01-10-75   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


पर्सनल मुलाकात

मायाजीत और प्रकृतिजीत शक्तियों की निशानी

बेहोश आत्माओं को सुरजीत बनाने वाले, माया और प्रकृति पर जीत प्राप्त कराने वाले, आसुरी वृत्तियों का संहार करने वाले शिव बाबा बोले –

शक्तियाँ अपने शक्ति स्वरूप, सदा शस्त्रधारी, सदा निर्भय, सर्व आसुरी संस्कारों का संहार करने वाली तथा प्रकृति और मायाजीत बनने वाली - ऐसे अपने स्वभाव में सदा स्थित रहती हैं? शक्तियों के यादगार चित्र में मायाजीत की निशानी है - शस्त्र और लाइट का क्राउन और प्रकृति जीत की निशानी है-शेर की सवारी। यह पशु-पक्षी आदि प्रकृति की निशानी हैं। प्रकृति के तत्व भी शक्ति-स्वरूप को भयभीत नहीं कर सकते। प्रकृति पर भी सवारी अर्थात् अधिकार। प्रकृति भी उनकी दासी बन गई अर्थात् उनका सत्कार कर रही है। ऐसे सदा विजयी हो? सदा सुजाग की निशानी तिलक गाया हुआ है-जो सदा बाप के साथ हैं - वह सदा विजय का तिलक अपने माथे पर लगाता रहेगा। स्मृति में रहना अर्थात् तिलक लगाना। सदा यह स्मृति रहे कि मैं कल्प-कल्प की विजयी हूँ, अभी की नहीं। पहले बेहोश थे - बेहोश अर्थात् जिसको अपना होश नहीं। मैं हूँ कौन यह भी पता नहीं तो बेहोश हुआ ना? अब तो सुरजीत हो। सुरजीत कभी बाप को भूल नहीं सकते। यही सदा याद रखो कि मैं हूँ ही सदा विजयी।अच्छा।

कम्पलेन्ट समाप्त कर कम्पलीट बनने की प्रेरणा

अतीन्द्रिय सुख के झूले में झुलाने वाले, सर्व-सम्बन्धों का अलौकिक अनुभव देने वाले, सर्व आत्माओं के हितकारी शिव बाबा वत्सों के प्रति बोले - ‘‘बाप-समान निराकारी, देह की स्मृति से न्यारे, आत्मिक स्वरूप में स्थित होते हुए, साक्षी होकर अपना और सर्व आत्माओं का पार्ट देखने का अभ्यास मजबूत होता जाता है? सदा साक्षीपन की स्टेज स्मृति में रहती है? जब तक साक्षी स्वरूप की स्मृति सदा नहीं रहती तो बापदादा को अपना साथी भी नहीं बना सकते। साक्षी अवस्था का अनुभव, बाप के साथीपन का अनुभव कराता है। अपने को खुदा-दोस्त समझते हो ना? अर्थात् अपने मन का मित बापदादा को बनाया है? दिल का दिलवाला बाप को ही बनाया है? एक दिलवाला बाप के सिवाय और किसी से भी दिल की लेन-देन करने का संकल्प मात्र भी नहीं है, ऐसा अनुभव करते हो? अगर एक बाप के साथ सर्व-सम्बन्धों के सुख, सर्व-सम्बन्धों के प्रीति की प्राप्ति अनुभव करते हो तो और कहीं भी किसी सम्बन्ध में बुद्धि जा नहीं सकती। हर श्वास, हर संकल्प में सदा बाप के सर्व-सम्बन्धों में बुद्धि मग्न रहनी चाहिए। कई बच्चों की कम्पलेन्ट है कि व्यर्थ संकल्प बहुत आते हैं, बुद्धि बाप की तरफ लगती नहीं है। न चाहते हुए भी कहीं-न-कहीं बुद्धि का लगाव चला जाता है वा स्थूल प्रवृत्ति की जिम्मेवारी बुद्धियोग को एकाग्र बनने नहीं देती। पुरानी दुनिया का सम्पर्क व वातावरण वृत्ति को चंचल बना देता है। जितना तीव्र पुरूषार्थ करना चाहते हैं उतना कर नहीं पाते हैं, हाई-जम्प दे नहीं पाते। सारे दिन में इसी प्रकार की कम्पलेन्ट्स बापदादा के पास बहुत आती हैं।

