19-12-78   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


रीयल्टी ही सबसे बड़ी रॉयल्टी है

सर्व की तकदीर बनाने वाले, भाग्य विधाता, शिव बाबा अपने होवनहार तकदीरवान बच्चों प्रति बोले: -

आज बाप-दादा बच्चों को देख हर्षित होते हैं क्योंकि बाप जानते हैं कि यही बच्चे होवनहार हैं, हर बच्चें के वर्तमान और भविष्य तकदीर को देखते हुए बाप-दादा हर बच्चे की तस्वीर में तकदीर देखते हैं। ब्राह्मणों के वर्तमान फीचर्स से फ्यूचर को देखते हैं। हरेक बच्चा स्वर्ग का अधिकारी है। बच्चों के अधिकार को देख बाप-दादा को भी ईश्वरीय फखुर है कि सारे विश्व में ऐसे तकदीरवान बच्चे किसी के हो नहीं सकते। ऐसा फखुर बच्चों को भी रहता है कि हमारे जैसी तकदीर किसी की हो नहीं सकती।

बाप-दादा आज विशेष रूप से हर बच्चे में एक विशेषता देख रहे हैं कि हर एक में रीयल्टी (Reality) की रायल्टी (Royalty) कहाँ तक आई है! रीयल्टी ही रायल्टी है। इससे बड़ी रायल्टी और कोई नहीं है। रायल्टी किन बातों की वा रीयल्टी किस बात की ? पहले अपने स्वरूप की रीयल्टी। अगर रीयल्टी अर्थात् अपने असली स्वरूप की सदा स्मृति है तो स्वरूप की रीयल्टी से इस स्थूल सूरत में भी अलौकिक रायल्टी नज़र आयेगी। जो भी देखेंगे उनके मुख से यही निकलेगा कि यह इस दुनिया के नहीं हैं लेकिन अलौकिक दुनिया के फरिश्ते हैं अथवा यह स्वर्ग का कोई देवता उतरा है। ऐसे रायल्टी से अनुभव होगा। दूसरी बात स्मृति में भी रीयल्टी अर्थात् एक बाप दूसरा न कोई। इस रीयल्टी की स्मृति से कर्म में वा बोल में रायल्टी दिखाई देगी। हर कर्म सत्य अर्थात् श्रेष्ठ होने के कारण जो भी सम्पर्क में आयेंगे उन्हें हर कर्म में बाप समान चरित्र अनुभव होंगे। हर बोल में बाप के समान अथॉरिटी और प्राप्ति की अनुभूति होगी अर्थात् हर बोल समर्थ अर्थात् फल देने वाला होगा। जिसको कहा जाता है सत-वचन। ऐसे कर्म और बोल में रीयल्टी की रायल्टी होगी। सम्पर्क अर्थात् संग रीयल होने के कारण पारस का कार्य करेगा। जैसे पारस लोहे को परिवर्तन कर देता है - ऐसे रीयल्टी की रायल्टी वाली आत्मा का संग असमर्थ को समर्थ बना देगा अर्थात् नकली को असली बना देगा। ऐसी आत्मा के रीयल और रायल नयन अर्थात् दिव्य दृष्टि जादू की वस्तु समान काम करेंगे। अभी-अभी मुक्ति के स्टेज की अनुभूति, अभी-अभी जीवनमुक्ति के स्टेज की अनुभूति, अभी-अभी लास्ट अन्तिम जन्म, अभी-अभी फर्स्ट जन्म का स्पष्ट साक्षात्कार करायेंगे। अभी-अभी अति दु:खी स्टेज, अभी-अभी अति सुखमय जीवन का अनुभव करायेंगे। हम सो-सो हमके जादू के मन्त्र का अनुभव करायेंगे अर्थात् 84 जन्मों का ही ज्ञान स्मृति में दिलायेंगे। अभी-अभी स्थूल वतन, संगम युग के सुख की अनुभूति करायेंगे, अभी-अभी सुक्ष्म फरिश्ते स्वरूप का अनुभव करायेंगे। अभी-अभी परमधाम निवासी आत्मिक स्वरूप का अनुभव करायेंगे, अभी-अभी स्वर्ग के सुखमय जीवन का अनुभव करायेंगे। एक सेकेण्ड में इन चारों ही धामों का अनुभव करायेंगे, यह है जादू मन्त्र।

