06-08-70
ओम शान्ति अव्यक्त
बापदादा मधुबन
“बन्धन
मुक्त आत्मा
की निशानी”
अभी अव्यक्त
स्थिति में स्थित
होकर व्यक्त देह
का आधार लेकर देख
रहे हैं, यह अनुभव
कर रहे हो? जैसे
कोई स्थूल स्थान
में प्रवेश करते
हो वैसे ही इस स्थूल
देह में प्रवेश
कर यह कार्य कर
रहे हैं। ऐसा अनुभव
होता है? जब
चाहें तब प्रवेश
करें और जब चाहें
तब फिर न्यारे
हो जाएँ, ऐसा
अनुभव करते हो?
एक सेकण्ड में
धारण करें और एक
सेकण्ड में छोडें
यह अभ्यास है?
वैसे और स्थूल
वस्तुओं को जब
चाहे तब लो और जब
चाहो तब छोड़ सकते
हैं ना। वैसे इस
देह के भान को जब
चाहें तब छोड़ देही
अभिमानी बन जायें
– यह प्रैक्टिस
इतनी सरल है,
जितनी कोई स्थूल
वस्तु की सहज होती
है? रचयिता
जब चाहे रचना का
आधार ले जब चाहे
तब रचना के आधार
को छोड़ दे ऐसे रचयिता
बने हो? जब चाहें
तब न्यारे, जब चाहें तब प्यारे
बन जाएँ। इतना
बन्धनमुक्त बने
हो? यह देह का
भी बन्धन है। देह
अपने बन्धन में
बांधती है। अगर
देह बन्धन से मुक्त
हो तो यह देह बन्धन
नहीं डालेगी। लेकिन
कर्तव्य का आधार
समझ आधार को जब
चाहें तब ले सकते
हैं ऐसी प्रैक्टिस
चलती रहती है?
देह के भान को
छोड़ने अथवा उससे
न्यारा होने में
कितना समय लगता
है? एक सेकण्ड
लगता है? सदैव
एक सेकण्ड लगता
है व कभी कितना,
कभी कितना।
(कभी कैसी,
कभी कैसी)
इससे सिद्ध है
कि अभी सर्व बन्धनों
से मुक्त नहीं
हुए हो। जितना
बन्धनमुक्त उतना
ही योगयुक्त होंगे
और जितना योगयुक्त
होंगे उतना ही
जीवनमुक्त में
उंच पद की प्राप्ति
होती है। अगर बन्धनमुक्त
नहीं तो योगयुक्त
भी नहीं। उसको
मास्टर सर्वशक्तिमान
कहेंगे? देह
के सम्बन्ध और
देह के पदार्थों
से लगाव मिटाना
सरल है लेकिन देह
के भान से मुक्त
हो जाना। जब चाहें
तब व्यक्त में
आयें। ऐसी प्रैक्टिस
अभी जोर शोर से
करनी है। ऐसे ही
समझें जैसे अब
बाप आधार ले बोल
रहे हैं वैसे ही
हम भी देह का आधार
लेकर कर्म कर रहे
हैं। इस न्यारेपन
की अवस्था प्रमाण
ही प्यारा बनना
है। जितना इस न्यारेपन
की प्रैक्टिस में
आगे होंगे उतना
ही विश्व को प्यारे
लगने में आगे होंगे।
सर्व स्नेही बनने
के लिए पहले न्यारा
बनना है। सर्विस
करते हुए, संकल्प
करते हुए भी अपने
को और दूसरों को
भी महसूसता ऐसी
आनी चाहिए कि यह
न्यारा और अति
प्यारा है। जितना
जो स्वयं न्यारा
होगा उतना औरों
को बाप का प्यारा
बना सकेंगे।
सर्विस
की सफलता का स्वरुप
क्या है? (भिन्न-भिन्न विचार
सभी के निकले)
सर्विस की सफलता
का स्वरुप यही
है कि सर्व आत्माओं
को बाप के स्नेही
और बाप के कर्तव्य
में सहयोगी और
पुरुषार्थ में
उन आत्माओं को
शक्तिरूप बनाना।
यह है सर्विस की
सफलता का स्वरुप।
जिन आत्माओं की
सर्विस करो उन
आत्माओं में यह
तीनों ही क्वालिफिकेशन
प्रत्यक्ष रूप
में देखने में
आनी चाहिए। अगर
तीनों में से कोई
भी गुण की कमी है
तो सर्विस की सफलता
की भी कमी है। समझा।
मुख्य एक
बात ध्यान में
रखने और कर्म में
धारण करने वाली
कौन सी है, जिससे
इस सफलता स्वरुप
को प्रैक्टिकल
में ला सकते हो?
