18-04-71 ओम
शान्ति अव्यक्त
बापदादा मधुबन
मन के भावों
को जानने की विधि
तथा फायदे
सभी जो भी यहाँ
बैठे हैं, सभी मन्मनाभव
की स्थिति में
स्थित हो? जो स्वयं
मन्मनाभव की स्थिति
में स्थित हैं
वह औरों के मन के
भाव को जान सकते
हैं। कोई भी व्यक्ति
आपके सामने आये
तो मन्मनाभव की
स्थिति
में स्थित होकर
उसके मन के भाव
को स्पष्ट समझ
सकते हो। क्योंकि
जब मन्मनाभव की
स्थिति सूक्ष्म
स्थिति बन जाती
है तो सूक्ष्म
स्थिति और सूक्ष्म
भाव को समझ सकते
हैं। तो यह प्रैक्टिस
अनुभव में आती
जाती है? बोल भले
क्या भी हो लेकिन
भाव किसका क्या
है - उसको जानने
का अभ्यास करते
जाओ। जब किसके
मन के भाव को समझते
जायेंगे तो इससे
रिजल्ट
क्या
होगी? हरेक के मन
के भाव को समझने
से उनकी जो चाहना
है, अथवा प्राप्ति
की इच्छा है उसको
वही मिलने से क्या
होगा? आप जो उनको
बनाने
चाहते हो
वह बन जायेंगे
अर्थात्
सर्विस
की
सफ़लता
बहुत
जल्दी निकलेगी।
क्योंकि उनकी चाहना
प्रमाण उनको प्राप्ति
होगी। अगर कोई
शान्ति का प्यासा
है, उसको शान्ति
मिल जाये तो क्या
होगा? प्राप्ति
से अविनाशी
पुरुषार्थी
बन जायेंगे।
तो मन के भाव को
परखने से, समझने
से परिणाम क्या
निकलेगा?
सर्विस
की
सफ़लता
थोड़े
समय में बहुत दिखाई
देगी क्योंकि
सफ़लता
स्वरूप
बन जायेंगे। अभी
पुरूषार्थ स्वरूप
हो। इस लक्षण के
आने से सफलता स्वरूप
हो जायेंगे। समझा?
अभी सफलता को
लाने के लिए आप
लोगों को समय और
संकल्प, सम्पत्ति,
शक्ति बहुत लगानी
पड़ती है। फिर क्या
होगा?
सफ़लता
स्वयं
आपके सामने आयेगी।
सम्पत्ति लगानी
नहीं पड़ेगी, सम्पत्ति
आपके सामने स्वयं
स्वाहा होने आयेगी।
समझा? इतना अन्तर
है सिर्फ एक बात
की धारणा से। वह
कौनसी बात? मन्मनाभव
होकर हरेक के मन
के भाव को जानना।
जो गायन है प्रकृति
दासी बनती है, वह
क्या सतयुग में
होनी है? सतयुग
में तो यह मालूम
ही नहीं पड़ेगा
कि प्रकृति के ऊपर विजय प्राप्त
करने से प्राप्ति
हुई है।
लेकिन अभी जो इतना
पुरूषार्थ करते
हो प्रकृति के
ऊपर विजयी होने
का, उस पर विजय का
फल वा प्राप्ति
इस श्रेष्ठ जन्म
में ही देखेंगे।
प्रकृति आपके सामने
आपको अधीन नहीं
बनायेगी, लेकिन
अधिकारी बनकर प्रकृति
के कर्त्तव्य को
देखेंगे। समझा?
ऐसी सम्पूर्ण स्टेज
जिसमें कोई भी
प्रकार की अधीनता
नहीं रहेगी, सर्व
पर अधिकार अनुभव
करेंगे। ऐसे बनने
के लिए क्या करना
पड़े? एक तो रूहानियत,
दूसरा चेहरे से
सदैव ईश्वरीय रूहाब
दिखाई दे और तीसरा
सर्विस
में सदैव
रहमदिल का संस्कार
वा गुण प्रत्यक्ष
हर आत्मा को अनुभव
हो। तीनों ही बातें
रूहानियत, रूहाब
और रहमदिल का गुण
भी हो। यह तीनों
ही बातें प्रत्यक्ष
रूप में, स्थिति
में, चेहरे में
और
सर्विस
अर्थात्
कर्म में दिखाई
दें, तब समझो कि
अब
सफ़लता
हमारे
समीप आ रही है।
तीनों ही साथ में
चाहिए। अभी
क्या होता है? अगर
रहमदिल बनते हो
तो जो रहमदिल के
साथ रूहाब भी दिखाई
दे, यह दोनों साथ
नहीं दिखाई देते
हैं।
या तो रहमदिल
या तो रूहाब का
गुण दिखाई देता
है। रूहाब के साथ
रूहानियत
भी दिखाई दे। तीनों
का साथ प्रत्यक्ष
रूप में हो। वह
अभी अजुन कम है।
अभ्यासी हो। अभी
सिर्फ अपने को
सर्व आत्माओं से
महान् आत्मा समझते
हो। महान आत्मा
बनकर हर संकल्प
और हर कर्म करते
हो? समझना है
लक्ष्य
और करना
वह है प्रैक्टिकल।
सर्व आत्माओं से
श्रेष्ठ से श्रेष्ठ
महान आत्मा हूँ
- इस स्मृति से किसके
भी सामने जाओ तो
क्या अनुभव करेंगे?
