10-02-75   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


सर्व शक्तियों-सहित सेवा में समर्पण

सत्कार न करने वालों का भी सत्कार करने वाले, ठुकराने वालों को भी ठिकाना देने वाले, त्याग द्वारा सर्वोत्तम भाग्य बनाने वाले शिव बाबा बोले -

आज यह संगठन ज्ञानी तू आत्माओं का है। ऐसी ज्ञानी तू आत्मायें, अथवा योगी आत्मायें बापदादा को भी अति प्रिय है और विश्व में भी अति प्रिय हैं। ऐसी ज्ञानी तू आत्मा और योगी तू आत्मा का भक्ति मार्ग में गायन और पूजन चलता रहता है। वर्तमान समय में भी वह आत्मायें पूजनीय और गायन-योग्य है। पूजनीय अर्थात् ऊंची आत्मायें और गायन-योग्य आत्माएँ - ऐसी आत्माओं के गुणों का गायन व वर्णन अब भी सब करते हैं। भविष्य के गायन और पूजन का आधार वर्तमान पर है। भविष्य में अर्थात् भक्ति में कौन कितने गायन और पूजने योग्य बनेंगे, उसका बुद्धि-बल द्वारा साक्षात्कार हर कोई अभी कर सकता है। हर- एक अपने आपको देखे कि इस समय भी मुझ आत्मा को सर्व-आत्मायें अर्थात् जो सम्पर्क में आने वाली हैं, अपने ब्राह्मण कुल की आत्मायें हैं और साथ-साथ अज्ञानी आत्मायें भी जो सम्पर्क में आती हैं, तो वे श्रेष्ठ अर्थात् पूज्यता की नजर से देखती है? पूज्य बड़े को भी कहा जाता है। तो सर्व आत्मायें उस नज़र से देखती व समझती हैं?

अगर अल्प आत्मायें पूज्य अनुभव करती हैं तो वर्तमान का आधार सारे भविष्य पर है। ऐसे ही जो भी आत्मायें साथी बनती हैं व सम्बन्ध में आती हैं, उनको मुझ आत्मा विशेष के गुण अनुभव में आते हैं? अगर किसी आत्मा के गुण अनुभव में आयेंगे तो अब भी वह आत्मायें मन-ही-मन में व वाणी में भी ऐसी आत्माओं के गुणों का गायन अवश्य करेंगी। गुण कोई भी हों वे अपना प्रभाव अवश्य डालते हैं। गुण छुप नहीं सकते। तो ऐसी पूज्य और गुणगान कराने वाली ज्ञानी आत्मायें और योगी आत्माएँ बने हो? अल्प आत्माओं के प्रति अथवा सर्व के प्रति सर्व गुणों का गायन करते हैं अथवा थोड़े-बहुत गुणों का गायन करते हैं? गुणों के गायन का पलड़ा भारी है अथवा साधारण चलन का पलड़ा भारी है?

समय-प्रमाण अभी अपने सब सब्जेक्ट्स के खाते को चेक करो कि कहाँ तक जमा किया है व मन, वाणी, कर्म द्वारा कहाँ तक हर सब्जेक्ट को सम्पन्न किया है। सर्व-गुण सम्पन्न बने हैं या गुण-सम्पन्न ही बने हैं? कल्याणकारी बने हैं अथवा विश्व-कल्याणवारी बने हैं? अब अगर चेक करेंगे तो चेक करने के बाद सम्पन्न करने का कुछ समय है। लेकिन कुछ समय के बाद सम्पन्न करने का समय भी समाप्त हो जायेगा। फिर क्या करेंगे? सम्पन्न बनी हुई आत्माओं को देखने वाले बन जायेंगे। सीट लेने वाले नहीं बन सकेंगे। तो साक्षात्कार मूर्त बनना है या साक्षात्कार करने वाला बनना है?

ऐसे साक्षात्कार मूर्त बनने के लिये सार रूप में तीन बातें अपने में देखो –

1. सर्व-अधिकारी बने हैं? 2. परोपकारी बने हैं? 3. सर्व प्रति सत्कारी बने हैं? अर्थात् सर्व को सत्कार देने और लेने योग्य बने हैं? याद रखो कि सत्कार देना ही लेना है।

इन तीन बातों के आधार से ही विश्व के आगे विश्व-कल्याणकारी प्रसिद्ध होंगे। उनके स्पष्टीकरण को अच्छी तरह से जानते हो?

