05-03-70
ओम शान्ति
अव्यक्त
बापदादा
मधुबन
"जल
चढ़ाना
अर्थात्
प्रतिज्ञा
करना"
आज
शिव जयंती
मनाने के लिए
बुलाया है। कैसे
मनाने चाहते
हो? मिलन ही
मनाना है। लोग
मिलने के लिए
मनाते हैं और
बच्चे मिलने
को ही मनाना
समझते हैं। तो
मिलना
अर्थात् मन
लिया अब बाकी
क्या रहा। आप
बच्चों का
मनाना एक तो
है मिलना और
दूसरा है अपने
समान बनाना। तो
मिलना और
बनाना, यही
है मनाना। आज
के दिवस पर यह
दो बातें करनी
है। मिलन तो
मना ही रहे हो
बाकी आप समान
बनाना। यह
दोनों बातें
की गोया शिव
जयंती मनायी। जब
भक्त लोग जल
चढाने के लिए
जाते हैं तो
भी बीच में
ब्राह्मण
होते हैं,
जो उनसे कराते
हैं। तो आप भी
ब्राह्मण हो। जैसे
भक्त लोग जल
चढाते हैं
वैसे तुम
बच्चे बाप के
ऊपर आत्माओं
से जल चढ़वाते
हो। यह जल
अथवा दूध
चढाने की रस्म
क्यों चली है? जिस समय जल
चढाते हैं उस
समय मन में
क्या सोचते
हैं, मालूम
हैं? जल वा
दूध जो चढाते
हैं उनका
भावार्थ यह है।
जब कोई भी
प्रतिज्ञा
करनी होती है
तो हाथ में जल
उठाते हैं,
सूर्य को भी
जल चढाते हैं
तो अन्दर में
प्रतिज्ञा
करते हैं। तुम्हारे
पास भी जब कोई
आते हैं तो
पहले-पहले उन्हों
से प्रतिज्ञा
का जल लो। एक
प्रतिज्ञा कराते
हो ना कि हम आज
से एक शिवबाबा
के ही बनकर रहेंगे।
तो पहले उनसे
प्रतिज्ञा कराते
हो। वह लोग भी
अन्दर में
प्रतिज्ञा कर
फिर स्वयं सम्मुख
आकर देवताओं
पर अर्पण होते
हैं। जो पुरे
भक्त होते हैं
वह सारा ही
अपने को उनके
आगे झुकाते
हैं अर्थात्
अपने को अर्पण
कर देते हैं। तो
तुम भी पहले
उन्हों से
प्रतिज्ञा
कराते हो। जब
पक्के हो जाते
हैं, तो
सम्पूर्ण
स्वाहा कराते
हो। ऐसी
सर्विस करनी
है। बिलकुल
न्यौछावर
कराना। आप ने
कितने को
न्यौछावर
कराया है? जो
जितना स्वयं
न्यौछावर बने
हैं उतना ही
औरों को बनाते
हैं। अगर
स्वयं ही
सम्पूर्ण
न्यौछावर
नहीं बने हैं
तो औरों को भी
इतना ही आप समान
बनाते हैं। अभी
न्यौछावर
होने में
म्हणत और समय
दोनों ही लगता
है। लेकिन
थोड़े ही समय
में न्यौछावर
होनेवालों की
क्यू लग जाएगी।
जैसे वहां
यादगार है
काशी कलवट
खाने का। स्वयं
अपनी इच्छा से
कटने को तैयार
हो जाते हैं। वैसे
यहाँ भी तैयार
हो जायेंगे। आप
लोगों को इच्छा
पैदा करने की
म्हणत भी नहीं
करनी पड़ेगी। स्वयं
अपनी इच्छा से
जम्प देने के
लिए तैयार हो
जायेंगे। यह
क्यू लगनी है।
अभी नहीं लग
रही है। इसका
भी कारण है। बच्चों
के पास अभी
कौन सी क्यू
लगी हुई है? जब वह क्यू
ख़त्म हो जाएगी, तब यह क्यू
लगेगी। मालूम
है अभी कौन सी
क्यू लगी हुई
है?
