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18-06-70 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन


वृद्धि के लिए टाइमटेबुल की विधि” 

बापदादा एक सेकंड में अव्यक्त से व्यक्त में आ गया वैसे ही बच्चे भी एक सेकंड में व्यक्त से अव्यक्त हो सकते हैं? जैसे जब चाहे तब मुख से बोले, जब चाहे तब मुख को बंद कर दें। ऐसे होता है ना। वैसे ही बुद्धि को भी जब चाहें तब चलायें, जब न चाहें तब न चले। ऐसा अभ्यास अपना समझते हो? मुख का ओर्गन्स कुछ मोटा है, बुद्धि मुख से सूक्ष्म है। लेकिन मुख के माफिक बुद्धि को जब चाहो तब चलाओ, जब चाहो तब न चलाओ। ऐसा अभ्यास है? यह ड्रिल जानते हो? अगर इस बात का अभ्यास मजबूत होगा तो अपनी स्थिति भी मजबूत बना सकेंगे। यह है अपनी स्थिति की वृद्धि की विधि। कई बच्चों का संकल्प है वृद्धि कैसे हो? वृद्धि विधि से होती है। अगर विधि नहीं जानते हो तो वृद्धि भी नहीं होगी। आज बापदादा हरेक की वृद्धि और विधि दोनों देख रहे हैं। अब बताओ क्या दृश्य देखा होगा? हरेक अपने आप से पूछे और देखें कि वृद्धि हो रही है? (बहुतों ने हाथ उठाया) मैजारिटी अपनी वृद्धि से संतुष्ट हैं। अच्छा सारे दिन में अव्यक्त स्थिति कितना समय रहती है? बिन्दी रूप के लिए नहीं पूछते हैं। अव्यक्त स्थिति कितना समय रहती है? बापदादा सम्पूर्ण स्टेज को सामने रख पूछते हैं और आप अपने पास्ट के पुरुषार्थ को सामने रख सोचते हो कितना फ़र्क हो गया। वर्तमान समय पढ़ाई की मुख्य सब्जेक्ट्स कौन सी चल रही है? मुख्य सब्जेक्ट यह पढ़ रहे हो कि ज्यादा से ज्यादा अव्यक्त स्थिति बने। तो मुख्य सब्जेक्ट में रिजल्ट तो कम है। निरंतर याद में रहने की सम्पूर्ण स्टेज के आगे एक दो घंटा क्या है। इनसे ज्यादा अपनी अव्यक्त स्थिति बनाने की विधि बुद्धि में है? अगर विधि है तो वृद्धि क्यों नहीं होती है, कारण? विधि का ज्ञान सारा स्पष्ट बुद्धि में आता है, लेकिन एक बात नहीं आती, जिस कारण विधि का मालूम होते भी वृद्धि नहीं होती है। वह कौन सी बात है। अच्छा, आज वृद्धि कैसे हो उस पर सुनाते हैं। एक बात जो नहीं आती वह यह है कि विस्तार करना और विस्तार में जाना आता है लेकिन विस्तार को जब चाहें तब समेटना और समा लेना यह प्रैक्टिस कम है। ज्ञान के विस्तार में आना भी जानते हो लेकिन ज्ञान के विस्तार को समाकर ज्ञान स्वरुप बन जाना, बीज रूप बन जाना इसकी प्रैक्टिस कम है। विस्तार में जाने से टाइम बहुत व्यर्थ जाता है और संकल्प भी व्यर्थ जाते हैं। इसलिए जो शक्ति जमा होनी चाहिए, वह नहीं होती, इसके लिए क्या प्लेन रचो, वह आज सुनते हैं।

