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23-07-69          ओम शान्ति       अव्यक्त बापदादा          मधुबन


सफलता का आधार परखने की शक्ति 

बापदादा एकएक को देखते हुए क्या देखते हैं? बापदादा हर एक में चार बातें देख रहे हैं । वो कौन सी चार बातें हैं? (हरेक ने अपना-अपना विचार सुनाया) एक तो ताज देख रहे थे । दूसरा तख्त तीसरा तदबीर और चौथा तकदीर । यही चार चीज़ें हर एक में देख रहे हैं । काम का ताज कौनसा होता है? मालूम है? तो आज बापदादा तख्तनशीन वा ताजधारी वत्सों की सभा में आये हैं । ताजधारियों को ही इस संगठन में बुलाया है । लेकिन हर एक का ताज अपना-अपना तथा यथाशक्ति ही है । यह तो देख रहे थे कि इस काम में कौन-कौन किस-किस ताज तख्तधारी बन बैठे हैं । किस-किस ने कितना बड़ा ताज धारण किया है वा छोटा धारण किया है । और ताज को सदा ही सिर पर रखकर चलते हैं वा कभी-कभी ताज को किनारे रख देते हैं । आप सभी भी अपने आपको जानते हो ना । क्योंकि सभी चुने हुए रत्न हैं तो इतनी पहचान तो जरूर होगी ही । अपनी तदबीर और तकदीर की परख है? आप अपने को पूरा परख सकते हो? समझो मिसाल के तौर पर आप एडवांस पार्टी में जाते हो तो अभी-अभी आपके पुरुषार्थ प्रमाण आपकी तकदीर क्या होगी? उनको समझते हो? अपने वर्तमन पुरुषार्थ और तकदीर को जानते हो? जब अपने को परख सकोगे तभी तो दूसरों को परख सकोगे । यह जानने की भी जरूरत है । क्योंकि अब समय ही ऐसा आ रहा है जो कि परखने की शक्ति की आपको अति आवश्यकता है! सर्विस में सफलता पाने का मुख्य साधन ही यह है । जैसे-जैसे परखने की शक्ति तीव्र हो जायेगी, वैसे-वैसे ही सफलता भी मिलती जायेगी । परख पूरी ना होने कारण जो उसको चाहिए, जिस रूप से उनकी तकदीर जग सकती है वो रूप उनको नहीं मिलता है । इसलिए ही सर्विस की सफलता कम मिलती है । कम सर्विस करने वाले की रिजल्ट क्या देखने में आती है कि प्रजा तो बहुत बन जाती है, वारिस बहुत कम । वारिस कम निकलने का मतलब ही है कि उनकी रग को पूरा परख नहीं सकते हो । मरीज की पूरी परख होती है तभी तो ठीक औषधि मिलती है ना । फिर रोग भी खत्म हो जाता हैं । रोग खत्म हुआ फिर क्या होगा?