मास्टर सर्वशक्तिवान् कहलाते हुए भी अपने ही स्वभाव-संस्कार से मजबूर हो जाते हैं, तो बापदादा को भी ऐसी बातें सुनते हुए मीठी हँसी भी आती है और रहम भी आता है। जब अपने स्वभाव संस्कार को मिटा नहीं सकते तो सारे विश्व से तमोप्रधान आसुरी संस्कार मिटाने वाले कैसे बनेंगे? जो अपने ही संस्कारों के वश हो जाय, वह सर्व वशीभूत हुई आत्माओं को मुक्त कैसे कर सकेंगे? अपने संस्कारों, जिससे स्वयं ही परेशान हैं वह औरों की परेशानी कैसे मिटायेंगे? ऐसे संस्कारों से मुक्ति पाने की सरल युक्ति कौन-सी है? कर्म में आने से पहले संस्कार संकल्प में आते हैं - ‘‘यह कर दूँगा, ऐसा होना चाहिए, यह क्या समझते हैं, मैं भी सब करना जानता हूँ।’’ इस रूप के संकल्पों में संस्कार उत्पन्न होते हैं। जब जानते हो कि इस समय संस्कार संकल्प-रूप में अपना रूप दिखा रहे हैं, तो सदैव यह आदत डालो व अभ्यास करो कि हर संकल्प को पहले चेक करना है कि क्या यह संकल्प बाप-समान है?

जैसे कई बड़े आदमी होते हैं, वे जो कुछ भी स्वीकार करते हैं तो पहले उस चीज की चैकिंग होती है। जैसे प्रेज़ीडेन्ट है या कोई भी विशेष व्यक्ति या बड़े-बड़े राजा होते हैं, तो उनका हर भोजन पहले चेक होता है, फिर वे स्वीकार करते हैं। उन्हें कोई भी वस्तु देंगे तो पहले उनकी चैकिंग होती है कि कहीं उसमें कुछ अशुद्धि या मिक्स तो नहीं है? वह बड़े आदमी आपके आगे क्या हैं? आपके राज्य में ये बड़े आदमी पाँव भी नहीं रख सकते। अब भी आपके पाँव पर पड़ने वाले हैं। जब राजाओं के भी राजा बनते हो और सृष्टि के बीच श्रेष्ठ आत्मा कहलाते हो, तो आप विशेष आत्माओं का यह संकल्प रूपी बुद्धि का जो भोजन है, उसके लिये भी चैकिंग होनी चाहिए। जब बिना चैकिंग के स्वीकार करते हो, इसलिए धोखा खाते हो। तो हर संकल्प को पहले चेक करो। जैसे सोने को यन्त्र द्वारा चेक करते हैं कि सच्चा है या मिक्स है, रीयल है अथवा रोल्ड गोल्ड है? ऐसे ही यह चेक करो कि संकल्प बापदादा समान है या नहीं है? इस आधार से चेक करो, फिर वाणी और कर्म में लाओ। आधार को भूल जाते हो, तब संस्कार शूद्र-पने के और विष के मिक्स हो जाते हैं। जैसे भोजन में विष मिक्स हो जाय तो वह मूर्छित कर देता है, ऐसे ही संकल्प रूपी आहार व भोजन में पुराने शुद्रपन का विष मिक्स हो जाता है, तो बाप की स्मृति और समर्थी स्वरूप से मूर्छित हो जाते हो। तो अपने को विशेष आत्मायें समझते हुए अपने आप का स्वयं ही चेकर बनो। समझा? विशेष आत्मा की अपनी शान में रहो तो परेशान नहीं होंगे। अच्छा यह हुई संस्कारों को मिटाने की युक्ति। अगर इस कार्य में सदा बिज़ी रहेगे व सदा होली-हंस स्वरूप में स्थित होंगे तो शुद्ध व अशुद्ध, शूद्रपन और ब्राह्मणपन को सहज ही चेक कर सकेंगे और बुद्धि इसी कार्य में बिजी होने के कारण व्यर्थ संकल्पों की कम्पलेन्ट से फ्री  हो जायेगी।

