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02-02-72   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


प्रीत बुद्धि की निशानियाँ

भी अव्यक्त रूप में स्थित हो? यह तो जानते हो-अव्यक्ति मिलन अव्यक्त स्थिति में स्थित रहने से ही कर सकते हो। अपने आप से पूछो- अव्यक्त स्थिति में स्थित रहने के अनुभवीमूर्त कहाँ तक बने हैं? अव्यक्ति स्थिति में रहने वालों का सदा हर संकल्प, हर कार्य अलौकिक होता है। ऐसा अव्यक्ति भाव में, व्यक्त देश और कर्त्तव्य में रहते हुए भी कमल पुष्प के समान न्यारा और एक बाप का सदा प्यारा रहता है। ऐसे अलौकिक अव्यक्ति स्थिति में सदा रहने वाले को कहा जाता है अल्लाह लोग। टाइटिल तो और भी है। ऐसे को ही प्रीत बुद्धि कहा जाता है। प्रीत बुद्धि और विपरीत बुद्धि - दोनों के अनुभवी हो। इसलिए आप लोग मुख्य स्लोगन लिखते भी हो - विनाश काले प्रीत बुद्धि पाण्डव विजयन्ती और विनाश काले विपरीत बुद्धि विनशयन्ती। इस स्लोगन को सारे दिन में अपने आप से लगाते हो कि कितना समय प्रीत बुद्धि अर्थात् विजयी बनते हैं और कितना समय विपरीत होने से हार खा लेते हैं? जब माया से हार खाते हो तो क्या प्रीत बुद्धि हो? प्रीत बुद्धि अर्थात् विजयी। तो जब दूसरों को सुनाते हो कि विनाश काले विपरीत बुद्धि मत बनो; प्रीत बुद्धि बनो तो अपने को भी देखते हो कि इस समय हम प्रीत बुद्धि हैं वा विपरीत बुद्धि हैं? प्रीत बुद्धि वाला कब श्रीमत के विपरीत एक संकल्प भी नहीं उठा सकता। अगर श्रीमत के विपरीत संकल्प वा वचन वा कर्म होता है तो क्या उसको प्रीत बुद्धि कहेंगे? प्रीत बुद्धि अर्थात् बुद्धि की लगन वा प्रीत एक प्रीतम के साथ सदा लगी हुई हो। जब एक के साथ सदा प्रीत है तो अन्य किसी भी व्यक्ति वा वैभवों के साथ प्रीत जुट नहीं सकती, क्योंकि प्रीत बुद्धि अर्थात् सदा बापदादा को अपने सम्मुख अनुभव करेंगे। जब बाप सदा सम्मुख है, तो ऐसे सम्मुख रहने वाले कब विमुख नहीं हो सकते। विमुख होते हैं अर्थात् बाप सम्मुख नहीं है। प्रीत बुद्धि वाले सदैव बाप के सम्मुख रहने के कारण उनके मुख से, उनके दिल से सदैव यही बोल निकलते हैं-तुम्हीं से खाऊं, तुम्हीं से बैठूँ, तुम्हीं से बोलूँ, तुम्हीं से सुनूँ, तुम्हीं से सर्व सम्बन्ध निभाऊं, तुम्हीं से सर्व प्राप्ति करूं। उनके नैन, उनका मुखड़ा न बोलते हुए भी बोलते हैं। तो ऐसे विनाश काले प्रीत बुद्धि बने हो अर्थात् एक ही लगन में एकरस स्थिति वाले बने हाे? जैसे साकार रूप में, साकार देश में वरदान-भूमि में जब सम्मुख आते हो, तो जैसे सुना वैसे ही सदा प्रीत बुद्धि का अनुभव करते हो ना। अनुभव सुनाते हो ना। ऐसे ही बुद्धियोग द्वारा सदा बापदादा; के सम्मुख रहने का अभ्यास करो तो क्या सदा प्रीत बुद्धि नहीं बन सकते? जिसके सम्मुख है ही सदा बापदादा तो जैसे सूर्य के सामने देखने से सूर्य की किरणें अवश्य आती हैं; इसी प्रकार अगर ज्ञान-सूर्य बाप के सदा सम्मुख रहो तो ज्ञान-सूर्य के सर्व गुणों की किरणें अपने में अनुभव नहीं होंगी?

