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03-10-69 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन


सम्पूर्ण - समर्पण की निशानियां

किसको देखते हो? कौन, किसको देख रहे हो? (दो तीन ने अपना-अपना विचार सुनाया) आज बापदादा अपने पूर्ण परवानों को देख रहे हैं। क्योंकि कहाँ तक परवाने बने हैं वो देखने आये हैं। वैसे तो परवाने शमा के पास जाते हैं लकिन यहाँ तो शमा भी परवानों से मिलती है। आपको मालूम है जो सम्पूर्ण परवाने होते हैं उनके लक्षण क्या हैं और परख क्या है? (हर एक ने सुनाया) आप सबने सुनाया वो यथार्थ है। मुख्य सार तो यही निकला कि जो परवाने होंगे वो एक तो शमा के स्नेही होंगे, समीप होंगे और सर्व सम्बन्ध, उस एक के साथ ही होंगे। तो सर्व सम्बन्ध, स्नेही, समीप और साहस। जो सम्पूर्ण परवाने होते हैं उनमें यह चारों ही बातें देखने में आती हैं। तो आप सबको यहाँ भट्टी में किसलिए बुलाया है? जो यह चार बातें सुनाई हैं वो चारों ही बातें अपने सम्पूर्ण परसेन्टेज में धारण करनी हैं। एक परसेन्ट भी कम न होना चाहिए। कई बच्चे कहते हम हैं तो सही लेकिन इतने परसेन्ट। तो जिनमें परसेन्ट की कमी हो गई तो उनको सम्पूर्ण परवाना नही कहेंगे। वो परवाना दूसरी क्वालिटी का कहा जायेगा, जो कि चक्र ही काटने वाले होते हैं। एक होते हैं शीघ्र एक ही बार शमा पर फिदा होने वाले, दूसरे होते हैं - सोच समझ कर कदम उठाने वाले। तो जो सोच समझ कर कदम उठाते रहेंगे उनको कहेंगे फेरी पहनने वाले। चक्र काटने वाले। तो दूसरी क्वालिटी वाले परवाने कई प्रकार के संकल्पों, विघ्नों और कर्मों में ही चक्र काटते रहते हैं। तो आज पाण्डव सेना को भट्टी में बुलाया है। कहीं पर भी कोई फैक्टरी होती है तो जो बढ़िया फैक्टरी होती है उसकी छाप लगती है। अगर उस फैक्टरी की छाप नहीं होती है तो वो चीज इतनी नहीं चलती है। इस रीति आप भी जो भट्टी में आये हो तो यहाँ भी छाप लगाने के लिए आये हो। ट्रेड मार्क होता है ना। आप फिर कौनसी छाप लगवाने लिए आये हो? सम्पूर्ण सरेन्डर या सम्पूर्ण समर्पण का छाप अगर नहीं लगा तो मालूम है कि क्या होगा? जैसे छापा न लगी चीज की वैल्यू कम होती जाती है। उसी रीति से आप आत्माओं की भी स्वर्ग में वैल्यू कम हो जायेगी। तो अपनी राजधानी में समीप आने लिए यह छापा लगाना ही पड़ेगा। माताओं को तो नष्टोमोहा का मन्त्र मिला। और पाण्डव सेना को सम्पूर्ण समर्पण का। पाण्डवों का ही गायन है कि गल कर खत्म हो गए। पहाड़ों पर नहीं लेकिन ऊंची स्थिति में गल कर अपने को निचाई से बिल्कुल ऊपर जो अव्यक्त स्थिति है, उसमें गल गये। अर्थात् उस अव्यक्त स्थिति में सम्पूर्णता को प्राप्त हुए। यह पाण्डवों का यादगार भी है। उस यादगार की याद दिलाने और प्रैक्टिकल में लाने लिए भट्टी मिली है।

