02-01-82       ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन


"विश्व परिवर्तन की जिम्मेवारी संगमयुगी ब्राह्मणों पर"

सदा जागती ज्योति शिवबाबा अपने चैतन्य दीपकों के प्रति बोले:-

‘‘बापदादा अपने ब्राह्मण कुल दीपकों से मिलने के लिए आये हैं। चैतन्य दीपकों की माला को देख रहे हैं। हर एक दीपक विश्व को रोशन करने वाले चैतन्य दीपक हैं। सर्व दीपकों का सम्बन्ध एक जागती-ज्योति से है। हर दीपक की रोशनी से विश्व का अंधकार मिटता हुआ, रोशनी की झलक आ रही है। हर दीपक की किरणें फैलती हुई विश्व के ऊपर प्रकाश की छत्रछाया बनी हुई है। ऐसा सुन्दर दृश्य बापदादा दीपकों का देख रहे हैं। आप सभी भी सर्व दीपकों की मिली हुई रोशनी की छत्रछाया देख रहे हो? लाइट माइट स्वरूप अनुभव कर रहे हो? स्व-स्वरूप में भी स्थित और साथ-साथ विश्व की सेवा भी कर रहे हो। स्वस्व रूप और सेवा स्वरूप दोनों साथ-साथ अनुभव कर रहे हो? इसी स्वरूप में स्थित रहो। कितना शक्तिशाली स्वरूप है। विश्व की आत्मायें आप जगते हुए दीपकों की तरफ कितना स्नेह से देख रही हैं। अनुभव करते रहो - कि जरासी रोशनी के लिए भी कितनी आत्मायें अंधकार में भटकती हुई रोशनी के लिए तड़प रही हैं? वो तड़पती हुई आत्मायें नज़र आती हैं? अगर आप दीपकों की रोशनी टिमटिमाती रहेगी, अभी-अभी जगी, अभी-अभी बुझी तो भटकी हुई आत्माओं का क्या हाल होगा? जैसे यहां भी अंधकार हो जाता है तो सबकी इच्छा होती है अभी रोशनी हो। बुझती-जगती हुई लाइट पसन्द नहीं करेंगे। ऐसे आप हर जगे हुए दीपक के ऊपर विश्व के अंधकार मिटाने की जिम्मेवारी है। इतनी बड़ी जिम्मेवारी अनुभव करते हो?

ड्रामा के रहस्य अनुसार आज ब्राह्मण जगे तो सब जगे। ब्राह्मण जगे तो दिन, रोशनी हो जाती है। और ब्राह्मणों की ज्योति बुझी तो विश्व में अंधकार, रात हो जाती है। तो दिन से रात, रात से दिन बनाने वाले आप चैतन्य दीपक हो। इतनी जिम्मेवारी हर एक पर है। तो बापदादा हर एक के जिम्मेवारी समझने का चार्ट देख रहे हैं कि हर एक अपने को कितना जिम्मेवार समझते हैं? विश्व परिवर्तन की जिम्मेवारी का ताज धारण किया है वा नहीं? इसमें भी नम्बरवार ताजधारी बैठे हुए हैं। अपना ताज देख रहे हो? सदा पहनते हो वा कभी-कभी पहनते हो? अलबेले तो नहीं बनते? ऐसा तो नहीं समझते कि जिम्मेवारी बड़ों की है। विश्व का ताज बड़ों को देंगे या आप लेंगे? जैसे विश्व के राज्य अधिकारी सभी अपने को समझते हो, अगर कोई आपको कहे आप प्रजा ही बन जाना तो आप पसन्द करेंगे? सब विश्व का महाराजन बनने आये हो ना? वा प्रजा बनना भी पसन्द है? क्या बनेंगे? प्रजा बनने के लिए तैयार है कोई? सभी हाथ उठाते हो लक्ष्मी-नारायण बनने के लिए, तो जब वह राज्य का ताज पहनना है तो उस ताज का आधार सेवा की जिम्मेवारी के ताज पर है। तो क्या करना पड़ेगा? अभी से ताजधारी बनने के संस्कार धारण करने पड़ेंगे। कौन-सा ताज? जिम्मेवारी का।

