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19-09-72   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


मजबूरियों को समाप्त करने क साधन -बूती

भी अचल, अडोल, अटल स्थिति में स्थित हो? जो महावीरों की स्थिति गाई हुई है, उस कल्प पहले के गायन वा वर्णन हुई स्थिति में स्थित हो? वा अपने अंतिम साक्षीपन, हर्षितमुख, न्यारी और अति प्यारी स्थिति के समीप आ रहे हो, कि वह स्थिति अभी दूर है? जो वस्तु समीप आ जाती है उसके कोई-ना-कोई लक्षण वा चिह्न नजर आने लगते हैं। तो आप लोग क्या अनुभव करते हो? क्या वह अंतिम स्थिति समीप आ रही है? समीप से भी ज्यादा और कौनसी स्टेज होती है? बाप के समीप आ रहे हो? क्या अनुभव करते हो? समीप जा रहे हो ना। चलते-चलते ठहर तो नहीं जाते हो? कोई साइड-सीन देखकर ठहर तो नहीं जाते हो? चढ़ती कला का अनुभव करते हो? ठहरती कला तो नहीं? स्थूल यात्रा पर भी जब जाते हैं तो चलते रहते हैं, रूकते नहीं हैं। यह भी रूहानी यात्रा है ना। इसमें भी रूकना नहीं है। अथक, अटल, अचल हो चलते रहना है। तो मंजिल पर पहुंच जावेंगे। यह लक्ष्य रखा है ना। अगर लक्ष्य मजबूत है तो लक्षण भी आ जाते हैं। मजबूती से मजबूरियां समाप्त हो जाती हैं। अगर मजबूती नहीं है तो फिर अनेक मजबूरियां भी दिखाई देती हैं। तो अपने को महावीर समझते हो ना। महावीर कभी भी किसी मजबूरी को मबूरी नहीं समझेंगे। एक सेकेण्ड में मजबूती के आधार से मजबूरी को समाप्त कर देते हैं। ऐसे ही अंगद समान अपने बुद्धि रूपी पांव को एक बाप की याद में स्थित करना है, जो कोई भी हिला ना सके। कल्प पहले भी ऐसे ही बने थे ना, याद आता है? जब कल्प पहले ऐसे बने थे, तो वही पार्ट रिपीट करने में क्या मुश्किल है? अनेक बार किये हुये पार्ट को रिपीट करना मुश्किल होता है? तो आप बहुत-बहुत पद्म भाग्यशाली हो। इतने सारे विश्व के अन्दर बाप को जानने और अपना जन्म-सिद्ध अधिकार प्राप्त करने वाले कितने थोड़े हैं? अनगिनत नहीं हैं, गिनती वाले हैं। उन थोड़े जानने वालों में आप हो ना। तो पद्मापद्म भाग्यशाली नहीं हुए? अभी तो दुनिया अज्ञान की नींद में सोई है और आप अनेकों में से थोड़ी-सी आत्माएं बाप के वर्से के अधिकारी बन रहे हो। जब वह सभी जाग जावेंगे, कोशिश करेंगे कि हम भी कुछ कणा-दाना ले आवें, लेकिन क्या होगा? ले सकेंगे? जब लेट हो जावेंगे तो क्या ले पावेंगे? उस समय आप सभी आत्माओं को भी अपने श्रेष्ठ भाग्य का प्रत्यक्ष रूप में साक्षात्कार होगा। अभी तो गुप्त है ना। अभी गुप्त में न बाप को जानते हैं, न आप श्रेष्ठ आत्माओं को जानते हैं। साधारण समझते हैं। लेकिन वह समय दूर नहीं जबकि जागेंगे, तड़पेंगे, रोयेंगे, पश्चाताप करेंगे लेकिन फिर भी पा न सकेंगे। बताओ, उस समय आपको अपने ऊपर कितना ना होगा कि हम तो पहले से ही पहचान कर अधिकारी बन गये हैं! ऐसी खुशी में रहना चाहिए। क्या मिला है, कौन मिला है और फिर क्या-क्या होने वाला है! यह सभी जानते हुए सदैव अतिइन्द्रिय सुख में झूमते रहना है। ऐसी अवस्था है कि कभी-कभी पेपर्स हिला देते हैं? हिलते तो नहीं