18-01-78   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


बाप-दादा की सेवा का रिटर्न

सदा अतीन्द्रिय सुख व खुशी के झूले में झूलाने वाले सुख के सागर परमात्मा शिव बोले

आज स्मृति दिवस अर्थात् समर्थी दिवस पर सब बच्चों ने अपनी-अपनी लगन अनुसार भिन्न-भिन्न रूप से याद किया। बाप-दादा के पास चारों ओर के स्नेही सहयोगी शक्ति स्वरूप सम्पर्क वाली आत्माओं के सब रूप की याद वतन तक पहुँची। बाप-दादा द्वारा हरेक बच्चे की जैसी याद वैसा रिटर्न उसी समय मिल जाता है। जिस रूप से जो याद करता है उसी रूप से बाप-दादा बच्चों के आगे प्रत्यक्ष हो ही जाता है। जो योगी तू आत्मा है उसे योग की विधि मिल जाती है। कई बच्चे योगी तू आत्मा की बजाय वियोगी आत्माएँ बन जाती हैं। जिस कारण मिलन की बजाए जुदाई का अनुभव करते हैं। योगी तू आत्मा सदा बाप-दादा के दिल तख्तनशीन होती। दिल कभी दूर नहीं होता। वियोगी आत्माएँ वियोग के द्वारा बाप-दादा को सामने लाने का प्रयत्न करती हैं। वर्तमान को भूल बीती को याद करती हैं। इस कारण बाप-दादा कब प्रत्यक्ष दिखाई देते, कब पर्दे के अन्दर छिपा हुआ दिखाई देते। लेकिन बाप-दादा सदा बच्चों के आगे प्रत्यक्ष हैं। बच्चों से छिप नहीं सकता। जबकि बाप है ही बच्चों के प्रति, जब तक बच्चों का स्थापना के कर्त्तव्य का पार्ट है तब तक बाप-दादा बच्चों के हर संकल्प और सेकेण्ड में साथ-साथ हैं। बाप का वायदा है साथ चलेंगे- कब चलेंगे? जब कार्य समाप्त होगा। तो पहले ही बाप को क्यों भेज देते हैं। बाबा चला गया यह कह अविनाशी सम्बन्धों को विनाशी क्यों बनाते हो। सिर्फ पार्ट परिवर्तन हुआ है। जैसे आप लोग भी सेवा स्थान चेन्ज (Change) करते हो ना। तो ब्रह्मा बाप ने भी सेवा स्थान चेन्ज किया है। रूप वही, सेवा वही है। हज़ार भुजा वाले ब्रह्मा के रूप का वर्तमान समय पार्ट चल रहा है तब तो साकार सृष्टि में इस रूप का गायन और यादगार है। भुजाएं बाप के बिना कर्त्तव्य नहीं कर सकतीं। भुजाएं बाप को प्रत्यक्ष करा रही हैं। कराने वाला है तब तो कर रहे हैं। जैसे आत्मा के बिना भुजा कुछ नहीं कर सकती वैसे बाप-दादा कम्बाइन्ड (Combined) रूप की सोल (Soul) के बिना भुजाएं रूपी बच्चे क्या कर सकते। हर कर्त्तव्य में अन्त तक पहले कार्य का हिस्सा ब्रह्मा का ही तो है। ब्रह्मा अर्थात् आदि देव। आदि देव अर्थात् हर शुभ कार्य की आदि करने वाला। बाप-दादा के आदि करने के बिना अर्थात् आरम्भ करने के बिना कोई भी कार्य सफल कैसे हो सकता। हर कार्य में पहले बाप का सहयोग है। अनुभव भी करते हो, वर्णन भी करते हो फिर भी कब-कब भूल जाते हो। प्रेम के सागर में प्रेम की लहरों में क्या बन जाते हो। लहरों से खेलना है, न कि लहरों के वशीभूत हो जाना है। गुणगान करो लेकिन घायल नहीं बनो। बाप देख रहे हैं कि बच्चे मेरे साथी हैं और बच्चे जुदाई का पर्दा डाल देखते रहते हैं। फिर ढूंढने में समय गँवाते हैं। हाज़िर हजूर को भी छिपा देते। अगर आँख मिचौनी का खेल अच्छा लगता है तो खेल समझकर भले खेलो लेकिन स्वरूप नहीं बनो। बहलाने की बातें नहीं सुना रहे हैं। और ही सेवा की स्पीड (Speed) को अति तीव्र गति देने के लिए सिर्फ स्थान परिवर्तन किया है। इसलिए बच्चों को भी बाप समान सेवा की गति को अति तीव्र बनाने में बिज़ी (Busy) रहना चाहिए। यह है स्नेह का रिटर्न । बाप जानते हैं बच्चों को बाप से अति स्नेह है लेकिन बाप का बच्चों के साथ-साथ सेवा से भी स्नेह है। बाप के स्नेह का प्रत्यक्ष स्वरूप सेवा से स्नेह है। जैसे पल-पल बाबा-बाबा कहते हो वैसे हर पल बाप और सेवा हो तब ही सेवा कार्य समाप्त होगा और साथ चलेंगे। अब बाप-दादा हरेक बच्चे को लाइट-माइट हाउस (Light Might House) के रूप में देखते हैं। माइक पावरफुल (Powerful) हो गए हैं। लेकिन लाइट, माइट और माइक तीनों ही पावरफुल (Powerful) साथ-साथ चाहिए। आवाज़ में आना सहज लगता है ना। अब ऐसी पावरफुल स्टेज बनाओ जिस स्टेज से हर आत्मा को शान्ति, सुख और पवित्रता की तीनों ही लाइट्स (Light) अपनी माइट (Might) से दे सको। जैसे साकारी सृष्टि में जिस रंग की लाइट (Light) जलाते हो तो चारों ओर वही वातावरण हो जाता है। अगर हरी लाइट (Light) होती है तो चारों ओर वही प्रकाश छा जाता है। एक स्थान पर होते हुए भी एक लाइट (Light) वातावरण को बदल देती है जैसे आप लोग भी जब लाल लाइट (Light) करते हो तो ऑटोमेटिकली याद का वायुमण्डल बन जाता है। ऐसे जब स्थूल लाइट वायुमण्डल को परिवर्तन कर लेती है तो आप लाइट हाउस पवित्रता की लाइट से व सुख की लाइट से वायुमण्डल नहीं बना सकते हो? स्थूल लाइट आँखों से देखते। रूहानी लाइट अनुभव से जानेंगे। वर्तमान समय इस रूहानी लाइट्स द्वारा वायुमण्डल परिवर्तन करने की सेवा है। सुना अब सेवा का क्या रूप होना है। दोनों सेवा अब साथ-साथ हों। माइक और माइट तब सहज सफलतामूर्त्त बन जायेंगे।

