14-11-78   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


वक्त की पुकार

समर्थ की स्थिति में स्थित कराने वाले सर्व समर्थ शिव बाबा अपनी लाडली संगमयुगी संतान से बोले –

सदा स्वयं को ऊँचे से ऊँचे बाप के डायरेक्ट ईश्वरीय सन्तान समझते हुए सदा समर्थ स्थिति में रहते हो ? जैसे बाप सदा समर्थ है वैसे बाप समान समर्थ बने हो? वर्तमान समय के प्रमाण जबकि आप सभी पहले से ही समय के चैलेन्ज प्रमाण एवर रैडी हो तो समय प्रमाण अब व्यर्थ का खाता नाम मात्र रहना चाहिए। जैसे कहावत है आटे में नमक के समान। ऐसे समर्थ का खाता 99% होना चाहिए। तब ही भविष्य नई दुनिया के लिए 100% सतोप्रधान राज्य के अधिकारी बन सकेंगे। अब तो भविष्य राज्य या आपका अपना राज्य आप सबका आह्वान कर रहे हैं - किन्ही का आह्वान कर रहे हैं? सर्वगुण सम्पन्न 16 कला सम्पूर्ण आत्माओं का। समय प्रमाण वर्तमान स्टेज का चार्ट निकालो ? समर्थ कितना और व्यर्थ कितना। संकल्प और समय दोनों का चार्ट रखो। सारे दिन की दिनचर्या में कौनसा खाता ज्यादा होता है। अगर अब तक भी व्यर्थ का खाता 50% या 60% है तो ऐसे रिजल्ट वाले को कौन से समय के राज्य अधिकारी कहेंगे ? क्या सतयुग के पहले राज्य के या सतयुग के मध्यकाल के या त्रेता के आदिकाल के? आदिकाल के विश्व अधिकारी वही बन सकते जिन आत्माओं का वर्तमान समय, संकल्प और समय पर अधिकार है। ऐसी अधिकारी आत्माएँ ही विश्व की आत्माओं द्वारा सतोप्रधान आदिकाल में सर्व का सत्कार प्राप्त कर सकती हैं।

पहले स्वराज्य फिर है विश्व का राज्य। जो स्वराज्य नहीं कर सकते वह विश्व के राज्य के अधिकारी नहीं बन सकते। इसलिए अभी अपने आप को चैक करो। अर्न्तमुखी बन स्वचिन्तन में रहो। जो आदि में पहले दिन की पहेली सुनाई जाती है ‘‘मैं कौन?’’ अब फिर इसी पहेली को अपने सम्पूर्ण स्टेज के प्रमाण, श्रेष्ठ पोजीशन (Position) के प्रमाण बाप द्वारा प्राप्त टाईटल्ज़ के प्रमाण चैक करो, व्हाट एम आई? (What Am I? )। यह पहेली अभी हल करनी है। अपने सारे दिन की स्थिति द्वारा स्वयं को जान सकते हो कि आदिकाल के अधिकारी हैं या सतयुग के या मध्यकाल के अधिकारी हैं? जबकि लक्ष्य है आदिकाल के अधिकारी बनने का तो उसी प्रमाण अपने वर्तमान को सदा समर्थ बनाओ। ज्ञान के मनन के साथ अपनी स्थिति की चैकिंग भी बहुत ज़रूरी है। हर दिन के जमा हुए खाते में स्वयं से सन्तुष्ट हैं या अब तक भी यही कहेंगे कि जितना चाहते हैं उतना नहीं। अब तक ऐसी रिज़ल्ट नहीं होनी चाहिए। जो स्वयं से संतुष्ट नहीं होगा वह विश्व की आत्माओं को संतुष्ट करने वाला कैसे बन सकेगा। सतयुग के आदिकाल में आत्मायें तो क्या प्रकृति भी संतुष्ट है, क्योंकि सम्पूर्ण हैं - तो संतुष्टमणी बनो। समझा अभी क्या करना है।

