23-09-73 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
विश्व की आत्माओं को लाइट व माइट देने वाला ही विश्व-अधिकारी
नव विश्व-निर्माता, त्रिकालदर्शी बनाने वाले, हर परिस्थिति और हर समस्या का सामना करने की शक्ति देने वाले और दिव्य-दृष्टि विधाता शिव बाबा बोले:-
क्या आप अपने ऊचे-से-ऊचे बाप की ऊंची स्थिति पर सदा स्थित रहने वाली स्वयं को श्रेष्ठ आत्मायें समझ कर हर कर्म करते रहते हो? जैसे बाप के बारे में गायन है-’’ऊँचा तेरा नाम, ऊंचा तेरा काम, ऊंचा तेरा धाम,’’-इसी के अनुसार क्या आप अपने को भी बाप-समान ऊंचे नाम और ऊंचे काम करने वाली विशेष आत्मा समझते हो? यह ध्यान रखते हो कि एक भी व्यर्थ अथवा साधारण संकल्प उत्पन्न न हो? इसको कहा जाता है-’’ऊँची स्थिति।’’ क्या आप अपने को ऐसी ऊंची स्थिति वाला अनुभव करते हो? जब तक व्यर्थ (वेस्ट) संकल्प, बोल या कर्म हैं तब तक श्रेष्ठ (बेस्ट;) नहीं बन सकते। या तो बेस्ट (श्रेष्ठ) हैं या फिर वेस्ट (व्यर्थ) हैं। जैसे दिन है तो रात नहीं, रात है तो दिन नहीं, वैसे ही जहाँ वेस्ट होता हैं, वहा बैस्ट (उच्च) नहीं बन सकते। तो बैस्ट (उँच) बनने के लिये वेस्ट (व्यर्थ) को खत्म करना पड़ेगा। जब वेस्ट (व्यर्थ) खत्म हो जायेगा तब अनुभव करोगे कि आत्मा कैसा भी कार्य करती हुई, कैसे भी वातावरण अथवा परिस्थिति में रहती हुई और हंगामे होते हुए भी वो रेस्ट (आराम) में है।
जैसे आजकल साइंस वाले अपनी साइंस की नॉलेज (विद्या) के आधार पर कैसे भी दु:ख के समय एक इन्जेक्शन द्वारा अल्पकाल के रेस्ट (आराम) का अनुभव कराते हैं ना? वैसे ही कितनी भी आवाज़ और कितना भी तमोगुणी वातावरण हो, लेकिन साइलेन्स की शक्ति से वेस्ट (व्यर्थ) समाप्त होने के कारण बेस्ट (श्रेष्ठ) स्थिति में स्थित होने से सदा रेस्ट (आराम) अनुभव करोगे, अर्थात् सदा अपने को सुख और शान्ति की शैया पर आराम करता हुआ अनुभव करोगे। जैसे यादगार का चित्र भी है -- सागर में जहाँ लहरों की हलचल होती है तो सागर में होते हुए, साँपों की शैया होते हुए भी अर्थात् वातावरण व परिस्थिति दु:खमय होते हुए भी (साँप तो दु:खदाई अर्थात् काटने वाला होता है ना) आराम का अनुभव करोगे। तो इसका भाव यह है कि ऐसी परिस्थितियाँ, ऐसा वातावरण जो काटने वाला हो, हिलाने वाला हो और अपने विष द्वारा मूर्छित करने वाला हो लेकिन ऐसे वातावरण को भी सुख-शान्ति की शैया बना दे। अर्थात् आराम का स्थान बना दे, अर्थात् आत्मा सदा अपने रेस्ट में रहे। तो जैसा यादगार चित्र है, क्या वैसे ही प्रैक्टिकल जीवन में अनुभव करते हो? शीतलता में शीतल रहना कोई बड़ी बात नहीं है, आराम के साधनों में आराम से रहना-यह भी साधारण बात है लेकिन बे-आरामी में आराम से रहना इसको कहा जाता है-’’पद्मापद्म भाग्यशाली’’। तो ऐसे विषय सागर के बीच रहते हुए पाँच विकारों को अपने आराम व सुख और शान्ति की शैया बनाना है। अर्थात् क्या अभी से विकारों के ऊपर सदा विजयी बन सदा ज्ञान के मनन और बाप के मिलन में मग्न रहते हो?