सारे विश्व में बड़े से बड़े कौन हैं (हम ब्राह्मण) बड़े से बड़े आदमी क्या करते हैं? आज कल के जो बड़े आदमी हैं वह क्या साधन अपनाते हैं जिससे बड़े-बड़े कार्य में सफलता पाते हैं? वह पहले अपने समय को सेट करते हैं। अपना टाइम टेबुल बनाते हैं। जितना बहुत बिजी होगा उतना उसका एक एक घंटे का टाइम टेबुल बनाते हैं। अगर टाइम टेबुल नहीं होगा तो टाइम को सफल नहीं कर सकेंगे। टाइम को सफल नहीं करेंगे तो कार्य भी सफल नहीं होगा। इसलिए आजकल के बड़े आदमी हर समय का टाइम टेबुल बनाते हैं। अपनी डायरी में नोट रखते हैं। जब आप ब्राह्मण बड़े से बड़े हो तो आप अपना टाइम टेबुल रखते हो? यह एक विधि है। जैसे वह लोग सवेरे दिन आरम्भ होते ही टाइम टेबुल बनाते हैं। इस रीति आप हरेक अमृतवेले से ही टाइम टेबुल बनाओ कि आज के दिन क्या-क्या करना है? जैसे शारीरिक कार्य का टाइम टेबुल बना है वैसे आत्मा की उन्नति का भी टाइम टेबुल बनाओ। समझा। इसमें अटेंशन और चेकिंग कम है। अब ऐसा टाइम टेबुल बनाओ। जैसे वह लोग अपने प्लैन बनाते हैं। आज के दिन इतने कार्य समाप्त करने हैं इस रीति आज के दिन अव्यक्त स्थिति का इतना परसेंट और इतना समय निकालना है। टाइम प्रमाण चलने से एक ही दिन में अनेक कार्य कर सकते हैं। टाइम टेबुल नहीं होगा तो अनेक कार्य नहीं कर सकेंगे। तो अपनी डायरी बनाओ। जैसे एक घंटे का स्थूल कार्य बना हुआ है इस रीति आत्मा की उन्नति का कार्य नोट करो। प्लैन बनाओ। फिर जैसे स्थूल कार्य करने के बाद उस पर राईट डालते हो ना। यह हो चुका, यह नहीं हुआ। इस रीति जो भी प्लैन बनाते हो वह कहाँ तक प्रैक्टिकल में हुआ, वा नहीं हुआ, न होने का कारण और साथ उसका निवारण का साधन सोचकर आगे चढ़ते जाओ। आज के दिन यह करके ही छोड़ूंगा। ऐसे-ऐसे पहले से प्रतिज्ञा करो। कोई भी कार्य के लिए पहले प्रतिज्ञा होती है फिर प्लैन होता है। फिर होता है प्रैक्टिकल। और प्रैक्टिकल के बाद फिर होती है चेकिंग कि यह हुआ यह नहीं हुआ। चेकिंग के बात जो बीती सो बीती। आगे उन्नति का साधन रखते हैं। जैसे आप लोगों ने नए विद्यार्थियों के लिए साप्ताहिक पाठ्यक्रम बनाया है ना। तो आत्मा की उन्नति के लिए भी साप्ताहिक प्लैन बना सकते हो। जैसे यहाँ मधुबन में जब आते हो तो कुछ छोड़ करके जाते हो, कुछ भर कर जाते हो। इस रीति से हर दिन कुछ छोड़ो और कुछ भरो। जब इतना अटेंशन रखेंगे तब समय के पहले सम्पूर्ण बन सकेंगे। समय के अनुसार अगर सम्पूर्ण बनें तो उसकी इतनी प्राप्ति नहीं होती है। समय के पहले सम्पूर्ण बनना है। सम्पूर्णता क्या चीज़ है, उसका अनुभव करेंगे ईश्वरीय अतीन्द्रिय सुख निरन्तर क्या होता है, उसका अनुभव यहाँ ही करना है। अब देखेंगे कि कायदे मुजिब कैसे अपना टाइम टेबुल वा साप्ताहिक कार्यक्रम बनाते हो।

