24-05-72
ओम शान्ति अव्यक्त
बापदादा मधुबन
परिवर्तन
का आधार - दृढ़
संकल्प
आज सर्व
पुरुषार्थी
आत्माओं
को देख-देख खुश
हो रहे हैं क्योंकि
जानते हैं कि यही
श्रेष्ठ आत्मायें
सृष्टि को परिवर्तन
करने के निमित
बनी हुई हैं। एक-एक
श्रेष्ठ आत्मा
नंबरवार कितनी
कमाल कर रही है।
वर्तमान
समय भले
कोई भी कमी वा कमजोरी
है लेकिन भविष्य
में यही आत्मायें
क्या से क्या बनने
वाली हैं और क्या
से क्या बनाने
वाली हैं! तो भविष्य
को देख, आप सभी की
सम्पूर्ण स्टेज
को देख
हर्षित
हो रहे
हैं। सभी से बड़े
ते बड़े
रूहानी जादूगर
हो ना। जैसे जादूगर
थोड़े ही समय में
बहुत विचित्र खेल
दिखाते हैं, वैसे
आप रूहानी जादूगर
भी अपनी रूहानियत
की शक्ति से सारे
विश्व
को परिवर्तन
में लाने वाले
हो, कंगाल को डभले
ताजधारी बनाने
वाले हो। परन्तु
इतना बड़ा कार्य
स्वयं को बदलने
अथवा
विश्व
को बदलने
का, एक ही दृढ़ संकल्प
से करने वाले हो।
एक ही दृढ़ संकल्प
से अपने को बदल
देते हो। वह कौनसा
एक दृढ़ संकल्प,
जिस एक संकल्प
से अनेक जन्मों
की विस्मृति के
संस्कार स्मृति
में बदल जाएं? वह
एक संकल्प कौनसा?
है भी एक सेकेण्ड
की बात जिससे स्वयं
को बदल लिया। एक
ही सेकेण्ड का
और एक ही संकल्प
यह धारण किया कि
मैं आत्मा हूं।
इस दृढ़ संकल्प
से ही अपने सभी
बातों को परिवर्तन
में लाया। ऐसे
ही, दृढ़ संकल्प
से
विश्व
को भी
परिवर्तन में लाते
हो। वह एक दृढ़ संकल्प
कौन-सा? हम ही
विश्व
के आधारमूर्त,
उद्धारमूर्त हैं
अर्थात्
विश्व-कल्याणकारी
हैं। इस संकल्प
को धारण करने से
ही
विश्व
के परिवर्तन
के कर्त्तव्य में
सदा तत्पर रहते
हो। तो एक ही संकल्प
से अपने को वा
विश्व
को बदल
लेते हो, ऐसे रूहानी
जादूगर हो। वह
जादूगर तो अल्पकाल
के लिए चीजों को
परिवर्तन में लाकर
दिखाते हैं, लेकिन
आप रूहानी जादूगर
अविनाशी परिवर्तन,
अविनाशी प्राप्ति
करने-कराने वाले
हो। तो सदा अपने
इस श्रेष्ठ मर्तबे
और श्रेष्ठ कर्त्तव्य
को सामने रखते
हुए हर संकल्प
वा कर्म करो तो
कोई भी संकल्प
वा कर्म व्यर्थ
नहीं होगा। चलते-चलते
पुराने शरीर और
पुरानी दुनिया
में रहते हुए अपने
श्रेष्ठ मर्तबे
को और श्रेष्ठ
कर्त्तव्य
को भूल जाने के
कारण अनेक प्रकार
की भूलें हो जाती
हैं। अपने आपको
भूलना - यह भी भूल
है ना। जो अपने
आपको भूलता है
वह अनेक भूलों
के निमित्त बन
जाते हैं। इसलिए
अपने मर्तबे को
सदैव सामने रखो।
जैसे सच्चे भक्त
लोग जो होते हैं
वह भी दुनिया की
तुलना में, जो दुनिया
वाले नास्तिक,
अज्ञानी लोग विकर्म
करते हैं, विकारों
के वश होते हैं,
उनसे काफी दूर
रहते हैं। क्यों?
