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09-11-69 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन


भविष्य को जानने की युक्तियाँ

दीपावली के शुभ दिवस पर – प्राणप्रिय अव्यक्त बापदादा के मधुर महावाक्य

बापदादा एक-एक दीपक को एक काल (समय) की दृष्टि से देख रहे है या तीनों की? बाप तो त्रिकालदर्शी है वा दादा भी त्रिकालदर्शी है? आप भी त्रिकालदर्शी हो या बन रहे हो? अगर त्रिकालदर्शी हो तो अपने भविष्य को देखते वा जानते हो? जानते हो मैं क्या बनूँगा? पाण्डव सेना में अपना भविष्य जानते हो या स्पष्ट है कि क्या बनोगे। और कौनसी राजधानी में? लक्ष्मी-नारायण भी किस नम्बर में? (हरेक ने अपना विचार बताया) जैसे आप आगे बढ़ते जायेंगे वैसे अपना भविष्य नाम-रूप-देश-काल यह चारों ही स्पष्ट होते जायेंगे कि किस देश में राज्य करना है किस नाम से, किस रूप से और किस समय, पहले राजधानी में भी क्या बनेंगे। दूसरी राजधानी में क्या बनेंगे! यह पूरी जन्मपत्री एक-एक को अपने अन्दर स्पष्ट होगी। बापदादा जब भी किसी को देखते है तो तीनों को देखते है। पहले क्या था अब क्या है फिर भविष्य में क्या बनने वाले है। तो एक-एक दीप में यह तीनों काल देखते है। आप दो काल तो स्पष्ट जानते हो। पहले क्या थे और अब क्या है लेकिन भविष्य में क्या होना है, उसको जितना-जितना योग- युक्त होंगे उतना भविष्य भी स्पष्ट जान जायेंगे। जैसे वर्तमान स्पष्ट है। वर्तमान में कभी भी संकल्प नहीं उठता है कि है या नहीं है। ना मालूम क्या है यह कभी संकल्प नहीं उठेगा। इसी रीति से भविष्य भी स्पष्ट होगा। ऐसा स्पष्ट नशा हर एक की बुद्धि में नम्बरवार आता जायेगा। जैसे साकार रूप में माँ-बाप दोनों को अपना भविष्य स्पष्ट था। नाम भी, रूप भी स्पष्ट, देश भी स्पष्ट और काल भी स्पष्ट था। इतना स्पष्ट है कि किस सम्बन्ध में आयेंगे? वा सम्बन्ध भी स्पष्ट किस रूप में सामने आयेगा। अभी दिल में थोड़ा बहुत किस-किस को आ सकता है। लेकिन कुछ समय बाद ऐसे ही निश्चय बुद्धि होकर कहेंगे कि यह होना ही है। अभी अगर आप कहेंगे भी तो दूसरे निश्चय करे या न करे। लेकिन थोड़े समय में आपकी चलन, आपकी तदबीर जो है वह आपके भविष्य तस्वीर को प्रसिद्ध करेगी। अब तदबीर और भविष्य में कुछ फर्क है। लेकिन जैसे- जैसे समय और आपका पुरुषार्थ समान होता जायेगा तो फिर कोई को संकल्प नहीं उठेगा।