हो? घबराते तो नहीं हो? कि एक दो से सुनकर घबराने की लहर आती है, फिर अपने को ठीक कर देते हो? रिजल्ट क्या समझते हो? मधुबन निवासियों की रिजल्ट क्या है? मधुबन निवासी लाइट-हाऊस हैं। लाइट- हाऊस ऊंचा होता है और रास्ता बताने वाला होता है। मधुबन के डायरेक्शन प्रमाण सभी चल रहे हैं-तो लाइट-हाऊस हुआ ना। और ऊंच स्टेज भी हुई। जैसे बाप का कहते हो ऊंचा काम, वैसे ही मधुबन अर्थात् ऊंचा धाम। तो नाम और काम भी ऊंचा होगा ना। नाम भी है मधुबन। मधुबन-निवासियों की यह विशेषता है ना-मधुरमूर्त और बेहद के वैराग्यमूर्त। एक तरफ मधुरता, दूसरे तरफ इतना ही फिर बेहद की वैराग्यवृति। वैराग्यवृति से सिर्फ गम्भीरमूर्त रहेंगे? नहीं, वास्तविक गम्भीरता रमणीकता में समाई हुई है। वह तो अज्ञानी लोगों का गम्भीर रूप होगा तो बिल्कुल ही गम्भीर, रमणीकता का नाम-निशान नहीं होगा। लेकिन यथार्थ गम्भीरता का गुण रमणीकता के गुण सम्पन्न है। जैसे लोगों को भी समझाते हो कि हम आत्मा शान्तस्वरूप हैं लेकिन सिर्फ शान्तस्वरूप नहीं है लेकिन उस शान्तस्वरूप में आनन्द, प्रेम, ज्ञान सभी समाया हुआ है। तो ऐसे बेहद के वैराग्यमूर्त वाले और साथ-साथ मधुरता भी, यही विशेषता मधुबन निवासियों की है। तो जो बेहद के वैराग्यवृति में रहने वाले हैं वह कब घबराते हैं क्या? डगमग हो सकते हैं? हिल सकते हैं?कितना भी जोर से हिलावें लेकिन बेहद के वैरागवृति वाले ‘नष्टोमोहा स्मृतिस्वरूप’ होते हैं। तो नष्टोमोहा स्मृतिस्वरूप हो? कि थोड़ा-बहुत देख कर कुछ अंश मात्र भी स्नेह कहो वा मोह कहो, लेकिन स्नेह का स्वरूप क्या होता है, इसको तो जानते हो ना? जिसके प्रति स्नेह होता है तो उसके प्रति सहयोगी बन जाना होता है। बाकी कोई रीति-रस्म से स्नेह का रूप प्रकट करना, इसको स्नेह कहेंगे वा मोह कहेंगे? तो इसमें मधुबन निवासी पास हुए? मधुबन का वायुमण्डल, मधुबन निवासियों की वृति, वायब्रेशन - लाइट-हाऊस होने कारण चारों ओर एक सेकेण्ड में फैल जाती है। तो ऐसे समझ कर हर पार्ट बजाते हो? निमित्त समझ कर वा ऐसे समय छोटे बच्चे हो जाते हो? क्या रिजल्ट हुई? यह तो अभी कुछ नहीं हुआ। अब तो बहुत कुछ होना है। आप सोचेंगे अचानक हो गया, इसलिये थोड़ा-सा हुआ। लेकिन पेपर तो अचानक आवेंगे, पेपर कोई बता कर नहीं आवेंगे। पहले बता तो दिया है कि ऐसे-ऐसे पेपर होने वाले हैं। लेकिन उस समय अचानक होता है। तो अचानक पेपर में अगर रा संकल्प में भी हिलना हुआ तो अंगद मिसल हुए? अब वह लास्ट स्टेज नहीं आई है क्या? पूछ रहे थे ना समीप से भी ज्यादा नदीक कौनसी स्टेज होती है? वह होती है सम्मुख दिखाई देना। समीप आते-आते वही वस्तु सम्मुख हो जाती है। तो समीप का अनुभव करते हो वा बिल्कुल वह स्टेज सम्मुख दिखाई देती है? आज यह हैं, कल यह बन जावेंगे-ऐसे सम्मुख अनुभव करते हो? जैसे साकार में अनुभव देखा-तो भविष्यस्वरूप और अंतिम सम्पूर्ण स्वरूप सदा सम्मुख स्पष्ट रूप में रहता था ना। तो फालो फादर करना है। जैसे बाप के सामने सम्पूर्ण स्टेज वा भविष्य स्टेज सदा सामने रहती है, वैसे ही अनुभव हो रहा है? कि सोचते हो - ‘‘पता नहीं क्या भविष्य होना है? वह स्पष्ट होता कहां है? अनाउन्स त् होता नहीं।’’ लेकिन जो महावीर पुरुषार्थी हैं उनकी बुद्धि में सदा अपने प्रति स्पष्ट रहता है। तो स्पष्ट देखने में आता है वा थोड़ा- बहुत घूंघट बीच में है? आजकल ट्रान्सपेरेन्ट घूंघट भी होता है। दिखाई सभी कुछ देता है फिर भी घूंघट होता है। लेकिन वैसे स्पष्ट देखना और घूंघट बीच देखना - फर्क तो होगा ना? तो अपने पुरूषार्थ प्रमाण ट्रान्सपेरेन्ट रूप में घूंघट तो नहीं रह गया है? बिल्कुल ही स्पष्ट है ना? तो मधुबन निवासी अटल हैं ना। कि कि यह संकल्प भी है कि यह क्या होता है? क्यों, क्या का क्वेश्चन तो नहीं? जो भी पार्ट चलते हैं उन हरेक पार्ट में बहुत कुछ गुह्य रहस्य समाए हुए हैं, वह रहस्य क्या था? सुनाया था ना समय की सूचना देने लिये बीच- बीच में घंटी बजा कर जगाते हैं। इसलिए आपके जड़ चित्रों के आगे घंटी बजाते हैं। उठाते भी हैं घंटी बजा कर, फिर सुलाते भी हैं घंटी बजा कर। यह भी समय की सूचना - घंटियां बजती हैं। क्योंकि जैसे शास्त्रवादियों ने लम्बा- चौड़ा टाइम बता कर सभी को सुला दिया है। खूब अज्ञान नींद में सभी सो गये हैं क्योंकि समझते हैं अभी बहुत समय पड़ा है। तो यहां फिर जो दैवी परिवार की आत्माएं हैं उन्हों को चलते-चलते माया कई प्रकार के रूप-रंग, रीति-रस्म के द्वारा अलबेला बना कर समय की पहचान से दूर, पुरूषार्थ के ढीलेपन में सुला देती है। जब कोई अलबेला होता है तो आराम से रहता है। ज़िम्मेवारी होने से अटेंशन रहता है कि हमको टाइम पर उठना है, यह करना है। अगर कोई प्रोग्राम में नहीं तो अलबेला ही सो जावेगा। तो यह भी अलबेलापन आ जाता है। जब कोई अलबेले हो ढीले पुरूषार्थ के नींद के नशे में मस्त हो जाते हैं तो क्या करना पड़ता है? उनको हिलाना पड़ता है, हलचल करनी पड़ती है कि उठ जायें। जैसी-जैसी नींद होती है वैसा किया जाता है। बहुत गहरी नींद होती है तो उसको हिलाना पड़ता है लेकिन कोई की हल्की नींद होती है तो थोड़ी हलचल करने से भी उठ जाता है। अभी हिलाया नहीं है, थोड़ी हलचल हुई है। दूसरी चीज़ को निमित्त रख उसको हिलाया जाता है। तो जागृति हो जाती है। यह भी ड्रामा में निमित बनी हुई जो सूचना-स्वरूप मूर्तियां हैं, उन्हों को थोड़ा हिलाया, हलचल की तो सभी जाग गये। क्योंकि हल्की नींद है ना। जागे तो रूर लेकिन जागने के साथ रड़ी तो नहीं की? ऐसे होता है, कोई को अचानक जगाया जाता है तो वह घबरा जाता है - क्या हुआ? तो कोई यथार्थ रूप से जागते हैं, कोई कुछ घबराने बाद होश में आते हैं। लेकिन यह होना न चाहिए, रा भी चेहरे पर रूपरेखा घबराने की न आनी चाहिए। आवाज में भी चेंज न हो। आवाज में भी अगर अन्तर आ जाता है वा चेहरे में भी कुछ चेंज आ जाती है तो इसको भी पास कहेंगे? यह तो कुछ नहीं हुआ। अभी बहुत कड़े पेपर तो आने वाले हैं। पेपर को बहुत समय हो जाता है तो पढ़ाई में अलबेलापन हो जाता है। फिर जब इम्तिहान के दिन नजदीक होते हैं तो फिर अटेंशन देते हैं। तो यह अभी तो कुछ नहीं देखा। पहले के पेपर कुछ अलग हैं, लेकिन अभी तो ऐसे पेपर्स