25-06-70 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
“व्यक्त और अव्यक्त वतन की भाषा में अंतर”
व्यक्त लोक में रहते अव्यक्त वतन की भाषा को जान सकते हो?
अव्यक्त वतन की भाषा कौन सी होती है? कब अव्यक्त वतन की भाषा
सुनी है? अभी तो अव्यक्त को व्यक्त लोक के निवासियों के लिए
अव्यक्त आधार ले व्यक्त देख की रीति माफिक बोलना पड़ता है । वहाँ
अव्यक्त वतन में तो एक सेकंड में बहुत कुछ रहस्य स्पष्ट हो जाते
हैं । यहाँ आप की दुनिया में बहुत बोलने के बाद स्पष्ट होता है
। यह है फ़र्क व्यक्त भाषा और अव्यक्त बापदादा के इशारों से यह
समझ सकते हो कि आज बापदादा क्या देख रहे हैं? जैसे साइंस द्वारा
कहाँ-कहाँ बातें, कहाँ कहाँ के दृश्य कैच कर सकते हैं । वैसे
आप लोग अव्यक्त स्थिति के आधार से सम्मुख की बातों को कैच नहीं
कर सकते हो? तीन बातें देख रहे हैं । वह कौन सी? बापदादा आज यही
देख रहे हैं कि हरेक कहाँ तक चेकर बना है और चेकर के साथ मेकर
कहाँ तक बने हैं । जितना जो चेकर होगा उतना मेकर बन सकता है ।
इस समय आप लॉ मेकर भी हो और न्यू वर्ल्ड के मेकर भी हो और पीस
मेकर भी हो । लेकिन मेकर के साथ चेकर ज़रूर बनना है । विशेष क्या
चेक करना है? यही सर्विस अब रही हुई है जिससे नाम बाला होना है
। वह चेकर्स क्या चेक करे हैं? एडल्टरेशन करने वाले जो हैं
उन्हों के पास ऑलमाइटी गवर्नमेंट का चेकर बनकर जाओ । जैसे उस
गवर्नमेंट के चेकर्स व इंस्पेक्टर्स कोई के पास जाते हैं तो वह
अपना भेद बता नहीं देते हैं । इस रीति से पाण्डव गवर्नमेंट के
अथॉरिटी से चेकर्स बनकर जाओ । जो वह देखने से ही अपनी करप्शन,
एडल्टरेशन से घबराएंगे और फिर सिर झुकायेंगे । अब यह सर्विस रही
हुई है । इससे ही नाम बाला होना है । एक ने भी सिर झुकाया तो
अनेकों के सिर झुक जायेंगे । पाण्डव गवर्नमेंट की अथॉरिटी बनकर
जाना और ललकार करना । अब समझा । अपना भी चेकर बनना है और
सर्विस में भी । जो जितना चेकर और मेकर बनता है वही फिर रूलर
भी बनता है । तो कहाँ तक चेकर बने हैं और मेकर्स बने हैं और कहाँ
तक रूलर्स बने हैं । यह बातें एक-एक की देख रहे हैं ।
जब अपने को इन तीन रूपों में स्थित करेंगे तो फिर छोटी-छोटी
बातों में समय नहीं जायेगा । जब है ही औरों के भी करप्शन,
एडल्टरेशन चेक करनेवाले तो अपने पास फिर करप्शन, एडल्टरेशन रह
सकती है? तो यह नशा रहना चाहिए कि हम इन तीनों ही स्थितियों
में कहाँ तक स्थित रह सकते हैं । रूलर्स जो होते हैं वह किसके
अधीन नहीं होते हैं । अधिकारी होते हैं । वह कब किसके अधीन नहीं
हो सकते । तो फिर माया के अधीन कैसे होंगे? अधिकार को भूलने से
अधिकारी नहीं समझते । अधिकारी न समझने से अधीन हो जाते हैं ।
जितना अपने को अधिकारी समझेंगे उतना उदारचित्त ज़रूर बनेंगे ।
जितना उदार चित्त बनता उतना वह उदाहरण स्वरुप बनता है – अनेकों
के लिए । उदारचित्त बनने के लिए अधिकारी बनना पड़े । अधिकारी का
अर्थ ही है की अधिकार सदैव याद रहे । तो फिर उदाहरण स्वरुप
बनेंगे । जैसे बापदादा उदाहरण रूप बने । वैसे आप सभी भी अनेकों
के लिए उदाहरण रूप बनेंगे । उदारचित्त रहने वाला भी उदाहरण भी
बनता और अनेकों का सहज ही उद्धार भी कर सकता है । समझा । जब
कोई में माया प्रवेश करती है तो पहले किस रूप में माया आती है?
(हरेक ने अपना-अपना विचार सुनाया) पहले माया भिन्न-भिन्न रूप
से आलस्य ही लाती है । देह अभिमान में भी पहला रूप आलस्य का
धारण करती है । उस समय श्रीमत लेकर वेरीफाई कराने का आलस्य करते
हैं फिर देह अभिमान बढ़ता जाता है और सभीं बातों में
भिन्न-भिन्न रूप से पहले आलस्य रूप आता है । आलस्य, सुस्ती और
उदासी ईश्वरीय सम्बन्ध से दूर कर देती है । साकार सम्बन्ध से
वा बुद्धि के सम्बन्ध से वा सहयोग लेने के सम्बन्ध से दूर कर
देती है । इस सुस्ती आने के बाद फिर विकराल रूप क्या होता है?
