10-06-77   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


मंत्र और यंत्र के निरन्तर प्रयोग से अन्तर समाप्त

बाप से मिली सर्व विधियों तथा सर्व शक्तियों को विश्व-कल्याण की सेवा में समार्पित करने वाले बच्चों प्रति बाबा बोले-

बाप-दादा सर्व बच्चों की वर्त्तमान स्थिति और अन्तिम स्थिति दोनों को देखते हुए कहाँ-कहाँ वर्तमान और अन्तिम स्थिति में अन्तर दिखाई देता और कहाँ-कहाँ महान् अन्तर दिखाई देता। महान् अन्तर क्यों रह जाता? लक्ष्य भी सभी का एक ही सर्व श्रेष्ठ बनने का है, और पद प्राप्त कराने वाला भी एक है, समय का वरदान और वरदाता का वरदान भी सभी को मिला हुआ है, पुरूषार्थ का मार्ग भी एक है, ले जाने वाला भी एक है, फिर भी इतना अन्तर क्यों हो जाता? कारण क्या होता है - उस कारण को देख रहे थे।

वर्त्तमान समय प्रमाण मुख्य कारण क्या देखे? एक तो जो पहले-पहले महामंत्र - मन्मनाभवका वा हम सो देवताका बाप-दादा द्वारा मिला, उस मंत्र को सदा स्मृति में नहीं रखते हो। भक्ति मार्ग में भी मंत्र को कभी नहीं भूलते। मंत्र भूलना अर्थात् गुरू से किनारे होना, यह डर रहता है। लेकिन बच्चे बनने के बाद क्या कर लिया? भक्तों माफक डर तो निकल गया और ही पुरूषार्थ में अधिकारी समझने का एडवांटेज ले बाप के दिए हुए मंत्र को वा श्रीमतको पूर्ण रीति से प्रैक्टिकल में नहीं लाते। एक तो मंत्र को भूल जाते, दूसरा मायाजीत बनने के जो अनेक प्रकार के मंत्र देते हैं उन मंत्रों को समय पर कार्य में नहीं लाते। अगर ये दोनों बातें - मंत्र और यंत्रप्रेक्टिकल जीवन के लिए यंत्र और बुद्धियोग लगाने के लिए वा बुद्धि को एकाग्र करने के लिए मंत्र को स्मृति में रखो तो अन्तरसमाप्त हो जाएगा। रोज सुनते और सुनाते हो - मन्मनाभव लेकिन स्मृति स्वरूप कहाँ तक बने हो? पहला पाठ महामंत्र है। इसी मंत्र की प्रैक्टिकल धारणा से पहला नम्बर आ सकते हो। इसी पहले पाठ के स्मृति स्वरूप की कमी होने के कारण विजयी बनने में भी नम्बर कम हो जाते हैं। मंत्र क्यों भूल जाता? क्योंकि बापदादा ने जो हर समय की स्मृति प्रति डायरेक्शन दिए हैं। उनको भूल जाते हो।

अमृतवेले की स्मृति का स्वरूप, गॉडली स्टडी (Godly Study;ईश्वरीय अध्ययन) करने की स्मृति का स्मृति स्वरूप, कर्म करते हुए कर्मयोगी रहने के स्मृति स्वरूप, ट्रस्टी बन अपने शरीर निर्वाह के व्यवहार के समय का स्मृति स्वरूप, अनेक विकारी आत्माओं के सम्पर्क में आने समय का स्मृति स्वरूप, वाइब्रेशन्स वाली आत्माओं का वाइब्रेशन परिवर्तन करने के कार्य करने समय का स्मृति स्वरूप सब डायरेक्शन मिले हुए हैं। याद हैं? जैसे भविष्य में जैसा समय होगा वैसी ड्रेस चेन्ज करेंगे। हर समय के कार्य की ड्रेस और श्रृंगार अपना अपना होगा। तो यह अभ्यास यहाँ धारण करने से भविष्य में प्रालब्ध रूप में प्राप्त होंगे। वहाँ स्थूल ड्रेस चेंज करेंगे और यहाँ जैसा समय, जैसे कार्य, वैसा स्मृति स्वरूप हो। अभ्यास है वा भूल जाता है? इस समय के आपके अभ्यास का यादगार भक्तिमार्ग में भी जो विशेष नामी-ग्रामी मन्दिर हैं वहाँ भी समय प्रमाण ड्रेस बदली करते हैं। हर दर्शन की ड्रेस अपनी-अपनी बनी हुई होती है। तो यह यादगार भी किन आत्माओं का है? जो आत्माएं इस संगमयुग पर जैसा समय वैसा स्वरूप बनने के अभ्यासी हैं।

