16-02-78   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


माया और प्रकृति द्वारा सत्कार प्राप्त आत्मा ही सर्वश्रेष्ठ आत्मा है

विश्व का राज्य भाग्य प्राप्त कराने वाले, माया और प्रकृति द्वारा भी सत्कार प्राप्त योग्य सर्वश्रेष्ठ आत्मा बनाने वाले रहमदिल शिव बाबा बोले: –

आज बाप-दादा हरेक बच्चे के नयनों से, मस्तक की लकीरों से विशेष बात देख रहे हैं। वह कौन सी होगी ? जानते हो ? जो दूसरों को परिचय में सुनाते हो कि बाप द्वारा क्या-क्या प्राप्ति 21 जन्मों के लिए होती है। चैलेन्ज (Challenge) करते हो ना ? एवर हैल्दी, वैल्दी और हैप्पी (Ever Healthy, Wealthy & Happy) यह तीनों ही प्राप्ति वर्तमान समय की प्राप्ति के हिसाब से 21 जन्म करते हो। आज बाप-दादा हरेक की प्राप्ति की लकीर मस्तक और नयनों द्वारा देख रहे हैं। अब तक चैलेन्ज प्रमाण सदा शब्द प्रेक्टीकल में कहाँ तक है। चैलेन्ज में सिर्फ हैल्दी वैल्दी नहीं कहते हो लेकिन एवर हैल्दी वैल्दी कहते हो। पहले वर्तमान और वर्तमान के आधार पर भविष्य है। तो सदा शब्द पर अन्डर-लाइन (Underline) कर रिज़ल्ट देख रहे थे - क्या रिज़ल्ट होगी? यह बोल वर्तमान के हैं या भविष्य के हैं। सर्विस के प्रति ऐसी स्टेज की आवश्यकता अभी है या भविष्य में है। एक ही समय पर तन, मन और धन, मन, वाणी और कर्म से सर्व प्रकार की सेवा साथ-साथ होने से सहज सफलता प्राप्त होती है। ऐसी स्टेज अनुभव करते हो? जैसे शारीरिक व्याधि, मौसम के प्रभाव में, वायुमण्डल के प्रभाव में, या खान पान के प्रभाव में, बीमारी के प्रभाव में आ जाते हैं। ऐसे मन की स्थिति पर प्रभाव पड़ता है। एवर हैल्दी के बजाय रोगी बन जाते। लेकिन एवर हैल्दी इन सब बातों में नॉलेजफुल होने के कारण सेफ (Safe) रहते हैं। इस प्रकार एवर हैल्दी, अर्थात् सदा सर्व शक्तियों के खज़ाने से, सर्व गुणों के खज़ानों से, ज्ञान के खज़ाने से सम्पन्न होंगे। क्या करूँ, कैसे करूँ, चाहते हैं लेकिन कर नहीं पाते हैं। कभी भी ऐसे शक्तियों की निर्धनता के बोल या संकल्प नहीं कर सकते। स्वयं को भी सदा सम्पन्न मूर्त्त अनुभव करेंगे और अन्य निर्धन आत्माएँ भी सम्पन्नमूर्त्त को देख उनकी भरपूरता की छत्रछाया में स्वयं भी उमंग, उत्साहवान अनुभव करेंगे। ऐसे ही एवर हैप्पी अर्थात् सदा खुश। कैसा भी दु:ख की लहर उत्पन्न करने वाला वातावरण हो, नीरस वातावरण हो, अप्राप्ति का अनुभव कराने वाला वातावरण हो, ऐसे वातावरण में भी सदा खुश रहेंगे और अपनी खुशी की झलक से दु:ख और उदासी के वातावरण को ऐसे परिवर्तन करें जैसे सूर्य अन्धकार को परिवर्तन कर देता है। अन्धकार के बीच रोशनी करना, अशान्ति के अन्दर शान्ति लाना, नीरस वातावरण में खुशी की झलक लाना इसको कहा जाता है एवर हैप्पी। ऐसी सेवा की आवश्यकता