04-08-72
ओम शान्ति अव्यक्त
बापदादा मधुबन
सर्विसएबल,
सेंसीबल और इसेंसफुल
की निशानियां
अपने को
सर्विसएबल, सेन्सीबल
और इसेन्सफुल समझते
हो? तीनों ही गुण
बाप समान अपने
में अनुभव करते
हो? क्योंकि वर्तमान
समय का जो अपने
सामने सिम्बल रखा
है, उसी प्रमाण
समानता में समीप
आते
जाते हो ना। सिम्बल
कौन-सा रखा है? बाप
का। विष्णु का
सिम्भले तो है
भविष्य का लेकिन
संगम का सिम्भले
तो बाप ही है ना।
तो सिम्भले को
सामने रखते हुये
समानता लाते रहते
हैं ना। इन तीनों
ही गुणों में समानता
अनुभव करते हो
कि एक गुण की विशेषता
अनुभव करते हो
और दूसरे-तीसरे
की नहीं? तीनों
ही गुण समय प्रमाण
जिस परसेन्टेज
में होने
चाहिए
वह हैं?
वर्तमान समय के
अनुसार पुरूषार्थ
की स्टेज की परसेन्टेज
जितनी होनी चाहिए
इतनी है? 95 प्रतिशत
तक तो पहुंचना
चाहिए ना। जबकि
समय ही थोड़ा- सा
रह गया है, उस समय
के प्रमाण 95% होना
चाहिए। 100% तो नहीं
कह सकते हैं, कहें
तो समय का कारण
दे देंगे। इसलिए
100% नहीं कह रहे हैं।
50% छोड़ रहे हैं। संगमयुग
के पुरूषार्थ के
समय प्रमाण 4 वर्ष
कितनी परसेन्टेज
है? समय की परसेन्टेज
अनुसार 95% तो कोई
बड़ी बात नहीं है।
तो इतना लक्ष्य
रखते हुये स्पीड
को आगे बढ़ाते जा
रहे हो कि अभी भी
समझते हो समय पड़ा
है? यह संकल्प तो
नहीं आता है कि-’’अभी
अजुन 4 वर्ष पड़े
हैं। उसमें तब
क्या करेंगे अगर
अभी ही पुरूषार्थ
समाप्त कर दें’’?
यह संकल्प
तो नहीं आता है?
कोई कमी रही हुई
है तब तो ड्रामा
में 4 वर्ष रहे हुए
हैं तो फिर जब कमी
को भरने लिये 4 वर्ष
हैं, तो कमी भी रहनी
चाहिए ना? अगर कमी
रह भी जाती है तो
कितनी रहनी चाहिए?
ऐसे नहीं 50-50 रहे।
अगर 50% जो सम्पन्न
करना है, फिर तो
स्पीड बहुत तेज
चाहिए। इतनी तेज
स्पीड जो कर सकता
है वह 95% तक ना पहुंचे
- यह तो हो नहीं सकता।
तो अब लक्ष्य क्या
रखना है? अगर समय
प्रमाण ड्रामा
अनुसार कुछ कमी
रह भी जाती है तो
5% का अलाऊ है, ज्यादा
नहीं। अगर इससे
ज्यादा
है तो
समझना चाहिए फाइनल
स्टेज से दूर हैं।
फिर बापदादा के
समीप और साथ रहने
का जो लक्ष्य रखते
हो वह पूर्ण नहीं
हो पावेगा। क्योंकि
जब फर्स्ट
नंबर
अव्यक्त
स्थिति को पा चुके
हों, उसके बाद जो
समीप के रत्न होंगे
वह कम से कम इतना
तो समीप हों जो
बाकी सिर्फ 5 प्रतिशत
की
कमी
रहे। बाप
अव्यक्त हो चुके
हैं और समीप रत्नों
में 50% का फर्क हो;
तो क्या इसको समीप
कहेंगे? क्या वह
आठ
नंबर
के अन्दर
आ सकता है? साकार
बाप साक्षी हो
अपनी स्थिति का
वर्णन नहीं करते
थे? साक्षी हो अपनी
स्थिति को
चेक करना
है। जो जैसे हैं
वह वर्णन करने
में ख्याल क्यों
आना चाहिए? बाहर
से अपनी महिमा
करना दूसरी बात
है, लेकिन अपने
आपकी चेकिंग में
बुद्धि की जजमेंट
देना है। दूसरों
को आपकी ऐसी स्टेज
का अनुभव तो होना
चाहिए ना? तो समीप
रत्न बनने के लिये
इतनी स्पीड से
अपनी परसेन्टेज
को बनाना पड़े।
50 प्रतिशत तो मैजारिटी
कहेंगे, लेकिन
अष्ट देवताएं,
मैनारिटी कैसे
कह सकते? अगर मैजारिटी
के समान मैनारिटी
के भी लक्षण हों
तो फर्क क्या रहा?
