11-07-74   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


मुरली में दी गई डायरेक्शन्स से ही सर्व-कमियों से छुटकारा

दृष्टि और वृत्ति को सतोप्रधान बनाने वाले, कर्म-बन्धनों से मुक्ति दिलाने वाले, सर्वशक्तियों की चाबी प्रदान करने वाले, अति मीठे शिव बाबा ने पूछा:-

अपने को महादानी, सर्वशक्तियों के अधिकारी, त्रिमूर्ति बाप द्वारा प्राप्त हुए तीनों तख्तनशीन समझते हो? तीन तख्त कौन-से हैं? एक है-बेगमपुर के बादशाह बनने का साक्षी स्थिति में स्थित होने वाला, ‘साक्षीपनका तख्त। दूसरा है पॉवरफुल मास्टर सर्वशक्तिमान् बाप समान सबूत बनाने वालों का, बाप का दिल रूपीतख्त। तीसरा है-भविष्य विश्व महाराजन्का तख्त। क्या इन तीनों तख्तों के अधिकारी बने हो? तीनों तख्तों के अधिकारी की वर्तमान स्टेज कौन-सी है? तीनों तख्तों की तीन विशेषताएं सुनाओ।

साक्षीपन के तख्त की मुख्य निशानी कौन-सी होगी? वह सदैव हर कदम, हर संकल्प में बापदादा को सदा साथी अनुभव करेंगे; जितना साथीपन का अनुभव होगा, उतना ही अचल, अडोल और अतीन्द्रिय सुख में रहेंगे। उनका हर बोल बाप के साथ दिखाई देगा। जैसे बाप-दादा प्रैक्टिकल में सदा के साथी ऐसे हैं जिसे आप अलग करना चाहो तो भी नहीं कर सकते। जैसे दोनों साथियों के साथ का कभी-कभी ऐसा भी अनुभव करते हो कि दो हैं वा एक हैं? ऐसे ही दो का साथ एक समान हो। एक ही नहीं, लेकिन एक समान। समान को लोगों ने समाना कह दिया है, तो ऐसे अपने को क्या बाप-दादा के साथी अनुभव करते हो? फॉलो-फादर करते हो? जब फॉलो-फादर है तो साक्षीपन और साथीपन का अनुभव, हर सेकेण्ड व हर कदम में होना चाहिए। ऐसे साक्षीपन के अनुभवी ही तख्तनशीन होते हैं, दूसरा बाप के दिल-तख्तनशीन वह होगा, जो सपूत होगा अर्थात् बाप-दादा को मनसा, वाचा, कर्मणा व तन-मन-धन सब बातों में फॉलो करने का सबूत देगा। तीसरा है विश्व-महाराजन् बन विश्व के राज्य के तख्तनशीन बनने का। वह न सिर्फ कर्मइन्द्रियजीत लेकिन वह साथ-साथ प्रकृतिजीत भी होगा। ऐसा विकर्माजीत, कर्मेन्द्रिय-जीत, प्रकृतिजीत, जगतजीत बनता है। क्या ऐसे तीनों तख्तनशीन बने हो? अगर तीनों तख्त के अधिकारी बन गये तो ऐसे अधिकारी, बाप के पास किसी भी प्रकार की क्यू में नहीं होंगे। जो कोई भी क्यू में हैं-तो उन्हें किसी भी प्रकार के अधिकार की प्राप्ति नहीं।

