24-01-78   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


निरन्तर सेवाधारी

सदा महादानी और वरदानी, निरन्तर योगी व निरन्तर सेवाधारी बनाने वाले विश्व कल्याणकारी सतगुरू शिवबाबा बोले –

आज बाप-दादा हरेक बच्चे के मस्तक बीच चमकता हुआ सितारा कहो या हीरा कहो, देखते हुए हर्षित हो रहे हैं। हरेक की चमक न्यारी और प्यारी थी। इन चमकते हुए सितारों से हर आत्मा की तकदीर की लकीरें स्पष्ट दिखाई देती हैं। बाप-दादा को नाज़ है, कैसे-कैसे बिछडे हुए बच्चे अपना भाग्य बनाने लिए कितना गुप्त और प्रत्यक्ष पुरूषार्थ कर रहे हैं। बच्चों का नशा और तीव्र पुरूषार्थ देख बाप भी बच्चों पर बलिहार जाते हैं अर्थात् बच्चों के गले का हार बन जाते हैं। जैसे हार सदा गले में पिरोये हुए होता है, वैसे बच्चों के मुख में, नयनों में, बुद्धि में बाप ही समाया हुआ है, अर्थात् बाप को अपने गले का हार बनाया है। आज बाप-दादा बच्चों के गीत गा रहे थे। आज कौन सा-गीत गाया। बच्चों की महिमा का। हर बच्चे को बाप को प्रत्यक्ष करने का उमंग देखा। सिवाय बच्चों के, बाप प्रत्यक्ष हो भी नहीं सकता। तो बाप को भी प्रत्यक्ष करने वाले कितने श्रेष्ठ ठहरे? इतना नशा या सेवा की स्मृति सदा रहे। जैसे बाप अविनाशी है, आत्मा अविनाशी है, सर्वप्राप्ति संगमयुग की अविनाशी है, ऐसे ही स्मृति या नशा भी अविनाशी है? अन्तर नहीं होना चाहिए। अन्तर आना अर्थात् मंत्र को भूलना। अगर मंत्र याद है तो नशे में अन्तर नहीं हो सकता।

आज तो बाप-दादा मिलने आये हैं सुनाया तो बहुत है लेकिन आज सुनाये हुए का स्वरूप देखने आये हैं स्वरूप में क्या देख रहे हैं? सर्विस बहुत अच्छी की, अनेक अज्ञानी आत्माओं को स्मृति अर्थात् जाग्रता दिलाई। देहली की धरनी ने सर्व ब्राह्मण आत्माओं को हलचल में लाया। अभी क्वेश्चन उठा है कि यह कौन है और यह कर्त्तव्य क्या है? जैसे सोये हुए मनुष्य को जगाया जाता है, आंख खोलते थोड़ा सा नींद का नशा होने कारण यह क्वेश्चन करता है, कौन है? क्या है ऐसे देहली निवासी अज्ञानी आत्माओं को भी क्वेश्चन ज़रूर उठा है कि यह क्या है कौन हैं? सुनने और देखने में अन्तर अनुभव किया। सब नज़र ब्राह्मणों को देख इतना ज़रूर अनुभव करती है कि कमाल है। साधारण कन्याओं माताओं ने गुप्त में ही इतनी सेना तैयार कर ली है। ऐसा कब सोचा नहीं था-समझा नहीं था। सबकी दिव्य सूरतों ने बाप-दादा की मूर्त्त को कर्त्तव्य द्वारा लोगो के सामने प्रत्यक्ष ज़रूर किया है। अभी सिर्फ हलचल मचाई है। जैसे धरनी में पहले हल चलाते हैं ना-और हल चलाते हुए बीज डाला जाता है ऐसे अपने भविष्य राजधानी में या अपनी आदि धरनी में हलचल रूपी हल चला -- कोई ताकत है, कोई शक्ति है, साधारण व्यक्तियाँ नहीं हैं, हलचल के साथ यह बीज डाला है। सम्मुख न देखते हुए भी चारों ओर यह धूम मचाई है कि यह कौन है और क्या है? गवर्न्मेण्ट के कानों तक यह आवाज़ पहुँची है। अभी इस बीज को वाणी द्वारा और याद की शक्ति द्वारा फलीभूत करना है। लेकिन अब तक जो किया वह बहुत अच्छा किया।