आपकी महानता के
आगे सभी के सिर
झुक जायेंगे। जैसे
आप के जड़ चित्रों
के सामने कितना
भी कोई आज कलियुग
के महान् मर्तबे
वाला जाये तो क्या
होगा? सिर झुकायेंगे।
जब चित्रों के
आगे सिर झुक जाता
है तो क्या चैतन्य
चरित्रवान,
सर्व गुणों में
बाप समान चैतन्य
मूर्त्त के सामने
सिर नहीं झुकायेंगे?
या समझते
हो कि यह रिजल्ट
भविष्य की है।
अभी होना है? कब?
अन्त में भी कितना
समय पड़ा है?
अगर झुक कर झुकाया
तो क्या बड़ी बात
है। यह जो
लक्ष्य
रखते
हो कि कहाँ
सर्विस
के कारण
झुकना पड़ेगा - यह
लक्ष्य
राँग
है। इस
लक्ष्य
में ही
कमजोरी भरी हुई
है। जब बीज ही कमजोर
है तो फल क्या निकलेगा?
कोई भी नई स्थापना
करने वाला यह नहीं
सोचता कि कुछ झुक
कर के करना है।
जब आत्माएं
भी झुकाने का
लक्ष्य
रखकर
कइयों को अपने
आगे झुका कर दिखाती
हैं, इसकी भेंट
में देखो - यह स्थापना
का कार्य कितना
ऊंच है और किसकी
मत पर है! उसके आगे
सर्व आत्माओं को
झुकना है - यह
लक्ष्य
रखकर,
यह ईश्वरीय रूहाब
धारण कर किसके
भी सामने जाओ तो
देखो
रिजल्ट
क्या
निकलती है!
महानता लाने
के लिए ज्ञान की
महीनता में जाना
पड़े। जितना-जितना
ज्ञान
की महीनता में
जायेंगे उतना अपने
को महान् बना सकेंगे।
महानता कम अर्थात्
ज्ञान की महीनता
का अनुभवी कम।
तो अपने को चेक
करो। महान् आत्मा
का कर्त्तव्य क्या
होता है -- वह स्मृति
में रखो। वैसे
भी महान् आत्मा
उसको कहते हैं
जो महान कर्त्तव्य
करके दिखाये। अगर
कोई साधारण कर्त्तव्य
करे उनको महान्
आत्मा नहीं कहेंगे।
तो महान् आत्माओं
का कर्त्तव्य भी
महान होना चाहिए।
सारे दिन की दिनचर्या
में यह चेक करो
कि महान् आत्मा
होने के नाते से
सारे दिन के अन्दर
आज कौनसा महान्
कर्त्तव्य किया?
महादानी बने? वैसे
भी महान् आत्माओं
का कर्त्तव्य दान-पुण्य
होता है। तो यह
सभी से महान् आत्मायें
कहलाने वाले हैं।
तो आज सारे दिन
में कितनों को
दान दिया और कौनसा
दान दिया? जैसे
महान् आत्माओं
का भोजन, खान-पान
आदि महान होता
है, वैसे देखना
है आज हमारी बुद्धि
का भोजन महान रहा?
शुद्ध भोजन स्वीकार
किया? जैसे देखो,
महान आत्मा कहलाने
वाले अशुद्ध भोजन
स्वीकार करते हैं
तो उनको देखकर
के सभी क्या कहते
हैं? कहेंगे यह
महान् आत्मा है?
तो अपने को आप ही
चेक करो कि आज हमने
बुद्धि द्वारा
कोई भी अशुद्ध
संकल्प का भोजन
तो नहीं पान किया?