तो आज बापदादा सबके ताज देख रहे हैं। तो यह कौन-सी सभा हो गई? ताजधारियों की सभा देख रहे हैं। सभी ने इस ताजपोशी का दिन मनाया है? मनाया है कि अभी मनाना है? जैसे आपके यादगार चित्र श्रीकृष्ण के चित्र में बचपन से ही ताज दिखाते हैं। बड़ा होकर तो होगा ही लेकिन बचपन से ही ताजधारी। देखा है अपना चित्र? डबल विदेशियों ने अपना चित्र देखा है? यह किसका चित्र है? एक ब्रह्मा का चित्र है या आप सबका है? तो जैसे श्रीकृष्ण के चित्र में बचपन से ही ताजधारी दिखाया है वैसे आप श्रेष्ठ आत्मायें भी मरजीवा बनीं, ब्राह्मण बनीं और जिम्मेवारी का ताज धारण किया। तो जन्म से ताजधारी बनते हो इसलिए यादगार में भी जन्म से ताज दिखाया है। तो ब्राह्मण बनना अर्थात् ताजपोशी का दिन मनाना। तो सबने अपनी ताजपोशी मना ली है ना? अभी सिर्फ यह देखना है कि सदा इस विश्व सेवा की जिम्मेवारी के ताजधारी बन सेवा में लगे हुए रहते हैं? तो क्या दिखाई दे रहा है? ताजधारी तो सब दिखाई दे रहे हैं लेकिन कोई की दृढ़ संकल्प की फिटिंग ठीक है और कोई की थोड़ी लूज है। लूज होने कारण ताज कभी उतरता है, कभी धारण करते हैं। तो सदा दृढ़ संकल्प द्वारा इस ताज को सदा के लिए सेट करो। समझा, क्या करना है? ब्रह्मा बाप बच्चों को देख कितने हर्षित होते हैं? ब्रह्मा बाप भी सदा गीत गाते हैं, कौनसा गीत गाते हैं? ‘‘वाह मेरे बच्चे, वाह''! और बच्चे क्या गीत गाते हैं? (वाह बाबा, वाह!) यह सहज गीत है इसीलिए गाते हैं। सबसे ज्यादा खुशी किसको होती है? सबसे ज्यादा ब्रह्मा बाप को खुशी होती है। क्यों? सभी बच्चे अपने को क्या कहलाते हो? ब्रह्माकुमार और ब्रह्माकुमारी, शिव कुमार और शिव कुमारी नहीं कहते हो। तो ब्रह्मा बाप रचयिता अपनी रचना को देख हर्षित होते हैं। ब्रह्मा मुख वंशावली हो ना! तो अपनी वंशावली को देख ब्रह्मा बाप हर्षित होते है।

अव्यक्त रूपधारी होते भी मधुबन में व्यक्त रूपधारी की अर्थात् चैतन्य साकार रूप की अनुभूति कराते ही रहते हैं। मधुबन में आकर ब्राह्मण बच्चे ब्रह्मा से साकार रूप की, साकार चरित्र की अनुभूति करते हो ना? विशेष मधुबन भूमि को वरदान है - साकार रूप की अनुभूति कराने का। तो ऐसी अनुभूति करते हो ना! आकारधारी ब्रह्मा है या साकार है? क्या अनुभव करते हो? रूह-रूहान करते हो? अच्छा-