ऐसे रायल्टी वाले सदा सर्व कर्म इन्द्रियों द्वारा कोई न कोई प्राप्ति कराने वाले अर्थात् देने वाले दाता होंगे। ऐसे रायल्टी वाले किसी भी प्रकार के मायावी आकर्षण तरफ संकल्प द्वारा भी झुकेंगे नहीं अर्थात् प्रभावित नहीं होंगे। जैसे आजकल की रायल्टी वाली आत्मायें सदा भरपूर रहने के कारण यहाँ वहाँ किसी के अधीन नहीं होगी। ऐसे सदा बुद्धि भरपूर रहने के कारण, स्थूल में कहते हैं पेट भरा हुआ है और यहाँ बुद्धि हर खज़ाने से भरपूर होगी, इसीलिए कोई भी व्यक्ति वा वैभव के तरफ जो अल्पज्ञ और अल्पकाल के हैं, वहाँ बुद्धि नहीं जायेगी अर्थात् अप्राप्त कोई वस्तु नहीं होगी -जो लेने के लिए कहाँ नज़र जाए। उनके नयनों में सदा बिन्दु रूप बाप ही समाया हुआ होगा। यह है रायल्टी अर्थात् रीयल्टी। यह देह भी रीयल नहीं, देही रीयल है। तो अपने आप से पूछो रीयल्टी की रायल्टी कहाँ तक आई है। नम्बरवार होगी ना मेरा नम्बर कौन सा है -यह चैक करो। फर्स्ट डिवीज़न में हैं वा सेकेण्ड में हैं, थर्ड तो नहीं कहेगे ना। पंजाब का नम्बर कौन सा है?- सब फर्स्ट डिवीज़न वाले हैं ना? अगर सेकेण्ड़ में भी हो तो आज फर्स्ट में आ जाना। सेकेण्ड नम्बर वालों को भी संगमयुग में भी सर्व प्राप्ति की अनुभूति नहीं होगी। कोई प्राप्ति होगी कोई नहीं होगी - जैसे कई कहते हैं शान्ति की अनुभूति तो होती है लेकिन अतिइन्द्रिय सुख का अनुभव नहीं है। खुशी की अनुभूति होती है लेकिन शक्ति रूप की अनुभूति नहीं होती। फर्स्ट ड़िवीज़न वाले को हर गुण की अनुभूति हर शक्ति की अनुभूति होगी। अगर कोई भी कमी है अर्थात् 14 कला है सेकेण्ड ड़िवीज़न। ऐसी आत्मायें अभी अभी श्रेष्ठ प्राप्ति से वंचित रह जाती और भविष्य में भी सतोप्रधान प्राप्ति के बजाय सतो प्राप्ति करती हैं। तो सेकण्ड डिविजन हो गये ना। फर्स्ट डिवीजन वाले राज्य के, प्रकृति के सतोप्रधानता का सुख लेंगे और वह सतो का सुख लेगे, सतोप्रधान का नहीं। तो अब सोचो कि क्या लेना है? सतोप्रधानता की प्राप्ति वा सतो की प्राप्ति। सर्व प्राप्ति की अनुभूति वा कोई-कोई प्राप्ति की अनुभूति, खुद ही अपना जज बनो- तो धर्मराज के पास जाना नहीं पड़ेगा। समझा - रीयल्टी ही रायल्टी कैसे है। फिर सुनायेगे कि रायल्टी का विस्तार और भी क्या है। अच्छा

ऐसे सदा रॉयल्टी में रहने वाले, सदा सर्व प्राप्ति के अनुभूति स्वरूप, हर कर्म चरित्र अर्थात् श्रेष्ठ करनेवाले, एक सेकण्ड में चारों धाम का अनुभव करानेवाले, ऐसे श्रेष्ठ तकदीरवान बच्चों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।