जो ऐसी स्थिति में स्थित है, अर्थात् सदा मग्न है, वह ही सदा निर्विघ्न है। मग्न नहीं तो जरूर कोई विघ्न है। अब विघ्न आपके ऊपर वार करने से हार गये हैं या आप भी विघ्नों से हार खा जाते हो? अब तक भी हार खाते रहना क्या यह हो सकता है? यह तो असम्भव है ना? अभी हार खिलाने वाले हो या कि खाने वाले हो? अगर स्वयं निर्विघ्न बने हो तो बनने वालों का कर्त्तव्य क्या है? कोई तो अब बन रहे हैं, कोई बन गये हैं। जो बनने वाले हैं वह अपने में ही बिजी (व्यस्त)। क्योंकि जब तक स्वयं न बने तब तक औरों को बनाने में यथा-शक्ति ही कार्य कर सकते हैं। लेकिन जो बन गये हैं उनका क्या कर्त्तव्य है? उनका कर्त्तव्य है दूसरों को बनाना। तो बना रहे हो न? तो क्या पहले ‘चैरिटी बिगिन्स ऐट होम’ हैं? अर्थात् अपने साथियों को। वे साथी कौन-से हैं? आपके जो ब्राह्मण परिवार के साथी हैं। तो उन अपने साथियों को आप समान बनाने के बाद फिर बाप-समान बनाना है। लेकिन पहली स्टेज में यदि उन्हें आप-समान बनाओ तो भी बहुत है।
तो जो बने हैं उनका कर्त्तव्य क्या है? उनका स्वरूप अभी कौन-सा होना चाहिए? किसी ने उत्तर दिया-विघ्न-विनाशक। अच्छा विघ्न-विनाशक कैसे बनेंगे? तो किस रूप से संहार करेंगे कि जिससे सहज ही विश्व की सेवा कर सको? वह रूप कौन-सा है? वो है डबल लाइट और माइट हाउस का। डबल क्यों कहा? क्योंकि आपको दो कार्य करने हैं? किसी को मुक्ति का रास्ता बताना है और किसी को जीवनमुक्ति का रास्ता बताना है। एक ही रास्ता नहीं बल्कि दो रास्ते दिखाने हैं और हर-एक आत्मा को अपने-अपने ठिकाने लगाना है। तो जो बने हैं उनका स्वरूप अब डबल लाइट और माइट होना चाहिए ताकि एक स्थान पर होते हुए भी चारों ओर अपने लाइट और माइट के आधार से भटकी हुई आत्माओं को ठिकाना दे देवें। तो क्या इस कार्य में बिजी हो? अब लाइट और माइट दोनों का बैलेन्स होना चाहिए। सिर्फ लाइट से भी काम न होगा और सिर्फ माइट से भी काम नहीं होगा। दोनों का बैलेन्स जब ठीक होगा तब सब अन्धों की औलाद अन्धों को (शास्त्र में भी कौरव सम्प्रदाय के लिए गाया हुआ है कि अन्धों की औलाद अन्धे हैं) अपनी लाइट और माइट के द्वारा कौन-सा वरदान देंगे और वे वरदान में क्या प्राप्त करेंगे? डिवाइन इनसाइट अर्थात् उन्हें तीसरे नेत्र का वरदान दो।
वैसे भी ‘नेत्र-दान’ सबसे श्रेष्ठ दान कहा जाता है। नेत्र नहीं तो जहान नहीं। सबसे बड़े-से-बड़ा जीय दान कहो या वरदान कहो या महादान कहो वास्तव में वह यही है। तो अन्धों को डिवाइन इनसाइट या तीसरे नेत्र का दान दो जिससे कि वह मुक्ति और जीवनमुक्ति के ठिकाने को देख भी सकें। अगर वे देखेंगे नहीं तो फिर पहुंचेंगे कैसे? इसलिये डबल लाइट और माइट हाउस बन, दोनों का बैलेन्स ठीक रख हर आत्मा को तीसरे नेत्र का वरदान दो।