03-02-79   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन


सर्व पर रहम करो, ‘वहमऔर अहमभाव को मिटाओ

विश्व कल्याणकारी, राज्य भाग्य प्राप्त करने वाली, देव पद प्राप्त करने वाली आत्माओं प्रति बाबा बोले –

बापदादा सभी बच्चों को सम्पन्न स्वरूप, विश्व कल्याणकारी रूप में देख रहे हैं। वर्तमान समय अन्तिम स्वरूप वा अन्तिम कर्त्तव्य विश्व कल्याण का ही है। इस अन्तिम स्वरूप में स्थित रहने के लिए हरेक ब्राह्मण यथाशक्ति पुरूषार्थ कर रहे हैं। लक्ष्य सबका एक ही विश्व कल्याण करने का है लेकिन कोई अभी तक स्व कल्याण में ही लगे हुए हैं, और कोई स्वदेश के कल्याण करने में लगे हुए हैं। बहुत थोड़े बेहद के बाप समान बेहद अर्थात् विश्व की सेवा में अथवा विश्व कल्याणकारी स्वरूप में स्थित रहते हैं। विश्व कल्याणकारी श्रेंष्ठ आत्मा की निशानी क्या होगी?

1. विश्व कल्याणकारी जानते हैं कि समय कम है और कार्य महान है इसलिए विश्व कल्याणकारी हर सेकेण्ड वा संकल्प विश्व कल्याण के प्रति ही लगायेंगे।

2. तन मन और प्राप्त धन सदा विश्व सेवा में अर्पण करेंगे।

3. उनके मस्तक और नयनों में सदा विश्व की सर्व आत्मायें स्मृति वा दृष्टि में होंगी कि इन अप्राप्त आत्माओं को भी तृप्त आत्मा कैसे बनायें। भिखारी आत्माओं को सम्पन्न बनायें। वंचित हुई आत्माओं को सम्पर्क और सम्बन्ध में कैसे लायें। दिन-रात बाप द्वारा शक्तियों का वरदान लेते हुए सर्व को देने वाले दाता होंगे।

4. अथक, निरन्तर सेवाधारी होंगे। प्रोग्राम प्रमाण सेवाधारी नहीं लेकिन सदा एवररेडी आलराउन्डर होंगे।

5. ऐसे विश्व कल्याणकारी अर्थात् रहमदिल आत्मायें ही कैसी भी अवगुण वाली आत्मा हो, कड़े संस्कार वाली आत्मा हो, कम बुद्धि वाली आत्मा हो, पत्थर बुद्धि हो, सदा ग्लानि करने वाली आत्मा हो, सर्व आत्माओं के प्रति कल्याणकारी अर्थात् लाफुल और लवफुल होंगे। लक्ष्य सभी का ऐसा ही है लेकिन करते क्या हैं? चलते- चलते रहम के बदले दो बातों में बदल जाते हैं। कोई रहम करने के बदले आत्माओं में वहम भाव पैदा कर देते हैं - यह कभी बदल नहीं सकते, यह हैं ही ऐसे, सब तो राजा बनने वाले नहीं हैं, इस प्रकार के अनेक वहम भाव रहम को खत्म कर देते हैं। दूसरी बात - रहम भाव के बदले अहम् भाव ‘‘मैं ही सब कुछ हूँ - यह कुछ नहीं है। यह कुछ नहीं कर सकते मैं सब कुछ कर सकता हूँ।’’ इस प्रकार के अहम् भाव अर्थात् मैं-पन का अभिमान रहमदिल बनने नहीं देता। यह दोनों बातें बेहद के विश्व कल्याणकारी बना नहीं सकती। इसलिए स्व कल्याण वा स्व-देश कल्याण तक रह जाते हैं। विश्व कल्याणकारी बनने का सहज साधन जानते भी हो लेकन समय पर भूल जाते हो। कैसी भी अवगुणधारी आत्मा हो -कैसी भी पतित आत्मा वा पुरूषार्थहीन आत्मा दोनों में से कोई भी हो अज्ञानी पतित आत्मा होगी और ब्राह्मण परिवार की पुरूषार्थहीन आत्मा होगी-दोनों आत्माओं के प्रति विश्व कल्याणकारी अर्थात् बेहद की दाता आत्मा, विश्व परिवर्तन अधिकारी आत्मा सदा उन आत्माओं की बुराई वा कमज़ोरियों को कल्याणकारी होने के नाते पहले क्षमा करेंगी। जैसे बेहद का बाप बच्चों को क्षमा करते हैं किस बात पर? बच्चों की बुराई वा कमज़ोरियों को दिल में न समाए क्षमा करते हैं, पूज्य देवता भक्तों पर क्षमा करते हैं। तो विश्व कल्याणकारी मास्टर रचता भी हैं, विश्व अधिकारी भी हैं अर्थात् छोटों के आगे बड़ा राजा के समान हैं, बाप के समान हैं, पूज्य आत्मा हैं, इन तीनों सम्बन्ध के आधार से बुराई वा कमजोरी दिल पर न रख क्षमा करेंगे। उसके बाद ऐसी आत्मा के कल्याण प्रति सदा हर आत्मा के वास्तविक स्वरूप ओर गुण को सामने रखते हुए महिमा करेंगे अर्थात् उस आत्मा को अपनी महानता की स्मृति दिलायेंगे। किसके बच्चे हो - किस कुल के हो! संगमयुग की विशेषता वा वरदान क्या है! बाप का कर्त्तव्य असम्भव को भी सम्भव करने का है, तुम आत्मा आदिकाल की राजवंशी हो, अब ब्रह्मावंशी हो, मास्टर सर्वशक्तिवान हो, इस प्रकार की महिमा करेंगे - जिससे वह आत्मा गुणों को सुनते हुए स्मृति और समर्थी में आये और कमज़ोरी को वा बुराई को मिटाने की हिम्मत में आये।

