16-01-75   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


ज्वाला रूप अवस्था

विश्व-परिवर्तन के आधारमूर्त, सर्व सम्बन्धों तथा प्रकृति के सर्व आकर्षणों से उपराम, आकर्षण मूर्त बापदादा ज्ञान-रत्न वत्सों से बोले: -

अपने को नयनों में समाये हुए, नैनों के नूर व नूरे-रत्न समझते हो? स्वयं को बापदादा के नयनों के सितारे समझते हो? नयनों के सम्मुख हो या नयनों में समाये हुए हो? दो प्रकार के सितारे इस समय चमक रहे हैं। हर-एक स्वयं से पूछे कि मैं कौन-सा सितारा हूँ? समाये हुए की क्वॉलिफिकेशन्स और सम्मुख वाले के बीच, दो के बीच में तीसरे के आने की मार्जिन रहती है, अर्थात् कोई-न-कोई विघ्न निरन्तर में अन्तर कर सकता है। लेकिन जो नयनों में समाये हुए हों वे बाप के समान होते हैं; कोई परिस्थिति व प्रकृति, अर्थात् पाँच तत्व, भी बाप से उन्हें अलग नहीं कर सकते। गोया वे सदाविज यी, निरन्तर एक-रस और एक की लगन में मग्न होंगे। एक बाप और बापसमान सदा ईश्वरीय सेवा। बस, इसके सिवा उन्हें और कुछ दिखाई नहीं देगा। उनकी दृष्टि, वृत्ति और स्मृति ये तीनों ही सदा समर्थ रहती हैं अर्थात् व्यर्थ समाप्त हो जाता है। ऐसे बने हो या बनना है?

विश्व-परिवर्तन के आधारमूर्त स्वयं को परिवर्तन किया हुआ अनुभव करते हो? अगर आधारमूर्त्त सम्पूर्ण परिवर्तन की अभी स्वयं में कमी महसूस करते हैं तो फिर विश्व-परिवर्तन कैसे होगा? आधारमूर्त स्वयं अपने लिये ही कुछ समय की आवश्यकता समझते हैं या विश्व-परिवर्तन के लिये अभी समय चाहिए। यह संकल्प उत्पन्न होता है? आधारमूर्त्त के दृढ़ संकल्प में कभी हलचल के संकल्प रहते हैं तो विनाश-अर्थ निमित्त बनी हुई आत्माओं में कभी जोश, कभी होश आ जाता है। आधारमूर्त्त आत्माओं का संकल्प ही विनाश-अर्थ निमित्त बनी हुई आत्माओं की प्रेरणा का आधार है। तो अपने-आप से पूछो कि प्रेरक शक्ति-सेना का संकल्प दृढ़ निश्चय-बुद्धि है और स्वयं एवर रेडी हैं? जैसे यज्ञ रचने के निमित ब्रह्मा बाप के साथ ब्राह्मण बने, तो यज्ञ से प्रज्जवलित हुई यह जो विनाशज्वाला है, इसके लिए भी जब तक ज्वाला रूप नहीं बनते, तब तक यह विनाश की ज्वाला भी सम्पूर्ण ज्वाला रूप नहीं लेती है। यह भड़कती है, फिर शीतल हो जाती है। कारण? क्योंकि ज्वाला मूर्त और प्रेरक आधारमूर्त्त आत्माएँ अभी स्वयं ही सदा ज्वाला रूप नहीं बनी हैं। ज्वाला-रूप बनने का दृढ़ संकल्प स्मृति में नहीं रहता है।

ज्वाला-रूप बनने का मुख्य और सहज पुरूषार्थ कौन-सा है? (मेरा तो एक शिव बाबा)। यह स्मृति सदा रहे, इसके लिए भी कौन-सा पुरूषार्थ है? अब लास्ट विशेष पुरूषार्थ कौन-सा  रह गया है? (उपराम अवस्था)। यह तो है रिजल्ट। लेकिन उसका भी पुरूषार्थ क्या है? (न्यारापन) न्यारापन भी किससे आयेगा - कौन-सी धुन में रहने से? धुन यही रहे कि अब वापिस घर जाना है - जाना है अर्थात् उपराम। जाना है-जहाँ जाना है वैसा पुरूषार्थ स्वत: ही चलता है। जब अपने निराकारी घर जाना है तो वैसा अपना वेश बनाना होता है। तो इस नये वर्ष का विशेष पुरूषार्थ यही होना चाहिए कि वापिस जाना है और सबको ले जाना है। इस स्मृति से स्वत: ही सर्व-सम्बन्ध, सर्व प्रकृति के आकर्षण से उपराम, अर्थात् साक्षी बन जायेंगे। साक्षी बनने से सहज ही बाप के साथी बन जायेंगे व बाप-समान बन जायेंगे। सर्व को सदा ज्वाला-रूप दिखाई देंगे, तब ही यह विनाश ज्वाला भी आपके ज्वाला-रूप के साथ-साथ स्पष्ट दिखाई देगी। जितना स्थापना के निमित्त बने ज्वाला-रूप होंगे उतना ही विनाश-ज्वाला रूप में प्रत्यक्ष होगा। इस दृढ़ संकल्प की तीली लगाओ तब विनाश-ज्वाला भड़केगी। अभी शीतल रूप में हैं, क्योंकि आधारमूर्त्त भी पुरूषार्थ में शीतल हैं। संगठन रूप का ज्वाला-रूप विश्व के विनाश का कार्य सम्पन्न करेगा।