आज बाप-दादा हरेक क्यू वाले को रेसपान्स दे रहे हैं। भिन्न-भिन्न  प्रकार की अर्ज़ी डालते हो कि यह कर दो, वह कर दो। ऐसी अर्ज़ी डालते हो, तो यह याद नहीं आता कि बाप-दादा बच्चों को स्वयं से भी ज्यादा हर कार्य में आगे रखता है। जब सर्वशक्तियाँ अर्थात् पॉवर्स बच्चों को दे दीं हैं, तो ऐसे बालक सो मालिक अर्ज़ी क्या डालते हैं? जैसे बाप कोई की भी बुद्धि का ताला खोल सकता है व संस्कार को बदल सकता है, तो क्या आप लोग नहीं कर सकते हो? आप लोगों की बुद्धि का ताला खुला है? इसमें तो ना नहीं कहेंगे ना? बापदादा ने हरेक को बुद्धि का ताला खोलकर अनुभवी बनाया है ना? जैसे आप लोगों का बाप ने खोला, अनुभव कराया तो अनुभव की हुई बात क्या स्वयं नहीं कर सकते हो? जैसे आप लोगों का खुला, वैसे ही दूसरों का खोलो। दूसरों का ताला खोलना मुश्किल है क्या? ताले की चाबी कौन-सी है? वह चाबी बाप ने आपको नहीं दी है क्या? जब से बाप के बच्चे बने हो तो जो बाप का सो आपका नही है क्या? चाबी भी आपकी है ना? चाबी है, फिर भी बाप को कहते हो कि ताला खोलो! या समय पर चाबी मिलती नहीं है? बाप तो अपने पास सिर्फ दिव्य दृष्टि की चाबी रखते हैं। बाकी बुद्धि का ताला खोलने की चाबी अपने पास नहीं रखते। बुद्धि का ताला खोलने की चाबी कौन-सी है?-सर्वशक्तियाँ; यही चाबी है। यह तो सबके पास है ना? दिव्य दृष्टि के दाता तो नहीं हो लेकिन मास्टर सर्वशक्तिमान् तो हो ना? जब सर्वशक्तियों की चाबी बाप द्वारा प्राप्त हो चुकी है, फिर भी अर्ज़ी क्यों डालते हो? बाप को सर्वेन्ट बनाया है इसलिए ऑर्डर देते हो कि यह करो और वह करो। वानप्रस्थ तक पहुंचने वाले भी अभी तक छोटे हैं। अभी तो समय है अपनी रचना रचने का, प्रजा और भक्त माला बनाने का। रचयिता कहे कि मैं छोटा हूँ तो रचना कैसे रचेंगे? इसलिये यह भिन्न-भिन्न प्रकार की अर्ज़ी बाप को डालते हो। पहले चाबी को प्राप्त करो तो अर्ज़ी स्वत: ही पूरी करेंगे।

दूसरी बात बाप को उलहना देते हो। उलहनों की भी क्यू है ना? किसी प्रकार का उलहना कौन देता है? कोई भी बात का उलहना तब दिया जाता है, जब नॉलेजफुल नहीं हैं। यह क्यों हुआ? ऐसा नहीं होना चाहिए था, पीछे क्यों आये, साकार में क्यों नहीं मिले, यह सब उलहने हैं ना? अगर मास्टर नॉलेजफुल की स्टेज पर स्थित हो जाओ, त्रिकालदर्शी की स्थिति में स्थित हो जाओ तो कोई उलहना देंगे? क्या उलहनों से साकार तन के मिलने की प्राप्ति हो सकेगी? जब बीत चुका हुआ पार्ट फिर से रिपीट होगा क्या? वह तो फिर 5000 वर्ष बाद रिपीट होगा। तो नॉलेजफुल की स्टेज पर स्थित होने वाला कभी भी किसी प्रकार का उलहना नहीं देगा। उलहना अर्थात् नॉलेज की कमी और लाइट-माइट की कमी।