खास जो निमित्त बने हुये पाण्डव हैं उनको भविष्य में आने वाली बातों को परखने की शक्ति चाहिए और निर्णय करने की शक्ति भी चाहिये । निर्णय के बाद फिर निवारण की शक्ति चाहिए । तभी सामना कर सकेंगे और सामना करने के बाद यज्ञ की प्रत्यक्षता की सफलता पाओगे । आपको बाबा ने किसलिये बुलाया है? हिसाब किया जाता है ना । सीढ़ी उतरने और चढ़ने का ज्ञान सिखाने लिये बुलाया है? अब किस बात में उतरना है और किस बात में चढ़ना है । बडप्पन तो पकड़ लिया है, मगर बडप्पन होते हुये भी जहाँ पर छोटेपन की सीढ़ी उतरना होता है वहाँ पर फट उतर नहीं सकते हो । एक सेकेण्ड में मालिक और एक सेकेण्ड में बालकपने की आव- श्यकता है । जहाँ पर बालक बनना चाहिए वहाँ पर फिर मालिकपन भी कुछ देखने में आता है । जैसा समय वैसा ही स्वरूप कैसे बनाना चाहिए । वो ही सिखाने के लिये बुलाया है । मिसाल के तौर पर आप कहीं भी संगठन के बीच में रहते हो । संगठन में कोई भी बात होती है । तो उसमें विचार देने के समय मालिक बन कर विचार देना तो बहुत अच्छा है । लेकिन जहाँ पर संगठन का सवाल आता है वहाँ पर निमित्त बने हुए भाई बहिने जो फाइनल करते हैं, उस समय फिर अपनी बुद्धि को बिल्कुल ही बालकपन में ले आना चाहिए । बालकपने की क्वालिफिकेशन क्या होती है? वही पर फोर्स में बोलेंगे फिर वही पर ही बिल्कुल निरसंकल्प बन जायेंगे तो इसी रीति संगठन के बीच में निमित्त बने हुए के सामने अपनी मालिकपने की बुद्धि बनाकर राय देकर फट से बालकपने की बुद्धि बना लेनी है । इसी में ही फायदा भी है । लेकिन जहाँ भी मालिकपन होता है उसकी रिजल्ट क्या होती है । एक तो समय खराब होता है और शक्ति भी वेस्ट जाती है । और जो एक दो में स्नेह बढ़ना चाहिए वह कम होना संभव हो जाता है । इसलिए आप लोग जैसे कि जिम्मेवारियों लेते जायेंगे वैसे-वैसे आपको इस सीढ़ी को उतरने और चढ़ने की आवश्यकता होगी । तो इन एडवांस भविष्य सर्विस की सफलता लिये यह शिक्षा दे रहे हैं । आप सब अनुभवी भी हैं । समय प्रति समय हर एक छोटा, बड़ा अपनी शक्ति और स्वमान को रखने की कोशिश करता है । और आगे चल कर यह कुछ समस्या ज्यादा सामने आने वाली हैं इसलिए ही जो निमित्त बने हुए हैं उनको बहुत निर्माणचित्त बनना पड़ेगा। निर्माण अर्थात् अपने मान का भी त्याग । त्याग से फिर और ही ज्यादा भाग्य मिलता है । जितना आप त्याग करेंगे उतना और ही आपको स्वमान मिलेगा । जितना अपना स्वमान खुद रखवाने की कोशिश करेंगे उतना ही स्वमान गंवाने का कारण बन जायेंगे । इसलिए बालक और मालिकपने की सीढ़ी को जल्दी-जल्दी उतरो और चढ़ो इस अभ्यास को बढ़ाना है । इसलिए ही आपको बुलाया है । अब इसमें सफलता तो सभी होगी जबकि परिस्थिति को परखने की शक्ति होगी । परिस्थिति को परखने से फिर परि- णाम ठीक निकलता है । परखते नहीं हैं तो परिणाम उल्टा हो जाता है ।

परखने की शक्ति बढ़ाने का क्या पुरुषार्थ है? दिल की सफाई से भी इस बात में बुद्धि की सफाई जास्ती चाहिए । संकल्प की जो शक्ति है उनको ब्रेक लगाने की पॉवर हो । मन का संकल्प वा बुद्धि की जजमेंट जो भी होती है । तो मन और बुद्धि दोनों को एक तो पांवरफुल ब्रेक चाहिए और मोड़ने की भी शक्ति चाहिए । यह दोनों ही शक्तियों की बहुत जरूरत हैं । इसी को ही याद की शक्ति वा अव्यक्त शक्ति कहा जाता हैं । अगर ब्रेक ना दे सकेंगे तो भी ठीक नहीं । अगर टर्न नहीं कर सकेंगे तो भी ठीक नहीं । तो ब्रेक देने और मोड़ने की शक्ति होगी तो बुद्धि की शक्ति व्यर्थ नहीं गंवायेंगे । इनर्जी वेस्ट ना होकर जमा होती जायेगी । जितनी जमा होगी उतना ही परखने की, निर्णय करने की शक्ति बढ़ेगी । यह भी अभ्यास भट्टी में करना चाहिए । तो अपने मन और बुद्धि को कहाँ तक ब्रेक लगा सकते हो और मोड़ सकते हो? अपने को चेक करना है । कोई बात में एक्सीडेन्ट होने के भी यही दो कारण होते हैं खास पाण्डवों प्रति, बापदादा का यही विशेष इशारा हैं ।