अभी है न कि भविष्य में । आज बाप-दादा हरेक के प्राप्ति की लकीर देख रहे थे कि सदाकाल और स्पष्ट लकीर है ? जैसे हस्तों द्वारा आयु की लकीर को देखते हो ना। आयु लम्बी है, निरोगी है। बाप-दादा भी लकीर को देख रहे थे। तीनों ही प्राप्तियाँ जन्म होते अभी तक अखण्ड रही हैं वा बीच-बीच में प्राप्ति की लकीर खण्डित होती है। बहुत काल रही है वा अल्पकाल। रिजल्ट में अखण्ड और स्पष्ट उसकी कमी देखी। बहुत थोड़े थे जिनकी अखण्ड थी लेकिन अखण्ड भी स्पष्ट नहीं, ना के समान। लेकिन बीती सो बीती। वर्तमान समय में जबकि विश्व सेवा की स्टेज पर हीरो और हीरोइन पार्ट बजा रहे हो उसी प्रमाण यह तीनों ही प्राप्तियाँ मस्तक और नयनों द्वारा सदाकाल और स्पष्ट दिखाई देनी चाहिए। इन तीनों प्राप्तियों के आधार पर ही विश्व कल्याणकारी का पार्ट बजा सकते हो। आज सर्व आत्माओं को इन तीनों प्राप्तियों की आवश्यकता है। ऐसे अप्राप्त आत्माओं को प्राप्त कराकर चैलेन्ज को प्रैक्टिकल में लाओ। दु:खी अशान्त आत्मायें, रोगी आत्मायें, शक्तिहीन आत्मायें एक सेकेण्ड की प्राप्ति की अंचली के लिए वा एक बूँद के लिए बहुत प्यासी हैं। आपका खुश नसीब सदा खुश अर्थात् हर्षित मुख चेहरा देख उन्हीं में मानव जीवन का जीना क्या होता है, उसकी हिम्मत, उमंग उत्साह आयेगा। अब तो जिन्दा होते भी नाउम्मीदी की चिता पर बैठे हुए हैं। ऐसी आत्माओं को मरजीवा बनाओ। नये जीवन का दान दो। अर्थात् तीनों प्राप्तियों से सम्पन्न बनाओ। सदा स्मृति में रहे यह तीनों प्राप्तियाँ हमारा जन्म-सिद्ध अधिकार हैं। तीनों ही प्रैक्टीकल धारणा के लिए डबल अण्डर लाइन लगाओ। प्रभाव डालने वाले बनो। किसी भी प्रकृति वा वातावरण के परस्थितियों के प्रभाव के वश नहीं बनो। जैसे कमल का पुष्प कीचड़ तीव्र पुरुषार्थी की निशानी सोचा और तुरन्त किया। 48 और पानी के प्रभाव में नहीं आता। ऐसे होता ही है, इतना तो ज़रूर होना ही चाहिए, ऐसा तो कोई बना है, ऐसे प्रभाव में नहीं आओ। कोई भले न बना हो लेकिन आप बनकर दिखाओ। जैसे शुद्ध संकल्प रखते हो कि पहले नम्बर में हम आकर दिखायेंगे, विश्व महाराजन् बनकर दिखायेंगे वैसे वर्तमान समय पहले मैं बनूँगा। बाप को फालो कर नम्बरवन में एगज़ाम्पल (Example) बन दिखाऊंगा। ऐसा लक्ष्य रखो। लक्ष्य के साथ लक्षण धारण करते रहो। इसमें पहले मैं। यह दृढ़ संकल्प रखो। इसमें दूसरे को नहीं देखो। स्वयं को देखो और बाप को देखो तब कहेंगे चेलैन्ज और प्रैक्टिकल समान हैं। अच्छा सुनाया तो बहुत है। और सुना भी बहुत है। इस बार तो बाप-दादा सिर्फ सुनाने नहीं आये हैं, देखने आये हैं, देखने में जो देखा वह सुना रहे हैं। बाप जानते हैं बनने तो इन आत्माओं में से ही हैं, अधिकारी आत्मायें भी आप ही हो लेकिन बार-बार स्मृति दिलाते हैं। अच्छा।

