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11-07-70 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन


संगमयुग की डिग्री और भविष्य की प्रालब्ध” 

आज बापदादा सभी स्टूडेंट्स की पढ़ाई बाद क्या-क्या डिग्री प्राप्त की है वह देख रहे हैं। इस पढ़ाई की डिग्री कौन सी मिलती है? डिग्री मिलनी है वा मिली है? पढ़ाई के बाद डिग्री मिलती है ना। तो इस संगम पर आपको क्या मिलेगा? सम्पूर्ण फ़रिश्ता वा अव्यक्त फ़रिश्ता। यह है संगमयुग की डिग्री। और दैवीपद है भविष्य की प्रालब्ध। तो अब की डिग्री है सम्पूर्ण अव्यक्त फ़रिश्ता। इस डिग्री की मुख्य क्वालिफिकेशन कौन-कौन सी हैं और कहाँ तक हरेक स्टूडेंट इसमें क्वालिफाइड बना है। यह देख रहे हैं। जितना क्वालिफाइड होगा उतना ही औरों को भी क्वालिफाइड बनाएगा। क्वालिफाइड जो होगा वही बनाएगा क्वालिटी। और जो नहीं होगा वह बनाएगा क्वांटिटी। तो आज सभी की क्वालिटीज़ देख रहे हैं। देखा जाता है ना कि किन-किन क्वालिटीज़ में क्वालिफाइड हैं। तो यहाँ मुख्य क्वालिटीज़ में एक तो देख रहे हैं कि कहाँ तक नॉलेजफुल बने हैं। नॉलेजफुल के साथ फैथफुल, सक्सेसफुल, पावरफुल, और सर्विसएबुल कहाँ तक बने हैं। इतनी क्वालिटीज़ अगर सभी में आ जाएँ तो फिर डिग्री मिल जाएगी। तो हरेक को यह देखना है कि इन क्वालिटीज़ में कौन-कौन सी क्वालिटीज़ धारण हुई हैं। नॉलेज फुल अर्थात् बुद्धि में फुल नॉलेज की धारणा। जितना नॉलेजफुल होगा उतना ही वह सक्सेसफुल होगा। अगर सक्सेसफुल कम हैं तो समझेंगे नॉलेज की कमी है। सक्सेसफुल न होने के कारण क्या है? फैथफुल कम। फैथफुल अर्थात् निश्चयबुद्धि। एक तो अपने में फैथ दूसरा बाप-दादा में और तीसरा सर्व परिवार की आत्माओं में फैथफुल होना पड़ता है। जितना फैथफुल बनकर निश्चयबुद्धि होकर कोई कर्तव्य करेंगे तो निश्चयबुद्धि की विजय अर्थात् फैथफुल होने से सक्सेसफुल हो ही जाता है। उसका हर कर्तव्य, हर संकल्प, हर बोल पावरफुल होगा। ऐसे क्वालिफाइड को ही यह डिग्री प्राप्त हो सकती है। अगर डिग्री को प्राप्त नहीं करते तो क्या होता है मालूम है? कोर्ट द्वारा क्या निकलता है? डिक्री (नोटिस)। या तो डिग्री मिलेगी या तो डिक्री निकलेगी। धर्मराजपुरी में बंद होने की डिक्री निकलेगी।