दीदी जी से बातचीत

भविष्य राज्य की रायल फैमली अभी से प्रत्यक्ष होती जायेगी ना। जो बापदादा के बोल सुने हैं कि अन्त में सब स्पष्ट साक्षात्कार होगा - तो क्या वह दिव्य दृष्टि से होगा? साक्षात्कार में कि साक्षात रूप में होगा? सबको दिव्य दृष्टि से साक्षात्कार होने का ड्रामा तो और होगा लेकिन यह साक्षात रूप में साक्षात्कार होगा। अभी जल्दी ही हरेक आत्मा अपने रीयल्टी द्वारा रायल्टी का रूप प्रत्यक्ष रूप में दिखायेगी - जिसमें यह किसको भी क्वेश्चन नहीं होगा कि यह होगा या नहीं होगा। अभी तो आपस में अगर नम्बर भी निकालो तो फिर भी क्वेश्चन उठते हैं, यह कैसे यह ऐसे! लेकिन अभी जल्दी ही प्रत्यक्ष देखेंगे। राजा कौन-रानी कौन वा रायल फैमली कौन! इसके भी पुरूषार्थ की गति बड़ी गहन है। समान होते हुए भी चाहे अभी प्लस में भी दिखाई देते हों- फिर भी पुरूषार्थ की गति गुह्य होने के कारण नम्बर वन टू हो ही जायेगा। अभी हरेक के पुरूषार्थ की विशेषता दिखाई भी देती है लेकिन जैसे कोई धूल के अन्दर हीरा चमकता हो - कभी स्पष्ट दिखाई देगा, कभी छिपा हुआ नज़र आयेगा- तो अभी के पुरूषार्थ में चमकते हुए हीरे नज़र ज़रूर आते हैं लेकिन ऐसे दिखाई देते हैं, और फिर अन्त में अन्त अर्थात् लास्ट घड़ी नहीं संगम का अन्त अर्थात् कुछ समय पहले से ही प्रत्यक्षता ज़रूर होगी। प्रत्यक्षता का पार्ट बजाते हुए अपना वर्तमान माला के मणके का नम्बर और भविष्य राज्य का स्वरूप दोनों ही प्रत्यक्ष होंगे। लेकिन अभी थोड़ा सा रीस की धूल का पर्दा है। अभी रेस में चलते-चलते कभी रेस के बजाए रीस में बदल जाता है, यही धूल का पर्दा चमकते हुए हीरों को छिपा देता है और जब यह पर्दा हट जायेगा तो छिपे हुए हीरे अपने प्रत्यक्षके सम्पन्न स्वरूप में आ जायेंगे- यह पर्दा समाप्त हो जायेगा। सम्पन्नता का साक्षात्कार होने से कोई में संकल्प ही नहीं उठेगा कि यह भी यह नम्बर ले सकते हैं। अर्थात् रीस का पर्दा खत्म हो जायेगा और सम्पन्न हीरे चमकते हुए स्टेज पर प्रत्यक्ष हो जायेंगे। जैसे साकार में मम्मा बाबा की तरफ कोई की रीस नहीं हो सकती ना - ऐसे नम्बरवार इतने स्प्ष्ट होंगे जो कोई रीस कर हीं नहीं सके। ऐसे रायल फैमली अभी से ही रायल्टी में दिखाई देगी। अभी तो 8 नम्बर भी नहीं निकाल सकते ना! अभी फिर भी क्वेश्चन मार्क आ जाता है फिर फुलस्टाप आ जायेगा। अभी स्पष्ट रूप में 8 नम्बर निकालने में भी क्वेश्चन उठता है रखें ना रखें।

अभी तीव्र पुरूषार्थ की पालिश हो रही है, पालिश में थोड़ी बहुत कमी छिप जाती है। जब 8 नम्बर हैं तो कुछ तो कमी होगी ना पहले से। लेकिन इतनी नहीं होगी जो स्पष्ट दिखाई दे इसलिए पालिश हो रही है। अभी तो तीव्र पुरूषार्थ के प्रोग्राम का संकल्प है। फैमली में तो बहुत आ जायेंगे। अच्छा। आज तो पंजाब का टर्न है। जैसा नाम है वैसा ही काम है ना! शेर की विशेषता क्या होती है? शेर की विशेषता है अकेले होते हुए भी अपने को बादशाह समझते हैं अर्थात् निर्भय होते हैं। तो पंजाब के निवासी ऐसे निर्भय हैं ना। किसी भी प्रकार के माया के रूप से डरने वाले नहीं। ऐसा है ना पंजाब!