सर्व-अधिकारी का अर्थ है-सर्व-कर्मेन्द्रियों पर अधिकार। साथ-साथ जैसे इस शरीर की भिन्न-भिन्न शक्तियाँ हाथ, पांव आदि हैं, वैसे ही आत्मा की भी शक्तियाँ हैं - मन, बुद्धि और संस्कार। इन सूक्ष्म शक्तियों पर भी अधिकारी बने हो? अपनी रचना - प्रकृति के ऊपर अधिकारी बने हो? कोई भी प्रकृति के तत्व अपनी तरफ आकर्षित तो नहीं करते हैं? जब साइन्स द्वारा प्रकृति व पृथ्वी के आकर्षण से परे स्टेज पर पहुँच जाते हैं तो मास्टर सर्व-शक्तिवान् प्रकृति के आकर्षण से परे, अर्थात् व्यक्त भाव से परे, अव्यक्त व ऑलमाइटी अथॉरिटी की स्टेज को प्राप्त करना मुश्किल अनुभव करे - यह तो शोभता नहीं। ऐसे ही बाप द्वारा प्राप्त हुई सर्व शक्तियाँ जिनमें से थोड़ा सैम्पल  रूप में चित्र भी बना है। तो वर्से में प्राप्त हुई शक्तियाँ अर्थात् स्वयं की जायदाद व प्रॉपर्टी पर अपना अधिकार है। जब चाहो तब किसी भी शक्ति द्वारा स्वयं को सफल बना सको। जैसे स्थूल जायदाद पर अधिकार होने के कारण जिस समय चाहो उस समय उसी वस्तु को काम में लगा सकते हो क्योंकि अपनी जायदाद है। ऐसे ही ईश्वरीय जायदाद को जिस समय चाहो और जिस शक्ति को चाहो उसको काम में लगा सकते हो? इस जायदाद के भी अधिकारी हो? इसको कहा जाता है सर्व-अधिकारी।

हर आत्मा के प्रति सदा उपकार अर्थात् शुभ भावना और श्रेष्ठ कामनायें। हर आत्मा को देखते हुए ऐसे अनुभव हो कि यह सर्व-आत्माएँ जैसे कि बाप के हर समय स्नेही और सहयोगी बनने के लिए स्वयं को कुर्बान कर देते हैं। ऐसे कुर्बान करने के निमित्त क्यों बनते? - क्योंकि बाप सब के आगे स्वयं कुर्बान होते हैं। सर्व के सामने स्वयं को सब शक्तियों समेत सेवा में समर्पित किया है। अपने समय को, सुखों को, प्राप्ति की इच्छा को सर्व के प्रति महादानी बन दाता बने। ऐसे फॉलो फादर स्वयं के प्रति नाम, शान, मान सर्व प्राप्ति की इच्छा को कुर्बान करने वाले ही परोपकारी बन सकते हैं। लेने की इच्छा छोड़ देने वाले महादानी ही परोपकारी बन सकते हैं। ऐसे ही सत्कारी सर्व के प्रति सत्कार की भावना हो - सत्कारी बनने के लिए स्वयं को सर्व के सेवाधारी समझना पड़े। सेवाधारी की परिभाषा भी गुह्य है। सिर्फ स्थूल सेवा व वाणी द्वारा सेवा, सम्पर्क द्वारा सेवा, सेलवेशन द्वारा व भिन्न-भिन्न प्रकार के साधनों द्वारा सेवा करना, सिर्फ इतना ही नहीं, अपने हर गुण द्वारा दान करना व दूसरों को भी गुणवान बनाना, स्वयं के संग का रंग चढ़ाना, यह है श्रेष्ठ सेवा। अवगुण को देखते हुए भी नहीं देखना। स्वयं के गुणों की शक्ति द्वारा अन्य के अवगुणों को मिटा देना अर्थात् निर्बल को बलवान बनाना। निर्बल को देख किनारा नहीं करना है व थक नहीं जाना है। लेकिन होपलेस केस को भी स्वयं की सेवा द्वारा अपने श्रेष्ठ स्वमान में स्थित हो सम्मान देने के द्वारा सर्व के सत्कारी बन सकते हैं। स्वयं के त्याग द्वारा अन्य को सत्कार देते हुए अपना भाग्य बनाना है। छोटा, बड़ा, महारथी व प्यादा सर्व को सत्कार की नजर से देखो। सत्कार न देने वाले को भी सत्कार देने वाला, ठुकराने वाले को भी ठिकाना देने वाला, ग्लानि करने वाले के भी गुणगान करने वाला, ऐसे को कहा जाता है सर्व-सत्कारी। तो इस वर्ष में दो प्रकार की विशेष सेवा होनी चाहिए। एक स्वयं को सम्पन्न बनाने की। इसके लिए इस वर्ष में चारों तरफ विशेष स्थानों पर उन्नति के साधन, योग-भट्ठी के साधन और धारणा की भट्ठी चाहिए। ऐसे हर जगह चारों ओर ग्रुप वाइज भट्ठी का प्रोग्राम रखो, हर एक को स्वतन्त्र कर भट्ठी का अनुभव कराओ। जैसे पिछले वर्ष में योग भट्ठी का प्रोग्राम रखा था ऐसे धारणा और याद दोनों सब्जेक्ट्स पर स्वयं को सम्पन्न बनाने की भट्ठी हो। ऐसा प्रोग्राम सब मिलकर के बनाओ।

