06-08-70 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
“दृष्टि से सृष्टि की रचना”
सभी अव्यक्त स्थिति में रहते व्यक्त में
कार्य कर रहे हो? जैसे बाप अव्यक्त होते व्यक्त में प्रवेश हो
कार्य करते हैं वैसे बाप समान बने हो? बाप समान बनेंगे तब ही
औरों को भी बाप समान बना सकेंगे । अपने आप से पूछो कि दृष्टि
बाप समान बनी है? वाणी और संकल्प बाप समान बने हैं? बाप को क्या
स्मृति में रहता है? जानते हो? बाप की स्मृति में सदैव क्या
रहता है और आपकी स्मृति में सदैव क्या रहता है? क्या अन्तर है?
समान स्मृति होती है? कोई स्मृति रहती है कि कोई भी नहीं रहती
है? स्मृति रहती है या स्मृति से भी परे हो? कोई बात में बाप
के समान आपकी स्मृति रहती है? (नहीं) अन्त तक स्मृति में समानता
आ जाएगी? (नम्बरवार) फर्स्ट बच्चे और बाप में फर्क रहेगा?
बापदादा में फर्क रहेगा? समानता आ जाएगी । जैसे बेहद का बाप है
वैसे दादा भी बेहद का बाप है । बापदादा के समीप, समानता होनी
चाहिए । जितनी-जितनी समीपता उतनी समानता । अन्त में अब बच्चे
भी अपनी रचना के रचयिता बनकर प्रैक्टिकल में अनुभव करेंगे ।
जैसे बाप को रचना को देख रचयिता के स्वरुप की स्मृति स्वतः रहती
है ऐसी स्टेज नम्बरवार बच्चों की भी आनी है । दृष्टि से सृष्टि
रचने आती है? आपकी रचना कैसी है? कुख की व नैनों की? दृष्टि से
रचना रचेंगे? यह जो कहावत है की दृष्टि से सृष्टि बनेंगी । ऐसा
दृष्टि जिससे सृष्टि बदल जाए । ऐसी दृष्टि में दिव्यता अनुभव
करते हो? दृष्टि धोखा भी देती और दृष्टि पतितों को पावन भी करती
। दृष्टि बदलने से सृष्टि बदल ही जाती है । तो दृष्टि कहाँ तक
बदली है? दृष्टि क्या बदलनी होती है, यह मालूम है? आत्मिक
दृष्टि बनानी है । आत्मिक दृष्टि, दिव्य दृष्टि और अलौकिक
दृष्टि बनी है? जहाँ देखते, जिसको देखते वह आत्मिक स्वरूप ही
दिखाई दे । ऐसी दृष्टि बदली है? जिस दृष्टि में अर्थात् नैनों
में खराबी होती है तो एक समय में दो चीज़ें दिखाई पड़ती हैं । ऐसे
ही दृष्टि पूर्ण नहीं बदली है तो यहाँ भी दो चीज़ें दिखाई पड़ती
हैं । देही और देह । कभी वह कभी वह । ऐसे होता है ना । कभी देह
को देखते हैं कभी देही को । जब नैन ठीक होते हैं तो जो चीज़ जैसी
होती है वैसी ही यथार्थ रूप में दिखाई पड़ता है । ऐसे ही यह
दृष्टि भी जब बदल जाती है तो जो यथार्थ रूप है वह दिखाई पड़ता
है । यथार्थ रूप है देही न की देह । जो यथार्थ रूप है वह दिखाई
दे । इससे समझो कि दृष्टि ठीक है । दृष्टि के ऊपर बहुत ध्यान
रखना है । दृष्टि बदल गयी तो कब धोखा नहीं देगी । साक्षात्कार
दृष्टि से ही करेंगे और एक एक की दृष्टि में अपने यथार्थ रूप
और यथार्थ घर तथा यथार्थ राज़धानी देखेंगे । इतनी दृष्टि में
