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16-07-69 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन


मधुबन निवासी गोपों के साथ अव्यक्त बापदादा की अव्यक्त रूह-रूहान” 

आज किसलिये निमन्त्रण दिया है? मिलने के लिए ही बुलाया है या और कुछ लक्ष्य है? आप सभी इस संगठन में किस निमन्त्रण पर आये हो? मधुबन निवासी गोपों का किस लक्ष्य से यह समागम हुआ है?बापदादा तो इसलिए आये हैं कि आप सभी बच्चों का परिवर्तन समारोह है। तो परिवर्तन समारोह पर आये हुए हैं। भट्टी में किस लिए बैठे थै? परिवर्तन के लिए। तो आज परिवर्तन समरोह में मिल रहे हैं। परिवर्तन की उत्कंठा सभी में बहुत अच्छी है। उत्साह भी है, हिम्मत भी है। आज की भट्टी के चार्ट से ये देखने में आ रहा है। इन गोपों के परिवर्तन के उत्साह से आपको (कुमारका दादी को) क्या-क्या देखने में आता है? जैसे आंधी को देखकर मालूम पड़ता है कि वर्षा आने वाली है। इस परिवर्तन के उमंग से आप क्या समझती हो? परि- वर्तन क्या पहचान देता हैं? इस परिवर्तन का उमंग खास इस बात की पहचान देता ह कि अभी प्रत्यक्षता का समय नजदीक है। पहले प्रत्यक्षाता होगी फिर इस सृष्टि पर स्वर्ग प्रख्यात होगा। तो यह पहचान देता है प्रत्यक्षता की। वर्तमान समय देखा जाता है कि हरेक वत्स अपनी-अपनी प्रत्यक्षता प्रत्यक्ष रूप में ला रहे हैं। पहले गुप्त था। जैसे सूर्य के रोशनी में सितारे छिपे हुये होते हैं। जब सूर्य दूसरे किनारे चला जाता है तो सितारों की चमक प्रत्यक्ष होती है। तो अब ज्ञान-सूर्य व्यक्त किनारा छोड़ अव्यवत्त वतन में खड़े हैं तो आप व्यक्त देश में सितारों की प्रत्यक्षता देखने में आती है। पहले से अभी एक दो को ज्यादा पहचानते हो ना। जैसे कहते हैं ना एक-एक स्टार में दुनिया है। लेकिन यह पता नहीं हैं कि एक-एक स्टार की कौन सी दुनिया है। इस आकाश के सितारों में कोई दुनिया नहीं है। लेकिन यह धरनी के चैतन्य सितारों में एक-एक दुनिया है। अपनी दुनिया का साक्षात्कार होता जाता है? थोड़े समय में ही देखेंगे जो संगम का सम्पूर्ण रूप आप सभी का है। मालूम है संगम का सम्पूर्ण रूप कौनसा है? शक्तियों और पाण्डवों के रूप में। तो यह संगम का जो सम्पूर्ण स्वरूप है वह अब प्रत्यक्ष आप सभी को अपने में महसूस होगा। मालूम पड़ेगा हमारे कौन से भक्त हैं, कौन सी प्रजा है। जो प्रजा होगी वह तो नजदीक आयेंगे और जो भक्त होंगे वह आखरीन पिछाड़ी में चरणों पर झुकेंगे। तो हरेक सितारे के अन्दर जो राजधानी अथवा दुनिया बनी हुई है, वह अब प्रत्यक्ष रूप लेगी। जब वह प्रत्यक्षता होगी तब सभी अहो प्रभु का नारा लगायेंगे। अब यह समय नजदीक आ रहा है। इसलिए अब जल्दी परिवर्तन को लाना है।

