05-03-71 ओम
शान्ति अव्यक्त
बापदादा मधुबन
भट्ठी
की अलौकिक
छाप
आज बापदादा हरेक
के मस्तक से दो
बातें देख रहे
हैं। कौनसी? एक
भाग्य और दूसरा
सुहाग। दोनों ही
बातें देख रहे
हैं।
भट्ठी
में आकर
अपने भाग्य और
सुहाग को अच्छी
तरह से देख और जान
सकते हो।
अपने
मस्तक पर चमकते
हुए भाग्य के सितारे
को देख सकते हो।
भट्ठी
में
यह दर्पण मिला
है जिस दर्पण से
अपने भाग्य और
सुहाग को देख सको?
भट्ठी
में
आना अर्थात् दो
बातें प्राप्त
करना। वह दो बातें
कौनसी? आज
भट्ठी
वालों
से मिलने आये हैं
ना। तो उन्हों
का पेपर लेते हैं।
बताओ, मुख्य दो
बातें कौनसी मिलती
हैं? (हरेक ने भिन्न-भिन्न
बातें सुनाई) हरेक
ने जो सुनाया बहुत
अच्छा सुनाया।
क्योंकि मातायें
इतना भी सुनाने
योग्य बन जायें
तो बहुत
सर्विस
कर सकती
हैं। तो
भट्ठी
से
दो बातें मुख्य
यह मिली हैं और
उन्हें साथ लेकर
ही जाना है। एक
तो अपने आपको देखने
का दर्पण और दूसरी
बात
योग अर्थात्
याद का गोला। लाइट
के गोले को सदैव
साथ रखने वाले
के हाथ में फिर
कौनसा गोला आयेगा?
जो आप लोगों का
यादगार चित्र है।
कृष्ण के चित्र
में सृष्टि का
गोला है ना। तो
लाइट का गोला अर्थात्
लाइट के चित्र
के अन्दर सदैव
रहना है। लाइट
का गोला बनने से
ही विश्व के राज्य
का गोला ले सकते
हो। तो अभी है लाइट
का गोला भविष्य
में होगा यह राज्य
का गोला। तो
भट्ठी
से
एक तो दर्पण मिला
और दूसरा याद की
यात्रा को निरन्तर
श्रेष्ठ बनाने
के लिए लाइट के
गोले की सौगात
मिली है। लेकिन
दोनों ले जाने
हैं। यहाँ ही छोड़
कर नहीं जाना है।
दोनों सौगात साथ
ले जायेंगे और
सदैव साथ रखेंगे
तो फिर क्या बन
जायेंगे? जैसे
बाप की महिमा का
एक गीत बनाया है
ना - सत्यम् शिवम्
सुन्दरम्.......। ऐसे
आप सभी भी मास्टर
सत्यम् शिवम् सुन्दरम्
हो जायेंगे, जिस
दर्पण से सत्य
और असली सुन्दरता
का साक्षात्कार
होगा। तो ऐसी अपनी
सूरत बनाई है?