इसलिए पुरुषार्थ कर डिग्री लेनी है। डिक्री नहीं निकालनी है। जिन्हों पर डिक्री निकलती है वह शर्मसार हो जाते हैं। इसलिए सदैव चेक करो कि कहाँ तक क्वालिफाइड बने हैं? यह तो मुख्य क्वालिफिकेशन बताई। लेकिन लिस्ट तो बड़ी लम्बी है। हर क्वालिटीज़ के पीछे फुल शब्द भी है। फैथफुल, पावरफुल।.... तो इस रीति से सभी गुणों में फुल हैं तब डिग्री मिलेगी। सभी सक्सेस तो होते हैं लेकिन सक्सेसफुल हैं, पावरफुल हैं या कम हैं यह देखना है। जो इन सर्व गुणों में फुल होगा उनको ही सम्पूर्ण अव्यक्त फ़रिश्ता की डिग्री मिलती है। सभी ने यही लक्ष्य रखा है ना। अभी वर्तमान समय कौन सा है? अभी है बहुत नाज़ुक समय। अभी नाज़ से चलने का समय नहीं है। वह नाज़ बचपन के थे। अगर नाज़ुक समय में भी कोई नाजों से चलेंगे तो रिजल्ट में नुकसान ही होगा। इसलिए अभी संहारीमूर्त बनना है। विकरालरूप धारी बनना है। तो अब दिन प्रतिदिन नाज़ुक समय होने के कारण संहारीमूर्त बनना है। संहार भी किसका? अपने संस्कारों का। अपने विकर्मों पर और विकर्मी आत्माएं जो इस समय हैं उन्हों के ऊपर अब विकराल रूप धारण कर एक सेकंड में भस्म करने का है। शंकर के लिए कहते हैं ना कि एक सेकंड में आँख खोली और विनाश। यह संहारीमूर्त के कर्तव्य की निशानी है। कोई के भी ऊपर विकराल रूप बनकर दृष्टि डाली और उनके विकर्मी संस्कारों को भस्म कर दें। तो विकर्मों और व्यर्थ कर्मों, विकर्मियों के ऊपर अब विकराल रूप धारण करना है। अब स्नेहीमूर्त भी नहीं। अब तो काली रूप चाहिए। विकाराल संहारी रूप चाहिए। अब लास्ट समय है। अब तक अगर विकराल रूपधारी नहीं बनेंगे तो अपने विकर्मों और विकर्मियों का सामना नहीं कर सकेंगे। अभी समाने की बात नहीं। विकर्मों, व्यर्थ संकल्पों को वा विकर्मियों के विकर्मी चलन को अब समाना नहीं है लेकिन संहार करना है। अब स्नेह को समाना है। शक्तिरूप को प्रत्यक्ष करना है। शक्तियों को एक ही समय तीन बातें धारण करनी हैं। एक तो मस्तक में मातृ-स्नेहीपने का गुण, रूप में रूहानियत और वाणी में वज्र। एक-एक बोल विकर्मों और विकर्मियों को ख़त्म करनेवाला हो। जब यह तीनों बातें इकट्ठी धारण होंगी तब क्या होगा? विकर्मों और विकर्मी भस्म हो जायेंगे। शक्तियों की नज़र से विकर्मी आत्माएं कम्पायमान होंगी। किससे? अपने विकर्मों से। तो अब संहारकारी बनो और जल्दी-जल्दी संहार करो। कहाँ-कहाँ श्रृंगार करते संहार को भूल जाते हैं। श्रृंगार तो बहुत किया लेकिन अब संहार करो। मास्टर ब्रह्मा भी बने, पालना की, श्रृंगार किया लेकिन अब पार्ट है संहार का। शक्तियों के अलंकार और शक्तियों की ललकार और शक्तियों के किस कार्य का गायन है? घुँघरू की झंकार। घुँघरू डालकर असुरों पर नाचना है। नाचने से क्या होता है? जो भी चीज़ होगी वह दब कर ख़त्म हो जएगी। निर्भयता और विनाश की निशानी यह घुँघरू की झंकार है। ऐसे नहीं कि पाण्डवों ने नहीं किया है। पाण्डव भी शक्ति रूप हैं। शक्ति रूप में दोनों आ जाते हैं। तो यह तीनों कर्तव्य प्रैक्टिकल और प्रत्यक्ष रूप में चल रहे हैं। अब कमजोरों का काम नहीं हैं। मैदान पर कमज़ोर नहीं आते हैं। शूरवीर आते हैं। तो अब मैदान पर प्रत्यक्ष होने का समय है। शूरवीर शक्तिरूप बनकर प्रत्यक्ष रूप में सामने आओ। जब इस रूप में प्रत्यक्ष होंगे तब क्या होगा? प्रत्यक्षता। बाप और बच्चों की प्रत्यक्षता होगी। जितना प्रत्यक्ष होंगे उतनी प्रत्यक्षता होगी। तो बाप को प्रख्यात करने के लिए प्रत्यक्ष होना पड़े। अब तक अपनी ही कमजोरियों को विदाई न देंगे तो सृष्टि के कल्याणकारी कैसे बनेंगे। इसलिए अपनी कमजोरियों को अब विदाई दो तब सृष्टि के कल्याणकारी बन सकेंगे। अच्छा

