25-10-69। ओम शान्ति।।
अव्यक्त।।बापदादा।।मधुबन
“माला का मणका बनने के लिए विजयी बनो”
बाप-दादा जब बच्चों को देखते हैं तो मुख्य बात क्या देखते हैं?
आज यही देखने आये है कि हरेक रत्न अपने में
क्या-क्या परिवर्तन लाया है तो आज परिवर्तन देखने लिये आये है। हरेक ने यथाशक्ति परिवर्तन तो लाया ही है। लेकिन बाप-दादा
कौन-सा परिवर्तन देखने चाहते है? उसको
भी जानते हो ना। बाप-दादा परिवर्तन के साथ परिपक्वता भी देखने
चाहते है। परिवर्तन तो देखा लेकिन परिवर्तन के साथ अपने में
परिपक्वता भी लाई? बाप को अविनाशी सत्य
बोलते हो ना। तो ऐसे ही बाप के साथ अविनाशी परिवर्तन लाया है?
जो खजाना मिलता है वह भी अविनाशी है,
जो प्रालब्ध मिलती है,
वह भी अविनाशी है। तो परिवर्तन भी अविनाशी लाया है वा सोचते
हो कि जाने के बाद मालूम पड़ेगा। न मालूम कौन-सी परिस्थितियाँ
आये, न मालूम परिपक्व रह सके वा नहीं,
वायदा तो करके जाते है लेकिन कहाँ तक निभा
सकते है, वह देखेंगे। एक तो यह सोचते
है। फिर दूसरे है निश्चय बुद्धि जिन्हों का बाप के साथ अपने
में भी पूरा निश्चय है कि जो परिवर्तन लाया है वह सदा कायम
रखेंगे। और जो वायदा करके जाते हो वह करके दिखायेंगे। वह है
सम्पूर्ण निश्चयबुद्धि और कोई तो बिचारे हिम्मत धारण करने की
कोशिश करते है, लेकिन अब तक अगर ऐसे ही
करते चलेंगे तो अन्त तक भी क्या कोशिश करते रहेंगे?
ऐसे पुरुषार्थी को झाटकू कहेंगे?
देवियों पर बलि चढ़ते है तो शक्तियाँ वा
देवियाँ ही बिगर झाटकू स्वीकार नहीं करती है तो क्या बाप-दादा
ऐसे को स्वीकार कर सकता है। अगर यहाँ स्वीकार न किया तो
स्वर्ग में ऊँच पद की स्वीकृति नहीं मिलेगी। इसलिये सुनाया था
कि जो सोचना है वही कहना है, जो कहना
है वही करना है। सोचना, कहना,
करना तीनों ही एक होना चाहिये। लेकिन वर्तमान
समय कई ऐसे बच्चे हैं जो सोचते बहुत हैं,
कहते भी बहुत हैं लेकिन करने के समय कम रह
जाते हैं। इसलिये कहा था इस भट्ठी में पक्का कर जाना अर्थात्
पक्का वायदा करके जाना है। पहले तो वायदा करने लिये हिम्मत है
कि हिम्मत धारण करेंगे? जो हिम्मतवान
बच्चे हैं उनकी निशानी क्या है? वह कभी
हार नहीं खाते। अगर आप सभी हिम्मतवान हैं तो जरुर आज से कभी
हारेंगे नहीं। बहुत समय से जो विजयी बनते हैं वही विजय माला
के मणके बनते है। अगर विजय माला में पिरोने चाहते है तो विजयी
बनने का परिवर्तन लाना पड़ेगा। परिवर्तन में मुख्य- मुख्य
बातें चेक करनी है।
बहुत सहज है।
दो शब्द याद रखना है। एक तो आकर्षण मूर्ति बनना है और दूसरा
हर्षित मुख। आकर्षण करने वाला है रूह। रूहानी स्थिति में ही
एक दो को आकर्षण कर सकेंगे। अगर यह दोनों बातें अपने में धारण
कर ली तो सम्पूर्ण विजयी है ही। मैजारटी बच्चों में मुख्य
कौन-सी बात है वह भी आज सुना रहे है। निश्चय बुद्धि तो हो तब
तो यहाँ आये हो। बाप में निश्चय है,
ज्ञान में भी निश्चय है लेकिन अपने में निश्चय
कहाँ-कहाँ डगमगा देता है। मुख्य कमी यह है जो कंट्रोलिंग पावर
नहीं है। यह न होने कारण समझते हुए,
सोचते हुए, अपने को महसूस करते हुए भी
फिर वही बात कर लेते है। इसका कारण कि कंट्रोलिंग पावर की
आवश्यकता है। मन्सा में, वाचा में और
कर्मणा में भी और साथ-साथ लौकिक सम्बन्धियों अथवा दैवी परिवार
के सम्बन्ध में आने में भी। कहाँ तक क्या करना है,
क्या कहना है। क्या नहीं कहना है। और जो
नहीं करना है उसको कंट्रोल करना - यह पूरी पावर न होने कारण
सफल नहीं होते हो। तो कंट्रोलिंग पावर की कमी कैसे मिटावेंगे?
