10-01-77   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


जैसा लक्ष्य वैसा लक्षण

सदा बर्थ-राईट (Birth-Right) के नशे में रहने वाले, ईश्वरीय नशे में मस्त रहने वाले, लक्ष्य और लक्षण समान करने वाले, सर्व को सर्व उलझनों से निकालने वाले बच्चों प्रति बाप-दादा बोले :-

आज बाप-दादा हर बच्चे के मस्तक और नैनों द्वारा एक विशेष बात देख रहे हैं। अब तक लक्ष्य और लक्षण कितना समीप हैं। लक्ष्य के प्रभाण लक्षण प्रैक्टीकल रूप में कहाँ तक दिखाई देते हैं? लक्ष्य सब का बहुत ऊँचा है लेकिन लक्षण धारण करने में तीन प्रकार के पुरुषार्थी हैं। वह कौन-से हैं?

(1) एक हैं - जिन्हें सुन कर अच्छा लगता है, करना चाहिए, लेकिन सुनना आता है पर करना नहीं आता है।

(2) दूसरे हैं - जो सोचते हैं, समझते भी हैं, करते भी हैं। लेकिन शक्ति-स्वरूप न होने के कारण डबल पार्ट बजाते हैं। अभी-अभी ब्राह्मण, तीव्र पुरुषार्थी अभी-अभी हिम्मतहीन। कारण? पांच विकार और प्रकृति के तत्व, दोनों में से किसी न किसी के वशीभूत हो जाते हैं। इसलिए लक्ष्य और लक्षण में अन्तर पड़ जाता है। इच्छा है लेकिन इच्छा मात्रम् अविद्या बनने की शक्ति नहीं, इस कारण अपने लक्ष्य की इच्छा तक पहुँच नहीं पाते हैं।

(3) तीसरे हैं - जो सुनना, सोचना और करना, तीनों को समान करते हुए चलते हैं। ऐसी आत्माओं का लक्ष्य और लक्षण 99% समान दिखाई पड़ता है। ऐसे तीन प्रकार के पुरुषार्थी देख रहे हैं।

वर्तमान समय हरेक ब्राह्मण आत्मा के संकल्प और बोल को लक्ष्य की कसौटी पर चैक करना चाहिए: लक्ष्य के प्रमाण संकल्प और बोल हैं? लक्ष्य है - फरिश्ता सो देवता। जैसे लौकिक परिवार और आक्यूपेशन (Occupation) के प्रमाण अपना संकल्प, बोल और कर्म चैक (Check) करते हैं वैसे ब्राह्मण आत्माएं अपने ऊँच से ऊँच परिवार और आक्यूपेशन को सामने रखते हुए चलते हैं? वर्तमान मरजीवा ब्राह्मण जन्म नैचुरल (Natural) स्मृति में रहता है वा पास्ट शुद्रपन के लक्षण नैचुरल रूप में पार्ट में आ जाते हैं? जैसा जन्म होता है वैसे कर्म होते हैं। श्रेष्ठ जन्म के कर्म भी स्वत: ही श्रेष्ठ होने चाहिए। अगर मेहनत लगती है तो ब्राह्मण जन्म की स्मृति कम है। वास्तव में श्रेष्ठ कर्म व श्रेष्ठ लक्ष्य श्रेष्ठ जन्म का बर्थ-राईट (Birth Right) जन्मसिद्ध अधिकार है। जैसे लौकिक जन्म में स्थूल सम्पत्ति बर्थ-राईट होती है। वैसे ब्राह्मण जन्म का दिव्य गुण रूपी सम्पत्ति, ईश्वरीय सुख शक्ति बर्थ-राईट है। बर्थ-राईट का नशा नैचुरल रूप में रहता ही है, मेहनत करने की आवश्यकता ही नहीं। अगर मेहनत करनी पड़ती है तो अवश्य सम्बन्ध और कनेक्शन में कोई कमी है। अपने आप से पूछो बर्थ-राईट का नशा रहता है? इस नशे में रहने से ही लक्ष्य और लक्षण समान हो जायेगा, इसके लिए सहज युक्ति जिससे मेहनत से मुक्ति मिल जाये वो कौन-सी है? स्वयं को जो हूँ, जेसा हूँ, जिस श्रेष्ठ बाप और परिवार का हूँ वैसा जानते हो; लेकिन हर समय मानते नहीं हो। अपनी तकदीर की तस्वीर नहीं देखते हो। अगर सदैव अपनी तकदीर की तस्वीर को देखते रहो तो जैसा साकार शरीर को देखते हुए नैचुरल देह की स्मृति-स्वरूप रहते हो वेसे ही नैचुरल तकदीर की तस्वीर के स्मृति में रहेंगे। चलते फिरते वाह बाबा! और वाह मेरी तकदीर की तस्वीर! यह अजपाजाप अर्थात् मन से यह आवाज़ निकलती रहे। जो भक्त लोग अनहद आवाज़ सुनने का प्रयत्न करते हैं, यह आप की ही स्थिति का गायन भक्ति में चलता रहता है। अपने कल्प पहले की खुशी में सदा नाचने का चित्र जिसको रास-लीला का चित्र कहते हैं - हर गोपी वा गोप सदा गोपीवल्लभ के साथ रास करते हुए दिखाते हैं, यह खुशी में नाचने का यादगार चित्र है। आप के प्रैक्टीकल चरित्र का चित्र बना है। ऐसा प्रैक्टीकल चरित्रवान चित्र सदा देखने में आता है? ऐसे अनुभव करते हो कि यह मेरा ही चित्र है? इसको कहा जाता है तकदीर की तस्वीर। रोज़ अपनी तकदीर की तस्वीर को देखते हुए हर कर्म करेंगे तो मेहनत से मुक्त हो बर्थ-राईट की खुशी का अनुभव करेंगे।

