवन में, वह है विश्व राज्य और इस समय है स्वराज्य, तो चेक करो अविनाशी सुख, परमात्म सुख, अविनाशी अनुभव होता है? कोई साधन वा कोई सैलवेशन के आधार पर सुख का अनुभव तो नहीं होता? कभी किसी भी कारण से दु:ख की लहर अनुभव में नहीं आनी चाहिए। कोई नाम, मान-शान के आधार पर तो सुख अनुभव नहीं होता है? क्यों? यह नाम मान शान, साधन, सैलवेशन यह स्वयं ही विनाशी हैं, अल्पकाल के हैं। तो विनाशी आधार से अविनाशी सुख नहीं मिलता। चेक करते जाओ। अभी भी सुनते भी जाओ और अपने में चेक भी करते जाओ तो पता पड़ेगा कि अब के संस्कार और भविष्य संसार की प्रालब्ध में कितना अन्तर है! आप सबने जन्मते ही बापदादा से वायदा किया है, याद है वायदा कि भूल गया है? यही वायदा किया कि हम सभी बाप के साथी बन, विश्व कल्याणकारी बन नया सुख शान्तिमय संसार बनाने वाले हैं। याद है? अपना वायदा याद है? याद है तो हाथ उठाओ। पक्का वायदा है या थोड़ा गड़बड़ हो जाती है? नया संसार अब परमात्म संस्कार के आधार से बनाने वाले हैं। तो सिर्फ अभी पुरुषार्थ नहीं करना है लेकिन पुरुषार्थ की प्रालब्ध भी अभी अनुभव करनी है। सुख के साथ शान्ति को भी चेक करो - अशान्त सरकमस्टांश, अशान्त वायुमण्डल उसमें भी आप शान्ति सागर के बच्चे सदा कमल पुष्प समान अशान्ति को भी शान्ति के वायुमण्डल में परिवर्तन कर सकते हो? शान्त वायुमण्डल है, उसमें आपने शान्ति अनुभव की, यह कोई बड़ी बात नहीं है लेकिन आपका वायदा है अशान्ति को शान्ति में परिवर्तन करने वाले हैं। तो चेक करो - चेक कर रहे हैं ना? परिवर्तक हो, परवश तो नहीं हो ना? परिवर्तक हो। परिवर्तक कभी परवश नहीं हो सकता। इसी प्रकार से सम्पत्ति, अखुट सम्पत्ति, वह स्वराज्य अधिकारी की क्या है? ज्ञान, गुण और शक्तियां स्वराज्य अधिकारी की सम्पत्तियां यह हैं। तो चेक करो - ज्ञान के सारे विस्तार के सार को स्पष्ट जान गये हो ना? ज्ञान का अर्थ यह नहीं है कि सिर्फ भाषण किया, कोर्स कराया, ज्ञान का अर्थ है समझ। तो हर संकल्प, हर कर्म बोल, ज्ञान अर्थात् समझदार, नॉलेजफुल बनके करते हैं? सर्वगुण प्रैक्टिकल जीवन में इमर्ज रहते हैं? सर्व हैं वा यथाशक्ति हैं? इसी प्रकार सर्व शक्तियां - आपका टाइटिल है - मास्टर सर्वशक्तिवान, शक्तिवान नहीं हैं। तो सर्व शक्तियां सम्पन्न हैं? और दूसरी बात सर्व शक्तियां समय पर कार्य करती हैं? समय पर हाज़िर होती हैं या समय बीत जाता है फिर याद आता है? तो चेक करो तीनों ही बातें एक राज्य, एक धर्म और अविनाशी सुख-शान्ति, सम्पत्ति क्योंकि नये संसार में यह बातें जो अभी स्वराज्य के समय का अनुभव है, वह नहीं हो सकेगा। अभी इन सभी बातों का अनुभव कर सकते हैं। अभी से यह संस्कार इमर्ज होंगे तब अनेक जन्म प्रालब्ध के रूप में चलेंगे। ऐसे तो नहीं समझते हैं कि धारण कर रहे हैं, हो जायेगा, अन्त तक तो हो ही जायेंगे!

बापदादा ने पहले से ही इशारा दे दिया है कि बहुतकाल का अभी का अभ्यास बहुतकाल की प्राप्ति का आधार है। अन्त में हो जायेगा नहीं सोचना, हो जायेगा नहीं, होना ही है। क्यों? स्वराज्य का जो अधिकार है वह अभी बहुतकाल का अभ्यास चाहिए। अगर एक जन्म में अधिकारी नहीं बन सकते, अधीन बन जाते तो अनेक जन्म कैसे होंगे! इसलिए बापदादा सभी चारों ओर के बच्चों को बार-बार इशारा दे रहे हैं कि अभी समय की रफ्तार तीव्रगति में जा रही है इसलिए सभी बच्चों को अभी सिर्फ पुरुषार्थी नहीं बनना है लेकिन तीव्र पुरुषार्थी बन, पुरुषार्थ की प्रालब्ध का अभी बहुतकाल से अनुभव करना है। तीव्र पुरुषार्थ की निशानियां बापदादा ने पहले भी सुनाई हैं। तीव्र पुरुषार्थी सदा मास्टर दाता होगा, लेवता नहीं देवता, देने वाला। यह हो तो मेरा पुरुषार्थ हो, यह करे तो मैं भी करूं, यह बदले तो मैं भी बदलूं, यह बदले, यह करे, यह दातापन की निशानी नहीं है। कोई करे न करे, लेकिन मैं बापदादा समान करूं, ब्रह्मा बाप समान भी, साकार में भी देखा, बच्चे करें तो मैं करूं - कभी नहीं कहा, मैं करके बच्चों से कराऊं। दूसरी निशानी है तीव्र पुरुषार्थ की, सदा निर्मान, कार्य करते भी निर्मान, निर्माण और निर्मान दोनों का बैलेन्स चाहिए। क्यों? निर्मान बनकर कार्य करने में सर्व द्वारा दिल का स्नेह और दुआयें मिलती हैं। बापदादा ने देखा कि निर्माण अर्थात् सेवा के क्षेत्र में आजकल सभी अच्छे उमंग-उत्साह से नये-नये प्लैन बना रहे हैं। इसकी बापदादा चारों ओर के बच्चों को मुबारक दे रहे हैं।