बाप-दादा बच्चों के सारे दिन की दिनचर्या को चैक करते हैं। रिजल्ट में समय प्रमाण स्मृति स्वरूपका अभ्यास कम दिखाई देता है। स्मृति में है, लेकिन स्वरूप में आना नहीं आता है। समय होगा अमृतवेले का, जिस समय विशेष बच्चों के प्रति सर्वशक्तियों के वरदान का, सर्व अनुभवों के वरदान का, बाप समान शक्तिशाली लाईट हाऊस, माइट हाऊस स्वरूप में स्थित होने का, मेहनत कम और प्राप्ति अधिक होने का गोल्डन समय है। उस समय भी जो मास्टर बीज रूप वरदानी स्वरूप की स्मृति होनी चाहिए, उसके बजाए, समर्थी स्वरूप के बजाए, बाप समान स्थिति का अनुभव करने के बजाए, कौन-सा स्वरूप धारण करते हैं? मैजारिटी उल्हने देते या शिकायत करते हैं या दिलसिकस्त स्वरूप हो कर बैठते। वरदानी, विश्वकल्याणी स्वरूप के बजाए स्वयं के प्रति वरदान माँगने वाले बन जाते हैं। या अपनी शिकायतें या दूसरों की शिकायतें करेंगे। तो जैसा समय, वैसा स्मृति स्वरूप न होने से समर्थी स्वरूप भी नहीं बन पाते। इसी प्रकार से सारे दिन की दिनचर्या में, जैसा सुनाया कि समय प्रमाण स्वरूप धारण न करने के कारण सफलता नहीं हो पाती। प्राप्ति नहीं हो पाती। फिर कहते हैं - खुशी क्यों नहीं होती, इसका कारण क्या हुआ? ‘मंत्र और यंत्र को भूल जाते हैं।

आजकल के नामीग्रामी वा जिनको बड़े आदमी कहते हैं उनका भी अभ्यास होता है, जैसी स्टेज पर जायेंगे, वैसी ड्रेस, वैसा रूप अर्थात् अपने स्वभाव को भी उसी प्रमाण बनाएंगे। अगर खुशी के उत्सव की स्टेज पर जायेंगे तो अपना स्वरूप भी उसी प्रमाण देखेंगे जैसे स्टेज, वैसा स्वरूपके अभ्यासी होते हैं। चाहे अल्पकाल के लिए हो, बनावटी हो, लेकिन जो ऐसे अभ्यासी व्यक्ति होते हैं वे ही सब द्वारा महिमा के पात्र होते हैं। उनका है बनावटी, आपका रीयल। तो रीयल्टी और रॉयल्टी के अभ्यासी बनो। जो हो, जैसे हो, जिसके होउस स्मृति में रहो। पहले मनन करो कि हर समय वैसा स्वरूप रहा? अगर नहीं तो फौरन अपने को चैक करने के बाद चेंज करो। कर्म करने के पहले स्मृति स्वरूप को चैक करो, कर्म करने के बाद नहीं करो। कहीं भी कोई कार्य अर्थ जाना होता है तो जाने के पहले तैयारी करनी होती है, न कि बाद में। ऐसे हर काम करने के पहले स्थिति में स्थित होने की तैयारी करो। करने के बाद सोचने से कर्म की प्राप्ति के बजाए पश्चात्ताप हो जाता है। तो द्वापर से प्राप्ति के बजाए प्रार्थना और पश्चात्ताप किया लेकिन अब प्राप्ति का समय है। तो प्राप्ति का आधार हुआ - जैसा समय वैसा स्मृति स्वरूप। अब समझा कमी क्या करते हो? जानते सब हो, जानने में तो जानीजाननहार हो गये, लेकिन जानने के बाद है चलना और बनना। अगर कोई भी विस्मृति के बाद किसी को भी नॉलेज दे कि ऐसे नहीं करो वा ऐसे नहीं करना चाहिए तो क्या उत्तर देते? यही कहेंगे कि हम सब जानते हैं जो आप नहीं जानते। तो हर प्वाइंट के जानी-जाननहार बन गए हो ना। लेकिन जानी-जाननहार कमज़ोर कैसे होता है? इतना कमज़ोर जो समझते भी हैं न करना चाहिए फिर भी कर रहे हैं। तो जानने में नम्बर वन हैं ही, अब चलने में नम्बरवन बनो, समझा, अब क्या करना है? सुनना और स्वरूप बनना। हर एक सप्ताह समय के प्रमाण स्मृति स्वरूप बनने की प्रैक्टिस करना। प्रैक्टिकल अनुभूति करना। अच्छा।

