05-12-74   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


व्यर्थ संकल्पों को समर्थ बनाने से काल पर विजय

काल पर विजय दिलाने वाले, सर्व प्राप्तियों के अधिकारी बनाने वाले बाप-दादा बोले:-

अव्यक्त-मिलन किसको कहा जाता है? जिससे मिलना होता है, उसी के समान बनना होता है। तो अव्यक्त-मिलन अर्थात् बाप-समान अव्यक्त रूपधारी बनना। अव्यक्त अर्थात् जहाँ व्यक्त भाव नहीं। क्या ऐसे बने हो? व्यक्त देश का, व्यक्त देह का और व्यक्त वस्तुओं का जरा भी आकर्षण अपनी तरफ आकर्षित न करे, क्या ऐसी स्थिति बनाई है? जो पहला-पहला वायदा है कि तुम्हीं से सुनूं और तुम्हीं से बोलूं, यह वायदा निभाने के लिये सारा दिन-रात जब तक अव्यक्त व निराकारी स्थिति में स्थित नहीं होंगे, तो क्या बाप-दादा के साथ-साथ रहने का अनुभव कर सकेंगे अर्थात् वायदा निभा सकेंगे? सारे दिन में आप कितना समय, यह वायदा निभाते हो? जिससे मिलना होता है, उसके स्थान पर और वैसी स्थिति, स्वयं की बनानी होती है। वह स्थान और स्थिति ये दोनों ही बदलनी पड़ेगी, तब ही यह वायदा निभा सकते हो। व्यक्त भाव में आना व कोई भी व्यक्त व वस्तु में भावना रहना कि यह प्रिय है व अच्छी है, यह व्यक्त-वस्तु और व्यक्ति में भावना रहना अर्थात् कामना का रूप हो जाता है। जब तक कामना है, तब तक माया से सम्पूर्ण रीति सामना नहीं कर सकते। जब तक सामना नहीं कर सकते, तब तक समान नहीं बन सकते अर्थात् वायदा नहीं निभा सकते।

जैसे आप लोग चित्र में कृष्ण को सृष्टि के ग्लोब पर दिखाते हो-ऐसा ही चित्र अपनी प्रैक्टिकल स्थिति का बनाओ। इस व्यक्त देश व इस पुरानी दुनिया से उपराम। व्यक्त भाव और व्यक्त वस्तुओं आदि सबसे उपराम अर्थात् इनके ऊपर साक्षी होकर खड़े रहें। जैसे पाँव के नीचे ग्लोब दिखाते हैं व ग्लोब के ऊपर बैठा हुआ दिखाते हैं अर्थात् उनका मालिकपन व अधिकारीपन दिखाते हैं तो ऐसे अपना चित्र बनाओ। इस पुरानी दुनिया में, जैसे अपनी स्व-इच्छा से, अपने रचे हुए संकल्प के आधार से अव्यक्त से व्यक्त में आते, व्यक्ति व वस्तुओं के आकर्षण के अधीन होकर नहीं। जैसे लिफ्ट में चढ़ते हो, तो स्विच अपने हाथ में होता है चाहे फर्स्ट फ्लोअर पर जाओ, चाहे सेकेण्ड फ्लोअर पर जाओ। जब स्विच कन्ट्रोल से बाहर हो जाता है तब वाया रिज़ल्ट होती है? बीच में लटक जावेंगे ना? ऐसे ही यह स्मृति का स्विच अपने कन्ट्रोल में रखो। जहाँ चाहो, जब चाहो और जितना समय चाहो वैसे अपने स्थान को व स्थिति को सैट कर सको, क्या ऐसे अधिकारी बने हो? क्या काल पर विजय प्राप्त की है? काल अर्थात् समय। तो काल पर विजयी बने हो? अगर पाण्डव सेना की व शक्ति सेना की यह स्टेज अन्त में आयेगी तो साइलेन्स पॉवर तो साइन्स से कम हो गई। क्योंकि साइंस ने तो अभी भी इन तत्वों पर विजय प्राप्त कर ली है।

प्रदर्शनी में, आप लोग चित्र दिखाते हो ना, कि रावण ने चार तत्वों पर विजय प्राप्त की है, उसमें काल भी दिखाते हो न? जब रावण ने अर्थात् रावण की शक्ति साइंस ने अभी भी काफी हद तक तत्वों पर विजय प्राप्त कर ली है, तो साइंस आपसे पॉवरफुल  हुई ना? जब साइन्स की शक्ति अपना प्रत्यक्ष सबूत दे रही है तो साइलेन्स की शक्ति अपना प्रत्यक्ष सबूत क्या अन्त में देगी? समय पर विजय अर्थात् काल पर विजय। इसकी परसेन्टेज अभी कम है। अपने को निराकारी स्थिति व अव्यक्त स्थिति में स्थित तो करते हो, लेकिन जितना समय स्थित रहना चाहते हो, उतना समय उस स्थिति में स्थित नहीं हो पाते हो। स्टेज के अनुभव भी प्राप्त करते हो, मेहनत भी करते हो, लेकिन काल पर विजय नहीं कर पाते हो। इसका कारण क्या है? सोचते हो कि आधा घण्टा पॉवरफुल याद में बैठेंगे और आधा घण्टा बैठते भी हो और प्लैन भी बनाते हो लेकिन जितनाजितना जिस स्टेज के लिए सोचते हो, उतना ही समय उस समय उस स्टेज पर स्थित नहीं होते हो। सोचते हो स्विच ऑन थर्ड फ्लोर पर करें, लेकिन पहुँच जाते हो सेकेण्ड फ्लोर पर वा फर्स्ट या ग्राउण्ड फ्लोर तक पहुँच जाते हो। क्योंकि काल पर विजय नहीं। इसका कारण यह है कि बार-बार सारे दिन में समय गँवाने के अभ्यासी हो। व्यर्थ के ऊपर अटेन्शन देने से ही काल पर विजय प्राप्त करने में समर्थ बनेंगे। जब तक समय व्यर्थ जाता है, तब तक विजय पाने में समर्थ नहीं बन सकते। इसी कारण, जो मिलन का अनुभव करना चाहते हो व निरन्तर समय व्यर्थ करने के कारण ही समर्थ नहीं बन पाते। 108 वायदा निभाना चाहते हो वह निभा नहीं सकते। तो अब, अपनी तकदीर की तस्वीर सर्व-तत्वों पर और काल पर सदा विजयी की बनाओ। जब एक-एक सेकेण्ड, व्यर्थ से समर्थ में चेन्ज करो, तब ही विजयी बनेंगे, अच्छा।

ऐसे सदा विजयी, सदा अधिकारी, निरन्तर वायदा निभाने वाले, हरेक को व्यर्थ से समर्थ में परिवर्तन करने वाले, सदा व्यक्त भाव से परे, अव्यक्त स्थिति में रहने वाले लक्की सितारों व समीप सितारों को बाप-दादा का याद प्यार और नमस्ते।

महावाक्यों का सार

(1) जब तक कोई कामना है, तब तक माया से सम्पूर्ण रीति सामना नहीं कर सकते हैं।

(2) जहाँ चाहो, जब चाहो, जितना समय चाहो वैसे अपने स्थान को, स्थिति को सेट कर सको, ऐसे अधिकारी बने हो? काल अर्थात् समय पर विजय प्राप्त की है?

(3) व्यर्थ संकल्पों के ऊपर अटेन्शन देने से ही काल पर विजय प्राप्त करने में समर्थ बन सकेंगे।