जैसे आज की दुनिया में राजपूत वंश वाले अपने वंश की स्मृति दिलाते तो कमज़ोर में भी हिम्मत आ जाती - ऐसे विश्व कल्याणकारी - कमज़ोर आत्मा को भी महिमा से महान बना देंगे। अर्थात् अपनी रहमदिल की शकि्त से स्वयं तो उसके अवगुण धारण नहीं करेंगे लेकिन उसको भी अपने अवगुण विस्मृत कराए समर्थ बना देंगे। ऐसे समर्थ धरनी बनाने के बाद ऐसी आत्मा प्रति थोड़ी-सी मेहनत करने से, वहम भाव और अहम् भाव न रखने से ऐसी आत्मा भी परिवर्तन हो जायेगी। कभी भी ब्राह्मण परिवार में कमजोर आत्मा को - ‘‘तुम कमजोर हो, तुम कमजोर हो’’ नहीं कहना, नहीं तो जैसे शारीरिक कमज़ोर आत्मा अगर डाक्टर द्वारा सुने कि मैं तो मरने वाली हूँ तो हार्टफेल हो जायेगा। ऐसे आप सब भी मास्टर अथॉरिटी हो, श्रेष्ठ आत्मायें हों, विश्व परिवर्तक हो, आप लोगों के मुख से सदैव हर आत्मा के प्रति शुभ बोल निकलने चाहिए, दिलशिकस्त बनाने वाले नहीं, दिलशिकस्त बनना भी हार्टफेल होना हैं। चाहे कितना भी कमजोर हो उसको ईशारा भी देना हो, शिक्षा भी देनी हो, तो पहले समर्थ बनाकर फिर शिक्षा दो। पहले उनकी विशेषता की महिमा करो फिर उसको आगे के लिए और भी श्रेष्ठ आत्मा बनने का साधन, कमज़ोरी पर अटेन्शन रीति से दिलाओ। पहले धरनी पर हिम्मत और उत्साह का हल चलाओ फिर बीज डालो तो सहज ही बीज का फल निकलेगा। नहीं तो हिम्मतहीन कमज़ोर संस्कार वश आत्मा अर्थात् कलराठी जमीन में बीज डालते हैं इसलिए मेहनत और समय ज्यादा लगता है और सफलता भी कम निकलती है, विश्व कल्याण के कार्य में सोचने वा करने की फुर्सत नहीं मिलती, स्व कल्याण या देश कल्याण में ही लगे रहते हैं। विश्व कल्याणकारी स्वरूप में स्थित नहीं हो सकते। समझा। तो विश्व कल्याणकारी बनने के लिए क्या करना है और क्या न करना है। तब ही विश्व कल्याण की सेवा की गति तीव्र हो सकेगी। अभी मध्यम गति है इसलिए इस वर्ष में विश्व कल्याणकारी स्थिति की विधि द्वारा विश्व कल्याण के सेवा की गति तीव्र बनाओ, रहमदिल बनो। अब तक जो कुछ चला ड्रामा अनुसार जो चलता था वह चला। इससे भी आगे के लिए कल्याण की भावना ले, चढ़ती कला की भावना ले अब आगे बढो। कमज़ोरियों को सदा के लिए दृढ़ संकल्प द्वारा विदाई दो और विदाई दिलाओ। तो विश्व परिवर्तन का कार्य तीव्रगति से हो जायेगा। स्पीड और स्टेज को बढ़ाओ अर्थात् हर बात को नॉलेजफुल समर्थ स्थिति द्वारा सदा सहज पास करो और सदा पास हो जाओ तो फाइनल स्टेज पर पास विद आनर हो जायेंगे। समझा ऐसी तैयारी करो - जो दूसरी सीज़न में बापदादा सबको तीव्र पुरूषाथ्री के रूप में देखें। सभी आत्मायें फर्स्ट डिवीजन वाली आत्मायें हों - ऐसी महान आत्माओं का मिलन मेला मनाने आयें। हर ब्राह्मण बच्चा सदा ताज तिलक और तख्तधारी हो, ऐसी राज्य सभा में बाप आये। जब यहाँ राज्य अधिकारी सभा बनेगी तब वहाँ राज्य दरबार लगेगी। निमन्त्रण दिया जाता है तो विशेष आत्माओं के लिए विशेष स्टेज तैयार करनी पड़ती है। तो बापदादा को भी फिर आने का निमन्त्रण देते हो - तो हरेक प्रैक्टिकल सम्पूर्ण स्टेज तैयार करेंगे तब तो बापदादा आयेंगे। इसलिए हरेक एक दो से श्रेष्ठ वा सुन्दर स्टेज तैयार करो। अच्छा अब देखेंगे कौन-सा ज़ोन नम्बर वन जाता है, विदेश आगे जाता है, वा देश आगे जाता है अच्छा –