आने वाले हैं जो स्वप्न में, संकल्प में भी नहीं होगा। प्रैक्टिस ऐसी होनी चाहिए जैसे हद का ड्रामा साक्षी हो देखा जाता है। फिर चाहे दर्दनाक हो वा हंसी का हो, दोनों पार्ट को साक्षी हो देखते हैं, अन्तर नहीं होता है क्योंकि ड्रामा समझते हैं। तो ऐसी एकरस अवस्था होनी चाहिए। चाहे रमणीक पार्ट हो, चाहे कोई स्नेही आत्मा का गम्भीर पार्ट भी हो तो भी साक्षी होकर देखो। साक्षी दृष्टा की अवस्था होनी चाहिए। घबराई हुई या युद्ध करती हुई अवस्था ना हो। कोई घबराते भी नहीं हैं, युद्ध में लग जाते हैं। रूर कुछ कल्याण होगा। लेकिन साक्षी दृष्टा की स्टेज बिल्कुल अलग है। इसको ही एकरस अवस्था कहा जाता है। वह तब होगी जब एक ही बाप की याद में सदा मग्न होंगे। बाप और वर्सा, बस, तीसरा ना कोई। और, कोई बात देखते-सुनते वा कोई संबंध-सम्पर्क में आते हुए ऐसे समझेंगे जैसे साक्षी हो पार्ट बजा रहे हैं। बुद्धि उस लग्न में मग्न। बाप और वर्से की मस्ती रहे। इसलिए अब ऐसी स्टेज बनाओ, इसके लिए अपनी परख करने के लिए यह पेपर आते हैं। नहीं तो मालूम कैसे पड़े? हरेक की अपनी स्थिति को परखने के लिये थर्मामीटर मिलते हैं, जिससे अपनी स्थिति को स्वयं परख सको। कोई को कहने की दरकार नहीं, घबराना नहीं, गहराई में जाओ तो घबराहट बंद हो जावेगी। गहराई में न जाने कारण घबराते हो। मधुबन निवासियों के लिए खास मिलने लिये आये हुए हैं। इसमें भी श्रेष्ठ भाग्यशाली हुए ना। और तो प्रोग्राम बनाते रहते। आप बिगर प्रोग्राम प्राप्त करते हो। तो विशेषता हुई ना। मधुबन में बाप स्वयं दौड़ी पहन आते हैं। रिजल्ट तो अच्छी है। वह तो... रा-सी हलचल थी। उस ‘रा’ को समझ गये ना। अब इसको भी निकालना है। रा भी फ्लॉ (Flaw; दोष) फेल कर देता है। लास्ट फाइनल पेपर में अगर रा-सा फ्लॉ आ गया तो फेल हो जावेंगे। इसलिए पहले से पेपर होते हैं परिपक्व बनाने लिये। बाकी अभी की रिजल्ट बहुत अच्छी है। सभी एक दो में स्नेही, सहयोगी अच्छे हैं। सुनया था ना कि सूक्ष्म सर्विस की मशीनरी अब चालू होती है। तो मधुबन निवासियों से विशेष सूक्ष्म सर्विस की मशीनरी अब चालू हो गई है। और भी सेवाकेन्द्रों पर सूक्ष्म सर्विस चालू तो है लेकिन फिर भी वर्तमान रिजल्ट अनुसार इस सर्विस में नंबरवन मधुबन निवासी हैं। इसलिए मुबारक हो! जैसे अभी तक स्नेह और सहयोग का सबूत दे रहे हो, वही सबूत औषधि के रूप में जहां पहुंचाने चाहते हो वहां पहुंच रहा है। आपकी पावरफुल औषधि है ना। जैसे-जैसे आप की पावरफुल औषधि पहुंचती जाती है, वैसे-वैसे स्वस्थ होते जा रहे हैं। इसमें भी पावरफुल औषधि भेजते रहेंगे तो एक हफ्ता में भी ठीक हो सकते हैं। मार्जिन है तेज करने की। फिर भी रिजल्ट अच्छी है। ऐसी अच्छी रिजल्ट को देखते हुये लाइट- हाऊस की लाइट चारों तरफ पहुंच रही है। उससे और स्थानों में भी लाइट- हाऊस का प्रभाव पड़ रहा है। अच्छा!

ऐसे सदा आपस में एकमत और श्रेष्ठ गति से चलने वाले, सदा एक की याद में रहने वाले, पाण्डव सेना और शक्ति सेना को याद-प्यार और नमस्ते।


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