ऐसे विश्व के राज्य भाग के अधिकारी बाप द्वारा सर्व प्राप्तियों के अधिकारों, माया और प्रकृति द्वारा सत्कार प्राप्त करने के अधिकारी ऐसे सर्व श्रेष्ठ आत्माओं को बाप-दादा का याद प्यार और नमस्ते।

पार्टियों से मुलाकात

(आस्ट्रेलिया)

सर्विसएबल हो ना। सर्विसएबल अर्थात् हर संकल्प, बोल और कर्म सर्विस में साथ-साथ लगा हुआ हो। त्रिमूर्ति बाप के बच्चे हो ना तो तीनों ही सर्विस साथसाथ होनी चाहिए। एक ही समय तीनों सर्विस हो तो प्रत्यक्ष फल निकल सकता है। तो तीनों सर्विस साथ-साथ चलती है ? मन्सा द्वारा आत्माओं को बाप से बुद्धियोग लगाने की सेवा, वाणी द्वारा बाप का परिचय देने की सेवा और कर्म द्वारा दिव्यगुण मूर्त्त बनाने की सेवा। तो मुख्य सब सबजेक्ट योग, ज्ञान और दिव्यगुण तीनों ही साथ-साथ हों ऐसे हर सेकेण्ड अगर पावरफुल सर्विस करने वाले हैं तो जैसे गायन है मिनट मोटर वैसे एक सेकेण्ड में मरजीवा बनने की स्टेम्प लगा सकते हो। यही अन्तिम सेवा का रूप है। अभी वाणी द्वारा कहते बहुत अच्छा लेकिन अच्छा नहीं बनते। जब वाणी और मन्सा से और कर्म से तीनों सेवा इकट्ठी होंगी तब ऐसे नहीं कहेंगे कि बहुत अच्छा है लेकिन मुझे प्रैक्टिकल बनकर दिखाना है ऐसे अनुभव में आ जायेंगे। तो ऐसे सविसएबल बनो। इसी को ही वरदानी और महादानी की स्टेज कहा जाता है। सर्विस का उमंग उत्साह अच्छा है, बाप को भी योग्य बच्चों को देख खुशी होती है। अभी दिव्य गुणों का श्रृंगार और अधिक करना है। मर्यादा की लकीर के अन्दर रहते हुए मर्यादा पुरूषोत्तम का टाइटल लेने का अटेन्शन हो तो यह ताज और तिलक अटेन्शन देकर धारण करना।

2. सदा हर कर्म करते हुए एक्टर बन करके कर्म करते हो? स्वयं ही स्वयं के साक्षी बन चैक करो कि जो पार्ट बजाया वह यथार्थ व महिमा योग्य, चरित्र रूप में किया। हमेशा महिमा उस कर्म की होती जो श्रेष्ठ होता है। तो एक्टर बन एक्ट करो फिर साथी बन चैक करो कि महान हुआ या साधारण। जन्म ही अलौकिक है तो कर्म भी अलौकिक होने चाहिए , साधारण नहीं। संकल्प में ही चैकिंग चाहिए क्योंकि संकल्प ही कर्म में आता है। अगर संकल्प को ही चैक कर चेन्ज कर दिया तो कर्म महान होंगे। सारे कल्प में महान आत्मायें प्रैक्टिकल में आप हो, तो संकल्प से भी चैकिंग और चेंज। साधारण को महानता में परिवर्तन करो। अच्छा।

विदाई के समय

जैसे अभी खुशी में नाच रहे हो वैसे सदा खुशी में नाचते रहो। कोई भी परस्थिति आये तो परस्थिति के ऊपर भी नाचते रहो। जैसे चित्र दिखाते हैं सर्प के ऊपर भी नाच रहे हैं। यह जड़ चित्र आप सबका यादगार है। जिस समय भी कोई परस्थिति आये तो यह चित्र याद रखना तो परस्थिति रूपी सांप पर भी डान्स करने वाले हैं। यही सांप आपके गले में सफलता की माला डालेंगे। अच्छा।