09-09-75   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


ग्लानि को गायन समझकर रहमदिल बनो

अपकारियों पर भी उपकार करने का गुण सिखाने वाले, सब के कल्याणकारी शिव बाबा सौभाग्यशाली बनने वाले बच्चों से बोले –

अपने चमकते हुए तकदीर के सितारे को देखते हो? तकदीर का सितारा सदा चमकता रहता है अथवा कभी चमकता है और कभी चमक कम हो जाती है अर्थात् घटनाओं रूपी घटा के बीच छिप जाता है? या कभी इन स्थूल सितारों के समान, जैसे स्थूल सितारे स्थान बदली करते हैं वैसे स्थिति बदली तो नहीं होती है? या तकदीर की लकीर अभी चढ़ती कला और अभी-अभी ठहरती कला व गिरती कला ऐसे बदलती तो नहीं है? क्योंकि संगम युग पर तकदीर की रेखा परिवर्तन करने वाला बाप सम्मुख पार्ट बजा रहे हैं। ऐसे तकदीर बनाने वाले बाप के डायरेक्ट बच्चे-उन्हों की तकदीर श्रेष्ठ और अविनाशी चाहिए। ऐसी तकदीर अन्य कोई भी आत्मा नहीं बना सकती है। ऐसे तकदीरवान अपने को अनुभव करते हो?

श्रेष्ठ तकदीर बनाने वालों की निशानी क्या होगी? जानते हो? ऐसा तकदीरवान हर संकल्प में, हर बोल में, कर्म में फालोफादर करता होगा। संकल्प भी बाप समान विश्व कल्याण की सेवा अर्थ होगा। हर बोल में नम्रता, निर्माणता और उतनी ही महानता होगी। स्मृति स्वरूप में एक तरफ बेहद का मालिकपन, दूसरी तरफ विश्व की सेवाधारी आत्मा होगी। एक तरफ अधिकारीपन का नशा, दूसरी तरफ सर्व के प्रति सत्कारी, हर आत्मा के प्रति बाप समान दाता और वरदाता, चाहे दुश्मन हो, किसी भी जन्म के हिसाबकिताब चुक्तु करने के निमित्त बनी हुई आत्मा हो - ऐसी श्रेष्ठ स्थिति से गिराने के निमित्त बनी हुई आत्मा को भी, संस्कारों के टक्कर खाने वाली आत्मा को भी, घृणा वृत्ति रखने वाली आत्मा को भी, सर्व आत्माओं के प्रति दाता व वरदाता। ठुकराने वाली आत्मा भी कल्याणकारी आत्मा अनुभव हो, ग्लानि के बोल व निन्दा के बोल भी महिमा व गायन योग्य अनुभव हों तथा ग्लानि गायन अनुभव हो। जैसे द्वापर में आप सबने बाप की ग्लानि का, लेकिन बाप ने ग्लानि भी गायन समझ कर स्वीकार की और ग्लानि के रिटर्न में भक्ति का फल-ज्ञान दिया, न कि घृणा और ही रहम-दिल बने। ऐसे फालो फादर। ऐसे फालो फादर करने वाले ही श्रेष्ठ तकदीरवान बनते है। जैसे बाप से विमुख बनी हुई आत्माओं को अपना बना कर अपने से ऊंच प्रालब्ध प्राप्त करते हैं - ऐसे श्रेष्ठ तकदीर-वान बच्चे बाप समान हर आत्मा को अपने से भी आगे बढ़ाने की शुभ भावना रखते हुए विश्व-कल्याणकारी बनेंगे। इसको कहा जाता है निरन्तर योगीपन के लक्षण।

ऐसी ऊंची मंज़िल को प्राप्त करने वाले जो बोल और भाव को परिवर्तन कर दें अर्थात् निन्दा को भी स्तुति में परिवर्तन कर दें, ग्लानि को गायन में परिवर्तित कर दे, ठुकराने को सत्कार में परिवर्तित कर दें, अपमान को स्व-अभिमान में परिवर्तित कर दें व अपकार को उपकार में परिवर्तित कर दें व माया के विघ्नों को बाप की लगन में मग्न होने का साधन समझ परिवर्तित कर दें - ऐसे बाप समान सदा विजयी अष्ट रत्नबनते हैं। और भक्तों के इष्ट बनते हैं। ऐसी स्थिति को पहुँचे हो? या सिर्फ स्नेही आत्माओं के प्रति सहयोगी आत्मायें बने हो? होपलेस केस में व ना-उम्मीदवार को उम्मीदों का सितारा बनाना-कमाल इसी बात में है। ऐसी कमाल दिखाने वाले बने हो? या सिर्फ बाप की कमाल देख हर्षित होने वाले बने हो? जब कि फॉलो फादर है तो कमाल करने वाला बनना है न कि देखकर हर्षित होने वाला बनना है। समझा? इसको कहा जाता है फॉलो फादर।

जैसा समय वैसे अपने कदम को बढ़ाना चाहिए। जब अन्तिम समय समझते हो तो अपनी स्थिति भी अन्तिम सम्पूर्ण स्टेज वाली समझते हो? समय अन्तिम और पुरूषार्थ की रफ्तार व स्थिति मध्यम होगी तो रिजल्ट क्या होगी? स्वर्ग के सुखों की प्रालब्ध मध्यम पुरूषार्थ वाले सतयुग के मध्य में प्राप्त करेंगे - ऐसा लक्ष्य तो नहीं है ना? लक्ष्य फर्स्ट जन्म में आने का है तो लक्षण भी फर्स्ट क्लास चाहिए। समय प्रमाण और लक्ष्य प्रमाण पुरूषार्थ को चेक करो। अच्छा!

ऐसे बाप के समान सर्व के सत्कारी, बाप के वर्से के अधिकारी, हर ना-उम्मीदवार को उम्मीदों का सितारा बनाने की कमाल करो। 86 संकल्प और कदम में फॉलो फादर करने वाले, श्रेष्ठ तकदीर बनाने वाले तकदीर के सितारे, निरन्तर बाप की याद और सेवा में तत्पर रहने वाले सदा विजयी बच्चों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।’’

इस मुरली के विशेष तथ्य

1. श्रेष्ठ तकदीर बनाने वाले बच्चे की निशानी यह होगी कि वह हर संकल्प में, हर बोल में और हर कर्म में फॉलोफादर होगा।

2. जैसे बाप बे-मुख बनी आत्माओं को अपना बना कर उनका अपने से ऊंच प्रालब्ध बनाते है ऐसे ही श्रेष्ठ तकदीरवान बच्चे भी हर आत्मा को अपने से भी आगे बढ़ाने की शुभ भावना रखते हुए विश्व-कल्याणकारी बनते हैं।

3. माया के विघ्नों को बाप की लगन में मग्न होने का साधन समझ परिवर्तित कर दें - ऐसे विजयी वत्स ही अष्ट रत्न बनते हैं।