पावर है, अगर यथार्थ दृष्टि है तो । तो सदैव अपने को चेक करो
कि अभी कोई भी सामने आये तो मेरी दृष्टि द्वारा क्या
साक्षात्कार करेंगे । जो आपकी वृत्ति में होगा वैसा अन्य आप की
दृष्टि से देखेंगे । अगर वृत्ति देह अभिमान की है, चंचल है तो
आपकी दृष्टि से साक्षात्कार भी ऐसे ही होगा । औरों की भी दृष्टि
वृत्ति चंचल होगी । यथार्थ साक्षात्कार कर नहीं सकेंगे । यह
समझते हो? इन्हों की ट्रेनिंग है ना । इस ग्रुप के लिए मुख्य
विषय है अपनी वृत्ति के सुधार से अपनी दृष्टि को दिव्य बनाना ।
कहाँ तक बनी हैं? नहीं बनी तो क्यों नहीं बनी है? इस पर इन्हों
को स्पष्ट समझाना । सृष्टि न बदलने का कारण है दृष्टि का न
बदलना । दृष्टि न बदलने का कारण है वृत्ति का न बदलना । दृष्टि
बदल जाए तो सृष्टि भी बदल जाए । आजकल सभी बच्चों के प्रति
विशेष इशारा बापदादा का यही है कि अपनी दृष्टि को बदलो ।
साक्षात्कारमूर्त बनो । देखने वाले ऐसे अनुभव करें कि यह नैन
नहीं लेकिन यह एक जादू की डिब्बियां है । जैसे जादू की डिब्बी
में भिन्न-भिन्न नजारें देखते हैं वैसे आपके नैनों में दिव्य
रंगत देखें । नैन साक्षात्कार के साधन बन जाएँ ।
यह ग्रुप मालूम है कौन सा ग्रुप है? इनमें विशेषता क्या है?
सारे विश्व के अन्दर विशेष आत्मायें हो । ऐसे तो नहीं समझते कि
हम साधारण हैं । ऐसे कभी नहीं समझना । सारे विश्व के अन्दर
विशेष आत्मायें कौन है? अगर आप विशेष आत्मायें न होती तो बाप
ने अपना क्यों बनाया । अपने को विशेष आत्मा समझने से विशेषता
आएगी । अगर साधारण समझेंगी तो कर्तव्य भी साधारण करेंगी ।
एक-एक आत्मा अपने को विशेष समझ औरों में भी विशेषता लानी है ।
तुम विशेष आत्मायें हो, यह नशा ईश्वरीय नशा है । देह अभिमान का
नशा नहीं । ईश्वरीय नशा सदैव नैनों से दिखाई दे । तो इस ग्रुप
विशेषता क्या है? आप अपने ग्रुप की विशेषता समझती हो? (कोरा
कागज़ है, कईयों ने विभिन्न बातें सुनायी) इस ग्रुप का टाइटल तो
बहुत बड़ा है । ट्रेनिंग के बाद यही गुण कायम रहे, यह भी
ट्रेनिंग चाहिए । अभी तो विशेषताएं बहुत अच्छी सुन रही हो ।
कोरे कागज़ पर जो कुछ लिखा जाता है वह स्पष्ट होता है । जितना
स्पष्ट उतना श्रेष्ठ । अगर स्पष्टता में कमी है तो श्रेष्ठता
में भी कमी । और कुछ मिक्स नहीं करना है । कोई-कोई मिक्स बहुत
करते हैं । इससे क्या होता है? यथार्थ रूप भी अयथार्थ हो जाता
है । वही ज्ञान की बातें माया का रूप बन जाती हैं । इसलिए इस
ग्रुप की यह विशेषता चित्र में दिखाई दे कि यह ग्रुप सदा
स्पष्ट और श्रेष्ठ रहा । सदैव अपने यथार्थ रूप में रहे । जो
बाप जैसी है उस रूप से जानकार धारण करनी है । और चलते चलना है
। यह है स्पष्टता । इस ग्रुप को बापदादा क्या टाइटल देते हैं?