बापदादा के पास निर्माण के, सेवा के प्लैन बहुत अच्छे-अच्छे आये हैं। लेकिन बापदादा ने देखा कि निर्माण के कार्य तो बहुत अच्छे लेकिन जितना सेवा के कार्य में उमंग-उत्साह है उतना अगर निर्मान स्टेज का बैलेन्स हो तो निर्माण अर्थात् सेवा के कार्य में सफलता और ज्यादा प्रत्यक्ष रूप में हो सकती है। बापदादा ने पहले भी सुनाया है - निर्मान स्वभाव, निर्मान बोल और निर्मान स्थिति से सम्बन्ध-सम्पर्क में आना, देवताओं का गायन करते हैं लेकिन है ब्राह्मणों का गायन, देवताओं के लिए कहते हैं उनके मुख से जो बोल निकलते वह जैसे हीरे मोती, अमूल्य, निर्मल वाणी, निर्मल स्वभाव। तो बापदादा ने देखा कि निर्मल वाणी, निर्मान स्थिति उसमें अभी अटेन्शन चाहिए।

बापदादा ने खजाने के तीन खाते जमा करो, यह पहले बताया है। तो रिजल्ट में क्या देखा? तीन खाते कौन से हैं? वह तो याद होगा ना! फिर भी रिवाइज कर रहे हैं - एक है अपने पुरुषार्थ से जमा का खाता बढ़ाना। दूसरा है - सदा स्वयं भी सन्तुष्ट रहे और दूसरे को भी सन्तुष्ट करे, भिन्न-भिन्न संस्कार को जानते हुए भी सन्तुष्ट रहना और सन्तुष्ट करना, इससे दुआओं का खाता जमा होता है। अगर किसी भी कारण से सन्तुष्ट करने में कमी रह जाती है तो पुण्य के खाते में जमा नहीं होता। सन्तुष्टता पुण्य की चाबी है, चाहे रहना, चाहे करना। और तीसरा है - सेवा में भी सदा नि:स्वार्थ, मैं पन नहीं। मैंने किया, या मेरा होना चाहिए, यह मैं और मेरापन जहाँ सेवा में आ जाता है वहाँ पुण्य का खाता जमा नहीं होता। मेरापन, अनुभवी हो यह रॉयल रूप का भी मेरापन बहुत है। रॉयल रूप के मेरेपन की लिस्ट साधारण मेरेपन से लम्बी है। तो जहाँ भी मैं और मेरेपन का स्वार्थ आ जाता है, नि:स्वार्थ नहीं है वहाँ पुण्य का खाता कम जमा होता है। मेरेपन की लिस्ट फिर कभी सुनायेंगे, बड़ी लम्बी है और बड़ी सूक्ष्म है। तो बापदादा ने देखा कि अपने पुरुषार्थ से यथाशक्ति सभी अपना-अपना खाता जमा कर रहे हैं लेकिन दुआओं का खाता और पुण्य का खाता वह अभी भरने की आवश्यकता है। इसलिए तीनों खाते जमा करने का अटेन्शन। संस्कार वैरायटी अभी भी दिखाई देंगे, सबके संस्कार अभी सम्पन्न नहीं हुए हैं लेकिन हमारे ऊपर औरों के कमजोर स्वभाव, कमजोर संस्कारों का प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए। मैं मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ, कमजोर संस्कार शक्तिशाली नहीं हैं। मुझ मास्टर सर्वशक्तिवान के ऊपर कमजोर संस्कार का प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए। सेफ्टी का साधन है बापदादा की छत्रछाया में रहना। बापदादा के साथ कम्बाइण्ड रहना। छत्रछाया है श्रीमत। अच्छा।

सेवा का टर्न ईस्टर्न ज़ोन का है , ( बंगाल-बिहार , उड़ीसा , आसाम , नेपाल , तामिलनाडु ज़ोन):- यह तो बहुत अच्छा, सभी ज़ोन वालों ने चांस लेने की विधि अच्छी बनाई है। अच्छा आप सबने कोई नई इन्वेन्शन निकाली है, सेवा की नवीनता सोची है? ज़ोन के सभी तरफ की विशेष टीचर्स हाथ उठाओ। भिन्न-भिन्न स्थान की हेड, एक ज़ोन हेड नहीं, लेकिन भिन्न-भिन्न स्थान की एक-एक हेड। अच्छा। तो आप सभी ने सेवा में नवीनता का प्लैन क्या बनाया? कोई बनाया है? आगे वाली टीचर्स बनाया है कि बना रहे हैं? बना रहे हैं क्योंकि आपका ज़ोन जो है उसमें विस्तार बहुत है, कितनी आत्मायें हैं, कितने राज्य हैं, कितने गांव हैं। तो ऐसा प्लैन बनाओ, जैसे बापदादा ने देखा तो फारेन में अफ्रीका वालों ने सिर्फ प्लैन नहीं बनाया, लेकिन प्रैक्टिकल में सब एरिया कवर की है, तो आपकी तरफ तो बहुत एरिया है तो कितने लोग समय समाप्त होने पर वंचित रह जायेंगे ना! तो मिल करके ऐसा कोई प्लैन बनाओ।

देखो, बापदादा ने सभी बच्चों को उमंग-उत्साह और हिम्मत का वरदान एक जैसा दिया है। किसको ज्यादा, किसको कम नहीं दिया है। तो जहाँ उमंग-उत्साह है, वहाँ हिम्मत है तो क्या नहीं हो सकता है। असम्भव भी सम्भव हो सकता है।

सभी पूछते हैं आगे क्या करना है? बापदादा का संकल्प है कि अभी ज्यादा में ज्यादा बनी बनाई स्टेज पर चांस लो। उन्हों को सहयोगी बनाओ और आप सकाश दो।

क्योंकि बापदादा ने देखा है कि स्नेही, सहयोगी हर ज़ोन में यथा शक्ति हैं लेकिन उन्हों को सेवा के साथी बनाओ। उन्हों को भी उमंग-उत्साह के पंख दो। हैं चारों ओर क्योंकि बापदादा चक्कर तो लगाते हैं ना! तो अपने बच्चों को भी देखते हैं और स्नेही-सहयोगी आत्माओं को भी देखते हैं। बापदादा की नज़र में हैं लेकिन चांस नहीं दिया है, प्रैक्टिकल चांस नहीं लिया है। तो यह वर्ष उन्हों को निमित्त बनाओ, स्नेही-सहयोगियों को उमंग-उत्साह में लाओ। लाना पड़ता है। नहीं तो वह भी आपको उल्हना देंगे कि हमको तो आपने बताया ही नहीं कि ऐसा भी कर सकते हैं इसलिए अभी चांस देने वाले बनो। अच्छा।

डबल विदेशी: बापदादा सदा कहता है कि डबल विदेशी मधुबन का विशेष श्रंगार हैं। जैसे देश अपने-अपने उमंग-उत्साह से बढ़ रहे हैं ऐसे विदेश भी कम नहीं है। विदेश ने भी थोड़े समय में विस्तार अच्छा किया है। अभी विदेश को सिर्फ एक ही इनाम लेना है, बतायें कौन सा इनाम लेना है, खास डबल विदेशियों को? चारों ओर स्व और सेवा के बैलेन्स का इनाम लेना है। पसन्द है? विदेशी पसन्द है? लेना है? हाथ उठाओ। वेलकम। मुबारक, इनएडवांस मुबारक।