दूसरी बात है विश्व सेवा के प्रति। उसके लिये हर एक सेवाकेन्द्र को स्वयं के आस पास के स्थानों को सन्देश देने का प्रोग्राम तीव्रगति से करना पड़े। कोई भी आसपास का स्थान सन्देश देने से वंचित रहा तो फिर सन्देश देने की मार्जिन न रहेगी। वंचित रही हुई आत्माओं का बोझ निमित बनी हुई आत्माओं पर है। इसलिए चक्रवर्ती बनो। महादानी अर्थात् महादान देते आगे बढ़ते चलना है। एक एक निमित बनी हुई श्रेष्ठ आत्मा को सिर्फ दो चार स्थान नहीं लेकिन आसपास के सर्व स्थानों पर चक्र लगाने के निमित्त बनना है। हर स्थान पर आप समान निमित्त बनाते जाओ और आगे बढ़ते जाओ। उसी स्थान पर बैठ न जाओ। तो इस वर्ष चक्र लगाते विशेष सेवा यह करनी है। सन्देश देते आप समान निमित्त बनाते सारे विश्व को तथा स्वयं के आसपास वालों को सन्देश देना है। अब हैण्डस बनाने का कर्त्तव्य करो। समय प्रमाण जैसे समय की गति तीव्र होती जा रही है, ऐसी सेवा की रिजल्ट का प्रत्यक्ष फल बनी बनाई निमित बनने वाली आत्माएँ सहज ही निकल सकती हैं। सिर्फ लक्ष्य, हिम्मत और परख चाहिए।

जैसे कल्प पहले का गायन है - पाण्डवों ने तीर मारा और जल निकला अर्थात् पुरूषार्थ किया और फल निकला। अब प्रत्यक्ष फल का समय है। सीजन है, समय का वरदान है। इसका लाभ उठाओ। अपने साधनों व अपने प्रति समय व सम्पत्ति का त्याग करो, तब यह प्रत्यक्ष फल का भाग्य प्राप्त कर सकेंगे। स्वयं को आराम, स्वयं के प्रति सेवा-अर्थ अर्पण की हुई सम्पत्ति लगाने से कभी सफलता नहीं मिलेगी। जैसे सेवा के प्रारम्भ में अपने पेट की रोटी भी कम करके हर वस्तु को सेवा में लगाने से उसका प्रत्यक्ष फल आप आत्मायें हो। ऐसे मध्य में बाप ने ड्रामा ने सहज साधनों को स्वयं के प्रति लगाने का अनुभव भी कराया है। लेकिन अब अन्त में प्रकृति दासी होते हुए भी सर्व साधन प्राप्त होते हुए भी स्वयं के प्रति नहीं लेकिन सेवा के प्रति लगाओ। क्योंकि अब आगे चलकर अनेक आत्मायें साधन और सम्पत्ति आपके आगे ज्यादा से ज्यादा अर्पण करेंगी। लेकिन स्वयं के प्रति स्वीकार कभी नहीं करना। स्वयं के प्रति स्वीकार करना अर्थात् स्वयं को श्रेष्ठ पद से वंचित करना। इसलिए ऐसे त्यागमूर्त बन सेवा का प्रत्यक्ष फल निकालो। समझा? अब निमित बनने वाले वारिसों का और सेवा में सहयोगी बनने वालों का गुलदस्ता बाप के आगे भेंट करो। तब कहेंगे विश्व-कल्याणकारी, सो विश्व-राज्य अधिकारी। इस पर प्राईज मिलेगी। पिछली बार की रिजल्ट नहीं आयी है जो प्राईज दें। इसलिए इस बारी पुरूषार्थ करके फिर से डबल प्राईज लो।

अच्छा ऐसे विल करने वाले, वन नम्बर में आने वाले, प्रत्यक्ष फल देने वाले, बाप को प्रख्यात करने वाले, शक्ति सेना और पाण्डव सेना का झण्डा लहराने वाले और विश्व के आगे बापदादा का जय-जयकार कराने के निमित्त बनने वाली विजयी आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते!

अव्यक्त वाणी का सार

1. हर एक अपने आपको देखे कि इस समय भी मुझ आत्मा को सर्व आत्माएँ, जो भी सम्पर्क में आने वाली हैं, वे श्रेष्ठ अर्थात् पूज्यता की नजर से देखती हैं?

2. अपने सब सब्जेक्ट्स के खाते को चेक करो कि कहाँ तक जमा किया है व मन, वाणी और कर्म द्वारा कहाँ तक हर सब्जेक्ट को सम्पन्न किया है? चेक करेंगे तब ही सम्पन्न बनने का पुरूषार्थ कर सकेंगे।

3. जैसे स्थूल जायदाद पर अधिकार होने के कारण जिस समय चाहो, उस समय उसी वस्तु को काम में लगा सकते हो। ऐसे ही ईश्वरीय जायदाद को जिस समय चाहो और जिस शक्ति को चाहो, उसे काम में लगा सकते हो।