02-04-70 ओम शान्ति
अव्यक्त बापदादा
मधुबन
“सम्पूर्ण
स्टेज की
निशानियाँ”
सभी के अन्दर
सुनने का संकल्प
है। बापदादा के
अन्दर क्या है? बापदादा
सुनने सुनाने से
परे ले जाते हैं।
एक सेकंड में आवाज़
से परे होना आता
है? जैसे आवाज़
में कितना सहज
और जल्दी आते हो
वैसे ही आवाज़ से
परे भी सहज और जल्दी
जा सकते हो?
अपने को क्या
कहलाते हो? मास्टर सर्वशक्तिमान।
अब मास्टर सर्वशक्तिमान
का नशा कम रहता
है, इसलिए एक
सेकंड में आवाज़
में आना, एक
सेकंड में आवाज़
से परे हो जाना
इस शक्ति की प्रैक्टिकल-झलक चेहरे पर
नहीं देखते। जब
ऐसी अवस्था हो
जाएगी, अभी-अभी आवाज़ में,
अभी – अभी
आवाज़ से परे। यह
अभ्यास सरल और
सहज हो जायेगा
तब समझो सम्पूर्णता
आई है। सम्पूर्ण
स्टेज की निशानी
यह है। सर्व पुरुषार्थ
सरल होगा। पुरुषार्थ
में सभी बातें
आ जाती हैं। याद
की यात्रा, सर्विस दोनों
पुरुषार्थ में
आ जाते हैं। जब
दोनों में सरल
अनुभव हो तब समझो
सम्पूर्णता की
अवस्था प्राप्त
होने वाली है।
सम्पूर्ण स्थिति
वाले पुरुषार्थ
कम करेंगे, सफलता अधिक प्राप्त
करेंगे। अभी पुरुषार्थ
अधिक करना पड़ता
है उसकी भेंट में
सफलता कम है। आज
बापदादा सभी की
सूरत में एक विशेष
बात चेक कर रहे
थे। देखें किसको
टच होती है,
कौनसी बात चेक
कर रहे थे? जब
थॉट रीडर्स कैच
कर सकते हैं तो
मास्टर सर्वशक्तिमान
नहीं कर सकते हैं?
यह जो भट्ठी
हुई उन्हों का
पेपर नहीं लिया
है। तो आज पेपर
लेते हैं। पास
तो सभी हो ही। एक
होते हैं पास दूसरे
होते हैं पास विद
ऑनर। पाण्डव सेना
जो है वह शक्तियों
के आगे रहते हैं।
कोई आगे कोई पीछे
रहते हैं (गोपों
से) आप शक्तियों
के आगे हो या पीछे
हो? आगे जो दौड़ने
चाहेंगे उनको कोई
रोक नहीं सकता।
अपनी रुकावट रोक
सकती है। बाकी
कोई के रोकने से
नहीं रुक सकता।
वैसे पाण्डवों
को पीछे रहना ही
आगे होना है। पीछे
किसलिए रहते हैं?
गार्ड पीछे रहता
है। आप पीछे वाले
गार्ड हो या आगे
वाले? कौन सी
जगह अच्छी लगती
है? गार्ड पीछे
रहता है गाइड आगे
रहता है। तो गाइड
तो आगे है ही। नहीं
तो पाण्डवों को
गार्ड बनाकर शक्तियों
की रखवाली के लिए
निमित्त बनाया
हुआ है। पाण्डवों
को पीछे रह कर शक्तियों
को आगे करना है।
गाइड नहीं बनना
है। गार्ड बनना
है। आप कौन से पुरुषार्थियों
की लाइन में हो।
पुरुषार्थियों
की लितनी लाइनें
बनी हुई हैं?