अच्छा। अभी बापदादा ने जो ड्रिल बताई थी याद है? 5-5 मिनट सारे दिन में अनेक बार ड्रिल करनी है। वह किया है? जिसने वह ड्रिल की है, वह हाथ उठाओ। थोड़ों ने हाथ उठाया है। क्यों? थोड़ा टाइम किया है? बहुत टाइम नहीं किया है तो अभी क्या करेंगे? कम से कम बतायें, कम से कम 8 बारी सारे दिन में कर सकते हो? कर सकते हो? इसमें हाथ उठाओ। करेंगे? अच्छा है। फिर जब दूसरी सीजन शुरू होगी ना, तो उसमें बापदादा सभी से रिजल्ट मंगायेंगे। पीछे एक बात बतायेंगे, अभी नहीं बतायेंगे। पीछे बात बतायेंगे। मधुबन वाले तो करेंगे ना? पहला नम्बर। तो इस वर्ष का होमवर्क, इस सीजन का होमवर्क दूसरी सीजन तक कम से कम 8 बारी यह ड्रिल जरूर करनी है। जरूर, देखेंगे नहीं, करनी ही है। चाहे मिस हो जाए तो एक घण्टे में अनेक बार करके पूरा करना। नींद पीछे करना। सोना पीछे, पहले ड्रिल, आठ बारी पूरा करके पीछे सोना। ठीक है ना टीचर्स! बहुत अच्छा, टीचर्स का वायुमण्डल स्वत: ही फैलेगा।

आज बापदादा सभी को यह देखना चाहते हैं, अभी अभी देखना चाहते हैं कि एक सेकण्ड में स्वराज्य के सीट पर कन्ट्रोलिंग पावर, रूलिंग पावर के संस्कार में इमर्ज रूप से सेकण्ड में बैठ सकते हैं! तो एक सेकण्ड में दो तीन मिनट के लिए राज्य अधिकारी की सीट पर सेट हो जाओ। अच्छा। (ड्रिल)

चारों ओर के बच्चों की यादप्यार के पत्र और साथ-साथ जो भी साइंस के साधन हैं उन्हों द्वारा यादप्यार बापदादा के पास पहुंच गई है। अपने दिल का समाचार भी बहुत बच्चे लिखते भी हैं और रूहरिहान में भी सुनाते हैं। बापदादा उन सभी बच्चों को रेसपान्ड दे रहे हैं कि सदा सच्ची दिल पर साहेब राज़ी है। दिल की दुआयें और दिल का दुलार बापदादा का विशेष उन आत्माओं प्रति है। चारों ओर के जो भी समाचार देते हैं, सभी अच्छे-अच्छे उमंग-उत्साह के प्लैन जो भी बनाये हैं, उसकी बापदादा मुबारक भी दे रहे हैं और वरदान भी दे रहे हैं, बढ़ते चलो, बढ़ाते चलो।

चारों ओर के बापदादा के कोटों में कोई, कोई में भी कोई श्रेष्ठ भाग्यवान बच्चों को बापदादा का विशेष यादप्यार, बापदादा सभी बच्चों को हिम्मत और उमंग-उत्साह की मुबारक भी दे रहे हैं। आगे तीव्र पुरुषार्थी बनने की, बैलेन्स की पदमा-पदमगुणा ब्लैसिंग भी दे रहे हैं। सभी के भाग्य का सितारा सदा चमकता रहे और औरों का भाग्य बनवाते रहें इसकी भी दुआयें दे रहे हैं। चारों ओर के बच्चे अपने अपने स्थान पर सुन भी रहे हैं, देख भी रहे हैं और बापदादा भी सभी चारों ओर के दूर बैठे बच्चों को देख-देख खुश हो रहे हैं। देखते रहो और मधुबन की शोभा सदा बढ़ाते रहो। तो सभी बच्चों को दिल की दुआओं साथ नमस्ते।

दादी जानकी जी ने सभी को अहमदाबाद हॉस्पिटल से यादप्यार दी है।

दादी रतनमोहिनी:- हम सभी ने इतना समय शान्तिपूर्वक बाबा की अच्छी अच्छी बातें सुनी। अभी जो हम सभी ने सुना है उसको अपने अन्दर मनन करना है और मनन करते अपना कदम आगे बढ़ाते रहना है। बाबा ने तो हम सबको बहुत अच्छी शिक्षायें दी हैं, उन शिक्षाओं को हम और भी अपने अन्दर मनन करके स्वयं के अन्दर वह शक्ति जाग्रत कर सभी को सुख देते रहेंगे। जो बाबा ने कहा है उन बातों को अपने जीवन में धारण करते हुए सबको बाप का सन्देश पहुंचाते रहेंगे।

 

18-03-20 ओम् शान्ति “अव्यक्त-महावाक्य'' वीडियो-18-02-08 मधुबन


“ विश्व परिवर्तन के लिए शान्ति की शक्ति का प्रयोग करो ''

आज बापदादा अपने विश्व परिवर्तक बाप की आशाओं के दीपक बच्चों को चारों ओर देख हर्षित हो रहे हैं। बापदादा जानते हैं कि बच्चों का बापदादा से अति अति अति प्यार है और बापदादा का भी हर बच्चे के साथ पदमगुणा से भी ज्यादा प्यार है और यह प्यार तो सदा ही इस संगमयुग में मिलना ही है। बापदादा जानते हैं जैसे-जैसे समय समीप आ रहा है उसी प्रमाण हर एक बच्चे के दिल में यह संकल्प, यह उमंग-उत्साह है कि अभी कुछ करना ही है क्योंकि देख रहे हो कि आज की तीनों सत्तायें अति हलचल में हैं। चाहे धर्म सत्ता, चाहे राज्य सत्ता, चाहे साइंस की सत्ता, साइन्स भी अभी प्रकृति को यथार्थ रूप में चला नहीं सकती। यही कहते, होना ही है क्योंकि साइंस की सत्ता प्रकृति द्वारा कार्य करती है। तो साइंस के साधन होते, प्रयत्न करते भी प्रकृति अभी कन्ट्रोल में नहीं है और आगे चलकर यह प्रकृति के खेल और भी बढ़ते जायेंगे क्योंकि प्रकृति में भी अभी आदि समय की शक्ति नहीं रही है। ऐसे समय पर अभी सोचो,अभी कौन सी सत्ता परिवर्तन कर सकती है? यह साइलेन्स की शक्ति ही विश्व परिवर्तन करेगी। तो चारों ओर की हलचल मिटाने वाले कौन हैं? जानते हो ना! यह सिवाए परमात्म पालना के अधिकारी आत्मा के और कोई नहीं कर सकता। तो आप सभी को यह उमंग-उत्साह है कि हम ही ब्राह्मण आत्मायें बापदादा के साथ भी हैं और परिवर्तन के कार्य के साथी भी हैं।