तो तीनों ही बातें
जो सुनाई वह अपने
आप में देखो।
सर्विसएबल का
रूप क्या होता
है, इसको सामने
रखते हुए अपने
आपको चेक करो कि
वर्तमान स्थिति
के प्रमाण व वर्तमान
एक्टिविटी के प्रमाण
अपने को
सर्विसएबल कह
सकते हैं?
सर्विसएबल का
हर संकल्प, हर बोल,
हर कर्म
सर्विस
करने
योग्य होगा। उसका
संकल्प भी आटोमेटिकली
सर्विस
करेगा।
क्योंकि उनका संकल्प
सदा
विश्व
के कल्याण
प्रति ही होता
है अर्थात्
विश्व-कल्याणकारी
संकल्प ही उत्पन्न
होता है। व्यर्थ
नहीं होगा। समय
भी हर सेकेण्ड
मन्सा, वाचा, कर्मणा
सर्विस
में ही
व्यतीत करेंगे।
उसको कहा जाता
है
सर्विसएबल।
जैसे जिसको जो
स्थूल धन्धा वा
व्यापार होता है
तो आटोमेटिकली
उनके संकल्प वा
कर्म भी उसी प्रमाण
चलते हैं ना। ना
सिर्फ संकल्प,
स्वप्न में भी
वहीं देखेंगे।
तो
सर्विसएबल के
संकल्प आटोमेटिकली
सर्विस
प्रति
ही चलेंगे क्योंकि
उनका धन्धा ही
यह है। अच्छा, सेन्सीबल
के लक्षण क्या
होंगे? (हरेक ने
सुनाया) इतने लक्षण
सुनाये हैं जो
अभी ही लक्ष्य
में स्थित हो सकते
हो। सेन्सीबल अर्थात्
समझदार। लौकिक
रीति जो समझदार
होते हैं वह आगे-पीछे
को सोच- समझ कर फिर
कदम उठाते हैं।
लेकिन यहां तो
है बेहद की समझ।
तो
समझदार जो होगा
उसका
मुख्य
लक्षण
त्रिकालदर्शा
बन तीनों कालों
को पहले से ही जानते
हुए फिर कर्म करेगा।
कल्प पहले की स्मृति
भी स्पष्ट रूप
में होंगी कि कल्प
पहले भी मैं ही
विजयी बना हूँ,
अभी भी विजयी हूँ,
अनेक बार के विजयी
बनते रहेंगे। यह
विजयीपन के निश्चय
के आधार पर वा त्रिकालदर्शा-
पन के आधार पर जो
भी कार्य करेंगे
वह कब व्यर्थ वा
असफल नहीं होंगे।
तो समझ त्रिकालदर्शापन
की होनी चाहिए।
सिर्फ वर्तमान
समय को समझना, इसको
भी सम्पूर्ण नहीं
कहेंगे। जो कोई
भी कार्य में असफलता
होती वा व्यर्थ
हो जाता, इसका कारण
ही यह है कि तीनों
कालों को सामने
रखते हुए कार्य
नहीं करते, इतनी
बेहद की समझ धारण
कर नहीं सकते।
इस कारण वर्तमान
समस्याओं को देखते
हुए घबरा जाते
हैं और घबराने
कारण सफलता पा
नहीं सकते। सेन्सीबल
जो होगा वह बेहद
को समझ कर वा त्रिकालदर्शा
बन हर कर्म करेंगे
वा हर बोल बोलेंगे,
जिसको ही अलौकिक
वा असाधारण कहा
जाता है। सेन्सीबल
कब भी समय वा संकल्प
वा बोल को व्यर्थ
नहीं गंवायेंगे।
जैसे लौकिक रीति
भी अगर कोई धन को
वा समय को व्यर्थ
गंवाते हैं तो
कहने में आता है
- इनको समझ नहीं
है। इस रीति से
जो सेन्सीबल होगा,
वह हर सेकेण्ड
को समर्थ बना कर
कार्य में लगावेंगे,
व्यर्थ कार्य में
नहीं लगावेंगे।
सेन्सीबल कभी भी
व्यर्थ संग के
रंग में नहीं आवेंगे,
कब भी कोई वातावरण
के वश नहीं होंगे।
यह सभी लक्षण सेन्सीबल
के हैं। तीसरा
है इसेन्सफुल।
इसके लक्षण क्या
होंगे? (हरेक ने
सुनाया) सभी ने
ठीक सुनाया क्योंकि
सभी सेन्सीबल हो
बैठे हैं ना। जो
इसेन्सफुल होगा
उसमें रूहानियत
की खुशबुएं होंगी।
रूहानी खुशबुएं
अर्थात् रूहानियत
की सर्व-शक्तियां
उसमें होंगी, जिन
सर्व-शक्तियों
के आधार से सहज
ही अपने तरफ किसको
आकर्षित
कर सकेंगे।
जैसे स्थूल खुशबुएं
वा इसेन्स दूर
से ही किसको अपने
तरफ
आकर्षित
करता
है ना। ना चाहने
वाले को भी
आकर्षित
कर देता
है। इसी प्रकार
कैसी भी आत्माएं
इसेन्सफुल के सामने
आवें, तो भी उस रूहानियत
के ऊपर
आकर्षित
हो जावेंगी।
जिसमें रूहानियत
है उनकी विशेषता
यह है जो दूर रहते
हुए आत्माओं को
भी अपनी रूहानियत
से
आकर्षित
कर सकते
हैं। जैसे आप मन्सा-शक्ति
के आधार से प्रकृति
का परिवर्तन वा
कल्याण करते हो
ना।
आकाश अथवा वायुमण्डल
आदि-आदि को समीप
जाकर तो नहीं बोलेंगे।
लेकिन मन्सा-शक्ति
से जैसे प्रकृति
को तमोप्रधान से
सतोप्रधान बनाते
हो, वैसे अन्य
विश्व
की आत्माएं
जो आप लोगों के
आगे नहीं आ सकेंगी,
तो उनको दूर रहते
हुए आप रूहानियत
की शक्ति से बाप
का परिचय वा बाप
का जो
मुख्य
संदेश
है, वह मन्सा द्वारा
भी उनके बुद्धि
में टच कर सकते
हो।
विश्व- कल्याणकारी
हो, तो क्या इतनी
सारी
विश्व
की आत्माओं
को सामने संदेश
दे सकेंगे क्या?