ऐसे सदा विश्व कल्याणकारी, सर्व प्रति रहमदिल, सदा शुभ चिंतन में रहने वाले और सदा शुभाचिंतक बनने वाले, हर आत्मा में हिम्मत और हुल्लास दिलाने वाले, ऐसे सदा राज्य अधिकारी सर्व को सदा सम्पन्न बनाने वाले समर्थ आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।

टीचर्स से बातचीत - सेवा का भाग्य प्राप्त आत्मायें हो! कितनी वंचित आत्माओं को बाप का परिचय दे तृप्त आत्मा बनाने वाली हो! सेवा में विशेष रहमदिल का गुण याद रहता है? रहमदिल बाप के बच्चे रहमदिल बन कर सेवा करते तो सफलता बहुत मिलती है। तो सभी बाप समान रहमदिल हो, अन्जान आत्माओं के प्रति तरस पड़ता है? सदा सम्पन्न मूर्त बन वरदानी और महादानी बनो। कमजोर आत्माओं को शक्ति दे आगे बढ़ाओ। सम्पन्न मूर्त बन सेवा करो। अच्छा।

‘‘43 वीं शिवजयन्ती महोत्सव मनाने सम्बन्धित अव्यक्त बापदादा का सन्देश’’ –

इस शिवरात्रि पर बाप को प्रत्यक्ष करने का कार्य करना है। अथॉरिटी से निर्भय हो वास्तविक परिचय देना है। इस शिवरात्रि उत्सव मनाने समय सब ऐसा प्रोग्राम रखें जिसमें सबका अटेन्शन विश्व के रचयिता तथा जिसके द्वारा पार्ट बजाया उस आदिदेव अर्थात् साकार ब्रह्मा को पहचानें। यह शिवरात्रि विशेष बाप को प्रत्यक्ष करने वाली, नवीनता वाली हो। बोलने समय यह विशेष अटेन्शन रहे कि प्वाइन्टस में ज्यादा न जावें, भाषण का लेविल ठीक रहे, प्वाइन्टस में ज्यादा जाने से जो लक्ष्य होता वह खत्म हो जाता। भाषण में शब्द कम हों लेकिन ऐसे शक्तिशाली हों जिसमें बाप का परिचय और स्नेह समाया हुआ हो, जो स्नेह रूपी चुम्बक आत्माओं को परमात्मा तरफ खैंचे। भाषण का स्थूल रूप तो अनेक लोग जानते हैं लेकिन हरेक के भाषण में रूहानी नशा हो, शब्दों में परमात्म स्नेह हो, मस्तक में बाप के प्रत्यक्षता की चमक हो तब बाप का साक्षात्कार सभी को करा सकेंगे। यह शिवरात्रि प्रत्यक्षता की शिवरात्रि करके मनाओ। सबका अटेन्शन जाए यह कौन हैं और किसके प्रति सम्बन्ध जोड़ने वाले हैं, सब अनुभव करें कि जो आवश्यकता है वह यहाँ से ही मिल सकती है, सब सुखों के खान की चाबी यहाँ ही मिलेगी। अच्छा।