-यह है श्रेष्ठ आत्माओं का कर्त्तव्य। सिर्फ अपने प्रति ही लाइट और माइट रखा तो लाइट हाउस नहीं कहलायेंगे। अगर अपने में लाइट और माइट है तो अपने साथियों को और विश्व की सर्व आत्माओं को महादान दो और वरदान दो। अगर कोई बल्ब चारों ओर रोशनी न फैलाये, सिर्फ जहाँ जग रहा है उस थोड़े स्थान पर ही लाइट दे तो कहेंगे न कि यह तो काम का नहीं है। तो अपने को देखो कि क्या मैं स्वयं तक लाइट व माइट देने वाला बना हूं या विश्व तक लाइट और माइट देने वाला बना हूँ? जितने तक लाइट देने वाले अब बनेंगे उतने ही छोटे या बड़े राज्य के अधिकारी भविष्य में बनेंगे। अगर सिर्फ थोड़ी सी आत्माओं के प्रति लाइट और माइट देने के निमित बनते हैं तो वहाँ भी थोड़ी-सी आत्माओं के ऊपर ही राज्य करने के अधिकारी बनेंगे। यहाँ विश्व के सेवाधारी तो वहाँ भी विश्व के राज्य-अधिकारी होंगे।
एक होते हैं राज्य-अधिकारी बनाने वाले जिनको टीचर कहते हैं। वह राज्य कारोबार सिखलाने वाले बनेंगे लेकिन राज्य करने वाले नहीं। अब आप सिखलाने वाले बनेंगे या करने वाले बनेंगे? वहाँ सतयुग में भी निमित मात्र पढ़ाते तो होंगे ना? राज्य कारोबार सिखलाने वाले शिक्षक जो होते हैं उसको राज्यधारी कहते हैं परन्तु राज्य अधिकारी नहीं। या तो राज्यधारी बनेंगे या फिर राज्य अधिकारी। लेकिन अधिकारी वह बनेंगे जो अभी से अपने स्वभाव, संस्कार और संकल्प के अधीन नहीं बनेंगे। जो अभी भी अपने संकल्प के अधीन होता है तो क्या वह अधिकारी हुआ? वह संकल्पों के भी अधीन हुआ ना? तो इसलिये अब संकल्पों के भी अधीन नहीं, स्वभाव और संस्कार के भी अधीन नहीं होना है। जो अब से इन सबके अधिकारी बनेंगे, वह ही वहाँ राज्य-अधिकारी बनेंगे। अब हिसाब निकालो कि कितना अधीन रहते हैं और कितना अधिकारी रहते हैं। फिर उसकी रिजल्ट से स्वयं भी अपने भविष्य का साक्षात्कार कर सकते हो। अर्थात् अपने-आप को परखने के आईने में अपने वर्तमान और भविष्य 21 जन्मों के लिए हमारे फ्यूचर के फीचर्स क्या होंगे वह भी देख सकते हो। आप अपने 21 जन्मों के फीचर्स भी देख सकते हो अगर आपका अपने-आपको परखने की शक्ति का आइना इतना पॉवरफुल हुआ तो। उस आइने में तो सिर्फ वर्तमान देख सकते हैं, भले कितने भी पॉवरफुल शीशे हों, जिस द्वारा बहुत दूर की चीज को भी देख सकते हैं, लेकिन वह भी हैं तो इस दुनिया का ही न? उससे भविष्य को तो नहीं देख पाते। लेकिन आप लोगों को परखने की शक्ति का आइना इतना पॉवरफुल मिला है जिनसे न सिर्फ भविष्य एक जन्म को अपितु 21 जन्मों को देख सकते हो। और फिर 21 जन्मों के आधार पर, भविष्य पद के आधार पर अपने पुजारी-पन के पार्ट को भी देख सकते हो। तो ऐसा पॉवरफुल आइना जो बापदादा द्वारा प्राप्त हुआ है, क्या उनमें देखते रहते हो? अपने को क्लियर देख सकते हो कि देखने के लिये किसी और की जरूरत है? त्रिकालदर्शी को और कोई की आवश्यकता होती है क्या? त्रिकालदर्शी तो दूसरों के भविष्य को भी जान सकते हैं। तो क्या आप अपने भविष्य को नहीं जान सकते?