जैसे कहावत है छोटे सुभानअल्ला । लेकिन बापदादा कहते हैं छोटे
तो समान अल्लाह । सभी बातों में कदम-कदम में समानता रखो ।
लेकिन समानता कैसे आएगी? समानता के लिए दो बातें ध्यान में रखना
है । साकार रूप में क्या विशेषताएं थी? एक तो सदैव अपने को
आधारमूर्त समझो । सारे विश्व के आधारमूर्त । इससे क्या होगा कि
जो भी कर्म करेंगे जिम्मेवारी से करेंगे । अलबेलापन नहीं रहेगा
। जैसे बापदादा सर्व के आधारमूर्त हैं वैसे हरेक बच्चा विश्व
के आधारमूर्त हैं । जो कर्म आप करेंगे, वह सभी करेंगे । संगम
पर जो रस्म चलती है, भक्तिमार्ग में बदलकर चलती है । सारे
विश्व के आप आधारमूर्त हो । हरेक को अपने को आधारमूर्त समझना
है और दूसरा उद्धारमूर्त बनना है । जितना आप उद्धार करेंगे उतना
औरों को भी उद्धार कर सकेंगे । जितना औरों का उद्धार करेंगे
उतना अपना भी उद्धार करेंगे । अपना उद्धार नहीं करेंगे तो औरों
का कैसे करेंगे । औरों का उद्धार तब करेंगे जब उद्धारमूर्त
बनेंगे । छोटे होते भी कर्तव्य बाप के समान करना है । यह याद
रखने से समानता आएगी । फिर जो इस ग्रुप का टाइटल दिया “छोटा
बाप समान” वह प्रत्यक्ष दिखाई पड़ेगा । यह भूलना नहीं । अच्छा
अब क्या करना है? (टीका लगाना है) यह टीका भी साधारण टीका नहीं
है । टीका किसलिए लगाते हैं, मालूम है? टीका सौभाग्य की निशानी
है । जो बातें सुनी उन बातों में टिकने की निशानी टीका है ।
टीका भी मस्तक में टिक जाता है । तो बुद्धि में यह बातें टिक
जाएँ इसलिए यह टीका दिया जाता है । और किसलिए है? (कईयों ने
अपना विचार सुनाया) बापदादा जो सुनायेंगे वह और है । यह टीका (इंजेक्शन)
सदा माया के रोगों से निवृत्त रहने का टीका है । सदा तंदुरुस्त
रहने का भी टीका है । एक टीका जो आप सभी ने सुनाया और यह भी है
। दोनों टीका लगाने हैं । एक है शक्तिशाली बनने का और दूसरा है
सदा सुहाग और भाग्य में स्थित रहने का । दोनों टीका बापदादा
लगाते हैं । निशानी एक, राज़ दो हैं । निशानी तो स्थूल होती है
लेकिन राज़ दो हैं । इसलिए ऐसे तिलक नहीं लगाना । तिलक लगाना
अर्थात् सदाकाल के लिए प्रतिज्ञा करना । यह टीका एक प्रतिज्ञा
की निशानी है । सदैव हर बात में पास विद ऑनर बनेंगे । इस
प्रतिज्ञा का यह तिलक है । इतनी हिम्मत है । पास नहीं बल्कि
पास विद ऑनर । पास विद ऑनर और पास में क्या फर्क है? पास विद
ऑनर अर्थात् मन में भी संकल्पों से सजा न खाएं । धर्मराज की
सजाओं की तो बात पीछे हैं । परन्तु अपने संकल्पों की भी उलझन
अथवा सजाओं से परे । इसको कहते हैं पास विद ऑनर । अपनी गलती से
स्वयं को सजा देते हैं । उलझते हैं, पुकारते हैं, मूँझते हैं
इससे भी परे । पास विद ऑनर इसको कहते हैं । ऐसी प्रतिज्ञा करने
को तैयार हो? संकल्पों में भी न उलझें । वाणी, कर्म, सम्बन्ध,
संपर्क की बात छोड़ दो । वह तो मोटी बात है । ऐसी प्रतिज्ञा वाला
ग्रुप है? हिम्मतवान है ।
हिम्मत कायम रहेगी तो सर्व मददगार पत्ते रहेंगे । सहयोगी बनेंगे
तो स्नेह मिलता रहेगा । जैसे वृक्ष में जो कोमल और छोटे पत्ते
निकलते हैं, वह बहुत प्रिय लगते हैं । लेकिन चिड़िया भी कोमल
पत्तों को ही खाती है । सिर्फ प्यारे रहना किसके? बापदादा के न
कि माया रूपी चिड़ियों के । तो यह भी कोमल पत्ते हैं । कोमल
पत्तों को कमाल करनी है । क्या कमाल करनी है? अपने ईश्वरीय
चरित्र के ऊपर सर्व को आकर्षित करना है । अपने ऊपर नहीं,
चरित्र के ऊपर । इस ग्रुप के ऊपर पूरा ध्यान है । इस ग्रुप को
अपने ऊपर भी इतना ही ध्यान रखना है ।
अच्छा !!!