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Brahma Kumaris Brahma Kumaris

30-07-70       ओम शान्ति       अव्यक्त बापदादा        मधुबन


महारथी अर्थात् महानता” 

आज पाण्डव सेना की भट्ठी का समाप्ति समारोह है या आज शुरुआत करते हो? (समीपता आरम्भ हुई है) विशेष कौन सी इम्प्रूवमेंट की है और उसके लिए क्या विशेष संकल्प किया है? परिवर्तन शुरू हुआ है कि होगा? संकल्प रूप में लिया है वा संस्कार भर लिया है (हरेक ने अपना-अपना सुनाया) यह है पाण्डव सेना की भट्ठी का पेपर । इस एक प्रश्न से पूरा पेपर हो गया । वर्तमान समय संकल्प और कर्म साथ-साथ होना ही आवश्यक है । अभी-अभी संकल्प किया अभी-अभी कर्म में लाया । संकल्प और कर्म में महान अन्तर नहीं होना चाहिए । महारथियों का अर्थ ही है महानता । तो महानता सिर्फ संकल्प में नहीं सर्व में महानता । यह है महारथियों की निशानी । संकल्प को प्रैक्टिकल में लाने के लिए सोच करने में समय नहीं लगता क्योंकि महारथियों के संकल्प भी ऐसे होते हैं जो संकल्प प्रैक्टिकल में संभव हो सकते हैं । यह करें न करें, कैसे करें क्या होगा यह सोचने की उनको आवश्यकता नहीं है । संकल्प ही ऐसे उत्पन्न होंगे जो संकल्प उठा और सिद्ध हुआ । इससे अपनी स्टेज की परख कर सकते हो । फाइनल स्टेज है ही योग की सिद्धि प्राप्त करना । कर्म की सिद्धि प्राप्त करना । इसके लिए कौन सी मुख्य पावर धारण करना है, जो यह सिद्ध हो जाएँ । संकल्प, वाणी, कर्म सभी सिद्ध हो जाएँ, इसके लिए कौन सी पॉवर चाहिए? सभी जो शक्तियां सुनाई थीं वह तो चाहिए ही लेकिन उनमें भी पहले कंट्रोलिंग पावर विशेष चाहिए । अगर कंट्रोलिंग पावर नहीं तो व्यर्थ मिक्स होने के कारण सिद्धि प्राप्त नहीं होती । अगर यथार्थ उत्पत्ति हो संकल्पों की वा यथार्थ वाणी निकले, यथार्थ कर्म हो तो हो नहीं सकता कि सिद्ध न हो । लेकिन व्यर्थ मिक्स होने कारण सिद्धि प्राप्त नहीं होती । यथार्थ की सिद्धि होती है । व्यर्थ की नहीं होती है । व्यर्थ को कण्ट्रोल किया जाता है, उसके लिए कंट्रोलिंग पावर ज़रूर चाहिए, किसी प्रकार की कमज़ोरी का कारण कंट्रोलिंग पावर की कमी है । कमज़ोरी क्यों होती है? अपने संस्कारों को मिटा नहीं सकते । समझते हुए भी यह संकल्प यथार्थ है वा व्यर्थ है, समझते हुए भी कंट्रोलिंग पावर नहीं है । जब कण्ट्रोल करें तब उसके बदले में और संस्कार अपने में जमा कर सकेंगे । कंट्रोलिंग पावर की कमी होने के कारण अपने को ही कण्ट्रोल नहीं कर पाते हैं । अपनी रचना का रचयिता बनना आता है? कौन सी रचना रचनी है? वह यथार्थ रचना रचने में कमी है । ऐसी रचना रच लेते हैं जो स्वयं ही अपनी रचना से परेशान हो जाते हैं । अब पाण्डव सेना को प्रैक्टिकल क्या सबूत देना है? जो कमज़ोरी के बोल, कमज़ोरी के कर्म करते हो उनकी समाप्ति