त्रिकालदर्शी बने हो कि एक-दर्शी बने हो? एक-दर्शी अर्थात् सिर्फ वर्तमान के दर्शी। अब तो त्रिकालदर्शी बन सबको सन्देश दो। जब एक-दर्शी बन सन्देश देते हो तो एक परसेन्ट ही रिजल्ट निकलती है। त्रिकालदर्शी बन सन्देश दो तो तीन हिस्सा रिजल्ट तो निकल ही जायेगी। अर्थात् 75% रिजल्ट होगी। अब है 25% रिजल्ट। तो अब क्या करेंगे? अभी पाण्डव सेना की विजय का झण्डा लहरायेंगे?-फिर क्या करेंगे? दोनों ही लहरायेंगे ना? यह झण्डा लहराना तो सहज है चाहे एक के बजाय 100 लहरा दो। हर एक अपने एरिया में जितने चाहे लहरा दे। लेकिन इस झण्डे के लहराने का अर्थ क्या है? विजय का झण्डा लहराना। जो अब मिलकर तन-मन और धन सब लगा रहे हो वह किस लक्ष्य से? क्या सिर्फ शिव के चित्र के झण्डे लहराने के लक्ष्य से? अब लक्ष्य यह रखो कि सब मिलकर अपनी राजधानी पर विजय का झण्डा लहरायेंगे और सब पर विजय पायेंगे। अगर बच भी जायें तो वह भी दबे हुए हों। बोलने से चुप तो हो ही सकते हैं ना? अब तो चुप भी नहीं हैं, अब तो बोलने में भी होशियार हैं।
देखो, विश्व का मुख कौन-सा है? अखबार, पर्चे और मैगिज़न। अब विश्व के मुख द्वारा बोलते तो रहते हैं ना? लेकिन चुप हो जायें, मार न सको तो कमसे- कम मूर्छित तो करो। मूर्छित वाला भी बोलेगा तो नहीं ना? अब यह रिजल्ट आऊट होनी है। राख कौन बनते हैं और कितने बनते हैं और कोटों में से, लाखों में से एक कौन निकलते हैं, वह भी देखेंगे। लेकिन यह होगा कैसे? इसके लिये दो बातें छोड़नी है और एक बात धारण करनी है। दो बात कौनसी छोड़नी है? (दो मत को छोड़कर एक मत धारण करनी है) लेकिन दो मत होती क्यों है? एक मत से दो मत में आने का कारण क्या है? दो बातें छोड़नी क्या हैं और एक बात धारण क्या करनी है? छोड़नी है एक तो स्तुति और दूसरी परिस्थिति। क्योंकि एक तो कोई परिस्थिति के कारण डगमग होते हैं और दूसरे स्तुति में आने से स्थिति नहीं बनती है। तो इसलिए स्व-स्थिति को धारण करना है। और स्तुति और परिस्थिति-इन दोनों बातों को छोड़ना है। संकल्प से भी छोड़ना है। परिस्थिति के कारण स्व-स्थिति नहीं होती है और स्तुति के कारण स्थिति नहीं होती। तो इसलिये स्तुति में कभी नहीं आना। अगर यहाँ अपनी स्तुति का संकल्प भी रखा तो आधा कल्प से जो स्तुति होनी है उसमें सौ गुना कट हो जाता है क्योंकि अब की अल्प काल की स्तुति सदा काल की स्थिति को कट कर देती है। इसलिए अब परिस्थिति शब्द भी नहीं कहना और स्तुति का संकल्प भी नहीं करना।
