03-02-74   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


उपराम वा ज्वाला रूप के दृढ़ संकल्प से विनाश का कार्य सम्पन्न करो

मुक्ति और जीवनमुक्ति के गेट्स खोलने वाले, तड़फती हुई आत्माओं को शीतल, शान्त, आनन्दमूर्ति बनाने वाले, और सदा सर्व कर्म-बन्धनों से मुक्त, सर्व का कल्याण करने वाले निराकार पिता शिव बोले:-

जैसे बाप-दादा को साकार, आकार और निराकार अनुभव करते हो, क्या वैसे ही अपने को भी बाप-समान साकार होते हुए आकारी और निराकारी सदा अनुभव करते हो? यह अनुभव निरन्तर होने से इस साकारी तन और इस पुरानी दुनिया से स्वत: ही उपराम हो जावेंगे। ऐसे अनुभव करेंगे जैसे कि ऊपर-ऊपर से साक्षी हो इस पुरानी दुनिया को खेल सदृश्य देख रहे हैं। ऐसी पॉवरफुल (शक्तिशाली) स्टेज अभी सदाकाल की होनी चाहिए। ऐसी स्टेज पर स्थित हुई आत्मा में देखने से ही क्या दिखाई देंगी? लाइट हाउस और पॉवर हाउस, ऐसी आत्मायें बाप-समान विश्व-कल्याणकारी कहलाई जाती हैं। जो भी सामने आये हरेक लाइट और माइट को प्राप्त करती जाय, क्या ऐसे भण्डार बने हो? ऐसे महादानी, वरदानी, सर्वगुण दानी, सर्वशक्तियों के दानी, संग से रूहानी रंग लगाने वाले, नजर से निहाल करने वाले, अन्धों को तीसरा नेत्र देने वाले, भटकी हुई आत्माओं को मंजिल बतलाने वाले, तड़पती हुई आत्माओं को शीतल, शान्त और आनन्दमूर्ति बनाने वाली आत्मा बने हो? क्या इस निशाने के नशे में रहते हो? इसको ही बाप-समान कहा जाता है।

जैसे समय की समीपता दिखाई देती है, क्या वैसे ही अपनी स्थिति की समीपता व समानता दिखाई देती है? जैसे दुनिया के लोग आपके सुनाये हुए समय प्रमाण दो वर्ष का इन्तज़ार कर रहे हैं, क्या ऐसे भी आप स्थापना के और विनाश का कार्य कराने वाले दो वर्ष के अन्दर अपने कार्य को और अपनी स्टेज व स्थिति को सम्पन्न बनाने के इन्तज़ाम में लगे हुए हो? या इन्तज़ाम करने वाले अलबेले और इन्तज़ार करने वाले तेज़ हैं, आप क्या समझते हो? क्या इन्तज़ाम जोर-शोर से कर रहे हो या जैसे दुनियावी लोग कहते हैं, कि जो होगा सो देखा जायेगा, ऐसे ही आप इन्तज़ाम करने के निमित्त बनी हुई आत्माएं भी, यह तो नहीं सोचती हो, कि जो होगा सो देखा जायेगा? इसको ही अलबेलापन कहा जाता है। अब तो इतना बड़ा कार्य करने के लिए खूब तैयारी चाहिए, पता है कि क्या तैयारी चाहिए? क्या शंकर को कार्य कराना है? उसको ही तो नहीं देखते हो कि कब शंकर विनाश करावेंगे? विनाश ज्वाला प्रज्वलित कब और कैसे हुई? कौन निमित्त बना? क्या शंकर निमित्त बना या यज्ञ रचने वाले बाप और ब्राह्मण बच्चे निमित्त बने? जब से स्थापना का कार्य-अर्थ यज्ञ रचा तब से स्थापना के साथ-साथ यज्ञ-कुण्ड से विनाश की ज्वाला भी प्रगट हुई। तो विनाश को प्रज्जवलित करने वाले कौन हुए? बाप और आप साथ-साथ है न? तो जो प्रज्वलित करने वाले हैं तो उन्हों को सम्पन्न भी करना है, न कि शंकर को? शंकर समान ज्वाला-रूप बन कर प्रज्वलित की हुई विनाश की ज्वाला को सम्पन्न करना है। जब कोई एक अर्थी को भी जलाते हैं तो जलाने के बाद बीच-बी च में अग्नि को तेज़ किया जाता है, तो यह विनाश ज्वाला कितनी बड़ी अग्नि है। इनको भी सम्पन्न करने के लिए निमित्त बनी हुई आत्माओं को तेज करने के लिए हिलाना पड़े-कैसे हिलावें? हाथ से व लाठी से? संकल्प से इस विनाश ज्वाला को तेज़ करना पड़े, क्या ऐसा ज्वाला रूप बन, विनाश ज्वाला को तेज़ करने का संकल्प इमर्ज होता है या यह अपना कार्य नहीं समझते हो?