कारण क्या होता
है कि जो नवधा अर्थात्
सच्चे भक्त हैं
वह सदैव अपने सामने
अपने इष्ट को रखते
हैं। उनको सामने
रखने कारण कई बातों
में सेफ रह जाते
हैं और कई आत्माओं
से श्रेष्ठ बन
जाते हैं। जब भक्त
भी भक्ति द्वारा
इष्ट को सामने
रखने से नास्तिक
और अज्ञानी से
श्रेष्ठ बन सकते
हैं, तो ज्ञानी
तू आत्माएं सदा
अपने श्रेष्ठ मर्तबे
और कर्त्तव्य को
सामने रखें तो
क्या बन जाएंगी?
श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ
आत्माएं। तो अपने
आप से पूछो, देखो
कि सदा अपना मर्तबा
और कर्त्तव्य सामने
रहता है? बहुत समय
भूलने के संस्कारों
को धारण किया, लेकिन
अब भी अगर बार-बार
भूलने के संस्कार
धारण करते रहेंगे
तो स्मृतिस्वरूप
का जो नशा वा खुशी
प्राप्त होनी चाहिए
वह कब करेंगे? स्मृति-स्वरूप
का सुख वा स्मृति-स्वरूप
की खुशी का अनुभव
क्यों नहीं होता
है? उसका
मुख्य
कारण
क्या है? अभी तक
सर्व रूपों से
नष्टोमोहा नहीं
हुए हो। नष्टोमोहा
हैं तो फिर भले
कितनी भी कोशिश
करो लेकिन स्मृतिस्वरूप
में आ जाएंगे।
तो प्हले ‘‘नष्टोमोहा
कहां तक हुए हैं’’
-
यह अपने
आपको चेक करो।
बार-बार देहअभिमान
में आना यह सिद्ध
करता है -- देह की
ममता से परे नहीं
हुए हैं वा देह
के मोह को नष्ट
नहीं किया है।
नष्टोमोहा ना होने
कारण समय और शक्तियां
जो बाप द्वारा
वर्से में प्राप्त
हो रही हैं, उन्हों
को भी नष्ट कर देते
हो, काम में नहीं
लगा सकते हो। मिलती
तो सभी को हैं ना।
जब बच्चे बने तो
जो भी बाप की प्रापर्टा
वा वर्सा है उसके
अधिकारी बनते हैं।
तो सर्व आत्माओं
को सर्व शक्तियों
का वर्सा मिलता
ही है लेकिन उस
सर्व शक्तियों
के वर्से को काम
में लगाना और अपने
आप को उन्नति में
लाना, यह
नंबरवार पुरूषार्थ
अनुसार होता है।
इसलिए बेहद बाप
के बच्चे और वर्सा
हद का लेवें, तो
क्या कहेंगे? बेहद
मर्तबे के बजाए
हद का वर्सा वा
मर्तबा लेना - यह
बेहद के बच्चों
का कर्त्तव्य नहीं
है। तो अभी
भी अपने
आपको बेहद के वर्से
के अधिकारी बनाओ।
अधिकारी कब अधीन
नहीं होता है।
अपनी रचना के अधीन
नहीं होता है, अपनी
रचना के अधीन होना,
इसको अधिकारी कहेंगे?
बार-बार विस्मृति
में आने से अपने
आप को ही कमजोर
बना देते हो। कमजोर
होने के कारण छोटी-सी
बात का सामना नहीं
कर पाते हो। तो
अब आधे कल्प के
इन विस्मृति के
संस्कारों को विदाई
दो। आज बाप दादा
भी आप सभी से प्रतिज्ञा
कराते हैं। जैसे
आप लोग दुनिया
वालों को चैलेन्ज
करते हो कि विनाश
में 4 वर्ष हैं; तो
क्या 4 वर्ष के लिए
भी अपने आपको सतोप्रधान
नहीं बना सकते
हो? जैसे दुनिया
को चैलेन्ज करते
हो वैसे आप भी 4 वर्ष
के लिए विस्मृति
के संस्कारों को
विदाई नहीं दे
सकते हो? दुनिया
को चैलेन्ज करने
वाले स्वयं अपने
लिए 4 वर्ष के लिए
माया को चैलेन्ज
नहीं कर सकते हो?
