26-04-77   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


स्वतन्त्रता ब्राह्मणों का जन्म-सिद्ध अधिकार है

सदा स्वतंत्र रहने तथा सर्व प्राप्ति के अधिकारी, प्रकृति और माया को अधीन बनाने की युक्ति बताते हुए अव्यक्त बाप-दादा बोले:-

आवाज़ से परे रहने वाली स्थिति प्रिय लगती है, वा आवाज़ में आने वाली स्थिति प्रिय लगती है? मास्टर ऑलमाईटी अथॉरिटी (Master ALMIGHTY Authority;मास्टर सर्वशक्तिवान) इस श्रेष्ठ स्टेज पर स्थित हो? आवाज़ से परे स्थिति में स्थित हो सकते हो? ऑलमाईटी अथॉरिटी के हर डायरेक्शन को प्रैक्टिकल में लाने की हिम्मत का अभ्यास हो गया है? बाप-दादा डायरेक्शन दे कि व्यर्थ संकल्पों को एक सेकेण्ड में स्टॉप (समाप्त) करो, तो कर सकते हो? बाप-दादा कहे इस सेकेण्ड में मास्टर शक्ति का सागर बन विश्व को शक्ति का महादान दो, तो एक सैकण्ड में इस स्टेज पर स्थित हो, देने वाले दाता का कार्य कर सकते हो? डायरेक्शन मिलते ही मास्टर सर्वशक्तिवान बन विश्व को शक्तियों का दान दे सकते हो? ऐसे एवररेडी (सदा तैयार) हो? इस स्टेज पर आने से पहले अपने आप से रिहर्सल (Rehersal;पूर्व अभ्यास) करो। कोई भी इन्वेन्शन (Invention;आविष्कार) विश्व के आगे रखने से पहले अपने आप से रिहर्सल की जाती है। ऐसी रिहर्सल करते हो? इस कार्य में वा अभ्यास में सफल कौन हो सकता है? जो हर बात में स्वतंत्र होगा - किसी भी प्रकार की परतंत्रता न हो। बाप-दादा भी स्वतंत्र बनने की ही शिक्षा देते रहते हैं। आजकल के वातावरण प्रमाण स्वतंत्रता चाहते हैं। सबसे पहली स्वतंत्रता पुरानी देह के अन्दर के सम्बन्ध से है। इस एक स्वतंत्रता से और सब स्वतंत्रता सहज आ जाती हैं। देह की परतंत्रता अनेक परतंत्रता में, न चाहते हुए भी ऐसे बांध लेती है जो उड़ते पक्षी आत्मा को पिंजरे का पक्षी बना देती है। तो अपने आपको देखो स्वतंत्र पक्षी हैं वा पिंजरे के पक्षी हैं? पुरानी देह वा पुराने स्वभाव संस्कार व प्रकृति के अनेक प्रकार के आकर्षण वश वा विकारों के वशीभूत होने वाली परतंत्र आत्मा तो नहीं हो? परतंत्रता सदैव नीचे की ओर ले जाएगी अर्थात् उतरती कला की तरफ ले जायेगी। कभी भी अतीइन्द्रिय सुख के झूले में झूलने का अनुभव नहीं करने देगी। किसी न किसी प्रकार के बन्धनों में बंधी हुई परेशान आत्मा अनुभव करेंगे, बिना लक्ष्य, बिना कोई रस, नीरस स्थिति का अनुभव करेंगे। सदा स्वयं को अनुभव करेंगे - न किनारा, न कोई सहारा स्पष्ट दिखाई देगा; न गर्मी का अनुभव, न खुशी का अनुभव - बीच में भंवर में होंगे। कुछ पाना है, अनुभव करना है, चाहिए-चाहिए में मंजिल से अपने को सदा दूर अनुभव करेंगे। यह है पिंजरे के पक्षी की स्थिति। (बिजली घड़ी-घड़ी बन्द हो जाती थी) अभी भी देखो प्रकृति के बन्धनों से मुक्त आत्मा खुश रहती है। अब अपना स्वतंत्र-दिवस मनाओ। जैसे बाप सदा स्वतंत्र है - ऐसे बाप समान बनो। बाप-दादा अभी भी बच्चों को परतंत्र आत्मा देख क्या सोचेंगे? नाम है मास्टर सर्वशक्तिवान और काम है पिंजरे का पक्षी बनना? जो अपने आपको स्वतंत्र नहीं कर सकते, स्वयं ही अपनी कमजोरियों में गिरते रहते वे विश्व परिवर्तक कैसे बनेंगे। तो अपने बन्धनों की सूची (List) सामने रखो। सूक्ष्म-स्थूल सबको अच्छी रीति चैक करो। अब तक भी अगर कोई बन्धन रहा है तो बन्धनमुक्त कभी भी नहीं बन सकेंगे। अब नहीं तो कब नहीं!सदा यही पाठ पक्का करो। समझा? स्वतंत्रता ब्राह्मण जन्म का अधिकार है। अपना जन्म सिद्ध अधिकार प्राप्त करो। अच्छा।