दूसरी बात सारा दिन, बाप के सर्व-सम्बन्धों का हर समय प्रमाण सुख नहीं ले पाते हो जो गोपियों और पाण्डवों के चरित्र गाये हुए हैं। बाप से सर्व-सम्बन्धों का सुख लेना और मग्न रहना अथवा सर्व-सम्बन्धों के लव में लवलीन रहना, वह अनुभव अभी किया नहीं है। बाप और शिक्षक इन विशेष सम्बनधों का सुख अनुभव करते हो लेकिन सर्व- सम्बन्धों के सुखों की प्राप्ति का अनुभव कम करते हो। इसलिए जिन सम्बन्धों के सुखों का अनुभव नहीं किया है, उन सम्बन्धों में बुद्धि का लगाव जाता है और वह आत्मा का लगाव व बुद्धि की लगन विघ्न-रूप में बन जाती है। तो सारे दिन में भिन्न-भिन्न सम्बन्धों का अनुभव करो। अगर इस समय बाप से सर्व-सम्बन्धों का सुख नहीं लिया है, तो सर्व- सुखों की प्राप्ति में सर्व-सम्बन्धों की रसना लेने में कमी रह जायेगी। अभी अगर यह सुख नहीं लिया तो कब लेंगे? आत्माओं से सर्व-सम्बन्ध तो सारा कल्प अनुभव करेंगे लेकिन बाप से सर्व-सम्बन्धों का अनुभव अभी नहीं किया तो कभी भी नहीं करेंगे। तो इन सर्व-सम्बन्धों के सुखों में सारा दिन-रात अपने को बिजी रखो। इन सुखों में निरन्तर रहने से और सर्व-सम्बन्ध असार और नीरस अनुभव होंगे। इसलिए बुद्धि एक ठिकाने पर स्थित हो भटकना बन्द हो जायेगा। और आप इन सुखों के झूले में सदा झूलते रहेगे। ऐसी स्थिति बनाने से तीव्र पुरुषार्थी स्वत: और सहज बन जायेंगे, सर्व कम्पलेन्ट समाप्त हो कम्पलीट बन जायेंगे। समझा? अपने कम्पलेन्ट्स का रिस्पॉन्स। अच्छा

ऐसे सदा अति-इन्द्रिय सुखों के झूले में झूलने वाले, सदा बाप के साथ सर्व-सम्बन्ध निभाने वाले, सदा स्वयं को साक्षी और बाप को साथी समझने वाले ऐसे खुदा-दोस्त, सदा खुदाई-खिदमत में रहने वाले, ऐसे बाप-समान बच्चों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।

सुनने में खुश होते हो लेकिन निभाने में कहीं मजबूर हो जाते हो। जब सुनने में इतनी खुशी होती है तो स्वरूप बनने में कितनी खुशी होगी? इस समय सभी हर्षित मुख हो - ऐसे ही सदा हर्षित मुख रहो तो स्वयं का भी समये बचायेंगे और निमित्त बनी हुई आत्माओं का भी समय बचा लेंगे। अभी तक गिरने और चढ़ने में, स्वयं को सम्भालने में व बुद्धि को ठिकाने लगाने में 25%  समय जो इसमें जाता है तो यह समय बच जायेगा और वह कमाई में जमा हो जायेगा। अब बचत करना सीखो। समझा? ओम् शान्ति।

इस मुरली का सार

1. अगर एक बाप के साथ सर्व-सम्बन्धों के सुख व प्रीति की प्राप्ति का अनुभव करते हो तो और कहीं भी किसी सम्बन्ध में बुद्धि नहीं जा सकती।

2. अपने को विशेष आत्मा समझते हुए अपने आप का ही स्वयं चेकर बनो। सदैव यह आदत डालो व अभ्यास करो कि हर संकल्प को पहले चेक करना है कि यह संकल्प बाप समान है, एक दिलवाला बाप के सिवाय और किसी से भी दिल की लेनदेन करने का संकल्प तो नहीं है?

3. साक्षी अवस्था का अनुभव बाप के साथीपन का अनुभव कराता है।

4. विशेष आत्मा की अपनी शान में रहो तो परेशान नहीं होंगे।