अब बापदादा
ऐसा मास्टर सर्वशक्तिमान
बनाने की पढ़ाई
पढ़ा रहे हैं, जो
किसके भी सूरत
में उसकी स्थिति
और संकल्प स्पष्ट
समझ सको। शक भी
न रहे। स्पष्ट
मालूम पड़ जाये।
यह है अंतिम पढ़ाई
की स्टेज। साकार
रूप में थोड़ी सी
झलक अंत में दिखाई।
जो साकार रूप में
साथ थे उन्होंने
कई ऐसी बातें नोट
की हैं। ऐसी ही
स्थिति नंबरवार
सभी बच्चों की
होनी है। जब ऐसी
स्थिति होती जाएगी
तब अन्तिम स्वरुप
और भविष्य स्वरुप
आप सभी की सूरत
से सभी को स्पष्ट
दिखने में आएगा।
जब तक साक्षात्
साकार रूप नहीं
बने हैं तब तक साक्षात्कार
नहीं हो सकता है।
इसलिए इस सब्जेक्ट
पर अति समीप रत्नों
को ध्यान देना
है। जितना समीप
उतना ही स्वयं
भी स्पष्ट और दूसरे
भी उनके आगे स्पष्ट
दिखाई देंगे। जितना-जितना जिसका
पुरुषार्थ स्पष्ट
होता जाता है उतना
ही उनकी प्रालब्ध
स्पष्ट होती जाती
है, और अन्य
भी उनके आगे स्पष्ट
होते जाते हैं।
स्पष्ट अर्थात्
संतुष्ट। जितना
संतुष्ट होंगे
उतना ही स्पष्ट
होंगे। स्पष्ट
बच्चों को साकार
रूप में कौन से
शब्द कहते थे?
साफ़ और सच्चा।
जिसमें सच्चाई
और सफाई है वह सदैव
स्पष्ट होता है।
जब सफाई होती है
तो भी सभी वस्तु
स्पष्ट देखने में
आती है। यह लेसन
भट्ठी की पढ़ाई
का लास्ट लेसन
है। यही एग्जाम्पल
बनना है। जो किसी
भी बात में एग्जाम्पल
बनते हैं उनको
उसका फल एग्ज़ाम
में एक्स्ट्रा
मार्क्स मिलते
हैं। चार सब्जेक्ट्स
विशेष ध्यान में
रखनी हैं। एक याद
का बल, स्नेह
का बल, सहयोग
का बल और सहन का
बल। यह चार बातें
विशेष इस भट्ठी
की सब्जेक्ट्स
थी।
इन चार बातों
में बापदादा ने
रिजल्ट क्या निकाली? हर्ष
की ही रिजल्ट है।
सभी बल एक समान
होने में कुछ परसेंटेज
की कमी है। बल चारों
ही हैं लेकिन चारों
की ही समानता हो।
उसमें परसेंटेज
की कमी है। तो रिजल्ट
क्या हुई? ७५%
पास। बाकि जो
२५% कमी है,
वह सिर्फ उसकी
है कि सर्व बल समान
हों। कोई में कोई
बल विशेष है,
कोई में कोई बल
विशेष है। चारों
बल जब समान हों
तब समझो सम्पूर्ण।
(इस अवस्था में
शरीर छुट जाए तो
भविष्य रिजल्ट
क्या होगी?)