आप सभी ने दीपमाला मनाई। दीपमाला पर क्या करते है? एक दीप से अनेक दीप जगाते है तो अनेकों का एक के साथ लगन लगता है, यही दीपमाला है। अगर एक-एक दीपक की एक दीपक के साथ लगन है तो यही दीपमाला है। दीपक में क्या है? अग्नि। तो लगन होगी तो अग्नि भी होगी। लगन नहीं तो अग्नि भी नहीं। यही देखना है कि हम दीपक लगन लगाकर अग्नि बने है? दीपक कितने प्रकार के होते है? जो दुनिया में भी प्रसिद्ध है? (हरेक ने अपना- अपना विचार सुनाया) एक है अंधियारे को मिटाकर रोशनी करने वाला मिट्टी का स्थूल दीपक और दूसरा है आत्मा का दीपक, तीसरा है कुल का दीपक और चौथा कौन-सा है? आशाओं का दीपक कहते हैं ना। बाप को बच्चों में आशा रहती है। तो चौथा है आशाओं का दीपक। यह चार प्रकार के दीपक गाये जाते हिं। अब इन चार दीपकों से हरेक ने कितने दीपक जगाये हैं? बापदादा की आशायें जो बच्चों में रहती हैं - वह दीपक जगाया है? मिट्टी के दीपक तो कई जन्म जगाये हैं। आत्मा का दीपक जगा है? यह चारों प्रकार के दीपक जब जग जाते हैं तब समझो दीपमाला मनाई। ऐसा कोई कर्म न हो जो कुल का दीपक बुझ जाये। ऐसी कोई चलन न हो जो बापदादा बच्चों में आशाओं का दीपक जगाते वह बुझ जाये। एकरस और अटल-अडोल यह सभी दीपक जग रहे हैं? जिसका दीपक खुद जगा हुआ होगा वह औरों का दीपक जगाने बिगर रह नहीं सकता। बापदादा की बच्चों में मुख्य आशायें कौन सी रहती हैं? बापदादा की हर एक बच्चे में यही आशा रहती हैं कि एक-एक बच्चा पहले नम्बर में जाये अर्थात् हरेक विजयी रत्न बने। विजयी रत्न की निशानियाँ क्या होगी? जो आप सभी ने सुनाया वह तो जो सुना है वही बोला। इसलिए ठीक ही है। जो विजयी होगा उनके लक्षण तो आप सभी ने सुनाये लेकिन साथ-साथ विजयी उनको कहा जाता है - जो खुद तो विजय प्राप्त किया हुआ हो लेकिन औरों को भी अपने से आगे विजयी बनाये। जैसे बापदादा बच्चों को अपने से भी आगे रखते थे ना! वैसे ही जो विजयी रत्न होंगे उनकी विजय की निशानी यह है कि वह अपने संग का रंग सभी को लगायेंगे। जो भी सामने आये वह विजयी बनकर ही निकले। ऐसे विजयी रत्न विजय माला के किस नम्बर में आते हैं? खुद तो विजयी बने हो लेकिन और भी आपके संग के रंग से विजयी बन जाये। यही सर्विस रही हुई है। ऐसे नहीं कि कोटों में कोई ही विजयी बनेंगे। लेकिन जो जैसा होता है वैसा ही बनाता है। ऐसे विजयी रत्न जो अनेकों को विजयी बना सके वही माला के मुख्य मणके हैं। तो विजयी की निशानी है आप समान विजयी बनाना। अभी यह सर्विस रही हुई है। अनेकों को विजयी बनाना है सिर्फ खुद को नहीं बनाना है। दीपमाला में पूरी दीपमाला जगी हुई होती है। जब दीपमाला कहा जाता है तो अनेक जगे हुए दीपकों की माला हरेक ने गले में डाली है? ऐसे जगे हुए दीपकों की माला हरेक रत्न और गले में जब डालेंगे तब विजय का नगाड़ा बजेगा। जैसे दिव्य गुणों की माला अपने में डाली है वैसे अनेक जगे हुए दीपकों की माला अपने गले में डालना है। जितनी यहाँ दीपकों की माला अपने गले में डालोगे उतनी वहाँ प्रजा बनेगी। कोई-कोई माला बहुत लम्बी-चौडी होती है। कोई सिर्फ गले में पहनने तक होती है। तो माला कौन सी पहननी है? बहुत बड़ी। ऐसी माला से अपने आपको श्रृंगार करना है। कितने दीपकों की माला अब तक डाली है? गिनती कर सकते हो वा अनगिनत है? दीपक भी अच्छे वह लगते हैं जो तेज जगे हुए होते हैं। टिम-टिम करने वाले अच्छे नहीं लगते। अच्छा।

मधुबन के फूलों में विशेषतायें क्या होनी चाहिए? नाम ही है मधुबन। तो पहली विशेषता है मधुरता। मधुरता ऐसी चीज़ है जो कोई को भी हर्षित कर सकते हैं। मधुरता को धारण करने वाला यहाँ भी महान् बनता है, और वहाँ भी मर्तबा पाता है। मधुरता वालों को सभी महान रूप से देखते हैं। तो यह मधुरता का विशेष गुण होना चाहिए। मधुरता से ही मधुसूदन का नाम बाला करेंगे। यह मधुबन नाम है। मधु अर्थात् मधुरता और बन में क्या विशेषता होती है? बन में वैराग्य वृत्ति वाले जाते है। तो बेहद की वैराग्य बुद्धि भी चाहिए। फिर इससे सारी बातें आ जायेगी। और आप सभी को कॉपी करने के लिए यहाँ आयेंगे। सभी साचेंगे यह कैसे ऐसे बने हैं। सभी के मुख से निकलेगा कि मधुबन तो मधुबन ही है। तो यह दो विशेषतायें धारण करनी हैं - मधुरता और बेहद की वैराग्य वृत्ति। दूसरे शब्दों में कहते हैं स्नेह और शक्ति। आप सभी का सभी से जास्ती स्नेह है ना! बापदादा से। और बापदादा का मधुबन वालो से विशेष स्नेह रहता है। क्योंकि भल कैसे भी हैं लेकिन सर्वस्व त्यागी हैं। इसलिए आकर्षित करते हैं। लेकिन सर्वस्व त्यागी के साथ अब स्नेह और शक्ति भी भरनी है। समझा – किस विशेषता को भरना है।