(संकल्पों की)
संकल्पों में
भी मुख्य क्या
हैं, जो ही
पुरुषार्थ
में ढीलापन
लाती है। व्यर्थ
संकल्पों का
मूल कारन क्या
होता है? पुराने
संस्कार किस
रूप में आते
हैं? एक
शब्द बताओ
जिसमे व्यर्थ
संकल्पों का
बीज आ जाए। व्यर्थ
संकल्प वा
विकल्प जो
चलते हैं तो
एक ही शब्द
बुद्धि में
आता है कि यह
क्यों हुआ,
क्यों से
व्यर्थ
संकल्पों की
क्यू शुरू हो
जाती है। अंग्रेजी
में भी आप
देखेंगे क्यू
शब्द की निशानी
सभी से टेढ़ी
होती है। तो
क्यों की क्यू
बड़ी लम्बी है।
इस क्यू के
समाप्ति बाद
ही
सम्पूर्णता
आएगी। फिर वह
क्यू लगेगी। जब
क्यों शब्द
निकलेगा,
फिर ड्रामा की
भावी पर एकरस
स्थेरियम
रहेंगे। तो
अभी क्यों के
क्यू को ख़त्म
करना है। समझा।
एक क्यों शब्द
से सेकंड में
कितने संकल्प
पैदा हो जाते
हैं? क्यों
से फिर कल्पना
करना शुरू हो
जाता हैं। तो
बाप भी बच्चों
से यह जल की लोटी
चढ़वाने के लिए
आये हैं। कोई
भी प्रतिज्ञा
करते हैं तो
जल को साक्षी
रखकर करते हैं।
तो अब यह लोटी
चढ़ानी है।
मधुबन
में विशेष
रेस्पोंसिबिलिटी
पाण्डव-दल की
है। तो उस दल
में अब बल
होना चाहिए। पाण्डव
-दल में बल
होगा तो फिर
इस पाण्डव भवन
के अन्दर
आसुरी
सम्प्रदाय तो
क्या लेकिन
आसुरी संकल्प
भी नहीं आ
सकते। इतना
पहरा देना है।
वह पहरा देना
तो बहुत सहज
है। जैसे इस
गेट की रखवाली
करते हो वैसे
माया का जो
गेट है, उसकी
भी रखवाली
करनी है। ऐसे
पाण्डव सेना
तैयार है जो
आसुरी
संस्कारों को, आसुरी
संकल्पों को
भी इस पाण्डव
के अन्दर आने
न दो? अब
पहले अपने
अन्दर यह पहरा
मज़बूत होगा तब
पाण्डव भवन
में यह मजबूती
ला सकते हैं। ऐसा
पहरा देते हो? कौन-कौन ऐसी
हिम्मत रखते
हैं कि हम
पाण्डव सेना
अपने पाण्डव
भवन की ऐसी
रखवाली
करेंगे। ऐसी
रखवाली अगर
पाण्डव करते
रहें तो फिर
यह पाण्डव भवन
एक जादू का घर
हो जायेगा। जो
कैसी भी आत्मा
आये, आते
ही आसुरी
संस्कारों और
व्यर्थ
संकल्पों से
मुक्त हो जाएँ।
ऐसे
निर्विकल्प
बनाने का जादू
का घर हो
जायेगा। ऐसी
सर्विस जब
करेंगे तब
प्रत्यक्षता
होगी। एक दो
से सुनते ही
लोग दौड़ेंगे। जैसे-जैसे
समय आगे बढेगा
वैसे दुःख
अशांति भी
बढ़ने के कारण
हरेक आत्मा
सुख चैन की
प्यासी होगी। और
उसी प्यास में
तरसती हुई
आत्मयीं इस
पाण्डव भवन के
अन्दर आने से
ही एक सेकंड
में सुख चैन का
अनुभव करेंगी
तब प्रभाव
निकलेगा। एक-एक
चैतन्य
मूर्ति के
सामान दर्शन
मूर्त हो जायेंगे।
एक एक रत्न का
दर्शन करने के
लिए दूर दूर
से प्यासी
आत्मयीं
आएँगी। लेकिन
जब ऐसा पहरा
शुरू करने तब।
जैसे संगठन का
बल है,
स्नेह का बल
भी है, एक
दो को सहयोग
देने का बल भी
है। अभी सिर्फ
एक बल चाहिए, जिसकी कमी
होने कारन ही
माया की
प्रवेशता हो जाती