तीसरी बात कम्पलेन्ट्स करते हो वह भी लम्बी क्यू है ना? भिन्न-भिन्न प्रकार की कम्पलेन्ट्स करते रहते हो-योग नहीं लगता, व्यर्थ संकल्प बहुत आते हैं या फलानी शक्ति धारण नहीं कर सकते। इन कम्पलेन्ट्स का कारण क्या है -- व्यर्थ संकल्प। मुख्य कम्पलेन्ट मेजॉरिटी की यह दिखाई देती है। दूसरी मुख्य कम्पलेन्ट है-वृत्ति और दृष्टि चंचल होती है। यह दोनों कम्पलेन्ट्स तब तक हैं, जब तक रोज की मुरली द्वारा जो डायरेक्शन्स मिलती रहती है उन डायरेक्शन्स को अर्थात् मुरली को ध्यान से सुनकर और धारण नहीं करते हैं। व्यर्थ संकल्प चलने का मूल कारण यह है जो ज्ञान का खज़ाना हर रोज बाप द्वारा मिलता है उस खजाने की कमी है। अगर सारा समय ज्ञान-रत्नों से खेलने में व ज्ञान खजाने को देखने में, सुमिरण करने में बुद्धि को बिजी रखो, तो क्या व्यर्थ संकल्प आ सकते हैं? पहले अपने आप से पूछो कि क्या मेरी बुद्धि सारा दिन ज्ञान के सुमिरण में व विश्व-कल्याण के प्लैन्स बनाने में बिजी रहती है? जैसे लौकिक रीति में भी कोई कार्य में बुद्धि बिजी रहती है तो दूसरे संकल्प व दूसरी बातें नहीं आती हैं, क्योंकि बुद्धि बिजी है। आप लोगों को भी ज़िम्मेवारी व बाप द्वारा जो कार्य मिला है वह कितना बड़ा है और अब तक भी कार्य कितना रहा हुआ है? अभी विश्व की टोटल आत्माओं के हिसाब से पाँच पाण्डव निकले हो। इतना रहा हुआ कार्य और साथ-साथ अपने विकर्मो को भस्म करने का कार्य है। कितने जन्मों के बोझ को भस्म करना है? 63 जन्मों के पाप-कर्मो के खाते को भस्म करना है। साथ-साथ ज्ञान के खजाने को सुमिरण करते रहो तो क्या समय बच सकता है या कम पड़ेगा? तीन बातें सुनाई-एक तो ज्ञान खजाने के सुमिरण करने का कार्य, दूसरा विकर्म भस्म करने का कार्य, तीसरा विश्व के कल्याण का कार्य, ये तीनों ही विशेष और बेहद के कार्य हैं। इतना बुद्धि का काम होते हुए भी, बुद्धि फ्री कैसे रहती है? फुर्सत कैसे मिलती है आप लोगों को? विश्व के कल्याण का कार्य समाप्त कर लिया है क्या? विकर्म भस्म कर लिए हैं क्या? इतनी कारोबार चलाने वाले व इतने बड़े कार्य के निमित्त बनी हुई आत्मायें फ्री रहें तो उसको क्या कहा जाय? अपने कार्य की नॉलेज नहीं व स्वयं को चलाने की नॉलेज नहीं, या अपनी दिनचर्या को सेट करने की नॉलेज नहीं। आजकल कौरव गवर्नमेण्ट के छोटे-छोटे कलर्क भी टाइम टेबल सेट कर सकते हैं तो क्या आप मास्टर नॉलेजफुल, मास्टर सर्वशक्तिमान् अपना टाइम टेबल सेट नहीं कर सकते? क्योंकि आप स्वयं को अपनी सीट पर सेट नहीं करते हो इसीलिए अपसेट होते हो।

अत: रोज अमृत वेले बाबा से मिलन मनाने के बाद व रूह-रूहान करने के बाद रोज का टाइम टेबल सेट करो। जैसे स्थूल काम का प्रोग्राम सेट करते हो वैसे व्यवहार के साथ परमार्थ का प्रोग्राम भी सेट करो। व्यर्थ संकल्प चलना अर्थात् ताजधारी नहीं बने हो। ताज है ज़िम्मेवारी का। स्वयं की ज़िम्मेवारी और विश्व की ज़िम्मेवारी। अगर अब भी बार-बार ताज को उतार देते हो व ताजधारी नहीं बन सकते हो तो भविष्य में ताजधारी कभी बन नहीं सकते। अभी से प्रैक्टिस चाहिए भविष्य ताजधारी और तख्तधारी बनने की। साक्षीपन का तख्त और बापदादा के दिल का तख्त। तो अभी से ताज और तख्तधारी बनेंगे तब भविष्य में भी ताज़ और तख्त प्राप्त कर सकेंगे। अपना टाइम टेबल सेट करो व स्वयं-ही-स्वयं का शिक्षक बन स्वयं को होम वर्क दो। जैसे शिक्षक स्टुडेण्ट को होम वर्क देते हैं ना? इसमें बुद्धि बिजी रहे। इस प्रकार रोज अपने को होम वर्क दो और फिर साक्षी होकर चैक करो कि होम वर्क में बिज़ी हैं या माया के आकर्षण में होम वर्क भूल गये हैं? तो फिर कम्पलेन्ट समाप्त हो जायेगी।