सम्पूर्ण समर्पण किसको कहा जाता है? जो सम्पूर्ण समर्पण अर्थात् तन-मन-धन और सम्बन्ध, समय सबमें अर्पण। अगर मन को समर्पण कर दिया तो मन को बिना श्रीमत के यूज नहीं कर सकते। अब बताओ धन को श्रीमत से यूज करना तो सहज है तन को भी यूज करना सहज है। लेकिन मन सिवाय श्रीमत के एक भी संकल्प उत्पन्न नहीं करे - इस स्थिति को कहा जाता है समपर्ण। इसलिए ही मनमनाभव का मुख्य मन्त्र है। अगर मन सम्पूर्ण समर्पण है तो तन-मन-धन- समय सम्बन्ध शीघ्र ही उस तरफ लग जाते हैं। तो मुख्य बात ही है मन को समर्पण करना अर्थात् व्यर्थ संकल्प, विकल्पों को समर्पण करना। वो ही परख है सम्पूर्ण परवाने की। सम्पूर्ण समर्पण वालों को मन में सिवाय उनके (बापदादा के) गुण, कर्तव्य और सम्बन्ध के कुछ और सूझता ही नहीं। अब बताओ कि ऐसा छापा लगाया हुआ है? जैसे आजकल के जमाने में आप लोग सब दफ्तरों में काम करते हो तो कभी-कभी दफ्तर की जो चीजें होती हैं, वो अपने काम में लगा देते हो। इसी रीति जो आपने समर्पण कर दिया तो वह आपकी चीज नहीं रही। जिसको दिया उनकी हुई, तो उनकी चीज को आप अपने कार्य में यूज नहीं कर सकते हो। लेकिन संस्कार होने के कारण कभी-कभी श्रीमत के साथ मनमत, देह अभिमानपने की मत, शूद्रपने की मत कहीं यूज कर लेते हो। इसलिए ही कर्मातीत अवस्था वा अव्यक्त स्थिति सदा एकरस नहीं रहती है। क्योंकि मन भिन्न-भिन्न रस में है तो स्थिति में भिन्न-भिन्न है। एक ही रस में रहे तो एक ही स्थिति रहे। बापदादा बच्चों को हल्का बनाते हैं और बच्चे जानबूझकर अपने पर बोझ ले लेते हैं। क्योंकि ६३ जन्मों से विकर्मों का बोझ, लोक मर्यादा का बोझ उठाने के आदि बन गये हैं। इसलिए बोझ उतार कर भी फिर रख लेते हैं। जिनकी जो आदत होती है वो आदत से मजबूर हो जाते हैं ना। इसलिए अपनी आदतें होने कारण अपनी जिम्मेदारी फिर अपने पर ही रख देते हैं। एक-एक पाण्डव अगर सम्पूर्ण समर्पण बनकर ही निकले तो बताओ क्या होगा? जब पाण्डव तैयार हो जावेगी तो कौरव और यादव मैदान में आ जायेंगे और फिर क्या होगा? आपका राज्य आपको प्राप्त हो जायेगा। जब तक यह वायदा नहीं किया कि जो सोचेंगे, बोलेंगे, जो सुनेंगे, जो करेंगे सो श्रीमत के बिना कुछ नहीं करेंगे। तब तक इस भट्टी से लाभ नहीं ले सकते हैं। ऐसा ही उमंग-उत्साह लेकर आये हो ना। कुछ बनकर ही निकलेंगे, बदलकर ही निकलेंगे। यह सोचकर आये हो ना? घबराहट तो नहीं होती है? जितना-जितना गहराई में जायेंगे उतना ही घबराहट गायब हो जायेगी। जब तक किसी भी बात की गहराई में नहीं जाते हैं तो घबराहट आती है। जैसे सागर के ऊपर-ऊपर की लहरों में घबराहट होती है लेकिन सागर के तले में, गहराई में क्या होता है? बिल्कुल शांत और शांत के साथ प्राप्ति भी होती है। इसलिए जो भी कोई घबराहट की बात आये तो गहराई में चले जाना तो घबराहट गायब हो जायेगी। अब लक्ष्य और लक्षण कौन से धारण करने हैं? इसमें जो नम्बरवन होंगे उनका क्या करेंगे? भविष्य में तो राजधानी लेंगे ही लेकिन यहाँ भी सौगात मिलेगी। इसलिए हर एक यही प्रयत्न करे कि हम तो नम्बर वन में आयेंगे, दो नम्बर वाले को नहीं मिलेगा। जो विन करेंगे वो वन नम्बर पायेंगे। विन करने की कोशिश करो तो वन जायेंगे।

अच्छा-आपको बिन्दी लगानी है वा बिन्दी रूप ही हो? टीके कितने प्रकार के होते हैं? आज आपको डबल टीका लगाते हैं। संगम पर निरोगी बनने का और भविष्य में राज-भाग का। बिन्दी रूप की स्मृति रखने के लिये बिन्दी लगाते हो। बिन्दी लगाते-लगाते बिन्दी बन जायेंगे। कोई भी व्यर्थ संकल्प आये तो उनको बिन्दी लगा दो तो बिन्दी बन जायेंगे।


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