4 वर्ष के लिए मायाजीत
नहीं बन सकते हो?
जब उन्हों को हिम्मत
दिलाते हो, उल्लास
में लाते हो, तो
क्या अपने आपमें
अपने प्रति अपने
आपको हिम्मत-उल्लास
नहीं दे सकते हो?
तो आज से सिर्फ
4 वर्ष के लिए प्रतिज्ञा
करो कि कभी किस
रूप में भी, किस
परिस्थिति में
भी माया से हारेंगे
नहीं लेकिन लड़ेंगे
और विजयी बनेंगे।
तो 4 वर्ष के लिए
यह कंगन
नहीं बांध सकते
हो? जिन्हों को
नॉलेज
नहीं,
शक्ति नहीं उन्हों
को भी राखी बांध-बांध
करके प्रतिज्ञा
कराते हो और जो
बहुत काल से
नॉलेज, सम्बन्ध
और शक्ति को प्राप्त
करने वाले हों
वह श्रेष्ठ आत्मायें,
महावीर आत्मायें,
शक्तिस्वरूप आत्मायें,
पाण्डव सेना क्या
यह प्रतिज्ञा की
राखी नहीं बांध
सकते हो? क्या अन्त
तक कमजोरी और कमी
को अपना साथी बनाने
चाहते
हो? आजकल साइन्स
द्वारा भी एक सेकेण्ड
में कोई भी वस्तु
को भस्म कर लेते
हैं। तो
नॉलेजफुल मास्टर
सर्वशक्तिवान
एक सेकेण्ड के
दृढ़ संकल्प से
वा प्रतिज्ञा से
अपनी कमजोरियों
को भस्म नहीं कर
सकते हो? वह भी सिर्फ
4 वर्ष के लिए कह
रहे हैं। 4 वर्ष
की प्रतिज्ञा सहज
है वा मुश्किल
है? औरों को तो बड़े
फोर्स, फलक से यह
प्वाइन्ट देते
हो। तो जैसे औरों
को फलक और फखुर
से कहते हो वैसे
अपने आप में भी
विजयी बनने की
फलक और फखुर नहीं
रख सकते हो? तो आज
से कमजोरियों को
कम से कम 4 वर्ष के
लिए तो विदाई दे
दो। 4 वर्ष आप के
लिए 4 सेकेण्ड हैं
ना। अभी यहां हो,
अभी-
अभी वहां हो; अभी-अभी
पुरुषार्थी, अभी-अभी
फरिश्ता रूप -- इतना
समीप अपनी सम्पूर्ण
स्थिति दिखाई नहीं
दे रही है? जब समय
इतना नजदीक है
तो सम्पूर्ण स्थिति
भी तो नजदीक है।
इससे भी पुरूषार्थ
में भले भरेगा।
जैसे कोई को मालूम
पड़ जाता है कि मंजिल
अभी सिर्फ इतनी
थोड़ी-सी दूर है,
मंजिल पर पहुंचने
की खुशी में सभी
बात भूल जाते हैं।
यह जो चलते-चलते
पुरूषार्थ में
थकावट वा छोटी-छोटी
उलझनों में फंसकर
आलस्य में आ जाते
हो, उन सभी को मिटाने
के लिए अपने सामने
स्पष्ट समय और
समय के साथ-साथ
अपनी प्राप्ति
को रखो तो आलस्य
वा थकावट मिट जायेगी।
जैसे हर वर्ष का
सर्विस
प्लैन
बनाते हो वैसे
हर वर्ष में अपनी
चढ़ती कला वा सम्पूर्ण
बनने का वा श्रेष्ठ
संकल्प वा कर्म
करने का भी अपने
आप के लिए प्लैन
बनाओ और प्लैन
के साथ हर समय प्लैन
को सामने देखते
हुए प्रैक्टिकल
में लाते जाओ।
अच्छा!
ऐसी प्रतिज्ञा
कर अपने सम्पूर्ण
स्वरूप को और बाप
को प्रत्यक्ष करने
वालों को नमस्ते।