दूसरी बात है वृत्ति और दृष्टि के चंचल होने की। प्रेजेण्ट समय भी मेजॉरिटी की रिज़ल्ट में देखें तो 50 प्रतिशत अभी भी हैं जिनकी यह कम्पलेन्ट है। संकल्प में, स्वप्न में और कर्म में वृत्ति और दृष्टि चंचल होती है। वृत्ति और दृष्टि चंचल क्यों होती है? कोई भी चीज चंचल क्यों होती है, कारण क्या है? कोई भी चीज हिलती क्यों है? हिलने की मार्जिन है तब तो हिलती है। अगर वह फुल अर्थात् सम्पन्न हो तो हिलेगी? तो दृष्टि और वृत्ति चंचल होने का कारण यह है। जो बाप ने स्मृति सुनाई उसके बजाय विस्मृति की मार्जिन है तब हिलती है व चंचल होती है। अगर सदा स्मृति स्वरूप हो, स्मृति सम्पन्न हो तो वृत्ति और दृष्टि को चंचल होने की मार्जिन मिल नहीं सकती। इसके लिए बहुत छोटा-सा स्लोगन भूल जाते हो। लौकिक में भी कहते हैं-बुरा न देखो, बुरा न सोचो, और बुरा न सुनो। अगर इस स्लोगन को भी सदा स्मृति में रखो व प्रैक्टिकल में लाओ कि देह को देखना अर्थात् बुरा देखना है। देहधारी प्रति सोचना व संकल्प करना, यह बुरा है। देहधारी को देहधारी समझ उससे बोलना यह बुरा है। इसीलिए अगर यह साधारण स्लोगन भी प्रैक्टिकल में लाओ तो दृष्टि और वृत्ति चंचल नहीं होगी।

जिस समय वृत्ति और दृष्टि चंचल होती है तो उस समय स्वयं को यह समझना चाहिए कि क्या मैंने सर्व-सम्बन्धों की सर्व-रसनायें बाप द्वारा प्राप्त नहीं की हैं? कोई रस रह गया है क्या कि जिस कारण दृष्टि और वृत्ति चंचल होती है? जिस सम्बन्ध से भी वृत्ति और दृष्टि चंचल होती है उसी सम्बन्ध की रसना यदि बाप से लेने का अनुभव करो तो क्या दूसरी तरफ दृष्टि जायेगी? समझो कोई मेल की, फीमेल की तरफ दृष्टि जाती है या फीमेल की, मेल की तरफ जाती है तो क्या बाप सर्व रूप धारण नहीं कर सकता? साजन व सजनी के रूप में भी बाप से सजनी बन व साजन बन कर अतीन्द्रिय सुख का जो रस सदा-सदा काल स्मृति में और समर्थी में लाने वाला है, वह अनुभव नहीं कर सकते हो? बाप से सर्व- सम्बन्धों के रस व स्नेह का अनुभव न होने के कारण देहधारी में वृत्ति और दृष्टि चंचल होती है। ऐसे समय में बाप को धर्मराज के रूप में सामने लाना चाहिए और स्वयं को एक रौरव नर्कवासी व विष्ठा का कीड़ा समझना चाहिए। और सामने देखो कि कहाँ मास्टर सर्वशक्तिमान् और कहाँ मैं, इस समय क्या बन गया हूँ? रौरव नर्कवासी विष्ठा का कीड़ा ऐसे स्वयं का रूप सामने लाओ और तुलना करो कि कल क्या था और अब क्या हूँ? तख्तनशीन से क्या बन गया हूँ? तख्त-ताज को छोड़ क्या ले रहा हूँ? गन्दगी। तो उस समय क्या बन गये? गन्दगी को देखने वाला व धारण करने वाला कौन हुआ? गन्दा काम करने वाले को क्या कहते हैं? बिल्कुल जिम्मेवार आत्मा से जमादार बन जाते हो। क्या ऐसे को बाप-दादा टच कर सकता है? स्नेह दृष्टि दे सकता है? अर्ज़ी मान सकता है? कम्पलेन्ट व उलहना सुन सकता है? इतने नॉलेजफुल होने के बाद भी वृत्ति और दृष्टि चंचल हो, तो उसे भक्त आत्मा से भी गिरी हुई आत्मा कहेंगे। भक्त भी किसी युक्ति से अपनी वृत्ति को स्थिर करते हैं। तो मास्टर नॉलेजफुल भक्त आत्मा से भी नीचे गिर जाते हैं। तो क्या ऐसी आत्मा की कोई प्रजा बनेगी? जमादार की कोई प्रजा बनेगी क्या या वह स्वयं प्रजा बनेंगे?