भट्ठी
में
इसलिए ही आये हो
ना। लौकिकपन अभी
भट्ठी
में
स्वाहा किया? कोई
भी लौकिक वृत्ति,
दृष्टि,
सम्बन्ध की स्मृति,
लौकिक मर्यादा,
लौकिक रीति-रस्म
के वश होकर अलौकिक
रीति और प्रीति
को भूलेंगे तो
नहीं? अलौकिक प्रीति
और अलौकिक रीति-रस्म
का पूरा ठप्पा
वा पक्की छाप लगाई
है? पूरी छाप लगाई
है, जो भले कोई कितना
भी मिटाने की कोशिश
करे लेकिन मिट
न सके। ऐसी छाप
अपने आपको जिन्होंने
लगाई है वह हाथ
उठायें। देखना,
लौकिक रीति- रस्म
का पेपर बहुत कड़ा
आयेगा (कोई-कोई
ने हाथ नहीं उठाया),
यह समझते हैं कि
हम अपनी सेफ्टी
रखें। लेकिन सेफ्टी
इसमें है - जो जितनी
हिम्मत रखेंगे
उतनी मदद मिलेगी।
पहले ही अपने में
संशय-बुद्धि होने
से हार हो जाती
है। यह भी अपने
में संशय क्यों
रखते हैं कि ना
मालूम हम फेल हो
जायें। यह क्यों
नहीं सोचते कि
हम विजय प्राप्त
करके ही दिखायेंगे।
विजयी रत्न हो
ना। तो कब भी पुरूषार्थ
में अपने आप में
संशय बुद्धि नहीं
बनना
चाहिए। संशय-बुद्धि
होने से ही हार
होती है। अपना
ही संशय का संकल्प
मायाजीत नहीं बनने
देता है। अच्छा।
मैजारिटी विजयी
रत्न हैं। विजय
का तिलक भी लगाकर
ही जा रहे हो ना।
सदैव यह स्मृति
में रखकर कदम उठाना
कि विजय तो हमारा
जन्म-सिद्ध अधिकार
है। अधिकारी बनकर
कर्म करने से विजय
अर्थात् सफलता
का अधिकार अवश्य
ही प्राप्त होता
है। इसमें संकल्प
उठाने की आवश्यकता
ही नहीं है। स्वप्न
में भी कभी यह संकल्प
नहीं आना चाहिए
कि ‘ना मालूम विजय
होगी या नहीं?’ मास्टर
नॉलेजफुल के
मुख से ‘ना मालूम
शब्द’ नहीं निकलना
चाहिए। जब सृष्टि
के आदि-मध्य-अन्त
को, तीनों कालों
को जान गये हो, मास्टर
नॉलेजफुल बन
गये हो; तो ऐसे मास्टर
नॉलेजफुल के
मुख से यह शब्द
नहीं निकल सकता
कि ‘ना मालूम’। उनको
तो सभी मालूम है।
यह अज्ञानियों
की भाषा है, ज्ञानी
की भाषा नहीं।
अगर कोई गलती भी
करते हो तो भी मालूम
होता है
नॉलेज
के आधार
पर कि यह रांग कार्य
कर रही हूँ। मालूम
पड़ता है ना! ना मालूम
यह होगा या नहीं
होगा - यह कहना ब्राह्मणों
की भाषा नहीं है।
तो
भट्ठी
से यह छाप
पक्की लगाकर जाना,
जो 21 जन्म यह छाप
पक्की रहे, अविनाशी
रहे। तो
भट्ठी
की
दोनों ही सौगातें
सभी ने अपने पास
रखी हैं? अब
भट्ठी
से
जाकर के क्या करेंगे?
भट्ठी
में
आई हो अपने को परिवर्तन
करने
के लिए। तो
जितना जो स्वयं
को परिवर्तन में
ला सकता है, वह उतना
ही औरों को भी परिवर्तन
में ला सकता है।
अगर
सर्विस
में देखती
हो कि परिवर्तन
में कम आते हैं,
तो दर्पण जो ले
जा रही हो उसमें
देखना कि मुझे
अपने आपको परिवर्तन
में लाने की इतनी
शक्ति आई है? अगर
अपने को परिवर्तन
करने की शक्ति