जितना निर्मान रहेंगे, उतना निर्माण का कार्य सफल होगा। अगर निर्मानता नहीं तो निर्माण नहीं कर सकते। निर्माण करने के लिये पहले निर्मान बनना पड़ेगा। इसलिये एक सलोगन सदा याद रखना-कोई भी कार्य हो, कोई भी सरकमस्टान्सिज सामने हों लेकिन सदैव जैसे अज्ञान काल में कहावत है कि ‘पहले आप’ अर्थात् ‘दूसरों को आगे बढ़ाना स्वयं को आगे बढ़ाना है’। स्वयं का झुकना ही विश्व को अपने आगे झुकाना है। इसलिये सदैव एक दो में यही वृत्ति, दृष्टि और वाणी रहे कि ‘पहले आप’। यह सलोगन कब भूलना नहीं। जैसे बापदादा ने कभी भी संकल्प व बोल में व कर्म में यह नहीं दिखलाया कि पहले ‘मैं’। सदैव बच्चों को पहले लाये-इस दृष्टि व वृत्ति को आगे रखा। इस प्रकार ‘फॉलो-फादर’ करने वाली हर आत्मा इस बात में ‘फॉलो फादर’ करेगी तो सफलता 100% गले की माला बनेगी। अगर पहले आप की बजाये ‘पहले मैं’ यह संकल्प भी किया, अगर एक आत्मा ने भी यह संकल्प किया व वाणी और कर्म में भी लाया तो मानो सफलता की माला का एक मणका टूटा। माला से एक मणका भी यदि टूट जाता है तो सारी माला पर प्रभाव पड़ता है। इसलिये स्वयं को तो इस बात में पक्का करना ही है लेकिन स्वयं के साथ-साथ संगठन को भी इस पाठ में व इस सलोगन में सदा सफल बनाने के प्रयत्न में रहना है। जिससे विजय माला का एक मणका भी अलग न होने पाये। जब ऐसा पुरूषार्थ करेंगे व यह कार्य करेंगे तब विजय का झण्डा अपनी राजधानी के ऊपर खड़ा कर सकेंगे।
पार्ट बजाने के पहले – रिहर्सल, समझा? ड्रेस और मेक-अप आदि किया जाता है तब ही पार्ट सक्सेसफुल होता है। तो यह धारण करना है। ऐसे सजे सजाये एवररेडी बन जब स्टेज पर आयेंगे तो सबके मुख से ‘हियर-हियर’ का आवाज़, वन्स मोर की आवाज़ निकलेगी। क्या तैयारी के साथ-साथ यह भी तैयारी कर रहे हो। सिर्फ स्थूल तैयारियाँ करने में तो बिज़ी नहीं हो गये हो? पहले अपनी ड्रेस तैयार करो और फिर मेक-अप का सामान तैयार करो। मेक-अप करना अर्थात् स्थिति में स्थित होना, क्या यह भी तैयारी कर रहे हो? क्या इनकी भी मीटिंग करते हो? ज्यादा मीटिंग में यह पॉइण्ट भूल न जाना। स्टाल को सजाते-सजाते समय हो जाये और स्वयं ऐसे ही खड़े हो जाओ-ऐसे होता है ना? कई सेन्टर्स पर फंक्शन की तैयारी करते-करते स्वयं ऐसे ही खड़े रह जाते हैं, स्वयं तैयार नहीं होते तो यहाँ अब ऐसे नहीं करना।
दान लेने वाले आ जावें और आप उस समय सोचो कि क्या ले आवें जो बाँटे, इसलिये स्टॉक पहले से ही इकठ्ठा किया जाता है। उस समय इकठ्ठा करने व् कोशिश करेंगे तो कई वंचित रह जायेंगे। जैसे और चीजों का स्टॉक इकठ्ठा करते हो, वैसे ही यह स्टॉक पहले इकठ्ठा करना है। जिसको जो चाहिए, सुख-शान्ति चाहिए या सिर्फ प्रजा पद चाहिए या कोई को साहूकार पद चाहिए और कोई सिर्फ सलाम भरना चाहें। विश्व-महाराजन् को कई ऐसे भी चाहते हैं कि जो सदैव चरणों के दास