अच्छा, भट्टी में तो बहुत कुछ सुना होगा ऐसे तो नहीं कि बहुत सुनते हो तो बिन्दु स्वरूप में रहना मुश्किल हो जाता हैं? परन्तु बिन्दु रूप में स्थित रहने की कमी का कारण यही हैं कि पहला पाठ ही कच्चा हैं । कर्म करते हुए अपने को अशरीरी आत्मा महसूस करें । यह सारे दिन में बहुत प्रैक्टिस चाहिए । प्रैक्टिकल में न्यारा होकर कर्तव्य में आना । यह जितना-जितना अनुभव करेंगे उतना ही बिन्दु रूप में स्थित होते जावेंगे । परन्तु यह अटेन्शन कम रहता है | आप कहेंगे समय नहीं मिलता है लेकिन समय तो निकाल सकते हो । अगर लक्ष्य है तो जैसे कोई विशेष काम पर जाता है तो उसके लिए आप खास ख्याल रखकर भी समय निकालते हो ना । यही काम का थोड़ा समय जो रहा हुआ है उसमें यह विशेष काम है । विशेष काम समझकर बीच-बीच में समय निकालो तो निकल सकता है । परन्तु अभ्यास नहीं है इसलिए सोचते ही सोचते समय हाथों से चला जा रहा है । आप ध्यान रखो तो जैसी-जैसी परिस्थिति उसी प्रमाण अपनी प्रैक्टिस बढ़ा सकते हो । इस अभ्यास में तो सभी बच्चे हैं । वास्तव में बिन्दु रूप में स्थित होना कोई मुश्किल बात नहीं है । जितना-जितना न्यारा बनेंगे तो बिन्दु रूप तो है ही न्यारा । निराकार भी है । तो न्यारा भी है आप भी निराकारी और न्यारी स्थिति होंगे तो बिन्दु रूप का अनुभव करेंगे । चलते-फिरते अव्यक्त स्थिति का अनुभव कर सकते हो । प्रैक्टिस ऐसी सहज हो जायेगी कि जो जब भी चाहो तभी अव्यक्ति स्थिति में ठहर जाओगे । एक सेकेण्ड के अनुभव से कितनी शक्ति अपने में भर सकते हो । वह भी अनुभव करेंगे और ब्रेक देने मोड़ने की शक्ति भी अनुभव में आ जायेगी । तो बिन्दु रूप का अनुभव कोई मुश्किल नहीं है । संकल्प ही नीचे लाता है, संकल्प को ब्रेक देने की पावर होगी तो ज्यादा समय अव्यक्त स्थिति में स्थित रह सकेंगे । अपने को आत्मा समझ उस स्वरूप में स्थित होना है । जब स्व-स्थिति में स्थित होंगे तो भी अपने जो गुण हैं वह तो अनुभव होंगे ही । जिस स्थान पर पहुँचा जाता है उसके गुण ना चाहते हुए भी अनुभव होते हैं । आप किसी शीतल स्थान पर जायेंगे तो ना चाहते हुए भी शीतलता का अनुभव होगा । यह भी ऐसा ही है ।

