09-02-1980       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


"मधुबन निवासियों की विशेषता"

आज विशेष मधुबन निवासी भाग्यशाली आत्माओं से मिलने आये हैं। मधुबन निवासियों की महिमा आज दिन तक भक्त भी गा रहे हैं और बाह्मण भी गाते हैं क्योंकि जो मधुबन धरती की महिमा है तो धरती पर रहने वालों की महिमा स्वत: ही महान हो जाती है। मधुबन वालों को ड्रामा अनुसार सब बातों में विशेष चान्स मिला हुआ है। बाप-दादा की चरित्रभूमि, कर्मभूमि होने के कारण जैसे स्थान का स्थिति पर प्रभाव पड़ता है, ऐसे स्वस्थिति में श्रेष्ठता लाने का व तीव्र पुरुषार्थी बनाने का स्थान होने के कारण भी मधुबन वालों को विशेष चान्स है। मनसा को विश्व-कल्याणकारी वृत्ति में शक्तिशाली बनने का अर्थात् विश्व-सेवा का मुख्य केन्द्र `मधुबन' है। मधुबन में आये हुए मेहमानों की मनसा-वाचा-कर्मणा सेवा के साथ-साथ रूहानी अव्यक्त वातावरण बनाने की सेवा का विशेष चान्स है। मधुबन वालों को देख सर्व आत्मायें सहज फॉलो करना सीखती हैं। जैसे मधुबन बेहद का है वैसे मधुबन निवासियों को भी बेहद सेवा का चान्स है। अपने कर्म की प्रालब्ध के हिसाब से तो हर आत्मा को यथा कर्म तथा फल मिलता ही है लेकिन जितनी भी आत्मायें आई उनकी सेवा हुई और तृप्त हो करके गई तो इतनी सब आत्माओं की सन्तुष्टता का शेयर मधुबन निवासी, मेहमाननवाजी करने वालों का बन गया ना। घर बैठे अगर सेवा के शेयर्स जमा हो गये तो विशेषता हुई ना। और मधुबन वालों को प्रत्यक्ष फल मिलने में भी विशेषता है। भविष्य फल तो बन ही रहा है। मधुबन वालों को और भी विशेष लिफ्ट है। बाप-दादा की पालना तो मिलती ही है, लेकिन साकार रूप में निमित्त बनी हुई श्रेष्ठ आत्माओं की भी पालना मिलती है, तो डबल पालना की लिफ्ट है और बना-बनाया सब साधन प्राप्त होता है तो ऐसे श्रेष्ठ भाग्यशाली अपना श्रेष्ठ भाग्य जान सेवा के निमित्त बन चलते हो? जैसे कर्मणा सेवा के लिए अथक सेवाधारी का सर्टिफकेट देकर जाते हैं, ऐसे तीव्र पुरुषार्थी व निरन्तर सहजयोगी की स्थिति का सर्टिफकेट देते हैं? दोनों सर्टिफकेट साथ-साथ मिले तब कहेंगे यज्ञ की समाप्ति समीप है। मेहनत सबने अच्छी की। रात-दिन जिन्होंने सेवा के कार्य में अपना तन-मन और शक्तियों का खज़ाना लगाया, ऐसे बच्चों को बाप-दादा भी मुबारक देते हैं। त्याग वालों को भाग्य नैचुरल खुशी के रूप में और हल्केपन की अनुभूति के रूप में उसी समय ही प्राप्त होता रहता है। इस निशानी से हरेक अपने रिजल्ट को चेक कर सकते हैं कि कितना समय त्याग और निष्काम भाव रहा, निमित्तपन का भाव रहा या बीच-बीच मे और भी कोई भाव मिक्स (Mix) हुआ। चेक कर आगे के लिए चेन्ज कर देना, यह है चढ़ती कला का विशेष पुरूषार्थ।

दूसरी बात - एक विशेष गुण सबको सदा और सहज धारण हो जैसे कि मेरा निजी गुण है। जब वह निजी बन जाता है तो कोशिश नहीं करनी पड़ती है, नैचुरल जीवन ही वह बन जाता है। वह विशेष गुण है - `एक दूसरे की कमज़ोरी न धारण करो न वर्णन करो' वर्णन होने से वह वातावरण फैलता है। अगर कोई सुनाये भी तो दूसरा शुभ भावना से उससे किनारा कर ले। यह नहीं कि इसने सुनाया, मैंने नहीं कहा - लेकिन सुना तो सही ना! जैसे कहने वाले का बनता है, सुनने वाले का भी बनता है। परसेन्टेज में अन्तर है लेकिन बनता तो है ना? व्यर्थ चिन्तन या कमज़ोरी की बातें नहीं चलनी चाहिए। बीती हुई बात को भी रहमदिल बन समा दो। समाकर शुभ भावना से उस आत्मा के प्रति मनसा सेवा करते रहो। जब 5 तत्वों के प्रति भी आपकी शुभ भावना है, ये तो फिर भी सहयोगी ब्राह्मण आत्मायें हैं। भले संस्कार के वश कोई उल्टा भी कहता, करता या सुनता है लेकिन आप उस एक को परिवर्तन करो। एक से दो तक, दो से तीन तक ऐसे व्यर्थ बातों की माला की दीपमाला न हो जाए। यह गुण धारण करो। किसी का सुनना, सुनाना नहीं है लेकिन समाना है। सहयोगी बन मनसा से या वाणी से उनको भी आगे बढ़ाना है। होता क्या है एक का मित्र होता उस एक का फिर दूसरा मित्र होता, दूसरे का फिर तीसरा होता, ऐसे व्यर्थ बातों की माला बड़ा रूप लेकर चारों और फैल जाती है। इसलिए इन बातों का अटेन्शन। अच्छा! मधुबन के पाण्डवों की यूनिटी (Unity) की भी विशेषता है। पूरी सीजन निर्विघ्न चले तो निर्विघ्न भव के वरदानी हो गये ना! सेवा की सफलता में सब पास हैं। सेवा नहीं करते, लेकिन मेवा खाते हो। सर्व ब्राह्मण परिवार की आशीर्वाद के अधिकारी बनना, यह मेवा खाया या सेवा की?