26-06-72
ओम शान्ति अव्यक्त
बापदादा मधुबन
इफ़ेक्ट
से बचना
अर्थात्
परफेक्ट बनना
आप सभी
का लक्ष्य परफेक्ट
बनने का है ना।
परफेक्ट अर्थात्
कोई भी डिफेक्ट
नहीं। अगर डिफेक्ट
होगा तो उसकी निशानी
क्या होगी? कोई-
न-कोई प्रकार का
- चाहे मन्सा संकल्प
में, चाहे सम्पर्क
वा सम्बन्ध में
किसी
भी प्रकार से माया
का
ज़रा भी इफेक्ट
होने कारण डिफेक्ट
होता है। जैसे
शरीर को भी कोई
बात का इफेक्ट
होता है तब बीमारी
अर्थात् डिफेक्ट
होता है। जैसे
शरीर को मौसम का
इफेक्ट हो जाता
है वा खान-पान का
इफेक्ट होता है
तब बीमारी आती
है। तो कोई भी डिफेक्ट
न रहे -- इसके लिये
माया के इफेक्ट
से बचना है। कोई-न-कोई
प्रकार से इफेक्ट
आ जाता है इसलिये
परफेक्ट नहीं हो
सकते। तो कोशिश
यह करनी है - कोई
भी प्रकार का इफेक्ट
न हो, इफेक्ट-प्रूफ
हो जायें। इसके
लिये साधन भी समय-प्रति-समय
मिलते रहते हैं।
मन्सा को इफेक्ट
से दूर कैसे रखो,
वाचा को कोई भी
इफेक्ट से दूर
कैसे रखो वा कर्मणा
में भी इफेक्ट
से दूर कैसे रहो
- एक एक बात में अनेक
प्रकार की युक्तियाँ
बताई हुई हैं।
लेकिन इफेक्ट हो
जाता है, बाद में
वह साधन करने की
कोशिश करते हो।
समझदार जो होते
हैं वह पहले से
ही अटेन्शन रखते
हैं। जैसे गर्मा
की सीजन में गर्मा
का इफेक्ट न हो,
इसका साधन पहले
से ही कर लेते; उनको
कहेंगे सेन्सीबूल।
अगर समझ कम है तो
गर्मा का इफेक्ट
हो जाता है। तो
कमल फूल समान सदा
इफेक्ट से न्यारा
और बाप का प्यारा
बनना है। हरेक
को अपने पुरूषार्थ
प्रमाण वा अपनी
स्थिति प्रमाण
भी मालूम होता
है कि हमारी आत्मा
में विशेष किस
बात का इफेक्ट
समय-प्रति- समय
होता है। मालूम
होते हुये उन साधनों
को अपना नहीं सकते।
चाहते हुये भी
उस समय जैसे अनजान
बन जाते हैं। जैसे
कोई इफेक्ट होता
है तो मनुष्य की
बुद्धि को डिफेक्ट
कर देता है, फिर
उस समय बुद्धि
काम नहीं करती।
वैसे माया का भी
भिन्न-भिन्न रूप
से इफेक्ट होने
से बेसमझ बन जाते
हैं। इसलिये परफेक्ट
बनने में डिफेक्ट
रह जाता है। जैसे
अपने शरीर की सम्भाल
रखना ज़रूरी है, वैसे
आत्मा के प्रति
भी पूरी समझ रख
चलना चाहिए, तब
ही बहुत
जल्दी
इफेक्ट से परे
परफेक्ट हो जावेंगे।
जानते हुये भी
कहाँ संग में आकर
भी गलती कर देते
हैं। समझते भी
हैं लेकिन उस समय
वातावरण वा कोई
भी समस्या के कारण,
संस्कारों के कारण
वा सम्पर्क में
आने का शक्ति कम
होने कारण फिर
फिर उस इफेक्ट
में आ जाते हैं।
सदैव अपने को चेक
करना चाहिए कि
मुख्य
किस बात
के निमित इफेक्ट
होता है। उस इफेक्ट
से सदा अपना बचाव
रखना है, तब ही सहज
परफेक्ट बन जावेंगे।
मुख्य
पुरूषार्थ
यह है। आप लोग हरेक
अपने
मुख्य
इफेक्ट
के कारण को जानते
तो हो। जानते हुये
भी माया वा समस्या
इफेक्ट में थोड़ा
बहुत ला देती है
ना। तो इफेक्ट
से अपने को बचाना
है। इफेक्ट-प्रूफ
बने हो? संगदोष,
अन्नदोष न हो, उसके
तरीके जानते हो
तो अपन को इफेक्ट-प्रूफ
भी कर सकते हो।
माया सेन्सीबूल
से अनजान बना देती
है। अगर सदा ज्ञान
अर्थात् सेन्स
में रहे तो सेन्सीबूल
कभी किसके इफेक्ट
में नहीं आता है।
कोई इफेक्ट से
बच कर आता है तो
कहा जाता है - यह
तो बड़ा सेन्सीबूल
है। तो माया पहले
सेन्स को कमजोर
करती है। जैसे
सामना करने वाले
दुश्मन पहले कमजोर
करने की कोशिश
करते हैं, फिर वार
करते हैं तब विजयी
बनते हैं। पहले
कमजोर करने का
कोई तरीका
ढूँढ़ते
हैं। माया दुश्मन
भी पहले से सेन्स
को कमज़ोर कर देती
है। समझ नहीं सकते
कि यह राइट है वा
रॉंग
है। फिर
इफेक्ट हो जाता
है। इफेक्ट ही
डिफेक्ट का रूप
धारण कर लेता है।
डिफेक्ट परफेक्ट
बनने नहीं देता
है। लक्ष्य क्या
रखा है? परफेक्ट
अर्थात् 16 कला सम्पन्न।
थोड़ा-बहुत डिफेक्ट
है तो 14 कला। तो क्या
लक्ष्य रखा है?
जो सेन्सीबूल होगा
वह सक्सेसफुल
ज़रूर होगा।
अच्छा!