सभी शिवरात्रि पर विश्व कल्याणकारी बन सेवा में उपस्थित होने वाले होवनहार सफलता के सितारों को यादप्यार।

पार्टियों से मुलाकात

1. स्व-स्थिति की सीट पर रहने से परिस्थितियों पर विजय:-

सदा मास्टर सर्वशक्तिवान की स्थिति में स्थित हो हर प्रकार की परिस्थितयों के ऊपर विजयी रहते हो? जब तक स्व स्थिति शक्तिशाली नहीं होगी - तो परिस्थिति के ऊपर विजय नहीं होगी परिस्थिति प्रकृति द्वारा आती है इसीलीए परिस्थिति रचना हो गई और स्वस्थिति वाला रचता है। तो सदा रचना के ऊपर विजय होती हैं ना। अगर रचता रचना से हार खा ले तो उसे रचता कहेंगे? तो प्रकृति द्वारा आई हुई परिस्थितियाँ रचना है, तो मास्टर रचता अर्थात् मास्टर सर्वशक्तिवान कभी हार खा नहीं सकते, असम्भव है। अगर अपनी सीट छोड़ते हो तो हार होती, सीट पर सेट होने वाले में शक्ति होती, सीट छोड़ी तो शक्तिहीन। तो मास्टर रचता की सीट पर सेट रहना है, सीट के आधार पर शक्तियाँ स्वत: आयेगी। नीचे नहीं आना, नीचे है ही देहअभिमान रूपी माया की धूल। नीचे आयेंगे तो धूल लग जायेगी अर्थात् शुद्ध आत्मा से अशुद्ध हो जायेंगे। बच्चा भी अगर स्थान से नीचे आ जाता है तो मैला हो जाता है, बच्चे के लिए भी अटेन्शन रखते - मैला न हो जाए। तो देहभान में आना अर्थात् मैला होना। आप शुद्ध आत्मा हो, शुद्ध पर अगर ज़रा भी मिट्टी लग जाए तो स्पष्ट दिखाई देती, जरा भी देहअभिमान की मैल आप शुद्ध आत्माओं में स्पष्ट दिखाई देगी - बार-बार देहभान में आना अर्थात् मिट्टी में खेलना वा मिट्टी खाना। तो ऐसे तो नहीं हो ना! कभी पिछले संस्कार तो नहीं आ जाते। जब मरजीवा हो गये तो पिछला खत्म हुआ। मरजीवा अर्थात् ब्राह्मण जीवन। ब्राह्मण कभी मिट्टी से नहीं खेलेंगे, यह तो शूद्रपन की बातें हैं। तो सदा बाप की याद की गोद में रहो। याद ही याद है, लाडले बच्चों को माँ-बाप गोद में रखते, मिट्टी में नहीं जाने देते, तो आप लाडले बच्चे हो ना - तो मिट्टी में नहीं खेल सकते। रतनों से खेलते रहो। मिट्टी में खेलने वाले बाप के बच्चे हो नहीं सकते। रायल बाप के बच्चे मिट्टी से नहीं खेलते। तो सबसे बड़े से बड़े बाप के बच्चे सदा ज्ञान रतनों से खेलने वाली श्रेष्ठ आत्मायें - ऐसे हो ना। अच्छा।

कैसी भी परिस्थिति हो लेकिन सदा बाप का साथ स्मृति में रहे तो मायाजीत, बाप को साथी बनाने से विजयी रतन हो जायेंगे। बाप का साथ याद रहे तो सदा खुश और सदा निर्विघ्न रहेंगे। एक से डबल बन गये - तो सदा महावीर रहेंगे, निर्भय रहेंगे। बाप का साथ होने से मायाजीत बन जायेंगे। अच्छा - ओम् शान्ति।

‘‘प्राण प्यारे अव्यक्त बापदादा की व्यक्तिगत मुलाकात’’ (बिहार बंगाल ज़ोन) उड़ीसा :-