जो ऐसे पुरुषार्थी
होते हैं फिर भी
हिम्मतवान तो हैं
ना। तो बापदादा
की भी प्रतिज्ञा
की हुई है बच्चों
से, कि हिम्मते
बच्चे मददे बाप।
ऐसी हिम्मत रख
चलने वाले अंत
तक इस ही हिम्मत
में रहते रहेंगे
तो ऐसे हिम्मतवान
बच्चों को कुछ
मदद मिल जाती है।
सभी से बुद्धियोग
हटाकर अंत में
एक की याद में रहने
का जो पुरुषार्थी
है, उसे मदद
मिलने के कारण
सहज हो जाता है।
स्कॉलरशिप मिलेगी
वा नहीं वह फिर
है अंत तक हिम्मत
रखने पर। जितना
बहुत समय से हिम्मत
में चलते रहते
हैं वह बहुत समय
का लिंक टूटा नहीं
तो गेलप कर सकता
है। अगर अभी भी
कारणे अकारणे बहुत
समय के हिम्मत
का लिंक टूट जाता
है तो फिर स्कॉलरशिप
लेना मुश्किल है।
अगर बहुत समय का
लिंक अंत तक रहा
तो एक्स्ट्रा हेल्प
मिल सकती है। इसलिए
अब यही लास्ट लेसन
पक्का करा रहे
हैं।
अभी तक टोटल
रिजल्ट में क्या
देखा? सर्विस की
सब्जेक्ट में इंचार्ज
बनना आता है लेकिन
याद की सब्जेक्ट
में बैटरी चार्ज
करना बहुत कम आता
है। समझा। साकार
रूप में अनुभव
देखा। साकार रूप
में सर्विस की
जिम्मेवारी सभी
से ज्यादा थी।
बच्चों में उनसे
कितनी कम है। बच्चों
को सिर्फ सर्विस
की ड्यूटी है।
लेकिन साकार रूप
में तो सभी ड्यूटी
थी। संकल्पों का
सागर था। रेस्पोंसिबिलिटी
के संकल्पों में
थे फिर भी सागर
की लहरों में देखते
थे वा सागर के तले
में देखते थे?
बच्चों को लहरों
में लहराना आता
है लेकिन तले में
जाना नहीं आता।
उनका सहज साधन
पहले सुनाया कि
प्रैक्टिस करो।
अभी-अभी आवाज़
में आये, फिर
मास्टर सर्वशक्तिमान
बन अभी-अभी
आवाज़ से परे। अभी-अभी का अभ्यास
करो। कितने भी
कारोबार में हो
लेकिन बीच-बीच
में एक सेकंड भी
निकाल कर इसका
जितना अभ्यास,
जितनी प्रैक्टिस
करेंगे उतना प्रैक्टिकल
रूप बनता जायेगा।
प्रैक्टिस कम है
इसलिए प्रैक्टिकल
रूप नहीं। कभी
सागर की लहरों
में कभी तले में
यह अभ्यास करो।
आज विशेष बात यही
चेक कर रहे थे कि
बच्चों में जितना
ही साहस है उतनी
ही सहनशक्ति है?
साहस रखने की
शक्ति कितनी है
और सहन शक्ति कितनी
है? यह देख रहे
थे। जितना-जितना
स्वयं पुरुषार्थ
में संतुष्ट और
स्पष्ट होंगे उतना
और उनके आगे स्पष्ट
दिखाई देंवे। अब
पेपर भी हुआ,
रिजल्ट भी सुनाई।
बाकी पाण्डवों
की बात रह गयी।
बापदादा के पास
पुरुषार्थियों
की कितनी लाइनें
हैं? औरों को
न देख अपनी लाइन
को तो देखते होंगे
वा लाइन को भी न
देख अपने को देखते
हो? एक है तीव्र
पुरुषार्थियों
की लाइन, दूसरी
है पुरुषार्थियों
की लाइनें, तीसरी है गुप्त
पुरुषार्थियों
की लाइनें और चौथी
हैं ढीले पुरुषार्थियों
की लाइन। अब बताओ
आप किस लाइन में
हो? अब ऐसा समय
जल्दी आएगा जो
यह शब्द नहीं बोलेंगे
कि आप जानो। नहीं।
हम सभी जानते हैं।
क्योंकि मास्टर
सर्वशक्तिमान
हैं ना। सभी शक्तियां
समान रूप में ही
जाएँगी। फिर मास्टर
सर्वशक्तिमान
हो जायेंगे। बाप
का इतना निश्चय
है। निश्चयबुद्धि
है, वह विजयी
है ही। बाप और स्वयं
में निश्चयबुद्धि
हैं तो विजय कहाँ
जाएगी। निश्चयबुद्धि
के पीछे-पीछे
विजय आती हैं।
वह विजय के पीछे
नहीं दौड़ते,
विजय उनके पीछे
दौड़ती है। हम विजयी
बनें इस संकल्प
का भी वह त्याग
कर लेते। ऐसे सर्वस्व
त्यागी हो? सर्वस्व त्यागी
और सर्व संकल्पों
के त्यागी। सिर्फ
सर्व संबंधों का
त्याग नहीं। सर्व
संकल्पों से भी
त्यागी। यही सम्पूर्ण
स्थिति है। बापदादा
क्या देखते हैं?