आप रचयिता हो ना! जैसा रचयिता होगा वैसी रचना होगी। रचयिता को अपने रचना का ध्यान रखना है। इस समय पर बापदादा को भी हर्ष हो रहा है - स्नेह और साहस यह दो चीज देख- कर के हर्षित हो रहे हैं। हरेक में स्नेह और साहस है। उसका सिर्फ बीज नहीं लेकिन बीज का कुछ प्रत्यक्ष फल भी देखने में आता है। वह प्रत्यक्षफल देखकर हर्षित होते हैं। लेकिन जब फल निकलता है तो फिर उनकी बहुत सम्भाल करनी पड़ती है। तो आप भी इस फल की बहुत सम्भाल रखना। क्योंकि यह फल बापदादा को ही स्वीकार कराना है। लेकिन यह खबरदारी रखनी है कि बीच में माया रूपी चिडिया फल को जूठा न कर देवे। फल जब पक जाता हैं तो फिर पक्षी उसको खाने की चिड़िया बहुत कोशिश करते हैं तो यह माया भी इस फल को खाने के लिए कोशिश करेगी। लेकिन आप लोगों ने किसके लिए फल पकाया है! तो सम्भाल भी पूरी करनी है। अभी अजुन फल निकला है पूरा पक जायेगा फिर स्वीकार करेंगे। तब तक सम्भाल करनी है। फल के सम्भाल के लिए क्या प्रयत्न करेंगे? उसका क्या साधन है आपके पास? जरा भी फल अगर जूठा हो गया फिर स्वीकार थोड़ेही होगा। अब उम्मीद तो बहुत अच्छी है। सभी के मस्तक पर आत्मा का सितारा तो देखने में आता ही है लेकिन उसके साथ-साथ आपके मस्तक पर क्या चमक रहा है? उम्मीदों का सितारा चमकता हुआ बाप दादा देख रहे हैं। सिर्फ इस सितारे के आगे बादल को आने नहीं देना। नहीं तो सितारा छिप जायेगा। यह जो उम्मीद का सितारा चम- कता हुआ देखने में आ रहा है उसकी परवरिश करते रहना। कभी भी कोई कार्य में चाहे स्थूल, चाहे सूक्ष्म एक तो कभी साहस नहीं छोड़ना दूसरा आपस में स्नेह कायम रखना। तो फिर पाण्डवों की जय-जयकार हो जायेगी। जय-जयकार के नारे सुनने में आयेगें। अभी तो कभी कुछ कभी कुछ हो रहा है। जब जय-जयकार हो जाती है तो फिर नाटक समाप्त हो जाता है। फिर आप सभी को अव्यक्त स्थिति का झंडा दूर से देखने में आयेगा। आप सभी की अव्यक्त, एक्य रस स्थिति का झंडा सारी दुनिया को लहराता हुआ देखने में आयेगा। आज जो यह परिवर्तन की प्रतिज्ञा का कंगन बांधा है - यह अविनाशी रखना। कंगन उतारना नहीं है। कोई भी कंगन बाधते हैं तो जब तक वह कार्य सफल न हो तब तक उतार नहीं सकते हैं। तो यह कंगन भी कभी उतारना नहीं है।

आगे चल कर बहुत अच्छी सीन-सीनरियॉ आयेंगी। लेकिन वह सीन-सीनरियॉ आपका परिवर्तन ही नजदीक लायेगा। अपनी वैल्यू का भी पता पड़ेगा जब अपनी वैल्यु का पता पड़ेगा तब वह नशा चढ़ेगा। अभी कभी क्या वैल्यु रखते हो कभी क्या वैल्यु रखते हो। भाव में हेर-फेर होते हैं। जैसे कोई चीज निकलती है तो पहले भाव थोड़ा नीचे ऊपर होता है फिर फाइनल हो जाता है। अपनी वैल्यू का अभी फाइनल मालूम नहीं पड़ा है। कभी समझते हो बहुत वैल्यू है, कभी कम समझते हो। लेकिन यथार्थ हर एक की वैल्यू क्या है - वह अभी जल्दी मालूम पड़ेगा।

यह मधुबन जहाँ आप बैठे हो यह सारी सृष्टि के बीच में क्या है? मधुबन है बापदादा का सारी दुनिया के बीच में बड़े प्यार से बनाया हुआ शो केस। जैसे शोकेस में बहुत अच्छी-अच्छी चीज़ें रखते हैं और सभी चीजों से ऊंची चीज शोकेश में रखते हैं। तो मधुबन सारी दुनिया के लिए शोकेस है। उस शोकेस में आप अमूल्य रत्न रखे हुए हो। यह मालूम है कि हम मधुबन शोकेस में अमूल्य रत्न हैं? शोकेस में जो चीज़ें रखी जाती हैं उसका खास ध्यान रखा जाता है। तो आप सभी भी शोकेस के मुख्य रत्न हो। आप को देखकर सभी समझेंगे कि अन्दर माल क्या है। अगर एक बात याद रखेंगे तो शोकेस से शो करेंगे। ' 'जो कर्म हम करेंगे हमको देख और करेंगे '' हरेक को समझना चाहिये मैं अकेला नहीं हूँ, मेरे आगे पीछे सारी राजधानी है। मेरी प्रजा मेरे भक्त मुझे देख रहे हैं। हम अकेले नहीं हैं। अकेला जो काम किया जाता है उसका इतना विचार नहीं रहता है। अभी अपने को, अपनी प्रजा और भक्तों के बीच में समझना है। सभी आप को फालो करेंगे। जो भी सेकेण्ड-सेकेण्ड कदम चलता है वह तुम्हारा संस्कार आपको जो भक्त और प्रजा है, उनमें भरता जायेगा। जैसे माँ के पेट में गर्भ होता है तो कितनी सम्भाल करते हैं। क्योंकि माँ जो करेगी जो खायेगी वह संस्कार बच्चे में भरेंगे। तो आप सभी को भी इतना ध्यान रखना है जो कर्म हम करेंगे हमको देख हमारी प्रजा और हमारे द्वापर से कलियुग तक के भक्त भी ऐसे बनेंगे। मंदिर भी ऐसा बनेगा। मूर्ति भी ऐसी बनेगी, मंदिर को स्थान भी ऐसा मिलेगा। इसलिए हमेशा लक्ष्य रखो कि हम अभी अकेले नहीं हैं। हम मास्टर रचयिता के साथ रचना भी है। माँ बाप जब अकेले होते हैं तो जो भी करें। लेकिन अपनी रचना के सामने होते हैं तो कितना ध्यान देते हैं। तो आप भी रचयिता हो! जो रचयिता करेंगे वही रचना करेगी। जब अपने ऊपर जिम्मेवारी समझेंगे तो जिम्मेवारी पड़ने से अलबेलापन और आलस्य खत्म हो जायेगा। कौन सी जिम्मेवारी? जो कर्म हम करेंगे। हरेक सितारे को अपनी दुनिया की परख रखनी है। फिर कोई की छोटी दुनिया है, कोई की बड़ी दुनिया है।