बापदादा ने विशेष अमृतवेले तथा सारे दिन में चलते हुए भी देखा है कि जितना दुनिया में तीनों सत्ताओं की हलचल है उतना आप शान्ति की देवियां, शान्ति के देवों को जो शक्तिशाली शान्ति की शक्ति का प्रयोग करना चाहिए, उसमें अभी कमी है। तो बापदादा अभी सभी बच्चों को यह उमंग दिला रहे हैं। सेवा के क्षेत्र में तो आवाज अच्छा फैला रहे हो, लेकिन बापदादा यह विशेष इशारा दे रहे हैं कि अभी शान्ति की शक्ति के वायब्रेशन चारों ओर फैलाओ।

अभी विशेष ब्रह्मा बाबा और जगदम्बा को देखा कि स्वयं आदि देव होते शान्ति की शक्ति का कितना गुप्त पुरुषार्थ किया। आपकी दादी ने कर्मातीत बनने के लिए इसी बात को कितना पक्का किया। जिम्मेवारी होते, सेवा का प्लैन बनाते शान्ति की शक्ति जमा की। तो सेवा की जिम्मेवारी कितनी भी बड़ी हो लेकिन सेवा के सफलता का प्रत्यक्ष फल शान्ति की शक्ति के बिना, जितना चाहते हैं उतना नहीं निकल सकता और अपने लिए सारे कल्प की प्रालब्ध को भी साइलेन्स की शक्ति से ही बना सकते हैं। इसके लिए अभी हर एक को स्व के प्रति, सारे कल्प की प्रालब्ध राज्य की और पूज्य की इकट्ठा करने के लिए अभी समय है क्योंकि समय नाज़ुक आना ही है। ऐसे समय पर शान्ति की शक्ति द्वारा टचिंग पावर कैचिंग पावर बहुत आवश्यक होगी। ऐसा समय आयेगा जो यह साधन कुछ नहीं कर सकेंगे, सिर्फ आध्यात्मिक बल, बापदादा के डायरेक्शन्स की टचिंग कार्य करा सकेगी। तो अपने में चेक करो - बापदादा की ऐसे समय में मन और बुद्धि में टचिंग आ सकेगी? इसमें बहुतकाल का अभ्यास चाहिए, इसका साधन है मन बुद्धि सदा ही कभी कभी नहीं, सदा क्लीन और क्लीयर चाहिए। अभी रिहर्सल बढ़ती जायेगी और सेकण्ड में रीयल हो जायेगी। जरा भी अगर मन में बुद्धि में किसी भी आत्मा के प्रति या किसी भी कार्य के प्रति, किसी भी साथी सहयोगी के प्रति जरा भी निगेटिव होगा तो उसको क्लीन और क्लीयर नहीं कहा जायेगा। इसलिए बापदादा यह अटेन्शन खिंचवा रहा है। सारे दिन में चेक करो - साइलेन्स पावर कितनी जमा की? सेवा करते भी साइलेन्स की शक्ति अगर वाणी में नहीं है तो प्रत्यक्ष फल सफलता जितना चाहते हैं उतना नहीं होगी। मेहनत ज्यादा है फल कम। सेवा करो लेकिन शान्ति के शक्ति सम्पन्न सेवा करो। उसमें जितनी रिजल्ट चाहते हो उससे अधिक मिलेगी। बार-बार चेक करो। बाकी बापदादा को खुशी है कि दिनप्रतिदिन जो भी जहाँ भी सेवा कर रहे हैं वह अच्छी कर रहे हैं लेकिन स्व प्रति शान्ति की शक्ति जमा करने का, परिवर्तन करने का और अटेन्शन।

अभी सारी दुनिया ढूंढ रही है कि आखिर विश्व परिवर्तक निमित्त कौन बनता है! क्योंकि दिन प्रतिदिन दु:ख और अशान्ति बढ़ रही है और बढ़नी ही है। तो भक्त अपने इष्ट को याद कर रहे हैं, कोई अति में जाके परेशानी से जी रहे हैं। धर्म गुरूओं के तरफ नज़र घुमा रहे हैं और साइंस वाले भी अभी यही सोच रहे हैं - कैसे करें, कब तक होगा! तो इन सबको जवाब देने वाले कौन? सबकी दिल में यही पुकार है कि आखिर भी गोल्डन मॉर्निंग कब आनी है। तो आप सभी लाने वाले हो ना! हो? हाथ उठाओ जो समझते हैं हम निमित्त हैं? निमित्त हो? (सभी ने हाथ उठाया) अच्छा। इतने सारे निमित्त हैं तो कितने समय में होना चाहिए! आप सभी भी खुश हो जाते हैं और बापदादा भी खुश हो जाते हैं। देखो, यह गोल्डन चांस हर एक को गोल्डन समय प्रमाण प्राप्त हुआ है।

अभी आपस में जैसे सर्विस की मीटिंग करते हो, प्राब्लम हल करने के लिए भी मीटिंग करते हो ना। ऐसे यह मीटिंग करो, यह प्लैन बनाओ। याद और सेवा। याद का अर्थ है शान्ति की पावर और वह प्राप्त होगी, जब आप टॉप की स्टेज पर होंगे। जैसे कोई टॉप स्थान होता है ना तो वहाँ खड़े हो जाओ तो कितना सारा स्पष्ट दिखाई देता है। ऐसे आपकी टॉप की स्टेज, सबसे टॉप क्या है? परमधाम। बापदादा कहते हैं सेवा की और फिर टॉप की स्टेज पर बाप के साथ आकर बैठ जाओ। जैसे थक जाते हैं ना तो 5 मिनट भी कहाँ शान्ति से बैठ जाते हैं तो फ़र्क पड़ जाता है ना। ऐसे ही बीच-बीच में बाप के साथ आकर बैठ जाओ। और दूसरा टॉप का स्थान है सृष्टि चक्र को देखो, सृष्टि चक्र में टॉप स्थान कौन सा है? संगम पर आके सुई टॉप पर दिखाते हो ना। तो नीचे आये, सेवा की फिर टॉप स्थान पर चले जाओ। तो समझा क्या करना है? समय आपको पुकार रहा है या आप समय को समीप ला रहे हो? रचता कौन? तो आपस में ऐसे-ऐसे प्लैन बनाओ। अच्छा।

बच्चों ने कहा आना ही है तो बाप ने कहा हाँ जी। ऐसे ही एक दो की बातों को, स्वभाव को, वृत्ति को समझते, हाँ जी, हाँ जी करने से संगठन की शक्ति साइलेन्स की ज्वाला प्रगट करेगी। ज्वालामुखी देखा है ना। तो यह संगठन की शक्ति शान्ति की ज्वाला प्रगट करेगी। अच्छा।