बाप-दादा विदेश से आये हुए बच्चों को या भारत से आये हुए बच्चों, जिन्होंने भी सेवा में अंगुली दी अर्थात् अपने राज्य का फाउन्डेशन डाला उन्हें देख हर्षित होते हैं। यह कांफ्रेंस ब्राह्मणों की अपनी-अपनी राजधानी के अधिकारी बनने का फाउण्डेशन स्टोन सैरीमनी थी। इसलिए कोई भी विदेश के सेन्टर्स की आत्माऐं या भारत में भी कोई ज़ोन रहा नहीं। यह की हुई गुप्त सेवा थोड़े समय में प्रत्यक्ष रूप दिखावेगी। अभी तो गुप्त वेश में अपना फाउन्डेशन स्टोन डाला है। अर्थात् बीज डाला है। लेकिन समय प्रमाण यही बीज फल के रूप में आप सब देखेंगे। यही दुनिया के लोग आपका आह्वान करेंगे, आजयान करेंगे। (सभी की खांसी की आवाज़ होती है।) बहुत मेहनत की है क्या? प्रकृति का प्रभाव ज्यादा हो गया है इसका फल भी मिल जावेगा। विदेशी आत्माओं को यह भी अनुभव करना बहुत ज़रूरी है कि जैसा मौसम वैसा स्वयं को चला सकें। यह भी अनुभव चाहिए। हरेक छोटे बड़े का इस सेवा में महत्व रहा। मेहनत भी अच्छी की है, पहला फाउन्डेशन यह क्वेश्चन उठा है, अब दोबारा फिर क्वेश्चन का उत्तर मिलेगा। आज बाप-दादा यह रूह रूहान कर रहे थे। आगे के लिए भी जैसे निरन्तर योगी का वरदान बाप द्वारा प्राप्त हुआ है वैसे ही निरन्तर सेवाधारी। सोते हुए भी सेवा हो। सोते हुए भी कोई देखे तो आपके चेहरे से शान्ति, आनन्द के वायब्रेशन अनुभव करें। इसलिए कहा जाता है कि बड़ी मीठी नींद थी। नींद में भी अन्तर होता है। हर संकल्प में हर कर्म में सदा सर्विस समाई हुई हो इसको कहा जाता है निरन्तर सेवाधारी। बाप और सेवा। जैसे बाप अति प्यारा लगता है-बाप के बिना जीवन नहीं, ऐसे ही सेवा के बिना जीवन नहीं। ऐसे निरन्तर योगी और निरन्तर सेवाधारी सदा विघ्नविनाशक होते हैं। बाप की याद और सेवा। यह डबल लॉक लग जाता है। इसलिए माया आ नहीं सकती। चैक करो कि सदा डबल लॉक रहता है। अगर सिंगल लॉक है तो माया के आने की मार्जिन रह जाती है। इसलिए बार-बार अटेन्शन दो कि बाप की याद और सेवा में तत्पर हैं? सदा यह याद रखो कि सर्व कर्मेन्द्रियों द्वारा बाप की याद की स्मृति दिलाने की सेवा करते रहते हैं? हर संकल्प द्वारा विश्व कल्याण अर्थात् लाइट हाउस का कर्त्तव्य करते रहते हैं? हर सेकेण्ड की पावरफुल वृत्ति द्वारा चारों ओर पावरफुल वायब्रेशन फैलाते रहते हैं अर्थात् वायुमण्डल परिवर्तित करते रहते हैं। हर कर्म द्वारा हर आत्मा को कर्मयोगी भव का वरदान देते रहते हैं? हर कदम में स्वयं प्रति पद्मों की कमाई जमा करते जा रहे हैं? तो संकल्प, समय, वृत्ति और कर्म चारों को सेवा प्रति लगाओ। इसको कहा जाता है निरन्तर सेवाधारी अर्थात् सर्विसएबुल। अच्छा

जैसे मधुबन में मेला है वैसे अन्त में आत्माओं का मेला भी होने वाला है। मधुबन अच्छा लगता है या विदेश अच्छा लगता है। मधुबन किसको कहा जाता है? जहाँ ब्राह्मणों का संगठन है वह मधुबन है तो हरेक विदेश के स्थान को मधुबन बनाओ। मधुबन बनावेंगे तो बाप-दादा भी आयेंगे। क्योंकि बाप का वायदा है कि मधुबन में आना है। तो जहाँ मधुबन वहाँ बाप-दादा। आगे चल कर बहुत वन्डर्स देखेंगे। अभी जैसे भारत की संख्या बढ़ती जा रही है वैसे थोड़े समय में विदेश की संख्या बढ़ाओ। जहाँ रहते हो वहाँ चारों ओर आवाज़ फैल जाए। क्वेश्चन उत्पन्न हो कि यह कौन है और क्या है। जब ऐसे संगठन तैयार करेंगे तो जहाँ संगठन है वहाँ बाप-दादा भी हाज़िर नाज़िर हैं।

वहाँ खुशी होती या यहाँ आने में खुशी होती। कितना भी कहो फिर भी बड़ा-बड़ा है, छोटा-छोटा है। क्योंकि डायरेक्ट साकार तन की जन्मभूमि और कर्मभूमि, चरित्र भूमि का विशेष महत्व तो है ही। तब तो भक्ति में भी कुछ नहीं होते हुए स्थान का महत्व है। मूर्ति पुरानी होगी और घर में बहुत अच्छी सुन्दर मूर्ति होगी भक्त फिर भी स्थान का महत्व देते हैं। तो स्थान का महत्व है लेकिन अपनी फुलवाडी को बढ़ाओ। मधुबन जैसा नक्शा बनाओ। जब मिनी मधुबन भी होगा तो सभी को आकर्षण होगी देखने की। अच्छा

बाप- दादा वर्तमान सेवा की थैंक्स देते हैं और भविष्य सेवा के लिए फिर स्मृति दिलाते हैं। बाप-दादा को बच्चों से ज्यादा स्नेह कहो या शुभ ममता कहो, माँ की बच्चों में ममता होती है ना, तड़फते नहीं हैं लेकिन समा जाते हैं। उदास नहीं होते लेकिन बच्चों को सम्मुख इमर्ज कर स्नेह के सागर में समा जाते हैं। बाप का स्नेह है तब तो आपको भी स्नेह उत्पन्न होता है ना। स्नेह है तब तो अव्यक्त से भी व्यक्त में आते हैं।

ऐसे स्नेह के बन्धन में बाँधने वाले, स्नेह से बाप को प्रत्यक्ष करने वाले, सेवा द्वारा विश्व के कल्याण अर्थ निमित्त बने हुए, सदा महादानी और वरदानी, ऐसे निरन्तर योगी निरन्तर सेवाधारी बच्चों को बाप-दादा का याद, प्यार और नमस्ते।