पंजाब की धरनी का विशेष महत्त्व क्या है - जानते हो? पंजाब ने स्थापना के आदि में अपना विशेष शक्ति रूप का दृश्य अच्छा दिखलाया। अनेक प्रकार की हलचल में भी अचल रहे हैं। क्योंकि पंजाब की धरनी विशेष धर्म की धरनी है, ऐसे धर्म की धरनी में आदि सनातन धर्म की स्थापना करना इसमें सामना करके विजयी बने हैं। पंजाब की धरनी की विशेषता चरित्र में है कि चारों ओर हंगामे की आग के बीच थोड़े से बच्चे विजयी बनकर पंजाब में भी विजय का झण्डा लहराया। हिंसक धरनी के ऊपर अहिंसक की विजय हुई। तो यह भी पंजाब की धरनी का चरित्र विशेष रूप में गाया जाता है। दूसरी विशेषता - पंजाब में नदियों का गायन ज्यादा है - ऐसे ही पंजाब से ज्ञान गंगायें भी अधिक निकली हैं। आदि समय के हिसाब से पंजाब से ज्ञान नदियाँ भी ज्यादा निकली हैं तो पंजाब की धरनी कन्या दान में श्रेष्ठ निकली अर्थात् महादानी निकली। तीसरी भी विशेषता है - पंजाब की भूमि में सेवा के विस्तार की भूमि भी महत्त्वपूर्ण है जैसे नदियों का पानी चारों ओर विस्तार से फैला हुआ है वैसे पंजाब में भी सेवाकेन्द्रों का विस्तार अच्छा है। जगह-जगह पर तीर्थ स्थान बनाये हुए हैं।

महिमा सुन करके खुश हो गये, सदा ही ऐसे खुश रहो। पंजाब का विस्तार देख बाप-दादा खुश होते हैं - अभी क्या करना है? पंजाब की धरनी से नाम से काम करने वाली, सार वाली आत्मायें निकालो। जिसका नाम सुनते अनेक आत्मायें अपना भाग्य बना सके। ऐसी विशेष सेवा अभी और भी करनी है। सिर्फ सेवा निमित्त ऐसी विशेष आत्माओं का भी पार्ट है। तो ऐसी आत्माओं को अब सम्पर्क सम्बन्ध में लाओ। समझा क्या करना है! बड़े आवाज़ से ललकार करो - छोटे आवाज़ से करते हो तो छोटा आवाज़ वहाँ के गुरूद्वारों के आवाज़ में छिप जाता है। अच्छा।