सदा बाप की याद में रहते हुए हर कार्य करते हो? बाप की याद सहज है या मुश्किल है? अगर सहज बात है तो निरन्तर याद रहनी चाहिए। सहज काम निरन्तर और स्वत: होता रहेगा। तो निरन्तर बाप की याद रहती है? याद निरन्तर रहना उसका साधन बहुत सहज है। क्यों? अगर लौकिक रीति से देखा जाए - याद स्वत: सहज ही किसकी रहती है? जिससे प्यार होता है। जिस व्यक्ति व वैभव से प्यार होता, वह न चाहे भी याद आता। देह से प्यार हो गया तो देह का भान भूलता है? नहीं न। चाहते भी नहीं भूलता। क्यों? क्योंकि आधा कल्प देह के बहुत प्यारे रहे हो। जैसे लौकिक रीति भी प्यारी वस्तु या व्यक्ति स्वत: याद रहती, तो ऐसे ही यहाँ सबसे प्यारे ते प्यारा कौन? बाप है ना! इससे और कोई प्यारा हो नहीं सकता ना! तो प्यारे ते प्यारे होने के नाते से सहज और निरन्तर होना चाहिए ना? फिर भी क्यों नहीं? उसका कारण क्या? इससे सिद्ध है कि अब तक भी कहीं कुछ प्यार अटका हुआ है। पूरा प्यार बाप से नहीं लगाया है। इसलिए ही निरन्तर के बजाए, एक बाप के बजाए, दूसरे तरफ भी बुद्धि चली जाती है। तो प्यारे ते प्यारे बाप के प्यार को पहले अनुभव किया है, रूहानी प्यार का अनुभव किया है? रूह है तो रूह का प्यार भी रूहानी होगा ना? तो रूहानी प्यार का अनुभव है? अनुभव वाली बात कभी भूल नहीं सकती। रूहानी प्यार का अनुभव एक सेकेण्ड का अनुभव भी कितना श्रेष्ठ है! अगर एक सेकेण्ड के उस प्यार के अनुभव में चले जाओ तो सारा दिन क्या होगा? जैसे कोई पॉवरफुल (Powerful;शक्तिशाली) चीज़ होती तो उसकी एक बूंद भी बहुत कुछ कर लेती। ताकत कम वाली चीज़ कितनी भी बूंद डालो तो इतना नहीं कर सकती। तो रूहानी प्यार की एक घड़ी भी बहुत शक्ति देती, तब भूलाने के अभ्यास में मदद देती। तो अनुभवी हो या सिर्फ सुना या मान लिया? चैक करो जो बाप के गुण हैं, उन सर्व गुणों के अनुभवी हैं? जितना अनुभवी आत्मा, इतना मास्टर सर्वशक्तिवान। पुरूषार्थ की स्पीड ढीली होने का कारण अनुभव के बजाए सनने-सुनाने वाले हो। अनुभव में जाने से स्पीड ऑटोमेटिक तेज़ हो जाती है।

जैसे बाप सदा समर्थ है, ऐसे ही अपने को भी सदा समर्थ समझते हो? बाप कभीकभी समर्थ, कभी-कभी कमज़ोर है, या सदा समर्थ है? सदा समर्थ है ना। ऐसा समर्थ है तो सब समर्थी का दान बाप से लेते हैं। बाप समर्थी स्वरूप अर्थात् समर्थी का भी दाता है तो बच्चों को क्या बनना है? समर्थी लेने वाले या देने वाले? बाप आते ही, सर्व अधिकारी बना देते। जब आने से ही सब दे देते तो मांगने की क्या आवश्यकता? बिन मांगे मिल जाए तो मांगने की जरूरत ही क्या? मांगने से खुशी नहीं होती। जिनमें ज्ञान नहीं, वे मांगते हैं - ‘‘शक्ति दो, मदद दो’’। मदद मिलने का रास्ता - हिम्मत।’ ‘हिम्मते बच्चे मददे बाप। मांगने से मदद देनेवाला बाप नहीं। हिम्मत रखो तो मदद लाख गुणा मिलेगी। एक करना और लाख पाना - इस हिसाब को तो जानते हो न? तो हिम्मत कभी नहीं छोड़नी चाहिए। हिम्मत को छोड़ा अर्थात् प्रॉपर्टा को छोडा, प्रॉपर्टा को छोड़ा अर्थात् बाप को छोड़ा। क्या भी हो जाए, कैसी भी परिस्थति आ जाए, हिम्मत नहीं छोड़नी चाहिए। हिम्मत छोड़ी तो श्वास छोड़ी। हिम्मत ही इस मरजीवा जीवन का श्वास है। श्वास ही चला जाए तो क्या रह गया? हिम्मत है तो मूर्छित से सुरजीत हो जाएगा।साइंस की वृद्धि का कारण भी हिम्मतहै। हिम्मत के आधार से चन्द्रमा तक पहुँच जाते, दिन को रात और रात को दिन बना देते। हिम्मत रख कर चलने वाले को सहज वरदान प्राप्त हो जाता है, मुश्किल भी सहज हो जाती है, असम्भव बात भी सम्भव हो जाती है।