सेवा के साधन जो अब तक हैं उसी प्रमाण सेवा तो कर ही रहे हैं - लगन से कर रहे हैं, मेहनत भी बहुत करते हैं, उमंग उल्लास भी बहुत अच्छा है, लेकिन सेवा के साथ विश्व की सेवा और स्वयं की सेवा हो। विश्व के प्रति भी रहमदिल और स्वयं प्रति भी रहमदिल बनो। दोनों साथ-साथ चाहिए। समय का इन्तज़ार नहीं करना है कि तब तक सम्पन्न हो ही जायेंगे। जब आत्माओं को कहते हो कि कल नहीं लेकिन आज, आज नहीं अब करो, ऐसे पहले स्वयं से बात करो - ऐसे एवर रैडी (Eveready) हैं? सदा यह स्मृति रहती है कि अब नहीं तो कब नहीं। ऐसे स्वयं से रूह रूहान करो। अच्छा। सुनाया तो बहुत है - अब बाप क्या चाहते हैं अब सुनाने का समय नहीं लेकिन देखने का समय है। बाप एक-एक रतन को सम्पन्न और सम्पूर्ण देखना चाहते हैं। समझा।

ऐसे इशारे से समझने वाले, सुनने और करने की समानता में लाने वाले सदा समर्थ बाप की समर्थ याद में रहने वाले, समर्थ स्थिति में होने वाले सफलता मूर्त्त श्रेष्ठ आत्माओं को बाप-दादा का यादप्यार और नमस्ते।

दीदी जी के साथ बातचीत

महारथियों को देख सब खुश होते हैं, क्यों खुश होते हैं? क्योंकि महारथी साकार बाप के समान सबके आगे साकार रूप में सम्पन्न व श्रेष्ठ हैं। इसलिए महारथियों को बाप भी देख हर्षित होते हैं क्योंकि समान हैं। तो समान को देख हर्ष होता है। संगम पर ही बाप बच्चों को सेवा के तख्तनशीन बनाते हैं - यह संगमयुग की रसम अपने हाथों से भविष्य में भी तख्तनशीन बनायेंगे। स्वयं गुप्त रूप में तख्तनशीन बच्चों को देखते भी हैं, सहयोगी भी हैं लेकिन प्रैक्टीकल तख्तनशीन बच्चों को ही बनाते हैं। यह रसम अभी से आरम्भ होती है।

करन करावनहार है - तो करनहार का भी पार्ट बजाया और अभी करावनहार का भी पार्ट बजा रहे हैं। बाप का तख्त होने के कारण तखतनशीन होने में बोझ अनुभव नहीं होता, क्योंकि बाप का तख्त है ना। और बाप ने स्वयं तख्तनशीन बनाया। इस निमित्त बनने का तख्त कितना सहज है। तख्त की विशेषता है, इस तख्त में ही विशेष जादू भरा हुआ है, जो मुश्किल, सेकेण्ड में सहज हो जाती है। इस निमित्त बनने का तख्त समय प्रमाण, ड्रामा प्रमाण सर्व श्रेष्ठ तख्त और अति सफलता सम्पन्न तख्त गाया हुआ है। जो भी तख्त पर बैठे सफलता मूर्त्त। यह अनादि आदि वरदान है तख्त को। इस तख्त के तख्तनशीन भी बड़े गुह्य रहस्य और राजयुक्त आत्माएँ ही बनती हैं। बाप-दादा महारथियों को वर्तमान समय भी डबल तख्तनशीन देखते हैं। दिलतख्त तो है ही लेकिन यह निमित्त बनने का तख्त बहुत थोड़ों को प्राप्त होता है। यह भी राज़ बड़े गुह्य हैं। अच्छा।