बाप समान सदा स्वतंत्र आत्माएं, सर्व प्राप्ति के अधिकारी, प्रकृति और माया को अधीन बनाने वाले, सदा अतीन्द्रिय सुख में झूलने वाले ऐसे मास्टर सुख के सागर बच्चों को बाप-दादा का याद-प्यार और नमस्ते।

पार्टियों से-

जैसे लौकिक में हद के रचता कहलाए जाते हो, वैसे ब्राह्मण जीवन में अपने को इस प्रकृति वा माया के रचता समझ करके चलते हो? रचता कभी भी अपनी रचना के वशीभूत, अधीन नहीं होता। रचता अर्थात् मालिक। मालिक कभी अधीन नहीं होता, अधिकारी होते हैं। 63 जन्म तो पिंजरे में रहे, अब बाप आ करके पिंजरे से मुक्त करते हैं। जब मुक्त आत्मा बन गए फिर पिंजरे में क्यों जाए? अर्थात् बन्धन में क्यों आए? निर्बन्धन हो? कभी भी क्या करे - माया आ गई! चाहते नहीं थे - लेकिन हो गया; ऐसे तो नहीं बोलते या सोचते? पुरुषार्थी हैं, अभी थोड़ा बहुत तो रहेगा ही, कर्मातीत तो नहीं है - यह पुरूषार्थहीन बनाने के संकल्प है। बाप द्वारा प्राप्त हुआ खज़ाना और उस खज़ाने के सुख व आनन्द का अनुभव अभी नहीं किया तो सतयुग में भी नहीं करेंगे। सतयुग में, बाप द्वारा यह खज़ाना प्राप्त हुआ है, यह स्मृति इमर्ज नहीं होगी। अभी त्रिकालदर्शी ही बाप के सम्मुख हो; फिर बाप वानप्रस्थ में चले जायेंगे।

अभी जो पाना है, वह अभी ही पाना है। पा लेंगे, नहीं। सारा दिन खुशी में ऐसे खोये हुए रहो जो माया देख भी न सके। दूर से ही भाग जाए। जैसे आजकल की बिजली की शक्ति ऐसा करेन्ट लगाती जो मनुष्य नजदीक से दूर जाकर पड़ता। शॉक आता है ना। ऐसे ईश्वरीय शक्ति माया को दूर फेंक दे। ऐसी करेन्ट होनी चाहिए। लेकिन करेन्ट किसमें होगी? जिसका कनेक्शन ठीक होगा। अगर कनेक्शन ठीक नहीं तो करेन्ट नहीं आयेंगी। कनेक्शन (Connection;सम्बन्ध) शब्द का अर्थ यह नहीं, जिस समय याद में बैठते उस समय कनेक्शन जुट जाता, लेकिन चलते-फिरते हर सेकेण्ड कनेक्शन जुटा हुआ हो। ऐसा अटूट कनेक्शन है जो करेन्ट आये? पाण्डवों का टाईटिल (पद) है - विजयी। कल्प-कल्प के विजयी हैं, यह पक्का है। यादगार देखकर खुशी होती है ना।

रोज अमृतवेले बाप वरदान देते हैं; अगर रोज वरदान लेते रहो तो कभी भी कमज़ोर नहीं हो सकते। वरदान लेने के सिर्फ पात्र बनना। जो भी चाहिए अमृतवेले सब मिल सकता है। ब्राह्मणों के लिए स्पेशल (Special;विशेष) समय फिक्स (Fix;नियुक्त) है जैसे कितना भी कोई बड़ा आदमी हो, लेकिन फिर भी अपने फैमली (परिवार) के लिए विशेष टाईम (समय) जरूर रखेंगे। तो अमृतवेला विशेष बच्चों के प्रति है, फिर विश्व की आत्माओं प्रति। पहला चान्स बच्चों का है। तो सब अच्छी तरह से चान्स लेते हो? इसमें अलबेले नहीं बनना।

मायाजीत बच्चों को देख बाप-दादा को भी खुशी होती है। जो बार-बार चढ़ते और गिरते रहते तो बाप भी देख रहम दिल होने कारण विशेष उन आत्माओं को रहम की दृष्टि से देखते कि यह कब मायाजीत बन जाए। अच्छा।