अपना एक फोटो निकाल रखो। जैसे कोई गन्दगी उठाने वाला हो और टोकरे पर टोकरा गन्द का उठाया हो। ऐसा चित्र निकाल बुद्धि में रखो। जिस समय वृत्ति और दृष्टि चंचल होती है, उस समय वह फोटो देखो। जैसे बाप-दादा ने भविष्य प्रारब्ध की फोटो निकलवाई क्योंकि चित्र को देख चरित्र स्मरण आयेगा। ऐसा चित्र जब सामने आयेगा तो क्या शर्म व लज्जा नहीं आयेगी? एक तरफ मास्टर सर्वशक्तिमान् का चित्र, दूसरी तरफ वह चित्र रखो तो अपने आप ही मालूम पड़ जायेगा कि हम क्या बन गये। मास्टर सर्वशक्तिमान् के आगे अभी तक भी वृत्ति और दृष्टि का चंचल होना शोभता नहीं है।

पहली गलती तो यह है कि शरीर को क्यों देखते हो? तुमको तो मस्तक में आत्मा को देखना है ना? मस्तक में मणि है ना? मस्तक में मणि के बजाय साँप को क्यों देखते हो जिससे विष की प्राप्त हो जाती है? पहली गलती तो यह करते हो कि जो मस्तक के बजाय शरीर को देखते हो। कई कम्पलेन्ट करते हैं कि वातावरण और संग ऐसा है, साथी ऐसे हैं, दफ्तर में, बिजनेस में काम करना पड़ता है, सम्पर्क में आना पड़ता है। सम्पर्क में आते, बातचीत करते मस्तक के सिवाय और कहीं देखते ही क्यों हो। दूसरी बात वातावरण के वशीभूत होने वाले अपने आप से पूछे कि हमने बाप के साथ-साथ किस बात का ठेका उठाया है? ठेकेदार हो ना आप सब लोग? नर्क को बदल कर स्वर्ग बनाना, प्रकृति के तमोगुण को सतोगुण में परिवर्तन करना, यह ठेका उठाया है ना? प्रकृति को बदलने वाले स्वयं ही बदल जाते हैं? ठेका उठाया है पाँच तत्वो को बदलने का, और वशीभूत फिर वातावरण के हो जाते हो! जिस समय वातावरण के वशीभूत हो जाते हो उस समय स्थूल उदाहरण सामने रखो। अगरबत्ती कब वातावरण के वशीभूत नहीं होती है। वातावरण को बदलने के लिये अगरबत्ती है। तो आपकी रचना में अगरबत्ती बनने वाला कौन?-मनुष्य आत्मा। तो आपकी रचना में यह विशेषता है और रचयिता में नहीं? तो रचयिता हुए या कमजोर हुए? इस कम्पलेन्ट को भी अपनी स्मृति और युक्ति द्वारा समाप्त करो।