ज्ञान-सूर्य की किरणें न चाहते भी अपने में धारण होते हुए अनुभव करेंगे लेकिन तब जब बाप के सदा सम्मुख होंगे। जो सदा बाप को सम्मुख अनुभव करते हैं, उन्हों की सूरत पर क्या दिखाई देगा जिससे आप स्वयं ही समझ जायेंगे कि यह सदैव बाप के सम्मुख रहता है? जो साकार में भी सम्मुख रहते हैं उन्हों की सूरत पर क्या रहता है? साकार में सम्मुख रहने का तो सहज अनुभव कर सकते हो। बहुत पंराना शब्द है। रिवाइज कोर्स चल रहा है ना, तो पुराना शब्द भी रिवाइज हो रहा है। यह भी बुद्धि की ड्रिल है। बुद्धि में मनन करने की शक्ति आ जायेगी। अच्छा, एक तो उनकी सूरत पर अन्तर्मुखता की वा अन्तर्मुखी की झलक रहती है और दूसरा अपने संगमयुग की और भविष्य की सर्व स्वमान की फलक रहती है। समझा? एक झलक दिखाई देती है, दूसरा फलक दिखाई देती है। तो ऐसे सदैव न सिर्फ फलक दिखाई दे लेकिन झलक भी दिखाई दे, हर्षितमुख के साथ अन्तर्मुखी भी दिखाई दे - ऐसे को कहा जाता है सदा बाप के सम्मुख रहने वाले प्रीत बुद्धि। अगर सदा यह स्मृति रहे कि इस तन का किसी भी समय विनाश हो सकता है; तो यह विनाश काल स्मृति में रहने से प्रीत बुद्धि स्वत: हो ही जायेंगे। जब विनाश का काल आता है तो अज्ञानी भी बाप को याद करने का प्रयत्न रूर करते हैं लेकिन परिचय के बिना प्रीत जुट नहीं पाती। अगर यह सदा स्मृति में रखो कि यह अन्तिम घड़ी है, अन्तिम जन्म नहीं अन्तिम घड़ी है, यह याद रहने से और कोई भी याद नहीं आयेगा। फिर ऐसे सदा प्रीत बुद्धि हो? श्रीमत के विपरीत तो नहीं चलते हो? अगर मन्सा में भी श्रीमत के विपरीत व्यर्थ संकल्प वा विकल्प आते हैं तो क्या प्रीत बुद्धि कहेंगे? ऐसे सदा प्रीत बुद्धि रहने वाले विजयी रत्न बन सकेंगे। विजयी रत्न बनने के लिए अपने को सदा प्रीत बुद्धि बनाओ। नहीं तो ऊंच पद पाने के बजाय कम पद पाने के अधिकारी बन जायेंगे। तो सभी अपने को विजयी रत्न समझते हो? कहां भी किस प्रकार से कोई साथ प्रीत न हो, नहीं तो विपरीत बुद्धि की लिस्ट में आ जायेंगे। जैसे लोगों को प्रदर्शनी में संगम के चित्र पर खड़ा करके पूछते हो कि अभी आप कहां हो और कौन हो? संगम पर खड़ा करके क्यों पूछते हो? क्योंकि संगम है ऊंच ते ऊंच स्थान वा युग। इसी प्रकार अपने आप को ऊंची स्टेज पर खड़ा करो और फिर अपने आप से पूछो कि मैं सदा प्रीत बुद्धि हूँ? वा नहीं हूँ वा कभी प्रीत बुद्धि की लिस्ट में आते हो, कभी निकल जाते हो? अगर अब तक भी सदा प्रीत बुद्धि नहीं बने अर्थात् कहाँ न कहाँ सूक्ष्म रूप में वा स्थूल रूप में किस से भी, कहाँ भी प्रीत लगी हुई है। तो वर्तमान समय जबकि पढ़ाई का कोर्स समाप्त हो और रिवाइज कोर्स चल रहा है, तो इससे समझना चाहिए परीक्षा का समय कितना समीप है। जैसे आजकल कौरव गवर्मेन्ट भी बीच-बीच में पेपर लेकर उन्हों की मार्क्स फाइनल पेपर में जमा करती है, इसी प्रकार वर्तमान समय जो भी कर्म करते हो, समझो - प्रैक्टिकल पेपर दे रहे हैं और इस समय के पेपर की रिजल्ट फाइनल पेपर में जमा हो रही है। अभी थोड़े समय में यह भी अनुभव करेंगे - कोई भी विकर्म करने वाले को सूक्ष्म रूप में सजाओं का अनुभव होगा। जैसे प्रीत बुद्धि चलते-फिरते बाप, बाप के चरित्र और बाप के कर्त्तव्य की स्मृति में रहने से बाप के मिलने का प्रैक्टिकल अनुभव करते हैं, वैसे विपरीत बुद्धि वाले विमुख होने से सूक्ष्म सजाओं का अनुभव करेंगे। इसलिए फिर भी बापदादा पहले से ही सुना रहे हैं कि उन सजाओं का अनुभव बहुत कड़ा है। उनके सीरत से हरेक अनुभव कर सकेंगे कि इस समय यह आत्मा सजा भोग रही है। कितना भी अपने को छिपाने की कोशिश करेंगे लेकिन छिपा नहीं सकेंगे। वह एक सेकेण्ड की सजा अनेक जन्मों के दु:ख का अनुभव कराने वाली है। जैसे बाप के सम्मुख आने से एक सेकेण्ड का मिलन आत्मा के अनेक जन्मों की प्यास बुझा देता है, ऐसे ही विमुख होने वाले को भी अनुभव होगा। फिर उन सजाओं से छूटकर अपनी उस स्टेज पर आने में बहुत मेहनत लगेगी। इसलिए पहले से ही वार्निंग दे रहे हैं कि अब परीक्षा का समय चल रहा है। ऐसे फिर उल्हना नहीं देना कि हमें क्या मालूम कि इस कर्म की इतनी गुह्य गति है? इसलिए सूक्ष्म सजाओं से बचने के लिए अपने से ही अपने आप को सदा सावधान रखो। अब गफ़लत न करो। अगर जरा भी गफलत की तो जैसे कहावत है - एक का सौ गुणा लाभ भी मिलता है और एक का सौ गुणा दण्ड भी मिलता है, यह बोल अभी प्रैक्टिकल में नुभव होने वाले हैं। इसलिए सदा बाप के सम्मुख, सदा प्रीत बुद्धि बनकर रहो। अच्छा!

सदा सम्मुख रहने वाले लक्की सितारों को बापदादा भी नमस्ते करते हैं। अच्छा!


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