20-02-74   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


अव्यक्त बापदादा के कमरे में मधुबन निवासियों से मधुर मुलाकात करते हुए पाण्डवपति शिव बाबा ने ये मधुर महावाक्य उच्चारे :-

जैसे बाप की महिमा है, वैसे जो बाप के कर्त्तव्य में सदा सहयोगी हैं और बाप के साथ सदा स्नेही हैं ऐसी श्रेष्ठ आत्माओं की भी महिमा है। सदा सहयोगी अर्थात् हर संकल्प और हर श्वास बाप के कर्त्तव्य प्रति व्यतीत हो, तो क्या सदा ऐसे सहयोगी और सहजयोगी हो? विशेष वरदान भूमि के निवासी होने के कारण पुरूषार्थ के साथ-साथ अनेक प्रकार का सहयोग प्राप्त है। वृत्ति और स्मृति यह दोनों ही पुरूषार्थ में आगे बढ़ने में सहयोगी होते हैं। स्मृति बनती है संग से और वृत्ति बनती है वातावरण व वायुमण्डल से। जैसे स्थूल धन कमाने वाले सारा दिन उसी संग में रहते हैं तो संग का प्रभाव स्मृति में इतना पड़ता है कि उसको स्वप्न में भी वही स्मृति रहती है। तो आप लोगों को अमृतवेले से लेकर रात तक सारा दिन यही श्रेष्ठ संग है, शुद्ध वातावरण है और शान्त वायुमण्डल है। जब संग और वातावरण दोनों ही श्रेष्ठ प्राप्त है तो स्मृति और वृति सहज ही श्रेष्ठ हो सकती है। ड्रामा में जब यह गोल्डन चान्स प्राप्त है तो क्या उसका उतना ही लाभ उठाते हो?

बाहर में रहने वाले कीचड़ में कमल हैं। आप लोगों को तो कमल से भी श्रेष्ठ रूहानी रूहें और गुलाब बनने का चान्स है। गुलाब का फूल पूजा के काम आता है अर्थात् वह देवताओं को अर्पित किया जाता है। कमल-पुष्प की विशेषता गाई जाती है लेकिन वह अर्पित नहीं किया जाता। तो आप सब बाप के आगे अर्पित गुलाब हो, जैसे गुलाब वायुमण्डल में खुशबू फैलाता है, ऐसे ही आप सब भी चारों ओर अपनी रूहानियत की खुशबूएं फैलाने वाले हो? क्या जैसा नाम वैसा ही काम है, जैसा स्थान वैसी स्थिति है, जैसा वातावरण वैसी वृत्ति है और जैसा संग वैसी स्मृति है? इसमें अलबेलापन क्यों होता है? कारण कि जैसे बाप की पहचान नहीं, तो प्राप्ति भी नहीं। इसी प्रकार अपने मिले हुए श्रेष्ठ भाग्य की भी पहचान नहीं तो अलबेलापन का कारण हुआ कि ज्ञान की कमी और पहचान की कमी। इसलिये अब समय की समीपता प्रमाण सम्पूर्ण ज्ञान स्वरूप बनो तब ही ज्ञान का फल अनुभव करेंगे, समझा?

पाण्डवों का किला तो प्रसिद्ध है। किला मज़बूत बनाना यह पाण्डवों का ही कर्त्तव्य है। अगर स्वयं मज़बूत होंगे तो किला भी मज़बूत होगा। किले की दीवार क्या है? स्वयं ही तो दीवार हैं। दीवार के बीच से यदि एक ईंट या पत्थर भी हिल जाये और दीवार में ज़रा भी क्रैक (दरार) आ जाए तो सम्पूर्ण दीवार ही कमज़ोर हो जाती है। क्या माया के तूफान और माया के अर्थ-क्वेक (धरतीकम्प), फाउण्डेशन (नींव) को हिलाते तो नहीं हैं या क्रैक तो नहीं पड़ता है? किला मज़बूत है ना? किला अर्थात् संगठन। जब विश्व पर प्रभाव डाल सकते हो तो क्या समीप वालों को प्रभावित नहीं कर सकते? इतना सहजयोगी बनो जो आपको देखते ही औरों का योग लग जावे। एक घड़ी का रोब सारे दिन की रूहानियत को तो गँवा देता है, इससे तो फौरन किनारा करना चाहिये। पुरूषों का यह रोब क्या जन्म-सिद्ध अधिकार है? हैं तो सब आत्मा ही ना? स्नेह की भी उत्पत्ति तब होगी जब समझेंगे कि मैं आत्मा हूँ। फिर तो भाई-भाई की दृष्टि में भी रोब नहीं रहेगा। यह तो कलियुगी जन्म-सिद्ध अधिकार है, न कि ईश्वरीय। न बहन देखो, न भाई। क्योंकि इसमें भी एक्सीडेण्ट (दुर्घटना) होते हैं। इसलिये सदा ही आत्मा देखो तभी इस दृष्टि की प्रैक्टिस (अभ्यास) कराई जाती है। मैं पुरूष हूँ इस स्मृति से पाण्डव गल गये। शरीर से गलने का अर्थ क्या है?-शरीर की स्मृति से गलना। पाण्डवों का गायन है कि सब गल गये। जैसे सोने को गलाओगे तो सोना फिर भी सोना ही रहेगा, लेकिन उसका रूप बदल जायेगा। तो यह भी गल गये अर्थात् परिवार्तित हुए। इसलिए यह रोब भी समाप्त। अच्छा।’’

इस मुरली का सार

1. बाप के कर्त्तव्य में सदा सहयोगी आत्माओं की बाप के समान ही महिमा होती है।

2. यज्ञ में समार्पित भाई बहनों का जीवन रूहे गुलाब के समान होता है जबकि गृहस्थ व्यवहार में रहने वालों का जीवन कमल-पुष्प के समान है।

3. गुलाब का फूल कमल-पुष्प से श्रेष्ठ है क्योंकि गुलाब का फूल देवताओं की पूजा में अर्पित किया जाता है जब कि कमल-पुष्प की केवल विशेषता ही गाई जाती है परन्तु पूजा के काम में नहीं आता।

4. रूहानियत से रोब की समाप्ति करनी है, इसे ही शास्त्रों में पाण्डवों का पहाड़ों पर गलना कहा गया है।