कम है तो दूसरों
को भी इतना ही परिवर्तन
में ला सकेंगे।
तो दो बातें याद
रखना। एक तो हरेक
बात में परिवर्तन
करना है, लौकिक
से अलौकिक में
आना है। और, दूसरा
परिपक्वता में
आना है। अगर परिपक्वता
नहीं है तो भी
सफ़लता
नहीं
होती। तो परिवर्तन
में भी लाना है
और अपने में परिपक्वता
अर्थात् मज़बूती
भी लानी है। यह
मुख्य दोनों ही
बातें प्रवृत्ति
में रहकर कार्य
करते समय याद रखना।
अगर दोनों ही बातें
याद रखेंगे तो
निश्चय ही विजय
है। सहज बात सुनाई
ना। माताओं को
सहज बातें
चाहिए
ना। वैसे
भी मातायें श्रृंगार
के कारण दर्पण
में देखती रहती
हैं। तो बापदादा
भी वही काम देते
हैं। अच्छा।
यह
भट्ठी
जो मधुबन
की बेहद की
भट्ठी
है,
तो अपनी प्रवृत्ति
में भी इस बेहद
की
भट्ठी
का माडल
रूप समझकर चलना।
कोई चीज का माडल
छोटा ही बनाया
जाता है। जैसे
यहाँ
भट्ठी
करके
जा रही हो, ऐसा ही
माडल रूप अपनी
प्रवृत्ति को भी
बनाना। फिर क्या
होगा? वही
भट्ठी
की
बातें,
भट्ठी
की धारणा,
भट्ठी
की
दिनचर्या अपनी
चला सकेंगी। इसलिए
प्रवृत्ति में
आकर अपनी वृत्ति
भट्ठी
जैसी
ही रखना। वृत्ति
को नहीं बदलना।
जैसे यहाँ
भट्ठी
में
ऊंची वृत्ति रहती
है, वैसे ही ऊंची
वृत्ति प्रवृत्ति
में भी रखना। वृत्ति
चेन्ज की तो फिर
प्रवृत्ति की परिस्थितियां
स्थिति को डगमग
कर देंगी। लेकिन
अगर वृत्ति ऐसी
ही ऊंची रखेंगे
तो प्रवृत्ति में
आने वाली अनेक
परिस्थितियां
आपकी स्थिति को
डगमग नहीं कर सकेंगी।
समझा? वृत्ति को
साथ ले जाना। फिर
देखना विजयी बने
हो ना। माताओं
के साथ सभी से ज्यादा
स्नेह है। क्योंकि
माताओं ने दु:ख
बहुत सहन किये
हैं। इसलिए पुकारा
भी ज्यादा माताओं
ने है। तो बहुत
दु:ख सहन करने के
कारण, मारें सहन
करने के कारण, थकी
हुई होने के कारण
बाप स्नेह से पांव
दबाते हैं। गायन
है ना - माताओं के
पांव दबाये। पांव
कोई स्थूल नहीं,
लेकिन माताओं के
विशेष स्नेह के
पांव दबाते
हैं।
इन्हों को स्नेह
और साहस देना है।
सिर्फ स्नेह नहीं
याद रखना, लेकिन
साहस भी जो दिया
है वह भी याद रखना।
अच्छा।
भट्ठी
की जो
सारी पढ़ाई वा शिक्षा
ली उसका सार तीन
शब्दों में याद
रखना है। कौनसे
तीन शब्द? तोड़ना,
मोड़ना और जोड़ना।
कर्म-बन्धन तोड़ना
सीखी हो ना। और
फिर मोड़ना भी सीखी
हो। अपने संस्कारों
को, स्वभावों को
मोड़ना भी सीखी
और जोड़ना भी सीखी।
तो यह तीन शब्द
याद रखना और सदैव
अपने को देखते
रहना कि ‘‘तोड़ भी
रही हूँ, मोड़ भी
रही हूँ और जोड़
भी रही हूँ? तीनों
में कोई भी कमी
तो नहीं है?’’ फिर
जल्दी सम्पूर्ण
बन जायेंगे। इस
ग्रुप को खास यह
स्मृति का तिलक
दे रहे हैं। तिलक
स्मृति की निशानी
है ना। तो सदैव
यह स्मृति में