अब मेहनत करने का समय नहीं रहा, अब तो यह स्मृति-स्वरूप बनो - जो जानना था वह जान लिया, पाना था सो पा लिया ऐसा अनुभव करते हो? बाप-दादा तो हर एक के तकदीर की तस्वीर देख हर्षित होते हैं। ऐसे ही तत् त्वम्। बाप-दादा को विशेष आश्चर्य एक बात का लगता है - मास्टर सर्वशक्तिवान श्रेष्ठ तकदीरवान छोटी-छोटी उलझनों में कैसे उलझ जाते हैं जैसे कि शेर चींटी से घबरा जाता है। अगर शेर कहे ‘‘मैं चीटीं को कैसे मारूं, क्या करूँ’’ तो क्या सोचेंगे? सम्भव बात लगेगी या असम्भव लगेगी? ऐसे मास्टर सर्व शक्तिवान ज़रा-सी उलझन में उलझ जाएं तो क्या बाप को सम्भव बात लगेगी या आश्चर्य की बात लगेगी? इसलिए अब छोटी-छोटी उलझनों से घबराने का समय नहीं है, अब तो सर्व उलझी हुई आत्माओं को निकालने का समय है। समझा ये बचपन की बातें हैं। मास्टर रचयिता के लिए यह बचपन की बातें शोभती नहीं इस लिए कहा है कि सदैव उमंग, उल्लास की रास में नाचते रहो। सदा वाह मेरा भाग्य! और वाह भाग्य विधाता!! इस सूक्ष्म मन की आवाज़ को सुनते रहो। नाचने के साथ जेसे साज चाहिए ना, तो यह अनादि मन का आवाज़ सुनते रहो और खुशी में नाचते रहो।

ऐसे सदा बर्थ-राईट के नशे में रहने वाले, ईश्वरीय मस्ती में सदा रहने वाले, मेहनत से मुक्त होने वाले, लक्ष्य और लक्षण समान करने वाले, सर्व उलझनों से निकालने वाले,ऐसे श्रेष्ठ तकदीर वाले, पद्मापद्म भाग्यशाली बच्चों को यादप्यार और नमस्ते।