विजय का सितारा।
तो बापदादा की
लिस्ट में विजयी
सितारे हो। जैसे
और कार्य में एक
दो के सहयोगी हो
वैसे ही भविष्य
में भी एक दो के
सहयोगी देखने में
आ रहे हो। बनना
नहीं है देखने
में आ रहे हो। इतना
ही समीप आना है,
जितना अब आवाज़
कर रहे हैं और पहुँच
रहा है। अब आप लोगों
को सर्व बातों
में थोड़े समय में
पूरा फॉलो करना
है। कर रहे हो और
करते ही रहेंगे।
आप लोगों
का जो पहले-पहले
संगठन बनाया था
वह क्या कर रहे
हैं? किसलिए
संगठन बनाया था?
यज्ञ की संभाल
के साथ संगठन में
रहने वाले स्वयं
की भी संभाल कर
रहे हैं? जो
स्वयं की संभाल
करते हैं वह यज्ञ
की भी संभाल करते
हैं। जो स्वयं
की संभाल नहीं
कर सकते हैं वह
यज्ञ की भी संभाल
नहीं कर सकते हैं।
इस संगठन को क्या-क्या करना है
यह उन्हों को भी
स्पष्ट नहीं है,
इसलिए फिर जब
सहज हो सके तब साथियों
को बुलाना। जब
आप बुलाएँगे तब
बापदादा आएंगे।
बापदादा को आने
में देरी नहीं
लगती है। अपनी
ग्रुप की फिर कब
देख रेख की?
पाण्डव ग्रुप
और शक्ति ग्रुप,
यह है सर्विस
ग्रुप। लेकिन जो
पांडवों का ग्रुप
और यज्ञ माताओं
का ग्रुप था उसका
क्या हालचाल है?
मुख्य केन्द्र
के समीप आने से
देखरेख कर सकेंगे।
इन ग्रुप को अपना
कर्त्तव्य ही है।
सिर्फ ८ दिन का
नहीं। (सम्मेलन
की रिजल्ट?)
जो भट्ठी की रिजल्ट
बताई वही सम्मेलन
की रिजल्ट है।
चारों ही बल समान
हो, उसमें २५%
की कमी सुनाई।
समझा। पास विद
ऑनर होते तो ना
मालूम क्या होता।
सब पास(समीप)
आ जाते। अभी
सिर्फ आवाज़ किया
है। ललकार नहीं
की है। इसकी भी
युक्ति बताई कि
चारों बल की समानता
होनी चाहिए। कब
किस बल की विशेषता
कब किस बल की। लेकिन
चारों बल समान
रख सर्विस करने
से ललकार होगी।
ललकार न होने का
भी कारण है।सम्मेलन
की बात नहीं कर
रहे हैं। लेकिन
टोटल आवाज़ निकलता
है अब ललकार नहीं
निकलती है। आवाज़
फैलाया है। सोये
हुए को जगाया नहीं
है, सिर्फ करवट
बदलाया है। ललकार
न होने का कारण
क्या है? बताओ।
ललकार तब होगी
जब कोई भी बात को
अंगीकार नहीं करेंगे।
अभी क्या होता
है कई बातों को
अंगीकार कर लेते
हैं, चाहे स्थूल
चाहे सूक्ष्म।
जब कोई भी संकल्प
में भी अंगीकार
वा स्वीकार न हो
तब ललकार हो। अभी
मिक्स है। इसलिए
रिजल्ट भी मिक्स
है। जो कल्प पहले
फिक्स हुए रिजल्ट
हैं वह अब नहीं
है। उस फिक्स को
भी जानते हो,