चारों ओर के बापदादा के दिलतख्तनशीन और विश्व राज्य के तख्तनशीन, सदा अपने साइलेन्स की शक्ति को आगे बढ़ाते और औरों को भी आगे बढ़ाने का उमंग-उत्साह देने वाले, सदा खुश रहने वाले और सबको खुशी की गिफ्ट देने वाले चारों ओर के बापदादा के लक्की और लवली बच्चों को बापदादा का यादप्यार और दुआयें, नमस्ते।

 

03-04-2020 ओम् शान्ति “अव्यक्त महावाक्य'' वीडियो 15-12-09 मधुबन


"परिवार के साथ प्रीत निभाने के लिए नॉलेजफुल बन बाप समान साक्षीपन की स्थिति में रहना है, बाप, स्व, ड्रामा और परिवार चारों में निश्चयबुद्धि बन विजयी बनना है''

आज समर्थ बाप अपने समर्थ बच्चों को देख रहे हैं क्योकि हर एक बच्चा स्नेह से बाप समान बनने का पुरुषार्थ बहुत लगन से कर रहे हैं। बापदादा बच्चों को देख खुश होते हैं और दिल में बच्चों के गीत गाते हैं वाह बच्चे वाह! क्योंकि बच्चे बाप के भी सिर के ताज हैं। देखो बच्चों की पूजा डबल रूप में होती है, बाप की पूजा एक रूप में होती है। तो बच्चे बाप से भी बाप द्वारा आगे जाते हैं इसलिए बाप बच्चों के पुरुषार्थ को देख खुश है। नम्बरवार तो हैं लेकिन पुरुषार्थ का लक्ष्य आगे बढ़ा रहे हैं।