रहें। तो ऐसे भक्त जो नमन करना चाहते हों ऐसों का भी स्टॉक भर दो। जिसको जो चीज़ चाहिए और जिस चीज की इच्छा हो, उसकी इच्छा अविनाशी पूरी कर सको। इस मिट्टी की दुनिया की नहीं, सोने की दुनिया की। ऐसा स्टॉक जब इकठ्ठा होगा तब जल्दी अपने स्टॉक से उन आत्माओं को दे सकोगी। क्या यह भी तैयारी की है? यह पोतामेल निकाला है या सिर्फ यही निकाला है कि हर एक ज़ोन कितना तन-धन देंगे, कितने बैनर्स,और चादरें आदि देंगे क्या यह निकाल रहे हो? लेकिन अपने मस्तक पर भी बैनर्स लगाना पड़ेगा।
पहले तो अपनी मूर्त्त की चैतन्य प्रदर्शनी लगानी पड़ेगी। जिसमें नैन कमलसम दिखाई दें, होठों पर रूहानी मुस्कराहट दिखाई दे और मस्तक से आत्मा की सूरत दिखाई दे। तो क्या ऐसी अपनी मूर्त्त को सजाया है? यह प्रदर्शनी भी तैयार कर रहे हो या सिर्फ स्टाल की प्रदर्शनी तैयार कर रहे हो? इसका इनाम भी मिलेगा ना? आप आपस में एक-दो को स्टॉल की सजावट का इनाम देंगे और बापदादा इनाम देंगे चैतन्य प्रदर्शनी की सजावट का, इसलिये अब डबल इनाम मिलेगा। किस-किस ने अपनी चैतन्य प्रदर्शनी व अपने मस्तक के बैनर द्वारा सर्विस की उसका इनाम देंगे। अब रिजल्ट देंखेंगे। रिजल्ट तो आनी है ना? तीन नम्बर्स को इनाम मिलेगा-फर्स्ट, सेकेण्ड और थर्ड। बापदादा भी तीन इनाम देंगे। हर एक अभी से सोच रहे हैं हम फर्स्ट इनाम लेंगे और फर्स्ट में भी आ जायेंगे। अगर सब फर्स्ट में आ जावें तो भी सौगात देंगे। इसमें क्या बड़ी बात है? जब इतने विजयी बनेंगे तो विजयी रत्नों के आगे इनाम की क्या बड़ी बात है? सब फर्स्ट नम्बर बनो तो इनाम भी सबको मिलेगा, स्थूल में मिलेगा। सूक्ष्म कहेंगे तो बड़ी बात नहीं होगी। साकार सृष्टि निवासी होने के कारण साकार में भी देंगे। क्या देंगे वह अभी नहीं बतावेंगे। वह उस समय प्रसिद्ध होगा। जैसी योग्यता होगी, उस योग्यता के अनुसार इनाम होगा। गोल्ड भी क्या बड़ी बात है? थोड़े समय के बाद यह सारा ही सोना आपके चरणों में आना है। विश्व का मालिक बनने वालों के लिये यह सब क्या बड़ी बात है? जो बापदादा की सौगाते हैं ना। जितना नम्बर उतनी सौगात। जितना बढ़िया सर्विस की सफलता दिखायेंगे उनको ऐसी बढ़िया सौगात मिलेगी। बाकी स्टॉल की सजावट का इनाम यह (दीदी-दादी) देंगी और वह बापदादा देंगे। अच्छा, दिलासा नहीं है। प्रैक्टिकल में देंगे। अच्छा! ऐसे सदा विजयी, सदा सफलता-मूर्त्त, सदा स्व-स्थिति से, सदा हर परिस्थिति का सामना करने वाले, सदा निर्मान बन विश्व नव-निर्माण करने वाले और कदम-कदम पर एक बाप की याद में एक-मत हो, एक का नाम बाला करने वाले श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते। ओमशान्ति।