देह अहंकार में प्रत्यक्ष रूप में आ जाते हैं । पहले छठे विकार
से शुरू होते हैं । ज्ञानी तू आत्मा वत्सों में लास्ट नंबर
अर्थात् सुस्ती के रूप से शुरू होती है । सुस्ती में फिर कैसे
संकल्प उठेंगे । वर्तमान इसी रूप से माया की प्रवेशता होती है
। इस पर बहुत ध्यान देना है । इस छठे रूप में माया भिन्न-भिन्न
प्रकार से आने की कोशिश करती है । सुस्ती के भी भिन्न-भिन्न
रूप होते हैं । शारीरिक, मानसिक, दोनों सम्बन्ध में भी माया आ
सकती है । कई सोचते हैं चलो अब नहीं तो फिर कब यह कर लेंगे ।
जल्दी क्या पड़ी है । ऐसे-ऐसे बहुत रॉयल रूप से माया आती है ।
कई यह भी सोचते हैं कि अव्यक्त स्थिति इस पुरुषार्थी जीवन में
6-8 घंटा रहे, यह हो ही कैसे सकता है । यह तो अन्त में होना है
। यह भी सुस्ती का रॉयल रूप है । फिर करूँगा, सोचूंगा, देखूंगा
यह सब सुस्ती है । अब इसके चेकर बनो । कोई को भी रॉयल रूप में
माया पीछे हटती तो नहीं है? प्रवृत्ति की पालना तो करना ही है
। लेकिन प्रवृत्ति में रहते वैराग्य वृत्ति में रहना है, यह
भूल जाता है । आधी बात याद रहती है, आधी बात छोड़ देते हैं ।
बहुत सूक्ष्म संकल्पों के रूप में पहले सुस्ती प्रवेश करती है
। इसके बाद फिर बड़ा रूप लेती है ।
अगर उसी समय ही उनको निकाल दें तो ज्यादा सामना न करना पड़े ।
तो अब यह चेक करना है कि तीव्र पुरुषार्थी बनने में वा हाई
जम्प देने में किस रूप में माया सुस्त बनाती है । माया का जो
बाहरी रूप है उनको तो चेक करते हो लेकिन इस रूप को चेक करना है
। कई यह भी सोचते हैं कि फिक्स सीट्स ही कम है । तो औरों को आगे
पुरुषार्थ में देख अपनी बुद्धि में सोच लेते हैं कि इतना आगे
हम जा नहीं सकेंगे । इतना ही ठीक है । यह भी सुस्ती का रूप है
। तो इन सभी बातों में अपने को चेंज कर लेना है । तब ही लॉ
मेकर्स वा पीस मेकर्स बन सकेंगे । वा न्यू वर्ल्ड मेकर्स बन
सकेंगे । पहले स्वयं हो ही न्यू नहीं बनायेंगे तो न्यू वर्ल्ड
मेकर्स कैसे बनेंगे । पहले तो खुद को बनाना है ना । पुरुषार्थ
में तीव्रता लाने का तरीका मालूम है । फिर उसमें ठहरते क्यों
नहीं हो । जब तक अपने आप से कोई प्रतिज्ञा नहीं की है तब तक
परिपक्वता आ नहीं सकेगी । जब तक यहाँ फिक्स नहीं करेंगे तब तक
वहाँ सीट्स फिक्स नहीं होंगी । तो अब बताओ पुरुषार्थ में
तीव्रता कब लायेंगे?(अभी से) म्यूजियम वा प्रदर्शनी में जो
स्लोगन सभी को सुनाते हो ना कि ‘अब नहीं तो कब नहीं’ । वह अपने
लिए भी याद रखो । कब कर लेंगे ऐसा न सोचो । अभी बनकर दिखायेंगे
। जितना प्रतिज्ञा करेंगे उतनी परिपक्वता वा हिम्मत आएगी और
फिर सहयोग भी मिलेगा ।
आप पुराने हो इसलिए आप को सामने रख समझा रहे हैं । सामने कौन
रखा जाता है? जो स्नेही होता है । स्नेहियों को कहने में कभी
संकोच नहीं आता है । एक-एक ऐसे स्नेही हैं । सभी सोचते हैं बाबा
बड़ा आवाज़ क्यों नहीं करते हैं । लेकिन बहुत समय के संस्कार से
अव्यक्त रूप से व्यक्त में आते हैं तो आवाज़ से बोलना जैसे अच्छा
नहीं लगता है । आप लोगों को भी धीरे-धीरे आवाज़ से परे इशारों
पर कारोबार चलानी है । यह प्रैक्टिस करनी है । समझा । बापदादा
बुद्धि की ड्रिल कराने आते हैं जिससे परखने की और दूरांदेशी
बनने की क्वालिफिकेशन इमर्ज रूप में आ जाये । क्योंकि आगे चल
करके ऐसी सर्विस होगी जिसमे दूरांदेशी बुद्धि और निर्णयशक्ति
बहुत चाहिए । इसलिए यह ड्रिल करा रहे हैं । फिर पावरफुल हो
जाएँगी । ड्रिल से शरीर भी बलवान होता है । तो यह बुद्धि की
ड्रिल से बुद्धि शक्तिशाली होगी । जितनी-जितनी अपनी सीट फिक्स
करेंगे समय भी फिक्स करेंगे तो अपना प्रवृत्ति का कार्य भी
फिक्स कर सकेंगे । दोनों लाभ होंगे । जितनी बुद्धि फिक्स रहती
है तो प्रोग्राम भी सभी फिक्स रहते हैं । प्रग्राम फिक्स तो
प्रोग्राम फिक्स । प्रोग्रेस हिलती है तो प्रोग्राम भी हिलते
हैं अब फिक्स करना सीखो । अब सम्पूर्ण बनकर औरों को भी
सम्पूर्ण बनाना बाकी रह गया है । जो बनता है वह फिर सबूत भी
देता है । अभी बनाने का सबूत देना है । बाकी इस कार्य के लिए
व्यक्त देश में रहना है ।
अच्छा !!!