आत्म अभिमानी अर्थात् बाप की याद । आत्मिक स्वरूप में बाबा की याद नहीं रहे यह तो हो नहीं सकता है । जैसे बापदादा दोनों अलग-अलग नहीं हैं वैसे आत्मिक निश्चय बुद्धि से बाप की याद भी अलग नहीं हो सकती है । क्या एक सेकेण्ड में अपने को बिन्दु रूप में स्थित नहीं कर सकते हो? अगर अभी सबको कहें कि यह ड्रिल करो तो कर सकते हो? बिन्दु रूप में स्थित होने से एक तो न्यारेपन का अनुभव होगा । और जो आत्मा का वास्तविक गुण है उसका भी अनुभव होगा । यह भी प्रैक्टिस करो क्योंकि अब समय कम है । कार्य ज्यादा करना है । अभी समय जास्ती और काम कम करते हो । आगे चल करके तो समय ऐसा आने वाला है । जो कि आप सभी की जीवन तो बहुत बिजी हो जायेगी । और समय कम देखने में आयेगा । यह दिन और रात दो घण्टे के समान महसूस करोगे । अब से ही यह प्रैक्टिस करो कि कम समय में काम बहुत करो । समय को सफल करना भी बहुत बड़ी शक्ति है । जैसे अपनी इनर्जी वेस्ट करना ठीक नहीं है । वैसे ही समय को भी वेस्ट करना ठीक नहीं है । एक-एक की प्रजा प्रख्यात होगी । जब प्रजा प्रख्यात होगी तब पद भी प्रख्यात होगा, हर एक की प्रजा और भक्त प्रख्यात होंगे । भविष्य पद के पहले संगम की सर्विस में सफलता स्वरूप का यादगार प्रख्यात होगा । भविष्य पद प्रख्यात होगा । ऐसा समय आने वाला है जो कि आप अपनी कमाई नहीं कर सकोगे परन्तु दूसरों के लिये बहुत बिजी हो जाओगे । अभी अपनी कमाई का बहुत थोड़ा समय है । फिर दूसरों की सर्विस करने में अपनी कमाई होगी । अभी यह जो थोड़ा समय मिला है उसका पूरा-पूरा लाभ उठाओ । नहीं तो फिर यह समय ही याद आयेगा इसलिए ही जैसे भी हो जहाँ पर भी हो, परिस्थितियां नहीं बदलेंगी । यह नहीं सोचना कि मुसीबतें हल्की होंगी फिर कमाई करेंगे, यह तो दिन प्रति दिन और विशाल रूप धारण करेंगी परन्तु इनमें रहते हुए भी अपनी स्थिति की परिपक्वता चाहिए । इसलिए ही समय का ध्यान और अपने स्वरूप की स्मृति और इसके बाद फिर स्थिति । इसका ध्यान रखना है अच्छा जिम्मेवारी का ताज बताया तो तख्त कौन सा था? नम्रचित्त का तख्त । जिस पर ही विराजमान होने से सारे काम ठीक कर सकेंगे । शक्ति सेना को तो एक रस का तख्त दिया था । और पाण्डव सेना को निर्माणचित्त का दिया था । उस पर बैठ और जिम्मेवारी का ताज धारण कर भविष्य की पदवी बनाओ । तख्त से उतरना नहीं इसी पर बैठकर काम करोगे तो कार्य सफल होगा । देखो सारे दिन में जो आप काम करते हो उसमें चार बातें कौनसी है जो कि आपके साथ रहती हैं । कामन और स्थूल बात पूछता हूँ । एक तो कुर्सी साथ रहती है और दूसरा कलम, तीसरी फाइल चौथी भागदौड़ । इन चारों को लौकिक से अलौकिक में लाओ । कुर्सी पर जब बैठो तो तख्त याद करो, कलम उठाओ तो कमल के फूल को याद करो । कमल का फूल बनकर कलम चलानी है । और फाइल को देखकर अपना पोतामेल याद करो कि मेरी फाइल में बापदादा अभी क्या सही करते होंगे । और भागदौड़ तो है ही सीड़ी से उतरना और चढ़ना-यह प्रैक्टिस करो तो जहाँ पर भी बुद्धि को लगाना चाहता हूँ, लगती भी है कि नहीं, वैसे ही जैसे कि पाँव जहाँ भी चलाने चाहो, चलते हैं ना । इसी प्रकार से आपकी बुद्धि भी पाँव मिसल हो जायेगी । अब बुद्धि को लौकिक से अलौकिक बातों में परिवर्तन करना है । तो अवस्था में भी परिवर्तन आ जायेगा ।

इस संगठन के रत्नों में क्या विशेष खूबी है? एक तो सभी स्नेही हैं । और दूसरा मैजारिटी सरेण्डर बुद्धि हैं । तीसरा सर्विस के लिए हर वक्त तैयार रहते हैं । इसलिए ही एवररेडी है । अब जिम्मेवारी का ताज मिलता है उनमें इन सब विशेषताओं को रत्नों की तरह जड़ना है । तभी जिम्मेवारी को पूरी रीति संभाल सकोगे । यह गुण ताज की मणियाँ हैं अर्थात् शोभा हैं । इसको कायम रखना है । जैसा कर्म आप करेंगे आपको ही देख कर सभी फालो करेंगे । एक स्लोगन और याद करना जरूरी है । छोटों को करो प्यार और बड़ों को दो रिगार्ड । प्यार देना है फिर रिगार्ड लेना है । यह कभी नहीं भूलना । यह संगठन सोना तो है परन्तु सोने पर सुहागा लगाया जाता है । उसके लिए बीच-बीच में मधुबन के संगठन का स्थान हो । निमित्त बनी हुई बहनों की राय से ही समय प्रति समय संगठन होगा । प्रदर्शनी में भी कुछ नवीनता आनी चाहिए । अभी तो इतना ही समझते हैं कि यहाँ की नालेज अच्छी है । जो बात बतानी है, बिना पूछे देखने से ही समझें कि हमको अभी यह सहज रास्ता मिला है । इस लक्ष्य को रखकर बनाने की कोशिश करें । और टापिक में भी आकर्षण हो । परमात्मा के परिचय पर रख सकते हो । और लोग जो दूर भागते हैं उनको नजदीक लाना है । फिर उसमें धर्म के विचार वाले हों वा कोई प्रकार हो उसकी फिर पीठ भी करनी है । बिना पीठ किये सफलता नहीं होगी । जैसे मयूज़ियम की सर्विस की है, उसकी भी पीठ करनी है । उनसे सम्पर्क रखना है । समय प्रति समय बुलाना है । भले सम्बन्ध रखना चाहिए जो उनको परिवार की महसूसता हो । तभी ही सर्विस की सफलता होगी ।

 

अच्छा !!!

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