कई बार आप गोपों ने देखा होगा कोई भी चीज़ को
कहाँ बहुत ज़ोर से कंट्रोल करना होता है तो कंट्रोल करने लिये
भी कई चीजों को हल्का छोड़ना पड़ता है। पतंग कब उड़ाया है?
पतंग को कंट्रोल करने और ऊँचा उड़ाने लिये क्या
किया जाता है? यह भी ऐसे है। अपनी
बुद्धि को कंट्रोल करने के लिये कई बातों को हल्का करना पड़ता
है। सभी से हल्की क्या चीज़ होती है?
आत्मा (बिन्दी)। तो जब अपने को कंट्रोल करना हो तो अपने को
बिल्कुल हल्का बिन्दु रूप में स्थित करना है। कंट्रोल करने
लिये फुलस्टाप करना होता है। तो आप भी बिन्दी लगा दो। जो बीत
चुका उसको बिल्कुल भूल जाओ। देखा,
किया लेकिन फिर एकदम उसको समाप्त कर दो। समाप्त करना अर्थात्
बिन्दी, फुलस्टाप करना। कॉमा (,)
लगाने आती है, या
क्वेश्चन (?) करने भी आता है। अजब की निशानी (!) भी लगाने आती
है, लेकिन फुलस्टाप लगाना नहीं आता है। कागज़ पर निशानियाँ लगाना तो सहज है लेकिन अपने कर्मों के ऊपर
यह निशानियाँ लगाना इसमें मुश्किल क्यों?
कागज पर निशानियाँ लगाते हो ना। और जो निशानी
जहाँ लगानी है वहाँ ही लगती हैं इसको कहा जाता है प्रवीण। अगर
कॉमा के बदली कोई फुलस्टाप लिख दे तो प्रवीण नहीं कहा जायेगा।
जहाँ क्वेश्चन करना है वहाँ क्वेश्चन न करे तो भी प्रवीण नहीं
कहेंगे। यहाँ भी क्वेश्चन किस बात में,
अजब किस बात में,
फुलस्टाप किस बात में देना है, यह पूरी
पहचान न होने कारण प्रवीण नहीं बनते है। अब समझा। कंट्रोल
क्यों नहीं कर पाते क्योंकि उस समय ज्ञान का पैट्रोल कम हो
जाता है। अगर ज्ञान का पैट्रोल है तो कंट्रोल है। इसलिये
अपने बुद्धि रूपी टंकी में पैट्रोल को जमा रखो। माइनस और प्लस
का हिसाब सीखे हो? और बैलन्स निकालना
भी सीखे हो? ऐसे तो नहीं सिर्फ जोड़
किया, कट किया लेकिन जमा करना भी सीखो। अगर जमा नहीं होगा तो न औरों को दे सकेंगे न अपने को आगे बढ़ा
सकेंगे। जमा किया जाता है दूसरो को देने के लिये,
अपनी आवश्यकता के समय काम में लाने के लिये।
तो यह भी देखना है कितना जमा किया है?
