06-02-74   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


परखने की शक्ति से महारथी की परख

माया व प्रकृति के सब विघ्नों से पार कराने वाले विघ्न विनाशक, अष्ट- शक्तियों का वरदान देने वाले शक्तिदाता, अपना सब-कुछ बच्चों को समार्पित करने वाले सर्वस्व त्यागी और निष्काम सेवाधारी
शिव बाबा बोले:-

जैसे बाप का आह्वान कर सकते हो अर्थात् सर्वशक्तिवान का आह्वान कर सकते हो, वैसे ही अपने में जिस समय, जिस शक्ति की आवश्यकता होती है क्या उस शक्ति का आहृन कर सकते हो? अर्थात् समाई हुई शक्ति को स्वरूप में ला सकते हो? जैसे बाप को अव्यक्त से व्यक्त में लाते हो, क्या इसी प्रकार हर शक्ति को कार्य में व्यक्त कर सकते हो? क्योंकि अब समय है सर्व-शक्तियों को व्यक्त करने का तथा प्रसिद्ध करने का। जब प्रसिद्धि होगी तब ही शक्ति सेना के विजय का नारा बुलन्द होगा। इसमें सफलता का मुख्य आधार है-परखने की शक्ति। जब परखने की शक्ति होगी तो ही अन्य शक्तियों से भी कार्य ले सकती हो। परखने की शक्ति कम होने और शक्तियों के युक्ति-युक्त काम में न लाने से सदा सफलतामुर्त्त नहीं बन सकते। अष्ट-शक्तियां अब प्रत्यक्ष रूप में दिखाई देनी चाहियें। महावीर की निशानी यही है कि अष्ट-शक्तियां हर समय प्रत्यक्ष रूप में नज़र आयें। ऐसे आत्मायें ही अष्ट रत्नों में आ सकते हैं।

पुरूषार्थ में अन्तर क्या है, जिससे कि परख सको कि महारथी की स्टेज पर हो या घुड़सवार की स्टेज पर? विशेष अन्तर यह होगा कि जो महारथी होगा, वह कोई भी समस्या या आने वाली परीक्षा को आने से पहले ही कैच करेगा। विघ्नों को पहले ही से कैच करने के कारण वह तूफान व समस्या को सामने आने न देगा। जैसे आजकल साइंस का रिफाइन रूप कौन-सा है? दूर से पहले ही मालूम पड़ जाता है। पहले से ही मालूम पड़ जाने के कारण सेफ्टी (सुरक्षा) के साधन अपना लेते हैं। दुश्मन आवे और फिर उससे लड़कर विजय प्राप्त करें इसमें भी टाइम लग जाता है ना? आजकल जैसे साइंस की इन्वेन्शन रिफाइन हो रही है इसी प्रकार महारथियों का पुरूषार्थ भी रिफाइन होना है कि विघ्न आया और एक सेकेण्ड में चला गया। और यह भी महारथियों की स्टेज नहीं है। महारथी तो विघ्न को आने ही नहीं देंगे अर्थात् एक सेकेण्ड भी उसमें वेस्ट न करेंगे। जब निरन्तर योगी कहते हैं तो निरन्तर का अर्थ क्या है?-एक सेकेण्ड का भी अन्तर न पड़े। अगर माया आई और उसको हटाने में ही व्यस्त हुआ तो जो लगातार लगन में मग्न रहने की स्टेज है तो उसमें अन्तर पड़ेगा ना? महारथी अर्थात् ऐसा महान पुरूषार्थ करने वाले, दूर से भगाने का पुरूषार्थ ही महारथीपन की निशानी है। दिन-प्रतिदिन आप लोग भी अनुभव करेंगे कोई भी विघ्न आने वाला है, तो बुद्धि में संकल्प आयेगा कि कुछ होने वाला है। फिर जितना-जितना योग-युक्त और युक्ति-युक्त होगा उसे उतना ही आने वाला विघ्न स्पष्ट रूप में नज़र आयेगा। ऐसा दर्पण तैयार हो जायेगा। समर्पण और सर्वस्व त्यागी किसको कहा जाता है? जो विकारों के सर्व-वंश का भी त्याग करने वाले हैं। मोटे रूप में तो विकारों का त्याग हो जाता है, लेकिन विकारों का वंश अति सूक्ष्म है, उसका वंश-सहित त्याग करने वाले ही महारथी अर्थात् सर्वस्व त्यागी होगा। जब यहाँ वंश-सहित सब विकारों का त्याग करते हैं तो वहाँ 21 वंश-सहित निर्विघ्न और निर्विकार पीढ़ी चलती हैं। आधा कल्प दैवी-वंश चलता है और आधा कल्प विकारों का शूद्र वंश भी बढ़ता जाता है। तो इस वंश को समाप्त करने वाले ही इक्कीस वंश-सहित अपना दैवी राज्य भाग्य प्राप्त करते हैं। अगर वंश के त्याग करते समय थोड़ी भी कमी रह जाती है तो वहाँ भी इक्कीस वंश में थोड़ी कमी रह जायेगी। महारथी की यह निशानी है कि जब सर्वस्व-अर्पण कर दिया तो उसमें तन-मन-धन, सम्पत्ति, समय, सम्बन्ध और सम्पर्क भी सब अर्पण किया ना? अगर समय भी अपने प्रति लगाया और बाप की याद या बाप के कर्त्तव्य में नहीं लगाया, तो जितना समय अपने प्रति लगाया, तो उतना समय कट हो गया।

जैसे भक्ति-मार्ग में भी दान की हुई वस्तु अपने प्रति नहीं लगाते हैं, ठीक इसी प्रकार, यहाँ भी हिसाब-किताब है। स्वयं की कमजोरी प्रति व स्वयं के पुरूषार्थ के प्रति वस्तु लगाना, यह जैसे कि अमानत में ख्यानतहो जाती है। ऐसा महीन पुरूषार्थ महारथी की निशानी है। महारथियों को तो अब अपना सब-कुछ विश्व के कल्याण में लगाना है तब तो महादानी और वरदानी कहा जायेगा। महारथी की स्टेज का प्रभाव ऐसा रहेगा, जैसे कि लाइट हाउस का प्रभाव दूर से ही नज़र आता है और वह चारों तरफ फैलती है। लेकिन कार्य व्यवहार में जो भी अनुभवी होते हैं, तो उसका भी प्रभाव उनकी सूरत और सीरत से पता पड़ता है। अब महारथियों और महावीरों का ऐसा प्रभाव पड़ना चाहिये। सूरत से ही अक्ल का अनुभव होगा अब इन निशानियों से ही समझो कि हमारा नम्बर कहाँ पर होगा? अच्छा।

सदा सहयोगी एवं सहज योगी बनो