आज अमृतवेले चारों ओर के बच्चों में एक बात जो ज्ञान का फाउण्डेशन है वह देखा। फाउण्डेशन है निश्चय। कहा हुआ भी है निश्चयबुद्धि विजयी। तो आप सबका निश्चय देखा, सभी का नम्बरवार बाप में तो निश्चय है ही, उसकी निशानी सभी बाप को पहचान बाप के बने हैं और यहाँ भी बाप से मिलने के लिए आये हैं। बाप में हर एक बच्चे का अटूट निश्चय है लेकिन बाप के साथ और भी निश्चय पक्का होना चाहिए - वह है स्व में निश्चय। साथ में ड्रामा में निश्चय और परिवार में निश्चय। इन चार प्रकार के निश्चय में पक्के होना अर्थात् निश्चयबुद्धि विजयन्ती बनना। तो चेक करो कि इन चार निश्चय में पक्के हैं? बाप में तो सभी कहते हैं मेरा बाबा और मैं बाप की। बाप को मेरा कहकर बाप का पूरा अधिकार प्राप्त कर लिया। सदा बाप के द्वारा अधिकारी बन सर्व खजानों के अधिकारी बन गये। साथ में स्व में भी निश्चय जरूरी है क्यों? अगर स्व में निश्चय नहीं है तो दिलशिकस्त बन जाते हैं। स्व में निश्चय यही है कि मैं बाप द्वारा स्वमानधारी हूँ, स्वराज्य अधिकारी हूँ। स्वयं बाप ने मुझे कितने स्वमान दिये हैं। एक एक स्वमान को स्मृति में लाओ तो कितना नशा चढ़ता है! आजकल किसी को भी कोई टाइटल मिलता है तो वह भी अपना भाग्य समझते हैं। लेकिन आप बच्चों को एक-एक स्वमान किसने दिया! स्वयं बापदादा ने हर बच्चे को स्वमानधारी बनाया है। एक-एक स्वमान को याद करते खुशी में उड़ते हो। तो स्व में भी सदा निश्चय का इतना नशा रहे कि मैं बाप द्वारा स्वराज्य अधिकारी, स्वमान अधिकारी कोटो में कोई आत्मा हूँ। जैसे बाप में निश्चय है तो साथ में स्व में भी निश्चय आवश्यक है क्योंकि अगर स्व में निश्चय है तो जहाँ निश्चय है वहाँ हर कर्म में निश्चयबुद्धि अर्थात् स्वमानधारी विजयी है। निश्चय का अर्थ ही है सफलता। ऐसे नहीं कि हमारा तो बाप में निश्चय है, बाप में है वह तो बहुत अच्छा लेकिन बाप के साथ स्व का नशा भी आवश्यक है, मैं कौन! एक-एक स्वमान को याद करो तो निश्चय और नशा आपके चलन और चेहरे से दिखाई देगा। दे रहा है और दिखाई देता रहेगा। साथ में तीसरी बात - ड्रामा में भी निश्चय बहुत जरूरी है क्योंकि ड्रामा में समस्यायें भी आती हैं और सफलता भी होती है। अगर ड्रामा में पक्का निश्चय है तो ड्रामा के निश्चय से जो निश्चयबुद्धि है वह समस्या को समाधान स्वरूप में बदल देता है क्योंकि निश्चय अर्थात् विजय। तो किसके ऊपर विजयी बनता? परिवर्तन करने में, एक सेकण्ड में समस्या परिवर्तन हो समाधान रूप बन जाती है। हलचल में नहीं आयेंगे, अचल रहेंगे क्योंकि ड्रामा के ज्ञान से अडोल अचल बन जाते हैं। यह निश्चय रहता है कि मैं ही कल्प पहले भी समाधान स्वरूप अर्थात् सफल आत्मा बना था, बनी हूँ और कल्प के बाद भी मैं ही बनूंगी। तो यह ड्रामा का निश्चय नशा पक्का कराता है, फखुर रहता है, नशा रहता है मैं थी, मैं ही हूँ और मैं ही बनूंगी इसलिए इस पुरुषार्थी जीवन में ड्रामा का निश्चय भी आवश्यक है और साथ में चौथा है परिवार का निश्चय क्योंकि बाप ने आते ही परिवार को पैदा किया। तो जैसे बाप में निश्चय है वैसे परिवार में भी निश्चय आवश्यक है क्योंकि परिवार किसका है? और इतना बड़ा परिवार और किसका हो सकता है! तो परिवार में भी निश्चय अति आवश्यक है क्योंकि इतना बड़ा परिवार विश्व में किसका है? तो चेक करो कि आप जितना परिवार विश्व में किसी का है? परिवार की रीति से किसी भी डिवाइन फादर का भी नहीं है वहाँ फॉलोअर हैं, यहाँ परिवार है। परिवार के साथ ही सेवा में, सम्बन्ध में रहते हो। ऐसे नहीं कि हमारा तो बाप से ही कनेक्शन है, परिवार से नहीं हुआ तो क्या हुआ। परिवार का निश्चय तो आपका 21 जन्म चलना है। जानते हो ना! परिवार के साथ ही सम्बन्ध में आने से मालूम होता है कि मैं इतने बड़े परिवार में सभी से निश्चयबुद्धि हो चल रहा हूँ, परिवार में चलने के लिए यह अटेन्शन देना पड़ता है कि परिवार में हर एक के संस्कार भिन्न-भिन्न हैं और होंगे। आपका यादगार माला है, माला में देखो कहाँ एक नम्बर और कहाँ 108 वां नम्बर क्योंकि परिवार में भिन्न-भिन्न संस्कार हैं। तो इतने बड़े परिवार में चलते संस्कारों को समझ एक दो में एक परिवार, एक बाप, एक राज्य, तो एक होके चलना है। परिवार में जैसे बड़ा परिवार है, ऐसे ही एक दो में बड़ी दिल, हर एक के प्रति शुभ भावना, शुभ कामना की स्थिति में स्थित हो चलना है क्योंकि परिवार के बीच ही संस्कार स्वभाव आता है। लेकिन कोई समझे परिवार से क्या है, बाबा से तो है। लेकिन यहाँ धर्म और राज्य दोनों की स्थापना है, सिर्फ धर्म नहीं है, दूसरे जो भी धर्म पिता आये हैं उनका सिर्फ धर्म है, राज्य नहीं है, यहाँ तो आप सबको राज्य भी करना है। तो राज्य में परिवार की आवश्यकता होती है और 21 जन्म भिन्न-भिन्न रूप से परिवार के साथ ही रहना है, परिवार को छोड़ कहाँ जा नहीं सकते। तो चेक करो ऐसे नहीं समझना कि बाप जाने मैं जानूं। बाप से ही कार्य है लेकिन अगर इन चार निश्चय में से एक भी निश्चय कम है तो हलचल में आ जायेंगे। सेवा के साथी, बाप तो सकाश देने वाले हैं लेकिन साथी कौन? साकार में साथ तो परिवार का है तो बाप ने देखा है कि तीन निश्चय में मैजारिटी ठीक चल रहे हैं लेकिन परिवार के साथ में निभाना, संस्कार मिलाना, एक-एक को कल्याण की भावना से देखना और चलना, इसमें कई बच्चे यथाशक्ति बन जाते हैं। लेकिन बाप ने देखा कि जो परिवार के निश्चय में नॉलेजफुल होके सदा बाप समान साक्षीपन की स्थिति में रह सम्बन्ध में आते हैं, रहते हैं वही नम्बरवन या नम्बरवन डिवीजन में आते हैं। तो चेक करो भाव स्वभाव परिवार में होता है, तो छोटी-छोटी गलतियां भी होती हैं, विघ्न आते हैं वह परिवार के सम्बन्ध में ही आते हैं। तो सबसे आवश्यक इस परिवार के सम्बन्ध में पास होना है। अगर परिवार के साथ चलने में, तोड़ निभाने में कोई भी कमी होती है तो वह विघ्न छोटा हो या बड़ा हो लेकिन तंग करता है। यह क्यों, यह कैसे, परिवार के कनेक्शन में आता है। तो क्यों के बजाए, क्यों नहीं करना है, लेकिन हमें मिलकर चलना है, परिवार की प्रीत निभानी है क्योंकि यह बाप का परिवार है, भगवान का परिवार है। रिवाजी परिवार नहीं है। नशा रहना चाहिए कि वाह बाबा, वाह ड्रामा, वाह मैं और वाह परिवार! ठीक है? चेक करते हो? चार ही में पास हो? चार ही में? एक में भी कम नहीं। चेक करो। अभी-अभी चेक करो क्योंकि विजयी बनने का साधन ही यह है। परिवार के बीच संस्कार निकलते हैं और वह संस्कार मिलाना खुद को भी परिवर्तन करना और परिवार को भी इतनी ऊंची दृष्टि से देखना। बापदादा ने पहले भी कहा है कि बापदादा लास्ट बच्चे को भी अति भाग्यवान समझते हैं क्यों? भगवान को पहचानना, साधारण रूप में बाप को पहचानना, जो इतने बड़े-बड़े महात्मायें भी पहचान नहीं सके, लेकिन बापदादा का लास्ट बच्चा भी मेरा बाबा कहता है। दिल से मेरा बाबा कहते हैं। तो बापदादा जैसे लास्ट बच्चे की भी विशेषता देख, जैसे और बच्चों को लाड प्यार, यादप्यार देते हैं वैसे लास्ट वालों को भी देते हैं। तो चेक करो कि तीन में ठीक हो या चारों में ठीक हो या दो में ठीक हो या एक में ठीक हो? चेक किया? किया चेक? जो समझते हैं कि मैं चार ही निश्चय में बाप, आप, ड्रामा और परिवार, चार ही निश्चय में ठीक हूँ वह हाथ उठाओ। ठीक हैं? अच्छा ठीक हैं, पेपर लें? हाँ हाथ उठाओ। अच्छा परिवार में पास हो? परिवार के सम्बन्ध में आना, क्योंकि परिवार को छोड़ तो कहाँ जायेंगे नहीं, रहना ही है, निभाना ही है। तो इसमें पास हो? कभी ऐसे आता है कि यह नहीं होता तो अच्छा होता, यह क्यों करते हैं, यह क्यों होता है, यह संकल्प आता है... एकदम परिवार का नशा, चार ही निश्चय वाला कभी भी ऐसे वैसे संकल्प में भी नहीं करेगा। संकल्प में आये भी कि ऐसे क्यों होता है, लेकिन मुझे वह क्यों वा क्या हिलावे नहीं, मूड नहीं बदली करे, इसको कहते हैं चार ही में पास। हाथ तो उठाया, बापदादा को खुश किया है परन्तु बापदादा को यह जो परिवार की बात है उसमें कभी-कभी बातें सुननी पड़ती हैं, देखनी पड़ती हैं। एकदम बड़ी दिल हो, सबको शुभ भावना, शुभ कामना से ठीक करना है, क्योंकि परिवार ही एक है। एकमत होके चलना और चलाना है। सिर्फ चलना नहीं है, चलाना भी है इसलिए बापदादा इस बात पर अटेन्शन दिला रहे हैं कि परिवार में जो किसी भी हलचल में पास हो जाते हैं, व्यर्थ नहीं चलता है, उन्हें दूसरों को ऐसा बनाना है। अभी तो आप अपने-अपने सेन्टर पर कितने रहते हो, चलो ज्यादा में ज्यादा 25-50, इतने होते नहीं हैं लेकिन मानों बड़े स्थान हैं, उसमें भी 50-60 अच्छा ज्यादा में ज्यादा 100 भी समझो, इतने हैं नहीं लेकिन समझ लो, तो बापदादा ने सभी सेन्टर्स के बच्चों को लास्ट को भी अपना प्यारा कहके चलाया और प्यार की निशानी है रोज़ बापदादा यादप्यार क्या देता? मीठे मीठे, जानता है खट्टे भी हैं लेकिन मीठे खट्टे कभी यादप्यार में कहा है? उन्हों को भी लाडले कहता है, न सिर्फ कहता है लेकिन मेरा बच्चा है, मेरे भाव से चलाता है क्योंकि ड्रामा में, माला में सब एक नम्बर नहीं हैं, यह रिजल्ट है। संस्कार भिन्न-भिन्न होते हैं, होना है, नहीं तो सब राजा बन जायें, प्रजा कौन बनेगा! राज्य किस पर करेंगे? अच्छी प्रजा भी तो चाहिए, रॉयल प्रजा, राजधानी है ना। ऐसे हर एक अपने को चेक करे, परिवार में किसी भी बात में संस्कार खराब हैं, लेकिन मेरा संस्कार क्या? अगर खराब को देख मेरा संस्कार भी खराब हो गया, तो मैं भी तो खराब हो गया। खराब अच्छे को भी बदल लेता है।