पार्टियों के साथ बातचीत

1. बेहद बाप को भी हद के नम्बर लगाने पड़ते हैं। नहीं तो बाप और बच्चों का मिलना दिन-रात क्या है? आपकी दुनिया में यह सब बातें हैं। वहाँ तो सब बाप के समीप हैं। बिन्दु क्या जगह लेगी, यहाँ तो शरीर को जगह चाहिए, वहाँ समीप हो ही जायेंगे। यहाँ हरेक आत्मा समझती हम समीप आयें। जितना जो बाप के गुणों में, स्थिति में समीप उतना वहाँ स्थान में भी समीप, चाहे घर में, चाहे राज्य में। स्थिति स्थान के समीप लाती है। यही कमाल है जो हरेक समझता है मैं समीप और समीप का अनुभव भी करता है क्योंकि बेहद का बाप अखुट है, अखण्ड है इसलिए सभी समीप हो सकते हैं। सन्तुष्ट रहना और करना। यही वर्तमान समय का स्लोगन है। असन्तुष्ट अर्थात् अप्राप्ति। सन्तुष्ट अर्थात् प्राप्ति। सर्व प्राप्ति वाले कभी भी असन्तुष्ट नहीं हो सकते।

2. सदा अपने को गॉडली (Godly) स्टूडेण्ट (Student) समझते हो? गॉडली स्टूडेण्ट लाइफ (Godly Student Lift) सबसे बेस्ट (Best) गाई जाती है। ऐसे सदा बेस्ट (Best) अर्थात् श्रेष्ठ जीवन का अनुभव करते हो। जैसे स्टूडेण्ट (Student) सदा हंसते, खेलते और पढ़ते रहते और कोई बात बुद्धि में विघ्न रूप नहीं बनती ऐसे ही पढ़ना, पढ़ाना निर्विघ्न रहना, बाप के साथ उठना, बैठना, खाना पीना यह है गॉडली स्टूडेण्ट लाइफ। लौकिक में रहते भी बाप का साथ है ना। चाहे कहाँ भी शरीर रहे लेकिन मन बाप और सेवा में लगे रहे। खाना, पीना, चलना सब बाप के साथ इसकी ही महिमा है। जो प्रिय वस्तु होती उसका साथ छोड़ना मुश्किल होता है साथ रहना, योग लगना मुश्किल नहीं, योग टूटना मुश्किल - ऐसे अनुभवी को कहा जाता है गॉडली स्टूडेन्ट लाइफ। जिसको छोड़ना मुश्किल है, तोड़ना मुश्किल है लेकिन साथ रहना मुश्किल नहीं, यही बेस्ट लाइफ है। सदा हंसते रहो और गाते रहो और बाप के साथ चलते रहो। ऐसा साथ सारे कल्प में नहीं मिल सकता। संगम पर भी अगर और किसी को ढूँढो तो मिलेगा? नहीं ना। बाप ने आपको ढूँढा या आपने? ढूँढते तो आप भी थे, रास्ता रांग लिया। ढूँढना तो था बाप को, ढूँढा भाइयों को इसलिए ढूँढ नहीं सके।

3. स्वयं के पुरूषार्थ में और सेवा में सदा वृद्धि होती रहे उसका सहज साधन कौन सा है? वृद्धि का सहज साधन है अमृतवेले से लेकर विधिपूर्वक चलना तो जीवन वृद्धि को पायेगा। कोई भी कार्य सफल तब होता जब विधि से करते। ब्राह्मण अर्थात् विधिपूर्वक जीवन। अगर किसी भी बात में स्वयं के पुरूषार्थ व सेवा में वृद्धि नहीं होती तो ज़रूर कोई विधि की कमी है। चैक करो कि अमृतवेले से लेकर रात तक मन्सा-वाचा-कर्मणा व सम्पर्क विधिपूर्वक रहा अर्थात् वृद्धि हुई? अगर नहीं तो कारण को सोचकर निवारण करो। फिर दिलशिकस्त नहीं होंगे। अगर विधिपूर्वक जीवन होगी तो वृद्धि अवश्य होगी। अच्छा