वह कौन सी बात
है? बहुत सहज
है। मुश्किल बात
को ध्यान देकर
धारण करते हैं
और सहज बात को छोड़
देने से सहज की
धारणा देरी से
होती है। यह मालूम
है? समझा जाता
है यह तो कोई बड़ी
बात नहीं है। हो
जाएगी। फिर होता
क्या है? हो
जाएगी, हो जाएगी
करते-करते ध्यान
से निकल जाती है।
इसलिए धारणा रूप
भी नहीं होते।
तो वह कौन-सी
एक बात है। अगर
उस बात को धारण
कर लें तो सफलता
स्वरूप बन सकते
हैं। (साक्षीपन)
हाँ यह बात ठीक
है। आज बापदादा
भी साक्षी अवस्था
की राखी बाँधने
के लिए आये हैं।
अगर यह साक्षीपन
की राखी सदैव बंधी
हुई हो तो सर्विस
की सफलता बहुत
जल्दी निकलेगी।
अभी जिस कर्तव्य
में मास लगता है
उस कर्तव्य में
एक घंटा भी नहीं
लगेगा। यह साक्षीपन
की राखी बांधनी
है। औरों को तो
प्यूरिटी की राखी
बाँधते हो लेकिन
बापदादा आज यह
साक्षीपन की राखी
बाँध रहे हैं।
जितना साक्षी रहेंगे
उतना साक्षात्कारमूर्त
और साक्षात् मूर्त
बनेंगे। साक्षीपन
कम होने के कारण
साक्षात् और साक्षात्कारमूर्त
भी कम बने हैं।
इसलिए यह अभ्यास
करो। कौन-सा
अभ्यास? अभी-अभी आधार लिया,
अभी-अभी न्यारे
हो गए। यह अभ्यास
बढ़ाना अर्थात्
सम्पूर्णता और
समय को समीप लाना
है। तो अब क्या
प्रयत्न करना है?
समय और सम्पूर्णता
को समीप लाओ। और
एक बात विशेष ध्यान
में यह रखनी है
कि अपने रिकॉर्ड
को ठीक रखने के
लिए सर्व को रिगार्ड
दो। जितना जो सर्व
को रिगार्ड देता
है उतना ही अपना
रिकॉर्ड ठीक रख
सकता है। दूसरे
का रिगार्ड रखना
अपना रिकॉर्ड बनाना
है। अगर रिगार्ड
कम देते हैं तो
अपने रिकॉर्ड में
कमी करते हैं।
इसलिए इस मुख्य
बात की आवश्यकता
है। समझा। जैसे
यज्ञ के मददगार
बनना ही मदद लेना
है वैसे रिगार्ड
देना ही रिगार्ड
लेना है। देते
हैं लेने के लिए।
एक बार देना अनेक
बार लेने के हक़दार
बन जाते हैं। जैसे
कहते हैं छोटों
को प्यार और बड़ों
को रिगार्ड। लेकिन
सभी को बड़ा समझ
रिगार्ड देना यही
सर्व के स्नेह
को प्राप्त करने
का साधन है। यह
बात भी विशेष ध्यान
देने योग्य है।
हर बात में पहले
आप। यह वृत्ति,
दृष्टि और वाणी
तथा कर्म में लानी
चाहिए। जितना पहले
आप कहेंगे उतना
ही विश्व के बाप
समान बन सकेंगे।
विश्व के
बाप समान का अर्थ
क्या है? एक तो विश्व
के बाप समान बनना।
दूसरा जब विश्व
राजन बनेंगे तो
भी विश्व के बाप
ही कहलायेंगे ना।
विश्व के राजन
विश्व के बाप हैं
ना। तो विश्व के
बाप भी बनेंगे
और विश्व के बाप
समान भी बनेंगे।
किससे? पहले
आप करने से। समझा।
निर्माण
बनने से प्रत्यक्ष
प्रमाण बन सकेंगे।
निर्माण बनने से
विश्व का निर्माण
कर सकेंगे। समझा।
ऐसी स्थिति को
धारण करने के लिए
साक्षीपन की राखी
बांधनी है। जब
पहले से ही साक्षीपन
की राखी बाँध के
जायेंगे तो राखी
की सर्विस सफलतापूर्वक
होगी। समझा।
पार्टियों
से
सम्मेलन
कर रहे हो। सम्मेलन
का अर्थ क्या है? सर्व
आत्माओं का मिलन।
सर्व आत्माओं का
मिलन किससे करायेंगे?