सिर्फ कमाना और खाना है वा जमा भी होता है?
कब हिसाब किया है? 25
प्रतिशत जमा तो बहुत कम है। अगर 25 प्रतिशत जमा किया है तो
अभी के हिसाब से बाप-दादा भी कौन सी जिम्मेवारी देंगे?
यहाँ से जास्ती याद कितने दिनों में करेंगे?
तीव्र पुरुषार्थी कभी विनाश की डेट का नहीं
सोचते। बहुत समय से अगर सम्पूर्णता के संस्कार होंगे तो अन्त
में भी सम्पूर्ण हो सकेंगे। अगर अंत में बनेंगे तो फिर बाप
दादा भी अंत में थोड़ा दे देंगे। जो अभी करते हैं उनको
बाप-दादा भी सतयुग के आरम्भ में कहते-आओ। बाप-दादा तो हरेक
रत्न में उम्मीद रखते है कि यह अनेकों को उम्मीदवार बनायेंगे।
जो अनेकों के उम्मीदवार हैं।वह अपने लिये फिर अंत की उम्मीद
कैसे रख सकते हैं। अच्छा। इस ग्रुप की भट्ठी भी समाप्त हुई।
समाप्त हुई वा आरम्भ हुई? इस ग्रुप का
एग्ज़ामिन (परीक्षा) नहीं लिया है। जो एग्ज़ाम्पल देखा उसको सदा
काल के लिये कायम रखते आयेंगे तो फिर इम्तिहान लेंगे। कोई भी
चीज़ को मजबूत करना होता है तो क्या किया जाता है?
फाउन्डेशन मजबूत रखने के लिये घेराव की
आवश्यकता होती है। जितना-जितना घेराव में जायेंगे इतना मजबूती
होगी। ऊपर-ऊपर से नींव लगाने से मजबूती नहीं होती। जितना
गहराई से ज्ञान को धारण किया होगा,
उतना ही अपनी मजबूती लाई होगी। परिवर्तन तो सभी ने कुछ न कुछ
लाया ही है, लेकिन कुछ न कुछ क्यों
कहते है। क्योंकि फाइनल सर्टिफिकेट प्रैक्टिकल लाने के बाद
देंगे। अभी सर्टिफिकेट नहीं देंगे। अभी हर्षित होते है कि
हरेक बच्चा उमंग-उत्साह से अपने पुरुषार्थ को आगे बढ़ाने में
बहुत तत्पर है। लेकिन सर्टिफिकेट तब मिलेगा जब प्रैक्टिकल में
रिजल्ट आउट होगी। ऐसे नहीं समझना कि भट्ठी समाप्त हुई,
लेकिन आरम्भ हुई है। अभी सुनना हुआ,
फिर करना है।
करने के बाद सर्टिफिकेट मिलेगा।
इस ग्रुप की मुख्य खूबी यह देखी कि एकता है। लेकिन एकता के
साथ-साथ अब दूसरा शब्द भी एड करना है। एकता के साथ
एकान्तप्रिय बनना है। जैसे एकता में नम्बरवन है वैसे एकान्त
में भी नम्बर वन आना है। यह धारण कर लो तो यह ग्रुप बहुतों से
आगे जा सकता है। एकता के साथ एकान्तवासी कैसे बने यह भी अपने
में भरना है। एकान्तप्रिय वह होगा जिनका अनेक तरफ से बुद्धि
योग टूटा हुआ होगा और एक का ही प्रिय होगा। एक प्रिय होने
कारण एक ही की याद में रह सकता। अनेक के प्रिय होने के कारण
एक ही याद में रह नहीं सकता,
अनेक तरफ से बुद्धियोग टूटा हुआ हो। एक तरफ
जुटा हुआ हो अर्थात् एक के सिवाय दूसरा न कोई - ऐसी स्थिति
वाला जो होगा वह एकान्त प्रिय हो सकता है। नहीं तो एकान्त में
बैठने का प्रयत्न करते हुए भी अनेक तरफ बुद्धि भटकेगी। एकान्त
का आनद अनुभव कर नहीं सकेंगे। सर्व सम्बन्ध,
सर्व रसनाएँ एक से लेने वाला ही एकान्तप्रिय
हो सकता है। जब एक द्वारा सर्व रसनाएँ प्राप्त हो सकती
है।तो अनेक तरफ जाने की आवश्यकता ही क्या?