कुमारियों को कमाल कर दिखानी है। कुमारियों का हर कर्तव्य कमाल योग्य होना चाहिए। संकल्प और वाणी तथा कर्म कमाल का होना चाहिए। कुमारियाँ पवित्र होने के कारण अपनी धारणा को तेज बना सकती है। ऐसे कमाल का कर्तव्य कर दिखाना है, जो हर एक के मुख से यही निकले कि इन्हों का कर्तव्य कमाल का है। जैसे बापदादा के हर बोल सुनते हैं तो मुख से निकलता है ना कि आज की मुरली तो कमाल की है। तो कुमारियों के हर कर्म ऐसे कमाल के होने चाहिए। बापदादा को फालो करना है। ऐसे नहीं कहना कि कोशिश करेंगे। जब तक कोशिश करेंगे तब तक कशिश नहीं होगी। अगर कशिश धारण करनी है तो कोशिश शब्द को खत्म कर दो। अभी कशिश रूप बनना है। फालो फादर करना है। बापदादा कभी कहते थे कि कोशिश करेंगे। फिर आप क्यों कहती हो कि कोशिश करेंगी। कुमारियाँ कमाल करेंगी तो साथी साथ भी देगा। नहीं तो साथी साक्षी हो जायेगा। इसलिए साथी को साथ रखना है। नहीं तो साक्षी बन जायेंगे। साक्षी अच्छा लगता है या साथी? जो मेहनत करते है उसका फल भी यहाँ ही मिलता है। यह स्नेह और भविष्य पद मिलता है। सभी का स्नेही बनने के लिए मेहनत करनी है। जो जितनी मेहनत करते है वह उतने ही स्नेही बनते है। समय पर स्नेही की ही याद आती है। कोई बात में मेहनत की याद आती है। बाबा भी क्यों याद आते है? मेहनत की है तब स्नेह है। मेहनत से स्नेही बनना है। जितना जास्ती मेहनत उतना सर्व के स्नेही बनेंगे। मेहनत का फल ही स्नेह है। जो मेहनत करते है उनको हरेक स्नेही की नजर से देखेंगे। जो मेहनत नहीं करेंगे उनको स्नेह की नजर से नहीं देखेंगे। स्टूडेन्ट को टीचर के गुण जरूर धारण करने है। स्नेह ही सम्पूर्ण बनाता है। स्नेह के साथ फिर शक्ति भी चाहिए। दोनों का जब मिलन हो जाता है तो स्नेह और शक्ति वाली अवस्था अति न्यारी और अति प्यारी होती है। जिसके लिए स्नेह है उसके समान बनना है। यही स्नेह का सबूत है। इसमें अपने को चेक करना है-कहाँ तक हम समानता में समीप आये है? जितना-जितना समानता में समीप होंगे उतना ही समझो कर्मातीत अवस्था के समीप पहुचेंगे। यही समानता का मीटर है। अपनी कर्मातीत अवस्था परखना है। सिर्फ स्नेह रखने से भी सम्पूर्ण नहीं बनेंगे। स्नेह के साथ-साथ शक्ति भी होगी तो खुद सम्पूर्ण बन औरों को भी सम्पूर्ण बनायेंगे। क्योंकि शक्ति से वह संस्कार भर जाते है। तो अब स्नेह के साथ शक्ति भी भरनी है।

सभी के दिलों पर विजय किन गुणों से प्राप्त कर सकते हो? सभी को सन्तुष्ट करना। बाप में यह विशेष गुण था। वही फालो करना है। सभी मधुबन की लिस्ट में हो या आलराउन्डर की लिस्ट में हो? एक है हद की लिस्ट, दूसरी है बेहद की लिस्ट। आलराउन्डर और एवररेडी। इसी लिस्ट में मालूम है क्या करना होता है? एक सेकेण्ड में तैयार। सकल्पों को भी एक सेकेण्ड में बन्द करना है। मिलिट्री वालों का हर समय बिस्तरा तैयार रहता है। यह सकल्पों का बिस्तरा भी बन्द करना है। बिस्तरा भी एवररेडी रहना चाहिए। एवररेडी बनने वालों का सकल्पों का बिस्तरा तैयार रहना चाहिए। कोई भी परिस्थिति हो उसका सामना करने के लिए पेटी बिस्तरा तैयार हो। अच्छा।

रूहानी बच्चों! तुम आत्माओं को वाणी से परे अपने घर जाने के लिए पुरुषार्थ करना है। इसलिए इस पुरानी दुनिया में रहते देह और देह के सम्बन्धों से उपरामचित होना है। पतित दुनिया में रहते हुए बाप पवित्र बनने की शक्ति देते है। पुरुषार्थ करके तुमको सदा पवित्र बनना है।

बच्चे! सदैव गुणग्राहक बनना है। स्तुति-निन्दा, लाभ-हानि, जय-पराजय सभी में सन्तुष्ट होकर चलना है और रहमदिल बनना है।

 

अच्छा !!!


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