रखना कि यह सभी
जो भी इन नयनों
से विनाशी चीजे
देखते हैं वह देखते
हुए भी अपने नये
सम्बन्ध, नई सृष्टि
को ही देखते रहें।
इन आंखों से जो
विनाशी चीजें दिखाई
देती हैं उनमें
विनाश की स्मृति
रहे। यह स्मृति
का तिलक इस ग्रुप
को दे रहे हैं।
फिर कोई भी बातों
में हार नहीं खायेंगे,
क्योंकि देखेंगे
ही विनाशी चीज़
को। इसलिए
अपने को विजयी
बनाने के लिए अमृतवेले
रोज़
यह स्मृति का
तिलक अपने को लगाना।
भोली मातायें हैं।
यही मातायें अगर
मैदान पर आ जायें
तो यह अपने को आज
जो शेर समझते हैं
वह बकरी बन आपके
चरणों में आ जायें।
क्योंकि जिस बात
में वह कमज़ोर वा कायर
हैं उस बात की आप
प्रत्यक्ष प्रमाण
हो। आपके प्रत्यक्ष
प्रमाण को देखकर
शर्मशार होंगे।
तो गोया बकरी बन
जायेंगे ना। मातायें
इतनी श्रेष्ठ
सर्विस
कर सकती
हैं, जो एक सेकेण्ड
में शेर को बकरी
बना सकती हैं।
ऐसी जादूगरनी हो।
जादू से शेर को
बकरी, बकरी को शेर
बनाते हैं ना।
तुम मातायें भी
ऐसी जादूगरी दिखा
सकती हो। सिर्फ
शेरनी बन जाओ, फिर
वह शेर बकरी बनेंगे।
तो यह अन्त का जो
धर्मयुद्ध दिखाया
हुआ है,
आवाज़
बुलन्द
होना है। तुम्हारी
इस
सर्विस
से जब
शेर बकरी बन जायेंगे
फिर उनके फालोअर्स
तो पीछे-पीछे हैं
ही। सिर्फ एक शेर
को भी बकरी बनाया
तो अनेक शेर जाल
में आ जायेंगे।
इसलिए माताओं को
इतनी ऊंची
सर्विस
के लिए
तैयार रहना चाहिए।
अगर इतना झुण्ड
शक्तिदल सामना
करे तो बताओ वह
ठहर सकेंगे? चैलेन्ज
करने की हिम्मत
चाहिए। अभी प्रैक्टिकल
में
परीक्षाओं से
पार होना है। एक
होता है थ्योरी
का पेपर, दूसरा
होता है प्रैक्टिकल
पेपर। थ्योरी में
तो पास हो, अब प्रैक्टिकल
पेपर में पास होना
है। हिम्मते शक्तियां
मदद दे सर्वशक्तिमान।
यह तो सदैव याद
है ना। अब सिर्फ
रिटर्न करना है।
इतनी जो मेहनत
ली है उसका रिटर्न।
यह सभी शेरनियां
हैं! शेरनियां
कभी किससे डरती
नहीं हैं, निर्भय
होती हैं। यह भी
भय नहीं कि ना मालूम
क्या है। इससे
भी निर्भय होना
है। ऐसी शेरनियां
बनी हो? (बन जायेंगे)
कब? यह तो पहले ही
दिन जब
भट्ठी
में आती
हो तो
भट्ठी
में आना
अर्थात् बदलना।
समझा? परिवर्तन
समारोह मना रही
हो ना। बापदादा
भी परिवर्तन- समारोह
में आये हैं। आज
फाइनल छाप लगाना
है। फिर इस परिवर्तन
को भुलाना नहीं।
हरेक को अपने में
कोई न कोई विशेषता
भरनी है। कोई भी
एक सब्जेक्ट में
नम्बरवन
ज़रूर
बनना
चाहिए। बनना तो
सभी में चाहिए।
अगर नहीं बन सकती
हो तो कोई न कोई
सब्जेक्ट में विशेष
नम्बरवन अपने को
ज़रूर
बनाना
है। यहाँ से निकल
कर और
सर्विस
में मददगार
बनने के लिए जो
कहा था वह प्लैन
बनाया है? जो प्लैन
बनाया है उस प्रमाण
फिर तैयार भी जरूर
