27-09-75   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


बेहद का वैरागी, त्यागी और सेवाधारी ही विश्व-महाराजन्

मनुष्यात्माओं को लाइट और माइट देने वाले, विश्व-महाराजन् की श्रेष्ठ प्रालब्ध प्राप्त कराने वाले, नजर से निहाल करने वाले, धर्मराजपुरी की सजाओं से बचने का पुरूषार्थ कराने वाले, विश्व-कल्याणी परमात्मा शिव बोले -

रुह का रूहानी मिलन वाणी द्वारा होता है या वाणी से परे रूहानी मिलन होता है? अन्तिम स्टेज वाणी से परे एक सेकेण्ड में रूहानी नजर की झलक से होती है। यह जो गाया हुआ है कि झलक दिखा दो, वह नयनों द्वारा मस्तक मणि का गायन है। अन्तिम समय नजर से निहाल करने का ही गायन है।

आप हरेक लाइट हाउस और माइट हाउस की स्थिति में होंगे तो एक स्थान पर स्थित होते हुए भी विश्व के चारों ओर अपनी लाइट और माइट देने का कर्त्तव्य करेंगे। इसमें भी विश्व-महाराजन् बनने वाले लाइट और माइट हाउस होंगे। राजपद पाने वालों के सम्पर्क में आने वाले साहूकार व प्रजा लाइट हाउस नहीं होगी, बल्कि लाइट स्वरूप होगी। लाइट और माइट हाउस दोनों में अन्तर है। विश्व महाराजन् बनने के लिए जब तक विश्व सेवक नहीं बने हैं तब तक विश्व महाराजन् नहीं बन सकते। विश्व महाराजन् बनने के लिए तीन स्टेजिस से पार करना पड़ता है। पहली स्टेज एक सेकेण्ड में बेहद का त्यागी - सोच करते समय गंवाने वाले नहीं, लेकिन झट से और एक धक से बाप पर बलिहार जाने वाले। दूसरी बात - बेहद के निरन्तर अथक सेवाधारी और तीसरी बात-सदैव बेहद के वैराग्यवृत्ति वाले। बेहद के त्यागी, बेहद के सेवाधारी और बेहद के वैरागी। इन तीनों स्टेजिस से पार करने वाले ही विश्व-महाराजन् बन सकते हैं। साथ ही अन्त में लाइट हाउस और माइट हाउस बन सकते हैं। अपने आपको चेक करो कि तीनों स्टेजिस में से कौन-सी स्टेज तक पहुँचे हैं? स्वयं ही स्वयं का जज बनो। धर्मराजपुरी में जाने से पहले जो स्वयं, स्वयं का जज बनता है वही धर्मराजपुरी की सजा से बच जाता है।

बाप भी बच्चों को धर्मराजपुरी में नहीं देखना चाहते हैं। धर्मराजपुरी की सजा से बचने के लिए सहज उपाय जानते हो कौन-सा  है? अज्ञानकाल में भी कहावत है कि सोच-समझ कर काम करो। पहले सोचो फिर कर्म करो व बोलो। अगर सोच-समझ कर कर्म करेंगे तो व्यर्थ कर्म के बजाए हर कर्म समर्थ होगा। कर्म के पहले सोच अर्थात् संकल्प उत्पन्न होता है। यह संकल्प ही बीज है। अगर बीज अर्थात् संकल्प पॉवरफुल है तो वाणी और कम्र् स्वत: ही पॉवरफुल होते हैं। इसलिए वर्तमान समय के पुरूषार्थ में हर संकल्प को पॉवरफुल बनाना है। संकल्प ही जीवन का श्रेष्ठ खज़ाना है। जैसे खज़ाने द्वारा जो चाहे, जितना चाहे, उतना प्राप्त कर सकते हैं, वैसे ही श्रेष्ठ संकल्प द्वारा ही सदाकाल की श्रेष्ठ प्रालब्ध पा सकते हैं। सदैव यह छोटा-सा स्लोगन स्मृति में रखो कि सोच-समझ कर करना और बोलना है तब सदाकाल के लिए श्रेष्ठ जीवन बना सकेंगे और धर्मराजपुरी की सजाओं से बच सकेंगे। जैसे जज का कार्य क्या होता है सोच-समझ कर जजमेन्ट (निर्णय) देना। हर संकल्प में अपना जस्टिस बनो। इससे तो स्वर्ग में भी विश्व-महाराजन् का श्रेष्ठ पद प्राप्त कर सकेंगे। अच्छा।

आज विशेष नये-नये बच्चों से मिलने के लिए बापदादा को भी पुरानी प्रकृति को अधीन करना पड़ा। बलिहारी नये बच्चों की जो बाप को भी आप समान बना देते हैं। बापदादा भी ऐसे सिकीलधे बच्चों को देखकर हर्षित होते हैं। हर एक की लगन का, स्नेह का और मिलन मनाने का आवाज बापदादा के पास सदैव पहुँच रहा है। इसलिए रिटर्न करने के लिए बापदादा को भी आना पड़ा। अच्छा।

ऐसे अति स्नेही, सिकीलधे, सदैव एक की लगन में मग्न रहने वाले, लास्ट सो फास्ट, फास्ट सो फस्ट डिवीजन में आने वाले तीव्र पुरुषार्थी बच्चों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।

इस मुरली का सार

1. विश्व-महाराजन् बनने के लिए तीन स्टेजिस को पार करना पड़ता है - एक सेकेण्ड में बेहद के त्यागी, बेहद के निरन्तर अथक सेवाधारी और बेहद के वैराग्य वृत्ति।

2. विश्व-महाराजन् बनने वाले लाइट हाउस और माइट हाउस की स्थिति में स्थित होकर विश्व के चारों ओर लाइट और माइट देने का कर्त्तव्य करेंगे।

3. सदैव यह छोटा-सा स्लोगन स्मृति में रखो कि सोच-समझ कर करना और बोलना है, तब सदाकाल के लिये श्रेष्ठ जीवन बना सकेंगे और धर्मराजपुरी की सजाओं से बच सकेंगे। 4. अन्तिम समय नज़र से निहाल करने का ही गायन है।