महान आत्माओं का
आहार-विहार यही
तो देखा जाता है।
तो आज सारे दिन
में बुद्धि का
आहार कौनसा रहा?
अगर कोई अशुद्ध
संकल्प वा विकल्प
वा व्यर्थ संकल्प
भी बुद्धि ने ग्रहण
किया तो समझना
चाहिए कि आज मेरे
आहार में अशुद्धि
रही। जो महान आत्मा
होते हैं उनके
हर व्यवहार अर्थात्
चलन से सर्व आत्माओं
को सुख का दान देने
का
लक्ष्य
होता
है। वह सुख देता
और सुख लेता है।
तो ऐसे अपने आप
को चेक करो कि महान
आत्मा के हिसाब
से आज के दिन कोई
को भी दु:ख दिया
वा लिया तो नहीं?
पुण्य का कार्य
क्या होता है? पुण्य
अर्थात्
किसको ऐसी चीज
देना जिससे उस
आत्मा से आशीर्वाद
निकले। इसको कहते
हैं पुण्य का कर्त्तव्य।
जिसको सुख देंगे
उसके अन्दर से
आपके प्रति आशीर्वाद
निकलेगी। तो यह
है पुण्य का काम।
और मुख्य लक्षण
है आहिंसा। आप
सारे दिन में यह
भी चेक करना कि
कोई
हिंसा
तो नहीं
की? कौनसी
हिंसा
होती
है, जिसको चेक करना
है? आप अपने को डबल
अहिंसक
कहलाती
हो ना। मन्सा में
अपने संस्कारों
से युद्ध भी बहुत
चलती है। तो माया
को मारने की
हिंसा
करते
हो ना। युद्ध होते
हुए भी इसको आहिंसा
क्यों कहते हैं?
क्योंकि इस युद्ध
का परिणाम सुख
और शान्ति का निकलता
है।
हिंसा
अर्थात्
जिससे दु:ख-अशान्ति
की प्राप्ति हो।
लेकिन इससे शान्ति
और सुख की वा कल्याण
की प्राप्ति होती
है, इसलिए इसको
हिंसा
नहीं
कहते हैं। तो डबल
अहिंसक
ठहरे।
तो महान् आत्माओं
का यह जो लक्षण
गाया हुआ है वह
भी देखना है। आज
के सारे दिन में
किसी भी प्रकार
की
हिंसा
तो नहीं
की? अगर कोई शब्द
द्वारा किसकी स्थिति
को डगमग कर देते
हैं तो यह भी
हिंसा
हुई।
जैसे तीर द्वारा
किसको घायल करना
हिंसा
हुई ना।
इस प्रकार अगर
कोई शब्द द्वारा
कोई की ईश्वरीय
स्थिति को डगमग
अर्थात् घायल कर
दिया तो
यह
हिंसा
हुई ना।
असली सतोप्रधान
संस्कार वा जो
अपने ओरीजनल ईश्वरीय
संस्कार आत्मा
के हैं उनको दबाकर
दूसरे संस्कारों
को प्रैक्टिकल
में लाते हैं तो
मानो जैसे कि किसका
गला दबाया जाता
है तो वह
हिंसा
मानी
जाती है। तो अपने
ओरीजनल अथवा सतोप्रधान
स्थिति के संस्कारों
को दबाना-- यह भी
हिंसा
है। समझा?
तो यह सभी लक्षण
कहाँ तक प्रैक्टिकल
में हैं वह चेक
करना है। अब समझा,
महान आत्मा के
लक्षण क्या हैं?
सारे दिन दान भी
करते रहो, पुण्य
का कर्म भी करो
और
अहिंसक
भी बनो।
तो बताओ, स्थिति
क्या बन जायेगी?
