19-06-70 ओम
शान्ति अव्यक्त
बापदादा मधुबन
“त्रिमूर्ति
लाइट्स का
साक्षात्कार”
ब्राह्मणों
को त्रिमूर्ति
शिव वंशी कहते
हो ना। त्रिमूर्ति
बाप के बच्चे स्वयं
भी त्रिमूर्ति
हैं। बाप भी त्रिमूर्ति
है। जैसे बाप त्रिमूर्ति
है वैसे आप भी त्रिमूर्ति
हो? तीन प्रकार
की लाइट्स साक्षात्कार
की आती है? वह
मालूम है कौन सी
है, जो ब्राह्मणों
के तीन प्रकार
की लाइट्स साक्षात्कार
होते रहते हैं?
आप लोगों से
लाइट का साक्षात्कार
होता मालूम पड़ता
है? त्रिमूर्तिवंशी
त्रिमूर्ति बच्चों
की तीन प्रकार
की लाइट्स का साक्षात्कार
होता है। वह कौन
सी लाइट्स हैं?
एक तो लाइट का
साक्षात्कार होता
है नयनों से। कहते
हैं ना कि नयनों
की ज्योति। नयन
ऐसे दिखाई पड़ेंगे
जैसे नयनों में
दो बड़े बल्ब जल
रहे हैं। दूसरी
होती है मस्तक
की लाइट। तीसरी
होती हैं माथे
पर लाइट का क्राउन।
अभी यह कोशिश करना
है जो तीनों ही
लाइट्स का साक्षात्कार
हो। कोई भी सामने
आये तो उनको यह
नयन बल्ब दिखाई
पड़े। ज्योति ही
ज्योति दिखाई दें।
जैसे अंधियारे
में सच्चे हीरे
चमकते हैं ना।
जैसे सर्च लाइट
होती है, बहुत
फ़ोर्स से और अच्छी
रीति फैलाते हैं
– इस रीति से मस्तक
के लाइट्स का साक्षात्कार
होगा। और माथे
पर जो लाइट का क्राउन
है वह तो समझते
हो। ऐसे त्रिमूर्ति
लाइट्स का साक्षात्कार
एक-एक से होना
है। तब कहेंगे
यह तो जैसे फ़रिश्ता
है। साकार में
नयन, मस्तक
और माथे के क्राउन
के साक्षात्कार
स्पष्ट होंगे।
नयनों तरफ
देखते-देखते
लाइट देखेंगे।
तुम्हारी लाइट
को देख दूसरे भी
जैसे लाइट हो जायेंगे।
कितनी भी मन से
वा स्थिति में
भारीपन हो लेकिन
आने से ही हल्का
हो जाए। ऐसी स्टेज
अब पकडनी है। क्योंकि
आप लोगों को देखकर
और सभी भी अपनी
स्थिति ऐसी करेंगे।
अभी से ही अपना
गायन सुनेंगे।
द्वापर का गायन
कोई बड़ी बात नहीं
है। लेकिन ऐसे
साक्षात्कारमूर्त
और साक्षात् मूर्त
बनने से अभी का
गायन अपना सुनेंगे।
आप के आगे आने से
लाइट ही लाइट देखने
में आये। ऐसे होना
है। मधुबन ही लाइट
का घर हो जायेगा।
यह दीवे आदि देखते
भी जैसे कि नहीं
देखेंगे। जैसे
वतन में लाइट ही
लाइट देखने में
आती है वैसे यह
स्थूल वतन लाइट
का हाउस हो जायेगा।
जब आप चैतन्य लाइट
हाउस हो जायेंगे
तो फिर या मधुबन
भी लाइट हाउस हो
जायेगा। अभी यह
है लास्ट पढ़ाई
की लास्ट सब्जेक्ट
– प्रैक्टिकल
में। थ्योरी का
कोर्स समाप्त हुआ।
प्रैक्टिकल,
कोर्स की लास्ट
सब्जेक्ट हैं।
इस लास्ट सब्जेक्ट
में बहुत फ़ास्ट
पुरुषार्थ करना
पड़ेगा। इसी स्टेज
के लिए ही गायन
है।
बापदादा
से कब विदाई नहीं
होती है। माया
से विदाई होती
है। बापदादा से
तो मिलन होता है।
यह थोड़े समय का
मिलन सदा का मिलन
करने के निमित्त
बन जाता है। बाप
के साथ गुण और कर्तव्य
मिलना यही मिलन
है। यही प्रयत्न
सदैव करते रहना
है। अच्छा।
संकल्पों
को ब्रेक लगाने
का मुख्य साधन
कौन सा है? मालूम
है? जो भी कार्य
करते हो तो करने
के पहले सोचकर
फिर कार्य शुरू
करो। जो कार्य
करने जा रहा हूँ
वह बापदादा का
कार्य है, मैं
निमित्त हूँ। जब
कार्य समाप्त करते
हो तो जैसे यज्ञ
रचा जाता है तो
समाप्ति समय आहुति
दी जाती है। इस
रीति जो कर्तव्य
किया और जो परिणाम
निकला। वह बाप
को समर्पण, स्वाहा कर दिया
फिर कोई संकल्प
नहीं। निमित्त
बन कार्य किया
और जब कार्य समाप्त
हुआ तो स्वाहा
किया। फिर संकल्प
क्या चलेगा?