पार्टियों से मुलाकात

बाप-दादा हर बच्चे को सर्वश्रेष्ठ आत्मा के रूप में देखते हैं, क्योंकि विश्व के अन्दर कितनी भी श्रेष्ठ आत्मायें हैं लेकिन आपके आगे क्या है? तुच्छ अर्थात् कुछ भी नहीं। जो आत्मायें अपने अविनाशी बाप की विशेष रचना-स्वर्ग के अधिकारी नहीं बन सकती - तो क्या हुई? जो बच्चा बाप के प्रॉपर्टी के अधिकार से वंचित रह जाए- तो वह क्या हुआ? तो कितनी भी आजकल की नामीग्रामी आत्मायें हैं लेकिन आपवे श्रेष्ठ प्राप्ति के आगे कुछ भी नहीं है। तो सबसे श्रेष्ठ हुए ना। आज की दुनिया के प्रेज़ीडेन्ट भी आपको कहें ब्रह्माकुमार के बजाए प्रेज़ीडेन्ट बन जाओ तो बनेंगे? नहीं ना - क्योंकि जानते हो कि कहाँ आज की पुरानी दुनिया का अल्पकाल का मर्तबा और कहाँ सदाकाल का मर्तबा। तो संकल्प मात्र भी बुद्धि वहाँ नहीं झुक सकती। क्योंकि जब राजाओं के राजा बन रहे हो तो यह क्या है? यह तो बेताज भी बादशाह नहीं हैं, बादशाह में तो पावर होती है-वह कहाँ है? एक बेताज दूसरा बिना शक्ति, तो आंख नहीं डूबेगी ना। ऐसी श्रेष्ठता वा महानता सदा स्मृति में रहे। सदा स्मृति स्वरूप रहने से सर्व प्राप्ति का अनुभव कर सकेंगे। थोड़े में राज़ी होने वाले नहीं, थोड़े में राज़ी कौन होते हैं? भक्त। तो भक्त तो नहीं हो ना - अधिकारी हो ना। अधिकारी को अपने सर्व अधिकार का अनुभव होता, आज घर में रहने वाले भी अपने पूरे अधिकार माँगते हैं, नौकर भी पूरे अधिकार माँगेगा - अगर थोड़ा भी कम होगा तो कहेगा मेरा अधिकार दो। तो बाप तो सर्व अधिकार देने वाले हैं, तो सर्व अधिकार प्राप्त करो। भक्त नहीं लेकिन अधिकारी बनो। भक्त आत्मा जब तक ब्राह्मण न बने तब तक स्वर्ग में नहीं आ सकते, भक्त से ब्राह्मण बनना पड़े, फिर ब्राह्मण से देवता बने। भक्तपन का अंशमात्र भी न हो - इसको कहा जाता है सम्पूर्ण अधिकारी। भक्त और भगवान का मिलन, बच्चे और बाप का मिलन - दोनों में रात दिन का फर्क होता है ना। तो कौन सा मिलन अच्छा लगता है? जब माया के वशीभूत हो जाते हो तो किस रूप में मिलते हो? ‘‘कृपा करो, आशीर्वाद करो, शक्ति दो, क्या करूँ, कैसे करूँ कोई रास्ता दो, हमारे पास माया को न भेजो’’ - यह कमजोरी हैं ना। महावीर कहे दुश्मन न आये और मैं महावीर हूँ, तो उसको क्या कहेंगे? महावीर तो दुश्मन का आह्वान करते हैं कि आओ और हम विजयी बनें। महावीर पेपर को देख घबरायेंगे नहीं, चैलेन्ज करेंगे क्योंकि त्रिकालदर्शी होने के कारण जानते हैं कि हम कल्प-कल्प के विजयी हैं। अच्छा

राजस्थान और इन्दौर जोन की पार्टियों के साथ बात चीत बाप-दादा की पर्सनल मुलाकात –

राजस्थान को वरदान बहुत मिला हुआ है। पहले-पहले सेवा का साधन गिफ्ट में राजस्थान को मिला। पहला-पहला तीर्थस्थान तो राजस्थान ही हुआ। बाप दादा दोनों का राजस्थान को वरदान है। वरदान फल तो ज़रूर देगा हीं लेकिन किस समय देगा वह समय देख रहे हैं। मेले के साथ-साथ विशेष रूप से ऐसा वातावरण बनाओ जैसे चुम्बक सबको अपने तरफ आकर्षित कर लेता है, ऐसे रूहानी वातावरण, रूहों को अपने तरफ आकर्षित करे, यह है मेले की सफलता। विशेष अटेन्शन रखते हुए हर वर्ग की आत्माओं को इस मेले के साधन द्वारा सम्पर्क में लाना। साधन बहुत आकर्षण वाला है,साधन का पूरा लाभ उठाओ, सबमें आवाज़ फैल जाये। मेहनत करने से फल ज़रूर निकलेगा। एक दिन आयेगा ज़रूर जो राजस्थान की संख्या कमाल की लिस्ट में आयेगी - सिर्फ इसके लिए परोपकारी बनो। परोपकारी से विश्व उपकारी बन जायेंगे। बाप-दादा की विश्व धरनी जिस पर बाप की नज़र पड़ी वह फल अवश्य देगी। राजस्थान की महिमा बाप जानते हैं, राजस्थान में रहने वाले कम जानते हैं, बाप जानते हैं कि क्या होने वाला है। होगा फिर सुनना! मुख्य केन्द्र भी राजस्थान में है ना तो आसपास भी ज़रूर आकर्षण के केन्द्र बनेंगे। वह भी टाइम आयेगा। साकार बाप की पहली-पहली नज़र कहाँ गई? राजस्थान पर, तो कोई तो विशेषता होगी ना। समय जब पहुँच जाता है, पर्दा खुल जाता है और दृश्य सामने आ जाता। अच्छा।