ड्रामा के अनुसार निश्चित होते हुए भी निमित्त बनी हुई आत्माओं को पुरूषार्थ करना ही पड़ता है। इसी प्रकार अब इस मुक्ति और जीवनमुक्ति के गेट्स खोलने की जिम्मेदारी बाप के साथ-साथ आप सबकी है। वह विनाश सर्व-आत्माओं की सर्व- कामनाएं पूर्ण करने का निमित्त साधन है। यह साधन आपकी साधना द्वारा पूरा होगा। ऐसा संकल्प इमर्ज होना चाहिए कि अब सर्व-आत्माओं का कल्याण हो। सर्व तड़पती हुई, दु:खी और अशान्त आत्मायें वरदाता बाप और बच्चों द्वारा वरदान प्राप्त कर सदा शान्त और सुखी बन जाएं और अब घर चलें। यह स्मृति समय की समीपता प्रमाण तेज़ होनी चाहिए। क्योंकि इस संकल्प से ही और इस स्मृति से ही विनाश ज्वाला भड़क उठेगी और सर्व का कल्याण होगा।

अब जितना ही, बेहद के विशाल स्वरूप की सर्विस तीव्र रूप से करते जा रहे हो इतना ही बेहद की उपराम वृत्ति तीव्र चाहिए। आपकी बेहद की उपरामवृत्ति अथवा वैराग्य वृत्ति विश्व की आत्माओं में अल्पकाल के लिए होगी। तो अपने सुख से वैराग्य उत्पन्न करेगी। तब ही वैराग्य के बाद समाप्ति होगी। अपने आप से पूछो कि क्या हमारे अन्दर बेहद की वैराग्य वृत्ति रहती है? जो गायन है कि करते हुए अकर्ता। सम्पर्क-सम्बन्ध में रहते हुए कर्मातीत, क्या ऐसी स्टेज रहती है? कोई भी लगाव न हो और सर्विस भी लगाव से न हो लेकिन निमित्तभाव से हो; इससे ही कर्मातीत बन जायेंगे। अब अपने कार्य को समेटना शुरू करो। जब अभी से समेटना शुरू करेंगे तब ही जल्दी सम्पन्न कर सकेंगे। समेटने में भी टाइम लगता है। जब कोई कार्य अथवा दुकान आदि समेटनी शुरू करते हैं, तो क्या किया जाता है? सेल करते हैं। जब सेल लिख देते हैं तो वह सामान जल्दी-जल्दी समाप्त हो जाता है। तो यह फेयर भी क्या है? यह भी सेल लगाया है ना, ताकि जल्दी-जल्दी सबको सन्देश मिल जाए। जो खरीदना है, वह खरीद लो, नहीं तो उल्हना न रह जाए। अभी क्या करना है? कार्य समेटना अर्थात् स्वयं के लगाव को समेटना है। अगर स्वयं को सर्व तरफ से समेट कर एवर-रेडी बनाया तो आपके एवर-रेडी बनने से विनाश भी रेडी हो जायेगा। जब आग प्रज्वलित करने वाले ही शीतल हो बैठ जावेंगे तो आग क्या होगी? तो आग मध्यम पड़ जायेगी ना? इसलिए अब ज्वाला रूप हो अपने एवर-रेडी बनने के पॉवरफुल संकल्प से विनाश ज्वाला को तेज़ करो। जैसे दु:खी आत्माओं के मन से यह आवाज़ शुरू हुआ है कि अब विनाश हो, वैसे ही आप विश्व-कल्याणकारी आत्माओं के मन से यह संकल्प उत्पन्न हो कि अब जल्दी ही सर्व का कल्याण हो तब ही समाप्ति होगी, समझा?

पालना तो की, अब कल्याणकारी बनो और सबको मुक्त कराओ। विनाशकारियों की कल्याणकारी आत्माओं का सहयोग चाहिए। उनके संकल्प का इशारा चाहिये। जब तक आप ज्वालारूप न बने, तब तक इशारा नहीं कर सकते। इसलिये अब स्वयं की तैयारी के साथ-साथ विश्व के परिवर्तन की भी तैयारी करो। यह है आपका लास्ट कर्तव्य क्योंकि यही शक्ति स्वरूप का कर्त्तव्य है। स्वयं तो नहीं घबराते हो न? विनाश होगा कि नहीं होगा, क्या होगा और कैसे होगा? यह समझने के बजाए अब ऐसा समझो कि यह हमारे द्वारा होना है। यह जानकर अब स्वयं को शक्ति स्वरूप बनाओ, स्वयं को लाइट हाउस और पॉवर हाउस बनाओ। अच्छा, क्या हर बात में आप निश्चय बुद्धि हो?

ऐसे सदा अचल, अडोल, निर्भय, शुद्ध संकल्प में स्थित रहने वाले, संकल्प की सिद्धि प्राप्त करने वाले, सदा सर्व कर्म बन्धनों से मुक्त, कर्मातीत स्थिति में स्थित रहने वाले और बाप-दादा के श्रेष्ठ कार्य में सदा सहयोगी आत्माओं को बाप-दादा का याद-प्यार और नमस्ते।

मुरली का सार

(1) बाप समान सदा अपने को आकारी व निराकारी अनुभव करते रहने से इस पतित तन और इस पुरानी दुनिया से उपराम हो जायेंगे।

(2) आपकी बेहद की उपराम वृत्ति अर्थात् वैराग्य वृत्ति ही विश्व की आत्माओं में अल्प काल के सुख से वैराग्य उत्पन्न करेगी और इस वैराग्य के बाद ही समाप्ति होगी।

(3) अब शंकर समान ज्वाला रूप बन कर प्रज्वलित की हुई विनाश की ज्वाला को सम्पन्न करना है।

(4) मुक्ति और जीवनमुक्ति के गेट खोलने की ज़िम्मेवारी रूहानी बाप के साथसाथ आप बच्चों की भी है।

(5) अब घर चलने की स्मृति समय की समीपता प्रमाण तेज़ होनी चाहिये, क्योंकि इस संकल्प से ही और इस स्मृति से ही विनाश ज्वाला भड़क उठेगी और सर्व का कल्याण होगा।

(6) विनाशकारियों को कल्याणकारी आत्माओं के संकल्प के इशारे का सहयोग चाहिये।