पार्टियों के साथ :-

1: वर्तमान समय सभी क्या विशेष पुरुषार्थ कर रहे हैं? सन्देश देना यह तो साधारण बात है। विशेष आत्मा बनने के लिए विशेष कार्य भी करना पड़ेगा। आजकल दुनिया के जो विशेष आत्माएं हैं उन पर विशेष ध्यान देना है। एक विशेष आत्मा के ऊपर ध्यान देने से अनेकों का ध्यान स्वतः ही खिंच जायेगा। विशेष आत्मा पर ध्यान देने से वह विशेष नहीं, तुम विशेष बनेंगे। विशेष ध्यान से कोई भी व्यर्थ संकल्प, कर्म वा समय नहीं जायेगा। शक्ति अगर जमा हो जाती है तो विशेष सर्विस भी सहज हो जाती है। तो अब पुराने हिसाब-किताब के चौपड़े को ख़त्म कर नया चौपड़ा बनाना है। जो जितना क्वालिफाइड होता है उतना ही उसकी वैल्यू होती है। वैल्यूएबुल चीज़ को कभी भी साधारण स्थान पर नहीं रखा जाता है। उसको विशेष स्थान दिया जाता है। तो क्वालिफिकेशन्स को सामने रख फिर नोट करते जाओ कि कितने परसेंट बने हैं। जब सेंट-परसेंट हो जायेंगे तो यह जो सेंट (साधु-संत) हैं, वह भी झुकेंगे। और उन्हों के झुकने से वह झंकार दूर-दूर तक सभी के कानों में पहुँचेगी। यथार्थ पुरुषार्थ का अर्थ ही है वहाँ ही पुरुषार्थ और वहाँ ही प्राप्ति। इस संगमयुग को विशेष वरदान है प्रत्यक्ष फल प्राप्त कराने का। फल भी ऐसा है, जो पुरुषार्थ कम प्रालब्ध जास्ती। तो समय की विशेषता को जान अपने में विशेषता भरनी है। अगर कमी रह जाएगी तो फिर कमी की निशानी क्या होगी? कमान। अगर कमाल नहीं करेंगे तो कमान मिलेगी। एक सेकंड का भी फल अगर प्राप्त नहीं किया तो फुल नहीं बनेंगे। फ़ैल की लिस्ट में आ जायेंगे।

2: दिल्ली को कहते हैं बापदादा की दिल। जैसे दिल की धड़कन से तंदुरुस्ती का मालूम पड़ता है वैसे दिल्ली के आवाज़ से समाप्ति का आवाज़ सुनेंगे। दिल्ली है दर्पण, तो दिल्ली वालों की कितनी जिम्मेवारी है। जितना बड़ा जिम्मेवारी का ताज उतना ही सतयुग में भी बड़ा ताज मिलेगा। इसको कहते हैं बेहद की जिम्मेवारी। बाप भी मधुबन में रहते बेहद की सर्विस करते थे ना। तो एक-एक को बेहद की जिम्मेवारी है। बेहद की बुद्धि कैसे होती है? बेहद की बात सोचना, बेहद परिवार से सम्बन्ध और स्नेह, सर्व स्थान अपने। .... ऐसे को कहते हैं बेहद का सर्विसएबुल। हद की सर्विस वाले को सर्विसएबुल नहीं कहेंगे।

3: मधुबन को कहते हैं सेफ (तिजोरी)। मधुबन निवासी से में पड़े हैं। सेफ में रहने वाले कौनसी मणियाँ हो? सभी से बढ़िया मणि होती है मस्तकमणि। मस्तकमणि कम होती है, ह्रदयमणियाँ ज्यादा होती हैं। जो ज्यादा सेफ में रहते हैं, वह मस्तकमणि हैं। योगयुक्त और निश्चयबुद्धि बनकर के कर्तव्य करने से सफलता प्राप्त हूँ ही जाती है। पहले से ही अगर यह संकल्प बुद्धि में होता है कि करते हैं परन्तु मिलता मुश्किल है। तो यह संकल्प भी निश्चय की परसेंट को कम कर देता हैं। निश्चयबुद्धि हो करें तो फेल नहीं होंगे। समस्याओं का सामना करने से सफलता मिलती है। विघ्न तो आएंगे लेकिन लगन की अग्नि से विघ्न भस्म हो जायेंगे।

अच्छा !!!


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