21-10-75   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


बेहद की वैराग्य-वृत्ति ही विश्व परिवर्तन का आधार

नये विश्व के परिवर्तक, सर्व आत्माओं के परमप्रिय शिव बाबा ने नव-विश्व-निर्माण के आधारमूर्त्त बच्चों से मधुर मुलाकात करते हुए ये अनमोल महावाक्य उच्चारे:-

अभी नयी दुनिया लाने के निमित्त बने हुए हो? नई दुनिया कब आयेगी, यह सबको इन्तज़ार है। सबके अन्दर संकल्प है की तिथि तारीख का मालूम पड़ जाये कि नई दुनिया कब आने वाली है? तिथि तारीख मालूम पड़ेगा? मालूम होना तो ज़रूर चाहिए जबकि त्रिकालदर्शी हैं अर्थात् तीनों कालों को जानने वाले हैं तो भविष्य का जानना भी ऐसे ही होगा जैसे वर्तमान को जानना और भविष्य को जानने का आधार भी वर्तमान होगा। नई दुनिया में आने वाले भी तो ब्राह्मण ही हैं। तो नई दुनिया में जो आने वाले हैं उन्हों की वर्तमान से ही भविष्य की तिथि तारीख ऑटोमेटिकली सिद्ध हो ही जायेगी। जब नई दुनिया कहते हैं तो नई दुनिया की अधिकारी आत्माओं में भी नयापन होना चाहिए। कोई भी पुराना संस्कार व संकल्प व बोल व कोई एक्टिविटी पुरानेपन की न हो। जैसे अभी भी एक-दो में पुरानी चाल देख कर कहते हो ना कि यह इनकी पुरानी चाल है अथवा अब तक यह पुरानी आदत व चाल इनकी गई नहीं है। किसी भी बात में पुरानापन न हो। संकल्प भी पुराने स्वभाव व संस्कार के वश न हो। जब मैजारिटी व मुख्य आत्माओं में ऐसी नवीनता दिखाई दे तब नई दुनिया के आने की तिथि तारीख स्पष्ट हो जायेगी। जो निमित्त हैं उन मुख्य आत्माओं में नवीनता का और परिवर्तन का अनुभव होगा। उन्हों के परिवर्तन के आधार पर विश्वपरिवर्त न की तारीख प्रत्यक्ष होगी।

विश्व-परिवर्तन होने के पहले विश्व की सर्व-आत्माओं में वैराग्य वृत्ति होगी। और वैराग्य वृत्ति से ही बाप के परिचय को धारण कर सकेंगे कि हाँ हम आत्माओं का बाप आ चुका है। तो जैसे विश्व की आत्माओं में वैराग्य-वृत्ति ही परिवर्तन का आधार होगा वैसे ही जो निमित्त बनी हुई आत्मायें हैं उन्हों में भी सम्पूर्ण परिवर्तन का आधार बेहद का वैराग्य बनेगा। तो संगठन में भी बेहद के वैराग्य-वृत्ति को लाने का पुरूषार्थ करो। एक-दो के साथी व सहयोगी बनो। जब वैराग्य-वृत्ति इमर्ज रूप में होगी तो पुराने संस्कार व स्वभाव बहुत जल्दी और सहज ही वैराग्य-वृत्ति के अन्दर मर्ज हो जायेंगे। सब सोचते हैं ना कि क्या होगा जो पुराना पन सब भूल जायेगा। मनुष्य को जब हद का वैराग्य होता है तो पुराने आकर्षण के संस्कार और स्वभाव आदि को समाप्त करने में वैराग्य-वृत्ति ही आधार बनेगी। इस से ही चेन्ज आयेगी।

अब ऐसी धरनी बनाओ और ऐसे बेहद के वैरागियों का संगठन बनाओ, जिन्हों के वाइब्रेशन्स और वायुमण्डल द्वारा अन्य आत्माओं में भी वह संस्कार इमर्ज हो जायें। जैसे सेवाधारियों का संगठन होता है वैसे बेहद के वैरागियों का संगठन मजबूत होना चाहिए जिसको देखते ही अन्य आत्माओं को भी ऐसा वायब्रेशन आये। एक तरफ बेहद का वैराग्य होगा दूसरी तरफ बाप के समान बाप के लव में लवलीन होंगे, तब ही बेहद का वैराग्य आयेगा। एक सेकेण्ड भी और एक संकल्प भी इस लवलीन अवस्था से नीचे नहीं आयेंगे। ऐसे लवली बाप के लवली बच्चों का संगठन हो। उनको कहेंगे लवली संगठन। एक तरफ अति लव दूसरी तरफ बेहद का वैराग्य दोनों का संगठन साथ-साथ समान दिखाई देगा, ऐसा संगठन बनाओ तो वह तारीख स्पष्ट दिखाई देगी। यह संगठन ही तारीख को प्रसिद्ध करेगा।

इस मुरली का सार

1. नई दुनिया की अधिकारी आत्माओं में कोई भी पुराना संस्कार, संकल्प, बोल व ऐक्टिविटी पुरानेपन की न हो तब ही नयी दुनिया आयेगी।

2. जैसे विश्व की आत्माओं में वैराग्य वृत्ति ही परिवर्तन का आधार होगी वैसे ही जो निमित्त बनी हुई आत्मायें हैं उन्हीं में भी सम्पूर्ण परिवर्तन का आधार बेहद का वैराग्यबनेंगा।

3. एक तरफ अति लव और दूसरी तरफ बेहद का वैराग्य दोनों का संगठन साथ-साथ समान दिखाई देगा तो ऐसा संगठन ही नयी दुनिया की तिथि तारीख को प्रसिद्ध करेगा।