जितना वृद्धि को पाता जाए उतना सेवा का इनाम मिलता है। जो जितनी आत्माओं को बाप का परिचय देने के निमित्त बनते हैं उतना ही अभी भी खुशी की प्राप्ति होती है और भविष्य में भी राज्य पद की प्राप्ति होती है। वर्तमान और भविष्य दोनों ही काल श्रेष्ठ बन जाते हैं। ऐसा श्रेष्ठ कार्य जिससे दोनों काल श्रेष्ठ हो जाएं तो कितना करना चाहिए। लौकिक में भी किसी कार्य में फायदा अधिक होता तो दिन रात लग जाते हैं यह तो सबसे श्रेष्ठ बिज़नेस है। 21 जन्म के लिए सौदा करते हो। इस सीज़न में इतना जमा कर लेते हो जो फिर आराम से खाते रहेंगे। कितनी बड़ी लाटरी मिलती है, एक जन्म की थोड़ी मेहनत और अनेक जन्म खाते रहते। वह हद की लाटरी होती उसमें एक डालते तो लाख की लाटरी लग सकती लेकिन यह तो बेहद की अविनाशी लाटरी है। घर बैठे इतनी श्रेष्ठ प्राप्ति है, घर बैठे भगवान मिल गया ना! तो अपने भागय की सदा महिमा करते रहो, सदा मन में अपने भाग्य के गीत गाते हुए खुश रहो, अगर कहीं भी लगाव होगा, मोह होगा तो दुख की लहर आयेगी। कभी दुख होता है? बाप जन्म-जन्मान्तर के लिए रोना बन्द कराते हैं, दुख होगा तो रोयेंगे, दुख ही नहीं तो रोना बन्द। सब सुखदाता के बच्चे मास्टर बन गये तो दुख तो आ नहीं सकता। दुख का दरवाज़ा बन्द, स्वर्ग अर्थात् सुख का दरवाज़ा खुल गया। स्वर्ग की टिकट ले ली है ना - सदा खुशी में नाचते रहो, खुशी होगी तो दूसरे भी आपको देखकर खुश होंगे और बाप के समीप आयेंगे। आपकी खुशी बाप का परिचय देगी। कभी भी वियोग में नहीं आना, सदा योगी - संगमयुग पर विशेष प्राप्ति बाप से मिलन मनाने की है। सदा मिलन मनाने वाले, ऐसे खुशी में रहो। अच्छा –

2. सदा अपने को महावीर अर्थात् सदा ज्ञान के शस्त्रधारी अनुभव करते हो? महावीर को सदा ज्ञान के शस्त्र दिखाते हैं। वह है विजय की निशानी। ऐसे सदा ज्ञान के शस्त्रं से सजे हुए महावीर हो? शस्त्रं को समय पर काम में लगाते हो वा समय पर कार्य नहीं करते? ऐसे भी होता है चीज़ें सब होती हैं लेकिन समय पर याद नहीं रहतीं। तो जैसी परिस्थिति वैसे ज्ञान के शस्त्र द्वारा महावीर बन मायाजीत बन जाते हो। कितने समय में विजयी होते हैं? सेकेण्ड में विजयी बनते हो या टाइम लगता है। अगर टाइम लगता है तो महावीर नहीं कहेंगे। अगर विजयी बनने में एक घण्टा लगा और उसी टाइम के अन्दर अन्तिम घड़ी आ जाए तो किस पद को प्राप्त होंगे। तो महावीर अर्थात् हर घड़ी अटेन्शन। पास विद आनर वही होगा जो हर परिस्थिति में पास होगा - तो सदा पास होने वाले हो ना। अच्छा –

टीचर्स से मुलाकात - टीचर्स को विशेष लिफ्ट की गिफ्Ìट है? क्यों? टीचर्स को सिवाए ईश्वरीय सेवा के और कोई भी बोझ नहीं। एक की ही याद, एक के ही प्रति सेवा। जब एक काम है तो एक काम में अच्छी तरह से आगे बढ़ सकते हैं ना! प्रवृति वालों को तो दो कार्य निभाने पड़ते, टीचर्स सहज ही एक रस रह सकती हैं। बातें करनी हैं तो भी बाप का परिचय देना है, कर्मणा सेवा करनी है तो भी बाप ने जिसके निमित्त बनाया। तो टीचर्स को नैचुरल गिफ्ट मिली हुई है। इस गिफ्ट का लाभ उठाते रहो। टीचर्स अर्थात् डबल लाइट। निमित्त बनकर चलना अर्थात् डबल लाइट तो सदा इसी स्थिति का अनुभव होना चाहिए। करनकरावनहार करा रहे हैं मैं निमित्त हूँ तब सफलता होती है। मैं-पन आया अर्थात् माया का गेट खुला, निमित्त समझा अर्थात् माया का गेट बन्द हुआ। निमित्त समझने से मायाजीत भी बन जाते, डबल लाइट भी बन जाते और सफलता भी मिल जाती। तो टीचर्स को यह लिफ्ट है। जितना लाभ उठाना चाहो उतना उठा सकती हो। तो टीचर्स को चैक करना चाहिए - हमारा नम्बर क्या है! अच्छा - ओम्शान्ति।