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17-04-69 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन


"आबू 'आध्यात्मिक संग्रहालय' का उद्घाटन"

सर्व स्नेही बच्चों को बाप की नमस्ते। आपका स्नेह किससे है? (कोई ने कहा बाप से, कोई ने कहा सर्विस से) और भी किससे स्नेह है? अभी भी एक बात रह गई है। बापदादा से स्नेह तो है, लेकिन साथ-साथ पुरुषार्थ से भी ज्यादा स्नेह रखना चाहिए। दैवी परिवार से स्नेह, सर्विस से स्नेह, बापदादा से स्नेह, यह तो है ही। लेकिन वर्तमान समय पुरुषार्थ से ज्यादा स्नेह रखना चाहिए। जो पुरुषार्थ के स्नेही होंगे वो सबके स्नेही होंगे। पुरुषार्थ से हरेक का कितना स्नेह है वो हरेक को चैक करना है। बापदादा से भी स्नेह इसलिए है कि वो पुरुषार्थ कराते हैं। प्रालब्ध से भी स्नेह तब होगा जब पहले पुरुषार्थ से स्नेह होगा। दैवी परिवार का भी स्नेह तब तक ले अथवा दे नहीं सकते जब तक पुरुषार्थ से स्नेह नहीं। अगर पुरुषार्थ से स्नेह है तो वो एक दो के स्नेह के पात्र बन सकते हैं। स्नेह के कारण ही यहाँ इकट्ठे हुए हो, लेकिन बापदादा के स्नेह में रहते हो। अब पुरुषार्थ से भी स्नेह रखना है। क्योंकि यही पुरुषार्थ ही तुम बच्चों की सारे कल्प की प्रालब्ध बनाता है। जितना बच्चों का स्नेह है उतना उससे बहुत अधिक बापदादा का भी है। जितना जो स्नेही है उतना उसको स्नेह का रेसपान्ड मिलता रहता है। अव्यक्त रूप से स्नेह को लेना है। अव्यक्त स्नेह का पाठ कहाँ तक पढ़ा है? वर्तमान समय का पाठ यही है। अव्यक्त रूप से स्नेह को लेना और स्नेह से सर्विस का सबूत देना है। यह अव्यक्त स्नेह का पाठ कहाँ तक पक्का किया है? अब क्या रिजल्ट समझते हो? आधे तक पहुँचे हो? मैजारटी की रिजल्ट पूछते हैं। (कोई ने कहा 25 कोई ने कहा 75, 25 और 75 में कितना फर्क है। मैजारटी 25 समझते हैं, ऐसी रिजल्ट क्यों है? इसका कारण क्या है? 25 अव्यक्त स्नेह है तो बाकी 75 कौन सा स्नेह है? मैजारटी की अगर 25 रिजल्ट रही तो जो भविष्य समय आने वाला है उसमें पास मार्क्स कैसे होगी? अब तो अव्यक्त स्नेह ही मुख्य है। अव्यक्त स्नेह ही याद की यात्रा को बल देता है। अव्यक्त स्नेह ही अव्यक्त स्थिति बनाने की मदद देता है। 25 यह रिजल्ट क्यों? कारण सोचा है? समय अनुसार अब तक यह रिजल्ट नहीं होनी चाहिए। समय के प्रमाण तो 75 होनी चाहिए। फिर ऐसी रिजल्ट बनाने के लिए क्या करेंगे? उसका तरीका क्या है? (अन्तर्मुखता) यह तो सदैव कहते हो अन्तर्मुख होना है। लेकिन ना होने का कारण क्या है?