मुख्य यह दो कम्पलेन्ट्स हैं। एक-दो पार्टी से मिलते हो तो यह कम्पलेन्ट ही विशेष होती है। इसलिये ड्रामानुसार बार-बार यही बातें करना और बार-बार बाप द्वारा यही शिक्षा मिलना इसका भी हिसाब-किताब बनता है। इसलिए ड्रामानुसार अब तक भी स्पेशल सर्विस लेना यह भी पार्ट समाप्त हो रहा है। इसमें भी रहस्य है। वही बात कई बार पूछते हैं-एक वर्ष वायदा करके जाते हैं कि अगले वर्ष यह कम्पलेन्ट नहीं होगी। दूसरे वर्ष फिर दोबारा कहते कि अगले वर्ष नहीं होगी। जो वर्ष बीता वह किस खाते में गया? समझते हैं कि बाप-दादा को वायदा भूल जाता है। समझते हैं बाप-दादा को क्या याद होगा? बाप-दादा को सबके वायदे याद रहते हैं लेकिन बापदादा बच्चों का डिस-रिगार्ड नहीं करते। सामने बैठ कहे कि वायदा नहीं निभाया, यह भी डिस-रिगार्ड है। जब सिर का ताज बना रहे हैं, स्वयं से भी आगे रख रहे हैं, तो ऐसी आत्मा का डिस-रिगार्ड कैसे करेंगे? इसलिए मुस्कराते हैं। ऐसे नहीं कि याद नहीं रहता है। आत्माओं को तो चला देते हैं। निमित्त बनी हुई टीचरों को बड़ी चतुराई से चला देते हैं। कहेंगे आपने हमारे भावार्थ को नहीं समझा। हमारा भाव यह नहीं था, शब्द मुख से निकल गया। लेकिन बाप-दादा भाव के भी भाव को जानता है। उससे छिपा नहीं सकेंगे। टीचर फिर भी समझेंगे मेरे से गल्ती हो गई; हो सकता है। लेकिन बाप से तो नहीं हो सकती है ना? इसलिये अब छोटीछोटी बातों के लिये समय नहीं। यह भी व्यर्थ में एड हो जाता है। बाप से जितनी मेहनत लेते हो, उतना रिटर्न करना होगा। व्यक्त रूप में मेहनत ली। अव्यक्त रूप में भी कितने वर्ष हो गये। छठा वर्ष चल रहा है। अव्यक्त रूप में भी छ: वर्ष इन्हीं बातों पर शिक्षा मिलती रही। अब तक भी वही शिक्षा चाहिए? अभी सर्विस लेने का टाइम है अथवा रिटर्न करने का टाइम है? अगर रिटर्न नहीं करेंगे तो प्रजा नहीं बना सकेंगे। इसलिये अब स्वयं को पॉवरफुल बनाओ। नॉलेजफुल बनाओ। अनेक प्रकार की क्यू से स्वयं को मुक्त करो। युक्ति जो मिलती है उसको काम में नहीं लगाते हो, इसलिये मुक्त नहीं हो पाते। अच्छा यह हुआ क्यू का रेसपॉन्स। अब बाप-दादा बच्चों से विदाई लेते हैं। अच्छा! ओम् शान्ति।

इस मुरली का सार

(1) साक्षीपन का तख्त, बाप-दादा का दिल तख्त और विश्व के राज्य भाग्य का तख्त-इन तीनों तख्तों का अधिकारी बाप के पास किसी भी प्रकार की क्यू में नहीं होगा।

(2) बुद्धि का ताला खोलने की चाबी है सर्वशक्तियाँ। इनको प्राप्त करने से भिन्न-भिन्न प्रकार की आर्जियाँ बाप-दादा के पास डालनी बन्द हो जायेंगी।

(3) नॉलेजफुल और त्रिकालदर्शी की स्टेज पर स्थित होने वाला कभी भी किसी भी प्रकार का उलहना नहीं देगा।

(4) रोज की मुरली द्वारा जो डायरेक्शन्स मिलती रहती हैं उन डायरेक्शन्स अर्थात् मुरली को ध्यान से सुनकर और उसे धारण करने से व्यर्थ संकल्प और वृत्ति और दृष्टि का चंचल होना-यह दोनों मुख्य कम्पलेन्ट्स समाप्त हो जायेंगी।