अब मिक्स हैं।
समझा। अपनेपन को
भी अंगीकार न करे।
मैं यह हूँ,
मैं सर्विसएबुल
हूँ। मैं महारथी
हूँ, मैं यह
करती हूँ, यह
किया... इन सबका
मैं-पन निकालकर
बाबा बाबा शब्द
आएगा तब ललकार
होगी। परमात्म
में ही परम बल होता
है। आत्माओं में
यथाशक्ति होती
है। तो बाबा कहने
से परम बल आएगा।
मैं कहने से यथाशक्ति
बल आता है। इसलिए
रिजल्ट भी यथाशक्ति
होती है।
अब भाषा
भी चेंज हो। साकार
रूप में सभी दिखाया।
कब कहा कि मैं यह
चला रहा हूँ? मैंने
मुरली अच्छी चलाई
कब कहा? मैंने
सर्विस की, मैंने बच्चों
को टच किया कब कहा।
यह अंगीकार करना
ख़त्म हो जाना है।
इसको कहा जाता
है जो वायदा किया
है वह निभाना।
आप लोग एक गीत गाते
थे तुम्हीं पर
मर मिटेंगे हम...
याद आता है?
मर मिटना किसको
कहा जाता है?
मैं पन मिटाना
यही मर मिटना है।
अंगीकार न करो
तो ललकार कर सकते
हो। कोई भी बात
न निन्दा-स्तुति,
न मैं, न तुम,
न मेरा तेरा
कुछ भी अंगीकार(स्वीकार) न करना तब ललकार
होगी। आप मन में
संकल्प पीछे करते
हो। आप के मन में
संकल्प पहुंचे
ही वहां पहुँच
जाता है। क्यों
पहले पहुँचता है
यह भी गुह्य पहेली
है। आप लोग मन में
जो संकल्प करते
हो वह आपके मन में
पीछे आता है उनके
पहले बापदादा के
पास स्पष्ट हो
जाता है। क्योंकि
सम्पूर्ण बनने
से ड्रामा क हर
नूंध स्पष्ट देखने
में आती है। इसलिए
ड्रामा की नूंध
को पहले से ही स्पष्ट
देख सकते। इसलिए
भविष्य देख करके
पहले से बात करते
हैं। पहले से जैसे
कि पहुंचा ही हुआ
है। फिर जब आप लोग
पार्ट बजाते हो,
बापदादा भी पार्ट
बजाते हैं। आप
रूहरूहान करने
का पार्ट बजाते
हो, बापदादा
सुनने का पार्ट
बजाते हैं। समझा।
जो जैसा है वैसा
स्वयं को पूरा
न भी जान सके लेकिन
बापदादा जान सकते
हैं। तो अब चारों
बल समानता में
लाने हैं। तब साकार
के समान बन जायेंगे।
जितना संस्कारों
को समानता में
लावेंगे उतना ही
समीप आयेंगे। कौन
से संस्कार?
साकार रूप के
संस्कार उपराम
और साक्षी दृष्टा
यह साकार के सम्पूर्ण
स्थिति के श्रेष्ठ
लक्षण थे। इन संस्कारों
में समानता लानी
है। इन गुणों से
सर्व के दिलों
पर विजयी होंगे।
जो संगम पर सर्व
के दिलों पर विजयी
बनता है वही भविष्य
में विश्व महाराजन
बनते हैं। विश्व
में सर्व आ जाते
हैं। तो बीज यहाँ
डालना है फल वहां
लेना है।
अच्छा – ओम
शान्ति !!!