मधुबन निवासी भाईयों से

मधुबन निवासियों ने बहुत सुना है बाकी सुनने को कुछ रहा है? सन्मुख सुना, रिवाइज़ कोर्स सुना अब बाकी क्या सुनने को रहा ? जितने तीर भरे हैं उतने छोड़े हैं? मधुबन निवासियों को तीन प्रकार की सर्विस का चान्स (Chance) है - किस प्रकार की सर्विस का विशेष चान्स है ? विशेष मधुबन निवासियों को सहज सर्विस का साधन यह वरदान भूमि या चरित्र भूमि का आधार है, इस भूमि के चरित्र की महिमा अगर किसी आत्मा को सुनाओ तो जैसे गीता सुनने में इतना इन्ट्रेस्ट (Interest) नहीं लेते जितना भागवत सुनने में, तो ऐसे प्रैक्टीकल चरित्र सुनाने का साधन मधुबन वालों को है। इस स्थान और चरित्र का भी परिचय दो तो आत्माएँ खुशी में नाचने लगेंगी। जब भी कोई आते हैं तो विशेष चरित्र भूमि को जानने और अनुभव करने आते हैं तो मधुबन निवासी भागवत द्वारा सर्विस कर सकते हैं कि यहाँ ऐसा होता है। तो आप लोग धरनी की विशेषता का महत्व सुनाने के निमित्त हो। जिस नज़र से सब आत्माएँ एक-एक रतन को देखती हैं उसी तरह उन्हें बाप की तरफ आकर्षित करो तो कितनी सेवा है? यहाँ बैठे हुए प्रजा बन सकती है या फैमिली बन सकती है। जैसे ताजमहल में गाइड्स कितने रमणीक ढंग से ताजमहल की हिस्ट्री सुनाते हैं ऐसे चरित्र सुनाओ तो उन्हें सहज ही याद रहेगी और उस सेवा का फल आपको मिल जायेगा। जो भी आवे उसको खुशी-खुशी से, उमंग से, लगन से, महत्व में स्थित हो करके अगर महत्व सुनाओ तो बहुत अधिक फल ले सकते हो - ऐसी सेवा करने से बहुत खुशी रहेगी। तो सेवा भी रही, याद भी रही और प्राप्ति भी रही और क्या चाहिए? ऐसे लकी हो मधुबन निवासी।

इस वर्ष में विशेष स्वयं और सेवा का बैलेन्स (Balance) चाहिए। सेवा के साथ स्वयं की पर्सनेलिटी (Personality) और प्रभाव या धारणामूर्त्त का प्रभाव सोने पर सुहागे का काम करेगा। कोई भी देखे तो अनुभव करे ज्ञानमूर्त्त और गुणमूर्त्त। दोनों की समानता दिखाई दे। अभी तक आवाज़ आती है कि ज्ञान ऊँचा है लेकिन चलन ऐसी नहीं। तो दोनों के बैलेन्स का अटेन्शन रखने से प्रजा व वारिस दिखाई देंगे। सर्विस के साधन तो बहुत हैं - अभी धर्म नेताओं तक नहीं पहुँचे हैं, जो लास्ट युद्ध है, जिससे चारों ओर आवाज़ फैल जाए। यह होगा ज्ञान की बात से। जैसे गीता के भगवान की बात से नाम बाला होना है। इसके लिए छोटे-छोटे ग्रुप बनाकर चारों ओर पहले कुछ अपने सहयोगी बनाओ, स्टूडेण्टस कम्पीटीशन (Student Competition) रखी ना, फिर उसमें से एक चुना। ऐसे हर स्थान पर छोटे-छोटे ग्रुप बनें और फिर उन सबका एक स्थान पर संगठन हो फिर नाम बाला होगा। यह वर्ष है ही नाम बाला करने का वर्ष। अच्छा।

इस मुरली की विशेष बातें –

1. संकल्प और समय दोनों का चार्ट रखो। आदि काल के विश्व अधिकारी वही बन सकते हैं जिन आत्माओं का वर्तमान समय संकल्प और समय पर अधिकार है।

पहले है ‘‘स्वराज्य’’ फिर है विश्व का राज्य। जो स्वराज्य नहीं कर सकते वह विश्व के राज्य के अधिकारी नहीं बन सकते।

2. ज्ञान के मनन के साथ अपनी स्थिति की चैकिंग भी बहुत ज़रूरी है। सेवा के साथ विश्व की सेवा और स्वयं की सेवा हो। विश्व के प्रति भी रहम दिल और स्वयं के प्रति भी रहम दिल बनो।