जैसे आग में चीज़
डाली जाती है तो
फिर नाम निशान
नहीं रहता वैसे
हर चीज़ की समाप्ति
में सम्पूर्ण स्वाहा
करना है। फिर आपकी
जिम्मेवारी नहीं।
जिसके अर्पण हुए
फिर जिम्मेवार
वह हो जाते हैं।
फिर संकल्प काहे
का। जैसे घर में
कोई बड़ा होता है
तो जो भी काम किया
जाता है तो बड़े
को सुनाकर खाली
हो जायेंगे। वैसे
ही जो कार्य किया,
समाचार दिया,
बस। अव्यक्त
रूप को सामने रख
यह करके देखो।
जितना जो सहयोगी
बनता है उनको एक्स्ट्रा
सहयोग देना पड़ता
है। जैसे अपनी
आत्मा की उन्नति
के लिए सोचते हैं
इस रीति शुद्ध
भावना, शुभ
चिन्तक और शुभ
चिंतन के रूप में
एक्स्ट्रा मदद,
दोनों रूप से
किसी भी आत्मा
को विशेष सहयोग
दे सकते हो। देना
चाहिए। इससे बहुत
मदद मिलती है।
जैसे कोई गरीब
को अचानक बिगर
मेहनत प्राप्ति
हो जाती है,
उस रीति जिस भी
आत्मा के प्रति
एक्स्ट्रा सहयोग
दिया जाता है वह
आत्मा भी महसूस
करती है हमको विशेष
मदद मिली है। साकार
रूप में भी एक्स्ट्रा
कोई आत्मा को सहयोग
दने का साबुत करके
दिखाया ना। उस
आत्मा को स्वयं
भी अनुभव हुआ।
यस सर्विस करके
दिखानी है। जितना-जितना आप सूक्ष्म
होते जायेंगे उतना
यह सूक्ष्म सर्विस
भी बढती जाएगी।
स्थूल के साथ सूक्ष्म
का प्रभाव जल्दी
पड़ता है और सदा
काल के लिए। बापदादा
भी विशेष सहयोग
देते हैं। एक्स्ट्रा
मदद का अनुभव होगा।
मेहनत कम प्राप्ति
अधिक। अच्छा।
बापदादा
बच्चों से जितना
अविनाशी स्नेह
करते हैं उतना
बच्चे अविनाशी
स्नेह रखते हैं? यह
अविनाशी स्नेह
यही एक धागा है
जो 21 जन्मों
के बंधन को जोड़ता
है। सो भी अटूट
स्नेह। जितना पक्का
धागा होता है उतना
ही ज्यादा समय
चलता है। यह संगम
का समय 21 जन्मों
को जोड़ता है। इस
संगम के युग का
एक –एक संकल्प
एक-एक कर्म
21 जन्म के बैंक
में जमा होता है।
इतना अटेंशन रखकर
फिर संकल्प भी
करना। जो करूँगा
वह जमा होगा। तो
कितना जमा होगा।
एक संकल्प भी व्यर्थ
न हो। एक संकल्प
भी व्यर्थ हुआ
तो जमा कट हो जाता
है। तो जमा जब करना
होता है तो एक भी
व्यर्थ न हो। कितना
पुरुषार्थ करना
है! संकल्प
भी व्यर्थ न जाए।
समय तो छोड़ो। अब
पुरुषार्थ इस सीमा
पर पहुँच रहा है।
जैसे पढ़ाई दिन
प्रतिदिन ऊँची
होती जाती है तो
यह भी ऐसे है। बड़े
क्लास में पढ़ रहे
हो ना।
अच्छा !!!