है। वह है
सहनशीलता का
बल। अगर
सहनशीलता का
बल हो तो माया
कभी वार कर
नहीं सकती। तो
यह चारों बल
चाहिए।
आज
बापदादा की
जयंती के साथ
सभी बच्चों की
भी तो जयंती
है। तो इस
जयंती पर चों
बल अपने में
धारण करेंगे तो
फिर यह पाण्डव
भवन साड़ी
दुनिया में
देखने और
अनुभव करने का
विशेष स्थान
गिना जायेगा। इस
पाण्डव भवन का
महत्व सरे
विश्व में
होगा। महत्व
बढाने वाले
कौन? पाण्डव
सेना और शक्ति
सेना। मधुबन
निवासी ही
मधुबन के
महत्व को बाधा
सकते हैं। पाण्डवों
के लिए तो
प्रसिद्द है
कि वह कभी भी प्रतिज्ञा
से हिलते नहीं
थे। एक
परसेंटेज की
भी कमी हुई तो
इसको कमी ही
कहा जायेगा। पाण्डव
सेना को
एग्जाम्पल
बनना है। जो
आप लोगों को
देख औरों को
भी प्रेरणा
मिले। कोई भी
मधुबन में आये
तो यह विशेषता
देखे कि यह
सभी इतने अनेक
होते हुए भी
एक और एक की ही
लगन में मग्न
हैं। और एक रस
स्थति में
स्थित हैं। जब
ऐसा दृश्य
देखेंगे तब
प्रत्यक्षता की
निशानी देखने
में आएगी। आप
सब की
प्रतिज्ञा ही
प्रत्यक्षता
को लाएगी। तो
आज पहले
प्रतिज्ञा का
जल चढ़ाना है
फिर सौगात भी
मिलेगी। प्रतिज्ञा
की तीन लकीर
दिखाते हैं। बेल
पात्र भी जो
चढाते हैं वह
भी तीन पत्तों
का होता है। तो
आज के दिन तीन
प्रतिज्ञा
कराई हैं। सहनशीलता
का बल अपने
में धारण
करेंगे,
क्यों की क्यू
को ख़त्म
करेंगे और
आसुरी संस्कारों
पर पहरा देना
है। तो तीन
प्रतिज्ञा का
यह बेलपत्र
चढ़ाना है। भक्त
लोग तो खेल
करते हैं
लेकिन ज्ञान
सहित खेल करना
वह तो बच्चे
ही जानते हैं।
इसलिए आज के
शिवरात्री का
यादगार फिर
भक्ति में रस्म
माफिक चलता है।
पहले आरम्भ
बच्चे ही करते
हैं ज्ञान
सहित। और फिर
भक्त कॉपी
करते हैं
अन्धश्रद्धा
से। ज़रूर कभी
किया है तब
यादगार बना है।
भगवान्
बच्चों को
कहते हैं
वन्दे मातरम्
कितना फर्क हो
गया। इतना नशा
रहता है? जिस
बाप की अनेक
भक्त वन्दना
करते हैं,
वह स्वयं आकर
कहते हैं
वन्दे मातरम्
इस खुमारी की निशानी
क्या होगी?
उनके नयन,
उनके मुखड़े, उनकी चलन, बोल आदि से
ख़ुशी झलकती
रहेगी। जिस
ख़ुशी को देख
कहियों के
दुःख मिट
जायेंगे। ऐसी
मातायीं
जिनको
बापदादा
स्वयं वन्दना
करते हैं,
उनकी निशानी
है ख़ुशी। चेहरा
ही अनेक आत्माओं
को हर्षायेगा।
अज्ञानी लोग
सवेरे उठ कोई
ऐसी शक्ल
देखते हैं तो
कहते हैं
सवेरे उनकी
शक्ल देखी तब
यह प्रभाव पड़ा
तो शक्ल का
प्रभाव पड़ता
है। तो आप
बच्चों का
हर्षित चेहरा
देख सभी के
अन्दर हर्ष आ
जायेगा। ऐसा
होने वाला है।
अच्छा- जितना
अपने ऊपर
चेकिंग
करेंगे उतनी
चंगे आती
जाएगी। संकल्प, कर्म,
समय,
संस्कार इन
चरों के ऊपर
चेकिंग करनी
है कदम-कदम पर
हर रोज़ कोई – न –
कोई स्लोगन
सामने रख उसको
प्रैक्टिकल
में लाओ।