सभी देखते हैं ब्रह्माकुमारियाँ क्या कहती हैं और क्या करती हैं। इसलिए जो कहते हो वह करने वाले बनो। भगवान मिला’, ‘भगवान मिलाका नारा तो लगाते, लेकिन भगवान मिला तो और कुछ रह गया है क्या जो उस तरफ बुद्धि जाती? तो सर्व प्राप्तियों का अनुभव सबके आगे दिखाओ। आपका शक्ति-स्वरूप अब सब देखना चाहते हैं। अभी महारथियों को कोई प्लान बनाना है। विघ्न-विनाशक बनने का साधन कौन सा है? ड्रामा अनुसार जो होता है उसको भावी समझ आगे चलते जावे। आत्माओं का जो अकल्याण हो जाता है, तो रहमदिल के नाते क्या होना चाहिए, जिससे उन आत्माओं का अकल्याण न हो। इसकी कोई न कोई युक्ति रचनी चाहिए। वातावरण भी पॉवरफुल बनाने के लिए अब कोई प्लान चाहिए। अभी यह एक लहर चल रही है। एक जनरल विघ्न, दूसरा जिसमें अनेक आत्माओं का अकल्याण है। आजकल जो लहर है - कई आत्माएं अपने आप ही अकल्याण के निमित्त बनी हैं। उनके लिए प्लान बनाओ। महारथियों का संकल्प करना या प्लान बनाना - यह भी वातावरण में फैला है। वातावरण को चेंज करना है। आजकल इस बात की आवश्यकता है जो विघ्न-विनाशक नाम है, वह अपने संकल्प, वाणी, कर्म में दिखाई दे। जैसे आग बुझाने वाले होते हैं - वह आग लगी है तो आग बुझाने सिवाय रह नहीं सकते। कैसा भी मुश्किल काम है, प्लान बना कर आग को बुझाते हैं। आप भी विघ्न विनाशक हो। वातवारण कैसे समाप्त हो? संकल्प रचेंगे तभी वायुमण्डल बदलेगा। हल्का मत करो, यह तो शुरू से ही चलता आया है, ये विघ्न तो पड़ने हैं। झाड़ को तो झड़ना ही है। विघ्न पड़े हुए को खत्म करो। जैसे कोई स्थूल नुकसान होता हुआ देख छोड़ नहीं देते, दूर से भी भागते हो नुकसान को बचाने के लिए, नैचुरल बचाने का संकल्प आएगा। ऐसे नहीं कि यह तो होता रहता है। यह तो ड्रामा है। हर आत्मा का अपना-अपना पार्ट है। हलचल में नहीं आते, परन्तु आप सेफ्टी तथा रहम करने वाले हो - इस भावना से सोचना है। विघ्न विनाशक हो - यह लक्ष्य रखना है। जिस बात का लक्ष्य रखते हो वह धीरे-धीरे हो जाता है। सिर्फ लक्ष्य और अटेंशन चाहिए। महारथियों सिर्फ स्वयं प्रति सर्व विधियां, सर्व शक्तियां यूज़ नहीं करनी हैं, अभी यह सोच चलता है वा नहीं? चलना चाहिए। इनसे किनारा नहीं करना है। किनारा करेंगे तो इन्डिविज्युल (Individual;व्यक्तिगत) राजा बनेंगे। विश्व-महाराजन नहीं। विश्व-कल्याण की भावना रखने से विश्व-महाराजन बनेंगे।