का समाप्ति समारोह करना है । भट्ठी के समाप्ति का समारोह नहीं । कमज़ोरी की समाप्ति और हर संकल्प ऐसा पावरफुल उत्पन्न हो जो एक-एक संकल्प कमाल कर दिखानेवाला हो । तो कमज़ोरी की जगह कमाल को भरना होगा । कमज़ोरी शब्द ही अब शोभता नहीं । विश्व का आधार आप आत्माओं के ऊपर है । तो जो विश्व के आधारमूर्त और उद्धारमूर्त हैं ऐसी मूर्तियों के मुख से कमज़ोरी के शब्द शोभते नहीं हैं । अब तो हरेक की मूर्ति में सभी को क्या साक्षात्कार होगा? बापदादा का । ऐसी अलौकिक झलक सभी की मूर्त में दिखाई देनी है जो कोई भी उस झलक को देखकर फ़िदा हो जाए । सभी को फ़िदा कर सकेंगे । कोई को मुक्तिधाम, कोई को जीवनमुक्तिधाम । कोई भी ऐसा न रहे जो आप लोगों से अपना यथा पार्ट हक़ न ले ले । सभी आत्माओं को आप लोगों द्वारा अपना-अपना यथा पार्ट तथा बाप का वर्सा ज़रूर लेना है ।आपकी मूर्त में ऐसी झलक होनी है कि जो कोई भी अपना वर्सा लेने से वंचित नहीं रहेंगे । ऐसे अपने को दाता के बच्चे दाता समझना है । देने वालों में फलक और झलक रहती है । अभी वह मर्ज है । उन संस्कारों को अब इमर्ज करो । किस बात में बिज़ी हैं जो वह झलक अब तक इमर्ज नहीं होती है? कमजोरियों को मिटाने में बिज़ी हैं । चुक्तू तो करना ही पड़ेगा । लेकिन एक होता है जल्दी मुक्त करना । वही हिसाब कोई 5 मिनट में कोई आधा घंटा भी लगाते हैं । कोई तो सारा दिन सोचते भी हिसाब नहीं निकाल सकते । यह सभी विशेष आत्मायें हैं तो हर संकल्प हर कर्म विशेष होना चाहिए । जिससे हर आत्मा को प्रेरणा मिले – आगे बढ़ने की । क्योंकि आप सभी आधारमूर्त हो । अगर आधार ही ऐसा होगा तो दूसरे क्या करेंगे? विशेष आत्माओं को विशेष ध्यान देना ही है । अब बीती को संकल्प में भी इमर्ज नहीं करना है । अगर भूल से पुराने संस्कारों की विष इमर्ज हो भी जाए तो उसको ऐसा समझो कि यह बहुत पिछले जन्म के संस्कार हैं । अब के नहीं । पुरानी बीती हुई बातों को बार-बार कोई वर्णन करे तो इसको कहा जाता है व्यर्थ । इस पाण्डव सेना को पहले अपने परिवार के बीच एक उदहारण बनकर दिखाना है । जैसे साकार रूप में उदाहरण बने ना । ऐसे फॉलो फ़ादर । इसलिए आज का दिन कहेंगे पुराने संस्कार और संकल्प के समाप्ति समारोह का दिवस । समझा ।
इस ग्रुप का नाम क्या हुआ? जब नाम दिया जाता है तो किस आधार पर दिया जाता है? आज कौन सा दिन है? बृहस्पतिवार । बृहस्पति की दशा अर्थात् सफलता । तो यह ग्रुप है सर्व के सहयोगी, सफलतामूर्त संगठन । कभी भी किसी भी प्रकार का किसको सहयोग चाहिए तो दाता के बच्चे सदैव देने वाले होते हैं । उनका हाथ कभी देने से रुकता नहीं है । सर्व के सहयोगी तब बनेंगे जब सर्व के स्नेही बनेंगे । स्नेही नहीं तो सर्व के सहयोगी भी नहीं बन सकते । इसलिए इस ग्रुप को मनसा, वाचा, कर्मणा और सम्बन्ध में भी सहयोगी बनना है और सफलतामूर्त बनना है । इसलिए कहा कि सर्व सहयोगी, सफलतामूर्त संगठन । समझा ।