बाप ने स्थापना के समय 350-400 को इकट्ठा सम्भाला है, इतना तो अभी किसी का इकट्ठा रहने वाला परिवार नहीं है। चलो, ड्युटी अलग अलग है लेकिन वह ड्युटी है और परिवार में ड्युटी है। रिवाजी परिवार, रिवाजी ड्युटी, रिवाजी रीति से दिनचर्या बिताना, यह नहीं है, न्यारा और प्यारा परिवार है। इसमें डिस्टर्ब होना, फिर बहाना तो यह देते कि इसने किया तब यह हुआ। यह किया तो यह हुआ, लेकिन बाप के आगे भी क्या आपोजीशन नहीं हुई! भागन्ती भी हुए ना! यह आपोजीशन नहीं है! लेकिन बाप ने फिर भी कहा, कोई भागन्ती भी हो गये तो भी टोली भेजो, उनको बुलाने की कोशिश करो, सर्विस करो, याद दिलाओ। ऐसे चार ही निश्चय में पास होना है वा तीन में, दो में? नम्बरवन होना है। इसके लिए विनाश की तैयारियां होते भी अभी विनाश रूका हुआ है। प्रकृति भी बाप के पास आती है, प्रकृति भी कहती अब बहुत बोझ हो गया है। प्रकृति भी बोझ से छूटने चाहती है। माया भी कहती है कि मैं जानती हूँ कि मेरा पार्ट अभी जाने वाला है लेकिन ब्राह्मण परिवार में ऐसे भी बच्चे हैं जो छोटी बात में मेरे साथी बन जाते हैं। बिठा देते हैं मेरे को। तो अपना राज्य लाने में यह चार निश्चय परसेन्ट में हैं इसलिए समय भी रुक रहा है। बाकी माया और प्रकृति दोनों रेडी हैं। अब बताओ आर्डर करें? बच्चे अगर एवररेडी नहीं हैं तो माया और प्रकृति को आर्डर करें? करें? हाथ उठाओ, तैयार हो? ऐसे नहीं हाथ उठाओ। पेपर आयेगा, आयेगा पेपर। एवररेडी?

अभी बापदादा की हर बच्चे में यही आशा है कि कैसे को मिटाके ऐसे करो। कैसे करूं, कैसे हो, नहीं। ऐसे हो। क्या करें नहीं, ऐसे करें। यह आश कब तक पूरी करेंगे? कितना टाइम चाहिए? क्योंकि सभी को तैयार होना है। अगर आप तैयार हो, हाथ उठाया, तो उन्हों का काम क्या है? एक दो को आप समान बनाना। जिन्होंने हाथ उठाया, वह आप समान बना सकते हो? परिवार को तैयार कर सकते हो? इसमें हाथ उठाओ। कर सकते हैं? अच्छा कितना टाइम चाहिए? एक वर्ष। टीचर्स बतावें कितना टाइम चाहिए? पाण्डव बतावें... हाथ तो उठाया, कितना टाइम चाहिए? परिवार है, तो परिवार में सहयोग तो देना पड़ेगा ना। परिवार से कट तो होंगे नहीं, छोड़के जाना तो है नहीं, रहना तो यहाँ ही है तो परिवार को भी तैयार करना पड़ेगा ना। लौकिक में भी जब अच्छी बुद्धि थी, (आजकल नहीं) तो एक दो के सहयोगी बन आगे बढ़ाते थे, गांव को भी अपना परिवार समझते थे और यह तो अलौकिक परिवार है क्योंकि खिटखिट जो होती है, माया जो आती है वह परिवार की बात में आती है, सम्बन्ध में आती है, वेस्ट थॉट्स सम्बन्ध के कनेक्शन में चलते हैं।

बाप कहते हैं “एक बल एक भरोसा''। अगर दोनों ही बातें हैं तो क्या नहीं हो सकता है! बाप ने कितने थोड़े समय में स्थापना का पार्ट बजाया! अभी तो सब नॉलेजफुल बन गये हैं। डबल लाइट भी बन गये हैं। बापदादा जानते हैं कि यह सबजेक्ट थोड़ा अटेन्शन देने की है।