जितना जो सेन्सिबुल होते हैं वह ऐसे कार्य यथार्थ रीति से कर सकते हैं। सभी से सेन्सिबुल हैं ब्राह्मण। देवताओं से भी सेन्सिबुल ब्राह्मण हैं। तो कितना सेन्सिबुल बने हैं, उसकी परख होगी। सेन्स के साथ इसेन्स भी निकालना सीखना है। इसेन्स बहुत थोड़ा होता है। और जिसकी इसेन्स निकालते हैं वह बहुत विस्तार होता है। तो सेन्स भी अच्छा चाहिए और इसेन्स निकालने भी आना चाहिए। कोई कोई में सेन्स बहुत है, लेकिन इसेन्स में टिकना नहीं आता है। तो दोनों ही अभ्यास चाहिए। सुनाया था ना कि आप लोग भी नेचर क्योर करने वाले हो। नेचर अर्थात् संस्कार। जब पुरुषार्थ नहीं कर पाते हो तो दोष रखते हो नेचर पर। हमारी नेचर ऐसी है। नेचर पर दोष रख अपने को हल्का कर देते हो। लेकिन नहीं। आप लोगों का कर्तव्य ही है नेचर क्योर करना। वह नेचर क्योर वाले फ़ास्ट रखाते हैं। तो आप लोगों को अब क्या करना है? फ़ास्ट जाना है। लास्ट नहीं रहना है। फ़ास्ट जाने के लिए फ़ास्ट रखो। कौन सी फ़ास्ट? टाइम टेबुल बनाओ। आज इस बात की फ़ास्ट रखेंगे। प्रतिज्ञा करो। जैसे वह लोग कब कोई चीज़ की फ़ास्ट रखते हैं, वैसे आप लोग भी हर रोज़ कोई न कोई कमी की बात नोट करो। वह लोग भी जो चीज़ नुकसानकारक है उसके लिए फ़ास्ट रखते हैं। तो पुरुषार्थ में जो भी नुकसानकारक बातें हैं उनकी फ़ास्ट रखो फिर उसको चेक भी करो। कई व्रत रखते हैं, उपवास रखते हैं। लेकिन कर नहीं पाते तो बीच में खा भी लेते हैं। यहाँ भी ऐसे करते हैं। जैसे भक्ति मार्ग की आदत पड़ी हुई है। सुबह को प्रतिज्ञा करते हैं कि यह नहीं करेंगे फिर दिन आरम्भ हुआ तो वह प्रतिज्ञा ख़त्म। यहाँ भी ऐसे सुबह को प्रतिज्ञा करते हैं फिर कह देते समस्या ऐसी आ गई है। समस्या समाप्त होगी तो फिर करूँगा। अब वह संस्कार ख़त्म करो। समेटना और समाना सीखो। पुराने संस्कार समाना हैं। उसकी प्रतिज्ञा करो वा फ़ास्ट रखो, बड़े आदमियों के पहले से ही प्रोग्राम फिक्स होते हैं ना। आप लोग तो सभी से बड़े हो। तो अपना प्रोग्राम भी 6 मास का फिक्स करो। यह कार्य करके ही छोडूंगा। बन कर ही छोडूंगा जब इतना निश्चयबुद्धि बनेंगे तब विजयी बनेंगे। बाप में तो निश्चय है लेकिन अपने में भी निश्चयबुद्धि होकर कार्य करो तो फिर विजय ही विजय है। विजय के आगे समस्या कोई चीज़ नहीं है। फिर वह समस्या नहीं फील होगी लेकिन खेल फील होगा। खेल ख़ुशी से किया जाता है।