टीचर्स से मुलाकात (म.प्र.)

टीचर्स का विशेष कर्त्तव्य ही है बाप की याद और सेवा। तो सभी टीचर्स ने हिम्मत अच्छी दिखाई है, मेहनत भी अच्छी कर रहे हैं, और मेहनत का फल भी दिन प्रतिदिन फलीभूत होता जायेगा। मध्य-प्रदेश को वरदान है फलता फूलता रहेगा। क्योंकि एकमत और एकरस अवस्था में रहते हुए एक ही कार्य में लगने वाली आत्मायें- स्वयं भी सदा प्रफुल्लित रहते हैं और धरनी को भी फलदायक बनाते हैं। जैसे आजकल साइन्स द्वारा अभी-अभी बीज ड़ाला अभी-अभी फल मिला। पहले से तीव्रगति है जो बीज डाला वह प्राप्त हो जाता है। ऐसे ही अपने साइलेन्स के बल से सहज और तीव्रगति से प्रत्यक्षता भी देखेंगे, हाई जम्प लगाने वाले हो ना। पत्थर तोड़ने वाले तो नहीं। जैसी निमित्त आत्मायें होती हैं, वैसे वायुमण्डल भी बनता है, स्वयं सहयोगी हैं तो आने वाली आत्माओं को भी सहयोगी बना देती। स्वयं उलझन में होंगे तो आने वाली आत्माओं में भी वही वायब्रेशन फैलता है। तो निमित्त आत्माओं को सदा निर्विघ्न एक बाप की लगन में मगन रहने वाले, इसी स्थिति में रहना है। अच्छा।

प्रश्न:- किस धारणा के आधार से सदा सुख के सागर में समाये रहेंगे?

उत्तर:- अन्तर्मुखी बनो - अन्तर्मुखी सदा सुखी। इन्दौर निवासी अर्थात् अन्तर्मुखी सदा सुखी। बाप सुख का सागर है तो बच्चे भी सुख के सागर में लवलीन रहते होंगे। सुखदाता के बच्चे स्वयं भी सुख दाता। सर्व आत्माओं को सुख का खज़ाना बाँटने वाले। जो भी आवे जिस भावना से आये वह भावना आपसे सम्पन्न करके जाए - सर्व सम्पन्न मूर्तियाँ बनो। जैसे बाप के खज़ाने में अप्राप्त कोई वस्तु नहीं, वैसे बच्चे भी बाप समान तृप्त आत्मा होंगे।

प्रश्न:- स्थाई नशें में कौन रह सकते हैं? स्थाई नशे में रहने वालों की निशानी क्या होगी?

उत्तर:- स्थाई नशे में वही रह सकते जो बाप-दादा के दिल तख्तनशीन हैं। संगमयुगी श्रेष्ठ आत्माओं का स्थान ही है बाप का दिलतख्त। ऐसा तख्त सारे कल्प में नहीं मिल सकता, विश्व के राज्य का वा स्टेट के राज्य का तख्त तो मिलता रहेगा लेकिन ऐसा तख्त फिर नहीं मिलेगा - यह इतना विशाल तख्त है जो चलो फिरो, खाओ-सोयो लेकिन सदा तख्तनशीन। जो ऐसे तख्तनशीन बच्चे हैं वह पुरानी देह वा देह की दुनिया से विस्मृत रहते हैं, देखते हुए भी नहीं देखते।

अच्छा - ओमशान्ति।