तो अभी क्या करना है? लगन की अग्नि को जलाओ। करना ही है। इसके लिए एक बात में सभी पास भी हैं, जो हर एक समझता है कि बापदादा से हमारे दिल का प्यार 100 परसेन्ट है। 100 परसेन्ट प्यार है तो लम्बा हाथ उठाओ। (सभी ने उठाया) तो प्यार का रिटर्न क्या होता है? प्यार का रिटर्न होता है समान बनना, सम्पन्न बनना, सम्पूर्ण बनना। तो अभी बापदादा एक ड्रिल बताता है, सभी कहते हैं बापदादा दोनों से प्यार है, हाथ उठाया, होंगे तो नम्बरवार लेकिन हाथ उठाया तो बापदादा मानते हैं। दोनों से प्यार है ना। ब्रह्मा बाप से और शिव बाप से दोनों से प्यार है ना! दोनों से है? अच्छा, दोनों से है। बहुत अच्छा धन्यवाद। अच्छा, दोनों के समान बनने चाहते हो? हाथ नहीं उठाओ, कांध हिलाओ। अच्छा। दोनों से प्यार है तो शिव बाप है निराकारी, ठीक है और ब्रह्मा बाप है फरिश्ता। फरिश्ता है ना! तो कल से नहीं, आज से ही अभी से सारे दिन में दोनों बाप से प्यार है तो कभी अपने को निराकार बाप समान निराकारी स्थिति में अभ्यास करो, फालो फादर और कभी फरिश्ता बनकरके साकार रूप ब्राह्मण नहीं, ब्राह्मण तो हो ही, कर्म भले करो लेकिन कर्म करते भी फरिश्ता स्थिति में रहो तो कर्म का बोझ प्रभाव नहीं डालेगा। ब्रह्मा बाप से प्यार है तो ब्रह्मा बाप ने कर्म सब किया, निमित्त बना लेकिन ब्रह्मा बाप के ऊपर कितना बोझ था। आप कोई के ऊपर इतना बोझ नहीं है, है कोई, ब्रह्मा बाप से ज्यादा किसके ऊपर बोझ है, जिम्मेवारी है? वह हाथ उठाओ। कोई नहीं उठाता। तो ब्रह्मा बाप ने इतनी जिम्मेवारी निभाते हुए कार्य में कैसे रहा, कर्म में भी फरिश्ता रूप रहा ना! तो आपका भी ब्रह्मा बाप से प्यार है, तो कभी फरिश्ता रूप में रहो, कभी निराकार स्थिति में रहो, यह प्रैक्टिस, ब्रह्मा बाबा कहके ब्रह्मा बाप समान फरिश्ता बन जाओ और शिव निराकार बाप को याद कर निराकारी स्थिति में स्थित हो जाओ, यह कर सकते हो? यह कर सकते हो या मुश्किल है? जो कर सकते हैं बीच-बीच में, वह बीच-बीच में ऐसे करें जो लगातार हो जाए, अपने कर्म के हिसाब से जो आपकी दिनचर्या है उसके हिसाब से फिक्स करो। कम से कम सारे दिन में 12 बारी फरिश्ता बनो, 12 बारी निराकार स्थिति में स्थित रहो, यह कर सकते हो? हाथ उठाओ। कर सकते हो, मुश्किल नहीं है ना! सहज है ना! सहज है? सहज में हाथ उठाओ। अच्छा, करना है, यह पक्का करो।

सभी निश्चय करो हमको इसमें नम्बरवन होना है। नम्बरवार नहीं होना, नम्बरवन क्योंकि बापदादा के पास समय बहुत आता है। प्रकृति तो चिल्लाती है, बोझ सहन नहीं होता। माया भी विदाई लेने चाहती है लेकिन कहती है मैं क्या करूं, ब्राह्मण कोई न कोई ऐसा काम संस्कारों वश होकर करते हैं जो मुझे आह्वान करते हैं तो मुझे जाना ही पड़ता है। तो बापदादा क्या जवाब दे! इसलिए जैसे समय आगे बढ़ रहा है, अभी आप लोग सेवा में भी अन्तर देख रहे हो ना! सेवा का रिटर्न अभी सभी चाहते हैं, कुछ हो, कुछ हो। ब्रह्माकुमारियां जो कहती थी वह अभी ठीक हो रहा है। पहले कहते थे विनाश, विनाश नहीं कहो, अब तो कहते हैं कब होगा, आप ही तारीख बताओ। अभी सुनने चाहते हैं, पहले बहाना देते थे, तो यह भी फर्क हो रहा है ना! प्रैक्टिकल देख रहे हो ना इसलिए अभी जो बापदादा से वायदा किया है उसको निभाते रहना। ठीक है! इसलिए अभी लक्ष्य रखो होना ही है, करना ही है, समाप्ति को समीप लाओ। आप थोड़े हिलते हो ना तो समाप्ति भी दूर हो जाती है। आपको ही समाप्ति को समीप लाना है क्योंकि राज्य करने वाले तैयार नहीं होंगे तो समय क्या करेगा! इसलिए सब बहाना कारण, कारण शब्द को समाप्त करो। निवारण सामने लाओ। हाथ भले थोड़ों ने उठाया लेकिन आप सबका भी यही लक्ष्य है ना कि दु:खियों को सन्देश दे मुक्त करें। उन्हों को मुक्त करने के बिना आप मुक्ति में जा नहीं सकते। तो इन्हों को मुक्त करो क्योंकि बाप आया है ना तो सारे विश्व के बच्चों को वर्सा तो देंगे ना। आपको जीवनमुक्ति का वर्सा देंगे लेकिन सभी बच्चे तो है ना। उनको भी वर्सा तो देना है ना। तो उन्हों का वर्सा है मुक्ति, आपका वर्सा है जीवनमुक्ति। जब तक मुक्ति नहीं देंगे तो आप भी जा नहीं सकते। इसके लिए यह ड्रिल करो। 24 बारी। रात और दिन के 24 घण्टे हैं और 24 बार करना है, नींद के टाइम, नींद भले करो। बापदादा यह नहीं कहते कि नींद नहीं करो। नींद करो लेकिन दिन में बढ़ाओ। जब कोई फंक्शन करते हो तो सारा सारा दिन काम करते हो ना। जागते हो ना! अभी इस ड्रिल से सभी को सदा के लिए अपने पुरुषार्थ की गति तीव्र करनी है क्योंकि ब्रहुतकाल चाहिए। मानो पीछे कर भी लेंगे लेकिन बहुतकाल का भी सम्बन्ध है इसलिए सभी अटेन्शन दें मुझे करना है, कोई करे नहीं करे लेकिन मुझे एवररेडी बनना ही है।

अभी जल्दी-जल्दी करो। अचानक कुछ भी हो सकता है जो आपको सेवा करने का भी टाइम नहीं मिलेगा। सरकमस्टांश ऐसे भी बीच-बीच में आ सकते हैं इसीलिए जैसे तीव्र पुरुषार्थी ग्रुप बनाया है ना, ऐसे यह तीव्र सर्विस का ग्रुप बनाके तैयार करो। अच्छा!

चारों ओर के बाप के स्नेही, जो स्नेही होते हैं वह सहयोगी जरूर होते हैं, स्नेह का रिटर्न प्रत्यक्ष रूप वह हर कार्य में तन-मन-धन-जन में एक दो के सहयोगी जरूर होंगे। तो ऐसे स्नेही और सहयोगी बच्चे, जो सदा बाप के प्यार में लवलीन रहने वाले हैं, लव में नहीं, लेकिन लवलीन रहने वाले और सदा बाप के सर्व कार्य में समय संकल्प लगाने वाले, क्योंकि संगमयुग में समय और संकल्प की बहुत वैल्यु है, एक जन्म में अनेक जन्मों की प्रालब्ध बनाने वाले, ऐसे तीव्र पुरुषार्थी हर गुण, हर शक्ति को, हर समय अनुसार कार्य में लगाने वाले ऐसे गुण सम्पन्न, शक्ति सम्पन्न बच्चों को बहुत-बहुत पदम पदम गुणा यादप्यार और नमस्ते।