आज वतन में बापदादा की यही रूह-रूहान चल रही थी कि डबल विदेशी बच्चे अपने समीप के सम्बन्ध के स्नेह में निराकार और आकार को साकार रूपधारी बनाने में बहुत होशियार हैं। बच्चों के स्नेह के जादू से आकार भी साकार बन जाता है। ऐसे स्नेह के जादूगर बच्चे हैं। स्नेह, स्वरूप को बदल लेता है। तो ब्रह्मा बाप भी ऐसे ही अनुभव करते हैं कि हरेक स्नेही बच्चे से साकार रूपधारी बन मिलते हैं, अर्थात् बच्चों के स्नेह का रेसपान्ड देते हैं। स्नेह की रस्सी से बापदादा को सदा साथ बाँध देते हैं। यह स्नेह की रस्सी ऐसी मजबूत है जो कोई तोड़ नहीं सकता। 21 जन्मों के लिए ब्रह्मा बाप के साथ भिन्न-भिन्न सम्बन्ध में बँधे हुए ही रहेंगे। अलग नहीं हो सकते। ऐसी रस्सी बाँधी है ना? इसको ही कहा जाता है अविनाशी मीठा बन्धन। 21 जन्मों तक निश्चित है। तो ऐसा बन्धन बाँध लिया है ना? जादूगर बच्चे हो ना? तो सुना आज वतन में क्या रूह-रूहान चली। ब्रह्मा बाप एक-एक बच्चे की विशेषता की चमकती हुई मणि को देख रहे थे। हर बच्चे की विशेषता मणि के समान चमक रही थी। तो अपनी चमकती हुई मणि को देखा है! अच्छा-

डबल विदेशी बच्चों से मिलने आते हैं, वाणी नहीं चलाते हैं। बाप की कमाल है लेकिन बच्चों की भी कम नहीं। आप समझते हो कि हम आपस में रूह-रूहान करते लेकिन बापदादा भी रूह-रूहान करते हैं। अच्छा-

ऐसे सदा विश्व सेवा के जिम्मेवारी के ताजधारी, सदा स्नेह के बंधन में बापदादा को अपना साथी बनाने वाले, 21 जन्म के लिए अविनाशी सम्बन्ध में आने वाले, ऐसे सदा जगे हुए दीपकों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।''

जर्मन ग्रुप:- सभी के मस्तक पर क्या चमक रहा है? अपने मस्तक पर चमकता हुआ सितारा देख रहे हो? बापदादा सभी के मस्तक पर चमकती हुई मणि को देख रहे हैं। अपने को सदा पद्मापद्म भाग्यशाली आत्मायें समझते हो? हर समय कितनी कमाई जमा करते हो? हिसाब निकाल सकते हो? सारे कल्प के अन्दर ऐसा कोई बिजनेसमैन होगा जो इतनी कमाई करे! सदा यह खुशी की याद रहती है कि हम ही कल्प-कल्प ऐसे श्रेष्ठ आत्मा बने हैं? तो सदा यही समझो कि इतने बड़े बिजनेसमैन हैं और इतनी ही कमाई में बिजी रहो। सदा बिजी रहने से किसी भी प्रकार की माया वार नहीं करेगी क्योंकि बिजी होंगे तो माया बिजी देखकर लौट जायेगी, वार नहीं करेगी। सहज मायाजीत बनने का यही साधन है कि सदा कमाई करते रहो और कराते रहो। जैसे-जैसे माया के अनेक प्रकारों के नालेजफुल होते जायेंगे तो माया किनारा करती जायेगी। दूसरी बात एक सेकण्ड भी अकेले नहीं हो, सदा बाप के साथ रहो तो बाप के साथ को देखते हुए माया आ नहीं सकती क्योंकि माया पहले बाप से अकेला करती है तब आती है। तो जब अकेले होंगे ही नहीं फिर माया क्या करेगी? बाप अति प्रिय है, यह तो अनुभव है ना? तो प्यारी चीज भूल कैसे सकती! तो सदा यह स्मृति में रखो कि प्यारे ते प्यारा कौन? जहाँ मन होगा वहाँ तन और धन स्वत: होगा। तो ‘‘मन्मनाभव'' का मन्त्र याद है ना! जहाँ भी मन जाए तो पहले यह चेक करो कि इससे बढ़िया, इससे श्रेष्ठ और कोई चीज है या जहाँ मन जाता है वही श्रेष्ठ है! उसी घड़ी चेक करो तो चेक करने से चेंज हो जायेंगे। हर कर्म, हर संकल्प करने के पहले चेक करो। करने के बाद नहीं। पहले चेकिंग पीछे प्रैक्टिकल। अच्छा –