सभी को वाणी द्वारा
संदेश नहीं दे
सकेंगे। वाणी के
साथ-साथ मन्सा-सर्विस
भी दिन-प्रतिदिन
बढ़ते हुए अनुभव
करेंगे। जैसे बाप
भक्तों की भावना
को सूक्ष्म रूप
से पूर्ण करते
हैं, तो क्या वाणी
द्वारा सामने जाए
करते हैं क्या?
सूक्ष्म मशीनरी
है ना। वैसे ही
आप शक्तियों का
वा पाण्डवों का
प्रैक्टिकल में
भक्त आत्माओं को
वा ज्ञानी आत्माओं
को दोनों बाप का
परिचय वा संदेश
देने का कार्य
अर्थात् सूक्ष्म
मशीनरी तेज होने
वाली है। यह अन्तिम
सर्विस
की रूपरेखा
है। जैसे खुशबुएं
चाहे नजदीक वालों
को, चाहे दूर वालों
को खुशबुएं देने
का कर्त्तव्य करते
हैं, वैसे ना सिर्फ
सम्मुख आने वालों
तक लेकिन दूर बैठी
हुई आत्माओं तक
भी आपकी यह रूहानियत
की शक्ति सेवा
करेगी। तभी प्रैक्टिकल
रूप में
विश्व-कल्याणकारी
गाये जावेंगे।
अब तो
विश्व-कल्याण
के प्लैन्स बना
रहे हो, प्रैक्टिकल
नहीं है। फिर यह
सूक्ष्म मशीनरी
जब शुरू होगी तो
प्रैक्टिकल कर्त्तव्य
में लग जावेंगे।
अनुभव करेंगे कि
‘‘कैसे
आत्माएं बाप के
परिचय रूपी अंचली
लेने के लिए तड़प
रही हैं और तड़पती
हुई आत्माओं को
बुद्धि द्वारा
वा सूक्ष्म शक्ति
द्वारा ना देखते
हुए भी ऐसा अनुभव
करेंगे जैसे दिखाई
दे रहे हैं।’’ तो
ऐसी
सर्विस
में जब
लग जावेंगे तो
विश्व-कल्याणकारी
प्रैक्टिकल में
नाम बाला होगा।
अब देखो आप लोग
क्या कहते हैं
कि हमने
विश्व-कल्याण
का संकल्प उठाया
है; लोग आपको क्या
कहते हैं? तो कल्याण
का इतना बड़ा कार्य
आपकी ऐसी स्पीड
से होगा?
विश्व-कल्याण
का कार्य अब तक
तो बहुत थोड़ा किया
है।
विश्व
तक कैसे
पहुंचावेंगे? अभी
प्रैक्टिकल नहीं
है ना। फिर चारों
ओर जहां-जहां से
मास्टर बुद्धिवानों
की बुद्धि बन सूक्ष्म
मशीनरी द्वारा
सभी की बुद्धियों
को टच करेंगे तो
आवाज फैलेगा कि
कोई शक्ति, कोई
रूहानियत अपने
तरफ आकर्षित
कर रही
है। ढूंढ़ेंगे मिलने
लिए वा एक सेकेण्ड
सिर्फ दर्शन करने
लिये तड़पेंगे जिसकी
निशानी जड़ चित्रों
की अब तक चलती आती
है। जब कोई ऐसा
उत्सव होता है
जड़ मूर्तियों का
तो कितनी भीड़ लग
जाती है! कितने
भक्त उस दिन उस
घड़ी दर्शन करने
लिये तड़पते हैं
वा तरसते हैं।
अनेक बार दर्शन
करते हुए भी उस
दिन के महत्व को
पूरा करने लिये
बेचारे कितने कठिन
प्रयत्न करते हैं!
यह निशानी किसकी
है? प्रैक्टिकल
होने से ही तो यह
यादगार निशानियां
बनी हैं। अच्छा!