समारोह किया ही इसलिए जाता है कि जीवन भर के लिए यादगार बन जाये। यह समारोह भी इसलिए है। आज का दिन यादगार है। समारोह में निशानी दी जाती है ना। बापदादा कौन सी निशानी देते हैं? बाप दादा दो बातों की सौगात देते हैं - खास मधुबन वालों को। शिक्षा तो मिली है कि साहस और स्नेह नहीं छोड़ना है। सौगात क्या दे रहे हैं? (1) एक ही लगन में हर वक्त रहना। हमारा तो एक दूसरा न काई। और (2) ऐकानामी में रहना। एक की याद और एकानामी। यह दो सौगात आज के समारोह की है। कितना भी कोई अपनी तरफ खीचें लेकिन एक के सिवाय दूसरा न कोई। यह है मन्सा की बात। और एकानामी है कर्मणा की। तो मन्सा और कर्मणा दोनों ही ठीक रहे तो वाणी ठीक रहेगी। यह दो बातें खास ध्यान पर रखनी है। जैसे साकार रूप में भी देखा ना कि एक लग्न और एकानामी। इसलिए याद है मन्त्र कौन सा सुनाते थे? कम खर्च बालानशीन। एकानामी के साथ यह मन्त्र भी नहीं भूलना। एकानामी भी हो, साथ-साथ जितनी एकानामी उतना ही फ्राक दिल भी हो। फ्राक दिल में एकानामी समाई हुई हो। इसको कहा जाता है कम खर्च बालानशीन।

आप और सभी से एकस्ट्रा भाग्यशाली हो क्यों? कहते हैं ना कि जिनके घर में बहुत मेहमान आते हो वह बहुत भाग्यशाली होते हैं। तो तुम एकस्ट्रा भाग्यशाली हो क्योंकि सभी से ज्यादा मेहमान यहा आते हैं। लेकिन मेहमाननिवाजी भी करनी पड़ती है। मेहमाननिवाजी ऐसी करनी है जो अपने घर से पूरा ही मेहमान हो जाये। आप की मेहमाननिवाजी उनको सदा के लिए मेहमान बना दे। बापदादा साकार में यह करके दिखाते थे। एक दिन की मेहमाननिवाजी में पूरे जीवन के मेहमान बनाना। ऐसी मेहमाननिवाजी करनी है। इसको कहा जाता है सन शोज फादर। अच्छा- इस क्लास के अन्दर सभी से ज्यादा पुरुषार्थी कौन है? नम्बरवन कौन है? एक दो से सभी अच्छे हैं। यह तो कमाल है। यही ग्रुप है जो सभी ने नम्बरवन नम्बर उठाया है। क्योंकि कोई ने किस बात में विशेष पुरुषार्थ किया है, कोई ने किस बात में किया है। इसलिये सभी नम्बरवन हैं। इस ग्रुप ने यह नम्बरवन का ठप्पा अपने ऊपर लगाया है।

यह नम्बरवन का ठप्पा नहीं भूलना। मुख्य चार बातें नहीं भूलनी है। एक तो शिक्षा, सावधानी, ठप्पा और एक दो को आगे कर उन्नति को पाना। यह चार बातें कभी भूलनी नहीं है।

 

अच्छा !!!


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