सर्व का सहयोगी बनने के लिए अपने आप को मिटाना भी पड़ता है । इस कार्य से हटेंगे नहीं । तो अपने को मिटाना अर्थात् अपने पुराने संस्कारों को मिटाना । पुराने संस्कार ही सर्व के सहयोगी बनने में विघ्न डालते हैं । तो अपने पुराने संस्कारों को मिटाना है । दूसरे का संस्कार मिटाने के लिए नहीं कर रहे हैं । अपने संस्कार मिटायेंगे तो दूसरे आपको स्वयं ही फॉलो करेंगे । एक हम दूसरा बाप । तीसरा देखते हुए भी न देखो । तीसरी बातें देखने में आयेंगी भी लेकिन देखते हुए भी न देखो, अपने को और बाप को देखो । स्लोगन यही याद रखना – “ मिटायेंगे लेकिन सर्व के सहयोगी बनेंगे ।” आपका यादगार चित्र जो कल्प पहले वाला है वह याद है? गोवर्धन पर्वत का यादगार रूप क्या बनाते हैं? कब देखा है? आजकल के भक्तिमार्ग के गोवर्धन पर्वत की पूजा जब करते हैं तो क्या बनाते हैं? (गोबर का बनाते हैं .....) पहाड़ को ऊँगली देना अर्थात् पुराने संस्कारों को मिटाने में ऊँगली देना । पहले यह पहाड़ उठाना हा । तब यह कलियुगी दुनिया बदल फिर नहीं दुनिया बनेगी । कोई भी स्लोगन स्मृति में रखो । यह भी अच्छा है । लेकिन स्लोगन का स्वरुप बनना ही है । यह तो एक साधन है लेकिन साधन से स्वरुप बनना अच्छा है । माला के मणके कौन सी विशेषता से बनते हैं? मणकों की विशेषता यही है जो एकमत होकर एक ही धागे में पिरोये जाते हैं । एक की ही लगन एकरस स्थिति और एकमत तो सब एक ही एक । एक जैसे मणके हैं तो एक धागे में पिरोये जाते हैं ना । यो एक ही मत पर चलने वाले और आपस में भी एकमत हो । संकल्प भी एक से । दो मत होती हैं तो वह दूसरी अर्थात् 16000 की माला के दाने बन जाते हैं । एक मत के लिए ऐसा वातावरण बनाना है । वातावरण तब बनेगा जब समाने की शक्ति होगी । मानो कोई बात में भिन्नता हो जाती है क्योंकि यथा-योग्य यथा शक्ति तो है ना । तो उस भिन्नता को समाओ । समाने की शक्ति चाहिए । तो ऐसी आपस में एकता से ही समीप आयेंगे । सर्व के आगे दृष्टान्त रूप बन जायेंगे । सबमें अपनी-अपनी विशेषता होती है । कोई भी हो उसकी विशेषताओं को देखो विशेष आत्मा बन जायेंगे । कमी को तो बिल्कुल देखना ही नहीं है । जैसे चंद्रमा अथवा सूर्य को ग्रहण लगता है ना कि नहीं देखना चाहिए । नहीं तो ग्रह्चारी बैठ जाएगी । तो किसकी भी कमी ग्रहण है । भूल से भी कोई ने देख लिया तो समझो ग्रहचारी बैठ जाएगी । तो सच्चा सोना बनना है । ज़रा भी खाद होगी तो वही देखने में आएगी । विशेषताओं को दबा देगी । अपने को ऐसा चेंज करो जो दूसरों पर प्रभाव पड़े । धक से चेंज करना है । एकदम न्यारे बनो तो औरों का लगाव भी खुद ही टूटता जायेगा ।
 

अच्छा !!!

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