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08-05-69 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन


"मंसा वाचा कर्मणा को ठीक करने की युक्ति"

आज बाप खास एक विशेष कार्य के लिये आये हैं। यहाँ जो भी सभी बैठे हैं वह सभी अपने को निश्चय बुद्धि समझते हैं? नम्बरवार हैं। भले नम्बरवार हैं लेकिन निश्चयबुद्धि हैं? निश्चय बुद्धि का टाइटिल दे सकते हैं। निश्चय में नम्बर होते हैं वा पुरुषार्थ में नम्बर होते हैं? निश्चय में कब भी परसेन्टेज नहीं होती है, न निश्चय में नम्बरवार होते हैं। पुरुषार्थ की स्टेज में नम्बर हो सकते हैं। निश्चय बुद्धि में नम्बर नहीं होते। वा तो है निश्चय वा संशय। निश्चय में अगर जरा भी संशय है चाहे मन्सा में, चाहे वाचा में अथवा कर्मणा में, लेकिन मन्सा का एक भी संकल्प संशय का है तो संशय बुद्धि कहेंगे। ऐसे निश्चय बुद्धि सभी हैं? निश्चय बुद्धि की मुख्य परख कौन-सी है? पर- खने की कोई मुख्य बात है? आपके सामने काई नया आये उनकी हिस्ट्री आदि आप ने सुनी नहीं है, उनको कैसे परख सकेंगे? (वायब्रेशन आयेगा) कौन-सा वायब्रेशन आवेगा जिससे परख होगी? अभी यह प्रैक्टिस करनी है। क्योंकि वर्तमान समय बहुत प्रजा बढ़ती रहेगी। तो प्रजा और नजदीक वाले को परखने के लिए बहुत प्रैक्टिस चाहिए। परखने की मुख्य बात यह है कि उनके नयनों से ऐसा महसूस होगा जैसे कोई निशाने तरफ किसका खास अटेन्शन होता है तो उनके नयन कैसे होते हैं? तीर लगाने वाले वा निशाना लगाने वाले जो मिलेट्री के होते हैं, वो पूरा निशाना रखते हैं। उनके नयन, उनकी वृत्ति उस समय एक ही तरफ होगी। तो जो ऐसा निश्चय बुद्धि पक्का होगा उनके चेहरे से ऐसे महसूस होगा जैसेकि कोई निशान-बाज है। आप लोगों को मुख्य शिक्षा मिलती है एक निशान को देखो अर्थात् बिन्दी को देखो। तो बिन्दी को देखना भी निशान को देखना है। तो निश्चय बुद्धि की निशानी क्या होगी? पूरा निशाना होगा। निशान जरा भी हिल जाता है तो फिर हार हो जाती है। निश्चय बुद्धि के नयनों से ऐसे महसूस होगा जैसे देखते हुए भी कुछ और देखते हैं। उनके बोल भी वही निकलेंगे। यह है निश्चय बुद्धि की निशानी। निशान-बाज की स्थिति नशे वाली होती है तो निश्चय बुद्धि की परख है निशाना और उनकी स्थिति नशे वाली होगी। यह प्रैक्टिस अभी करो। फिर जज करो हमारी परख ठीक है वा नहीं। फिर प्रैक्टिस करते-करते परख यथार्थ हो जावेगी। दृष्टि में सृष्टि कहा जाता है ना। तो आप उनकी दृष्टि से पूरी सृष्टि को जान सकते हो। 

मन्सा-वाचा-कर्मणा तीनों को ठीक करने लिये सिर्फ तीन अक्षर याद रहे। वह तीन अक्षर कौन से हैं? यह तीन अक्षर रोज मुरली में भी आते है। मन्सा के लिए है निराकारी। वाचा के लिए है निरहंकारी। कर्मणा के लिए है निर्विकारी। देवताओं का सबूत वाचा और कर्मणा का यही है ना। तो निराकारी, निरहंकारी और निर्विकारी यह तीन बातें अगर याद रखी तो मन्सा-वाचा-कर्मणा तीनों ही बहुत अच्छे रहेंगे। जितना निराकारी स्थिति में रहेंगे उतना ही निरहंकारी और निर्विकारी भी रहेंगे। विकार की कोई बदबू नहीं रहेगी। यह है मुख्य पुरुषार्थ। यह तीन बातें याद रखने से क्या बन जावेंगे? त्रिकालदर्शी भी बन जायेंगे। और भविष्य में फिर विश्व के मालिक। अभी बनेंगे त्रिलोकीनाथ और त्रिकालदर्शी। त्रिलोकीनाथ का अर्थ तो समझा है। जो तीनों लोकों के जान के सिमरण करते हैं वह हैं त्रिलोकीनाथ क्योंकि बाप के साथ आप सभी बच्चे भी हैं। अच्छा !


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