अल्प आत्माओं का दृढ़ संकल्प अल्पकाल के लिये कहीं-कहीं विनाशज्वाला भड़काने के निमित्त बना है। लेकिन महाविनाश, और विश्व-परिवर्तन - संगठन के एक श्रेष्ठ संकल्प के सिवाय सम्पन्न नहीं हो सकता। इसलिये इस वर्ष में अपनी लास्ट स्टेज, सर्व कर्म-बन्धनों से मुक्त, कर्मातीत अवस्था, न्यारे और प्यारेपन का बैलेन्स सदा ठीक रहे। ऐसी निराकारी स्टेज संगठन रूप में बनाओ। तब विनाश के नजारे और साथ-साथ नई दुनिया के नजारे स्पष्ट दिखाई देंगे। सबको इस वर्ष यह पुरूषार्थ करना है। इस लास्ट पुरूषार्थ से ही स्वयं की और विनाश की गति फास्ट होगी।

संकल्प चलता है या समाप्त हो गया है? घबराते तो नहीं हो कि क्या होगा, कैसे होगा? अगर और मगर तो नहीं आता? अगर न हुआ तो? - कोई कहता है मगर होना ही है; कोई अगर कहता है। लेकिन होगा क्या? कई समझते हैं कि बाप तो अव्यक्त हो गया, व्यक्त में सामना करने वाले तो हम ही हैं। लेकिन आप भी अव्यक्त हो जाओ अर्थात् कोई भी सामने आये तो व्यक्त भाव की बात उन्हें दिखाई न दे या करने की हिम्मत न हो। औरों के भी व्यक्त भाव को मिटाने वाले अव्यक्त फरिश्ते बन जाओ। ऐसी अव्यक्त-स्थिति व वायुमण्डल अर्थात् पाण्डवों का किला बनाओ तो यह हलचल समाप्त हो जायेगी। बापदादा अन्त तक आपके साथ है और सदा बच्चों के ऊपर स्नेह और सहयोग की छत्र-छाया के समान हैं। इसलिये घबराओ मत। बैक-बोन बाप-दादा, सामना करने के लिए किसी भी व्यक्ति द्वारा, समय पर प्रत्यक्ष हो ही जायेंगे और अब भी हो रहे हैं। अच्छा।

ऐसे सदा हिम्मत और उल्लास में रहने वाले, हर परिस्थिति में श्रेष्ठ स्थिति मे रहने वाले, प्रकृति के सर्व आकर्षणों से परे रहने वाले, रूहानी बाप के रूहानी आकर्षण में रहने वाले, रूहानी आकर्षणमूर्त्त, सदा निश्चिन्त और निश्चय-बुद्धि, बाप के सदा साथी, सर्व के सदा स्नेही और सहयोगी आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते!

अव्यक्त वाणी की कुछ मुख्य बातें

1. इस नये वर्ष का विशेष पुरूषार्थ यही होना चाहिये कि वापिस घर जाना है और सब को साथ ले जाना है। इस स्मृति से प्रकृति के सभी आकर्षणों से तथा सभी सम्बन्धों से उपराम हो जायेगे और साक्षी एवं निराकारी बन जायेगे।

2. साक्षी होने से सहज ही बाप के साथी बन जायेगे और समान बन जायेगे।

3. जो वत्स बापदादा के नयनों में समाये हुए होते हैं, वे बाप समान होते हैं। कोई भी परिस्थिति और प्रकृति का कोई भी रूप उन्हें बाप से अलग नहीं कर सकता। वे सदा एक की लगन में मग्न होते हैं।

4. किसी भी परिस्थिति में घबराओ मत क्योंकि बापदादा का स्नेह छत्रछा या के समान है और वे कभी भी किसी व्यक्ति द्वारा प्रत्यक्ष हो जायेंगे।