रहना है।
विघ्न
तो आयेंगे
लेकिन जब आवश्यक
बात समझी जाती
है तो उसका प्रबन्ध
भी किया जाता है।
जैसे आपकी प्रवृत्ति
में कई आवश्यक
बातें सामने आती
हैं तो प्रबन्ध
करते हो ना। इस
रीति अपने को स्वतन्त्र
बनाने के लिए भी
कोई न कोई प्रबन्ध
रखो। कोई साथी
बनाओ। आपस में
भी एक-दो दैवी परिवार
वाले सहयोगी बन
सकते हैं। लेकिन
तब बनेंगे जब इतना
एक- दो को स्नेह
देकर सहयोगी बनायेंगे।
प्लैन रचना चाहिए
कैसे अपने बन्धन
को हल्का कर सकती
हैं। कई चतुर होते
हैं तो अपने बन्धनों
को मुक्त करने
के लिए युक्ति
रचते हैं। ऐसे
नहीं कि प्रबन्ध
मिले तो निकल सकती
हूँ। प्रबन्ध अपने
आप करना है। अपने
आप को स्वतन्त्र
करना है। दूसरा
नहीं करेगा।
योगयुक्त होकर
ऐसा प्लैन सोचने
से इच्छा पूर्ति
के लिए प्रबन्ध
भी मिल जायेंगे।
सिर्फ निश्चय-बुद्धि
होकर अपने उमंग
को तीव्र बनाओ।
उमंग ढीला होता
है तो प्रबन्ध
भी नहीं मिलता,
मददगार कोई नहीं
मिलता। इसलिए हिम्मतवान
बनो तो मददगार
भी कोई न कोई बन
जायेंगे। अब देखेंगे
कि अपने को स्वतन्त्र
बनाने की कितनी
शक्ति हरेक ने
अपने में भरी है।
मायाजीत तो
हो। लेकिन
अपने को स्वतन्त्र
बनाने की शक्ति
भी बहुत
ज़रूरी
है। यह पेपर होगा
कि शक्ति कहाँ
तक भरी है। जो प्रवृत्ति
में रहते स्वतन्त्र
बन मददगार बनेंगी
उनको इनाम भी भेजेंगे।
अच्छा।
छोटे बाप समान
होते हैं। हैं
तो सभी एक, किन्तु
पहचान के लिए गुजराती,
पंजाबी आदि कहते
हैं। गुज़रात नम्बरवन
बनकर दिखायेंगे
ना। देखेंगे इनाम
लायक कौन बनता
है। एक-एक रत्न
की अपनी विशेषता
है। किसमें स्नेह
की, किसमें सहयोग
की, किसमें शक्ति
की, किसमें दिव्यगुणों
की मूर्त बनने
की, किसमें ज्ञान
की विशेषता है।
अभी सर्व शक्तियां
अपने में भरनी
हैं। सर्व गुण
सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण
बनना है। सर्व
गुण सम्पन्न नहीं
बनेंगे तो 16 कला
से 14 कला हो जायेंगे।
चन्द्रमा में जरा
भी कला कम होती
है तो अच्छा नहीं
लगता है। सम्पूर्णता
से सुन्दरता होती
है। तीव्र
पुरुषार्थी
का तीर
सदा निशाने पर
लगता है। कभी भी
माया से हार नहीं
खाना। लाइट का
गोला बनकर जाना।
लाइट
नॉलेज
को भी
कहते हैं और ‘लाइट
माइट’ भी है।
‘कोशिश’ शब्द
कमज़ोरी
का है।
जहाँ
कमज़ोरी
होती
है वहाँ पहले माया
तैयार होती है।
जैसे कमज़ोर शरीर
पर बीमारी जल्दी
आ जाती है, वैसे
‘कोशिश’ शब्द कहना
भी आत्मा की
कमज़ोरी
है। माया
समझती है कि यह
हमारा ग्राहक है
तो आ जाती है। निश्चय
की विजय है। जैसे
सारे दिन की जो
स्मृति रहती है
वैसे ही स्वप्न
आते हैं। यदि सारे
दिन में शक्तिरूप
की स्मृति रहेगी
तो
कमज़ोरी
स्वप्न
में भी नहीं आयेगी।
अच्छा।