बाप से। आजकल
समय कौन-सा
है? सम्पूर्णता
का समय समीप आने
का है तो वर्तमान
समय के प्रमाण
निश्चित हुई पड़ी
है। जैसे कल्प
पहले भी पुरुषार्थ
निमित्तमात्र
कराया था। ऐसे
ही नहीं कि पुरुषार्थ
आज और प्राप्ति
कब जो जाएगी। नहीं।
अभी-अभी पुरुषार्थ
अभी-अभी प्राप्ति।
ऐसा पुरुषार्थ
है? जब स्वयं
प्राप्ति स्वरुप
बनेंगे तब अन्य
अनेक आत्माओ को
प्राप्ति करा सकेंगे।
अगर स्वयं प्राप्ति
स्वरुप नहीं होंगे
तो अन्य को कैसे
प्राप्ति करा सकेंगे?
अब नहीं करायेंगे
तो कब करायेंगे।
सुनाया था ना कि
“कब” शब्द
भी ख़त्म। हर बात
में “अब”
हो। इतना परिवर्तन
वाणी, कर्म
और संकल्प में
लाना है। संकल्प
में भी अब यह न आये
कि कब कर लेंगे
या कब हो जायेगा।
नहीं। अब हो ही
जायेगा। ऐसा परिवर्तन
करना है तब सर्विस
की सफलता है। अगर
स्वयं में ही कब
होगा तो आप की प्रजा
भी कहेगी कि अच्छा
तो बहुत लगा कब
कर लेंगे या कब
हो जायेगा। कब
पर छोड़ने वाले
पिछली प्रजा के
होते हैं। तो अब
नजदीक की प्रजा
बनानी है। नजदीक
की प्रजा बनाने
के लिए नाज़ुकपना
छोड़ना पड़ेगा। नाजों
से चलना छोड़ राजों
से चलना है। अलबेलापन
नाज़ुकपन होता है।
जितना-जितना
राज़युक्त होंगे
उतना उतना नाज़ुकपन
छूटता जायेगा।
रूहानियत का एक
ही रूप सदैव रहता
है? रूप बदलने
के बजाय यह शरीर
का भान छोड़ना है
इस प्रैक्टिस में
रहना है। शरीर
छोड़ने का अभ्यास
होगा तो रूप बदलना
छूट जायेगा। पढ़ाई
में भी रेग्यूलर
होना मुख्य बात
होती है। वह भी
सिर्फ आने में
नहीं लेकिन हर
बात में रेग्यूलर,
जितना रेग्यूलर
उतना ही रूलर बनेंगे।
तो क्या करना पड़े?
सभी बातों में
रेग्यूलर। अमृतबेले
उठने से लेकर हर
कर्म, हर संकल्प
और हर वाणी में
भी रेग्यूलर। एक
भी बोल ऐसा न निकले
जो व्यर्थ हो।
इस दुनिया के जो
बड़े आदमी हैं वह
लोग जब स्पीच करते
हैं तो उन्हों
के बोलने के शब्द
भी फिक्स किये
जाते हैं। आप भी
बड़े से बड़े आदमी
हो ना। तो आपके
बोल भी फिक्स होने
चाहिए। माया की
मिक्स न हो। ऐसे
रेग्यूलर बनने
वालों की सर्विस
सफल हुई पड़ी है।
सम्मेलन का हर
कार्य करते भी
यह कभी नहीं भूलना
कि हम विश्व के
आगे साक्षात्कारमूर्त
हैं। साक्षात्कार
मूर्त बनने से
आप के द्वारा बापदादा
का साक्षात्कार
स्वतः ही होगा।
वह तब कर सकेंगे
जब स्वयं को ज्ञान,
योग का प्रत्यक्ष
प्रमाण बनायेंगे।
जितना स्वयं को
प्रत्यक्ष प्रमाण
बनायेंगे उतना
बाप को प्रत्यक्ष
कर सकेंगे।
अच्छा !!!