बापदादा से, सर्विस से स्नेह तो है ही। लेकिन पुरुषार्थ से स्नेह कम है। इसका भी कारण यह देखा जाता है कि बहुत करके परिस्थितियों को देख परेशान हो जाते हैं। परिस्थितियों का आधार ले स्थिति को बनाते हैं। स्थिति से परिस्थिति को बदलते नहीं। समझते हैं कि जब परिस्थिति को बदलेंगे तब स्थिति होगी। लेकिन होनी चाहिए स्व-स्थिति की पावर जिससे ही परिस्थितियों बदलती हैं। वो परिस्थिति है, यह स्व-स्थिति है। परिस्थिति में आने से कमजोरी में आ जाते। स्व- स्थिति में आने से शक्ति आती है। तो परिस्थिति में आकर ठहर नहीं जाना है। स्व-स्थिति की इतनी शक्ति है जो कोई भी परिस्थिति को परिवर्तन कर सकती है। स्व-स्थिति की कमजोरी होने के कारण कहाँ-कहाँ परिस्थिति प्रबल हो जाती है। मैजारटी बच्चे यही कहते रहते हैं - बाबा इस बात को ठीक करो तो हम ऐसे बने। इस बात की रुकावट है। ऐसे कोई विरले हैं जो अपनी हिम्मत दिखाते हैं, कि इस परिस्थिति को पार करके ही दिखायेंगे। अर्जी डालते हैं, यह भी ठीक है लेकिन अर्जी के साथ-साथ जो शिक्षा मिलती है, उसको स्वरूप में लाते नहीं। सबकी अर्जियों की फाईल बहुत इकट्ठी हो गई हैं। जैसे धर्मराज के चौपड़े होते हैं ना। वैसे वर्तमान समय बाप- दादा पास बच्चों की अर्जियाँ बहुत हैं। हरेक का फाईल है। मुख्य बात तो सुनाई कि पुरुषार्थ से स्नेह रखना है। अपने को आप क्या कहते हो? ( पुरुषार्थी हैं) आप पुरुषार्थी हो फिर पुरुषार्थ को नहीं जानते हो, अपनी फाईल को जानते हो? अपना पुरुषार्थ क्या है उसका पता है? साकार रूप में फाईनल स्थिति देखी ना। तो साकार रूप में कर्म करके दिखाया तो उससे फाईनल स्टेज का पता पड़ा ना। फाईनल स्टेज के प्रमाण जो कुछ कमी देखने में आती है, उस कमी को शीघ्र निकालना ही पुरुषार्थ से प्यार है। धीरे-धीरे नहीं करना चाहिए। साकार का भी मुख्य गुण देखा वह कोई भी बात को पीछे के लिए नहीं छोड़ते थे। अभी ही करना है। जैसे ही वो "अभी करते थे" वैसे ही अभी करना है। ऐसे नहीं कि कब कर लेंगे, 10 व 15 दिन के बाद कर लेंगे। मधुबन जाकर पिछाड़ी को प्रैक्टिस कर लेंगे। ऐसे इन्तजार बहुत करते हैं। इन्तजाम को भूल जाते हैं। इन्तजाम नहीं करते। बातों का इन्तजार बहुत करते हैं। इन्तजार को निकाल इन्तजाम में लग जायेंगे फिर 75 रिजल्ट हो जायेगी। वर्तमान समय मैजारटी के पुरुषार्थ की रिजल्ट 75 से कम नहीं होनी चाहिए। कारण भी सुना रहे हैं, कोई समय का इन्तजार कर रहे हैं कोई समस्याओं का, कोई सम्बन्धों का, कोई फिर अपने शरीर का। लेकिन जैसे हैं, जो भी सामने हैं वैसी ही हालतो में इस ही शरीर में हमको सम्पूर्ण बनना है, यह लक्ष्य रखना है। अभी कुछ आधार होने के कारण अधीन बन जाते हैं। बातों के अधीन हैं। हरेक अपनी-अपनी कहानी अमृतवेले सुनाते हैं। कोई कहते हैं शरीर का रोग ना हो तो हम बहुत पुरुषार्थ करें। कोई कहते बन्धन हटा दो। लेकिन यह तो एक बन्धन हटेगा दूसरा आयेगा। तन का बन्धन हटेगा, मन का आयेगा, धन का आयेगा, सम्बन्ध का आयेगा फिर क्या करेंगे? यह खुद नहीं हटेंगे। अपनी ही शक्ति से हटाने हैं। कई समझते हैं बापदादा हटायेंगे या समय प्रमाण हटेंगे। परन्तु यह नहीं समझना है। अभी तो समय नजदीक पहुँच गया है, जिसमें अगर ढीला पुरुषार्थ रहा तो यह पुरुषार्थ का समय हाथ से खो देंगे। अभी तो एकएक सैकेण्ड, एक-एक श्वांस, मालूम है कितने श्वांस चलते हैं? अनगिनत है ना। तो एक-एक श्वांस, एक-एक सैकेण्ड, सफल होना चाहिए। अभी ऐसा समय है - अगर कुछ भी अलबेलापन रहा तो जैसे कई बच्चों ने साकार मधुर मिलन का सौभाग्य गंवा दिया, वैसे ही यह पुरुषार्थ के सौभाग्य का समय भी हाथ से चला जायेगा। इसलिए पहले से ही सुना रहे हैं। पुरुषार्थ से स्नेह रख पुरुषार्थ को आगे बढ़ाओ।