फिर ऐसी महीनता
में जाने वाले,
सम्पूर्ण स्थिति
में स्थित रहने
वाले महान् आत्माओं
के आगे सभी जरूर
सिर झुकायेंगे।
स्थूल सिर झुकायेंगे
क्या? सिर होता
है सभी से ऊंचा।
तो सिर झुकाया
गोया सारा झुकाया।
तो आजकल जो अपने
को ऊंच महान समझते
हैं वा अपने कर्त्तव्य
को ऊंच महान समझते
हैं वह सिर झुकायेंगे
अर्थात् महसूस
करेंगे कि इस श्रेष्ठ
कर्त्तव्य के आगे
हम सभी
के कर्त्तव्य
तो कुछ भी नहीं
हैं। अपनी श्रेष्ठता
को श्रेष्ठ न समझ
साधारण समझेंगे,
तो इसको कहते हैं
सर्व आत्मायें
आपके आगे सिर झुकायेंगी।
अब समझा, क्या चेक
करना है? सारे दिन
में महान् आत्मा
के जो महान् कर्त्तव्य
वा लक्षण हैं वह
कहाँ तक प्रैक्टिकल
में लाये? फिर यह
रिजल्ट
पूछेंगे।
पहले सुनाया
था ना कि आप त्रिमूर्ति
बाप के बच्चे हो,
तो आप से त्रिमूर्ति
लाइट दिखाई दे
अर्थात् आप एक-एक
द्वारा तीन लाइट
का साक्षात्कार
हो। कोई भी आपके
सामने आये तो एक
तो मस्तक से मणि
दिखाई दे, दूसरा
दोनों नयनों से
ऐसा अनुभव हो जैसे
कि दो लाइट के बल्ब
जग रहे हैं और तीसरा
मस्तक के ऊपर लाइट
का क्राउन दिखाई
दे। इन तीनों लाइट्स
का साक्षात्कार
हो। कइयों को होता
भी है। जब याद की
यात्रा में बिठाते
हो तो
यह दोनों
नयन प्रकाश के
गोले दिखाई देते
हैं और कइयों के
मस्तक से लाइट
के क्राउन का साक्षात्कार
भी होता है। तो
आप द्वारा यह तीनों
लाइट्स का साक्षात्कार
हो तो क्या होगा?
खुद भी लाइट हो
जायेंगे। अनुभवी
तो हो ना। साकार
रूप में देखा - मस्तक
से और नयनों से
प्योरिटी के क्राउन
का साक्षात्कार
अनेकों को हुआ।
तो फालो फादर करना
है। अगर ऐसे ही
स्वरूप का साक्षात्कार
आत्माओं को कराओ
तो
सर्विस
में सफलता
आपके चरणों में
झुकेगी। ऐसी महान्
आत्मा बनो जो किसके
भी सामने जाओ तो
उसको साक्षात्कार
हो। फिर बताओ वह
अपना सिर आप साक्षात्कारमूर्त्त
के आगे दिखा सकेंगे?
झुक जायेंगे। जब
अभी यह सिर झुकायेंगे
तब आपके जड़ चित्रों
के आगे स्थूल सिर
झुकायेंगे। जो
जितनों का अभी
सिर झुकायेंगे
उतने उनके जड़ चित्रों
के आगे सिर झुकायेंगे।
प्रजा के साथ भक्त
भी बनाने हैं।
सारे कल्प की प्रारब्ध
की नूँध अभी ही
होनी है। वारिस
भी बनाने हैं और
प्रजा भी अभी बनानी
है। द्वापर युग
के भक्त भी अभी
बनेंगे। समझा?
आपके भक्तों में
भी आप लोगों द्वारा
भक्ति के अर्थात्
भावना के संस्कार
अभी भरने हैं।
यह बहुत ऊंचे हैं
-- सिर्फ इस भावना
के संस्कार भरने
से भक्त बन जायेंगे।
तो भक्त भी अभी
बनाने हैं। अभी
तक तो प्रजा बनाने
में ही मेहनत कर
रहे हो। जैसे-जैसे
आप लोगों की स्थिति
प्रत्यक्ष होती
जायेगी, वैसे-वैसे
आपके वारिस अर्थात्
रायल फैमिली, प्रजा
और भक्त तीनों
ही प्रत्यक्ष होते
जायेंगे। अभी तो
मिक्स
हैं। क्योंकि अभी
आपकी स्थिति ही
फिक्स नहीं हुई
है। इसलिए वह भी
मिक्स हो जाते
हैं। फिर प्रत्यक्ष
दिखाई पड़ेंगे।
आप महसूस करेंगे
कि भक्त हैं।
यह भी महसूस करेंगे
क्योंकि त्रिकालदर्शी
का गुण
प्रत्यक्ष हो जायेगा।
तो अपनी भी तीनों
कालों की प्रारब्ध
को स्पष्ट देख
सकेंगे। दिव्य-दृष्टि
से नहीं,
प्रत्यक्ष
साक्षात्कार करेंगे।
अच्छा।
महानता लाने
के लिए ज्ञान की
महीनता में जाना
है। जितना-जितना
ज्ञान की महीनता
में जायेंगे उतना
अपने को महान्
बना सकेंगे। महानता
कम अर्थात् ज्ञान
की महीनता का अनुभवी
कम।