लेकिन जो एक द्वारा सर्व रसनाओं को लेने के अभ्यासी नहीं होते
वह अनेक तरफ रस लेने की कोशिश करते। तो फिर एक भी प्राप्ति
नहीं होती। और एक बाप के साथ लगाने से अनेक प्राप्तियाँ होती
है। सिर्फ एक शब्द भी याद रखो तो उसमें सारा ज्ञान आ जाता,
स्मृति भी आ जाती,
सम्बन्ध भी आ जाता, स्थिति भी आ जाती।
और साथ-साथ जो प्राप्ति होती है वह भी उस एक शब्द से स्पष्ट हो
जाती। एक की याद, स्थिति एकरस और
ज्ञान भी सारा एक की याद का ही मिलता है। प्राप्ति भी जो होती
है वह भी एकरस रहती है। आज बहुत खुशी कल गुम हो जाती इसमें
प्राप्ति नहीं होती। जो अतीन्द्रिय सुख है वह भी एकरस नहीं
रहता। कभी बहुत तो कभी कम। अब तो एकरस अवस्था में स्थित होने
का पेपर देने लिये जा रहे हो। देखेंगे पेपर में कितने मार्क्स
लेते है। हमेशा यह कोशिश करो हम औरों को कर के दिखाये। हमारे
कर्म और हमारी चलन औरों की पढ़ाई कराये। कोई भी बात में फेल न
हो इसके लिये सहज बात सुना रहे है। तो कोई भी बात में फेल न
हो इसके लिये एक बात याद रखना फालो फादर। साकार रूप में जो कर
के दिखाया वह फालो करो तो कोई भी बात में फेल नहीं हो सकते।
कहाँ भी जब फेल होने की बात सामने आये तो यही याद रखना फालो
फादर कर रहा हूँ? जो इतने वर्ष साकार
रूप में कर्म किये, वह एक शब्द भी
सामने आ जाता है। तो जब फालोफादर करेंगे तो जो भी कोई ऐसे
कार्य होंगे तो वह करने में ब्रेक आ जायेगी,
जज करेंगे यह कर्म हम कर सकते है। फालो फादर। फादर कहने में दोनों ही आ जाते है। फालो फादर याद आने से
फेल नहीं होंगे। फ्लोलेस बन जायेंगे। बाप-दादा बच्चों को
फ्लोलेस बनाना चाहते है। माला में नजदीक लाने लिये यह सहज
युक्ति बता रहे है। देखना आप को सुनाई युक्ति आप से पहले और
कोई प्रयोग न कर ले। बापदादा तो हरेक सितारे में उम्मीद रखते
है। इसलिए कहतेहैं उम्मीदवार सितारे।
विशेष स्नेह है तब तो ऐसे समय भी आये हैं। त्याग भी है ना।
अपनी नींद का त्याग है तो यह भी स्नेह। बापदादा अभी स्नेह का
रिटर्न देते है। अभी जाने के बाद देखेंगे। जाते हो आने के
लिये। जाना और आना। जाना तो है ही। लेकिन जाना है आने के
लिये। जितना-जितना अव्यक्त स्थिति के अनुभवी होते जायेंगे
उतना ही अव्यक्त मधुबन में आकर्षित हो आयेंगे।
अब व्यक्त मधुबन नहीं है।
अच्छा
!!!