कोई कार्य सहज होता है तो आप लोग कहते हो ना यह तो बाएँ हाथ का खेल है अर्थात् सहज है। तो यह भी बुद्धि का खेल हो जायेगा। खेल में घबराएंगे नहीं। बड़े से बड़े हो तो बड़े से बड़ी स्थिति भी बनाओ। कई बड़े आदमी ऐसे होते हैं जो अपने बड़ेपन में ठहरना नहीं आता है। आप लोग ऐसे नहीं बनना। जितने बड़े हो उतना ही बड़ी स्थिति भी दिखलाओ। बड़ा कार्य करके दिखाओ। कम से कम आठ घंटे का लक्ष्य रखना है। अव्यक्त स्थिति के लिए कह रहे हैं। अव्यक्त स्थिति आठ घंटा बनाना बड़ी बात नहीं। अव्यक्त की स्मृति अर्थात् अव्यक्त स्थिति। बाप की दो घंटे याद क्यों? दो घंटे बाप की याद रही तो बाकी समय क्या किया? बाप के स्नेही हो वा माया के? जिससे स्नेह होता है, स्नेह अर्थात् संपर्क। जिससे संपर्क होता है तो उन जैसे संस्कार ज़रूर भरेंगे। संस्कार मिलने के आधार से ही संपर्क होता है ना। तो अगर बाप के स्नेही हो, संपर्क भी है तो संस्कार क्यों नहीं मिलते? फिर बापदादा कहेंगे कि माया के स्नेही हो। अगर दो घंटे बाप के स्नेही और 22 घंटा माया के स्नेही रहते हो तो क्या कहेंगे? सर्विस करते भी स्नेह को, संपर्क को न छोड़ो। सम्पूर्ण स्टेज तो नजदीक रहने की है। एक गीत भी है नान वो हम से जुदा होंगे। जब जुदा ही नहीं होंगे तो स्नेह दिल से कैसे निकलेगा। तो होना निरंतर चाहिए। परन्तु पुरुषार्थी के कारण फिर भी मार्जिन देते हैं। तो कम से कम 8 घंटे का लक्ष्य रखकर डायरी बनाओ, टाइम टेबुल बनाओ फिर रिजल्ट भी देखेंगे हर सप्ताह की रिजल्ट अपनी ब्राह्मणी से चेक कराओ। और हर सप्ताह की रिजल्ट इकट्ठी कर एक मास की रिजल्ट मधुबन आनी चाहिए। ब्राह्मणियों को काम करना चाहिए। हर सप्ताह की डायरी हरेक की चेक करो। क्या टाइम टेबुल बनाया। उसमें कहाँ तक सफल हुए। फिर शार्ट में एक मास की रिजल्ट मधुबन भेजनी है। अभी अलबेलेपन का समय नहीं है। बहुत समय अलबेला पुरुषार्थ किया। अब जो किया सो किया। फिर यह स्लोगन याद दिलाएंगे। जो आप लोग औरों को सुनाते होअब नहीं तो कब नहीं। अगर अब न करेंगे तो फिर कब करेंगे। फिर कब हो नहीं सकेगा। इसलिए स्लोगन भी याद रखना हर दिन का अलग-अलग अपने प्रति स्लोगन भी सामने रख सकते हो। जैसे यह स्लोगन है कि जो कर्म में करूँगा मुझे देख और करेंगे। इस रीति दूसरे दिन फिर दूसरा स्लोगन सामने रखो। जैसे बापदादा ने सुनाया कि सफलता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है। यह भी सुनाया था कि मिटेंगे लेकिन हटेंगे नहीं। इसी प्रकार हर रोज़ का कोई न कोई स्लोगन सामने रखो और उस स्लोगन को प्रैक्टिकल में लाओ। फिर देखो अव्यक्त स्थिति कितनी जल्दी हो जाती है।

फरिश्तों को फर्श की कभी आकर्षण नहीं होती है। अभी अभी आया और गया। कार्य समाप्त हुआ फिर ठहरते नहीं। आप लोगों ने भी कार्य के लिए व्यक्त का आधार लिया, कार्य समाप्त किया फिर अव्यक्त एक सेकंड में। यह प्रैक्टिस हो जाये फिर फ़रिश्ते कहलायेंगे।

अच्छा !!!


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