ऊपर से सारा खेल देखते रहते हैं। तुम भी आकर देखो तो बड़ा मजा आयेगा। बहुत रमणीक खेल बच्चों का देखते हैं। आप भी देख सकते हो। अगर अपनी ऊँच अवस्था में स्थित होकर देखो तो अपने सहित औरों का भी खेल देखने में आयेगा। बापदादा तो देखते रहते हैं। हंसी का खेल है। बड़े-बड़े महारथी शेर से नहीं डरते, मगर चींटी से डर जाते हैं। शेर से बड़ा सहज मुकाबला कर लेते, लेकिन चींटी को कुचलने का तरीका नहीं जानते। यह है महारथियों का खेल। घोड़े सवार पता है क्या करते हैं? (गैलप करते हैं) घोड़ेसवारों का भी खेल देखते हैं। महारथियों का तो सुनाया? घोड़ेसवार जो हैं - उन्हों की हिम्मत उत्साह बहुत है, पुरुषार्थ में कदम भी बढ़ाते हैं। लेकिन गैलप करते-करते (फिसल जाते हैं) फिसलते भी नहीं, गिरते भी नहीं, थकते भी नहीं। अथक भी हैं, चलते भी बहुत अच्छे हैं लेकिन जो मार्ग की सीन सीनरियॉ हैं उनमें आकर्षित हो जाते हैं। अपने पुरुषार्थ को चलाते भी रहते हैं लेकिन देखने के संस्कार जाती है। यह क्या कर रहे हैं, यह कैसे करते हैं, तो हम भी करें। रीस करते हैं। तो घोड़े सवारों में देखने का आकर्षण ज्यादा है। प्यादों की एक हंसी की बात है। खेल सुना रहे हैं ना। वो क्या करते हैं? होती है बहुत छोटी सी बात लेकिन उसको इतना बड़ा पहाड़ बना देते। पहाड़ को राई नहीं। राई को पहाड़ बनाकर उसमें खुद ही परेशान हो जाते हैं। है कुछ भी नहीं, उनको सब कुछ बना देते। ऊँचा-ऊँचा देख हिम्मतहीन हो जाते हैं। फिर भी वर्तमान समय जो भी तीनों ही हैं उनमें से आधा क्वालिटी ऐसी है जो अपने को कुछ बदल रहे हैं। इसलिए फिर भी बापदादा हर्षित होते हैं, उन्हों की हिम्मत हुल्लास, कदम आगे बढ़ता हुआ देख। हरेक से पूछे कि कौन महारथी घोड़सवार प्यादे हैं तो बता सकेंगे?

अच्छा - ओम् शान्ति।


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